शिवानी का सपना

शिवानी अपनी मां को लेकर 10 किलोमीटर दूर अस्पताल लेकर आई थी क्योंकि उसकी मां बहुत बीमार थी। वह अपनी मां को यूं हर रोज बीमारी से तड़पता देख नहीं सकती थी। शिवानी ने सोचा कि मैं अपनी मां को गांव के इसी अस्पताल में दाखिल करवा देती हूं। उसके पिता ने उसे कहा था कि तुम्हारी मां बहुत बीमार है। अस्पताल वालों ने उससे कह दिया था तुम्हें इन्हें हर रोज यहां लाना होगा ।उनकी हर रोज टेस्ट होने वाले थे। शिवानी के पापा को उन्हें हर रोज गांव के अस्पताल पहुंचाना कठिन हो रहा था। बीच बीच में टेस्ट करवाने अस्पताल आ जाते थे ।एक दिन तो रात को मां की तबीयत अचानक खराब हो गई। अस्पताल वालों ने उसे कहा कि उसकी माता को टीबी हो चुकी है ।शिवानी बहुत ही डर गई थी उसके पापा ने उसे बताया कि तुम्हारी मां को टीबी हो चुकी है उसे इस अस्पताल से  दूसरे अस्पताल में ले जाना होगा। वह इतनी छोटी थी कि उसे टीबी की बीमारी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था ।उसे इतना ही मालूम था कि टीबी एक खतरनाक बीमारी होती है ।जिस से बचना बहुत ही मुश्किल होता है अगर इसका ठीक से इलाज  हो तो इससे इंसान बच सकता है।

 

अस्पताल इतनी दूर था कि मां को हर कभी  अस्पताल ले जाना संभव नहीं था ।शिवानी की आंखों में आज भी वह अपनी मां का तड़पता हुआ चेहरा नजर आ जाता था। शिवानी अपनी मां को इस भयंकर बीमारी से बचा नहीं पाई क्योंकि उस समय शिवानी केवल 10 वर्ष की थी ।शिवानी की मां सदा सदा के लिए इस दुनिया से चली गई। गांव में कोई भी टीबी का अस्पताल नहीं था जिस कारण उन्हें बचा नहीं पाई।  शिवानी ने तभी से निश्चय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए वह डॉक्टर जरूर बनेगी।  अपने गांव में बहुत से लोग ऐसे थे जोकि गरीब थे शिवानी मे इतनी समझ तो थी ही ।

 

शिवानी ने अपने पापा को कहा कि मैं भी डॉक्टर बनूंगी और गांव में रहकर गरीबों का इलाज करुंगी ।उसके पापा मजाक में बोले बेटा हम तुम्हें डॉक्टर कैसे बना पाएंगे।?

 

हम गरीब आदमी हैं हम तुम्हें थोड़ी बहुत शिक्षा ही दिलवा सकते हैं। दसवीं कक्षा तक तो ठीक है,बारहवीं तक आगे पढ़ाना हमारे बस की बात नहीं क्योंकि तुम्हें अपने दिल से ख्याल निकाल देना होगा कि तुम डॉक्टर बनेगी। इंसान को सपने तो वही देखने चाहिए जिनको हम पूरा कर सके। तुम्हारे माता-पिता के पास तुम्हें पढ़ाने के लिए भी बड़ी मुश्किल से रुपए हैं इसलिए जितनी जल्दी तुम वास्तविकता से अवगत हो जाओ तो ठीक है वर्ना बाद में तुम कहोगी कि मेरे पापा ने मुझे नहीं   समझाया। स्कूल में जब अध्यापक  शिवानी को खड़ा करके पूछते तुम क्या बनना चाहते हो?  वह खड़ी होकर कहती मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं। उसकी अध्यापिका बोली शाबाश डॉक्टर बनने के लिए हमें दिन-रात पढ़ाई करनी पड़ती है। उसकी साथ वाली सहेलियां खिलखिलाकर हंस पड़ती और बोलती बड़ी आई डॉक्टर बनने वाली। तुम्हारे पिता के पास डॉक्टरी पढ़ाने के लिए भी रुपए नहीं है। अध्यापिका ने उन लड़कियों को चुप करवाया और बोली जिन बच्चों में हिम्मत होती है लग्न  होती है उनके सपने अवश्य पूरे होते हैं। कहीं ना कहीं शिवानी यह बातें सुनकर खुश हो जाती थी

 

शिवानी का आठवीं कक्षा का परिणाम भी निकलने वाला था ।वह अपनी कक्षा में प्रथम आई थी उसे वजीफा भी लग गया था ।उसने अपने पापा को कहा कि मुझे वजीफा मिल जाएगा  उसके पापा ने उसे आठंवी

करवा दी ।दसवीं में भी उसने ब्लॉक में प्रथम स्थान पाया उसके पापा बोले बेटा अब मैं तुम्हें आगे और नहीं पढ़ा सकता।  शिवानी ने हिम्मत करके अपने इलाके के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अवगत कराया कि आप मेरी पढ़ाई का खर्चा उठा लो क्योंकि मैं आगे पढ़ना चाहती हूं। मेरा सपना है कि मैं डॉक्टर बनूं अगर आप मेरी मेरी मदद करेंगे तो मैं अपने आप को भाग्यवान समझूंगी  कहीं ना कहीं सबके सब लोग  मुझ पर हंसते हैं और कहतें हैं लड़कियां अपने आप कुछ नहीं कर सकती हम भी देखते हैं कि तुम डॉक्टर कैसे बनती हो।?

 

खाने तक के लिए तो बड़ी मुश्किल से रुपए हासिल होते हैं और तुम आगे पढने  की बात करती हो ,अब हम देखते हैं तुम  रुपए कहां से मिलते हैं।? उसने अपने गांव में सभी से फरियाद की मगर किसी ने भी उस बच्ची की सहायता नहीं की ।घर आकर निराश होकर उसे उसे यह कदम उठाना पड़ा। वह अब तो शाम को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी थी ।अचानक उसका खत माननीय मुख्यमंत्री तक पहुंच ही गया। छोटी सी बच्ची के इस बुलंद हौसले को देखकर उन्होंने इस बच्चीे के स्कूल जाकर उसकी शिक्षा का जिम्मा सरकार पर दे दिया और उसे रुपए भिजवा दिए ।सब लोग शिवानी की चतुराई की दाद देने लगे लड़की हो तो शिवानी जैसी ।उसने फैसला कर लिया था कि चाहे कैसी भी परिस्थितियां हो वह अपने कदम पीछे नहीं हटाएगी ।उसने अपने इलाके के पंचायत अधिकारी महोदय और बड़े-बड़े नेताओं के द्वारा अपना ख़त भिजवाया जिससे उसने उसने लिखा था कि हमारे मुख्यमंत्री जी ने मेरी पढ़ाई का खर्चा उठाने का निश्चय कर लिया है इस प्रोत्साहन में अब तो आप  सभी लोंगों को मेरा साथ देना होगा ।अगर आज आप के गांव की लड़की डॉक्टर बन जाएगी तो कहीं ना कहीं हमारे ही गांव का भला होगा  

 

सारे के सारे गांव के अधिकारी वर्ग उसकी सहायता करने के लिए आगे आ गए थे।   उसका डॉक्टरी में सलेक्शन हो चुका था। गांव वालों ने उसके घर की ओर ध्यान भी देना शुरु कर दिया था ।उन्हें हर चीज उपलब्ध करवाने की कोशिश की थी ।वहां एक कमरे में सारी सारी रात बैठकर तैयारी करती थी ।उसकी मेहनत और लग्न कापरिणाम  उसकी सफलता से दिखता था  उसका सिलेक्शन हो चुका था। उसने मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया था कि मैं डॉक्टरी में सलेक्शन हो चुकी हू। आपने जो मुझे इस काबिल बनाया आज मैं आप से और अपने गांव वालों के आगे कसम खाती हूं कि मैं भी किसी गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए उस का खर्चा उठाउंगी  जब मैं डॉक्टर बन कर अपने गांव  आऊंगी तब मैं किसी न किसी गरीब बच्चों को पढ़ा कर अपना फर्ज निभाउगीं अपने ही गांव में अस्पताल  खोल कर कैंसर और टीवी से पीड़ित मरीजों को देखूंगी और गरीब लोगों का मुफ्त में इलाज करूंगी ।

 

वह दिन भी आ चुका था जब वह डॉक्टर शिवानी बनकर अपने गांव में आ चुकी थी। गांव के लोग फूल लेकर उसका स्वागत कर रहे थे। क्योंकि उनके गांव की एक बालिका वह भी एक गरीब घर की जिसको देखकर लोग मजाक उड़ाते थे। उसने अपने सपने को पूरा कर सबको मिसाल दे दी थी ।कि मनुष्य में लग्नऔर ईमानदारी से मेहनत करने का जज्बा हो तो हर इंसान ऊंचाइयों की शिखर तक पहुंच ही जाता है। जिस प्रकार शिवानी ने कर दिखाया था उसके गांव के पास एक छोटा सा अस्पताल भी खुल गया था। जिसमें वह लोगों को देखती थी गरीब लोगों का इलाज वह मुफ्त में करती थी अगर कोई व्यक्ति बहुत बीमार हो जाता था तो उसके घर में उसे देखने जरूर जाती थी । वह अपनी मां को तो वह बचा नहीं पाई लोगों की सेवा करके वह अपने आप को अंदर से आनंदित महसूस करती थी।  दस सालों में उसका अस्पताल इतना बड़ा हो चुका था कि वहां पर बीमार लोगों के लिए बिस्तर और दवाईयां और बहुत सारी वस्तुएं मुफ्त दी जाती थी । शिवानी की खुशियों को कहीं ना कहीं ग्रहण लग चुका था  ।

 

कुछ एक शरारती तत्वों ने मिलकर उस अस्पताल  के साथ खिलवाड़ करना शुरु कर दिया क्योंकि जब वहां पर अब कोई पर्ची बनाने जाता तो लोग पर्ची के साथ पहले तो थोड़े से व्यक्तियो को ही थोड़े से रुपयों में देखा जाता परंतु आधे से अधिक व्यक्तियों के पर्ची बनाने के लिए सौ रुपये पहल लेे लेते और अस्पताल के समीप ही केमिस्ट की दुकान दुकानें खुल चुकी थी। अगर कोई बीमार होता जो दवाई उसे डॉक्टर लिख देते अगर वह वहां उपलब्ध नहीं होती तो केमिस्ट वाले डॉक्टरों से मिलकर अपनी दवाईयां लिखवाने के लिए मजबूर कर देते अगर किसी बच्चे को चोट लग जाती उसके प्लास्टर चढ़ा ना होता तो आने वाले व्यक्ति से पूरे प्लास्टर और दवाइयों के अधिक रुपए लिए जाते। सारे के सारे डॉक्टर लोग  कैमिस्ट क्लर्क एक दूसरे वर्ग के सभी लोग ज्यादा रुपए एंठते थे  ।इस बात से शिवानी बिल्कुल अनभिज्ञ थी क्योंकि उसे इस बारे में बताया ही नहीं गया था ।उसके अस्पताल में सबसे ज्यादा डॉक्टर काम कर रहे थे ।वह अस्पताल तो शिवानी का था क्योंकि शिवानी ने इस संसार को अपने खून से सींचा था । इस अस्पताल के सारे पैसे चुका दिए थे

 

एक दिन एक व्यक्ति बहुत बीमार था वह अपनी मां को दिखाने आया था । परंतु अंदर आने के लिए पहले उसे अलग लाइन में लगना पड़ा। उसकी मां बुढी थी परंतु फिर भी उन्होंने उस आदमी की बात नहीं सुनी उसकी बारी पूरे आठ घंटे बाद आई जैसे तैसे करके उसने अपनी मां को दिखाया ।  जब उसकी मां ठीक हो चुकी तब उसने अपनी शिकायत डा शिवानी से की । शिवानी नेें उस आदमी को विश्वास दिलाया आपने मुझे इस बात का को बता कर मुझे एहसास दिला दिया है कि मैं अपने फर्ज के क्षेत्र  मैंनेें अपने आपको इतना व्यस्त कर दिया था कि अपने अधिकार वर्गों और उनकी चैकिंग  करना भूल ही गई । आपकी मां को जो कष्ट  हुआ उसके लिए मुझे बेहद अफसोस है । यह बातें आप किसी को मत कहना क्योंकि मैं सच्चाई का अपने तरीके से पता लगा लूंगी । मैं एक बार फिर आप से क्षमा चाहती हूं।

 

डॉक्टर शिवानी की बात सुनकर वह व्यक्ति बोला ।आप जैसी डॉक्टर हर गांव में हो तो हर गांव का बेड़ा ही पार हो जाए। आपको वास्तविकता से अवगत करवाना मेरा फर्ज था। वह व्यक्ति वहां से चला गया शिवानी उस व्यक्ति की बात सुनकर हैरान हो चुकी थी जिस अस्पताल के लिए उसने इतनी मेहनत की थी वहां के डॉक्टर वर्ग इतने कमजोर हो चुके थे जो थोड़े से रुपयों के लालच में अपना फर्ज भूल चुके थे और लोगों से रुपए लेना शुरू कर दिया था ।शिवानी ने अपने  कुछ साथियों को इस सच्चाई का पता लगाने के लिए भेजा। एक को पर्ची काउंटर पर एक को एक  एक्सरे विभाग में ‘और एक को दवाइयों के दफ्तर में हर जगह अपने कर्मचारी वर्गों को भेजा। उस व्यक्ति की बात सच निकली सभी के सभी कर्मचारी मिले हुए थे ।उनके पास 600, 000 रुपए इकट्ठा हो चुके थे ।वह उन रुपयों को आपस में बांट लेते थे  ।एक दिन शिवानी ने अपने स्वास्थ्य विभाग में पार्टी का आयोजन किया अपने सभी कर्मचारी विभाग को आमंत्रित किया और उन्हें कहा की आप सभी को यहां से जाना होगा क्योंकि अब तो आप लोगों का पर्दाफाश हो चुका है ।मैंने तो यहां इसलिए अस्पताल खोला था ताकि गांव के लोगों को दूर अस्पताल में ना जाना पड़े। तुम सभी तो बुजुर्गों का सम्मान करना ही नहीं जानते हो अगर तुम्हारे बूढ़े मां बाप कल को बीमार पड़ जाए और तुम्हारे पास अपने माता पिता के पास इलाज करवाने के लिए रुपया ना हो तो क्या तुम अपने मां बाप को बचा पाओगे मैंने तो गांव की भलाई के लिए अस्पताल खोलने का निर्णय लिया था । मैं बाहर जा कर डॉक्टर भी बन सकती थी ।मेरे दिल में अपने गांव के लोगों के प्रति अपनत्व की भावना थी। तुमने  इस गंदी हरकत को करके मुझे भी शर्मशार कर दिया अब मैं अपने गांव वाले लोगों को क्या मुंह दिखाऊंगी ।आज से जो भी कर्मचारी वर्ग या डॉक्टर किसी बीमारी से ज्यादा रुपए लेंगे वह मेरी संस्था छोड़कर किसी और अस्पताल में काम कर सकते हैं क्योंकि मैं अपने अस्पताल में घूस के रुपयों से इस इमारत का नाम बर्बाद नहीं कर सकती ।कहीं ना कहीं मैं भी इसके लिए अपने आपको दोषी ठहराती हूं। मैंने काम में सभी को चेक नहीं किया अचानक सब लोगों ने सभी डॉक्टरों ने यह महसूस किया कि शहर में तो हर कोई डॉक्टर आसानी से मिल जाता है परंतु हमने तो गांव वालों के साथ भी खिलवाड़ करना शुरू कर दिया । सभी कर्मचारी वर्ग ने और डॉक्टरों ने शिवानी से क्षमा मांगी और कहा कि हम आज यह कसम खाते हैं हम में से कोई डॉक्टर विदेश चला गया  तो इन गरीबों के इलाज के लिए वहां से रुपए भिजवाएंगे। आप हमें माफ कर देना कहीं ना कहीं हम अपने बुजुर्गों का सम्मान करना भूल गए थे । डॉक्टरों ने उस व्यक्ति से अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और थोड़े दिनों के बाद उनके अस्पताल में इतने अधिक मरीज थे वहां पर हर किसी को बड़े प्यार से देखा जाता था जहां भी जाते सब लोग डॉक्टर शिवानी की प्रशंसा करना नहीं भूलते थे ।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.