(झपटू)

एक राजा था उसके एक बेटा था वह अपने बेटे को प्यार से झपटू बुलाता था जब वह छोटा था वह हर एक वस्तु को झपट कर प्राप्त कर लेता था। उसकी आदत बड़े होकर भी वही बनी रही। वह बहुत ही दयालु था।। एक बार राजा ने झपटू को अपने पास बुलाया और कहा कि अब तुम बड़े हो चुके हो। मैं तुम्हें हजार अशरफिया दे रहा हूं।  तुम  अगर 6 महीने के अंदर इसको डबल करके मुझे दोगे तब मैं समझूंगा कि मेरे बाद तुम ही मेरे राज्य की बागडोर संभालने में मेरी मदद कर सकते हो। तुम इस कार्य को करने में सक्षम नहीं हुए तो मैं राज्य की बागडोर और किसी और के हाथ में दे दूंगा। तुम्हारे चचेरे भाई को राज्य की बागडोर दे दूंगा। राज्य की बागडोर किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए जो ठीक ढंग से शासन चला सके। राजा का बेटा बोला मुझे आपकी बात मंजूर है। किसी और ने मुझसे यह बात कही होती तो मैं उस से छीना झपटी करके उसका राजपाट छीन लेता। मैं अपने माता-पिता का सम्मान करता हूं। आप मुझे प्रस्थान करने की आज्ञा दो।

राजा का बेटे ने अपने माता पिता के चरण स्पर्श किए और वहां से चला गया। वह चलते चलते  किसी दूसरे राज्य में पहुंच गया था। वहां पर एक राजा आदित्य नाथ के घर के बाहर बोर्ड देखकर रूक गया।  राजा नें ऐलान किया था कि जो कोई भी मेरी इकलौती बेटी की चुप्पी को तोड़ देगा उस व्यक्ति को वह मुंह मांगा इनाम देगा। राजा की बेटी का नाम था सुलक्षणा। जैसा उसका नाम था उसी के अनुरूप ही वह सुशील और शालीन थी। वह दो-तीन साल से किसी से बात नहीं कर रही थी।  झपटू राजा के दरबार में जाकर बोला  कहां है तुम्हारी बेटी? राजा की बेटी के पास गया और उसे बुलाने की कोशिश की मगर वह कुछ नहीं बोली।  झपटू ने राजा को कहा मुझे 15 दिन का समय दे दीजिए मैं आपकी बेटी को बुलवा कर ही दम लूंगा। एक  दिन झपटू नें राजा को कहा मैं आप की   बेटी को घुमाने बाग में ले जाता हूं। राजा की बेटी को बाग़ में ले गया। राजा की बेटी को बाग़ में ले जाते हुए दिन हो चुके थे। उसने चुप्पी नहीं तोड़ी थी।उसने राजा की बेटी को कहा कि मैंने आज तक झपटना ही सीखा है। जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता है तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है। मैं  प्यार से पूछ रहा हूं  तुम्हारी चुप्पी का क्या कारण है। तुम्हे किसी ने धोखा दिया है तो तुम मुझसे निसंकोच कह सकती हो। मै अपनी तरफ सें तुम्हारे लिए जो भी बन पाएगा मैं तुम्हारे लिए करूंगा। इसके लिए तुम्हें अपनी खामोशी तोड़नी ही पड़ेगी।तुम सीधे ढंग से नहीं मानी तो मैं तुम्हें उड़ा कर चंपत हो जाऊंगा। राजकुमारी डर गई बोली कि मुझे लगता है कि आप से मैं अपनी बात खुलकर कर सकती हूं। लेकिन आज तक मुझे किसी ने भी इस तरह से पूछने की कोशिश नहीं की। आज मैं आपको सारी बातें बता देती हूं। आप मेरे लिए एक मसीहा बनकर आए हैं। वह बोली मैं  तब तक अपनी चुप्पी छोड़ नहीं सकती जब तक मेरी शादी मेरे मनपसंद  साथी से नहीं हो जाती। झपटू ने कहा मुझे बताओ वह कौन है? वह बोली वह  राजकुमार किसी दूसरे राज्य का है। मैं उससे प्यार करती थी मगर उसने भी मुझे धोखा दिया। झपटू बोला उसने तुम्हे धोखा क्यों दिया? जब वह तुमसे इतना प्यार करता था।। वह बोली उसने मुझे कहा था कि मैं अपने पिता को एक दिन तुम्हारे पिता से मिलवाऊंगा। एक दिन जब वह अपने पिता को लेकर आ रहा था वह  हमारे घर में पहुंच चुका था। मेरे पिता उस समय से बाहर गए हुए थे। मैंने उसे और उसके पिता को ठहरने के लिए कमरा दे दिया। मैंने छिपकर उसके पिता की सारी बातें सुन ली। उसके पिता अपने बेटे से कह रहे थे कि तुम तो कहती थी कि वह एक बहुत बड़ा राजा है। यह तो मुझे कोई बड़ा राजा नहीं लगता। शादी के बाद तुम  इनका सारा राजपाट हथिया लेना। इसका सारा रुपया पैसा तुम्हारा हो जाएगा।

राजा का बेटा कुछ कहनें ही जा रहा था तब तक मैं कमरे में पहुंच चुकी थी। मैंने उसके पिता की सारी बातें सुन ली थी। मैंने अपने पिता को उस राजकुमार चित्र सेनकी  सारी बात बताई कि वह मुझे बहुत प्यार करता है। मेरे पिता ने कहा कि ठीक है। वह बोली पिताजी पर मुझे इसके पिता की यह  एक बात अच्छी नहीं लगी मैंने सब  कुछ दिया  जो वह अपने बेटे से कह रहे थे कि शादी के बाद इसकी सारी धन-दौलत हमारी हो जाएगी। सुलक्षणा के पिता बोले उसके पिता को एक बहू नहीं धन दौलत चाहिए। उस राजकुमार ने सुलक्षणा को कहा मैं तुम्हें बहुत जल्दी लेने आऊंगा।  राह देखते देखते 3 साल हो गए  मगर वह आज तक लौट कर नहीं आया। राजकुमारी सुलक्षणा बोली सब लड़के एक जैसे होते हैं तुम्हें उस राजकुमार को ढूंढना चाहिए था तुम तो बहुत ही कमजोर इंसान निकली। तुम अगर सचमुच में ही उससे इतना अधिक प्यार करती हो तो उसे ढूंढ कर लाती। सुलक्षणा बोली मैं तो डरती थी जब झपटू बोला आज तक शायद उसने शादी कर के घर भी बसा लिया होगा। वह बोली कृपया करके  आप मेरे साथ चलिए उसके राज्य में चल कर देखना चाहती हूं कि और उससे पूछना चाहते हूं कि तुमने मुझे धोखा क्यों दिया। वह बोला ठीक है अगर उसने शादी नहीं की होगी तो मैं विश्वास दिलाता हूं मैं तुम्हारे प्यार को मिलानें में तुम्हारी मदद करूंगा। इसके लिए तुम्हें मेरे साथ चलना होगा राजकुमारी सुलक्षणा बोली ठीक है तुम मेरे साथ चलो। वह उसे एक नगर में ले गई जहां के राजा का बेटा  चित्र सेनउसके साथ प्यार करता था झपटू ने कहा कि तुम राजा के सामने एक नर्तकी बनकर जाना और कहना कि हम नाच गाना पेश करना चाहते हैं। वह अपने प्रेमी राजा  के महल में पहुंच गई थी।चित्र सेन के पिता राजा ने कहा कि आज रात को हम तुम्हारा नाच गाना देखेंगे। रात को उसने राजा को नशे की गोलियां सुंघा दी। वह तो सो चुका था। नर्तकी सुलक्षणा राजा चित्रसेन के पास जाकर बोली आपने मुझे पहचाना नहीं। वह उसे देखकर चौका। तुम यहां कैसे। सुलक्षणा बोली तुमने मुझे धोखा क्यों दिया? राजा का बेटा बोला कि मेरे पिता ने मुझसे शर्त रखी थी अगर तू किसी और लड़की के साथ शादी करेगा तो मैं तेरी मां को लेकर सदा सदा के लिए यह राजपाट छोड़कर चला जाऊंगा।  तुम्हें मेरी पसंद की लड़की से ही शादी करनी होगी नहीं तो तुझे कसम है तू अपनी मां से कभी बात नहीं करेगा। क्या करूं? मैं अपनी मां से बेहद प्यार करता हूं। उनसे कभी जुदा नहीं हो सकता। मैं उनका सम्मान करता हूं इसलिए मैंने सोचा चलो अपने प्यार की कुर्बानी देना ही ठीक है।

मेरे पिता ने कहा कि  उस लड़की के पास कुछ ज्यादा धन दौलत नहीं है तुम्हे उस को भुला ही होगा। मैं तुम्हारी शादी कभी ऐसी लडकी से नहीं करुंगा जिस के पास धन दौलत न हो। मैंने अपने पिता को समझाने की कोशिश की कि मुझे धन दौलत से नहीं उससे प्यार है। मैं तुम्हारे पास आने ही जा रहा था तभी मेरे पिता ने मुझे कसम देकर मुझे तुम से मिलने से रोक दिया था। सुलक्षणा बोली

मैंने अपने पिता को कहा कि अगर यह लड़का मुझसे प्यार करता है तो वह मुझसे बिना मिला नहीं जा सकेगा।  तुम जब मुझसे  बिना मिले चले गए तो मैं बहुत ही उदास हो गई। मैंने सोचा तुम भी शायद कहीं ना कहीं मुझे नहीं मेरी धन दौलत से प्यार करते हो। राजकुमार चित्रसेन बोला मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता था। पिता ने मुझे कसम देकर रोक दिया था। मैंने भाग्य पर सब कुछ छोड़ दिया। मेरे पिता ने मेरी शादी एक धनी सेठ की लड़की चुन्नी से मेरा रिश्ता तय कर दिया। 15 दिन बाद मेरी शादी है। सुलक्षणाा बोली अब तुम चिंता मत करो मैं अपने एक दोस्त के साथ यहां आई हूं। मैं  तब तक तुम्हारी होने वाली पत्नी से मिल कर आती हूं। तुम तब तक मेरा इंतजार करना। राजकुमारी खुश हो गई थी  क्यों कि उस के प्रेमी नें शादी नहीं की थी। वह तो सच में  उसे बेहद प्यार करता था। वह तो अपनी मां के प्यार के कारण उस से नहीं मिल सका। राजकुमारी  नें सुलक्षणा से कहा तुम सच में भी मेरे भाई हो। तुम्हारा जैसा भाई सबको दे।झपटू बोला चलो उस धन्ना सेठ की लड़की से मिलने चलते हैं। सुलक्षणा को चित्र सैन ने बताया कि जब वह अपनी मां से बातें कर रहा था तो उसकी मां ने कहा बेटा तू अपने पिता की पसंद से ही शादी कर ले। मैं तो तुम्हारी शादी तुम्हारी पसंद की लड़की से ही कराना चाहती थी। तुम्हारे पिता ने धन्ना सेठ के बारे में मुझे बताया कि उसके पास बहुत ही धन दौलत है। शादी के बाद उसकी सारी धन-दौलत हमारी हो जाएगी। तुम सासु मां बनकर ऐश करना।

सुलक्षणा को सारा माजरा समझ आ चुका था वह धन्ना सेठ की लड़की को मिलने गई तो वहां जाकर हैरान हो गई। धन्ना सेठ की बेटी चुन्नी उसके साथ ही पढ़ती थी। वह सुलक्षणा की सहेली थी। सुलक्षणा चुन्नी से नाराज होकर बोली तुम चुपचाप  ही शादी के बंधन में बंधनें जा रही थी मगर तुमने मुझे नहीं बुलाया। चुन्नी बोली मुझे तुम्हारा पता मालूम नहीं था। 8 साल बाद आज हम मिले हैं। वह अपनी सहेली को  घर के अंदर ले गई। उसने उसे एक कमरा दिया। सुलक्षणा ने चुन्नी को बताया कि मैं अपने  एक दोस्त को साथ लेकर  यहां आई हूं।  चुन्नी बोली उसे भी अन्दर बुला लाओ। तीनों साथ इकट्ठे बैठकर बातें कर रहे थे।सुलक्षणा बोली तुमने शादी का फैसला तो कर लिया है। शादी एक ही बार होती है। तुमने सोच समझकर ही लड़के को देखा होगा।चुन्नी बोली तुम्हें तो पता है मेरे मां बाप मेरी शादी ऐसे लड़के से करना चाहते हैं जिसके पास काफी धन दौलत हो। मेरे पिता के पास  दहेज देने के लिए कुछ नहीं है।

एक दिन जब चित्रसेन के पिता मुझे देखने यहां आ रहे थे तो मेरे पिता को उस के बारे में सब पता चल गया। उन्होंने कहा देख बेटा अगर तू इस राजकुमार से शादी करना चाहती है तो तुझे मेरी सारी बातें माननी होगी जो मैं कहता हूं। चुन्नी बोली पिताजी साफ-साफ बोलो। आप क्या कहना चाहते हो? वह बोला मेरा नाम ही धन्ना है। मेरे पास तुझे देने के लिए कुछ नहीं है। जो कुछ है सो तेरा है। यह  शब्द उस चित्र सेन के पिता ने सुन ली थी।जो कुछ है सो तेरा है यह शब्द सुन कर  लडके वाले बहुत खुश हुए। जैसा नाम वैसे ही विचार।

चुन्नी को समझते  देर नहीं लगी इसलिए ही वह अपने बेटे का रिश्ता  चुन्नी से कराना चाहते हैं। कि वह एक धनी परिवार की लड़की है। क्योंकि सके पिता का नाम धन्ना सेठ है। उसकी बातों को सुन कर मुस्कुरा कर सुलक्षणा बोली तुम बहुत ही भोली हो।

चित्रसेन  भी बहुत ही नेक इंसान है। वह अपने पिता की बात  को कभी नहीं  टालते हैं। उसके पिता तुमसे नहीं तुम्हारी धन दौलत के चक्कर में तुमसे शादी करने के लिए तैयार है। तुम्हारे पिता ने कहा कि जो कुछ मेरा है वह सब कुछ तुम्हारा ही होगा। राजा के पिता नें सोचा इसका नाम धन्ना है। इसके पास बहुत सारी धन-दौलत होगी। मेरे पिता ने बताया जब  तुम हमें मिली थी तब से हम दोनों पति-पत्नी सुखी हो गए थे। इस कारण हमने अपना नाम धन्ना सेठ रख लिया था।

मैं तो एक गरीब इंसान हूं।

उसकी इस बात को सुनकर झपटू हैरान हो गया बोला तो चलो हम सब मिलकर इस योजना को अंजाम देते हैं। चित्रसेन तो मेरी दोस्त  सुलक्षणा से  ही प्यार करता था। उसके पिता ने अपनी मां की कसम देकर कहा कि तुम्हें वह शादी करनी पड़ेगी जहां हम तुम्हारा रिश्ता कर  रहें हैं।  अपनी मां के सम्मान के कारण चित्रसेन अपनें पिता से कुछ नहीं बोला। झपटू झूमकी से बोला तुम बहुत सुंदर हो। झूमकी भी उसके मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर फूली नहीं समाई।  झूमकी को सारी सच्चाई मालुम हो चुकी थी।  झपटू झुमकी से बोला मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं। तुम जैसी भी हो अमीर हो या गरीब मुझे  स्वीकार है। वह तो अपने लिए ऐसा ही पति तलाश  कर रही थी जो उसके धन से नहीं बल्कि उससे सच्चा प्यार करे। झुमकी बोली मुझे क्या करना होगा? वह बोला शादी वाले दिन तुम अपनी सहेली के साथ साथ नकाब ओड कर ही रहना। जब फेरों का समय आएगा दुल्हन की जगह पर सुलक्षणा बैठेगी।  झूमकी के पिता को भी सारी बातें समझा दी। । सुलक्षणा  नें चित्र सेन केपिता को कहते सुना लिया था कि  हम बारात को तभी विदा करा कर ले जाएंगे जब तक वह कबूल नहीं करते  कि जो कुछ धन्ना सेठ का है वह अपने बेटी के नाम किया जा सकता है। दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवा कर ही बारात को ले जाएंगे। ।इसलिए झूमकी को पहले ही  समझा बुझा कर बहुत चौकन्ना कर दिया। जब बारात ले कर आएगे तो झूमकी की जगह पर सुलक्षणा को  बिठाना। सुलक्षणा खुश थी उस की शादी अपने मनपसंद साथी से होनें जा रही थी।  झपटू नें झुमकीके पिता को कहा तुम भी शर्त रखना तुम्हें भी इन कागजों पर हस्ताक्षर करनें होगें। झपटू की बात सुन कर झूमकी के पिता हंसने लगे बोले मुझे हस्ताक्षर करनें में कोई ऐतराज नहीं होगा। जो कुछ मेरे पास है वह मेरी बेटी का ही होगा। मेरे पास तो नाम के सिवा कुछ नहीं है। इसी नाम को सुन कर ही तो उन्होंने हमारी बेटी से रिश्ता जोड़ा। झूमकी के पिता नें सारी कहानी सुना दी जब एक दिन वह चित्र सेन के पिता से जब ट्रेन में मिले तो उन्होने पूछा तुम कौन हो?। झूमकी के पिता नें बता दिया कि उनका नाम धन्ना सेठ है। राजा चित्र सेन के पिता यह सुन कर खुश हुए। आप किसी दिन हमारे महल में आना। झूमकी के पिता बताने ही वाले थे कि वह धन्ना नाम उन्हें किस नें दिया तभी । वह ट्रेन से उतर गए उनका स्टेशन आने वाला था। किसी दिन फिर मिलनें का वायदा कर एक दिन जब धन्ना सेठ राजा के दरबार में पहुंचे तो वह  अपने बेटे से बोल रहे थे किे मैं तुम्हारा विवाह तो धन्ना सेठ की ही लड़की से करुंगा जिसका नाम ही धन्ना सेठ हो वह कितना धनी होगा। यह बात सुन कर मैं हक्का-बक्का रह गया। उस दिन मैनें फैसला कर लिया वह अपनी बेटी की शादी यहीं होनें देगें। अपनी जुबान पर ताला लगा देगें। अपनी पहचान नहीं बताएंगे।झपटू को उन्होने  बताया कि मैं तो एक गरीब इन्सान हूं। एक दिन मुझे एक रईस व्यक्ति का पर्स मिला। उस में उस की सारी सम्पति के कागज और न जानें कितने ढेर सारे रुपये थे मगर झूमकी के पिता नें वह सारे के सारे रुपये उस रर्ईस सेठ को  लौटा दिए। उस रर्ईस नें झूमकी के पिता की इमानदारी से खुश हो कर उसे धन्ना सेठ नाम दे दिया। तभी से वह सेठ धन्ना सेठ कहलानें लगे।

झपटू बोला तुम भी यह शर्त रखना कि और कहना कि एक शर्त हमारी भी है। आप को हमारी शर्त मंजूर है तो हमें भी आप की शर्त मंजूर है। चित्र सेन का पिता बोला बताओ कि क्या शर्त है। हमारे यहां रिवाज है कि जब तक शादी रितीरिवाज के अनुसार सम्पन्न नहीं होती तब तक हम दुल्हन का घुंघट नहीं उठाते। चित्र सेन का पिता बोला बस इतनी सी बात यह हमें मंजूर है।शादी के दिन झुमकी की जगह सुलक्षणा बैठ गई। वायदे के मुताबिक चित्र सेनके पिता नें कहा तुम्हे भी इस कागज पर हस्ताक्षर करनें होगें।  जो कुछ तुम्हारा था वह  अब भी तुम्हारी बेटी का होगा। धन्ना सेठ नें खुशी खुशी उस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए। धन्ना सेठ नें कहा आपने भी वायदे के मुताबिक आप भी मेरी बेटी का घुंघट नहीं उठाएंगे जब तक शादी के फेरे नहीं हो जाते। फेरे हो चुके थे। फेरों के पश्चात दुल्हा दुल्हन को धन्ना सेठ नें विदा किया। सभी खुश थे। शहनाईयों की आवाजें चारों ओर गूंज रही थी। आशीर्वाद लेनें के लिए जब सुलक्षणा नें अपना घुंघट ऊपर उठाया तो चित्र सेन के पिता बोले तुम मेरी बहु नहीं हो। सुलक्षणा बोली आप के न मानने से क्या होता है? आज से चित्र सेन ही मेरे पति हैं। आप हम दोनों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। आप नें अपनें बेटे कि शादी किसी और से करनें का फैसला लिया था। मैनें अपने प्यार को प्राप्त कर लिया है। आप की लालची प्रवृति के कारण आप को सुधारने का प्रयत्न कर लिया था। आप को धन की चकाचौंध नें अंधा कर दिया था। वह बोला धन्ना सेठ की बेटी नें अपनें दस्तावेज मेरे हवाले कर दिए थे। सुलक्षणा बोली उनके पास देनें के लिए तो कुछ नहीं था जो आप को देते। उनके बेचारों नें तो अपनी सच्चा दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए थे। धन्ना सेठ तो नाम का  ही धनी था। चित्र सेन के पिता को जब सारी सच्चाई  पता चली तो वे हाय! कह कर हाथ मलनें  लगे। चित्र सेन बोला पिता जी अब मेरी पत्नी ये है अब तो आप हमारे दोनों को आशीर्वाद दे ही डालो नहीं तो मैं इस राजकुमारी के साथ चला जाऊंगा क्यों कि इस के पिता भी एक राजा है। राजा बोला बेटा मुझे माफ कर दो बेटा मुझे छोड़ कर कहीं मत जाओ।

झपटू नें भी झुमकी को अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया।  झपटू सुलक्षणा और उसक पतिको ले कर   राजदरबार में आया। अपनी बेटी को बोलता देख कर  सुलक्षणा के पिता बहुत खुश हुए बोले असली मायनों में तो तुम भी  आज से मेरे  बेटे हो। सुलक्षणा तुम्हारी बहन है। मैं तुम्हें 10हजार अशर्फियां देता हूं।उन्होंनें धूमधाम से अपनी बेटी की शादी चित्र सेन से कर दी।

उन्होनें झुमकी को भी आशिर्वाद दिया। वहां से विदा हो कर जब झपटू अपने पिता के पास आया तो उस के पिता हैरान हो गए उनका बेटा अपना वायदा पुरा करनें मे सफल हो चुका था। उन्होंनें धूमधाम से अपनी बहु को आशिर्वाद दे कर गले से लगा लिया। झुमकी भी रानी बन कर फुला नहीं समा रही थी।

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