शक का दायरा

तरुणा तान्या और तन्वी तीन सहेलियाँ थी। तीनों सखियां दसवीं के बाद नर्स के प्रशिक्षण के लिए जी-जान से तैयारी कर रही थी। दोनों ही बहुत होनहार सुशील और सभ्य थी। तीनों डटकर नर्स के प्रशिक्षण की तैयारी कर रही थी। तीनों  लिखित परीक्षा में निकल चुकी थी केवल मौखिक परीक्षा का टेस्ट होना बाकी था। और तीनों का निरीक्षण करना बहुत ही जरूरी था। तीनों में से सबसे सतर्क और जागरूक कौन सी छात्रा है। परीक्षा का दिन आ चुका था तीनों सहेलियां नर्स के साक्षात्कार के लिए इंटरव्यू स्थल पर पहुंची। निरीक्षक महोदय ने उनकी जागरूकता को परखने के लिए सबसे पहले उन्होंने प्रवेशद्वार में नीचे पैन गिरा दिया। दूसरे उन्होंने पायदान को उल्टा रखा। और तीसरे मेज पर उन्होंने वेलकम की स्पेलिंग गलत लिखे। वेलकम की जगह पर इ कोलुप्त कर दिया था। सबसे पहले  तरुणा आई। उसने पायदान को सीधा नहीं किया और पैन को भी नहीं उठाया। और तीसरे मेज पर वेलकम की तरफ भी ध्यान ही नहीं दिया। तान्या ने भी इन बातों को गौर नहीं किया। तन्वी ने सबसे पहले साक्षात्कार स्थल पर पहुंच कर सबसे पहले उसने पायदान को सीधा कर दिया। प्रवेश करने से पहले धरती माता के पैर छुए। फिर उसने पैन को निरीक्षक महोदय की मेज पर रख दिया। तीसरे उसने वेलकम लिखा था उसी तरफ देख कर मुस्कुराई। निरिक्षण महोदय ने उससे पूछा तुम यहां देख कर क्यों मुस्कुराई।? वह बोली सर वंहां पर वैलकम के शब्द  गल्त लिखे थे। बेटा मैं यही देखना चाहता था।   तुम्हारी दोनों सहेलियों नें इन प्रश्नों में से कुछ भी जांच नहीं किया। हमने तुम्हारे लिए तीन प्रश्न रखे थे। सबसे पहले हम ने जानबूझकर पायदान को उल्टा रखा था। दूसरे हमने  पैननीचे गिरा कर किया था। तीसरा वेलकम तुम तीनों में से  हम नें तुम्हें चयनित किया। ऐसे जांच करना मुश्किल हो गया था क्योंकि तुम तीनों के समान अंक  थे। तन्वी चयनित होकर बहुत ही खुश थी। उसका चयन नर्स के प्रशिक्षण के लिए हो चुका था। तीन साल के प्रशिक्षण के बाद उसका चयन हो चुका था।

 

वह बहुत ही खुशी महसूस कर रही थी। अपने मनपसंद चयनित क्षेत्र में कदम रख चुकी थी। वह अपना काम ईमानदारी से करना चाहती थी जो भी अस्पताल में मरीज आता था वह उन सभी के साथ प्रेम से पेश आती थी। उन सभी मरीजों को बड़े प्यार से दवाई खिलाना।  कड़वी से कड़वी दवाई भी मरीज उसके हाथ से खा लेता था। वह मरीज को किसी न किसी तरह अपने काबू में कर लेती थी वह मरीज को किसी न किसी तरह अपनें काबू में कर लेती थी। जब कोई मरीज दवाई नही खाता था तो सभी डॉक्टर और नर्स तन्वी   को ही  बुलाते  थे क्योंकि उसे मरीजों को अपनें बस में करनें का जादू आता था। तन्वी की एक सहेली थी उसका नाम था तरुणा उसकी शादी ऐसे इंसान से हुई थी जो उस पर इतना शक करता था। तन्वी को एक दिन उसकी सहेली ने अपने घर बुलाया। उसने अपनी दर्दनाक कहानी सुनाई जिसको सुनकर  तन्वी की भी आंखों में आंसू आ गए।  तन्वी की  सहेली तरूणा अपने पति से बहुत प्यार करती थी।

 

उनकी  शादी के एक साल बाद घर  में नन्हा चिराग आ  चुका था। उसके पति को  उसका घर से ज्यादा बाहर रहना पसंद नहीं था। उसनें तो कभी भी अपने पति के अतिरिक्त किसी  व्यक्ति के बारे में सोचा भी नहीं। हमारी शादी अपनी पसंद की थी। अपने मां-बाप की मनपंसंद लडके के साथ  शादी  नंही  की। हमारे माता-पिता ने कहा कि आज से तुम हमारे लिए मर चुकी हो। मैंने अपने मां-बाप के प्यार को भुलाकर तुषार के साथ शादी कर के घर बसा लिया। तुषार थोड़ी दिन बाद बात बात पर मुझ पर शक करनें लगा। तुम इससे बातें क्यों कर रही हो।? कहां जा रही हो।? एक दिन मेरे बौस नें मुझे बुलाया और कहा   मेरी बेटी की शादी है उसकी साड़ियां खरीदनें में मेरी बेटी की मदद करना क्योंकि मेरी पत्नी अपने मायके गई है। मेरे पति एक दिन चुपके से कार्यलय में आ कर  खिड़की से झांकनें लगे। कर्मचारियों  नें उसे कहा तुम्हारे  पति खिड़की से झांक रहे थे। आप को ढूंढ रहे होंगे। मैं जैसे ही बाहर आई के  उन्होंनें मुझे डांटना शुरू कर दिया। तुम अंदर क्या कर रही थी?

 

मुझे एक दिन बहुत ही गुस्सा आ गया मैंने कहा कि अगर आपने मुझ पर शक किया तो मैं यह घर छोड़ कर चली जाऊंगी। लौटकर नहीं आऊंगी। उन्होंनें कहा चली जाओ। अपने बेटे को भी साथ लेती जाना। मुझे बहुत गुस्सा  आया मैं अपने पति को छोड़कर अपनी सहेली के पास रहने चली गई। एक दिन उन्होंनें मुझे ढूंढ लिया। बोला घर चलो। मैंने कहा जब तक तुम अपने किए की माफी नहीं मांगोगे तब तक मैं आप को माफ नहीं करूंगी। मेरे पति अकेले भी नहीं रह सकते थे।

 

एक दिन मुझे एक आदमी ने कहा बेटा घर चले आओ तुम्हारे पति का दिमागी संतुलन ठीक नहीं है। वह अपने पति को इस हालत में देख भी नहीं सकती थी। अपने पति को ठीक करने की योजना बना  ली। वहअपने पति को ठीक करके ही दम लेगी। जब घर पहुंची तो उन्होंने उसे डांटना शुरू कर दिया  कलमुंही अब क्या लेने आई हो?  बर्तन पटक कर बोले चली जाओ।  उनकी हालत उस से देखी नहीं  जाती थी। । उस ने निर्णय कर लिया जब तक उसके पति ठीक नहीं हो जाते वहअपने काम  से छुट्टी ले लेगी। मुझे किसी ने तुम्हारे अस्पताल संजीवनी का पता दिया और कहा कि उस अस्पताल में एक नर्स है जो शायद वह तुम्हारे पति को ठीक कर दे। मैं आज  ही उन्हें यहां  ले लेकर आऊंगी। तुम तो मेरी सहेली हो। मुझे पक्का विश्वास है कि तुम मेरे पति को नया जीवनदान दे सकती हो। मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी। तन्वी बोली  मुझसे जो बन पाएगा मैं तुम्हारे लिए करूंगी।

 

तरुणा अपने पति को संजीवनी अस्पताल में छोड़कर चली गई। संजीवनी अस्पताल के  डाक्टरों नें उसे तन्वी के पास भेज दिया। तन्वी ही एक ऐसी नर्स है जो इसको ठीक कर सकती है। तन्वी तुषार को हर रोज कड़वी दवाई पिलाती। तुषार उसको हर रोज गाली निकालता। वह किसी न किसी तरह से उसे दवाई पिलाती। हर बात को मजाक में टाल जाती कहती। क्या हुआ  है? तुम्हें क्या परेशानी है। वह उसकी डांट फटकार सहती रहती। धीरे-धीरे उसमें सुधार होने लगा वह बोला तुम मेरी इतनी मदद क्यों करती हो? वह बोली तुम मेरे भाई हो। मुझे अपने भाई की मदद करने में अच्छा लगता है।  मुझे सिस्टर बुलाया करो। उसे वह सिस्टर  बुलानें  लगा। एक दिन तन्वी नें  उससे पूछा तुम्हें क्या हुआ है?

तुम तो इतने अच्छे इंसान हो। तुम्हें क्या परेशानी है।? वह गुस्सा होकर बोला तुम  जानकर क्या करोगी।? औरतें दगाबाज होती है औरतें कपटी होती है वह बोली सभी ऐसी नहीं होती। वह गुस्सा होकर बोला चली जाओ यहां से। तन्वी बोली तुम्हारी पत्नी कहां है?पत्नी शब्द का नाम सुनकर वह आग बबूला उठा। उसने दवाई की शीशी नीचे पटक दी। एक दिन तन्वी नें उसे कहा मैं आज तुम्हे एक फिल्म दिखाऊंगी। ठीक है मैं भी तुम्हारे साथ फिल्म देखूंगा। तन्वी नें फिल्म लगा दी। एक लड़की की कहानी थी।  उसनें ऐसे लड़के के साथ शादी की जो उससे प्यार करता था। उस लड़के ने उसके साथ धोखा किया। वह लड़का अपनी पत्नी पर शक करता था शक का  दायरा इतना बढ़ चुका था कि उसका पति उस पर बात बात पर शक करता था। एक दिन उसके पति ने उसे कहा कि तुम आज कार्यालय मत जाओ। उसकी पत्नी बोली आज तो मेरा कार्यलय जाना जरूरी है। पति गुस्सा हो कर चला जाता है। वह उसे बात बात पर ताने देनें लगता है। वह उसकी बात सुनने के लिए भी राजी नहीं होता। वह अपनी बात टेप रिकॉर्ड में कह कर चली जाती है। बाद में उसका पति टेप औन करता है  और सुनता है। मुझसे गुस्सा मत होना मेरे बौस की बेटी की शादी है। उसकी बेटी के साथ साड़ी खरीदने जाना है। मेरे बौस नें कहा है  कृपया करके आज के दिन तुम मेरी बेटी के साथ साड़ी खरीदने में मेरी मदद कर दो। मेरी पत्नी बीमार है वह अस्पताल में है। मेरे घर पर कोई दूसरी बेटी नहीं है तुम मेरी बेटी की तरह हो। मैं तुम्हें किसी दिन छुट्टी दे दूंगा। अपने पति को मना लेना। अपने पति को हमारे घर जरूर लेकर आना। मैं तुम्हें किसी दिन अतिरिक्त छुट्टी दे दूंगा।

 

उसका पति कार्यालय की खिड़की से झांक रहा था। वह  शक्की तो था ही। वह सोच रहा था कि मेरी पत्नी अपने बॉस की बाहों में होगी।  उसकी पत्नी घर आ कर बोली उस दिन जब आप खिड़की में झांक रहे थे। हमारे बॉस मुझे अपनी बेटी की शादी का कार्ड थमा कर कह रहे थे कि बेटा अपने पति को लेकर मेरी बेटी की शादी में जरूर आना। जैसे ही आरुषि घर पहुंची उसके पति ने कहा निकल जाओ मेरे घर से तुम अपने बॉस के पास चली जाओ।

 

तुषार फिल्म को देखकर सोच रहा था कि यह कहानी तो मेरी जिंदगी से मिलती जुलती है। वह सोचनें लगा मेरी पत्नी भी मुझसे कुछ कहना चाहती थी। मैंने भीे अपनी पत्नी की बात नहीं सुनी। मैं भी अपनी पत्नी पर बहुत ही शक करता हूं। मैंने अपनी पत्नी पर शक करके अपना जीवन नर्क बना लिया। मेरी पत्नी मुझे धोखा नहीं दे सकती। उसके मुंह से निकला तरुणा। तन्वी   तरुणा का नाम सुनकर चौंक गई। वह बोली तरुणा कौन है।? वह बोला वह मेरी पत्नी है। मेरी कहानी से यह फिल्म मिलती है। मैंने भी अपनी पत्नी पर शक कर के उसे घर से निकाल दिया। काश मैं अपनी पत्नी को मना पाता।

एक दिन तन्वी  तुषार को अपनी सहेली के घर ले   कर चली गई। उसने खिड़की से झांक कर देखा। उसका बेटा चिराग कह रहा था मैं पापा के पास जाना चाहता हूं। मां मुझे पापा के पास ले चलो। वह बोली नहीं तुम्हारे पापा मुझ पर शक करते हैं। उसका बेटा बोला यह शक क्या होता है।।? मैं शक को खत्म कर दूंगा। उसने अपने बेटे को गले लगाते हुए कहा बेटा शक ऐसी जड़ होती है जो परिवार के लोगों में झगड़े बढ़ाती है। गहरी खाई उत्पन्न करती है। अगर तू भी बड़ा होकर उनकी तरह बन गया तो मैं तो मर ही जाऊंगी। अकेले मैं किसके सहारे रहूंगी। कैसे जाऊंगी। वह भगवान की फोटो के पास जाकर बोली हे भगवान मेरे पति को जल्दी से ठीक कर दो नही तो मैं भी अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी। जब तक वह स्वस्थ होकर मेरे सामने नहीं आ जाते मैं अपने पति की खुशियों की खातिर नौकरी करना छोड़ दूंगी। वह बहुत जोर जोर से रोने लगी। उसको रोता देखकर उसका बेटा चिराग बोला आप पापा को याद भी कर रही हो और कह भी रही हो कि उनके पास नहीं जाना।  तुषार नें सारी बातें सुन ली थी। उसने जल्दी से दरवाजा खटखटाया।। तरुणा ने दरवाजा खोला सामने अपने पति को देखकर चौंक ग्ई।  उसका पति बोला कृपया मुझे माफ कर दो। मैंने तुम पर शक कर के बहुत ही बड़ा गुनाह किया है। मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं। वह नीचे गिर पड़ा था। मैं अपनी पत्नी के हाथ से ही दवाई खाऊंगा।

 

तरुणा अस्पताल आ गई अपने हाथों से अपने पति को दवाई खिला रही थी। वह बोला जब तक तुम मुझे माफ नहीं करोगी तब तक मैं ठीक नहीं होना चाहता। वह बोली मैंने अपना त्यागपत्र अपने बॉस को थमा दिया है। तुषार बोला तुम त्यागपत्र नहीं दोगी। वह जैसे तैसे पता करते करते तुषार उसके उसके कार्य स्थल पर पहुंच कर वहां जाकर  बोला। मैं बस  से मिलना चाहता हूं। उसके बौस एक बुजुर्ग व्यक्ति थे। वह बोला तन्वी बेटी अपना त्यागपत्र क्यों थमा ग्ई। मैंने उसका त्याग पत्र फाड़ दिया है। शायद उसने यह फैसला जल्दबाजी में लिया है। उसने तुषार को बिठाया और कहा बेटा मेरी भी तुम्हारी पत्नी जैसी एक बेटी है। उसके पति ने उसे शक के कारण उसे घर से निकाल दिया। तुम्हारी पत्नी तो तुम्हारी बहुत ही बढाई करती है। तुम   भी कहीं अपनी पत्नी पर शक तो नहीं करते। वह बोला नहीं मेरी पत्नी त्यागपत्र नहीं देगी। वह अगले हफ्ते से ऑफिस आ जाएगी। मेरा बेटा बीमार था। मैं खुद बीमार था।

 

उस कारण वह बौखला ग्ई। इस कारण उसनें यह फैसला  लिया। बस नें कहा आज रात आप दोनों हमारे घर पर आमंत्रित हैं। तुषार को अस्पताल से आए हुए  एक महीना हो गया।तुषार नें अपनी पत्नी को  कहा तुम कार्यलय से छुट्टी नहीं लोगी।  तुम्हारे बॉस ने हम दोनों को खाने पर बुलाया है। चलना नहीं है क्या।? तुषार को अपनी गलती का एहसास हो चुका था। उसने अपनी पत्नी पर शक करना छोड़ दिया।

 

यह कहानी सभी वर्ग के लोगों के लिए है ज्यादातर जो बेवजह अपनी पत्नी पर शक करते हैं। शक एक ऐसी जड है  जो परिवारों को ही नहीं  रिश्तो में भी दरार डाल कर इतनी दूरियां पैदा कर देती है कि इन दूरियों को समेंटना बड़ा असंभव हो जाता है। शक करने से पहले  इन्सान को अपनी आंखें कान दिमाग खुला रखना चाहिए। शक करने से जीवन नर्क ही नहीं बल्कि   जहर बन जाता है।

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