छोटी सी भूल

लोकनाथ के परिवार में उसकी पत्नी एक बेटा और बेटी थी। यही उनकी छोटी सी दुनिया थी। दिन रात मेहनत करके जो मिलता उस से अपनी पत्नी निर्मला और बच्चों का पेट भरता था। लोकनाथ बहुत ही मेहनती था। वह सुबह सुबह हल लेकर खेत को जोतने निकल पड़ता था। उसकी पत्नी निर्मला अपने पति का हाथ बंटाती थी। वे दोनों पति पत्नी अपने बेटे और बेटी को भरपूर ख़ुशियाँ देना चाहते थे। अपनी बेटे की हर फरमाइश को पूरा करते। जो भी मांगता उसे उपलब्ध करवाने की पूरी कोशिश करते। घर में खूब घी,मक्खन,दूध किसी भी चीज की कमी नहीं थी। उसके पिता उसे किसी भी चीज को मना नहीं करते थे। इस  कारण वह बहुत ही बिगड़ गया था। इतने लाड प्यार से पालन पोषण हुआ था रघू का। रघु था तो बहुत ही बहादुर  लेकिन अपनी बात को मनवा कर ही रहता था। उसकी जीद अगर पूरी नहीं होती थी तो वह घर पर सिर पर उठा लेता था। उसके पिता ने अपनी बेटे बेटी को गांव के समीप ही दाखिल करवा दिया था। रघु का  एक बहुत ही पक्का मित्र था लाखन। लखन एक अनाथ बालक था। अनाथालय से  हर सुबह लाखन रघु के घर आया करता था। वहीं से दोनों साथ ही विद्यालय के लिये निकलते थे। रघु केवल अपने दोस्त की ही बात मानता था। उसका दोस्त उसे बहुत ही प्यारा था। इकट्ठे स्कूल जाते, रास्ते में खेल खेलते घर आते। एक दूसरे को अपने दिल की हर बात बता देते। आज भी जब लाखन रघु के घर आया तो उस समय भी रघु  बुरी तरह अपने पिता पर चिल्ला रहा था। लाखन ने अपने दोस्त को अपना गुस्सा मां पर भी निकालते देखा। कहने लगा हर रोज़ दाल बना देती हो। ठीक ढंग का खाना भी नसीब नहीं होता। मां को कहता मां तुझे तो बस अपनी बेटी ही प्यारी है। सब उस को ही खिला दिया कर। हर वक्त  तुझे यह कहते  सुनता हूं कि बेटी तो शादी के बाद घर चली जाएगी। इसको खा लेनें दिया कर  जो वह खाती है लेकिन तूने तो इसको प्यार जताने का ठेका लिया है। जब शादी करके अपने घर चले जाएगी तो आपको याद भी नहीं किया करेगी। मां बोली बेटा ऐसा क्यों कहता है? मुझे तो तुम दोनों प्यारे हो। बेटी अपनी जगह है। बेटा अपनी जगह। भगवान की दया से गुज़ारे लायक ठीक-ठाक है। पिता कहते बेटा ज़्यादा ज़िद करना ठीक नहीं होता। जो मिले वह भगवान का प्रसाद समझ कर खा लेना चाहिए। खाने का कभी भी निरादर नहीं करना चाहिए। भोजन में तो अन्नपूर्णा का निवास  होता है। वह अपनें दोस्त से बोला  लाखन  आज मैं तुम्हारे साथ खा लूंगा। तू आज लन्च में क्या लाया है? आलू का परांठा। ठीक है आज तो तेरा ही भोजन खाने वाला हूं। यह कह कर  लाखन के साथ स्कूल  चल पड़ा।

स्कूल जाते जाते जाते सब लोग उन दोनों को जाते देखते तो वे आपस में  कहते  दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर है।  लाखन एकदम शांत गंभीर और भोला भाला है। रघु यह तो मुंह फट है।लाखन यह तो  पढ़ाई में इतना होशियार। रघु यह तो नीरा का नीरा अनाड़ी। पता नहीं कैसे इन दोनों की दोस्ती हो गई। मास्टर जी रास्ते में  मिले वह रघू को बोले पढ़ाई  लिखाई भी किया करो। मटरगश्ती करना छोड़ दो बेटा वरना एक दिन पछताओगे। सीखा करो इस लाखन से। तुम्हें तो हमनें उग्र रुप धारण किए हुए ही सदा देखा है। हम जब तुम्हारे घर आतें हैं तुम अपने मां बाबा से  चिढ़ – चिढ़े से रहते हो। ऐसा क्यों करते हो?  बेटा अनाड़ी नहीं बनते तुम भी इस लाखन की तरह होशियार बन सकते हो। रघू को गुस्सा तो बहुत आता मगर उसे हर बार रोक लेता। उसका दोस्त लाखन उसे चुप करवा देता। इनके मुंह नहीं लगते। तुम्हें हमारी दोस्ती की कसम। वह उन लोगों से कभी भी नहीं  उलझता था।

एक दिन जब रघु घर आया तो उसके पिता बोले बेटा तुम अब छठी कक्षा में आ गए हो।  दिल लगाकर पढ़ाई किया करो। जैसा कि तुम्हारा दोस्त लाखन। वह कितना होशियार है। तुम भी उसकी तरह क्यों नहीं बन जाते?  रघु बोला हर हर बात पर  लाखन लाखन ऐसा है तो आप उसको ही अपना बेटा बना लो। ऐसे भी वह अनाथालय में पला है। उसके पिता बोले बेटा तुम्हें समझाने के लिए ऐसा कह रहा था। तुम तो  भड़क गए।  उसी वक्त लाखन उसे  स्कूल  के लिए  बुलानें आ गया।  दोनों दोस्त  घर से निकल कर  स्कूल को चलने लगे।उन्हें रास्ते में  गांव के प्रधान जी  नजर आ गए। दोनों नें प्रधान जी को नमस्ते की। प्रधान जी बोले बेटा रघु इधर  तो आना। आज तुम्हारे पिताजी मुझे मिले। जो तुम्हारे बारे में मुझसे बात कर रहे थे। हमारा बेटा सब कुछ मिलते हुए भी बिगड़ा ही जा रहा है। बेटा बड़ों के साथ इस तरह बर्ताव नहीं किया करते। क्या तुम्हारे स्कूल में यही सब कुछ सिखाया जाता है, स्कूल में तो अच्छा बच्चा बनने जाते हो। अध्यापक भी तुम्हें अच्छा नहीं कहते। वह भी कहते हैं कि यह बच्चा तो बहुत ही  लापरवाह है। इस बच्चे की नाक  पर गुस्सा  हर वक्त रहता है। प्रधान जी पर भ्रकुटी-चढ़ा कर बोला आप सारा दिन क्या एक दूसरे के बारे में कौन क्या कहता है, यह सुनने जाते हो। गांव के प्रधान जी का काम होता है गांव के मसले सुलझाना।  मेरे घर का मसला सुलझाने की  आप को कोई जरुरत नहीं। लाखन रघु की बात काट कर बोला देखो रघु बड़ों से इस तरह पेश आना ठीक नहीं होता। वह लाखन से गुस्सा होकर बोला। रघु बोला तुम तो उसकी ही पैरवी करोगे वह तुम्हारी तारीफ जो कर रहे हैं। तुम्हें तो मेरे बारे में इस तरह सुनना अच्छा लगता है।

वह अपने दोस्त से नाराज़ हो गया था। स्कूल की परीक्षा आने वाली थी। रघु तो पढ़ाई करता नहीं था। वह  जब शाम को घर आया  तो उदास था। उसी दिन पढ़ाई किया करता था जब परीक्षा नज़दीक आती थी। आज भी जब शाम को घर आया तो उसने सारी भड़ास अपने पिता पर निकाली बोला आप मेरे बारे में  गांव के प्रधान जी को क्या क्या बोलते रहते हो?  अपने बेटे को गुस्सा होते हुए देख कर भी  वे कुछ नहीं बोले चुप रहे।

वे दोनों दोस्त कभी लड़ते कभी एक हो जाते। परीक्षा के समय में रघु को लाखन कभी नकल नहीं कराता था। उसने रघु को साफ शब्दों में कह दिया था कि तुम मेरे सच्चे दोस्त हो। तुम्हें पास होना है तो मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊंगा। मैं नहीं चाहता कि जिंदगी के सफर में मेरा दोस्त किसी से पीछे रह जाए। इस  परीक्षा का सामना तो तुम्हें खुद ही करना होगा। यह एक कोरा सत्य है दोस्त मैं तुम्हारी झूठी तारीफ नहीं करना चाहता। जीवन में अपने दोस्त को कभी भी गुमराह नहीं करना चाहिए। मैं तुम्हारे अवगुणों को आज उजागर कर रहा हूं।  मैं तुम्हें परीक्षा मैं किसी भी हाल में धोखा करते नहीं देख सकता। अपनी मेहनत के बल से तुम परीक्षा में निकलते हो तो मुझसे ज्यादा खुश भी और कोई नहीं होगा। मैं तुम्हारा सच्चा दोस्त हूं।

सच्चा दोस्त वह होता है जो कि अपने मित्र के गुणों को बताएं और उसके दोषों को  भी मिटाने में उसकी मदद करे। झूठी प्रशंसा करने वाले तो बहुत मिलते हैं दोस्त। झूठी प्रशंसा करके मैं तुम्हारा दिल दुखाना नहीं चाहता। तुम एक बार फिर से छटी की परीक्षा के लिए तैयारी करो। लाखन को अपने दोस्त के शब्द नश्तर की तरह चुभ रहे थे।  रघु सोच रहा था कि वह भी उसे नकल  नहीं करवाएगा। कोई बात नहीं इस को मैं सच्चा दोस्त समझता था लेकिन यह भी फरेबी निकला। रघु ने अपने दोस्त लाखन से कुछ नहीं कहा। चुप रहा।

घर में आया तो उसके मां-बाप ने उसे कहा बेटा तुम उदास क्यों हो? वह बोला  मां बापू आज परीक्षा की तैयारी करके नहीं गया था पेपर अच्छा नहीं हुआ। उसके पिता बोले बेटा कोई बात नहीं पेपर ठीक नहीं हुआ तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं। फिर दे देना। आज तुम्हारे दोस्त के  अनाथालय के अधिकारी मिले थे वह कह रहे थे  कि यह बच्चा तो इस बार कक्षा में प्रथम आएगा। सारी सारी रात पढाई करता है। बेटा तुम्हें तो उससे ज्यादा सुख सुविधा मिलती है। उसको देखो वह भी तो तुम्हारे साथ पढ़ता है। तुम भी उसके जैसा क्यों नहीं बन जाते?  उसके सिर पर तो मां बाप का साया  भी नहीं है।  हमारे संस्कार में क्या कमी रही गई। आज मेरे दोस्त ने भी मुझे परीक्षा में कुछ नहीं बताया। उसके पिता बोले बेटा तुम्हारे दोस्त ने तुम्हें ठीक सीख दी है। कभी नकल मत करो। वही तो तुम्हारा सच्चे अर्थों में सच्चा दोस्त है। झूठी प्रशंसा तो सब कर देते हैं। सच्चा दोस्त  तो वह होता है जो अपने दोस्त के अवगुणों को  उससे कभी नहीं छुपाता। हम भी तुम्हें यह कहते हैं परंतु तुम्हारे तू पल्ले कुछ  पड़ता ही नहीं। कोई बात नहीं फिर से परीक्षा दे देना। उसने अपने मन की भड़ास अपने मन में ही रहने दी। आज उसे अपने माता-पिता और अपना दोस्त दुश्मन नजर आ रहे थे। जब देखो   मेरे दोस्त की तो सब  हर दम प्रशंसा करते रहते हैं। मेरी तो कोई प्रशंसा नहीं करता। अच्छा ही होता कि मैं इस घर को सदा के लिए छोड़ कर चला जाऊं। नहीं नहीं मैं क्यों घर से जाऊं? मैं अपने दोस्त को ही सबक सिखाऊंगा।

एक दिन जब दोनों दोस्त  स्कूल को जा रहे थे तो उन्हें स्कूल को नदी पार करके जाना पड़ता था। दोनों बेर खाते खाते जाते थे। उसने अपने दोस्त को कहा कि आज तो ऐसे भी 11:00 बजे स्कूल पहुँचना है। सांस्कृतिक कार्यक्रम है। रघु ने अपने दोस्त को कहा बेर खाते हैं। लाखन पेड़ पर चढ़ गया। वह मीठे मीठे बेर अपने दोस्त को फेंकने लगा। अचानक  बेरी के पेड़ का तना टूट गया। उसका हाथ छूट गया। वह  दूसरी बेरी  के पेड़ से   काफी देर लटका  रहा। वह बोला मेरे दोस्त रघु रघु बचाओ।  रघु नें सोचा  आज अच्छा मौका है  अपने दोस्त से बदला लेने का। बोला मेरे हाथ को कस कर पकड़े रखो। उसने उसका हाथ पहले पकड़ा फिर अचानक उसने उसका हाथ छोड़ दिया। उसका दोस्त ना जाने कंहा नीचे गिर गया था। रघु की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। यह मैंने क्या कर दिया? अपने प्यारे दोस्त को मार दिया। हे भगवान! अब क्या करूं? उसे उसके दोस्त की आवाज नहीं सुनाई दी। उस दिन उसने सोचा आज मैं भी घर नहीं जाऊंगा। मैं आज अगर घर चला गया तो सब मेरे दोस्त को ढूंढने में जुट जाएंगे। घर में दोनों दोस्त घर नहीं पहुंचे तो रघु के माता-पिता को बहुत ही चिंता हुई। उन्होंनें पुलिस में रिपोर्ट कर दी।  पुलिस वालों नें चप्पा चप्पा छान मारा लेकिन उन्हें लाखन का कोई सुराग नहीं मिला। दूसरे दिन लंगड़ाता हुआ रघु घर आ गया। रघु बोला कि  लाखन बेर निकालनें बेरी के पेड़ पर चढ़ गया था। मैंने अपने दोस्त को पेड़ से गिरते देखा। वह बेरी के पेड़ से निचे नदी में गिर गया था।। उसको गिरता देख मैं जोर जोर से रोनें लगा। उस जंगल में मेरी पुकार किसी नें नहीं सुनी। मैं भी बेहोश हो गया था। सुबह जब होश आई तो लंगडाता हुआ घर  पहुंचा। अनाथालय वालों ने  और पुलिस वालों ने सब जगह ढूंडा मगर कहीं भी उसका कुछ पता नही चल पाया। जो भी लाखन के अनाथालय आता उसकी प्रशंसा करता नहीं  थमता था। इतने होनहार बच्चे को न जानें किस की नजर लग गई। काफी दिनों तक रघु भी स्कूल नहीं जा पाया।

रघु ने घर में किसी को कुछ भी नहीं  बताया था के उसने ही अपने दोस्त को धक्का दिया।  कहते हैं कि जाको राखे साइयां मार सके न कोय। जिसको भगवान नें बचाना होता है उसका तो कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। लाखन के साथ भी ऐसा ही हुआ। उस दिन नदी में किसी को पानी में तैरते हुए कुछ मछुआरों नें देखा। उन्होंने देखा कि  एक बच्चा पानी में डूबता हुआ दूसरे छोर की ओर आ रहा था। छू कर देखा उसकी नब्ज़ धीरे धीरे चल रही थी। वह बच्चा तो जिंदा है।  न जानें यह किसका बच्चा  है। वहां पर दूसरे कस्बे से लोग अक्सर  घूमने आते  जाते थे। उस दिन भी बहुत से पर्यटक घुमनें के लिए शहर से आए हुए थे। एक व्यक्ति की जान खतरे में है आपस में  मछुआरे कह रहे थे। कुछ घंटे बाद वह बच्चा होश में आ चुका था। उन्होंने उससे पूछा कि तुम कौन हो? उसे कुछ भी नहीं मालूम था। शायद ऊपर से गिरने के कारण उस की यादाश्त चली गईं थी। उन में से  एक घुमनें आए हुए सैलानी ने कहा कि देखो मछुआरे भाई इस बच्चे को मुझे दे दो। मैं इसको अपना बच्चा  समझ कर इसका  ईलाज करवाऊंगा। उसे पाल पोस कर बड़ा आदमी बनाऊंगा।

हमारे कोई संतान नहीं है। वह सैलानी दंपति उसे अपनें साथ शहर ले गया।

 आज इस घटना को छः वर्ष गुज़र गए थे। उन्होंने उसका नाम श्याम रखा। श्याम और बच्चों की तरह वह भी  स्कूल जाता। वह पढ़ने में बहुत होशियार था उसने 10वीं परीक्षा पास कर ली। उन्होंने उसे अपने बच्चे जैसा प्यार दिया। उस को वह पिता कहनें लग गया था। उन्होनें  अपनी दुकान का काम उसे संभाल दिया था। वह  जब अपनी मां बापू की सेवा करता  सब लोग उसे देखते रह जाते। रघु भी दसवीं कक्षा पास कर चुका था। उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिली। उसके पिता कहते बेटा तुम्हारा दोस्त तुम्हें सच्ची शिक्षा देता था। तुम जब ज़रा सा अपने दोस्त की बातों पर गौर करते तो तुम भी अच्छे बन सकते थे। आज उसे अपने दोस्त की बहुत याद आ रही थी। वह रोज़ भगवान से दुआ करता था कि हे! भगवान मेरा दोस्त मरा ना हो। काश  वह  जिंदा हो मैं उसके सामने हाथ जोड़कर माफी मांग लूँगा। मैंने तो गुस्से में यह कदम उठाया था। उस जैसा दोस्त मुझे आज तक नहीं मिला। वह मुझे ठीक ही कहता था हमें व्यक्ति के अवगुण कभी नहीं छुपाने चाहिए। मैं उसकी बातों से नाराज़ हो जाता था। उसकी बातों में सत्य की झलक थी

आज कहीं जाकर मेरी आँखें खुली है। आज यह एहसास होने पर मुझे अपने दोस्त की कमी बहुत ही महसूस हो रही है। किसी नें ठीक ही कहा है जब हमारे सामने अपने मौजूद होते हैं हम उन की कद्र नहीं करते। उनके जानें के बाद उनकी कमी बहुत खलती। है  झूठी प्रशंसा करने वाले  तो मुझे इतने मिले लेकिन अपने दोस्त जैसा मैं आज तक प्राप्त नहीं कर सका।

वह अपने दोस्त के लिए हरदम आहें भरता रहता था। उस हादसे के  बाद उसके पिता ने उसे कभी ऊँची आवाज़ में बोलते नहीं देखा। उसके पिता जब बुलाते तुरंत आ जाता। उसे नहीं पता था कि कौन सा दुःख है जो उसे अंदर ही अंदर खोखला करता जा रहा है? एक दिन उसके पिता उसे एक डॉक्टर के पास लेकर गए डॉक्टर ने उसे देखकर कहा कि उसे बदलाव की जरूरत है।

आप उसे किसी ऐसी जगह पर ले जाएं जहां उसको सुकून पहुंचे। तुम उसको किसी पर्वतीय स्थल पर ले जाकर जा सकते हो। उसके पिता ने कहा चलो इसकी नानी के पास मसूरी चलते हैं

वह अपने माता-पिता के साथ मसूरी पहुंच गया था। दिन के समय उसनें अपने पिता को कहा मैं बाहर घूमने जाऊँगा। उसके पिता बोले बेटा घर जल्दी आ जाना  देर से आओगे तो हमें  सूचित कर देना। वह अपने माता-पिता को  अलविदा कहकर अकेला ही घूमने निकल पड़ा। घूमते घूमते वह अपनी नानी के घर से इतनी दूर निकल गया। वहां पर एक छोटा सा रैस्टोरैन्ट देख कर रुक गया। वह  इतना साफ सुथरा  था। बालकनी हाल और पांच छह कमरे। दूर से वह देखने में एक आलीशान महल की तरह दिखता था। अंदर जाकर उसने देखा उसमें 6 कमरे थे। उसमें बाहर से आने जाने वाले लोगों के लिए भी रहने के लिए जगह  थी। उसे वह जगह बहुत ही पसंद आई।  वहीं पर शाम को  उसके रैस्टोरैन्ट के मालिक के बेटे से उसका परिचय हुआ। रघु नें उस से पूछा क्या यहां कमरा किराए पर मिल सकता है? जगदीश बोले  यह हमारा होटल है। होटल के मालिक के लड़के को आते देख कर अपने आप को रोक नहीं सका। उसके पास जाकर बोला मुझसे दोस्ती करोगे। श्याम भी उसको देखकर मुस्कुराया बोला क्यों नहीं तुम मेरे दोस्त बन सकते हो। उसके दोस्त  लाखन से श्याम की शक्ल बहुत मिलती थी।

रघु की आंखों में आँसू देख कर वह बोला तुम क्यों रो रहे हो। रघु बोला तुम्हारा चेहरा देख कर मुझे अपने दोस्त की याद आ गई। मुझे अपना दोस्त अपनी जान से भी प्यारा था। कुछ ऐसा हादसा हुआ जिसमें से मैनें अपने सबसे प्यारे दोस्त को खो दिया। हम यहां अपनी मां पिता के साथ घुमाएं आए हैं।  यहां हम अपनी नानी के पास ठहरे हैं। घर में मुझे घुटन हो रही थी इसलिए सैर करने अकेला निकल पड़ा। रघु बोला क्या मैं अपने माता पिता को फोन कर सकता हू? श्याम बोला क्यों नहीं। उसे आज अपने दोस्त की याद आ रही थी। वह अपने मन में सोचने लगा एक दिन जब स्कूल में उसे गणित के सवाल नहीं आ रहे थे  तो उसका दोस्त उस से बोला एक बार गलत हो गया तो क्या निराश मत हो।  बार बार के अभ्यास  से तुम्हारी समस्या जड़ से समाप्त हो जाएगी।  उसकी बात पत्थर की मान कर हर रोज़ अभ्यास करने लगा।  मन में निश्चय कर लिया जब तक उसे  नहीं आएगा वह हिम्मत नहीं हारेगा। फिर भी नहीं आएगा तो कोई बात नहीं। मैं नकल कर के पास नहीं होना चाहता। मेरा दोस्त भी मुझे ऐसा ही कहता था। आज  नकल करके तो पास हो जाओगे जिंदगी के सफर में गणित पढ़ाने तुम्हें कोई नही आएगा। उस दिन के बाद गणित में ज्यादा मेहनत करनी  शुरू कर दी। एक दिन गणित में इतना माहिर हो गया चाहे कितना भी बड़ा रुप यों का मामला हो चुटकी में हल कर लेता हूं। आज मेरा दोस्त मेरे सामने होता तो कितना खुश होता। काश  जहां भी हो ठीक हो। मैं यही दुआ करता हूं।

शाम के पिता अरविन्द बोले बेटा ऐसे भी मुझे अपने होटल में एक सहायक  की जरूरत है। इसका भी कोई दोस्त नहीं है। आज से तुम दोनों दोस्त हो। तुम अपने माता पिता को कह देना कि मुझे नौकरी मिल गई है। तुम यहीं पर लग्न से काम करना शुरु  करो।  रघु खुश होकर बोला ठीक है। आज अपने माता-पिता के पास अपनी नानी के पास पहुंचा तो बहुत खुश था। उसने अपनी नानी को सारी खबर सुनाई। मुझे यहाँ नौकरी मिल गई है। उसके माता-पिता  बहुत ही खुश हो गए। उसकी मेहनत रंग ले आई। उसने होटल के मालिक के बारे में सब कुछ अपने माता पिता को बताया। उसके माता-पिता मसूरी से वापस गांव लौट चुके थे। अपने बेटे को खुश देखकर वे  भी बहुत ही खुश हुए। अपने बेटे में आए परिवर्तन को देखकर उन्हें उसे वहीं रहने के लिए आज्ञा दे दी। दोनों दोस्त एक बार फिर मिल गए थे। लेकिन वे एक-दूसरे से बिल्कुल अजनबी थे।

एक दिन  राम के पिता के दोस्त का शादी का समारोह था। उन्होंने अपने बेटे श्याम को कहा कि तुम रघु को भी शाम के समय पार्टी में  ले आ जाना। श्याम बोला ठीक है पिताजी।  उसके पिता बोले तुम दोनों इकट्ठे आ जाना। रास्ता थोड़ा जंगल वाला है। जंगली जंतुओं का खतरा होता है अगर गाड़ी से नीचे उतरते वक्त लाठी अपनें साथ रखना।

मौसम सुहावना देख कर दोनों दोस्त  गाड़ी से नीचे उतर गए। वे  जंगल  के रास्ते से  गाड़ी को  एक ओर खड़े कर के पैदल चलने लगे। श्याम बोला यहां से तो एक किलोमीटर का ही फासला है। गाड़ी को यहां पर ही छोड़ कर पैदल ही चलते हैं। बातों बातों में रास्ता कट जाएगा। श्याम बोला  तुम जैसा दोस्त पा  कर मैं धन्य हो गया। यहां पर अकेला ही इस रेस्तरां को सम्भाल  रहा था।

अचानक रघु को अपने दोस्त की याद आई। एक बेरी का पेड़ देखकर वह अपने दोस्त की कहानी अपने दोस्त श्याम को सुनाने लगा। बचपन में मेरा एक पक्का दोस्त दोस्त था उसे भी  बेर बहुत ही पसंद थे और मुझे भी। हम दोनों स्कूल को इकट्ठे जाते थे। हमें जंगल पार कर स्कूल जाना पड़ता था। चलते चलते एक बेरी का पेड़ दिखाई दिया। दोनों का मन बेर खाने को मचलनें लगा। मैंने उससे कहा की बेरी  के पेड़ पर चढ़ते हैं। वह मुझसे बहुत ही प्यार करता था। वह कहने लगा तू रहने दे मैं पेड़ पर चढ़ता हूं।  हम दोनों पहले मैं पहले मैं कह ही रहे थे कि मेरा दोस्त चकमा दे कर पेड़ पर चढ़कर गया। श्याम बोला अभी  अपनी कहानी को यहीं विश्राम दे। वह बोला कि तेरा बेर खाने को दिल कर रहा है। ठहर में पेड़ पर चढ़ता हूं।  यह सुन कर श्याम बोला मुझे भी पेड़ पर चढ़ना आता है। यह मुझे भी पता नहीं कि कैसे आता है? मैं बेरी के पेड़ पर चढ़कर कर बेर निकालता हूं। रघु बोला नहीं दोस्त एक बार मैं अपने दोस्त को खो चुका हूं नहीं नहीं। तुझे बेर खाने हैं तो मैं पेड़ पर चढ़ता हूं। वह देखते-देखते पेड़ पर चढ़ गया। अचानक रघु  का हाथ पेड़ की शाखा से छूट गया। वह गिरने ही वाला था तभी श्याम ने उसे थाम लिया। श्याम उसे बचाते बचाते नीचे गिर गया था। उसका सिर पत्थर से टकरा गया था। रघु रोए जा रहा था। उसने जल्दी से श्याम के पिता अरविन्द जी को फोन कर दिया था। श्याम के पिता बोले बेटा इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं है। उसनें सारी कहानी सच सच श्याम के पिता को सुना दी। कैसे मैंने अपने दोस्त को नीचे गिरा कर किया था।वह मेरा बचपना था। वह अनाथालय मे पला बढा। इसका अनाथालय के सिवा कोई अपना नहीं.है।आज भी  वह घटना मेरे सामने घट रही थी। आज मैं अपने दोस्त को कुछ नहीं होने दूँगा।  उसके पिता   उसे जल्दी से अस्पताल ले कर गए।  रघु भी अस्पताल अपने दोस्त के साथ गया। वह भगवान के पास हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा हे! भगवान  मेरे दोस्त को आज कुछ मत होने देना। मेरा खून ले लीजिए। डॉक्टर साहब जितना भी मेरा खून है वह सब ले लो लेकिन मेरे दोस्त को बचा लो। मैं अपने दोस्त  को कुछ  होते नहीं देख सकता। डॉक्टरों को उसकी सारी कहानी पता चल गई थी।

जब  श्याम को होश आया वह बेहोशी से उठा तो उसने अपने दोस्त को पुकारा रघु रघु। आज  उसके दोस्त नें उसे मरने से बचा लिया था। मैंने तो अपने दोस्त लाखन को मरने दिया था।  उसके मुंह से रघु सुनकर  हैरान हो गया। मैं इस गुनाह को और नहीं  उठा सकता। रघु रघु। लाखन  उसे हक्का-बक्का  हो  कर देख रहा  था। उसके मुंह से रघु सुनकर वह बोला। मैं तेरा दोस्त लाखन। आज उसकी मन की मुराद पूरी हो गई थी। उसका दोस्त जिंदा था। वह आज इतना खुश था जैसे उसे स्वर्ग का ख़ज़ाना मिल गया हो। उसने सारी कहानी श्याम के माता पिता को सुनाई और कहा यही तो मेरा बिछड़ा यार है।  इसकी याददाश्त चली गयी थी। श्याम के पिता बोले एक बार हम गांव में घुमनें गए थे तो कुछ मछुआरों को यह बच्चा-मिला था। वह मौत के मुंह में था।। मैनें मछुआरों को कहा कि आप इस बच्चे को हमें सौंप दो। मैं इस को अपना  बच्चा समझ कर पालूंगा। मेरे कोई सन्तान नहीं है। मेरे पास भगवान का दिया सब कुछ है। उस दिन मछुआरों ने उस बच्चे को हमारे हवाले कर दिया। हम विदेश से सदा के लिए  आ कर हम  छोटे से कस्बे में आ कर रहने लगे।  हम नें उस से नाम पूछा तो इसने हमें कुछ भी नहीं बताया। हम नें उस दिन के बाद उस से कभी कुछ नहीं पूछा। उसकी यादाश्त चली गई थी।आज तुम्हारे मुख से लाखन नाम सुन कर चौंके। हम श्याम को पा कर बहुत ही खुश थे। साथ में चिंता भी होती थी कि अगर किसी दिन इसे कोई लेनें आ गया तो हम कैसे जाएंगे। अरविन्द की पत्नी  रूपाली  बहुत ही होशियार थी। वह बोली हमारे भाग्य में अगर इस बच्चे का साथ लिखा होगा  तो कोई भी इसे नहीं ले जाएगा। अस्पताल में लाखन रघु रघु कह रहा था। अपनें दोस्त को सामने देख कर बोला तुम मुझे छोड़ कर कहां चले गए थे। रघु बोला तुम अपनें लब पर मेरा नाम कभी मत लेना। मैनें ही उस दिन  बेरी के पेड़ से   तुम्हारा हाथ छोड़ दिया था। मैं चाहता था तुम मेरे सामनें कभी मत आओ। मैं तुम्हारी सब से  प्रशंसा सुन सुन कर थक चुका था। हर कोई तुम्हारी तारीफ के पुल बांध रहा था मेरे मन पर छुरियां चुभ रही थी। घर में जानें पर जब पिता जी नें तुम्हारी प्रशंसा कि तो मेरे सब्र का बांध टूट गया। मैनें तुम्हें मारने का प्रयत्न  किया। तुम्हे धक्का देने के बाद मैं एक रात भी चैन से सो नहीं पाया। यार वह मेरा बचपना था। मेरी छोटी सी भूल  से क्या से क्या हो गया? हर वक्त भगवान से प्रार्थना करता रहा हे भगवान! मेरे दोस्त को बचा लेना। इससे पहले मैनें कभी भी भगवान को याद नहीं किया था। तुम्हारी नसीहत के दम पर जीवन में संघर्ष करता रहा। उस दिन के बाद कभी भी नकल नहीं की। गंभीर बन गया। आज तुम्हें ज़िन्दा देख कर मुझे ऐसा महसूस हो रहा है मैनें सारे जहां की ख़ुशियाँ पा ली हो।

दोस्त अलविदा मुझ से नफरत मत करना। लाखन बोला मैं तुझ से कभी नाराज़ नहीं हूं। आज पिता जी नें मुझे बताया कि तुम्हारे दोस्त नें खून दे कर तुम्हे बचाया। वह तब तक तुम्हारे पास बैठा रहा जब तक तुझे होश नहीं आया। मेरे दोस्त एक बार फिर से मेरे गले लग जा। अब तो हमारी  दोस्ती का बंधन बहुत ही मजबूत हो गया है। यह किसी के तोड़ने से कभी नहीं टूट सकता।  रघु अपने साथ अपने दोस्त को गांव ले कर आया था। अनाथालय जा कर श्याम के पिता नें उसे अनाथालय वालों से उसे गोद ले कर सदा सदा के लिए अपना बना लिया। श्याम के पिता नें रघु को माफ कर दिया था क्योंकि उस की वजह से ही श्याम उन का बेटा बन पाया था। दोनों दोस्त फिर से एक हो गए।

1 thought on “छोटी सी भूल”

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