बुद्धू राम का कारनामा

किसी गांव में एक भोला भाला आदमी रहता था। वह बुधवार को पैदा हुआ था इसलिए उसकी मां ने उसका नाम बुधराम रखा था।  बाद में सब लोग बुद्ध राम न कह कर उसे सब बुद्धू राम बुलाते थे। इतना भोला था कि वह किसी को भी तंग तो क्या करना किसी को भी कुछ नहीं कहता था। उसकी मां को अपने बेटे की बहुत चिंता होती थी इसके लिए वह सोचती थी कि  वह लड़की ही शादी के लिए ठीक रहेगी जो इसकी बात माना करें। नहीं तो उसके बेटे की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। उसने अपने बेटे के लिए एक ऐसे ही भोली सी लड़की ढूंढ ली। अपनी बेटे की शादी उसके साथ करवा दी। उसकी मां उसे जो भी कहती वह काम करता था। अपनी मां को इन्कार करना उसे आता नहीं था।

एक बार गांव के भोले भाले बुद्धू को गांव के कुछ दोस्तों ने कहा कि अच्छा हम तुम्हारा इम्तिहान लेना चाहते हैं। चलो आज हमारे साथ चलो हम देखना चाहते हैं कि तुम कितने काबिल हो। हमारा एक दोस्त बिमार है उसको पेट दर्द हो रहा है।दीनू वैद्य की दुकान से  पेट दर्द की गोलियां ले आओ। वह भोलाभाला तो था ही उसे गांव वाले लड़कों ने कहा कि पटमर की गोलियां लानी  है। दिनू वैद्य के पास ही मिलती है। उसका घर 4 किलोमीटर की दूरी पर है। भोला भाला बुद्धू राम अपने दोस्त के पेट की दर्द की दवा लांनें   वैध के पास चार किलोमीटर  पैदल चलकर गया। वैद्य के पास जाकर बोला मुझे पटमर की गोलियां दे दो। वैद्य हैरान हक्का-बक्का उसकी तरफ देख कर बोला। यह कैसी दवाई है? उसका नाम तो मैंने आज ही सुना है। दवाइयां तो बहुत सारी होती है मगर यह पटमर कौन सी दवाई है? तभी एक ग्राहक वैद्य की दुकान पर आया। वैद्य उसको बोला यह पटमर कौन सी दवाई है? वह ग्राहक हंसते हुए बोला यह ठहरा बुद्धू राम उसके दोस्त ने उसे बेवकूफ बनाने के लिए ऐसे ही मजाक में कह दिया होगा।पट का मतलब होता है जल्दी, मर का मतलब होता है खत्म।

दूसरे रोगी ने उससे पूछा कि तुम्हें यहां पर किसने भेजा। उसने कहा कि हमारे दोस्त के पेट में दर्द है इसलिए  मेरे दोस्तों नें मुझे कहा कि तुम जल्दी से पटमर की गोलियां ले  कर आओ। वह भी हंसने लगे। उन्होंने ऐसी दवाई मंगाई होगी जिससे पेट दर्द समाप्त हो जाए। पेट दर्द की दवाई दे दी और कहा कि यही है पटमर की गोलियां। घर आकर उसने अपनी मां को सारा किस्सा सुनाया। उसके सारे के सारे दोस्तों नें उसका मजाक उड़ाया और   सब के सब जोर जोर से  हंसनें लगे।

उसकी मां बोली तुम इतने भोले हो कि सब तुम्हारा बेवकूफ बनाना चाहते हैं। तुम मुझसे पूछ कर ही काम किया करो। वह बोला हां मां। वह अपने मां के कहे मुताबिक काम करने लगा एक दिन उसकी पत्नी ने उससे कहा कि जा धनिया लेकर आओ। उसकी पत्नी शहरी लड़की थी। उसे मालूम नहीं था धनिए को पहाड़ी भाषा में क्या कहतें हैं। वह गांव में। जाकर धनिया को बुलाकर ले आया। उसकी पत्नी हंसते-हंसते अपने पति को बोली अरे पगले सब्जी वाला धनिया मंगवाया। जो सब्जी दाल में पड़ता है। परंतु तुम तो धनिए को बुला कर ले आए। उसकी पत्नी ने अपनी  गांव की भाषा में  एक दिन कहा कि बिजली जला दो। उसे जला तो सुनाई नहीं दिया वह अपनी बहन बिजली को बुला कर ले आया। उसकी मां उसकी हरकत देख रही थी वह बोली भोले राम तू रहा नीरा का नीरा बेवकूफ। बुद्धूराम तेरा नाम ठीक ही रखा है बुद्धू राम।

उसकी पत्नी अपने पति की इन हरकतों से परेशान आ गई वह बोली मैं कुछ दिनों के लिए मायके जा रहे हूं। अपने मायके चली गई।कुछ दिन तो अच्छे ढंग से गुजरे। थोड़े दिनों बाद बुद्धू राम और भी उदास रहने लगा। उसकी मां को महसूस हो गया कि उसको अपनी पत्नी की याद आ रही है। उसने अपने बेटे से कहा कि तुम्हें अगर अपनी पत्नी की याद सता रही है तो तुम उसकी ससुराल जाओ। वह मान गया उसने उसने अपने बेटे को समझाया कि अपनी ससुराल में जाकर हां और ना के सिवा कुछ भी नहीं कहना।  तुम्हारी  सास तुम्हे खाने के लिए तो जो कुछ भी रूखा-सूखा दे ज्यादा नखरे मत करना। जो भी रूखा-सूखा मिले वही खाना। वह बोला हां।

वह अपनी ससुराल पहुंच गया। उसकी पत्नी उसको देख कर खुश हो कर बोली मैंने तो सोचा था कि जब तुम मुझे लेने आओगे तभी मैं तुम्हारे साथ चलूंगी। शाम को जब उसकी सास ने उसको पूछा कि तुम अपनी पत्नी को लेने आए हो। वह बोला हांजी। घर में सब कैसे हैं वह बोला। नां जी। उसकी पत्नी जल्दी से  अपनी मां से बोली कि इनके कहने का मतलब है कि मां जी ठीक नहीं है। उसकी मां बोली तुम्हारी मां ठीक ठीक है। वह बोला नां जी। उसकी सास बोली उन्हें क्या हुआ? उन्होंने दवाई ली या नहीं वह बोला नां जी।  उसकी पत्नी बोली इसलिए नही  ली होगी क्योंकि उन्हें पता ही नहीं चला होगा कि कौन सी दवाई पहले लेनी है? इसलिए  ही वह मुझे लेने आए हैं।

मां जी यह बहुत ही भोला है। उसे यह नहीं पता लगा होगा कि कौन सी दवाई देनी है? उसकी सास बोली यह बात है। वह बोला हां जी। उसकी पत्नी ने बहुत ही झुंझला गई। उसकी सास बोली क्या खाओगे? वह बोला रुखा सुखा बना दो। उसकी सास अपने दामाद की भोली-भाली बातों को सुनकर हैरान हो कर बोली।।

उसकी सास ने  शाम को तरह तरह के व्यंजन बना कर कहा   खाना खा लो। वह बोला मैं तो कुछ रुखा सूखा ही खा लूंगा। उसकी सास सोचने लगी शायद उसे किसी डॉक्टर ने कहा होगा। यह अपनी सेहत का कितना ख्याल रखता है? एक मेरे घर में बच्चे हैं जो बिना घी के तो बात ही नहीं करते। उसकी सास ने उसे छलीरे  की रोटी बना दी। वह भी नमक लगाकर खाने लगा। उसकी पत्नी नें देखा कि वह  शर्मा कर भूखा ही उठ गया। रात को उसको बड़ी जोर की भूख लगी वह अपनी पत्नी के पास दौड़ता हुआ गया। पेट पर हाथ फेरते हुआ बोला भूख। उसकी पत्नी ने  कहा शाम को यह सारा ड्रामा क्यों  किया? खाना क्यों नहीं खाया?

रात को उसको जब इतनी भूख लगी तो उसकी पत्नी बोली हमारे घर के साथ वाले कमरे में एक पशुओं को बांधनें के लिए एक कमरा है। उसके साथ वाले कमरे में  एक शहद का एक घडा है। उस कमरे में  जाकर शहद पी लेना।

वह दौड़ा दौड़ा रात को उस कमरे में पहुंच गया।। उसने देखा छज्जे पर एक घड़ा लटक रहा था। उसने उसमें छेद कर दिया और शहद को दोनों हाथों से पीने लगा। और घड़े को कहने लगा बस कर बस कर। उसे नींद भी बड़े जोर की आ रही थी। वह साथ वाले कमरे में गया। वहां पर वह भेड़ों की ऊन रखी की हुई थी। उसी पर उसको नींद आ गई । उसके सारे के सारे  भेड़ों की ऊन उसके सारे शरीर में चिपक गई थी।

रात को चोरी करने के लिए चोर घर में घुसे  वैसे ही उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि उसके तो सारे के सारे भेडों की ऊन चिपकी हुई है। चोर अंदर घुस गए। बुद्धू राम नें  उन्हें देख लिया। कोई आया है। वह भी उन भेडों के साथ छुप कर बैठ  गया। चोरों ने एक दूसरे को देखा बोले चलो। इस भेडों में से जो बड़ी सी भेड होगी उसे हीे ले चलते हैं। उन्होंने एक बड़ी सी भेड को पसंद कर लिया और उसे  बोरी में भरकर ले जा रहे थे। रास्ते में जा रहे थे वह मन ही मन खुश हो रहे थे कि आज तो मौज बन गई। इतनी बड़ी भेड हाथ लगी है। तभी दूसरा चोर बोला बहुत ही भारी है। उस बोरी में से बुद्धू राम बोला संभलकर नीचे रखना मैं हूं। उन्होंने एक दूसरे को देखा बोले क्या तूने मुझे कुछ कहा वह बोला नहीं तो। दूसरा वाला चोर बोला मैंने भी सुना। उस बोरे में से किसी ने कुछ कहा उन्होंने जल्दी से बोरे को खोला। उसमें से बुद्धू राम निकला। उन चोरों ने कहा तुम कौन हो? उन्होंने कहा तुम नें हमें चोरी करते देख लिया है।  तुम्हें भी हमारे साथ  चोरी करनी होगी अगर तुमने हमारी बात नहीं मानी तो हम तुम्हें मार देंगे। तुम भी हमारे साथ चोरी करने चलो।  तुम भी हमारे साथ चोरी करने नहीं चलोगे तो हम तुझे मार देंगे। वह भी उनके साथ चोरी करने चल पड़ा

 उन्होंनें बुद्धू राम को कहा कि जब भी तुम्हें कोई  चीज  चुरानी  हो तो भारी सी चीज उठाना। चोरों के कहने का मतलब था कि सबसे महंगी चीज उठाना। परंतु उस बुद्धू राम की समझ में नहीं आया। कि उसे  तो भारी वस्तु शील और बट्टे के इलावा कुछ दिखाई नंही दिया। वहां पर उस घर में   सबसे से भारी एक शील और बट्टा ही दिखाई दिया। उसने वह उठा लिया। तभी उसको चोरों ने देख लिया और उसे कहा अरे बुद्धू राम यह सिलबट्टा नहीं। हमने तो तुम्हें कहा था कि कोई भारी सी वस्तु अर्थात बहुत ही महंगी वाली वस्तु उठाना। यह तुम क्या ले आए? चलो जल्दी से अगर हमें किसी ने यंहा देख लिया तो बहुत ही बुरा होगा। भूख  भी बडी़ जोर की लग रही है। अंदर चल कर देखते हैं। अंदर गए तो वहां पर  देखा एक बुढ़िया  रसोई में ही खाना बनाते-बनाते सो गई थी। उसने वहां पर खीर बनाई हुई थी और उसने अपना हाथ आगे किया हुआ था। उन्होंनें डट कर खाना खाया।

चोर  एक दूसरे से कहने लगे कि यह बुढ़िया भी खीर मांग रही है। झठ से उसने वह खीर उस बुढ़िया के हाथ पर डाल दी। बुढ़िया चिल्लाने लगी हाय मर गई। हाय मर गई।  जब वह चिल्लाने लगी तो वह बुद्धू राम तो जल्दी से  छज्जे के ऊपर चढ़ गया और बाकी चोर  घर के एक कोने में, कोई बिस्तर के नीचे, कोई एक कोने में छिप गया।

सारे मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गए। उन्होंने उस बुढ़िया को पूछा कि क्या हुआ? वह बोली मुझे नहीं पता मेरे हाथ पर गर्म-गर्म किसी ने कुछ  फेंका तो मैं चिल्लाई । मोहल्ले वालों ने उससे पूछा क्या तुमने किसी को यहां पर देखा? वह बोली मैं क्या जानूँ। ऊपरवाला जाने।  ऊपर बुद्धू राम छिपा हुआ था। वह बोलने लगा  ऊपर वाला क्या जाने? जो नीचे छुपे हुए हैं वह जाने।  तभी मोहल्ले वालों को पता चल गया था कि वह जो इधर-उधर छुपे हुए  हैं वह चोर हैं। वह बुढिया की खीर खा गए।

उन्होंने जल्दी से चोरों को पकड़ लिया। उसकी पत्नी भी वहां पर  अपनें पति की आवाज सुन कर पहुंच गई थी। रात को वह अपनी ससुराल में पहुंच गया था। साथ वाले घर में उसकी पत्नी ने लपक कर उसे पकड़ लिया और उसे एक कमरे में बंद कर दिया। उसकी पत्नी ने अपने पति की जान बचा ली थी। दोनों चोरों को पकड़ लिया  गया। उसके पति बुद्धू राम ने अपनी पत्नी को सारी कहानी सुना दी थी कैसे वह दोनों चोर  उसे भी पकड़ कर ले गए थे?  पुलिस वालों नें बुद्धू राम को छोड़ दिया। जब शाम को वह घर आए तो वह बोली कि बेटा तुम कहां चले गए थे? तभी उसकी पत्नी बोली कि  वह अपनी मां की दवाई लेने चले गए थे। वह अपने पति से बोली जल्दी से अपने बोलने में सुधार लाओ तुम बोलते तो ठीक हो परंतु तुम जुबान क्यों नहीं खोलते ? उसने अपनी पत्नी से कहा कि मेरी मां ने मुझे कहा था कि हां जी और ना जी के ईलावा तुम कुछ मत बोलना। इसलिए मैंने अपनी जुबान नहीं खोली। उसकी पत्नी बोली सचमुच ही तुम  मेरे बुदधू राम हो। तुम जैसे भी हो मेरे हो।

ऐ राही चला चल

ए राही अपने पथ पर आगे बढ़ता चल। मत डर।

निर्भीक होकर अपना काम करता चल।।

पर्वत की तरह स्थिर।

वायु की तरह द्रुतगति।

झरने की तरह निर्मल बन कर सबके दिलों में अपनी जगह बनाता चल।

हर खुशी सब पर लुटाता चल।।

दुर्गम पथ पर आगे बढ़ता चल मत डर। निर्भीक होकर अपना काम करता चल।।

कठिन रास्तों पर चलकर संघर्षों से मत घबरा।

फूलों के साथ कांटों को भी गले लगाना सीख।।

ए राही चलता चल चला चल मत  घबरा।

देश के लिए कुछ करके दिखा।

सपनों को धूमिल मत होने दे।

अपने सपनों को साकार होने दे।।

स्वेच्छा से शुद्ध मन से काम करता चल।

ऐ राही अपने पथ पर आगे बढ़ता चल। मत डर निर्भीक होकर अपना काम करता चल।

बुलंद हौसलों से अपने देश की नैया को पार लगा।

देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने का बीड़ा उठा।

एक अच्छा किया काम देश के लिए एक मिसाल बन जाएगा।

तेरे दिली विश्वास से भारत का उज्जवल भविष्य बन जाएगा।

ऐ राही  अपने पथ पर आगे बढ़ता चल मत डर।

निर्भीक होकर अपना काम करता चल।

अपनें पथ पर चलता चल। चलता चल।।

किसी गरीब के आंसू पोंछ कर तो देख।

किसी असहाय अबला का दर्द बांट कर तो देख।

ऐे राही चला चल, अपनें पथ पर आगे बढता चल।

निर्भीक हो कर अपना काम करता चल।।

(देवव्रत)

किसी गांव में  नीधी और विधि दो बहने थी। इन दोनों के पति किसी दुर्घटना में मर चुके थे उनके कोई भी बच्चा नहीं था वह चाहती थी कि अगर कोई बच्चा उन्हें गोद मिल जाता तो बहुत ही अच्छा था ।उन्हें गांव के लोगों ने बताया कि  तुम अनाथालय से अपनी इस इच्छा को पूरी कर सकते हो ।उन्हें तभी अपनी किसी  सहेली  से पता चला कि गांव के पुजारी को मंदिर में एक बच्चा मिला है ।कोई व्यक्ति बच्चों को चुपके से मंदिर में रख गया था ।वे दोनों मंदिर में पुजारी के पास पहुंच  कर बोली बाबा जी हम बड़ी फरियाद लेकर आपके पास आई हैं ।आपको जो बच्चा मिला है वह पता नहीं किसका है ?आप तो ठहरे मंदिर के पुजारी आप  इस बच्चे को अगर  हमें दे देंगे तो हम आपका आभार कभी नहीं भूलेंगे । बाबाजी बोले अब यह बच्चा मंदिर में ही पल कर बड़ा होगा।तुम्हारा क्या पता तुम इस को यूंही दर दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर दो ? वे दोनों बोली हमारी संताने  नंही हैं।हम दोनों इस बच्चे को मां का प्यार देंगे । बाबा जी बोले मैं तुम पर कैसे विश्वास करूं

पहले तुम इस बच्चे को एक महीने अपने पास रख कर दिखाओ तभी मैं समझूंगा कि तुम्हें इस बच्चे को देना है या नहीं । वह दोनों इस बात के लिए राजी हो गई ।एक महीने तक उन दोनों ने अपने बच्चे की तरह उस बच्चे की देखरेख की।उस मंदिर के पुजारी को विश्वास हो गया था कि वह सचमुच में ही दिल से इस बच्चे को चाहती हैं।  पुजारी ने कहा तुम दोनों बच्चे के लिए आपस में  झगड़ा तो नंही करोगी वे बोली नहीं हम दोनों सगी बहनें  हैं हम भला ऐसा क्यों करेंगी।  छोटी बहन बोली जितना हक मेरा इस बच्चे पर होगा उतना ही हक मेरी बड़ी बहन का इस बच्चे पर होगा ।साधु बाबा ने उस बच्चे को उन दोनों औरतों को सौंप दिया। उनको यह बच्चा मंदिर में मिला था इसलिए उन्होंने उस बच्चे का नाम रखा देवव्रत  रख दिया।देखते ही देखते देवव्रत  छ:वर्ष का हो चुका था ।वह दोनों उस बच्चे को बहुत ही प्यार से पाल रही थी।बच्चा भी उनको बड़ी मां और छोटी मां कह कर बुलाता था ।

एक दिन उन दोनों बहनों की ननद उनके घर आई हुई थी ।वह दोनों उसे देखकर बहुत ही खुश हुई ।वह उन दोनों बहनों का प्यार देखकर मन ही मन ईर्ष्या करने लगी। और सोचने लगी

कि यह दोनों बहनें तो आपस में कितने प्यार से रहती हैं ।मुझे उन दोनों में फूट डलवाने  का काम करना है। उसने अपने मन में एक योजना बना डाली ।उसने शाम को अपनी बड़ी बहन से कहा तुम भी देवव्रत को ज्यादा प्यार करती हो ।बड़ी बहन बोली नहीं जितना प्यार मैं देवव्रत से करती हूं शायद उससे भी ज्यादा मेरी छोटी बहन उस से करती है ।

यह बच्चा हम दोनों की जान है क्योंकि इस बच्चे के आने से हमारे घर में खोई हुई रौनक फिर से आ गई है ।वह बोली बहन यह तो ठीक है परंतु एक दिन जब देवव्रत बड़ा होगा तो वह ज्यादा प्यार अपनी छोटी मां से करेगा ।वह अपनी छोटी मां को लेकर तुमसे दूर हो जाएगा। बड़ी बहन बोली नहीं  मेरा देवव्रत ऐसा कभी नहीं कर सकता । उसकी ननद ने देवव्रत को अपने पास बुलाया और कहा बेटा मैं तुम्हें बहुत सारे लड्डू दूंगी । तू  अगर अपनी बड़ी मां को कहेगा कि मैं छोटी मां से ज्यादा प्यार करता हूं। शाम को उसकी ननद ने बड़ी मां  के पास देवव्रत को  ले जा कर वही सवाल पूछा बेटा तुम बताओ तुम अपनी बड़ी मां को ज्यादा प्यार करते हो या छोटी मां को । देवव्रत बोला मैं अपनी छोटी मां को ज्यादा प्यार करता हूं ।यह सुन कर बड़ी बहन निधि को सचमुच में ही लगने लगा की कहीं ना कहीं मेरी ननद ठीक कह रही है ।उनकी ननद तो दोनों बहनोे

में फूट डालना चाहती थी ।  बड़ी बहन  से कटी कटी रहने लगी ।छोटी बहन तो इस बात से बेखबर  वह तो देवव्रत को सचमुच में ही निधि से ज्यादा प्यार करती थी ।रातों को जाग जाग कर उसका ख्याल रखती थी परंतु छोटी बहन के मन में ऐसी कोई भावना नहीं थी

देवव्रत को सचमुच में ही अपनी छोटी मां से बहुत प्यार था । नीधी ने सोचा क्यों ना इससे पहले विधि मुझसे देवव्रत को छीन ले मैं देवव्रत को अपना बेटा बना लूंगी। उसने कानूनी रुप से देवव्रत को अपना बेटा बना लिया ।उसने विधि से धोखे से हस्ताक्षर करवा लिए थे ।जिन कागजात पर लिखा था कि कानूनी तौर पर लिखा था कि देवव्रत निधि का ही बेटा है। उसने अपनी छोटी बहन को यह भी नहीं बताया था कि उसने देवव्रत को कानूनी तौर पर गोद ले लिया है ।छोटी ननद अपने ससुराल जा चुकी थी ।

एक दिन बड़ी बहन निधी ने देव व्रत को कहा कि अब तुम्हें अपनी बड़ी मां के पास ही रहना है क्योंकि मैं तुम्हारी असली मां  हूं।विधी नही। क्यातुम मेरे पास रहना पसंद करोगे ?देवव्रत बोला मैं तो तुम दोनों के पास रहूंगा ।मां  मैं छोटी  मां के पास में रहना चाहता हूं।  बड़ी बहन बोली कि तू उनका बेटा नहीं है तू तो मेरा बेटा है ।रोते-रोते  देवव्रत विधि के पास गया और बोला क्या आप मेरी मां नहीं है ?मैं आपके पास क्यों नहीं रह सकता ?मैं तो सदा के लिए आपके पास रहना चाहता हूं ।रात को  जाग जाग कर हर वक्त आपने मुझे लोरी गा गा कर सुलाया है ।आपने रात रात को जाकर मेरी परवरिश की है । विधि बोली बेटा तुम्हारी मां तुम से झूठ बोल रही है। वह तो तुम्हारी परीक्षा ले रही है । अचानक निधि आकर बोली नहीं यह बात बिल्कुल सच है ।तुम्हारा अधिकार देवव्रत पर नहीं है देवव्रत  को कोई भी मुझसे नही  छीन सकता क्योंकि यही मेरे बुढ़ापे का सहारा  होगा। मैंने कानूनी तौर पर  उसे गोद ले लिया है । विधि ने सुना तो वह बहुत जोरों से रोनें लगी और बोली बहन यह तेरा मेरा कहां से आ गया  उस पुजारी बाबा ने इस बच्चे को  हम दोनोँ को दिया था।और कहा था कि हम दोनों ही इस बच्चे की मां हैं।तुमने इतनी जल्दी अपना वादा तोड़ दिया ।उसने अदालत के सारे कागजात उसके सामने कर दिए ।विधि ने  पांच  दिन तक कुछ भी नहीं खाया क्योंकि वह अपने बेटे से अलग रहना नहीं चाहती थी

निधि ने उससे कहा था कि  तुम इस घर को छोड़कर चली जाओ विधि बोली मुझे तुम्हारी हर बात मंजूर है ।मैं यह घर छोड़ कर चली जाऊंगी।तुम  देवव्रत को मुझे सौंप दो। निधि पर तो मानो जुनून सवार था वह तो अपनी बात पर कायम थी ।देवव्रत बोला मां मैं भी आपके साथ चलूंगा ।मैं अपनी बड़ी मां के पास नहीं रहूंगा । मैं तुम्हें प्यार करता हूं आप दोनों इस घर में  ही रहो मैं आप दोनों के पास ही रहूंगा। नीधी ने एक चांटा देवव्रत को मार दिया और कहा कि तू मेरी बात नहीं मानेगा तो मैं तेरी छोटी मां को तुमसे सदा के लिए दूर कर दूंगी ।उसने देवव्रत को धमकी दे डाली कि तुम अपनी छोटी मां को कभी जिंदा नहीं देखोगे ।

तुम अपनी छोटी मां को जिंदा देखना चाहते हो तो तुम को सब के पास यही कहना होगा कि मैं बड़ी मां से प्यार करता हूं ।नन्हा  सा देवव्रत चुपचाप कुछ कह नहीं सकता था ।वह अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था ।विधि बोली अगर तुम कचहरी जा सकती हो तो मैं भी अपने हक के लिए अदालत में जाऊंगी ।विधि  अपने गांव के सरपंच के पास जाकर बोली सरपंच साहब मैं क्या बताऊ?ं हम दोनों बहनों को गांव के साधु बाबा ने एक बच्चा किया था ।हमने उस साधु बाबा से फरियाद की थी कि बच्चा हमें दे दो।  वह बच्चा साधु बाबा के मंदिर में कोई छोड़  कर गया था। साधु बाबा से फरियाद करके हम दोनों बहनों ने उसे गोद ले लिया था। और उसे कहा था कि हम दोनों मां बन कर इस बच्चे की परवरिश करेंगे ।मेरी बड़ी बहन अपनी बात से  फिर रही है । बड़ी बहन बोली कि इस बच्चे पर तो मेरा ही अधिकार है क्योंकि इसको मैंने कानूनी तौर पर गोद ले लिया है ।मेरी बहन ने मेरे अनपढ़ होने का फायदा उठाया ।मुझसे कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए जिस पर लिखा था कि यह बेटा मैं अपनी बहन को देती हूं ।  छोटी बहन बोली देवव्रत पर जितना उसका है उतना ही मेरा भी क्योंकि रात रात को जाग जाग कर मैंने इस की परवरिश की है।  सरपंच ने निधि  के सामनें  देवव्रत को बुलायां और पूछा तुम किसके पास रहना पसंद करोग?नन्हा देव व्रत बोला मैं अपनी बड़ी मां के पास रहना चाहता हूं ।विधि ने  जब यह सुना तो वह फूट फूट कर रो पड़ी।  उसने सरपंच को कहा नहीं ऐसी बात नहीं है ।इस को यह बात बोलने के लिए  किसी न किसी नें मजबूर किया  है ।

सरपंच बोला मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता ।क्योंकि यह बच्चा  तुम्हारी बड़ी बहन के पास रहना चाहता है सरपंच का एक भाई था उसका नाम था दीनानाथ ।वह  अपने किसी काम से संबंधित दस्तावेज़ जमा करवाने अदालत जा रहा था। उसको एक साधु बाबा मेले के रास्ते में मिले जब वह आ रहा था तो साधु बाबा की आंखो में  किसी नेंंजहरीली  दवाई डाल दी थी। बाबा को पता नहीं चल सका यह औरत कौन थी और उसकी आंखों में उसने यह जहरीली दवाई क्यों डाली थी? दीनानाथ  ने उस साधु बाबा को अस्पताल में नहीं पहुंचाया होता तो बाबा सदा के लिए अपनी आंखें खो डालते अस्पताल में डॉक्टर ने कहा कि इन की आंखों का ऑपरेशन जल्दी करना पड़ेगा वह बाबा को लेकर अपने घर आ गया था ।साधु बाबा दीनानाथ को आशीर्वाद देकर  बोले  बेटा भगवान तुम्हारा भला करे ! एक बार फिर सरपंच के घर आकर विधि ने दरवाजा खटखटाया ।उनके भाई दीनानाथ ने दरवाजा खोला दीनानाथ ने कहा बहन तुम्हे क्या काम है?वह बोली कृपा करके आप  उन  साधु महात्मा से कहो कि देवव्रत को मेरे पास में रहने दो ।   आप की बात को वे टाल नंही सकते। मेरी बहन ने धोखे से मेरा बच्चा मुझ से छीन लिया है उसनें सारा का सारा  किस्सा दीनानाथ को  सुना दिया। दोनो बहनों को मंदिर के साधु बाबा ने बच्चा पालने के लिए दिया। दोनों इकट्ठे रहकर इस की परवरिश करेगी । उसने तो मुझसे मेरा बेटा मुझसे छीन लिया है । दीनानाथ बोले तुम्हारी बहन तो बड़ी चालाक है उसने धोखे से उस बच्चे को पता नहीं क्या पट्टी पढ़ा कर अपने पास रखने के लिए मजबूर कर दिया है । दीना नाथ बोले  बेटा अगर तुम्हें वह साधु बाबा मिल जाते हैं तो वह तुम्हारी गवाही दे सकते हैं ।वह तुम्हें बता सकते हैं कि मैंने ही वह बच्चा इन दोनों बहनों को सौंपा था । अंदर से करहानें की आवाज आई ।साधु बाबा बाहर आकर बोले बेटा जरा मुझे एक गिलास पानी पिलाना।  

विधि साधु बाबा को देख कर चौक  गई। विधि  नें साधु बाबा को कहा नमो नारायण !आपने मुझे पहचाना ।बाबा बोला बेटा मैं तुम्हें देख नहीं सकता क्योंकि अभी मेरी आंखों पर पट्टी बंधी है ।पता नहीं किस दुष्ट महिला ने मुझ पर इतना जहरीला पदार्थ फैंका कि मैं अपनी आंखें सदा के लिये गंवा देता अगर इन भाई साहब ने मुझे समय पर पंहूच कर बचाया नंही होता । विधि साधु बाबा के पैरों पर पकड़ कर फफक फफक कर रो पड़ी और बोली बाबा आपने मुझसे और मेरी बहन को एक बच्चा दिया था और कहा था कि तुम दोनों इस बच्चे की परवरिश करोगी ।मेरी बहन ने मुझ से धोखे से कानूनी कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिया और मुझसे देवव्रत को छीन लिया ।देवव्रत मुझे ज्यादा प्यार करता है । मैं तो चाहती हूं कि हम दोनों साथ रहकर इस बच्चे की देखरेख करे।ं परंतु मेरी बहन ने मुझे यह कहा कि तुम इस घर से सदा के लिए चली जाओ और देवव्रत को भी सिखा दिया है कि अगर तुम कहोगी कि मैं छोटी मां से प्यार करता हूं तो वह छोटी मां को सदा के लिए मार देगी ।डर के मारे देवव्रत मुझे बचाने के लिए उसके पास जाने के लिए मजबूर हो गया है ।साधु बाबा बोले बेटा मैं अदालत में चलकर गवाही दे दूंगा ।मैं अदालत में बताऊंगा कि मैंने इन दोनों बहनों को यह बच्चा सौंपा  था । विधि को ध्यान आया कि कि कहीं निधि नें ही तो बाबा के ऊपर जहरीला पदार्थ तो नहीं फेंका था ।कहीं वह चलकर अदालत में गवाही न  दे सके।निधि ने सारी बात दिनानाथ को कहीं कृपा करके आप अदालत में जाकर मेरी दरख्वास्त को मंजूर करने की अपील करें ।और उनसे कहे कि मुझे मेरा बेटा लौटाने की कृपा करें ।सारा मामला अदालत में चला गया था ।जज साहब ने कहा उस पर कानूनी तौर पर हक केवल बड़ी बहन यानि निधि का है ।इन सब बातों को मध्य नजर रखते हुए हम भी देव व्रत से पूछना चाहते हैं कि तुम किसके पास रहना चाहते हो ?विधि ने देवव्रत को समझा दिया था कि बेटा इस दुनिया में डर कर नहीं जी-या जाता मुझे तुम्हारी बड़ी मां कुछ नहीं कर सकती ।तुम सच्चाई का सामना डट कर करो नहीं तो तुम मुझे सदा के लिए खो दोगे ।मैं सचमुच में ही तुमसे दूर चली जाऊंगी ।क्योंकि हारता वही है जो डटकर लड़ना नही जानते।तुम्हारे साथ तुम्हारी छोटी मां है। और वही पुजारी जी हैं जिनसे मैंने और तुम्हारी बड़ी मां ने तुम्हें गोद लिया था । अदालत में देवव्रत ने कहा कि विधि ही मेरी छोटी मां है ।उस ने मुझे ज्यादा प्यार किया परंतु मैं तो दोनों के साथ रहना चाहता था परंतु मेरी बड़ी मां ने मुझे कहा कि अगर तुम अपनी छोटी मां का नाम लोगे तो मैं तुम्हारी मां को मार दूंगी ।मैं डर गया था मैंने सोचा था कि सचमुच में ही वह कंही मेरी छोटी मां को मार ना दे तब अदालत मे मेजर साहब ने कहा। अगली कार्यवाही अगले सप्ता होगी ।अदालत में नीधी से पूछा गया कि तुमको  यह बच्चा किस ने दिया  था? विधि बोलीं हम दोनों को यह बच्चा एक साधु महात्मा ने दिया था ।  निधि बोली नहीं ज़ज साहब।  वह झूठ बोल रहीहै।साधु महात्माने बच्चा मुझे दिया था ।उसे नहीं ।अदालत में दोनों लड़ने लगी क्योंकि निधि ने सोचा था कि साधु महात्मा तो शायद मर गया हो गया ।अंधा हो गया होगा।  उसने ही साधु महात्मा की आंखों में जहरीली दवाई डाली थी ताकि वह अदालत भी उसे पहचान ना सके ।उसने सोचा था की शायद साधु बाबा मर गया होगा तभी अदालत में विधि बोली कि हम साधु बाबा का अदालत मैं लेकर आ ग्ए हैं वहीं हमारी गवाही देंगे ।  निधि ने  जब यह सुना तो वह हैरान हो गई यह बात कैसेमालूम हुई ?

अब उसे पता चल चुका था कि साधु महात्मा की आंखों का ऑपरेशन होना है ।उसके बाद वह आकर गवाही देंगे ।दीनानाथ को सारी बात पता थी कि अब भी निधि साधु बाबा को नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए उसने डॉक्टर से मिलकर वहां अस्पताल में सी सी टीवी कैमरा फिट करवा दिया था ताकि निधि उसके साथ दोबारा कभी छल ना कर सके ।जिस दिन साधु बाबा का आपरेशन होना था उस उस दिन बडी दीदी अस्पताल में नर्स बनकर पहुंच गई थी

उसने साधु बाबा के कमरे में उनका गला घुटने का प्रयत्न किया । उसने  जैसे ही साधु बाबा का गला काटना शुरू किया बाहर से आकर कर्मचारियों ने निधि को रंगे हाथ पकड़ लिया।  पुलिस निधि को ले जा चुकी थी परं विधि ने जमानत देकर अपनी बहन को छुड़ा लिया था साधु बाबा की आंखों का ऑपरेशन हो चुका था । उन्हें दिखाई देने लगा था उन्होंने निधि को पहचान लिया था ।उन्होंने उसे बालों से पकड़ कर कहा दुष्ट औरत एक साधु बाबा के साथ छल करती है ।जा तू कभी सुखी नहीं रहेगी।  विधि बोली बाबा मेरी बहन को माफ कर दो ना जाने इस ने भी किसी के बहकावे में आकर दवे व्रत को मुझसे छीनने  का प्रयत्न किया होगा। देवव्रत आ कर  बोला बुआ ने मुझसे कहा था कि मैं तुम्हें ज्यादा लड्डू दूंगी अगर तू यह कह देगा कि मैं अपनी  बडी मां से ज्यादा प्यार करता हूं ।

सारी सच्चाई उसके सामने आ चुकी थी क्योंकि उसकी ननद ने ही उन दोनों बहनों के बीच फूट डलवाने की कोशिश की थी । निधि को कहीं ना कहीं अपनी गलती का एहसास हो चुका था ।उसने अदालत में कहा जज साहब मैंने धोखे से अपनी बहन से इस बच्चे को चुराया था ।इस बच्चे पर हम दोनों का अधिकार है ।इसबच्चे के लालच में मैंने साधु बाबा पर भी हमला किया । मेरी बहन ने मुझे जेल  जानें से बचा लिया । मुझे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा है । देवव्रत को हम दोनों अपना बच्चा जान कर पालेगें ।कृपया करके हो सके तो मुझे माफ कर देना। यह दस्तावेज़ मैंंजला डालती हूं।  उसने वह वह अदालत का दस्तावेज फाड़ दिया और साधु बाबा से भी क्षमा मांगी ।बोली  बाबा जी आपकी आंखों के ऑपरेशन का जो भी खर्चा होगा वह मैं अदा करूंगी क्यों कि मैंने किसी के बहकावे में आकर यह गलत कदम उठाया था ।आज सचमुच में ही मुझसे ज्यादा हक देवव्रत पर मेरी छोटी बहन का है । विधि विधि ने देवव्रत का हाथ निधि के हाथ में देकर कहा पहला अधिकार तो तुम्हारे  ऊपर बड़ी मां का है क्योंकि मुझ से पहले वह तुम्हारी बड़ी मां है।  उन दोनों ने देवव्रत को गले से लगा लिया और कहा बेटा हमें छोड़कर मत जाना तुम हम दोनों के बेटे हो।

ईश्वर

एक दिन गोलू अपनी मां की गोद में झूमते हुए बोला मां चलो खेलते हैं उसकी मां अपने बच्चे को को प्यार देना थी क्योंकि वह जानती थी कि मेरा गोलू अपने पापा के प्यार से वंचित रह जाता है ।वह अपने पापा की गोद में बैठना चाहता है । उस बच्चे के पापा के पास इतवार को भी समय नहीं होता था इतना अधिक काम था कि वह बच्चे को कभी भी पास बैठकर प्यार नहीं कर सकते थे। जब शाम को उसके पापा घर आते तो गोलू सो चुका होता मासूम सा गोलू अपनी मां से कहता कि मामा मेरे पापा के पास मेरे लिए समय नहीं  है। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब मैं भी अपने पापा से प्यार नहीं करुंगा ।उसकी मम्मी कहती कि बेटा ऐसी बात नहीं है तुम्हारे पापा तुम्हें भी प्यार करते हैं परंतु छुट्टी वाले दिन भी उन्हें काम पर जाना पड़ता है। उसकी मां कहती थी बेटा ध्रुव के पिता भी उसे प्यार नहीं करते थे भगवान जी से मांगना पड़ता है उनकी पूजा करनी पड़ती है । उस ने अपनी मम्मी से पूछा यह भगवान जी क्या होता है ।उसकी मम्मी ने कहा भगवान का मतलब हे ईश्वर हमें ईश्वर को मनाना पड़ता है ।जो  व्यक्ति ईश्वर की पूजा करता है वह हमेशा अपने मां बाप का प्यार पाता है ।छोटा सा गोलू सोचने लगा कि वह ईश्वर को ढूंढ कर ही रहेगा और उससे पूछ कर ही रहेगा  कि मेरे पापा मुझे क्यों गोद में नहीं बिठाते ।वह मुझे क्यों प्यार नहीं करते क्यों ,उनके पास मेरे लिए समय नहीं है। गोलू  जब भी खेलने जाता तब यही सोचा करता कि भगवान जी, जब मुझे मिलेंगे तब मैं उन की खूब सेवा करुंगा ।मैं उनको खाना खिलाऊंगा, अपनी चॉकलेट भी उन्हें दे दूंगा और उन्होंने उस छोटे सेे बच्चे के दिमाग में ना जाने क्या-क्या बातें थी जिनको वह भगवान जी   से  कुछ कहना चाहता था। उसकी मां ने उसे बताया था कि ईश्वर हमें किसी भी रुप में मिल जाते हैं

।एक दिन उसको कहीं से पता चला कि भगवान मंदिर में मिलते हैं। उसने देखा की मंदिर की सीढ़ियों के पास एक भिखारी बैठा हुआ था ।भिखारी को देखकर गोलू बोला तुम कौन हो और यहां पर सीढ़ियों पर क्यों बैठे हुए हो ?उस भिखारी ने कहा मैं ईश्वर हूं ।गोलू को उसकी मां ने कहा था कि ईश्वर तो किसी भी रुप में आ सकते है,एकदम उनको देखकर गोलू अचरज में आ गया। उसकी मां ने उसे कहा था कि ईश्वर तो किसी भी रुप में आ सकते हैं । गोलू ने कहा अंकल अंकल ,इतने दिनों तक आप कहांथे? मैं आपको ढूंढते-ढूंढते थक गया ।आज मिले हो ,मैं आपको इतनी आसानी से नहीं जाने दूंगा ।यह कहकर गोलू ने अपनी जेब से ₹5 का सिक्का निकाला और कहा यह लो भगवान जी, मेरे पास यही  पांच  रूपये है । मेरी मां ने मुझे यह रुपए चॉकलेट के लिए दिए थे । गोलू भिखारी से हर रोज मिलने लगा ।एक दिन उसनें  उस भिखारी को पूछा कि भगवान जी मुझे बताओ आप कहां रहते हो?

एक दिन वह भिखारी सीढ़ियों से नीच गिर गया । उसके काफी चोट लग चुकी थी। उसके सिर से खून बह रहा था । गोलू उसकी चोट  को देखकर जोर जोर से रोने लगा।   आते जाते लोगों ने गोलू से पूछा कि यह व्यक्ति कौन है तब उसने कहा कि यह ईश्वर अंकल है ।वह  अंकल से फोन लेकर   उन्हें डॉक्टर अंकल के पास   उस भिखारी को लेकर गया और उसकी पट्टी की । गोलू ने अपनी मां से कहा कि आज ईश्वर अंकल मुझे बहुत दिनों बाद मिले है चार-पांच दिन तक  अब  मैं उन्हें अपने घर पर ही रखूंगा जब तक की पूरी तरह वह ठीक नहीं हो जाते जब वह भिखारी ठीक हुआ तो उसने पाया कि वह बच्चा अपने पिता के प्यार से वंचित है ।

गोलू उनके पास आया और कहने लगा , मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं ।उसने गोलू को   कहा  ,तुम मुझ से   पूछना चाहते हो कि तुम्हारे पापा तुम्हें कितना प्यार करते हैं।  तुम जैसे बेटे को कौन प्यार नहीं करेगा जब भिखारी जाने लगा तो गोलू ने उसको अपनी गुल्लक देते हुए कहा ,ईश्वर अंकल यह तुम रख लो  ,इनसे आप अपनी दवाइयां ले लेना । मेरी मम्मी ने मुझे बताया था कि ईश्वर से प्रार्थना करना उनकी सेवा करना तभी तुम्हें उनसे आशीर्वाद मिलेगा । भिखारी को अपने किए पर पछतावा हो रहा था वह एक भीखारी नहीं मगर उसका लूटने का धंधा था ।उस बच्चे की सीख से उसका हृदय पिघल गया ।वह  गोलू को अपने साथ ले जाना चाहता था ।उस छोटे से बच्चे ने तो उसे भगवान का दर्जा दे दिया था। ।उस भिखारी ने सोचा कि आज से मैं कभी कोई लूटपाट का काम नहीं करूंगा। नहीं तो कोई भी ईश्वर पर विश्वास नहीं करेगा ।उसने बच्चे को गले लगाते हुए कहा कि तुम जैसे बच्चे को पाकर कौन धन्य नहीं होगा ।उस भिखारी ने उस बच्चे के पापा से मिलकर उन से फरियाद कि आप अपने काम में इतना व्यस्त हो गए हैं कि आज आपका प्यार पाने के लिए आपका बच्चा ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है   मेरे पापा के पास मुझे प्यार करने के लिए भी समय नहीं है।उसने सारा वृत्तांत गोलूके पापा से कहा ।

गोलू के पापा ने महसूस किया कि आज तो मैंने   अपने बेटे को खो  ही दिया था। भिखारी ने गोलू के पापा को सारी बात बता दी थी कि आपका बेटा मुझे भगवान मानता है उसने अपनी मां से कहानी सुनी थी।  भगवान से जो कूछ  मांगो भगवान उसे अवश्य देते हैः मैं तो आपके बच्चे को चुराकर ले जाने के लिए आया था इस बच्चे ने तो मेरी सेवा करके मुझे पाप करने से बचा लिया ।  आज के बाद मैं इस बुराई के धंधे को छोड़ दूंगा और भगवान की इस दुनिया में गरीबों की मदद कर अपने जीवन को सार्थक करुंगा।

मार्ग दर्शक

मैं उस समय छठी कक्षा में पढ़ता था। मैं बचपन की यादों में जब झांकता हूं तो मेरे मानस पटल पर बचपन की यादें तरोताजा हो आती हैं ।मैं उसमें इतना भोला नहीं था जितना शक्ल से दिखाई देता था ।मैं और मेरे दोस्त हमेशा कक्षा में पढ़ने के इलावा शरारतें करने में मशहूर थे। हमें गुरु जी ने सही शिक्षा व हमारा अच्छा मार्गदर्शन नहीं किया होता तो आज अच्छा ऑफिसर बनने की बजाय सड़क पर या चौराहे पर भीख मांग रहे होते।.उन गुरु जी को मेरा शत शत नमन मैं और मेरे चारो दोस्त कक्षा में शरारत करने में बहुत ही माहिरथे। हमारा कभी भी पढ़ने में मन नहीं लगता था और अध्यापकों से थोड़ा बहुत डरते थे ।. एक गुरुजी जो हमें समाज व हिंदी पढ़ाते थे उन से हमें डर नहीं लगता था । वह कभी भी मारते नहीं थे ।उनकी कक्षा में हम पढ़ने के इलावा मंनोरंजन के साथ साथ खेलते भी रहते थे और हमने उन गुरु जी को ना जाने कितने नामों की संज्ञा दे दी थी परंतु उन्होंने फिर भी हमें कुछ नहीं कहा। अन्य अध्यापकों ने एक दिन समाजिक विज्ञान के अध्यापक को कह ही दिया कि इन बच्चों को आप क्यों नहीं मारते हो ? गुरुजीने अध्यापकों की बातों को हंसी में टाल दिया।वे थोड़ी बहुत डांट डपट करते परंतु कहते कुछ नहीं थे ।एक दिन उन गुरुजी ने हमारे ग्रुप को अपने पास बुलाया और कहा,  तुम्हारा ग्रुप सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठेगा क्योंकि और बच्चों ने भी पढ़ाई करनी होती है। तुम शरारतें करो या जो मर्जी करो पर बेटा अध्यापक की बातों को गंभीरता से लेना चाहिए ।तुम अच्छे घर के बच्चे हो मुझे पता है तुम सब बहुत ही होशियार हो तुम जरा सा भी  पढाई की ओर ध्यान दो तो तुम्हे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। अभी तुम बच्चे हो उदंड हो, जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मैं भी बहुत शरारतें किया करता था। बेटा मैं तुम्हें समझा ही सकता हूं। सभी बच्चों को थोड़ी देर के लिए तो उनको इस प्रकार महसूस होता कि हमारे अध्यापक जो कह रहे हैं वह ठीक कह रहे हैं ।वे अपनी शरारतों से फिर भी बाज नहीं आए । दिन इसी तरह गुजर रहे थे। एक दिन सभी अध्यापक स्कूल के प्रधानाचार्य के पास गए और गुरुजी की शिकायत कर दी कि समाजिक ज्ञान और हिंदी वाले अध्यापक की कक्षा में बच्चे बहुत शोर मचाते हैं। गुरुजी उनको जरा भी कुछ नहीं कहते हैं । ऐसा कब तक चलेगा? प्रधानचार्य भी रोज-रोज की शिकायतों से तंग आ गए थे ।वह भी चाहते थे कि या तो गुरुजी का तबादला दूसरी जगह करवा दिया जाए या उन बच्चों को स्कूल से निलंबित कर दिया जाए ।

एक दिन की बात है कि प्रधानाचार्य जी ने उन्हें कक्षा में बुलाया और कहा कि उन बच्चों के नाम बताओ जो आपकी कक्षा में बहुत शरारत करते हैं ।उन्हें हम एक बार चेतावनी देंगे ,अगर वे फिर भी नहीं सुधरते तो हम उन्हें अपने विद्यालय से निलंबित कर देंगे ।ऐसे बच्चों का पढ़ने से क्या फायदा जो अध्यापक की बात ध्यान से नहीं सुनते । गुरु जी ने प्रधानाचार्य जी से कहा कि जहां तक मैं सोचता हूं ,कोई भी बच्चा  पढाई में कमजोर नहीं  है ।मेरी कक्षा में कुछ बच्चे हैं जो सुनते नहीं है मगर ऐसा नहीं है कि वह नालायक हैं वह शरारतें इसलिए करते हैं कि वे उस समय पढ़ना नहीं चाहते ।वह बच्चे हैं बेचारे सुबह से शाम पढाई करते-२ इतना थक जाते हैं कि पढ़ाई  में उनका मन ही नहीं लगता । लगातार सभी कालांश में तो सभी गुरुजनों की कक्षा में शरारत नहीं कर सकते क्योंकि उनके सिर पर डंडा बरसने का डर जो रहताहै। बेंच पर खड़ा रहने को कहा जाता है या कक्षा से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है ।मैं बच्चों की मनो भावनाओं को अच्छे ढंग से समझता हूं। मैं तो आप को उन बच्चों के नाम नहीं दे सकता। मैं नहीं समझता कि वह पांचों बच्चे नालायक है । काम का  बोझ होने के कारण वह पढ़ना पसंद नहीं करते, क्योंकि मैं ही ऐसा उनका एक गुरु हूं जो उनको बिल्कुल नहीं मारना चाहता? प्रधानाचार्य गुरु जी की बातों को सुनकर हैरान हो गए ।उन्हें सूझ ही नहीं रहा था कि वे इस विषय मे क्या कहें।  किसी अन्य अध्यापकों को मुझ से कोई शिकायत होती तो वह मुझे कहते एक बार उन्होंने मुझे बच्चों के बारे में कहा था मगर मैंने  उन की बात को हंसी में टाल दिया था।  मैं उन  पांच बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता आप  अगर उन बच्चों को स्कूल से निलंबित कर देंगे तो मैं इसे अपना अपमान समझूंगा ।मैं समझूंगा कि मैं एक अच्छा गुरु नहीं बन सका । मैं बच्चों का बुरा नहीं चाहता इसलिए आज मैं अपना अध्यापक पद से इस्तीफा दे रहा हूं।

प्रधानाचार्य के कमरे में अपना इस्तीफा उनकी मेज पर रख दिया । शरारती बच्चों में से एक बच्चा गुरुजी की सारी बातें सुन रहा था ।उस ने सारी की सारी बातें अपने दोस्तों से जा कर कही।उन पा़च बच्चों की हरकत के कारण आज उनके गुरु जी ने विद्यालय को छोड़ने का फैसला कर लिया था।  उन पांच बच्चों को अपनी गलती का एहसास हुआ जिसकी वजह से

सारे के सारे अध्यापक मिलकर गुरुजनों को निलंबित करने की योजना बना रहे थे उन समाजिक ज्ञान वाले गुरुजी ने  कुछ भी ना कहकर वहां से जाने का फैसला कर लिया था ।जैसे ही सामाजिक  अध्यापक के गुरुजी कक्षा में आए कि वे पांचों के पांचों बच्चे अपने गुरु जी की बातों को ध्यान से सुन रहे थे ।उनकी आंखों में आंसू देख कर गुरुजी से नहीं रहा गया वह बोले बेटा आज तुम्हारा ग्रुप बहुत ही शांत है आज तो तुमने मेरा सारा पाठ जो मैंने पढ़ाया वह ध्यान से सुना अच्छा बेटा ,अब मैं इस विद्यालय से शीघ्र ही जा रहा हूं। मैंने तुम्हें अनजाने में कुछ कहा हो या किसी भी बच्चे का दिल दु:खाया हो तो मैं तुम बच्चों से भी क्षमा मांगता हूं ।गुरु जी का इतना कहना था कि वह पांचों के पांचों बच्चे गुरुजी के कंधे लगकर जोर जोर से रोनेलगे।

गुरु जी आप कितने अच्छे  हैं इसका अंदाजा हमें आज लगा। हमने आप की कक्षा में इतनी शरारत की मगर आपने हमें कभी भी नहीं मारा। हर बात को हंसी में टाल दिया गुरुजी आज हम कसम खाते हैं कि आज के बाद हम कक्षा में कभी भी शरारत नहीं करेंगे और जी जान से मेहनत करेंगे और अच्छे अंकों में उतीर्ण होंगे ।कृपा करके !आप हमारे विद्यालय से मत जाओ।

वह पांचों बच्चे प्रधानाचार्य जी के पास गए और उन से बोले कृपया करके आप हमारे गुरु जी का इस्तीफा फाड. दे। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम कभी भी शरारत नहीं करेंगे और एक मौका हमें दे दीजिए ।प्रधानाचार्य जी ने उन गुरुजी का इस्तीफा फाड़ दिया और बच्चों को कहा कि जाओ मैंने तुम्हें माफ कर दिया ।वह अब समझ गए थे कि असली गुरु तो वही है जो बच्चों को अच्छी शिक्षा दे  बच्चे मारपीट द्वारा नहीं समझ सकते आज भी हमें वह गुरुजी कभी भी नहीं भूलते जिन्होंने हमारा सच्चा मार्गदर्शन किया और हम उच्च पद पर आसीन हुए।

फूलों की गुफ्तगू

बाग में सारे फूल मिलकर कर रहे थे संवाद। एक दूसरे के साथ  नोकझोंक कर रहे थे विवाद।।

गुलाब आगे आकर बोला मैं तो हूं धरती का सबसे सुंदर फूल।

मेरे जैसा खुशबु दार कोई और नहीं है फूल।।

मेरे फूलों के रस से तरह-तरह के इत्र हैं बनाए जाते।

इन सब का उपयोग करके मानव  खुशी से फूले नहीं समाते।।

मेरी पतियों से गुलाब जल भी है बनाया जाता।  आंखों में डालने से यह ठंडक है पहुंचाता।।

गेंदा डेलिया  चंपा जूही चमेली सभी फूल अपनी अपनी डफली बजाने लगे।

एक दूसरे को मैं बड़ा हूं मैं बड़ा हूं कहकर सुनाने लगे।।

सूरजमुखी बोला मैं हूं सबसे बड़ा सुंदर फूल। मुझ से उलझनें की न करना भूल।।

मेरे  बीज से खाने का तेल है बनाया जाता। जिसको खाकर मनुष्य तंदुरुस्ती है पाता।।

मैं ही हूं फूलो में सबसे बड़ा।

कोई मेरे सामने आकर मुझसे नहीं लड़ा।।

कमल आगे आकर बोला मैं तो हूं राष्ट्रीय फूल। मुझे तो करतें हैं सभी कुबूल।।

मैं ही फूलों का राजा कहलाता हूं।

सभी लोगों के दिलों में अपनी धाक जमाता हूं।।

उन सब फूलों की बातें सुन रही थी एक तितली।

आगे आकर बोली। तुम्हारी बातें सुनकर मेरे मन से यह बात है निकली।

तुम सभी शांत होकर मुझसे नाता जोड़ो। अपना  अहं दिखा कर एक दूसरे के दिल को मत तोड़ो।।

अपनी अपनी जगह पर तुम सभी हो खास। इसका तुम सब को क्यों नही हो रहा है आभास।।

बड़ा बनने के चक्कर में एक दूसरे पर कीचड तो मत उछालो।

एक दूसरे से बैर  ले कर शत्रुता तो मत निकालो।।

तुम सब से ही तो है अस्तित्व हमारा।

तुम ही से तो है बाग का रूप निराला।।

तितली  की बात सुन फूल आपस में बैर  छोड़ कर एक दूसरे के गले मिले।

उस दिन के बाद कभी भी आपस में नहीं भिड़े।। ।

भोलू पंडित

किसी गांव में एक बुढ़िया रहती थी उसके एक ही बेटा था उसका नाम था भोलू ।भोलू पढ़ने लिखने में ध्यान नहीं देता था।   वह  किसी की बात ध्यान से   नहीं सुनता था ।अपना काम भी ठीक ढंग से नहीं करता था इसलिए सभी उसे बुद्धू कहकर पुकारते थे।  उसकी मां अपने बेटे के सिर पर हाथ फेर कर कहती मेरा बेटा    बुद्धू नहीं है ।वह अपनी मां के प्यार से ही तो वह काफी खुशी महसूस करता था ।वह अपने दोस्तों के इस व्यवहार से खफा रहता था उसके दोस्त उसे चिढ़ाते  कि वह देखो बुद्धू आया परंतु वह उन्हें जवाब नहीं देता था। वह इतना  भोला  था कि किसी को कुछ नहीं कहता था।स्कूल में मैडम और उसके अध्यापक भी  उसके दोस्तों के सामने उस को बुद्धू कह कह कर पुकारते तो  तब उस को अपने अध्यापकों की बात भी नहीं  जंचती थी। ऐसा नहीं था कि उसे कुछ समझ नहीं आता था जब उसके  दोस्तों ने भी उसे बुद्धू कहकर चिढ़ाया  तो  उनकी देखादेखी में उनके अध्यापकों ने भी उसे बुद्धू कहना शुरु कर दिया।उसकी धैर्य सीमा जवाब दे गई वह घर में आकर अपनी मां को जोर-जोर से रोते हुए बोला मां मां मैं सबकी नजरों में बुद्धू हूं और मैं जिंदगी में कुछ भी करने के लायक नहीं हू।ं अपने दोस्तों तक तो ठीक था परंतु सभी रिश्तेदारों ने और बाहर के लोग जब मुझे बुद्धू कहकर चिढ़ाते हैं तो कहीं ना कहीं मेरे मन में बहुत ही चोट लगती है। मेरा अंतर्मन मुझे धिक्कारता है। क्या सचमुच में मैं बुद्धू हूं? इसी हीन भावना के कारण मेरा मन  जरा भी पढाई में नहीं लगता है ।किसी भी काम को ठीक ढंग से नहीं कर सकता हूं। मां मुझे बताओ मैं क्या करू? दूसरे दिन भोलू ने अपनी मां के पैर छुए और कहा मैं स्कूल जा रहा हूं ।उसकी मां अपने बेटे के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित हो गई। आज उसे क्या हुआ है भोलू स्कूल नहीं गया रास्ते में उसके सहपाठी उसे मिले तो उन्होंने उसे कहा बुद्धू कहां जा रहे हो ? उसने कहा मैं मरने जा रहा हू। भागकर वह उनकी आंखों से ओझल हो गया ? रास्ते में उसकी मैडम मिली उसने भी उससे वही बात पूछी भोलू तुम कहां जा रहे हो ?मैडम जी मैं मरने जा रहा हूं।उसकी मैडम ने समझा कि वह मजाक कर रहा है तभी पड़ोस के अंकल उसी दिखाई दिए वह बोले तुम आज  स्कूल ड्रेस में भी नहीं हो बुद्धू बेटा तुम कहां जा रहे हो?  उसने कहा बुद्धू कहां जाएगा बुद्धू मरने ही जा रहा है।। सभी को उसने यही बात कही अब तो जल्दी जल्दी उसने अपनी चाल को तेज किया और बहुत ही दूर चलता चलता एक पहाड़ी पर पहुंच गया । वहां से नीचे इतनी भयानक खाई थी कि वहां से अगर कोई कूदे तो वहां से उसकी एक हड्डी भी नहीं मिल सकती थी । वह तो सचमुच ही मरने जा रहा था ।वह चलते-चलते सोच रहा था कि सब मुझे बुद्धू कहकर चिढ़ाते हैं कोई भी मुझे इस काबिल नहीं समझता कि मैं कोई ना कोई काम तो अच्छे ढंग से कर सकता हू।ं ऐसी जिंदगी से क्या लाभ जिससे मैं किसी को भी खुशी नहीं दे सकता ।बुद्धू व्यक्तियों को जीने का कोई हक नहीं होता  ।उनका होना या न होना तो बराबर ही है ।जिसके होने से सबको समस्या ही खड़ी होती है मैं अपनी मां को तो इस जीवन में कोई खुशी नहीं दे सका लेकिन हे भगवान !मुझे अगले जन्म में मुझे बुद्धू मत बनाना। मैं अगले जन्म में अपनी बूढ़ी मां का बेटा ही बनना चाहता हूं ।मैं अगले जन्म में उन्हें इतनी खुशियां दूंगा कि वह अपने पिछले जन्म के दुखों को भूल ही जाएगी।

भोलू ने अपना मन पक्का कर लिया और जैसे ही कूदने लगा उसका पैर एक पहाड़ी पर  पत्थर से टकराया । वह नीचे गिर गया वहं एक जगह अटक गया था।  उसका माथा उस पत्थर से टकराया । उसके माथे से बहुत ही अधिक खून बह चुका था ।उसने अपने सामने एक साधू को आते देखा साधु भगवान ने उस पर पानी के छींटे फैकें। उन्होंने उसे बाजू से पकड़कर ऊपर निकाला ।एक जगह अलग बिठाया और उसके सिर पर पट्टी बांधी तब उसे कहा कि बेटा आत्महत्या करना बहुत बुरी बात है आत्महत्या करना तो कायरो को शोभा देताहै।तुम तो मुझे कायर तो नहीं लगते हो ।तुम तो मुझे भोले ही दिखाई देते तो बेटा तुम मुझे बताओ तुम अपनी जान देने क्यों जा रहे  थे ?साधु महात्मा को भोलू ने बताया कि बाबा मैं अपने जीवन से तंग आ चुका हू मुझे हर कोई बुद्धू कहकर चिढ़ाता है । लेकिन मेरी मां को छोड़ कर  मेरी मां मुझे बुद्धू नहीं कहती तब साधु बाबा बोले तुम्हे तो गर्व महसूस करना चाहिए किं तुम्हारी मां कितनी महान है तुम्हें इतना प्यार जो करती है ।तुमने अपनी मां के बारे में जरा भी नहीं सोचा। अपनी मां के दिल को कभी ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए ।लोग तो तुम्हारे बारे में ना जाने क्या-क्या कहेंगे ।क्या तुम उनके कहने से बुद्धू बन जाओगे ?एक बात सोचो बेटा मैं तो तुम्हें बुद्धू नहीं समझता अगर तुम बुद्धू होते तो तुम मेरी बात ध्यान से नहीं सुनते ।तुमने मेरी बात ठीक ढंग से सुनी कौन कहता है तुम बुद्धू हो?  उसने कहा कि हे साधु महाराज! तुम कौन हो? तुम मुझे क्यों बचाना चाहते हो उस साधु महात्मा ने कहा कि मेरा नाम  हरिहर  है।उस विशाल पत्थर के नीचे कुटिया बनाकर रहता हूं परंतु तुम उस गुफा को देख नहीं सकते नीचे देखने की हिम्मत करोगे तो नीचे गहरी खाई में लुढ़क जाओगे ।मैं तुम्हें कहता हूं कि बच्चे अपने घर को लौट जाओ।  भोलू ने कहा साधु महाराज अब तो मैं पूरा निश्चय कर चुका हूं। मैं इस पहाड़ी से कूदकर अपनी जीवन लीला को समाप्त करना चाहता हूं।साधु महात्मा ने कहा बेटा मान लो तुम इस खाई से नीचे गिर गए और तुम मरे नही तुम्हारी हड्डी पसली टूट गई या टांगे टूट गई तब तुम क्या करोगे ? वह बोला साधु बाबा तुम मुझसे चिकनी-चुपड़ी बातें सुनाकर मुझे मत बहलाओ। आप यहां से चले जाओ मैं आज तो मर कर ही रहूंगा ।नहीं मरूंगा ,तो जो मेरी किस्मत में होगा देखा जाएगा । अचानक साधु ने कहा अच्छा सुनो आज मैं तुम्हें एक उड़ने वाला घोड़ा देता हूं। यह घोड़ा केवल दस मिन्ट तक ही उड़ेगा ।यह घोड़ा तुम्हारे बहुत काम आएगा।  भोलू बोला मैं इस घोड़े का क्या करूंगा ?ं  साधु बाबा बोले बेटा तुम्हें मेरे कहे पर विश्वास ना हो तो आजमा कर देख लो तब भोलू ने कहा अच्छा, तुम इस घोड़े को उड़ाकर दिखाओ क्योंकि घोड़ा उड़ता थोड़े ही है ?।घोड़ा तो दौड़ता है तभी साधु बाबा भोले यह एक जादुई करिश्मा है यह जादू का घोड़ा है । उन्होंने कहा  घोड़े उड घोड़ा पहले तो रूका  फिर इतनी दूर उड़ गया कि वह घोड़ा दिखाई नहीं दिया फिर दस मिनट बाद वहीं आकर खड़ा हो गया। भोलू को साधु बाबा के ऊपर यकीन हो गया था ।उसने हत्या का विचार त्याग दिया और और आगे रास्ते पर चलने लगा ।

भोलू सोचने लगा अभी मैं घर नहीं जाना चाहता क्योंकि जब तक कुछ काम का जुगाड़ नहीं करूंगा तब तक मैं घर नहीं जाने वाला ।मेरी मां भी मुझे बुद्धू ही समझेगी। उसने दूसरी छोर की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए ।उसे चलते चलते रात हो चुकी थी। एक पेड़ के नीचे उसने रात बिताई। रात को उसे डर भी लग रहा था ।उसने अपने घोड़े को एक पेड़ के नीचे बांध दिया था ।उसने सोचा कि अगर किसी जानवर ने मुझ पर हमला किया तो वह उस घोड़े पर उड़कर  दस मिनट में किसी और जगह पहुंच सकता है ।एक ऐसे शहर में पहुंच गया था वहां जाकर उसने देखा कि एक बहुत ही बड़ा नगर था ।वहां एक राजा अपनी बेटी की बीमारी के कारण बहुत ही उदास रहता था। उसकी बेटी अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी। वह कभी भी हंसती नहीं थी। उसने बहुत ही हथकंडे अपना कर देख लिए थे परंतु उसकी कसौटी पर कोई भी खरा नहीं उतरा था ।उसने अपने राज्य में घोषणा कर दी थी कि अगर कोई मेरी बेटी को हंसा देगा तो वह उसे 1000 स्वर्ण मुद्राएं देगा ।भोलू भी उस विशाल सभा में पहुंच गया था जहां पर उस देश के राजा ने अपनी बेटी को हंसाने के लिए यह शर्त रखी थी ।  भोलू ने भी इस शर्त को पढ़ा और सोचने लगा कि मैं कोई उपाय करता हूं ।जिससे उस राजा की बेटी हंस जाए। वह राजा के पास जाकर बोला वह आपकी बेटी को हंसाने का प्रयत्न करेगा ।राजा बोला सुबह से शाम होने को आई है कोई भी मेरी बेटी को हंसाने में समर्थ नहीं हुआ ,तुम भी आजमा कर देख लो । राजा ने कहा कि तुम्हें मैं पंडित की उपाधि भी दूंगा और अगर तुम मेरी बेटी को हंसा पाए तो हजार मुद्राएं तुम्हें तुम्हारे ईनाम की भी दूंगा। मैं तुम्हें 2000 मुद्राएं दूंगा भोलू ने कहा राजा जी अपनी लड़की को लेकर आओ। राजा ने अपनी बेटी को उस विशाल जनसभा में बिठाया ,तभी भोलू बोला राजकुमारी जी की जय हो ।आज मैं तुम्हें एक करिश्मा दिखाऊंगा ।उसने राजा की बेटी को कहा कि मैं तुम्हारे  साथ  एक  खेल खेलूंगा तुम अपनी  तीन सखियों को बुला कर ले आओ ।  राजकुमारी की सहेलियां भी आ गई थी ।सहेलियों से भोलूू ने कहा बैठ जाओ ।  भोलू ने उन से कहा जब मैं कहूंगा उड़ तब तुम उस वस्तु को उड़ा देना। भोलू ने कहा चिड़िया उड ।सब सहेलियों ने अपने हाथ ऊपर किए  एक-एक करके उसने सभी पक्षियों के नाम लिए।  उसने अचानक गाय उड़ कहा। उसकी इस बात से   उपस्थित  लोग जोर-जोर से हंसने लगे ।सभी लोग उससे कहने लगे बुद्धू क्या कभी गाय भी उड़ती है? कई सहेलियों ने ने गाय को उड़ा दिया था? ़

राजकुमारी जरा भी नहीं हंसी ।भोलू ने कहा घोड़ा उड़। वह अपना घोड़ा लेकर आया ।सभी लोग उस को हंसी भरी नजरों से देख रहे थे।  घोड़ा  हिनहिनाया और वह घोड़ा भोलू पर दौड़ा ।अचानक भोलू नीचे गिर गया ।उसके सारे कपड़े फट चुके थे।। उसको इस अवस्था में देखकर सारे लोग हंसने लगे तभी भोलू एक बार और पलटा नीचे गिरा धड़ाम, धड़ाम।  उसे नीचे गिरता देख कर राजकुमारी जोर जोर से हंस  पड़ी।अपनी बेटी को हंसता देखकर राजा बहुत ही खुश हुआ तभी अचानक भोलू घोड़े पर चढ़ा और घोड़ा उसे लेकर आसमान में उड़ गया ।वह दस मिनट बाद वापिस आया घोड़े को उड़ता देखकर राजा बहुत ही खुश हुआ  राजा ने भोलू को अपनी बेटी को हंसाने के लिए हजार स्वर्ण मुद्राएं दी और  घोड़े को उड़ाने के लिए 1000 स्वर्ण मुद्राएं और दी। मुद्राएं पाकर भोलू बहुत ही खुश हुआ। राजा ने अपनी सभा को  संबोधित करते हुए कहा आज मैं गर्व से कह रहा हूं कि आज मैंने इतने बड़े पंडित को अपनी विशाल सभा में बुलायाहै। आज से मैं इसे भोलू पंडित के नाम से पुकारूंगा ।तुम सब भी मेरे साथ दोहराओ भोलू ं पंडित की जय। राजा ने 2000 स्वर्ण मुद्राएं भोलू को दी ।खुशी-खुशी भोलू अपने घर वापिस आ रहा था ।उसकी मां ढूंढते-ढूंढते उसे पुलिस थाने में चली गई थी।सब उसको ना पाकर बहुत दुखी थे ।उसने अपनी मां को 2000 स्वर्ण मुद्राएं दी और कहा मां मैंने यह मुद्राएं अपनी मेहनत से हासिल की है। उसने एक बार फिर उस साधु महात्मा को धन्यवाद  कहां जिसने उन्हें जीने के लिए प्रेरित किया था।

(अब पछतावे होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत)

किसी गांव में रोशनी नाम की एक औरत रहती थी ।वह भिक्षा मांग मांगकर अपना जीवन यापन कर रही थी। वह बहुत ही आलसी थी। वह कभी भी नहीं सोचती थी कि मेहनत करके भी वह अपना पेट भर सकती है। गांव के लोग उसे कहते थे कि तुम्हें भगवान ने काम करने के लिए हाथ काट दिए हैं फिर क्यों तुम इस तरह मांग मांगकर अपना पेट भरती हो? ।तुम मेहनत क्यों नहीं करती ?

रोशनी के मन में कभी भी मेहनत करने का ख्याल नहीं आया उसने सोचा कि थोड़ा बहुत खाना तो लोग उसे दे ही देते हैं  ।इससे मेरा काम चल जाएगा यह सोचकर मुझे खाना तो मिल ही जाएगा वह कुछ भी काम नहीं करती थी ।गांव के लोग उसकी इस काम ना करने की आदत से बहुत परेशान थे ।वह सारा दिन  सो कर अपना जीवन निर्वाह कर रही थी ।वह  एक दिन अचानक  बिमार पड़ गई इतना बिमार पड़ गई कि उसे कोई पानी देने वाला भी नहीं था । उसने मन ही मन भगवान जी से प्रार्थना की हे भगवान एक बार मेरी पुकार सुन लो । मैं  अगर ठीक हो जाऊं  तब मैं कभी भी आलस नहीं करुंगी ।वह  जब थोड़ी ठीक हुई तो वह काम की खोज में निकल गई ।

उस गांव में एक सेठ जी के घर में बर्तन साफ कर उसे ₹50 मिले ।रुपए पाकर उसके मन में फिर से लालच आ गया ।उसने दूसरे दिन उन रुपयों से एक मुर्गी खरीदी और उसके लिए एक पिंजरा भी खरीदा ।जो कुछ मांगा कर मिलता था वह मुर्गी को भी खिलाती और अपने आप भी खाती अपनी खोली में उसने एक तरफ मुर्गी का पिंजरा रखा था और मुर्गी को हमेशा देखा करती थी की कहीं वह उड़ ना जाए ।इसलिए वह उस मुर्गी के पास ही अपनी टूटी हुई चारपाई लगा कर सोती थी ।इस तरह उसके दिन व्यतीत हो रहे थे ।एक दिन जब वह भिक्षा मांग कर आई तो वह काफी थक चुकी थी। थकी होने के कारण उसे तुरंत ही नींद आ गई। नींद में वह सपने ।देखने लगी कि उसकी मुर्गी ने कुछ दिनों बाद अंडे दिए । उन अंडो में से कुछ दिनों बाद छोटे छोटे चूजे निकले।

उसने देखा कि उसके पास बहुत सारी मुर्गियां हो गई है वहां कल्पना करने लगी। वह सपनों की दुनिया में हिलोरे खाने लगी मैं इन मुर्गी के बच्चों को बाजार में बेच दूंगीं तो इसके बदले में मुझे बाजार से बहुत सारे रुपए मिलेंगे ।इन रूपयों को  पाकर मैं अमीर हो जाऊंगी । मैं एक उच्च परिवार के व्यक्ति के साथ शादी करके अपना घर बसाऊंगी ।तब तो मुझे जरा भी काम करने की आवश्यकता ही नहीं होगी। मेरे पास काम करने के लिए बहुत सारे नौकर-चाकर होंगे ।फिर हमारे अपने भी बच्चे हो जाएगे ।जब मेरा पति अपने काम पर नहीं जाएगा तब मैं अपने पति की दाढ़ी और उसके बालों को जोर-जोर से  नोच डालूंगी और उसे सबक  सिखाऊंगी इसी उधेड़बुन में वह जोर-जोर से उसकी दाढ़ी और उसके बालों को खैंचनें लगी ।बालों को नोचते हुए उसके इस झटके से चारपाई टूट गई और पिंजरा भी टूट कर एक तरफ गिर गया

।मुर्गी फुर फुर करके उड़ गई और चारों तरफ जो कुछ उधार मांग कर लाई थी वह दानें इधर-उधर बिखर गए थे वह आलसी औरत इतनी धड़ाम से नीचे गिरी कि वह एक टांग से लंगड़ी हो गई । वह पछताने के सिवा कुछ नहीं कर सकती थी। वह सिर पकड़ कर जोर जोर से रोने लगी।

बांकू और कालू

किसी जंगल में  हिरणों का  झुंड रहता था। उन हिरणों  के झून्डों में से दो हिरण  एक दूसरे के बहुत ही गहरे मित्र थे। एक का नाम था कालू और दूसरे का नाम था बांकू। बांकू और कालू की दोस्ती देखकर सारे हिरणो को ईर्ष्या होती थी। वह चाहते थे कि इन दोनों की दोस्ती टूट जाए। वे किसी ना किसी तरह उनकी दोस्ती  को तोड़ना चाहते थे मगर जिन की दोस्ती  सच्ची होती है वह किसी के कहनें मात्र से नहीं  टूटती। वह दोनों एक दूसरे की धड़कन थे। बचपन से ही इकट्ठे रहते आ रहे थे। बांकू बहुत ही  मेहनती था लेकिन कालू थोड़ा आलसी था मगर शांत और गंभीर था। कई बार उसके दोस्त बांकू को अपने दोस्त पर काफी गुस्सा आता था। मैं हर रोज शिकार की खोज में दौड़ता हूं मगर मेरा दोस्त शिकार ढूंढने के बजाय केवल बैठे-बैठे खाता है।  बांकू को कभी भी बुरा नहीं लगता था। वह उसे इतना प्यार करता था कि वह उसकी कमियों को भी भूल जाता था।

एक दिन काफी वर्षा हो रही थी। कहीं भी भोजन नहीं मिल रहा था। कालू को बोला आज तू भी भोजन ढूंढने की कोशिश करना। लेकिन शाम के समय पर  जब कालू मुंह लटका कर वापिस लौटा तो अपने दोस्त पर उसे गुस्सा  आया। गुस्सा करनें पर भी बांकू ने देखा कालू चुपचाप बैठा रहा कुछ नहीं बोला। अचानक जब बांकू नें उसके पैरों पर चोट के निशान देखे तो उसका सारा गुस्सा काफूर हो गया। तूने मुझे क्यों नहीं बताया कि भोजन की तलाश करते करते तूने अपने पांव में चोट लगा ली है। कोई बात नहीं तू चिंता मत कर। मुझे कुछ मिला है। हम दोनों मिलकर खाते हैं

उसने अपने दोस्त के   जख्म पर मिट्टी खोदकर उसके चोट पर लगाई। बांकू उसका लहू बहता नहीं देख सकता था। काफी दिनों तक कालू कहीं नहीं जा सका।

सारे के सारे हिरण बांकू   को कहते  तुम्हारा दोस्त किसी ना किसी दिन तुम्हें दगा देगा तब तुम्हें पता चलेगा। तुम हमारी बात समझते ही नहीं। तुम तो निकले बुद्धू। वह  तुम्हें दिखाने के लिए लहूलुहान होकर आया है। हमारे साथ में रहो। बांकू बोला मुझे तो मेरा दोस्त जैसा भी है वह ठीक है। जब कालू ठीक हो गया तो एक दिन दोनों  फिर भोजन की तलाश में निकल पड़े। घर से निकले तो इकट्ठे थे रास्ते में इतनी तेज आंधी तूफान आया तो दोनों  रास्ताभटक गए। दोनों अलग अलग हो गए। जब तूफान थमा  तो बांकू को भोजन तो मिल गया था वह जल्दी जल्दी अपने दोस्त को ढूंढने लगा।। कालू  उसे कहीं दिखाई नहीं दिया। बांकू नें सोचा वह घर  पहुंच गया होगा लेकिन वह घर पर भी नहीं था।

कालू तो गहरी खाई में नीचे गिर गया और झाड़ियों में फंस गया था। उसके टांगों में चोट लगी थी। अपने दोस्त के बिना  बांकू को  अपना घर काटने को दौड़ रहा था। वह इधर-उधर चक्कर काट रहा था। उसका दोस्त वापस नहीं  आया। दूसरे दिन उसने सोचा वह वापिस आ जाएगा  लेकिन अगले दिन भी वापस नहीं आया। जब उसनें आहट  सुनी तो बहुत ही खुश हुआ  उसनें सोचा शायद मेरा दोस्त घर आ गया है। उसे हर बार निराशा ही हाथ लगी। हिरणों के झुन्ड नें जब यह सुना तो वे बहुत ही खुश हुए। वह कहने लगे मरो अकेले। हमने तुम्हें कितना समझाया था? तुम तो आगे आंखें मूंद कर अपने दोस्त पर विश्वास करते थे। वह तो तुम्हें छोड़कर चला गया है और  वह कभी भी वापस नहीं आएगा उसे तो कोई और मित्र मिल गए होंगे। बांकू अपने मन में सोचने लगा क्या सचमुच मेरा दोस्त मुझे दगा दे सकता है।? नहीं नहीं कदापि नहीं मेरा दोस्त मुझे दगा नहीं दे सकता।

सारे के सारे हिरण  उस पर दया बरसाने लगे। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। अब तुम्हारी अकल ठिकाने आ गई होगी अभी भी समय है हमारे साथ रहो। तुम्हारे पास कोई चारा नहीं है। अकेले रहो या मरो तुम से अच्छा तो तुम्हारा दोस्त है। वह तुम्हें छोड़कर चला गया।

बांकू सामने तो हिरणों को कुछ नहीं कहता था मगर रात के समय घंटो घंटो अपनें दोस्त को याद कर रोया करता था। कहीं मेरा दोस्त किसी  मुसीबत में तो नहीं फंस गया। वह तो खाना भी हासिल नहीं  कर सकता था। वह क्या मुझे छोड़कर जाएगा? वह कभी  अकेला नहीं रह सकता। मैं उसे ढूंढना नहीं छोड़ूंगा। जिस दिन वह मुझे मिलेगा उससे जरूर पूछूंगा तुमने मुझे धोखा क्यों दिया?

कालू हिरण झाड़ी में गिर गया था वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था। हिरण को इतनी चोट लगी थी कि वह हिल भी नहीं सकता था। मगर वह जिंदा था। उसके आसपास छोटे छोटे  खरगोश उसे  देख रहे थे। उन खरगोशों को  हिरण पर दया आती थी। वह उन्हें उसे मिलकर  भोजन हरी हरी घास भी दे देते थे। हरा हरा घास उसकी तरफ को फेंक देते थे।हिरण के तो इतनी चोट लगी थी कि उसके गले में आवाज भी नहीं निकलती थी। वह धीरे धीरे घास खाता था। एक दिन खरगोश अपने बिल से निकल कर इधर-उधर चले गए। हिरण वहां पर ही था तभी वहां पर खरगोशों के बिल में  कुछ  लोमड़ियां   शिकार करने के लिए आ गई थी। खरगोंशों को अपना शिकार बनानें का यत्न करनें लगी। कालू हिरण नें उन को डरा धमका कर   को वहां से  उन को भागने पर मजबूर कर दिया।  वहां पर एक लोमड़ी उस हिरण से डर कर एक ओर  कर खड़ी हो गई थी। लड़ाई करते हिरण बहुत ही थक चुका था। वह लहूलुहान हो चुका था। एक तो पहले लगी चोट भी ठीक नहीं हो पाई थी उस पर दुसरी चोट लग चुकी थी।

वह अपने मन में अपने हिरण को याद करने लगा। मेरा दोस्त मुझे दाना ला कर देता था। मैं बैठे-बैठे खाता था। मेरे दोस्त ने कभी भी मुझे खाना लाने के लिए बाध्य नहीं किया। मेरा दोस्त सोच रहा होगा कि दगा देकर भाग गया क्या करूं? यहां से तो मैं जा नहीं सकता अभी पहले वाली चोट भी ठीक नहीं हुई है। आज ये लोमड़ीयां आ कर खरगोशों के नन्हे नन्हें बच्चों को मारनें आ धमकी। लेकिन यहां  खरगोश भी अपनें बच्चों के साथ रहते हैं। यह भी तो अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में  गए हैं। आज  अगर मैं अपनी जान देकर इन छोटेछोटे बच्चों की जान बचाने में सफल हो गया तो मैं समझूंगा कि मुझे इन बच्चों को बचानें के लिए  मुझे अपनी जान भी कुर्बान करनी पड़ेगी तो अपनें जीवन को  धन्य समझूंगा।

काश एक बार मेरा दोस्त मेरे सामने होता तो कितना अच्छा होता। मैं उस से मिल कर क्षमा मांगना  चाहता हूं  ओर कहना चाहता हूं कि मैंने तुम्हें धोखा नहीं दिया।कालू हिरण  नें जोर जोर से  चिल्लाना शुरु कर दिया। खरगोश अभी घर से बाहर ही निकले थे। हिरण पहले तो कभी आवाज निकालता  नहीं था। खरगोंशों को पता था कि उस की चोट कितनी भयंकर है।? खरगोश सोचने लगे कि हिरन तो कभी भी  इतनी जोर से आवाज नहीं निकलता था। हो ना हो हाल दाल में कुछ काला जरूर है। वह सभी अपने बिलों में वापस आए। वह यह देखकर हैरान हो गए कि हिरण ने लोमड़ियों को भगा दिया था।  एक ही लोमड़ी वहां रह गई थी। हिरण नें लोमड़ी  को खरगोश के बच्चों के बिल के पास लोमड़ी को फटकनें भी नहीं दिया था। अपनी टांगों से मार कर मार कर लोमड़ी को भी लहूलुहान कर दिया था।

लोमड़ी भी  लहुलुहान हो कर एक और गिर गई थी। आकर सारे के सारे  खरगोश हिरण के पास आकर बोले भाई हिरण तुम्हारी चोट अभी तो ठीक भी नहीं हुई थी तुमने आज फिर अपने आप को लहूलुहान कर दिया। तुम्हारे उपकार को हम कभी भी भूल नहीं सकते।

हिरन बोला मैंने तुम्हारे बच्चों को बचाकर कोई नेक काम नहीं किया।  मुसीबत के समय हमें चाहे कोई भी हो चाहे शत्रु हो या मित्र हमें उसकी मदद अवश्य करनी चाहिए। तुम सब मेरे ऊपर उपकार करना ही चाहते हो तो कृपया मेरे दोस्त बांकू को ढूंढ कर ले आओ। मैं अपने जीवन की आखिरी घड़ी में अपने दोस्त को देखना चाहता हूं। मैं तुम्हारा यह उपकार जीवन में कभी नहीं  भूलूंगा।

यहां से 3 कोस की दूरी पर एक बरगद का पेड़ है। वहां पर यहां पर केवल एक ही बरगद का पेड़ है।  वहां एक घना जंगल है। उस पेड़ के पास मेरा दोस्त रहता है। और थोड़ी ही दूर पर हिरणों का झुन्ड भी रहता है लेकिन हम  दोनों के दोनों  हिरणों के झुन्ड से अलग एक साथ रहते थे। तुफान में फंस गए और बिछुड़ कर अलग हो गए।

खरगोश बोले  हम तुम्हारे दोस्त को ढूंढ कर लाएंगे।  वे सारे के सारे उसके दोस्त को ढूंढने निकल पड़े। दूसरे दिन भटकते भटकते  उस जंगल में पहुंच गए। वहां पर  उन्हें बरगद का पेड़ दिखाई दिया। वहां पर उन्हें हिरणों का झुन्ड दिखाई दिया। वे समझ गए कि वे ठीक स्थान पर पहुंच गये हैं। दूसरी तरफ एक हिरण बहुत ही मायूस हो कर बैठा था। लगता था वह अपने दोस्त को बहुत ही याद कर रहा था। बांकू अपने मन में सोच रहा था कि  मेरा दोस्त कहीं  मर तो नहीं गया। वह मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता। उसे  तभी अपने सामने आहट सुनाई दी। वह खुश होकर दौड़कर आया। लेकिन अपने सामने खरगोशों की फौज देखकर मायूस हो गया।

खरगोशों का मुखिया बोला क्या तुम ही  बांकुरा हिरण हो?  हिरण बोला तुम्हें मेरा नाम कहां से पता चला? तुम यहां क्या लेने आए हो? हमें तुम्हारे दोस्त ने भेजा है। वह बहुत ही घायल अवस्था में हमारे बिल के पास पड़ा है। खरगोश बोले तुम्हारा दोस्त इतना अच्छा है उसने हमारे बच्चों को भी अपनी जान की बाजी लगाकर बचाया है। वह बेचारा कुछ दिन पहले हमारे बिल के पास एक झाड़ी में गिर   गया था। झाड़ी में उसकी टांग फंस गई थी। वह काफी दिन तक वहां से  टस से मस  भी नहीं  हो सकता था। भूखा प्यासा ही रहता था। वह हमेंशा बांकू बांकू  कहा करता  था हमने एक दिन  दया कर के उस से पूछा कि यह बांकू कौन है तो उसने बताया कि वह बांकु हिरण मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। मैं उसके पास इस अवस्था में जा नहीं सकता। जब थोड़ा ठीक हो जाऊंगा तब जल्दी से उसके पास पहुंच जाऊंगा। हम दया कर के उसे हरी हरी घास फैंक दिया करते थे। उसकी जुबान भी नहीं निकलती थी।

एक दिन हम  जब भोजन की तलाश में गए थे तो उसने अपनी जान की बाजी लगाकर हमारे बच्चों की रक्षा की।  उसनें लोमड़ियों को हमारे बिल के पास भी नहीं आने दिया। हमारे बच्चों की रक्षा कर लहूलुहान हो कर गिर पड़ा। वह अपने जीवन की अंतिम सांसे ले रहा है। उसने कहा तुम अगर मुझ पर उपकार करना चाहते हो तो मेरे दोस्त को यहां लेकर आओ ताकि अपने आखिरी सांसे अपने दोस्त की गोद में दे सकूं। जल्दी चलो भाई वर्ना तुम्हारा दोस्त यूं ही तड़प तड़प कर मर जाएगा।

हिरण  पलक झपकते ही अपने दोस्त के पास  पहुंचा। अपने दोस्त को इस अवस्था में देखकर रो पड़ा। बोला मैं भी कितना निष्ठूर हूं। तुझे ढूंढने की कोशिश करता तो तुम्हारी हालत ऐसी नहीं होती। मुझे अपनी दोस्ती पर शर्म आती है। मेरे दोस्त अब मैं  आ गया हूं  तू  डर मत। मैं तुझे जल्दी ही ठीक कर दूंगा। कालू बोला मैं कभी भी तुम्हारे पास पहुंच नहीं सकता था। मुझे इतनी अधिक चोट लगी थी।  कालू बोला अच्छा तुम मेरे जाने के बाद किसी और को,  दोस्त बना लेना। खरगोशों की ओर देखकर कहा अच्छा दोस्तों अलविदा तुमने मुझे अपने दोस्त से मिलवा कर मुझ पर बहुत ही बड़ा एहसान किया है। बांकू बोला दोस्त तुम मर नहीं सकते। कालू बोला मुझसे वादा करो कि तुम मेरे जाने के बाद मायूस नहीं होंगे। तुम्हें मेरी दोस्ती की कसम। मेरे मरने के बाद तुम्हारी आंखों से एक भी आंसू नहीं निकलनें चाहिए। वादा करो दोस्त। मेरे पास वक्त बहुत ही कम है। जब तक तुम मुझसे से वायदा नहीं  करोगे  तब  तुम्हारा दोस्त चैन से कभी भी मर नहीं पायेगा। यूं ही  तडफता रहेगा। कालू हिरण बोला तुमने मुझे कसम देकर मेरा मुंह बंद कर दिया है। तुम्हें  मैं कुछ नहीं होने  दूंगा।

बांकू जब यह कह रहा था तो कालू उसकी गोद में था। कालू ने यह कहते कहते प्राण त्याग दिए। अलविदा मेरे दोस्त अगले जन्म में फिर मिलेंगे। तुम हिरणों के झुन्ड में वापिस चले जाना। बांकू हिरण हिरणों के झुन्ड के पास आ कर बोला मेरी दोस्ती इतनी कच्ची नहीं थी। मेरे दोस्त नें मुझे मरते वक्त भी एहसास करवा दिया कि सच्ची दोस्ती इसी को कहतें हैं।

(शेरु और वीरु की दोस्ती)

शेरु अपनें  मालिक संग एक छोटे से घर में था रहता।

अपने मालिक के संग रहकर खूब आनंद  से था  जीया  करता।।

शेरू हरदम अपने मालिक के आगे पीछे दुम हिलाता जाता था।

उसका मालिक भी उसे देखकर प्रसन्नता से फूला नहीं समाता  था

शेरु था बहुत ही होशियार।

उस से बढ़कर कोई नहीं था वीरू का यार। वीरू हर रोज ऑफिस था जाता।

ऑफिस से घर आकर शेरू संग था खेला करता।

वीरू ने उसे  लड़ाई करने के गुर थे सिखलाए।

शेरु के वह बहुत ही काम आए।

सुबह  का अखबार लाकर मालिक को देता था।

दूध का पैक्ट भी  उसे थमा देता था।

वीरू को अपने शेरू पर था बहुत ही मान।

वह तो था उसकी जान।

वीरू की गाड़ी एक दिन ऑफिस से आते वक्त दुर्घटनाग्रस्त हो गई।

शेरू को भी उसकी भनक थी लग गई।

शेरु अपने दोस्त वीरु से मिलने के लिए  मचलनें लगा।

वह अपने मालिक बिन तड़पने लगा।

पड़ोसियों ने उसे अकेला देख कर खाना था गिराया।

शेरू ने खाने को मुंह तक ना था लगाया।

वह दौड़ा-दौड़ा अपने मालिक को ढूंढने निकल पड़ा।।

ढूडता ढूंडता हुआ उस स्थान पर पहुंच गया।।

वह अपने मालिक की गाड़ी को खाई में गिरा देख कर जोर जोर से भौकनें लगा।

शेरु को खाई के पास एक झाड़ी थी दिखाई।

अपनें मालिक को पहचान कर झाडी में छलांग  लगाई।

झाडियों में अपने मालिक को फंसा देख जोर जोर से भौकनें लगा।

वह अपनें मालिक को इस अवस्था में देखकर  और भी जोर जोर से चिल्लानें लगा।।

वीरु की चीख पुकार एक ट्रकवाले को दी सुनाई।

लहूलुहान वीरु नें राहगीरों को भौंक भौंक कर वह राह थी दिखाई।।

ट्रक वाला ट्रक से उतर कर नीचे आया।

उसे तब सारा मामला समझ में आया।।

ट्रक वालें नें उसी वक्त ऐम्बूलैन्स बुलवाई।

वीरु को बचानें के लिए ऐम्बूलैन्स अस्पताल पहुंचाई।

शेरू भी दुम हिला हिला कर उस के साथ हो लिया।

ट्रक वाले नें उस की दोस्ती को सलाम किया।

उसे सही समय पर अस्पताल पहुंचा कर नेक काम किया।।

वीरु को जैसे ही होश था आया।

अपनें सामने शेरु को देख कर मुस्कुराया। दौड़ा दौड़ा ट्रकवाले को पुचकारनें लगा।

अपनें मालिक को बचानें का तोहफा उसे देनें लगा।।।

शेरु को  गाड़ी के पास से रुपयों से भरा थैला था मिला। ट्रक वाले को वह थैला सौंप कर ही दम लिया।

ट्रक वाले नें सारी कहानी वीरू को सुनाई।

तुम्हारी जान  कैसे इस बेजुबान  प्राणी नें बचाई।।

ट्रक वालाबोला भाई मेरे तुम्हारी दोस्ती यूं ही सलामत रहे।

जिन्दगी में तुम्हारी दोस्ती को किसी की नजर न लगे।।

वीरु ने शेरु को गले से लगाया।

शेरु भी  उस की तरफ प्यार भरी नजरों से मुस्कुराया।।