नई उमंग

स्कूल में बच्चे मैडम भारती के आने का इंतजार कर रहे थे। बच्चों को अपनी मैडम भारती बहुत ही अच्छी लगती थी। वह उन्हें बहुत ही प्यार से पढ़ाती थी।

हर बच्चे को खेल खेल में पढ़ाना उसका शौक था। इसी कारण उसकी कक्षा में बच्चे पाठ को बड़े ध्यान से सुनते थे ।उसकी कक्षा में बच्चों के सबसे अच्छे अंक आते थे। हर बार भारती को उनकी अच्छी प्रतिभा के कारण उन्हें हर साल बैस्ट टीचर का खिताब दिया जाता था।

 आज उनके  स्कूल में एक ऐसा बच्चा आया था। जिसको देखकर मैडम भारती   बहुत ही परेशान हो गई। उस बच्चे को कुछ भी नहीं आता था वह कोरा कागज था और पांचवी में पढ़ने आया था। उसे तो अक्षरों की भी पहचान नहीं थी।। उसे 100 तक गिनती भी नहीं आती थी। मैडम ने उस बच्चे का जायजा लिया उन्होंनें पाया  कि वह तो पहली कक्षा में ही बैठने लायक है। वह क्या करती? परेशान रहने लगी। वह बच्चा भोला-भाला और उम्र 12 साल मैडम ने उस से पूछा तुम पहले कहां पढ़ते थे? वह बोला। सरकारी स्कूल में। वह बहुत सारे स्कूलों में कभी इधर कभी उधर। वह बोला मैडम जी हम एक जगह पर 2 साल से ज्यादा नहीं ठहरते। जहां पर मेरे  पिता जी को काम मिलता है हम वहीं पर चले जाते हैं।। मुझे स्कूल में कोई भी अध्यापक भी अच्छे ढंग से नहीं पढ़ाते। वह मुझ से परेशान हो जातें हैं जब वह उन के किसी भी प्रश्न को न लिख कर और न बोल कर समझा पाता है। हर बार प्रताड़ित होना पड़ता है। कुछ दिन पढ़ाने के बाद मुझे कोई भी मुझे पढ़ाना पसन्द नहीं करता।  क्योंकि मैं अब बड़ा हो गया हूं? 

   मैडम भारती   उस बच्चे की कहानी सुनकर रो पड़ी। वह अपने मन में सोचने लगी आज से मैं केवल इसी बच्चे की ओर  ही ध्यान दूंगी चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़ेगा। सारे बच्चे तो पढ़ाया हुआ याद कर ही लेते हैं लेकिन इस बच्चे को पढ़ाना मेरा  सबसे बढा फर्ज है। निरक्षर को ज्ञान देना मेरा दृढ़ कर्तव्य है। मैं एक छोटे बच्चे की तरह इस पर अधिक ध्यान दूंगी। भारती ने उस बच्चे को पढ़ाना शुरु कर दिया। पहली कक्षा के बच्चों के साथ   पढ़ाते पढ़ाते बच्चा कुछ-कुछ पढ़ने लग गया था। यह भारती के लिए किसी भी चमत्कार से कम नहीं था। 

   स्कूल में आज परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था। सभी अध्यापक मैडम भारती को देखकर कह रहे थे। मैडम हर बार आप ईनाम की हकदार होती है इस बार आप को ईनाम नहीं मिलेगा। इस बार बच्चों के इतने अच्छे अंक नहीं आए हैं। 

    प्रधानाचार्य जी भी हैरान थे ईनाम लेने वाली भारती मैडम का परिणाम इस बार कम रहा था।। 80% से कम अंक लेने वाले बच्चों की श्रेणी में मैडम भारती  का नाम था। कम अंक लेनें का कारण स्कूल के निरिक्षण कर्ता को जांच करना था।   

  अधिकारी वर्ग    बच्चे को जांच की की कसौटी पर खरा उतरने के बाद बच्चे की रिपोर्ट हर महीने  अध्यापिकाओं से मांगते थे। हर बच्चे का निरीक्षण करने के पश्चात बड़े बड़े अधिकारियों को भेज देते थे।  स्कूल के वार्षिक परीक्षा परिणाम का समारोह आयोजित किया गया था। 

आज स्कूल में पारितोषिक  समारोह था। 

  पारितोषिक के लिए नाम पुकारा गया।उसमें ं केवल दो-तीन  अध्यापक अध्यापिकाओं के नाम दिए गए। सब आपस में कानाफूसी कर कह रहे थे कि इस बार तो मैडम भारती को कुछ नहीं मिलेगा। प्रधानाचार्य जी ने तीनों अध्यापक-अध्यापिकाओं  को उनके नाम से पुकारा। सोनाली भारतीऔर पुनीत। तीनों ने में से एक- को ही ईनाम दिया जाना था। सभी बच्चों की अध्यापकों से रिपोर्ट मांगी गई थी कि वह किस वजह से बच्चों के कम अंक आए ।  

मैडम भारती अपनें मन में सोच रही थी तो क्या हुआ उसे आज ईनाम नहीं मिलेगा न सही आज वह अपनें दिल से इतनी खुश हे कि वह एक ऐसे बच्चे को शिक्षा दिला पाई जिस के मां बाप दोनों निरक्षर हैं। वह अपनें माता पिता को भी अक्षर ज्ञान दे सकता है। मेरा असली इनाम तो वह होगा जब वह बच्चा अच्छे ढंग से पढ़नें लिखनें के काबिल बन पायेगा। वह जल्दी जल्दी समारोह में  आ कर अपनी कुर्सी पर बैठ गई। 

  सभी अध्यापक  वर्ग मैडम                     भारती के आने का इंतजार कर रहे थे।  वह समारोह में पहुंच चुकी थी। बच्चों को अपनी मैडम भारती बहुत अच्छी लगती थी। वह सभी बच्चों को बहुत ही प्यार से पढ़ाती थी। हर बच्चे को खेल खेल में पढ़ाना उत्साहित हो कर कक्षा में  बच्चे बड़े ध्यान से उनके लैक्चर को सुनते थे। उसकी कक्षा में बच्चों के सबसे अच्छा अंक आया करते थे। हर बार भारती को ही उसकी अच्छी प्रतिभा के कारण उसे हर साल बैस्ट टीचर का खिताब दिया जाता था।

आज उस के स्कूल में एक ऐसा बच्चा आया था जिसको देखकर मैडम भारती परेशान हो गई। उस बच्चे को कुछ भी नहीं आता था। वह पूरा कागज था और पांचवीं में पढ़ने आया था उसे तो अक्षरों की भी पहचान नहीं थी। सौ तक गिनती भी नहीं आती थी। मैडम ने उस बच्चे का जायजा लिया उसने पाया वह तो पहली कक्षा में ही शामिल करने लायक है। वह क्या करती? परेशान रहने लगी वह बच्चा भोला भाला और उम्र 12 साल मैडम ने उसे पूछा तुम पहले कहां पढ़ते थे।?   वह बोला सरकारी स्कूल। मैडम जी हम एक जगह पर 2 साल से ज्यादा नहीं ठहरा करते हैं जहां पर मेरे पापा को काम मिलता है हम वहीं चले जातें हैं। उस बच्चे की कहानी सुनकर मैडम भारती का दिल रो पड़ा वह अपने मन में सोचने लगी 

आज से मैं केवल इसी बच्चे की ओर अधिक ध्यान दूंगी चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़ेगा सारे बच्चे तो पढ़ा हुआ याद कर ही लेते हैं लेकिन इस बच्चे को पढ़ाना पहला मेरा कर्तव्य है। निरक्षर को ज्ञान देना मेरा दृढ़ कर्तव्य है। मैं इस बच्चे की तरफ ही अधिक ध्यान दूंगी। मैडम भारती ने उस बच्चे को पढ़ाना शुरू किया बच्चे को शुरू से पढ़ाते पढ़ाते वह बच्चा कुछ कुछ पढ़ने लग गया था। यह भारती मैडम के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। स्कूल में आज परीक्षा परिणाम घोषित होने वाला था सभी अध्यापक मैडम भारती को देखकर कह रहे थे हर बार आप  ही ईनाम की हकदार होती हैं। इस बार आप को ईनाम नहीं मिलेगा। इस बार बच्चों के इतने अच्छे अंक नहीं आए हैं। 

प्रधानाचार्य जी भी हैरान थे कि हर बार इनाम लेने वाले भारती मैडम का परिणाम इस बार कम ही रहा था 80% से कम अंक लेने वाले बच्चों की श्रेणी में मैडम का नाम था। ईनाम देने का काम स्कूल के निरीक्षक महोदय का था वह हर बच्चे की रिपोर्ट हर महीने मांगते थे हर बच्चे का निरीक्षण करने के बाद बड़े बड़े अधिकारियों को भेज देते थे सामने पारितोषिक के लिए नाम पुकारा गया पारितोषिक में तीन मेडम के नाम लिए गए प्रधानाचार्य जी ने तीनों अध्यापक-अध्यापिकाओं के नाम पुकारे सोनाली भारती और पुनीत तीनों में से एक को ही ईनाम दिया जाना था। सभी बच्चों की मैडम से रिपोर्ट मांगी गई थी कि किस वजह से बच्चों के कम अंक आए हैं मैडम ने अपनी रिपोर्ट जमा करवा दी थी जब ईनाम के लिए मैडम भारती को इस बार  इनाम भारती को नहीं मिलना था। इनकी कक्षा में तो बच्चों के अच्छे अंक नहीं आए हैं 

प्रधानाचार्य ने कहा कि आप यह नहीं जानते होंगे कि इनकी कक्षा में एक ऐसा बच्चा आया था जिसको कुछ भी नहीं आता था। मैडम ने दिन रात करके उसको पढ़ाने के काबिल बनाया किसी निरक्षर को ज्ञान देकर  उसका जीवन सफल बनाना सबसे बड़े पुण्य का काम है। उसके लिए एक बच्चा ही एसा था जिसको कुछ नहीं आता था। उन्होंने उसे पढ़ा कर अपनी योग्यता का सबूत दे दिया।। 

असली ईनाम की हकदार तो यही अध्यापिका है भारती की आंखें नम हो गईं। आज उसकी जीत हुई थी। अपने आप को वह बहुत ही भाग्यशाली महसूस कर रही थी। जिसने एक ऐसे बच्चे को पढ़ने के काबिल बनाया था जिस बच्चे के मां-बाप दोनों को पढ़ना लिखना नहीं आता था। बच्चे के मां-बाप ने आकर मैडम को कहा भगवान आपको सदा खुश रखे। आपने हमारे बच्चों को ज्ञान देकर एक नई  उमंग नई दिशा प्रदान की है। 

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