मां की सीख

मुन्नी को स्कूल के वितरण समारोह में ईनाम मिला था। एक छोटी सी गुल्लक  पाकर मुन्नी खुशी से फूले नहीं समा रही थी। वह दौड़ कर अपने दादाजी के पास आई बोली दादाजी। मुझे आज गुल्लक ईनाम में मिली है। दादा जी बोले बेटा बैठ मेरे पास। आज मैं तुम्हें एक बहुत ही अच्छी बात बताना चाहता हूं। तुम बहुत ही होशियार लड़की हो। खूब दिल लगाकर पढ़ती हो। अपनी कॉपियां किताबों को फाड़ती नहीं।  हर रोज वर्दी पहनकर स्कूल जाती हो। नाखूनों को काटना आदि से लेकर तुम अपनी दिनचर्या से लेकर सभी काम अच्छे ढंग से करती हो। इसका श्रेय तुम्हारी मां को जाता है। तुम्हारी मां सुबह उठकर तुम्हें प्यार करती है खाना बनाती है तुम्हारे लिए सब कुछ करती है। तुम्हें भी अच्छा बनकर दिखाना है ताकि उन्हें भी तुम पर गर्व हो। वह बोली दादा जी ठीक है। तुम अपनी मम्मी की बातों को अच्छे ढंग से समझा करो। जो भी वह तुम्हें सिखाएं उन्हें अपने जीवन में उतारो। वह बोली अच्छा दादाजी। ठीक है।

 

मुन्नी की मम्मी ने उसे बुलाया बेटा मुन्नी इधर आओ। आज मैं तुम्हें ईनाम दूंगी। अपनी मां के गले से लिपटी। मेरी मां जल्दी बताओ मुझे क्या देना चाहती हो। आज मैं तुम्हें एक सीख देना चाहती हूं बेटा। मैं तुम्हें यह पचास रुपये देती हूं। इसको गुल्लक में डालो। जो कोई भी तुम्हे रुपये दे तुम इन रुपयों को अपनी गुल्लक में डाला    करो। जब तुम्हारे पास गुल्लक में बहुत रुपए इकट्ठे हो जाएंगे तब तुम अपने मनपसंद का उपहार ले सकती हो। उसने पचास रुपये अपनी मां के हाथ से लेकर गुल्लक में डाल दिए। उसकी मम्मी बोली बेटा इस दुनिया में हमें अच्छे काम करने चाहिए। हमें अपने लिए ही जीना नहीं चाहिए। दूसरों के लिए भी हमें कुछ करना चाहिए तभी हमें खुशी मिलती है। अपने लिए तो सभी कुछ ना कुछ करते हैं।

 

तुम्हारे भाई का जन्मदिन होता है तुम उसके लिए कुछ ना कुछ देती हो। वैसे ही तुम उन बच्चों के लिए भी कर सकती हो जिनके पास वह वस्तु नहीं होती जिसकी उसे आवश्यकता होती है। मैं कल तुम्हारी अलमारी ठीक कर रही थी। तुम्हारी सारी अलमारी उपहारों से भरी पड़ी है।  खिलौने ही खिलौने। मुन्नी बोली मां हम कैसे दूसरों की सहायता कर सकते हैं।? मेरे पास रुपए तो नहीं। जब मैं बड़ी हो जाऊंगी तब मैं सबकी मदद किया  करुंगी।

 

उसकी मम्मी बोली बेटा बड़े बनकर ही हम मदद नहीं कर सकते। अभी क्यों नहीं? अभी भी तुम कुछ कर सकते हो। रुपयों से ही सहायता नहीं की जा सकती बेटा। जो कुछ भी तुम्हारे पास है उससे भी हम हर एक की मदद कर सकते हैं। जिस वस्तु की आवश्यकता होती है जैसे हमारे घर के सामने वाले कॉलोनी में एक छोटी सी लड़की है। उसके पास एक ही फ्रॉक है। तुम अपनी पुरानी फ्रॉक में से एक  उसे दे सकती हो। वह फटी नहीं होनी चाहिए। स्कूल में तुम लंच बॉक्स ले जाते हो अगर कोई बच्चा खाना नहीं लाता तो तुम अपने लंच में से थोड़ा सा उसे दे सकती हो। तुम्हारे पास दो पेंसिल है एक पेंसिल तुम उसे दे सकती हो। रुपयों से ही नहीं। हर एक चीज को हम बांट कर उन बच्चों के चेहरों पर खुशी ला सकते हैं बेटा। मुन्नी बोली ठीक है।

दूसरे दिन जब वह स्कूल गई वह बहुत ही खुश थी। उस रास्ते में एक लड़की मिली उसके जूते फटे हुए  थे। शाम को उसकी बस्ती में जाकर उसे जूते  दे कर आई।  जब वह उस छोटी सी खोली की बस्ती में गई वहां पर उन बच्चों को देखकर उसकी आंखें भर आई। वही पांच पांच बच्चों का पेट भर रहे थे। एक छोटी सी खोली में रह रहे थे।  किसी के पास जूते नहीं। किसी के पास कपड़े नहीं थे।

 उसके मन में एक छोटी सी उम्र में उनके प्रति अपनत्व  की भावना जागृत हो गई। उसको जो कोई भी उपहार में रुपए देता  उनको  वह अपनी गुल्लक में डाल देती। उन रुपयों से उन बस्ती वाले बच्चों की मदद करती। अपने खेलने के खिलौनों में से गुड़िया कपड़े जूते उन को दान कर देती। धीरे-धीरे वह बारह साल की हो गई।

 

उसने सोचा क्यों ना मैं ही इस छोटी बस्ती वाले बच्चों की गुरु बन जाती हूं? उसने उन बस्ती वाले बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। जो कुछ

स्कूल में पढ़ा करती उन्हें भी पढ़ाती। जिन बच्चों के पास कॉपी पेंसिल नहीं होती उनको अपने पास  से देती। सफाई के बारे में बताती।  मुन्नी ने अपनी सहेलियों को बताया कि तुम भी अपने  गुल्लक में रुपए डालते जाओ।  

 

उसने अपने साथ दस लड़कियों को जोड़ लिया। मीना को कहा तुम अपने गांव में जो कोई भी निरक्षर  महिला या बच्चा है उसे पढ़ाना है। शोभना को कहा कि तुम देखना कि किस घर में सफाई है या नहीं है। एक एक बच्चे को अपने घर से टूथपेस्ट ले जाकर बांटना

और उन्हें दांत सफाई करने को के महत्व को समझाना। रीमा को कहा कि तुम घर से अपने पड़ोस के हर घर से जो खाना बच जाता है उसको इकट्ठा कर पास के अस्पताल में मरीजों को मुफ्त में खाना दिलाना  आदि का काम। इस तरह  छःलड़कियों ने अपने साथ दस बच्चों को जोड़ दिया। रीना को पढ़ाई का विभाग बांट दिया। शोभना को सफाई का विभाग। रीमा को खाना बांटने का काम। रानी को घर घरों में जाकर पानी को व्यर्थ ना गवाएं उसके महत्व को बताना। इस तरह उन लड़कियों के ग्रुप नें काम करना शुरू कर दिया।

एक दिन मुन्नी को रास्ते में बन्टू मिला। बन्टू से पूछा। तुम अख़बार लेकर कहां जा रहे हो? वह बोला मैं इन अखबारों को बांटता हूं फिर स्कूल जाता हूं। मैं 3 किलोमीटर हर रोज अखबार बांटने जाता हूं। मुन्नी यह सुनकर खुश हुई। उसने बन्टू के साथ दोस्ती कर ली। उस नें बन्टू को बताया हम भी छः सहेलियाँ मिल कर अलग अलग काम करतें हैं। उसे हर रोज बन्टू रास्ते में मिलता। एक दिन बन्टू भागता हुआ जा रहा था वह बोली। तुम दौड़ दौड़ कर कहां जा रहे हो।? बोला आज मैं बहुत खुश हूं आज मुझे वेतन मिला है। जब अंकल मुझे वेतन बांट रहे थे तो मेरे पास ₹10 ज्यादा आ गए। मेरी मां ने कहा अखबार वाले अंकल को यह रुपए वापस दे आ।   मैं उस अख़बार वाले अंकल के पास दोबारा वापस लेने गया तो वह बहुत खुश हुआ बोला तुम बहुत ईमानदार हो यह ₹10 तुम ही रखो। मैं आज से तुम्हारे ₹50 बढ़ा देता हूं। आज मैं बहुत खुश हूं। जब मैंने ₹10 घर में बताया कि मेरे पास ज्यादा आ गए हैं तो मेरी बहन रुपए देखकर बोली भैया मुझे चॉकलेट लाना। उसने कभी भी चॉकलेट नहीं खाई है। मैं आज उसे चॉकलेट ले कर जाऊंगा।

 

मुन्नी उसकी यह बात सुनकर चौकी। उसने चुन्नू के घर का पता किया। वह चुन्नू के घर पर गई। उसने वहां पर जाकर उसकी बहन को चॉकलेट दी।

 

वह बड़ी होकर समाज सेवा में जुट ग्ई। उसने अपना सारा जीवन गरीबों की मदद के लिए कुर्बान कर, दिया। बच्चों तुम भी अपने घर में, स्कूल में, अपने आसपास, हर किसी वस्तु का को वितरण कर उन सभी बच्चों के चेहरों पर मुस्कान ला सकते हो। जिस वस्तु की उस बच्चे को आवश्यकता होती होगी। वह तुम्हारा दोस्त भी बन जाएगा और तुम्हें  यह कर के ख़ुशी भी प्राप्त होगी।

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