माया जाल

हाथ का मैल है यह पैसा।
हो लोभ के फल जैसा।।
सब कुछ यहीं रह जाना है।
साथ किसी के कुछ नहीं जाना है।।
यह जीवन तो है बहुमूल्य।
पुण्य कमा कर इसे बनाया जा सकता है जीने तुल्य।।
चोरी फसाद के सभी धंधों को छोड़ कर,
॑ दूसरों की थाली में झांकना छोड़ दे,।
हथेली में सरसों जमाना सीख कर
संयम से जीना सीख ले,।।

लोभ से विमुख होकर क्या तू सुखी हो पाएगा?
संघर्ष और पुरुषार्थ के बल पर ही तू विजय हासिल कर पाएगा।।
माया के बल पर तू इतना क्यों इतराता है?
आलस और जालसाजी अपनाकर जीवन व्यर्थ क्यों गंवाता है?
यह नर तन मुश्किलों से मिलता है।
सत्कर्म करके ही तो सच्चा सुख मिलता है।।
मनुष्य जन्म गंवा कर तू कहां चैन पाएगा?
नर्क में जाकर तू बहुत ही पछताएगा।।
ज्यादा बड़प्पन करना भी अच्छा नहीं होता।
यहां कुछ भी तो अपना नहीं होता।।
मरने के बाद यह काया भी तो है मिट्टी का एक ढेला।
मरने के बाद जलकर भस्म हो जाएगा यह रेला।।
अच्छी सोच के बल पर तू अपना जीवन सफल बनाएगा।
अपना ही नहीं अपने परिवार में भी समृद्धि और यश हासिल कर पाएगा।।
माया मैल और काया सभी कुछ यहीं रह जानी है।
केवल पुन्य कर्म और नेकी ही साथ जानी है।।

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