रूलदू और गडरिया

एक चोर था वह अपनी पत्नी के साथ एक छोटे से कस्बे में रहता था। उसकी पत्नी बहुत ही नेक थी वह चोर को कहती थी कि चोरी का धंधा छोड़ दो  ।चोर कहता था जब तक  मुझे कोई काम नहीं मिलेगा  मैं चोरी करना नंही छोड़ सकता क्योंकि मैं पढ़ा लिखा नहीं हू।ं  मेरे बेटा होता तो मैं उसे पढ़ाता  लिखाता चोर की पत्नी हमेशा बेटे की चाह रखती थी ।उसके कोई संतान नहीं थी इसके लिए उसने ना जाने कितनी मन्नतें मांगी थी। एक बार एक साधु बाबा जी ने उसे कहा कि तुम्हारे भाग्य में बेटा नहीं ।तुम्हें बेटा तो मिलेगा वह तुम्हारी   कोख से उत्पन्न नहीं होगा बल्कि कोई बेटा इस घर में आ जाएगा ।उस बच्चे को तुम पालना ,वह बेटा तुम्हें बहुत सारी खुशियां देगा ॥चोर की पत्नी सोचा करती थी कि मेरा पति तो कभी चोरी से बाज नहीं आएगा हे भगवान !उससे चोरी का धंधा छुड़वा दो ,मगर वह कभी भी चोरी नहीं छोड़ना चाहता था। एक दिन चोरी करने गया था उसे कहीं भी कुछ प्राप्त नहीं हुआ रास्ते में जाते हुए एक  गडरिये पर उसकी नजर पड़ी वह अपने मवेशियों के साथ जा रहा था।गडरिये को उसने कुछ रखते हुए देख लिया। वह दूर था उसने सोचा जो कुछ भी उसके पास होगा वह उसे चुरा कर ले जाएगा।

गडरिया जहां भी जाता अपने बेटे को साथ ले जाता क्योंकि गडरिये की पत्नी बेटे को जन्म देकर मर गई ।बच्चा सो चुका था उसे बहुत प्यास लगी उसने कपड़े में लिपटे हुए बच्चे को ढककर एक झाड़ी में छुपा दिया। वह अपने आप से कहने लगा मैं जल्दी से जाकर पानी पीकर आता हूं ।उसने देखा उसे सामने ही पानी का नल दिखाई दिया। उसने  लुसी को वहां खड़ा कर दिया ।लुसी मेमनेे का छोटा सा बच्चा था ।दोनों साथ साथ बड़े हुए थे लुसी ने उस बच्चे को देखा वह पास ही खड़ी रही। लुसी उसकी रखवाली कर रही थी ।गडरिया दौड़ता दौड़ता नल के पास पहुंच गया ।चोर गडरिये से पहले वहां पर पहुंच गया उसने सोचा इस कपड़े में बहुत सारे रुपए होंगे ।उसने चुपचाप उस कपड़े से लिपटे हुएबच्चे को अपनी टोकरी में डाला और उसको लेकर उसने चुपचाप  चलना शुरु कर दिया ।रास्ते में उसे टांगेवाला मिला उसने उसे रोक कर कहा मुझे दूसरे कस्बे में जाना है ले चलो ,उसने अपनी टोकरी को उस टांगे में रख दिया और तांगे वाले को कहा मुझे दूसरे रास्ते से ले चल।मेमने की बच्ची लुसी भी चुपके से उसके तांगे में बैठ ग्ई। गडरिया वहां पर पहुंचा जंहा उसने अपने बच्चे  को रखा था वहां उसने अपने बच्चे को नहीं पाया तो वह जोर जोर से रोने लगा ।उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई क्योंकि वह पैदल रास्ते से चल रहा था।

रिक्शावाला तो सड़क से चला गया था जैसे ही रिक्शे में से चोर उतरने लगा उसने टोकरी को उठाया तब लूसी चिल्लाई उसने चोर का पीछा किया ।घर तक उसके साथ आ गई ।लुसी भी उस चोर के घर के आंगन में छिप गई ।उस बच्चे को लाकर उसने अपनी पत्नी को  देते हुए कहा भगवान ने आज तुम्हारी पुकार सुन ली है ।वह भी बेटा पाकर बहुत खुश हुई।वह बोली तुम इस बच्चे को कहां से लाए वह बोला भाग्यवान !मैं चोरी करने के लिए जैसे ही गया मैंने कपड़े में लिपटी हुई इस गठरी को एक आदमी को झाड़ी के पीछे छिपाते देखा। मैंने सोचा वह पानी पीने गया है ।मैंने सोचा उसके रुपए से भरी हुई  थैली को क्यों ना मैं चुरा लूं जैसे ही रास्ते में उतरने लगा तो वह बच्चा रोने लगा, तब मुझे पता चला कि वह बच्चा है।मैं उस बच्चे को हर कही छोड़ने लगा था परंतु फिर मुझे तेरा ध्यान आया तू बच्चे के बिना अपने आप को  कोसती रहती है ।आज से यह तेरा बेटा होगा ।हम इसका नाम रखेंगे पाहुना। हो सकता है ,यह बेटा जब कमाकर लाएं  मैं चोरी करना छोड़ दूं।वह बच्चा रोने लग गया था वह चुप ही नहीं हो रहा था ।उन्होंने उस बच्चे को पालने में रख दिया। उसने पहले ही एक पालना घर में रखा हुआ था शायद किसी न किसी दिन मेरे बेटा या बेटी होगी मैं उसे पालने में रखूंगी परंतु आज तक उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई थी

आज एक छोटे से बच्चे के रूदन से उसकी आंखों से आंसू आ गए ।उसने उस बच्चे को पालने में रखा परंतु फिर भी ,वह रोए जा रहा था। वह रसोई में गई उसके लिए दूध गर्म कर लाई ।उसने देखा बच्चा चुप हो गया था बच्चे को लुसी  चाट रही थी।। लूसी भी उस बच्चे के साथ खेल रही थी ।बच्चा भी हंस रहा था ।चोर की पत्नी यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित रह ग्ई। उस ने चोर को बताया कि यह मेमने की बच्ची उसे चाट रही थी ।चोर बोला शायद  मेमने की बच्ची उसे पहचानती हो ।  मैंने उसे जिस जगह से उठाया था वह वही टहल रही थी लेकिन छोटा सा मेमने का बच्चा ही था । चोर की पत्नी समझ चुकी थी कि यह उसके परिवार का ही है उसने उस लूसी को भी अपने घर पर रख लिया।

दस  साल हो चुके थे चोर तो मर चुका था उसका बेटा रूलदू  वह भी चोरी करता था। चोरी करके अपनी मां का पेट भरता था। एक दिन वह चोरी करने गया हुआ था शाम तक उसे कुछ नहीं मिला ,उसे एक  घर दिखाई दिया उसमें वह घुस गया ।वहां पर अंदर   जा कर चारों तरफ चोरी करने के लिए ढूंढने लगा     ।एक छोटी सी टोकरी में उसे ₹5000 दिखे उसने चुपचाप रुपए उठाए और वहां से जाने लगा। उसका पैर एक बिस्तर से टकराया। गडरिया उठ गया उसने उस नवयुवक को पकड़ लिया बोला मैंने चोरी करते तुम्हें देख लिया था जल्दी से जल्दी इन  रूपयों को वही रख दो वरना ,इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा। रूलदू तेजी से भागा वह बहुत तेज भाग रहा था । गडरिये ने उसको पकड़ लिया। उसके हाथ-पांव बांधकर  चोर को वहां के राजा के पास ले गया। इस व्यक्ति ने मेरी चोरी की है इसने मेरे ₹5000 चुरा लिए हैं ना जाने कितने दिन से  मैं रुपए इकट्ठे कर रहा था ताकि मुसीबत के समय मेरे काम आ सके ।मैं एक छोटी सी टोकरी में इन  रूपयों को रखता था इस चोर ने आकर मेरे सारे रुपए चुरा लिए। आप इस को कड़ी से कड़ी सजा दे ।राजा ने अपने मंत्रियों से अच्छे ढंग से छानबीन करवाई तब उसने पाया कि  उस चोर ने सचमुच ही चुराए थे ।उसने अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि इस  चोर के घर का पता लगाओ इसके घर में कौन-कौन रहता है। मंत्रियों ने चोर के घर जाकर देखा ।वहां पर चोर की मां थी और कोई नहीं था ।चोर की मां को मंत्री ने कहा, तुम्हारे बेटे ने चोरी की है इसको राजा ने अपने महल में कैद कर लिया है और  रूलदू की मां रोने लगी बोली ,कृपया करके मेरे बेटे को छोड़ दो। वह मंत्री के पीछे पीछे आ गई ।राजा ने रुलदू को कैद कर लिया । रूलदू रोते  हुए  बोला मां चिंता मत करो, मैं जल्दी ही यहां से निकल जाऊंगा ।  राजा ने चोरी करने वाले को फांसी की सजा सुना दी ।राजा झूठ बोलने वाले को कभी माफ नहीं करता था। गडरिया ने कहा ठीक है इसे सजा तो मिलकर ही रहेगी। राजा ने रूलदू को बुलाया तुम्हारी कोई आखिरी इच्छा हो तो बताओ ।वह बोला जब तक मेरे सामने मेरी दोस्त लुसी को नहीं लाओगे मैं तब तक कुछ नहीं खाऊंगा ।ं पहले मुझे अपने दोस्त से मिलने दो तब मुझे मार देना। राजा ने  देखा रुलदू  लूसी को गले लगाते रो रहा था। रूलदू की मां राजा से फरियाद कर रही थी इसको छोड़ दो वह लूसी को महल मे ले  आई।तुमने भी कुछ नहीं खाया होगा  रूलदू ने अपनी दोस्त  लूसी को चारा खिलाया और उसके गले  लगा कर बोला मैंने जन्म से लेकर आखिरी समय तक तुम्हारा साथ दिया है।  मेरी दोस्त मुझे छोड़कर चली जाओ आगे तो मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सकता ।राजा भी उनकी दोस्ती देखकर हैरान रह गया। उसकी आंखों से भी आंसू झर झर बह रहे थे ।राजा बोला एक शर्त पर मैं इसको छोड़ सकता हूं अगर   गडरिया उसे माफ कर दे ।

गडरिये को बुलाया गया ,उसे बिना देखे बोला, मैं चोरी करने वाले को कभी माफ नहीं करुंगा ।फांसी की सजा देने वाले भाट उसे फांसी देने के लिए बुर्का पहना कर ले गए ।फांसी होने ही वाली थी तभी लूसी वहां पर पहुंच गई ,और चिल्लाने लगी । उसे देखकर  गडरिया हैरान रह गया  लुसी को पहचान गया ।उसने लुसी को गले लगाया ।चोर की मां गडरिये को कह रही थी कि कृपया मेरे बेटे को बचा लो। मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगी वह बोला यह बेटा आपका है ।वह बोली नहीं मेरे पति ने इस मेमनेे के बच्चे को और इस बच्चे को मेरे हवाले किया था । गडरिया फांसी के स्थान पर  आ कर  बोला इस चोर को माफ कर दो ।कृपया इस को फांसी मत लगाओ । राजा  ने

रूलदू को छोड़ दिया   

गडरिये ने रूलदू को गले लगाते हुए कहा तुम मेरे खोए  हुए बेटे हो। यह हमारी लूसी है आज मैं बहुत ही खुश हूं आज तुम और  लुसी  मुझे मिल गए जाओ मैंने तुम्हें माफ किया । रूलदू  ने कहा,

मैं तो अपनी मां को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा ।मेरा अपनी मां के सिवा दुनिया में कोई नहीं है ।गडरिये  ने कहा तुम मेरे साथ अपनी मां को लेकर रह सकते हो । रूलदू अपनी मां को लेकर घर वापिस आ चुका था ।तीनो खुशी खुशी रहने  लग गये।

रहस्यमयी गुफा भाग3

भोलू जैसे ही हड्डियों को दबाकर आया उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर सीधा गुफा से बाहर निकल गया। उस नें गोलू को कहा कि गाय की हड्डियों को मैं उस गुफा के पास बरगद वाले पेड़ के पास बनें गड्डे  में 5 कोनों में दबा आया हूं। जल्दी से घर चलते हैं। उड़ने वाले घोड़े को उसने अपने घर की ओर दौडाया। उस पर बैठ कर जल्दी ही घर पहुंच गए। भोलू की मां उसके लिए परेशान हो रही थी। उसके माता-पिता बूढ़े थे। वह अपने माता पिता को खुश देखना चाहता था। वह जैसे ही घर पंहुचा उसकी माँ बोली तुम कंहा चले गए थे? तुम्हारा इन्तजार कर कर थक गए। बुरे बुरे विचार मन में आ रहे थे। तुम जल्दी बताओ तुम इतने समय तक कंहा थे? वह बोला माँ मैं पहाड़ की कन्दराओं में गया था। उसनें सारी कहानी माँ को सुना दी। माँ उसे कहने लगी तुम्हें आज मैं अपनी कहानी सुनाती हूं। ध्यान से सुनो।

वह बोली आज तक मैनें तुम्हें तुम्हारे पिता के बारे में यह नहीं बताया कि उनके बोलने की शक्ति कैसे चली गई थी। तेरे पिता काम की तलाश में अक्सर बाहर ही रहते थे। एक दिन वह मुझ से बोले कि आज मैं तुम्हें पहाड़ के दूसरी छोर पर घुमाने ले चलता हू। वहां पर मैं अक्सर जाता रहता हूं।  उसकी मां ने  भोलू से कहा  कि बेटा तुम्हारे पिता के साथ एक बार जब वह पहाड़ की यात्रा पर गई थी तो  एक दिन इतनी जोरों का तूफान आया कि चारों ओर सारे  के सारे पेड़ ही हिलनें लगे। ऐसा लगता था कि आज कोई भी जीवित नहीं बचेगा। चारों ओर ऐसे लगने लगा धरती के जीवों का भी नामो निशान नहीं रहेगा। दूर दूर तक कुछ भी दिखाई नहीं दिया। लोग उस भयंकर तूफान से ना जाने कहां कहां गिरे। हम जब उठने का प्रयत्न करन लगे तो हमें ऐसा महसूस किया कि हम उठ ही नहीं पा रहे थे।

हम तूफान से बचने के लिए एक गुफा में छिप गए। वहां पर विचित्र प्रकार की डरावनी आवाजें आ रही थी। हम डर के मारे गुफा से निकले ही थे कि वह गुफा हमारे देखते ही देखते गायब हो गई। हम भागते भागते जा रहे थे कि हमने एक भयानक दानव को अपनी ओर आते देखा। उन पहाड़ की कंदराओं की गुफा में  फिर से कभी मत जाना। वहां पर एक दुष्ट दानव बहुत ही खतरनाक है। उसके पास जादू की ऐक छड़ी थी। तुम्हारे पिता पर उसनें लाठी से प्रहार किया। उछड़ी के प्रहार से तुम्हारे  पिता  के बोलनें की शक्ति जाती रही। उन्होंने काफी देर तक उस दानव के साथ युद्ध किया। तुम्हारे पिता के साथ युद्ध करते समय उस दानव का जूता नीचे छूट गया। एक जूता खो जाने के कारण जादूगर की शक्ति बहुत कम  हो गई थी। दुष्ट जादूगर  को  दूर से उड़ती हुई चीलें दिखाई दीं। वह दुष्ट जादूगर उसी समय आंखों से ओझल  हो गया। वह जूता जल्दी से उठा के हम लोग वहां से भाग निकले। हम जल्दी जल्दी घर पहुंचे। वह जूता तुम्हारे पिता ने रास्ते में कहीं छिपा दिया था। तुम्हारे पिता बहुत ज़ख़्मी थे। बहुत इलाज कराया मगर तुम्हारे पिता की आवाज़ लौट नहीं पाई। एक बहुत बड़े वैद जी ने मुझे बताया कि तुम्हारे पिता के बोलनें शक्ति तब आएगी जब उस दुष्ट जादूगर से जादू की छड़ी लाई जाएगी। लेकिन मैं तुझे इसलिए आज तक  यह नहीं बता रही थी कि तू भी वहां जाने की ज़िद करेगा । बेटा अब तू दोबारा कभी भी वहाँ मत जाना । तुझे भी उसने मार दिया तो मैं किसके सहारे जीऊंगी। बेटा तू कभी भी वहां जाने का प्रयत्न मत करना वह दुष्ट जादूगर दैत्य बहुत ही शक्तिशाली प्रतीत होता है।

भोलू बोला पिता जी मुझे उस दानव के बारे में कुछ तो बताओ। याद करने की कोशिश करो कि वह जूता कहां है? याद करने की कोशिश करो तुम्हारे साथ घर पर  कौन-कौन आया था? इशारे से ही सही कुछ तो बताओ पिताजी। उसके पिता कुछ कह नहीं पाए। तभी उसकी माँ कुछ याद करते हुए बोली, कि उस दिन जूते के बारे में मुझे वे कुछ बताना चाहते थे शायद, पर वह मुझे समझ में नहीं आया । फिर पड़ोस से जल्दी से जा कर में तुम्हारे मुह बोले चाचा को बुला लाई। तुम्हारे मुंह बोले चाचा को इशारे से उन्होनें समझाया। और मैंने पूरा किस्सा तुम्हारे मुँह बोले चाचा को बताया। वह उसी समय जूता ढूंढने निकल गए पर शायद उन्हें कुछ हाथ नहीं लगा तो वह बहुत निराश हो के आपने गांव लौट गए। भोलू  बोला कि वह कहां रहते हैं? उसकी मां बोली कि वह राम-गढ़ गांव में रहते हैं। वह अपने मन में सोचनें लगा कि वह गांव जाकर ही रहेगा और वह जूता भी चाचा जी की मदद से प्राप्त कर  के  उस जूते की मदद से वह जादू की छड़ी प्राप्त कर के ही रहेगा।  वह अपने मन में सोचने लगा कि क्या किया जाए? उसके मन में ख्याल आया कि मेरे पिताजी की याददाश्त का आना बहुत ही जरूरी है क्यों ना मैं अपनी भूरी से इन जवाबों को ढूंढने की कोशिश करूंगा?

उसने अपने दोस्त गोलू को बुलाया चलो आज अभी इसी वक्त हमें उस  खंन्डर में जाना है। वहां  जा कर अपनी भूरी  से पूछूंगा कि मेरे पिता की याददाश्त कैसे आएगी? उसने जल्दी से उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर खंडहर की ओर रुख किया। उसने  खंडहर में अंदर जाकर  के जादू के मोतीओं की माला  अपनें गले  में पहन ली।  उसने बरगद के पेड़ के पास जाकर उसके पास पहुंच  कर वहां अपनी भूरी को प्रणाम किया। मेरी  भूरी वापस आ जाओ। मैं बहुत ही मुश्किल में फँस गया हूं। उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसकी भूरी  उसको प्यार से थपथपा रही है।  उसनें हड्डियों  को बाहर निकाला और  भूरी भूरी। मुझे बताओ। उसने कहा कि मुझे  जादू के  जूते के बारे में कुछ बताओ। मेरी मां नें मुझे सारी कहानी बताई कैसे दानव के साथ युद्ध  करते वक्त  उसके दानव का जूता नीचे छूट गया था। जूते को प्राप्त करनें के लिए वह दुष्ट दानव मेरे पिता के साथ युद्ध करनें के लिए आया।  मेरे पिताजी मां को बता नहीं पाए कि  जूता कहां है? भूरी बोली बेटा उस दिन जो आदमी तुम्हारे पिता के साथ था उनका पता करो। उसके पास ही वह जूता हो सकता  है। उस जूते को जब तुम अपनें पिता को सूंघाओगे तब तुम्हारे  पिता में थोड़ी सी हरकत आ जाएगी।  याददाश्त वापस तभी आएगी जब तुम उस जादू की छड़ी  प्राप्त कर लोगों। उस को प्राप्त करने के लिए तुम्हें वहां बिल्कुल अकेले जाना होगा। उन हड्डियों को वही  दबा दिया। घर आ कर अपनी मां को बोला मुझे उन चाचा जी से काम है।  उनके घर का पता बताओ। उसकी मां ने गांव का पता लिख कर भोलू को  दे दिया।  भोलू नें अपनी मां को का कहा कि  मैं जल्दी ही जूता प्राप्त करके  वापिस आ जाऊंगा।  वह जूता मेरे बड़े काम का हे। वह जूता शायद उनके पास है।  पिताजी की याददाश्त के लिए उसे प्राप्त करना बहुत ही आवश्यक है। भोलू ने अपनी मां को कहा कि मां में जल्दी ही वापिस  आऊंगा। वह जूता हमारे बड़े काम का है पिता की याददाश्त के लिए और जूता प्राप्त करना बहुत ही आवश्यक है। भोलू अपनी मां से विदा लेकर  जूते  को प्राप्त करने के लिए अपने चाचा जी के घर जाने के लिए निकल पड़ा। उसने उड़ने वाला घोड़ा दौड़ाया। वह घोड़ा बड़े बड़े पर्वतों दुर्गम जंगलोंं को पार करता हुआ सीधा उस गांव में पहुंच गया।

वह छोटा सा गांव था। गांव वाले लोगों से पता किया कि चौधरी मंगतराम का घर कहां है?। उसनें वहां एक सराय में एक कमरा  किराए पर ले लिया।

मालिक  ने बताया कि मंगतराम तो यहां के जाने-माने धावक हैं।उन को तो आज तक कोई भी दौड़ में हरा नहीं पाया। 3 सालों से लगातार दौड़ में जीतते आ रहे हैं। उनके जैसा दौड़ में समर्थ तो शायद उस गांव में कोई भी व्यक्ति नहीं है जो उन्हें दौड़ में हरा दे। वह   उस गांव में जहां ठहरा हुआ था उस  मालिक  से  बोला अच्छा तो मैं भी देखना चाहता हूं कि अपना कमाल वह कैसे दिखाते हैं? मैंने उनके बारे में बहुत सुना है लेकिन आज  उनकी प्रतिभा को देखने के लिए मेरे कदम मुझे  यहां तक खींच कर ले  आए। मैं भी तो देखूं मंगतराम  कैसे दौड़ में अदभुत करिश्मा दिखाते हैं? उसने कमरे  के  मालिक को  कहा कि दौड़ कब है? वह बोला उन का करिश्मा  देखने के लिए तो तुम्हें 2 दिन का इंतजार करना पड़ेगा।

देखना आज भी वह अपने दोस्तों के साथ चाय पीने पास के ही एक ढ़ाबे में अवश्य आएँगे। उनको तुम से मिला दूँगा।  उसने दूर से आते हुए  एक लम्बे चौड़े हट्टे-कट्टे व्यक्ति को आते देखा। मोटी मोटी मूंछों वाले  व्यक्ति को ढ़ाबे के सीट में बैठते देखा। उनकी शक्ल से ही वह किसी पठान का चेहरा नजर आ रहा था। भोलू उन के पास बैठकर बोला चाचाजी  नमस्ते। भोलू की तरह देख करके बोले बेटा तुम कौन हो? तुम  शायद यहां नये नये आए हो। वह बोला जी मैं गांव  घूमने आया हूं। मैं गाजियाबाद का रहने वाला हूं। पठान बोला गाजियाबाद में तो मेरे भाई भाभी भी रहते हैं।तीन साल हो गए जाने का मौका ही नहीं मिला। वह बोला होटल के मालिक से पता चला कि आप बहुत ही बड़े धावक हैं। मैं आपकी प्रतिभा देखना चाहता हूं इसलिए 2 दिन और यहाँ रुकना चाहता हूं। खेलों में तो मेरी भी रुचि है। मंगतराम बोला चाचू भी कहते हो और धर्मशाला में रुक रहे  हो। मेरे साथ मेरे घर पर चलो।  दो दिन वहीं पर रहना फिर गांव चले जाना। वह मन ही मन खुश हो रहा था। मेरी इच्छा पूरी हुई। वह बोला चाचू जब आप इतना कह ही रह तो मैं आपको कैसे इनकार कर सकता हूं? आपके घर पर चलूंगा। आपको मेरे साथ कोई कष्ट तो नहीं होगा न। वह बोला भला मुझे कष्ट क्यों होने लगा?  चाचू क्या है न  मुझे दूसरी जगह पर अकेले नींद नहीं आती। डर लगता है। रात को मैं क्या आपके कमरे में ही सो सकता हूं? आपको मंजूर हो तो ठीक है वरना मैं उस कमरे में ही रहना पसंद करूंगा। यहां सारी रात जाग कर किताब पढ़ कर काट दूंगा। मंगतराम बोला बेटा तुम तो मेरे बच्चे जैसे हो।  मेरा भाई भी गाजियाबाद में रहता है। उसका भी एक बेटा है तुम क्या उन लोगों को जानते हो? उसका नाम दौलतराम है। पूर्व अपने पिता का नाम सुनकर हैरान हो गया। वह मन ही मन सोचने लगा कि वह अपने बारे में कुछ भी नहीं पाएगा।चाचू मैं उन्हें नहीं जानता। दौलतराम नाम के न जानें   कितने लोग इस दुनिया में होंगे। पठान ने उसके घर का सही सही पता बता दिया। उस मालूम हो गया था कि वही व्यक्ति उस के चाचा हैं। मंगतराम जी उसे अपने घर ले गए।  उनका बहुत बड़ा बंगला देखकर वह हैरान हो गया। उस बंगले में वह  अकेले  ही रहते थे। वह सारी चीजों को टकी टकी लगा कर देख रहा था। सोच रहा था कि कहीं ना कहीं तो उन्होंने वह जूता छुपाए होगा।

पठान ने उसे कहा कि बेटा जो कुछ खाना हो रसोई में फल पड़े हैं  तुम्हें खाना बाहर से ही मंगवा देता हूं। वह बोला मेरे रहते आप बाहर से क्यों मंगवाओगे।  मैं आज आपको खाना बनाकर खिलाऊंगा। उसने बहुत ही स्वादिष्ट  खाना  बनाया। उन दोनों ने मिलकर खाना खाया। मंगतराम  जी बोले बोला बेटा एक बार दौड़ते वक्त उनके पैर में इतनी गहरी चोट लगी तो डॉक्टरों ने उनके नाप का जूता बनवा कर दिया और कहा कि उसको अपने पैर से  कभी अलग मत करना। यह थोड़ा सख्त है, लेकिन मुझे इस जूते की आदत पड़ चुकी है। मुझे उस जूते के बगैर नींद ही नहीं आती है। गांव वाले लोगों के पास मैं इस जूते को पहनकर नहीं जाता। मै इस  जूते पर से अपने दूसरे जूते आसानी से पहन लेता हूं।  यह जूता बहुत ही हल्का है। मैंने उसको बनवाने में बहुत रुपए खर्च किए। बड़ी दूर से मंगवाया है।

भोलू बोला चाचू जब तक  मैं कुछ  पढ़ ना लूं मुझे नींद ही नहीं आती  है।  मंगतराम बोले बेटा तुम बाद में सो जाना। तुम मेरे साथ वाले पलंग पर सो सकते हो। कोई बात नहीं इसमें क्या है? आपके साथ वाले बिस्तर में मैं आराम से सो जाऊंगा। आप मेरी चिंता मत करो। उसे अपने चाचा जी से जूते का रहस्य मालूम हो चुका था। दूसरे दिन भी अपने चाचा जी को दौड़ में भाग  लेते हुए देख रहा था। इतनी तेजी से फुर्ती से दौड़ते देखा मानो कोई 25 साल का नवयुवक दौड़ रहा हो। अपने मन में सोचने लगा इस जूते  को प्राप्त करके ही  रहूंगा। उसके चाचा जी के जीतने पर सब लोगों ने तालियां बजाई। एक बार फिर से वे जीत गए थे। होटल के मालिक  भोलू से बोले, देख लिया ना इन बाबू जी  का सचमुच ही दौड़ में कोई  सानी नहीं है।

उस रात को भोलू नें खाना बनाया उसने चाचू के खाने में नींद की गोली  मिला दी। उसके चाचू जूता पहनकर ही सो गए थे। उसने खाना लगाया। उसने अपने आप  भी खाना  खाया और चाचू को भी  खिलाया।  उनके खाने में उसने नींद की गोलियां डाल दी थी। जैसे ही उन्होंने खाना खाया उन्हें नींद आनें लगी। वह भोलू   से बोले बेटा मुझे बड़ी जोर की नींद आ रही है। वह जब सो गए जल्दी से जूता उनके पैर से  निकाल लिया। रात को ही उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर वापस अपने गांव आ गया। घर आकर अपनी मां को बताया कि मैंने बड़ी मुश्किल से यह जूता प्राप्त किया है। उसने वह जूता अपने पिता को  सुघांया। उससे वह हिलने ढूंढने लगे। पहले अपने बिस्तर से उठते भी नहीं थे। धीरे-धीरे अपने बिस्तर से उठने लगे। उसकी मां उन्हें हिलते डुलते देख कर बड़ी खुशी हुई। वह भोलू से बोली बेटा मुझे खुशी है कि तुम ने अपने अपने पिता के लिए इतना जोखिम लिया परंतु जादू की छड़ी प्राप्त करना तो बड़े ही जोखिम का काम है। वह बोला मां बस आप की आज्ञा की जरूरत है। मुझे कुछ नहीं होगा। आपके आशीर्वाद से मैं जादू की छड़ी प्राप्त करके ही रहूंगा।

सच्ची राह कविता

वृद्धों का ना तुम करो अपमान।

भविष्य की संचित निधि समझकर सदा करो उनका सम्मान।।

इन कीमती निधि को यूं ना तुम ठूकराना।  अपने संस्कारों  से तुम यूं ना पीछे हट जाना।।

उनके साथ रह कर ही आती है घर में खुशहाली।

हीरे मोती से बढ कर है घर में उनकी शोभा निराली।।

अपने मां बाप के लिए वक्त निकालना है कर्तव्य तुम्हारा।

जिन्होनें स्नेह और  अच्छे संस्कार दे कर तुम्हारा भाग्य संवारा।।

उन्हें बहिष्कृत करनें का ख्याल कभी अपनें मन में न लाना।

यूं उन्हें रुसवा कर अपनी लज्जा को न बेच खाना।

उनके स्नेह आशीर्वाद प्यार और करुणा का अनुभव करना।

उनके मार्गदर्शन से अपनी जीवन की बिगड़ी नैया को पार लगाना।

उनकी कभी भी उपेक्षा मत करना।

परिवार समाज और संस्कृति का अपमान मत करना।।

शांत और सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए स्वार्थ और भेदभाव का त्याग  करना।

उनकी खुशी को ही अपनी खुशी बना कर दिखाना।।

आत्मीयता सहनशीलता और सहानुभूति जैसे गुण को अपने अंदर जगा डालना।

उनके अनुभवों को ग्रहण कर एक मिसाल बन कर दिखाना।

उन  के सुःख दुःख को बांटकर  उन को खुशी देना सीखो।

एक सच्चा सपूत बन कर एक आदर्श नवयुवक बनना सीखो।

संयम  धैर्य  विवेक और  समझदारी से  हर काम करना सीखो।

अपनें माता पिता का आशीर्वाद ले कर अपने मकसद में सफल होना सीखो।  

मां बाप की सेवा  कर अपना जीवन धन्य बनाना।  

मां बाप के उपकार को  न तुम कभी भूल पाना।।

पाप और पुण्य का हिसाब यहीं मिल जाएगा। इस संसार से ऐ प्राणी तू हाथ कुछ ने कर जाएगा।

तेरा मेरा का चक्कर छोड़ कर खुश हो कर जीना सीखो।

अंहकार को छोड़कर सच्ची राह अपनाना सीखो।।

हेराफेरी

नीमों हर रोज की तरह रसोईघर में खाना बनाने में व्यस्त थी। उसके भाई धनीराम एक बहुत ही बड़े
व्यापारी थे। उनके पास सब कुछ था। गाड़ी और बंगला था। जिंदगी की सभी खुशियाँ थी। धनीराम ने
आवाज दी बहना कहां हो? जल्दी आओ मुझे बड़ी जोर की भूख लग रही है। खाना लाओ।वह रसोईघर
से आकर बोली भैया अभी लाई। नीमों जैसे ही नाश्ता लेकर अपने भाई को देने गई तो वह बोला क्यों
अपने हाथों से नाश्ता तैयार करती हो? तुम तो जिंदगी में बस आनंद लेना सीखो। घूमो फिर, और अपना
समय टेलिविज़न देखनें और अपनें शौक पूरे करने में लगाओ। काम तो नौकर चाकर कर लेंगे। वह
बोली मुझे नौकरों के हाथ का बनाया हुआ खाना अच्छा नहीं लगता। मैं तो जितना काम अपने हाथों से
करूं वहीं अच्छा लगता है। आप तो हरदम व्यापार में मस्त रहते हैं। मुझे भी घर के कामों को अपने हाथों
से काम करना बहुत ही अच्छा लगता है।
उसका भाई बोला मैं तुम्हें अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता था मगर तुमने आगे पढ़ने से इंकार कर दिया।
चलो कोई बात नहीं पढ़ लिखकर तुमने कौन सी नौकरी करनी थी? मैंने तुम्हारा हाथ आनंद के हाथ में
देखकर बुरा नहीं किया। आनंद मेरा अच्छा दोस्त है। उसके साथ व्यापार करने में मुझे बहुत ही मजा
आता है। नीमों बोली। आप दोनों भी ना जाने कौन सी नौकरी करते हो? इतने रुपए कमाते हो। आपने
कभी भी मुझे नहीं बताया कि आप क्या नौकरी करते हो? और पैसा पानी की तरह बहाते हो।अगर किसी
गरीब की मदद करनी हो तो आप कंजूस बन जाते हो ऐसा क्यों?मरते समय माता पिता ने मेरा हाथ
आपके हाथ में देकर कहा था कि अपने बहन की शादी करके अपना फर्ज पूरा करना। आप नें अपना
फर्ज पूरा किया। अब मेरी बारी है। मैं भी तो आपकी बहन हूं। मुझे भी तब तक चैन नहीं आएगा जब तक
कि आपको खुश ना देखूं। मैं आपको कोई भी गलत काम करते हुए नहीं देख सकती। भाभी के जाते ही
आप भी अकेले हो गए। मैंनें आनंद को आप के साथ रहने के लिए मना लिया। आनंद तो व्यापार के
सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहतें हैं। आपको आज मुझे बताना ही होगा कि आप दोनों क्या काम करते
हो? वह बोला कि हमारी आभूषणों की दुकान है। सोना चांदी हीरे आदि हम दोनों मिलकर इस व्यापार
को संभालते हैं। तुम बस इन बातों की चिंता मत किया करो। खुश रहा करो और छुटकी को भी अच्छे
ढंग से संभाला करो। बाकी तुम्हें कुछ करने की जरूरत नहीं है।
नीमों घर के कामों से निबट कर सैर करने चली जाती। उसने अपनी सहेलियां कम ही बनाई थी। उसके
भाई और उसके पति की अपार संपत्ति को देखकर उसकी बहुत सारी सहेलियां बन गई थीं। वे सभी
अपनी ज्वेलरी अपनी शादी को लेकर बातें करती। उसकी कोई भी दोस्त नहीं थी जो उसी की तरह उसके
सुख दुःख में शरीक हो सके। वे सभी एक दूसरे की बातें बनाने में मस्त रहती थी।

वह अपनी भतीजी को संभालती थी। वह उसे स्कूल लेकर जाती उसे स्कूल से वापस लाती और उसे
पढ़ाती और उसके साथ मस्त रहती थी। वह अपनी भतीजी को लेकर बहुत ही गंभीर थी। उसने सोचा कि

अगर उसकी भतीजी यहां रही तो वह भी अपने पिता की ही तरह ही बनेगी। उसे कई बार आभास होता
था कि उसके पति और उसके भाई का व्यापार ठीक नहीं है। वह इतना रुपया न जानें कहां से कमाते हैं?
वह कई बार अपने भाई को घर के लॉकर में काफी सारा रूपया रखते देखा करती थी। लेकिन उसनें
कभी भी अपने भाई के लॉकर को हाथ नहीं लगाया था। ना जाने कहां कहां से इतनें रुपए आए थे।
अपने पति से कई बार पूछती थी कि आप इतना रुपया कहां से कमाते हो उसका भाई और उसका पति
उसे कहते कि तुम्हें आम खाने से मतलब है या गुठलियों गिनने से।
तुम्हें इससे क्या तुम तो बस खुश रहा करो। वह अपने भाई से कहती एक दिन ऐसा ना हो कि आपको
पछताना पड़े। उसका भाई उस से गुस्सा हो तुम इस विषय के बारे में मत ही सोचा करो। तुम तो बस
छुटकी की देखभाल करती चलो। तुम्हें अगर किसी चीज की जरूरत हो तो हमसे कहो। मैं और आनंद
तुम्हें सारी खुशियां देंगे। काफी साल गुजर गए।छुटकी भी बडी हो चुकी थी। वह बारहवीं कक्षा में आ
चुकी थी। दिन अच्छी तरह गुजर रहे थे। छुटकी अपनी बुआ को बहुत ही प्यार करती थी। एक दिन नीमों
घर पर कूड़ा करकट कबाड़ी को देने के लिए जा रही थी। उसके भाई बोले तुम हर महीने कबाड़ी को क्या
बेचती रहती हो वह बोली जो आप इतना कबाड़ ईकट्ठा करते रहते हो कितनी पेटियां आदि और घर में
जो सामान प्रयोग नहीं होता वही तो बेचती हूं मुझे तो इतना बेकार का सामान घर में रखना अच्छा नहीं
लगता। इस से घर में घुटन होती है। आनंद गुस्से में बोला तुम्हें घुटन होती है तो तुम बाहर सैर करने
चली जाया करो। रोज कूड़ा कर्कट फैला कर रखती हो। आज भी और दिन की तरह धनीराम जल्दी घर
आ गए थे। नीमों ने पूछा कि भैया आज इतनी जल्दी घर कैसे आ गए वह बोला क्या बताऊं सुबह से सिर
भारी है? इसलिए आ गया। तुम तो सीआईडी इन्सपैक्टर की तरह मुझसे सवाल जबाब करती रहती हो।
एक दिन छुटकी बोली दोनों मिल कर सफाई करते हैं। उस दिन भी कबाड़ी को दोनों मिल कर कबाड़
बेच रही थी। एक बड़ा सा संदूक था। उसमें जंग लगी हुई थी। उसन कबाड़ी वाले को कहा भाई इस ट्रंक
को भी ले जाना मैं तो घर से कबाड़ बाहर निकालते निकालत थक गई। भैया पर और इन पर तो कोई
असर ही नहीं होता है। आज तो इनसे बिना पूछे ही यह ट्रंक दे दूंगी। ना जाने आलतू फालतू सामान हर
जगह सामान फैलाया होता है।छुटकी बोली पहले इस ट्रन्क को खोलने कर देखते है। उस में पुरानी
अखबारें भरी पड़ी थी। छुटकी बोली बुआ इसमें तो पुरानी अखबारें हैं। बुआ बोली तो इसे कबाड़ी को
बेचने में कोई बुराई नहीं है।
कबाड़ी वाला बोला बहन आपसे तो मेरा ना जाने कौन सा रिश्ता है? आपका ही घर ऐसा है जंहा मुझे
बहुत सारा सामान मिलता है। मैं उनको बाजार में बेच देता हूं। भगवान की दया से मेरा जुगाड़ हो जाता है।
बहन मेरे भी एक बेटा है। उसे भी स्कूल में डालना है। पता है आप पिछले जन्म में मेरी बहन होंगी। कबाड़ी
वाले की ओर इशारा करती हुई नीमों बोली की इस जंग लगे ट्रंक को उठाकर चलता बन। यह लो कुछ
रुपये खाना खा लेना। मेरे भैया के सिर में दर्द है। मुझे उनके लिए चाय भी बनानी है। कबाड़ी वाला बोला

आपके पास तो इतने नौकर चाकर है तो भला आप क्यों अपने हाथ से चाय बनाने लगी। कबाड़ी को
बोली की मुझे अपने हाथ से चाय बनाना बहुत ही अच्छा लगता है।कबाड़ी वाला ट्रन्क उठा कर चलता
बना।
इस बात को दो महीने व्यतीत हो गए। धनीराम अपने काम में व्यस्त हो गया। एक दिन धनी राम के घर
पर इनकम टैक्स अधिकारी ऑफिसर आ पहुंचे थे। किसी ने सूचना दी थी कि धनीराम के पास करोड़ों
रूपयों की धन दौलत है। पुलिस इन्सपैक्टर नें आते ही दस्तक दी। टैक्स इंस्पेक्टर को देखकर नीमों
हैरान हो गई। वह इन्कम टैक्स अधिकारी से बोली साहब जी ऐसा क्या हुआ जो आपने मेरे भाई का ही
घर चुना। इस्पेक्टर बोला क्षमा चाहता हूं मुझे अपना कर्तव्य पालन करना है। हमें आपके घर की तलाशी
करनी है। टैक्स ऑफिसर अधिकारी ने सारा घर छान मारा मगर मगर कहीं भी उन्हें कुछ भी नहीं मिला।
उसके घर पर जब इन्कम टैक्स अधिकारी आए तो वह एक ट्रंन्क के बक्से पर बैठी थी। छुटकी स्कूल
गई थी। इन्कम अधिकारी महोदय ने सारे घर की तलाशी ले डालीे मगर उन्हें वहां पर कुछ भी नहीं मिला।
टैक्स अधिकारी महोदय छानबीन कर चले गए तो उसने अपने भाई धनी राम को फोन किया। हमारे घर
में अभी टैक्स इंस्पेक्टर आए थे। और उन्होंने सारा घर खंगाल मारा। धनीराम ने टैक्स अधिकारी का
नाम सुना तो उसके होश उड़ गए कांप कर बोला ठहरो बहना मैं जल्दी ही घर आ रहा हूं यह कह कर फोन
काट दिया।
धनीराम ने अपनी दुकान पर ताला जड़ा और घर की ओर कदम बढा दिए।
रास्ते में सोचता जा रहा था कि जब उसकी शादी पूनम से हुई थी तो उसका एक छोटा सा व्यापार था।
पूनम छुटकी को जन्म देते ही चल बसी। अगर आज उसके साथ उसकी बहन और उसके जीजा नहीं
होते तो वह कभी का निराश हो गया होता। उसकी बहन और जीजा ने आकर उसे संभाल लिया। उसने
अपने जीजा के साथ मिलकर नकली गहने का व्यापार करना शुरू कर दिया। हीरे डायमंड विदेश से
मंगवाते थे। उसके साथ ना जाने कितने लोग थे जो इस काम में शरीक थे। उसने अपनी देवी जैसी बहन
की आंखों में धूल झोंकी थी। उसने कभी भी अपनी बहन को नहीं बताया था कि उसका नकली हीरों
आदि का व्यापार है। उस केवल यही पता पता था कि उसके भाई और उसके पति एक अच्छे खासे
व्यापारी हैं। आज कहीं वह पकड़ा ना जाए। उन्होंने करोड रुपए उस पुराने से बक्से में छुपाए हैं किसी को
भी भनक भी नहीं लग सकती। आज कंही वह पकड़ा न जाए। उस ट्न्क के ऊपर कपडा ढका है। उस
ट्न्क में सबसे नीचे अखबारों के नीचे एक पोटली में करोड़ रुपये हैं। इतनी महंगा महंगा फर्नीचर बिछा है
उस पुराने से ट्न्क की तरफ तो शायद ही किसी की नजर जाए।
नीमों के पति व्यापार के सिलसिले में आखिर बाहर ही रहा करते थे। वह तो कभी कभी घर आते थे। नीमों
सोच रही थी कि आज तो अपने भाई की लड़- खडाती जुबान से उसे मालूम हो चुका था की दाल में कुछ

तो काला जरूर है। वह अपने मन में सोचने लगी की आज तो अपने भाई से पूछ कर ही रहेगी। नहीं नहीं
मैं भी कैसी बेवकूफ हूं? मैंने ऐसा कैसे सोच लिया? यहां अगर उन्होंने करोड रुपए छिपाए होते तो क्या
पुलिस इंस्पेक्टर को मिलते नहीं? हे भगवान मैं भी ना जाने क्या-क्या सोचती रहती हूं। इतने में दरवाजे पर
दस्तक सुनाई दी। उसका भाई आते ही बोला इनकम टैक्स ऑफिसर यहां पर क्या लेने आए थे? वह
बोली भाई क्यों भोले बनते हो? आप को तो पता होगा ही वह किस लिए आए होंगे? टैक्स इनकम
अधिकारी महोदय को किसी ने खबर कर दी थी कि धनीराम सेठ के घर में करोड़ों की जायदाद है।
आपको डरने की कोई जरूरत नहीं। यहां उन को कुछ भी नहीं मिला। उसका भाई बोला मैं तो ईमानदारी
से अपना काम करता हूं। भला हमारे पास कितने करोड़ों की दौलत कहां से आएगी? उसकी बहन जैसे ही
रसोई घर में गई उसे राहत मिली आज तो बाल बाल बच गये। धनीराम ने देखा कि ट्रंक पर कपड़ा वैसे ही
बिछा था। उसने ट्रंक को हाथ भी नहीं लगाया और अपनी बहना को बोला चलो आज मैं तुम्हें घुमाने ले
चलता हूं। वे तीनों सैर करने के लिए चल पड़े। रास्ते में आनंद भी उन्हें मिल गए थे। आज तो हम बाहर ही
खाना खा कर आएंगे। वे तीनो के तीनो छुटकी को लेकर घूमने के लिए निकल गए। आनंद ने अपनी
पत्नी को हीरो का हार दिलवा दिया। धनी राम ने अपनी बहन को एक डायमंड का सैट दिया। अपनी बेटी
को उसकी मन पंसदीदा वस्तुएं दिला दी।
पति और अपने भाई के बदलते व्यवहार को देखकर हैरान थी कि आज तक तो उन्होंने कभी भी उसके
लिए इतना महंगा हीरो का हार नहीं दिया था। वह हैरान हो रही थी वह हार ना जाने कितना महंगा होगा?
इतनें रुपये कहां से आए। रात को 1:00 बजे के करीब वे सब घूम कर घर पहुंचे। दूसरे दिन धनीराम व्यापार
के सिलसिले में बाहर जाने के लिए तैयार हो रहा था वह अपनी बहन से बोला बहना अपनें हाथ की
स्वादिष्ट चाय तो पिलाओ। तुम्हारे हाथ की चाय अच्छी लगती है। उसकी बहन अपनी तारीफ सुन कर
फुल नहीं समाई। वह चाय बनाने चली गई।
धनीराम दूसरे कमरे में आया। उसने तुरंत बक्से पर से कपड़ा हटाया उसने देखा वहां पर तो ट्न्क ही नहीं
था जिसमें उसनें करोड़ों रुपयों की दौलत रखी थी। वह एकदम चक्कर खाकर गिर ने ही वाला था। वह
अपनी बहन पर चिल्लाया जल्दी यहां आओ। वह रसोईघर से बोली मैं चाय बना रही हूं। वह चाय बना
चुकी थी। उसके हाथ में चाय थी। वह आ कर बोली चाय पियो। उसका भाई बोला तुम्हे चाय की पड़ी है।
मेरा कलेजा बैठा जा रहा है। पहले बताओ जो यहां ट्रंक होता था वह कहां है? वह बोली इतना जंग लगा
ट्रंक रखने की क्या जरूरत थी? वह तो एक महीना पहले मैंने और छुटकी दोनों नें मिल कर कबाड़ी को बेच
दिया। धनीराम नें जब यह सुना तो वह बेहोश हो कर नीचे गिर पड़ा। उसे जब होश आया तो वह अस्पताल
में था। वह नीमों पर चिल्लाया तुमको यहां बुलाकर मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। इस बक्से में मेरी
करोड़ों की धन दौलत थी। नीमों बोली मुझे क्या? उस दिन जब हमनें वह ट्रन्क कबाड़ी को बेचा था हमनें

वह देख कर दिया था। उसमें अखबार भरे पड़े थे। होती रहे करोड़ों की दौलत। मैं एक दिन जब आप दोनों
की बातें सुन रही थी नकली हीरे। तभी मेरा माथा ठनका था कहीं आप दोनों नकली हीरों का व्यापार तो
नहीं करते। मैनें समझा यह मेरा बहम होगा। एक दिन टैक्स अधिकारी महोदय हमारे घर आए तो मैं
समझ गई कि दाल में कुछ काला अवश्य है। मुझे तब खुशी हुई जब हमारे घर से कुछ नहीं मिला। आप
बताओ तो उस बक्से में क्या था? वह बोला उस ट्रन्क में पुरानी अखबारों में सबसे नीचे पोटली में करोड़ों
रुपये थे। वह बोला हां उस बक्से में नकली हीरों को बेच कर कमाई दौलत थी। मेरा ओर तुम्हारे पति का
नकली गहनों का व्यापार है। हम कभी पकड़ में नहीं आए। इस बात को सुन कर नीमों दंग रह गई उसका
भाई और उसके पति नें चोरी के दम पर इतना बड़ा कारोबार खड़ा किया था। नीमों सोचने लगी अच्छा
हुआ मैनें वह ट्रन्क कबाड़ी को बेच दिया। वह अगर टैक्स अधिकारी महोदय के हाथों लग गया होता तो
हमारी तो नाक ही कट जाती। मेरे माता पिता कि छवि को कलंक लग जाता। वह अपनें भाई को बोली
मैनें उस ट्न्क को बेच कर गल्ती नहीं की। जेल होती सो अलग। ऐसे भी वह दौलत हमारी नहीं थी जिस
पर दुःख किया जा सके। वह दौलत तो टैक्स अधिकारी ले जाते। अच्छा ही हुआ। कबाड़ी वाले नें हमें
उसके ₹500 दिए। जिससे हमनें वैसा ही दूसरा ट्रंक ले लिया। यह नया तो है।
उसका भाई बोला तुमने मुझे कंगाल बना दिया। नीमों सब कुछ समझ चुकी थी वह बोली वह तुम्हारी
मेहनत की कमाई नहीं थी। मेहनत की कमाई होती तो मजाल है घर से बाहर जाती। आपने तो हमेशा
रुपए को ही अपनी जिंदगी में ऐहमियत दी है। मुझे अब पता चला कि उस दिन पुलिस इंस्पेक्टर सच कह
रहे थे कि यहां धनीराम सेठ के घर में करोड़ों की धन दौलत है। यह बात तो सत्य थी।
धनीराम अपनी बहना को बोला तुमने हम दोनों को आज कंगाल कर दिया। वह बोली आज तुम दोनों ने
मुझे बहुत ही दुःख दिया है मैंने हमेशा मेहनत करके पेट पाला है और आगे भी मेहनत कर कमा लूंगी।
आप दोनों की ऐसी कमाई से मुझे कोई लेना देना नहीं। चलो आप दोनों को तो कुछ नहीं हुआ आप तो
सही सलामत हैं अगर उस दिन आप दोनों को टैक्स इन्सपैक्टर पकड़ कर ले जाते तो हमारी क्या इज्जत
रहती?
धनीराम सेठ इतना बड़ा व्यापारी नकली हीरो को बेचने खरीदने में संलिप्त है। आपको सबक लेना
चाहिए आप का बेईमानी से कमाया रुपया वहीं चला गया। जहां से आप लाए थे। अभी भी वक्त है
संभल जाओ वर्ना पछताओगे। धनीराम बोला जब आनंद को पता लगेगा तो वह तो तुम्हें घर से बाहर ही
निकाल देगा। वह बोली कि चाहे मुझे घर से निकाल दे मैं छुटकी को लेकर कहीं भी चली जाऊंगी मगर मैं
ऐसी कमाई पर बिल्कुल भी अपने भतीजी को नहीं पालूंगी। धनीराम सेठ बच्चों की तरह फूट फूट कर
रोते बोला अब हम कंगाल हो गए। आज से मैं धनीराम सेठ से भिखारी भीखा बन गया। मुझे सब अब
भिखारी कह कर पुकारेंगे। बेटी को पढ़ाने के लिए क्या क्या सपने देखे थे? वह बोली वह सपनें फिर भी

पूरे हो सकतें हैं। यह पढाई लिखाई में तेज है। मैनें उसे हमेशा बुराई की काली छाया भी अपनी भतीजी पर
नहीं पड़नें दी। वह हर बार की तरह बारहवीं में प्रथम आई है।
शाम के समय धनीराम को पता चला कि उसके कई दोस्तों के घर में पुलिस वालों ने छापा मारकर उन्हें
जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था धनीराम के विरुद्ध भी कड़ी कार्यवाही की गई मगर कोई सबूत
ना मिलने के कारण उसे सजा नहीं हुई।
भीखू मल जब घर आया तो उसने संदूक को खोला तो वह बेहोश होते-होते बचा। वह तो बैठे बिठाए
धनवान बन चुका था। वह अपनें मन में सोचने लगा बहना के साथ छल कपट नहीं करूंगा। वह मेरी सगी
बहन की तरह लगती है। छुटकी का तो कहना ही क्या? घूंघराले बाल गोलमटोल चेहरा और नेक। सभ्य
और ईमानदारी कि मिसाल जो उसको अपनी बुआ से विरासत में मिली है। उस देवी जैसी बहन के साथ
वह कभी छल नहीं कर सकता। उसे जा कर बताता हूं जो ट्रन्क तुम नें मुझे दिया था उस में करोड़ों की
दौलत थी। वह नीमों के घर पहुंचा बोला बहना जो तुम नें मुझे ट्रन्क दिया था उसमें बहुत सारी धन दौलत
थी। उस धन को तुम्हे लौटानें आया हूं। आप अपनी अमानत संभालो। नीमों बोली भाई मेरे तुम कितने
सीधे सादे हो काश ऐसी अक्ल मेरे भाई को भगवान नें दी होती। कबाड़ी वाला बोला बहना तुम क्या कह
रही हो सुनाई नहीं दिया। वह बोली अच्छा ही हुआ जो सुनाई नहीं दिया। नीमों बोली मैनें तो तुम्हें वह ट्रन्क
बेच दिया था अब तो वह बहुत कुछ तुम्हारा हुआ। वह बोला बहना इतना रुपया देख कर मेरी रातों की
नींद भी हराम हो गई। वह बोली अब तुम जो कुछ करना चाहते हो उस रुपये से करो। उस पर हमारा कोई
अधिकार नहीं है।आज के बाद तुम को यहां आनें की जरुरत नहीं

उसे बैठे बिठाए करोड़ों की दौलत मिल गई थी। उसने उससे सबसे पहले एक अनाथ आश्रम खोला।
उसने एक बोर्ड पर लिखा दिया था कि अनाथ और वृध्द जन जिनका इस दुनिया में कोई नहीं सेठ
भीखामल उन को अपने आश्रम में शरण देता था। जिसके मां बाप ने उन्हें छोड़ दिया होता था उसने यह
लिखवा दिया था कि जो कोई भी निराश व्यक्ति यहां आएगा उसे यहां शरण दी जाएगी। बीच-बीच में वह
अपनी संस्था में आकर उन लोगों की देखभाल किया करता था। वह इतना ईमानदार आदमी था इतनी
धन दौलत को अपने अनाथ आश्रम में ही नही, उसने एक स्कूल भी खुलवाया जिसमें गरीब बच्चों को
मुफ्त में शिक्षा दी जाती थी। जिन लोगों के पास पढ़ाई के लिए रुपए नहीं होते थे। मुफ्त में उन बच्चों को
पढ़ाई करवाई जाती थी और उसने अपाहिज व्यक्तियों के लिए भी एक संस्था खुलवाई थी जहां पर
अपंग व्यक्तियों का इलाज करवाया जाता था। उसने अपने बेटे को डॉक्टर बनने के लिए विदेश में भेज
दिया। अपने आप एक बड़े से बंगले में अपनी पत्नी के साथ चैन से रहने लगा। भिखारी भीखामल मल
करोड़ों का मालिक बन गया था। उसने उन संस्था का नाम नीमों के नाम से खोला।

एक दिन जब वह अपने अनाथ आश्रम में पहुंचा तो वहां पर उसे एक औरत दिखाई दी उसके साथ एक
बेटा था। वह बच्चा 15 साल का था। उस औरत को पहचान कर बोला बहन आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं
वही भीखामल नीमों उसको हैरान होकर देखने लगी बोली भाई मेरे मैं बहुत ही बड़ी मुसीबत में हूं। हमारा
सब कुछ नियती ने हमसे छीन लिया। मेरे पति ने और मेरे भाई ने हमेशा झूठी कमाई से धन कमाया। मैं
उन्हें हमेशा समझाती रही परंतु उन्होंने मेरी बात नहीं मानी। अपनी मनमानी की। मैं अपनी भतीजी को
अच्छा इंसान बनाना चाहती थी। मैंने अपनी भतीजी को हमेशा गुनाहों से दूर रखा लेकिन अब मुझे ज्ञात
हो चुका है कि मेरे भाई ने और मेरे पति ने गलत धंधे में अपना व्यापार खड़ा किया। मेरी भतीजी बहुत ही
खुद्दार है। आज रात हम यहां रहेंगे। कल ही यहां से चले जाएंगे। कहीं नौकरी मिल ही जाएगी। भीखामल
मल बोला बहन तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं। तुमने मेरी इतनी सहायता कि मैं मैं तुम्हारे दिए गए कबाड़
से ही तो धनवान बना हूं। आपकी मेहरबानी का ही परिणाम है। उस दिन उस कबाड़ से मुझे इतना रुपया
मिला था उस से मैंने इतना बड़ा व्यापार खड़ा किया। वह भी ईमानदारी से तुम यह बात अपने पति और
अपने भाई को कभी भी मत बताना। वह बोली मैंने तुम्हें भाई कहा है। भला बहन भी अपने भाई को कभी
दगा दे सकती है। यह कहते-कहते उसकी आंखों से झरझर आंसू बहने लगे। वह बोला छुटकी बेटा तुम
इस संस्थान में निशुल्क शिक्षा ग्रहण कर सकते हो। उसने अपनें पति को और अपनें भाई को कभी नहीं
बताया कि वह वही कबाडी है जिस को उसने ट्न्क बेचा था। भीखामल नें उसके पति और भाई को नौकरी
पर रख लिया। उसका भाई धनीराम और उसके पति आनंद को ठोकरे खाने के बाद अब अकल आ
चुकी थी। उन्होंने अपना काम ईमानदारी से करना शुरू कर दिया।
एक दिन फिर उन्होंने अपना बंगला गाड़ी और खोया हुआ सम्मान वापस पा लिया। आनंद बोला नीमो
तुम तो मेरे घर की लक्ष्मी हो। तुम्हें मैंने बहुत ही दुःख दिए हैं। मैं तुम्हारा भी कहीं ना कहीं गुनहगार हूं।
धनीराम भी पास आकर बोला बहना मुझे माफ कर दो आज कहीं हम दोनों को अकल आई है। छुटकी
भी आईएएस अफसर बन कर सिलेक्ट हो गई थी। छुटकी बोली पापा अगर आप नें फिर कभी हेराफेरी
की तो मैं आप को छोड़कर चली जाऊंगी। धनीराम बोला बेटा ऎसा नहीं कहते न जानें मेरे दिमाग को
क्या हो गया था। आगे से फिर कभी ऐसा नहीं होगा। धनीराम अपनी बहन से बोला तुम ठीक ही कहती
थी कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। वह मेहनत के बल पर क्या हासिल नहीं कर सकता?
पुरुषार्थ के बल पर ऊंचाइयों के शिखर तक पहुंच सकता है। आज नीमों बहुत खुश थी। उसके भाई और
उसके पति को अपनी गल्ती का एहसास हो चुका था।

रहस्यमयी हवेली

शेरभ बहुत ही शरारती बालक था। एक दिन उसकी मां ने उसे कहा अगर तुम होमवर्क नहीं करोगे तो तुम्हें बहुत ही मार पड़ेगी। शेरभ ने  अपनी ममी की बात सुनी अनसुनी कर दी वह चिखते चिखते बोला मां पहले मुझे चॉकलेट दो। वह चॉकलेट के लिए जिद करने लगा। शेरभ की मम्मी ने कहा कि आज तो तुम्हें चॉकलेट नहीं मिलेगी। उसके पापा उसे बहुत ही लाड़-प्यार करते थे। उन्होंने  चार चॉकलेट उसे दे दी। शेरभ की मम्मी ने उस से  चॉकलेट छिन ली। शेरभ को बहुत गुस्सा आ रहा था तभी शेरभ की मम्मी ने चॉकलेट मेज पर रखी और फोन सुनने दूसरे कमरे में चली गई।

शेरभ ने सोचा मम्मी पढ़ाई करने बिठा देगी। इसलिए उसने मेज पर से चारों चॉकलेट उठाई और बाहर की ओर भाग गया। घूमते-घूमते बाग में पहुंच गया था। उसका पढ़ाई करने को मन ही नहीं कर रहा था। वह बाग में इधर उधर घूम रहा था। वह केवल दस वर्ष का था। उसे बाग में एक लड़का दिखाई दिया। उसके पीछे पीछे चलने लगा। सोचने लगा के इस बच्चे के साथ दोस्ती कर लेगा। वह उसके साथ ना जाने कितनी दूर निकल आया था। उस बच्चे की मम्मी  तभी उसे  गाड़ी में  ले गई। वह अकेला रह गया था। वह अपने घर का रास्ता भूल चुका था। चलते चलते वह काफी दूर निकल आया। उसे एक कुत्ता दिखाई दिया। वह उस कुत्ते को देखकर खुश हो गया। उसने उस कुत्ते को प्यार किया। वह कुत्ता भी इधर उधर किसी को खोज रहा था। वह कुत्ता उस बच्चे के पीछे चलने लगा। एक जगह शेरभ को बड़े जोर की ठोकर लगी। वह गिर पड़ा और बेहोश हो गया। वहां पर झाड़ियां थी। उसने अपनी मम्मी को सड़क के रास्ते पर चलते देखा था। वह भी पगडण्डी वाले रास्ते से चलते हुए घर पहुंचना चाहता था। अपने पापा के ऑफिस में चले जाना चाहता था। उसे अपने पापा के ऑफिस का पता था।

शेरभ  की मम्मी ने सोचा कि शेरभ अपने पापा के ऑफिस चला गया होगा। आज शेरभ को स्कूल से छुट्टी थी। जब उनके पापा घर आए तो बोले शेरभ कहां है? वह एकदम घबरा कर बोली क्या  वह आप के औफिस नहीं आया। वह जोर जोर से रोने लगी। ढूंढ ढूंढ कर थक ग्ए। वह छोटा सा बच्चा कंहा जा सकता है। उसे तो घर का पता भी मालूम नहीं है। हम अभी अभी ही हम इस मकान में  नये  आए हैं। मेरा बेटा कैसे मिलेगा।

शेरभ के पिता ने कहा कि वह कहां जाएगा। वह मिल जाएगा। शेर को जब होश आया वह नीचे गिरा हुआ था। वह जोर जोर  से रोनें लगा। वह कुता उसे चाटनें लगा। मानों कह रहा हो डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूं। वह कुता उस बच्चे के पास ही बैठा रहा। शेरभ को भूख  भी बड़ी जोर की भूख लग रही थी। । शेरभ ने अपनी जेब से चॉकलेट निकाली। अपनें आप भी खाई  और कुत्ते को  भी डाली।  वह अब धीरे-धीरे  चलनें लग गया था।

वह  रास्ता बिल्कुल सुनसान था। तीन गुंडों की नजर उस पर पड़ी। वह छोटा सा बच्चा और वह भी बिल्कुल अकेला।  वे लोग अपहरणकर्ता थे। उन बच्चों को बेचते थे। जिन लोगों को  बेचते थे उन बच्चों की किडनी निकाल कर किसी की आंख निकाल कर दूसरे देश में जाकर बेच देते थे। उन्होंने सोचा पहले हम अपने बॉस से बात कर लेते हैं। तीनों गुंडों ने अपने बॉस को फोन किया कि हमें एक छोटा सा बच्चा मिला है। आप उसकी कितनी कीमत हमें  देंगें।

उसका  बौस  बोला कि 500, 000रु दूंगा।  तुम तीन लाख पहले आकर ले जाओ और ढाई लाख बाद में दे देंगे  । अपहरण करनें वालों नें कहा कि कहां आना है? उनमें से एक ने कहा कि मुंबई में हमारा  ऑफिस है। तुम कल मुंबई पहुंचो। उन्होंने उस बच्चे का कहा कि तुम कहां जा रहे हो?। बच्चे ने कहा कि  मुझे मां पापा के पास जाना है।   उन्होंनें उस बच्चे को पकड़ लिया।  वे बोले हम तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देंगें। वह कुत्ता भी उनकी गाड़ी की डिक्की में बैठ चुका था। एक जगह पहुंच कर उन्होंने इस बच्चे को उठाया और एक जगह काफी सुनसान खंडहर  वाली हवेली में बच्चे को बंद कर दिया। और दूसरे दोस्त को कहा कि कल हम यहां पर आकर इस बच्चे को  यहां से ले जाएंगे। कुत्ता भी नीचे उतर चुका था। उसने उस बच्चे को अंदर बंद करते हुए देख लिया था। जबकि वे तीनों किडनैपर चले  गए तो वह बच्चा उस   खंडहर  वाली हवेली में अकेला रह गया। वह जोर जोर से रोने लगा। हवेली के पहरेदार को वे गुन्डे बहुत सारे रुपये  दे कर गए थे। उन्होंने कहा कि  यह हमारा बच्चा है इसको हम कल ले जाएंगे। पहरेदार रात को उस बच्चे को देख कर गए। शेरु  चुपचाप खिड़की के बाहर झांक रहा था। उस छोटे से बच्चे को कुछ नहीं पता था कि वह कहां आ गया है?। उसे रात को डर भी लगने लग गया था। पहरेदार सो गया था वह कुत्ता अब बार-बार उसकी खिड़की के पास मंडरा रहा था। शेरभ  बाहर आने का रास्ता खोज रहा था। रात हो चुकी थी। उस हवेली में कोई नहीं आता था। रात को जोर जोर की आवाजें  आनें लगी थी। आवाजों से वह घबरा गया। उसके सामने एक सुंदर सी स्त्री आकर बोली बेटा तुम क्यों रो रहे हो? वह बोला आंटी मुझे तीन मोटे आदमियों ने यहां बंद कर दिया। मैं अपनी मां से नाराज होकर बाग में घूम रहा था। चलते चलते मैं रास्ता भूल गया। तभी इन गुंडों ने मुझे देख लिया। वे मुझे बेचने की बात करे थे। वह बोली बेटा तुम डरो नहीं। बहादुर बच्चों को मैं कुछ नहीं कहती हूं। ं  यहां पर कोई नहीं आता है। बेटा मैं तुम्हें यहां से निकालूंगी। कुत्ता भौंकने लगा था। कुत्ते ने देखा कि एक गाड़ी में बहुत सारी  रस्सियां रखी हुई थी। उन्होंनें एक रस्सियों का लिफाफा खींच लिया। वह मुंह में रस्सियां  दबाए हुए आया और उसने  रस्सी खिड़की में फेंक दी। वह औरत बोली बेटा यह कुत्ता तुम्हारा है। यह तो बहुत ही समझदार है। वह तुम्हारी रक्षा करना चाहता है। उसने तुम्हारी ओर रस्सी   फैंकी  है ताकि  तुम रस्सी अपने बांध लो और खिड़की के सहारे वह तुम्हें बाहर खींच लेगा। शेरभ ने अपने पेट में रस्सी बांध ली थी। वह बोली बेटा तुम सही   सलामत अपनें घर पहुंच जाओ। शेरभ बोला कि आपके साथ बात करके  मुझे अच्छा लगा। मैं आपको यहां से ले जाऊंगा। मैं अपने पापा को यहां लेकर आऊंगा। मैं अगर अपने घर पहुंच गया। वह बोली बेटा मैं अपनी कहानी तुम्हें फिर  कभी  सुनाएंगी। जब तुम यहां अपनें पापा के साथ आओगे।

उस औरत ने उसे पकड़कर खिड़की पर चढ़ा दिया था। कुत्ते ने उसे खिड़की से बाहर खींच लिया। कुत्ते को बहुत प्यार किया उसने कहा कि तुम सचमुच में ही मेरे प्यारे दोस्त बन गए हो मैं तुम्हें अपने पास ही रखूंगा। शेरभ ने भागना शुरू कर दिया उसका प्यारा दोस्त भी उसके साथ था।

एक  होटल के  मैनेजर ने उसे देख लिया। उसने  उस आदमी को  अपनी सारी कहानी सुनाई। वह  होटल का मालिक बोला बेटा अगर तुम अपने घर जाना चाहते हो तो पहले तुम्हें रुपए कमाने पड़ेंगे। तुमको यहां बर्तन साफ करने पड़ेंगे। वह बोला एक दो बार मैंने अपनी मम्मी को बर्तन धोते देखा था। मैं  बर्तनों को साफ कर  दिया करूंगा। वह उस के बर्तन साफ करने लग गया था। होटल का मालिक  शेरभ को बिल्कुल अलग से काम करवाता था। उसे पता था कि छोटे-छोटे बच्चों का काम करना जुर्म समझा जाता  है। इसलिए  उस बच्चे से जब भी काम करने को कहता था तो वह कमरा बंद कर देता था कि कहीं कोई  उसे बर्तन साफ करते  हुए  कोई देख  ना  ले। है।  वह बर्तन साफ करने लगा। काम करते-करते उसको वहां   दो महीने हो गए थे। उसने सौ रुपए इकट्ठे कर लिए थे। वह  खाना होटल में ही खा लिया करता था। वह बच्चों को बाहर नहीं आने देता था।

शेरभ के मम्मी पापा के पास इतने अधिक रुपए नहीं थे जिससे कि वह अपने बच्चों को छुड़वाने की कीमत अदा करते। शेरभ  की मां तो बहुत ही बीमार हो चुकी थी। उन्होंने अपने बेटे शेरभ को छुड़ाने के लिए लोगों से उधार लिए थे और उन्होंने अखबार में  इश्तहार दिया था कि  जो हमारे बेटे को ढूंढ कर लाएगा उसे  हम  100,00रुपये देंगें।  मैं एक गरीब आदमी हूं। मेरा बेटा अगर मुझे मिल जाए तो मैं ₹100,000 देने के लिए भी तैयार हूं। इस एड्रैस पर आकर मेरे बच्चों को छोड़ जाए उसने अपने घर का पता दे दिया था।

होटल के मालिक ने भी उसके अखबार में फोटो देख ली थी।   होटल मैनेजर नें सोचा कि अभी मैं इस बच्चे से और काम ले लेता हूं।  मैं  इसके घर अभी मैं  इसे नहीं भेजूंगा।  शेरभ वहां से निकलने की योजना बना रहा था। एक दिन उसका दोस्त किटटू  उसकी कमीज खींचकर बाहर की  ओर   घसीट कर ले गया। शेरभ ने बाहर की ओर देखा  वहां पुलिस इंस्पेक्टर चाय पीने के लिए आए थे।

शेरभ को समझ में आ गया था कि यह कुत्ता उसे क्यों खींच रहा है? वह जल्दी से पुलिस इंस्पेक्टर के पास गया। उसने सोचा कि मैं होटल मैनेजर  की  शिकायत इन इन्सपैक्टर से कर देता हूं। वह मुझसे बर्तन साफ करवाता है। मुझे मेरे मम्मी के पास छोड़ दे। पर बाहर कैसे जाऊं? शेरभ ने एक चादर ओढ़ ली और बाहर आ गया। पुलिस इंस्पेक्टर का हाथ पकड़ कर बोला अंकल मेरे साथ बाहर आओ। चुपके से आना। उसको बाहर आते किसी ने नहीं देखा।  अंकल को बोला अंकल यहां नहीं अपनी गाड़ी में बिठाओ।

पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा पहले मैं अपना बिल अदा करके आता हूं। सिर्फ बोला अंकल अभी नहीं आप यह मत बताना कि मैं आपकी गाड़ी में हूं। जल्दी से पुलिस इंस्पेक्टर बिल अदा करके आ गया था। वह बोला बेटा बताओ क्या बात है? पुलिस इन्सपैक्टर बोला   अंकल  मैं अपने घर से चलता चलता रास्ता भटक चुका था। यहां पर रास्ते में कुछ चोरों ने मुझे एक खंडहर में बंद कर दिया। मैं वहां से भी निकल कर भाग कर यहां आ गया। यहां पर इस होटल के मालिक ने मुझे बर्तन साफ करने लगा दिया। कृपया करके आप मुझे मेरे माता-पिता के पास  छोड़ दो। अंकल मुझे अपने माता पिता की याद आ रही है।

अखबार में पुलिस इंस्पेक्टर ने  शेरभ के माता-पिता का लिखा हुआ इश्तहार देख लिया था। पुलिस  इन्सपैक्टर  बोला कि  बेटा मैं  तुम्हें  तुम्हारे घर छोड़ दूंगा। तुम  अब बिल्कुल सुरक्षित हो। पुलिस वाले ने कहा बेटा चलो मेरे साथ। पुलिस इन्सपैक्टर ने होटल के मालिक को कहा कि तुम छोटे से बच्चे से बर्तन साफ करवाते हो तुम्हें  इस के लिए हवालात में जाना पड़ेगा। होटल का मालिक बोला बाबू   साहब मुझे छोड़ दो। मैं तुम्हें ₹20, 000 देता हूं। पुलिस स्पेक्ट्रम नें होटल के मालिक से ₹20, 000 ले लिए। पुलिस इंस्पेक्टर  गाड़ी में शेरभ   के  घर की ओर आ रहा था तो रास्ते में  वही हवेली दिखाई दी। पुलिस इंस्पेक्टर को  शेरभ नें ने कहा कि इस  हवेली में एक आंटी रहती है। आप उसे भी  यहां से बाहर निकाल दो।  पुलिस इंस्पेक्टर उस हवेली में उस बच्चे के साथ गया परंतु वहां पर कोई नहीं था। उस बच्चे से बोला शायद उस  आंटी को भी कोई  आ कर यहां से ले गया होगा तभी उस हवेली का पहरेदार  आ कर बोला यहां पर एक औरत की आत्मा भटकती रहती है।  वह  यहां आने वाले हर व्यक्ति से  इन्साफ की फरियाद करती है।  वह बहुत से लोगों का खून भी कर देती है।

पुलिस  इन्सपैक्टर बच्चे से बोला यहां पर ज्यादा देर ठहरना  उचित नहीं है। जल्दी चलो। इंस्पेक्टर  शेरभ के घर पहुंच चुका था। उसका दोस्त  किटटू गाड़ी से निकल कर   शेरभ को चाटने लगा।  पुलिस इन्सपैक्टर नें   उसे उनके घर पहुंचा  दिया था शेरभ के पापा से मिल कर उन से बोला आप अपना ईनाम तैयार रखो। मैं आपके बेटे को लेकर आ रहा हूं।।

 शेरभ को वापस आया देखकर उसके माता पिता ने उसे गले से लगा लिया। पुलिस इन्सपैक्टर अपने घर वापिस जा चुका था। उसनें शेरभ के पिता को अपना परिचय  एक आम आदमी  की तरह दिया। शेरभने कहा कि पापा आपने पुलिस इन्सपैक्टर को खाना नहीं खिलाया। शेरभ के पापा बोले कि वह पुलिस इन्स्पेक्टर नहीं थे।  शेरभ बोला वही तो पुलिस इन्स्पेक्टर थे। शेरभ के पापा को साफ  साफ पता चल चुका था कि वह पुलिस इन्सपैक्टर भी रुपये हासिल करना चाहता था इसलिए उसने अपना  असली परिचय नही दिया।। शेरभ बोला मेरे साथ मेरा दोस्त किटटू भी आया है। शेरभ के पापा खुश थे कि उन्हें उनका बेटा वापिस मिल गया था।

उन्होंनें पुलिस इन्सपैक्टर को ₹100,000 दिए दिए थे। उन्हें अपना बेटा वापिस मिल चुका था इसलिए उनको ₹100,000देने में कोई आपत्ति नहीं थी। अपने मम्मी पापा को शेरभ नें अपनी सारी कहानी सुनाई कि कैसे  इस  किटटू ने मुझे गुंडे से बचाया। और एक हवेली में  आंटी ने मेरी सहायता की। वह आंटी उस पुरानी हवेली के  खंडहर में अकेली रहती है। पापा प्लीज आप भी उस आंटी को बचा लो। आप दोनों मेरे साथ उस हवेली पर चलना। उसके पापा ने सोचा कि जब मेरा बेटा बोल रहा है तो शायद कोई आंटी होगी जो बिचारी  मुसिबत में पड़ी हो।

अगले दिन शनिवार था। शनिवार और रविवार की छुट्टी थी। परिवार सहित शेरभके आने की खुशी में उन्होंने वहां जाना स्वीकार कर लिया था। तीनों गाड़ी में बैठकर उस खंडहर वाली हवेली में पहुंच गए। रात को उन्होंने एक कमरा किराए पर ले लिया। रात को सिर्फ अपनी मम्मी पापा के साथ हवेली में चला गया। रात होने को थी। तभी वहां पर पायल की आवाज़ नें उन्हें चौंका दिया। आंटी को आता   शेरभ ने देख लिया था। शेरभ ने कहा आंटी अब आप बताओ। आज मैं अपने पापा को लेकर  यहां आया हूं। आप मुझे जल्दी बताओ आपको यहां किसने कैद किया हुआ है। वह बोली बेटा तुम बहुत छोटे हो। अपने पापा को मेरे सामने  ले कर आओ  मैं उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाती हूं।शेरभ अपनें पापा को उस हवेली में रहने वाली आंटी के पास ले गया।

वह  शेरभ  के पापा से बोली मैं भी एक राजकुमारी की तरह रहती थी। मेरे पिता बहुत ही धनी परिवार के थे। मैं पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बनना चाहती थी।  कॉलेज के दिनों में मुझे ठाकुर परिवार के राजकुमार से प्यार हो गया था। उसके पिता ने मेरा रिश्ता  स्वीकार नंही  किया। उन्होंनें मुझे पहाड़ से गिरा कर खाई में फैंक कर मार डाला। मेरी लाश को एक खंडहर में फेंक दिया।  मुझे जब बांध दिया गया था मैंने अपने बचाव के लिए पुलिस इंस्पेक्टर रावत को भी फोन किया। उस ठाकूर ने  इस्पेक्टर के साथ मिलकर मुझे  नीचे गहरी खाई में फेंक दिया। मैं उस ठाकुर परिवार के लोगों को सलाखों के पीछे देखना चाहती हूं।बेटा शेरभ जिस पुलिस इंस्पेक्टर को तुम यहां लेकर आए थे वह रावत पुलिस इंस्पेक्टर उसने ठाकुर परिवार के आदमियों के साथ मिल कर मेरी लाश को  मेरे माता पिता को सौंप दिया था। उस पुलिस इंस्पेक्टर ने मुझे नहीं बचाया। वह लालची है। उसे जरुर दण्ड दिलाना।

शेरभ के पापा बोले वह मुझसे भी 100,000 रुपये ले जा चुका है। कुंवर ने शादी नहीं की। वह अपनी प्रेमिका को भुला नहीं पाया और अपनी प्रेमिका की याद में कोमा में चला गया। अभी तक वह हॉस्पिटल बांद्रा में  जिंदगी और मौत के बीच  झूल रहा था। उसके पिता ने उस की जिंदगी  बचानें वाले को 10, 00, 000 रुपए देने का वादा किया है। तुम उस हॉस्पिटल में जाकर उस कुंवर शैलेंद्र को यहां लेकर आओ। मुझ से मिलकर वह ठीक हो जाएगा। मैं अपनी सारी कहानी उसे  सुना दूंगी। जब वह ठीक हो जाएगा तो तुम्हें 10, 00, 000 रुपए मिल जाएंगे। शेरभ के पापा ने कहा ठीक है। हमको आपकी बात में सच्चाई नजर आ रही है। शेरभ़ के पापा हॉस्पिटल में जा कर हैरान रह गए। वहां पर कुंवर शैलेंद्र जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था।  शेरभ के पापा ने ठाकुर कुमार रणवीर सिंह को कहा कि मैं आपके बच्चे को बचाऊंगा।  मेरा बेटा   ठीक हो गया  तो मैं वायदे के मुताबिक   तुम्हें 10 लाख रुपये दूंगा। जल्दी बताओ बेटा मुझे क्या करना होगा? आप अपने बेटे को मेरे साथ जानें दो। मैं उसे ऐसी जगह ले जाना चाहता हूं जहां पर जा कर वह बिल्कुल ठीक हो जाएगा। ठाकुर रणवीर सिंह नें  शेरभ के पिता के साथ  अपनें दो साथियों को भिजवा दिया।

शेरभ के पिता शैलेन्द्र को लेकर  हवेली में पहुंचे।  रात का समय था। शालू  ने पायल की आवाज से उसे पुकारा। शालू शालू अचानक शैलेंद्र ने आंखें खोल दी। वह बोला ना जाने कितने दिनों से तुम्हें मैं ढूंढ रहा हूं। तुम भी कैसी दगाबाज हो तुम्हें कोई और तो पसंद नहीं आ गया। वह शालू के गले लग कर रोने लगा। मुझे छोड़कर मत जाना। वह बोली पहले तुम बिल्कुल ठीक हो जाओ जब तक तुम तंदरुस्त नहीं हो जाते मैं आपसे नहीं मिलूंगी। आपको पहले मेरा एक काम करना होगा। आपको मेरे घर जाकर कहना होगा कि मैं शालू से मिला। वह जल्दी ही घर आ जाएगी। मेरे पिता को कहना कि अपना ध्यान रखें। तुम्हें अपने पिता की बात नहीं माननी होगी। अपने पिता के खिलाफ जाना होगा। अपने पिता की सारी संपत्ति और दौलत हॉस्पिटल बनवाने के लिए दान देनी होगी। पुलिस इंस्पेक्टर रावत को सस्पेंड करवाना होगा। और जो इंसान तुम्हें यहां लेकर आए उन्हें अपने पिता से 10, 00, 000 रुपए दिलवाने होंगे। वह बोला मैं यह सब कुछ करूंगा तब तो तुम वापस आ जाओगी। शालू बोली ठीक है आज से 5 महीने बाद मैं तुम्हारे घर में मैं तुम्हारी दुल्हन बन कर आऊंगी। तुमसे मेरा वादा है पर यह राज किसी को भी अगर तुम बताओगे तो तुम्हें मुझ से हाथ धोना पड़ेगा।  तुम्हारे पिताजी से मुझे बड़ी नफरत हो गई है। यह बोलते बोलते वह चुप हो गई। तब वह गायब हो गई शालू के पिता ने यह सारी बातें रिकॉर्ड कर दी थी। कुंवर शैलेंद्र ठीक हो चुका था। उसमें सबसे पहले अपने घर पहुंचते अपने पिता को कहा कि पापा आप बूढ़े हो चुके हैं और मैं सारा कार्यभार मैं संभालना चाहता हूं। आप तो बस घर बैठकर खाना। जिंदगी का क्या भरोसा? उसके पिता ने सोचा मेरा बेटा ठीक ही तो कहता है। उसने सारी की सारी दौलत अपने बेटे के नाम कर दी।

शैलेन्दर ने सारी दौलत हॉस्पिटल बनवाने के लिए दान दे दी।  शैलेन्द्र के पिता के पास कुछ नहीं बचा था। पुलिस इंस्पेक्टर को भी शैलेंद्र ने सस्पेंड करवा दिया था।  वह शालू के घर गया और  उस के पिता से मिला और बोला अंकल आप चिंता मत करो। शालू जल्दी ही घर आ जाएगी। उसने मुझसे वादा किया है कि वह जल्दी ही घर आ जाएगी। शालू के पिता शैलेन्द्र की बातों को सुनकर हैरान रह गए। उनकी बेटी को गए  तीन साल हो चुके थे। वह सोच रहे थे कि शैलेंद्र उनकी बेटी शालू की याद को भुला नहीं पाया इसलिए बहक गया है।  अंकल आपको किसी वस्तु की भी आवश्यकता हो तो मुझे कहना। मैं आपको लाकर दूंगा।

शेरभ के पिता को कुंवर रणवीर ने 10, 00,000  रुपए दे दिए। उसके पिता को शालू ने बताया कि जिस किडनैपर ने शेरभ को पकड़ा था उसी  किडनैपर ने मुझे पकड़ कर मेरे चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करवाई थी। उन्होंने मेरा चेहरा एक ऐसी लड़की को लगाया था। वह लड़की IAS ऑफिसर बन चुकी है। उस लड़की के माता-पिता ने उस की प्लास्टिक सर्जरी कराई थी और मेरा चेहरा उसे लगा दिया था। उस लड़की का नाम भी शालू है। मेरे पिता ने शैलेंद्र को यह कभी नहीं बताया था कि मैं उनकी बेटी नहीं थी। मैं तो महेंद्र प्रताप की बेटी थी जो बचपन में खो गई थी। महेंद्र प्रताप की बेटी की प्लास्टिक सर्जरी हुई थी। उसका नाम भी शालू है। उसको ही मेरा चेहरा लगाया गया है। मैं वास्तव में उन्हीं की बेटी हूं। तुम शालू के साथ मेरे शैलेंद्र की शादी करवा देना क्योंकि मेरे चेहरे को देखकर वह मुझे अपना लेंगे इतना कहते-कहते शालू रोने लगी। तुम सुखी रहो। शेरभ के पिता को गले लगा कि आज मैंने एक अच्छा काम किया। मैंने कुंवर शैलेंद्र से शालू  को  इन्साफ दिलवा कर अच्छा किया। उसकी आत्मा अब कभी नहीं भटकेगी।

हॉस्टल और कॉलिज की मधुर यादें

दसवीं की परीक्षा के बाद परिणाम निकलने की उत्सुकता हरदम बनी रहती थी। इस बार अच्छे अंक आए  तो ममी- पापा मुझे कॉलिज और हौस्टल में प्रवेश दिलाना चाहते थे। अपने मन    में   हौस्टल का सपना  संजोए जल्दी से परिणाम निकलनें का इन्तजार करनें लगी। मुझे पता ही था कि  मैं अच्छे अंक ले कर   उतीर्ण हो जाऊंगी। लेकिन एक अजीब सी खुशी और थोड़ा सा भय  भी छाया हुआ था। मन में ना जाने  हॉस्टल के बारे में बहुत कुछ अपने सहपाठियों से सुनने को मिला था।  उन्होंनें रैगिंग से डराया हुआ था। कॉलेज में प्रवेश करने पर रैगिंगका डर और  यह हॉस्टल क्या होता है? यह शब्द केवल सुना था। यह कुछ भी मालूम नहीं था कि हॉस्टल कैसा होता होगा? यह रैगिंग क्या होती है? कॉलेज का डर भी कॉलेज  के बारे में जो कुछ सुनने को मिला था उससे तो कॉलेज जाने को मन ही नहीं करता था।

हमारे समय में दसवीं के बाद कॉलेज में ही प्रवेश लेना पड़ता था। आजकल तो समय बदल चुका है। बारहवीं की परीक्षा  के बाद ही कॉलेज में जाने को मिलता है।  अचानक वह दिन भी आ गया जब दसवीं की परीक्षा  उतीर्ण कर कॉलेज में प्रवेश ले लिया। वहीं पर हॉस्टल में दाखिला करवा लिया। मम्मी पापा हॉस्टल छोड़ने आए। वहां पर पहुंचकर खुशी भी हुई। वहां पर  पहले से ही लड़कियों का झुंड लौन में इंतजार कर रहा था। कुछ लड़कियों ने मम्मी पापा को नमस्ते कर अभिवादन किया। लड़कियों ने कहा नीचे हॉस्टल वार्डन का कमरा है। वहां पर जाकर उनसे मिल लो।। हॉस्टल में मुझे प्रवेश मिल चुका था। माता-पिता ने जैसे ही कहा कि बेटा हम अब अपने घर वापस जा रहे हैं तो मैंने मां का हाथ कस कर पकड़ लिया। मां पिता से कभी भी मैं अलग नहीं रही थी। उनका हाथ पकड़ कर कहा मुझे नहीं पढ़ना है यहां। मैं भी आपके साथ वापिस जाना चाहती हूं। सारी की सारी लड़कियां मुझे देख कर हंसने लगी बोली रोते नहीं। उन्होंने मेरा हाथ मां के आंचल से छुड़ाया और कहा कि आप जाओ सब कुछ ठीक हो जाएगा। मां पिता के जाते ही मुझे रोना आ गया। वे मुझे  अकेला  छोड़कर वापस घर चले गए। हॉस्टल में दो दो लड़कियों को एक रूम दिया गया। सुबह 5:00 बजे चाय की घंटी बजी। सुबह उठने का मन ही नहीं किया। थोड़ी आलस करने के पश्चात उठकर चाय पीने का इंतजार करने लगी। एक लड़की आकर बोली तुम चाय का इंतजार कर रही हो।चाए अब नहीं मिलेगी। यहां पर समय पर ही सब कुछ मिलता है। 5:00  बजे सुबह के वक्त प्रार्थना होती है। जो बच्चा प्रार्थना में नहीं जाता उसे चाय भी नसीब नहीं होती। उस दिन बिना चाय पिए  ही मैं कॉलेज जाने लगी। खाने की घंटी भी बजी।। इस बार मुझे पता चल चुका था कि खाने की मेज पर समय पर नहीं पहुंचे तो खाना भी नसीब नहीं होगा जल्दी जल्दी मेज पर खाने का इंतजार करने लगी। अचानक सीनियर लड़कियां आकर बोली  सारी नई आई लड़कियां खड़ी हो जाएं। पहले सीनियर को विश करो। जब तक तुम सीनियर को विश नहीं करोगे तब तक मेज के सामने खड़ी रहो। सारी सीनियर  लड़कियां खाना खाने लगी। थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा कि आज हम तुम्हें पहले ही समझा देते हैं  तुम्हें तब तक नहीं बैठना है जब तक सारी की सारी सीनी लड़कियां बैठ नहीं जाती। एक लडकी ने  उनकी बात नहीं मानी और न ही उनको प्रणाम कहा। वह लड़की जब खाना खानें बैठी तो उसकी थाली में बहुत सारी मिर्ची डाल दी। वह लडकी बहुत ही ढीठ थी उसनें उन की बात नहीं मानी।  सारी लडकियों नें उस से किनारा कर लिया। मन में हॉस्टल के प्रति इतनी कड़वाहट भर गई यह कैसा हॉस्टल है? यहां पर  तो सीनियर लडकियां हम पर रोब झाड़ कर  हमें सूख कर कांटा बना देगी। हम तो सुख सुख कर कांटा हो जाएंगे। जैसे तैसे अपने आप को संभाला। दूसरे दिन सहेलियों के साथ कॉलेज में कॉलेज में गई। कॉलिज में भी कुछ नया नया सा था। जैसे ही पहला कालांश लगा हम भाग  कर कक्षा में चले गए। कॉलेज में मैडम आकर हाजिरी लगाने लगी। काफी विद्यार्थी कक्षा में नहीं आए थे। आधे से ज्यादा बच्चे एक दूसरे की हाजिरी लगा रहे थे।

एक लड़की मेरे पास आकर बोली मेरी  प्रौक्सी लगा देना। मुझे तो प्रौक्सी शब्द का मतलब भी मालूम नहीं था। थोड़ी देर बाद समझ आया की प्रौक्षी  उपस्थिति को कहते हैं। अंग्रेजी के सर तो सब कुछ अंग्रेजी में भाषण देकर कुछ गिटार पीटर कर चले गए। जितनी भी कक्षा में  लेक्चरर आए  सब कुछ अंग्रेजी में बोलते चले गए। हम नई आई हुई लड़कियां उनके चेहरे की ओर देखने लगी। हमें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। यह सब क्या पढ़ा रहे हैं? अपने मन में हीन भावना पैदा हो रही थी। क्योंकि हिंदी मीडियम में पड़े हुए बच्चों को जो कुछ भी शुरू में सिखाया जाता वह कभी भी किसी के पल्ले नहीं पड़ता था। अचानक मैंने अपनी एक सहेली से पूछा क्या तुम्हें कुछ समझ आया? वह कहने लगी नहीं, तब कहीं जाकर दिल को तसल्ली हुई कि मैं ही अकेली नहीं हूं जिसे कुछ समझ नहीं आ रहा। धीरे-धीरे अंग्रेजी के  लेक्चर समझ में आने लगे। हॉस्टल में आने पर सीनियर का डर सताता रहता था। ना जाने आज क्या कह दे?

एक दिन सारी लड़कियों ने रैगिंग लेने के लिए सबको एक कमरे में इकट्ठा कर दिया। सब से कुछ ना कुछ करने के लिए कहा। जो कुछ किसी को आता था। वह लड़कियों ने हमसे करवाया। एक लड़की बहुत ही अकड़ू थी वह कहनें लगी मैं क्यों आप लोगों को गाना सुनाऊं। पहल सीनियर लडकियों नें उस लड़की को कहा तुम्हारा नाम क्या है? वह बोली मेरा नाम  मीरा है। एक सीनियर लड़की उठकर बोली वही मीरा तो नहीं जो कृष्ण की दीवानी बन गई थी। अपनी इतनी बेइज्जती को वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। वह फूट फूट कर रोनें लगी। धीरे-धीरे सभी लड़कियों कुछ दिनों बाद आपस में इतना घुलमिल गई कि एक दूसरे को देखे बिना खाना भी हजम नहीं होता था। जिस हौस्टल शब्द को सुनकर नफरत सी होती थी वह हॉस्टल अब अच्छा लगने लगा।।

हॉस्टल वार्डन भी बहुत  नेक  इन्सान थी। वह बाहर से बहुत सख्त मगर अन्दर से    दिल की बहुत ही अच्छी थी। बिना अभिभावकों की आज्ञा बिना कहीं भी जाने की अनुमति नहीं थी। शनिवार को शॉपिंग  दो घंटे  ही जाने दिया जाता था। उसके बाद समय पर ही हॉस्टल पहुंचना पड़ता था। लड़कियां हॉस्टल में ही रहकर परीक्षा की तैयारी करती थी। महीने में एक बार फिल्म देखने जाने दिया जाता था। हॉस्टल में कुछ एक लड़कियां  एसी थी जो फिल्म देखने की शॉकिन थी।   मैडम दो फिल्में देखने की अनुमति तो दे दे तो अच्छा हो आएगा। मैडम  तो वायदे की बहुत ही पक्की थी।  एक बार  जो कह दिया  वह पत्थर की लकीर होता था। कोई लड़की अगर नियम का उल्लंघन करती थी तो उसे कड़ी से कड़ी सजा दिया करती थी। मैडम सुबह की प्रार्थना में सब लड़कियों को कहती थी कि जल्दी उठा करो। जो जल्दी नहीं उठेगा उसे चाय मत देना। नियम का उल्लंघन करने वालों को सजा दी जाती थी। एक दिन हॉस्टल वार्डन  अपने किसी रिश्तेदार से मिलने चंडीगढ़ चली गई। लडकियों नें उनके जाते ही फिल्म देखनें का प्रोग्राम बना लिया। आज तो उन्हें फिल्म देखनें को मिल ही जाएगी। जल्दी ही हॉस्टल के खाना बनाने वाले भैया को कहा आपने हम सब की फिल्म की टिकटें लो। आप हमारे साथ चलो। आप  ही हमारे साथ फिल्म देखने  चलो।  पिक्चर हॉल में जब बैठकर सभी फिल्म का आनंद ले रहे थे तभी एक लड़की की नजर हॉस्टल वार्डन पड़ी। हॉस्टल वार्डन अपने किसी परिचित के साथ फिल्म देखने आई थी। मैडम नें यहसब देख लिया था। फिल्म देखना तो दूर की बात थी  उस वक्त ऐसा महसूस हो रहा था कब जैसे हॉस्टल पंहूंचे? आधी फिल्म ही देख कर वापिस आ गए। मैडम जब हॉस्टल्आई  आग बबूला हो कर बोली तुम मेरी अनुमति लिए बगैर ही फिल्म देखने चली गई। और खाना बनाने  वाले भैया को भी डांट लगाई। सारा दिन  हमें खड़ा रखा फिर  थोड़ा नर्म हो कर बोली। इतनी सी सजा से काम नहीं चलेगा। तुम्हारी तीन महीने तक की शॉपिंग बाद। हमें तीन महीने तक शॉपिंग नहीं जाने दिया गया। जो कुछ भी सामान मंगवाना होता था हॉस्टल के  चपरासी से मंगवा लेते थे। वही सारा सामान लेकर आता था। उस दिन के बाद हमें सबक मिल गया था। आज भी मैडम की सीख याद आती है। मैडम ठीक ही कहती थी।

मैडम जब  एक राउन्ड लगानें   आती देखूं लडकियां पढाई भी कर रही हैं या नहीं तो कुछ लड़कियां तो पढ़ रही होती। कुछ लड़कियां एक दूसरे के कमरे में होती। जैसे ही  उन्हें पता चलता कि  मैडम राउन्ड लगानें आई हैं तो जो लडकियां एक दूसरे के कमरे में होती वह कोई तो कुर्सी के नीचे छिप जाती कोई पंलग के नीचे।  हॉस्टल  के सामने एक अमरूद का पेड़ था। जिस पर लड़कियां  चढा करती थी  मैडम के आते ही चुपचाप लड़कियां  पेड़ से नीचे उतर जाती  थीं एक लड़की इशारा करके बताती थी कि पेड़ से नीचे उतर जा। मैडम आने  रही है।

सर्दियों के दिन थे लड़कियां  वार्षिक परीक्षा की तैयारी में जुटी हुई थी। अचानक एक लड़की को मजाक सूझा। अपनी सहेली से बोली  कल 31 दिसंबर है। क्यों न नए साल की खुशी में कुछ नया किया जाए?। कुछ लड़कियां बोली क्या करते हैं? चलो आज लड़कियों को लड़का बन कर डराते  हैं। ।  रात के 1:00 बजे थे। अकड़ू लड़की ने अपने सीनियर  लड़की के कमरे का दरवाजा खटखटाया। वह लड़के  की वेशभूषा में थी। वह भी सफेद रंग की पोशाक में। उस लड़की को लगा शायद मैडम राउन्ड लेने आई  है।लडकियां रात रात बैठ कर पढाई किया करती थी। उस लड़की नें सोचा ज्यादा समय नहीं हुआ होगा।

हॉस्टल का चपरासी किसी को भी अंदर फटकनें नहीं देता था। उस लड़की ने किसी लड़के की कल्पना भी नहीं की थी। जैसे  ही उस लड़की ने दरवाजा खोला अपने सामने एक लड़के को देखा। लड़के को देख कर डर के कारण बेहोश हो कर गिर गई। इस वजह से ही वह दोनों लड़कियां डर गई क्योंकि उन्होंने यह सब मजाक के लिए किया था। बाद में उन्हें पता चला कि ऐसा मजाक हमें  किसी के साथ नहीं करना चाहिए। काफी देर तक उस लड़की को होश में लाने का प्रयत्न करने लगे। सारी की सारी लड़कियां इकट्ठी हो गई थी कमरे के साथ ही  हर एक कमरा दूसरे के साथ जुड़ा हुआ था। सभी लड़कियां एक  ही कमरे में इकट्ठी हो गई थी।  उसे होश में लाने का प्रयत्न करनें लगी। उस को बेहोशी की हालत में देख कर लड़कियां रोने लगी। दौड़ी दौड़ी जा कर मैडम को बुला कर लाई। मैडम जी हम से बहुत ही भारी भूल हो गई। उसको  लड़का  बनकर  डराया। कृपया हमें मौफ कर दो। मैडम नें तुरन्त ही डाक्टर को फोन करके बुलाया। डाक्टर के आने से पहले उस लड़की को होश आ चुका था। डाक्टर नें कहा कि इस लड़की को कुछ भी हो सकता था। भगवान् का लाख लाख शुक्र है कि इस लड़की की जान बच गई वर्ना आज कुछ भी हादसा हो सकता था। इस का ब्लड प्रैशर बहुत ही कम हो गया था।। मैडम नें कहा तुम सब लडकियां उस लड़की से मौफ मांगो वर्ना तुम सब को हौस्टल से  छुट्टी दे दूंगी। उन लडकियों नें अपनी सहेली से क्षमा मांगी और कहा कि आज के बाद हम कभी भी ऐसा मजाक नहीं करेंगे। आज भी हॉस्टल और कॉलेज की यादों का सिलसिला जहन में अंकित है। बाद में हॉस्टल से विदा होते समय उन सखियों के गले लग कर इतना रोए।

आज भी इस घटना को भूल कर भी नहीं भूला जाता। कॉलेज के समय की   यादें दिमाग से मिटाने  से भी नहीं मिटती।  

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लक्खू धोबिन का करिश्मा

किसी गांव में एक लक्खू नाम का धोबी अपनी पत्नी के संग लोगों के कपड़े धोने का काम करता था। साथ साथ ही कपड़ों को डाई करने का काम भी करता था ,धोबी बहुत ही नेक इंसान था। वह हमेशा अपना काम ईमानदारी से करता था। काम करते-करते अगर किसी व्यक्ति की कोई भी वस्तु उनके कपड़ों में रह जाती वह उस वस्तु को वापिस कर देता था। उसका एक बेटा था वह भी स्कूल में पढ़ता था लोग उसकी ईमानदारी की मिसाल देते थे। लोगों की काफी भीड़ उसकी दुकान में लगी होती थी। सभी लोग उसके पास अपने कपड़ों को धुलवाने आते थे। उसकी दुकान पर रंगाई करने भी आते थे।

उसके दुकान के समीप एक सेठ जी थे। वह उस कस्बे के जाने-माने सेठ जी थे। वह तो अपने सारे कपड़े उससे ही धुलवाते थे। रंगाई भी उससे ही करवाते थे। उसी से उसकी रोजी-रोटी चल रही थी। एक बार धोबी की टांग में काफी गहरी चोट आ गई, वह काफी दिन तक काम नहीं कर सका।

एक दिन सेठ उसकी दुकान पर आए और बोले। धोबी को आवाज दी। धोबी उस समय आराम कर रहा था। टांग की चोट की वजह से डॉक्टरों ने उसे आराम करने की सलाह दी थी। धोबी की पत्नी बोली क्या बात है।? वह बोला मेरे बेटे का कल इंटरव्यू है। उसकी कमीज को डाई करवाना है। धोबन बोली ठीक है परसों आकर ले जाना। सेठ जी जब चले गए धोबी की पत्नी ने सोचा कि मेरे पति की टांग में फैक्चर हुआ है। क्यों ना मैं ही सेठ जी के बेटे की कमीज को डाई कर दूं।? उसने सेठ जी के बेटे की कमीज को डाई करने के लिए रंग  तैयार किया और डाल कर के रख दिया। जब सेठ जी अपने बेटे की कमीज लेने आए तो उस कमीज को देखकर दंग रह गए। वह तो पहनने के लायक ही नहीं थी। सेठजी बहुत गुस्से से धोबी धोबिन को डांटने लगे। मैं बड़े अरमान से यहां आया था। मेरे बेटे की कमीज यह क्या हालत कर दी। यह तो बहुत ही महंगी थी। तुमने तो इसका ढांचा ही बिगाड़ दिया। मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा। मेरा बेटा कल क्या पहन कर जाएगा। मैंने सोचा था कि यह सबसे महंगी कमीज है जो मेरा बेटा पहनकर जाएगा। कहां है धोबी? धोबी लंगड़ाता लंगड़ाता आ कर बोला।  सेठ जी आप हमें माफ कर दो। मेरी पत्नी ने मेरी सहायता करने के चक्कर में मुझे नहीं बताया वर्ना मैं ही आपके बेटे की कमीज को डाई कर देता। तुमने कभी इतनी मंहगी कमीज देखी भी है ? जिसने इतनी मेहनत से खरीदी हो उसे ही पता चलता है। आज से तुम्हारी दुकान पर कोई भी व्यक्ति कपड़े धुलवाने नहीं आएगा। मैं अपने सभी ग्राहकों को कह दूंगा कि कोई भी उस धोबी के यहां कपड़े धुलवाने नहीं जाएगा। तुम्हें मेरे बेटे की कमीज की भरपाई तो करनी ही पड़ेगी। अब यह कमीज मेरे किसी काम की नहीं, इसे तुम ही राखो, पर तुम्हें इस कमीज के रू 5000 देने होंगे। वह बोला सेठ जी हमें माफ कर दो, इतने पैसे हम पूरे महीने भी मेहनत करे तो भी नहीं जुटा पाएंगे। सेठ जी बोले वो सब मे कुछ नहीं जानता,  एक महीने के अंदर मेरे ₹5000 मुझे चाहिए।

धोबन  तो यह सुनकर अवाक रह गई। वह जोर जोर से रोने लगी। सेठ जी के कारण उसकी दुकान पर ग्राहकों का आना जाना कम हो गया था। बाहर के जो लोग थे वही उसकी दुकान पर कपड़े धुलवाने आते थे। एसे तो हम सेठ जी के रुपये नही चुका पाएंगे। दोनो बहुत चिंता में थे। एक दिन उसकी दुकान पर एक विदेशी पर्यटक आकर बोला। मैं बाहर से आया हूं। कृपया आज के दिन मुझे कोई कमीज पहनने के लिए दे दो। मेरा एक बहुत ज़रूरी काम है और कोई अच्छी सी कमीज़ एक दिन के लिए किराये पर चाहिए। धोबी बोला बाबू जी कृपया मुझे माफ़ कारें  मेरे पास एसी कोई अच्छी कमीज देने के लिए नही है। तभी उस विदेषी पर्यटक की नजर उस रंगे हुए कमीज़ पर पड़ी। अरे वाह मुझे तो यही कमीज़ दे दीजिए। आज तो मेरा काम बन गया।धोबी ने हैरानी से उस पर्यटक को देखा। इस खराब पड़ी कमीज़ में न जाने इस विदेशी को क्या नज़र आया। चलो वैसे भी ये हमारे किस काम की। उस विदेशी पर्यटक ने एकदिन के लिए कमीज़ उधार ले ली थी। धोबी को ₹5000 दिए थे। सेठ जी की कमीज़ की कीमत तो वह चुका गया था। धोबी और धोबिन खुश हो गए थे कि वह रु 5000 सेठ जी के मुंह पर मारेंगे। दूसरे दिन सेठ के पास ₹5,000 देकर आ गए।

सेठ जी भी हैरान थे इतनी जल्दी उन्होंने उसके ₹5000 वापस कर दिए थे। दो दिन बाद वही विदेशी आकर बोला आप की कमीज तो मुझे बड़ी ही भाग्यवर्धक सिद्ध हुई।  यह कमीज मेरी दोस्तों को बहुत ही पसन्द आई। मेरा विदेश में कपडों का व्यापार है। तुम मुझ से इस तरह की दस कमीज डाई करनें के कितने रुपए लोगे। धोबी बोला एक कमीज के10,000 रूप्ए।  विदेशी पर्यटक बोलाआज ही एक कंपनी से मुझे ऑफर आ गई है। यह भी इस कमीज की बदौलत।

एक  व्यापारी ने इस कमीज को देख कर इसे खरीदने के लिए कहा है। वे भी ऐसी दस डाई की हुई कमीजें लेना चाहते हैं। मैं तुम्हें एक कमीज के 10, 000रू दूंगा। धोबी बोला ठीक है। उसनें बाजार से कपडा ला कर उन्हें डाई करवा कर रख दिया। उसनें सपनों में भी नंही सोचा था कि उसकी डाई की गई कला का हुनर  विदेशों तक पंहुच जाएगा। एकदिन उसकी मेहनत रंग ले आई। उस धोबन की डाई की गई कमीज की सब पर्यटकों नें प्रशंसा की। विदेशी पर्यटक बोला अगर आप इस कमीज को बेचना चाहते हैं तो इसकी अच्छी कीमत आपको मिल जाएगी। आपने इसको डाई करके कितना सुंदर बनाया है। जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

विदेशों में तो इस डाई की कला के लोग दीवाने हैं। धोबी नें उन्हें दस कमीजें डाई करके दे दी। उसे चैक द्वारा 100,000रूपये भेजे गए। वह लखू धोबी सचमुच लखपति बन गया था।

दूसरे दिन अखबार में जब सेठ जी ने धोबी और धोबिन की तस्वीर देखी और वह डाई की हुई कमीज देखी तो वह चौकें। जिस कमीज को सेठ जी ने पटक दिया था और जिस कमीज के सेठ जी ने धोबी और धोबिन से ₹10000 लिए थे।  उस कमीज की बदौलत ही धोबी और धोबिन की किस्मत चमक गई थी। वह दोंनों अमीर बन गये थे। सेठ और सेठानी मन में पछता रहे थे हमने उस भोले भाले इंसान को इतनी बड़ी सजा दे दी। उन्हें बहुत ही बुरा भला बुरा कहा। अगले दिन सेठ जी धोबी और धोबिन के पास आकर बोले हमें माफ कर दो। मैंने तुम दोनों का का बहुत ही अपमान किया। तुम्हारी पत्नी ने तो अच्छे ढंग से उस कमीज को डाई किया था। मुझे यह अच्छी नहीं लगी। आज मैं तुम दोनों से अपनी गलती की क्षमा मांगता हूं। धोबी और धोबिन बोले सेठ जी आप हम दोनों से माफी क्यों मांग रहे हो? माफी तो हम आप से मांगते हैं। धोबी और धोबिन की किस्मत पलट चुकी थी।  वास्तव में सचमुच ही वह लखपति बन गया था।

गुरु

स्कूल के ग्राउंड में बच्चे शोर कर रहे थे। सभी  बच्चे खेल के ग्राउंड में उपस्थित हुए थे। आज अपने नए अध्यापक के आने का  बेसब्री से इंतजार करें थे। बड़ी बड़ी मूछों वाले, चश्मे पहने हुए, लंबे,चौड़े कंधे वाले, और पाँव में स्पोर्टस शूज़ पहने  एक व्यक्ति को अचानक स्कूल के ग्राउंड की ओर आते देखा। बच्चों ने अनुमान लगा लिया कि वे ही उन के गुरु जी होगें। उन्होंने एक बच्चे को इशारे से अपने पास बुलाया। उनकी बोलचाल से रौब झलक रहा  था। वह सभी बच्चों से आते ही बोले बच्चों तुम शोर क्यों कर रहे हो? आते ही कोई अजनबी व्यक्ति उन्हें इस तरह आ कर कहे कि शोर क्यों कर रहे हो एक बच्चा आगे आकर बोला सर यहां शोर नहीं नहीं करेंगे तो क्या  कक्षा में करेंगे। यह कोई कक्षा का कमरा नहीं है। यह तो खेल का मैदान है। गुरु जी भी चुप होने वाले नहीं थे। क्या बात है? इस तरह से तुम बात क्यों कर रहे हो। घर से क्या आज खाना खा कर नहीं आये। तुम शोर करते रहो। बच्चों का काम तो होता ही है शोर करना। पहले मुझे बताओ कि स्कूल का  ऑफिस कंहा है? एक बच्चा आगे आकर बोला आप अपने आप ढूंढ लो। कहीं ना कहीं तो आप को मिल जाएगा। यह था स्कूल के बच्चों का हाल। उन्हें इस तरह से बोलते हुए एक मैडम ने देख लिया वह गुस्सा होकर उस बच्चे से बोली यह क्या माजरा है? क्या आप आने वाले हर व्यक्ति से इसी तरह पेश आते हो? बच्चा हंसते हुए भाग गया।  मैडम आए हुए गुरू जी को अंदर लेकर गई। बच्चे तो सोच रहे थे कि जो भी अध्यापक उन्हें पढ़ाने आएंगे उन्हें तो यहां से जाना ही पड़ेगा। उन्हें अपना स्थानांररण दूसरी जगह करवाना पडेगा। उन्हें पता चल गया था कि आने वाले व्यक्ति उनके गुरु जी होंगें। गणित से बच्चों को बहुत ही डर लगता था और अंग्रेजी के अध्यापक से भी।  उन्हें पता चल गया था कि वे उन्हें अंग्रेजी और गणित पढ़ाएंगे। अंग्रेजी से तो उन्हें बहुत ही डर लगता था। अंग्रेज हमारे देश से चले गए हमें यह आफत पकड़ा गए। हमारी हिंदी भाषा जैसे हम बोलते हैं वैसे ही लिखी जाती है। अंग्रेजी में तो कभी सी को क कभी और के को भी कुछ से कुछ पढ़ा जाता है। ये तो हमारे पल्ले ही नहीं पड़ती।

सभी बच्चे सोच रहे  थे कि हम उन्हें भगा कर ही छोड़ेंगे। अध्यापक प्रिंसिपल के ऑफिस में चले गए थे। उन्होंने स्कूल में जॉइन कर लिया था। बच्चे आपस में विचार-विमर्श करनें  लगे कि इन गुरुजी का तो कुछ करना ही पड़ेगा। उनका तीसरा कालांश गणित था। गुरुजी बच्चों के कमरे में आए तो सारे के सारे बच्चे बैठे रहे। तुम मेरा स्वागत क्या बैठ कर ही करोगे। कोई बात नहीं बैठे  रहो। इतना गुस्सा क्यों? क्या तुम्हें गणित पढ़ने का या इंग्लिश पढ़ने का मन नहीं है। आज तो ऐसे भी मैं तुम्हें पढ़ा नहीं रहा हूं। मैं तुमसे आज तुम्हारा परिचय जानना चाहता हूं। बच्चे आज तो खुश हो गए। सभी बच्चों नें एक दूसरे को खड़ा होनें का ईशारा किया।  बच्चे खड़े होकर बोले गुरु जी आपका हमारे स्कूल में स्वागत है। गुरु जी ने सभी बच्चों को कहा कि बैठ जाओ। आज तुम सभी अपना परिचय मुझे दो। सभी बच्चों से उनके नाम पूछ लगे। एक बच्चे को उन्होंने खड़ा कर दिया। वह खड़ा हो गया। उन्होंने उस बच्चे को पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या है? वह कुछ नहीं बोला। उसने अपने पैर पर हरी मिर्ची रखी। गुरु जी बोले यह क्या हरकत है? दूसरा बोला सर यह आपको अपना नाम मौन रहकर बता रहा है। गुरुजी आश्चर्य से उसकी तरफ देखकर बोले क्या नाम है? वह लड़का कुछ नहीं बोला। दूसरा लड़का खड़ा होकर बोला सर इसका नाम हरि चरण है। सभी  एबच्चे कक्षा में खिल खिलाकर हंसनें लगे तभी एक लड़की की ओर इशारा करके गुरुजी बोले बेटा तुम्हारा नाम क्या है? वह भी मुंह से कुछ नहीं बोली वह अपने हाथों को पूजा की शक्ल में घुमाने लगी। सर बोले क्या तुम भी गूंगी हो? दूसरी लड़की पास में ही बैठी थी वह उठकर बोली सर इसके कहने का तात्पर्य है आरती। इसका नाम आरती है। दूसरी लड़की से बोले तुम अपना नाम बताओ। वह धीरे-धीरे कक्षा के कमरे की ओर आई और उसने लाइट जला डाली। सारी कक्षा में बच्चे के खिल खिलाती पड़े। अध्यापक बोले शायद तुम्हारा नाम बिजली है। क्या कमाल के बच्चे हो? एक बच्चा खड़ा होकर बोला सर कमाल का नहीं मैं तो रामप्रसाद जी का बेटा हूं।  एक दूसरे लड़की को तुम्हारा क्या नाम है? उसनें ब्लैक बोर्ड पर रेखा बना डाली। गुरू जी बोले तुम नें तो अपना परिचय दे डाला। मैं भी तुम्हे अपना नाम बताता हूं। सर नें ब्लैक बोर्ड पर लिखा सन लाईट। एक बच्चा खड़ा होकर बोला मेरा नाम लाईफब्वाय है। कक्षा में सभी बच्चे खुश नजर आ रहे थे। सूरज प्रकाश जाते हुए बोले कल से कोई शरारत नहीं होगी। दूसरे दिन गुरू जी कक्षा में पहुंचे तो बच्चे बोले सर अंग्रेजी हमें समझ नहीं आती है। और ना ही गणित। अध्यापक बोले कोई भी विषय मुश्किल नहीं होता अगर तुम इसमें रुचि लेनें लग जाओगे तो यह तुम्हें आसानी से आ जाएगा। बच्चे तो पढ़ने वाले नहीं थे वे हरदम कोई न कोई शरारत किया   करते थे। एक दिन अंग्रेजी के अध्यापक उनसे बहुत ही गुस्सा हो गए। वे बोले कल मैं तुमसे प्रश्न पूछूंगा और टैस्ट भी लिया जाएगा। जब टैस्ट लिया तो वे सात बच्चे फेल थे। उन्होंने सभी बच्चों को कहा कि जो बच्चा टैस्ट की तैयारी नहीं कर हुआ उसका दाखिला नहीं भरा जाएगा। सभी बच्चे डर के बोले गुरु जी हमें 15 दिन का समय दे दीजिए। हम 15 दिन बाद याद करके आ जाएंगे। अध्यापक सोचने लगे चलो इन्हें इतना वक्त तो देना चाहिए। 15 दिन के बाद जो फेल होगा उसका दाखिला स्कूल में नहीं लिया जाएगा। अध्यापक कक्षा में आकर बैठ जाते थे। बच्चे अपने आप याद करने लग जाते थे। टैस्ट के केवल 5 दिन शेष रह गए थे। उस के पश्चात उनकी वार्षिक परीक्षा थी। उन्हें याद ही नहीं हो रहा था। जैसे  ही अध्यापक उन से प्रश्न पूछते तो वे कोई न कोई बहाना बनानें लगते। कहते की याद ही नहीं है। कुछ तो चुपके-चुपके पिछली खिड़की से कक्षा से भाग जाते। उपस्थिती लगते ही वे सातों भाग जाते। उनके अध्यापक को पता चल गया था कि यह बच्चे अपने लक्ष्य से भटक गए हैं। इन्हें अभी समझाया नहीं गया तो वे कभी जीवन में उन्नति नहीं कर सकते। वे गुरु जी की बातों को ध्यान से नहीं सुनते थे। कुछ एक थे जो पढ़ना ही नहीं चाहते थे। इसमें बच्चों का कसूर नहीं था। बच्चों के संस्कार ही ऐसे मिले थे। वह अपने मन में सोच रहे थे चाहे कुछ भी हो इन 7 बच्चों को सुधार पाया तो ठीक है वरना मेरा गुरु होने का कोई भी तात्पर्य नहीं है।

गुरु तो वह दीपक होता है जो सभी को प्रकाशित करता है। जिस प्रकार दीपक मे बाती तेल सभी साधन है जो ज्योति को जलाने के लिए चाहिए। जो शिष्य का मार्गदर्शन करें। उन्हें सच्चाई की डगर दिखा  कर उन्हें सुधारे। मैं इन को सुधार कर ही रहूंगा। टैस्ट के दो दिन रह गए थे। जैसे ही गुरुजी कक्षा में आए उन पर बच्चों ने खुजली का पाउडर फेंक दिया। वह खुजली करते हुए बाहर की ओर भागे। प्रिन्सिपल जी नें  उन्हें कक्षा से बाहर भागते देखा तो बोले क्या बात है सर? सब ठीक है? अगर आप बीमार है तो छुट्टी लेकर घर चले जाओ। प्रिंसिपल सर बोले कुछ लड़के दसवीं कक्षा में बड़े उदन्ड है। कहीं उनकी तो कोई कारस्तानी नहीं है?

गुरुजी बोले नहीं कोई ऐसी बात नहीं है। उन्हें समझ आ गया था यह सारी कारस्तानी इन्हीं बच्चों की ही है।

उन्हें  अपना समय याद आ गया  वह भी तो इसी तरह की हरकतें किया करते थे। मैंने आज प्रण ले लिया है तब तक स्कूल से वापस नहीं जाऊंगा जब तक इन बच्चों को सबक सिखा न लूं  या तो यह सुधर जाएंगे या स्कूल से निकल जाएंगे। इनको मैं भटकता हुआ नहीं देख सकता।

सूरज प्रकाश ने  चपरासी से एक गिलास पानी मंगवाया और कक्षा में  जाने लगे। बच्चों ने जब गुरू जी को कक्षा में आता देखा तो  बच्चे पढ़ाई में मस्त हो गये। कुछ बच्चे जो पढ़ना नहीं चाहते थे वे बैठकर ज़ोर से कक्षा में बातचीत कर रहे थे। उन्होंनें उन सातों बच्चों को कक्षा में खड़ा कर दिया। उन्हें कहा कि तुम सारा दिन कक्षा में खड़े रहोगे। सातों बच्चे खड़े हो गए। दूसरे दिन वे सभी भगवान से प्रार्थना करनें लगे कि हमारे  गुरू जी स्कूल में ही ना आ सके। काश ऐसा हो जाए तो मैं 10 रुपये का मन्दिर में प्रसाद चढा दूंगा। दूसरा हंसते हुए ₹10 तो बहुत कम है हम 50 50 रुपये का प्रसाद चढाएंगें। दूसरे दिन वह बात सचमुच साबित हुई।। मास्टर जी अपनी मोटरसाइकिल से गिर पड़े। उनके पैर में गम्भीर चोट आई थी। बच्चे स्कूल पहुंच कर अपनें दोस्तों से बोले आज गुरु जी स्कूल नहीं आने चाहिए। एक बच्चा दौड़ कर आ कर बोला तुम्हारी पुकार ईश्वर नें सुन ली। गुरु जी आज नहीं आ सके। तुम्हारी दुआ काम कर गई। गुरुजी मोटर साइकिल से गिर पड़े। उनके टांग में फ्रैक्चर हो गया है? कक्षा में प्रिंसिपल आकर बोले तुम्हारे अध्यापक जी 15 दिन स्कूल नहीं आ सकेंगे। तुम्हें गणित और अंग्रेजी  की तैयारी स्वयं करनी होगी। अगले हफ्ते तुम्हारी वार्षिक परीक्षा है। सभी बच्चे खुश नजर आ रहे थे। हमारी बात सच हो गई। अब परीक्षा में हम नकल करके पास हो जाएंगे। नकल करने के लिए पर्ची ले कर जाएंगे।। जो बच्चे हमेशा पढ़ते थे वह तो तैयारी में जुट गए थे। परीक्षा का दिन भी पास आ गया था। परीक्षा देने के लिए परीक्षा भवन में पहुंचने के लिए बच्चों को बहुत ही दूर जाना पड़ता था। शाम को इतना पानी बरसा की दूर दूर तक वाहन मिलना मुश्किल हो रहा था। सभी बच्चे गरीब घरों के थे। गाड़ी या टैक्सी के लिए उनके पास इतना किराया नहीं होता था। सात बच्चों का ग्रुप भी परीक्षा देने के लिए निकल पड़ा। उन्हें कोई भी सवारी नहीं मिल रही थी। उनमें से एक बच्चा तो बीमार था। परीक्षा में केवल आध घंटा शेष था। पैदल तो किसी भी हालत में परीक्षा भवन नहीं पहुंच सकते थे।  परीक्षा भवन पहुंचनें के लिए गाड़ी करवाना बहुत ही आवश्यक था। वे सभी मायूस हो गए उनकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। सामने से गाड़ी में आते हुए गुरु जी को देखा। उनकी रोनी सूरत की ओर देख कर बोले आज स्कूल क्यों नहीं पहुंचे? आज तो तुम्हारी परीक्षा है न। गुरु जी क्या बताएं कोई सवारी ही नहीं मिल रही। हमे परीक्षा से आज वंचित रहना पड़ेगा। हमारा साल बर्बाद हो जाएगा। हमारे पास इतने रुपए नहीं है कि हम घर से जाकर अपने माता पिता से रुपये ले आए। उनकी तरफ-देख कर बोले जल्दी बैठो मैं तुम्हें छोड़ कर आता हूं। मैंने अपने भाई की गाड़ी ले ली है। मैं तो अपनी टांग दिखाने अस्पताल आया था। चलो मैं तुम्हें स्कूल पहुंचा देता हूं। फिर वापस आकर अस्पताल चला जाऊंगा।

सारे के सारे बच्चे हैरान होकर अपने  गुरु जी को देख रहे थे हमने तो अपनी गुरुजी के बारे में कितना बुरा सोचा था। एक  वे हैं जो हमारी सहायता करने की सोच रहे हैं। उनकी आंखों में सचमुच पश्चाताप के आंसू थे। गुरु जी ने उन्हें परीक्षा हॉल में 15 मिनट पहले पहुंचा दिया था। सभी बच्चे खुशी-खुशी हॉल में परीक्षा देने के लिए चले गए थे। एक बच्चा जो बीमार था उसको गुरुजी ने कहा तुम अभी यहीं पर गाड़ी में बैठो। मैं अंदर जाकर पता कर कर आता हूं। उसकी हालत कुछ पहले से ठीक हो गई थी। गुरुजी सोचनें लगे कि अगर वह परीक्षा में वह बच्चा भी बैठ जाएगा तो उसका साल बर्बाद नहीं होगा। परीक्षा अधिक्षक के पास जाकर बोले कि हमारे स्कूल का एक बच्चा बीमार हो गया है। आप उस बच्चे को थोड़ा पेपर के लिए आध घंटा ज्यादा देंगे तो आप का बहुत ही एहसान होगा। कृपया आप इन गरीब बच्चों की तरफ ध्यान दें। इनके माता-पिता  इन्हें बड़ी मुश्किल से पढ़ाई के लिए भेज रहे हैं। परीक्षा अधीक्षक महोदय बोले कि इस बच्चे को 15 मिनट ज्यादा समय दे दूंगा। उन्होंने जल्दी से उस बच्चे को भी परीक्षा हॉल में बिठा दिया। गुरु जी की तरफ बच्चे कृतज्ञता भरी नज़रों से देख रहे थे।

परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। सभी बच्चे  पास हो गए थे। गुरु जी को पता चल गया था कि उन बच्चों को सुधारने में वह सफल नहीं हो पाये। प्रिंसिपल के रूम में आकर उन्होनें अपने स्थानांतरण के लिए प्रार्थना पत्र दे दिया।  सभी सभी बच्चे पास हो गए थे। बीमारी की वजह से एक बच्चा आकाश थोड़ा बहुत कर पाया था। उसके अंग्रेजी विषय में 5 अंक कम रह गए थे। प्रिंसिपल जी के पास जाकर गुरुजी बोले 5 अंक देने का प्रावधान तो प्रिंसिपल जी को है। आप अगर इस बच्चे को 5 अंक दे देते हैं तो वह बच्चा पास हो जाएगा। यह बीमारी की वजह से परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाया कृपा करके इसको 5 अंक दे दीजिए। नहीं तो इसका दिल टूट जाएगा। इसके सभी दोस्त ग्रेस मार्क्स से पास हुए हैं। यह तो बीमार था। बड़ी मुश्किल से अपनी परीक्षा  दे पाया। बाहर आकाश खड़ा होकर अपने लिए प्रिंसिपल के सामने गिडगिडाते हुए सूरज प्रकाश सर को देख रहा था। प्रिंसिपल सर बोले तुम उस बच्चे की गारंटी लेते हो तो मैं इस बच्चे को पाँच अंक देने के लिए तैयार हूं। गुरुजी बोले कि मैं इस बच्चों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी लेता हूं। मैं अपना इस्तीफ़ा फाड़ कर फेंकता हूं। इसके पश्चात मैं यहां से चला जाऊंगा।

आकाश ने गुरुजी से माफी मांग ली। उसने आकर अपनी सभी दोस्तों को गुरुजी की बात बताई। गुरुजी कक्षा में आए तो सारे के सारे बच्चे चुपचाप खड़े थे। वह बोले बेटा तुम सब चुप क्यों हो? आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूं। मैं तुम्हें अच्छा बच्चा बनना देखना चाहता हूं। आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूं।

मैं भी बचपन में एक शरारती बच्चा था। मेरे माता-पिता गांव में रहते थे। हम दो भाई थे। मेरे बड़े भाई का नाम हितेश था। वह बहुत ही नेक इंसान था। मैं बहुत ही शातिर और चंचल स्वभाव का था। इतना उदन्ड था कि राह चलते लोगों को सताना और मोहल्ले की औरतों को गुलेल से मारना पक्षियों को भी पत्थर  मारता था। हर एक को मारता था। मेरे पिता ने हम दोनों को स्कूल में दाखिल करवा दिया। स्कूल में भी मेरा दिल नहीं लगा। मैंने अध्यापक और अध्यापिकाओं को भी सताना शुरू कर दिया सभी अध्यापकों के ऊपर नीली स्याही छिड़क देना। कभी उनका रजिस्टर फाड़ देना। पढ़ाई करनें से इतना डरता था कि मैं कक्षा में हमेशा खड़ा रहता था। पढ़ाई तो मेरी कुंडली में थी ही नहीं। एक दिन मेरे पांचों दोस्तों ने मिलकर योजना की गुरुजी को नुकसान पहुंचा जाए। हम सब बच्चों का एक ग्रुप था। हमनें मिल कर पिकनिक का प्रोग्राम बनाया था। पिकनिक तो एक बहाना था। एक ऊंची पहाड़ी पर जा कर वहां खुब मस्ती कर के घर आना था। अपनें अध्यापक को पिकनिक में आनें के लिए मनवा लिया। मेरे पीछे-पीछे मेरे दोस्त अध्यापक के आने का इंतजार कर  सभी पिकनिक पर गए थे। अध्यापक जी के आने पर खुब मस्ती की। वापिसी में पहाड़ी के रास्ते से मैंने गुरुजी को धक्का दे दिया। हम ने योजना के मुताबिक गुरु जी को नीचे गिरा दिया। हमें यह नहीं पता था कि उन्हें इतनी चोट भी लग सकती है। हमारा बचपना था। गुरु जी पेट के बल नीचे गिर पड़े। उन्होंने मुझे धक्का मारते देख लिया था। जब थोड़ी देर हो गई लोंगो की भीड़ इकट्ठा हो ग्ई। लोंगों ने बोला सूरज प्रकाश ने ही ऐसा किया है। यह बच्चा बहुत ही शैतान है वह कभी भी स्कूल में काम करके नहीं लाता है। और सभी को मारता रहता है। उसने ही अध्यापक जी को धक्का दिया होगा। उन से जब पुलिस वालों नें पुछा तो गुरुजी ने नहीं कह कर इशारा कर दिया। किसी बच्चे ने मुझे धक्का नहीं दिया। मैं अपने आप ही सम्भल नहीं पाया। उस दिन मुझे गुरु जी का मूल्य समझ में आया। अब क्या हो सकता था? उस दिन के पश्चात मेरे जीवन की दिशा ही बदल गई। गुरु जी के प्रति सिर श्रद्धा से झुक गया। मेरे माता-पिता को पता चला कि उसने ही धक्का दिया है तो उन्होनें मेरी खूब पिटाई की। उनको सारी सच्चाई दोस्तों ने बता दी थी कि हमें ने ही इन्हें धक्का देने के लिए कहा था। गुरुजी को  मारने का हमारा इरादा नहीं था। हम उन्हें मारना नहीं चाहते थे। मेरे माता-पिता ने कहा कि जब तक तुम्हारे पिता समान गुरु जी ठीक नहीं हो जाते तो तुम्हें इनके लिए पढ़ाई करनी होगी। उनके परिवार वालों का तुम को ही ध्यान रखना होगा जब तक गुरु जी ठीक नहीं हो जाएंगे तब तक हम तुम्हें अपनाएंगे नहीं। तुम को माता पिता के प्यार से भी वंचित होना पड़ेगा। तुम्हारी पढ़ाई के लिए तो खर्चा हम देंगे। जब तुम पढ़ाई कर लोगे तुम को ही उनके घर को सम्भालना होगा। उन्होनें मुझसे उस दिन के बाद प्यार कभी नहीं किया। मै पढाई कर एक अध्यापक बन गया।

मैंने कसम खाई की मैं भटके हुए बच्चों को गुमराह होने से बचा लूंगा आज मैं तुमको सुधार नहीं पाया बेटा मैंने अपने तबादले के लिए प्रार्थना पत्र दे दिया है। आकाश बेटा तुम्हें पढानें के बाद मैं खुशी-खुशी यहां से चला जाऊंगा। सभी बच्चे  अपने गुरु के चरणों में पड़ गए बोले गुरु जी आगे से ऐसी गलती नहीं होगी। गुरुजी आपके अध्यापक अब कंहा है? वे मेरे फ्लैट में ही रहते हैं। मैं उन्हें अपने फ्लैटमें लेकर आ गया। नौकरी करने के पश्चात मैंने एक फ्लैट किराए पर ले लिया। उनकी मां भी हमारे साथ रहती हैं। बच्चे बोले कि हम सब गुरुजी को ठीक करके ही रहेंगे। आज से हम भी इस लड़ाई में आपके साथ हैं। हमने भी तो आप को मारने के लिए योजना बनाई थी। हमने भगवान से कहा कि आप की टांग टूट जाए। हमारी गलती थी। जब तक हम अध्यापक जी को ठीक नहीं करवा देते तब तक हम पीछे नहीं हटेंगे।  आप नें भी तो हमारे लिए इतना सोचा। हम एक-एक घंटा आकर उन्हें देख जाया करेंगे। सारे के सारे बच्चे उन्हें हर रोज देखने घर आ जाते। बूढ़े गुरु अध्यापक जी उस हादसे के बाद कभी भी बोल नहीं पाए। उसके बाद उनके बोलने की शक्ति छीन गई थी। काफी डॉक्टरों को दिखाया मगर कामयाब नहीं हुए। बच्चे हर रोज गुरुजी के पास बैठ जाते थे। सब के सब कोई उनके पैर दबाता। कोई उनके लिए फल लाता। कोई उनकी ब्रश करवाता। एक दिन उनके फ्लैट में एक डॉक्टर रहने के लिए आए। सूर्य प्रकाश जी ने सारी बातें उन को बताई। उन्होंने बताया कि यही हादसा अगर फिर से दोहरा जाए तो उनकी याददाश्त वापस आ सकती है। लोगों ने एक छोटी सी पहाड़ी के पास ले जा कर पिकनिक का उत्सव किया। सभी खुशी खुशी पिकनिक का आन्नद ले रहे थे। वापिसी के समय  सूरज प्रकाश नें उन्हें उसी पहाडी को याद करके धक्का गिराने का प्रयत्न किया। ऎसा करते समय उनके हाथ कांप रहे थे। जाकर छोटी सी पहाड़ी के पास से धक्का दे दिया। सारी की सारी तैयारी पहले ही की गई थी ताकि उन्हें गिरने से चोट ना लगे जैसे उन्हें ऊपर से गिराया गया उनके मुंह से निकला सूरज सिंह। उनकी जबान लड़खड़ाई और वे बेहोश हो गए। नीचे बहुत सारे लोग मौजूद थे। वे जैसे ही गिरे उन्होनें उन्हें सम्भाल लिया। काफी देर बाद उन्हें होश आया तो वह बोले सूरज सूरज सूरज। हैरान होकर बच्चे बोले डॉक्टर साहब डॉक्टर साहब जल्दी आओ हमारे सर बोल पड़े। बच्चे खुशी से चिल्ला उठे गुरु जी ठीक हो गए। अध्यापक जी ठीक हो गए। आज मेरी तपस्या सफल हो गई आज मैं इन बच्चों को भी सुधारनें में सफल हो गया। मेरी कोशिश रंग ले आई। आज मैं बहुत ही खुश हूं। आज मैं गुरुजी कहलाने योग्य हूं।

सभी बच्चे हंस कर बोले गुरु जी हम सब आपके साथ हैं। हम कभी भी गुमराह नहीं होंगे। हम अच्छा बनकर दिखाएंगे। हम पहले शरारतें किया करते थे  वह हमारा बचपना था हमें माफ कर दो। हम भी किसी एक ऐसे किसी बच्चे को सुधारने में मदद कर सके तो हमारा जीवन सफल हो जायेगा। गुरुजी इन सबको मुस्कुरा कर देख रहे थे।

मां की सीख

मां बेटे से बोली।

तेरे संग है बच्चों की टोली।।

तुम हरदम उपद्रव क्यों मचाते हो?

अपनी चीजें हर जगह क्यों फैलाते हो।।

रिंकू बोला मैं तो हूं आपका राज दुलारा।

आपका सदा ही रहूंगा आंख का तारा।।

मां बोली  तू अगर मगर क्यों करता है?

मुझे परेशान कर  अपना राग अलापता है।।

चुन्नू बोला मां  बात बात पर मुझे क्यों चिढाती हो।

हरदम काम काम कह कर  अपनी बात मनवाती  हो।।

मां बोली बेटा अपनी चीजों को ठीक स्थान पर रखने की आदत डालो।

सभ्य बच्चे की तरह अच्छे गुणों को अपना डालो।।

यह बात तुम अपने दोस्तों को भी समझाओ।

समझ कर अपनी  अक्ल में बिठाओ।।

मां बोली जल्दी से  संस्कारी बच्चे बनकर अपने कमरे में जाओ ना।

अपने दोस्तों के संग सारी चीजें सुव्यवस्थित ढंग से सजाओ ना।

मां बोली आज तुम्हारा मनभाता हलवा खिलाती हूं।

स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर कर तुम्हें रिझाती हूं।।

मां बोली सभी बच्चों संग रसोई में आओ न।।

जल्दी आ कर मेरे बनाए खाने  का  लुत्फ उठाओ ना।।

रिन्कू बेटा रसोई में आने से पहले अपनें जूते बाहर खोल कर आओ।

आ कर मां के साथ रसोई में  हाथ  बंटाओ।।

पानी पीने के पश्चात बर्तन को ढक कर रखा करो।

हाथ धोकर साफ तौलिए से हाथों को पौंछा करो।।

बेटा जल्दी जल्दी खाना मत खाओ।

चबा चबा कर खाने की आदत बनाओ।

कब क्यों और कैसे

 तीन दोस्त थे अंकित अरुण और आरभ। तीनों साथ-साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। वह तीनों 12वीं की परीक्षा के बाद पढ़ाई भी कर रहे थे। और नौकरी  ढूंढने का पर्यास भी कर रहे थे। उनके माता पिता चाहते थे कि वे नौकरी करके हमारा भी सहारा बने। अंकित अरुण और आरभ तीनों मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते थे। अंकित एक लंबा चौड़ा हट्टा-कट्टा देखने में खूबसूरत, चतुर और शान्त स्वभाव का। ना जाने उसने कितने इंटरव्यू दे डाले मगर कहीं भी नौकरी नहीं मिल रही थी। अंकित की मम्मी ने पुकारा “बेटा क्या बात है? तुम आजकल कहीं भी इंटरव्यू नहीं दे रहे हो। ऐसा कब तक चलेगा। घर में कोई ना कोई कमाने  वाला होना चाहिए। तुम्हें जल्दी से जल्दी नौकरी ढूंढनी होगी मगर तुम तो शायद एक कान से सुनते हो और दूसरे कान से निकाल देते हो”। अंकित बोला “मां मैं क्या करूं? तुम सोचती हो मैं सारा दिन यही आवारागर्दी करता रहता हूं। मुझे आप सबकी कोई फिक्र नहीं है। कोशिश तो कर रहा हूं।”

 अरुण  के परिवार में अरुण सबसे छोटा था।  उसके परिवार में एक बहन थी। पापा रिटायर हो गए थे।  सभी की आस अरुण पर टिकी थी कि कब वह जल्दी से अपनी जिम्मेदारी समझे और कुछ कमा कर लाए। अरुण भी इन्टरव्यू दे दे कर थक चुका था।  अरुण बहुत चतुर था, जो देख लेता उसे भूलता नही था।

आरभ के परिवार में  भी उसके पिता और उसकी एक बहन थी। आरभ छोटे कद का घुघंराले बालों बाला देखने में सुन्दर।    तीनों  जब भी आपस में मिलते तो  कहते नौकरी   ढूंढते-ढूंढते थक गए। कुछ ना कुछ नया करते हैं। घर में बताए बगैर घर से निकल गए।

तीनों ने एक दो दिन पहले अपने माता पिता को बता दिया था कि हम तीनो  को काम के सिलसिले से बाहर भी जाना पड़ सकता है। तीनों के माता-पिता  अपनें बच्चों की इतनी चिंता नहीं करते थे। तीनों दोस्त मुंबई जाने वाली गाड़ी में बैठ कर आपस में बातें करनें  लगे। टिकट चेकर आया तो हम क्या कहेंगे। हमारे पास तो मुंबई जाने का भी किराया नहीं है।  अरुण के दिमाग में एक योजना आई। क्यूं न हम यूं ही कैसी भी योजना बना लें। यूं ही कोई मन गडन्त  कहानी। आरभ मन ही मन में कहने लगा। सचमुच में ही उन्हें टिकट चेकर आता दिखाई दिया। वह वही आ रहा था।  बोला तुम तीनों खड़े क्यों  हो? अरुण बोला हम यूं ही खड़े हैं। अभी अभी ना जाने हमारा सूटकेस एक व्यक्ति लेकर भाग गया। हमने यहां पर रखा था। टिकट चेकर उन्हें भला बुरा कहने लगा। तुम झूठमुठ कह रहे हो। मैं अभी थानेदार साहब को बुलाता हूं। उसने सचमुच में  ही थानेदार  को बुला लिया था।गाडी धीमी रफ्तार से चल  रही थी। टिकेटचैकर उन तीनों से बोला जब तक पुलिस इन्सपैक्टर आते हैं तब तक तुम बैठ सकते हो।  तीनों चुपचाप एक दूसरे से कह रहे थे न जानें अब क्या होनें वाला है। कुछ न कुछ तो सोचना ही पड़ेगा। वे तीनों बैठ गए थे। उन के ही समीप एक लम्बा सा आदमी अपनें किसी रिश्तेदार को जोर जोर से कह रहा था मेरे घर जरूर आना। मैं तुम्हें नौकरी दिलवा दूंगा। अरुण उस व्यक्ति को बार बार देख रहा था। उसके कानों में छेद थे। उसने एक कान में बाली पहन रखी थी। मांग सीधी की हुई थी। वह स्टाइल उस को खुब जंच रहाथा। हाथ में सोनें का कंगन पहन रखा था। देखें में किसी नवाब से कम नहीं लग रहा था। अरुण अपनें दोस्त को बार बार इशारा कर रहा था  मगर उसका दोस्त तो भीगी बिल्ली बना अपनें मन में  आने वाली मुसीबत से बचनें का उपाय सोच रहा था। जब अरुण नें उसे झंझोडा तब उस की तन्द्रा टूट गई वह अपने दोस्त की  तरफ देख कर बोला क्या है? अरुण नें उस व्यक्ति को दूसरे डिब्बे में जाते देख लिया था। जब वह जाने लगा तो अचानक उसे धक्का लगा। उस के पैर से खून निकल रहा था। उस के साथ एक शख्स था जो हाथ में शायद सूटकेस लिए  था। उसनेपना सूटकेस किसी को थमा दिया।

वह बोला बाबू साहब आप को कहां लगी? उसका हाथ पकड़ कर बोला बाबू साहब आप के हाथ से भी खून बह रहा है। मै आप को पट्टी बांध देता हूं। वह उसके हाथ में पट्टी बांधने लगा। अचानक अरुण की नजर फिर से उस व्यक्ति पर गई। उस के हाथ पर टैटू खुदा हुआ था। अचानक थोड़ी देर बाद वह शख्स न जानें कंहा गायब हो गया।

वहां पर पंहूंच कर थानेदार को टिकट चेकर ने सारी घटना सुना दी किस तरह कुछ नकाबपोशों ने इन नवयुवकों का सूटकेस छिन कर अपनें पास रख लिया है। टिकट चेकर बोला  तुम्हारा सूटकेस किस रंग का था। अंकित बोला नीले रंग का था। बीच में काली धारी  लगी थी। हमारा सब कुछ उस सूटकेस में था। हमारे पास टिकेट लेने के लिए  भी रुपये नंही है। तीनों इसी तरह  एक दूसरे से कहने लगे चलो दोस्तों अभी भी समय है। क्या पता।? वह आदमी हमारा सूटकेस लेकर नीचे उतरा हो। आओ हम तीनों गाड़ी से नीचे उतर जाते हैं। हम कैसे मुंबई जाएंगे? अंकित  आंखों में झूठमूठ के आंसू भर कर  बोला मेरे दोस्त की बहन की शादी है।  उसने मुझे शादी में बुलाया था। वहीं पर पहुंच कर रुपयों का जुगाड़ करते हैं। हमारी एक दोस्त भी सूरत में रहती है। उस से रुपये ले कर हम आप को दे देंगे। मैने उस को फोन कर दिया है।

   रेलवे सेक्योरिटी पलिस  पास ही  गाड़ी के डिब्बे में घूम रहा था एक बड़े से नकाबपोश वाला आदमी उसके पीछे खड़ा था।  गाड़ी में  आया और वह अपने आदमियों को कहनेंलगा इस सूट केस में  बहुत ही जरुरी कागजात हैं। उसने वह सूटकेस उसने  अपनें पीछे छिपा लिया। टिकट चैकर  कि नजर भी उस व्यक्ति पर नजर पड़ी। उसके हाथ में से सूटकेस लेकर टिकट चेकर हैरान रह गया। वह थानेदार से बोला वह नवयुवक ठीक  ही कह रहे थे। यह उन्हीं का  सूटकेस है। नीले रंग का सूटकेस और काली धारी वाला।  थानेंदार  नकाबपोश आदमी से बोला तुम्हारा पर्दाफाश हो चुका है। तुम अपने आप को मेरे हवाले कर दो। वर्ना  बेमौत मारे जाओगे। एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी।  अरुणको थोड़ा सा सुनाई दिया।  वह चौक कर टिकट चेकर को देखनें लगा। वह किस से बातें कर रहा है।  अपने दोस्तों से बोला कि टिकट चेक कर कुछ बातें कर रहें हैं।  जल्दी  से उस  नकाबपोश व्यक्ति ने चलती गाड़ी से छलांग लगा दी।  जब वह गाड़ी से कूदा अरुण बाहर की ओर खडा हर आनें जानें वाले को बड़ी  होशियारी से देख रहा था। टिकट चेकर  सूटकेस लेकर उन तीनों के पास आया।  अरुण सोचने  लगा शायद सूटकेस में  रुपये  होंगें।   उसने नकाबपोश वाले व्यक्ति को सूटकेस को खोलते देख लिया था। वह सूटकेस  किसी  एक नम्बर को डायल करनें से खुलता था। उसने 845 डायल करते देख लिया था  वह नकाबपोश गाड़ी से नीचे उतर चुका था।  उस के अन्दर एक  डायरी और कुछ रुपये थे।

टिकेट चैकर बोला सूटकेस मिल गया है।  तुम ठीक कह रहे हो या गलत। तब तो  इस सूटकेस की चाबी  भी तुम्हारे  पास होगी। अरुण  नें कहा यह सूटकेस तो नम्बर डायल करनें से खुलता है।  यह चाबी से नहीं खुलेगा। दोनों दोस्तों की सिटीपिटी गुम हो चुकी थी। अब तो अवश्य पकडे जाएंगे। अरुण सोचने लगा कंही उस ही  नकाबपोश का सूटकेस तो नहीं है।   यह उस व्यक्ति का सूटकेस होगा तो 845नम्बर से खुल जाएगा। अब सब कुछ राम भरोसे है। या गाड़ी आज आर या पार वाली स्थिति उत्पन्न हो गई थी। टिकट चेकर बोला इसमें क्या है वह बोला इसमें एक डायरी कपडे और रुपये हैं। अरुण नें  नम्बर घुमाया ताला खुल गया। दोनों दोस्त उस की तरफ हैरत से देखनें लगे। टिकट चेकर नें वह सूटकेस उन्हें थमा दिया। टिकेट चैकर ने कहा चलो गाड़ी का टिकट लो। अब तो तुम्हें सूटकेस भी मिल गया है। आरभ बोला क्यों नहीं अभी हम आपको  रुपये देते हैं। अरुण नें टिकेटचैकर को कहा इसमें हमारा पर्स था। वह नकाबपोश इसमें से पर्स ले कर भाग गया। टिकेटचैकर बोला मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता अगला स्टेशन सूरत आएगा वहीं तुम उतर जाना। यह कह कर टिकेटचैकर चला गया। आरभ ने चुपके से 50,000रुपये अपनी जेब में डाल लिए। उसमें एक मोबाइल भी था। उसने वह मोबाईल अपनी जेब में रख लिया। थोड़ी देर बाद उस नकाबपोश नें फोन किया जिसका सूटकेस था। उसने कहा मेरा सूटकेस तुम तीनों के पास है। यह मत समझना मैं तुम को छोड़ दूंगा। तुम नें अगर मेरा सूटकेस मुझे नहीं लौटाया तो तुम को ऐसी सजा दूंगा तुम जिन्दगी भर नहीं  भूल पाओगे किस से पाला पड़ा था। अरुण ने उस नकाबपोश की सारी की सारी डायरी पढ ली थी। वह कंहा जानें वाला था। उसने अपनें दोस्तो को भी बताया मुझे तो यह आदमी ठीक नहीं लगता वह सचमुच ही कीसी गैन्ग से सम्बन्ध रखने वाला लगता है। अरुण नें उस  डायरी में से उस नें जो कुछ डायरी में लिखा था उस की फोटोकॉपी कर ली। टिकेटचैकर चैकर उनके पास आ कर बोला उतरने के लिए तैयार हो जाओ।अरुण नें टिकेटचैकर को कहा तबतक आप हमारे सूटकेस संभालकर रखोजब तक सूरत स्टेशन नहीं आ जाता। हो सकता है वह फिर चोरी करनें आ जाए अभी तो हमारे रुपये ही खोए हैं फिर जरुरी कागजात भी गुम हो सकते हैं। अरुण नें  वहसूटकेस पुलिस्इन्सपैक्टर को पकड़ा दिया।

तीनों बड़े खुश हुए। वाह! आज तो  हमारी  लॉटरी लग गई।  अचानक गाड़ी रुक  गई। वह उतरने के लिए तैयार ही थे कोई अजनबी नकाबपोश अचानक ट्रेन में आया और तीनों के ऊपर बंदूक तान कर बोला तुम तीनों अपने खैरियत  चाहते  हो तो सूटकेस मेरे हवाले कर दो वर्ना बेमौत मारे जाओगे। तुमने मेरा सूटकेस टिकट चेकर के हवाले कर दिया है। जल्दी से 15 दिन के अंदर-अंदर मेरा सूटकेस इस पते पर मुझे मिल जाना चाहिए वर्ना तुम तीनों में से कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।

तीनों थर-थर कांपने  लगे। हम तुम्हें  तुम्हारा सूटकेस लौटा देंगे। आरभ नें वह सूटकेस सीट के नीचे रख लिया था। पुलिस वाले ने उसे देख कर कहा। तुम फिर आ धमके। पुलिस  इन्सपैक्टर उसे पकडने ही वाला था वह फिर से उसे चकमा दे कर भाग गया।

वह अजनबी न जाने कहां गायब हो गया। सूरत स्टेशन आ गया था। अंजली  उन्हें लेने स्टेशन पर आ गई थी। बोली तुम तीनों मेरे साथ चलो। यहां की शादी को देखने का लुफ्त उठाओ। गाड़ी 2 घंटे लेट थी। गाड़ी सूरत पंहुच गई थी। अंजलि के जोर देनें पर वे तीनों  शादी में चले गए। शादी के समारोह में  सब खुशियां मना रहे थे।  उन्होंने देखा कि वह  नकाब पोश जिसका  वह  सूटकेस  था वह आदमी भी शादी में मौजूद था। उसने दुल्हन के पिता के साथ हाथ मिलाया।   अंकित अंजलि से बोला   यह व्यक्ति कौन है? जो तुम्हारी सहेली के पिता से हाथ मिला रहे हैं। यह तो मेरी सहेली  के पिता के खान दोस्त हैं।   अरुण और अंकित को पता चल गया शायद उनकी सहेली के  पिता  भी इस गैन्ग में संलिप्त होंगे। वह जब तक अपनी आंखों से देख कर पता नहीं करेगा तब तक वह किसी पर भी आरोप लगाना ठीक नहीं समझता। अंकित नें अंजलि के साथ मिलना-जुलना शुरू कर दिया।  वह अंजलि के साथ दोस्ती बढ़ा कर पता लगाना चाहता था कि  कौन कौन  व्यक्ति इन गैन्ग के आदमियों के साथ संलिप्त है। अंजलि के कहनें पर वे सूरत में रुक गए थे अंजलि नें उन्हे कहा कि मैं तुम्हे अपनें पति अक्षय से मिलवाती हूं। शायद वह तुम्हे अच्छे ढंग से तुम्हें  गाईड कर दे।

अंजलि ने एक दिन अंकित को अपने पति से मिलवाया। उसके पति एक बहुत ही बड़े व्यापारी थे।  उनसे मिलकर अक्षय बड़ा खुश हुआ। अंजली बोली यह नौकरी की तलाश में यहां पर आए हैं। उसके पति बोले  यह तो बड़ी अच्छी बात है अंजलि के पति उन दोनों को छोड़कर अंदर चले गए थे।वह थोड़े ही समय में अंजलि से घुलमिल  गया था। वह सोचने लगा मुझे अंजली को सब कुछ बताना चाहिए। मैं उससे किसी भी किमत पर झूठ नहीं बोल सकता। तीनों दोस्त वही रुक गए थे।शादी के माहौल में सब लोग इधर उधर आ जा रहे थे। अरुणभी डान्स करनें के लिए तैयार हो गया। अचानक उस की नजर उस शख्स पर पड़ी जो  अपना सूटकेस मांगने आया था।

अरुण नें जल्दी  से  अपने  दोस्तों को इशारे से अलग कमरे में बुलाया। तीनों दोस्त इकट्ठे  अलग कमरे में आ गए। अरुण बोला अभी अभी मैनें उस  नकाबपोश आदमी को यंहा देखा है।हमें पता करना होगा यह वही आदमी है या नही हमें उसके हाथ पर बनें टैटू पर नजर रखनी होगी। हमें उस से सतर्क रहना होगा। उस नें आज तो कान में बाली नही डाली है। आरभ बोला तुम नें सारा शादी का मजा किरकिरा कर दिया बड़ी मुश्किल से शादी में आन्नद लेनें का मौका मिल रहा था। अंकित बोला मैंने भी देख लिया था। मैंने अपनी दोस्त अंजलि से उस इन्सान के बारे में पता कर लिया। यह अंजलि की सहेली के पिता के खान दोस्त है। उनके बेटे से अंजलि की सहेली की शादी हो रही है। हम इस गैन्ग का पर्दाफाश कर के  ही रहेंगे। अच्छा हुआ हम पर किसी की नजर नहीं  पड़ी नही तो वह हमें पहचान जाता। हम तीनों को वेश बदलना होगा। उस पर कड़ी नजर रखनी होगी। अरुण नें कहा मुझे दुल्हन का मेकअप करना अच्छे ढंग से आता है। मैने अंजली भाभी को अपनी सहेली से बातें करते सुन लिया था वह अंजलि को कह रही थी कि मैंने मेकअप करवानें के लिए बेस्ट डिजाइनर को बुला लिया है। वह आती ही होगी। उसका नाम श्वेता है। उसका फोन आया था मुझे लेनें आ जाओ। मै तो जा रहा हूं। मै मेकअप वाली बन कर आ जाऊंगा। उसका कुछ न कुछ बन्दोबस्त करना पड़ेगा इतना कह कर वह बाहर निकल गया

अरुण  जल्दी   से बस स्टॉप पर जा कर श्वेता की तरफ   जा कर बोला। शायद आप किसी को ढूंढ रहीं हैं। वह बोली मैं  पास ही अपनी सहेली  अंजली की दोस्त की  शादी में  उसका मेकअप करनें जा रही हूं। अचानक अरुण बोला मुझे तुम्हारी सहेली  अंजलि नें भेजा है। श्वेता उस के साथ चलने लगी। अरुण नें उसे नींद की गोलियां खिला दी और उसे कुछ सूंघा दिया और बेहोश कर दिया। उसनें  उसे उस की गाड़ी में ही रहने दिया और मेकअप वाली बन कर आ गया।

आरभ नें और अंकित नें औरतों वाली ड्रेस पहन ली और डान्स करने के लिए तैयार हो गए। उनकी नजरें तो खान पर थी। वह कंहा जा रहें है? क्या कर रहें हैं?

दुल्हन की सहेलियाँ उसे मण्डप की ओर ले जा रही थी। जय माला हो चुकी थी। खान अंकल के बेटे कुणाल नें वधु को जयमाला पहना दी।  किरण नें भी जयमाला कुणाल के गले में डाल दी। फेरे भी लगनें वाले थे। कुणाल नें अपनी पत्नी को हीरों का हार पहनाया। सब की नजरें श्वेता के गलें में पहने हीरो के हार पर पड़ी। वह पूरे 25करोड का हार था। सब लोंगो नें तालियाँ बजा कर वर वधू को आशिर्वाद दिया। वर के पिता नें उन दोनों को आशीर्वाद दिया। उन्होने रुपये देनें के लिए पन्डित को बुलाया।  जब वर के पिता नें अपनी जेब से रुपये निकाले तो अरुण  हक्काबका रह गया उस के हाथ में टैटू था। उसे मालूम हो चुका था वह तो वही नकाबपोश है जिस का सूटकेस हमारे पास  था।

सब लोग शादी में व्यस्त हो गए।

अचानक अंजलि के पति को दौड़ कर जाते हुए अंकितनें देखा। अंजलि नेंअपनें पति को आवाज लगाई आप कंहा भागे जा रहे हो? वह भागता हुआ अपनें दोस्त खान को गले लगा कर बोला आप को बधाई हो। आज तो आप बहू वाले हो गए। अंकित और आरभ बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे। अंकित को मालूम हो गया था अंजलि के पति भी उन से मिले हुए थे। अचानक लाईट चली गई। अंकित नें देखा अंजलि के पति नें मास्क लगा लिया था। उन को अब कोई भी नहीं पहचान रहा था। वह खान के पास जा कर खड़े हो गए। खान उनके पास आ कर बोले आप को किस से मिलना है? उन्हें उन के दोस्त नें भी नहीं पहचाना। अचानक मास्क वाला आदमी मुस्कुराते हुए वह वहाँ से चलते हुए बोला मैं लाईट ठीक करनें वाला हूं। खान नें कहा जल्दी जाओ यहाँ पर क्या कर रहे हो?  मास्क वाले आदमी ने लपक कर दुल्हन के गले से चेन छीन ली। अरुण नें उसे चोरी करते देख लिया था। चोरी करनें के बाद अंजलि के पति नें वह चेन एक गाड़ी की डिक्की में रख दी। अरुण नें गाड़ी का नम्बर देखनें का प्रयास किया। उसे अन्धकार में कुछ नहीं दिखाई दिया। उसनें अपना हैट उतार दिया। और सामान्य स्थिति में आ गया। अचानक लाईट आ चुकी थी।दुल्हन नें अपनें गले की तरफ देखा हार नहीं था। वह जोर जोर से रोनें लगी। हार गायब हो गया था। शादी वाले घर में इधर उधर भगदड़ मच गई थी। सब लोग हैरान थे हार कौन ले कर जा सकता है? दुल्हन के पिता नें पुलिस कर्मियों को फोन कर दिया था। एलान कर दिया था कोई न भागने पाए।

अंजली के पति नें बडी ही होशियारी से वह हार अपनी गाड़ी में छिपा दिया था। उसे और भी खुशी हुई जब उनके दोस्त खान साहब नें उन्हें इस वेश भूषा में नहीं पहचाना। उन्होनें अपनें मन में सोचा आज तो 25करोड की लाटरी लग गई मुझे कौन कहेगा कि मैंनें अपने दोस्त के पेट में छुरा घौपा है। मेरे पर तो किसी को भी शक नहीं होगा। वह चुपचाप हार रख कर शादी के उत्सव में भाग लेनें के लिए चला गया।अरुण के दिमाग में वह सब घटना घूम रही थी। मेरी दोस्त का पति भी खान साहब की तरह ही फरेबी है। कितनी आसानी से उस नें वह हार गाड़ी की डिक्की में डाल दिया। खान को तो  कभी विश्वास नहीं होगा कि उनका दोस्त उसके साथ छल कपट भी कर सकता है

शादी वाले घर में कोहराम मच गया था। सब आपस में बातें कर रहे थे आखिर हार कौन ले जा सकता है? चलो दुल्हन को मेकअप करने के लिए ले जाओ। तब तक पुलिस आती ही होगी। अरुण नें सारी बात अंकित को बता दी कि अंजली के पति ने मास्क पहन कर हार अपनी गाड़ी में डाला है। मुझे रात के समय गाड़ी का नम्बर नहीं दिखा। अंकित बोला मैं बाहर जा कर गाड़ी का पता लगाता हूं। अंकित बाहर औरत के वेश में ही बाहर चला गया। वह गजरा बेचने वाली बन कर आई थी। अंकित खानसाहब और अंजलि के पति के पीछे वाली सीट पर बैठ गया। खान अंजलि के पति से बोले हार कौन ले कर जा सकता है। अंजलि के पति अक्षय बोले  हार कंही नहीं जाएगा। आप नें पुलिस वालों को यूं ही बुलाया। यंहा से कोई भी भाग नहीं सकता।

अंजलि के पति नें अपनी गाड़ी अपनी दुकान के एक ओर खड़ी कर दी थी। उसने सोचा शादी वाले घर में तो सब तलाशी करेंगे। यंहा पर तो किसी को शक नहीं होगा। एक लोहे का सामान बेचनें वालों की दुकान समीप थी। जब वह गाड़ी से उतरा तो वह अरुण से टकराया था। अरुण अपने दिमाग पर जोर दे कर सोचने लगा जब अंजलि के पति ने हार चुराया वहश्वेता के साथ था।  जिस शख्स को उस नें देखा उसके पैर में छः उंगलियां थी। अरुण नें सारी बातें अंकित को बता दी कि अंजलि के पति नें हार अपनी गाड़ी की डिक्की में छिपा कर रखा। जिस शख्स नें हार चोरी किया उस व्यक्ति के पैर में छः ऊंगलियों थी।

उसने उस नवयुवक को लोहे वाले की दुकान पर चाबियां खरीदते देख लिया था।जब वह अपनी गाड़ी के लिए टायर पूछने जा रहा था।

अंकित को जब अंजलि नें पुकारा तुम्हारे जीजा जी तुम्हे पुकार रहें है। वह बोला आया भाभी। अंकित उन के पास जा कर बैठ गया। अंजली बोली डान्स करो। खुब मौजमस्ती करो। अचानक अंकित की नजर अंजलि के पति के पैर पर गई। उसके पैर में मोजा था। अंजलि के पति बोले तुम देवर भाभी मिल कर शादी का लुत्फ उठाओ। अंजलि के पति जैसे ही उठ कर गए अंकित बोला इनमें के पैर में ये मोजा। वह बोली इनके पैर में छः उंगलियाँ है। इस कारण यह हर वक्त अपनें पैर में मोजा पहन कर रखते हैं।

अंकित को मालूम चल गया था कि उस व्यक्ति ने  ही गाड़ी लोहे वाली दुकान के पास रखी थी। अंकित उस दुकान पर गया गाड़ी अभी भी वही थी। उसने गाड़ी की डिक्की को खोलना चाहा डिक्की नहीं खुली। वह लोहे वाले की दुकान पर जा कर बोला  मैं पुलिस इन्सपैक्टर हूं। आप जल्दी से बताओ तीन चार घंटे पहले एक आदमी यंहा गाड़ी की चाबी बनवाने आया था। वह बोला साहब हां उसकी चाबी तो बन गई है मगर वह गाड़ी की असली चाबी यही पर भूल गया।

पुलिस वाला बन कर  बोला अभी अभी एक खूंखार डाकू जेल से भागा हो। उसकी गाड़ी को चैक करना पडेगा। अंकित नें चाबी लेकर गाड़ी की डिक्की को खोल कर देखा उस में उसे वही हार मिल गया। उसने चुपके से हार निकाला और शादी वाले घर में आ गया। पुलिस छान बीन कर रही थी। अंकित  चुपचाप गजरा बेचने वाली बन कर वह हार अरुण जो मेकअप वाली बना हुआ था उसके पास दे दिया। अरुण नें वह हार अपनी साड़ी के ब्लाउज में छिपा लिया।

शादी समाप्त हो गई थी। हार नहीं मिला था।पुलिस वालों ने सारा घर छान मारा मगर किसी के पास हार नहीं मिला। तीनों दोस्त खुशी से फुले नंही समा रहे थे। अंकित नें अपनी दोस्त को बुलाया और कहा अब हमें इजाजत दो। वह बोली आते जाते रहा करो। मैं अपने पति को कह कर तुम्हें काम पर लगवा दूंगी।

अंकित बोला मैनें आप को अपनी भाभी

व दोस्त समझा है मगर मुझे आपकी सहेली के पिता के दोस्त और आप के पति की हरकतें ठीक नहीं लगी। आप  ये क्या कहना चाहते हो? आपकी हिम्मत भी कैसे हुई यह सब  कुछ  कहने की एक तो मैं तुम्हारी सिफारिश अपने पति से कर रही थी कि तुम्हें नौकरी पर रख लें मगर तुम तो हमारे ऊपर कीचड उछाल रहे हो। वह बोला तुम मुझे गल्ती मत  समझना। मैं ऎसा ही हूं। वह बोली मैने तुम्हे बुला कर बहुत बडी़ गल्ती की है। जल्दी से हमारे घर से नौ-दो-ग्यारह हो जाओ।इससे पहले कि एक दोस्त का दूसरे दोस्त पर से विश्वास समाप्त  हो जाए तुम यंहा से चले जाओ।

पुलिस इन्सपैक्टर  के पास जा कर और टिकेटचैकर के पास जा कर  उनको भी  सारी घटना कह सुनाई कि हम नें आप से उस दिन झूठ कहा था कि हम शादी में जा रहें हैं। हम बेरोजगार थे। हमें नौकरी नहीं मिल रही थी। हम ने घर वालों को झूठमूठ बहाना कर के नौकरी की तलाश में निकल गए। हमारे पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी। हम चुपचाप अहमदाबाद जानेंवाली गाडी में बैठ गए। अचानक गाडी चलने लगी इतनें में आप दिखाई दिए। मेरा दोस्त कहने लगा हमारे पास तो किराया भी नहीं है। आज तो पिट गए इतने मेरे दोस्त को एक योजना सूझी। हम नें मासूम बन कर आप से झूठमूठ ही कहा था हमारा  सूटकेस चोरी हो गया है। आप को हम पर दया आ गई आप नें हमें कहा कोई बात नहीं जब आप चले गए तो हम जोर जोर से हंसने लगे। डर भी लगता रहा था आगे क्या होगा अचानक आप बैग ले कर आते दिखाई। दिए। हम ने एक मास्

नकाबपोस आदमी को नीचे उतरते देख लिया था। आप ने आ कर कहा तुम्हारा सूटकेस मिल गया है। हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब हम नें देखा कि आप नीली धारी वाला  सूटकेस ले कर हमारे पास  देते हुए बोले यह लो तुम्हारा  सूटकेस। बदमाशों से बडी़ ही मुश्किल से हासिल किया। आप नें हम से पूछा इस  सूटकेस में क्या है? मेरे दोस्त ने झूठमूठ ही कहा इसमें हमारा पर्स और जरुरी दस्तावेज थे। उससूटकेस में सचमुच ही नीली और काली पट्टी दी। आप ने कहा तब तो  यह तुम्हारा है। हम सूटकेस पा कर बहुत ही खुश थे।  वही वह नकाबपोश  आदमी हमें धमकी दे कर गया कि तुम अगर इन्सपैक्टर से सूटकेस ले कर वापिस नहीं लौटाओगे तो तुम देखना तुम्हारी क्या हालत  करेंगे। आपने हमें सुरत तक जानें की इजाजतदे दी जब हम नें कहा कि इस सूटकेस में से पर्स गायब हो गया है।  आप नें कहा हम कुछ नहीं कर सकते तुम्हे उतरने ही पडेगा। हम नें आप से कहा हमारी दोस्त सूरत में रहती है हम उस से रुपयों का इन्तजाम कर लेंगें।आप नें कहा अगला स्टेशन सूरत आएगा तुम को वहीं उतरना पड़ेगा। आप अगले डिब्बे में चले गए। रास्ते में वही नकाबपोश हमें धमकी दे कर चले गते कि तुमनें हमारा सूटकेस वापिस नंहीं किया तो हम तुम्हारा क्या हाल करेंगें। इतनें में आप आते दिखाई दिए। वह चलती गाड़ी से नीचे कुद गए।

हमारी दोस्त हमें अपनी सहेली की शादी में ले गई। वहां पर भी  हमारा सामना उन नकाबपोश वाले व्यक्ति यों से हुआ। हम नें अपनी वेशभूषा बदल ली। वह हमें पहचान नहीं सके। सारी की सारी कहानी सुना दी।पुलिस इन्सपैक्टर बोले हमें एक हीरे का हार चोरी करनें वाले की तलाश थी। एक व्यापारी के घर से नकाबपोशों नें वह हार चुरा लिया। उस हीरो के हार को पकडवानें वाले को उसके व्यापारी नें दस लाख रुपये देनें की घोषणा की है। अरुण बोला एक हीरे का हार उस नकाबपोशों व्यक्ति नें अपनी बहू को शादी में पहनाया था। उस हार को देख कर सब लोंगों की आंखें फटी की फटी  रह गई शादी में वह हार एक अन्य व्यक्ति नें चुरा कर अपनी गाड़ी की डिक्की में रख लिया। मुझे तो वह दोनों व्यक्ति खूंखार लगतें हैं। अरुण ने शुरू से ले कर अन्त तक जो कुछ उन के साथ घटा था सारा किस्सा पुलिस्इन्सपैक्टर को सुना  दिया। पुलिस इन्सपैक्टर को यह भी बताया उसने जो कुछ अपनी डायरी में लिखा था उसकी फोटोकॉपी कर ली थी।

जिस शादी में गए थे उन की लड़की के साथ रिश्ता कर के वह नकाबपोश आदमी और ही योजना को अंजाम दे रहे थे। उन्होंने जैसे ही 25करोड के हीरे का हार अपनी होने वाली बहू के गले में डाला सब के सब शादी में आए हुए व्यक्ति उन दुल्हा दुल्हन को ही देखते रहे। अचानक लाईट चली गईं और उस नकाबपोश के दोस्त नें मेरी दोस्त अंजलि के पति नें चुपके से वह हार  चुरा कर अपनी डिक्की में रखकर अपनें दोस्त को भी मात दे दी। मैने सारी बात अंजली से कही मगर वह बोली तुम मेरे ही घर आ कर मेरे पति को चोर  ठहरा रहे हो। निकल जाओ। मैने उस की गाडी की डिक्की से हार निकाला और ले आया। पुलिस इन्सपैक्टर उन की बहादुरी की प्रशंसा करते हुए कहने लगे तुम ने अच्छा किया जो यंहा चले आए आगे मैं तुम्हे  समझाता हूंक्या करना है? तुम उसका  सूटकेस  ले जा कर खान को कहो ये लो अपना सूटकेस। तुम कहना मै तुम्हारे हार चोरी करने वाले को जानता हू। आप को मेरे साथ चल कर देखना होगा। वह नकावपोश आदमी तुम्हारे साथ चल कर अपने दोस्त की गाडी में  हार देखेगा तो वह अक्षय को बुराभला कहेगा। अंकित नें आकर खान को कहा ये लो अपना सूटकेस। उस नकाबपोश ने उसे 50,000रुपये दे दिए। उसे उसकी डायरी मिल गई थी। अंकित नें कहा कि वह तुम्हारी बहू के हार चोरी करनें वाले को जानता है। खान अंकित के साथ चलने के लिए तैयार हो गया।अंकित नें अरुण से हार ले कर रात को ही फिर से अक्षय की गाड़ी में रखवा दिया था।

सचमुच ही हार अक्षय की गाड़ी में था।

पुलिस ने मौके पर पंहूंच कर उस नकाबपोश और उस के साथ इस काम में संलिप्त व्यक्तियों को पकड़ कर जेल में डाल दिया। अंजलि के पति नें कबूल किया कि उस नें विदेशों से माल चोरी कर हीरे भारत देश में भेजे जाते थे। हीरे माचिस की डिब्बियों में भर कर सप्लाई किए जाते थे। उन तीनो दोस्तो की मदद से इतने बडे गैन्ग के अड्डे का पर्दाफाश हुआ।

पुलिस ने उन नकाबपोश व्यक्ति यों को पकड़ कर जेल में डाल दिया। पुलिस नें उस डायरी की मदद से सारी जगहों पर छापे डाले जिन जगहों का हवाला उसनें अपनी डायरी में लिखा था।

अंजली  अंकित से बोली मैनें तुम्हें बुरा भला कहा मुझे माफ कर देना।

उन्होंने  वह हार एक व्यापारी की दुकान से चोरी किया था। वह व्यापारी बहुत ही अमीर था। उसनें पुलिस वालों को सुचना दी थी कि जो कोई भी उस हार को ढूंढने कर लाएगा उसे दस लाख रुपये दिए जाएंगे। तीनों दोस्तों नें जब पुलिस इन्सपैक्टर को सारी कहानी सुनाई तो वे बहुत ही खुश हुए उन्होने कहा कि अगर तुम उन नकाबपोशों तक हमें पहुचाओगे और हार प्राप्त कर लाओगे तो तुम्हें दस लाख रुपये दिए जाएंगे। अपनें वायदे के मुताबिक उन तीनों दोस्तों को दस लाख दिलवा दिए और उन नकाबपोशों को सजा। दिलवाई। खुशी खुशी अपनें घर वापिस आ कर  उन्होंनें अपना कारोबार संभाला।