यह कहानी एक मध्यम वर्गीय परिवार की है। राज के परिवार में उनका एक बेटा था। उसका नाम था अंकित। अंकित बहुत सी प्यारा बच्चा था। बाबा की आंखों का तारा था। बाबा उसकी हर इच्छा को पूरी किया करते थे। वह भी अपनी मां बाबूजी को कभी क्रोधित होने का अवसर नहीं देता था। उसकी एक ही आदत थी वह हरदम पढ़ाई किया करता था। वह स्कूल से आते ही पढ़ाई करने बैठ जाता। खेलने भी बहुत थी कम जाता। हर वक्त पढ़ाई किया करता। जितनी वह पढ़ाई करता उतने उसके इतनी अच्छे अंक नहीं आते थे। उसकेअध्यापक उसकी प्रशंसा किया करते थे। वह पढ़ाई में ठीक ठाक था। वह कक्षा में कभी भी फेल नहीं होता था। उसके मां पिता चाहते थे कि हमारा बेटा पढ़ लिखकर एक अच्छा औफिसर बन जाए।वे उसे आई ए एस अफसर बनाना चाहते थे। उसके पापा ने उसे पहले ही कह दिया था कि बेटा आईएएस बनने के लिए हमेशा हमें खेल खेलना सब छोड़ने पड़ते हैं। आगे परीक्षा की तैयारी के लिए समय ही नहीं मिल पाता अगर अभी से तुम ज्यादा समय पढ़ाई में दिया करोगे तो तुम्हें आगेआई एस अफसर बनने से कोई नहीं रोक सकता। वह अपने पापा की सीख के अनुसार अपना ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई में व्यतीत करनें लगा। उसके दोस्त जब उसे खेलनें बुलाते तो वह सबको इंकार कर देता। मेरे पास अभी समय नहीं है। तुम ही खेलो। उसकी इसी आदत से सभी दोस्तों ने उससे किनारा कर लिया।
उसके गिनेचुने दोस्त ही ऐसे थे जो अभी भी उसे खेल के लिए बुलाते थे। इस तरह समय व्यतीत होता रहा था।अंकित दसवीं कक्षा में आ चुका था। स्कूल में मास्टरजी बच्चों को प्रश्न करवाते वह हल कर देता क्यों कि वह हर रोज पाठ याद करके ले जाता था। इस बार उसकी अर्धवार्षिक परीक्षा आने वाली थी। हर बार जब उसके अंक आते अपनें अंको की तुलना अपने दोस्तों से करता। उसके अपने दोस्तों से कितने अंक ज्यादा आए हैं। इस बार जब परिणाम आया तो उसके दो दोस्त पुनीत और सुमित दोनों के केवल 15 अंक ही कम थे वह मन ही मन सोचनें लगा यह तो सारा दिन खेलते रहतें हैं। जब मैडम कक्षा में प्रश्न लिखवाती है तो मेरी नकल मार लेते हैं। ऐसे कैसे इनके इतनें अंक आ जाते हैं। मैंने तो परीक्षा में इन्हें कुछ भी नहीं बताया। कोई बात नहीं अब मैं भी उनके साथ खेलने जाया करूंगा। पढ़ने के साथ साथ खेलना भी जरूरी होता है। मैंने तो इस बात को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। अब थोड़ी देर इनके साथ खेल लिया करूंगा।
एक दिन जब पुनीत उस बुलाने आया तो अंकित बोला क्यों नहीं? में भी तुम्हारे साथ खेलनें चलूंगा। वह खेलने जाने के लिए तैयार हो गया। उनके साथ खेलनें में उसे बड़ा ही मजा आया। उस दिन उसे पढ़ाई किया हुआ जल्दी याद हो गया।
अंकित सोचने लगा अच्छा हुआ मुझे जल्दी ही समझ में यह बात आ गई। मैं तो बाहर खुले में खेलों के मनोरंजन खेल खेलनें से वंचित ही रह जाता। एक दिन उसकी कापी पुनीत के घर पर रह गई। उसकी परीक्षा आने ही वाली थी वह कॉपी लेने सुमित के घर की ओर चला। वहां पर चलकर दरवाजे पर दस्तक देने ही लगा उसे सुमित की हंसने की आवाज सुनाई देने लगी। पुनीत सुमीत को कह रहा था कि पढ कर क्या होगा। इस बार भी पहले की तरह पेपर ले लेंगें। अंकित अपनें मन में सोचने लगा यह किन प्रश्न पत्रों की बात कर रहें हैं। अन्दर चल कर पता करता हूं। पुनीत बोला कैसे आना हुआ
अंकित बोला मैं अपनी कॉपी तुम्हारे पास ही भूल गया था। पढ़ाई कहां से करता? सुमित बोला बैठो। अंकित बोला तुम किस पेपर की बात करने वाले थे। वो बोला कुछ भी तो नहीं। अंकित समझ चुका था दाल में कुछ काला अवश्यक है।अंकित के दिमाग से यह बात मिटाए नहीं मिट रही थी। वह सोचनें लगा मैं इस बात का अवश्य ही पता करके रहूंगा। यह कैसे पेपर की बात कर रहे? और यह माजरा क्या है? अंकित अपनें दोनों दोस्तों पर नजर रखने लगा। अंकित नें उन दोनों को कभी पढ़ते नहीं देखा था। अर्धवार्षिक परीक्षा आने वाली थी। मैडम ने कहा जो बच्चे इस परीक्षा में निकलेंगे उन्ही बच्चों के दाखिले भरे जाएंगे। बाकी बच्चे अगले साल परीक्षा की तैयारी करना। बोर्ड की परीक्षा के लिए तो सब कुछ पढ़ा हुआ होना चाहिए।
अंकित उन पर कड़ी नजर रखने लगा। उनकी अर्द्ध वार्षिक परीक्षा के केवल दो दिन शेष थे। ।अंकित नें देखा सुमित और पुनीत कक्षा अध्यापक के घर केचारों ओर चक्कर काट रहे थे। उन के कक्षा अध्यापक का घर स्कूल के पास ही था। छुटकी उन की बेटी थी। छुटकी उनको देखकर बोली तुम शिक्षा के दिनों में ही यहां पर आते हो। आगे पीछे तो अपनी दोस्त का ख्याल ही नहीं आता। वह बोले गुरुजी से महत्वपूर्ण प्रश्न पूछने हैं। वह उन से महत्वपूर्ण प्रश्न पूछकर चुपके से चले जाते थे। उन्हें पता लग जाता था कि गुरु जी ने परीक्षा पत्र कहां रखा है? वे उन की गतिविधियों पर ध्यान रखते थे जब वे दोनों उन के पास पहुंचे तो गुरुजी को चिकनी चुपड़ी बातें कर कहने लगे कृपया हमें महत्वपूर्ण प्रश्न बता दीजिए। उन्हें डांट फटकार कर उनके अध्यापक कहते कि तुम इन पाठों को पूरा-पूरा याद कर लेना। गुरु जी अलमारी में देखकर बता दिया करते। तुम यह पाठ याद कर लेना। उस दिन भी ऎसा ही हुआ। गुरुजी से अलविदा होकर अपने घर जा रहे थे तो अध्यापक महोदय को बुलाने एक आदमी आया। उनके अध्यापक उनके साथ हो लिए। वे छुटकी के साथ दोनों झूठमूठ खेल खेलने का बहाना करनें लगे। छुटकी की मां इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थी उन्होंने देखा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा है। वह जल्दी से अपने अध्यापक के कमरे में गए उन्होंने मेज पर से चाबी उठाई और आलमारी को खोल कर सारे प्रश्न पत्र अपने मोबाइल में डाल लिए। खेल कर घर जाने लगे तो रास्ते में उन्हें अंकित दिखाई दिया अंकित को सामने देखकर सुमित ने वह पर्चा छुपाने की कोशिश की। अंकित की आंखों से कैसे बच सकते थे? उसने देखा उनके हाथ में सारे के सारे बनाए गए विषयों का बंडल था। अंकित बोला तुम गुरु जी के घर के बाहर क्या कर रहे हो? मुझसे कहो वर्ना मैं गुरु जी को सारी शिकायत लगा दूंगा। डरते डरते हम हर बार गुरु जी के घर से चोरी छिपे छुपे प्रश्न पत्र ले जाकर उसकी तैयारी करते हैं। वही प्रश्न पत्र परीक्षा में आ जाते हैं और हम पास हो जाते हैं। अंकित को मालुम हो गया था अच्छा तो यह माजरा है। उसने भी शाम को वही प्रश्न याद कर लिए। दूसरे दिन वही प्रश्न पत्र देख कर अंकित फूला नहीं समाया। इस बार तो उसके परीक्षा में 95% अंक आए। वह दोनों भी अच्छे अंकों में उतीर्ण हो गए थे।
मास्टर जी को उनकी करतूतों का पता भी नहीं चला। अंकित सोचने लगा कि मैं इतनी पढ़ाई किया करता हूं। मुझे भी हर बार इसी तरह प्रश्न पत्र मिल जाए तो मेरे तो वारे न्यारे हो जाएंगे। चाहे मुझे अपने दोस्तों को कुछ कुछ ना कुछ क्यों ही ना देना पड़े मैं भी वही प्रश्न पत्र याद करके जाया करूंगा और पास हो जाया करूंगा। सारे दिन खेलूंगा भी। मां बाबूजी को कभी पता नहीं चलेगा। इस बार अंकित के माता-पिता यह देख कर प्रसन्न हो गए उनके बेटे के 95% अंक आए थे। वह अपने साथियों को अपने बच्चों की प्रगति की तारीफ किए बिना पीछे नहीं हटे। इस बार तो हमारे बेटे ने इतनी मेहनत की। हम तो गल्त साबित हो गए हम सोचते थे जितनी अधिक यह पढाई करता है उतरेंगे उसके कभी भी अंक नहीं आते हैं। 95%प्रतिशत अंक कम नहीं होते ।हम अपने बेटे की मेहनत पर खुश हैं ।हमारे बेटे को आईएएस अफसर बनने से कोई नहीं रोक सकता। वह औफिसर बन कर ही दिखाएगा। हमें अपने बच्चे को खेलने भी अवश्य भेजना चाहिए।
अंकित ने मेहनत करना बंद कर दिया। वह अपनें दोस्तों के साथ खेलने चले जाता और आकर चुपचाप सो जाता। अंदर से दरवाजा बंद कर लेता था। जब उसकी मां कुंडी खटखटा कर उसे देखनें आती तो सुबह जल्दी जल्दी आंखों को मल कर उठ बैठता। अंकित बहुत ही खुश हो रहा था। उसके हाथ में तो जादुई चिराग लग गया है। उसकी अर्धवार्षिक परीक्षाएं आने वाली थी। उसके गुरुजी ने प्रश्न पत्र बनाकर तैयार कर लिए थे। उनके गुरु जी बहुत ही सीनियर थे, जिस वजह से उन्हें ही दसवीं के प्रश्न पत्र बनाने थे। उन्होंने प्रश्न पत्र बनाकर रख दिए थे। छुटकी घर में खेला करती थी। इस बार भी पुनीत और सुमित प्रश्न चोरी कर रहे थे तो छुटकीनें उन्हें देख लिया। छुटकी के मुंह पर हाथ रख कर बोले तुम गुरु जी से तो नहीं कहोगी। हम देख लेते हैं किस तरह के प्रश्न पत्र हैं। उन्होंने सारे के सारे प्रश्न अपने मोबाइल में सुरक्षित जमा कर लिए। वे घर से मोबाइल लेकर आए थे। छुटकी डर रही थी उस के पापा नें उन पेपरों को छपवानें के लिए भेजना था। उसके पिता ने कहा कि शाम को 7:00 बजे तक वह पेपर वापस ले जायेंगे। जरा ध्यान रखना। छुटकी बोली बाबा आप निश्चिंत होकर जाओ। यहां कोई नहीं आता है। उनकी बेटी छठी कक्षा की छात्रा थी।
उनके पिता किसी काम से बाहर चले गए थे। उन्होंने छुटकी को तरह-तरह के लालच देकर सारे के सारे प्रश्न पत्रों को अपने मोबाइल में सेव कर लिया। अचानक गुरु जी नें उन छात्रों को घर के बाहर घूमते देख लिया था। उन्हें जिस बात की आशंका थी वही हुआ। उन्होंने अपनी आंखों से सुमित और पुनीत को उन प्रश्न पत्रों को सेव करते देख लिया था। वह चुपचाप कमरे में गए और गुस्से भरी नजरों से छुटकी की तरफ देखा। दोनों बच्चे चुपके से दूसरे दरवाजे से वापिस घर आ चुके थे। उन्होंनें गुरु जी को नहीं देखा। छुटकी को कुछ ना कुछ इनाम देने का बहाना कर दिया था और वह प्रश्न पत्र उस से ले लिया था। खुश हो रहे थे इस बार भी वही परीक्षा में प्रश्न पत्र आएगा।
छुटकी की नजर अपनें पिता पर थी। उसनें अपनें पिता को बोलते सुन लिया था कि मेरे स्कूल में पढ़ने वाले 2 विद्यार्थियों ने यह प्रश्न पत्र देख लिया है।यह प्रश्न पत्र अगर लीक हो गया तो में कहीं का नहीं रहूंगा। मैं आपके पास आ रहा हूं। छुटकी की आंखों में आंसू थे। उसके दोनों दोस्त इस बार फेल हो जाएंगे। वह तो बच्ची थी उस वक्त उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। वह सोचनें लगी कि मैं अपने दोस्तों को फोन करके बता देती हूं। मेरे पास तो मोबाइल भी नहीं है। क्या करूं? वह दौड़ी दौड़ी उन दोस्तों के घर पर पहुंची हबोली मेरे पापा नें उन प्रश्नपत्रों को बदल दिया है। उन्होंने तुम दोनों को पेपर सेव करते देख लिया था। वह दोनों रोते रोते बोले अब तो हम इस बार हम फेल हो जाएंगे। क्या करें।? मां बाबूजी घर में नहीं आने देंगे। हम तो मर ही जाएंगे। सुमित बोल लगा मैं तो यहां से छलांग लगा कर कूद ही जाता हूं।। अच्छा होगा मैं मर जाता। वे दोनों छुटकी को डरा रहे थे ताकि वह दूसरा पेपर लाकर उन्हें दे दी। े वह बोली तुम क्या कहते हो? तुम कुदो मत। तुम सचमुच मर जाओगे तो क्या होगा? मैं अपने सामने किसी को मरते नहीं देख सकती। मेरे पापा शायद प्रश्न पत्र की दो कौपियां बना कर रखतें हैं। वे उन्हें अपनों मोबाईल में तो अवश्य सुरक्षित रखतें हैं। वह घर जाकर कर देखती हूं। तुम दोनों मेरे साथ मेरे घर चलो। वे दोनों दोस्त उसके घर पर चल पड़े। उन्हें वहां पर कोई भी पेपर नहीं मिला। अचानक छुटकी ने देखा कि उसके पिता मोबाइल घर पर ही भूल गए थे। जल्दी से उसने मोबाइल में देखा उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा उसके पिता ने पेपर मोबाइल में सेव किए हुए थे। उसनें उन दोनों को सारे पेपर व्हाट्सएप पर भेज दिए। दोनों नें छुटकी को धन्यवाद दे कर कहा तुम नें हमें फेल होनें से बचा लिया। लेकिन हमारा तीसरा दोस्त अंकित तो घर जा चुका है। उसके पास तो मोबाइल भी नहीं है। सुमित बोला तुम उसकी चिन्ता मत करो। वह तो बहुत ही होशियार है। उसे तो सब कुछ याद होता है। कोई बात नहीं हम इस वक्त उसको कैसे सूचित कर सकते हैं?
स्कूल में परीक्षा चल रही थी। सुमित और पुनीत तो खुशी-खुशी परीक्षा में पूछे गए सवालों के उत्तर दे रहे थे। उन्होंने तो सारे के सारे प्रश्न याद किए थे। अंकित अपने दोस्तों को देखकर हैरान था। उसके दोनों दोस्त मजे से पेपर कर रहे थे। वह चुपचाप पानी पी कर काम चला रहा था। उसने तो कुछ भी याद नहीं किया था। उसके सारे के सारे परीक्षा के पेपर बहुत ही खराब हुए। उसके दोस्तों ने उसे नहीं बताया कि गुरु जी ने प्रश्न पत्र बदल दिए थे। जब परीक्षा परिणाम आया तो अंकित फेल हो गया था। उसके दोनों दोस्त पास हो गए थे। परीक्षा परिणाम देखकर अंकित अपनी करनी पर बहुत ही पछता रहा था। हर बार पढ़ाई करने वाला बच्चा अपने गंदे दोस्तों की संगत में आकर एक नालायक बच्चा बन गया था। वह सोचने लगा कि मैं तो आईएएस अफसर बनने का स्वपन देख रहा था। इस बार तो पास भी नहीं हुआ। जब परीक्षा परिणाम घोषित किया गया अंकित को फेल घोषित किया गया।
वह घर की ओर जाने के बजाय नदी की तरफ दौड़ता जा रहा था। छुटकी को सारा किस्सा पता चल चुका था कि उस के दोस्तों नें उसे प्रश्न पत्र बदलनें वाली बात नहीं बताई थी। वह तो पुराना वाला प्रश्न पत्र ही याद कर के परीक्षा देंनें गया। उसको नदी की तरफ दौड़ता देख कर छुटकी ने देख लिया। उसके दोस्तों ने छुटकी को सब कुछ बता दिया था कि वह अपने दोस्त को पेपर नहीं दे पाए। छुटकी भी उसके पीछे-पीछे दौड़ी। छुटकी ने देखा कि वह नदी में कूदने ही वाला था। उस समय एक अधेड़ अवस्था के सज्जन व्यक्ति उधर से गुजर रहे थे। छुटकी ने अंकित की सारी कहानी उन्हें बताई। अंकल पहले आप अंकित को बताइए। अंकित ने नदी में छलांग लगा दी थी। उसने जल्दी ही अंकित को पानी से निकालकर उसके घर पहुंचा दिया। उसके माता पिता उसकी इस तरह के बर्ताव को देख कर दुःखी थे। उनके बच्चे ने यह क्या किया। वह तो उस से न जाने कितनी अपेक्षाएं लगा कर बैठे थे। अंकित के माता पिता को भी सारी सच्चाई पता चल चुकी थी। उन्होंनें उसे प्यार प्यार से समझाया बेटा अभी भी कुछ नहीं बिगाड़ है। तुम सुधर सकते हो। भूल जाओ। बच्चों से गल्तियां हो ही जाया करती है। संगत का असर तो तुम नें देख ही लिया होगा। ़
गुरु जी को भी पता चल गया था कि यह सब उनके द्वारा बनाए गए प्रश्न पत्र का परिणाम है। अंकित के दोस्तों को तो वही परीक्षा पत्र हाथ लग गया था मगर अंकित के हाथ वह वह प्रश्न पत्र नहीं लगा था। वह पुराना पेपर याद करके चला गया। वहं इसी भरोसे पर परीक्षा दे रहा था कि वही पेपर परीक्षा में आ जाएगा लेकिन गुरु जी ने असलियत पता लगने पर वह प्रश्न पत्र ही बदल दिया था। छुटकी ने जब देखा कि पापा ने प्रश्न पत्र बदल दिया है तो वह अपने दोनों दोस्तों को बताने उनके घर पर गई। उन्होंने मोबाइल द्वारा दूसरा पेपर सेव कर लिया लेकिन अंकित के हाथ तो पुराना पेपर ही हाथ लगा। उसके दोस्तों को भी शाम को ही प्रश्न पत्र मिला था। उन्होंने सोचा अंकित तो होशियार है। वह तो परीक्षा उत्तीर्ण कर ही लेगा। उन्हें क्या पता था कि वह तो पढ़ाई लिखाई छोड़ कर मिले हुए पेपरों के सहारे ही आस लगाए बैठा था। वह कब से मेहनत करना छोड़ चुका था। उसने सोचा मेरे दोस्तों के तो बिना पढ़ाई किए ही इतने अच्छे अंक आ जाते हैं। मैं तो सारे के सारे दिन पढ़कर भी इतने अच्छे अंक नहीं ले सकता। मैं भी वही याद किया करूंगा जो प्रश्न पेपर में आएंगे ज्यादा याद करने की कोई जरूरत नहीं होती।
उसके माता-पिता नें अपनें बच्चे के ऊपर निगरानी नहीं रखी। वहां भटक चुका था।
संगत का असर देखने को मिला। अंकित ने मरने के लिए कदम उठाया। छुटकी ने सब कहानी अपने पिता को कहीं। उसके पिता ने बोर्ड से दरख्वास्त कर उसको आगे बढ़ने के लिए एक अवसर प्रदान करवा दिया। उसकी सारी प्रगति रिपोर्ट को देख कर उसको एक अवसर दिया गया। अंकित को समझ में आ गया था खेलना तो जरूरी होता है लेकिन संगत का भी बच्चों पर बहुत असर पड़ता है अच्छी संगत ना मिले तो अच्छा बच्चा भी बुरा बन जाता है और उसका भविष्य धूमिल हो जाता है।
उसके माता-पिता द्वारा समझाने पर वह सुधर गया उसने स्वीकारा की संगत बच्चों को कहां से कहां पहुंचा देती है। उसने फिर से मन लगाकर मेहनत करना शुरू कर दिया और एक दिन अपने सपनों को साकार कर दिखाया।
गुरु जी ने अपने सभी शिष्यों को कहा बेटा नकल करना बुरी बात है। नकल करने से भी बढ़कर यह जान लेना जरूरी है कि नकल करते देख कर उसे नकल करने पर कुछ ना कहना। नकल करने से इंसान पास तो हो सकता है लेकिन भविष्य में नकल करके पास होने वाला इंसान आगे चलकर कुछ भी नहीं बन पाता।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संगत का बच्चों पर बहुत ही अच्छा या बुरा असर पड़ता है। हमें बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए आपका बच्चा गलत संगत में तो नहीं पड़ गया। उन्हें प्यार से और एक मित्र बन कर उसे समझाना चाहिए तभी उसका भविष्य उज्जवल होगा।