नजरिया

किसी गांव में एक बुढ़िया रहती थी। वह बिल्कुल अकेली थी। उसके पास काफी बड़ा घर था। वह हमेशा अकेली ही रहती थी। वह अपने आसपास के घरों में अपने पड़ोसियों के साथ खूब गप्पे मारती। वह अपनी मीठी मीठी बातों से पड़ोस की औरतों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी। उसकी जुबान कैंची की तरह चलती थी। पड़ोस की औरतें उसे अपने घर में बिठा लेती थी परंतु अगर उसके घर कोई आ जाता था तो वह उसको एक गिलास चाय तक के लिए भी नहीं पूछती थी। इसी तरह वह इधर उधर से खा पीकर आ जाती थी अपने घर में तो वह कभी कभार ही खाना बनाती थी। वह अपने बेटे के हमउम्र जैसे लड़के को वहां से हर रोज जाते देखा करती थी। उसने यह भी पता कर लिया था कि दीनू अपने   पत्नी के साथ अकेला ही रहता है वह एक दुकान पर काम करता था।

 

एक दिन तो उसकी दुकान पर ही चली गई और उससे काफी देर तक बातें करती रही उसको यह भी पता चल चुका था कि वह 12:30 बजे भोजन करता है।  वह ठीक 12:30 बजे उसकी दुकान पर आ कर उस से खूब बातें करती। अपने खाने में से उसे बुढ़िया दादी को देना ही पड़ता। वह अपनी पत्नी को दो रोटियां ज्यादा ही डालने के लिए कहता था। जिस दिन उस बुढ़िया को अपने पड़ोस में कुछ खाने को नहीं मिलता था उस दिन वह दीनूं के यहां भोजन करती थी।   दिनूं को भी उस बुढ़िया का आना अच्छा नहीं लगता था परंतु यह सोच कर चुप रह जाता था कि शायद इस बुढ़िया का इस दुनिया में कोई नहीं है। एक दिन उसने बुढ़िया से पूछ पूछ लिया दादी अम्मा क्या तुम्हारा इस दुनिया में कोई नहीं क्या तुम अकेली रहती हो। बुढ़िया ने कहा मेरे बेटे बहू है। परंतु वह मुझे छोड़ कर चले गए हैं उन्होंने कहा वे अपने आप गए क्या? आपने उन्हीं जाने के लिए कहा। बुढ़िया बोली हम बुजुर्गों के पास क्यों कोई रहने वाला है? दीनू नें  बुढ़िया का घर देख लिया था। उसने देखा कि बुढ़िया दादी का घर तो बहुत बड़ा है। एक दिन दीनूं की पत्नी बीमार पड़ गई। उसके पास उसके इलाज के लिए इतने रुपए नहीं थे। वह एक दिन जब वहबुढ़िया दादी के घर आया उसने देखा बुढ़िया दादी पोटली   के रुपयों को गिन रही थी।  जैसे ही उसने दिनूं को देखा तो उसने वह पोटली छुपा दी और  कहा बेटा कैसे आना हुआ? दीनू नें कहा बुढ़िया दादी कृपा करके आप ही मेरी मदद कर सकती हो। मेरी इस मुश्किल की घड़ी में आप मेरी सहायता कर कर दो। मेरी पत्नी बहुत ही बिमार है कृपया करके मुझे ₹500 दे दो। मैं आपको ब्याज के साथ आपके रुपया लौटा दूंगा।

 

बुढ़िया बोली बेटा मुझ गरीब के पास इतने रुपए कहां से आएंगे? मेरे पास तो बिल्कुल भी नहीं है। उसको जरा भी आभास नहीं था कि बुढ़िया उसे मना करेगी परंतु उसने कुछ नहीं कहा। वह वहां से मायूस होकर चला गया। दूसरे दिन उसने अपने दुकान पर ताला लगा दिया। काफी दिन तक दिन नजर नहीं आया बुढ़िया ने उसकी पत्नी की जरा भी खबर नहीं  ली ना ही उसके बारे में पूछा। किसी ना किसी तरह से दिनों नें अपनी पत्नी को बचा लिया काफी दिन बाद वह दुकान पर आया था। सामने से बुढ़िया आ रही थी वह उसकी दुकान पर बैठना ही चाहती थी। उसने बुढिया को देख कर कहा कि अभी मैं दुकान के ग्राहकों को देख रहा हूं। आप अपने घर जाएं बुढ़िया को इस तरह की उत्तर की आशा नहीं थी। वह मस्का लगा कर बोली बेटा गुस्सा क्यों होते हो? मैंने तुम्हारी मदद इसलिए नहीं की क्योंकि मेरे पास  तुमने  जो रकम देखी थी वह किसी और की थी। मैंने उसको वह रुपये वापस कर दिए दीनू कुछ नहीं बोला। बुढ़िया वहां से चली गई

 

वह सोचनें लगा बुढ़िया तो बहुत ही स्वार्थी है। अपने बेटे बहू को इसी नें घर से निकाला होगा मीठी मीठी बातों के जाल में वह किसी को भी फंसा सकती है। मैं भी इसके साथ इसी की चाल में इस को मजा चखाता हूं। एक दिन  भिखारी साधु बाबा का भेष बदलकर वह बुढिया के पास गया और बोलाभोले बाबा को कुछ दो। मां दादी मां भगवान तुम्हारा भला करेंगे। बुढ़िया कुछ देना तो नहीं चाहती थी परंतु अपने सामने साधु बाबा को देखकर अंदर से ₹20 का नोट निकाल कर लाई और कहा यही है मेरे पास। साधु बाबा बोले दादी मां जरा अपना हाथ तो दिखाओ। उसने अपना हाथ साधु बाबा को दिखाया। वह साधु बाबा बोला घोर अपराध तुम पर तो संकट की काली छाया मर्डर आ रही है। बुढ़िया दादी तुम तो ठीक 9 महीने बाद इस दुनिया से चली जाओगी। तुम जिंदा रहना चाहती हो तो तुम्हें कुछ उपाय करने पड़ेंगे। वह साधु बाबा के चरणों में पड़ गई बोली बाबा मुझे बताओ मुझे क्या करना होगा? साधु बाबा बोले तो  तुम्हें किसी ईमानदार व्यक्ति की मदद करनी होगी। ऐसे इंसान की जिसकी शादी हुई  हो वह पति पत्नी दोनों को 9 महीने तक अपने घर में घर आना होगा और उन्हें खाना बनाने के लिए सारी वस्तु अपने रुपए से खरीद कर देनी होगी। अगर 9 महीने तक ऐसा करती हो तो तुम बच सकती       बुढिया साधु बाबा से बोली मैं वह करेगी। मैं किसी ऐसे इंसान को अपने घर में अपने रुपए से खाना खिलाऊंगी। साधु बाबा ने कहा कि इन 9 महीनों में अगर वह व्यक्ति तुमसे कोई वस्तु मांगता है तो उसे इंकार मत करना। तुम अपने जीवन की शांति चाहती हो तो तुम्हें ऐसा अवश्य करना पड़ेगा। वह साधु बाबा वहां से चले गए। दूसरे दिन वह दुकान पर गई और बोली बेटा मुझसे कोई गलती हो गई हो तो माफ कर देना। तुम में मुझे अपना बेटा दिखाई देता है क्यों ना तुम और तुम्हारी पत्नी मेरे पास  रहो। मैं भी अकेली रहती हूं। तुम्हारी पत्नी को साथ भी मिल जाएगा। आपकी बात  को मैं कैसे इन्कार कर सकता हूं। तुम अपनी पत्नी को लेकर   आज  आ  रहें हो। उसने अपना मकान किराए पर लिया हुआ था उसे छोड़ दिया। वह और उसकी पत्नी बुढ़िया के घर आकर रहने लगे।

 

उसने अपनी पत्नी को कहा कि देखो यह दादी मां बूढ़ी है। इनका ख्याल हम ही रखना है। इनकी  देखभाल में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। खाना तो तुम ही बनाना और हो सके तो इनकी खूब सेवा करना। हमने अपने बूढ़े मां बाप को तो नहीं देखा परंतु भगवान नें हमें इन की सेवा करने का सुनहरा मौका दिया है। हो सकता है इसके प्रताप से हमें सब कुछ हासिल हो जाओ। इसलिए तुम वादा करो कि इनकी सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। उसकी पत्नी बोली मुझे इस की सेवा करने से भला क्या ऐतराज हो सकता है? वह दोनों बूढी दादी की देखभाल करनें लगे। जैसे दिन व्यतीत हो रहे थे। बूढ़ी दादी चिंता के मारे घुली जा रही थी।साधु बाबा की भविष्यवाणी सच साबित हो जाए मैं तो मर जाऊंगी। परंतु अब यह बातें इन्हें कैसे बताऊं? कहीं ना कहीं बुढ़िया भी उनके साथ घुल मिल गई थी। वह उन्हें अपने बच्चों जैसा प्यार देने लगी थी। एक दिन बुढ़िया ने दिनूं और उसकी पत्नी को अपने पास बुलाया बेटा मैं आज तुमसे कुछ कहना चाहती हूं। मैं एक वास्तव में मैं एक अच्छी मां साबित नहीं हो सकी। मैं अपनी बहू और बेटे के साथ  लड़ा करती थी। मुझसे तंग आकर उन्होंने मेरे साथ रहना स्वीकार नहीं किया और दूसरे शहर में चले गए। वहां जाकर रहने लगे कहीं ना कहीं मैंने अपनी बहू उसे स्वीकार ही नहीं किया। क्योंकि मैं समझती थी कि मेरा बेटा शादी के बाद अपनी मां को तो भूल ही जाएगा। यही बात मेरे मन को खाए जा रही थी जिस कारण मेरा व्यवहार उनके प्रति रुखा रहता था। बुढ़ापे में जब तुम हमारे साथ रहने आए तो पता चला कि प्यार क्या होता है? तुम्हें भी मैंने अपने स्वार्थ के कारण यंहा रखा था क्योंकि इसमें भी मेरा स्वार्थ छुपा हुआ था। मैं आज तुम दोनों को सच्चाई बताती हूं एक दिन एक साधु बाबा मेरे घर पर आए। उन्होंने उसे दान-दक्षिणा के इलावा मुझसे पूछा क्या करती हो? उन्होंने मेरा हाथ देख कर कहा कि आप आज से ठीक 9 महीने बाद तुम्हें इस संसार को अलविदा कहना होगा। तुम्हारे हाथ में तो केवल 9 महीने तक कि जिंदा रहने का समय है। अगर तुम 9 महीने तक किसी दंपति को खाना खिलाओ उन्हें अपने घर पर अपना वह सारा खर्चा तुम करोगी तो शायद तुम्हारी जिंदगी बच सकती है। कहीं ना कहीं मुझे  अब समझ में आ चुका है कि हमें अपने मन में किसी के प्रति ईर्ष्या द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए। अच्छा बेटा अब तुम मुझे बताओ कि मैं क्या करूं? क्योंकि अगर 9 महीने बाद में मर गई तो मेरा यह घर यह तो मेरे नाम है क्योंकि कहीं ना कहीं मुझे लगता था कि अगर उन्होंनें यह मकान अपने नाम कर लिया और  उस बुढ़िया को घर से निकाल दिया तो मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करूंगी? अपने बच्चों से कौन प्यार नहीं करता चाहे वह बच्चा कैसा भी हो। 9 महीने पूरा होने में अभी 2 महीने बाकी है। इन 2 महीनों में मुझे सब कुछ करना है।

 

दीनू बोल अमा जी आप डरो मत। आपको कुछ नहीं हुआ। साधु महात्मा तो झूठे होते हैं तुम्हें इन पर विश्वास नहीं करना चाहिए। बुढ़िया बोली इससे पहले कि मैं मर जाऊं एक बार मैं अपने बहू और बेटे से मिलना चाहती हूं। उन्हें सब कुछ बताना चाहती हूं। दिनूं बोला ठीक है आपको कुछ दिन अपने बेटे के पास रहने के लिए जाना चाहिए। तुम वहां जाकर कहना कि अब मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी। मैंने  अपना मकान किराए पर चढ़ा दिया है। तो वहां जाकर देखो तुम्हारा बेटा तुम्हें अच्छे ढंग से रखता है या नहीं। बुढ़िया ने दीनू को कहा बेटे जब तक मैं अपने बेटे के पास से वापस ना आऊं तुम्हें ही मेरे घर के घर को संभालना होगा क्योंकि मैं तुम पर आंख बंद करके विश्वास कर सकती हूं।

 

एक  दिनूं नें जब उसकी ऐसी बातें सुनी तो उसकी आंखे भर गई। मैं यहां पर दादी मां से बदला लेने आया था और सोचता था कि शायद वह अपना घर  मेरे नाम कर देगी इसमें मेरा  भी स्वार्थ था और ऊपर से बुढ़िया दादी को 9 महीने तक खर्चा करना पड़ा वह अलग। परंतु उसने बुढ़िया दादी को कुछ नहीं कहा।।

 

शाम को   दिनूं नेंअपनी पत्नी को कहा कि हमने भी बुढ़िया दादी के साथ अच्छा नहीं किया। इसके रुपयों पर ऐश करते रहे। हम भी अब इनके साथ अन्याय नहीं करेंगे। 9 महीने बाद अपने लिए अलग से मकान देखेंगे और यहां से चले जाएंगे। बुढ़िया दादी ने मुझे अपना बेटा कहा है इतना ही बहुत है। मुझे इसका घर नहीं चाहिए अगर हमारी किस्मत में घर होगा तो हम घर तो खुद कभी ना कभी घर बना ही लेंगे। दिनूं नें बुढ़िया दादी को कहा कि मैं आपको आपके बेटे और बहू के पास दूसरे शहर में छोड़ दूंगा। अचानक ही अपनी मां को आया देखकर बेटा और बहू बड़े हैरान हुए। बूढ़ी दादी ने कहा बेटा कहीं ना कहीं मैं भी गलत थी। मैंने तुम्हारे प्यार को समझा नहीं तुम यहां दूसरे शहर में नौकरी करने आ गए। इस तरह की नौकरी तो तुम अपने घर के पास भी कर सकते हो। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा तुम दोनों मेरे साथ गांव चलो देखो तुम्हारी मां स्वयं तुम दोनों को लेने आई है। उसने अपने बेटे और बहू को गले लगाया। 8 दिन तो बूढ़ी दादी के बड़े मजे से गुजरे । मगर दस 12 दिन बाद तो बेटा और बहू की तू तू मैं  मैंसुनने को मिलती। हर रोज किसी न किसी बात को लेकर झगड़ा करते। बूढ़ी दादी यह देखकर बहुत ही दुखी होती थी परंतु वह कहती कुछ नहीं।  एक दिन उसने अपने बेटे और बहू को कहा अगर तुमने नहीं चलना है तो मैं भी तुम लोगों के साथ यहीं रह जाती हूं। वह घर तो किराए पर ही चढ़ा रहने देते  हैं। अचानक बेटा बोला मां तू वह मकान मेरे नाम कर दो और खुशी से यहीं रहो। बुढिया बोली इतनी जल्द बाजी ठीक नहीं है। अभी  मैंने यह मकान किराए पर दिया है। बेटा भड़क उठा मां औरों को तो  आप मकान किराए पर दे सकती हो हमें नहीं। अब तो हर रोज बेटा और बहु मुझसे नाराज रहने लगे। बूढ़ी दादी ने शर्त रखी कि तुम दोनों गांव आकर रहोगे तो  तो मैं खुशी-खुशी यह सारा घर तुम्हारे नाम कर दूंगी।  उन्होंने कहा नहीं मां गांव में तो आप रहना हम जब आप बीमार पडोगे तब हम आपको देखने आ जाएंगे। बुढ़िया ने अपने बेटे को कहा कि बेटा आज मैंने वापस गांव जाना है तो बेटे ने कहा कि अभी मेरे पास छुट्टी नहीं है फिर किसी दिन छुट्टी वाले दिन आपको छोड़ दूंगा सारा दिन पड़ी पड़ी बुढिया अंदर ही अंदर घुटन महसूस करनें लगी। एक दिन उसने दिनूं को बुला लिया बेटा तुम मुझे यहां से ले जाओ। मैं अब गांव आना चाहती  हूं।

 

दूसरे दिन दिनूं गाडी से सूरत पहुंच गया। मैं आपको लेने आ गया हूं। दिनूं बूढ़ी दादी के पास गया और बोला गांव में आप के बिना सब कुछ सुना सुना सा लगता है। दुकान में तो रौनक आपसे ही आती थी। क्योंकि थोड़ी देर बाद आप मेरी दुकान पर आकर गप्पे मारती थी। आपके जाने के बाद तो बिल्कुल ही सुना लगने लगा। बूढ़ी दादी को लेकर गांव आ गया। दिन को बूढ़ी दादी ने बताया कि मेरा बेटा कहता है कि यह सारा घर मेरे नाम कर दे परंतु मैंने यह घर उसके नाम नहीं किया क्योंकि अगर मैं यह घर उसके नाम कर दूंगी तो मैं कहां रहूंगी? दिनूं बोला मां अपने बेटे के नाम यह मकान कर दो आपको अपने बेटे को कहना था कि ले ले मुझे तो दूसरा बेटा मिल गया है। दादी अगर आपका बेटा आपको अपने साथ नहीं रखेगा तो मैं आपको अपने साथ रखूंगा। हम चाहे छोटे से मकान में ही क्यों ना रहे अब हम तीनों साथ ही रहेंगे। क्योंकि कहीं ना कहीं हम दोनों आपको अपनी बूढ़ी दादी ही नहीं आपको आप में अपनी अपनी मां का रूप देखते हैं। उन दोनों की ऐसी बातें सुनकर बुढिया का दिल भर आया। एक बात मैंने भी आपसे झूठ कही थी आज तक  मुझे भी यह बात कहीं ना कहीं खाए जा रहे हैं। दादी मां मैं आपसे माफी मांगना चाहता हूं। आपको याद है एक बार मैं अपनी पत्नी के इलाज के लिए आपसे रुपए मांगने आया था आपने रुपए होते हुए मुझे इन्कार कर दिया था। मैंने आप को रुपयों की पोटली रखते हुए देख लिया था। जब आपने रुपए देने से इंकार कर दिया था तब मेरे मन में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो गई थी और मैं सोचने लगा कि मैं आपसे बदला लूंगा। मैं साधु बाबा का भेष बदलकर आपके पास आया और आपको धोखा देकर मैं नहीं आपको झूठ झूठ कहा था कि अगर आप किसी दंपति को 9 महीने तक अपने घर में रखेंगे और रुपया वगैरा भी आप ही खर्च करेंगी तो आप बच  जाएंगी। आपके साथ रहने के कारण जाना की मां का प्यार क्या होता है? वह लड़ती भी है। झगड़ती भी है और फिर झगड़ा करने के बाद मनाती भी है। अब तो बुढ़ापे में मैं तो दिमाग ऐसे ही कमजोर हो जाता है अगर आपको भी प्यार नहीं मिलेगा तो आप भी ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रहेगी।

 

बुजुर्गों की सेवा करना तो पुन्य का काम होता है आज मैं जान चुका हूं मां बाप के प्यार के आगे मकान वगैरह की कोई कीमत नहीं है। उनका आशीर्वाद साथ हो तो इंसान बड़ी से बड़ी धन दौलत कमा सकता है। दिनूं की सच्चाई सुनकर बुढ़िया की आंखों से खुशी के आंसू छलकनें लगे। वह बोली बेटा आज से तो तुम दोनों भी मेरे बहु बेटे हो। मेरे पास दो मंजिला मकान है हएक मंजिल मैं तुम दोनों के नाम करती हूं। तुम क्यों किराए के मकान में रहोगे? एक मंजिल मैं अपने बेटे के नाम कर दूंगी परंतु अभी नहीं। यह बात में तुम्हें ही बता रही हूं।

 

बूढ़ी दादी ने अपने बेटे को कहा कि एक मंजिल मैंने दिनूंऔर उसकी पत्नी को सदा के लिए दे दी है। जब उसके बेटे ने सुना तो उसका खून खौल उठा और बोला मां आप ने हमसे बिना पूछे यह घर कैसे किराए पर दे दिया?  बूढ़ी मां बोली मैंने तो तुम्हारे पास आकर पहले ही बता दिया था कि अगर तुम दोनों यहां आकर रहते हो तो मैं खुश हूं। अपना घर तुम्हारे नाम कर दूंगी परंतु तुम्हारा नजरिया मुझे ठीक नहीं लगा। इसलिए मैंने एक मंजिल दिनूं और उसकी पत्नी को दे दिया। मैं भी उनके साथ ही रहूंगी क्योंकि कहीं ना कहीं अभी तुम्हारे मन में संकोच है कि तुमने यह मकान उनको क्यों दिया? बेटा यह दोनों बिना किसी स्वार्थ के मेरी सेवा करते हैं। मैं मानती हूं हर इंसान स्वार्थी होता है मगर सच हम सब सारा परिवार एक साथ मिलजुल कर रहे। सुख दुख में एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे तो कोई भी हमारे घर में फटक नहीं सकेंगे। हम थोड़े से रुपए के लालच में भूल जाते हैं कि रुपयों की चकाचौंध  तो दो चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। अपनों का साथ अगर एक बार छूट  जाए तो वह कभी भी वापस नहीं मिलता इसके लिए सारी जिंदगी पछताना पड़ता है। बुढ़िया ने  दिनूंऔर उसकी पत्नी को वह मकान दे दिया। बुढ़िया का बेटा कोर्ट में चला गया और उसने अदालत में दर्ख्वास्त की   मेरी मां ने सारा मकान किसी दूसरे गांव वाले इंसान को दे दिया है। उसकी मां नें अपनें बेटे और बहू के बारे में  ऐसाकभी नहीं सोचा।

 

जज ने बुढ़िया को बुलाया और उस से पूछा दादी मां आपने ऐसा क्यों किया।? बूढ़ी दादी बोली कि इस बात का मुझे अंदाजा भी नहीं था कि मेरा बेटा अदालत चला जाएगा। इस मकान में किसे रखना है? यह मकान मेरे नाम पर है जो बुढ़ापे में मेरी सेवा करेगा उसे क्या यह मकान में नहीं दे सकती? जज साहब मेरा बेटा और बहू दोनों दूसरे शहर में रहते हैं। यह दोनों इतने व्यस्त होते हैं कि कभी अपनी बूढ़ी मां को गांव में देखने नहीं आते। पहले कहीं ना कहीं मैं गलत थी। मैंने भी इन से लड़ झगड़ कर इन्हें यहां से जाने को मजबूर कर दिया था परंतु जब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ तब दीनू और उसकी पत्नी मेरे घर रहने आए उन्होंने मेरी इतनी सेवा की और मुझे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होनें दी। मैं पहले बहुत ही स्वार्थी थी किसी को भी एक कप चाय के लिए भी नहीं पूछती थी परंतु इन दोनों के प्यार ने मेरा नजरिया ही बदल दिया। इन दोनों ने मुझसे कहा कि मांझी अपने बच्चों से ज्यादा दिन तक नाराज नहीं रहना चाहिए। आप अपने बच्चों के पास जाइए और उन्हें मनवा कर घर ले आइए। यह मकान उनके नाम कर दो परंतु वहां जाने पर इसका बर्ताव मुझे ठीक नहीं लगा। कहीं ना कहीं वह मेरे मन में यह बात होती रहती थी कि मेरा मकान अपने नाम करने के बाद उन्होंने मुझे घर से बाहर निकाल दिया तो मैं कहां जाऊंगी और कहां रहूंगी?  उन्होंने मुझे कहा  आप हम दोनों के साथ रहेंगी मगर आपका बेटा यहां  आनें के लिए नहीं मानता है तो आप हम दोनों के साथ रहेंगे क्योंकि अब तो हमने आपको मां के रूप में स्वीकार किया है। रुखा सूखा जो हम खाएंगे आप खा लेना। इन दोनों की प्यार भरी बातों से मेरा मन पिघल गया और मैंने एक मंजिल इन दोनों के नाम कर दी। इसमें मैंने क्या बुरा किया। एक  मंजिल ंमैंनें अपने बेटे और बहू के नाम पहले ही कर दी थी। परंतु मैंने दिनूं को कहा था कि अभी  इन्हें  इस के  बारे में कुछ नहीं बताना है।   यह तो मुझे अदालत में घसीट कर ले आया। अब तो मैं इसके साथ कभी नहीं रहूंगी।

 

अदालत में जज के सामने दिनूं नें कहा ज़ज। साहब   हमें मकान का कोई लालच नहीं है आज भी यह मकान बूढ़ी दादी के बेटाऔर बहू का ही है। मैं यह मकान नहीं लूंगा मैं आज ही अपनी बूढ़ी दादी को लेकर यहां से चला जाऊंगा जब बूढ़ी दादी के बेटा बहू या वापिस आ जाएंगे।  बुढिया के बेटे और बहू को अपनी गलती का एहसास हो गया। उन्होंने अपनी बूढ़ी मां से क्षमा मांगी और कहा कि मां हम भी आपके साथ गांव में ही रहेंगे।   

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