अमन आते ही मां पर चिल्लाया मां खाना लाओ, खाना नहीं बना है मां अमन से बोली। तुम कोई काम में मेरी मदद क्यों नहीं करते हो? तुम तो बस बैठे बैठे खाना खाना ही जानते हो। हम जब तुम्हारी उम्र के थे तो सारा काम किया करते थे। अमन बोला मां रहने दो अपना लैक्चर। खाना देना हो तो दो वरना मैं भूखा ही रह जाऊंगा।मां बोली ना पढ़ाई ना लिखाई तुम्हारी आदतों से मैं तंग आ गई हूं। आज तुम्हारे पिता होते तो वे कितना दुखी होते।
अमन नाराज होकर अपने कमरे में चला गया मां चिल्लाती रही मां हमेशा डांट फटकार कर अपने बेटे को चुप करा देती थी अमन को कभी इतना गुस्सा आता था वह घर का सामान भी इधर-उधर फेंकनें लगता था। वह पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। वह अभी केवल 9 वर्ष का ही था। फिर भी उसकी मां उसे डांटती रहती थी।
वह जब और घरों में बच्चों को काम करते देखती या पढाई करते देखती तो उसका कलेजा मुंह को आने लगता था। पड़ोस के कितने बच्चे हैं । वे अपने माता-पिता के साथ कितना काम करते हैं? एक मेरा बेटा है जो 24 घंटे इधर-उधर भटकता रहता है। ना जाने घर में कितना कबाड़ इकट्ठा कर लाता है। घंटो दरवाजा बंद करके इस कबाड़ से ना जाने क्या करता रहता है? इसके कमरे में ना जाने कितने प्लेटों के टुकड़े ,गत्त्ते बैटरी तारें और ना जाने क्या इकट्ठा करता है ? अपने कमरे को कबाड़ खाना बना रखता है।
मेरे बेटे को न जानें कब अक्ल आएगी ।बड़ा होकर लगता है यह कबाड़ी ही बनेगा। मेरी तो किस्मत ही फूटी है। पढ़ाई में भी इसका मन ही नहीं लगता । मैं हर रोज अपने बेटे को समझाती हूं,डांटती हूं फिर भी इस के कानों में जूं नहीं रेंगती।
पड़ोस की औरतें एक दिन उनके घर पर आई तो अमन कि मां के सामने अपनें अपने बेटों के बारे में बड़ाई करने लगी। यह सब सुनते ही अमन की मां तो जल भून कर राख हो गई। वह अपनें मन में सोचनें लगी मैनें न जानें कैसे कपूत को पैदा किया। मेरे पिछले जन्म के कर्मों का फल भोग रही हूं। एक मेरा बेटा है जो कमरा बंद करके कबाड़ लेकर बैठा रहता है पता नहीं इस कबाड़ का क्या करेगा? किसी दिन इसे जाकर कबाड़ी को दे दूंगी। पड़ोस की औरतें रूपा से बोली आपका बेटा तो ना जाने कितनी पढ़ाई करता है? बाहर ही नहीं निकलता। वह बोली अगर मेरा बेटा पढ़ाई करता तो ठीक था ।वह तो शायद कबाड़ी ही बने। उस के इस प्रकार कहने पर वे आपस में हंसने लगी। उनको हंसता देख और अपना मज़ाक बनाते देख चुपचाप रूंआसी हो गई। वे जब सभी अपने घर वापस चली गई। अमन पर्दे के पीछे से उन कि सारी बातें सुन रहा था। वह मां को आकर बोला अगर आप मुझे घर में नहीं रखना चाहती तो ना सही मैं घर छोड़ कर चला जाऊंगा। आपसे तो मेरा बंद रहना भी बर्दाश्त नहीं होता । खेलने जाता हूं तो कहने लगती हो सारा दिन खेलते रहता है । उनकी बात पर आप ज्यादा विश्वास कर लेती हो। जाओ कितनी बार कह दिया कि मैं पढ़ाई नहीं करूंगा। आज तो आप अपनी सहेलियों के सामने मुझे निकम्मा नाकारा, और न जाने क्या क्या कह रही थी।
उसकी मां बोली तो क्या करूं? एक कक्षा में 2 साल लगा दिए। ना काम का ना काज का दुश्मन अनाज का ।
अमन हर रोज अपनी मां से गालियां खाता। स्कूल में जाता था । स्कूल में उसका कोई भी दोस्त नहीं था। वह किसी से बात नहीं करता था। वह बहुत ही शरारती था। स्कूल की पढ़ाई में उसका ज़रा भी मन नहीं लगता था। वह जानबूझकर सब को परेशान करता था उसकी इन हरकतों से परेशान होकर अध्यापक उसे क्लास से बाहर निकाल देते थे मैं यही तो चाहता था उसका पढ़ाई में कहां मन लगता था।
सभी अध्यापक उससे परेशान आ चुके थे। उन्होंने उसे चेतावनी दी थी कि अगर वह अपनी आदतों से बाज नहीं आया तो उसका स्कूल से नाम काट दिया जाएगा । जब पानी सिर पर से गुजर गया तो स्कूल की एक अध्यापिका ने प्रिंसिपल के पास जाकर शिकायत कर दी। हर दम नाक में दम करता है, और पढ़ाई तो जरा भी नहीं करता।
स्कूल में प्रिंसिपल नई नई आई थी। वह तो सभी बच्चों से परिचित भी नहीं थी। उन के पास जब सभी अध्यापिकाओं कि शिकायत पहुंची तो उसे सजा सुनानें से पहले उसनें सोचा उसे परखा जाए, वास्तव में वह अनुशासन हीन बालक है या नहीं। वह बिना जांच पड़ताल के कोई भी फैंसला नहीं करती थी।
अमन को प्रिंसिपल नें अपनें औफिस में बुलाया और कहा कि तुम 10 दिन तक यही मेरे ऑफिस में एक बेंच पर बैठे रहोगे। देखती हूं, तुम्हारा आचरण कैसा है? प्रिंसिपल ने उस बच्चे को गौर से देखा, उस बच्चे को देखना चाहती थी कि वह कितना शरारती बच्चा है ? पहले दिन तो अमन ने मैडम को कह दिया कि मैडम इतनी देर तक यहां मैं बैठा नहीं रह सकता। मैडम बोली क्यों? वह बोला मेरी मर्जी है। मैडम ने कुछ नहीं कहा । उस पर चुपके चुपके नज़र रखती रही। वह क्या करता है? ऑफिस की चीजों को निरंतर देखता रहता। दो-तीन दिन तक वह चुपचाप सारे ऑफिस की एक एक वस्तु पर नज़र गड़ाए था। उसे प्रिंसिपल महोदया नें कुछ नहीं कहा।
एक दिन प्रिंसिपल नें चपरासी को कहा कि सारी चीज़ो को साफ कर एक जगह मेज पर रख दो। चपरासी आया उसने सारे कमरे को साफ किया और सामान रखकर चला गया। अमन प्रिंसिपल से बोला एक बात कहूं।वह बोला आपका पिंक वाला रजिस्टर आपके सामने नहीं रखा है ।वह तो अलमारी में रख कर चला गया। लाइट भी ऑन ही रख कर चला गया। आपकी टेबल के नीचे तीन दिन से पैन गिरा पड़ा है वह भी उसने उठाकर नहीं रखा। मैडम मुस्कुराते बोली तुम ध्यान से सारी वस्तुओं को देखते हो। इस रजिस्टर कि तो मुझे बहुत ज्यादा जरूरत थी। प्रिंसिपल ना जाने कितनी देर से अपने पर्स में कुछ खोज रही थी। अमन बोला मैम आप क्या ढूंढ रही हो? वह बोली ,तुम अपना काम करो। बड़ों कि बातों में ध्यान नहीं देना चाहिए। जैसे मैं कहती हूं वैसे खड़े रहो। मैं खड़ा नहीं रह सकता। मैं बैठ जाता हूं।
वहां पर बहुत सारी वस्तुएं थी जो बेकार थी । प्रिंसिपल मैम ने चपरासी को बुलाया इस कबाड़ को लेकर जाओ और कचरे में फेंक दो। अमन बोला मैम इस कचरे में आप ना जाने कितने आवश्यक सामान फेंक रहे हो? इस के इस्तेमाल से बहुत अच्छी-अच्छी चीजें बनती है। प्रिंसिपल बोली क्या तुम्हें चाहिए? हां जी मैम ने कहा कि एक शर्त पर तुम्हें वह सब दूंगी अगर तुम शरारत नहीं करोगे ।वह बोला मैडम मैं कभी शरारत नहीं करूंगा। मेरी मां मुझ पर हर वक्त चिल्लाती रहती है। वह कभी शांत नहीं रहती। मुझे भी गुस्सा आ जाता है। मैं भी पढ़ता हूं । मैम मेरी मां मुझे निकम्मा,नाकारा और कबाड़ी कहती हैं। मेरे दोस्त मुझ पर हंसते हैं। वह भी मुझे इन्हीं नामों से करते हैं तो मैं आपसे आपे से बाहर हो जाता हूं। मेरा पढ़ाई में भी मन नहीं लगता।मेरे मन में पढ़ाई कि जगह निकम्मा, नाकारापन घुस गया है।
प्रिंसिपल चपरासी को बुला कर बोली मुझसे एक टेलीफोन नंबर गुम हो गया है ।परसों तिवारी जी आए थे उन्होंने मुझे वह नंबर लिखवाया था। प्रिंसिपल के कुछ बोलनें से पहले अमन बोला मैम मुझे वह सब याद है । उसने वह नंबर प्रिंसिपल को लिखवा दिया। मैम ने जब नम्बर मिलाया तो वह हैरान रह गई । उसे तो नंबर याद ही नहीं था। वह नम्बर बिल्कुल सही था। वहीं खड़ा होकर उनको देख रहा था। मैम सोचने लगी कि यह लड़का तो बहुत होशियार है। मैंने टेबल के नीचे जानबूझकर पैन गिराया था यह देखने के लिए कि वह उठाता है या नहीं। उस नें तो उसे छुआ तक भी नहीं नहीं। यह नालायक नहीं हो सकता। अच्छा बच्चा है कि नहीं बस यह देखना बाकि है।
मैम अमन से बोली कि तुम इस कबाड़ का क्या करोगे? वह बोला कि मैं इन सब को इकट्ठा करके छोटी-छोटी चीजें बनाता हूं। मैंने घर में कूड़ा कर्कट से इकट्ठा कर के कई चीजें बनाई है ।मेरे पास ज्यादा सामान नहीं होता । मां से मंगवाता हूं तो मां मना कर देती है। वह लाकर नहीं देती। मैम बोली कि अगर तुम पढ़ाई किया करोगे तो मैं तुम्हें बहुत सारी चीजें दिलवाने में मदद करूंगी। वह खुश होकर आश्चर्य से बोला “अच्छा” सचमुच। आज उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं था।
एक दिन मैडम अनुराधा अमन के घर पहुंच गई। घर के अन्दर जाने के लिए दरवाजा खटखटाने लगी । उसकी मां की आवाजें मैडम को साफ सुनाई दे रही थी निकम्मा,नाकारा, कबाड़ी, बुधिया बोला मां मैं आपका कहना कभी नहीं मानूंगा। वह लड़ाई झगड़ा करके जोर-जोर से बोल रहा था। मैम ने दरवाजा खटखटाया। अमन की मां बाहर आई ।
अध्यापिका को अपने घर में आते देख कर हैरान होकर बोली, क्या बात है ?आज फिर इस नालायक ने कुछ कांड कर दिया।
मैडम अमन की मां को बाहर ले जाकर बोली कि आप अपने बेटे से प्यार से बात किया करो। आप अगर अपने बेटे को हर दम डांट-डपट करती रहोगी तो वह सुधरने के बजाय और भी ज्यादा बिगड़ जाएगा। आप अपने बच्चों को इन नामों से पुकारना छोड़ दो। इस नन्हे से बच्चे पर इसका गहरा असर पड़ता है ।वही तभी तो वह आपकी बात नहीं मानता ।आप इसे एक दिन निकम्मा,आवारा, की बजाए मेरा राजा बेटा कह कर तो बुलाओ।
अमन ने मैम का हाथ पकड़ा और बोला चलो मैडम आपको मैं अपनी चीजे दिखाता हूं।
अमन ने पलंग के नीचे छुपाया हुआ अपना सारा सामान मैडम को दिखाया। उसने उन चीजों से ना जाने कितनी सुंदर सुंदर, साइंस के मौडल बनाए थे। उनको बनाने में उसने जाने कितनी मेहनत की थी। प्रिंसिपल उसकी कलाकृति देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई। हमारे स्कूल में जिस दिन साइंस फेट होगा उस दिन तुम अपनी चीजों का स्टॉल लगाना।
अमन खुश होकर बोला मैडम आप मां को समझा दो वह मेरे सामान को बाहर मत फेंका करें। बुधिया की मां को मैडम ने समझाया और कहा कि आप अपने बेटे को नालायक समझती हो । आपका बेटा तो अमन का लाल है। इसमें तो वह रचनात्मक प्रतिभा है जो बहुत ही कम बच्चों में होती है। वह तो इन चीजों को बनाने में बहुत ही शौक रखता है।
एक दिन देखना आपका बच्चा बड़ा होकर एक बहुत ही बड़ा वैज्ञानिक बनेगा ।यह तभी हो पाएगा अगर आप अपने बेटे की भावनाओं को समझेंगे। अमन की खूब प्रशंसा की और कहा कि हमें बच्चों में छिपी हुई प्रतिभा को जगाना है न कि उस में नकारात्मकता को बढ़ावा देना। आप ने इस बच्चे के विश्वास को मजबूत बनाना है न कि उस के हौसलें को मिटाना। घर का मौहाल सकारात्मक न होनें से इस तरह के विचार जन्म लेतें हैं। माता पिता का कर्तव्य है कि बच्चों कि सारी बातें जाने । आज अमन अपनी प्रसंशा होते देख बहुत खुश हो गया। आज उसके चेहरे पर किसी बच्चे के प्रति नाराजगी नहीं थी। वह सभी से प्यार से बातें कर रहा था।
उसकी मां ने भी उसे डांटना छोड़ दिया था । एक दिन जब वह घर आया तो उसकी मां बोली कि मेरा राजा बेटा तू कब आया? मुझे तेरे आने का आभास ही नहीं हुआ इधर आ क्या तुझे भूख लगी है? वह अपनी मां को देखकर बोला कि आप मेरी ही मां हो या किसी और की ।अपनी मां के प्यार को समझ ही नहीं सका।
बहुत दिनों बाद उसके दोस्तों के सामने उसकी मां ने उसे राजा बेटा कहकर पुकारा था तो इसकी आंखें डबडबा आई, मगर जल्दी ही अपना मुंह फेर अपनें आंसू छिपा कर जाते बोला अभी आया। अपने कमरे में जाकर काफी देर अपने आंसुओं को छुपाए हुए वह बाहर आकर बोला मां मुझे भूख लगी है। खाना दो।
अपने कमरे में जाकर फालतू चीजों से वस्तुएं बनाने लगा। मां ने आकर उसे कहा मैंने बहुत सारी चीजें रखी है अब मैं इन्हें नहीं फैंका करूंगी। एक डिब्बे में भरकर सारी फालतू चीजें रखती हूं।आज से मैं भी कुछ बनानें में तुम्हारी मदद करुंगी। बेटा आगे से मुझसे भूल नहीं होगी। वह पढ़ाई भी करने लग गया और बाद में चलकर एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक बना।।