माया जाल

हाथ का मैल है यह पैसा।
हो लोभ के फल जैसा।।
सब कुछ यहीं रह जाना है।
साथ किसी के कुछ नहीं जाना है।।
यह जीवन तो है बहुमूल्य।
पुण्य कमा कर इसे बनाया जा सकता है जीने तुल्य।।
चोरी फसाद के सभी धंधों को छोड़ कर,
॑ दूसरों की थाली में झांकना छोड़ दे,।
हथेली में सरसों जमाना सीख कर
संयम से जीना सीख ले,।।

लोभ से विमुख होकर क्या तू सुखी हो पाएगा?
संघर्ष और पुरुषार्थ के बल पर ही तू विजय हासिल कर पाएगा।।
माया के बल पर तू इतना क्यों इतराता है?
आलस और जालसाजी अपनाकर जीवन व्यर्थ क्यों गंवाता है?
यह नर तन मुश्किलों से मिलता है।
सत्कर्म करके ही तो सच्चा सुख मिलता है।।
मनुष्य जन्म गंवा कर तू कहां चैन पाएगा?
नर्क में जाकर तू बहुत ही पछताएगा।।
ज्यादा बड़प्पन करना भी अच्छा नहीं होता।
यहां कुछ भी तो अपना नहीं होता।।
मरने के बाद यह काया भी तो है मिट्टी का एक ढेला।
मरने के बाद जलकर भस्म हो जाएगा यह रेला।।
अच्छी सोच के बल पर तू अपना जीवन सफल बनाएगा।
अपना ही नहीं अपने परिवार में भी समृद्धि और यश हासिल कर पाएगा।।
माया मैल और काया सभी कुछ यहीं रह जानी है।
केवल पुन्य कर्म और नेकी ही साथ जानी है।।

स्नेह का बंधन

जंगल में एक वृक्ष की शाखा पर कबूतर कबूतरी का जोड़ा था रहता
साथ में मधुमक्खियों का झुंड भी था इकट्ठा रहता।।

हर रोज कबूतर दाना चुगनें था जाता ।
थक हार कर घर वापस था आता।
कबूतर था बेचारा भोला भाला
वह तो था उसका सच्चा दिलवाला।।

कुछ समय बाद कबूतर कबूतरी ने घौंसले में अंडे दिए।
नन्हे नन्हे बच्चे पाकर वे दोनों बहुत ही खुश थे दिखाई दिए।।
वे दोनों अपने बच्चों के स्नेह में मग्न रहने लगे।
काम काज छोड़कर उन्हीं में सुख चैन पानें लगे।।

कबूतर और कबूतरी दोनों एक दिन भोजन की तलाश में जा उड़े।
बच्चों को अकेला छोड़ कर दाना लानें निकल पड़े।
बच्चे थे छोटे छोटे प्यारे प्यारे।
सुंदर पंख वाले ,कजरारे नैनों वाले।।
बच्चे निर्भय होकर घर में थे खेल रहे ।
वे खुशी में मग्न ठिठोली थे कर रहे।।
एक शिकारी उनके घोंसले के समीप आया।
शिकारी ने चुपके से अपना जाल फैलाया।।
नन्हे मुन्नों को अकेला देख शिकारी मुस्काया।
उनको पकड़ने का षडयंत्र उसनें रचाया।।
शिकारी को सामने देखकर बच्चे जोर जोर से चिल्लाए ।
मां- मां बचाओ बचाओ कहकर थे डर कर थरथराए।।
कबूतरी को जंगल में बच्चों का शोर था सुनाई दिया।
दाना चुगना छोड़ कबूतरी ने घर पहुंच कर ही दम लिया ।।
शिकारी को देख कबूतरी चिल्लाई।
बच्चों को चिल्लाता देख कर उसकी आंखें भर आई।।
शिकारी की गिरफ्त से वह भी ना बच पाई।
शिकारी ने उसे भी पकड़कर खुशी झलकाई।।
कबूतर जैसे ही जाल के पास आया।
परिवार को जाल में फंसा देखकर चिल्लाया ।।
कबूतरी और बच्चे थे उसकी जान के प्यारे।
नन्हें मुन्नें प्यारे प्यारे,अपनें माता-पिता के राजदुलारे।।
कबूतर कबूतरी की तरफ देख कर बोला, तुम हिम्मत और साहस जुटाना।
तुम सब इस मुश्किल घड़ी में जरा भी न घबराना।।

मै तुम सब को सुरक्षित बचा कर घर ले आऊंगा।
या स्वयं भी तड़फ तड़फ कर मर जाऊंगा।।
अपने परिवार को संकट की घड़ी में डाला।
हाय!यह मैनैं क्या कर डाला।।
इनके बिना मेरा जीवन है बेकार ।
इनके बिना जीना नहीं है स्वीकार ।
कबुतर नें व्याकुल होकर मधुमक्खियों से गुहार लगाई।
अपनें परिवार को बचानें के लिए फरियाद लगाई।।
कृपया इस मुश्किल की घड़ी में मेरे परिवार को बचाओ।
अच्छे दोस्त होनें का फर्ज निभाओ।।
मधुमक्खियां बोली मुश्किल की घड़ी में एक अच्छा दोस्त ही काम आता है।
विपति में जो साथ ना दे वह तो स्वार्थी मित्र कहलाता है।।
मधुमक्खियों नें शिकारी को जगह जगह से काट खाया।
रोते चिल्लाते मुश्किल से से वह अपनी जान बचा पाया।।

कबुतर अपनें परिवार को सुरक्षित देख कर मुस्कुराया।
मधुमक्खियों का धन्यवाद कर अपनें परिवार को गले से लगाया।। हिम्मत, साहस और दृढ़ निश्चय को ही कबुतर नें अपनाया।
उन्हीं के बल से अपने परिवार को बचानें में कामयाब हो पाया।।

‘कहानी की गुल्लक आई,

कहानी की गुल्लक आई ,कहानी की गुल्लक आई।
नई नई कहानियां और मनमोहक कविताएं भी लाई।।
गुल्लक में छिपा है ज्ञान का बड़ा ही खजाना।
इस का उद्देश्य है सभी का मनोरंजन करवाना।।
यह ज्ञान हमारा है बढ़ाती ।
हमारा मार्गदर्शन कर सकारात्मक सोच है जगाती।।
जिसकी हर एक सीख है सुहावनी
और कहानियां भी है बहुत ही लुभावनी।।

कहानी की गुल्लक आई, कहानी की गुल्लक आई ।
सकारात्मक सोच और प्रेरणादायक तथ्य भी लाई ।।
हर एक बच्चे बूढ़े सभी के दिलों को लुभाई।
इसको पढ़ कर सभी के चेहरों पर रौनक छाई।।

छोटे और बड़े सभी को सम्मान देना है यह सिखाती ।।
एक दूसरे को मिलजुल कर काम करने का सलीका भी सिखलाती।।
नकारात्मक सोच को छोड़, रोचक जानकारियों से अवगत है करवाती।
जादूगर , जीव जंतुओं की कविताओं और कहानियों से बच्चों का मनोरंजन है करवाती।
पर्यावरण के प्रति सभी को सचेत है करवाती।।
यह कहानी से भरी हुई एक गुल्लक ।
इसको पढ़कर सभी का मन हो जाए मोहक।।

गु्ल्लक में मुहावरों को भी दिया है स्थान ।
अच्छी आदतों और व्यक्तित्व की पहचान कराता है इसका ज्ञान।।

शिब्बु

शिब्बु एक भोला भाला और मासूम सा बालक था ।बचपन से ही उसके माता-पिता उसे इस संसार से अलविदा कह चुके थे। वह अपने चाचा चाची जी के यहां रहने लगा था ।चाची उसे अपने घर में नहीं रखना चाहती थी ।चाची ने यहां तक कह दिया था कि उसे अनाथ आश्रम छोड़ आते हैं परंतु उसके चाचा की हठ के आगे उसकी एक ना चली, ।वह सोचने लगी कोई बात नहीं उसको अपने घर में रखने से फायदा ही है। उससे सारे घर का कार्य करवाया जाए । वह शिब्बु से घर के सारे काम करवाने लगी जैसे ही उसके चाचा दुकान जाते वह शिब्बू पर आगबबूला हो जाती। सारा घर गंदा पड़ा है सारे घर में पोचा, लगाओ कपड़े प्रेस करो नल से पानी भरकर लाओ। उस मासूम को जरा सा भी खेलने नहीं देती थी ।चाची के भी उसी की ही हम उम्र का एक बच्चा था। वह उसको जल्दी जल्दी तैयार करके स्कूल में भेजती । वह शिब्बू को कभी भी स्कूल नही भेजती थी। जब वह अपने चाचा जी के लड़के को स्कूल जाते देखता , सुबह-सुबह    ड्रेस पहनकर वह स्कूल जाता तो उसका मन भी होता कि वह भी   पढ़े। चाची ने यह कहकर उसके चाचा को मना लिया था कि वह शिब्बू को स्कूल भेजेंगे तो इस घर को छोड़ कर सदा के लिए वह इस घर से चली जाएगी ।इस तरह से चाचा को चाची का फैसला मानना ही पड़ा और उन्होंने शिब्बू को स्कूल पढ़ने नहीं भेजा। वह शिब्बू को बाज़ार सामान लाने के लिए भेजती ।सारे घर का काम निपटाकर शिब्बू बाज़ार जाता कभी भूखे पेट ही बाजार जाता। हलवाई की दुकान पर मिठाईयों को देख कर उसका उसका मन मिठाईयां खाने के लिए ललचाने लगता मगर वह अपना मन मसोसकर रह जाता ।वह अपने मन ही मन सोचता कि हेभगवान ! हे भगवान! मेरी मां को आप ने अपने पास क्यों बुला लिया अगर वह आज जिंदा होती तो मुझे गले लगाती और कहती कि बेटा तूझे भूख तो तो नही लगी है ।अपने चाचा जी को वह बात बता नहीं सकता था की चाची उस से जानवरों की तरह सारा दिन काम करवाती है ।भरपेट खाना खाने को भी नहीं देती थी ।एक दिन उसने अपनी चाची जी की शिकायत चाचा जी से कर दी थी ।उस दिन उसकी चाची नें उसे कुछ भीे खाने को नहीं दिया। उस दिन जो मार पड़ी थी उसको वह भूल नहीं सकता था ।चाचा के जाने के बाद चाची ने उसकी खूब पिटाई की थी । वह मासूम किसी से कुछ भी नहीं कहता था। एक दिन जब वह बाजार गया तो उसने बाजार के पास ही एक मंदिर देखा ।वहां पर सब लोग भगवान को मत्था टेक रहे थे।वह भी मंदिर की सीढ़ियों पर काफी देर तक बैठा और अचानक उठकर मंदिर के अंदर चला गया। वहां पर पंडित जी पूजा के पश्चात सबको प्रसाद बांट रहे थे ।प्रसाद को देखकर उसके मुंह में पानी भर आया ।उसने दो तीन बार पंक्ति में लगकर प्रसाद खाया ।उस प्रकार मंदिर में हर रोज प्रसाद पाकर बहुत खुश होता और अपनी भूख को शांत करता। वह हर रोज खुश रहने लगा था क्योंकि मंदिर में उसे भर पेट खाने को मिल जाता था। मंदिर के पुजारी भी उसको प्यार करने लगे थे।

पंडित जी ने उसे कहा बेटा जिस बच्चे के मां बाप नहीं होते उसके मां-बाप दोनों भगवान होते हैं । तुम उन्हें सच्चे दिल से याद करोगे तो वह तुम्हें आशीर्वाद अवश्य देंगे और तुम्हारी मनोकामना को पूर्ण करेंगे ।वह भगवान से हाथ जोड़कर कहने लगा कि अगर तुम मुझे पढ़ने का अवसर प्रदान करोगे तो मैं आप का कहना अवश्य मानूंगा ।वह सपने में अपनी मां से बातें करता ।झटपट बाजार जाने के बहाने मंदिर जाना नहीं भूलता था । एक दिन की बात है कि उसकी चाची ने कहा कि मैं आज अपने बेटे के स्कूल में उनके कार्यक्रम को देखने जा रही हूं ।सारे बच्चों के माता-पिता को स्कूल में बुलाया है जब तक मैं वहां से लौट कर ना आऊं तब तक तुम घर का सारा काम संभालना ।आकर मैं तुम्हें खाना दूंगी नहीं तो तुम्हे भूखा ही रहना पड़ेगा ।उसे सुबह से ही बड़ी जोर की भूख लग रही थी ।आज तो वह मंदिर में भी खाना खाना खाने भी नहीं जा सकता था क्योंकि उसकी चाची अपने बेटे के स्कूल जा रही थी ।यह कहकर उसकी चाची जल्दी ही घर से चली गई। वह अब घर में अकेला ही रह गया। भूख के मारे उसके पेट में चूहे कूद रहे थे ।भूख से वह एकदम निढाल हो रहा था। उसने सोचा क्यों ना पानी पीकर अपनी भूख को शांत करूं? ।उसने एक दो घूंट पानी के पीए और अपनी भूख को शांत करने लगा। वह धीरे-धीरे सोने का प्रयत्न करने लगा। एकदम उसे एक झपकी सी आई उसे नींद में अपनी मां दिखाई दी ।वह उस से कह रही थी कि बेटा तुझे भूख लगी है जा तू जल्दी जल्दी जाकर मंदिर में खाना खाने जा। वहां पर आज खूब स्वादिष्ट चीजें बनी है तू जल्दी जाकर वापस आ जा ।बेटा भागता भागता मंदिर में गया और उसने भरपेट खाना खाया और जैसे ही वह घर को वापस आ रहा था उसने देखा कि एक सेठ का दुकान से सामान खरीदते हुए पर्स नीचे गिर गया था ।उसमें ढेर सारे रुपए थे।उसने वह पर्स उठा लिया और सेठ जी के पीछे भागने लगा ।भागते-भागते उसकी सांस फूलने लगी। वह भागते भागते सेठ जी को पकड़ने में सफल हो गया और उसने पर्स सेठ जी को लौटा दिया

।सेठ ने उसकी इमानदारी की प्रशंसा की और प्रसन्न हो कर कहा इतना छोटा सा बच्चा इसे रुपयों का कोई लालच नही। उसने शिब्बू से कहा तुम्हारे मां-बाप कितने धन्य हैं ।जिन्होंने तुम्हारे जैसा होनहार बेटा उन्हें दिया है ।अपने माता पिता की प्रशंसा सुनकर शिब्बू की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे ।वह अपने आप को संभाल नहीं पाया और फूट-फूट कर रोने लगा ।उसने अपनी आप बीती सेठ जी को सुनाई ।सेठ जी ने उसकी ईमानदारी से खुश हो कर कहा कि बेटा तुम क्या चाहते हो। मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करुंगा ।मैं तुम्हारे जैसे बेटे को पाकर धन्य हो जाऊंगा ।मेरे कोई बेटा नहीं है मैं तुम्हें खूब पढ़ाऊंगा अब तुम हर कभी मेरे घर आ जाना। सेठ जी ने उसे अपना कार्ड देते हुए कहा कि इस कार्ड में मेरे घर का पता है। सेठ जी ने कहा कि तुम को मैं लेने आऊंगा ।बच्चा मन ही मन मुस्कुराता हुआ जैसे ही घर पहुंचा उसने देखा उसकी चाची उससे पहले ही घर पहुंच गई थी। काम ना करने पर उस की चाची ने छड़ी से उसकी खूब पिटाई की ।शिब्बू ने वहां से जाने का निश्चय कर लिया ।सुबह दूसरे दिन सुबह बिना कुछ कहे वहां से चला गया ।वह सेठ जी के पास आया और सारी बातें कही। सेठ जी ने उसे अपने बेटे की तरह पाला उसे खूब पढ़ा लिखाया । वह हर वर्ष अपने कॉलेज में अवल्ल आता रहा । पढ लिख कर एक दिन वह बड़ा डॉक्टर बन गया ।उसकी चाची का बेटा तो कुछ अधिक नहीं पढ़ पाया। वह बुरी संगत में पड़ कर नशा करने लगा । उसकी हालत इतनी बिगड़ गई थी उसे अस्पताल ले जाना पड़ा । उसके माता पिता को कहनें ही जा रहा था कि इसे बचाना मुश्किल है ।

शिब्बु नें अपने चाचा चाची को पहचान लिया था।

किसी न किसी तरह शिब्बु नें;उसे मौत के मुंह से बचा लिया ।चाची नें शिब्बु को पहचान लिया था।,जिसने उसके बेटे को बचा लिया था वह तो वहीं शिब्बु है जिस को उस नें घर से निकलनें के लिए मजबुर कर दिया था। वह अपनी करनी पर बहुत पछता रही थी। चाची ने अपने बर्ताव के लिए शिब्बू से माफी मांगी। शिब्बू ने उसे माफ कर दिया था ।वह एक प्रसिद्ध डॉक्टर बन चुका था। सेठ जी ने उसे अपने बेटे की तरह प्यार दिया था।शिब्बु ने अपनी चाची जी से कहा बड़े बच्चों से माफी नहीं मांगा करते।अपने भाई को बचाना मेरा

फर्ज था ।यह कहकर उसने अपने भाई को गले से लगा लिया और अपने चाचा चाची को माफ कर दिया।

एकता का फल

नदी के एक और छोटी सी पहाड़ी पर बहुत सी चींटियों का झुंड रहता था। वे सभी चीटियां झुड में रहकर खाना ढूंढने जाती थी ।बहुत समय तक वर्षा नहीं हुई ।चिंटीयों को बाहर खाना प्राप्त करने में कठिनाई हो रही थी। एक छोटी सी जीव और उस पर तपती दुपहरी धूप, खाना जुटाना उन सभी को बहुत ही मुश्किल था। काफी दिनों तक तो जो कुछ इकट्ठा किया हुआ था उसी को खा कर गुजारा कर रही थीं। नदी के एक और खेत में ,इधर-उधर जो मिलता वह खाकर गुजारा करने लगी। उनके पास खाना लगभग समाप्त हो चुका था ।वह सभी आपस में सोचने लगी इसी तरह अगर सूखा पड़ता रहा तो हमारा जीवन दुभुर हो जाएगा। हमें आने वाले समय के लिए कुछ ना कुछ भोजन का प्रबंध तो अवश्य ही करना पड़ेगा। एकदम विपदा आने पर हम क्या करेंगे।
सभी चींटियों ने मिलकर अपनी रानी मुखिया के पास जाकर कहा हम सब ने तय किया है कि वर्षा होने से पहले खाने का प्रबंध कर लिया जाए अगर हम शुरू से ही खाना जुटाने में लग जाए तब कहीं हम आराम से बैठ कर खा सकेंगे ।रानी चींटी को अपनी सखियों की बात बहुत ही अच्छी लगी ।उसने इस सुझाव के लिए सभी चींटियों की सराहना की और सभी के सभी एकदिन अपनें झुन्ड के साथ खाना तलाशने निकल पड़ी। उस दिन इतनी जोर की आंधी, तूफान, वर्षा ओले जमकर बरसे वी सारी की सारी चीटियां एक दूसरे से बिछड़ गईं। जब तूफान थमा तो उन्होंने अपने झुंड की सखियों को काफी ढूंढा लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। थोड़ी सी चीटियां ही शेष रह गई थी। गुमसुम सी होकर एक पेड़ के तने के पास सटकर बैठ गई थी। खाना प्राप्त करने में असमर्थ थी। सभी की सभी, जैसे ही तूफान थमा जो चीटियां जिंदा बच गई थी वह तूफान थमने पर चलने लगी ।अचानक उनमें से एक छोटी सी श्यामा चींटी अपने झुन्ड से अलग हो गई । अचानक उसे आज रह रह कर अपनी मां द्वारा कही हुई बातें याद आ रही थी।उसकी मां उसे कहती रहती थी कि बेटा खाना ढूंढने में मेरी मदद किया करो ।लेकिन आज उसे अपनी मां की भी सारी बातें सच साबित हो रही थी। उसकी मां उसे कहा करती थी कि बेटा हमें काम करने में शर्म नहीं करनी चाहिए। तुम सारा दिन अपनी सहेलियों के साथ घूमती रहती हो। कोई काम नहीं करती ।वह अपनी मां को हमेशा कहती थी कि मां अभी मेरे खेलने के दिन है ।आप हैं ना खाना लाने के लिए ।उसकी मां उस से कहती किसी दिन अगर मैं बीमार हो गई तो क्या होगा? तब मैं खाना कहां से जुटा कर लाऊंगी।वह अपनी मां की बातों को कभी गंभीरता से नहीं लेती थी। वह जब अपने झुन्ड में से भटक गई तो पहले तो उसकी आंखों में बहुत ही आंसू आए। उसे सारे दिन जब कुछ भी खाने को नहीं मिला और वह भोजन ढूंढते ढूंढते थक गई वह अपनी मां को याद करने लगी। रोते-रोते उसकी आंखों में आंसू आ गए थे एक एक अपनी मां के कहें शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे।
वह सोचने लगी कि अगर आज भी वह भोजन ढूंढने नहीं गई तो उसे भूखा ही रहने पड़ेगा, इसलिए वह भोजन की जुगाड़ में आईस्ता आईस्ता चलने लगी ।रास्ते में उसे एक मिश्री का दाना मिला। उस दानें को पाकर इतना खुश हुई कि मानो उससे गढ़ा खजाना मिल गया हो ।दुनिया की सबसे महान दौलत उसे मिल गई हो। उसने अपने पास आते हुए कुछ चींटियों को देखा। आती हुई वे चींटियां उसे अच्छी नहीं लग रही थी। उन को देख कर उसने अपनी चाल तेज कर दी। उसे तेज चलता देख कर उन चींटियों की रानी आगे आ गई।वह श्यामा चीटीं से बोली तुम कौन हो? वह बोली मैं अपने झुंड से अलग हो गई हूं। रानी चींटी बोली हम भी अपनें झुन्ड से अलग हो कर उन्हें ढुंडने निकल पड़ी। हमें बड़े जोर की भूख लगी है। क्या तुम्हारे पास खाने को कुछ है? उसके इस उनके इस प्रकार कहने पर श्यामा चींटी ने अपने मिश्री के दानें को एक पते
के नीचे छुपा दिया और बोली कि मेरे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है चलो मिलकर ढूंढते हैं ।जब मुझे दाना मिलेगा तब मैं तुम्हें अवश्य दूंगी ।
श्यामा चींटी बोली कि मैं भी अपनी मां को सारे तलाश करती फिर रही हूं ।मुझे मेरी मां नहीं मिली। मेरी मां मुझे कहा करती थी कि काम किया करो। मगर आज उसके ना होने पर मुझे उनकी एक एक बात याद आ रही है। सारी की सारी चींटियां बोली तुम्हारी मां तुम्हें मिल जाएगी। हम भी तुम्हारी मां को ढूंढने में तुम्हारी मदद करेंगी। वह अपने मन में सोचने लगी कि यह तो बहुत सारी चींटियां है इनको मैं अगर मिश्री का दाना दूंगी मेरे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। नहीं नहीं, मैं इन्हें खाने के लिए मिश्री का दाना नहीं दूंगी ।चाहे कुछ भी हो ।उसने वह मिश्री का दाना कस कर पकड़ कर चुपके से उन से बच कर एक पते के नीचे छिपा दिया था।
सारी की सारी चींटियां बोली कि चलो हम भोजन की तलाश में चलते हैं शाम को यहीं पर आकर आराम करेंगे ।इस जगह में बैठकर हमें आनंद मिलता है ।इस जगह से सुरक्षित कोई भी स्थान नहीं हो सकता ।शाम के समय हम यहीं पर लौट कर आएंगी।सबके सब खाना ढूंढने निकल पड़ी।
श्यामा चींटी ने अपना खाना पत्ते के नीचे छुपा दिया था ।जब वे सभी काफी दूर तक निकल गई तब अचानक पेड़ के तने के पास एक चींटी को फंसे हुए देखा हुए। वह चींटी पेड़ के तनें के बीचों-बीच फंस गई चीटियां आपस में बोली कि यहां पेड़ के नीचे कोई चींटी फस गई है। शायद यह मर गई है। श्यामा चींटी जब उस वृक्ष के तनें के पास गई तो उसे देखकर वह जोर-जोर से रोने लगी और उन सबको कहने लगी यह तो मेरी मां है ।मेरी मां को बचाओ। कृपा करके मेरी मां को बचाओ शायद यह जिंदा हो।मैं तुम्हारा उपकार कभी भी नहीं भूलूंगी। मुझे से मेरा सब कुछ ले लो। हम अगर उन्हें नहीं बचा पाई तो ?शायद यह तो मर चुकी है। एक चींटी बोली, चलो दूसरी ओर दाना ढूंढने चलते हैं ।
श्यामा चींटी रोते रोते गिड़गिड़ाते हुए बोली बचाओ कृपया मेरी मां को छोड़कर मत जाओ। मेरी मां नहीं मरी है। एक बार मेरी सहायता करो। शायद मेरी मां जिंदा हो। एक चींटीं बोली क्या पते के नीचे छिपाया हुआ मिश्री का दाना भी हमें दे दोगी?उनमें से एक चींटी बोली कि तुमने हमसे चोरी छिपे पते के नीचे मिश्री का दाना छुपाया था। हमने दाना छिपाते तुम्हें देखा था। हमने सोचा कि ठीक है हम भी तुम्हारी सहायता नहीं करेंगे। तुम अकेली हो। हम सब मिलकर तो खाना ढूंढ ही लेंगी।।हमें मालूम था कि तुम्हें भी तो सहायता के लिए किसी ना किसी की जरूरत पड़ेगी। आज तुम अपनी मां को बचाने के लिए हम से भीख मांग रही हो। काश तुम्हारी मां जिंदा हो ।तुम नहीं भी कहती तो भी मानवता के नाते हम तुम्हारी मां को अवश्य ही बचाते। लेकिन तुम्हें समझाना बहुत जरूरी था। जल्दी से मिलकर उस तनें को यहां से हटाते हैं। सब ने मिलकर जोर लगाया तो उस मजबूत टहनी को वहां से हटानें में सफल हो गईं। श्यामा चींटी की मां बेहोश हो गई थी। वह मरी नहीं थी।
सारी की सारी चींटियां तब तक वहां से नहीं गई जब तक की वे श्यामा चींटी की मां को लेकर उस स्थान पर नहीं गई जहां पर उस पेड़ की शाखा के पास वह रह रही थी। श्यामा चींटी को समझ आ गया था कि अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता। ।सभी को साथ ले कर चलना बहुत जरूरी है ।एक होकर सभी के सहयोग से उसकी मां की जान बच गई।उसे समझ आ गया था कि कार्य करने के लिए सहयोग की आवश्यकता होती है ।उसने सभी चींटियों को मिश्री का दाना दे दिया ।आज उसे समझ आ गया था कि सच्चा सुख बांटने से मिलता है, दूसरों की मदद करने से मिलता है। वह हर बात उसे आज समझ में आ गई थी धीरे-धीरे उसकी मां ठीक हो गई थी ।आज उसे अहसास हो गया था, खुशियां बांटने से बढ़ती है ,और दुःख बांटने से कम हो जाता है।मिल कर कठिन से कठिन काम भी किया जा सकता है मिलकर रहने से कोई भी हम पर हानि नहीं पहुंचा सकता।उस दिन के बाद वह मिल जुल कर सभी कार्य करनें लगी।खुशी खुशी अपनें झुन्ड में हसीं खुशी से रहनें लगी।

तिरंगा

झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इसके आगे सर्वदा नतमस्तक हो हमारा।।
विश्व विजयी तिरंगा प्यारा।
हो जैसे भारत माता की आंख का तारा।।
इस पर गर्व से मर मिटनें का संकल्प हो हमारा।
इसकी आन बान शान के लिए समर्पित हो जीवन हमारा।।

झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इसके आगे नतमस्तक हो हमारा।।
स्वतंत्रता संघर्ष का इतिहास छिपाए
तीनों रंगों का समावेश कराए।
विविधताओं में एकता का एहसास कराए।।
सभी भारतीयों में उत्साह और उमंग है जगाता ।
हर भारतीय के साहस की गौरव गाथा है गाता।
इसीलिए तो तिरंगा है कहलाता।।

हम हमेशा झन्डे का सम्मान हैं करते।
राष्ट्रीय गीत गा कर इसके प्रति आदर है दिखलाते।
महान देशभक्तों और शहीदों के प्रति श्रृद्धांजलि है दर्शाता ।
इसीलिए तो तिरंगा सभी को है भाता ।।
हर रंग कुछ न कुछ है सिखलाता।
केसरिया रंग हम में उत्साह और वीरता को है जगाता।
श्वेत रंग सत्य और पवित्रता का सूचक है कहलाता।
हरा रंग विश्वास और खुशहाली को है दर्शाता।।
साहस और बलिदान की मूर्ति शहीदों की गाथा है गाता ।
सफेद पट्टी का चक्र सम्राट अशोक और भारत के अतीत के मूल्यों की याद है दिलाता ।।
चक्र गति और प्रगति से आगे बढ़नें को प्रेरित है करवाता।
इसी लिए तो यह तिरंगा गौरव का प्रतीक है कहलाता ।।

राष्ट्रीय चिन्ह का संदेश है इसमें छिपा हुआ।
सत्यमेव जयते का उदघोष है इसमें लिखा हुआ।।
खादी का यह है बना हुआ।
गांधी जी का इतिहास है इस से जुड़ा हुआ।।

बरसो बादल

 

घुमड़ घुमड़ कर बरसो बादल ।
गरज गरज कर गरजो बादल।।
रिमझिम रिमझिम वर्षा कर।
झमझम झमझम बरसो बादल।।

कड़क कड़क कर कड़को बादल।
घुमड़ घुमड़ कर बरसो बादल।।
हमारे सुखचैन और उल्लास के लिए जमकर बरसो बादल।
बिजली की घोर गर्जना कर ।
शंख रुपी नाद के समान बिगुल बजा कर बरसो बादल।।
नए नए पौधों के अंकुर तुम्हें हम पुकार रहे।
अपनी व्यथा सुनानें को आतुर तुम से गुहार कर रहे ।।
घुमड़ घुमड़ कर बरसो बादल।
गरज गरज कर घोर गर्जना कर गरजो बादल।

तुम्हारे आते ही पृथ्वी पर सुगंधित वनस्पतियां खिल खिल कर मुस्कुराएंगी।
वातावरण की शोभा को बढ़ाकर चार चांद लगाएंगी।।
रिमझिम वर्षा से पक्षी भी चहचाएंगे।
अपनी मधुर गुंजन कर पत्ते और पौधे भी मुस्कुराएंगे।।
नए धानो के बीज नव अंकुरित हो जाएंगे।
रंग बिरंगे फूल भी खिलखिला कर उपवन की शोभा को बढ़ाएंगे।।
तुम ही हमारे अन्नदाता ।
तुम ही हमारे पोषण दाता।।
तुम ही रक्षक ।
तुम ही भक्षक।।
पानी के अभाव में हम ना सुखचैन पाएंगे
यूं ही तड़प तड़फ कर बिना जल के बेमौत मर जाएंगे।।
तुम्हारे जल को पी कर ही हम अपनी प्यास बुझाएंगे।
आनन्द से मग्न हो कर तुम्हारा ही गुणगाएंगें।।
तुमने ही हमारे जीवन में इंद्रधनुष के समान रंग बिखराएं हैं।
हमने तुमसे ही वृद्धि के लिए शक्ति रुपी पंख पाए हैं ।।
तुम ही हमारे प्राण दाता।
तुम्ही हमारे अन्नदाता।।
तुम्हीं पर हम हैं आश्रित।
तुम्ही पर हमारा जीवन समर्पित।।

अपनी कृपा कर निर्मल जल हम पर बरसाओ।
भीषण ध्वनि कर गरज गरज कर बिजली को चमकाओ।।
तुम्हारी अनुकम्पा से नए धानों के पौधे बीज बन कर नवअंकुरित हो जाएंगे।
खेतों में उग कर सभी को अन्न दिला पाएंगे।
किसानों की चेहरों पर खुशी की लहर देख पाएंगे।।
बादलों को आते देख कर बच्चे भी खुश हो जायेंगें।।
सब काम छोड़ छाड़ कर वर्षा में भीगनें को आतुर हो जाएंगे।।

उल्टा पुल्टा

11/4/20
टप्पू बहुत ही बुद्धिमान बच्चा था। अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल आता था। वह बहुत ही जिद्दी और शरारती भी था। उसके माता-पिता उसे समझाने की बहुत कोशिश करते बेटा ज़िद नहीं करते मगर वह अपने माता-पिता की बातों पर ज़रा भी गौर नहीं करता था और अपने माता-पिता को बहुत ही परेशान करता था। उसके माता-पिता उसे सुबह के समय सैर करने के लिए कहते पर वह उनकी जरा नहीं सुनता था। उसके पिता गुस्से में उस पर ठंडा ठंडा पानी फैंकते मगर फिर भी वह रजा़ई ओढ़ कर चुपचाप सो जाता। उस पर अपने माता-पिता की बातों का कोई असर नहीं पड़ता था। शरारती होने के साथ-साथ वह बहुत ज़िद्दी भी था। कई बार दूसरों के सामने उसके माता-पिता को बहुत ही शर्मिंदा होना पड़ता था। कभी-कभी तो वह अपनी मां पर इतना बिगड़ता और कहता कि मां खाने में कैसी सब्जी बनाई है? मुझे बाज़ार से पिज़्ज़ा बर्गर मंगवा कर दो। मैं तो छोले भटूरे खाऊंगा। घर का खाना नहीं खाऊंगा। उसके माता-पिता बहुत समझाते बेटे बाहर का खाना खाकर तुम बीमार पड़ सकते हो।लेकिन उस पर उनकी बातों का कोई असर नहीं होता था। अगर वह बात मानता था तो केवल अपनी दादी की।
उसके स्कूल में कुछ दिन की छुट्टियां आने वाली थी। उसके माता-पिता ने योजना बनाई कि इस बार गांव में ही चलते हैं। गांव के वातावरण में जाकर शायद वह सुधर जाए इसलिए उन्होंने कुछ छुट्टियां ले ली और गांव जाने की तैयारी करने लगे। टप्पू भी बहुत खुश था कि उसे अपनी दादी के पास जाने का मौका मिलेगा। कितना मज़ा आएगा। वह जल्दी जल्दी अपने कमरे में जा कर अपना सामान पैक करनें लगा।
गाड़ी में बैठ कर टटप्पू को बहुत ही अच्छा लग रहा था। गाड़ी बहुत ही तेज गति से चल रही थी। वह अपने पिता को कहने लगा कि पिताजी मुझे बहुत ही भूख लगी है। अगला स्टेशन कब आएगा? टटप्पू के पापा बोले अभी तो खाना खाया है हमने। मगर मैं तो तो आइसक्रीम खाना चाहता हूं मुझे चॉकलेट भी नहीं मिली मैं तो चॉकलेट ही खाऊंगा ।टप्पू ज़िद करने लगा। उसके पिता ने कहा कि बेटा यहां पर चॉकलेट नहीं मिलती। तुम्हारी मनपसंद चॉकलेट तो तुम्हें गाड़ी से नीचे उतर कर ही मिलेगी। उसकी मां बोली बेटा हमें बाहर की चीजें नहीं खानी चाहिए। बाहर की चीज़ें खाकर तुम बिमार पड़ सकते हो। बाहर की वस्तुएं में तेल भी बहुत मात्रा में होता है और ना जाने क्या क्या मिलावट होती है। टप्पू मुंह फुला कर बैठ गया।
एक दंम्पति परिवार उसकी बगल में बैठे हुए थे। उनके साथ उनका एक बच्चा भी था। सन्नी टप्पू की उम्र का ही था। बातों बातों में उन से परिचित हो गया। दोनों ने जल्दी ही मित्रता हो गई। सन्नी के पापा ने ने बताया कि अगला स्टेशन आने में 10 मिनट बाकी है।। सन्नी चुपके से टप्पू से बोला अगले स्टेशन पर गाड़ी रुकेगी। तुम गाड़ी से उतर कर चौकलेट ले आना। टप्पू बोला मेरे माता-पिता मुझे नीचे उतरनें नहीं देंगें। फिर उसने सोचा जैसे ही गाड़ी रुकेगी वह बिना किसी को बताए चुपके से जाकर चॉकलेट ले आएगा। गाड़ी अपनी स्टेशन पर रुकी। वह चॉकलेट लेनें के चक्कर में जल्दी से गाड़ी से नीचे उतरने लगा अचानक उसका संतुलन बिगड़ गया और वह धड़ाम से नीचे गिर गया। सौभाग्य से उसे ज्यादा चोट नहीं लगी। देखते-देखते लोगों की भीड़ वहां इकट्ठा हो गई। वे बोले संभल कर क्यों नहीं चलते? रोते-रोते वह बोला मैं चॉकलेट लेनें उतर रहा था। उसके माता पिता उस की इस हरकत से बहुत ही दुःखी हो कर बोले कहना न मानने के कारण तुम्हारी यह दुर्गति हुई है। टप्पू पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ था।
गांव पहुंचे तो सबसे पहले डाक्टर को दिखाया । डॉक्टर ने कहा कि थोड़ी मोच आई है कुछ दिन चलने से परहेज़ करना होगा। उसके पिता बोले मोच के कारण तुम कहीं बाहर भी नहीं जा सकते। तुम्हें सारी छुट्टियां घर में गांव के अंदर ही बितानी पड़ेगी। यह सुनकर टप्पू बहुत ही दुखी हो गया था। वह अपनी दादी के घर पहुंच गया था । जंगल में अकेला घर था। उसके आसपास कोई भी घर नहीं था। उसकी दादी का घर पुरानी हवेली से कुछ कम नज़र नहीं आ रहा था। गांव आ कर उसका मन खुश हो गया। घर के बाहर फुलवारियां देख कर उसका मन मंत्र मुग्ध हो गया। अपनी दादी को कहनें लगा दादी आपके घर में तो इतने सारे फूल है । यहां पर मुझे दौड़ना अच्छा लगेगा । क्या करूं?मैं अभी तो दौड़ नहीं सकता, मैं जब ठीक हो जाऊंगा तो मैं मैं यहां पर झूला झूल कर और पौधे लगा कर अपना समय बिताऊंगा।
उसकी दादी हंसते हुए बोली बेटा तुम्हारा जो मन में आए वह ‌करो,यहां तुम्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं है जहां तुम्हारा मन हो वहां जाओ, इस घर में बहुत सारे कमरे हैं जो चाहे करो। तुम्हारे पिता के बचपन के कमरे में जा सकते हो ।वहां खूब सारे खिलौने हैं पर अपने दादाजी के कमरे मैं मत जाना ।दादा जी का सामान मत छेड़ना वहां पर कुछ बहुत ही कीमती और पुरानी चीजें पड़ी है। तुम्हारे दादा जी की यादें हैं वहां पर। वहां किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ मुझे पसंद नहीं है जो चीज जैसी है जहां है वही रहे तो अच्छा है बाकी तुम हर जगह खेल सकते हो। टप्पू बहुत खुश हो गया था। पर पापा के कमरे में भी वह बैठा बैठा अकेले बहुत बोर हो रहा था ।उसे समझ नहीं आया कि वह किसके साथ खेलें यहां तो कोई बच्चा उसकी उम्र का नहीं था जिसके साथ वह खेल सकता था।कुछ देर अकेले ही खिलौनों के साथ खेलनें लग गया। जब बोर हो गया तो वहां से बाहर चला गया अचानक उसे याद आया कि दादी ने कहा था दादाजी के कमरे में नहीं जाना, ऐसा दादाजी के कमरे में क्या हो सकता है ?मुझे जाकर देखना चाहिए। कितना मज़ा आएगा?
मुझे यह काम चुपचाप करना होगा किसी को पता नहीं चलना चाहिए नहीं तो दादी को बहुत बुरा लगेगा। दिन में जब सब दोपहर का खाना खा कर सुस्ता रहे थे तब टप्पू चुपके से अपने कमरे से बाहर निकला और घूमते घूमते उसने अपने दादा जी का कमरा देखा। उसने सोचा आस पास कोई भी नहीं है चलो, चुपके से इसके अंदर घुस जाता हूं और दरवाजा अंदर से बंद कर लेता हूं वैसे भी यहां कौन आता है? किसे पता चलेगा कि मैं कहां हूं ?यहां तो बहुत सारे कमरे हैं।
दादा जी का कमरा बहुत बड़ा था । वहां मेज़ पर दादा-दादी की एक बड़ी सी तस्वीर थी । वह काफी पुरानी नज़र आ रही थी उस कमरे में बहुत सारी पुरानी चीजें भी शायद अंग्रेजों के जमाने की थीं। टप्पू सभी चीजों को बड़े ध्यान से देख रहा था। टप्पू वहां जाकर बहुत खुश था। उस कमरे के अंदर और छोटा कमरा था पर वह ताले से बंद था। इस कमरे के अंदर क्या हो सकता है? टप्पू ने सोचा और इस ताले की चाबी कहां है? तभी मां की आवाज आई तो टप्पू जल्दी से वहां से बाहर आ गया।
शाम हो गई थी मां रात के भोजन के लिए टप्पू को आवाज लगा रही थी । कितना समय बीत गया? टप्पू को तो पता ही नहीं चला समय का अंदाजा ही नहीं रहा। खाने में क्या बना है मां टप्पू ने पूछा, मां बोली आज हमने गांव की एक खास सब्जी बनाई है । तुम्हें कभी नहीं खाई है। खा कर बताना कैसी है? क्या है ?मुझे सब्जी रोटी नहीं खानी थी। मेरा मन तो केक खाने का कर रहा है।सब्जी तो हमेशा ही खाते हैं ।यह कह कर टप्पू ने मुंह बना लिया।
रात के खाने में मक्की की रोटी और सरसों का साग परोसा था बेहद स्वादिष्ट बना था। दादी नें ऊपर से मक्खन डाल दिया इससे उसका स्वाद तो और भी ज्यादा बढ़ गया।
आज तो टप्पू ने मज़े से खाना खा लिया क्योंकि वह बहुत स्वादिष्ट बना था । टप्पू अपनें पापा से बोला कल मैं सब्जी नहीं खाने वाला। कल तो मुझे केक ही चाहिए। अगर आप उसे नहीं लेकर आए तो मैं खाना ही नहीं खाऊंगा। एक तो मेरे पैर में चोट लगी है और मैं कहीं खेलने भी नहीं जा सकता। मैं तो बोर हो जाऊंगा, टप्पू गुस्से में बोला। दादी बोली बेटा यह गांव है जहां पर यह सब नहीं मिलता ।तुम्हें घर का बनाया हुआ खाना ही खाना पड़ेगा। घर का खाना भी बहुत स्वादिष्ट होता है बेटा। ज़िद नहीं करनी चाहिए। टप्पू को बहुत बुरा लगा था। उसकी दादी पर टप्पू को बहुत ही गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसकी दादी ने उसे बाहर का खाना खाने से इनकार किया था।
ठीक है जब दादी भी मेरी बात नहीं मानती है तो मैं भी क्यों दादी की बात मानूं,? टप्पू ने गुस्से में सोचा। मैं भी अब से रोज़ दादाजी के कमरे में जाऊंगा और वहां पर चीजें उलट-पुलट कर देखूंगा सब चीजें छेडूंगा।मैं भी देखता हूं कौन मुझे रोकता है?

टप्पू अब अपना ज़्यादातर समय दादा जी के कमरे में बितानें लगा। वह अपने दादा की चीजों को उलट-पुलट कर देखता रहता था। एक दिन टप्पू ने इधर-उधर देखा सामने मेज पर उसकी दादा दादी जी की तस्वीर पड़ी थी, जैसे ही उसने उस तस्वीर को सीधा किया वैसे ही उसमें से एक दराज खुल गया और उसके अंदर से एक डिब्बी बाहर निकली । टप्पू ने बड़ी हैरानी से उस डिब्बे को देखा उसमें सोचा क्यों ना इसे खोल कर देखा जाए? इसमें क्या हो सकता है? जैसे ही टप्पू ने डिब्बी उठाई उसके अंदर से एक बड़ी सी चाबी निकली ।वह काफी पुरानी नज़र आ रही थी । टप्पू के दिमाग में एक विचार आया हो ना हो यह चाबी इसी ताली की हो सकती है । चलो देखते हैं। आज पता चल जाएगा कि दरवाजे के अंदर आखिर है क्या? टप्पू ने थोड़ा घबराते हुए दरवाजा खोला।

कमरे के अन्दर बहुत ही पुरानी और कीमती चीजें थीं। बहुत अनोखी दिखती थीं। टप्पू बहुत ही हैरान था। यह सब हैं क्या? ऐसी चीजें उसने पहले कभी नहीं दखी थीं। कुछ पुरानी तलवारें, मुकुट, मूर्तियां, तस्वीरें,संदूक, कुछ पुराने कपड़े कुछ पुरानी दूरबीन लेंस और कुछ बहुत ही पुरानी किताबें वहां पड़ी हुई थी।उसने एक शीशा उठा लिया। में वह अपनी शक्ल सूरत देखने लगा मैं कितना गंदा हूं ?क्या मैं ऐसा ही हूं? नहीं मैं ऐसा नहीं हूं आईने में धूल जमी हुई थी। वह एक कपड़े से उस आईनें को साफ करने लगा। जैसे ही उसने अपनी उंगली शीशे में घुमाई वह शीशे के आर पार चली गई। अरे यह क्या? फिर टप्पू ने अपना सिर उस में डाल कर देखने लगा और लुडक कर दूसरी तरफ जाकर गिर गया। वह जल्दी से उठ खड़ा हुआ वह सोचने लगा कि वह शीशा कहां गया? शीशा लुढ़क कर पता नहीं कहां जा लगा था । वह शीशा उसे नहीं मिला। उसका माथा चकरा गया। उसका ध्यान अपने पैर की तरफ गया उसके पैर की मोच ठीक हो चुकी थी। यह क्या मेरी टांग तो बिल्कुल ठीक हो गई है ?उस कमरे में उसे सब चीजें अलग अलग दिखाई दे रही थी ।उसे अपने कमरे की सारी चीजें दूसरी तरफ नजर आने लगी। वह अपने मन में सोचनें लगा मैं थक गया हूं इसी कारण शायद मुझे उल्टा उल्टा दिखाई दे रहा है।
वह जल्दी से वहां से भाग कर अपने कमरे में लौट आया। चलो थोड़ी देर सो जाता हूं और चुपचाप सोने की कोशिश करने लगा। थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई।उसकी आंख मां की आवाज़ से ही खुली। मां रात के खाने के लिए बुला रहीं थीं। जब वह बाहर आया तो उसने पाया कि वह तो अपने शहर वाले घर में पहुंच गया है।वह गांव से शहर कब आए? और वह सो कब गया ।उसे कुछ ध्यान नहीं था। उसके पिता खाने की मेज पर खाने के लिए बैठे थे ।वह सोचने लगा उसके पिता हमेशा तो दाएं हाथ से खाना खाते हैं लेकिन आज वह उल्टे हाथ से खाना क्यों खा रहे हैं? उसके पिता उसे बोले बेटा आओ बैठो, हमने तुम्हारे लिए बाजार से ना जाने कितनी सारी चीजें मंगवाई है तुम्हें जो अच्छा लगे वह खा लो ।
वह अपने मन में सोचनें लगा आज मेरे माता-पिता कितने अच्छे हो गए? मुझे बाजार का खाना खाने से रोक भी नहीं रहे हैं और कह रहे हैं कि जो खाना है जितना खाना है खा लो। उसको चुप देखकर उसकी मां बोली थी कि चलो मेरे साथ बाहर चलो जो कुछ तुम खाना चाहता हो, पेट भर कर खाओ। वह अपने माता-पिता के साथ एक रेस्टोरेंट में चला गया ।आज उसे अपने मनपसंद वस्तुएं खाकर बहुत ही अच्छा लग रहा था कि पिता कहने लगे कि बेटा खाना कैसे लगा? मैं आज आप दोनों को गले लगाना चाहता हूं । आप नें मुझे मेरे मन भारती चीजें खानें को दी।उसके माता-पिता बोले हम तो तुम्हें किसी चीज के लिए कभी भी नहीं रोकते। वह मन ही मन बहुत ही खुश हो रहा था और सोचने लगा कि कल मेरे माता-पिता मुझे स्कूल जाने को न कहें । मेरा स्कूल जाने का ज़रा भी मन नहीं है। सुबह उठकर मैं अपने माता-पिता से कह दूंगा कि मेरा स्कूल जाने का बिल्कुल भी मन नहीं है । खा पीकर और इतना थक चुका था कि उसे बिस्तर पर चढ़ते ही नींद आ गई। अगले दिन सुबह हुई स्कूल जाने का वक्त हो गया उसके माता-पिता ने उसे आवाज नहीं लगाई और ना ही उसे जगाया था।? वह अपने माता-पिता के पास आया और बोला आज आप ने मुझे सुबह उठाया भी नहीं । बाजार के गोलगप्पे खा कर उसके पेट में दर्द होने लगा था और उसे बुखार भी आ गया था अपनी मां से बोला कि मां मेरा पेट दर्द कर रहा है। मैं स्कूल नहीं जाना चाहता। उसकी मां बोली तो बेटा कोई बात नहीं। हम ने बाहर से पिज़्ज़ा और बर्गर चिप्स और बिस्किट्स मंगवा कर रसोई में रख दिया है जब भूख लगे तो खा लेना हम लोग कुछ काम से बाहर जा रहे हैं शाम तक लौटेंगे। यह कहकर उसके माता पिता उसे अकेला छोड़ कर चले गए वह अपने मन में सोचनें लगा आज तक उसके माता-पिता उसे अकेला छोड़कर कभी नहीं गए । उसके माता पिता बुखार आने पर उसके पास दिन रात खड़े हो जाते थे यह क्या मेरे मां-बाप इतने गैर कैसे हो गए? जो मुझे बीमार देखकर भी मेरी कोई परवाह नहीं कर रहे हैं और मुझे यह कहकर चले गए कि तुम अपने आप खाना खा लेना इसे अच्छा होता मैं स्कूल चले जाता। उसने पूरे दिन कुछ भी नहीं खाया ।शाम को जब उसके माता-पिता घर वापस आए तो उसने मां से कहा मां मुझे बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दो ना ।उसकी मां ने कहा अरे बेटा हमने तो तुम्हारी मनपसंद चीजें ला कर रखी थी। तुमने वह क्यों नहीं खाई। उसने बोला मां मेरा बाहर का खाना खाने का बिल्कुल मन नहीं है। बाहर का खाना खा खाकर मैं बहुत थक गया हूं। मुझे सादा खाना खाना है। मां जैसे दाल सब्जी रोटी। मां ने कहा बेटा अभी तो हम बहुत थक गए हैं । बहुत देर हो गई है अभी तुम यही खाकर अपना पेट भर लो । यह कह कर मां वहां से चली गई। टप्पू को बहुत बुरा लगा। इच्छा न होते हुए उसने थोड़ा सा खाना ही खाया और वह जाकर सो गया।दूसरे दिन जब वह स्कूल गया तो वह सोचनें लगा कि मैडम मुझे डांट देगी कि कल तुम स्कूल क्यों नहीं आए ?मैडम नेंं उसे कुछ नहीं कहा। कक्षा में गणित के अध्यापक को देखकर बहुत ही डर गया पर गणित के अध्यापक ने भी उसे ज़रा भी नहीं डांटा। कभी-कभी तो अपने मन में सोचता कि इस बार उसके माता-पिता नें उसे पढ़ाई को लेकर जरा भी नहीं डांटा।उसकी परीक्षा पास आ गई थी उसनें कुछ भी पढ़ाई नहीं की। परीक्षा में उस ने कुछ भी नहीं लिखा। उसके साथ के सारे बच्चे अच्छे नंबरों से पास हो गए थे और वह फेल हो गया था। ऐसा पहली बार हुआ था ।
वह कक्षा में बैठा बैठा बहुत रोया। उसकी मैडम ने उसे एक बार भी नहीं कहा कि तुम फेल हो गए हो। अगर उसके टीचर उसकी शिकायत घर भिजवा देते तो शायद वह कुछ तो पढ़ाई करता।

जब वह घर आया तो उसके मम्मी पापा हंस हंस कर बातें कर रहे थे। उसे बहुत ही बुरा लगा उसके माता-पिता को यह क्या हो गया है बात-बात पर उसके माता-पिता उसे समझाते थे कि बेटा पढ़ाई करो पढ़ाई करो वरना फेल हो जाओगे। इस बार तो उन्होंने कुछ भी नहीं कहा अगर वह मुझे डांट देते तो शायद मैं कभी भी फेल नहीं होता। वह अपने माता-पिता के इस तरह के बदलाव को देखकर दंग रह गया था। उसकी मैडम ने उसे एक बार भी नहीं कहा कि तुम फेल हो गए हो। वह तो सब कुछ गंवा बैठा। अपना स्वास्थ्य भी ,विद्या भी और माता-पिता भी। सब कुछ उलट-पुलट हो चुका है।

मैं ऐसा ही चाहता था मगर अब उन सब चीजों के बावजूद भी मैं खुश क्यों नहीं? काश मेरे माता-पिता मुझे डांट कर कहते कि बेटा जल्दी उठा करो ।मुझे डांट फटकार कर या प्यार से समझा कर दीकहते तो मैं समझ जाता। आज सचमुच में मैं पागल हो जाऊंगा। स्कूल आकर भी उसे किसी के साथ खेलना अच्छा नहीं लग रहा था क्या करूं? अगले ही दिन वह चुपचाप बिना किसी को बताए अकेले ही अपनी दादी के घर जाने के लिए निकल पड़ा उसे दादी की बहुत याद आ रही थी एक दादी ही तो थी जो जिससे वह कुछ भी छुपाता नहीं था दादी की हर बात को मानता था ।दादी का लाडला जो था।मां बाबा तो मेरा बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते उन्हें मेरी अब कोई ज़रूरत नहीं है । मैं दादी के पास ही चला जाऊंगा। वह चुपचाप जाकर गाड़ी में बैठ गया और सीधा दादी के घर पहुंच गया।दादी के पास जाकर रो-रो कर कहने लगा दादी दादी मैं अपने घर वापस नहीं जाऊंगा?
दादी की पूछने पर उसने दादी को रो-रो कर सब किस्सा सुना दिया कैसे उसके माता-पिता बदल गए हैं? कैसे उसके स्कूल के अध्यापक, उसके दोस्त सब कुछ बदल गया है। यहां तक कि उसका कमरा और दादी का घर ,हर चीज बदली बदली नज़र आ रही थी। जैसे सब कुछ उलट-पुलट हो गया हो। दादी ने उससे कहा कि तुम मुझे सब सच सच बताओ कि यह सब शुरू कहां से हुआ ?कब तुम्हें लगा कि सब कुछ उलट-पुलट हो गया है? अचानक टप्पू को याद आया कि मैं दादाजी की कमरे में चुपके से चला गया था ।कुछ लगा था और वही अजीबोगरीब शीशा मिला, जिसके अंदर वह घुस के गिर गया है। उसके बाद से ही सब कुछ बदल गया। अचानक दादी ने उसे बताया कि वह शीशे की दुनिया में चला आया है। उसकी असली दुनिया तो उस शीशे की दूसरी ओर है।
वह दौड़ा-दौड़ा अंदर आया वह शीसे को ढूंढने लगा ।वह किसी चीज से टकराया।मेज के नीचे की ओर शीशा पड़ा हुआ था।वह शीशा हां हां सच में यह शीसा जादू का ही था ,तभी तो मेरा हाथ उस में घुस गया था। यह मेरे माता-पिता नहीं और ना ही यह मेरी दादी है। यहां सब चीजें जैसे शीशे में उल्टी दिखाई देती है वैसी ही हो रहा है। यहां पर तो सब कुछ उल्टा हो रहा है ।जो मैं नहीं करना चाहता वह कर रहा हूं ।जो करना चाहता हूं वह नहीं कर सकता ।हे भगवान !क्या करूं?मुझे मार्ग दिखाओ। मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचना चाहता हूं। हे भगवान! उस शीसे को ढूंढने में मेरी मदद करो। अचानक उसका पैर मेज से टकराया । शीशा मेज के पास ही गिरा था ।उसकी जान में जान आई उसनें वह शीसा उठाया और उसे याद आने लगा कि उसने उस में अपना हाथ घुसाया था उसने जल्दी से उस नें अपने हाथ उस शीशे में घुसाया।वह उछलकर दूर जा गिरा ।उसे जब होश आया तो उसके चारों और उसके माता-पिता खड़े थे ।
उसके पिता गुस्से में बोले तुम बहुत शरारती हो गए हो टप्पू हमें तुम्हें कहां कहां नहीं ढडा ।हर कमरे में तुम्हें ढूंढा पर तुम कहीं नहीं थी। कितना समय बीत गया है ?पता है इतनी रात हो चुकी है। तुम्हें ढूंढते ढूंढते परेशानी से बुरा हाल हो गया था। दादी को कितनी चिंता हो रही थी? पता है। और तुम दादाजी के कमरे में कर क्या रहे हो? यहां आने के लिए तो दादी ने तुम्हें मना किया था ना।शुक्र है तुम ठीक हो‌ पर तुम्हें दादी और हमारा कहना ना मानने की और ज़िद करने की सजा तो जरूर मिलेगी। मां बोली अब कुछ दिन तुम्हें बाहर का खाना खाने को नहीं मिलेगा और ना ही कोई चॉकलेट मिलेगी। घर का ही खाना खाना पड़ेगा। तुम अपना होमवर्क अभी छुट्टियों में ही पूरा करोगे नहीं तो तुम्हें खेलने जाने नहीं दिया जाएगा।तुम्हें चौकलेट भी नहीं मिलेगी।
वह खुश होकर बोला मुझे चॉकलेट नहीं चाहिए।आप ठीक ही कहते हो बाहर की गंदी चीजें नहीं खानी चाहिए ।मैं आपकी सारी बातें मानूंगा।
मां आप ठीक ही कहती हैं मैंने आपको बहुत ही परेशान किया आगे से मैं आपको कभी परेशान नहीं करूंगा।अचानक उसने देखा उसके पांव में पट्टी बंधी थी । उसकी टांग भी अभी तक ठीक नहीं हुई थी। वह तो अचेतन अवस्था में बुखार में वह सपना देख रहा था । ना ही मैं फेल हुआ और ना ही मुझे कुछ हुआ। एक बुरा सपना था जिसको देख कर वह डर गया था।अगर सपना हकीकत में बदल जाता तो तो मैं अपने स्वास्थ्य से भी हाथ धो बैठता और माता पिता के प्यार से भी वंचित हो जाता। जो कुछ हुआ अच्छा ही हुआ। मुझे समझ आ गया है। जो कुछ होता है वह अच्छे के लिए ही होता है मैं अपने माता-पिता को कभी परेशान नहीं करूंगा और हमेशा उनकी बातों को माना करूंगा। अचानक ही टप्पू को वही शीशा मेज़ के नीचे गिरा हुआ दिखाई दिया।वह सब एक सपना था यह सच?? टप्पू यह सब सोच ही रहा था कि तभी वहां दादी आ जाती है। टप्पू दादी से माफी मांगता है। और कहता है कि अब वो कभी भी ज़िद और शरारत नहीं करेगा दादाजी के कमरे में भी कभी नहीं आएगा। दादी मुस्कुराते हुए उसी माफ कर देती है। उसके माता-पिता उस में आए हुए बदलाव को देखकर बहुत ही खुश थे ।

नारी

मातृ शक्ति का रूप हूं ।
घर की लक्ष्मी का स्वरूप हूं ।।
अपने परिवार की खुशियों का ताज हूं।
घर के आंगन की लाज हूं ।।
बच्चों के लाड़ प्यार स्नेह और दुलार का जीता जागता स्मारक हूं ।
उनके अपनत्व के स्पर्श की एक इबारत हूं।।

घर में और कार्यालय में दोनों जगह है स्वरूप मेरा।
घर में बेटी पत्नी और बहू का दर्जा है मेरा।।
कार्यालय में दिल लगाकर काम करती हूं।
छोटे बड़े सभी को साथ ले कर चलती हूं।।
घर में अपने परिवार की खुशियों का ध्यान रखती हूं।
अपने बुजुर्गों के संस्कारों का हमेशा सम्मान करती हूं।।।

कदम से कदम मिलाकर अपनें परिवार के साथ चलती हूं।
मैं हर काम सूझ बूझ कर करती हूं।।
मातृ स्वरुप की निधी हूं। सभ्य संस्कारों में पली बढ़ी हूं।
विधाता के द्वारा रची हुई सर्वोत्तम कृति हूं ।।

किसी की बेटी,बहन,बहू और पत्नी हूं मैं।
विपरीत परिस्थितियों में सभी का हौंसला बढ़ाती हूं मैं।।

भीड़ में इक अलग पहचान है मेरी।
सपनों को हकीकत में बदलना है छवि मेरी।।
बच्चों संग अपना समय बिताती हूं।
बच्चों संग बच्चा बन कर खुब धमाल मचाती हूं।।
कुछ न कुछ डायरी में लिखना है आदत मेरी।
अच्छे कथन को दिल में उतार कर , उस पर विचार करना है फितरत मेरी।।