दहेज है एक घोर अभिशाप।
कुरीतियों के विकसित होने से बन गया यह महापाप।।
दहेज रूपी पर्दे नें समाज के मस्तक पर कलंक थोप डाला।
बेटियों के जीवन को अंधकारमय बना कर,
कितनी अबोध कलियों को
खिलने से पहले ही रौंद डाला।।
न जाने कितनी और मसली जाएंगी।
इस कुरीति का शिकार हो फांसी लगा कर बेमौत मारी जाएंगी?।।
बचपन में माता-पिता की दहलीज पर पली बढ़ी।
अनमोल हीरा समझकर पालन पोषण कर ढली।।
लड़की के शील गुण और सौंदर्य की परख, दहेज रूपी कलंक ने कर डाली।।
अच्छी खासी मोटी रकम कि फरमाइश वर वधू के माता-पिता से कर डाली।
वर पक्ष की झोली नोटों से भर कर की गई सगाई।
दहेज न होने पर बेटी की नहीं की गई विदाई।।
अश्रुपूर्ण धारा से विवाह कर ससुराल में आई।
अपने मधुर व्यवहार से ससुराल में अपनी एक पहचान बनाई।।
ससुराल में उसकी किसी ने बात न मानी ।
रुपया उगलनें वाली मशीन समझ उस से कि जानें लगी मनमानी।
दहेज रूपी जहर आपदाओं का है असीम सागर।
चिंता की है गहन ,घोर, छलकती गागर।।
घर के माता पिता की सुख-शांति को है छीना।
परिवार जनों पर बोझ बन कर उनका मुश्किल किया जीना।।
दहेज रुपी नागिन नें समाज में जोर पकड़ कर अपनी धाक जमाई।
वह काल का पंजा फैला उन्हें डसनें की फिराक में आगे आई।
निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार को मोहरा बना कर उन पर मंडराई।।
दहेज लेने और देने कि प्रथा को समाप्त न कर पाई।
माता-पिता को खून के आंसू रुला कर भी,उनकी व्यथा को शान्त नहीं कर पाई।।
समाज को इस कलंक से मुक्ति तभी मिल पाएगी।
जब दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए आगे आकर आवाज उठाई जाएगी।।
समाज की दूषित मनोवृति में बदलाव लाकर इस से छुटकारा पाना होगा।
दहेज लेनें और देने वालों को कड़े से कड़ा सबक सिखाना होगा।।
आज कल कि युवा पीढ़ी को रुढ़ी वादी मान्यता को मिटाना होगा।
बिना दहेज ले कर अपनी परम्पराओं को निभा कर दिखाना होगा।।
अपनी संस्कृति में बदलाव ला कर, नवीनता का संदेश हर घर घर फैला कर दिखाना होगा।।