यह कहानी बिहार के एक छोटे से कस्बे की है यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है लेकिन इस के पात्र काल्पनिक है। उस कस्बे में गंगाधर नाम का एक नाई रहा करता था। वह लोगों के बालों की कटाई इतने अच्छे ढंग से करता था कि लोग दूर-दूर से बाल कटाने के लिए उसके पास आते थे। उसकी दुकान पर लोगों का तांता लगा रहता था। कई बार तो साथ वाले दुकानदार भी उसकी तरफ देख कर उस पर कटाक्ष किया करते थे कि कुछ लोगों को हमारी दुकान पर भी भेज दिया करो। उस कस्बे में दो तीन नाईयों की दुकानें थी। उनकी दुकानों पर ज्यादा ग्राहक नहीं आते थे। गंगाधर की जिंदगी खुशी खुशी से व्यतीत हो रही थी। उसकी पत्नी कमला भी नेक औरत थी। उसकी 2 बेटियां थी।छोटी बेटी साक्षी आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी। दूसरी बड़ी बेटी प्राची दसवीं में। सुबह से शाम तक काम करते-करते वह बहुत थक जाता था। उसके गांव में बेटियों को पढ़ाना बहुत ही बुरा माना जाता था।। कई लोग तो अभी भी इतने रूढ़ीवादी विचारों के थे कि लोग अपनी लड़कियों को बिल्कुल भी स्कूल में नहीं भेजते थे। कुछ एक लोग थे जो अपनी बेटियों को थोड़ी बहुत शिक्षा दे देते थे। वे समझते थे कि लड़की को घर में ही बिठाना चाहिए। उसके तो बस शादी कर के हाथ पीले कर देनी चाहिए। गंगाधर ऐसा नहीं था उसकी सोच औरों से बिल्कुल भिन्न थी। वह चाहता था कि वह अपनी बेटियों को दसवीं तक तो अवश्य ही पढाएगा। वह यह नहीं सोचता था कि मैं अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेजूंगा। वह चाहता था कि वह अपनी लड़कियों को इतनी शिक्षा तो दे सके ताकि वह अपनी ससुराल में वक्त पड़ने पर अपने परिवार को संभाल सके। आसपास के लोग तो उस पर कटाक्ष भी किया करते थे तुम अपनी बेटियों को क्यों स्कूल में पढ़ने भेजते हो? बेटियों को स्कूल में भेजने से कोई फायदा नहीं होता। एक ना एक दिन बेटियों को तो शादी कर के हाथ पीले करके घर दूसरे घर जाना पड़ता है। वह क्या तुम्हें खिलाएंगी?
एक बार वह इतना बीमार पड़ गया कि दुकान पर नहीं जा सका। सारे के सारे लोग दुकान पर उस का बेसब्री से इंतजार करें थे, लेकिन वह बिस्तर से उठ भी नहीं सका। उसकी पत्नी बहुत ही दुःखी रहने लगी थी। जब उन्होंने उसे अस्पताल में दाखिल कराया तो डाक्टरों ने कहा कि उसके शरीर की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया है। जिस वजह से उसके सारे शरीर पर इसका असर हो सकता है। उसे आराम की बहुत ही सख्त जरूरत है अगर वह आराम नहीं करेगा तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। कमला ने जब यह सुना तो वह रोने लगी। उसकी बेटियां अभी छोटी थी। कुछ नहीं कर सकती थी। दोनों बेटियों ने आपस में सलाह की कि हमें भी कुछ ना कुछ तो करना ही चाहिए। वह भी अपनी मां के साथ रोने लगी थीं। एक गांव की बुजुर्ग महिला ने उन्हें समझाया कि रोने धोने से अब तुम्हारा काम नहीं चलेगा। तुम्हें ही अपने पिता के बुढ़ापे का सहारा बनना होगा। उन्होंने भी तो रातों रात जाग जाग कर तुम्हें पाने के लिए कितनी कुर्बानियां दी। तुम्हारी फीस देने के लिए रात-दिन कड़ी मेहनत की। मुश्किल की घड़ी में तुम्हें अपने बाबा की ताकत बनना चाहिए। तुम दोनों ही अगर जीवन से निराश हो जाओगे तो तुम्हारी मां तो ऐसे ही मर जाएगी। तुमको अपनी मां और बाबा को हौसला देना होगा
यह एक ऎसा समय है जो रो – धोकर समय गुजारने का नहीं है। मेरे बस में होता तो मैं तुम्हारी मदद करती मगर इस बुढ़ापे में तुम्हारे काम नहीं आ सकती। दोनों बेटियों ने सोचा बूढ़ी दादी ठीक ही कर रही है। हम रो रो कर समय गवा देंगे तो अपनी मां की रही सही जिंदगी भी नष्ट कर देंगे। हम बेटा नहीं हुए तो क्या हुआ? बेटों की तरह काम करके तो दिखा सकती हैं। उन्होंने अपनी मां को समझाया कि मां कुछ दिनों के लिए आप मामा के पास जा कर रहो तब तक हम अपने लिए नौकरी का गुजारा करती हैं। उसकी मां बोली तुम क्या कर सकती हो? तुम को लोग न जानें क्या क्या कटाक्ष सुनाएं जाएंगे। हमारे यहाँ तो बेटियों को बाहर काम करनें की सलाह नहीं है। तुम लोंगों को क्या क्या कहती फिरोगी। बेटियाँ बोली आप चिन्ता मत करो हमारे पिता नें हमें थोड़ी बहुत शिक्षा तो दे ही दी है। हम भी कुछ न कुछ कर के दिखाएंगी। हम किसी की परवाह नहीं करेंगी। आप को हम दोनों पर विश्वास रखना होगा।
उसकी मां अपने पति को लेकर अपने भाई के यहां पर चली आई। दोनों बेटियों ने आपस में सलाह की कि हम अपने पिता के व्यवसाय को संभालेंगे अगर लोग हम पर कटाक्ष करेंगे तो हम उसका जवाब अवश्य देंगे। क्या हुआ? अगर हम बेटियां हैं। हम भी तो अपने पिता का व्यवसाय संभाल सकती हैं। चाहे जो भी हो बेटियों का काम करना अगर बुरा समझा जाता हो तो भी हम अपने पिता की सहायता के लिए इस काम को अवश्य करेंगे। उन दोनों ने अपने पिता के व्यवसाय को संभाल लिया।
दोनों की दोनों एक दिन अपने पिता के दुकान पर बाल काटने गई। लोगों ने जब दुकान पर उन दोनों लड़कियों को देखा तो उन दोनों पर कटाक्ष करने लगे। लड़कियां होकर इस काम को करती हो तुम्हें शर्म नहीं आती। हमारे कस्बे में बेटियों का काम करना बुरा समझा जाता है। हम में से आज के बाद कोई भी यहां पर बाल कटाने के लिए ही नहीं आएगा। दोनों ने जब यह सुना तो वह रोने लगी फिर भी उन्होंने हौसला नहीं हारा। शाम को उन दोनों ने आपस में विचार विमर्श किया क्यों ना हम एक दूसरे के बाल काट डालें। बचपन में वह अपने पिता को इस काम को करते देखा करती थी। हमें अपने पिता का सारा का सारा काम अच्छे ढंग से आता है। साक्षी ने प्राची के बाल काट दिए और प्राची ने साक्षी के। वे दोनों लड़कों के समान दिख रही थी। उन दोनों ने बाजार से जाकर लड़कों वाली पोशाक भी खरीद ली थी। उस पोशाक को सिलाई कर के अपनें माप के अनुसार बना डाला। वे दोनों अपनी मां को सिलाई करते भी देखा करती थी। थोड़ा बहुत सिलाई करना भी जानती थी। लड़कों की पोशाक में वह बिल्कुल ही लड़का नजर आ रही थी
सबसे पहले उन्होंने कानपुर की ट्रेन ली। उनके मामा कानपुर रहते थे। अपने मामा के घर की ओर चल पड़ी। वह दोनों सोच रही थी कि हम अब किसी को भी यह नहीं बताएंगे कि हम लड़कियां हैं। हमारे मामा अगर हमें पहचान जाएंगे तो हमें पता चल जाएगा कि हमें इस वेशभूषा में भी सब पहचान सकते हैं। धीरे धीरे उसके के घर के पास वाले स्टेशन पर गाड़ी पहुंच चुकी थी। वे गाड़ी से उतरीं। उन्होंने वहां से रिक्शा लिया और अपने मामा के घर की ओर चल पड़ी। सबसे पहले उन्होंन घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया। घर पर उसकी मामी मामा और उन दोनों के मां बाबा थे। मामा ने जैसे ही दरवाजा खोला
वह बोले आप से हमें क्या काम है? आप कौन हैं और कहां से आए हैं? हमने आपको नहीं पहचाना। दोनों बेटियां मन ही मन खुश रही थीं कि चलो अच्छा ही हुआ कि हमें किसी नहीं नहीं पहचाना। मां बाबा भी अपनी बेटियों को नहीं पहचान पाए। हम अब अपने पिता के व्यवसाय को बड़े अच्छे ढंग से कर सकती हैं। हमें अब समझ में आ गया है कि हमें इसी पोशाक में रहकर और लड़का बनकर यही काम करना है। काफी देर तक बातें होती रहीं।
दोनों ने इशारा करके मामा को अपने पास बुलाया और कहा कि हम अकेले में आपसे बात करना चाहते हैं। उसके मामा यह देखकर हैरान हो गए कि दो अजनबी उनसे ऐसी क्या बातें करना चाहते हैं? उनका मामा उन्हें एक बड़े हॉल में ले गया। वहां पर बैठकर वे तीनों बातें करने लगीं। दोनों बेटियां बोली मामा जी नमस्ते। वह उनको हैरान भरी नजर से देखने लगा।
साक्षी और प्राची ने सारा किस्सा अपने मामा को सुनाया और कहा कि हमारे बाबा तो अब कोई भी काम नहीं कर सकते। उन्हें तो डॉक्टरों ने सलाह दी है की अगर आप आराम नहीं करेंगे तो अपनी जीवन लीला से हाथ धो बैठेंगे। इसलिए किसी ना किसी को तो काम करना बहुत ही जरूरी था। मामा जी आपको तो पता ही है कि हमारे कस्बे में बेटियों का काम करना बहुत ही बुरा समझा जाता है। अपने पिता की बीमारी की खबर सुनकर मां तो जोर जोर से रोने लगी और हम भी जोर जोर से रोने लगे। मोहल्ले की एक बूढ़ी काकी ने आकर हमें दिलासा दिया और कहा कि रोने धोने से अब कोई काम नहीं होगा। तुम्हें हौसला रखना चाहिए और अपनी मां को संभालना चाहिए। भले ही लड़की का काम करना बुरा समझा जाता है परंतु तुम्हारे माता-पिता ने भी तो तुम्हें पालपोस कर इतना बड़ा किया है क्या तुम उनको नहीं संभाल सकती? रातों रातों को जाग कर उन्होंने तुम्हारी शिक्षा के लिए न जाने कितनी मुश्किलें झेलीं। मुश्किल की घड़ी में क्या तुम उनको अकेला छोड़ देगी? तुम ही उनके बेटों के बराबर हो। हम दोनों ने आंसू पोंछ डालें और उस बूढ़ी काकी को धन्यवाद किया और साहस करके अपने पिता की दुकान को संभालने के लिए निकल पड़ी। हम जैसे ही दुकान पर पहुंचीं लोगों ने हम दोनों पर कटाक्ष करना शुरू कर दिया। लड़कियां होकर काम करती हो। क्या तुम्हें शर्म नहीं आती? हमारे कस्बे में लोग क्या कहेंगे? मन तो कर रहा था कि उनको कड़ा जवाब देते परंतु फिर हम चुप रह गई। दो-तीन दिन तक हमारे पास कोई भी काम नहीं आया। दुकान पर ताला जड़ा और घर की ओर आ गईं। हमने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। हम अपने पिता को बचपन से ही काम करते देखा करते थे। मैंने और प्राची ने एक दूसरे के बाल काट डाले। हमारे मन में ख्याल आया क्यों ना हम लड़का बनकर इस काम को करें तो कैसा रहेगा? उनके मामा बोले बेटा तुम तो बहुत ही बहादुर हो। आज तो मैं भी तुम दोनो को इस पोशाक में पहचान नहीं पाया। साक्षीऔर प्राची बोली कि आप कभी भी हमारे माता-पिता को यह नहीं बताना कि हम दोनों लड़का बनकर उनकी सेवा कर रहे हैं। आपको इस काम में हमारी मदद करनी होगी। आपको किसी को भी नहीं बताना होगा कि हम दोनों साक्षी और प्राची हैं। उनके मामा बोले ठीक है बेटा मैं किसी को भी नहीं बताऊंगा यह बात हम तीनों के बीच में ही रहेगी।
साक्षी और प्राची अपने मामा को कहने लगी मामा अब हम चलते हैं। आप हमारे मां बाबा का ख्याल रखना। जैसे ही हमारा काम चलने लगेगा हम दोनों अपने माता पिता को लेने अवश्य आएंगे।
साक्षी और प्राची दोनों अपने गांव लौट आई थी उन्होंने आते ही दुकान का ताला खोला और देखते ही दुकान को सजा डाला। आते जाते लोग उन दोनों नव युवकों को घूर घूर कर देख रहे थे। धीरे-धीरे लोग उनकी दुकान पर आने लगे। लोगों ने उन दोनों लड़कों से पूछा कि क्या तुमने गंगाधर का काम संभाल लिया है? वह बोले कि गंगाधर ने हमें यह दुकान किराए पर दी है। वे कहने लगें ठीक है बेटा। धीरे-धीरे उनकी दुकान पर लोग आने लगे। कई लोग जब वह बाल काट रही होती तो कहते कि तुम्हारे हाथ तो लड़कियों के जैसे हैं। इस प्रकार काम करते करते उन्हें तीन-चार साल हो गए। उन्होंने अपने मां बाबा को भी अपने पास बुला लिया। जब वह घर आती थी तो अपने बालों में विग लगाकर आती थी ताकि मां बाप को कभी भी पता ना चले कि उनकी बेटी बेटियां लड़का बनकर उनकी सेवा कर रहीं हैं। इसी तरह से दिन गुजर रहे थे
एक दिन उनके बाबा नें घर पर बहुत देर तक इंतजार किया । वे दोनों ट्रैफिक में फंस गई थी। घर नहीं पहुंच पाई थी। उनके मां बाबा उन्हें न आया देख कर परेशान हो रहे थे। रात का वक्त हो गया है लड़कियां अभी तक नहीं पहुंची है । पता नहीं आजकल कहां रहती हैं? मैं भी इन पर नजर नहीं रख सकता।उनके बाबा सोचनें लगे कहीं मेरी बेटियां किसी गलत काम में तो नहीं पड़ गई हैं जो इतनी देर तक रात को आती हैं। वह अपनी पत्नी कमला से बोले कि हमें अपनी बेटियों पर नजर रखनी पड़ेगी।
एक दिन जब वह काम के लिए घर से निकल रही थीं दोनों के हाथ में एक बैग था। ना जाने उस बैग में क्या होता था जिसको छुपा कर रखती थी। उसके बाबा उन दोनों पर कड़ी नजर रखते थे। इस बैग में ऐसा क्या है जो कि वह हमें बताना नहीं चाहती। एक दिन तो उसके बाबा गुस्सा होकर बोले आज तो तुम्हें इस थैले को खोल कर बताना ही पड़ेगा। जल्दी से साक्षी ने प्राची का हाथ पकड़ लिया और थैला उसकी ओर फेंका और वह बात पलट दी। उसके पिता अपने मन में सोचने लगे पता नहीं इस बैग में क्या है? जो यह मुझसे छुपाना चाहती हैं। उसने अपनी पत्नी को भी सारी बात बता दी। कमला ने अपने पति को बताया था कि घर के खर्च के लिए मेरे भैया यहां पैसा भेजते हैं जिससे हमारे घर का गुजारा चल रहा है। गंगाधर सोचने लगे मैंने अपनी लड़कियों को यूं ही पढ़ाया लिखाया। वे तो ना जाने क्या क्या गुल खिला रही हैं?
एक दिन शाम के समय गंगाधर ने देखा उन दोनों ने अपना बैग पलंग के नीचे छुपा दिया था। दोनों तैयार होने के लिए जाने लगी उनकी मां बोली बेटा नाश्ता तो कर के जाओ। उनके मां बाबा को तो यही पता था कि वह स्कूल पढ़ने जा रही हैं मगर उन्होंने अपने मां पिता को नहीं बताया था कि वह स्कूल पढ़ने नहीं बल्कि अपने पिता का कारोबार संभाल रही हैं। उन्होंने स्कूल तो कभी का छोड़ दिया था। गंगा धर घर में बैठा बैठा थक जाता था। कभी कभी अपनें यार दोस्तों की मदद से समीप के रैस्टोरैन्ट में अपना मन बहलानें उनके साथ कभी कभार चला जाता था।
गंगाधर को मौका मिला उसने एक दिन थैले को उठा ही लिया और खोला। खोल कर देखा उसमें तो लड़कों के कपड़े थे। वह सोचने लगा मेरी बेटियों ने लड़कों के कपड़े क्यों रख रखे हैं?। परंतु उस समय उसने उन दोनों से पूछना ठीक नहीं समझा। दोनों पोशाकों को ऐसे ही थैले में रख दिया था। दिन के समय वे अपनी पत्नी के साथ अपनी दुकान पर पहुंचे। उन्होंने सोचा कि आज तो मैं देख कर ही रहूंगा कि मेरी दुकान पर यह दो नवयुवक कहां से आए हैं? उन से आज मुलाकात करके हीरहूंगा। दुकान पर जैसे ही पहुंचा उन दोनों ने बाबा को नमस्कार किया और कहा आप कहां से आए हैं? क्या आप बाल को कटाना चाहतें हैं? यह पोशाक तो मैंने साक्षी और प्राची के थैले में देखी थी। यह तो इन दोनों ने पहन रखी है। कहीं मेरी बेटियां इन दोनों लड़कों के साथ घुली मिली तो नहीं है। शाम को इन दोनों से पूछ कर ही रहूंगा। इन दोनों लड़कों से पूछना भी ठीक नहीं रहेगा।
गंगाधर ने कहा नहीं बेटा मैं ऐसे ही आया था सोचा अपनी दुकान को देखता चलूं। तुम से बैठकर फिर किसी दिन अच्छे ढंग से बात करूंगा। अपनी बेटी पत्नी कमला के साथ घर की ओर चल पड़ा। घर पहुंच कर उसके मन में ना जाने कैसे कैसे सवाल आ रहे थे?
साक्षी और प्राची 5:00 बजे के समय घर आती हैं चलो उसी दुकान पर चलकर प्रतीक्षा करता हूं जहां पर वह चाय पीती हैं। वह रैस्टोरैन्ट तो पास ही है। वह अपने दोस्त शेखर के साथ उस रैस्टोरैन्ट में चला गया। चुपके से देखता हूं कहीं वह दोनों नवयुवक तो इनके साथ तो नहीं मिले हुए हैं। छुप कर अपनी दोनों बेटियों को देखने लगा। आज तो उनकी दोनों बेटियों के स्थान पर वह दोनों लड़के पहुंचे थे। मैं ठीक ही सोचता था मेरी बेटियां इन लड़कों के साथ मिलकर ना जाने क्या क्या करती है? शेखर के साथ चाय पीने लगा था। वह उन दोनों लड़कों को साथ वाले कमरे में जाते हुए देख रहा।
वह अपने मन में सोचने लगा जैसी ही यह दोनों बाहर आएंगे मैं आज उन दोनों से पूछ कर ही रहूंगा। थोड़ी देर बाद अंदर से दो लड़कियां निकली। वह चौक गया अंदर तो दोनों लड़के गए थे मगर बाहर निकली तो दोनों लड़कियां। आज घर जाकर पता करता हूं वह रात भर अपनी बेटियों पर निगरानी रखने लगा। सुबह जैसे ही प्राची सो कर उठी उस ने अपना और साक्षी का विग उस बैग में डाल दिया। जल्दी से गंगा धर कमरे में आया और उसने बैग को खोला विग देखकर उसे सारा माजरा समझ में आ गया।
यह दोनों बेटियां ही लड़कों की पोशाक में मेरा कारोबार सम्भाल रही हैं। मैं अपनी बेटियों के बारे में ना जाने क्या-क्या सोच रहा था?मेरी बेटियां तो हीरा है हीरा। आज मेरी बेटियों ने मेरे कारोबार को संभाल कर मेरा नाम रोशन कर दिया है। मैंने अपनी बेटियों के बारे में गलत सोच बना दी थी। अच्छा हुआ मैंने अपनी बेटियों को नहीं बताया। शाम को उन के मामा कानपुर से उन के कस्बे में आए थे। दोनों बेटियाँ घर पहुंच गई थी। अपने मामा के पैर छू कर उन से आशिर्वाद लिया। उनके मामा बोले बेटा तुम तो बेटे से कम नहीं हो। उनके बाबा आ कर बोले मेरी शिक्षा बेकार नहीं गई आज मुझे समझ आ गया है कि लडकियां भी बेटों से कम नहीं होती। दोनों बेटियां हैरान हो कर अपने पिता की तरफ देख रही थी। गंगाधर बोला हमारे कस्बे में अभी भी बेटियों को पढ़ने नहीं भेजा जाता। यह बात गल्त है। खुदा न करे घर में किसी को ऐसी खतरनाक बिमारी लग जाए और उस घर में बेटा न हो कर बेटी है तो वह तो मर ही जाएगा। ऐसी सोच को हमें जड से निकालकर दूर फेंकना होगा। मैनें तो अपनी बेटियों को पढाया। और पढ़ना चाहता था लेकिन बीमारी नें साथ पकड़ लिया। मेरी बेटियां न जानें आज इतनी बड़ी हो गई। उन दोनों नें मुझे और अपनी मां को पता ही नहीं चलने दिया अपनी पढाई बीच में छोड़ कर मेरा कारोबार सम्भाल रहीं हैं वह भी लड़का बन कर। बेटा तुम दोनों आज मेरे गले लग जाओ। मैं कितना खुशनसीब हूं तुम दोनों नें मेरे घर जन्म लिया।उनके मामा बोले इस बात का मुझे पता था। उन दोनों नें मुझे सारी बात पहले ही बता दी थी। उन्होंनें मुझे कसम दिला कर कहा था कि यह बात हम तीनों में ही रहनी चाहिए। इस कारण मैनें आप लोगों से कभी नहीं बताई। आप लोगों को मैं कोई रुपये नहीं भेज रहा था वह सब तो आप की बेटियां कमा रहीं थी। उन्होनें ही मुझे ऐसा करनें के लिए कहा था।
कस्बे वालों को पता चल चुका था कि वह दोनों नवयुवक कोई और नहीं बल्कि वह तो उनकी अपनी ही बेटियां हैं जिन्होनें अपने बाबा को बचानें के लिए लडका बन कर अपने पिता का कारोबार सम्भाला है। जब लडकियां बन कर वह दुकान पर बैठती थी लोग उन पर न जानें कितने छीटांकशी करते थे। उन्हें शाम तक क्या क्या सुनना पड़ा। एक दिन तो उन को कह ही डाला हम आज के बाद इस दुकान पर बाल कटाने नहीं आएंगे। उन दोनों नें अपनें पिता के कारोबार को बहुत ही अच्छे ढंग से सम्भाला। और आज तक सम्भाल रही हैं। आज वही लोग उन दोनों लडकियों की प्रशंसा करनें से नहीं थकते। कस्बे के लोग जागरुक हो चुकें हैं। उन्होंने अपनी बेटियों को पढ़ाना लाखन आरम्भ कर दिया है। उन के पिता आज भी बिमार हैं। वे दोनों बेटा बन कर अपनें पिता के व्यवसाय को चार चांद लगा कर अपनी मां का भी ख्याल रख रहीं हैं। नाज हैं एसी बेटियों पर जिन्होनें अपनें मकसद में सफल हो कर दिखाया।