यह कहानी बिहार के छोटे से कस्बे की है उस कस्बे में लीला और उसका पति रामनाथ अपने दो बच्चों के साथ रहता था ।उनका अपना छोटा सा घर था वह मेहनत मजदूरी करके जो कुछ लाता उसे वह अपना और अपने बच्चों का पेट भरता था। इस तरह खुशी खुशी उसके दिन व्यतीत हो रहे थे ।एक दिन इतनी भयंकर बाढ़ आई कि सारे कस्बे का नामोनिशान ही मिट गया थोड़ा बहुत जो उनके पास था वह सबकुछ बाढ़ की चपेट में आकर समाप्त हो चुका था ।भगवान का लाख-लाख शुक्र था कि उनके दोनों बच्चे और वे अपने आप सुरक्षित थे वह दोनों हादसे में बाल-बाल बच गए थे पांच छह महीनों बाद भी उस क्षेत्र की स्थिति ठीक नहीं हो पाई। वह दोनों अपने आप को एक भिखारी की तरह कंगाल महसूस कर रहे थे ।उनके बच्चे भी ठंड महसूस कर रहे थे । किसी तरह से बचते-बचाते वह दूसरे शहर में आ गए और वहां पर नए सिरे से अपनी जीविका को चलाने की कोशिश करने लगे ।
रामनाथ एक साहसी और ईमानदार इंसान था ।उसकी पत्नी भी बहुत ही मेहनती थी ।उनके दोनों बच्चे अभी छोटे ही थे एक बच्चा तो मुश्किल से 5 वर्ष का ही था। वह स्कूल भी नहीं जाता था। दूसरे शहर में आकर पहले तो उन्हें बहुत कठिनाइयां आई परंतु दोनों पति पत्नी ने मुश्किलों के बावजूद भी अपने धैर्य को नहीं खोया।
रामनाथ एक धोबी का काम करने लग गया ।वह लोगों के कपड़े धोता और उसकी पत्नी कपड़ों में प्रेस करती थी । उसको जो कुछ भी मिलता उसी से संतोष कर लेते थे।इस तरह करते करते उन्हें 8 साल हो चुके थे । वे उस शहर में पूरी तरह से रंम चुके थे।उन्होंने अपने बच्चे को भी वहीं पर स्कूल में दाखिल करवा दिया था। उनके बच्चे भी बड़े हो रहे थे । एक दिन रामनाथ को उसकी पत्नी बोली की अब तो लोग हम से इतना कपड़े भी धुलवातेे नहीं हैै क्योंकि अब सब लोगों के पास घर में अपनी अपनी मशीनें है, और प्रैस करने के लिए घर में ही प्रेस हैं। हमें तो गिना चुना ही काम मिलता हैं।जिन व्यक्तियों को औफिस जल्दी जाना होता है वही हमसे काम करवाते हैं।अभी तक तो ठीक है हमारा व्यापार अब कैस आगेे बढ़ेगा। हमे अपने बच्चों को शिक्षा भी दिलानी है चलो वापिस अपने शहर चलते हैं ।अब तो वहां सब कुछ ठीक हो गया होगा ।उसका पति बोला नही, चाहे हमें थोड़ा ही मिल रहा है रोजी रोटी का गुजारा तो चल ही रहा है ना और तुम्हें और क्या चाहिए ।हमें ज्यादा का लालच नहीं करना चाहिए ।वह कहने लगी काश हमारे पास भी कपड़े धोने की मशीन होती और बिजली से चलाने वाली प्रैस होती तो हम भी बहुत सारे कपड़े धो पाते आप भी कपड़े धोते धोते इतना थक जाते हो । रामनाथ बोला और तुम भी तो सारा दिन कपड़े प्रैस करते-करते थक जाती होगी। तुम्हारा मन भी तो करता होगा कि कि मैं आराम करूं पर क्या करें हमें आराम करने के लिए समय ही नहीं मिलता । रामप्रकाश की पत्नी बोली ठीक है ना, तुम भी व्यस्त रहते हो और तंदुरुस्त भी रहते हो । मैं भी तो स्वस्थ हूं ।परंतु जिन लोगों के पास आवश्यकता से अधिक रुपया है तो उन्हें तो रात को नींद भी नहीं आती होगी ।हम इन रुपयों को कहां पर सुरक्षित रखें । रात को डर के मारे नींद इसलिए नहीं आती होगी कि कोई हमारे रुपयों को को चोरी करके न ले जाए। दोनों ठहाका लगा कर हंसने लगे।राम
प्रकाश बोला कि मैं लोगों से कपड़े लेने जा रहा हूं। रामप्रकाश बाहर निकल गया जब वह सारे कपड़े लेकर आया तो उसकी पत्नी एक-एक कपड़े को गिनने लगी तभी एक पेंट में से उसे एक आई-कार्ड टिकट ,एटीएम कार्ड और लाइसेंस मिला ।उसने सारी बात अपने पति को बताई ।रामनाथ को पता चल चुका था कि बैंक अधिकारी अपने पैंट की जेब में से अपनी वस्तुएं निकालना ही भूल गए थे। उनकी पत्नी मायके गई हुई थी। रामनाथ सीधे बैंक अधिकारी महोदय के घर गया और बोला ठाकुर साहब आपतो अपना आईडैन्टटी कार्ड, लाइसेंस और एटीएम कार्ड सभी अपनी पैंट में भूल गए थे ।आपकी टिकट्स भी इस में हैं। बैंक अधिकारी महोदय की पत्नी भी मायके से वापिस आ चुकी थी ।वह बोली आप तो भुलक्कड़ ही रहेंगे एक दिन को मैं मायके क्या गई आप कोई भी काम ठीक ढंग से नहीं करते हैं । वह बोली, राम प्रकाश भाई साहब आपका धन्यवाद।आप की ईमानदारी देखकर मैं बहुत ही खुश हू। । वह भी आपने लौटा दिया। आज ही लॉटरी का परिणाम भी घोषित होगा ।यह कहकर उसने लॉटरी का टिकट श्यामनाथ को पकड़ा दिया। रामनाथ की ईमानदारी को देखते हुए उनकी पत्नी ने उन्हें ₹5000 दे दिए इतने सारे रुपए पाने पर रामनाथ बहुत खुश हो रहा था ।उसके साथ उसका छोटा बेटा भी आया हुआ था ।वह टॉफी टॉफी चिल्लाने लगा। श्यामनाथ के पर्स से टॉफी नीचे गिर गई थी। । वह जब पर्स में से कुछ निकल रहा था तो कुछ कागज नीचे गिर गए थे लेकिन श्यनाथ फोन में व्यस्त था। रामनाथ का बेटा बंटी सोफे के पास के पास नीचे उतरकर खेलने लगा उसे सोफे के पास नीचे टिकेट दिखाई दी। उसको टिकटें इकट्ठे करने का शौक था। वह रोज अपने पापा से कार्ड और टिकट ले लेता था वह टिकट टिकट करता हुआ सोफे के पास गया। उसने टिकटें उठाई और जेब में डाल दी तभी उसकी नजर टौफी पर गई। वह टिकट को भूल गया और टॉफी खाने में मस्त हो गया। रामनाथ ने बैंक अधिकारी महोदय को कहा कि अब मुझे इजाजत दे दीजिए आज तो मैंने चाय भी पी ली और ईनाम भी ले लिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बाबूजी ।बैंक अधिकारी श्यामनाथ की पत्नी ने जब टिकट का नंबर देखा उनकी लॉटरी लग चुकी थी ।उसने नंबर अपने पर्स में लिखकर किसी कागज पर लिखा हुआ था। ।वह बहुत ही खुश हुई क्योंकि आज वह अपने आप को दुनिया की सबसे अमीर औरत महसूस कर रही थी । आज उसे 700,000 रुपए मिलने वाले थे ।उसने जल्दी से बाजार जाकर अच्छे गहने खरीदें और बहुत सारा सामान खरीदा फ्रीज TV और कीमती सामान उसने दुकानदार को कहा कि इन सभी चीजों का भुगतान मैं आज शाम को कर दूंगी। आज ही तो मेरी लॉटरी लगी है। उसने अपने घर में अपनी सारी सहेलियों को भी निमंत्रण दे दिया था ।सब लोग पार्टी का आयोजन कर रहे थे । सभी पार्टी में मस्त थे । सुनंदा ने देखा कि अखबार वाले उनका फोटो लेने के लिए आ रहे थे ।लॉटरी के मैनेजर महोदय ने कहा कि आपकी 7,00,000 की लौटरी निकली है आप लॉटरी का टिकट हमें दे दो । हम आपको ईनाम की रकम दे देंगे। सुनंदा ने अपने पति को कहा की टिकट आपके पर्स में पड़ा है । श्याम नाथ ने अपने पर्स की एक-एक जेब कर चेक कर दी मगर उसे कहीं भी टिकट नहीं मिला। सुनंदा निराश हो चुकी थी ।उसने तो ढेर सारे उपहार और पार्टी का आयोजन 20 -30 लाख तो उसने गहने और सामान खरीदने में गंवा दिए थे सुनंदा और उसका पति श्याम नाथ बहुत ही पछता रहे थे ।रामनाथ ने तुम्हें टिकेट वापिस कर दिया था। रामनाथ तुम्हें लॉटरी का टिकट वापस देकर भी गया मगर हमारे भाग्य में रुपया होगा ही नहीं वर्ना टिकेट इस तरह गुम थोड़े ही होता।
रामनाथ घर आ गया उसने अपनी पत्नी और बच्चे के साथ होटल में जाकर खाना खाया और बच्चों को नए नए खिलौने भी खरीदे। एक दिन रामनाथ की पत्नी ने उसे कहा कि चलो अब अपने घर वापस चलते हैं क्योंकि हमें यहां ज्यादा रुपया नहीं मिलता है। वहां तो हमारा अपना मकान है यहां तो किराया भी देना पड़ता है । वह दोनों अपने शहर जाने के लिए तैयार हो गए। रामनाथ अपने सभी मोहल्ले वालों से बड़े सम्मान से मिला और उसने कहा कि आप सब लोगों से हमें बहुत प्यार मिला। परंतु मैं अब अपने गांव वापस जाना चाहता हूं।सभी मोहल्ले वालों ने उसे बड़े सम्मान से विदा किया। उन्होंने गाड़ी के टिकट भी बुक करवा लिए थे ।जब शाम को ट्रेन मे टिकेट-चैकर आया।वह बोला टिकेट दिखाओ छोटे से बच्चे ने अपने पापा को कहा यह लो और जेब में से टिकट निकालकर अपने पापा को दे दिया। रामनाथ ने देखा वह तो लॉटरी का टिकट था। सामने अखबार पढ़ा हुआ था। रामनाथ थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा था। उसने देखा कि इस नंबर की ही तो लॉटरी निकली है। बार-बार इस नंबर को दस बार पढ़ा खुशी के मारे उसका बुरा हाल था। उसने अपने पत्नी को सारी बातें बताई। वह बोली हमारे बेटे के पास यह टिकट कहां से आया शायद यह टिकट उसे यहीं पर मिला होगा तभी रामनाथ ने कहा कि मैंने तो वह लॉटरी का टिकट बाबूजी को पकड़ा दिया था। परंतु यह टिकट तो मेरे बेटे की जेब में मिला था रामनाथ की पत्नी बोली भगवान ने हमारी झोली में खुशियां भर दी है ।लॉटरी केंद्र में जाकर ईनाम के 7,00,000 रुपए प्राप्त किये। उसकी पत्नी ने कहा कि अब हम इन रुपयों में सबसे पहले एक वाशिंग मशीन और एक ड्राइक्लीन की मशीन खरीदेंगे हम रुपया पाकर लालच नहीं करेंगे ।हम अपनी मेहनत को यूं ही बरकरार रखेंगे हम पहले की तरह ही मेहनत करके अपने बच्चों को ढेर सारी खुशियां देंगे । हमारे बच्चों की पढ़ाई के लिए भगवान ने प्रबंध कर दिया है ।हमारी मेहनत यूं बेकार नहीं गई ।दोनों ने भगवान का धन्यवाद किया और खुशी-खुशी अपने घर वापिस लौट आए।