स्वामी विवेकानंद

12 जनवरी 1863ई‌, पौष कृष्णा सप्तमी  मकर सक्रांति के दिन सुबह 6 बज कर 33 मिन्ट 33 सेकंड पर नरेंद्र नाथ जी का जन्म हुआ । वे विश्वनाथ दत्त  और  भुवनेश्वरी

देवी  की छटी सन्तान थे।उनकी माता को विश्वास था कि काशी के वीरेश्वर शिव की कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई ,इसलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम  वीरेश्वर रखा। वीरेश्वर से ही उन्हें बिले कह कर पुकारा जाने लगा। बचपन से ही असाधारण मेघा, तेजस्विता स्वतंत्र विचारधारा वाले,साहसी, सहृदयता ,भाई बंधु से प्रेम और खेल कूद के प्रति  उन्हें आकर्षण  दिखाई देता था ।वे राम सीता और शिव की पूजा करते थे ।उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस जी थे। देश के विकास में विवेकानंद जी के योगदान को कभी  भी भुलाया नहीं जा सकता ।तूफानों से कभी भी विचलित ना होने वाले अध्यात्मिक गुरु के संदेशों को दिलों से मिटाया नहीं जा सकता ।

नवजागरण का शंखनाद करने वाले महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद सरलता सादगी तथा दृढ़ निश्चय विश्वास वाले ।उनकी वाणी में बिजली सी अद्भुत शक्ति थी।  अध्यात्म और वेदांत का ज्ञान उन्होंने दिया। अनेक भाषाओं के प्रकांड पंडित थे। भारत धर्म और संस्कृति का अच्छा ज्ञान उन्हें था विवेकानंद जी अपने निष्ठा और आध्यात्मिकता से कभी भी विचलित नहीं हुए। उनकी प्रतिभा आकर्षक तेजस्वी कांति और आध्यात्मिक प्रभाव से सभी प्रभावित हुए। भारतवर्ष के असली स्वरूप को स्वामी जी ने भी हृदय से पहचाना। स्वामी जी अमेरिका के बड़े-बड़े शहरों में धर्म प्रचार करने के लिए गए। भारतवर्ष के नवजागरण के प्रत्येक क्षेत्र को स्वामी जी ने अपूर्व रूप से प्रभावित किया है। वे भारतीय स्वाधीनता के जनक हैं ।हमारी राजनैतिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वाधीनता के पिता हैं। स्वामी जी के लिए मनुष्य ही भगवान है। मनुष्य में ही उनका सर्वोत्तम प्रकाश  है।ईश्वर बुद्धि से मनुष्य की सेवा ही उनके लिए धर्म है। जीव से प्रेम करें जो जन वही जन वहीं जन पूजता है ईश्वर। ईश्वर सर्वत्र है मंदिर में भी है लेकिन मंदिर में जो विग्रह है वह अचल है।वे  हिलते डुलतेनही।ं बातें नहीं करती लेकिन आर्त मनुष्य  बातें करता है । अपना सुख दुःख एक दूसरे से बांटता। है।

भारत की राष्ट्रीय चेतना के वे ही  प्रधान उन्नायक थे ।वे मानव बंधु थे।

देवत्व का विकास ही जीवन का लक्ष्य है। केवल अपना सुख नहीं सब का सुख। मैं केवल अपने लिए नहीं जीऊंगा,वरना मैं अपने पड़ोसी के लिए ,अपने समाज के लिए ,अपने देश के लिए जीऊंगा।एक जाति, एक देश के बीच में ऐसे मनुष्यों की संख्या जो निस्वार्थ प्रेमी हो, चरित्र वान हो, कर्मठ हो ,साहसी  हो,बुद्धिमान हो ,जितनी अधिक होगी वह जाति,  देश प्रगति की दिशा में उतना ही आगे बढ़ेगा। वह  प्रगति तभी संभव होगी जो व्यक्ति अपने अंतर्निहित पूर्णता को प्रकाशित करने के लिए प्रत्याशी होगा।

वे सभी मनुष्य से प्रेम करते थे। उन्होंने  मानव में ही ईश्वर को देखा था ।भारत के मोची मेहतर उनके भाई  उनके रक्त थे।भारत उनके बचपन का झूला ,यौवन की फुलवारी, बुढ़ापे की काशी थी। भारत का प्रत्येक धूल कण उनके लिए  पवित्र था।

सत्य के लिए सब कुछ त्याग  किया जा सकता है। ।किसी चीज के लिए  सत्य का त्याग नहीं किया जा सकता ।भारत सत्य की साधना में डूबा हुआ है ।भारत ही सत्य है ।भारत की मृत्यु होनें से सत्य की मृत्यु होगी।  सत्य की साधना के कारण ही भारत पुण्य भूमि है। क्योंकि सत्य ही मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ संपत्ति है। उनका कथन था कि मानव ही ईश्वर है।उन्होंने सदा दिया ही दिया ,कुछ लिया नहीं।  सभी धर्मों में उनकी श्रद्धा थी। भारत आज भी बहुत कुछ दे सकता है।संपूर्ण पृथ्वी आज भी भारत की ओर  आंख उठाएं देख रही है ।

स्वामी जी कहते थे कि यदि एक व्यक्ति बुध हो सकता है तो हम में से प्रत्येक बुध हो सकता है। हम में से प्रत्येक में यह संभावना है ।जीवन का उद्देश्य है कि उस संभावना को प्रकट करना। केवल बाहरी संपति अर्जित करना  यथेष्ट नहीं। अंदर की संपत्ति भी अर्जित करनी होगी। अंदर की संपत्ति माने सत्य अनुराग ,प्रेम प्रीति ,स्वार्थ  हीनता।दूसरों के सुख में स्वयं सुखी होना, दूसरों के दुख में दुखी होना ,यही धर्म का सार है।

विज्ञान के द्वारा बाहरी प्रकृति पर विजय प्राप्त की जा सकती है और धर्म के द्वारा अंतर प्रकृति पर। धर्म ही मनुष्य को उदार बनाता है।प्रेमी बनाता है ।सत्यनिष्ठ बनाता है ।उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस जी थे।  उनके गुरु के दो मंत्र जीवों के प्रति  शिव ज्ञान और दरिद् नारायण। विवेकानन्द जी का प्रत्येक कार्य श्री रामकृष्ण द्वारा ही निर्देशित था।वे भारतीय स्वाधीनता के जनक हैं। भगिनी निवेदिता जी ने कहा है भारतवर्ष था उनके रात्रि का दुस्वपन।रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

1  एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारों ठोकरें खानें के बाद ही होता है।,

2 अपना जीवन एक लक्ष्य पर निर्धारित करो।।

3 उठो,जागो,तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो।लोग जो चाहें जो कहें,अपने सिद्धांतों पर अटल रहो।

4जुलाई 1902को वे सदा सदा के लिए अपना  पवित्र शरीर त्याग कर  ब्रह्मांड में लीन हो गए।

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