बहुत समय पहले की बात है कि गिरसेन नामक राजा के राज्य में लोग सुखी थे। लोग अपने राजा की बात का अनुसरण करते थे। वह भी हर एक न्याय बड़ी सूझबूझ से करता था। राजा जो भी बात अपनी प्रजा जनों को कहता था वह बात प्रजा के लोगों को माननी ही पड़ती थी। राजा के एक बेटा था उसका नाम था सत्य बुद्धि। वह अपने बेटे को बड़ा प्यार करता था। राजा ऐसे तो सभी प्रजाजनों को बहुत चाहता था। परंतु वह जात पात का विचार करता था। उसके महल में शूद्रों को आने की मनाही थी। दलितों के आने की मनाही थी। जिस प्रकार हिमाचल के मार्कंड शिव मंदिर में भी बहुत समय पहले दलितों का आना मना था। दलित लोग मंदिर में नहीं आ सकते थे। उसी प्रकार की गिरसेन राजा ने सख्त मना कर रखा था कि इस मंदिर में कोई भी दलित महिला या पुरुष प्रवेश नहीं कर सकता। एक शुद्र महिला चोरी चोरी हर रोज मंदिर में आती। बाहर बैठकर पूजा करती। उसका मन करता कि मैं भी अंदर जाकर पूजा करें परंतु वह मन मार कर रह जाती। वह मंदिर के बाहर बैठकर जल्दी उठकर सुबह ही मंदिर में आ जाती। और अपना पाठ बाहर बैठकर पूरा करती। वह जब भक्तजनों को पूजा करते देखती तो उसका मन होता कि मैं भी मंदिर के अंदर चली जाऊं परंतु लोग उसे जाने नहीं देते। एक दिन तो उसने घूंघट ओढ़ कर अंदर घुसने का प्रयत्न किया तो उसे उसकी सजा भुगतनी पडी।
द्वारपाल ने उसको इतनी बड़ी सजा सुना दी वह कभी भी मंदिर में जाने की कोशिश नहीं कर सकती थी। उसने इसी तरह अपने मन को कड़ा कर लिया वह मंदिर के बाहर पूजा करके अपना धर्म निभा कर वापिस चली जाती थी। सुबह-सुबह राजा का बेटा सत्य बुद्धि भी पूजा करने लगा। उसे 8 दिन ही हुए थे उसने देखा कि एक औरत हर रोज मंदिर पूजा करने आती है। परंतु मंदिर के अंदर नहीं जाती है। वह एक दिन रुका और उससे पूछ बैठा माई तुम मंदिर के अंदर क्यों नहीं आती? तुम हर रोज बाहर से पूजा करके चली जाती हो। इसका क्या कारण है? वह बोली बेटा यह बात तुम कह रहे हो। तुम्हें तो पता होना चाहिए यह बात तो तुम अपने पिता से पूछ सकते हो। वह सीधा अपने घर आया उसने अपने पिता से सवाल किया पिता हमारे राज्य में हर एक आदमी सुखी है परंतु एक बात मुझे ठीक नहीं लगी। आज मैंने एक महिला को देखा वह मंदिर के बाहर बैठकर पूजा करी थी। मैंने अपनी प्रजा के लोगों से इसका कारण पूछा उन्होंने मुझे बताया कि मंदिर में दलितों के प्रवेश करने पर कोई भी दलित महिला या पुरुष मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता कर सकती। वह बोला पिताजी मुझे आपसे ऐसी आशा नहीं थी। आपको इस प्रथा को समाप्त करना होगा। क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो अच्छा नहीं होगा यह कहकर वह चला गया। राजा ने अपने बेटे की बात का कोई जवाब नहीं दिया दूसरे दिन जब सत्य बुद्धि मंदिर गया तो उसने देखा कि वही औरत मंदिर के बाहर बैठकर पूजा कर रही थी वह बहुत ही उदास हुआ। उसने उस महिला का हाथ पकड़ा और उसे अंदर के अन्दर ले कर गया। उसने कहा भाई तुम्हें भी मंदिर में आने का उतना ही अधिकार है जितना कि समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए। इस दुनिया में सभी जाति के लोग एक समान है। मैं जातिवादी को नहीं मानता। मैं तो इतना जानता हूं कि भगवान की दृष्टि में सब लोग एक बराबर है। ना कोई छोटा है ना कोई बड़ा। अगर तुम्हें कोई कुछ कहेगा तो उन्हें मुझ से गुजरना पड़ेगा।
आज राजा का बेटा कसम खाता है कि मेरे जीते जी इस मंदिर में सब लोग आ सकते हैं। लोगों ने उस महिला को अंदर मंदिर में ले जाते हुए देख लिया था। उन्होंने जाकर राजा के पास शिकायत कर दी। राजा ने सभी प्रजाजनों को बुलाकर कहा ऐसा कौन सा व्यक्ति है जिसने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। मैंने उस व्यक्ति को दंन्ड नहीं दिया तो मैं राजा कहलाने लायक नहीं। मैं कसम खाता हूं कि उस व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर इस गांव को छोड़कर सदा के लिए जाना होगा। मैं अपने गांव में उस व्यक्ति को जरा भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। उस व्यक्ति को जल्दी बुला कर लाओ। प्रजाजन कहनें लगे राजा जी आप अपना फैसला बदल दो महाराज आप उसका नाम सुनकर दुखी हो जाएंगे। वह बोला मैं अपनी जुबान देकर अपनी बात से फिरने वालों में से नहीं हूं। तुम जल्दी से उस व्यक्ति को मेरे सामने पेश करो राजा का बेटा सत्य बुद्धि आकर बोला आप मुझे क्या सजा देंगे? मैं स्वयं ही यहां से चला जाना चाहता हूं। जहां भगवान की दृष्टि में भी बराबरी नहीं है आपको राजा पता नहीं किसने बना दिया। मैं आपकी आज्ञा देने से पहले यहां से सदस्यता के लिए चले जाना चाहता हूं। रानी ने जब सुना तो उसने राजा को कहा कि आप अपना फैसला बदल दे। राजा ने दुखी होते हुए कहा नहीं उसे यहां से जाना ही होगा। रानी बेहोश हो गई थी। वहवहां से चला गया।
चलते काफी दिन हो गए वह पैदल ही जगह-जगह का भ्रमण कर रहा था। जो कुछ उसे मिलता रूखा-सूखा खाकर वह अपना पेट भरता था। उसमें अपनी राजसी वेशभूषा भी त्याग दी। अपने पिता को कहा कि मैं इस गांव में तभी अपना पदार्पण करूंगा जिस दिन आप अपनी इस करनी के लिए पछताओगे। मैं तभी वापस आऊंगा। अच्छा अलविदा वह यह कह कर चला गया। एक साधारण आदमी का भेष बनाकर चला गया।
इस प्रकार चलते-चलते वह एक दूसरे शहर में पहुंच गया। वह सभी शहरों में घूमते घूमते उस राज्य को ढूंढने लगा जहां पर शूद्रों को जाने की मनाही नहीं थी। तभी उसे एक राजा के पास जाने का मौका मिला। दूसरे शहर में पहुंच गया उसने राजा को कहा कि मैं आपके राज्य में पहुंच कर बहुत खुश हुआ क्योंकि आप मुझे कहीं ना कहीं अपने जैसे दिखाई देते हैं। जिसके दिल में किसी के लिए नफरत नहीं है। तुम मंदिर में सभी वर्गों को आने की अनुमति देती हो। वर्ना इतने राज्यों को घूमते हुए मुझे यहां आकर खुशी हुई कि तुम्हारे मंदिर में सभी को आने का अधिकार है। राजा बोला बेटा यह एक लम्बी कहानी है। मैं भी अपने महल में दलितों को आने की इजाजत नहीं देता था। परंतु एक घटना ने मेरे नजरिए को बदल दिया या यूं कहो कि मेरे सोचने का नजरिया बदल गया।
बात उन दिनों की है मैं अपने राजपाट में बहुत व्यस्त था। मुझे एक लड़की से प्यार हो गया। रानी बनकर वह मेरे घर आ गई। मुझे अपनी रानी से बहुत प्यार था। धीरे-धीरे शादी के कुछ समय बाद हमारे घर में भी एक नन्ही मुन्नी राजकुमारी आ गई। मैं अपनी बेटी को पाकर बहुत खुश था। धीरे-धीरे मेरी बेटी 10 वर्ष की हो चुकी थी। परंतु मेरी पत्नी को किसी भयंकर बीमारी ने घेर लिया। उसके गले में पता नहीं क्या हो गया था? वह पानी की एक बूंद भी बड़ी मुश्किल से निगलसकती थी। पानी उससे पिया ही नहीं जाता था। मैंने बहुत इलाज करवाया किसी साधु बाबा ने कहा कि आप अपने राज्य में घोषणा कर दो कि आप की रानी को जो पानी पिला देगा वह उसकी इच्छा को जरुर पूरी करेगा। उस साधु महात्मा ने राजा को बताया कि जो कोई भी पवित्र आत्मा तुम्हारी पत्नी को अपने हाथ से पानी पिलाएगी वही उसके पवित्र हाथों से तुम्हारी पत्नी ठीक हो जाएगी। दवाइयों को बंद कर दीजिए। यही उसका इलाज होगा। वह साधु एक जाने-माने प्रतिष्ठित महात्मा थे। राजा ने अपने राज्य में घोषणा कर दी कि जो कोई भी मेरी पत्नी को पानी पिला देगा वही मेरी दृष्टि में एक बहुत ही पवित्र आत्मा होगी। उसके इस प्रकार कहने पर राजा ने अपने राज्य में घोषणा कर दी जो कोई भी मेरी रानी को ठीक कर दे। उसकी हर बात को मैं स्वीकार कर लूंगा। यह कह कर राजा चुप हो गया। सत्य बुद्धि बोलाआगे बताइए। राजा बोला दूर-दूर से लोग आए लेकिन कोई भी व्यक्ति मेरी रानी को ठीक नहीं कर सका। एक दिन एक औरत लाठी टेकते हुई यहां आई और उसने अपने हाथों से मेरी रानी को पानी पिलाया। उसका जैसा नाम है मन उतना ही पवित्र है। उसका नाम निर्मला है। उसके हाथों से पानी पीकर मेरी रानी ठीक हो गई।
वह नारी कौन थी। वह एक दलित महिला थी। उसे मैंने अपने महल के पास ही एक मकान बना दिया है। उस दिन मैंने कसम खाई कि मैंने तो अपने मंदिर में शूद्रों को आने से मना किया था। परंतु उस दिन के बाद मैंने मंदिर में दलितों को आने का संकल्प कर लिया। और अपनी कही बात को सच कर दिखाया तभी से लेकर मैं सभी वर्गों के लोगों को मंदिर में आने की इजाजत देता हूं। सत्य बुद्धि बोला राजा जी मैं उस औरत से मिलना चाहता हूं। वह नेक औरत कौन है।? राजा ने कहा चलो मैं तुम्हें उसके घर में तुम्हें ले चलता हूं।
राजा ने उस दयालु पवित्र आत्मा के घर जाकर दरवाजा खटखटाया। वह पूजा कर रही थी। अपनें सामने उस महिला को देखकर वह चौंक गया। जिस महिला को वह मंदिर लेकर गया था। वह उस दिन के बाद अपना शहर छोड़कर दूसरे गांव में आ गई थी। उस साध्वी ने सत्य बुद्धि को पहचान लिया और कहा बेटा तुम तो बहुत ही बहादुर नौजवान हो। निर्मला ने उसकी सारी कहानी राजा से कही। एक बार फिर राजा सत्य बुद्धि के साहस को देखकर चौंक गया। वह बोला तुम जैसे नवयुवकों से हमें सीख लेनी चाहिए। तुम निराश ना हो मैं तुम्हारे पिता को सूचित कर दूंगा। तुम्हें यूं निकालना नहीं चाहिए था। मैं उन्हें समझाऊंगा। शाद।।
शायद वे अपनी करनी के लिए पछता रहे होंगे। उस राजा ने सत्य बुद्धि के पिता को अपने राज्य में बुलाया और अपनी कहानी सुनाई। उस औरत से भी मिलवाया जिसकी वजह से उसकी पत्नी बच गई थी। सत्य बुद्धि के पिता ने जब अपने गांव की उस दलित महिला को देखा तो वह भी दंग रह गया। और अपने बर्ताव के लिए उस महिला से क्षमा मांगी। और कहा आज के बाद मैं राजा कहलाने के लायक नहीं हूं। उसने अपने बेटे को बुलाकर कहा कि तुम अपने राज्य में लौट चलो। मैं तुम्हारे सामने अपनी हार स्वीकार करता हूं। और उस बोर्ड को हटा देता हूं जिसमें मैं ने दलितों के मंदिर में आने के लिए मनाही की है। सत्य बुद्धि बोला पिता मुझे खुशी इस बात की है कि आप सुधर गए हैं। अब मैं कभी भी अपने गांव लौटना नहीं चाहता क्योंकि मैंने सभी क्षेत्रों में भ्रमण भ्रमण करके वहां जाकर लोगों के मन में से अंधविश्वास और बुराईयों को जड़ से समाप्त करनें और निकालने का फैसला कर लिया है। एक प्रजा की भांति नहीं बल्कि एक सामान्य व्यक्ति की तरह राज्य के कोने कोने में जाकर लोगों को अंधविश्वास से बाहर निकालने के लिए प्रेरित करूंगा। राजा वीर सेन बोला तुम्हारे इस नेक काम में मेरी बेटी चित्रा तुम्हारे साथ जाएगी। सही मायनों में तो तुमसे अच्छा जीवनसाथी उसे कहीं नहीं मिल सकता। तुम उसे भी अपने साथ ले जाओ। मैं तुम दोनों को आशीर्वाद देता हूं। यह कहकर राजा वीरसेन ने अपनी बेटी चित्रा का हाथ राजा गिर सेन के बेटे से कर दिया और उन्हें खुशी-खुशी विदा किया।