किसी गांव में रौशनी नाम की एक बहुत ही नेक और ईमानदार महिला रहती थी। जैसा उस औरत का नाम था उसी की तरह उसका स्वभाव था। रौशनी जहां भी जाती रोशनी की किरणें बिखेर देती। मीठे मीठे वचनों से सभी को अपना बना लेती थी। नेकी का जीता जाता उदाहरण थी वह। बच्चे बूढ़े सभी के साथ मधुर व्यवहार करती हर आने जाने वाले लोगों पर अपनी अमिट छाप छोड़ देती थी। लंबी चोटी बड़ी बड़ी आंखें उस पर गोलमटोल चेहरा। घुंघराले बालों वाली। काम इतनी होशियारी से करती कि पता भी नहीं चलता कब काम हो गया। चुटकियों में घर का सारा काम कर दिया करती थी। उसके दो बेटे थे। जगता और भक्ता। उसके दोनों बेटे जगता और भक्ता बडे़ हो चुके थे। उनके पिता नहीं थे। मां ने ही उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया था। मां ने उन्हें कोई कमी नहीं रखी थी। हर वस्तु थी उनके पास। काफी धन दौलत थी। वे दोनों बेटे भी नौकरी कर अपना काम धंधा कर रहे थे।
जगता जैसा नाम वैसा ही काम। जगत के लोगों के कल्याण के लिए उसने राजनीति से अपना सफर शुरू किया।वह इलेक्शन में खड़ा हो जाता जिस तरह जीतने की गुंजाइश होती उस पार्टी में शामिल हो जाता। कभी चुनाव में जीत जाता था कभी हार जाता। उसकी मां उसको बोल बोल कर थक गई उस चुनावी दावपेच में क्यों पड़ा है लेकिन जब जीत जाता तो उसकी तो पौ बारह हो जाती। उसे तो पैसा कमाने से मतलब था। घर के काम धाम से उसका कोई मतलब नहीं था। अफसरगिरी झाड़ कर गांव के लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। वह सभी से कहता फिरता था कि मैं इस बार चुनाव में जीत गया तो तुम्हारे गांव की काया ही पलट कर दूंगा। इस बार जीता कर तो देखो लेकिन जब चुनाव समाप्त हो जाते तो मोहल्ले की तरफ रुख भी नहीं करता था। ऐसा था जगता नाम बड़े और दर्शन छोटे। उसको तो बस रुपए कमाना था। उसकी मां को अपनी बेटे की यही आदत अच्छी नहीं लगती थी।
भक्ता तो संतों की तरह था। उसका व्यवहार बहुत ही मधुर था। भगंवा चोला और हाथ में कम्डल लेकर सुबह से शाम तक प्रवचन देने चला जाता। उसे पूजा-पाठ के नाम पर कुछ नहीं आता जाता था। दो तीन चार मंत्र रट लिए। आता जाता कुछ नहीं था। उसको जब कभी किसी के घर पूजा पाठ करने जाता तो अपनी पोथी जो उसने खरीदी थी उसको साथ ले जाना नहीं भूलता था। किसी ने उसे कुछ ऐसा वैसा प्रश्न कर दिया तो क्या उत्तर देगा? हर वक्त चिंता में रहता था कि किसी दिन पोल खुल गई तो कहीं का नहीं रहूंगा। ना घर का ना घाट का। उसको लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का मंत्र आता था। वह अपनी बात को इधर-उधर घुमा देता था। लोग उसकी कमजोरी को पकड़ नहीं पाते थे। एक दिन उसे किसी ने पूछ लिया पंडित जी इस महीने एकादशी कब है। वह तो पोथी लेकर नहीं गया था। कौन सी एकादशी कृष्ण पक्ष की या शुक्ल पक्ष। कुछ लोग उसकी बातों में आ जाते थे। उसकी मां उसको प्यार से समझाती बेटा लोगों से छल कपट करना अच्छा नहीं होता। वह कहां मानने वाला था? वह जब औरों के घर पूजा पाठ करने जाता तो कहता कि मैंने व्रत रखा है। लेकिन घर से चलते वक्त अगर उसके घर से में प्याज लहसुन वाला खाना बना होता तो वह कहता मां खाने को दे दो। मां कहती तुम तो किसी के घर में पाठ करने जाते हो तुम्हे तो व्रत करना चाहिए। वह तो वह कहता छोड़ो ना रुपया ही तो कमाना है। यह पाठ वाह तो ढकोसलें हैं। पेट भरने के लिए लोगों से छल तो करना ही पड़ता है। उसकी मां समझाती बेटा क्यों तुम्हारा जमीर तुम्हें इसकी इजाजत देता है? वह अपनी मां को कहता मां अपनी बड़ी बड़ी बातें अपने पास ही रखा करो। इस तरह का था भक्ता। दिन बितनें लगे ।
मां को अपनें दोनों बेटों की हरकतें पसंद नहीं थी। वह कहती थी कि मैंने अपने घर की एक एक ईंट को अपनी नेकी की कमाई से जुटाया है। तुम्हें ही मेरी इस धरोहर को सहेजना संभालना है। उसके बेटों ने मनमानी करनें में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। मोहल्ले वालों से उसे हर रोज बहुत कुछ सुनने को मिलता था। एक दिन जब जगता और भक्ता के बारे में लोगों ने उसकी मां को बहुत कुछ सुनाया तो उससे रहा नहीं गया। वह अपने दोनों बेटों के पास जाकर बोली मेरा अब इस घर में कोई काम नहीं। मैं यहां अब एक दिन भी और नहीं रह सकती। या तो तुम दोनों इस घर से चले जाओ या मैं ही इस घर को छोड़कर चली जाती हूं। जगता और भक्ता ने अपनी मां को समझाने की बहुत कोशिश की मगर दोनों ने कहा हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे। आपने जाना है तो खुशी से जाओ। हम तो आपको इसी तरह रख सकते हैं जैसे रह रहे हैं। आपने रहना हो तो रहो। मां नें जब यह सुना तो उसकी आंखों से आंसू छलक आए। उसने अपनी जो कुछ उसके पास जमा पूंजी थी वह ली और रातों रात बिना किसी को कुछ कहे वहां से चली गई। घर छोड़ने के पश्चात उसे दर-दर की ठोकरे खानें पड़ी। वह अपनें घर से इतनी दूर निकल आई जहां पर उसके बेटे उस से मिलने ना आ सके। वह प्लेटफार्म पर रेल के आने का इंतजार कर रही थी। लोग स्टेशन पर इधर उधर भागे जा रहे थे। वह मन में सोच रही थी कि जैसे ही कोई भी गाड़ी यहां आएगी वह उस में बैठ कर बहुत दूर चले जाएगी जहां उसे कोई न पहचान सके। रेल गाड़ी की सीटी सुनाई दी। स्टेशन पर गाड़ी आ चुकी थी। वह जल्दी से गाड़ी में बैठ गई। रेलवे इंस्पेक्टर ने पूछा कि तुमने कहां जाना है माई? वह बोली जहां इस गाड़ी का अन्तिम पड़ाव है। मुझे नाम याद नहीं आ रहा है। बुढ़ापे में कुछ याद ही नहीं रहता है। यह गाड़ी तो भोपाल जा रही है। इंस्पेक्टर से मधुर स्वर से बोली हां हां मुझे भी वहीं जाना है उसनें टिकट इंस्पेक्टर को टिकट के रुपये दिए। उसे भूख भी बड़ी जोर की लग रही थी। अचानक उसके सामने वाली बर्थ पर एक परिवार आ कर बैठा। उनके पास एक छोटा सा बच्चा था। वह बार-बार उस बच्चे को देख कर उस से बात करने का प्रयत्न कर रही थी। साथ में बैठी एक औरत बोली बहना ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। ना जानें आपके बच्चे को लेकर चलती बनें। अपने बच्चे को संभाल कर रखो। रोशनी की आंखों में आंसू आ गए थे। साथ में बैठी औरत पानी पीनें बाहर चले गई थी। वह रौशनी की ओर देख कर बोली बहन ऐसी बात नहीं है आप बुरा मत मानना। यह लोग ना जानें यूं ही कुछ ना कुछ कहते फिरते हैं। आप मेरी बेटे के साथ खेल सकती हैं।उसने अपने बेटे को रौशनी की गोद में दे दिया था। वह उसकी गोद में आ कर चुपचाप उस की तरफ देख कर मुस्करा रहा था। बच्चे की मां बोली कि आप कहां जा रही हैं? वह बोली कि मैं भोपाल जा रही हूं। वह परिवार बोला कि हम भी सूरत ही जा रहे हैं। रोशनी को आशा की एक हल्की सी किरण दिखाई पड़ी चलो कोई तो साथ हुआ। बूढ़ी काकी ने अपने बच्चों के बारे में कुछ नहीं बताया। इस परिवार ने उससे पूछा सूरत में तुम्हारा कौन रहता है? वह बोली यह दुनिया ही मेरे लिए मेरा परिवार है। वहां कुछ काम धंधा करना चाहती हूं। रेखा बोली मुझे एक ऐसी ही आया की तलाश थी जो मेरे बेटे को अच्छे ढंग से संभाल सके। क्या तुम मेरे बेटे की देखरेख कर दिया करोगी? मेरा तबादला हाल ही में भोपाल में हुआ है। बच्चे की देखभाल की जरूरत है। मैं तुम्हें इसके लिए ₹5000 दूंगी।
रोशनी बोली हां बेटा अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है तभी यह बात कहना। बातों ही बातों में वह उन से घुल मिल गई थी। रोशनी का तो भूख के मारे बुरा हाल था। रेखा नें उसे खाना खिलाया। उसने भरपेट खाना खाया और एक ओर होकर सो गई।
भोपाल स्टेशन पर, गाड़ी रुक गई थी। अन्धेरा होने ही वाला था। रेखा उससे बोली बहन तुम कहां रहोगी? रोशनी बोली मैं एक कमरा किराए पर ले लूंगी। आप मुझे अपना पता दे दो। रेखा ने से अपना पता लिखकर दे दिया। रोशनी घर की तलाश करने लगी। उसे कहीं पर भी अच्छा कमरा नहीं मिला। उसने रात रलेवेप्लेटफार्म पर ही गुजारी। उसे जो भी कमरा मिला वह तो बहुत ही महंगा था एक महीने के लिए उसने वह कमरा दो हजार पर ले लिया। छोटा सा था। दूसरे दिन वह काम की तलाश में रेखा के घर चली गई। इस तरह उसे रेखा मेमसाहब के घर काम करते करते छः साल हो गए। उसने कुछ रुपए इकट्ठे कर लिए थे। उसने अपने गहने भी बेच दिए। उसने उससे एक छोटा सा घर खरीद लिया। वह छोटा सा ही घर था जिसमें एक कमरा और एक रसोई थी। वह उसका अपना तो था। अजनबी शहर वाली जगह में दो हजार देना उसे बहुत ही दुष्कर लग रहा था। इसलिए उसने इकट्ठा करके अपना ही कमरा ले लिया था।वह आसपास के घरों में झाड़ू पोछा करती और जो मिलता उसे अपना गुजारा किया करती। उसके बेटों ने तो उसे ढूंढने का भी प्रयत्न नहीं किया।
एक दिन जब वह घर साफ कर रही थी तो उसके घर के बाहर एक बंदर आकर गिरा। उसके पैर में बहुत चोट लगी थी। उसने उसकी मरहम पट्टी की और उसे खाने को दिया। पांच-छह दिन तक वह उसे खाना देती रही। जब बंदर थोड़ा ठीक हुआ तो वहां से चला गया। हर शाम को आता और उस बुढ़िया काकी को देखता रहता। वह बड़े ही प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरती उसे और अपने हाथ से खाना भी खिलाती। अपने आप भी खाती। एक थाली उसकी लगाती और एक थाली अपनी। वह बंदर उसको प्रेम भरी नजरों से देखा करता था। जब उसे भोजन नहीं मिलता था तो वह उस बूढ़ी काकी के घर आ जाता था। उसके साथ खाना खाता। इस तरह काफी दिन व्यतीत हो गए।
रेखा का तबादला दूसरे शहर को हो गया था। वह भी दूसरे शहर में जाकर बस गई थी। रौशनी एक दिन बहुत ही बीमार पड़ गई। उसे पानी पिलाने वाला भी कोई नहीं था। तेजू बन्दर उसके घर पहुंचा तो उसे खाना नहीं मिला। वह देखने लगा। बूढ़ी काकी को सूंघ कर छू कर देखा। बूढ़ी काकी को बहुत ही तेज बुखार था। बंदर दौड़ा दौड़ा पास ही के डाक्टर के घर गया और उसे पकड़ कर ले आया। एक दिन जब बूढी काकी तेजू बन्दर को खाना दे रही थी तेजु बन्दर नें उस डाक्टर को देखा था। डाक्टर नें जैसे ही बुढी काकी की नब्ज टटोली वह बोला तुम्हें बुखार है। उस दिन तेजु बन्दर नें डाक्टर को देखा था। जाते जाते वह डाक्टर के पीछे भागा। उसने डाक्टर का घर देख लिया था। डाक्टर नें अपने घर पहुंच कर किवाड़ बन्द कर दिए। तेजू नें जब बूढी काकी को छुआ और कुछ महसूस किया वह दोडा दोडा उसी डाक्टर के घर पहुंच गया। उसने डाक्टर का बक्सा उठा लिया। डाक्टर कहीं जानें के लिए तैयार था। वह उसका बक्सा लेकर भागा।डाक्टर बोला हाय! मेरा बक्सा। आगे आगे बंदर और डॉक्टर उसके पीछे।उसका पीछा करता हुआ डाक्टर बन्दर के साथ एक खोली में घुस गया। वहां पर एक बूढ़ी औरत को बुखार से तपता हुआ पाया। वह बोला मैं एक दिन भी तुम्हें दवा देनें आया था। तुम्हारे इस नटखट बन्दर नें तो मेरा बक्सा मुझ से छीन लिया। बूढ़ी औरत को बुखार में तपता देखकर डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन लगाया। तेजु बंदर नें उसका बक्सा लिया और उसे उसके घर पर पहुंचा कर आया। उसके इस प्रेम भाव को देखकर डाक्टर भी दंग रह गया। बूढ़ी काकी बुखार में कराह रही थी। पानी पानी।
तेजु बंदर भोजन की तलाश में चल पड़ा। उसे भागते-भागते शाम हो गई थी। तेजू ने देखा एक फल वाला जा रहा था। उसने उस रेढीवाले की रेढी से कुछ फल निकाले और उसको चुरा कर ले आया। उसमें से कुछ फल डॉक्टर को दे कर आ गया। डॉक्टर यह देखकर हैरान रह गया। वह बन्दर की दया भावना से मुग्ध हो गया।
वह डाक्टर सोचनें लगा कि इन जानवरों को इन्सानों से ज्यादा समझ होती है। यह मुंह से कुछ नहीं कह सकते मगर समझते सब कुछ हैं।
बंदर एक हलवाई की दुकान पर गया। उसकी दुकान से वह डबल रोटी का एक पैक्ट और एक दूध का पैकेट उठा लाया। और उस बूढ़ी काकी के घर की ओर चल पड़ा। बूढ़ी काकी को दूध का पैक्ट और डबलरोटी का पैक्ट दे दिया। बूढ़ी काकी कुछ ठीक हुई तो वह तेजू से बोली पता ही नहीं चला तू कब मेरा बेटा बन बैठा? तू मेरी इतनी दया क्यों करता है?
काकी को आज भी बहुत तेज बुखार था। उसका बुखार कुछ कम ही नहीं हो रहा था तेजू ने उसे छुआ और महसूस किया तेजू सोचनें लगा। इस बूढ़ी काकी को किसी बच्चे की तलाश है जो उसका काम कर दिया करे। यह सोच कर ऐसे इंसान की तलाश में चल पड़ा जो बूढ़ी काकी को खिला पिला सके। अब काकी के काम करने के दिन नहीं हैं। उसे एक ऐसा आदमी मिला जो रेल की पटरी के पास स्टेशन के एक ओर चादर ढक कर सोया था। वह उसे बहुत ही ईमानदार लगा। वह 22 वर्ष तक का इन्सान था। उसके पास रहने के लिए छत नहीं थी। वह बिल्कुल अकेला था। तेजू नें देखा अगर यह इनसान बूढी काकी का घर सम्भाल ले तो बहुत ही अच्छा होगा। तेजू उस नवयुवक के आस पास जाकर मंडराने लगा। उसकी चादर को खींचनें लगा। उस की चादर को खींच कर बहुत दूर तक ले गया। वह नवयुवक तेजू बन्दर के पीछे भागा। उसके पास तन ढकने के लिए एक ही चादर थी।वह उसकी मेहनत की कमाई थी। वह इस चादर को लुटते हुए नहीं देख सकता था उसे तेजू बंदर पर काफी गुस्सा आया। वह उस बंदर के पीछे पीछे भागा। तेजू बूढ़ी काकी की खोली में घुस गया । उसने वह चादर बूढ़ी काकी को ओढा दी । वह नवयुवक भी चलता हुआ उस खोली में आ गया। बूढ़ी काकी को होश आ गया था। उस नवयुवक नें बूढ़ी काकी पर चादर देखी। वह चादर लेनें के लिए बूढी काकी के समीप गया बूढी काकी कराह रही थी। बूढी काकी नें समझा तेजू होगा बोली तेजू बेटा आज क्या शैतानी की है? यह चादर कहां से लाया? अपने सामने एक नए युवक को देखकर चौकीं। बोली बेटा कहां रहते हो?। मैं तो तुम्हारी आवभक्त नहीं कर सकती। मैं बीमार हूं। वह बोला दादी मां क्या आप अकेली रहती हैं? आपको तो बुखार है। उसने अपने हाथों से बूढ़ी काकी को पानी पिलाया। उसे पहले तेजू बंदर पर गुस्सा आ रहा था यह सब देख कर उसका सारा गुस्सा समाप्त हो गया। काकी बोली बेटा घर जाओ। तुम्हारे माता-पिता तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगें।
वह बोला मेरा इस दुनिया में कोई नहीं। मेरे मां-बाप बाढ में डूब कर मर गए। मैं अकेला हूं। कभी स्टेशन पर कभी कहीं, इधर-उधर घूम रहकर अपना गुजर-बसर किया करता हूं। मेरे पास रहने को घर नहीं है। मैं थोड़ा बहुत कमा लेता हूं। मेहनत मजदूरी करके जो कमाता हूं वहीं खा लेता हूं। मेरे पास रहने के लिए घर नहीं। मकान का किराया ही इतना ज्यादा है मैं नहीं चुका सकता इसलिए मैं बाहर स्टेशन पर रात गुजारता हूं। काकी बोली तुम्हें अगर मेरा घर अच्छा लगे तो यहीं रहा करो। आज से मैं तुम्हारी काकी। तुम मुझे काकी बुला सकते हो। काकी उससे बोली तुम्हारा क्या नाम है? वह कहने लगा प्यार से मेरी मां मुझे मंकू बुलाती थी। मेरा नाम मयंक है। मंकू वहीं पर रहने लगा। वह रोज मेहनत करके कमाता। तेजू बंदर भी उसका दोस्त बन गया था। मंकू आदिवासी लोगों का बच्चा था। उसे जानवरों की भाषा आती थी। एक दिन बुढ़िया काकी नें तेजू बन्दर की सारी कहानी मंकू को सुनाई कैसे उसने मेरी जान बचाई। वह डॉक्टर को लेकर आया।
एक दिन मंकू तेजू को बोला भाई मेरे आज तो सारा दिन मेहनत करके थक गया। मुझे आज कुछ भी काम नहीं मिला है। तेजू बोला मैं तुम्हें कुछ ला कर देता हूं। आगे आगे तेजू चल रहा था और पीछे पीछे मंकू। थोड़ी दूर पर गए थे उन्होंनें देखा कि एक परिवार सैर करने के लिए बाहर से आया हुआ था। तेजू नें उछल कर के एक आदमी की जेब से ₹500 का नोट लिया और भाग आया। रुपया पा कर बोला यह लो।मंकू बोला चोरी नहीं किया करते। वह मंकू को बोला आप सोचतें हैं हम चोरी करते हैं। यह काम तो हमने इंसानों से ही सीखा है। कल ही की बात है मैं भोजन की तलाश में इधर-उधर भागने लगा। कभी एक पेड़ पर कभी दूसरे पेड़ पर मुझे कुछ भी खाने को नहीं मिला। लोग मेरे डर के मारे अपने घरों की खिड़कियां तक बंद कर देते हैं। हमें भी तो भूख लगती है। खाना कहां से लाए? पेड़ों पर भी अब इतना भोजन हमें प्राप्त नहीं होता। इसलिए पेट भरनें के लिए तो कुछ न कुछ जुटाना ही पड़ता है।
मैं भूख से बेहाल हो रहा था मैनें देखा आगे जाने वाले एक आदमी ने होटल के पास एक आदमी की जेब से उसका पर्स निकाला और भाग गया। मैंने वहीं से तो यह सब कुछ सीखा जिस आदमी की जेब से रुपया निकाला था वह रोने लगा। वह उसकी मेहनत की कमाई थी। उसकी बूढ़ी दादी अस्पताल में थी। मैं यह देखने के लिए उस इंसान के पीछे भागा कि अब यह पैसे कहां से लाएगा? मैंने उसे एक अस्पताल में जाते हुए देखा। उसकी बूढ़ी दादी अस्पताल में थी। उसकी दवाई लाने के लिए उसने ₹500 रखे थे। मुझे उस पर तरस आया मैं क्या कर सकता था? मैं उसकी मदद कैसे करता? मैंने अस्पताल में देखा वह डॉक्टर को कह रहा था मेरी बूढी दादी को दवाइयाँ दे दो कल आकर मैं ₹500 दे जाऊंगा और अपनी बूढ़ी दादी का इलाज कराऊंगा। आज मुझे दवाइयां दे दो। डॉक्टर बोला यहां दवाइयां क्या पेड़ पर उगती है? जाओ जल्दी से रुपये लेकर आओ नहीं तो दवाइयां नहीं मिलेगी। मैं मायूस होकर वापस आ गया। जिसकी जेब से आज मैंने ₹500 का नोट निकाला वह वही इंसान था जिसने कल उसने एक नेक इंसान की जेब से रुपए निकाले थे। मैं उससे बदला लेना चाहता था।। मैं उस नेक इंसान की मदद तो नहीं कर सकता था मगर समझ तो सब कुछ समझता था।
लोग हमें नकलची समझते हैं। हम जब गरीब लोगों की कमाई को यूं लूटता देखते हैं तो हमें उन लोगों पर गुस्सा आता है जो दूसरों का हक छीनतें हैं। इसलिए ही हम उनकी जेब काटते हैं। हम इंसानों की भाषा में जवाब तो नहीं दे सकते। मंकू को उस बंदर की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मंकू बोला तेजू भाई मुझे उस अस्पताल तक ले चलो मैं उस नेक इन्सान को वह 500रुपये लौटाना चाहता हूं। जब मंकू तेजू बन्दर के साथ उस अस्पताल में पंहुंचा तो उसे एक इन्सान दिखा जो अपनी बूढी दादी को उठा कर अस्पताल ले कर आया। वह अपनी बूढी दादी को छाती से लगा कर बोला दादी आप को कुछ नहीं होनें दूंगा। वह बाहर से चिल्लाया। उसके चिल्लानें की आवाज से डाक्टर अपनें क्लिनिक से बाहर आ कर बोला क्यों शोर कर रहे हो? यहां और भी मरीज है। वह डाक्टर साहब को बोला डाक्टर साहब मैं कल भी आया था। आज मैं अपनें शरीर का अंग बेचना चाहता हूं। आप मेरा रक्त ले लिजीए। या मेरा कोई अंग ले लो पर मेरी बूढी दादी को बचा लो। डाक्टर बोला आज रुपये लाए। वह इन्सान डाक्टर के पैरों पर गिर पड़ा मेरी बूढी दादी को आज तो देख लो। मंकू ने आ कर उस नवयुवक को 500रुपये दे दिए। डाक्टर नें बूढी की नब्ज देख कर कहा कि अब यह इस दुनिया में नही है। मंकू ने देखा उस तेजू बन्दर की आंखों में भी आंसू थे। वह अपनी बूढी दादी को ले कर निराश हो कर अपनें घर चला गया।
शाम को मंकू ने तेजू को सारे ढूंढा तेजू उसे वहां नहीं नहीं दिखाई दिया उस दिन वह खाना खानें भी नहीं आया। मंकू ने बूढ़ी काकी को सारी कहानी सुनाई। बूढ़ी दादी की आंखों में आंसू छलक आए बोली बेटा इंसान जाति से बढ कर ज्यादा बेहतर तो यह जीव है जो बेचारे मौन रहकर भी सब कुछ कह जाते हैं लेकिन इंसान अपनें स्वार्थ में अंधा हो कर उनको इतने दुःख देता है।
मंकू बूढ़ी काकी के साथ ही रहने लग गया था बूढी काकी ने अपने दोनों बेटों के बारे में मंकू को बता दिया था अपनी मां के जाने के बाद जगता और भक्ता को बहुत ही दुःख उठाने पड़े अपनी मां के जाने के बाद उनके घर में बरकत नहीं रही। जो कुछ कमाया था वह सब कुछ धीरे-धीरे समाप्त हो गया। जगता भी चुनाव में हार गया था। उसका सबकुछ चला गया था। उसके पास एक घर के सिवा कुछ नहीं बचा था। भक्ता वह भी कंगाल हो गया था। झूठी दौलत कहां तक चलती? दोनों को समझ आ गई थी कि मेहनत के दम पर चाहे हम थोड़ा ही कमाते अपनी मां को भी खुश रख सकते थे और अपने आप भी मजे से रह सकते थे। धन दौलत बड़ों बड़ों को अपने मार्ग से विचलित कर देती है। और पाने की लालसा में उन्होंने अपनी देवी जैसी मां को घर से निकलने के लिए मजबूर कर दिया। जाते-जाते उसकी मां ने कहा था कि जब तक तुम दोनों उसे लेने नहीं आओगे और मेहनत करके कमाना सीख जाओगे तभी मैं तुम्हें अपना बेटा मानूंगी। नहीं तो तुम आज से मेरे लिए अजनबी हो।
जगताऔर भक्ता नें सोचा चलो क्यों ना आज से हम भी मेहनत करके कमाते हैं। दोनों ही काम की तलाश में निकल पड़े। चलते चलते वे भी भोपाल पहुंच गए। मंकू एक बहुत बड़ा ट्रक ड्राइवर बन गया था। उसने एक बड़ा घर बना लिया था। उसने अपने पास मकैनिक भी रख लिए थे। नौकरी मांगते मांगते जगताऔर भक्ता मंकू के गैरेज में पहुंचे। वे निराश हो कर बोले हम बड़ी मुश्किल में है। हमें कुछ काम दे दो। मंकू ने कहा देखो ईमानदारी से काम करना वरना तुम्हें काम नहीं मिलेगा? हमारे काम में कोई भी बेईमानी नहीं होगी वे दोनों कहने लगे। वे दोनों मंकू के पास काम करने लगे। मंकू उन को देख कर बोला शहर में नए-नए आए हो क्या? वे दोनों बोले स्टेशन में चोरों ने हमारा सब कुछ हमसे छीन लिया। हमारे पास रहने के लिए भी घर नहीं है और ना ही काम। मंकू उनको बोला मैं तुम्हें अपने घर में एक छोटा सा कमरा दे देता हूं मगर तुम्हें इसका दो हजार किराया देना होगा। मेरी बूढ़ी काकी का यह मकान है अगर तुम्हें रहने के लिए मंजूर है तो ठीक है।
शाम को जब बूढ़ी काकी को मंकू ने कहा कि यहां पर दो अजनबी नौकरी ढूंडने के लिए आए हैं।वे मेहनत करके कमाना चाहते हैं। मैंने ऊपर वाला कमरा किराए पर उन्हें दे दिया है। बूढी दादी बोली वे कहां के रहने वाले हैं। मंकू बोला वे भी मुम्बई के रहने वाले हैं। मुम्बई नाम सुन कर बुढिया बोली मेरे बेटे भी वहीं रहतें हैं हो सकता है वे मेरे बेटों को जानते हो। उन्होनें मुझ से कहा कि वे 2000रुपये किराया दे देंगें। वे दोनों वहां पर रहने लगे। काफी दिनों तक जब वे किराया नहीं दे सके तो मंकू बोला तुम मेरी दादी के लिए खाना बना दिया करना। घर का सारा काम तुम्हे करना होगा। वे बोले हम खुशी खुशी खाना बना दिया करेंगें। बर्तन भी साफ करनें होंगें। शाम को जब काम से वापिस आते तो वह रसोई में खाना बनाते। मंकू अपनी काकी को खाना ले जाता। वहां पर वे बूढी काकी से नहीं मिले। वह अपनें कैमरे में बैठ कर पूजा पाठ किया करती थी। एक दिन मंकू बाहर गया हुआ था। रोशनी नें देखा उसे मंकू दिखाई नहीं दिया। उसे बाजार से दवाइयाँ लानी थी। उसनें आवाज लगाई बेटा मंकू। मंकूू तो वहां नहीं था जो सुनता।बूढी काकी की आवाज सुन कर जगता बाहर आ कर बोला मां क्या चाहिए? बूढी काकी को आवाज जानी पहचानी लगी। कहने लगी बेटा मेरी दवाईयाँ ला देना। वह बोली बेटा तुम नें खाना खाया हां मां जी खा लिया। बूढी काकी बहुत बूढी हो चुकी थी। जगता बोला आज आप के दर्शन कर लिए तो एक पल के लिए लगा हमारी मां हमें मिल गई हो। अचानक बूढी काकी बोली बेटा तुम कंहा के रहने वाले हो?जगता बोला हम पूना के रहने वाले हैं। मैं तो अपनी देवी जैसी मां को खो कर आज तक पछता रहा हूं। वह बोली अब तुम्हारी मां कहां है? वह बोला हम नें अपनी मां को घर छोडने पर मजबूर कर दिया। उस की आवाज सुन कर भक्ता भी अन्दर आ गया था। भक्ता बोला मां पांय लागूं। उसके मुख से यह सुन कर बूढी काकी की आंखें भर आई। बोली बेटा मेरा बेटा भी मुझे ऐसा ही कहता था। तुम तो मुझे अपनें जैसे लगते हो। बेटा जरा मेरा चश्मा तो पकड़ाना। मेज पर रखा है। भक्ता ने जैसे ही चश्में को हाथ में लिया बोला यह तो टूट गया है। मेरे पास दे देना मैं बनवा दूंगा। आईस्ता से बोला अपनी मां के काम तो आ नहीं सका शायद आप की सेवा करके अपना प्रायश्चित कर सकूं। बोला मां आप को चारपाई पर बिठा देता हूं। उस नें बूढी काकी का हाथ अपनें हाथमें लिया। उसके हाथों के स्पर्श से उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उस नें अपनी मां का हाथ छू लिया हो। उसके मुख से निकला मां। उसने अपनी मां को पहचान लिया। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। बोला मां मैं आप का बेटा भक्ता और ये भक्ता। उनकी मां इतनी दुबली पतली हो चुकी थी कि वे भी उन्हें पहचान नहीं पाए। बूढी काकी हैरान हो गई। तुम दोनों
यहां।
दोनों बोले हम आप को छोड़ कर कभी खुश नहीं रहे। रौशनी की चकाचौंध नें हमारी अक्ल की दरवाजे बन्द कर दिए थे। हमें अच्छे बुरे की पहचान नहीं थी। जब अक्ल आई तो आप वहा नहीं थी। किसी नें भी हमारा साथ नहीं दिया जो दोस्त हमें कभी अकेला नहीं छोड़ते थे उन्होनें भी हमारा साथ देना छोड़ दिया। एक एक कर के सभी नें आना जाना छोड़ दिया कहीं हम उन से उधार न मांग बैठे। ये तो अच्छा हुआ हमारा मकान नहीं बिका। हमें जल्दी ही समझ आ गई। आप की याद हमें तब आई। उनकी मां बोली बेटा ईमानदारी से काम करनें वालों को थोड़ा पहले प्रयत्न तो करना पड़ता है लेकिन वह कभी मायूस नहीं होता। हम दोनों ने आपस में निर्णय लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए हम अपनें घर को नहीं बेचेंगें। हम नें घर में ताला लगाया और काम की तलाश में निकले। जगह जगह छोटे मोटे काम किए। मैकेनिक की नौकरी की। हमनें मन बना लिया कि कहीं दूर जा कर काम करेंगे। जब हम यंहा भोपाल पहुंचे तो चोरों नें हमारा सब कुछ छिन लिया। हम फिर भी निराश नहीं हुए। हम काम की तलाश में निकल पडे तब यहा हमारी मुलाकात मयंक से हुई। उसके गैराज में काम करनें लगे। हमारे पास रहने के लिए घर नहीं था और न ही मकान का किराया। हम नें यहां खाना बनानें का ओर घर की साफ सफाई का काम ले लिया। गैराज में काम करनें के बाद शाम को खाना बनाना और सुबह चार बजे उठ कर खाना तैयार करते और काम पर चले जाते। मां आप हम दोनों को माफ कर दो। हमें अपनी गल्ती के लिए पछतावा है। अपनें घर चलो। हमे आज पता चल चुका है कि मेहनत का फल मीठा होता है। आप को हम दोनों पलकों पे बिठा कर रहेंगें।आप तो बस आराम से खाना। दोनों को गले से लगा कर बूढी काकी बोली तुम दोनों सुधर चुके हो। मंकू भी घर आ चुका था। वह भी मां बेटों का प्यार देख कर फुला नहीं समाया। उसकी आंखों में आंसू थे। वह बोला अब यह मेरी मां है। तुम नें तो अपनी मां को गंवा दिया। मेरी मां तो मुझे बरसों के बाद मिली है। उनकी मां नें तेजू बन्दर का सारा किस्सा उन्हें सुनाया। अगर यह तेजू नहीं होता तो तुम अपनी मां को जिन्दा नहीं पाते इस तेजू नें मुझे मंकू से मिलवाया। उसने सारी की सारी कहानी अपनें बेटों को सुना दी। आज से मंकू और तेजू भी मेरे बेटे हैं। तुम तीनो तो मेरी जान हो। और तेजू मेरा छोटा सा सहायक। आज से मै तुम तीनों को त्रिवेणी कह कर बुलाऊंगी। तुम तीनों मेरे साथ रहोगे। तेजू भी हमारे साथ रहेगा। उसे कभी भी इस घर में भूखा नहीं रहना पड़ेगा। यह कहते कहते बूढी काकी भावुक हो गई थीं। आज उसकी खुशिया लौट आई थी। तेजू बन्दर घर के वृक्ष पर मुस्कुरा कर अपनी खुशी जाहिर कर रहा था।