आनंद और आरुषि के परिवार में उनके दो बेटे और एक बेटी थी। आनंद ऑफिस में क्लर्क था। आरुषि स्कूल में शिक्षिका थी। हर रोज की तरह आनंद ऑफिस से जब घर आ रहा था उसके सीने में जोर से दर्द उठा उसने तुरंत अपनी पत्नी को फोन किया उसकी पत्नी भागी भागी अपने पति को लेने पहुंची।
वह अपने पति को लेकर अस्पताल पहुंची डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें हार्ट की बीमारी है इसके लिए उन्हें किसी पहाड़ी स्थान पर पन्द्रह दिन के लिए बाहर जाना होगा नहीं तो बहुत बड़ी नौबत आ सकती है। और उन्होंनें किसी पहाड़ी स्थान पर जाने की योजना बना ली थी। उन्होंने उसके लिए नैनीताल जाना उचित समझा और उसने अपना और अपने पति का टिकट भी बुक करवा लिया था।
उसके दो जुड़वा बेटे थे जोकि दसवीं कक्षा में आ चुके थे। एक छोटी बेटी थी प्यार से उसे चारु कहते थे। उसका पूरा नाम था चेष्टा था। उसके दोनों बड़े भाइयों का नाम अरुण और आरभ था। दोनों ही बडे़ उदंड थे। दोनों इतने शरारती इतने चंचल स्कूल से घर आते ही अपना बस्ता दूर पटकना अपने जूते हर कही फेंकना पैन कॉपी हर कही फेंक देना होमवर्क न करना खाना समय पर नहीं करना काफी देर तक सोए रहना और देरी से स्कूल पहुंचना। उसके मम्मी पापा को उसके इस बर्ताव से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह अपने दोनों बेटों को इतना अधिक प्यार करते थे रात के बारह बजे भी अगर उनके दोनों बच्चे किसी भी वस्तु की फरमाइश करते तो दोनों उन्हें उपलब्ध करवा ही देते थे। लाड प्यार ने उन दोनों को इतना बिगाड़ दिया था कि दोनों की सुधरने के मौके कम ही थे। चारु इन दोनों के विपरीत गंभीर हर एक काम को सोच समझ कर करना जरूरत से ज्यादा ही समझदार थी।
मां पापा को चिंता ही नहीं थी कि उनकी एक बेटी भी है वह तो सारा ध्यान अपने लाडले को भी देना चाहते थे। वह चारु को कहते बेटा झाड़ू लगा दो आज खाना तुम ही बना दो बेटा बर्तन तुम ही साफ कर दो। आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। वह छोटी सी चारु घर का सारा काम करती थी कभी-कभी तो खींच भी जाती थी। मां अपने लाडलों को तो कुछ नहीं कहती है इनसे भी काम करवाना चाहिए। कभी चारु कहती मां इन दोनों से भी काम करवाया करो तो मां टाल जाती कहती अगर तुमने भी नहीं करना है तो रहने दो मैं खुद ही कर लूंगी। चारू को बड़ा ही गुस्सा आता था घर में जब भी कोई चीज़ आती तो सबसे पहले उसके दोनों भाइयों को दी जाती बाद में चारुं को मिलती
कभी-कभी तो चारु सोचती अच्छा ही होता मैं जल्दी से बड़ी हो जाती और शादी करके अपने ससुराल चली जाती शायद वंही मुझे मेरी सासू मां का प्यार मिल जाए वह छोटी सी मासूम चारू सोचा करती जब दोनों बेटे कहते मां आज हमारे स्कूल में पिकनिक है इसके लिए हमें पांच हजार रुपए चाहिए। स्कूल वालों ने मंगवाए हैं। वह दोनों उसको जल्दी से ला कर दे देते हैं। मगर एक दिन चारु ने अपनी मां को कहा मैं भी पिकनिक पर जाना चाहती हूं तो उन्होंने टाल दिया बेटा तू पिकनिक पर नहीं जाएगी। नन्ही सी चारु के दिल को ठेस लगी थी आज अचानक जब मम्मी ने बताया कि हम दोनों नैनीताल जा रहे हैं ताकि तुम्हारे पापा जल्दी से ठीक हो जाए डॉक्टरों ने उन्हें किसी पहाड़ी स्थल पर जाने के लिए कहा है तब वह खुश हुई थी कि पापा और मम्मी तो दोनों जा रहे हैं अब वह अपने भाइयों को अपने तरीके से ठीक करेगी। अब इन दोनों भाइयों की इस घर में नहीं चलेगी सब कुछ मेरे मुताबिक होगा क्योंकि उसके मम्मी पापा ने चारु को कहा कि बेटा तुम अपने दोनों भाइयों को खाना बना दिया करना और तुम तीनों साथ में ही स्कूल से आया करना।। चारु ने अपने मम्मी पापा को विश्वास दिलाया कि मम्मी पापा आप चिंता मुक्त होकर जाओ मैं यहां सब संभाल लूंगी।
चारु केवल 14 साल की थी। उसके दोनों भाई 18 साल के थे। दोनों भाई उनसे बड़े थे वह उन तीनों को साथ लेकर तो नहीं जा सकते थे क्योंकि स्कूल से इतनी छुटियां नहीं की जा सकती थी। आरुषि नें अपने पड़ोस में रहने वाली आंटी को कहा कि बीच बीच में हमारे बच्चों को देख जाया करना। हमें जरुरी काम से जाना पड़ रहा है
आनंद और आरुषि दोनों नैनीताल चले गए थे अब घर पर दोनों बच्चे और उनकी बहन चारु घर पर रह गए थे जैसे ही वह गए दोनों भाइयों ने धमाचौकड़ी मचाने शुरू कर दी थी थोड़ी देर तक तो चारू सहन करती रही। उसने रात को अपने दोनों भाइयों को बुलाया और कहा आप दोनों भाई मुझसे बड़े होने। मैं आप दोनों का सम्मान करती हूं। परंतु मुझे आप दोनों की यह आदतें बिल्कुल पसंद नहीं है। आज तो मैं आप दोनों को माफ करती हूं परंतु कल से धमाचौकड़ी नहीं चलेगी। तुम अपना बस्ता अपना सामान एक जगह रखोगे सुबह आप दोनों को मैं नहीं उठाऊंगी। अगर स्कूल जाना होगा तो ठीक है वरना आप दोनों स्कूल से छुट्टी करना तुम दोनों को हर चीज व्यवस्थित ढंग से रखनी होगी। जूते जूतों की अलमारी में रखने होंगे। खाना बनाने में मेरी मदद करनी होगी तभी तुम्हें खाना मिलेगा वर्ना तुम भूखे ही रहना। अब जब तक मम्मी पापा नहीं आतें तुम दोनों को काम तो करना ही पड़ेगा दोनों धमाचौकड़ी मचाते हुए कहने लगे बड़ी आई हमें दादागिरी दिखाने वाली। उस दिन तो चारु ने उन दोनों को खाना बना दिया। दूसरे दिन चारु ने सुबह पांच बजे का अलार्म लगा दिया था। अलार्म बजता रहा उसने अपने दोनों भाइयों को नहीं जगाया। दोनों दस बजे तक सोते रहे। वह खाना बनाकर और खाना उन्हें रखकर स्कूल चली गई। दूसरे दिन दोनों भाई स्कूल नहीं जा सके जैसे ही चारू घर आई दोनों भाई उस पर बरस पड़े। बड़ीआई हमें जगाया क्यों नहीं? वह बोली मैं मम्मी पापा नहीं हूं जो तुम्हे लाड़ प्यार करूं। खाना खाना है तो खाओ वर्ना भूखे रहो। उस दिन उन दोनों ने खाना नहीं खाया। उससे अगले दिन चारु ने अपने दोनों भाइयों को नहीं जगाया
दूसरे दिन भी वे दोनों भाई स्कूल देरी से पहुंचे। मैडम ने उन दोनों को बहुत देर तक बैंच पर खड़ा रखा। अब तो शाम को जब दोनों घर आए तो वे बहुत ही उदास थे। दोनों को प्यार करने वाला कोई नहीं था। चुपचाप शांत होकर बैठ गये।
चारु ने अपने भाइयों को कहा पहले अपना सामान अच्छे ढंग से रखो। खाना बनाने में मेरी मदद करो और आरभ तो चुप चाप आकर अपनी बहन की मदद करने लगा वह प्यार से अपने भाई आरभ को कह रही थी आज मैं आपकी मनपसंद गाजर का हलवा बनाऊंगी। और आपके साथ अंताक्षरी भी खेलूंगी। वह खाना भी बनाती जा रही थी उसके साथ खेलती भी जा रही थी आरभ को भी काम करते वक्त बहुत ही मजा आया उसने सोचा अपनी बहन की मदद करने में ही भलाई है।
अरुण तो मुंह फुला कर बैठा रहा। आरभ अपनी बहन के साथ हंस कर बातें कर रहा था तो अरुण ने कहा आरभ चलो हम दोनों खेलने चलते हैं। आरभ बोला नहीं मुझे तो चारु के साथ बड़ा मजा आ रहा है। भाई मेरे यहां आओ। हलवे की महक का आनंद लो। हम तीनों मिलकर अंताक्षरी खेलते हैं और अपनी बहन का हाथ भी बटातें हैं। अरुण बोला तू ही खेला कर यह कह कर बाहर खेलने चला गया। आरभ ने अपनी बहन की सहायता की और अपनी बहन के साथ अंताक्षरी भी खेली
अगले दिन आरभ तो सुबह पांच बजे उठ गया परंतु अरुण ने उठने का नाम ही नहीं लिया। चारु ने चुपचाप आकर उसके ऊपर से रजाई उठा ली अब तो वह अपनी बहन को गालियां बकने लगा ठहरो अभी मैं तेरी शिकायत मम्मी-पापा से करता हूं। चारु तो बड़ी ही समझदार थी वह अपने भाइयों को सुधार कर ही दम लेना चाहती थी। उसने साथ वाली आंटी को कह दिया था आंटी अगर अरुण या आरभ में से कोई भी आपकी दुकान पर खाने की वस्तु मांगने के लिए आए तो इंकार कर देना और कहना कि तुम्हारी मम्मी ने इन्कार किया है। बाहर की चीजें नहीं खानी चाहिए
अरुण जैसे ही टेलीफोन के पास फोन करने गया चारु नें फोन की तार काट दी थी। अब तो अरुण उदास हो गया था वह दौड़ा-दौड़ा पड़ोस की आंटी के पास गया आंटी आंटी आप मुझे दो समोसे देना। आंटी ने कहा बेटा तुम्हारी मां ने मुझे कहा है कि मेरे बच्चों को कोई भी वस्तु खाने को मत देना मैं तुम्हें नहीं दे सकती। अरुण घर वापिस आ गया था स्कूल में भी उसका मन नहीं लगा चारु ने उसे स्कूल जाते हुए कहा खाने का डिब्बा मेज पर रखा है ले जाना हो तो ले जाना वर्ना भूखे हीे रहना। अरुण ने सोचा यहां पर तो मेरा भाई भी मेरी बहन के साथ मिल गया है। उसका चहेता बन गया है। कोई बात नहीं मैं आज खाना नहीं ले जाऊंगा तो तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। उसने चुपचाप खाने का डिब्बा उठाया और स्कूल चला गया चौथे दिन अरुण ने सोचा कब तक मैं ऐसा करता रहूंगा। उसने देखा आरभ और चारु एक दूसरे के साथ हंस-हंसकर खेल रहे थे।
वह भी उनके साथ आकर बोला मैं भी तुम दोनों के साथ अंताक्षरी खेलना चाहता हूं। तीनों साथ इन्ताक्षरी खेलने लगे अब तो अरुण को भी मजा आने लगा था। चारूने कहा हम तीनों मिलकर घर का काम करेंगे तो काम भी जल्दी हो जाएगा और तुम्हें बाहर खेलने के लिए भी समय मिल जाएगा। चारू ने अरुण को कहा तुम जूतों की अलमारी सैट कर दो। आरभ तुम सभी बिस्तरों की चादरों को झाड़कर तह लगा दो। मैं झाड़ू लगाती हूं सारा का सारा काम इतनी जल्दी हो गया कि पता ही नहीं चला अब तो दोनों ने स्कूल से आकर अपना बस्ता ठीक स्थान पर रखा हाथ धोए और अपनी बहन की काम में मदद की। उसकी बहन ने उन्हें एक से एक बढ़िया चीजें बनाकर खिलाई। उनके मम्मी पापा को गए हुए दस दिन हो चुके थे। उसने अपने भाई अरुण को कहा भाई मेरे आज हम तीनों घर पर ही खेलते हैं। तुम बिजली की तारों को जोड़ना तो जानते हो तुम इन बिजली की तारों को ठीक कर दो। परंतु प्लास्टिक की चप्पल पहन लो। और आरभ को कहा तुम अपनी और अपने भाई के कपड़ों की अलमारी को ठीक कर दो जो धोने वाले कपड़े हैं उन्हें एक जगह रख दो मैं तब तक खाना बनाती हूं। सभी अपने-अपने काम में जुट गए। अरुण को तो बिजली की तारों को जोड़ने में मजा आ रहा था।
चारु ने उससे कहा कि तुमने ही बिजली के उपकरणों को इकट्ठा एक जगह रखा है अब सामान के लिए एक बॉक्स भी बना दो। तुम बिजली का सामान एक ही जगह रखा करो। तभी आरभ बोला मैं एक बॉक्स बनाता हूं जिसमें सभी दवाईयां एक जगह रख दूंगा। और उस पर लिख दूंगा फर्स्ट एड बॉक्स। उसने सच में स्वीट ड्राइंग करके कितना सुंदर डिब्बा बनाया? उसने उसने सारी दवाइयां एक जगह रख दी। अरुण और आरभ को काम करने में मजा आने लगा था। दोनों सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर समय पर स्कूल जाने लगे उनकी मैडम भी उन में आए परिवर्तन को देखकर हैरान थी।
एक दिन उनके स्कूल में फंक्शन की तैयारियां हो रही थी। स्कूल में लाइट का बोर्ड खराब था। स्कूल में मैकेनिक का मिलना बहुत ही मुश्किल था क्योंकि गांव का स्कूल था। आसपास कोई भी मकैनिक नहीं था। दूर से यह मैकेनिक को बुला कर लाना पड़ता था। आरभ ने कहा मैडम आप चिंता ना करो मुझे बिजली का काम आता है मैं ही बोर्ड को ठीक कर दूंगा। क्या तुम ? मैडम को विश्वास ही नहीं हुआ जो बच्चा किसी काम को नहीं करता था जो काम से डरता था वह आज काम करने को कह रहा है। अगले दिन सचमुच ही अपने घर से बिजली के उपकरणों को ले जाकर उसने बिजली का बोर्ड ठीक कर दिया था। मैडम ने अब तो अरुण की सब बच्चों के सामने प्रशंशा की और उसके लिए तालियां भी बनवाई। अरुण और आरभ में आए हुए परिवर्तन का सारा श्रेय चारु को था जो अपने भाइयों को सुधारने में कामयाब हो चुकी थी ।
पडौस में रहनें वाली आंटी ने चारु को आकर फोन दिया बेटा तुम्हारे मम्मी पापा का फोन आया है। तुम फोन क्यों नहीं उठा रहे हो? मुझे चिंता हो रही है तभी तीनों बच्चों ने अपने मम्मी पापा से बात की और कहा मम्मी पापा आप हमारी चिंता मत करो। हम तीनों बड़े मजे में है
जैसे ही आंटी आई तो आरभ ने कहा आंटी बैठो मैं आपको चाय बनाता हूं। तभी अरुण आकर बोला तू रहने दे मैं चाय बनाता हूं। चारू ने उन दोनों को कहा तुम दोनों आंटी के साथ बैठो मैं चाय बनाती हूं। आरती तो उन उनके घर का नक्शा देखकर हैरान रह गई। क्योंकि जब कभी भी वह उनके घर आती थी सारा सामान इधर उधर बिखरा हुआ होता था। जब कभी पड़ोस वाली आंटी उनके घर आती थी तो दोनों बेटों की मां उनसे लाड़ कर रही होती। उन दोनों को मना रही होती उसने हमेशा चारु को घर में अकेले ही काम करते हुए देखा था। वह चारु की तरफ देख कर मुस्कुराई मानो कह रही हो बेटा तुम जीत गई हो घर का सारा सामान हर वस्तु ठीक स्थान पर रखी हुई थी। अब तो तीनों बच्चे अपने मम्मी पापा के आने की राह देख रहे थे। शाम की ट्रेन से उसके मम्मी पापा आ रहे थे चारु नें पहले से ही खाना बना दिया था। अरुण और आरभ ने अपनी बहन की मदद की थी। जैसे ही मम्मी पापा घर पहुंचे उन्होंने आते ही आरभ और अरुण को अपने गले से लगा लिया। अरुण और आरभ को यह बात पसंद नहीं आई वे दोनों बोले हम दोनों से पहले अपनी बेटी को गले लगाओ। वह दोनों अपने बेटे के इस व्यवहार से हैरान थे क्योंकि वह तो अपनी बेटी को भूल ही चुके थे। उसे तो घर की मशीन बनाकर रख दिया था। जब उसकी मम्मी ने मिठाई दी तो उन्होंने कहा कि पहले आप दोनों हमारी प्यारी सी छोटी सी बहन को मिठाई खिलाओ तभी हम मिठाई खाएंगे।
आनंद और आरुषी को अपनी गलती का पछतावा हुआ हमने तो बेटों के लाड प्यार में अपनी बेटी के साथ बहुत ही गलत व्यवहार किया। इसलिए कि वह बेटी है हमने बेटे और बेटी में अंतर समझा पढ़े लिखे होने के बावजूद अब तो उन दोनों की अंतरात्मा अंदर से उन्हें कचोट रही थी। उन दोनों ने देखा अरुण और आरभ अपना काम स्वयं कर रहे थे। और रसोई में अपनी बहन का हाथ भी बंटा रहे थे। अपने व्यवहार के लिए उन्हें अंदर से बहुत ही ग्लानि हुई। वह अपने दोनों बच्चों के लिए टी शर्ट लेकर आए थे परंतु चारु को उन्होंने कहा कि बेटा तुम्हें हम बाद में ला देंगे तब उन दोनों भाइयों को बहुत बुरा लगा उन्होंने कहा कि हम दोनों तब तक अपनी टी-शर्ट नहीं पहनेंगे जब तक आप चारु को नई ड्रेस लेकर नहीं दागे। राखी भी पास आ रही थी दोनों भाइयों ने अपने गुल्लक में रुपए इकट्ठे किए हुए थे। शाम को दोनों भाइयों ने जाकर अपनी बहन के लिए सुंदर सी फ्रॉक ला कर अपनी बहन को लिफाफे का पैकेट पकड़ा कर कहा हम दोनों भाइयों की तरफ से अपनी प्यारी सी बहना को राखी का उपहार । यह हमारी दोनों की कमाई की है। जमा की हुई पूंजी से लाकर दी है। आज चारु अपने आप को बहुत ही खुशनसीब महसूस कर रही थी। कि मैंने अपने भाइयों को सुधार दिया है अब कोई भी मेरे भाइयों को यह नहीं कहेगा कि मेरे भाई किसी काम के नहीं है उसके मम्मी पापा ने कहा कि आज हमारी बेटी ने हमारे दोनों बेटों को सुधार कर हमें भी सीख दी है।
हमें बच्चों में चाहे वह लड़की हो या लड़का दोनों में कोई अंतर नहीं समझना चाहिए। कौन सा काम ऐसा है जो लड़के नहीं कर सकते या लड़की नहीं कर सकती। दोनों को समान समझना चाहिए और दोनों को भरपूर प्यार देना चाहिए ताकि बच्चा भी अपने आपको अकेला न महसूस कर सकें।
बच्चे चाहे वह लड़का हो या लड़की हर एक को काम करना आना चाहिए। मुसीबत के समय दोनों एक दूसरे के काम आ सके तो दूसरों के पास मदद मांगने न जाकर दोनों एक दूसरे की ताकत बनकर मिलजुल कर उस काम को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा सके।
परिवार में खुशियां लौट आई थी साथ रहने वाली आंटी ने कहा कि आपकी बेटी तो किसी देवी से कम नहीं है। उसने मुझे कहा की आंटी आप भी मेरे भाइयों की मदद नहीं करना। अगर आप एक बार पिघल जाएंगी तो मैं अपने भाइयों को सुधार नहीं सकती हूं। मुझे उनके साथ कठोरता से पेश आना होगा। इस काम में आंटी जी आप ही मेरी मदद कर सकती हैं मैं सचमुच हैरान हूं आज आपकी बेटी की जीत हुई है। इसी खुशी में आप हमारे होटल में परिवार सहित आमंत्रित हैं। सभी खुशी से झूम रहे थे और पार्टी का आनंद ले रहे थे।