शिब्बु

शिब्बु एक भोला भाला और मासूम सा बालक था ।बचपन से ही उसके माता-पिता उसे इस संसार से अलविदा कह चुके थे। वह अपने चाचा चाची जी के यहां रहने लगा था ।चाची उसे अपने घर में नहीं रखना चाहती थी ।चाची ने यहां तक कह दिया था कि उसे अनाथ आश्रम छोड़ आते हैं परंतु उसके चाचा की हठ के आगे उसकी एक ना चली, ।वह सोचने लगी कोई बात नहीं उसको अपने घर में रखने से फायदा ही है। उससे सारे घर का कार्य करवाया जाए । वह शिब्बु से घर के सारे काम करवाने लगी जैसे ही उसके चाचा दुकान जाते वह शिब्बू पर आगबबूला हो जाती। सारा घर गंदा पड़ा है सारे घर में पोचा, लगाओ कपड़े प्रेस करो नल से पानी भरकर लाओ। उस मासूम को जरा सा भी खेलने नहीं देती थी ।चाची के भी उसी की ही हम उम्र का एक बच्चा था। वह उसको जल्दी जल्दी तैयार करके स्कूल में भेजती । वह शिब्बू को कभी भी स्कूल नही भेजती थी। जब वह अपने चाचा जी के लड़के को स्कूल जाते देखता , सुबह-सुबह    ड्रेस पहनकर वह स्कूल जाता तो उसका मन भी होता कि वह भी   पढ़े। चाची ने यह कहकर उसके चाचा को मना लिया था कि वह शिब्बू को स्कूल भेजेंगे तो इस घर को छोड़ कर सदा के लिए वह इस घर से चली जाएगी ।इस तरह से चाचा को चाची का फैसला मानना ही पड़ा और उन्होंने शिब्बू को स्कूल पढ़ने नहीं भेजा। वह शिब्बू को बाज़ार सामान लाने के लिए भेजती ।सारे घर का काम निपटाकर शिब्बू बाज़ार जाता कभी भूखे पेट ही बाजार जाता। हलवाई की दुकान पर मिठाईयों को देख कर उसका उसका मन मिठाईयां खाने के लिए ललचाने लगता मगर वह अपना मन मसोसकर रह जाता ।वह अपने मन ही मन सोचता कि हेभगवान ! हे भगवान! मेरी मां को आप ने अपने पास क्यों बुला लिया अगर वह आज जिंदा होती तो मुझे गले लगाती और कहती कि बेटा तूझे भूख तो तो नही लगी है ।अपने चाचा जी को वह बात बता नहीं सकता था की चाची उस से जानवरों की तरह सारा दिन काम करवाती है ।भरपेट खाना खाने को भी नहीं देती थी ।एक दिन उसने अपनी चाची जी की शिकायत चाचा जी से कर दी थी ।उस दिन उसकी चाची नें उसे कुछ भीे खाने को नहीं दिया। उस दिन जो मार पड़ी थी उसको वह भूल नहीं सकता था ।चाचा के जाने के बाद चाची ने उसकी खूब पिटाई की थी । वह मासूम किसी से कुछ भी नहीं कहता था। एक दिन जब वह बाजार गया तो उसने बाजार के पास ही एक मंदिर देखा ।वहां पर सब लोग भगवान को मत्था टेक रहे थे।वह भी मंदिर की सीढ़ियों पर काफी देर तक बैठा और अचानक उठकर मंदिर के अंदर चला गया। वहां पर पंडित जी पूजा के पश्चात सबको प्रसाद बांट रहे थे ।प्रसाद को देखकर उसके मुंह में पानी भर आया ।उसने दो तीन बार पंक्ति में लगकर प्रसाद खाया ।उस प्रकार मंदिर में हर रोज प्रसाद पाकर बहुत खुश होता और अपनी भूख को शांत करता। वह हर रोज खुश रहने लगा था क्योंकि मंदिर में उसे भर पेट खाने को मिल जाता था। मंदिर के पुजारी भी उसको प्यार करने लगे थे।

पंडित जी ने उसे कहा बेटा जिस बच्चे के मां बाप नहीं होते उसके मां-बाप दोनों भगवान होते हैं । तुम उन्हें सच्चे दिल से याद करोगे तो वह तुम्हें आशीर्वाद अवश्य देंगे और तुम्हारी मनोकामना को पूर्ण करेंगे ।वह भगवान से हाथ जोड़कर कहने लगा कि अगर तुम मुझे पढ़ने का अवसर प्रदान करोगे तो मैं आप का कहना अवश्य मानूंगा ।वह सपने में अपनी मां से बातें करता ।झटपट बाजार जाने के बहाने मंदिर जाना नहीं भूलता था । एक दिन की बात है कि उसकी चाची ने कहा कि मैं आज अपने बेटे के स्कूल में उनके कार्यक्रम को देखने जा रही हूं ।सारे बच्चों के माता-पिता को स्कूल में बुलाया है जब तक मैं वहां से लौट कर ना आऊं तब तक तुम घर का सारा काम संभालना ।आकर मैं तुम्हें खाना दूंगी नहीं तो तुम्हे भूखा ही रहना पड़ेगा ।उसे सुबह से ही बड़ी जोर की भूख लग रही थी ।आज तो वह मंदिर में भी खाना खाना खाने भी नहीं जा सकता था क्योंकि उसकी चाची अपने बेटे के स्कूल जा रही थी ।यह कहकर उसकी चाची जल्दी ही घर से चली गई। वह अब घर में अकेला ही रह गया। भूख के मारे उसके पेट में चूहे कूद रहे थे ।भूख से वह एकदम निढाल हो रहा था। उसने सोचा क्यों ना पानी पीकर अपनी भूख को शांत करूं? ।उसने एक दो घूंट पानी के पीए और अपनी भूख को शांत करने लगा। वह धीरे-धीरे सोने का प्रयत्न करने लगा। एकदम उसे एक झपकी सी आई उसे नींद में अपनी मां दिखाई दी ।वह उस से कह रही थी कि बेटा तुझे भूख लगी है जा तू जल्दी जल्दी जाकर मंदिर में खाना खाने जा। वहां पर आज खूब स्वादिष्ट चीजें बनी है तू जल्दी जाकर वापस आ जा ।बेटा भागता भागता मंदिर में गया और उसने भरपेट खाना खाया और जैसे ही वह घर को वापस आ रहा था उसने देखा कि एक सेठ का दुकान से सामान खरीदते हुए पर्स नीचे गिर गया था ।उसमें ढेर सारे रुपए थे।उसने वह पर्स उठा लिया और सेठ जी के पीछे भागने लगा ।भागते-भागते उसकी सांस फूलने लगी। वह भागते भागते सेठ जी को पकड़ने में सफल हो गया और उसने पर्स सेठ जी को लौटा दिया

।सेठ ने उसकी इमानदारी की प्रशंसा की और प्रसन्न हो कर कहा इतना छोटा सा बच्चा इसे रुपयों का कोई लालच नही। उसने शिब्बू से कहा तुम्हारे मां-बाप कितने धन्य हैं ।जिन्होंने तुम्हारे जैसा होनहार बेटा उन्हें दिया है ।अपने माता पिता की प्रशंसा सुनकर शिब्बू की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे ।वह अपने आप को संभाल नहीं पाया और फूट-फूट कर रोने लगा ।उसने अपनी आप बीती सेठ जी को सुनाई ।सेठ जी ने उसकी ईमानदारी से खुश हो कर कहा कि बेटा तुम क्या चाहते हो। मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करुंगा ।मैं तुम्हारे जैसे बेटे को पाकर धन्य हो जाऊंगा ।मेरे कोई बेटा नहीं है मैं तुम्हें खूब पढ़ाऊंगा अब तुम हर कभी मेरे घर आ जाना। सेठ जी ने उसे अपना कार्ड देते हुए कहा कि इस कार्ड में मेरे घर का पता है। सेठ जी ने कहा कि तुम को मैं लेने आऊंगा ।बच्चा मन ही मन मुस्कुराता हुआ जैसे ही घर पहुंचा उसने देखा उसकी चाची उससे पहले ही घर पहुंच गई थी। काम ना करने पर उस की चाची ने छड़ी से उसकी खूब पिटाई की ।शिब्बू ने वहां से जाने का निश्चय कर लिया ।सुबह दूसरे दिन सुबह बिना कुछ कहे वहां से चला गया ।वह सेठ जी के पास आया और सारी बातें कही। सेठ जी ने उसे अपने बेटे की तरह पाला उसे खूब पढ़ा लिखाया । वह हर वर्ष अपने कॉलेज में अवल्ल आता रहा । पढ लिख कर एक दिन वह बड़ा डॉक्टर बन गया ।उसकी चाची का बेटा तो कुछ अधिक नहीं पढ़ पाया। वह बुरी संगत में पड़ कर नशा करने लगा । उसकी हालत इतनी बिगड़ गई थी उसे अस्पताल ले जाना पड़ा । उसके माता पिता को कहनें ही जा रहा था कि इसे बचाना मुश्किल है ।

शिब्बु नें अपने चाचा चाची को पहचान लिया था।

किसी न किसी तरह शिब्बु नें;उसे मौत के मुंह से बचा लिया ।चाची नें शिब्बु को पहचान लिया था।,जिसने उसके बेटे को बचा लिया था वह तो वहीं शिब्बु है जिस को उस नें घर से निकलनें के लिए मजबुर कर दिया था। वह अपनी करनी पर बहुत पछता रही थी। चाची ने अपने बर्ताव के लिए शिब्बू से माफी मांगी। शिब्बू ने उसे माफ कर दिया था ।वह एक प्रसिद्ध डॉक्टर बन चुका था। सेठ जी ने उसे अपने बेटे की तरह प्यार दिया था।शिब्बु ने अपनी चाची जी से कहा बड़े बच्चों से माफी नहीं मांगा करते।अपने भाई को बचाना मेरा

फर्ज था ।यह कहकर उसने अपने भाई को गले से लगा लिया और अपने चाचा चाची को माफ कर दिया।

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