हमारे घर का प्रत्येक सामान आज हम से कुछ कह रहा।
अपनी दुर्गति पर है ठहाका लगा कर हंस रहा।।
आजकल घर में मीठी मीठी सुगंध है छा रही।
बच्चों कि चुलबुलाहट से है खिला-खिला रही।।
सोफ़ा सैट भी यूं अपनी दास्तां सुना रहा।
मुझ पर कुदाकुदी का दौर आजकल है छा रहा।।
झाड़ू बोला तुम तो कठोर वस्तु के है बने हुए।
तुम तो कुदाकुदी पर भी नहीं डर कर सिकुड़ रहे।।
मैं तो कोमल घास या छोटे छोटे तिनकों वाला।
चोटों के प्रहार को न सह सकनें वाला।।
घर कि गृहिणी भी मुझे पटक पटक कर मेरी चमड़ी उधेड़ रही।
मेरी तिलियों को जगह जगह फैंक फैंक कर मेरी रुसवाई कर रही।।
बर्तन बोले हम भी तुम्हें अपनी व्यथा कह सुनातें हैं।
तुम से अपने दिल कि बात कह कर अपना दुखड़ा सुनाते हैं।
बच्चे बर्तन पटक पटक कर हमारी धुनाई कर रहे।
कुरकुरे, नमकीन बिस्कुट और जायके दार व्यंजन खा खा कर हमें चिढ़ा रहे।।
फ्रिज बोला भाईयों सुनों कुछ मेरे भी दिल की।
तुम मुझे तसल्ली दो जीवन भर कि।।
मेरी तरह कोई नहीं होगा दर्द का मारा।
आज तो मैं तन्हा हो जाऊंगा, ये सोच कर मैं तो हारा।
मालिक मुझे बेच कर दूसरा फ्रिज लेनें कि सोच रहा।।
मुझे कबाड़ी को सौंपनें का ग़म मुझे खाएं जा रहा।।
मेरी जगह कोई दूसरा फ्रिज आ जाएगा।
अपनी जगह बना कर के मन ही मन मुस्कुराएगा।
मालिक भी मुझे बाहर पटक कर खुश हो जाएगा।।
टीवी बोला भाई हर कोई आजकल मेरी सिटीपिटी गुम कर रहा।
सारा दिन चला चला कर मालिक अपना मनोरंजन कर रहा।।
कोरोना नें आज सबको है डराया।
छोटा बड़ा उस के डर से है थर्थराया।।
हमें भी आजकल घरवालों कि तहस-नहस नें डराया।
न जानें कब क्या हो जाए यह हमारी समझ में नहीं आया।।
इससे अच्छा होता घर के सदस्य कुछ समय बाहर ही रहते।
हमें भी कुछ देर आराम करनें का अवसर देते।।।