मैं उस समय छठी कक्षा में पढ़ता था। मैं बचपन की यादों में जब झांकता हूं तो मेरे मानस पटल पर बचपन की यादें तरोताजा हो आती हैं ।मैं उसमें इतना भोला नहीं था जितना शक्ल से दिखाई देता था ।मैं और मेरे दोस्त हमेशा कक्षा में पढ़ने के इलावा शरारतें करने में मशहूर थे। हमें गुरु जी ने सही शिक्षा व हमारा अच्छा मार्गदर्शन नहीं किया होता तो आज अच्छा ऑफिसर बनने की बजाय सड़क पर या चौराहे पर भीख मांग रहे होते।.उन गुरु जी को मेरा शत शत नमन मैं और मेरे चारो दोस्त कक्षा में शरारत करने में बहुत ही माहिरथे। हमारा कभी भी पढ़ने में मन नहीं लगता था और अध्यापकों से थोड़ा बहुत डरते थे ।. एक गुरुजी जो हमें समाज व हिंदी पढ़ाते थे उन से हमें डर नहीं लगता था । वह कभी भी मारते नहीं थे ।उनकी कक्षा में हम पढ़ने के इलावा मंनोरंजन के साथ साथ खेलते भी रहते थे और हमने उन गुरु जी को ना जाने कितने नामों की संज्ञा दे दी थी परंतु उन्होंने फिर भी हमें कुछ नहीं कहा। अन्य अध्यापकों ने एक दिन समाजिक विज्ञान के अध्यापक को कह ही दिया कि इन बच्चों को आप क्यों नहीं मारते हो ? गुरुजीने अध्यापकों की बातों को हंसी में टाल दिया।वे थोड़ी बहुत डांट डपट करते परंतु कहते कुछ नहीं थे ।एक दिन उन गुरुजी ने हमारे ग्रुप को अपने पास बुलाया और कहा, तुम्हारा ग्रुप सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठेगा क्योंकि और बच्चों ने भी पढ़ाई करनी होती है। तुम शरारतें करो या जो मर्जी करो पर बेटा अध्यापक की बातों को गंभीरता से लेना चाहिए ।तुम अच्छे घर के बच्चे हो मुझे पता है तुम सब बहुत ही होशियार हो तुम जरा सा भी पढाई की ओर ध्यान दो तो तुम्हे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। अभी तुम बच्चे हो उदंड हो, जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मैं भी बहुत शरारतें किया करता था। बेटा मैं तुम्हें समझा ही सकता हूं। सभी बच्चों को थोड़ी देर के लिए तो उनको इस प्रकार महसूस होता कि हमारे अध्यापक जो कह रहे हैं वह ठीक कह रहे हैं ।वे अपनी शरारतों से फिर भी बाज नहीं आए । दिन इसी तरह गुजर रहे थे। एक दिन सभी अध्यापक स्कूल के प्रधानाचार्य के पास गए और गुरुजी की शिकायत कर दी कि समाजिक ज्ञान और हिंदी वाले अध्यापक की कक्षा में बच्चे बहुत शोर मचाते हैं। गुरुजी उनको जरा भी कुछ नहीं कहते हैं । ऐसा कब तक चलेगा? प्रधानचार्य भी रोज-रोज की शिकायतों से तंग आ गए थे ।वह भी चाहते थे कि या तो गुरुजी का तबादला दूसरी जगह करवा दिया जाए या उन बच्चों को स्कूल से निलंबित कर दिया जाए ।
एक दिन की बात है कि प्रधानाचार्य जी ने उन्हें कक्षा में बुलाया और कहा कि उन बच्चों के नाम बताओ जो आपकी कक्षा में बहुत शरारत करते हैं ।उन्हें हम एक बार चेतावनी देंगे ,अगर वे फिर भी नहीं सुधरते तो हम उन्हें अपने विद्यालय से निलंबित कर देंगे ।ऐसे बच्चों का पढ़ने से क्या फायदा जो अध्यापक की बात ध्यान से नहीं सुनते । गुरु जी ने प्रधानाचार्य जी से कहा कि जहां तक मैं सोचता हूं ,कोई भी बच्चा पढाई में कमजोर नहीं है ।मेरी कक्षा में कुछ बच्चे हैं जो सुनते नहीं है मगर ऐसा नहीं है कि वह नालायक हैं वह शरारतें इसलिए करते हैं कि वे उस समय पढ़ना नहीं चाहते ।वह बच्चे हैं बेचारे सुबह से शाम पढाई करते-२ इतना थक जाते हैं कि पढ़ाई में उनका मन ही नहीं लगता । लगातार सभी कालांश में तो सभी गुरुजनों की कक्षा में शरारत नहीं कर सकते क्योंकि उनके सिर पर डंडा बरसने का डर जो रहताहै। बेंच पर खड़ा रहने को कहा जाता है या कक्षा से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है ।मैं बच्चों की मनो भावनाओं को अच्छे ढंग से समझता हूं। मैं तो आप को उन बच्चों के नाम नहीं दे सकता। मैं नहीं समझता कि वह पांचों बच्चे नालायक है । काम का बोझ होने के कारण वह पढ़ना पसंद नहीं करते, क्योंकि मैं ही ऐसा उनका एक गुरु हूं जो उनको बिल्कुल नहीं मारना चाहता? प्रधानाचार्य गुरु जी की बातों को सुनकर हैरान हो गए ।उन्हें सूझ ही नहीं रहा था कि वे इस विषय मे क्या कहें। किसी अन्य अध्यापकों को मुझ से कोई शिकायत होती तो वह मुझे कहते एक बार उन्होंने मुझे बच्चों के बारे में कहा था मगर मैंने उन की बात को हंसी में टाल दिया था। मैं उन पांच बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता आप अगर उन बच्चों को स्कूल से निलंबित कर देंगे तो मैं इसे अपना अपमान समझूंगा ।मैं समझूंगा कि मैं एक अच्छा गुरु नहीं बन सका । मैं बच्चों का बुरा नहीं चाहता इसलिए आज मैं अपना अध्यापक पद से इस्तीफा दे रहा हूं।
प्रधानाचार्य के कमरे में अपना इस्तीफा उनकी मेज पर रख दिया । शरारती बच्चों में से एक बच्चा गुरुजी की सारी बातें सुन रहा था ।उस ने सारी की सारी बातें अपने दोस्तों से जा कर कही।उन पा़च बच्चों की हरकत के कारण आज उनके गुरु जी ने विद्यालय को छोड़ने का फैसला कर लिया था। उन पांच बच्चों को अपनी गलती का एहसास हुआ जिसकी वजह से
सारे के सारे अध्यापक मिलकर गुरुजनों को निलंबित करने की योजना बना रहे थे उन समाजिक ज्ञान वाले गुरुजी ने कुछ भी ना कहकर वहां से जाने का फैसला कर लिया था ।जैसे ही सामाजिक अध्यापक के गुरुजी कक्षा में आए कि वे पांचों के पांचों बच्चे अपने गुरु जी की बातों को ध्यान से सुन रहे थे ।उनकी आंखों में आंसू देख कर गुरुजी से नहीं रहा गया वह बोले बेटा आज तुम्हारा ग्रुप बहुत ही शांत है आज तो तुमने मेरा सारा पाठ जो मैंने पढ़ाया वह ध्यान से सुना अच्छा बेटा ,अब मैं इस विद्यालय से शीघ्र ही जा रहा हूं। मैंने तुम्हें अनजाने में कुछ कहा हो या किसी भी बच्चे का दिल दु:खाया हो तो मैं तुम बच्चों से भी क्षमा मांगता हूं ।गुरु जी का इतना कहना था कि वह पांचों के पांचों बच्चे गुरुजी के कंधे लगकर जोर जोर से रोनेलगे।
गुरु जी आप कितने अच्छे हैं इसका अंदाजा हमें आज लगा। हमने आप की कक्षा में इतनी शरारत की मगर आपने हमें कभी भी नहीं मारा। हर बात को हंसी में टाल दिया गुरुजी आज हम कसम खाते हैं कि आज के बाद हम कक्षा में कभी भी शरारत नहीं करेंगे और जी जान से मेहनत करेंगे और अच्छे अंकों में उतीर्ण होंगे ।कृपा करके !आप हमारे विद्यालय से मत जाओ।
वह पांचों बच्चे प्रधानाचार्य जी के पास गए और उन से बोले कृपया करके आप हमारे गुरु जी का इस्तीफा फाड. दे। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम कभी भी शरारत नहीं करेंगे और एक मौका हमें दे दीजिए ।प्रधानाचार्य जी ने उन गुरुजी का इस्तीफा फाड़ दिया और बच्चों को कहा कि जाओ मैंने तुम्हें माफ कर दिया ।वह अब समझ गए थे कि असली गुरु तो वही है जो बच्चों को अच्छी शिक्षा दे बच्चे मारपीट द्वारा नहीं समझ सकते आज भी हमें वह गुरुजी कभी भी नहीं भूलते जिन्होंने हमारा सच्चा मार्गदर्शन किया और हम उच्च पद पर आसीन हुए।