नहले पर दहला

किसी गांव में एक कुम्हार रहता था। उसका एक बेटा था उसका नाम कृष् था। कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाता था उससे उसको अच्छे दाम मिल जाते थे ।वह घड़े भी सुंदर सुंदर बनाता था जब वह उन घड़ो को बनाता था तो उसका बेटा भी उसे बड़े ध्यान से देखता रहता था। वह स्कूल नहीं जाता था क्योंकि उसके परिवार में बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जाता था। यह सारा परिवार पिछड़ी जाति से संबंधित था। वह अपने पिता के साथ घड़ोंको थोड़ा-थोड़ा बनाने की कोशिश करता रहता था ।आठ वर्ष के बाद उसके पिता एक दुर्घटना में मारे गए वह अपनी मां के साथ रहने लग गया था। वह केवल उस समय केवल दस वर्ष का था ।पांच छ: वर्षों तक उसकी मां ने किसी न किसी तरह घरों में झाड़ू-पोछा करके अपने परिवार का पालन किया। वह अब पन्द्रह वर्ष का हो चुका था। वह सोचने लगा वह अपनी मां को काम नहीं करने देगा । कृष् ने अपनी मां को कहा कि मैं अपने पापा के चलाए हुए व्यापार को आगे बढ़ाऊंगा ।मैं भी घड़े बनाकर उन्हें बेचा करूंगा ।वह सोचने लगा कि मैं बाहर दूसरे गांव में जाकर काम करुंगा और अपने पापा के अपनाये हुए कार्य को आगे बढ़ा कर ही दम लूंगा। वह अपनी मां से आज्ञा लेकर दूसरे गांव में अपना कार्य का विस्तार करने के लिए अपने गांव से बहुत दूर आ गया। वहां पर आकर पहले उसने अपने आसपास के लोगों का जायजा लिया ।वहां पर उसे सब लोग मेहनत करते नजर आए ।कोई चाय पकौड़े बना रहा था, कोई दुकानदारी कर रहा था, कोई चाट पापड़ी तो कोई जूते पोलिश। सब लोग अपने अपने विभिन्न धंधे में लगे हुए थे कोई रिक्शा चला रहा था ,कोई कुली का काम कर रहा था। सबको काम करते देख उसने दो तीन आदमियों के पास अपना परिचय दिया और कहा कि मैं यहां दूसरे गांव से काम धंधे की तलाश आया हु। क्या मै यहां पर अपना कार्य धंधा कर सकता हु?वहां के लोगोने कहा हां भाई !यहां अपना काम करने मे क्या बुराई है तब उसने वहां पर काम करना शुरू कर दिया। पहले पहल तो उसने पांच छ: घड़े बनाएं उसके एक-एक करके सब घड़े बिक गए। वह अपनी मेहनत की कमाई से बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि खूब सारे रुपए इकट्ठे करके अपनी मां को सारी खुशियां दूंगा ।अपनी पहली कमाई को तो उन्हें ही सौंप कर फिर खर्च करूंगा ,इसलिए मैं सारे रुपए एक घडें में इकट्ठा करता रहूंगा। एक दिन वह अपने रुपयों को गिन-गिन कर एक हंडिया में रख रहा था उस गांव के साहूकार के बेटे ने उसे देख लिया ।उसने सोचा कि वाह क्या ठाठ है वह ्कृश के पास आकर बोला हम यहां बाहर से आने वाले लोगों से टैक्स लेते हैं। वह उसके सौ रुपए छुड़ा कर ले गया ।वह जैसे ही रुपए छुड़ाने लगा कृष् ने उसे जोरदार धक्का दिया। साहूकार के बेटे ने उसे नीचे गिरा दिया, तभी कृष ने खूब मार कुटाई करके साहुकार के बेटे को नीचे गिरा दिया और अधमरा सा कर दिया ।उस से सौ रुपये वापस ले लिए । साहुकार के बेटे से कोई भी गांव का आदमी खुश नहीं था। सब लोग साहूकार के बेटे से डरते थे। आज गांव की भोले- भाले कुम्हार ने सब लोगों में खुशी की लहर पैदा कर दी थी ।उस नवयुवक ने आकर उसको ऐसा करारा थप्पड़ मारा कि वह पांच दिनों तक उठने के काबिल नहीं था । सारे के सारे लोग क्रृष की वाह-वाह कर रहे थे ।वह मौज-मस्ती से अपना जीवन बिता रहा था हमेशा वह अपने रुपयों को एक घड़े में भरकर रख देता था साहूकार का बेटा

उस से बदला लेना चाहता था । उसमें अब लड़ने की हिम्मत नहीं रही थी। वह सोचने लगा इसके साथ लड़ने के लिए तो कोई और नई योजना बनानी होगी ।

थोड़ी देर बाद कुम्हार के बेटे ने उसे बाईक पर ईधर उधर मंडराते हुए देखा।वह चुपचाप कुम्हार के बेटे से बात करता और खिसक जाता था।कृष इसी तरह मेहनत मजदुरी करकेे रुपए अपने घड़ी में इकट्ठे करता रहा था ःवह सोच रहा था जब बहुत सारे रुपए इकट्ठे हो जाएंगे तब मैं अपने गांव जा कर अपनी मां को अपनी मां के हाथ दूंगा ।उसको रुपए इकट्ठे करते दूर से साहुकार का बेटा देखा करता था ।एक दिन साहूकार का बेटा उसके घर में से सारे रुपए चुरा कर ले गया उसने ₹10000 इकट्ठे कर लिए थे यह सारे के सारे रुपए साहुकार का बेटा तब ले गया जब वह अपने साथ वाले आदमी की दुकान पर कुछ खाने के लिए लाने गया था। जब वह कुछ खा पीकर-अपनी दुकान पर आया तो उसने अपना वह घड़ा टूटा हुआ देखा। वह घड़ा खाली था वह जोर जोर से चिल्लाने लगा। मेरा घड़ा किसने तोड़ा मेरा घड़ा किसने तोड़ा? मेरे रुपए किसने लिए ?साहुकार के बेटे के सामने सब लोगों की बोलती बंद हो चुकी थी ।वह आस पास ही खड़ा सब नजारा देख रहा था और मन मन मुस्कुराकर उसको इस प्रकार विलाप करते देख रहा था। उसको रोते हुए देखकर वह अंदर ही अंदर खुश हो रहा था क्योंकि आज उसने अपना बदला पूरा कर लिया था । जब साहुकार का बेटा चला गया तो आसपास के लोग इकट्ठे हो गए और बोले इस साहुकार के बेटे को कभी भगवान खुश नहीं रखेगा। जो इस बेचारे कुम्हार के खून पसीने से कमाई हुई संपत्ति को चुरा कर ले गया कृष जोर जोर से रोने लगा उसको इस प्रकार रोता देख कर उसे रुपए नहीं मिलने वाले थे ।दो-तीन दिन बिना खाए चुपचाप बैठा रहा ।उसको इस प्रकार होते देख कर उस गांव वालों ने उसे कहा बेटा इस प्रकार रोने से कुछ हासिल नहीं होगा ।यह साहुकार का बिगड़ा हुआ बेटा बहुत ही खराब है तुम एक बहुत ही बहादुर इंसान थे जो उससे बदला ले सकते थे । हम उस से लड़ नहीं सकते थे ।वहां पर तभी साहु कार के बेटे की बहन कुम्हार के पास आकर बोली ।तुम बहुत ही ईमानदार इंसान हो ।मैं तुम्हें हर रोज मेहनत करते देखती हूं ।तुम बहुत ही मेहनती हो। काश इतनी अकल मेरे भाई को भी दी होती वह इतना बिगड़ चूका है कि अब उसका सुधरना मुश्किल है तुम्हारे रुपयों को मैंने उसे ले जाते देखा। मैंने उसे कहा कि भाई किसी की मेहनत से कमाई हुई दौलत को यूं हाथ नहीं लगाते भगवान तुम्हें माफ नहीं करेंगे । उसने मुझे भी धक्का दिया और चला गया। वह बोली तुम निराश ना हो तुम कि एक बहादुर इंसान हो जिससे ने मेरे भाई को लड़ाई में हरा दिया था। मैं तुम्हें बताती हूं उसी की ही चाल में बिना मारधाड़ के उससे तुम कैसे अपने रुपए हासिल कर सकते हो। कुम्हार का बेटा बोला मैं मैं इन रूपयों को अपनी मां को देना चाहता था ।वह सब रुपए तो तुम्हारे भाई ने ले लिए ।साहूकार की बेटी बोली वह अपनी बाइक पर हर रोज यूं ही मंडराता रहता है। वह शराब के अड्डे पर हर रोज तीन पेग लगा ने अपने दोस्तों के साथ जाता है ।उसने अपनी बाइक की डिक्की में तुम्हारे रुपए रखे होंगे ।चाबी तो उसके पास ही रहती है ।इतना मैंने तुम्हें बता दिया अब आगे तुम उस से खुद रुपए प्राप्त कर सकते हो ।यह कहकर वह चली गई ।वह सोचने लगा कि रोने से तो मेरे रुपए वापस नहीं कर जाएगा। शत्रु को उसी की ही चाल में जवाब देना चाहिए ।उसने एक योजना बना डाली जब शाम के समय साहुकार का लड़का अपने दोस्तों के साथ साथ शराब के अड्डे पर ड्रिंक करने के लिए अपने दोस्तों के साथ बैठा तो वह यह देखकर हैरान हुआ कि वहां कुम्हार का बेटा पहले से ही बैठा था। वह यूं ही मेज के पास बैठा कुछ सोच रहा था ।वहां पर साहुकार का बेटा आकर बोला आज यहां आ कर क्यों बैठे हो ?क्या तुम अपना गम भुलाने के लिए यहां आए हो ? कुम्हार का बेटा बोला यही समझ लो कुम्हार का बेटा बोला हर रोज तो तुम अपने रुपयों को खर्च कर पीते हो। आज मैं तुम सब दोस्तों को पिलाना चाहता हूं। उसके इस प्रकार के उत्तर से सब उसे हैरान होकर बोले ।आज क्या तुम्हारा जन्मदिन है ?कुम्हार का बेटा बोला हां यही समझ लो ।वेटर नेे आकर उन सबको ड्रिंक दिए ।सब लोग चियरस कहकर पी रह थे। कुम्हार का बेटा शराब तो ले रहा था मगर वह उन्हें पास के गमले में फेंक रहा था ।अब तो सब के सब शराब पीकर वहीं गिर गए थे ।सभी को बेहोश होते देखकर कुम्हार के बेटे ने बाइक की चाबी साहुकार के बेटे की जेब से निकाली और उसी की ही जेब से ड्रिंक की अदायगी की। और चुपचाप वहां से चलकर उसकी बाईक के पास पहुंच गया जंहा वह उसको हर रोज उस बाईक को खड़ी करते देखता था ।उसने बाईक की डिक्की को खोला उसमें से उस नेअपने ₹10,000 निकाले और डिक्की का ढक्कन बंद कर दिया। वह शराब के अड्डे पर आया उसने बाईक की चाबी साहुकार के बेटे की कमीज़ की जेब में डाल दी थी। आज वह बहुत खुश हुआ और वापस आकर उसने अपने सभी साथियों को कहा कि आप ठीक ही कहते हो।मैंने उसे उसी की भाषा में जवाब दिया और अपने खोए हुए रुपए को अपनी सूझबूझ से पुनः प्राप्त कर लिया। जब साहुकार के बेटे को होश आया तो उस का माथा ठनका ।कुम्हारके बेटे को ढूंढने का यत्त्नकरने लगा। वहां वेटर आया वेटर को आते देखकर साहुकार का लड़का बोला कि तुम्हारी अदायगी हो गई।वह बोला हां साहब जी वह जो तुम्हारे साथ वाला लड़का था वह दे गया। और मुझे भी मुझे भी ₹50 ज्यादा दे गया। तुम्हारा दोस्त कितना भला इंसान है इतने रुपए तो तुम भी कभी मुझे नहीं देते हो ।साहूकार के बेटे ने अपनी जेब में हाथ डाला उसने अपने रुपए देखें उसके सारे के सारे रुपयोंसे वह बिल चुका चुका था ।साहूकार का बेटा अपनी बाईक की चाबी ढूंढने लगा फिर अपनी चाबी देख कर खुश हो गया कि चलो चाबी तो वह नहीं ले गया है ।उसने जैसे पेट्रोल डलवाने के लिए डिक्की में से रुपए निकालने चाहे तो वह यह देख कर हैरान रह गया कि जो उसने कुम्हार के बेटे से रुपए छीने थे वही रुपए गायब थे।वह बहुत ही हैरान हुआ उसके बेईमानी से कमाये गये धंधे का जवाब मिल चुका था ।वह तो नहले पर दहला साबित हुआ। साहुकार के बेटे ने सोचा क साहुकार केे बेटे को अपना सच्चा दोस्त बनाने में ही भलाई है।। वह तो अपने को ज्यादा ताकतवर समझता था। आज तक इस बात से अनभिज्ञ था परंतु आज उस पर वार करके किसी ने उसे छोटा महसूस करवा दिया था ।दूसरे दिन कुम्हार के बेटे ने उसे अपने घर पर बुलाया और बड़े प्यार से उसे दावत खिलाई और कहा कि आज के बाद कभी भी तुमसे इस तरह का बर्ताव नहीं करेगा मेरे यार मुझे माफ कर दो। मैं अपनी गलती के लिए आपसे क्षमा मांगता हूं।

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