खोटा सिक्का

गट्टू एक गरीब लड़का था। उसकी मां एक झोपड़ी में रहती थी। गट्टू जब भी स्कूल से घर आता तो रास्ते में मस्ती करते करते घर पहुंचता था । उसके सारे दोस्त घर पहुंच जाते मगर वह तो मानोअपनी ही धुन में चलता हुआ इधर-उधर नजाराे़ को देखता हुआ रास्ते में कंचे खेलने लग जाता ,इस प्रकार काफी देर से घर पहुंचता। उसकी मां अपने बेटे गट्टू की इस आदत से बहुत ही परेशान रहती थी। गट्टू तो मानो अपनी ही धुन में मस्त रहता था। एक दिन वह अपने स्कूल से घर आ रहा था रास्ते में ,उसे एक सिक्का मिला उसने वह उठा लिया घर आकर उसने वह सिक्का अपनी मां को दिखाया बोला मां मुझे आज एक सिक्का मिला है सिक्का बाकी सब सिक्कों से बहुत अलग दिखता है मुझे पैसे का बहुत ही सुंदर लगा। वह सिक्का मैं किसी को भी नहीं दूंगा । मैं उसे बहुत संभाल कर रखूंगा। उसकी मां पारो बोली बेटा दिखा जरा मैं भी तो देखूं तुम्हारा सिक्का उसने कहा, मां तुम मेरी मां हो इसलिए तुम्हें मैं दिखा रहा हूं कहीं मुझसे इस सिक्के को कोई छीन ना ले। उसकी मां ने जब सिक्के को उलट-पुलट कर देखा वह ठहाका मार कर हंसने लगी बोली, यह सिक्का तो खोटा है। यह यहां का सिक्का नहीं है इससे तो कुछ भी नहीं मिलेगा ।उसे अपनी मां की बातों में जरा भी विश्वास नहीं हुआ शायद वो मुझसे ऐसे ही कहना चाह रही हो? इसलिए ऐसा कह रही है । उसने कहा जाने दो मां उसने सिक्का अपने डिब्बे में संभाल कर रख लिया। स्कूल में दूसरे दिन उसने वह सिक्का अपने दोस्तों को दिखाया ।वह बोले अरे बुद्धू क्या कभी खोटा सिक्का भी कहीं चलता है? उसने सोचा यह दोस्त भी उसे धोखा दे रहे हैं वह छोटा सा बच्चा हंस कर बोला कोई बात नहीं, उस सिक्के काे कस कर अपनी कमीज की जेब में रख दिया। उसने ऊपर से पिन लगाकर उसे बंद कर दिया ताकि वह सिक्का नीचे ना गिर जाए। एक दिन स्कूल से आते उसके दोस्त हलवाई की दुकान पर जलेबी खा रहे थे गर्म गर्म जलेबी देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। वह दुकानदार के पास गया इस सिक्के की मुझे जलेबी दे दो। हलवाई उस बच्चे की मासूम भोली शक्ल देखकर पसीज गया। उसने सिक्का गट्टू को लौटा दिया बोला बेटा, यह सिक्का तुम ही रख लो उसने दो जलेबी के टुकडे उसे दे दिए। वह खुश हो गया बोला वह सब तो कहते हैं कि यह सिक्का खोटा है उसे तो कोई भी सिक्केे नहीं देने पडे।इस सिक्के से वह हर चीज खरीद लिया करेगा । वह उस सिक्के को और भी संभाल कर रखने लगा। रात को भी कभी रात को उठ कर देखता कि इसी सिक्के को किसी ने चुरा तो नहीं लिया ।एक दिन जब वह घर आ रहा था तो एक गुब्बारे वाले की दुकान को देखकर उसका मन गुब्बारा पाने के लिए ललचाने लगा ।उसने उस गुब्बारे वाले को सिक्का

स्कूल में दूसरे दिन उसने वह सिक्का अपने दोस्तों को दिखाया ।वह बोले अरे बुद्धू क्या कभी खोटा सिक्का भी कहीं चलता है? उसने सोचा यह दोस्त भी उसे धोखा दे रहे हैं वह छोटा सा बच्चा हंस कर बोला कोई बात नहीं, उस सिक्के काे कस कर अपनी कमीज की जेब में रख दिया। उसने ऊपर से पिन लगाकर उसे बंद कर दिया ताकि वह सिक्का नीचे ना गिर जाए। एक दिन स्कूल से आते उसके दोस्त हलवाई की दुकान पर जलेबी खा रहे थे गर्म गर्म जलेबी देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। वह दुकानदार के पास गया इस सिक्के की मुझे जलेबी दे दो। हलवाई उस बच्चे की मासूम भोली शक्ल देखकर पसीज गया। उसने सिक्का गट्टू को लौटा दिया बोला बेटा, यह सिक्का तुम ही रख लो उसने दो जलेबी के टुकडे उसे दे दिए। वह खुश हो गया बोला वह सब तो कहते हैं कि यह सिक्का खोटा है उसे तो कोई भी सिक्केे नहीं देने पडे।इस सिक्के से वह हर चीज खरीद लिया करेगा । वह उस सिक्के को और भी संभाल कर रखने लगा। रात को भी कभी रात को उठ कर देखता कि इसी सिक्के को किसी ने चुरा तो नहीं लिया ।एक दिन जब वह घर आ रहा था तो एक गुब्बारे वाले की दुकान को देखकर उसका मन गुब्बारा पाने के लिए ललचाने लगा ।उसने उस गुब्बारे वाले को सिक्कादेते हुए कहा कि मुझे दो गुब्बारे दे दो लो सिक्का ,सिक्के को देखकर गुब्बारे वाला बोला क्या कभी खोटे सिक्के का गुबबारा आता है बेटा ,यहां के लिए तो यह खोटा सिक्का है यहां पर यह सिक्का नहीं चलता चलो यह लो तो और यह लो अपना सिक्का । गट्टू और भी खुश हो गया मुझे तो कोई सिक्का भी खर्च नहीं करना पड़ता मुझे तो इस सिक्के से सब कुछ यूं ही मिल जाता है ।

अगले दिन स्कूल में वह मैडम के पास क्या बोला मैडम सभी सिक्के को खोटा कहते हैं यह खोटा क्या होता है ? मैडम उसके भोलेपन पर हंसते हुए बोली बेटा यह. सिक्का हमारे देश का नहीं है । यह विदेश का सिक्का है हमारे देश में यह सिक्का नहीं चलता है। उस छोटे से गट्टू के दिमाग में कुछ कुछ समझ आया उसने फिर उस सिकके को अपने बस्ते में रख लिया ।

उस सिक्के को रखे रखे कई साल गुजर गए थे । जब वह बड़ा हुआ तो उसे अपनी मासूमियत पर हंसी आई उसने खोटे सिक्के को आज तक संभाल कर रखा ।उस सिकके को वह फेंकना नहीं चाहता था ।उसे सब कुछ याद आ गया कैसे जलेबी वाले ने उसे खोटे सिक्के कीे उसे दो जलेबियां भी मुफ्त में दे दी थी और उस गुब्बारे वाले ने भी उसे दो गुब्बारे मुफ्त में दे दिए थे। वह सोचने लगा चाहे कुछ भी हो जाए मैं इस खोटे सिक्के को नहीं फेंकूंगा। मुझे अब समझ में आ गया है कि यह सचमुच ही खोटा सिक्का है। उसने मुझे इतनी ढेर सारी खुशियां दी है।

शादी के कुछ साल बाद उसे विदेश जाने का मौका मिला अपनी पत्नी के साथ ट्रेन में बैठा था ।उससे एक विदेशी नवयुवक आकर बोला क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकताहूं? गट्टू बोला बैठ जाओ ,उस सिक्के की ओर देख कर मुस्कुरा कर अपनी पत्नी को उसने सारा का सारा किस्सा सुना दिया। यह खोटा सिक्का कितने काम का है इसी सिक्के ने मेरे जीवन की काया ही पलट दी शायद ,आगे भी यह सिक्का मेरे भाग्य को संवारे ।औरों के लिए होगा यह खोटा सिक्का मैं आज भी इसे नहीं फैंकूँगा। पास बैठे व्यक्ति ने गट्टू से कहा
‌ये तुम्हारे किस काम का। ये मुझे दे दो। मैं तुम्हें इसके हजार रूपये दूंगा। गट्टू उस सिक्के को कभी बेचना नहीं चाहता था। वह सिक्का उस के लिए भाग्यवर्धक था। उस सिक्के के साथ उसके बचपन कि बहुत सारी यादें जुड़ी हुई थी।वह अचानक बचपन कि यादों में खो गया। कैसे जलेबी वाले के पास उस सिक्के से जलेबी खरीदनें निकला था उसे मुफ्त में जलेबी मिल गई थी। गुब्बारे वाली कि दुकान पर भी वह सिक्का देने चला था परन्तु उसे बिना सिक्का दिए ही सब चीजें उपलब्ध हो जाती थी।

आज भी वह उस सिक्के को बेचना नहीं चाहता था।वह अंग्रेज व्यक्ति उस को झिंझोड़ता हुआ बोला मैं उस सिक्के के तब से दाम बढ़ाया जा रहा हूं मैं अब एक लाख तक पहुंच चुका हूं। तब कहीं जा कर गट्टू को सुनाई दिया चलो दो लाख। गट्टू कि पत्नी बोली आप कहां खो गए। आप इस सिक्के को बेच ही दो। गट्टू को उसकी जल्दबाजी से थोड़ा शक हुआ सिक्का खरीदने में इतना इच्छुक क्यों है जरूर कुछ गड़बड़ है। वह बोला भाई साहब आप ठीक कहते हो। मैं होटल पैलेस में ठहरा हुआ हूं।( अंग्रेज को अपना गलत पता बताया था)। आप को फोन पर अपने होटल का पता दे दूंगा। सफर कि थकान के कारण अभी मैं कुछ भी कहने में असमर्थ हूं।‌ कल आप को मैं यह सिक्का बेच दूंगा। अंग्रेज बोला आप से मिल कर मुझे बड़ी खुशी हुई। आप के लिए तो यह सिक्का किसी भी काम का नहीं होगा। मुझे मुझे इस सिक्के को खरीद कर कोई फायदा नहीं है पर यह मेरे बचपन की याद दिलाता है और मेरी मेरी मां के पास बहुत साल पहले ऐसे कई सिक्के हुआ करते थे मेरी मां यह सिक्का देखकर बहुत खुश होगी। इसीलिए मैं यह सिक्का खरीदना चाहता हूं किसी भी कीमत पर। वह गट्टू से झूठ बोल रहा था यूं ही कोई कहानी सुना रहा था।अंग्रेज बोला मेरे और आप के बीच सिक्के को ले कर सौदा तय हुआ है।आप मुझे ही इसे बेचना।आप कि और मेरी बात हम दोनों तक ही रहनी चाहिए।

अंग्रेज व्यक्ति तो वापिस चला गया लेकिन गट्टू मन में शंका होने लगी उस व्यक्ति नें मुझे यह क्यों कहा कि आप यह बात किसी से कहना नहीं।

सारी रात उसे नींद ही नहीं आई। सुबह स्नान से निवृत हो कर वह अपनी पत्नी के साथ पुरातत्व विभाग में पहूंच गया और उस सिक्के को उन को दिखाया।वहां के प्रबन्धक महोदय बहुत ही हैरान हो कर बोले यह सिक्का तो बहुत ही पुराना है।आज तक तुम नें इसे कैसे संभाल कर रखा है।बाबू साहब आप को पता भी है आज इस सिक्के कि किमत करोड़ों है। यह सिक्के हमारी परम्परागत धरोहर है।यह तो विदेशी सिक्का है। गट्टटू तो उस सिक्के के दाम सुनकर भौंचक्का रह गया।आप अभी इस सिक्के के दाम ले सकते हैं।। गट्टू कि पत्नी भी खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी। गट्टू नें पुरातत्व विभाग को वह सिक्का बेच दिया।रातों रात गटू कि किस्मत चमक गईं वह करोड़ो का मालिक बन चुका था।

अपनी पत्नी के साथ विदेश घूमनें का उसे अद्भुत तोहफा मिला था। खोटे सिक्के ने तो गट्टू की किस्मत सचमुच में बदल दी थी।

मधुमक्खी और तितली की दोस्ती

मधुमक्खी और तितली की है यह कहानी।
एक थी सुंदर एक थी स्वाभिमानी।।

एक पेड़ पर मधुमक्खी और तितली साथ साथ थी रहती।
दोनों साथ साथ रहकर सदा थी मुस्कुराती रहती।।
साथ साथ रहने पर भोजन की तलाश में थी जाती ।
शाम को अपने पेड़ पर इकट्ठे थी वापिस आती।।

अपने बच्चों के संग रहकर अपना समय थी बिताती।
एक दूसरे के सुख-दुख में सदा साथ थी निभाती।।

बरसात ने एक बार अपना कहर बरसाया।
सारे नदी नालों में था पानी भर आया।।
तितली को उदास देखकर मधुमक्खी बोली इतने सुहावने मौसम में तुम्हारे मुखड़े पर ये कैसी उदासी छाई?
तुम पर ऐसी कौन सी विपदा आई ?
यूं उदास रहकर किसी भी समस्या का हल नहीं होता।
समस्याओं में भी जो खिल कर मुस्कुराए वही तो मुकद्दर का सिकंदर है होता।।
तितली बोली:— इस मौसम में भोजन सामग्री कहां से जुटाऊंगी?
इस तरह पानी बरसता रहा तो बच्चों को क्या खिलाऊंगी?
इस मौसम में भोजन लेने बाहर जा नहीं सकती ।
बच्चों को भूखा रखकर चैन की नींद सो नहीं सकती।।
सुहावने मौसम से कहीं ज्यादा भूख है प्यारी ।
भोजन न जुटा पाई तो करनी पड़ेगी मौत की तैयारी।।
मधुमक्खी बोली:– तुमने भोजन सामग्री को पहले क्यों नहीं जुटाया?
आलस में अपना समय यूं क्यों गंवाया?
कल पर विचार न करनें वाले यूं ही निराश रहते हैं ।
यूं ही घुट घुट कर निराशा में हमेंशा हताश रहतें हैं।।

पहले से बचत करने वाले जीवन भर मुस्कुराते हैं।
अपनें बच्चों संग खुशी-खुशी खिलखिलातें हैं।।

आज तो मैं तुम्हारी मदद कर पाऊंगी ।
तुम्हें आवश्यक सामग्री दिलवाकर तुम्हारे बच्चों की जान बचाऊंगी।।
आलस करने वाले जीवन भर यूं ही पछताते हैं।
परेशान रह कर अपनें परिवार के लिए भी विपदा लातें हैं।।

कमाई में से कुछ ना कुछ तो बचाना चाहिए।
सही समय पर उसका उपयोग कर जीवन में किसी के आगे यूं हाथ फैलाना नहीं चाहिए।।

प्रथम पाठशाला परिवार

सबसे बड़ा विद्यालय है परिवार हमारा ।
परिवार के सदस्य शिक्षक बनकर संवारतें हैं भविष्य हमारा
जिंदगी की पाठशाला में माता शिक्षक है बन जाती ।
प्यार दुलार व डांट फटकार लगाकर हर बात है समझाती ।।
जिम्मेदारी का अहसास ,अनुशासन का पाठ, सम्मान का पाठ भी है सिखलाती।
गुरु व माता बनकर अच्छे संस्कारों को रोपित कर सभ्य इंसान है बनाती ।।

स्नेह मयी वात्सल्य की छत्र छाया में बच्चे नैतिकता के गुणों का विकास हैं कर पातें ।
मान-मर्यादा और आदर का भाव विकसित कर ,दूसरों को सही दिशा हैं दिखाते ।।
मां बच्चों को अच्छी आदतों का अनुसरण करना है सिखाती,
उनके चरित्र का विकास कर उनका भविष्य उज्जवल है बनाती ।।
स्वयं काम करने की आदत है डलवाती ।।
ईमानदारी से काम करना और संघर्षमय जीवन जीना भी है सिखाती।
कर्तव्य पालन बोध का ज्ञान भी उन्हें हैं करवाती ।।

उनके गुणों-अवगुणों को अपना कर बच्चे जीवन में उनकी खुशियों को हैं महकातें ।
परमार्थ और स्वाबलंबी नागरिक बनना भी माता-पिता हैं सिखातें ।।
मुसीबत के समय एक दूसरे का साथ निभाना भी वह सिखाते।
बच्चों को क्या झूठ क्या सच क्या है उसका अन्तर भी वह हैं बतलाते।।

सुसंस्कार वाले बच्चे सभ्य नागरिक बन हैं बन जाते।
कुसंस्कारी जीवन की दौड़ में कभी आगे नहीं बढ़ पातें ।।
जीवन पथ में हताश हो कर सारी उम्र पछताते ही रह जातें।।

बुजुर्ग बच्चों को धार्मिक ग्रन्थों की जानकारियां उन्हें हैं सुनातें।
बड़े-बड़े महान पुरुषों के पदचिन्हों पर चलना उन्हें हैं सिखाते।
उन ही के जैसा महान कार्य करनें की उमंग उन में हैं जगातें ।
बच्चों में स्पर्धा की भावना को भी हैं जगाते ।।

आपस में मिल जुल कर रहना और मिल बांट कर खाना उन्हें हैं सिखाते
विपरीत परिस्थितियों में अपने बचाव और मदद हासिल करनें की सीख हैं सिखातें।।

लक्ष्य के प्रति समर्पण का भाव जागृत हैं करवातें।
अच्छाई और आत्मविश्वास के साथ काम करनें का हौंसला उन्हें हैं दिलवातें ।

माता पिता की सीख बच्चे की दुनिया है बदल देती ।
कठिन संघर्षों पर चल कर उन्हें शानदार जीत है दिलवाती ।
माता पिता के आदर्शों का पालन करना उन्हें हैं सिखाती
उनके व्यक्तित्व को निखार कर उनका सुनहरा भविष्य है बनाती।।