दिव्यांग

लखू  बचपन से ही एक अपंग हीन बालक पैदा हुआ था। उसकी दोनों टांगे बचपन से ही टेढ़ी थी। उसे समझ भी और बच्चों की अपेक्षा कम ही आता था। माता-पिता ने उसका किसी न किसी तरह उसका ऑपरेशन करवा दिया था। वह चलने लग गया परंतु बुद्धि से वह बहुत ही नासमझ था। जब भी स्कूल जाता अपना सामान इधर-उधर फैलाना पढता तो बिल्कुल भी नहीं और सारे दिन इधर-उधर घूमते रहना। गंदे हाथों से खाना। खाना  यह सब बातें उसके माता-पिता  को पसंद नहीं थी। उसकी माता ने तो यह स्वीकार कर लिया था कि उसे समझ में नहीं आता है। उसके पापा सारा गुस्सा उस छोटे से लखन पर निकालते थे। जब वह कोई गलत काम करता तो उसके पापा उस पर हाथ उठाते तो कभी-कभी तो छड़ी से उसकी धुनाई कर देते। स्कूल में उसके अध्यापक अगर वह काम करके नहीं लाता तो उसके अध्यापक अध्यापिकाएं उसे बेंच पर खड़ा कर देते। छड़ी से पिटाई करते। और मॉनिटर उसे खड़ा करता यहां तक की बस का कंडक्टरभी। सारे के सारे लोग उस पर चिल्लाते। घर में जैसे ही शाम को थक कर आता  उसके  पापा  वह पढ़ता नहीं  तो उसको मुर्गा बना देते। उसके कक्षा में कम

अंक आए तो उसके पापा ने आते ही कहा हमारे साहबजादे पढ़ाई पढ़ाई तो करते नहीं मटरगश्ती करते रहते हैं। सुबह सुबह उठ जाते हैं। यह नटखट पक्षियों की गुंजन सुनने में ही मस्त रहते हैं या बंसी बजाने में चौबीस घंटे मस्त रहते हैं। अगली बार अगर तुम्हारेअच्छे नंबर नहीं आए तो हम तुम्हारी बांसुरी छीन लेंगे। बेचारा लखन किसके पास अपनी फरियाद लेकर जाए। उसे तो कोई समझता ही नहीं है।

 

वह कितनी बार समझने की कोशिश करता है पर उसे कुछ भी समझ नहीं आता है। सब के अच्छे अंक आते हैं परंतु हे भगवान अगर इस बार मैं फेल हो गया तो मेरे पापा, मेरी बंसी तोड़ देंगे। यही तो ले देकर एक बची है जिस की मधुर तान से मेरा मन मुग्ध हो जाता है। मेरा मन शांत हो जाता है नहीं तो मेरे-दिमाग में एक ही शब्द घूमते रहते हैं। चलो   बेंच पर खड़ा हो जाओ। काम नहीं कर के लाए। पापा की मार। आदि से खाना नहीं देना। जब तक इसको मुर्गा नहीं बनाएंगे सारे के सारे मेरे पीछे पड़ गए हैं। यह तो इस बार मेरी पन्द्रहवीं बांसुरीहै। अबकी बार तो पापा की हिदायत है कि मैं फेल हो गया तो  तेरी बांसुरी तोड़ देंगें। बड़ी मुश्किल से जो मां रुपए मुझे देती है उससे मैं हमेशा बांसुरी ही तो खरीदता हूं। मेरी बांसुरी ही तो मेरी जान है। क्योंकि जब मेरे पास बांसुरी होती है तो मेरा मन को शांत हो जाता है। वर्ना दिमाग में यही सब घूमता रहता है तुम बुद्धू हो। नालायक हो मंदबुद्धि हो। और ना जाने क्या-क्या हो।

 

मैडम की क्लास में मैडम की क्लास में आते आते ही मैं सब भूल जाता हूं। और घर में पापा के मुर्गा बनाने पर भी। कई दिन तक मुझे खाना भी नहीं देते हैं। प्यार करना तो दूर की बात अब तो शायद इस घर में मेरे लिए भी जगह भी नहीं होगी। क्योंकि मुझे तो कुछ भी याद नहीं होता है। इस बार भी स्कूल में अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम घोषित कर दिया गया था। इस बार पास भी नहीं हुआ।

 

मेरे कानों में सीटी बजने लगी। मैंने अपने कानों को अपने हाथ की उंगलियों से बंद कर दिया घर में पहुंचा ही था तो मां को मेरे भाई ने बता दिया कि मैं पास नहीं हुआ। मेरी मां ने मुझे कुछ नहीं कहा मेरे पापा ने मेरे आते ही मेरी किताबेंं जोर जोर से बाहर फेंक दी। और मेरी बांसुरी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। किताबों का तो मुझे दुख नहीं हुआ परन्तु जब उन्होंने मेरी बांसुरी तोड़ी तो मेरे दिल के टुकड़े टुकड़े हो गए। मुझे अपने पापा एक दैत्य के रूप में दिखाई दिए। जिन्होंने जानबूझकर मेरी बांसुरी तोड़ दी थी। मैं गुस्से के मारे एक पेड़ के पास जाकर जोर-जोर से उस पर पत्थर मारने लगा ना जाने मैंने उस पर पेड़ पर कितने पत्थर मार दिए। अपने मन के गुबार को निकालने के लिए मुझे कुछ ना कुछ तो करना ही था। मेरे पापा ने मेरी मां को कहा कि तुम्हारे लाड प्यार नें इस को बिगाड़  दिया है। है आज के बाद इसको खर्च करने के लिए कुछ भी रुपए नहीं मिलेंगे। तुमने अगर इसको रुपये दिए तो वह उससे उस की बांसुरी खरीद कर ले आएगा। मैं भी इतना ढीठ हो चुका था कि मार पिटाई का मुझ पर कोई असर नहीं होता था। दुख होता था तो अपनी बांसुरी जाने का।

मेरे एक दोस्त ने मुझे तीरकमान   दिया था। मैं बिना किसी को कुछ कहे पेड़ के पास जाकर निशाना लगाने लगा। इस तरह निशाना लगाते लगाते ना जाने कितने दिन हो गए जब कभी मां डांटती पिता डांटते स्कूल में डांट पड़ती तो सीधा उस पेड़ के पास जा पत्थर पर निशाना लगाता। इस तरह निशाना लगाते लगाते न जानें कितने दिन हो गए। इस तरह वह आज पर अपनी भड़ास निकालता।

पापा ने तो मेरा वहां जाना भी बंद कर दिया। हरदम पिटते रहने के कारण मेरे शरीर पर नीले निशान पड़ गए। टांगो से थोड़ा-थोड़ा चला जाता था। परंतु कई बार सोचता यह बच्चे कैसे याद करते होंगे। मैं अंग्रेजी का सी उल्टा लिखता और नौ को पी लिखता। इस बार जब मैं फिर फेल हुआ तो मेरा मन किया कि मैं यहां से भाग कर चला जाता हूं। उस समय मेरी आयु छःवर्ष की थी। मैं अपने पिता की मार से बचने के लिए पेड़ के पास आकर निशाना लगा रहा था तो एक अंकल आकर बोले बेटा तुम तो बहुत ही अच्छे तीरंदाज हो। तुम्हारा निशाना तो बहुत ही सही लगता है। उन अंकल को देखकर मेरा मन कितना खुश हुआ। कोई तो है जो मेरी प्रशंसा कर रहा है। उनके इतना कहने पर मैं जोर जोर से रो पड़ा। अंकल मैं यंहा  तीरंदाजी करने नहीं आता। अंकल मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता। क्योंकि मेरा दिमाग सब बच्चों की तरह नहीं है। मुझे याद ही नहीं होता। स्कूल में सारे अध्यापक मुझे मारते हैं। घर में मम्मी पापा स्कूल में मुर्गा मैडम बनाती है और घर में पापा। जब सुबह उठता हूं तो मैडम का चेहरा याद आता है जो याद करके नहीं लाएगा उसे सजा मिलेगी। मेरे दिमाग में पढ़ाई आती ही नहीं। और घर में पापा अगर यह नहीं पढा तो उसको खाना नहीं मिलेगा। अंकल मेरे दिमाग में कुछ आता ही नहीं।

 

बच्चे की सच्चाई सुनकर वह व्यक्ति बहुत ही दुखी हुआ। इस नन्हे से बालक के अन्तर्मन को किसी ने नहीं पहचाना। इसको अपनी बांसुरी बजाने से इसका दर्द हल्का हो जाता था। उसका मन शांत हो जाता था। परंतु इन्होंने तो उसे उसके जीने का सहारा ही छीन लिया। उन अध्यापकों को मैं क्या कहूं? इस बच्चे को तो प्यार से सुधारना चाहिए था। क्योंकि एक तो यह बच्चा बड़ी मुश्किल से चल सकता है। इसकी टांगों का इलाज हुआ। और यह बच्चा याद नहीं कर पाता तो इसमें इस बच्चे का क्या दोष। जिन बच्चों को तो समझ में आता है तो उन बच्चों को तो कोई भी समझा सकता है। ऐसे बच्चों को ज्यादा पढ़ाने का क्या मतलब उन्हें तो इस बच्चे को सुधारना चाहिए था। अगर इस बच्चे को थोड़ा सा भी पढ़ाई सिखाते तो भी असली गुरु साबित होते। परंतु उन्होंने भी इस बच्चे में छिपी प्रतिभा को भी नहीं पहचाना।

 

माधो प्रसाद ने उस बच्चे के घर में जाकर उस बच्चे के पापा को कहा कि आपको अपने बच्चे को डांटना नहीं चाहिए। उन्होंने तो माधव प्रसाद जी को भाषण देना शुरु कर दिया तुम हमारे घर में टांग अड़ाने वाले कौन होते हो? माधवराम बच्चे के स्कूल में गया। उसकी कक्षा अध्यापक को बताया कि यह बच्चा प्यार से सब कुछ सीख सकता है अगर आप इस बच्चे को सुधार सको तो मैं समझूंगा कि आपने एक सच्चा गुरु होने का फर्ज पूरा किया है। मैडम ने भी माधवराम को खरी खोटी सुनाई। आप का क्या मतलब है।? हम स्कूल में बच्चों को पढ़ाते नहीं मुफ्त की तनख्वाह लेते हैं। निराश होकर माधवराम जी स्कूल के हैड मास्टर साहब से मिले बोले आपके स्कूल में एक बच्चा है लखन। वह मानो मंदबुद्धि है परंतु आप इस बच्चे पर अगर ध्यान दें तो वह भी और बच्चों की तरह पढ-सकता है आप इस बच्चे के साथ सख्ती मत करें।  हैडमास्टर साहब  बोले हमको आपसे ज्यादा पता है। तीस साल हो गए पढ़ाई लिखाई करवाते करवाते हमें पढानें के सिवा स्कूल में और भी दायित्व पूरे करने पड़ते हैं। आपने देखा है कि सारा साल होने को आया इस बार भी इस बच्चे के पांच अंक आए हैं। यह बच्चा जिंदगी में कभी सफल नहीं हो सकता। इतने नकारात्मक विचारों वाला हेडमास्टर बच्चों को का भविष्य उज्जवल कैसे बना सकता है।  उस बच्चे को लेकर मैं चला आया। कहीं ना कहीं उस बच्चे के प्रति अपनत्व की भावना और उसका मासूम सा चेहरा देखकर माधवराम बहुत दुखी होते कि इस बच्चे को उसके मां-बाप  भी न समझ सके और इस को शिक्षा देने वाले गुरु जी भी इसके साथ  इसके साथी जो हरदम इसके साथ खेलते हैं वह भी उसे बुदधु ना जाने क्या-क्या कहकर चिढ़ाते। इस प्रकार सुनकर अपने आप को कोसता है इससे पहले कि वह बच्चा कोई गलत कदम उठा सके उसे गिरने से उठाना मेरा फर्ज है। क्या हुआ जो मेरा इस दुनिया में कोई नहीं। शायद यही एक बच्चा है जिसको सुधारनें के लिए भगवान ने मुझे भेजा है। मैं इस बच्चे के भविष्य को उज्जवल बनाकर ही दम लूंगा।

 

लखन घर पहुंचा था उसके पिता ने उसे डांटा कि बेटा अब तो तुम्हें स्कूल से भी निकलना होगा। मैं तुम्हें और नहीं पढ़ाऊंगा। लखन कमरे में जोर जोर से रोने लगा। उसे मनाने वाला वहां कोई नहीं था। उसकी मां को भी लखन के पापा ने डांट कर चुप करा दिया था कि उसको मनाने  से कोई फायदा नहीं अगर तुम उसको मनाओगी तो मैं तुमसे भी बात नहीं करूंगा। भाई से भी बात करने के लिए माता-पिता ने मना कर दिया था। लखन अपने आप को बिल्कुल असहाय और अकेला महसूस कर रहा था। उसने नन्हें से बच्चे को गुमसुम बैठे हुए तीन दिन हो चुके थे। उसके  साथ घर में किसी ने भी बात नहीं की थी। निराश हो कर वह अचानक घर से चला गया। उसको नदी के पास जाते हुए माधवराम ने देख लिया। वह भी लखन के पास पहुंचने के लिए जल्दी-जल्दी उसके पिछे दौड़ने लगे। तभी लखन ने कुंए में छलांग लगा दी। वह छोटा सा बच्चा अपनी जीवन लीला समाप्त करने चला था। उसको छलांग लगाते देख माधवराम ने उस बच्चे को बचाने के लिए उन्होंने भी छलांग लगा दी और उस बच्चे को बचा लिया। उन्होंने उस बच्चे के कपड़े खोले और उसे अपनी धोती से पौंछा। बच्चे को तैरना भी नहीं आता था। माधवराम जी उस बच्चे को नहीं  बचाते तो बच्चा डूब कर मर जाता।

 

माधोराम जी बहुत ही गुस्सा आया पता नहीं इस बच्चे के मां बाप किस मिट्टी के बने हैं। उन्होंनें उस बच्चे को अपने घर ले जाकर  सुला दिया। वह बच्चा बच चुका था।

परंतु अभी थोड़ा थोड़ा  बेहोश था। माधोराम जी जल्दी  से उस बच्चे के घर पहुंचे अन्दर से जोर जोर की  आवाज़ें आ रही थी।उसकी मम्मी कह रही थी कि  लाखन कहीं चला गया है। लखन के पापा बोले अच्छा ही हुआ  जो वह यहां से चला गया अच्छा होता वह कभी यंहा लौट कर न   आता। मैं तो उसकी शक्ल भी देखना नहीं चाहता। उसका होना या ना होना मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

 

माधुराम ने यह शब्द सुने तो माधव रामजी लखन के माता-पिता से बिना मिले ही वापस अपने घर आ गए। कुछ दिनों के लिए अपने कस्बे में छुट्टियों में आए थे। उन्होंनें  अपने और लखन का टिकट बुक करवा लिया उन्होंने निश्चय कर लिया कि इस बच्चे का भविष्य यहां नहीं बन सकता। यहां पर तो यह बच्चा मर जाएगा यह पागल हो सकता है। वह उसे  लेकर मुंबई आ गए। वंहा बड़े प्यार से उसकी परवरिश करने लगे। माधोराम अपने आप ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे परंतु उस बच्चे को शिक्षा देने के लिए उन्होंने स्वयं पढ़ना शुरू किया। और शाम को जो वे पढ़कर आते उस बच्चे को सिखाते। इस प्रकार उस बच्चे को बार-बार अभ्यास से खेल के माध्यम से संगीत के माध्यम से  बच्चा पढ़ने में सफल हो गया। उसे बांसुरी बजाने तो बहुत ही अच्छी आती थी साथ ही साथ उसके मुंह बोले बाबा ने उसे संगीत  सिखाना शुरू कर दिया। संगीत में तो उसकी इतनी अधिक रुचि हो ग्ई। वह इतना अच्छा गायक बन गया। यह सब  उन की मेहनत का नतीजा था जो बच्चा कुछ पढ लिख नहीं सकता था उसको बी ए तक पढ़ाया और वह एक बहुत ही प्रतिभाशाली संगीतकार बन गया। बड़े बड़े कार्यक्रमों में भाग लेता। सब लोग उस के गानें और उस की बांसुरी की तान को सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते। सब उसे  लखू कह कर बुलाते थे। बड़े-बड़े कार्यक्रमों में उसे बुलाया जाता था। वह एक महान कलाकार बना चुका था।

संगीत के मंच पर जब उसका चुनाव हुआ तो खुशी के मारे उसके  बाबा की आंखों में खुशी के आंसू थे। उन्होंने उसे एक प्रतिभावान कलाकार बना दिया था। जब उसने अपने मधुर संगीत से सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया तो वहां पर बैठे हुए जज ने कहा बेटा सब के माता-पिता यहां आए तुम अकेले आए हो।  वह बोला मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। ले देकर एक बूढ़े बाबा है जो आजकल बहुत ही बीमार है। उन्हें छोड़कर मैं यहां आया हूं ताकि अगर मैं सेलेक्ट हो जाऊं तो मैं अपने बाबा को  ढेर सारी खुशियां दे सकूं। मेरे असली माता-पिता ने तो मुझे जब मैं दससाल का था घर से निकाल दिया था। परंतु अब इन बाबा के सिवा मेरा कोई नहीं है । जज महोदय ने उसके घर फोन  लगाया। उन्होंने उसके बाबाको बताया  कि आपका बेटा ट्रॉफी जीत चुका है

 

यह सुनकर उसके बाबा बड़े खुश हो कर बोले यह बच्चा मुझे फरीदाबाद में मिला था। उसके मां-बाप और उसके अध्यापकों ने उसे सदा के लिए यह कह कर छोड़ दिया था कि यह बच्चा बहुत मंदबुद्धि था। यह जिंदगी में कभी सफल नहीं हो सकता। उन्होंने उसे उसका जीवन बनाने से पहले उसे मारने के लिए छोड़ दिया। मैंनें इस बच्चे को डूबने से बचा लिया और इस को यहां लाकर खुद पढ़कर इसको पढ़ना सिखाया और इसके अंदर छुपी हुई प्रतिभा को जगाया। इसके पिता ने तो इसकी बांसुरी तोड़कर फेंक दी थी। और एक दर्दनाक   टीसऔर दुखों के  सिवा इस बच्चें को कुछ भी नहीं मिला। इसके अध्यापकों ने  जो इसके गुरु कहलाते  थे उन्हें यह कहकर ठुकरा दिया कि अभी यह बच्चा कभी भी कुछ सीख नहीं सकता। यह कहीं  भी सफल नहीं हो सकता। आज आप इन सब को फोन लगा कर इन्हें  इस बच्चे की काबिलियत को दिखा दो  कृपया कर के एक बार इस के घर फोन लगा कर और इस के गुरुजनों को। मैं आप को नम्बर देता हूं।   मैंने तो इसे एक नेक इंसान बनाया और अब तो वह इतना तेज है इसे  सब कुछ समझ आता है। बच्चे के दिमाग में डंडा बेंत या पढ़ना, पढ़ना है पढ़ना है हरदम ऐसे में बच्चा कभी नहीं पढ नही सकता। उसका दिमाग कभी विकसित नहीं हो सकता।

उसके घर जाकर महोदय नें  फोन लगाया। उन्होंने  जब एक सुंदर नवयुवक को मंच पर गाते हुए देखा तो उन्होंने कहा कि आप किस के किस से बात करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लखन के माता-पिता से। उन्होंने लखन को पहचाना तक नहीं क्योंकि जब वह हादसा हुआ था वह छः वर्ष का था। लखन नाम सुनकर वे चौंक कर बोले  कि हमारा लखन तो मर चुका है

  • हमें नदी में उसके कपड़े मिले थे। हमने तो उसे मरा समझ लिया था।  जजमहोदय बोले यही आपका लखन। गुरुजनों नें जब फोन सुना कि लखन एक प्रसिद्ध संगीतकार बन चुका है तो उन सभी को अपनें किए पर पश्चाताप हुआ उन सभी नें उसे आशीर्वाद दिया। अपने बेटे के हुनर को देख कर उन्हें अपने किए पर बहुत ही ग्लानी हुई। वह  फूट फूट कर रो पड़े। बोले बेटा हमनें तुम्हें बहुत सताया। मैंने तुम्हारे अंदर छिपे कलाकार को नहीं समझा। और  कहीं ना कहीं तुम्हारे अध्यापक भी इसके लिए जिम्मेवार थे। हमें माफ कर दो बेटे। लखन ने कहा मां पापा मैंने आप दोनों को माफ कर दिया। परंतु मेरे असली बाबा तो वही है जिन्होंने मुझे इस काबिल बनाया। मैं उन्हीं के पास रहूंगा कभी मुझसे मिलने की इच्छा हो तो आ जाया करना।

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