लोमड़ी नेवले और कौवे की कहानी

किसी घने जंगल में एक लोमड़ी अपने बच्चों के साथ रहती थी। एक बार इतनी आंधी तूफान आया कि लोमड़ी और उसके बच्चे तूफान में फंस गए। लोमड़ी के बच्चों का कहीं भी पता नहीं चला। वह भी भयंकर तूफान में एक नदी नाले में फंस गई थी। उसकी एक टांग टूट चुकी थी। उसकी दोनों टांगे एक वृक्ष के तने मेंं फंस गई थी। वृक्ष का तना भी एक दिन आंधी से टूटकर नदी में नीचे गिर गया था। वह बच तो गई मगर उसकी एक टांग बेकार हो गई। उसके पास की शाखा पर रहने वाले कौवे ने उसे देख लिया। वह उड़ता उडता डॉक्टर भालू के पास   जा कर बोला डॉक्टर साहब डॉक्टर साहब जल्दी चलिए हमारे जंगल में भयंकर तूफान से लोमड़ी बहन को बहुत ही चोट आई है।। उसकी एक टांग बेकार हो गई है। हमें मुसीबत में हर किसी के काम आना चाहिए।  भालू को वह  अपनें साथ उस स्थान पर  ले गया जहां पर लोमड़ी रहती थी। उसका घर कौवे के घोसले के पास ही था। डॉक्टर ने लोमड़ी का इलाज किया और उसे बचा लिया। परंतु वह पूरी तरह से ठीक नहीं हुई थी। वह अपने आप को कोसनें  लगी मेरा तो जीवन ही बेकार है। मैं किसके लिए जीऊं। मेरे बच्चे भी पानी की धारा में बह चुके हैं।  उसने मरने का फैसला कर लिया। उस दिन ही मर गई होती मगर वह तो बच चुकी थी।

 

काफी दिनों तक एक स्थान पर पड़ रही। कौवे को उस पर दया आई और उसको हर रोज  रोटी डाल देता था। एक दिन लोमड़ी नें अपने आवास स्थान पर एक मकड़ी का जाला देखा। वह मकड़ी बार-बार ऊपर चढ़ने की कोशिश कर रही थी।

वह जब भी हर बार ऊपर चढ़ने की कोशिश करती हर बार नीचे गिर जाती। बार बार कोशिश करने से वह ऊपर चढ़ने में कामयाब हो गई। लोमड़ी सोचने लगी मैं तो निराश हो गई थी। इस मकड़ी को देखो यह हर बार कोशिश करती है और ना जाने कितनी बार ऊपर चढ़ने की कोशिश करती है। बार बार अभ्यास से वह निराश नहीं हुई। वह ऊपर चढने में कामयाब हो गई। मेरी तो  एक टांग ही टूटी है। अभी तो मैं जिंदा हूं। कहीं ना कहीं अगर मैं कोशिश करूंगी तो मैं खाना तो प्राप्त कर ही सकती हूं। मेरे  इस  आसपास  इतने सारे जीव जंतु है। वह हर रोज अपने बच्चों को घर  में  अकेला छोड़ जाते हैं। उनके बच्चों की देखभाल किया करूंगी। इन के बच्चों को बचाने में अगर मेरे प्राण चले भी गए तो मुझे खुशी होगी। मैंने अपने प्राण यूं नहीं गंवाए। दूसरों की जान बचाने के लिए उनका उपयोग किया। मैं तभी सोच पाऊंगी मेरे जीवन का मूल्य व्यर्थ नहीं जाएगा। हमें दूसरों के लिए जीना है। आज से मैं कसम खाती हूं कि मैं जिंदगी में कभी भी निराशा को स्थान नहीं दूंगी।

 

वहां पर पास में ही एक नेवले और उसके बच्चे भी रहते थे। एक दिन फिर बड़े जोर की आंधी तूफान चली। पेड़ों की शाखाएं टूट गई।घोंसलों में  से भी सारे जीव जंतु आहार की खोज में दूसरी जगह चले गए थे। नेवले के बच्चे  और कौवों के बच्चे भी घोसले में अकेले थे। लोमड़ी ने देखा कि कुछ शिकारी कुत्ते  नेवले और कौवे के बच्चों को खाने के लिए उन पर टूट पडे। वह खा ही डालते। बड़ी कोशिश के बावजूद लोमड़ी सरक सरक कर उन से बचते बचते गई और उन पर झपट पड़ी। उसने उन शिकारी कुत्तों से नेवलों के बच्चों और कौवे के बच्चों को बचाया। जब शाम को वह चुपचाप निढाल होकर अपनी जगह सरक  सरक पर आकर विश्राम करने लगी।  नेवला के  और कौवे के आवास स्थान पर खून खून लगा था। वह अपने घर के पास पहुंचने वाले थे उन्होंने वहां खून ही खून देखा। उन्होंने सोचा कि इस लोमड़ी ने हमारे बच्चों को खा लिया होगा। एक साथ सारे सारे के सारे नेवले उस पर टूट पड़े। तभी एक छोटा सा नेवला आहिस्ता आहिस्ता वहां आया बोला इन्हें मत मारो मत मारो। इसने तो आज हमारी जान शिकारी कुत्तों से बचाई है।   

 

नेवले पछताने लगे उन्होंने लोमड़ी को मरहम पट्टी की बोले बहन हमें माफ कर दो। बिना सोचे समझे  हम आप को नुकसान पहुंचाना चाहते थे। हमें माफ कर दो। आज से   आपको खाना लाने की कोई जरूरत नहीं। हम आपको खाना ले आया करेंगे। आप हमारे बच्चों की देखभाल किया  करेंगी। हमें माफ कर दो।

 

एक दिन कौवे और नेवले  जब खाने की तलाश में इधर उधर गए थे तो उन्होंने  एक नदी के पास छोटे से स्थान पर लोमड़ी के बच्चों को देखा । उनमें से एक तो बहुत ही छोटा था उन बच्चों को देखकर वह बड़े खुश हुए। यह बच्चे जरूर उस लोमड़ी के ही होंगें। जो पानी में बहते बहते यहां आ गए थे।

 

शाम के समय जब वह वापस आए तो उन्होंने लोमड़ी को कहा कि हमें आज तुम्हारे बच्चे दिखाई दिए।  काश मेरे पंख होते तो मैं उड़ कर उस स्थान पर अभी पहुंच जाती।  सुबह का इंतजार करने लगी। कब सुबह  हो वह जल्दी उठकर   नेवले के साथ चलकर उस स्थान पर पहुंची। वह थक कर चूर हो गई थी वह स्थान आने ही वाला था जहां उसके बच्चे थे। वह जैसे ही वहां पहुंची उनको  जीवित देखकर वह बहुत ही खुश हो गई।  बच्चे बोले मां हम आपका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। कि कब हमारी मां हमें यहां से बचाकर ले जाएगी। हम इस स्थान से इसलिए भाग कर नहीं गए कि कोई हमें खा न ले।   हमें आसपास जो भी मिलता था हम  उसे खाकर गुजारा करते थे। लोमड़ी अपने बच्चों को पाकर बड़ी खुशी हुई। सोचने लगी  कि अच्छा ही हुआ मैं बच  गई  अगर उस दिन मैं मर जाती तो मैं कभी भी अपने बच्चों से नहीं मिल पाती।हमें जीवन में कभी भी निराशा को स्थान नहीं देखना चाहिए।

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