किसी जंगल में हिरणों का झुंड रहता था। उन हिरणों के झून्डों में से दो हिरण एक दूसरे के बहुत ही गहरे मित्र थे। एक का नाम था कालू और दूसरे का नाम था बांकू। बांकू और कालू की दोस्ती देखकर सारे हिरणो को ईर्ष्या होती थी। वह चाहते थे कि इन दोनों की दोस्ती टूट जाए। वे किसी ना किसी तरह उनकी दोस्ती को तोड़ना चाहते थे मगर जिन की दोस्ती सच्ची होती है वह किसी के कहनें मात्र से नहीं टूटती। वह दोनों एक दूसरे की धड़कन थे। बचपन से ही इकट्ठे रहते आ रहे थे। बांकू बहुत ही मेहनती था लेकिन कालू थोड़ा आलसी था मगर शांत और गंभीर था। कई बार उसके दोस्त बांकू को अपने दोस्त पर काफी गुस्सा आता था। मैं हर रोज शिकार की खोज में दौड़ता हूं मगर मेरा दोस्त शिकार ढूंढने के बजाय केवल बैठे-बैठे खाता है। बांकू को कभी भी बुरा नहीं लगता था। वह उसे इतना प्यार करता था कि वह उसकी कमियों को भी भूल जाता था।
एक दिन काफी वर्षा हो रही थी। कहीं भी भोजन नहीं मिल रहा था। कालू को बोला आज तू भी भोजन ढूंढने की कोशिश करना। लेकिन शाम के समय पर जब कालू मुंह लटका कर वापिस लौटा तो अपने दोस्त पर उसे गुस्सा आया। गुस्सा करनें पर भी बांकू ने देखा कालू चुपचाप बैठा रहा कुछ नहीं बोला। अचानक जब बांकू नें उसके पैरों पर चोट के निशान देखे तो उसका सारा गुस्सा काफूर हो गया। तूने मुझे क्यों नहीं बताया कि भोजन की तलाश करते करते तूने अपने पांव में चोट लगा ली है। कोई बात नहीं तू चिंता मत कर। मुझे कुछ मिला है। हम दोनों मिलकर खाते हैं
उसने अपने दोस्त के जख्म पर मिट्टी खोदकर उसके चोट पर लगाई। बांकू उसका लहू बहता नहीं देख सकता था। काफी दिनों तक कालू कहीं नहीं जा सका।
सारे के सारे हिरण बांकू को कहते तुम्हारा दोस्त किसी ना किसी दिन तुम्हें दगा देगा तब तुम्हें पता चलेगा। तुम हमारी बात समझते ही नहीं। तुम तो निकले बुद्धू। वह तुम्हें दिखाने के लिए लहूलुहान होकर आया है। हमारे साथ में रहो। बांकू बोला मुझे तो मेरा दोस्त जैसा भी है वह ठीक है। जब कालू ठीक हो गया तो एक दिन दोनों फिर भोजन की तलाश में निकल पड़े। घर से निकले तो इकट्ठे थे रास्ते में इतनी तेज आंधी तूफान आया तो दोनों रास्ताभटक गए। दोनों अलग अलग हो गए। जब तूफान थमा तो बांकू को भोजन तो मिल गया था वह जल्दी जल्दी अपने दोस्त को ढूंढने लगा।। कालू उसे कहीं दिखाई नहीं दिया। बांकू नें सोचा वह घर पहुंच गया होगा लेकिन वह घर पर भी नहीं था।
कालू तो गहरी खाई में नीचे गिर गया और झाड़ियों में फंस गया था। उसके टांगों में चोट लगी थी। अपने दोस्त के बिना बांकू को अपना घर काटने को दौड़ रहा था। वह इधर-उधर चक्कर काट रहा था। उसका दोस्त वापस नहीं आया। दूसरे दिन उसने सोचा वह वापिस आ जाएगा लेकिन अगले दिन भी वापस नहीं आया। जब उसनें आहट सुनी तो बहुत ही खुश हुआ उसनें सोचा शायद मेरा दोस्त घर आ गया है। उसे हर बार निराशा ही हाथ लगी। हिरणों के झुन्ड नें जब यह सुना तो वे बहुत ही खुश हुए। वह कहने लगे मरो अकेले। हमने तुम्हें कितना समझाया था? तुम तो आगे आंखें मूंद कर अपने दोस्त पर विश्वास करते थे। वह तो तुम्हें छोड़कर चला गया है और वह कभी भी वापस नहीं आएगा उसे तो कोई और मित्र मिल गए होंगे। बांकू अपने मन में सोचने लगा क्या सचमुच मेरा दोस्त मुझे दगा दे सकता है।? नहीं नहीं कदापि नहीं मेरा दोस्त मुझे दगा नहीं दे सकता।
सारे के सारे हिरण उस पर दया बरसाने लगे। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। अब तुम्हारी अकल ठिकाने आ गई होगी अभी भी समय है हमारे साथ रहो। तुम्हारे पास कोई चारा नहीं है। अकेले रहो या मरो तुम से अच्छा तो तुम्हारा दोस्त है। वह तुम्हें छोड़कर चला गया।
बांकू सामने तो हिरणों को कुछ नहीं कहता था मगर रात के समय घंटो घंटो अपनें दोस्त को याद कर रोया करता था। कहीं मेरा दोस्त किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गया। वह तो खाना भी हासिल नहीं कर सकता था। वह क्या मुझे छोड़कर जाएगा? वह कभी अकेला नहीं रह सकता। मैं उसे ढूंढना नहीं छोड़ूंगा। जिस दिन वह मुझे मिलेगा उससे जरूर पूछूंगा तुमने मुझे धोखा क्यों दिया?
कालू हिरण झाड़ी में गिर गया था वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था। हिरण को इतनी चोट लगी थी कि वह हिल भी नहीं सकता था। मगर वह जिंदा था। उसके आसपास छोटे छोटे खरगोश उसे देख रहे थे। उन खरगोशों को हिरण पर दया आती थी। वह उन्हें उसे मिलकर भोजन हरी हरी घास भी दे देते थे। हरा हरा घास उसकी तरफ को फेंक देते थे।हिरण के तो इतनी चोट लगी थी कि उसके गले में आवाज भी नहीं निकलती थी। वह धीरे धीरे घास खाता था। एक दिन खरगोश अपने बिल से निकल कर इधर-उधर चले गए। हिरण वहां पर ही था तभी वहां पर खरगोशों के बिल में कुछ लोमड़ियां शिकार करने के लिए आ गई थी। खरगोंशों को अपना शिकार बनानें का यत्न करनें लगी। कालू हिरण नें उन को डरा धमका कर को वहां से उन को भागने पर मजबूर कर दिया। वहां पर एक लोमड़ी उस हिरण से डर कर एक ओर कर खड़ी हो गई थी। लड़ाई करते हिरण बहुत ही थक चुका था। वह लहूलुहान हो चुका था। एक तो पहले लगी चोट भी ठीक नहीं हो पाई थी उस पर दुसरी चोट लग चुकी थी।
वह अपने मन में अपने हिरण को याद करने लगा। मेरा दोस्त मुझे दाना ला कर देता था। मैं बैठे-बैठे खाता था। मेरे दोस्त ने कभी भी मुझे खाना लाने के लिए बाध्य नहीं किया। मेरा दोस्त सोच रहा होगा कि दगा देकर भाग गया क्या करूं? यहां से तो मैं जा नहीं सकता अभी पहले वाली चोट भी ठीक नहीं हुई है। आज ये लोमड़ीयां आ कर खरगोशों के नन्हे नन्हें बच्चों को मारनें आ धमकी। लेकिन यहां खरगोश भी अपनें बच्चों के साथ रहते हैं। यह भी तो अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में गए हैं। आज अगर मैं अपनी जान देकर इन छोटेछोटे बच्चों की जान बचाने में सफल हो गया तो मैं समझूंगा कि मुझे इन बच्चों को बचानें के लिए मुझे अपनी जान भी कुर्बान करनी पड़ेगी तो अपनें जीवन को धन्य समझूंगा।
काश एक बार मेरा दोस्त मेरे सामने होता तो कितना अच्छा होता। मैं उस से मिल कर क्षमा मांगना चाहता हूं ओर कहना चाहता हूं कि मैंने तुम्हें धोखा नहीं दिया।कालू हिरण नें जोर जोर से चिल्लाना शुरु कर दिया। खरगोश अभी घर से बाहर ही निकले थे। हिरण पहले तो कभी आवाज निकालता नहीं था। खरगोंशों को पता था कि उस की चोट कितनी भयंकर है।? खरगोश सोचने लगे कि हिरन तो कभी भी इतनी जोर से आवाज नहीं निकलता था। हो ना हो हाल दाल में कुछ काला जरूर है। वह सभी अपने बिलों में वापस आए। वह यह देखकर हैरान हो गए कि हिरण ने लोमड़ियों को भगा दिया था। एक ही लोमड़ी वहां रह गई थी। हिरण नें लोमड़ी को खरगोश के बच्चों के बिल के पास लोमड़ी को फटकनें भी नहीं दिया था। अपनी टांगों से मार कर मार कर लोमड़ी को भी लहूलुहान कर दिया था।
लोमड़ी भी लहुलुहान हो कर एक और गिर गई थी। आकर सारे के सारे खरगोश हिरण के पास आकर बोले भाई हिरण तुम्हारी चोट अभी तो ठीक भी नहीं हुई थी तुमने आज फिर अपने आप को लहूलुहान कर दिया। तुम्हारे उपकार को हम कभी भी भूल नहीं सकते।
हिरन बोला मैंने तुम्हारे बच्चों को बचाकर कोई नेक काम नहीं किया। मुसीबत के समय हमें चाहे कोई भी हो चाहे शत्रु हो या मित्र हमें उसकी मदद अवश्य करनी चाहिए। तुम सब मेरे ऊपर उपकार करना ही चाहते हो तो कृपया मेरे दोस्त बांकू को ढूंढ कर ले आओ। मैं अपने जीवन की आखिरी घड़ी में अपने दोस्त को देखना चाहता हूं। मैं तुम्हारा यह उपकार जीवन में कभी नहीं भूलूंगा।
यहां से 3 कोस की दूरी पर एक बरगद का पेड़ है। वहां पर यहां पर केवल एक ही बरगद का पेड़ है। वहां एक घना जंगल है। उस पेड़ के पास मेरा दोस्त रहता है। और थोड़ी ही दूर पर हिरणों का झुन्ड भी रहता है लेकिन हम दोनों के दोनों हिरणों के झुन्ड से अलग एक साथ रहते थे। तुफान में फंस गए और बिछुड़ कर अलग हो गए।
खरगोश बोले हम तुम्हारे दोस्त को ढूंढ कर लाएंगे। वे सारे के सारे उसके दोस्त को ढूंढने निकल पड़े। दूसरे दिन भटकते भटकते उस जंगल में पहुंच गए। वहां पर उन्हें बरगद का पेड़ दिखाई दिया। वहां पर उन्हें हिरणों का झुन्ड दिखाई दिया। वे समझ गए कि वे ठीक स्थान पर पहुंच गये हैं। दूसरी तरफ एक हिरण बहुत ही मायूस हो कर बैठा था। लगता था वह अपने दोस्त को बहुत ही याद कर रहा था। बांकू अपने मन में सोच रहा था कि मेरा दोस्त कहीं मर तो नहीं गया। वह मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता। उसे तभी अपने सामने आहट सुनाई दी। वह खुश होकर दौड़कर आया। लेकिन अपने सामने खरगोशों की फौज देखकर मायूस हो गया।
खरगोशों का मुखिया बोला क्या तुम ही बांकुरा हिरण हो? हिरण बोला तुम्हें मेरा नाम कहां से पता चला? तुम यहां क्या लेने आए हो? हमें तुम्हारे दोस्त ने भेजा है। वह बहुत ही घायल अवस्था में हमारे बिल के पास पड़ा है। खरगोश बोले तुम्हारा दोस्त इतना अच्छा है उसने हमारे बच्चों को भी अपनी जान की बाजी लगाकर बचाया है। वह बेचारा कुछ दिन पहले हमारे बिल के पास एक झाड़ी में गिर गया था। झाड़ी में उसकी टांग फंस गई थी। वह काफी दिन तक वहां से टस से मस भी नहीं हो सकता था। भूखा प्यासा ही रहता था। वह हमेंशा बांकू बांकू कहा करता था हमने एक दिन दया कर के उस से पूछा कि यह बांकू कौन है तो उसने बताया कि वह बांकु हिरण मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। मैं उसके पास इस अवस्था में जा नहीं सकता। जब थोड़ा ठीक हो जाऊंगा तब जल्दी से उसके पास पहुंच जाऊंगा। हम दया कर के उसे हरी हरी घास फैंक दिया करते थे। उसकी जुबान भी नहीं निकलती थी।
एक दिन हम जब भोजन की तलाश में गए थे तो उसने अपनी जान की बाजी लगाकर हमारे बच्चों की रक्षा की। उसनें लोमड़ियों को हमारे बिल के पास भी नहीं आने दिया। हमारे बच्चों की रक्षा कर लहूलुहान हो कर गिर पड़ा। वह अपने जीवन की अंतिम सांसे ले रहा है। उसने कहा तुम अगर मुझ पर उपकार करना चाहते हो तो मेरे दोस्त को यहां लेकर आओ ताकि अपने आखिरी सांसे अपने दोस्त की गोद में दे सकूं। जल्दी चलो भाई वर्ना तुम्हारा दोस्त यूं ही तड़प तड़प कर मर जाएगा।
हिरण पलक झपकते ही अपने दोस्त के पास पहुंचा। अपने दोस्त को इस अवस्था में देखकर रो पड़ा। बोला मैं भी कितना निष्ठूर हूं। तुझे ढूंढने की कोशिश करता तो तुम्हारी हालत ऐसी नहीं होती। मुझे अपनी दोस्ती पर शर्म आती है। मेरे दोस्त अब मैं आ गया हूं तू डर मत। मैं तुझे जल्दी ही ठीक कर दूंगा। कालू बोला मैं कभी भी तुम्हारे पास पहुंच नहीं सकता था। मुझे इतनी अधिक चोट लगी थी। कालू बोला अच्छा तुम मेरे जाने के बाद किसी और को, दोस्त बना लेना। खरगोशों की ओर देखकर कहा अच्छा दोस्तों अलविदा तुमने मुझे अपने दोस्त से मिलवा कर मुझ पर बहुत ही बड़ा एहसान किया है। बांकू बोला दोस्त तुम मर नहीं सकते। कालू बोला मुझसे वादा करो कि तुम मेरे जाने के बाद मायूस नहीं होंगे। तुम्हें मेरी दोस्ती की कसम। मेरे मरने के बाद तुम्हारी आंखों से एक भी आंसू नहीं निकलनें चाहिए। वादा करो दोस्त। मेरे पास वक्त बहुत ही कम है। जब तक तुम मुझसे से वायदा नहीं करोगे तब तुम्हारा दोस्त चैन से कभी भी मर नहीं पायेगा। यूं ही तडफता रहेगा। कालू हिरण बोला तुमने मुझे कसम देकर मेरा मुंह बंद कर दिया है। तुम्हें मैं कुछ नहीं होने दूंगा।
बांकू जब यह कह रहा था तो कालू उसकी गोद में था। कालू ने यह कहते कहते प्राण त्याग दिए। अलविदा मेरे दोस्त अगले जन्म में फिर मिलेंगे। तुम हिरणों के झुन्ड में वापिस चले जाना। बांकू हिरण हिरणों के झुन्ड के पास आ कर बोला मेरी दोस्ती इतनी कच्ची नहीं थी। मेरे दोस्त नें मुझे मरते वक्त भी एहसास करवा दिया कि सच्ची दोस्ती इसी को कहतें हैं।