रोहितांश का संघर्ष

कक्षा की घंटी जैसी ही बजे राहुल ने देखा उसकी कक्षा में आज एक नया छात्र दाखिल हुआ था सभी बच्चे कक्षा में पढ़ने में मग्न थे तभी उसकी कक्षा अध्यापिका ने राहुल को कहा राहुल रोहितांश आज तुम्हारे साथ बैठेगा वह आज स्कूल में पढ़ने के लिए आया है रोहितांश के माता पिता उसके गांव में आकर बस गए थे क्योंकि जिस शहर से वह आए थे बाढ़ में उनका सारा कुछ नष्ट हो चुका था  अब वे सदा के लिए उनके गांव में आकर बस गए थे। उसके चार पांच भाई-बहन थे। उस के पिता गांव के कपड़ा विक्रेता की दुकान पर काम करते थे। वह एक छोटी सी नौकरी करते थे और ऊपर से पांच बच्चों का पालन करना  उनके लिए कितना मुश्किल था। एक छोटी सी झोपड़ी में वह रहने लग गए थे । वहीं पर पांच बच्चे और उनके माता-पिता और छोटी सी खोली में रहते थे। कभी कभी तो बच्चों को भरपेट खाने को भी नहीं मिलता था। कपड़ा विक्रेता भी उसे ज्यादा रुपए नहीं देता था। बहुत ज्यादा मेहनत करने के उपरांत जो थोड़े बहुत रुपए मिलते उसे वह अपनी पत्नी और 5 बच्चों का गुजारा कर रहा था।

रोहिताश को जब उसकी मां ने स्कूल भेजा तो उसको उसकी मां ने लालच दिया कि बेटा स्कूल में तुम्हें भरपेट खाने को मिलेगा  और तुम्हें  शिक्षा भी मिलेगी अगर तुम्हारे पिता आज पढ़े लिखे होते तो उन्हें कुछ ज्यादा अच्छा काम मिलता परंतु तुम्हारे पापा बड़ी मुश्किल से पांचवी कक्षा तक पढ़े हैं। उन्हें इसलिए ज्यादा अच्छा काम नहीं मिल पा रहा  बेटा इसलिए मैं तुम्हें पढ़ लिख कर बड़ा व्यक्ति बनाना चाहती हूं अगर तुम पढ़ लिख गए तो तुम अपनी बहन की शादी भी करवा सकते हो और मेरा क्या भरोसा  मैं तो हर वक्त बीमार रहती हूं। इसलिए तुम्हें पढ़ना बहुत ही जरूरी है।। तुम अपने पिता की भी मदद कर सकते हो आज तो रोहिताश स्कूल में आ कर खुश हो रहा था। राहुल ने उसे अपने पास बिठा लिया था परंतु उसके मैले-कुचैले कपड़े देखकर कहा तुम्हारे कपड़ो से तो दुर्गंध आ रही है। वह खड़ा हो कर बोला मैडम जी मैं इसे अपने साथ नहीं बिठाऊंगा। उसके कपड़ो से दुर्गंध आ रही है।।  मैडम ने रोहितांश को कहा बेटा कल से स्कूल साफ कपड़े पहन कर आना। वह सोचने लगा कि मेरे पास तो एक ही जोड़ी कपड़े हैं और यह पैंट तो ऊपर से जगह जगह फटी हुई है  मां ने बड़ी मुश्किल से इसे ठीक किया है। वह क्या करेगा कल साफ कपड़े पहनकर कैसे स्कूल आएगा?घर आकर उसने अपनी मां को कहा कि स्कूल में मैडम कहती है कि साफ कपड़े पहन कर आना  रोहितांश के घर के पास ही एक घर था। वहां पर हर रोज वह एक आंटी को नल पर कपड़े धोते देखता था। शाम को वह चुपके से  उन के घर के पास गया और देखने लगा कि इस नल के पास  से वह आंटी  कब जैसे यंहा से कपड़े धोकर जाएगी। वह दो-तीन घंटे तक पानी को ऐसे ही व्यर्थ गवां देती थी।  एक दिन उसनें देखा  वहां पर आंटी नहीं थी। वहां पर बहुत सा सर्फ वाला पानी बचा हुआ था।  सर्फ वाला पानी नीचे बचता रहता था उसने अपने कपड़े लेकर उसमे डाल दिए और चुपचाप उन कपड़ों को रगड़ने लगा। उसके कपड़े कुछ साफ हो चुके थे।  उसमें अब पहले जैसी मेल नहीं रही थी। दूसरे दिन वह धुले हुए कपड़े पहन कर स्कूल आया था।   राहुल अब तो  रोहिताश को अपने पास बिठाने लग गया था।  रोहितांश उसको हर रोज साफ और स्वच्छ कपड़ों में देखता तो उसका भी मन करता कि मेरे पास भी सुंदर सुंदर कपड़े होते।  उसने  एक दिन अपने दोस्त  राहुल को कहा कि मुझे भी अपनी कमीज पहने के लिए दे दे। मैं भी सुंदर सुंदर कपड़े पहनना चाहता हूं। मेरी मां के पास इतने रुपए नहीं है वह हमें अच्छे वस्त्र  पहना सके। वह हमें अच्छे वस्त्र दिला नहीं सकती। मेरे  पांच भाई बहन हैं। मैडम ने उसकी बात सुन ली थी। मैडम ने रोहिताश को अपने पास बुलाया और उसके सिर पर प्यार से हाथ फिर कर कहा बेटा तुम्हें स्कूल से ही वर्दी मिल जाएगी। उसको स्कूल से वर्दी मिल गई थी। उसको किताबों का सेट भी स्कूल से ही मिल गया था। जहां वहां पहले पढ़ता था वह तीसरी कक्षा तक  पढ़ा था। चौथी कक्षा में आकर उसने पढ़ाई छोड़ दी थी  किताबें पाकर वह बहुत ही खुश हुआ। घर आकर उसने मैडम को बताया कि मां मुझे स्कूल से ही किताबें मिली हैह और वर्दी भी मुझे स्कूल में भरपेट खाने को भी मिला है।  तेरेे पिता के पास किताबें नहीं थी इसलिए वह पढ़ लिख नहीं सके। मां ने कहा बेटा अगर तू पढ़ाई नहीं करेगा तो तू भी बड़ा ऑफिसर नहीं बन पाएगा वह बोला मां नहीं  मैं जरूर पढ़ाई करूंगा।

उसकी बहन भी दो-तीन दिन की छुट्टी लेकर आई थी। उसकी मां ने अपनी बेटी को अपने भाई के पास छोड़ दिया था। वह अपने मामा के पास ही रहकर शिक्षा ग्रहण कर रही थी। जब वह आई तो रोहिताश के गले लगकर बोली भाई तुम्हारे पास तो नई नई किताबें हैं मुझे तो अभी तक मामी ने  किताबें भी  ले कर नहीं दी हैं।वह कहती है  कल ले दूंगी लेकिन कल कल करते न जानें कितने दिन व्यतीत हो ग्ए। स्कूल वालों ने भी किताबें नहीं दी हैं। रोहिताश को अपनी मां की याद आई उसने कहा था कि तुम्हें अपनी बहन को कभी निराश नहीं करना है।। बड़ा बनकर उसकी  भी देखभाल और उसकी शादी का खर्चा भी तुम्हें ही करना है। इसके लिए तुम्हें पढ़ना होगा। रोहितांश नें सोचा अगर मेरी बहन भी नहीं पढ़ पाई तो मेरी बहन भी पढ़ाई से वंचित रह जाएगी  इसलिए मैं अपनी किताबें अपनी बहन को दे देता हूं। उसने अपना किताबों का सेट अपनी बहन को दे दिया। किताबें  पा कर उसकी बहन बहुत ही खुशी हुई। वह भी चौथी कक्षा में पढ़ती थी। उसकी बहन की छुट्टियाँ समाप्त हो चुकी थीं। उसकी बहन अपने मामा के पास वापस जा चुकी थी। उसने अपनी मां को पूछा आपने रीता  को मामा जी के पास क्यों छोड़ा?उसकी मां बोली बेटा हमारा निर्वाह करना भी बड़ी मुश्किल से हो रहा था। उस पर तुम चार बच्चे और हम दो। मैंने इसलिए तुम्हारी बहन को मामा जी के पास छोड़ा है कि वह वहीं कुछ पढ़ लेगी और अपनी मामी के काम में हाथ भी बंटा दिया करेगी। नन्हां सा रोहितांश समझ चुका था कि विद्या प्राप्त करना बहुत ही जरुरी होता है। अगले दिन जब वह स्कूल गया तो वह बहुत ही उदास था। उसने अपनी किताबें अपनी बहन को दे दी थी। मैडम उसे पढ़ाती उसे वह ध्यान से तो सुनता मगर वह कभी होमवर्क करके नहीं लाता था। इस तरह समय व्यतीत  रहा था रोहितांश को होमवर्क न करने पर मैडम से खूब मार पड़ती थी। वह मन ही मन सोचता था कि अब मैं किताबें कहां से लाऊं? एक दिन राहुल जब अपना स्कूल का बैग   खोल कर देख रहा था तो रोहिताश ने भी देखा कि राहुल के पास किताबों के दो सेट थे। एक पुराना और एक नया। पुरानी किताबे  देखकर हैरान रह गया। पुरानी किताबें वह सोचने लगा कि अगर राहुल उसे एक सैट  कुछ दिनों के लिए दे दे  तो वह भी अपना पाठ याद कर सकता है। उसने राहुल को कहा कि मुझे अपनी किताबों में से कुछ दिन के लिए  पूरानी किताबें दे दे।  राहुल नें रोहितांश को कहा कि नहीं मैं तुम्हें किताबें नहीं दे सकता। मेरी मम्मी मुझे बहुत मारेगी। रोहिताश वहां से  चुपचाप चुप्पी साधे वहां से चला गया। मैडम नें उसे हर रोज उदास देखा और एक दिन उस से पूछ ही लिया तुम उदास क्यों रहते हो। मुझे बताओ। हिम्मत कर के करनें लगा इस बार जो आप नें मुझे जो किताब दे दी  थी  वह किताबें मैंने अपनी बहन को दे दी। मेरी बहन मेरे मामा जी के घर पर रहती हैं। मेरी मां बहुत गरीब है। हम पांच भाई बहन हैं। हम यहां पर एक छोटी सी खोली में रहते हैं। मेरी बहन को मेरी मां ने इसलिए अपने भाई के पास भेजा क्योंकि वह वहां पर रहकर पढ़ाई पूरी कर सके। हम यहां चार भाई रहते हैं। हमारे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। एक दिन रोहितांश नें अपनी मां से कहा कि मां आपने मेरी बहन को मामा के घर क्यों भेजा?  मेरी मां ने कहा कि तुम्हारे पिता इतना अधिक नहीं कमा सकते। तुम्हें कहां से  खिलाएंगे। मैडम हमारे घर में खाने को भी इतना अधिक नहीं है।

मैंने अपनी बहन को किताब दी दी दी क्योंकि उसको मेरी मामी ने अभी तक किताबे लेकर नहीं दी थी। मैं चाहता हूं कि मेरी बहन भी शिक्षा से वंचित ना रहे। रोहितांश  का अपने बहन के प्रति प्रेम देखकर मैडम की आंखें भर गई । उस नें सारी बात मैडम जी को बता दी।

एक दिन मैडम जी मैंने आपको कहा था कि मेरे सिर में दर्द है। मैंने सिर दर्द का बहाना किया था। मैंने राहुल के पास किताबों के  दो सैट देखे। उस दिन उसके बस्ते में से गणित और अंग्रेजी की पुरानी किताबें मैं अपने घर ले गया था। मैंने 5 दिन  उसकी किताबें अपने पास रखी और आज मैं यह किताबे उसके बस्ती में रखने  ही जा रहा था तभी उसने मुझे देख लिया। मैडम मुझे माफ कर दो।

मैडम रोहिताश की सच्चाई सुनकर हैरान थीं। इतना प्यारा बालक। उसने रोहितांश को कहा बेटा आज से तुम मुझे पढ़ने के लिए तुम्हें जिस चीज की भी आवश्यकता होगी किताबें वर्दी जो कुछ भी चाहिए वह मैं तुम्हें दूंगी। बेटा तुम निसंकोच होकर मुझसे मांग लेना। आज से मैं तुम्हारी गुरु ही नहीं तुम्हारी मां के समान हूं।  रोहिताश मैडम की बात सुनकर बहुत ही खुश हुआ। मैडम  नें उसे  नयी किताबों का सेट दिलवा दिया था। रोहिताश अब बड़ा हो चुका था। उसने 12वीं की परीक्षा में सबसे अच्छा आंख लेकर परीक्षा उत्तीर्ण की थी।  बाहरवी की किताबें  भी  उसे  स्कूल से ही उपलब्ध करवाई थी।

मैडम का स्थानांतरण दूसरे  विद्यालय को हो चुका था। उसे हमेशा रोहितांश को पढ़ाई के लिए  और किताबों के लिए हमेशा रुपए भिजवाए। एक दिन अखबार में रोहिताश का फोटो देखकर मैडम चौकी। बारहवींं की परीक्षा में उसने जिले भर में टॉप किया। रोहिदास ने खुब मेहनत करनें के पश्चात  टैस्ट दिया और उसमे सिलेक्ट हो चुका था।  एक दिन वह बड़ा ऑफिसर बन चुका था। सबसे पहले उसने अपनी और अपनी शादी का इंविटेशन अपनी मैडम के घर भिजवाया।  दरवाजा खोलने पर उसके सामने एक व्यक्ति खड़ा था। शेफाली जी का घर  क्या यहीं पर है?   अन्दर से एक औरत आ कर बोली तुम्हें मुझसे क्या काम है?

शैफाली को डाकिए ने कहा कि यह पैकेट आपके नाम है। शेफाली ने पैकेट खोल कर देखा उसमें एक बहुत ही सुंदर साड़ी थी। वह साड़ी देखकर चौंक गई। यह किसने भेजी होगी? साथ में  एक प्यारा सा  पत्र था। लिखावट को देख कर चौक गई। जिसमें कुछ पंक्तियां लिखी थी। आपको किस तरह से धन्यवाद करूं? आप गुरु ही नहीं आप मेरे लिए क्या हो? आपने मुझे एक गुरु ही नहीं एक मां बनकर जो मेरा भाग्य संवारा है वह मुझे उजाले की  किरण प्रदान की है और मेरे भविष्य को उज्जवल बनाने में आप का ही हाथ है। आपने मुझे पहचान ही लिया होगा।  आप मुझे पढ़ाई के लिए मेरा खर्चा नहीं उठाती तो आज मैं इस काबिल नहीं बन पाता

आपने मुझे प्यार और स्नेह तो दिया ही परंतु आपने मेरे भविष्य को उज्जवल बनाया है।  मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट स्वीकार करें। आशा है आप  इसे अपना बेटा समझकर ग्रहण करेंगे।

मैं अपनी शादी का निमंत्रण कार्ड भेज रहा हूं। आप आकर मुझे और मेरी पत्नी को आशीर्वाद देंगे तो मैं अपनें आप को खुश नसीब समझूंगा। तुम्हारा रोहितांश।

पत्र पाकर शेफाली की आंखों में आंसू गए। शेफाली रोहिताश की शादी पर उसे आशीर्वाद देने  उस के गांव गई। रोहिताश ने अपने मां-बाप को अच्छा मकान बनवा दिया था। अपनी बहन की शादी भी करवा दी थी। शेफाली ने रोहितांश और उसकी वधू को आशीर्वाद देकर कहा सदा सुखी रहो।

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