दसवीं की परीक्षा के बाद परिणाम निकलने की उत्सुकता हरदम बनी रहती थी। इस बार अच्छे अंक आए तो ममी- पापा मुझे कॉलिज और हौस्टल में प्रवेश दिलाना चाहते थे। अपने मन में हौस्टल का सपना संजोए जल्दी से परिणाम निकलनें का इन्तजार करनें लगी। मुझे पता ही था कि मैं अच्छे अंक ले कर उतीर्ण हो जाऊंगी। लेकिन एक अजीब सी खुशी और थोड़ा सा भय भी छाया हुआ था। मन में ना जाने हॉस्टल के बारे में बहुत कुछ अपने सहपाठियों से सुनने को मिला था। उन्होंनें रैगिंग से डराया हुआ था। कॉलेज में प्रवेश करने पर रैगिंगका डर और यह हॉस्टल क्या होता है? यह शब्द केवल सुना था। यह कुछ भी मालूम नहीं था कि हॉस्टल कैसा होता होगा? यह रैगिंग क्या होती है? कॉलेज का डर भी कॉलेज के बारे में जो कुछ सुनने को मिला था उससे तो कॉलेज जाने को मन ही नहीं करता था।
हमारे समय में दसवीं के बाद कॉलेज में ही प्रवेश लेना पड़ता था। आजकल तो समय बदल चुका है। बारहवीं की परीक्षापरीक्षा के बाद ही कॉलेज में जाने को मिलता है। अचानक वह दिन भी आ गया जब दसवीं की परीक्षा उतीर्ण कर कॉलेज में प्रवेश ले लिया। वहीं पर हॉस्टल में दाखिला करवा लिया। मम्मी पापा हॉस्टल छोड़ने आए। वहां पर पहुंचकर खुशी भी हुई। वहां पर पहले से ही लड़कियों का झुंड लौन में इंतजार कर रहा था। कुछ लड़कियों ने मम्मी पापा को नमस्ते कर अभिवादन किया। लड़कियों ने कहा नीचे हॉस्टल वार्डन का कमरा है। वहां पर जाकर उनसे मिल लो।। हॉस्टल में मुझे प्रवेश मिल चुका था। माता-पिता ने जैसे ही कहा कि बेटा हम अब अपने घर वापस जा रहे हैं तो मैंने मां का हाथ कस कर पकड़ लिया। मां पिता से कभी भी अलग नहीं रहे थे। उनका हाथ पकड़ कर कहा मुझे नहीं पढ़ना है यहां। मैं भी आपके साथ वापिस जाना चाहती हूं। सारी की सारी लड़कियां मुझे देख कर हंसने लगी बोली रोते नहीं। उन्होंने मेरा हाथ मां के आंचल से छुड़ाया और कहा कि आप जाओ सब कुछ ठीक हो जाएगा। मां पिता के जाते ही मुझे रोना आ गया। वे मुझेकहां अकेला छोड़कर वापस घर चले गए। हॉस्टल में दो दो लड़कियों कोो एक रूम दिया गया। सुबह 5:00 बजे चाय की घंटी बजी। सुबह उठने का मन ही नहीं किया। थोड़ी आलस करने के पश्चात उठकर चाय पीने का इंतजार करने लगी। एक लड़की आकर बोली तुम चाय का इंतजार कर रही हो।चाए अब नहीं मिलेगी। यहां पर समय पर ही सब कुछ मिलता है। 5:00 बजे सुबह के वक्त प्रार्थना होती है। जो बच्चा प्रार्थना में नहीं जाता उसे चाय भी नसीब नहीं होती। उस दिन बिना चाय पिए ही मैं कॉलेज जाने लगी। खाने की घंटी भी बजी।। इस बार मुझे पता चल चुका था कि खाने की मेज पर समय पर नहीं पहुंचे तो खाना भी नसीब नहीं होगा जल्दी जल्दी मेज पर खाने का इंतजार करने लगी। अचानक सीनियर लड़कियां आकर बोली सारी नई आई लड़कियां खड़ी हो जाएं। पहले सीनियर को विश करो। जब तक तुम सीनियर को विश नहीं करोगे तब तक मेज के सामने खड़ी रहो। सारी सीनियर लड़कियां खाना खाने लगी। थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा कि आज हम तुम्हें पहले ही समझा देते हैं तुम्हें तब तक नहीं बैठना है जब तक सारी की सारी सीनी लड़कियां बैठ नहीं जाती। एक लडकी ने ं उनकी बात नहीं मानी और न ही उनको प्रणाम कहा। वह लड़की जब खाना खानें बैठी तो उसकी थाली में बहुत सारी मिर्ची डाल दी। वह लडकी बहुत ही ढीठ थी उसनें उन की बात नहीं मानी। सारी लडकियों नें उस से किनारा कर लिया। मन में हॉस्टल के प्रति इतनी कड़वाहट भर गई यह कैसा हॉस्टल है? यहां पर तो सीनियर लडकियां हम पर रोब झाड़ कर हमें सूख कर कांटा बना देगी। हम तो सुख सुख कर कांटा हो जाएंगे। जैसे तैसे अपने आप को संभाला। दूसरे दिन सहेलियों के साथ कॉलेज में कॉलेज में गई। कॉलिज में भी कुछ नया नया सा था। जैसे ही पहला कालांश लगा हम भाग कर कक्षा में चले गए। कॉलेज में मैडम आकर हाजिरी लगाने लगी। काफी विद्यार्थी कक्षा में नहीं आए थे। आधे से ज्यादा बच्चे एक दूसरे की हाजिरी लगा रहे थे।
एक लड़की मेरे पास आकर बोली मेरी प्रौक्षी लगा देना। मुझे तो प्रौक्षी शब्द का मतलब भी मालूम नहीं था। थोड़ी देर बाद समझ आया की प्रौक्षी उपस्थिति को कहते हैं। अंग्रेजी के सर तो सब कुछ अंग्रेजी में भाषण देकर कुछ गिटार पीटर कर चले गए। जितनी भी कक्षा में लेक्चरर आए सब कुछ अंग्रेजी में बोलते चले गए। हम नई आई हुई लड़कियां उनके चेहरे की ओर देखने लगी। हमें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। यह सब क्या पढ़ा रहे हैं? अपने मन में हीन भावना पैदा हो रही थी। क्योंकि हिंदी मीडियम में पड़े हुए बच्चों को जो कुछ भी शुरू में सिखाया जाता वह कभी भी किसी के पल्ले नहीं पड़ता था। अचानक मैंने अपनी एक सहेली से पूछा क्या तुम्हें कुछ समझ आया? वह कहने लगी नहीं, तब कहीं जाकर दिल को तसल्ली हुई कि मैं ही अकेली नहीं हूं जिसे कुछ समझ नहीं आ रहा। धीरे-धीरे अंग्रेजी के लेक्चर समझ में आने लगे। हॉस्टल में आने पर सीनियर का डर सताता रहता था। ना जाने आज क्या कह दे?
एक दिन सारी लड़कियों ने रैगिंग लेने के लिए सबको एक कमरे में इकट्ठा कर दिया। सब से कुछ ना कुछ करने के लिए कहा। जो कुछ किसी को आता था। वह लड़कियों ने हमसे करवाया। एक लड़की बहुत ही अकड़ू थी वह कहनें लगी मैं क्यों आप लोगों को गाना सुनाऊं। पहल सीनियर लडकियों नें उस लड़की को कहा तुम्हारा नाम क्या है? वह बोली मेरा नाम मीरा है। एक सीनियर लड़की उठकर बोली वही मीरा तो नहीं जो कृष्ण की दीवानी बन गई थी। अपनी इतनी बेइज्जती को वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। वह फूट फूट कर रोनें लगी। धीरे-धीरे सभी लड़कियों कुछ दिनों बाद आपस में इतना घुलमिल गई कि एक दूसरे को देखे बिना खाना भी हजम नहीं होता था। जिस हौस्टल शब्द को सुनकर नफरत सी होती थी वह हॉस्टल अब अच्छा लगने लगा।।
हॉस्टल वार्डन भी बहुत नेक इन्सान थी। वह बाहर से बहुत सख्त मगर अन्दर से दिल की बहुत ही अच्छी थी। बिना अभिभावकों की आज्ञा बिना कहीं भी जाने की अनुमति नहीं थी। शनिवार को शॉपिंग दो घंटे ही जाने दिया जाता था। उसके बाद समय पर ही हॉस्टल पहुंचना पड़ता था। लड़कियां हॉस्टल में ही रहकर परीक्षा की तैयारी करती थी। महीने में एक बार फिल्म देखने जाने दिया जाता था। हॉस्टल में कुछ एक लड़कियां एसी थी जो फिल्म देखने की शॉकिन थी। मैडम दो फिल्में देखने की अनुमति तो दे दे तो अच्छा हो आएगा। मैडम तो वायदे की बहुत ही पक्की थी। एक बार जो कह दिया वह पत्थर की लकीर होता था। कोई लड़की अगर नियम का उल्लंघन करती थी तो उसे कड़ी से कड़ी सजा दिया करती थी। मैडम सुबह की प्रार्थना में सब लड़कियों को कहती थी कि जल्दी उठा करो। जो जल्दी नहीं उठेगा उसे चाय मत देना। नियम का उल्लंघन करने वालों को सजा दी जाती थी। एक दिन हॉस्टल वार्डन अपने किसी रिश्तेदार से मिलने चंडीगढ़ चली गई। लडकियों नें उनके जाते ही फिल्म देखनें का प्रोग्राम बना लिया। आज तो उन्हें फिल्म देखनें को मिल ही जाएगी। जल्दी ही हॉस्टल के खानाबनाने वाले भैया को कहा आपने हम सब की फिल्म की टिकटें लो। आप हमारे साथ चलो। आप ही हमारे साथ फिल्म देखने चलो। पिक्चर हॉल में जब बैठकर सभी फिल्म का आनंद ले रहे थे तभी एक लड़की की नजर हॉस्टल वार्डन पड़ी। हॉस्टल वार्डन अपने किसी परिचित के साथ फिल्म देखने आई थी। मैडम नें यहसब देख लिया था। फिल्म देखना तो दूर की बात थी उस वक्त ऐसा महसूस हो रहा था कब जैसे हॉस्टल पंहूंचे। आधी फिल्म ही देख कर वापिस आ गए। मैडम जब हॉस्टल्आई आग बबूला हो कर बोली तुम मेरी अनुमति लिए बगैर ही फिल्म देखने चली गई। और खाना बनाने वाले भैया को भी डांट लगाई। सारा दिन हमें खड़ा रखा फिर थोड़ा नर्म हो कर बोली। इतनी सी सजा से काम नहीं चलेगा। तुम्हारी तीन महीने तक की शॉपिंग बाद। हमें तीन महीने तक शॉपिंग नहीं जाने दिया गया। जो कुछ भी सामान मंगवाना होता था हॉस्टल के चपरासी से मंगवा लेते थे। वही सारा सामान लेकर आता था। उस दिन के बाद हमें सबक मिल गया था। आज भी मैडम की सीख याद आती है। मैडम ठीक ही कहती थी।
मैडम जब एक राउन्ड लगानें आती देखूं लडकियां पढाई भी कर रही हैं या नहीं तो कुछ लड़कियां तो पढ़ रही होती। कुछ लड़कियां एक दूसरे के कमरे में होती। जैसे ही उन्हें पता चलता कि मैडम राउन्ड लगानें आई हैं तो जो लडकियां एक दूसरे के कमरे में होती वह कोई तो कुर्सी के नीचे छिप जाती कोई पंलग के नीचे। हॉस्टल के सामने एक अमरूद का पेड़ था। जिस पर लड़कियां चढा करती थी मैडम के आते ही चुपचाप लड़कियां पेड़ से नीचे उतर जाती थीं एक लड़की इशारा करके बताती थी कि पेड़ से नीचे उतर जा। मैडम आने रही है।
सर्दियों के दिन थे लड़कियां वार्षिक परीक्षा की तैयारी में जुटी हुई थी। अचानक एक लड़की को मजाक सूझा। अपनी सहेली से बोली कल 31 दिसंबर है। क्यों न नए साल की खुशी में कुछ नया किया जाए?। कुछ लड़कियां बोली क्या करते हैं? चलो आज लड़कियों को लड़का बन कर डराते हैं। । रात के 1:00 बजे थे। अकड़ू लड़की ने अपने सीनियर लड़की के कमरे का दरवाजा खटखटाया। वह लड़के की वेशभूषा में थी। वह भी सफेद रंग की पोशाक में। उस लड़की को लगा शायद मैडम राउन्ड लेने आई है।लडकियां रात रात बैठ कर पढाई किया करती थी। उस लड़की नें सोचा ज्यादा समय नहीं हुआ होगा।
हॉस्टल का चपरासी किसी को भी अंदर फटने नहीं देता था। उस लड़की ने किसी लड़के की कल्पना भी नहीं की थी। जैसे ही उस लड़की ने दरवाजा खोला अपने सामने एक लड़के को देखा। लड़के को देख कर डर के कारण बेहोश हो कर गिर गई। इस वजह से ही वह दोनों लड़कियां डर गई क्योंकि उन्होंने यह सब मजाक के लिए किया था। बाद में उन्हें पता चला कि ऐसा मजाक हमें किसी के साथ नहीं करना चाहिए। काफी देर तक उस लड़की को होश में लाने का प्रयत्न करने लगे। सारी की सारी लड़कियां इकट्ठी हो गई थी कमरे के साथ ही हर एक कमरा दूसरे के साथ जुड़ा हुआ था। सभी लड़कियां एक ही कमरे में इकट्ठी हो गई थी। उसे होश में लाने का प्रयत्न करनें लगी। उस को बेहोशी की हालत में देख कर लड़कियां रोने लगी। दौड़ी दौड़ी जा कर मैडम को बुला कर लाई। मैडम जी हम से बहुत ही भारी भूल हो गई। उसको लड़का बनकर डराया। कृपया हमें मौफ कर दो। मैडम नें तुरन्त ही डाक्टर को फोन करके बुलाया। डाक्टर के आने से पहले उस लड़की को होश आ चुका था। डाक्टर नें कहा कि इस लड़की को कुछ भी हो सकता था। भगवान् का लाख लाख शुक्र है कि इस लड़की की जान बच गई वर्ना आज कुछ भी हादसा हो सकता था। इस का ब्लड प्रैशर बहुत ही कम हो गया था।। मैडम नें कहा तुम सब लडकियां उस लड़की से मौफ मांगो वर्ना तुम सब को हौस्टल से छुट्टी दे दूंगी। उन लडकियों नें अपनी सहेली से क्षमा मांगी और कहा कि आज के बाद हम कभी भी ऐसा मजाक नहीं करेंगे। आज भी हॉस्टल और कॉलेज की यादों का सिलसिला जहन में अंकित है। बाद में हॉस्टल से विदा होते समय उन सखियों के गले लग कर इतना रोए।
आज भी इस घटना को भूल कर भी नहीं भूला जाता। कॉलेज के समय की यादें दिमाग से मिटाने से भी नहीं मिटती।