शैफाली

शैफाली अपनी मां के साथ एक छोटे से किराए के मकान में रहती थी। उस की मां आसपास के पड़ोस में बर्तन साफ करती और अपनी बेटी शैफाली को बहुत प्यार करती थी। प्यार से उसे शैफु बुलाती थी जब उसकी मां मालकिन के यहां झाड़ू पोछा बर्तन साफ करने जाती तो अपनी मालकिन की बेटी को पढ़ता देखती तो सोचती कि वह भी अपनी बेटी को आगे पढ़ा पाती। उसकी बेटी ने आठवीं के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया था। उसनें अपनी बेटी को पास के स्कूल में डाल दिया था। वह अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर एक बड़ा ऑफिसर बनाना चाहती थी ,परंतु पता नहीं भाग्य उसको क्या-क्या दिन दिखा रहा था। कहने को तो उसके पिता सरकारी ऑफिस मैं एक चपरासी थे परंतु उनको शराब की इतनी बुरी लत लग चुकी थी कि वह उनको उसको छोड़ना नहीं चाहते थे। जिस दिन शराब नहीं मिलती उस दिन घर के बर्तनों को पटकना शुरू कर देते। वह अपनी सारी कमाई शराब पीने में उड़ा देते थे जब शैफाली की मां कहती कि अगर तुम शराब पीना नहीं छोड़ोगे तो हम अपनी बेटी को अच्छे ढंग से पढ़ा लिखा नहीं पाएंगे। वह अपनी पत्नी को मारते और उसे भगा देते और कहते वह पढ़ लिख कर क्या करेगी? उसे तो दूसरे के घर जाना है।
शैेफाली के पिता को शराब की इतनी बुरी लत लग चुकी थी कि उससे छुटकारा पाना मुश्किल था। शराब पीकर वह कई दिनों तक नालियों में पड़े होते यही रोज का हाल था उस की मां सोचने लगी कि मैं अब क्या करूं। एक दिन तो हद ही हो ग्ई उसने शेफाली की मां की इतनी पिटाई की और कहा मुझे शराब पीनें के लिए रुपए दो ना देने पर खुद ही सारे ट्रंक छान मारे जब तक रुपए हासिल नहीं किए तब तक वह वहां से नहीं गए। यह सारा माजरा शेफाली देख रही थी। शेफाली के पिता ने अपनी पत्नी को जोर से धक्का दिया उसकी पत्नी का सिर दीवार से जा लगा पता नहीं कितनी देर तक शैफाली की मां बेहोश रही। शैफाली के पिता पर ना जाने क्या भूत सवार था वह चुपचाप रुपया लेकर बाहर निकले। उस दिन शैफाली की मां ने सोचा कि वह अपनी बेटी को लेकर कहीं दूर चली जाएगी। वह जल्दी से अपनी बेटी को लेकर जल्दी जल्दी अपनी मालकिन के यहां काम करने के लिए चली गई। अचानक घंटी की आवाज से उसकी मालकिन चौकी।
उसने झट से दरवाजा खोला और शैफाली की मां को डांटते हुए कहा आज तो तुमने इतनी देर कर दी और आज कल तुम देर से क्यों आ रही हो?। अगर इसी तरह चलता रहा तो मैं कोई और नौकर किराए पर रख लूंगी जब उसकी मालकिन ने यह शब्द सुने तब शेफाली की मां फूट फूट कर रोने लगी और उसने अपनी मालकिन के पैर पकड़ लिए और कहा बीवी जी मैं अपनी तरफ से तो जल्दी आने की कोशिश करती हूं परंतु मेरा मर्द उसने मेरी बेटी और मेरा जीवन नर्क बना दिया है। वह रोज शराब पीकर आता है। मैंने आपको नहीं बताया। वह रोज शराब पीकर ना जाने किस नाली में पड़ा रहता है कहने को तो वह सरकारी ऑफिस में चपरासी है। वह मुझे और मेरी बेटी को अच्छी जिंदगी दे सकता था परंतु उसकी शराब की लत के कारण उसने हमें दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर कर दिया है। आज तो वह मेरी बेटी की फीस के रुपए जो मैंने उससे छुपाकर रखे थे वह भी वह ले गया। आज तो मैं उस से सदा के लिए किनारा करके आई हूं। बीवी की कृपा करके हमें अपना एक कमरा किराए पर दे दे। मैं मेहनत मजदूरी करके आप की पाई-पाई चुकता कर दूंगी। मेरी पगार में से आप काट लेना कृपा करके मुझ पर और मेरी बेटी पर रहम करना इस छोटी सी बेटी को और ना जाने क्या क्या अभी देखना है। वह अब तो अपनी बेटी को उस नर्क की आग में और झौंकना नहीं चाहती। मैं अपनी बेटी को आगे पढ़ाना चाहती हूं और इसके भविष्य को बर्बाद होते नहीं देखना चाहती। मैं इस के भविष्य को उज्जवल बनाना चाहती हूं।
शैफाली ने मालकिन से कहा आंटी मेरे पापा ने मेरी मम्मी को इतनी जोर से धक्का दिया कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ रही। घर की मालकिन को शैफाली की मां पर दया आ गई। मालकिन ने उसके घाव पर मरहम लगाया और कहा कि जब तक तुम को किराए पर मकान नहीं मिल जाता तब तक तुम यहां अपनी बेटी के साथ रह सकती हो। पारो वहां रहने लगी वह रोज जल्दी से काम करती और एक दो घरों में भी काम करने जाती। उसने एक किराए का घर भी ले लिया था।
पारो ने अपनी मालकिन को कहा कि वह अपनी बेटी को आगे पढ़ाना चाहती है। मालकिन की बेटी शैफाली की बराबरी की थी। जब शैफाली उसको पढ़ते देखती वह उसको पढ़ता हुआ देखकर सब कुछ याद कर लेती थी इस प्रकार उसने परीक्षा की तैयारी की और प्राइवेट आठवीं और दसवीं की परीक्षा दी। एक दिन वह अपनी मां के पास आकर बोली मां मैं अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हो गई हूं। उसकी मां की आंखों में खुशी के आंसू बहनें लगे। शैफाली ने कहा कि मैं आपको अब काम नहीं करने दूंगी। मैं भी योग्य औफिसर बनकर आपका नाम रोशन करुंगी। एक दिन शेफाली के पिता अपने बॉस के यहां शादी पर गए । बौस नें उन्हें अपने परिवार वालों से मिलाया आज उनकी बेटी की मंगनी थी। उनके दोस्त के बेटे के साथ थी। शेखर प्रताप के बौस विश्वनाथ नें शेफाली के पिता को आवाज दी यहां आओ। शेखर प्रताप उसके पास गया और बोला बताइए क्या काम है? उसको इस तरह नशे में चूर देख कर उसे याद आ गया कि एक समय था जब वह भी पी कर आता था और अपनी पत्नी और बेटी को बहुत दुःख देता था। उसके मानस पटल पर सारा का सारा दृश्य उभर कर आ गया। वह भी अपनी पत्नी और अपनी बेटी को बहुत दुख देता था जिसके कारण उसकी पत्नी आज अपनी बेटी की शादी को देखने के लिए जीवित नहीं थी। उसने अपनी पत्नी और बेटी को इतना दुख दिए कि उसकी पत्नी को बड़ी मुश्किल से गुजारा करना पड़ा। वह अपने दोस्त के पास मदद मांगने गया। उसके दोस्त ने उसकी इस हालत के लिए उसे ही जिम्मेवार ठहराया। उसके दोस्त ने उसे कहा कि अगर आज तुमने शराब छोड़ दी होती तो अपनी पत्नी को यूं मरने नहीं देता। उसके दोस्त ने उसे कुछ रुपए दिए। अपनी पत्नी का इलाज कराने के लिए और कहा कि मेरे मित्र डॉक्टर राजेश है तुम उनके पास जाकर उन्हें उनके हॉस्पिटल में मिलो।

एक दिन डॉक्टर राजेश के क्लीनिक में उनसे जाकर मिला। शेखर प्रताप को अपनी कहानी सुनाते सुनाते उसकी आंखे भर आई। वह बोला एक दिन मेरी पत्नी श्वेता को मेरी गोद में डाल कर सदा के लिए मुझे रोता बिलखता छोड़कर मर गई। मरते समय उसने मुझसे वादा किया था कि आप मेरे सिर पर हाथ रखकर कसम खाओ कि तुम कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाओगे। मैंने उसे वचन दिया और कहा कि मैं नशे में इतना डूब गया था कि शराब के सिवा कुछ और मुझे दिखाई नहीं दे रहा था। मुझे माफ कर दो। उसके मरने के पश्चात मैंने अपनी बेटी को मां और बाप दोनों का प्यार देकर उसे पाला और अपनी दोस्त की सहायता से उसकी सलाह से मैंने अपनी बेटी के जीवन को नर्क में धकेलनें से बचा दिया। मैंने खूब मेहनत की अपनी बेटी को इंजीनियर बनाया और आज उसी मित्र की बेटी के साथ अपनी बेटी की मंगनी करने जा रहा हूं।
आज मैं बहुत खुश हूं। तुम भी मेरी तरह नर्क में डूब रहे हो। अपने बॉस की बातें सुन कर उसकी आंखों से आंसू आ गए।
शेखर प्रताप सोचने लगा आज मैंने भी अपनी बेटी के जीवन को नर्क बना दिया है। मैंने तो उसकी बीच में ही पढ़ाई छुड़वा दी और मैंने अपनी पत्नी को भी बर्तन मांजने और दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर कर दिया। मैंने अपनी पत्नी को कभी कोई सुख नहीं दिया और अपनी बेटी को भी शिक्षा से वंचित रखा। मुझे इसके लिए भगवान भी कभी माफ नहीं करेंगे। वह जल्दी ही वहां से चला गया।

सबसे पहले शैफाली की मां की मालकिन के वहां पर पहुंचा। मालकिन नें दरवाजा खोला तो अपने सामने एक अधेड़वस्था के आदमी को खड़ा पाया। शेफाली की मालकिन ने कहा कि तुम कौन हो और तुम यहां किसी से मिलने आए हो? शैफाली के पिता ने कहा कि मैं यहां अपनी बेटी से और उसकी मां से मिलने आया हूं। मालकिन ने गुस्से से कहा आज तुम्हें इतने वर्षों पश्चातउनकी सुध आई है या तुम उनसे कुछ लेने आए हो यहां से चले जाओ वर्ना मैं तुम्हें डंडे मार मार कर यहां से भगा दूंगी। शैफाली के पिता मालकिन के पैरों पर पड़ गये और कहा कि कृपया मुझे माफ कर दीजिए। मैं पूरी तरह सुधर चुका हूं। मेरी आंखें खुल चुकी है। मैंने अपनी बेटी के भविष्य को संवरने से पहले ही उजाड़ दिया। मैं ऐसा अभागा बाप हूं। अब वह पूरी तरह से सुधर चुका है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा।
एक बार मुझे अपनी पत्नी और बेटी के घर का पता बता दो मैं उनसे माफी मांग कर सदा के लिए उनसे दूर चला जाऊंगा। मालकिन को भी यकीन हो चुका था कि वह सचमुच में ही बदल चुका था।
मालकिन शेफाली के पिता को वहां लेकर गई जहां पर शैफाली की मां अपनी बेटी के साथ किराए के मकान में रहती थी। उसने दरवाजे पर दस्तक दी। शेखर अपनी बेटी को देखकर फूट-फूटकर रो पड़ा और उसने आते ही अपनी बेटी को गले से लगाया और उसे प्यार करते हुए बोला बेटी मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें और तुम्हारी मां को बहुत दुख दिये मैं पहले वाला पियक्कड़ नहीं रहा।
मैंने तुम्हें शिक्षा से वंचित रखा ना जाने शराब के नशे में मैं अपनी बेटी और अपनी पत्नी के प्यार को समझ ही नहीं सका अब मेरी आंखें खुल चुकी है। उसकी मालकिन ने कहा तुम्हारी बेटी छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ा कर खुद भी पढ़ रही है और उन छोटे बच्चों को पढ़ा कर अपनी मां का हाथ भी बंटा रही है। दसवीं की परीक्षा में भी अच्छे अंक लेकर उतीर्ण हुई है। शैफाली के पिता ने कहा हो सके तो बेटा मुझे माफ कर देना।
शेफाली की मां रसोई से निकली तो अपने पति को वहां देख कर आग बबूला हो गई और बोली चले जाओ यहां से। तुम यहां पर कभी मत आना।
शैफाली नें अपनी मां को कहा कि एक बार तो हमें इन को माफ कर देना चाहिए देर से ही सुधरे। सुधरे तो सही। उस के पिता ने अपनी पत्नी और बेटी से कहा मैं अब चलता हूं।शैफाली ने अपने पिता का हाथ पकड़कर कहा कि मम्मी इतने दिनों के बाद हमारे घर में उजाले की किरण दिखाई दी अब मैं पुनः उन्हें खोना नहीं चाहती। मैं अपने मम्मी और पापा दोनों के प्यार को पाना चाहती हूं। बचपन में तो अपने पिता के प्यार से वंचित रह गई थी। मैं आप दोनों का प्यार फिर से पाना चाहती हूं उसने अपने पापा का हाथ पकड़कर प्यार से सहलाते हुए कहा पापा जाओ हमने आपको माफ कर दिया। उसकी मम्मी ने कहा अच्छा मैं भी तुम्हें माफ करती हूं। आज अगर मेरी बेटी तुम्हें नहीं रोकती तो मैं तुम्हें कभी स्वीकार नहीं करती। एक बार सारा परिवार फिर से मिल गया।

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