सविता और शशांक के परिवार में दो प्यारे प्यारे छोटे बच्चे मिष्टी और मयंक। एक दिन मिष्टि और मयंक दोनों भाई बहन दौड़ते-दौड़ते स्कूल से आए। आते ही मयंक नें अपना बस्ता कमरे में फेंका और चुपचाप दौड कर मां के गले लग कर बोला मां जल्दी खाना दो। भूख लगी है। मां उसको लाड प्यार करती हुई बोली आ बेटा मैं तुम्हें खाना खिला दूं। मां अपने हाथों से उसे खाना खिलाने लगी। पास में ही मिष्टि बैठी थी। वह बोली मेरे मुंह में भी डाल दोगी तो आपका क्या जाएगा? उसकी मां बोली बेटा ऐसा नहीं सोचते। वह छोटा है इसलिए उसे ज्यादा लाड़ प्यार करती हूं। मां कहती है कि लड़का और लड़की दोनों में अंतर नहीं करना चाहिए। यहीं पर तो अंतर साफ नजर आ गया। मीष्टि का मन हुआ की सबके सामने जोर से कह दे परंतु चुप हो गई। इसको तो कुछ नहीं कहती है। चाहे बस्ता पटके। मुझे ही कहती है। बस्ता ठीक ढंग से रखो।
एक दिन जब मयंक स्कूल से आया तो बोला मां मैं खेलने जाऊं उसकी मां बोली। हां बेटा जा। मीष्टी बोली मैं खेलने जाऊं। मां बोली अभी नहीं। उसको गुस्सा आ गया अपने लाडले बेटे को बाहर जाने पर कुछ नहीं कहती मुझे बाहर खेलने को भी मना करती हो। मुझे तो शायद प्यार ही नहीं करती। यह सब दिखावा है। सबके सामने दिखाने को तो कह देती है बेटी बेटा बराबर है। अगर बेटी बेटा बराबर है तो मुझे क्यों मना करती है? एक दिन बुआ घर पर आई हुई थी। उसकी बुआ सविता अहमदाबाद की रहने वाली थी। उसके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटा एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था। और बेटी कॉलेज में पढ़ रही थी। वह अपने बेटे की शादी का निमंत्रण कार्ड देने के लिए आई थी। बुआ कुछ दिनों के लिए घर पर आई हुई थी। पापा से मिलने कभी-कभी महीने में एक चक्कर लगा लेती थी।
उसकी बीना बुआ मयंक को प्यार करते हुए बोली बेटा इधर आ मैं तुझे बर्फी लाई हूं। उसने बर्फी के दो टुकड़े मयंक के हाथ में रख दिए उसके बाद मिष्ठी को बुलाया। ले बेटा एक ही टुकड़ा बचा है। यह तू खा ले। मीष्टी बोली बुआ मयंक को दो टुकड़े और मुझे एक ऐसा क्यों? वह बोली बेटा यह छोटा है इसलिए। मीष्टी बोली ऐसा नहीं है। आपकी और मां की सोच एक ही जैसी है। बेटी और बेटे में अंतर करते हैं। मैं आप दोनों को समझाना चाहती हूं कि बेटा और बेटी दोनों समान होते हैं। बेटे को उतना ही प्यार करो जितना बेटी को करते हो। बीना अपनी भाभी सविता से बोली भाभी तुमने अपनी बेटी को यह क्या शिक्षा दी है? उसे समझाएं बड़ों के सामने जुबान नहीं खोलते।मिष्टी दौड़ती हुई आई बुआ क्या कहा? क्यों जुबान नहीं खोलते? मैं तो कहूंगी। आप लोगों को सत्य सुनना कड़वा लगता है मैं बच्ची नहीं हूं मां। मैं आठवीं कक्षा में आ चुकी हूं। अच्छा बुरा दोनों पहचान सकती हूं। मैं अब बच्ची नहीं हूं।
उसकी बुआ बीना बोली मीष्टी चाय बना दे। चाय पीने का मन कर रहा है। वह बोली मां भैया से कहो। आज वही आप दोनों को चाय बना कर देगा। उसकी मां बोली रहने दे तू नहीं बनाना चाहती तो ना सही। मैं ही बना देती हूं। वह बोली नहीं मां आज तो मयंक ही चाय बनाएगा। वाकई तुम मुझसे चाय बनाने वाली हो। मुझे तो चाय बनानी आती ही नहीं। मीष्टी बोली नहीं आती तो सीख ले। मैं तुम्हें बताती हूं कि चाय कैसे बनती है? जल्दी चल। मिट्टी की बुआ बोली मुझे चाय नहीं पीनी है। मीष्टी बोली वह देखो अंतर। आप समझते नहीं हो यही तो अंतर है।
आप मुझे कहते हो कि बर्तन साफ कर दो कभी आपने मयंक को कहा है बर्तन साफ कर दो। क्योंकि यह एक बेटा है? इसलिए इसके अंहम को ठेस पहुंचेगी तो बेटी के क्यों नहीं? जो काम बेटा कर सकता है वह बेटी क्यों नहीं? आज से आप जो कहते हो वही करा करो। कथनी और करनी में बड़ा अंतर होता है।
एक दिन जब उसकी शादी होगी उसकी बहू आकर बोलेगी किआज मयंक चाय बनाएंगे तब आप क्या करेंगे? अगर वह मयंक को काम करने के लिए कहेगी? उसकी मां बोली ऐसा कभी नहीं होगा। ऐसी बहू मैं ले कर ही नंहीं आऊंगी। नहीं मीष्टी बोली आप तो नहीं लाएंगे। मगर बड़ा होकर वह अपने मनपसंद की लड़की को लेकर घर आ गया तो क्या होगा? सविता सोचनें लगी यह बात तो ठीक ही कह रही है। अगर ऐसा होगा तो क्या होगा? उसकी बुआ भी सोचनें लगी आज तक मैंने भी अपने बेटे से कोई काम नहीं करवाया। मेरी मेघना सारे घर का काम संभालती है। उसकी भी शादी होने वाली है। वह तो ट्रेनिंग करने गई है। अगर मेरी बहू ऐसी आई जो काम मेरे बेटे से करवाएगी तो क्या होगा? वह सोचने लगी।
मां को याद आ गया कि एक दिन शशांक घर पर नहीं थे। मिष्टी भी कैंप में गई हुई थी और मेरी तबीयत भी ठीक नहीं थी। उस दिन मैं तो भूखी ही रह गई थी। खाना बिना खाए ही सो गई थी। मयंक को तो उसने कुछ भी सिखाया नहीं था। शशांक से भी कभी काम करनें को कभी भी नहीं कहा। सब कुछ अपनें आप करती रही। मिष्टी अपनी मां से बोली मां मेरी बात सुनो आप मयंक से कभी भी काम नहीं करवाती। आप उस सेभी थोड़ा थोड़ा काम करवाया करो।
मां कल को मेरी शादी होगी कभी मेरा अपने ससुराल में काम करने को मन नहीं कर करेगा तो अगर मेरा पति मेरा काम में हाथ बटाएं तो इसमें क्या बुराई है? कोई बुराई नहीं है? ना अगर मेरे परिवार में सभी काम करने वाले होंगे तब कितना अच्छा होगा। उन्हें मिष्टी की बातों में सच्चाई नजर आई।
उसकी बुआ बीना अपने घर अहमदाबाद चली गई थी। सविता और शशांक वह भी अहमदाबाद जाने की तैयारी करने लगे। मिष्ठी और मयंक भी खुश थे वह इतने दिनों बाद शादी में जाएंगे। सब के सब अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन में चढ़ गए। ट्रेन आने में अभी दे रही थी। मयंक बोला मैं जा कर देखता हूं ट्रेन कहां लगी है? इतने में मीष्टि बोली में भी जाकर देखती हूं। मां नें उसका हाथ पकड़ लिया। नहीं तू नहीं जाएगी। वह बोली मां मैं कोई छोटी बच्ची थोड़ी हूं जो मैं गुम हो जाऊंगी। उसकी मां बोली नहीं तू नहीं जाएगी। मिष्टी को बड़ा गुस्सा आया। वह अपनी मां से बोली भी नहीं। यह अंतर नहीं तो क्या है?
वे अहमदाबाद पहुंच गए थे। उसकी बुआ बीना बोली आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई। शशांक बोला नहीं बहना। चारों तरफ शादी की शहनाइयां गुंज रही थी। लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर इधर उधर घूम रहे थे।मिष्टी सोचने लगी शादी में तो बहुत ही मजा आएगा। मैं शादी में खूब मौज मस्ती करूंगी। उसने जींस और टीशर्ट पहन ली। उसकी मां बोली बेटा यह कुर्ता तुमने छोटा क्यों पहना? कमीज तो थोड़ा लंबा सिलवाती। आजकल की लड़कियों को दिखता ही नहीं ऐसे कपड़े पहनेंगे तो तुम पर लड़के छींटाकशी करेंगे नहीं तो और क्या? वह बोली मां आप कौन सी सदी में जीती हो। आजकल के रीति रिवाज के मुताबिक इंसान को वेशभूषा भी वैसे ही पहननी चाहिए। इसको पहनने में क्या बुराई है? मां बोली नहीं बेटा तुझे समझा रही हूं छोटा कमीज़ नहीं पहनी थी। वह बोली नहीं मैं तो पहनूंगी।। वह अपनी मां से बहस करनें लगी। मां मैं आप से बहस नहीं करना चाहती।
जमाने के मुताबिक इंसान को बदलना ही पड़ता है। मुझे मेरे संस्कार अच्छे ढंग से पता है। मैं सारे कार्य मर्यादा में रहकर ही करूंगी। इंसान को खाना पीना पहना तो अपने पसंद का होता है। मुझे भी अच्छा बुरा पता है। मांं कुछ नहीं बोली। चुपचाप चली गई। उसकी बुआ बीना बोली पता नहीं आप ने अपनी बेटी को कैसे संस्कार दिए हैं। यह तो आपकी बात मानती ही नहीं। मीष्टि बोली मां आप लोग दोनों समझती ही नहीं है मां बुआ मैं कोई गलत काम थोड़ी कर रही हूं। अगर मैं किसी लड़के से बात कर लूं तो आप तो यही सोचेंगे कि शायद यह मेरा मित्र होगा। आप मित्र का मतलब भी ठीक ढंग से नहीं जानती। यह सब पुराने रीति रिवाज का परिणाम है। उसकी बुआ कहने लगी कि जब हम बाहर जाते थे तो हमारे माता पिता हमें बाहर जाने से भी रोकते थे। अगर किसी लड़के से बात भी कर ली तो ना जाने घर में क्या हंगामा हो जाता था। पढ़ाई भी नहीं करने दी जाती थी। एकदम हाथ पीले कर दिए जाते थे। मिष्टी बोली मां आप दोनों अपनी जगह ठीक हो। मगर आज जमाना बदल गया है। आप लोगों को भी जमाने के अनुसार बदलना चाहिए। अगर अपनी सोच को इस नए युग में नए नहीं ढालेंगे तो आप कहीं ना कहीं दुखी रहेंगे। ना आप सुखी रहेंगे और ना ही आपके आसपास के लोग सुखी रहेंगे। उसकी बुआ बोली मैं तुमसे झगड़ा नहीं करना चाहती। जो तेरा दिल करता है कर। शादी के फेरे हो चुके थे। शादी करके घर में नई नवेली दुल्हन आ गई थी। सविता और उसके दोनों बच्चों की छुट्टियां समाप्त हो गई थी।
नई बहू को आए आए हुए एक हफ्ता हो गया था स्वेतलाना ने अपनी सासू मां के चरण छू कर उनसे आशीर्वाद लिया। उसकी सासू मां ने उसे कहा कि तुम मुझसे सब कुछ बोल सकती हो जैसे तुम अपने घर में रहती थी वैसे ही तुम यहां रहना। स्वेतलाना बोली मां जी मैं आज की पढ़ी-लिखी लड़की हूं। मैं स्वच्छंद वातावरण में पली-बढ़ी हूं। सुबह जब बीना उठी तो उसका सिर भारी था। वह कुछ बोली नहीं अपने मन में सोचने लगी कि क्या करूं? मिष्टी के मम्मी पापा दोनों वापस घर चले गए थे। मिष्टी वहां अकेली रह गई थी। बीना की बेटी भी अपनी ट्रेनिंग पर वापिस चली गई थी। घर पर बहू बेटा रह गए थे। बेटा भी ऑफिस चला गया था। शाम को थक कर जब आया तो उसकी पत्नी स्वेतलाना बोली आज तुमको ही काम करना पडेगा। आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। आज मैं खाना नहीं बनाऊंगी। तुम ही खाना बना दो। बर्तन भी तुम ही साफ कर देना। बीना यह सब सुन रही थी। बीना की तबीयत भी ठीक नहीं थी। उसके बेटे पंकज ने खाना बनाया। उसे खाना बनाना आता नहीं था। उस दिन बीना ने महसूस किया ठीक ही तो है औरत का भी तो अधिकार है आराम करने का। यह थोड़ी कि वह सारे घर का काम करती रहेगी। उसका भी मन करता होगा आराम करने का। मिष्टी ठीक ही कहती थी बेटा बेटी दोनों बराबर होते हैं। हम यहां अंतर क्यों करते हैं।? बेटे को भी तो काम करना आना चाहिए। आज मैंने महसूस किया कि बेटे को भी सभी काम करने चाहिए जो एक बेटी करती है। उसे अच्छे ढंग से संस्कार देने चाहिए उस पर बंदिश लगानी नहीं चाहिए। उसे अच्छे बुरे का फर्क समझाना चाहिए। सुबह जब बीना उठी तो बहुत ही खुश थी। वह अपनी बहू से बोली बेटी आज मैंने तुम्हारी सोच को अपना लिया है। ठीक है हमें पुराने रीति-रिवाजों को तोड़कर नई पीढ़ी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
मयंक मिष्टी को लेने आया था। सविता बोली चल मयंक रसोई में हमको चाय बनाकर पिला। आज तो चाय तुम्हीं पिलाओगे। मैं मयंक बोला बुआ मुझे चाय बनानी नहीं आती। वह बोली कोई बात नहीं मैं तुम्हें सिखाती हूं। मिष्ठी आज बहुत खुश थी। मेरी बुआ को मेरी बात समझ में आ गई। अब कुछ भी गड़बड़ नहीं होगा। स्वेतलाना बोली चलो मां जी आज फिल्म देखने चलते हैं। वह बोली चल बेटी। मीष्टी बोली बुआ क्या मैं जींस पहनकर चलूं। उसकी बुआ बोली मैंने तुझे एक जींन्स खरीदी है। वह तुझ पर अच्छी लगेगी। छोटा कुर्ता भी चलेगा। स्वेतलाना बोली हां हां हां तुझ पर जीन बहुत ही अच्छी लगती है। मैं भी तुझे एक दिन खरीद कर दूंगी। बीना बोली अब तो मुझे भी मार्डन बनना पडेगा। मैं भी साडी पहनना शुरु कर दूंगी। सारे के सारे हंसने लगे।