पानी की किमत

पिंकी राजू बाबू पूनम  और रवि सारे के सारे इकट्ठा स्कूल से घर आते और मौज मस्ती करते उनका स्कूल उनके गांव से 6 किलोमीटर की दूरी पर था। उन के गांव में आसपास कोई-स्कूल नहीं था। शिक्षा प्राप्त करनें के लिए उन्हें  पैदल ही स्कूल जाना पड़ता था।

गर्मियों के दिन थे। गांव के  सारे के सारे बच्चे एक साथ चल रहे थे। उन्हें आज जल्दी स्कूल से छुट्टी हो गई थी 12:30 बजे, के करीब। सारे के सारे बच्चे खुश नजर आ रहे थे चलो अच्छा हुआ आज खेलने को तो मिला। रास्ते में चलते जा रहे थे। अचानक इतनी गर्मी होने लगी कि चलना दूभर हो गया। सभी बच्चे गर्मी से बेहाल हो रहे थे। एक जगह खाना खाने के लिए बैठ गए। रास्ते में खाना खाया लेकिन उनके पास पीनें के लिए पानी नहीं था। उन्होंने बिना पानी के ही खाना खत्म किया। सभी बोले रास्ते में आगे दो तीन कुंए है। आगे चल कर कहीं न कहीं पानी अवश्य ही मिल जाएगा। आगे चलनें पर उन्हें कूंआं दिखाई दिया। उसके  अन्दर इतना कूड़ा कर्कट था। पानी की कहीं एक बूंद भी नहीं थी। थोड़ी दूरी पर एक जगह छोटा सा पोखर था। वह इतना गन्दा था। उसमें से दुर्गन्ध आ रही थी। वह आईस्ता आईस्ता चलनें लगे। राजू के पास पानी की छोटी सी बोतल थी। उसनें थोड़ थोड़ा पानी सभी को पीने को दिया।एक एक घूंट पी कर वे धीरे-धीरे आगे चलने लगे।  उन्हें  फिर से  प्यास लगनें  लगी। सब के पास पानी नहीं था। उनमें से दो बच्चे आगे आगे  चल रहे थे। अचानक पीछे वाले लड़कों ने देखा कि आगे वाले दोनों बच्चों के पास पानी था। राजू ने रवि को कहा कि तुम चुपके चुपके पानी पी रहे थे। वह बोला तुम क्यों अपना पानी नहीं लाते? मैं भी तुम्हें अपना पानी क्यों दूं? मैं तुम्हें अपना पानी नहीं दूंगा

पूनम भी बोली हम तुम्हें अपना पानी नहीं देंगे। वे थोड़ी देर बाद  आराम करने के लिए बैठे थे। उन्होंनें अपने आसपास मंडराते हुए पक्षों को देखा। वह भी  प्यास से बेहाल हो रहे थे। इतने में राजू और बब्बू ने  एक दूसरे की तरफ देखा  बोले यह भी हमारी तरह पानी से बेहाल हो रहे हैं। हमारी  भी पानी की बिना ऐसी दशा है तो उनकी भी ऐसी ही हालत होगी। हम तो एक दूसरे से अपनी व्यथा कह सकते हैं मगर ये जीव किसी को कुछ नहीं कह सकते। यह बेजुबान प्राणी तो बोल भी नहीं सकते। मेरे पास पानी होता तो मैं इनको अवश्य पिलाता। बब्बू नें यह सब सुन लिया था। उसके दिल से आह! निकली। बब्बू दौड़ी- दौड़ी आई और बोली मेरे पास थोड़ा सा खाना बचा है। मैं इनको दे देती हूं। सारे के सारे  बच्चे हैरान हो कर बब्बू को बोले शाबास ये हुई न बात।  बब्बू ने अपनी रोटी के टुकड़े  उन पक्षियों को डाल दिए।  थोड़ी देर में बड़े मजे से वे पक्षी रोटी के टुकडे खा रहे थे। राजू बोला   कुछ स्वार्थी मित्र हमेशा अपना ही भला चाहते हैं कैसे छुप छुप कर पानी पी रहे है? थोड़ी दूर आगे चले पर उन्हें एक होटल दिखाई दिया। बच्चे होटल के मालिक को स्कूल जाते हुए देखा करते थे। सब के सब एक साथ बोले पंकज जी  नमस्ते।राजु अपने दोस्तों से कहने लगा आज हमें प्यास लग रही है इसलिए आज हम उस अंकल जी को नमस्ते करने लगे। आज से पहले हमनें कभी प्यार से उन से बात भी नहीं कि आज  मजबूर होकर हमें उन्हें मस्का लगाना पड़ रहा है। आगे आ कर बोले आपके पास पानी मिलेगा। दुकानदार बोले बेटा आज तो हमारे यहां पर भी पानी नहीं  है अगर तुमने पानी पीना ही है तो हमारे पास  जूस ही मिलेगा। बच्चों को प्यास लग रही थी एक जूस की बोतल उसने ₹50  लगाई। लेकिन बिना पानी के तो वे एक  एक कदम भी नहीं  चल सकते थे। राजू अंकल को बुलाकर  कहनें लगा अंकल यह तो ₹25 की आती है। दुकानदार बोला लेनी है तो लो वर्ना अपना रास्ता नापो। सभी बच्चे दुकानदार को घूर कर देख रहे थे। मानो कि उसे खा जाए। उसे अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझ रहे थे। पूनम तो प्यास के मारे रोनें  लगी। उसका गला सूख रहा था। सब के सब बच्चों ने 10 ₹10 इकट्ठे  किए और एक बोतल जूस की खरीदी।सभी बच्चों नें थोड़ा थोड़ा करके जूस पीया। उन्होंने फिर से रास्ते पर चलना शुरू कर दिया। उनके पास खाने के लिए चने थे। रास्ते में चने खाने खाते जा रहे थे। उन्हें चने खाने के बाद और भी  जोंरों की प्यास लगी। आगे जाने ही लगे थे कि उन्हें सामने एक छोटा सा घर दिखाई दिया। राजू बोला चलो इस घर में चल कर पानी मांगते हैं वहां पर बाहर एक लोहे का गेट था। उस के सामने बाहर की ओर एक घड़ा रखा हुआ था। साफ-सुथरा घड़ा था। उसके ऊपर एक हैंडल वाला बर्तन रखा हुआ था सामने  बोर्ड पर लिखा था। जिस किसी नें भी पानी पीना हो वह पानी पी सकता है।  पानी गन्दे हाथों से मत निकालना। पानी की एक बूंद भी व्यर्थ नही जानी नहीं चाहिए। उन्हें आज पता ही लग चुका था कि बिना पानी के उन की क्या हालत हो गई थी। राजु आगे आ कर बोला आज कहीं मैडम की बात समझ में आई। पानी को मत गंवाओ। हर रोज मैडम  प्रार्थना के वक्त आधे घंटा भाषण  झाड़ती हैं। आज कहीं उन की बात पले पड़ी।

आज तो इस  घर के मुखिया का शुक्रिया अदा करना चाहिए। उन्होंने देखा कि उस घर में   एक औरत बाहर निकली। बच्चों को देख कर बोली तुमने पानी पी लिया होगा। वह बोला आंटी जी आपका धन्यवाद आज तो इतनी भयंकर गर्मी पड़ रही है हम प्यास के मारे बेहाल हो गए बच्चों ने देखा दूसरी और एक छोटा सा मटका था वह ढका हुआ नहीं था तब उन्होंने देखा कि एक चिड़िया आकर पानी पी गई। वह चिड़िया भी पानी पीकर बहुत ही खुश नजर आ रही थी वह  चीं चीं करके घर वालों को धन्यवाद दे रही थी चुन्नू बोला आंटी जी आपने यह दूसरा मटका क्यों रखा है वह बोली मेरी बेटी तुम्हारी ही उम्र की है वह

पंछियों से वह बहुत ही प्यार करती है। वह उन जानवरों को हमेशा दाना और पानी डालती है। वह कहती है कि मां जब हम प्यास के मारे बेहाल हो जाते हैं तो यह  जानवर  भी। तो गर्मी में यूं ही तड़प तड़प कर मर जाते होंगे। हमें इनके लिए पानी और दाना अवश्य डालना चाहिए। खासकर गर्मियों के मौसम में। घर के बाहर की ओर पानी अवश्य रखना चाहिए। सभी बच्चों ने  आंटी का धन्यवाद दिया।वे घर की ओर रास्ते में चलते जा रहे थे। रास्ते में एक कबूतर का बच्चा प्यास से व्याकुल हो कर नीचे गिर गया था। सभी के सभी बच्चों को समझ में आ गया था कि प्यास से व्याकुल हो कर हमारी ऐसी हालत हो गई   है तो वे बेचारे मूक जीव तो पानी के लिए किसी से भी फरियाद नहीं कर सकते। उनके लिए हम पानी की व्यवस्था नहीं करेंगे तो सारे के सारे जानवर तड़फ- तड़फ कर मर जाएंगे। गर्मी में सारे  के सारे तालाब भी सूख चुके हैं।

अचानक पूनम और रवि आगे आकर बोले भाई हमें अपनी गलती का पछतावा है। हम तुमसे छिप कर पानी पी रहे थे मगर थोड़ा सा पानी हम दोनों के पास है। कबूतर के बच्चे को पानी पीने की बोतल के ढक्कनसे उन्होंनें पानी डाला। कबूतरों नें पानी पिया और मुस्कुरा कर अपनों  साथियों के साथ उड़ गये।

आज के बाद  हम  भी अपने घर के आंगन में पक्षियों के लिए पानी का बर्तन अवश्य रखेंगे। उनको दाना भी डालेंगे। सभी बच्चे घर पहुंच गए थे। उन्हें पता लग गया था कि हमें पानी को व्यर्थ नहीं  करना है। हम पानी के बिना जिंदा नहीं रह सकते। पानी नहीं मिलता तो आज हम भी मर जाते या बेहोश हो जाते। पानी भी हम सब के  लिए उतना ही जरूरी है जितना कि  भोजन। उस दिन के बाद सभी बच्चों में परिवर्तन आ चुका था।

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