सच्चा न्याय राजा वीर सेन का

कीर्तन और निरंजन दोनों दोस्त चले जा रहे थे। वह बहुत दूर निकल गए थे। आज तो अपने राजा का निर्णय सुनकर वे बहुत खुश हो गए। वह सुजानपुर के रहने वाले थे। जब वह दोनों अपने राज्य की बात कर रहे थे तो वहां से जाते हुए तीन परियों उन दोनों की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी। वह बोली तुम बहुत खुश हो रहे हो क्योंकि तुम्हारे राजा नें कोई  न्याय किया है यह तो तुम्हारे लिए बहुत ही खुशी की बात है। कि तुम्हारे राज्य में राजा बहुत ही बुद्धिमान है नहीं तो कुछ राजा तो अपनी प्रजा का ख्याल ही नहीं रखते।  उन पर अत्याचार करते हैं।

 

आज हमें तुम्हारे गांव में आने का फिर से मौका मिला है। हम तीन  परियां हैं।     तुम अपने राजा की इतनी प्रशंसा कर रहे हो तो चलो  चल कर देखें तुम्हारे राजा कितने बुद्धिमान है। और हम तीनों उनकी न्यायप्रियता को कसौटी पर परखते हैं।   जब तक हम प्रत्यक्ष रुप से नहीं देखेंगे  कि तुम यह बात ठीक कह रहे हो तब तक हम विश्वास नहीं कर सकते। कुछ लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ है चलो हम तुम्हारे राजा की परीक्षा लेते हैं। यह दोनों परियां उन के साथ चलने लगी। तीनों परियों नें  रास्ते में एक दर्जी की दुकान देखी। वह तीनों परियां अंदर चली गई। उन्होंने अपना भेष बदल लिया।  चलो यहीं से ईमानदारी  का निरीक्षण किया करना चाहिए। वह दोनों उनके पीछे-पीछे अंदर चले गए। उन्होंनें देखा नंही वह  एक भिखारी के रूप में बदल चुकी थी।

बाहर बहुत ठंड पड़ रही थी। लोगों की भीड़ थी। वह सब लाइन लगाकर दर्जी के पास अपने कपड़े सिलवाने अंदर घुसने का प्रयत्न कर रहे थे। दर्जी ने देखा कि तीन बुढ़िया जो शक्ल से भिखारी दिखती थी उनके कपड़े फटे हुए थे उनकी जैक्किटें फटीं हुई थी। उससे वे अपने को ढकने का प्रयत्न कर रही थी। उनकी जेबे आधी आधी फटी हुई थी। बाहर की ओर निकली हुई थी।  पैरों में चप्पल या जूते भी नहीं थे। उन तीनों को देखकर उसने जोर से आने वाले ग्राहकों से कहा तुम एक किनारे खड़े हो जाओ। पहले मैं इन भिखारी वृधाओ  की बात सुनता हूं। उसने सभी ग्राहकों को एक और कर दिया वह बोली हम तीनों ठंड से कांप रही है। हमारी जैक्किटें फट चुकी है। कृपया करके हमारी जैक्किटों में सिलाईयां लगा दें। हमारी जेब फटी हुई है ठंड के मारे हम से चला नहीं जाता। बेटा भगवान तुम्हारा भला करे। उन्होंने अपनी जेब में एक पोटली जिसमें खूब सारे बटन, दूसरे में सूइयां और तीसरी में हीरे रखे हुए थे। वह तो इस दर्जी की परीक्षा ले रही थी कि यह दर्जी कितना ईमानदार है। उसनें उन बूढ़ी औरतों को कहा तुम यहीं बैठ जाओ। मैं पहले तुम्हारी  जैक्किटों को ठीक कर देता हूं। उसने अपने सारे ग्राहकों को कहा भैया मुझे माफ करना मैं तुम्हारे कपड़ो का बाद में नाप लूंगा। पहले मैं इसकी  जैकिट ठीक कर देता हूं। इनमें सब में मैं कहीं ना कहीं मैं अपनी मां को और अपनी बहन को देखता हूं। मां की और किसी भी असहाय महिला की सेवा करना मेरा फर्ज है। उसने उन तीनों से उनकी जैकिट  ले ली और उनमें सिलाई करने लगा। वह जगह-जगह से फटी हुई थी।  उसकी नजर तीनों पोटलीयों पर  पड़ी। उसने  तीनों महिलाओं को वह पोटली पकड़ा दी।   हम तुम्हारी ईमानदारी देखकर बहुत खुश हुई। उसने तो उन पोटलियों को खोल कर भी नहीं देखा था। उन्होंने सोचा था कि  यह बटन तो दर्जी इस्तेमाल करते हैं शायद यह दर्जी रख लेगा लेकिन उसने तो उन पोटलियों को भी खोल कर नहीं देखा।  सभी ग्राहक एक एक करके  चले गए थे। वहां केवल दो नवयुवक और तीन परियां थीं।

 

उन तीनों ने  उसे एक पोटली दी और कहा बेटा तुमने हमें ठंड से बचा लिया। हम एक पोटली तुम्हें दे रहे हैं। यह तुम्हारा ईनाम है। ईनाम दे कर  वे वहां से चली गई। दर्जी ने उस पोटली को खोल कर भी नहीं देखा था। उसने सोचा बाद में इसको खोल लूंगा। जो भी होगा इन बुढी  वृधाओ ने उसे जो भी प्यार से दिया होगा वह मुझे मंजूर है। तभी उन दोनों दोस्तों ने कहा यार खोल  कर देख इसमें क्या है? दर्जी ने जैसे ही पोटली  खोली तो देखा कि उस पोटली में बहुत सारे हीरे थे। हीरो को देखकर दोनों दोस्त बहुत हैरान  हुए।

वे बोले यार तुम्हारी तो मौज हो गई। वे तुम्हें हीरे दे कर गई है।  उन्होंनें कहा कि हम तीनों आधा आधा बांट लेते हैं। दर्जी बोला मैं तुम्हें क्यों दूं? वह तो मुझे दे कर  गई हैं। उसने अपनें बही खाते में  उन वृधाओ के नाम लिख दिये।  दर्जी ने उस बही खाते में लिखा कि मैंने एक पोटली उन वृद्धाओं से प्राप्त कि जो उन्होनें मुझे प्यार से दी। उसने रजिस्टर पर लिख दिया था। वह अपने अपने ग्राहकों से सबके नाम लिखवा देता था।  उन तीनों ने अपना नाम त्रिवेणी लिखवाया। उन्होंने अपने हस्ताक्षर कर दिए थे। वे दोनों कहने लगे कि हम तुम्हारी शिकायत राजा  से कर  देंगे कि तुम्हारे पास हीरें हैं। तुमने यह हीरें  चोरी  किए हैं। नहीं तो तुम हमें आधा दे सकते हो।

 

दर्जी बोला ऐसा मैं कदापि नहीं कर सकता। मुझे हीरो का लालच नहीं है। चाहे राजा मुझे जो मर्जी सजा दे यह चोरी का माल नहीं है। यह तो  उन तीनों वृधाओं ने मुझे दिया  है। तुम चाहे तो मुझे राजा के पास ले जा सकते हो। दोनों दोस्तों के मन में लालच आ गया। हीरों को देख कर उनका सारा चैन खो दिया था वह दर्जी के पास हीरो को देखना भी सहन नहीं कर सकते थे। वह चुपचाप दर्जी को पकड़कर राजा के पास ले गए और बोले कि राजा जी यह हमारे गांव का दर्जी है।  हीरों को इसनें तीन वृद्ध महिलाओं से चुराया है। यह सब हमने अपनी आंखों से देखा है। राजा ने दर्जी से कहा तुम अपनी सफाई में क्या कहना चाहते हो। दर्जी बोला मैं अपना कार्य अच्छे ढंग से करता हूं। इस कारण बहुत सारे ग्राहक मेरे पास कपड़े सिलाने आते हैं। मेरे पास तीन बुढ़िया महिलाएं अपनी जैक्किटों को ठीक करवाने आई थी। उन्होंने अपना नाम त्रिवेणी बताया था। उन्होंने मुझे यह पोटली इनाम के तौर पर दी थी। उन दोनों दोस्तों ने मुझे कहा  कि  इस पोटली को खोलो इस पोटली में क्या है?   मैंने  जब पोटली खोली तो यह देख कर हैरान हो गया क्योंकि  सचमुच ही इस पोटली में हीरे  थे। उन दोस्तों ने मुझसे कहा कि हम तीनों इनमें को बांट लेते हैं नहीं तो हम राजा के पास  तुम्हारी शिकायत कर देंगे। उन दोनों ने राजा को कहा  राजा साहब यह दर्जी झूठ बोल रहा है।

 

राजा वीर सेन ने कहा कि यह दोनों झूठ नहीं बोल सकते। बुढ़िया  तुम्हें हीरें कैसे दे सकती है। यह तो तुमने कहीं से चुराया है। सच सच बताना तुम्हें जेल में बंद कर देता हूं। अगर तुमने सच नहीं बताया तो मैं  तुम को मृत्युदंड दे दूंगा।

 

चेतन और निरंजन दोनों अपने घर आ गए तीनों परियां आपस में कहने लगी कि  चल कर देखेंगे कि राजा कितना ईमानदार है? हम कुछ दिनों बाद जा कर देखेंगे। वे ं वहां से चली गई। राजा ने दर्जी को कारावास में डाल दिया। उसकी पत्नी ने तो रो रो कर बुरा हाल कर दिया था। उसकी पत्नी रोते रोते उन दोनों दोस्तों को बद्दुआ दे रही थी कि तुमने एक बेकसूर अपराधी को जेल में डलवाया है। तुम दोनों भी खुश नहीं रहोगे। जल्दी ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

 

केतन का बेटा आठवीं कक्षा में पढ़ता था। एक दिन उसकी कक्षा के बच्चे ने कक्षा अध्यापिका को कहा कि मैडम जी अभिषेक ने मेरा पैन चुराया है।  पार्कर का पैन मेरे पापा नें कल ही ला कर दिया था। मेरे बस्ते के पास ही अभिषेक खड़ा था। मैडम ने अभिषेक को बुलाया और कहा कि कल तुम अपने पापा को लेकर आना। दूसरे दिन केतन अपने बेटे के स्कूल पहुंचा। मुख्य अध्यापिका ने कहा कि आपके बेटे अभिषेक ने आषु का पैन चुराया है क्योंकि पैन तुम्हारे बेटे की सीट के पास मिला है। आपका बेटा चोर है। ऐसे बच्चों को हम स्कूल में नहीं रख सकते। केतन बोला  नहीं मैडम मेरा बेटा चोर   नहीं है। आपको कुछ गलतफहमी हुई है। मैडम बोली कि तुम्हारे बेटे की सीट के पास पैन मिला है। केतन को गुस्सा आया मैं अपने बेटे को यंहा नहीं रखूंगा।  मेरे बेटे पर चोरी का इल्जाम लगा है। मायूस होकर वह अपने बेटे को लेकर घर आ गया। उसका बेटा बोला पापा मैंने चोरी नहीं की उसके दिमाग में उस दर्जी का चेहरा घूम रहा था उसने भी तो उसको चोर ठहराया था। उसे अपने अंदर से ग्लानि  हो रही थी। जो जुर्म उसने किया नहीं था उसकी सजा उसे बेगुनाह को  को मिल रही थी।

 

निरंजन जैसे ही घर आया तो देखा उसकी पत्नी अपने घर की नौकरानी  पर चिल्ला रही थी। मेरी पायल यही रखी थी। तुम्हारे सिवा यहां कोई नहीं आया। तुम जल्दी से बताओ वर्ना कल से तुम काम पर नहीं आओगी। उसकी नौकरानी झुमरी रो रो कर फरियाद कर रही थी। आप लोग बड़े हो। किसी को भी चोर ठहरा सकते हो। हम गरीब लोग जरुर है मगर चोरी करना हमारा पेशा नहीं है। तुम तो मुझ पर चोरी का इल्जाम लगा रही हो। मैंने  बीबी जी  आपकी पायल नहीं चुराई है। वह बार-बार रो कर कह रही थी। निरंजन आ कर बोला  शायद तुम ने ही  कंही  रख दी होगी। इस बेचारी पर क्यों इल्जाम लगा रही हो? उसकी पत्नी गुस्से से बोली तुम क्यों उसकी फरियाद कर रहे हो? जाओ अपना काम करो। झुमकी बोली मैडम जी कि कल से मैं काम पर नहीं आऊंगी। मुझे कहीं और जगह काम मिल जाएगा। झुमकी सदा सदा के लिए काम छोड़कर वहां से चली गई।

 

शाम को सफाई करते वक्त पलंग के नीचे उसकी पायल मिल गई। रुपाली बहुत पछताई बड़ी मुश्किल से काम करने वाली मिली थी अब तो इतने कम रुपए में कोई काम करने को तैयार नहीं होगा। वह तो बेचारी कुछ भी नहीं कह रही थी। दस दिन तक तो रुपाली को काम से छुट्टी लेनी पड़ी। उसको अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि बिना सोचे-समझे झुमकी पर इतना बड़ा इल्जाम लगा दिया।

 

जब दोनों दोस्त आपने ऑफिस पहुंचे तो दोनों दोस्तों के मुंह   लटके हुए थे।  निरंजन नें अपने दोस्त को सारी बात कही कि आज मेरी पत्नी ने किसी बेकसूर पर चोरी का इल्जाम लगा दिया। वह काम छोड़ कर चली गई। अब तो इतने कम रुपयों  में कोई भी नौकर काम  नहीं आएगा। रुपाली को पता लगेगा जब उसे छुट्टी लेकर घर बैठना पड़ेगा।

केतन बोला मैं  भी उदास हूं मुझे भी अपने बेटे के स्कूल में बुलाया था। किसी लड़के ने  पैन चुरानें का इल्जाम मेरे बेटे पर लगा दिया है। वे दोनों पछता रहे थे कि हमने भी तो किसी बेकसूर व्यक्ति को सजा दिलाई है। अब जब यह परिस्थिति स्वयं पर गुजरी  तब जा कर महसूस हुआ। अब क्या हो सकता  था।

 

कुछ दिनों बाद दोनों दोस्त उस बात को भूल गए जैसे कुछ हुआ ही ना हो। , एक दिन राजा ने दर्जी को बुलाया और कहा तुमने अपनी सफाई में कुछ कहना है वह बोला आप समझदार है मैंने सुना है आप जो भी न्याय करते हैं वह ठीक ही होगा। मैंने तो आपको  उस दिन भी कहा था कि मैंने चोरी नहीं की और आज भी मैं यह कह रहा हूं कि मैंने चोरी नहीं की है। काश भगवान आज मेरी मदद करते। परंतु मेरे पास तो अपनी बेगुनाही देने वाला भी कोई नहीं है।

 

राजा के महलों में तीन परियों उपस्थित हुई। वह बोली हम बड़ी दूर से आए हैं। हम राजा जी आपका न्याय देने देखने आई है। आप इस दर्जी को क्या सजा दोगे।? राजा बोला इसने जुर्म किया है। उसे उसकी सजा मिलनी चाहिए। राजा ने अपने सैनिकों को कहा कि इस दर्जी को मृत्युदंड दिया जाए। क्योंकि मैं सच्चा न्याय करता हूं। इसे हीरे देख कर लालच आ गया होगा। जब उसको फांसी के लिए ले जाने जाने लगे तो वह तीनों परियां आ कर बोली  आपके इलाके में राजा जी आप की लोग इतनी प्रशंसा यूं ही करते हैं तो आज देख भी लिया कि आप न्याय करने वाले राजा नहीं हो। आप नें बिना सोचे समझे किसी बेगुनाह को फांसी की सजा सुना दी। आपने यह भी जानने की कोशिश नहीं की कि यह बेचारा तो सच्चे न्याय का हकदार है। आप से ज्यादा ईमानदार तो  यह दर्जी है जिसके मन में किसी के प्रति कोई भेदभाव नहीं है।

 

हम तीन परियां हैं। हमें आपके राज्य में आने का मौका मिला। जब हम रास्ते से चल रही थी तो हमें  हमें दो नवयुवक मिले। वह आपकी इतनी प्रशंसा कर रहे थे वह कह रहे थे कि न्याय हो तो हमारे राजा जैसा। हमारा मन नहीं माना। हमने सोचा राजा का  सच्चा न्याय हम अपनी आंखों से देखने चलते हैं। हम ही वह तीनों   परियां हैं।  जिन्होंने उस दर्जी को वह पोटली दी थी। हम तीनों वृद्धाओं का भेष बदलकर उसकी दुकान पर जैकिटे ठीक करवाने गई थी। हमने जानबूझकर तीनों ने तीन पोटलिया उनकी जैकिटों में रख दी थी। यह देखने के लिए कि वह इन पोटलीयों का क्या करता है।? परंतु इसने तो पूछ लिया इन को खोल कर भी नहीं देखा। हम दोनों नव युवकों के साथ चलते चलते उस दर्जी की दुकान पर पहुंची थी। हमने उसकी परीक्षा लेने के लिए यह नाटक रचा था। हमने उन दोनों नव युवकों को कहा था कि हम तुम्हारे राजा का न्याय देखना चाहते हैं। राजा बोला कि तुम्हारे पास क्या सबूत है कि तुम भी झूठ बोल सकती हो। वह बोली कि हमने इस दर्जी के बहीखाते पर त्रिवेणी के नाम से हस्ताक्षर किए थे।

 

हमें पता था कि वे दोनों दोस्त हीरो को इस भोले भाले को इमानदारी से छीन भी सकते हैं। इसलिए हमने ऐसा नाटक रचा था।  यह बेचारा दर्जी अपनी सफाई दे सके। हो सके तो आप इस  का रजिस्टर भी चेक कर सकते हो जिसमें हमने त्रिवेणी के नाम से हस्ताक्षर किए थे।

 

राजा ने किसी सेवक को बुलाकर  रजिस्टर मंगवाया उस पर सचमुच में ही त्रिवेणी के नाम से हस्ताक्षर किए गए थे। नीचे उन्होंने लिखा था कि हमने उसे एक पोटली दी। वह परियां  बोली आपसे ज्यादा ईमानदार तो यह दर्जी है। राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसी समय दोनों दोस्तों को बुलाकर उनको छः महीने का कारावास दिया। और अपने  आप राजपाट छोड़कर सदा के लिए वह  वहां से चला गया। उसमें दर्जी को खूब सारा धन देकर विदा किया। और  उससे अपने किए की  क्षमा मांगी।  

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