दोस्ती का अनुभव

दो दोस्त थे पंकज और विवेक।  आस पास के कस्बे में ही रहा करते थे। वे दोनों पक्के दोस्त थे। उनका घर  एक दूसरे के घर के समीप ही था। विवेक सुशील स्वभाव का था और पंकज थोड़ा चंचल स्वभाव का था। विवेक भोला भाला था। स्कूल में चुप चुप रहता था। उसके पापा ने ही उसे पाला था। उसके मां नहीं थी। उसके पिता नें  उस मां-बाप दोनों का प्यार दिया था। स्कूल में सभी बच्चे मौज मस्ती किया करते थे। आज भी कक्षा में बच्चे शोर करे थे। आज ही अध्यापिका ने सब बच्चों को हिदायत दी थी कि अगर तुम पढ़ाई नहीं करोगे तो अगली कक्षा में नहीं पहुंच पाओगे। सभी बच्चे पिछली कक्षा में ही रह जाएंगे।

बच्चों को अंग्रेजी की अध्यापिका से डर लगता था। मैडम ने सभी बच्चों की पोशाक चेक की।कुछ  बच्चों की ड्रेस गंदी और मैली थी। उन सभी को कक्षा अध्यापिका नें कहा कि सोमवार को सभी बच्चों का बैग  और स्कूल की ड्रेस को चेक किया जाएगा। कुछ बच्चे ध्यान से सुन रहे थे। कुछ चुपचाप बैठ कर मस्ती कर रहे थे। उन्होंने कुछ नहीं सुना। कुछ बच्चे पिछले बेंच पर बैठे हुए मुस्कुरा रहे थे। कुछ बच्चे  कक्षा में एक दूसरे की उपस्थिति लगा देते थे और पिछले दरवाजे से एक-एक करके भाग जाते थे। अध्यापकों को पता भी नहीं चलता था।

अंग्रेजी की अध्यापिका एक एक बच्चे के पास जाकर उनकी उपस्थिति लेती थी। उसे पता चल जाता था कि कौन-कौन बच्चा नहीं आया है? और किस बच्चे ने दूसरे की उपस्थिति लगाई है। वह मैडम की आंखों में  चढ़ जाता था। उसकी तो मानो खैर ही नहीं होती थी। सभी बच्चे खुशी मैडम से डरते थे। कक्षा में कभी-कभी ड्राइंग की कॉपी लेकर उल्टी-सीधी तस्वीरें बनाया करते थे। पढ़ाई में तो कुछ बच्चों का मन ही नहीं लगता था।

सोमवार को पंकज का फोन आया जल्दी से तैयार हो जाओ। विवेक बोला मैं  गांव से सीधा नानी के घर से आ रहा हूं। पंकज बोला तुम्हें याद है आज मैडम सब की ड्रेस और बस्ता चैक करेगी। विवेक ने यह सुना वह पंकज को बोला तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? पंकज बोला मैडम जब कक्षा में  बता रही थी तुम कहां थे।? विवेक बोला मैंने तो सुना ही नहीं था। पंकज बोला जल्दी स्कूल चलो देर हो रही है। वह बोला यार मेरा बैग तो गंदा है।। आज तो मुझे मैडम छोड़ेगी नहीं। आज मुझे अपना बैग दे दे। तुम्हारे पास दो बैग है। पंकज बोला मैं कि तुम्हें अपना बैग  क्यों दे दूं? तुझे जब पता था तो तूने बैग साफ कर के क्यों नहीं रखा। विवेक बोला मुझे पता ही नहीं था। पंकज बोला इसमें मेरा क्या कसूर है? मैडम ने सभी बच्चों से कहा था। तुम्हे अध्यापिका की बात सुननी चाहिए थी। मैं तुम्हें अपना बैग कदापि नहीं दूंगा। विवेक उस दिन स्कूल ही नहीं गया। घर में पिता से अलग मार पड़ेगी। वह सारा दिन इधर-उधर घूमता रहा। शाम को उसके पिता को पंकज ने शिकायत लगा दी थी आज विवेक स्कूल ही  नहीं आया था। विवेक के पिता ने उसकी खूब पिटाई की। विवेक को अपने दोस्त पर बहुत ही गुस्सा आया। उसने उस समय तो अपने सारा गुस्सा पी लिया। वह पंकज से कटा कटा सा रहने लगा। पंकज को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने विवेक को कहा तू मेरा दोस्त है मुझे माफ कर दे यार मैंने तेरे साथ बुरा व्यवहार किया। विवेक ने उसे माफ नहीं किया था। वह अंदर ही अंदर उस दिन से उससे नफरत करता था। वह उसे कभी जाहिर ही नहीं होने देता था कि वह उस से नाराज है। इस बात को काफी महीने गुजर गए थे।

एक दिन अध्यापक वर्ग ऑफिस कार्यालय में अपना कार्य करने में मस्त थे। अध्यापिका ने सब बच्चों को कहा कि तुम सभी बच्चे खेल के मैदान में खेलने चले जाओ। सब बच्चे स्कूल के  मैदान में खेलने में मस्त हो गए। विवेक ने देखा बच्चे खेलने में मस्त है। आज अच्छा मौका है। सभी बच्चे खेल के मैदान में मस्ती में झूम रहे थे। विवेक दौड़ा दौड़ा आया कक्षा में  आ के चुपचाप पंकज का बस्ता उठाया और उस ने पंकज के बस्ते को पानी की टंकी के अंदर फेंक दिया। किताबों के साथ पानी की टंकी में फैंक दिया। अचानक भाग कर आ गया और चुपचाप अपनें दोस्तों के साथ खेलने में मस्त हो गया। खेल समाप्त होनें के बाद सभी बच्चे अपनी कक्षा में चले गए। शनिवार को  खेल के पश्चात बच्चों का सांस्कृतिक था। सभी बच्चे सांस्कृतिक कार्य में भाग ले रहे थे एक घंटे तक कार्यक्रम चलता रहा। कार्यक्रम के पश्चात पंकज नें कक्षा में अपना बस्ता ढूंढा लेकिन उसका बैग नहीं मिला। सभी बच्चों नें मैडम को शिकायत कर दी। मैडम जी पंकज का बैग नहीं मिल रहा है। उसमें किताबें भी थीं। मैडम ने चपरासी को सारी जगह भेजा मगर उसे कहीं भी पंकज का बैग नहीं मिला। अध्यापिका नें बच्चों को एक घंटा स्कूल में ही रखा। किसी को भी घर नहीं भेजा। मैडम बोली जब तक बैग नहीं मिलेगा वह किसी को भी घर नहीं जाने देगी। सच सच बताओ यह हरकतें किस की है? विवेक भोला भाला  मासूम सा बना रहा। उसने किसी को भी जाहिर होनें नही दिया कि उसने ही बदला लेनें के लिए पानी की टंकी के अंदर बैग गिरा दिया है। उसे डर भी लग रहा था कि अगर मैडम को पता चल गया तो उसकी बहुत पिटाई होगी।

विवेक उस दिन की बात को भूला नहीं था। आज  पंकज के साथ बदला ले कर वह बहुत ही खुश हो गया था। इस बात को 15 दिन बीत गए थे। कुछ किताबे मैडम ने पंकज को दिला दी थी। कुछ किताबें  उसके पिता ने उसे लाकर दे दी थी। पंकज ने कक्षा अध्यापिका को कहा की मैडमजी विवेक ने ही मेरा बैग छिपा लिया होगा। उसनें ही कहीं मेरा बैग नीचे फेंक दिया होगा।

एक दिन वह मुझ से बैग मांग रहा था। मैंने अपना बैग उस दिन उसे नहीं दिया था इसलिए वह मुझसे बदला लेना चाहता था। मैंडम बोली जब तक  सबूत ना हो तब तक हमें किसी पर भी झूठा इल्जाम नहीं लगाना चाहिए। पंकज विवेक से खफा खफा रहने लगा। विवेक ने उसे जाहिर ही नहीं होनें दिया कि यह हरकत उसकी थी। उसके साथ अपनी दोस्ती कायम रखी। उस पर कभी गुस्सा नहीं हुआ। उसके इस व्यवहार को देखकर नहीं लगता था कि विवेक ने उसका बैग कहीं छिपाया होगा। पंकज नें भी अपने दिमाग से यह बात निकाल दी।

एक दिन मैडम पानी की टंकी की सफाई करवा रही थी। उस टांकी का पानी बच्चे पीनें के लिए इस्तेमाल नहीं करते थे। वह पानी शौचालय में डाला जाता था। टांकी साफ करने वाले को कुछ दिखाई दिया। वह जल्दी से कक्षा की मैडम को बुलाने  चला गया। विवेक ने चपरासी को भागते देख लिया था। विवेक पानी की टंकी के पास दौड़ लगा कर गया। उसने जल्दी से अपनी पैंट उतारी और जल्दी से पानी के अंदर झांका। उस दिन जल्दबाजी में बैग के साथ उसकी चाबी भी पानी की टांकी में  गिर गई थी। उसने जल्दी से अन्दर जा कर अपनी चाबी उठा ली। वह जल्दी से वापिस आ कर बाथरूम में घुस गया। उसने नल के पास रगड़ कर अपने आप को साफ किया। उसकी चाबी में जंग भी लग गया था। मैडम को लेकर चपरासी आ गया था। चपरासी आ कर मैडम से बोला   इस टंकी में कुछ है अध्यापिका बोली ठीक ढंग से देखो उस में क्या है? उसमें से दुर्गंध आ रही थी। मैडम से चपरासी बोला पहचान लिया यह दुर्गन्ध तो पानी में गिरे बैग से दुर्गंध आ रही थी। मैडम बोली तो यह माजरा है। यह बैग तो पंकज का होगा। उन्होंनें देखा किताबें भी सभी गल चुकी थी। मैडम को पता चल चुका था कि यह शैतानी साथ पढ़ने वाले बच्चों की है। उन्होंने देखा वहां पर  कुछ भी ऐसा सुराग नहीं था जिससे किसी को गुनाहगार ठहराया जा सके।

स्कूल की छुट्टी की घंटी लग चुकी थी। पंकज को तभी टंकी के पास जाते समय रास्ते में जंग लगी हुई चाबी दिखाई दी। भागने की वजह से विवेक की चाबी टांकी के पास ही गिर गई थी। उसने वह चाबी उठा ली। उसने देखा यह चाबी तो उसके दोस्त विवेक की थी। उसने सोचा मैडम उसे क्या सबक सिखाएगी? वह ही अपनें तरीके से विवेक से बदला निकाल लेगा। इसने  सच में ही मेरा बैग पानी की टंकी में डाला था। आज तो मेरे हाथ सबूत भी लग गया। वह मुझ से दोस्ती निभानें का नाटक करता रहा। मैं भी उसे कभी एहसास नहीं होने दूंगा कि मुझे पता चल गया है कि किसने पानी की टंकी में उसका बैग डाला था। आज तो सच्चाई सबके सामने आ ही जाती। मैडम तो उसे थोड़ी देर ही बेंच पर खड़ा रखती। मैं तो उसको ऐसी सजा दूंगा कि उसको पता चलेगा कि किसी दोस्त से पाला पड़ा है।

स्कूल में पिकनिक का प्रोग्राम बड़े जोरों शोरों से चल रहा था। बच्चे पिकनिक मनानें स्कूल से बाहर जा रहे थे। 3 दिन का टूर था। सभी दोस्त पहली बार घर से बाहर जा रहे थे। विवेक और पंकज  भी दोनों एक साथ बैठकर घुल मिलकर एक दूसरे को चुटकला सुना कर हंस रहे थे। कक्षा के सारे बच्चे उन दोनों के चुटकुले सुनकर आनंद उठा रहे थे। पिकनिक के लिए वे सभी के सभी अमृतसर गए थे। वहां पर एक छोटा सा गैस्ट हाउस स्कूल के अध्यापकों ने बुक करवा लिया था। सभी बच्चे पिकनिक से वापिस आकर गेस्टहाउस में अपने कमरों में जाकर अगले दिन अपने घरों को प्रस्थान करने की तैयारी में लगे थे।

पंकज ने अपनी करनी को अंजाम दे दिया था। पंकज ने विवेक का  पर्स चुरा लिया था। उसने उसके वॉलेट से सारे रुपए निकाल लिए और उसका खाली वॉलेट उसकी अटैची में डाल दिया था।  विवेक के सारे रुपए चोरी कर लिए गए थे। बच्चों ने मैडम को कहा कि मैडम जी हमारे रिश्तेदार हमें लेनें आएं हैं। हम  अपनें घर स्वयं वापिस आ जाएंगे। स्कूल की गाड़ी कुछ बच्चों को वहीं छोड़ कर वापस स्कूल की ओर रवाना हो चुकी थी। पंकज ने मैडम कोे कहा था कि मेरे पापा की गाड़ी आने वाली  है। हम दोनों इकट्ठा घर चलेंगे। विवेक को कहा यार तू चिंता मत कर। विवेक ने मैडम को कहा कि मेरा घर पंकज के घर के पास है। हम दोनों इकट्ठा ही आ जाएंगे।

शाम होने को आई थी। विवेक बोला कितनी देर और लगेगी? पंकज बोला यार  मेरे पापा ने संदेश भेजा है कि तुम अकेले ही आ जाना। वे किसी कारण से गाड़ी नहीं भेज सकते। मैं देख कर आता हूं वह कहां रह गए। वह अपने दोस्त को रेस्टोरेंट में ही छोड़कर चला गया।

पंकज नें थोड़ी देर  के लिए एक कमरा ले लिया था। उसनें  अपना सामान उस कमरे में रखा। उसने अपने दोस्त विवेक को फोन किया कि मुझे आने में देरी हो जाएगी। विवेक सोचने  लगा क्या करूं? उसके सारे के सारे रुपए चोरी हो गए हैं। उसके पास तो मोबाइल भी नहीं था। पंकज तो उस दिन का बदला उससे लेना चाहता था। जब शाम हो गई तो  पंकज किराए की गाड़ी में बैठ कर अपने दोस्त को देखने आया कि वह क्या कर रहा होगा? आज उसे पता लग गया होगा कि किसी की आंखों में धूल झोंकने का परिणाम कितना बुरा होता है? वह अपने दोस्त के पास आकर बोला मैं तुझ से बदला लेना चाहता था।  तुमने ही मेरा बैग पानी में डाला था। उस दिन जिस दिन टंकी की सफाई की गई उस दिन मुझे टंकी के पास तुम्हारे घर की चाबी मिली। मैंने भी दोस्ती को बरकरार रखते हुए अपना बदला आज तुमसे ले लिया। देखता हूं तुम कैसे घर आते हो? यह कहकर वह उसे होटल में ही उसे छोड़कर गाड़ी  दौड़ा कर आगे बढ़ गया। एक पल को विवेक की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। क्या करूं? चलो इस मौके पर घबराने से काम नहीं चलेगा अगर साहस से काम नहीं लिया तो यहां कुछ भी हो सकता है। मैं सुबह तक अपनी घड़ी को इस गैस्ट हाऊस के मालिक के पास यहां गिरवी रख दूंगा। उस से कहूंगा कि मेरे रुपए चोरी हो गए हैं।  उस घड़ी को तब तक अपनें पास रख लो जब तक मैं अपनें पापा से रुपये न मंगवाह लूं। यह सोचकर वह बाहर टहलने के लिए निकल पड़ा।

उसने देखा कि उसके दोस्त की गाड़ी तो कुछ दूर पर ही खड़ी थी। वह चुपचाप वहां जाकर देखने  का प्रयत्न करनें लगा। कुछ डाकूओं ने उसके दोस्त के सिर के ऊपर पिस्तौल तान रखी थी। उसे धमकी दे रहे थे कि इस बैग को हमारे हवाले कर दो।  उसे महसूस हुआ मेरे दोस्त के साथ कुछ बुरा होनें जा रहा है। नहीं नहीं मैं अपने दोस्त के साथ कुछ भी बुरा नहीं होनें दे सकता। ये तो मुझे गुड्डें लग रहें हैं। इस से पहले कि वे मेरे दोस्त को मार डालें मैं उस के बचाव का प्रयत्न करुंगा। विवेक गैस्टहाउस से चलते वक्त एक डंडा अपनें साथ ले कर चला था। वह जानता था कि किसी अजनबी शहर में अकेला निकलना खतरे से खाली नहीं हो सकता था। विवेक नें गाड़ी का सीसा  तोड़ डाला उस नें जोर से डंडा ऊन डाकुओं पर मारा। पंकज के सर से खून के फव्वारे छूट रहे थे। डाकू जल्दी से पंकज का बैग छोड़कर भाग गए थे। पंकज को उन डाकुओं नें खूब मारा था। विवेक ने उस डाकू का चेहरा देख भी लिया था। डाकू उसको घायल करके भाग गए थे। डंडे की चोट से पंकज भी बेहोश हो कर नीचे गिर गया थे। वे चोर भी नीचे गिर गए थे। उन में से एक चोर भागने में सफल हो गया था। विवेक नें अपनें दोस्त को गैस्टटहाउस के मालिक की मदद से अस्पताल पहुंचा दिया था। गैस्टहाउस के मालिक की मदद से  पुलिस वालों को सूचना दी।

उसकी मरहम पट्टी भी की। उसको अपनें खून की बोतल भी दी। सुबह जब  पंकज को होश आया तो वह अपने सामने अपने दोस्त को देखकर हैरान हो गया। पंकज अपनें दोस्त से बोला डाकूओं ने तो मुझे मारने की ठान ली थी। दोस्त मुझे माफ कर देना।  तुमने मेरी जान ही नहीं बचाई मालिक मुझे अस्पताल भी पहुंचाया। तुम सचमुच महान हो। मैंने तुम्हें गुस्से में ना जाने क्या क्या कह डाला। मैंने तुमसे झूठ मूठ में ही कह दिया था कि मेरे पापा आ रहे हैं। मैं तुम से बदला लेना चाहता था। दोस्त मेरा ही सारा कसूर  था। मेरी ही गल्ती थी उस दिन मुझसे तुमने बैग मांगा था मैंने घमंड में आकर तुम्हें अपना बैग नहीं दिया। वहीं से हमारा झगड़ा शुरु हुआ। हम चाहे कितनी भी लड़ाई कर लें एक दूसरे का नुकसान करने की सोच भी नहीं सकते। वापिस मुड़ते समय मैं तुम से गुस्सा था। थोड़ी देर बाद मुझे अपनी गल्ती का एहसास हुआ। मैनें सोचा हम सभी छोटी छोटी गलतियों तो सभी करते हैं। मैने कैसे तुम्हे अनजान शहर  में अकेला छोड़ दिया। यह सोच कर मैं सब कुछ भुला कर वापिस गाड़ी को ले आया। गेस्ट हाऊस आने से पहले मैं बैंक गया। वहां से रुपये निकाले और तुम्हें लेने आ ही रहा था। अपना बैग गाड़ी में डाला ही था कि तभी वहां पर डाकू आ गए। वह मुझसे मेरा बैग छीनने की कोशिश करने लगे। उसके पश्चात मुझे नहीं मालूम कि क्या हुआ? डाकुओं ने मेरी धुनाई कर डाली। पंकज बोला कि आगे से हम कभी भी झगडा नहीं  करेंगें। हम दोनों ने एक दूसरे को माफ कर दिया है।

मैडम को बच्चों ने सारी बात बता दी थी कि पंकज विनय को वहीं पर छोड़ कर आ गया था मैडम ने पंकज से पूछा कि क्या यह सच है? वह तुमसे किस बात का बदला लेना चाहता है? मैडम को बच्चों ने बताया कि पंकज हमसे कह रहा था कि विवेक नें ही पंकज का बैग पानी में डाला था। मैडम ने पंकज को पूछा कि क्या  सचमुच ही विवेक नें तुम्हारा बैग पानी में डाला था? पंकज बोला नहीं मैडम। विवेक तो मेरा पक्का दोस्त है। वह ऐसा क्यों करने लगा? पंकज के इस प्रकार कहनें पर विवेक उठकर मैडम के समीप आ गया। बोला हां मैडम जी, मैंने ही उसका बैग पानी में डूबाया था। मुझे सजा दे दीजिए।

पंकज आकर बोला मैडम जी आज मेरी आंखे खुल गई हैं। मैं भी कहीं ना कहीं गुनाहगार हूं। एक दिन विवेक ने मुझ से  बैग मांगा था उस का बैग धुला नहीं था। उसी दिन से हमारी लड़ाई शुरू हुई थी। हम कहीं ना कहीं अपने दोस्तों को नीचा दिखाना चाहते हैं। हम उनसे लड़ते हैं। उसने  इसी कारण मेरे साथ ऐसा किया। आज इसकी वजह से ही मैं जान बचाकर सुरक्षित यहां पर अपने घर पहुंचा हूं। यह नहीं होता तो शायद मैं यहां आपके सामनें मौजूद नहीं होता। उसने मुझे  डाकुओं से बचाया। अपना लहू दे कर अपनी दोस्ती का अनुभव कराया।

मैं सभी दोस्तों से कहना चाहता हूं कि दोस्तों में छोटी मोटी लड़ाई झगड़ा होती ही रहती हैं। हमें धैर्य रखकर उनकी भूल समझ कर उन्हें माफ कर देना चाहिए। हमें बदला लेने की बात सोचनी भी नहीं चाहिए। एक ना एक दिन तुम्हारा अच्छा बर्ताव उसे भी बदलने पर मजबूर कर मजबूर कर देगा। कोशिश तुम्हें ही करनी चाहिए। ऐसा अगर हर कोई समझनें लगे तो हर एक बच्चा सुधर कर महान बन जाए।

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