एक छोटे से पहाड़ की तलहटी पर हीरा अपनी माँ रूपा के साथ रहता था। हीरा भोली मुस्कान लिए जब अपनी माँ की ओर देखता तो उसे हीरा पे बहुत प्यार आता, और फिर उसकी माँ को पता नहीं क्या सूझता वह उसको डांटने लगती कहती कि जल्दी ही अपना काम किया करो। समय पर अगर तुमनें काम नहीं किया तो आज खाना नहीं दिया जाएगा। वह सोचता माँ को ना जाने एकदम क्या हो जाता है एक पल में मां दयावान बन जाती है। थोड़ी देर में ना जाने क्या हो जाता है।? कई बार माँ को पूछने का जतन करता लेकिन कभी सफल नहीं होता था। इसी तरह दिन गुज़रते रहे। हीरा माँ को कहता माँ मेरे पिता कहां है? उसकी माँ कहती तुम्हारे पिता हमें छोड़ कर चले गए हैं। तुम आगे से अपने पिता के बारे में कभी भी कोई भी सवाल मुझसे मत पूछना। तुम्हारे पिता को बड़ा बनने की चाह नें और अंहकार नें मार डाला। इन्सान बड़ा बनकर अपने सगे संबंधियों को भूल जाता है। बेटा इतना याद रखना हम जैसे भी हैं ठीक है। कभी भी बहुत बड़ा इंसान बनने की चेष्टा मत करना वर्ना तुम भी अपने पिता की तरह बन जाओगे। हीरा अपनी माँ की बातें ध्यान से सुनता था।
उसकी माँ जंगल में पशुओं को चराने जाती थी। थोड़ा बहुत जो कमाई होती उसी से घर चलाती। पर अक्सर हीरा की भूख शांत नहीँ हो पाती थी। उसे पानी पी कर ही गुज़ारा करना पड़ता । गाँव मे हीरा के कुछ दोस्त थे। उसके सभी दोस्त स्कूल पढ़ने जाते थे। वे उस से कहते कि हम तो स्कूल पढ़ने जाते हैं तुम भी हमारे साथ पाठशाला चला करो। वह कहता कि मेरी माँ कहती है कि हमें पढ़ना लिखना नहीं चाहिए। पढ़ना लिखना बहुत बुरी बात होती है। इंसान पढ लिख कर बड़ा बनकर अपनों को भूल जाता है। उसकी माँ तो अनपढ़ थी। शायद इसीलिए ही उसके पति ने उसे छोड़ दिया था। वह पढ़ाई को बहुत ही बुरा समझती थी वह अपने बेटे को स्कूल जाने से कोसों दूर रखती थी। उस मासूम को तो विद्यालय जाने का मतलब भी पता नहीं था।
उसकी मां पशुओं को चराने के पश्चात आकर घर से 5 किलोमीटर की दूरी पर एक साहुकार के यहाँ थोड़ा बहुत मज़दूरी का काम भी करती थी। वह जो कमाती, उसका मालिक जो कुछ देता वह उसी से गुजारा करती। वह इसी में अपने बेटे के साथ खुश थी। घर पर आकर घर का काम करने के पश्चात थोड़ी देर अपनें बेटे के साथ समय समय व्यतीत करती थी। उसे अच्छी-अच्छी बातें सिखाती थी।
एक दिन उसका दोस्त पंकज उस से मिला। पंकज उस से बोला तुम भी मेरे साथ पढ़ने चला करो। स्कूल में पढ़ाई करने में बहुत ही मज़ा आता है। स्कूल में अच्छी-अच्छी बातें सिखाई जाती है। स्कूल में अच्छी बातों के साथ दोपहर को हर बच्चे को भोजन भी खानें को दिया जाता है। बच्चों के मनपसंद खेल भी खिलाए जाते हैं। ड्राइंग करने को भी मिलती है। प्यार से सभी अध्यापक अध्यापिकाएं हमें पढ़ाते हैं। पेट भर भोजन मिलता है! यह सुन कर हीरा के मुँह में पानी आ गया। उसकी माँ उसे भर पेट खाना नही दे पाती थी। उसकी भूख कभी शांत नहीं हो पाती थी। ं हीरा बोला अब तो मुझे भी स्कूल जाने का कोई उपाय सोचना ही पड़ेगा। कम से कम खाना तो मिल ही जायेगा।
हीरा अपने दोस्त को बोला तो कल मैं भी तुम्हारे साथ स्कूल चलूंगा। वहां देखूँगा कि तुम क्या क्या सीखते हो? हीरा ने अपनी माँ को कहा माँ मैं पंकज के साथ खेलने जा रहा हूं। वह अपनी मां को बताता कि वह पंकज के स्कूल जा रहा है तो उसकी माँ उसे कभी भी स्कूल नहीं भेजती। वह जल्दी से तैयार होकर पंकज के साथ विद्यालय चला गया। रास्ते में चलते चलते पंकज बोला हमें समय पर स्कूल आना पड़ता है। स्कूल में काम समय पर करना पड़ता है।
मुझे पहले स्कूल का मतलब ही पता नहीं। पाठशाला या स्कूल क्या होता है? हीरा अपनें दोस्त पंकज से बोला, जिस प्रकार हम घर में रहते हैं उसे गृहालय या आवास स्थान कहते हैं। जहां पर हम रहते हैं और आलय का मतलब होता है स्थान या आवास स्थान। ज्ञान या पाठ का मतलब होता है ज्ञान प्राप्त करना है। शिक्षा ग्रहण करने का स्थान यही विद्यालय होता है। यही स्कूल होता है। जहां अच्छी अच्छी बातें सिखाई जाती है।
ये तो हमारी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है।
हीरा हैरान हो कर बोला, यह दैनिक दिनचर्या क्या होती है? दैनिक दिनचर्या जो काम तुम प्रतिदिन सुबह उठकर करते हो जैसे सुबह उठकर शौच जाना दातुन करना नहाना, भोजन करना, अथवा प्रतिदिन जो काम हम करते हैं यह सब कार्य दैनिक दिनचर्या में आते हैं । तुम पशुओं को जंगल में चराने ले जाते हो। जहां पशु चराए जातें हैं उसे चरागाह कहतें हैं। सुबह जब उठते हो प्रातः काल का समय होता है। हमें सूर्य निकलने से पहले उठना चाहिए। थोड़ा दूर चले ही थे कि माँ ने उसे आवाज़ दे के वापस बुला लिया। उसे किसी काम के लिए हीरा की मदद की आवश्यकता पड़ी थी। हीरा उस दिन स्कूल नहीं जा पाया पर उसके मन मे एक दिन विद्यालय जाने की इच्छा घर कर गई। कोई बात नहीं मैं कल तुम्हारे साथ विद्यालय ज़रूर जाऊँगा।
अगले ही दिन फिर बिना अपनी माँ को बताए पंकज के स्कूल में जाने के लिए तैयार हो गया। वह बोला माँ आज मैं अपने एक दोस्त के घर जा रहा हूँ।जल्दी ही आ जाऊंगा। उसकी माँ बोली बेटा जल्दी आ जाना मैं भी काम पर जा रही हूं। उसकी माँ अपने बेटे को यह कहकर काम पर चली गई। हीरा अपनें दोस्त के साथ स्कूल में पहुंच गया था। स्कूल में पहुंचकर उसे बहुत ही अच्छा लगा। सभी बच्चे लाइनें बनाकर प्रार्थना के लिए जा रहे थे। उनकी मुख्याध्यापिका ने आकर बच्चों को बड़े ही प्यार से शुभ प्रातः कहकर संबोधित किया। बच्चों ने भी शुभ प्रातः कर एक दूसरे का अभिवादन किया। बच्चों ने प्रार्थना में किसी न किसी विषय पर कुछ ना कुछ बोला। विषय समाप्त होने पर बच्चों ने तालियां बजाई। आज हीरा पहली बार कक्षा में बैठा था। उसे बड़ा ही अच्छा लग रहा था। बच्चों की मैडम नें सब बच्चों की उपस्थिति लगाई। पर उनका ध्यान हीरा पर नहीं गया।
स्कूल में उस दिन एक बच्चे का जन्मदिन था। उस दिन उस बच्चे ने स्कूल में टौफियां और मिठाई बांटी। सभी बच्चों ने तालियां बजाई। उस बच्चे की अध्यापिका ने उसके सिर पर हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया। बेटा तुम पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनना। सच्चाई के रास्ते पर चलना। पंकज नें भी उस बच्चे के लिए तालियां बजाई।
मुख्य अध्यापिका जी ने कहा कि तुम्हारा जीवन हर दिन ख़ुशियाँ ले कर आए।
हीरा पंकज से बोला मेरी माँ ने मेरा जन्मदिन कभी भी नहीं मनाया। मुझे तो यह भी पता नहीं है कि मैं कब पैदा हुआ था। मेरी माँ कहती है कि बड़ा आदमी कभी मत बनना और अध्यापिका कहती हैं कि पढ लिख कर बडा आदमी बनना। मैं अपनी माँ से पूछ कर ही रहूंगा मेरा जन्म दिन वह क्यों नहीं मनाती। अगले कालांश में दूसरी अध्यापिका आई। पंकज नें कहा वह विज्ञान की अध्यापिका है। वह बच्चों को बड़े ही प्यार से पढ़ा रही थी। विज्ञान की अध्यापिका ने बच्चों को बहुत से जानकरियांं दी। सफाई स्वछता से संबंधित और गंदगी से होने वाली आम बीमारियों और उन के इलाज से संबंधित। यह सब जान कर हीरा बहुत ही हैरान था। उसकी माँ उसे सारी अच्छी बातें सिखाती थी पर ये सब तो उसे मालूम ही नहीं था।
विद्यालय में आधी छुट्टी के समय सब बच्चे एक पंक्ति बना के भोजन करने गए।
वहाँ एक कमरे में से एक मेज़ पर भोजन के बर्तन ढक के रखे हुए थे। हीरा को खाने की एसी खुश्बू आ रही थी कि उसके मुँह में पानी भर आया। उसका मन कर रहा था कि भाग के जाए और सीधा बर्तन में से अभी खाना शुरू कर दे। पर सब को देख के वह चुपचाप पंक्ति में चलता रहा। सब बच्चों ने एक कोने में अपने जूते उत्तर के रखे और पास में लगे नल से पानी ले कर साबुन से हाथ साफ किये। हीरा को विज्ञान की मैडम की बात याद आई के भोजन करने से पहले हाथ साफ करने चाहिए नहीं तो बीमार हो सकते हैं। सब हाथ धो के भोजन करने बैठे। आज पहली बार हीरा ने भर पेट भोजन किया था। सब्ज़ी दाल चावल और रोटी। हीरा बहुत खुश था। आज से मैं भी रोज़ स्कूल आऊंगा। चाहे कुछ भी हो जाये। माँ से मुझे झूठ ही क्यों ना कहना पड़े।
भोजन करने के बाद सब ने अपनी अपनी थाली और गिलास उठाये और धो के एक जगह रख दिये। खाने के बर्तन साफ रखने चाहिए पंकज ने कहा। साफ भोजन करने और साफ पानी पीने से हम बीमारियों से बचे रहते हैं। मैडम ने बताया था याद है ना? हीरा ने मुस्कुराते हुए सर हिलाया। फिर सब बच्चे खेल कूद में व्यस्त हो गए।
थोड़ी देर बाद सभी बच्चे अपनी अपनी कक्षाओं में लौट गए।
आधी छुट्टी के पश्चात ड्राइंग की क्लास थी। उस दिन स्कूल में ड्रॉइंग कंपटीशन था। कॉम्पिटिशन में भाग लेंनें के लिए बच्चे अलग-अलग स्कूलों से आए थे।
एक मैडम की नज़र हीरा पर पड़ी तो मैडम बोली बेटा तुम्हारी ड्राइंग नोटबुक कहां है? पंकज बोला वह अपनी कौपी और रंग आज घर पर ही भूल गया है। मैडम को तो पता ही नहीं चला कि वह उनके स्कूल का बच्चा नहीं है। वह किसी दूसरे स्कूल से ड्राइंग कंपटीशन में भाग लेने के लिए आया होगा। मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा के कोई बात नहीं बेटा में अभी तुम्हें ड्राइंग की कॉपी और रंग उपलब्ध करवाती हूँ। रंग और कॉपी मिलते ही वह खुशी-खुशी से ड्राइंग बनाने लगा। उसने जंगल में उगते हुए सूर्य और चरागाह को दिखाया था। मैडम नें घोषणा कि अगले सोमवार को जिन बच्चों का सबसे अच्छा चित्र होगा उसे ईनाम दिया जाएगा। सभी बच्चे वर्दी डालकर आना।
छुट्टी के वक्त हीरा ने अपने कदम घर की ओर बढ़ाए। उसे स्कूल में आज बहुत ही अच्छी बातें सिखाई गई थी। गणित, विज्ञान, इतिहास और सबसे रोचक तो उसे अंग्रेजी भाषा लगी।
घर आ कर वह बहुत ही खुश था। माँ के आने से पहले ही वह वापस घर आ गया था। पता नहीं कब बिस्तर पे गिरते ही उसे गेहरी नींद आ गई। रात को भोजन करते हुए उस ने माँ से पूछा माँ मेरा जन्मदिन कब आता है? आज पड़ोस में एक लड़के का जन्मदिन था मेरा कब आता है माँ? मैं भी सबको मिठाई बांटूंगा। माँ ने झल्ला के कहा मुझे याद नहीं। तंग मत कर जा, जा के सो जा। हीरा उदास हो के सो गया। उसकी माँ ने सोचा, बेचारा मेरा बेटा, मेने बेकार ही उसे डांट दिया।
सुबह जब हीरा उठा तो माँ ने उसके लिए आटे का हलवा बना के रखा था। उसने हीरा से कहा कि आज से हम हर वर्ष तेरा जन्मदिन आज के दिन ही मनाएंगे। हीरा ने माँ के गले से लग के धन्यवाद दिया और माज़े से हलवा खाया। हीरा अपनी मां से बोला में खेलने जा रहा हूँ देर से आऊंगा। आप काम पे चली जाना कह कर वह अपने दोस्त से मिलने भाग गया।
अब तो हीरा को पढ़ने में बहुत ही मज़ा आने लगा था। उसकी माँ जब उसे जंगल में चलने के लिए कहती तो वह कहता माँ आज मेरी तबियत ठीक नहीं है। सिर में दर्द है। बहाने करता रहता। माँ को बिना बताए ही स्कूल जाने लगा अपने मित्र से किताबें उधार ले कर घर मे भी पढ़ने का अभ्यास करता था।
एक दिन स्कूल में शाम को मैडम ने सभी को कहा था कि अपना अपना बैग और ड्रेस साफ सुथरा लाना है। जो बच्चे वर्दी नहीं पहन के आएंगे उन्हें कक्षा में आने नहीं दिया जाएगा। उसके पास तो वर्दी भी नहीं थी। स्कूल से लौटते समय वह अपने दोस्त पंकज के साथ एक दुकान पर रुका क्योंकि उसके दोस्त नें वहां अपनी वर्दी सिलवानें के लिए दी थी। पंकज ने अपनी वर्दी दीवान चंद से खरीदी थी। गांव में दीवान चंद की दुकान बहुत ही मशहूर थी। दीवान चंद तो वहां पर रहते नहीं थे। वह तो सिर्फ बच्चों की स्कूलों की वर्दी बेचने के लिए कभी-कभी गांव आते थे। उन्होंने गांव में एक ही बहुत ही बढ़िया दुकान खोली थी। पंकज ने अपनी वर्दी देखी। हीरा बोला अंकल आप मुझे भी वर्दी दिखाइए, मेरे नाप की।
दुकानदार दीवान चंद बोले मेरे पास एक बच्चे नें वर्दी सिलवाने के लिए दी है। उसके पिता का स्थानांतरण हो गया है। वह अब वर्दी नहीं लेगा। यह वर्दी पहन कर तो देखो। हीरा नें जब वह वर्दी पहन कर देखी उसे वह पूरी थी। लेकिन कमीज की बांजुएं थोड़ी लंबी थी। दुकानदार बोला कल तुम्हें वर्दी मिल जाएगी। हीरा बोला पहले मैं अपनी माँ से पूछ कर बताऊंगा।
रात को उसने माँ से पूछा कि माँ क्या मुझे थोड़े पैसे दे दोगी? तुझे पैसे की क्या ज़रूरत आ पड़ी? माँ ने हैरान हो के पूछा। हीरा ने माँ से कहा कि उसे खेलने के लिए नई गेंद लेनी है। माँ ने उसे कुछ पैसे दिए पर वह तो उसकी स्कूल की वर्दी लेने के लिए बहुत कम थे।
अब क्या करे? हीरा ने सोचा।
वह दीवान चांद जी की दुकान में गया और वर्दी देखी। उस समय दीवानचंद वहां नही थे, दुकान पे उनके नौकर ही थे। हीरा को स्कूल की वर्दी पहने की इतनी ईच्छा थी के उसने उसे चुराने का निर्णय कर लिया।
उसने देखा, उस दिन दुकान में काफी भीड़ थी। बहुत से बच्चों के माता पिता उनके लिए वर्दी लेने आये थे । हीरा भी एक दंपति के पास जा के बैठ गया। उस ने धीरे से नौकर से वो वर्दी लाने को कहा। नौकर ने सोचा कि पास बैठे दंपत्ति ही उसके माता पिता हैं। जब सब नौकर थोड़ा व्यसत हो गए तो चुपके से हीरा ने वो वर्दी एक झोले में छिपा दी। उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। उसने दुकान के एक कर्मचारी से पीने के लिए पानी मांगा, जैसे ही वो पानी लाने गया हीरा वहां से चुपके से बाहर निकल गया। फिर वहां से उसने बहुत तेज़ दौड़ लगाई। उल्टी सीधी गलियों से होता हुआ वह सीधा अपने घर आ के ही रुका। घर के अंदर जाते ही उसने जल्दी से दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। उसकी माँ अभी वापस नही लौटी थी। उसने जल्दी से वर्दी झोले से बाहर निकाली। उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि अब उसके पास भी स्कूल की वर्दी है। अब वह भी रोज़ वर्दी पहन के स्कूल जाने लगा।
कुछ समय में ही उसने थोड़ा थोड़ा पढ़ना लिखना भी सीख लिया था। हीरा बहुत ही होनहार चैत्र था, वह गणित के सवाल भी असानी से हल कर लेता था। उसे नोटों के बारे में काफी जानकारी हो गई थी। वह घर में नोटों को उल्टपल्ट कर देखा करता था। बीच बीच में पंकज के साथ स्कूल चला जाता था।
एक दिन हीरा की मां जब काम पर से वापस आई तो हीरा को घर पर ना पाकर उदास हो गई। वह बीमार होने की वजह से जल्दी ही घर वापस आ गई। । वह तो हर रोज उसकी अनुपस्थिति में स्कूल चला जाता था।
जब काफी देर तक हीरा घर नहीं आया तो वह उसके दोस्त पंकज के घर गई। और पंकज की मां ने दरवाजा खोला। हीरा की माँ बोली मेरा बेटा तुम्हारे घर तो नहीं आया। पंकज की माँ बोली आप का बेटा तो मेरे बेटे के साथ स्कूल गया है। वह कहने लगी
मेरा बेटा तो स्कूल में नहीं पढ़ता है। उसकी माँ को विश्वास नहीं हुआ। हीरा की माँ को क्या पता होगा? वह तो मुझे से पूछ कर गया था। अपने आप पता करूंगी। वह ठीक ही कह रही है या गलत। आज जल्दी में उसके साथ स्कूल चला गया होगा। उसे कहना होगा कि पंकज के साथ मत रहा कर। वह कभी भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहती थी। इसी कारण उसने पढ़ाई नहीं की।
काफी दिन तक उसकी माँ बीमार रही। उसे तेज़ बुखार था और पेट मे भी दर्द था।घर में
हीरा ने देखा कि रसोई में माँ ने जिस कपड़े में रोटियां लपेटी थी वह कई दिन से साफ नहीं किया गया था। उसने रोटी लपेटने के कपड़े को साफ कर दिया। पानी पीने के लिए उसने एक तार को मोड़ कर गिलास के चारो और लपेट कर उस की हत्थी बना दी थी। गिलास के चारों ओर तार लपेट दी थी। उसको पानी की बाल्टी में पीने के लिए प्रयोग किया। उसने वह बाल्टी साफ करके उसको ऊपर से ढक दिया। घर को भी साफ कर रख दिया।
उसकी मां को डिहाइड्रेशन हो गया था। दस्त लग जाने के कारण उसके शरीर में पानी और नमक की कमी हो गई थी।
उसकी मां बोली बेटा तुम मेरे मालिक के पास जाकर मेरी पगार ले कर आना। मुझे दवाइयाँ लानी है। वह अपने मित्र पंकज के साथ साहुकार के यहां गया जहाँ उसकी माँ काम करती थी। उसकी माँ नें कागज़ की एक पर्ची दे कर कहा था कि उसे इतने रुपए मिलते हैं। उसके मालिक ने उसे 300 रुपये थमाते हुए उसे एक काग़ज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा। हीरा ने देखा उस पे दी गई रकम 800 रुपये लिखी थी। उसकी इस करतूत को देख कर हीरा साहुकार को बोला मेरी माँ को आप ₹300 दे कर 800रु की जगह पर हस्ताक्षर करवाते हो। मेरी मां पढी लिखी नहीं है। मेरी मां दिन-रात मेहनत करके कमाती है आप उन्हें कम पगार देते हैं। शेष राशि को आप अपनी जेब में डाल देते हैं क्या? उनको 800रु की जगह पर 300रु ही देते हो। हीरा पंकज से बोला मेरी मां की पर्ची पर आठ सौ ही लिखा है न, तुम देख के बताओ। पंकज बोला हां दोस्त यह 800रू ही है। साहूकार ने हीरा को कहा के गलती से गलत पढ़ लिया होगा। और हीरा को 800 रुपये दे दिए।
आज मेरी मां पढ़ी-लिखी होती तो हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता। माँ मुझे भी स्कूल न भेज कर मेरा भी नुकसान कर रही है। उसे आज समझ आ गया कि पढ़ना लिखना जरूरी होता है।
घर आ कर उसने अपनी माँ को ओ आर एस का घोल अपने हाथ से बना कर दिया। 1 लीटर पानी को ठंडा कर उसको बनाकर घोल बनाया। मां की हालत पहले से बेहतर हो गई थी। उसकी मां बोली बेटा तुमने यह कहां से सीखा। तुम्हें यह घोल बनाना किस से सीखा। मां आप ने एक दिन मुझ से कहा था कि हमें पढ़ना लिखना नहीं चाहिए। आप कितना गल्त थी। यह मैनें स्कूल जा कर जाना। मैं अगर स्कूल नहीं गया होता तो मैं यह सब कहां सीखता?आज आपको एक बात बताता हूं पढ़ना लिखना सबके लिए जरूरी होता है आज मैंने यह जाना। जहां पर आप काम करती है उसका मालिक आपको ₹800 आप की पगार के देता है लेकिन आपको ₹800 के बदले वह ₹300 ही देता है। ₹500 अपनी जेब में डाल देता है आप अनपढ़ होने के कारण यह बात नहीं समझ सकती हो। वह आप का फायदा उठाता है। यह सारी बातें मैंने स्कूल में सीखी। हां ‘मैंने भी एक गलत काम किया है। स्कूल जाने के लालच में एक सेठ जी की दुकान से वर्दी चुरा ली।मां मुझे माफ कर दो।
उसकी मां बोली मुझे नहीं पता था कि पढ़ना लिखना जरूरी होता है। मैं तुम्हें इसलिए पढ़ाना नहीं चाहती थी कि तुम वहां पर जाकर अपने पिता की तरह बन जाओगे। तुम्हारे पिता ने मुझे इसलिए छोड़ दिया कि उन्हें ज्यादा रुपए का लालच हो गया था। शायद मेरे अनपढ़ होनें के कारण। मुझे तो यही लगा कि उन्हें धन पा कर घमंड हो गया था। बेटा मैं भी तुम्हें पढ़ाऊंगी पर एक बात का ध्यान रखना अपने पिता की तरह मुझे छोड़कर ना जाना। मैं तुम्हें स्कूल अवश्य भेजूंगी। तूने तो घर की काया ही पलट दी।
इतनी अच्छी अच्छी बातें स्कूल में सिखाई जाती है यह मैंनें तुम से जाना। सबसे पहले तुम कसम खाओ कि तू उस दुकानदार की वर्दी वापस करके आएगा। । मैं तुझे वर्दी दिलवाने का प्रयत्न करूंगी।
पंकज दौड़ता दौड़ता आया दोस्त तुम्हारी ड्राइंग तो सबसे अच्छी थी। मैडम ने तुम्हें स्कूल में बुलाया है। तुम्हें स्कूल में पारितोषिक वितरण किया जाएगा। स्कूल वालों नें तुम्हें इनाम देने की घोषणा की है।
स्कूल में हीरा की मां पंहुच गई थी। वह स्कूल पंहुच कर औफिस के पास जा कर खड़ी हो गई। चौकीदार नें उसे अन्दर जाते देख लिया था वहीं बोला आप बिना इजाजत के अन्दर नहीं जा सकती। स्कूल कीअध्यापिकाओं नें उससे वहाँ आने का कारण पूछा।वह बोली मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहती हूं। मैं आप के स्कूल की मुख्याध्यापिका जी से मिलना चाहती हूं जिन की वजह से आज मेरा बेटा कुछ पढना लिखना सीखा गया है। वे उसे अन्दर ले कर गई। हीरा की मां बोली पर मेरे बेटे नें एक गल्त काम किया है। मेरा बेटा कभी भी किसी की चोरी नहीं करता लेकिन उसने यह लालच में कर डाला। मुख्याध्यापिका जी नें उसे बिठाया। ठन्डा पानी पीनें को दिया। मैडम नें कहा तुम्हारे बेटे का नाम क्या है।? वह बोली मेरे बेटे का नाम हीरा है। मैडम ने एक बच्चे को कागज़ का पर्चा थमा कर हीरा को बुलाने के लिए कहा। चपरासी नें आ कर कहा कि हीरा नाम का कोई भी बच्चा यहां नहीं पढ़ाता। मुख्याध्यापिका जी बोली इस नाम का कोई भी बच्चा यहां नहीं पढ़ाता। हीरा की मां बोली आप के स्कूल में पंकज चौथी कक्षा का छात्र है। उसके साथ स्कूल आ जाता था। मैंनें ही उसे पढ़नें से रोका था। घर में कूड़ा कचरा फैलाने वाला मेरा बेटा समझदार बन गया। यहां तक के उसने मुझे एहसास दिलाया कि पढ़ना लिखना सभी वर्ग के लोंगो के लिए जरुरी होता है।
पढ़ा लिखा इन्सान कभी भी जीवन में किसी के आगे धोखा नहीं खा सकता। मेरे बेटे को भी कुछ लिखना पढ़ना नहीं आता था।वह पंकज के साथ दो तीन महीने से चुपके से स्कूल में आ रहा है। उस के साथ आ कर बहुत कुछ पढ लेता है। एक दिन जब मैं बीमारी की वजह से जल्दी घर पहुंची तो मुझे पता चला कि वह तो पंकज के साथ स्कूल जाता है। उसने मुझे बीमारी से ठीक किया। ये सब उसने स्कूल में ही सीखा है। मैंने उसे स्कूल न जानें की कसम दी थी आज मैं वह अपनी कसम तोड़ने आई हूं। आज मैं उसे स्कूल में दाखिल करवाने भी आई हूँ। मेरे बेटे नें आज एक साहुकार की दुकान से वर्दी चोरी की। वह आज आप के स्कूल में पहन कर आना चाहता था लेकिन अपनी ग़लती के कारण वह आज मेरे साथ स्कूल नहीं आया। स्कूल के अध्यापक अध्यापिकांएं हैरान हो कर उस बच्चे की कहानी सुन रहीं थी। पंकज आ कर बोला मेरा दोस्त मेरे साथ स्कूल आया है। लेकिन वह बाहर ही खड़ा है कह रहा है कि मैं स्कूल जानें योग्य नहीं हूं। मैंनें अपनी मां के साथ विश्वासघात किया है। उस दुकानदार को जब पता चलेगा तो वह भी मुझे चोर समझेगा। मुख्याध्यापिका जी नें हीरा को अपने पास बुला कर कहा कि कौन कहता है कि तुमनें चोरी की है? चोरी कर के जो अपनी गलती स्वीकार कर लेता है वह तो अच्छा इन्सान होता है। हमें नहीं पता था कि तुम तो पढ़ाई के लिए यह सब कर रहे थे। हम तुम्हे अपने विद्यालय में प्रवेश देतें हैं।
हीरा की मां जब सेठ जी की दुकान के पास वर्दी लौटानें गई तो सेठ जी को बोली मेरे बेटे नें पढाई करनें के लालच में आप की दुकान से चोरी की। आप नें उसके दोस्त पंकज को वर्दी दिखाई। उसने वह वर्दी पहन कर देखी थी। उसे लालच आ गया था। मैने उसे कभी स्कूल न भेजने का निर्णय किया था मगर उस बच्चे ने मुझे भी शिक्षा दे कर मुझे शिक्षा का महत्व क्या होता है सिखा दिया। साहुकार दिवानचन्द ने हीरा की माँ की ईमानदारी से प्रसन्न ही नही हुए बल्कि उस के बच्चे के नेक विचारों से भी खुश होकर बोले आप का बेटा पढ़ाई करनें के लिए कितना इच्छुक है और एक मेरा बेटा है वह कभी स्कूल जाना ही नहीं चाहता। अपनी तरफ से मैं भी उसे उस की ईमानदारी के लिए उसे वह वर्दी ईनाम के तौर पर देता हूं। उस की पढ़ाई के लिए में भी उस के स्कूल आ कर उस को कौपियां किताबें उपलब्ध करवाऊंगा। मैडम नें उसे अच्छी चित्रकारी करने पर रंग और ड्राइंग की कॉपी भी ईनाम में दी। स्कूल जा कर हीरा एक अच्छा बच्चा बन गया था। पढ लिख कर एक दिन हीरा नें अपनी माँ को सभी खुशियां दी।