हाथी और उसका दोस्त पूरु

एक दर्जी था। वह रोज लोगों के कपड़े सिलकर अपनी आजीविका चला रहा था। लोगों को उस दर्जी से कपड़े सिलवाना अच्छा लगता था क्योंकि वह लोगों के कपड़े बहुत ही अच्छे ढंग से उनके नाप के अनुकूल सिलाई करता था। उसका एक बेटा था वह कॉलेज में पढ़ता था। वह अपने पापा को कहता था कि पापा इतने अच्छे कपड़े कैसे सिल लेते हो? मेरे सभी दोस्त आपके सिले हुए कपड़ों की प्रशंसा करते हैं। मुझे बहुत ही खुशी होती है जब वे सभी आपकी प्रशंसा करते हैं। मेरा सिना गर्व से तन जाता है। मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझता हूं। आप अपना काम इतनी ईमानदारी से करते हैं।

उसका पिता बोला बेटा मैं हमेशा अपना काम ईमानदारी से करता हूं भले ही मुझे किसी के कपड़े को सिलने में देर हो जाए तब तक मुझे तसल्ली नहीं होती जब तक मैं उन्हें ठीक ढंग से ना सिलसिला लूं। उसका बेटा विभु बोला पापा मेरे दोस्त कहते हैं तुम्हारे पापा सचमुच में ही तारीफ के काबिल है। इस गांव में और भी दर्जी है मगर कोई कपड़ा चुरा लेता है। कोई तंग बना देता है। कहीं से छोटा कहीं से बड़ा।

दर्जी शाम के समय हमेशा अपने घर के पास ही सैर करने जाता था। उसके घर के पास ही एक नदी थी। जिसमें वह हर रोज नहाता था। उसका एक दोस्त हाथी था। वह भी शाम के समय आ कर उसके साथ खेला करता था। उन दोनों की इतनी गहरी दोस्ती थी कि इंसानों में भी इतनी गहरी दोस्ती देखने को नहीं मिलती। वह अपने हाथी को बहुत ही प्यार करता था। उसने अपने हाथी का नाम रखा था पूरु जैसे ही वह उसे पूरु पूरूबुलाता था। पूरु दौड़ता दौड़ता उसके पास आ जाता था। अपनी सूंड से हाथी अपने दोस्त के हाथ से खाता। जो कुछ दर्जी लाता उसको वह बहुत ही प्यार से खाता। कपड़े सिलने के पश्चात अपना मन बहलाने के लिए हर रोज नदी के तट पर जा पहुंचता। उसको देखते ही दोनों की दोस्ती को देखकर सारे आने-जाने वाले भी उनकी दोस्ती देखकर दंग रह जाते। वह उनकी फोटो अपने कमरे में कैद करते।

एक दिन की बात है कि विभु के दोस्त दर्जीके पास आए बोले हमने सूट सिलाना है। कृपया करके कल सिल कर दे देना। राजेश की तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं थी। उसने कहा बेटा तुम मेरे बेटे विभू के दोस्त हो। मेरी तबीयत ठीक नहीं है। जिस वजह से मैंने तुम्हारा सूट जल्दी नहीं सिलसिला सकता अगले हफ्ते सूट सिल दूंगा। विभु का दोस्त मान गया। राजेश के पास इतना काम आ गया वह जल्दबाजी में उसका सूट सिलना भूल गया। जब औरों के कपड़े देख रहा था तो कपड़ों में उसके दोस्त का कपड़ा दिखाई दिया। विभूषित कादोस्त अपना सूट लेने आया था। विभु ने अपने दोस्त को कहा तुम्हारे पिता के पास मैंने सूट सिलने को दिया था। उन्होंने सिल दिया होगा। राजेश को बड़ी ग्लानि महसूस हुई। वह बोला बेटा मुझे माफ कर देना तुम्हारा सूट सिलना मैं भूल गया। उस के दोस्त ने विभु को गुस्से में ना जाने क्या-क्या कह डाला। गुस्से में वह अपने पिता के पास आया बोला पापा आप ने जानबूझकर मेरे दोस्त का सूट नहीं सिला। वह बोला बेटा ऐसी बात नहीं है। कुछ दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। तुम्हारे दोस्त का सूट सिलना भूल गया। मैंने उस से क्षमा भी मांग ली है।

विभु को मन ही मन अपने पापा पर गुस्सा आया। शाम के समय राजेश अपने हाथी के साथ खेलने चला गया। हाथी के साथ खेलते देख विभु देख रहा था। उसको अपने पापा पर गुस्सा आया। इस हाथी के साथ खेलने के लिए तो मेरे पापा के पास समय है। मगर मेरे दोस्त का सूट सिलने के लिए समय नहीं है। उसने आव देखा ना ताव दर्जी जब नदी के पास कपड़े धो रहा था उसके बेटे ने तौलिए में सुई रख दी। उस तरह से हाथी को नुकसान पहुंचाना चाहता था। सुई हाथी की सूंड में चुभ गई। दर्जी को तो पता ही नहीं चला। हाथी चिंघाड़ता हुआ वह आज से भाग गया। डर के मारे उसे अपने दोस्त पर गुस्सा आ रहा था। उसके दोस्त ने उस पर सुई चुभोकर वार किया था।

दर्जी तो अपने घर आ गया। हाथी कई दिनों तक नदी के पास नहीं आया। दर्जी बहुत उदास रहने लगा। उसका दोस्त ना जाने कहां चला गया है। एक दिन दर्जी कपड़े सिल रहा था अपने उसने बहुत सारे कपड़े सिल कर रखे हुए थे। हाथी भी उसकी दुकान के पास आकर बाहर बैठ गया। हाथी सोच रहा था कि जैसे ही दर्जी दरवाजा खोलेगा वह अपने दोस्त से बदला ले लेगा। उसने जानबूझकर मुझे सूई चुभोई है। हाथी ने देखा उसके आस पास से बहुत सारे लड़के वहां पर जोर-जोर से बातें कर रहे थे। उसमें दर्जी का बेटा विभु भी था। उसका दोस्त बोला तुम्हारे पापा ने मेरा सूट नहीं सिला कोई बात नहीं। तुमने अपने पापा को ना जाने क्या-क्या कह सुनाया। मैंने तो गुस्से में ऐसा कह दिया था। तुमने तो अपने पापा पर विश्वास नहीं किया। तुम तो उनके बेटे हो।

विभु बोला मैंने तो उस दिन अपने पापा का बदला लेने के लिए उस हाथी को मोहरा बनाया मैंने सोचा पापा तो हरदम पुरु पुरु करते रहते हैं। मैंने जिस तौलिए से वह पुरु को पौंछतें हैं उसमें सूई फंसा दी। वह सुई हाथी की सूंड में घुस गई। वह दर्द के मारे चिल्लाने लगा। क्योंकि वह शरारत तो मेरी थी। मगर हाथी ने तो उस दिन से मेरे बाबा की शक्ल भी नहीं देखी। आज भी ना जाने यहां बाहर बैठकर उनसे बदला लेने आया होगा।

उस दिन से मेरे पापा ने ठीक ढंग से खाना भी नहीं खाया। वह बार-बार मुझसे हर रोज कहते हैं बेटा मैंने मेरे पुरु को ढूंढ कर लाओ। इतना प्यार तो वह मुझसे भी नहीं करते। आज मुझे अपने किए पर पछतावा है। मैं उन्हें सच सच बताना चाहता हूं। मैंने उनके दोस्त को सूई चूभोई है। मुझे अपने किए पर पछतावा है।

उस मूक प्राणी ने हमारा क्या बिगाड़ा? हाथी ने जैसे ही सुना वह स्तब्ध रह गया। पूरु सोचने लगा मैं अपने दोस्त से बदला लेने आया था। अच्छा हुआ मुझे सच्चाई पता चल गई। हमें बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। जब तक कोई ठोस प्रमाण ना मिले। तब तक हमें कभी भी अपनी दोस्ती पर शक नहीं करना चाहिए। ना जाने आज मैं अपने दोस्त को क्या-क्या कर डालता। उसकी आंखों में पश्चाताप के आंसू थे।

विभू उसके पास आया और कान पकड़कर बोला। मेरे प्यारे दोस्त मुझे माफ कर दे। मैं तुम्हारी दोनों की दोस्ती को समझ नहीं सका तुम्हारी दोस्ती को बिगाड़ने में लगा था। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें बिना सोचे समझे आवेश में आकर कोई भी जल्दबाजी में कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिससे हमारी दोस्ती में दरार आ जाए। पूरु को जब उसनें प्यार से सहलाया वह उसे चाटें लगा। विभू अपने पिता के पास जाकर बोला पापा मुझे माफ कर दो। मैंने आपकी दोस्ती को तोड़ने की कोशिश की थी। मैंने ही उस तौलिए में सुई चुभोई थी। जिससे हाथी की सूंड में सुई चुभ गई। पापा मुझे माफ कर दो। हाथी दर्द के मारे चिंघाड़ता हुआ बाहर आ गया था।

राजेश ने पूरु को गले लगा कर माफी मांगी। मेरे दोस्त मुझे माफ कर दो। मेरे बेटे को भी माफ कर दी। इस ने जानबूझकर यह काम किया है। मुझे तुम्हारी दोस्ती की कसम है। पुरु प्यार से उसकी ओर देख रहा था मानो उसने उन दोनों को माफ कर दिया।

तोहफा

यह कहानी बिहार के छोटे से कस्बे की है उस कस्बे में लीला और उसका पति रामनाथ अपने दो बच्चों के साथ रहता था ।उनका अपना छोटा सा घर था वह मेहनत मजदूरी करके जो कुछ लाता उसे वह अपना और अपने बच्चों का पेट भरता था। इस तरह खुशी खुशी उसके दिन व्यतीत हो रहे थे ।एक दिन इतनी भयंकर बाढ़ आई कि सारे कस्बे का नामोनिशान ही मिट गया थोड़ा बहुत जो उनके पास था वह सबकुछ बाढ़ की चपेट में आकर समाप्त हो चुका था ।भगवान का लाख-लाख शुक्र था कि उनके दोनों बच्चे और वे अपने आप सुरक्षित थे वह दोनों हादसे में बाल-बाल बच गए थे पांच छह महीनों बाद भी उस क्षेत्र की स्थिति ठीक नहीं हो पाई। वह दोनों अपने आप को एक भिखारी की तरह कंगाल महसूस कर रहे थे ।उनके बच्चे भी ठंड महसूस कर रहे थे । किसी तरह से बचते-बचाते वह दूसरे शहर में आ गए और वहां पर नए सिरे से अपनी जीविका को चलाने की कोशिश करने लगे ।
रामनाथ एक साहसी और ईमानदार इंसान था ।उसकी पत्नी भी बहुत ही मेहनती थी ।उनके दोनों बच्चे अभी छोटे ही थे एक बच्चा तो मुश्किल से 5 वर्ष का ही था। वह स्कूल भी नहीं जाता था। दूसरे शहर में आकर पहले तो उन्हें बहुत कठिनाइयां आई परंतु दोनों पति पत्नी ने मुश्किलों के बावजूद भी अपने धैर्य को नहीं खोया।
रामनाथ एक धोबी का काम करने लग गया ।वह लोगों के कपड़े धोता और उसकी पत्नी कपड़ों में प्रेस करती थी । उसको जो कुछ भी मिलता उसी से संतोष कर लेते थे।इस तरह करते करते उन्हें 8 साल हो चुके थे । वे उस शहर में पूरी तरह से रंम चुके थे।उन्होंने अपने बच्चे को भी वहीं पर स्कूल में दाखिल करवा दिया था। उनके बच्चे भी बड़े हो रहे थे । एक दिन रामनाथ को उसकी पत्नी बोली की अब तो लोग हम से इतना कपड़े भी धुलवातेे नहीं हैै क्योंकि अब सब लोगों के पास घर में अपनी अपनी मशीनें है, और प्रैस करने के लिए घर में ही प्रेस हैं। हमें तो गिना चुना ही काम मिलता हैं।जिन व्यक्तियों को औफिस जल्दी जाना होता है वही हमसे काम करवाते हैं।अभी तक तो ठीक है हमारा व्यापार अब कैस आगेे बढ़ेगा। हमे अपने बच्चों को शिक्षा भी दिलानी है चलो वापिस अपने शहर चलते हैं ।अब तो वहां सब कुछ ठीक हो गया होगा ।उसका पति बोला नही, चाहे हमें थोड़ा ही मिल रहा है रोजी रोटी का गुजारा तो चल ही रहा है ना और तुम्हें और क्या चाहिए ।हमें ज्यादा का लालच नहीं करना चाहिए ।वह कहने लगी काश हमारे पास भी कपड़े धोने की मशीन होती और बिजली से चलाने वाली प्रैस होती तो हम भी बहुत सारे कपड़े धो पाते आप भी कपड़े धोते धोते इतना थक जाते हो । रामनाथ बोला और तुम भी तो सारा दिन कपड़े प्रैस करते-करते थक जाती होगी। तुम्हारा मन भी तो करता होगा कि कि मैं आराम करूं पर क्या करें हमें आराम करने के लिए समय ही नहीं मिलता । रामप्रकाश की पत्नी बोली ठीक है ना, तुम भी व्यस्त रहते हो और तंदुरुस्त भी रहते हो । मैं भी तो स्वस्थ हूं ।परंतु जिन लोगों के पास आवश्यकता से अधिक रुपया है तो उन्हें तो रात को नींद भी नहीं आती होगी ।हम इन रुपयों को कहां पर सुरक्षित रखें । रात को डर के मारे नींद इसलिए नहीं आती होगी कि कोई हमारे रुपयों को को चोरी करके न ले जाए। दोनों ठहाका लगा कर हंसने लगे।राम
प्रकाश बोला कि मैं लोगों से कपड़े लेने जा रहा हूं। रामप्रकाश बाहर निकल गया जब वह सारे कपड़े लेकर आया तो उसकी पत्नी एक-एक कपड़े को गिनने लगी तभी एक पेंट में से उसे एक आई-कार्ड टिकट ,एटीएम कार्ड और लाइसेंस मिला ।उसने सारी बात अपने पति को बताई ।रामनाथ को पता चल चुका था कि बैंक अधिकारी अपने पैंट की जेब में से अपनी वस्तुएं निकालना ही भूल गए थे। उनकी पत्नी मायके गई हुई थी। रामनाथ सीधे बैंक अधिकारी महोदय के घर गया और बोला ठाकुर साहब आपतो अपना आईडैन्टटी कार्ड, लाइसेंस और एटीएम कार्ड सभी अपनी पैंट में भूल गए थे ।आपकी टिकट्स भी इस में हैं। बैंक अधिकारी महोदय की पत्नी भी मायके से वापिस आ चुकी थी ।वह बोली आप तो भुलक्कड़ ही रहेंगे एक दिन को मैं मायके क्या गई आप कोई भी काम ठीक ढंग से नहीं करते हैं । वह बोली, राम प्रकाश भाई साहब आपका धन्यवाद।आप की ईमानदारी देखकर मैं बहुत ही खुश हू। । वह भी आपने लौटा दिया। आज ही लॉटरी का परिणाम भी घोषित होगा ।यह कहकर उसने लॉटरी का टिकट श्यामनाथ को पकड़ा दिया। रामनाथ की ईमानदारी को देखते हुए उनकी पत्नी ने उन्हें ₹5000 दे दिए इतने सारे रुपए पाने पर रामनाथ बहुत खुश हो रहा था ।उसके साथ उसका छोटा बेटा भी आया हुआ था ।वह टॉफी टॉफी चिल्लाने लगा। श्यामनाथ के पर्स से टॉफी नीचे गिर गई थी। । वह जब पर्स में से कुछ निकल रहा था तो कुछ कागज नीचे गिर गए थे लेकिन श्यनाथ फोन में व्यस्त था। रामनाथ का बेटा बंटी सोफे के पास के पास नीचे उतरकर खेलने लगा उसे सोफे के पास नीचे टिकेट दिखाई दी। उसको टिकटें इकट्ठे करने का शौक था। वह रोज अपने पापा से कार्ड और टिकट ले लेता था वह टिकट टिकट करता हुआ सोफे के पास गया। उसने टिकटें उठाई और जेब में डाल दी तभी उसकी नजर टौफी पर गई। वह टिकट को भूल गया और टॉफी खाने में मस्त हो गया। रामनाथ ने बैंक अधिकारी महोदय को कहा कि अब मुझे इजाजत दे दीजिए आज तो मैंने चाय भी पी ली और ईनाम भी ले लिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बाबूजी ।बैंक अधिकारी श्यामनाथ की पत्नी ने जब टिकट का नंबर देखा उनकी लॉटरी लग चुकी थी ।उसने नंबर अपने पर्स में लिखकर किसी कागज पर लिखा हुआ था। ।वह बहुत ही खुश हुई क्योंकि आज वह अपने आप को दुनिया की सबसे अमीर औरत महसूस कर रही थी । आज उसे 700,000 रुपए मिलने वाले थे ।उसने जल्दी से बाजार जाकर अच्छे गहने खरीदें और बहुत सारा सामान खरीदा फ्रीज TV और कीमती सामान उसने दुकानदार को कहा कि इन सभी चीजों का भुगतान मैं आज शाम को कर दूंगी। आज ही तो मेरी लॉटरी लगी है। उसने अपने घर में अपनी सारी सहेलियों को भी निमंत्रण दे दिया था ।सब लोग पार्टी का आयोजन कर रहे थे । सभी पार्टी में मस्त थे । सुनंदा ने देखा कि अखबार वाले उनका फोटो लेने के लिए आ रहे थे ।लॉटरी के मैनेजर महोदय ने कहा कि आपकी 7,00,000 की लौटरी निकली है आप लॉटरी का टिकट हमें दे दो । हम आपको ईनाम की रकम दे देंगे। सुनंदा ने अपने पति को कहा की टिकट आपके पर्स में पड़ा है । श्याम नाथ ने अपने पर्स की एक-एक जेब कर चेक कर दी मगर उसे कहीं भी टिकट नहीं मिला। सुनंदा निराश हो चुकी थी ।उसने तो ढेर सारे उपहार और पार्टी का आयोजन 20 -30 लाख तो उसने गहने और सामान खरीदने में गंवा दिए थे सुनंदा और उसका पति श्याम नाथ बहुत ही पछता रहे थे ।रामनाथ ने तुम्हें टिकेट वापिस कर दिया था। रामनाथ तुम्हें लॉटरी का टिकट वापस देकर भी गया मगर हमारे भाग्य में रुपया होगा ही नहीं वर्ना टिकेट इस तरह गुम थोड़े ही होता।

रामनाथ घर आ गया उसने अपनी पत्नी और बच्चे के साथ होटल में जाकर खाना खाया और बच्चों को नए नए खिलौने भी खरीदे। एक दिन रामनाथ की पत्नी ने उसे कहा कि चलो अब अपने घर वापस चलते हैं क्योंकि हमें यहां ज्यादा रुपया नहीं मिलता है। वहां तो हमारा अपना मकान है यहां तो किराया भी देना पड़ता है । वह दोनों अपने शहर जाने के लिए तैयार हो गए। रामनाथ अपने सभी मोहल्ले वालों से बड़े सम्मान से मिला और उसने कहा कि आप सब लोगों से हमें बहुत प्यार मिला। परंतु मैं अब अपने गांव वापस जाना चाहता हूं।सभी मोहल्ले वालों ने उसे बड़े सम्मान से विदा किया। उन्होंने गाड़ी के टिकट भी बुक करवा लिए थे ।जब शाम को ट्रेन मे टिकेट-चैकर आया।वह बोला टिकेट दिखाओ छोटे से बच्चे ने अपने पापा को कहा यह लो और जेब में से टिकट निकालकर अपने पापा को दे दिया। रामनाथ ने देखा वह तो लॉटरी का टिकट था। सामने अखबार पढ़ा हुआ था। रामनाथ थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा था। उसने देखा कि इस नंबर की ही तो लॉटरी निकली है। बार-बार इस नंबर को दस बार पढ़ा खुशी के मारे उसका बुरा हाल था। उसने अपने पत्नी को सारी बातें बताई। वह बोली हमारे बेटे के पास यह टिकट कहां से आया शायद यह टिकट उसे यहीं पर मिला होगा तभी रामनाथ ने कहा कि मैंने तो वह लॉटरी का टिकट बाबूजी को पकड़ा दिया था। परंतु यह टिकट तो मेरे बेटे की जेब में मिला था रामनाथ की पत्नी बोली भगवान ने हमारी झोली में खुशियां भर दी है ।लॉटरी केंद्र में जाकर ईनाम के 7,00,000 रुपए प्राप्त किये। उसकी पत्नी ने कहा कि अब हम इन रुपयों में सबसे पहले एक वाशिंग मशीन और एक ड्राइक्लीन की मशीन खरीदेंगे हम रुपया पाकर लालच नहीं करेंगे ।हम अपनी मेहनत को यूं ही बरकरार रखेंगे हम पहले की तरह ही मेहनत करके अपने बच्चों को ढेर सारी खुशियां देंगे । हमारे बच्चों की पढ़ाई के लिए भगवान ने प्रबंध कर दिया है ।हमारी मेहनत यूं बेकार नहीं गई ।दोनों ने भगवान का धन्यवाद किया और खुशी-खुशी अपने घर वापिस लौट आए।

दोस्ती की मिसाल (कविता ))30/9/2018

मेरे दोस्त मुन्नू तुम इधर तो आओ, इधर तो आओ।।
कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी सुनाओ।
मेरी खुशी में चार चांद तो लगाओ।
चारचांद तो लगाओ।
कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो।
तुम क्यों हो मुझ से खफा खफा हो कर गाल फैलाए बैठ हो।?
चेहरे पे झूठ का नकाब क्यों लिए बैठे हो?
तुम्हें यूं उदास देख कर मेरी भी आंख भर आई।
उदासी छोड़ कर चेहरे पे रौनक तो लाओ। रौनक तो लाओ।
मुझ से खफा हो कर
तनिक भी तुम्हें क्या लज्जा नहीं आई।
अपनी सच्ची दोस्ती की किमत क्या तुमनें इस तरह चुकाई?
मेरे प्यारे दोस्त मुन्नू इधर तोआओ, इधर तो आओ।
इधर आकरतुम, मेरे गले लग जाओ।
गले लगा कर अपनी उदासी को मिटाओ, उदासी मिटाओ।
कुछ मेरी सुनों कुछ अपनी सुनाओ।
मेरे दोस्त मुन्नू इधर तो आओ।। इधर तो आओ।।
मुझे से मिल कर अपनी खुशी जाहिर कर दिखाओ।
मेरे प्यारे दोस्त मुन्नू
हम आपस में न करेंगें हाथापाई।
नहीं-तो दोस्तों में हमारी होगी रुसवाई।
यूं ही अपनी दोस्ती निभाते रहो।
अपनी खुशी यूं ही झलकाते रहो।
हम आपस में एक और एक मिलकर ग्यारह बनाएंगे।
अपनें दोस्तों को भी अपनी दोस्ती में शामिल कर उन सभी के साथ खुशिया मनाएंगे।
हम अपनें माता पिता और गुरुजनों का सम्मान करेंगें।
उनकी कसौटी पर खरा उतर कर दिखाएंगे। आपस में तकरार न कर।
यूं ही अपनी दोस्ती को निभाएंगे।
हम मेहनत और लग्न से पढाई किया करेंगे। जहां में अपने माता-पिता के नामको रौशन करेंगे।
जो काम हमारे अभिभावक न कर पाए।
वह भी कर दिखाएंगे।
उनके सपनों को हकीकत में बदल कर दिखाएंगे।
दिन दुनी रात चौगुनी उन्नति कर पाएंगे।
उनके चेहरों पर खुशी की रंगत लाएंगे।
यूं ही अपनी दोस्ती निभाती कर।
सब के दिलों पे छा जाएंगे।
मेरे दोस्त मुन्नू इधर तो आओ, इधर तो आओ।
फिर से मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढा कर
अपनी खुशी तो छलकाओ।

(इतनी शक्ति मुझको को देना दाता)

इतनी शक्ति मुझको देना दाता।
जग में काम सब के आ सकूं मैं।
चेहरे पर सब के खुशी का नूर ला सकूं मैं।
मन में सभी के घर कर के
खुशी की उमंग जगा सकूं मै।
हर रोते बिलखते चेहरों से।
उदासी की परत को हटा सकूं मैं।
हंसी की मुस्कान बन कर।
सभी के चेहरों पे ला सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझको देना दाता।
हर रोते बिलखते चेहरों से।
हर रोते बिलखते चेहरों से।
उदासी की परत को हटा सकूं मैं।।
मुस्कान चेहरे पे अपने लिए मैं।
औरों के काम आ सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझको देना दाता।
जग में अच्छे काम कर सकूं मैं।
अपने लिए न जी कर।
औरों के काम आ सकूं मैं।
बैर भावना को छोड़कर।
सभी को गले से लगा सकूं। ं
दूसरों की खुशी में भी।
अपनी खुशी को तलाश कर सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझको देना दाता।
जग में काम सब के आ सकूं मैं।
चेहरों पर खुशी का नूर बन कर।
सभी के दिलों पर राज कर सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
जग में काम सब के आ सकूं मैं।
हर रोते बिलखते चेहरों पे।
हसीं की मुस्कान ला सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
काम जग में अच्छे कर सकूं मैं।
हर रोते बिलखते चेहरों पे खुशी की उमंग जगाकर सकूं मैं।

देश में शहीद जवानों की कुर्बानीयों को ना भुला सकूं मैं।
उनके परिवारों के प्रति श्रद्धांजलि दे कर। श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकूं में।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
जग में काम अच्छे कर सकूं मैं।
हर रोते बिलखते चेहरों पे
खुशी का नूर भर सकूं मै।
सभी के दिलों से उदासी की परत को हटा सकूं मैं।

हंसी की मुस्कान बन कर।
खुशी छलका सकूं मैं।
उनके गम को अपना गम बना कर।उनको गले से लगा कर उनमें हौंसला जाऊं।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
जग में नेक काम कर के।
सब के काम आ सकूं मैं।

मुश्किल की हर घड़ी में उन सभी के काम आ सकूं।
हर एक की मुश्किलें मिटा कर सभी के हौंसले बढा सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझको देना दाता
जग में नेककाम करके।
हर मुश्किल को मिटासकूं मैं।
दीन दुःखियों की सेवा कर।
अपनें जीवन को सफल बना सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझ को देना।
जग में नेक काम करते।
खुशी खुशी से इस जहांन से जाऊं मैं।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई सभी जनों को गले से लगाऊं मैं।
जात पात के भेद को भुला कर दुश्मन को भी गले से लगाऊं मैं।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
हर एक के काम आ सकूं।
हर एक रोते बिलखते चेहरों से।
उदासी की परत को हटा सकूं मै। गरीबों की झुग्गी झोपड़ियों में जा कर उनके साथ हर पर्व का लुत्फ उठाऊं। उन की खुशी गम में शामिल हो कर अपना दर्द भूल जाऊं मै।
इतनी शक्ति मुझे देना दाता।
जग में नेक काम कर सकूँ मै।
हर रोते बिलखते चेहरों पर।
हसीं का नूर ला सकूँ मैं।