चोर सिपाही

बिहार के एक छोटे से गांव में  जुम्मन एक रेडी चालक के रूप में काम करता था। वह मेहनत से जो कुछ भी कमा कर लाता उससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था। उसने अपने बेटे लाखन को भी स्कूल में डाल दिया था। लाखन बहुत ही समझदार बच्चा था।

जब वह किसी भी  सिपाही को आते हुए देखता था तो उसका मन भी करता था कि उसके पास भी सिपाही की जैसी वेशभूसा होती।  वह भी सिपाही बनना चाहता था। अपने पापा को कहता था मैं बड़ा होकर सिपाही बनूंगा। उसके पापा भी खुश होकर उसे कहते थे ठीक है बेटा इसके लिए खूब मेहनत लगाकर पढ़ना चाहिए। उसकी मां उसे समझाती कि बेटा सिपाही बनने के लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है। उन जैसे अच्छे अच्छे काम करने पड़ते हैं, इसके लिए पढ़ना बहुत ही जरूरी होता है। वह अपनी पढ़ाई खूब मन लगाकर करता। उसके माता-पिता ने उसे घर के समीप ही एक गवर्नमेंट स्कूल में दाखिल करवा दिया था। वह आठवीं कक्षा में पढ़ता था। स्कूल में इसका एक दोस्त था। उसका नाम था कर्ण। उसको अपने मन की सारी बातें बता दिया करता था। वह दोनों दोस्त लम्बे चौड़े थे। उन दोस्तों नें एक दूसरे से वायदा किया कि हम  जरुरत पड़ने पर  एक दूसरे की मदद अवश्य करेंगे। हम दोनों आज एक दूसरे से वायदा करते हैं। हम अपनें परिवार वालों को अपनी दोस्ती के बीच आने नहीं देगें।

 

कर्ण के माता पिता भी कुछ दूरी पर ही रहते थे। वह एक मध्यम परिवार का बच्चा था। उसके पास सब कुछ सुविधाएं थी जो कुछ एक इंसान के लिए चाहिए। उसके पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे और माता भी प्राइवेट ऑफिस में कर्मचारी थी। लाखन उससे हर रोज मिलने आता था परंतु वह उसके घर नहीं जाता था। वह बाहर ही उसे बुलाकर उसके साथ काफी दूर तक घूमने निकल जाता था।  वहां पर दोनों मिल जुलकर एक दूसरे से सारी बातें कहते थे। दोनों की दोस्ती बहुत ही मजबूत थी। कर्ण अपने दोस्त को कहता था कि मैं बड़ा होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहता हूं। मेरे मां-बाप मुझे कहते हैं कि ठीक है जो तुम करना चाहते हो वह अवश्य करो। इसी तरह दिन खुशी खुशी गुजर रहे थे। कर्ण के माता पिता उसे कहते थे कि बेटा दोस्ती तो अपने जैसे इंसानों के साथ ही करनी चाहिए। कर्ण इस मामले में बिल्कुल अलग था। वह कहता मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता। आप की सोच मुझ से मेल नहीं खाती।

तुमनें एक गरीब रेडी चालक के बेटे को अपना दोस्त बनाया है। उस से किनारा कर लो।  कर्ण कहता कि नहीं वही तो मेरा सबसे सच्चा दोस्त है। आप अगर उसे अपने घर नहीं बुलाना चाहते तो ना सही मैं उससे बाहर ही मिल लिया करूंगा लेकिन मैं अपने दोस्त के साथ किया हुआ वादा कभी नहीं तोड़ूंगा।

पुलिस इंस्पेक्टर भी तो देश की सेवा करता है। उसका कर्तव्य होता है किसी गुनाह करने वाले व्यक्ति को सजा देना। मेरा दोस्त भी बहुत ही होशियार है। वह भी एक सिपाही बनना चाहता है। कर्ण के माता-पिता उसे समझाते मगर वह कभी भी नहीं मानता था। वह। कहता था कि मैं अपने दोस्त को मिलने जरूर जाऊंगा इसके लिए वह हर घड़ी तैयार रहता था। चाहे बारिश हो या गर्मी, चाहे आंधी हो या तूफान दोनों दोस्त एक दूसरे के साथ इकट्ठे मिलते और काफी देर तक गप्पे हांका करते।

लाखन घर में अकेला था। कभी कभी वह घर में बिना बताए चीजें उठा लेता था। उसकी मां को इस बात का आभास उस वक्त हुआ जब वह एक दिन अपनें दोस्त का पैन उठा कर ले आया। उसकी मां बोली हमें किसी की भी कोई वस्तु बगैर उसकी इजाजत के कभी नहीं उठानी चाहिए। तुम नें उस से पैन पूछ के लिया था वह बोला नहीं उसकी जेब से निकाल लिया। उसकी जेब में दो पैन थे। मुझे आज मैडम नें स्कूल में  पैन न लाने के लिए सारा दिन खड़ा रखा। शाम को घर आते वक्त मैं चुपके से उसकी जेब से वह उड़ा लिया। लाखन की  मां बोली बेटा एक तरफ तो तुम सिपाही बनने की बात करते हो। दूसरी तरफ चोरी करते हो। सिपाही का कर्तव्य भी देश की रक्षा करना होता है। आज से तुम यह बात गांठ में बांध लो  कभी किसी की चोरी मत करो। तभी तुम एक अच्छे सिपाही बन सकते हो।

 

वह बोला मां मेरा  स्कूल में एक दोस्त और भी है उस नें मुझे यह सब सिखाया। कई बार मैंनें पापा की जेब से भी दस दस के नोट कितनी बार निकाले हैं। उन्हें पता ही नहीं चला। उसकी मां बोली तुम को तो लोग सिपाही नहीं चोर पुकारा करेंगे। वह बोला मां मैं अब समझ गया हूं मैं अब कभी भी चोरी नहीं करुंगा।  उसकी मां बोली तुम उसका पैन लौटा कर उस से माफी मांग लेना।

स्कूल में आज बहुत चहल पहल थी। सारे बच्चे बालदिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए थे। मैडम ने कहा जो बच्चा  कुछ भी बोलना चाहेगा आज वह कुछ भी बोल  सकता है मगर वह जो बोले यह विचार उसके अपनें  होनें चाहिए। जो बच्चा अच्छा बोलेगा उसे हम अपनी तरफ से कुछ न कुछ उपहार में अवश्य देंगें। लाखन के दिमाग में अपनी मां  के शब्द हथौड़े के समान गूंज रहे थे। वह एक सिपाही नहीं चोर बनेगा। वह कभी भी गलत काम नहीं करेगा। आज मैडम को भी बता देगा कि उसने राहुल की जेब से कल पैन ले कर अपनी पैन्ट की जेब में भर लिया था। उसके  दोस्त को तो मालूम भी नहीं होगा कि उसका पैन मैंनें चुराया था। आज वह अपने किए पर शर्मिन्दा है।

स्कूल में बाल सभा के लिए जब सब बच्चे एकत्रित हुए लाखन उठ कर खड़ा हो कर बोला आज वह कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहता है आज से पहले उसने इस बात की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया था। सारे अध्यापक उसे ही देख रहे थे वह कभी भी बोलने के लिए कभी खड़ा नहीं हुआ था। वह बोला मेरे प्यारे सहपाठियों और मेरे गुरुजनों आप को मेरा हार्दिक अभिनन्दन। आप के सामने इस तरह आने के लिए क्षमा चाहता हूं। आज वह खुल कर अपनें विचार आप के सामने रखेगा।

लाखन बोला मेरे पिता रेडी चला चला कर हमारा पेट भरते हैं। मेरी मां मेरी एक सच्ची गुरु ही नहीं मेरी एक हमदर्द भी है। वह उसे हर कदम कदम पर अच्छी अच्छी सलाह दिया करती है। वह हर वक्त अपनी मां को कहता है कि मैं बड़ा हो कर एक सच्चा सिपाही बनना चाहता हूं। उसकी मां नें हमेशा सिखाया एक सच्चा सिपाही बनने के लिए एक कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति बनना जरुरी होता है। ईमानदारी से अपना काम करना दृढ संकल्प और प्रतिभाशाली जैसे गुण होने चाहिए तभी तुम अपनें मकसद में सफल हो जाओगे। वह तो आज पूरी तरह से असफल हो गया। वह तो चोरी करनें लगा था। कल उसने अपनें दोस्त की जेब से चुपके से पैन निकाल लिया। उसके दोस्त राहुल को पता ही नहीं चला। यह चोरी करनें की आदत उसे उसके स्कूल में पढने वाले सहपाठी से ही पड़ी। वह आज सबके सामने उस विद्यार्थी का नाम नहीं लेगा। वह भी जल्दी ही चोरी करनें की आदत को छोड़ देगा। उसकी गारन्टी वह खुद लेता है। कृपया उसकी एक भूल को आप माफ कर देना नही तो वह अपनें आप को कभी भी ऊंचा नहीं उठा सकता। उसने सभी अभिभावकों के सामने अपनी भूल का प्रायश्चित किया। राहुल को सारा किस्सा सुनाया कल जब उसके पास कक्षा में पैन नहीं था तो उसे बैन्च पर खड़ा होनें की सजा मिली थी। शाम को जाते वक्त राहुल की जेब से पैन निकाल कर अपनें बस्ते में डाल दिया। उस पैन को पेन्ट कर दिया ताकि वह अपनें पैन को पहचान न पाए।

घर पहुंच कर जब काफी देर तक उस पैन को ले कर पेन्ट कर रहा था। मेरी मां कमरे के अन्दर  आ कर बोली बहुत रात हो चुकी है। तुम इस वक्त क्या कर रहे हो? मां को देखते ही उसने वह पैन बिस्तर के नीचे छिपा दिया ताकि मां की नजर उस पर न पड़े। वह बोली बेटा दाल में तो कुछ काला जरुर है। सच्च सच्च बताओ। सिपाही बनने के लिए हर बात साफ साफ स्पष्ट होनी चाहिए। वह डर रहा था। मां को क्या बताए। वह। आईस्ता से बोला कुछ भी तो नहीं मुझे नींद ही नहीं आ रही थी। उसने जानबूझ कर अपनी रजाई नीचे  तक फैला दी थी जिससे उसकी मां को जरा भी शक न हो। वह बोली रजाई को तो ठीक कर लेते। जाते जाते उसकी मां नें रजाई ऊपर की ओर की उसकी मां की नजर ब्रश पर पड़ी। इस पेंन्ट से तुम क्या कर रहे थे? और इस पैन में यह पेन्ट क्यों किया? तुमने यह पेन्ट का डिब्बा अपनें पापा से लिया। वह बोला नहीं मां अपनें आप उठा कर लाया। उसकी मां बोली बेटा यह तो चोरी हुई। मैनें तुम्हे बताया था कि किसी की भी कोई वस्तु नहीं उठाते। अपनें पापा से पुछा कर ले लेते तो वे भी कभी तुम्हे मना नहीं करते। लाखन रो कर बोला मां उसने आज बहुत ही गलत काम किया है। उसने सारी बात अपनी मां को बता दी। उसकी मां बोली कल तुम उस बच्चे का पैन वापिस कर के आओगे तो मैं समझूंगा कि तुम एक दिन बहुत बड़े सिपाही बनोगे। अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है। तुम सुधर सकते हो।अध्यापक उस बच्चे की बात से प्रभावित हुए। उन्होंने उसे माफ भी कर दिया और उसकी प्रशंसा भी की और कहा तुम अवश्य ही एक दिन बहुत बड़े सिपाही बनोगे। इन्सान तो गलतियों का पुतला। है। जो गिर कर संभल जाए उसकी हमेंशा जीत होती है। राहुल नें भी उसे माफ कर दिया। अध्यापकों नें उसे पैन का डिब्बा ईनाम में दिया। उस दिन के बाद उसने कभी भी चोरी नहीं की।

होनी को कुछ और ही मंजूर था  एक बार उनके गांव में भयंकर बाढ़ आई और जिससे  आसपास के क्षेत्रों में बहुत ही भयानक तबाही हुई।  इतनी भयंकर बाढ़ आई थी  किसी का भी कुछ नहीं बचा। घोषणा कर दी गई कि सभी लोग  यहां से  दूसरे क्षेत्र में चले जाएं  जब तक हालात नहीं सुधरते। जैसे तैसे करके उनका परिवार तो बच गया  मगर अब उनके पास खाने के लिए अनाज का एक भी दाना नहीं  बचा था । उनका सब कुछ बाढ़ में नष्ट हो गया था।

लाखन के पिता के पास ले देकर एक  रेडी ही बची थी।   उन्होंने    फिर भी हौसला नहीं हारा एक दूसरे को तसल्ली दी। सारे परिवार को समझाया।  होनी को कौन टाल सकता है? हमें इस मुसीबत की घड़ी में एक दूसरे का साथ देना चाहिए। शुक्र है कि हमारा परिवार बच गया इससे ज्यादा हमें और कुछ नहीं चाहिए। हमारी  बुढापे की लाठी तो हमारे साथ है। खुशी मनाओ कि हमारे बेटे को कुछ नहीं हुआ  नहीं तो अनर्थ हो जाता। लाखन के पिता कहते कि मैं रेढी चला कर कुछ कमा कर ले ले आया करूंगा पहले हालात तो ठीक हो जाएं। इस बार  बाढ ने चारों ओर तबाही ही तबाही ला दी थी। बहुत से लोग बाढ़ की चपेट में आ गए थे। किसी का कुछ भी नहीं बचा था। जिस किसी के पास जो कुछ बचा था वह बहुत ही कम था। कुछ दिनों के लिए  उन्हें किसी पास के क्षेत्र में उन्हें भेज दिया गया था कर्ण का परिवार भी बच गया था लेकिन उसके मां-बाप बहुत ही दुःखी थे अब क्या करें?। वह रो-रोकर एक दूसरे को अपना हालात बयान कर रहे थे। लाखन नें अपने दोस्त कर्ण को गले से लगा लिया और कहा कि दोस्त हम तो जिंदा है हम अपने मां-बाप को संभालेंगे हम एक दूसरे की मदद अवश्य करेंगे हम अपने मां-बाप को दुख नहीं देंगे। थोड़े दिनों बाद स्थिति कुछ सुधरी।

 

लोंगो के  रहने के लिए तंबू गाड़ दिए गए थे। लोग उसमें रहने के लिए चले गए थे। लखन के माता पिता तो रेडी चला कर अपना पेट भर रहे थे मगर कर्ण के माता पिता बहुत ही दुखी नजर आ रहे थे। उन्होंने तो कभी भी मेहनत-मजदूरी नहीं की थी। लाखन अपने पिता से बोला कि पिताजी हम हमें इनकी मदद भी करनी चाहिए। उनका हौंसला बढ़ाना चाहिए। जो कुछ लाते उसमें से वह कर्ण के माता पिता को भी दे देते। कर्ण के माता पिता को भी महसूस हुआ कि हमने इस बच्चे के साथ बहुत ही अन्याय किया। हमने इस को अपने घर में नहीं आने दिया। हम अपने बड़ा होने पर मान किया करते थे। इस बच्चे ने सिखा दिया कि इस दुनिया में कोई भी छोटा और बड़ा नहीं है दुनिया में सभी एक जैसे हैं। वह धीरे-धीरे वह भी मेहनत करने लग गए थे।

 

एक दिन कर्ण और लाखन ने सोचा कि अब हम भी कमा कर लाया करेंगे जिससे हमारे घर का खर्चा भी निकल सकेगा। बाढ़ आ जाने के कारण चारों ओर चोरों का आतंक छाया हुआ है। चोर चुपके से आकर लोगों का  सामान तंबुओं में से निकाल कर ले जाते थे। जिससे आसपास के लोग बड़े दुःखी थे। कुछेक लोग तो ताकतवर थे परंतु कुछ एक लोग ऐसे थे जो कि उन चोरों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। वह काफी लाचार थे जितना कमाते थे उतना ही चोर उनका सामान लूटकर ले जाते थे। फरियाद करें तो किसके पास।

एक दिन लाखन ने कर्ण को कहा कि हमें ही कुछ करना होगा वर्ना गांव के लोग यूं ही लड़ लड़ कर मर जाएंगे। उन दोनों ने एक योजना बनाई अबकी बार जब लुटेरे चोरी करने के लिए  जब तंम्बुओं में घुसेंगे तो  हम उन पर कड़ी नजर रखेंगे। उनको उन्हीं की ही भाषा में जवाब देना होगा। एक दिन जब लुटेरे उस तंबू में चोरी करने के लिए आए लाखन ने उन्हें आते हुए देख लिया। लाखन नें  सिपाही की वेशभूषा पहनी हुई थी। उसने लुटेरों को कहा कि तुम यहां पर क्या लेने आए हो? मैं एक सिपाही हूं अगर मैं तुम्हारी शिकायत  पुलिस वालों से कर दूं तो तुम तो पकड़े जाओगे। आज मैंने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ लिया है। अभी जाकर मैं सब कुछ सच-सच पुलिस इंस्पेक्टर को बताता हूं। पुलिस इंस्पेक्टर मेरा दोस्त है। लुटेरे बोले तुम्हारे जैसे झूठ बोलने वाले हमने  बहुत देखें हैं। तुम झूठ भी बड़ी होशियारी से बोल लेते हो। पहले  तुम हमें अपने सिपाही पुलिस इंस्पेक्टर से मिलवाओ   तब हम जानेंगे कि तुम ठीक कह रहे हो या गलत। वह बोला तो ठीक है। कल तुम्हें मैं दूर से उन से मिलवा दूंगा और तुम्हें सजा भी दिलवा दूंगा।

लुटेरे डर गए बोले हम चोरी नहीं करेंगे। परंतु तुम हमें कल पहले पुलिस इंस्पेक्टर से मिलवाना। हम दूर से देखेंगे। यह कहकर लुटेरे वापस चले गए।

दूसरे दिन लाखन ने अपने दोस्त कर्ण को कहा कि तुम पुलिस इंस्पेक्टर बन कर आ जाना औरतुम्हें मैं इशारा करूंगा तुम समझ जाना कि मेरे आस-पास लुटेरे हैं। तुम उनके पास आकर कहना तुम कहां से आए हो? मैंने पहले तुम्हें यहां कभी नहीं देखा। मैं उन्हें बचाने की कोशिश करूंगा तब तुम मेरे कहने पर उन्हें छोड़ देना। हम बाद में उन गुंडों को अवश्य ही पकड़ लेंगे और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देंगे। दूसरे दिन लाखन उन लुटेरों के पास आकर बोला यह पुलिस इंस्पेक्टर तो बहुत ही सख्त है।  तुम  अगर उनके पल्ले पड़ गए  वह तुम्हें छोड़ेगा नहीं। तुमने क्या-क्या मार चोरी किया है? तुम उसे मेरे घर में छुपा दो। हो सकता है वह तुम्हारे घर में तलाशी ले। वह लुटेरे बोले यह कभी नहीं हो सकता। तुम झूठ कहते हो। लाखन बोला आज यहां पर  पुलिस इंस्पेक्टर आने ही वाला है। आज खुद ही देखते हैं। पुलिस इंस्पेक्टर जैसे ही आया लाखन ने उसे इशारा कर दिया था। लाखन उन उन गुंडों के साथ ही था।  लाखन नें पुलिस इन्सपैक्टर से हाथ मिलाया।

लाखन  ने उन लुटेरों को पुलिस इंस्पेक्टर के साथ  मिलाया।पुलिस इन्स्पैेक्टर बोला यह व्यक्ति कहां से आए हैं? यह तो नए लगते हैं। तुम कहां रहते हो? जल्दी से हमें बताओ यहां पर कुछ लुटेरों का बोलबाला हो गया है इसलिए हमें चारों तरफ तलाशी लेनी पड़ेगी। तुम जल्दी से अपने घर का पता बताओ। लुटेरे डर के मारे कांपनें लगे। वह बोले हमारा घर यहां से काफी दूर है। कल हम तुम्हें अपने घर ले जाएंगे। यह हमारे घर का पता है। उन्होंने एक कॉपी पर  अपने घर का पता नोट कर दिया।

पुलिस इन्सपैक्टर बोला आज तो तुम्हें  अपनें दोस्त के कहनें पर छोड़ दिया। लाखन बोला यह लुटेरे नहीं है। पुलिस इन्सपैक्टर  बोला  तुम्हारे कहने पर मैं इन्हें छोड़ रहा हूं। मगर कल मैं इनके घर अवश्य आऊंगा।

लाखन को तो सब पहले से ही मालूम था कि लुटेरों ने चोरी किया हुआ माल अपने घर में रखा हुआ था। लाखन इन लुटेरों से बोला मुझे पता है तुम ने इन लोगों का चोरी किया हुआ माल अपने पास रखा है। तुम उस सामान को मेरे घर पर रख दो। तुम्हारा माल भी सुरक्षित रहेगा और तुम भी पकड़े नहीं जाओगे। लुटेरों को उसकी बात पसंद आ गई। लुटेरों ने सारा का सारा लूटा हुआ माल लाखन के घर पर रख दिया।

वादे के मुताबिक पुलिस इंस्पेक्टर दूसरे दिन लुटेरों से मिलने गया। वहां पर कुछ भी उसे हासिल नहीं हुआ। लाखन ने उसे पहले ही बता दिया था कि  उसनें चोरी किया हुआ माल अपने घर में रखा है।

पुलिस इंस्पेक्टर लाखन  से बोला कहीं तुम भी तो इसके साथ   नहीं मिले हुए हो। तुम्हारे घर पर भी तलाशी लेनी पड़ेगी। चलो, चल कर देखते हैं। तुम मेरे दोस्त हो तो क्या हुआ? इंस्पेक्टर का फर्ज होता है कि चोरी करने वाले का पर्दाफाश करें।  पुलिस इंस्पेक्टर कर्ण लाखन के घर पर आते हैं। वहां पर छानबीन करते हैं। लुटेरे भी उसके साथ उसके घर पर आते हैं।

अचानक कर्ण की नजर उन गठरियों पर पड़ती है। पुलिस इंस्पेक्टर कहते हैं कि इन गठरियों में क्या है? खोलो खोल कर बताओ। उन गठरीओं में सभी लोगों का लूटा हुआ माल था पुलिस इंस्पेक्टर लाखन से बोले अब तुम्हें मेरे हाथ से कोई नहीं बचा सकता। तुमने चोरी की है।  पुलिस इन्सपैक्टर  लाखन के घर पर छापा डाल कर चोरी किया माल बरामद करतें हैं। । लाखन कहता है कि मैंने चोरी नहीं की। यह मेरे साथ लुटेरे हैं। यह माल इन्हीं का लूटा हुआ माल है। उन्होंने चोरी करके मेरे घर पर यह माल रख दिया। लुटेरे कहने लगे यह झूठ कहता है। यह हमारा माल नहीं है। यह तो इसी ने चोरी किया होगा। लुटेरे वहां से भाग गए। लुटेरे जैसे ही भाग रहे थे कर्ण और लखन ने दोनों ने असली पुलिस इंस्पेक्टर को फोन कर दिया था। हमारे क्षेत्र में कुछ लुटेरों ने आतंक मचाया हुआ था। हमने उन्हें पकड़ लिया है। पुलिस इंस्पेक्टर और सिपाही बनकर उन लुटेरों का सफाया किया और उन्हें पकड़ लिया है। आप जल्दी से आकर उन लुटेरों को पकड़ लीजिए। वह अभी ज्यादा दूर नहीं गए हैं। पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें  बता दिया था कि यहां पर इन चोरों की गाड़ी खड़ी है। पुलिस स्पेक्टर ने समय पर पहुंचकर उन लुटेरों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। कर्ण और लाखन के इस प्रकार सेवाभाव को देखकर कहने लगे तुम अवश्य ही सिपाही और पुलिस इंस्पेक्टर बनने लायक हो। आज से तुम्हारी पढ़ाई का और सारा खर्चा हम करेंगे। तुम दोनों ही अपने मकसद में जरूर कामयाब होंगे। लोंगों को उनका चोरी किया गया माल वापस मिल गया था सब लोग उनकी प्रशंसा करना नही थकते थे। बिहार के एक छोटे से गांव में  जुम्मन एक रेडी चालक के रूप में काम करता था। वह मेहनत से जो कुछ भी कमा कर लाता उससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था। उसने अपने बेटे लाखन को भी स्कूल में डाल दिया था। लाखन बहुत ही समझदार बच्चा था।

जब वह किसी भी  सिपाही को आते हुए देखता था तो उसका मन भी करता था कि उसके पास भी सिपाही की जैसी वेशभूसा होती।  वह भी सिपाही बनना चाहता था। अपने पापा को कहता था मैं बड़ा होकर सिपाही बनूंगा। उसके पापा भी खुश होकर उसे कहते थे ठीक है बेटा इसके लिए खूब मेहनत लगाकर पढ़ना चाहिए। उसकी मां उसे समझाती कि बेटा सिपाही बनने के लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है। उन जैसे अच्छे अच्छे काम करने पड़ते हैं, इसके लिए पढ़ना बहुत ही जरूरी होता है। वह अपनी पढ़ाई खूब मन लगाकर करता। उसके माता-पिता ने उसे घर के समीप ही एक गवर्नमेंट स्कूल में दाखिल करवा दिया था। वह आठवीं कक्षा में पढ़ता था। स्कूल में इसका एक दोस्त था। उसका नाम था कर्ण। उसको अपने मन की सारी बातें बता दिया करता था। वह दोनों दोस्त लम्बे चौड़े थे। उन दोस्तों नें एक दूसरे से वायदा किया कि हम  जरुरत पड़ने पर  एक दूसरे की मदद अवश्य करेंगे। हम दोनों आज एक दूसरे से वायदा करते हैं। हम अपनें परिवार वालों को अपनी दोस्ती के बीच आने नहीं देगें।

 

कर्ण के माता पिता भी कुछ दूरी पर ही रहते थे। वह एक मध्यम परिवार का बच्चा था। उसके पास सब कुछ सुविधाएं थी जो कुछ एक इंसान के लिए चाहिए। उसके पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे और माता भी प्राइवेट ऑफिस में कर्मचारी थी। लाखन उससे हर रोज मिलने आता था परंतु वह उसके घर नहीं जाता था। वह बाहर ही उसे बुलाकर उसके साथ काफी दूर तक घूमने निकल जाता था।  वहां पर दोनों मिल जुलकर एक दूसरे से सारी बातें कहते थे। दोनों की दोस्ती बहुत ही मजबूत थी। कर्ण अपने दोस्त को कहता था कि मैं बड़ा होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहता हूं। मेरे मां-बाप मुझे कहते हैं कि ठीक है जो तुम करना चाहते हो वह अवश्य करो। इसी तरह दिन खुशी खुशी गुजर रहे थे। कर्ण के माता पिता उसे कहते थे कि बेटा दोस्ती तो अपने जैसे इंसानों के साथ ही करनी चाहिए। कर्ण इस मामले में बिल्कुल अलग था। वह कहता मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता। आप की सोच मुझ से मेल नहीं खाती।

तुमनें एक गरीब रेडी चालक के बेटे को अपना दोस्त बनाया है। उस से किनारा कर लो।  कर्ण कहता कि नहीं वही तो मेरा सबसे सच्चा दोस्त है। आप अगर उसे अपने घर नहीं बुलाना चाहते तो ना सही मैं उससे बाहर ही मिल लिया करूंगा लेकिन मैं अपने दोस्त के साथ किया हुआ वादा कभी नहीं तोड़ूंगा।

पुलिस इंस्पेक्टर भी तो देश की सेवा करता है। उसका कर्तव्य होता है किसी गुनाह करने वाले व्यक्ति को सजा देना। मेरा दोस्त भी बहुत ही होशियार है। वह भी एक सिपाही बनना चाहता है। कर्ण के माता-पिता उसे समझाते मगर वह कभी भी नहीं मानता था। वह। कहता था कि मैं अपने दोस्त को मिलने जरूर जाऊंगा इसके लिए वह हर घड़ी तैयार रहता था। चाहे बारिश हो या गर्मी, चाहे आंधी हो या तूफान दोनों दोस्त एक दूसरे के साथ इकट्ठे मिलते और काफी देर तक गप्पे हांका करते।

लाखन घर में अकेला था। कभी कभी वह घर में बिना बताए चीजें उठा लेता था। उसकी मां को इस बात का आभास उस वक्त हुआ जब वह एक दिन अपनें दोस्त का पैन उठा कर ले आया। उसकी मां बोली हमें किसी की भी कोई वस्तु बगैर उसकी इजाजत के कभी नहीं उठानी चाहिए। तुम नें उस से पैन पूछ के लिया था वह बोला नहीं उसकी जेब से निकाल लिया। उसकी जेब में दो पैन थे। मुझे आज मैडम नें स्कूल में  पैन न लाने के लिए सारा दिन खड़ा रखा। शाम को घर आते वक्त मैं चुपके से उसकी जेब से वह उड़ा लिया। लाखन की  मां बोली बेटा एक तरफ तो तुम सिपाही बनने की बात करते हो। दूसरी तरफ चोरी करते हो। सिपाही का कर्तव्य भी देश की रक्षा करना होता है। आज से तुम यह बात गांठ में बांध लो  कभी किसी की चोरी मत करो। तभी तुम एक अच्छे सिपाही बन सकते हो।

 

वह बोला मां मेरा  स्कूल में एक दोस्त और भी है उस नें मुझे यह सब सिखाया। कई बार मैंनें पापा की जेब से भी दस दस के नोट कितनी बार निकाले हैं। उन्हें पता ही नहीं चला। उसकी मां बोली तुम को तो लोग सिपाही नहीं चोर पुकारा करेंगे। वह बोला मां मैं अब समझ गया हूं मैं अब कभी भी चोरी नहीं करुंगा।  उसकी मां बोली तुम उसका पैन लौटा कर उस से माफी मांग लेना।

स्कूल में आज बहुत चहल पहल थी। सारे बच्चे बालदिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए थे। मैडम ने कहा जो बच्चा  कुछ भी बोलना चाहेगा आज वह कुछ भी बोल  सकता है मगर वह जो बोले यह विचार उसके अपनें  होनें चाहिए। जो बच्चा अच्छा बोलेगा उसे हम अपनी तरफ से कुछ न कुछ उपहार में अवश्य देंगें। लाखन के दिमाग में अपनी मां  के शब्द हथौड़े के समान गूंज रहे थे। वह एक सिपाही नहीं चोर बनेगा। वह कभी भी गलत काम नहीं करेगा। आज मैडम को भी बता देगा कि उसने राहुल की जेब से कल पैन ले कर अपनी पैन्ट की जेब में भर लिया था। उसके  दोस्त को तो मालूम भी नहीं होगा कि उसका पैन मैंनें चुराया था। आज वह अपने किए पर शर्मिन्दा है।

स्कूल में बाल सभा के लिए जब सब बच्चे एकत्रित हुए लाखन उठ कर खड़ा हो कर बोला आज वह कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहता है आज से पहले उसने इस बात की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया था। सारे अध्यापक उसे ही देख रहे थे वह कभी भी बोलने के लिए कभी खड़ा नहीं हुआ था। वह बोला मेरे प्यारे सहपाठियों और मेरे गुरुजनों आप को मेरा हार्दिक अभिनन्दन। आप के सामने इस तरह आने के लिए क्षमा चाहता हूं। आज वह खुल कर अपनें विचार आप के सामने रखेगा।

लाखन बोला मेरे पिता रेडी चला चला कर हमारा पेट भरते हैं। मेरी मां मेरी एक सच्ची गुरु ही नहीं मेरी एक हमदर्द भी है। वह उसे हर कदम कदम पर अच्छी अच्छी सलाह दिया करती है। वह हर वक्त अपनी मां को कहता है कि मैं बड़ा हो कर एक सच्चा सिपाही बनना चाहता हूं। उसकी मां नें हमेशा सिखाया एक सच्चा सिपाही बनने के लिए एक कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति बनना जरुरी होता है। ईमानदारी से अपना काम करना दृढ संकल्प और प्रतिभाशाली जैसे गुण होने चाहिए तभी तुम अपनें मकसद में सफल हो जाओगे। वह तो आज पूरी तरह से असफल हो गया। वह तो चोरी करनें लगा था। कल उसने अपनें दोस्त की जेब से चुपके से पैन निकाल लिया। उसके दोस्त राहुल को पता ही नहीं चला। यह चोरी करनें की आदत उसे उसके स्कूल में पढने वाले सहपाठी से ही पड़ी। वह आज सबके सामने उस विद्यार्थी का नाम नहीं लेगा। वह भी जल्दी ही चोरी करनें की आदत को छोड़ देगा। उसकी गारन्टी वह खुद लेता है। कृपया उसकी एक भूल को आप माफ कर देना नही तो वह अपनें आप को कभी भी ऊंचा नहीं उठा सकता। उसने सभी अभिभावकों के सामने अपनी भूल का प्रायश्चित किया। राहुल को सारा किस्सा सुनाया कल जब उसके पास कक्षा में पैन नहीं था तो उसे बैन्च पर खड़ा होनें की सजा मिली थी। शाम को जाते वक्त राहुल की जेब से पैन निकाल कर अपनें बस्ते में डाल दिया। उस पैन को पेन्ट कर दिया ताकि वह अपनें पैन को पहचान न पाए।

घर पहुंच कर जब काफी देर तक उस पैन को ले कर पेन्ट कर रहा था। मेरी मां कमरे के अन्दर  आ कर बोली बहुत रात हो चुकी है। तुम इस वक्त क्या कर रहे हो? मां को देखते ही उसने वह पैन बिस्तर के नीचे छिपा दिया ताकि मां की नजर उस पर न पड़े। वह बोली बेटा दाल में तो कुछ काला जरुर है। सच्च सच्च बताओ। सिपाही बनने के लिए हर बात साफ साफ स्पष्ट होनी चाहिए। वह डर रहा था। मां को क्या बताए। वह। आईस्ता से बोला कुछ भी तो नहीं मुझे नींद ही नहीं आ रही थी। उसने जानबूझ कर अपनी रजाई नीचे  तक फैला दी थी जिससे उसकी मां को जरा भी शक न हो। वह बोली रजाई को तो ठीक कर लेते। जाते जाते उसकी मां नें रजाई ऊपर की ओर की उसकी मां की नजर ब्रश पर पड़ी। इस पेंन्ट से तुम क्या कर रहे थे? और इस पैन में यह पेन्ट क्यों किया? तुमने यह पेन्ट का डिब्बा अपनें पापा से लिया। वह बोला नहीं मां अपनें आप उठा कर लाया। उसकी मां बोली बेटा यह तो चोरी हुई। मैनें तुम्हे बताया था कि किसी की भी कोई वस्तु नहीं उठाते। अपनें पापा से पुछा कर ले लेते तो वे भी कभी तुम्हे मना नहीं करते। लाखन रो कर बोला मां उसने आज बहुत ही गलत काम किया है। उसने सारी बात अपनी मां को बता दी। उसकी मां बोली कल तुम उस बच्चे का पैन वापिस कर के आओगे तो मैं समझूंगा कि तुम एक दिन बहुत बड़े सिपाही बनोगे। अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है। तुम सुधर सकते हो।अध्यापक उस बच्चे की बात से प्रभावित हुए। उन्होंने उसे माफ भी कर दिया और उसकी प्रशंसा भी की और कहा तुम अवश्य ही एक दिन बहुत बड़े सिपाही बनोगे। इन्सान तो गलतियों का पुतला। है। जो गिर कर संभल जाए उसकी हमेंशा जीत होती है। राहुल नें भी उसे माफ कर दिया। अध्यापकों नें उसे पैन का डिब्बा ईनाम में दिया। उस दिन के बाद उसने कभी भी चोरी नहीं की।

होनी को कुछ और ही मंजूर था  एक बार उनके गांव में भयंकर बाढ़ आई और जिससे  आसपास के क्षेत्रों में बहुत ही भयानक तबाही हुई।  इतनी भयंकर बाढ़ आई थी  किसी का भी कुछ नहीं बचा। घोषणा कर दी गई कि सभी लोग  यहां से  दूसरे क्षेत्र में चले जाएं  जब तक हालात नहीं सुधरते। जैसे तैसे करके उनका परिवार तो बच गया  मगर अब उनके पास खाने के लिए अनाज का एक भी दाना नहीं  बचा था । उनका सब कुछ बाढ़ में नष्ट हो गया था।

लाखन के पिता के पास ले देकर एक  रेडी ही बची थी।   उन्होंने    फिर भी हौसला नहीं हारा एक दूसरे को तसल्ली दी। सारे परिवार को समझाया।  होनी को कौन टाल सकता है? हमें इस मुसीबत की घड़ी में एक दूसरे का साथ देना चाहिए। शुक्र है कि हमारा परिवार बच गया इससे ज्यादा हमें और कुछ नहीं चाहिए। हमारी  बुढापे की लाठी तो हमारे साथ है। खुशी मनाओ कि हमारे बेटे को कुछ नहीं हुआ  नहीं तो अनर्थ हो जाता। लाखन के पिता कहते कि मैं रेढी चला कर कुछ कमा कर ले ले आया करूंगा पहले हालात तो ठीक हो जाएं। इस बार  बाढ ने चारों ओर तबाही ही तबाही ला दी थी। बहुत से लोग बाढ़ की चपेट में आ गए थे। किसी का कुछ भी नहीं बचा था। जिस किसी के पास जो कुछ बचा था वह बहुत ही कम था। कुछ दिनों के लिए  उन्हें किसी पास के क्षेत्र में उन्हें भेज दिया गया था कर्ण का परिवार भी बच गया था लेकिन उसके मां-बाप बहुत ही दुःखी थे अब क्या करें?। वह रो-रोकर एक दूसरे को अपना हालात बयान कर रहे थे। लाखन नें अपने दोस्त कर्ण को गले से लगा लिया और कहा कि दोस्त हम तो जिंदा है हम अपने मां-बाप को संभालेंगे हम एक दूसरे की मदद अवश्य करेंगे हम अपने मां-बाप को दुख नहीं देंगे। थोड़े दिनों बाद स्थिति कुछ सुधरी।

 

लोंगो के  रहने के लिए तंबू गाड़ दिए गए थे। लोग उसमें रहने के लिए चले गए थे। लखन के माता पिता तो रेडी चला कर अपना पेट भर रहे थे मगर कर्ण के माता पिता बहुत ही दुखी नजर आ रहे थे। उन्होंने तो कभी भी मेहनत-मजदूरी नहीं की थी। लाखन अपने पिता से बोला कि पिताजी हम हमें इनकी मदद भी करनी चाहिए। उनका हौंसला बढ़ाना चाहिए। जो कुछ लाते उसमें से वह कर्ण के माता पिता को भी दे देते। कर्ण के माता पिता को भी महसूस हुआ कि हमने इस बच्चे के साथ बहुत ही अन्याय किया। हमने इस को अपने घर में नहीं आने दिया। हम अपने बड़ा होने पर मान किया करते थे। इस बच्चे ने सिखा दिया कि इस दुनिया में कोई भी छोटा और बड़ा नहीं है दुनिया में सभी एक जैसे हैं। वह धीरे-धीरे वह भी मेहनत करने लग गए थे।

 

एक दिन कर्ण और लाखन ने सोचा कि अब हम भी कमा कर लाया करेंगे जिससे हमारे घर का खर्चा भी निकल सकेगा। बाढ़ आ जाने के कारण चारों ओर चोरों का आतंक छाया हुआ है। चोर चुपके से आकर लोगों का  सामान तंबुओं में से निकाल कर ले जाते थे। जिससे आसपास के लोग बड़े दुःखी थे। कुछेक लोग तो ताकतवर थे परंतु कुछ एक लोग ऐसे थे जो कि उन चोरों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। वह काफी लाचार थे जितना कमाते थे उतना ही चोर उनका सामान लूटकर ले जाते थे। फरियाद करें तो किसके पास।

एक दिन लाखन ने कर्ण को कहा कि हमें ही कुछ करना होगा वर्ना गांव के लोग यूं ही लड़ लड़ कर मर जाएंगे। उन दोनों ने एक योजना बनाई अबकी बार जब लुटेरे चोरी करने के लिए  जब तंम्बुओं में घुसेंगे तो  हम उन पर कड़ी नजर रखेंगे। उनको उन्हीं की ही भाषा में जवाब देना होगा। एक दिन जब लुटेरे उस तंबू में चोरी करने के लिए आए लाखन ने उन्हें आते हुए देख लिया। लाखन नें  सिपाही की वेशभूषा पहनी हुई थी। उसने लुटेरों को कहा कि तुम यहां पर क्या लेने आए हो? मैं एक सिपाही हूं अगर मैं तुम्हारी शिकायत  पुलिस वालों से कर दूं तो तुम तो पकड़े जाओगे। आज मैंने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ लिया है। अभी जाकर मैं सब कुछ सच-सच पुलिस इंस्पेक्टर को बताता हूं। पुलिस इंस्पेक्टर मेरा दोस्त है। लुटेरे बोले तुम्हारे जैसे झूठ बोलने वाले हमने  बहुत देखें हैं। तुम झूठ भी बड़ी होशियारी से बोल लेते हो। पहले  तुम हमें अपने सिपाही पुलिस इंस्पेक्टर से मिलवाओ   तब हम जानेंगे कि तुम ठीक कह रहे हो या गलत। वह बोला तो ठीक है। कल तुम्हें मैं दूर से उन से मिलवा दूंगा और तुम्हें सजा भी दिलवा दूंगा।

लुटेरे डर गए बोले हम चोरी नहीं करेंगे। परंतु तुम हमें कल पहले पुलिस इंस्पेक्टर से मिलवाना। हम दूर से देखेंगे। यह कहकर लुटेरे वापस चले गए।

दूसरे दिन लाखन ने अपने दोस्त कर्ण को कहा कि तुम पुलिस इंस्पेक्टर बन कर आ जाना औरतुम्हें मैं इशारा करूंगा तुम समझ जाना कि मेरे आस-पास लुटेरे हैं। तुम उनके पास आकर कहना तुम कहां से आए हो? मैंने पहले तुम्हें यहां कभी नहीं देखा। मैं उन्हें बचाने की कोशिश करूंगा तब तुम मेरे कहने पर उन्हें छोड़ देना। हम बाद में उन गुंडों को अवश्य ही पकड़ लेंगे और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देंगे। दूसरे दिन लाखन उन लुटेरों के पास आकर बोला यह पुलिस इंस्पेक्टर तो बहुत ही सख्त है।  तुम  अगर उनके पल्ले पड़ गए  वह तुम्हें छोड़ेगा नहीं। तुमने क्या-क्या मार चोरी किया है? तुम उसे मेरे घर में छुपा दो। हो सकता है वह तुम्हारे घर में तलाशी ले। वह लुटेरे बोले यह कभी नहीं हो सकता। तुम झूठ कहते हो। लाखन बोला आज यहां पर  पुलिस इंस्पेक्टर आने ही वाला है। आज खुद ही देखते हैं। पुलिस इंस्पेक्टर जैसे ही आया लाखन ने उसे इशारा कर दिया था। लाखन उन उन गुंडों के साथ ही था।  लाखन नें पुलिस इन्सपैक्टर से हाथ मिलाया।

लाखन  ने उन लुटेरों को पुलिस इंस्पेक्टर के साथ  मिलाया।पुलिस इन्स्पैेक्टर बोला यह व्यक्ति कहां से आए हैं? यह तो नए लगते हैं। तुम कहां रहते हो? जल्दी से हमें बताओ यहां पर कुछ लुटेरों का बोलबाला हो गया है इसलिए हमें चारों तरफ तलाशी लेनी पड़ेगी। तुम जल्दी से अपने घर का पता बताओ। लुटेरे डर के मारे कांपनें लगे। वह बोले हमारा घर यहां से काफी दूर है। कल हम तुम्हें अपने घर ले जाएंगे। यह हमारे घर का पता है। उन्होंने एक कॉपी पर  अपने घर का पता नोट कर दिया।

पुलिस इन्सपैक्टर बोला आज तो तुम्हें  अपनें दोस्त के कहनें पर छोड़ दिया। लाखन बोला यह लुटेरे नहीं है। पुलिस इन्सपैक्टर  बोला  तुम्हारे कहने पर मैं इन्हें छोड़ रहा हूं। मगर कल मैं इनके घर अवश्य आऊंगा।

लाखन को तो सब पहले से ही मालूम था कि लुटेरों ने चोरी किया हुआ माल अपने घर में रखा हुआ था। लाखन इन लुटेरों से बोला मुझे पता है तुम ने इन लोगों का चोरी किया हुआ माल अपने पास रखा है। तुम उस सामान को मेरे घर पर रख दो। तुम्हारा माल भी सुरक्षित रहेगा और तुम भी पकड़े नहीं जाओगे। लुटेरों को उसकी बात पसंद आ गई। लुटेरों ने सारा का सारा लूटा हुआ माल लाखन के घर पर रख दिया।

वादे के मुताबिक पुलिस इंस्पेक्टर दूसरे दिन लुटेरों से मिलने गया। वहां पर कुछ भी उसे हासिल नहीं हुआ। लाखन ने उसे पहले ही बता दिया था कि  उसनें चोरी किया हुआ माल अपने घर में रखा है।

पुलिस इंस्पेक्टर लाखन  से बोला कहीं तुम भी तो इसके साथ   नहीं मिले हुए हो। तुम्हारे घर पर भी तलाशी लेनी पड़ेगी। चलो, चल कर देखते हैं। तुम मेरे दोस्त हो तो क्या हुआ? इंस्पेक्टर का फर्ज होता है कि चोरी करने वाले का पर्दाफाश करें।  पुलिस इंस्पेक्टर कर्ण लाखन के घर पर आते हैं। वहां पर छानबीन करते हैं। लुटेरे भी उसके साथ उसके घर पर आते हैं।

अचानक कर्ण की नजर उन गठरियों पर पड़ती है। पुलिस इंस्पेक्टर कहते हैं कि इन गठरियों में क्या है? खोलो खोल कर बताओ। उन गठरीओं में सभी लोगों का लूटा हुआ माल था पुलिस इंस्पेक्टर लाखन से बोले अब तुम्हें मेरे हाथ से कोई नहीं बचा सकता। तुमने चोरी की है।  पुलिस इन्सपैक्टर  लाखन के घर पर छापा डाल कर चोरी किया माल बरामद करतें हैं। । लाखन कहता है कि मैंने चोरी नहीं की। यह मेरे साथ लुटेरे हैं। यह माल इन्हीं का लूटा हुआ माल है। उन्होंने चोरी करके मेरे घर पर यह माल रख दिया। लुटेरे कहने लगे यह झूठ कहता है। यह हमारा माल नहीं है। यह तो इसी ने चोरी किया होगा। लुटेरे वहां से भाग गए। लुटेरे जैसे ही भाग रहे थे कर्ण और लखन ने दोनों ने असली पुलिस इंस्पेक्टर को फोन कर दिया था। हमारे क्षेत्र में कुछ लुटेरों ने आतंक मचाया हुआ था। हमने उन्हें पकड़ लिया है। पुलिस इंस्पेक्टर और सिपाही बनकर उन लुटेरों का सफाया किया और उन्हें पकड़ लिया है। आप जल्दी से आकर उन लुटेरों को पकड़ लीजिए। वह अभी ज्यादा दूर नहीं गए हैं। पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें  बता दिया था कि यहां पर इन चोरों की गाड़ी खड़ी है। पुलिस स्पेक्टर ने समय पर पहुंचकर उन लुटेरों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। कर्ण और लाखन के इस प्रकार सेवाभाव को देखकर कहने लगे तुम अवश्य ही सिपाही और पुलिस इंस्पेक्टर बनने लायक हो। आज से तुम्हारी पढ़ाई का और सारा खर्चा हम करेंगे। तुम दोनों ही अपने मकसद में जरूर कामयाब होंगे। लोंगों को उनका चोरी किया गया माल वापस मिल गया था सब लोग उनकी प्रशंसा करना नही थकते थे।

एक दिन कर्ण बहुत ही बड़ा पुलिस इंस्पेक्टर बना और लाखन भी एक बहुत बड़ा सिपाही। उन दोनों ने अपने मां बाप का नाम रोशन किया। हालात ठीक हो चुके थे। सब के चेहरों पर खुशी की लहर थी।

एक दिन कर्ण बहुत ही बड़ा पुलिस इंस्पेक्टर बना और लाखन भी एक बहुत बड़ा सिपाही। उन दोनों ने अपने मां बाप का नाम रोशन किया। हालात ठीक हो चुके थे। सब के चेहरों पर खुशी की लहर थी।  

मैं कहानी का गुल्लक की लेखिका  मीना शर्मा ने अपना ब्लौग बना लिया है।  https//कहानी का गुल्लक. इन हिन्दी short stories and poems. अब मेरे ब्लौग में जा कर कहानियों का भरपूर आन्नद लिजीए। धन्यवाद।

अनोखी गिनती

एक दो तीन चार।

गाय की टांगें चार

पांच छः, सात आठ।

मकडी की टांगे आठ।

 

नो दस ग्यारह बारह।

एक दर्जन में होतें हैं बारह।

तेरह चौदह, पन्द्रह सोलह।

आठ दूनी होतें हैं सोलह।

 

सतराह, अठारह, उन्नीस बीस।

हमारे हाथ पांव की ऊंगलियां बीस।

इक्कीस बाक्स, तेईस चौबीस।

हमारे राष्ट्रीय झंडे में तिलीयां होती है चौबीस।

पच्चीस छब्बीस सताईस, अठठाईस।

फरवरी में दिन होतें हैं अठठाईस।

 

उननतीस तीस, इक्कतीस।

महीनें में दिन होंतें हैं तीस इक्कतीस।

मजबूत बंधन

शिवानी और रुपेश के परिवार में उनकी छोटी सी बेटी रानी थी। शिवानी ने रुपेश के साथ प्रेम विवाह किया था। वह भी अपने मां बाप के विरुद्ध जाकर। शिवानी के माता-पिता ने उसे कहा था कि तुम ने अगर अपनी इच्छा से शादी करनी है तो हमारे घर के द्वार तुम्हारे लिए सदा के लिए बंद हो जाएंगे। शिवानी ने हिम्मत नहीं हारी उसने अपने मम्मी पापा को कह दिया कि वह शादी करेगी तो रुपेश के साथ वर्ना वह जिंदगी भर कुंवारी रहेगी।

शिवानी को वह दिन भी याद है वह  रुपेश को वह अपना जीवनसाथी बनाना चाहती थी। शिवानी ने अपने माता-पिता को बताया कि वह एक लड़के से प्यार करती है। वह भी दिलोजान से उस से प्यार करता है मगर दोनों के माता पिता राजी नहीं थे। दोनों एक दूसरे से छुप-छुपकर मिला करते थे जब शिवानी के पिता को पता चला  कि उनकी बेटी अपनी जाति में विवाह न कर किसी दूसरी जाति वाले नवयुवक  से शादी करने चली है तो पहले उन्होंने प्यार से शिवानी को समझाया। उसे कहा   बेटा तुम्हें किस चीज की कमी है। सब कुछ ठीक है। तुम्हारे पास किस वस्तु की कमी है लेकिन तुम ऐसे व्यक्ति से हीे विवाह करोगी जो अपनी ही जाति का हो।  वर्ना  हम तुम्हें किसी दूसरी जाति वाले नवयुवक से शादी करने के लिए आज्ञा नहीं देंगे। शिवानी नें हर  हथकंडे अपना लिए। अपने माता पिता के सामने  रोई गिडगिडाई मगर उन्होंने उसकी बातें नहीं मानी।

शिवानी को उसके पिता ने घर में बंद कर दिया उसके आने जाने पर कड़ा पहरा  लगवा दिया। शिवानी के माता-पिता नें अच्छा सा लड़का देख कर उसका रिश्ता अपनें ही कुल में करनें का फैसला ले लिया। शादी के केवल 2 दिन शेष थे।

शिवानी नें रुपेश को कहा कि मैं अब कुछ नहीं कर सकती। रुपेश शिवानी के घर पहुंच गया। रुपेश ने उसे कहा था कि शाम के समय तुम अपने घर के आंगन के पास ही यूं ही घूमते रहना। मैं चुपके से आकर तुम्हें ले जाऊंगा। रात के 8:00 बजे थे। सब खाने की मेज पर खाना खाने का इंतजार कर रहे थे। शिवानी बार-बार घड़ी देख रही थी। जैसे हीे 8:00 बजे सब के सब खाने की मेज  पर  खाना खाने के लिए चले गए। शिवानी   उठकर पानी लाने के लिए किचन में गई। वह किचन में न जाकर बाहर बरामदे के साथ वाले लौन में चली गई।  उसने जैसे  ही गाड़ी के हॉर्न की  आवाज सुनी वह तुरंत उस आवाज की तरफ  भाग कर चली गई।  बाहर अंधेरा था रुपेश ने गाड़ी की हेड लाइट ऑन नहीं की थी। चुपके से आकर शिवानी उसके साथ भाग गई।

शिवानी बालिग हो चुकी थी। उसके माता-पिता खाने पर इंतजार करते रहे। उन्हें जब आभास हुआ कि वह अपने दोस्त के साथ भाग गई है तो उन्हें बहुत ही बुरा लगा। उसके माता पिता को तो सांप सूंघ गया। अब क्या होगा? दो दिन बाद शादी थी। जैसे तैसे करके उन्होंने  अपनें होनें वाले जमाई के घर फोन लगाया और सारा माजरा कहना सुनाया।  लड़के वाले बोले आपने पहले वादा किया था। हम  अब क्या करें। हम दुनिया वालों को क्या जवाब देंगे। हम तो बारात लेकर आएंगे

   शिवानी के पिता घबरा गए उन्हें तो घबराहट के   मारे चक्कर  ही आ गया। रुपेश के भाई की  भी एक बेटी थी। उन्होंनें समझाबुझा कर उसे शादी के लिए मना लिया। जिस दिन बारात आनी थी  नियत समय पर बारात आई। घर में बारात पंहूंच चुकी थी। घर वालों के दिलों में बेहद सन्तान था।  अपनी लोक-लाज को बचाने के लिए शादी तो करनी ही थी दुनिया के डर से रुपाली की शादी उसके होने वाले जीजा से करनी पड़ी। घर में कोई भी खुश नजर नहीं आ रहा था किसी न किसी तरह शादी समाप्त हो गई। सब अपने-अपने घरों को चले गए थे। आज शादी के 8 साल बाद भी वह उस मंजर को नहीं भूल पाई थी। उस दिन के बाद उसके माता-पिता ने उस से कोई भी संपर्क नहीं रखा। उन्होंने उसे कहा था कि सदा सदा के लिए हमारा और तुम्हारा रिश्ता खत्म। अपनी बेटी रानी को पाकर शिवानी बहुत ही खुश थी। शादी के 2 साल बाद ही जब शिवानी पड़ोस में खेल रही थी तो वह उपरी मंजिल से बुरी तरह से नीचे गिर पड़ी उसकी टांगों में गहरी चोट लग गई थी। डाक्टरों नें उस को ठीक तो कर दिया। उस की टांगे टेढी मेढी  हो गई  उसे चलनें में बेहद कठिनाई होती थी। उसे सहारा ले कर उठना पडता था।  उन्होंने उसका नाम रखा था रानी।

 

शिवानी के पड़ोस में उस की एक सहेली थी शिखा।वह शिवानी की खास दोस्त थी।  उनके भी एक बेटा था। उसका नाम था राजू। वह भी नटखट  और चंचल। रानी के स्कूल में ही उसकी कक्षा में ही पढ़ता था। दोनों हम उम्र के थे। दोनों एक दूसरे के साथ खेलते। रानी का स्कूल में केवल एक ही दोस्त था वह था राजू।  राजू की भी स्कूल में एक ही दोस्त थी  रानी।

रानी 5 साल की हो गई थी। वह लंगड़ा लंगड़ा कर चलती थी। शिवानी अपनी बेटी की तरफ देखकर सोचती मेरी बेटी क्या कभी ठीक भी हो पाएगी या नहीं? मेरे माता-पिता ने भी मुझ से किनारा कर लिया। मेरे पति ही अब मेरी जिंदगी है। पति का कारोबार भी इतना बड़ा नहीं था। वह सोचती थी कि अपनी बेटी की टांगों का ऑपरेशन जरूर करवाएगी। जिससे कि उसकी टांगे सीधी हो सके। वह ऑपरेशन करवाने से भी डरती थी। मेरी बेटी अभी तो थोड़ा बहुत चल लेती है मगर ऑपरेशन के बाद  ठीक भी चल पाएगी या नहीं इसलिए वह रिस्क लेना नहीं चाहती थी। जब वह पूरी तरह ठीक हो जाएगी तभी वह उसका ऑपरेशन करवाने की सोचेगी।

रानी का दोस्त राजू रानी को कहता कि तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। स्कूल को जब बच्चे स्कूल जाते तो रानी आईस्ता आईस्ता कदम बढ़ाते हुए उसके साथ चलती। सब बच्चे कहते भागो। उसे  रहने दो। यह तो जल्दी नहीं भाग सकती। वह अकेले ही आ जाएगी मगर उसका दोस्त राजू उस को छोड़कर कभी नहीं जाता। वह रानी को कहता तू डर मत। मैं तुझे अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा। तुम मत डरा कर। मैं तेरे साथ रहूंगा। वह बोली तू स्कूल चला।  मेरी वजह से  तुझे भी देर हो जाएगी।  राजू बोला तो क्या हुआ? मैं कह दूंगा कि मैं अपनी दोस्त को अकेला छोड़कर नहीं आ सकता। रानी राजू को बोली तू मेरी वजह से हर रोज मार खाता है। कभी अपने पापा से, कभी स्कूल में अध्यापकों से ‘राजू बोला मुझे बहुत बुरा लगता है जब सब लोग मेरी प्यारी दोस्त का मजाक उड़ाते हैं। मेरा बस चलता तो मैं सबका मुंह बंद कर देता परंतु क्या करूं? मैं अभी कुछ नहीं कह सकता हूं ना।

जब मैं पढ़ लिखकर बड़ा इंसान बन जाऊंगा तो मैं ही तुम्हारी टांगों का ऑपरेशन करवा दूंगा।

रानी  बोली अभी तो हम  भी बच्चें हैं। ।  जब हम बड़े हो जाएंगे  तुम पता नहीं कहां रहोगे? मैं भी ना जाने कहां रहूंगी। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाऊंगी क्योंकि तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। तुम हर मुश्किल की घड़ी में तुम हरदम मेरे साथ रहते हो। मेरे पापा ने जब कहा था कि इसको स्कूल पढ़ाने में क्या फायदा होगा। इससे चला तो जाता नहीं, तब तुम ने आगे बढ़कर मेरे पापा को समझाया था कि अंकल आप ऐसा क्यों कहते हो? रानी के पापा बोले ऐसा नहीं है  कि मैं अपनी बेटी से प्यार नहीं करता।  हर कहीं गिरने से अच्छा है कि वह घर पर ही रहकर शिक्षा ग्रहण करें। आंटी के समझाने-बुझाने पर कहीं तुम्हारे पापा  मेरे साथ स्कूल में भेजने पर राजी हुए।

 

रानी और राजू जब स्कूल पहुंचे तो अध्यापकों ने उन से कहा कि हर रोज तुम स्कूल देरी से आते हो। राजू बोला मैं अपने दोस्त को बीच रास्ते में छोड़कर स्कूल नहीं आ सकता। मेरी दोस्त ज्यादा तेज नहीं भाग सकती। अध्यापक भी उनकी मित्रता देखकर उन्हें कुछ नहीं कहते थे। उन्होंने स्कूल उन्हें आधा घंटा देरी से आने की इजाजत दे दी थी।

एक दिन रानी स्कूल को जा रही थी  उसके दोस्त राजू को बुखार था। वह अकेली स्कूल के लिए निकल पड़ी। एक मोटर बाइक बड़ी तेजी से चलता हुआ आया और वह रानी को टक्कर मार कर चला गया। उसने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा कि कोई उसकी गाड़ी से टकरा गया था। रानी दूर जाकर गिरी। उसकी दूसरी टांग में चोट लग गई थी मगर उससे ज्यादा चोट नहीं लगी थी। वह उठ नहीं सकती थी। उसे उठने में कठिनाई हो रही थी। उसकी आंखें बंद थी।

रानी ने देखा कि एक रईस व्यक्ति की पीछे गाड़ी खड़ी थी। उनका सारा परिवार गाड़ी से उतरा। उन्होंने रानी को उठाया तक नहीं। उसे वैसे ही सड़क पर पड़े रहने दिया। उन्होंने एक लड़की को बेहोश पड़े देख लिया था। रानी ने देखा कि वह अधेड़ उम्र के व्यक्ति अपने परिवार के साथ तेजी से चलते हुए काफी दूर आगे निकल गए। उन्होंने गाड़ी को लॉक लगाया। गाड़ी को लौक करते हुए रानी ने देख लिया।

रानी नें देखा कि उस गाड़ी का ताला तोड़ते हुए उसने तीन युवकों को देखा एक एक करके वे बहुत सारे सूटकेस उठाकर ले गए। सब कुछ ले जाने के बाद वह अपनी गाड़ी में बैठ कर चले गए। रानी को पता चल चुका था कि जो व्यक्ति अभी गाड़ी से उतर कर गए उनका  सामान  चोर उठा कर ले गए थे।

रानी ने उठने की काफी कोशिश की।  धीरे-धीरे सरक सरक कर घर पहुंची। सात दिनों तक स्कूल नहीं जा पाई। उसने सारी बातें अपने दोस्त को  कह सुनाई।

उसनें राजू को बताया जिस दिन तुम स्कूल नहीं आए थे मैंने सोचा आज अकेले ही स्कूल जाती हूं। रास्तेमें चलते चलते एक बाइक वाला बडी़ तेजी से आया और उसे टक्कर मार चला गया।  उसनें एक बार भी  पिछे मुड कर भी नहीं देखा। उसनें  उठनें की कोशिश की। दर्द के कारण उठ नहीं सकी। उठनें की कोशिश कर ही रही थी कि उसने अपनें पीछे एक गाड़ी देखी। उस में से एक रईस परिवार उतरा। उन्होंनें भी उसे नहीं उठाया और  तेजी से गाड़ी को लौक करके चलते बनें। उसनें उन्हें जाते देखा। शायद वह  बाहर से सैर करनें आए थे।

 

कैसे  लुटेरों ने सामनें खड़ी गाड़ी से एक रर्ईस  व्यक्ति का सब कुछ लूट कर अपनी गाड़ी में रखा और चले गए। तीन  व्यक्तियों का चेहरा तो वह बना सकती है वैसे तो वह बहुत ही होशियार थी लेकिन  चल पाने में असमर्थ थी उसके पापा बोले बेटा मैं तुम्हारा बुरा नहीं चाहता। तुम घर में बैठकर ही पढ़ाई किया करो। स्कूल जाना तुम्हारे बस की बात नहीं।

राजू कहता, कहां तो आपको अपनी बेटी को कहना चाहिए कि नहीं तुम अपना काम स्वयं किया करो। थाली उठानी है तो अपने आप उठा कर लाओ। चाहे कितनी भी देर क्यों ना लग जाए, उसकी मम्मी शिवानी अपनी बेटी से छोटे छोटे काम करवाने लगी धीरे-धीरे वह काम करने में अभयस्त हो गई। ज

एक दिन स्कूल के सारे बच्चे पिकनिक पर गए थे। सब बच्चों की  टोली बड़ी तेजी से चली जा रही थी। राजू भी अपने दोस्तों के साथ चल रहा था। रानी बिल्कुल अकेली हो गई। सबके सब आगे निकल चुके थे। राजू ने उसे जानबूझकर अकेला छोड़ा जिससे कि वह अकेले काम करना सीखें। राजू भी उसे जाते हुए देख रहा था। वह बहुत ही मायूस हो गई। आज तो उसका दोस्त भी उसको अकेला छोड़कर चला गया। वह अपने आप को अकेला महसूस करनें लगी। अपनें मन में विचार करनें लगी  सभी ठीक ही तो कहते हैं। उस बेसहारा का इस दुनिया में कोई नहीं है। राजू उस से हमेंशा कहता है कि तुम असहाय नहीं हो। आज वही उस से पीछा छुड़ा कर चला गया। जब साथ देने की बारी आई तो वह साथ छोड़ कर भाग गया। वह निराश नहीं होगी। वह चलने की कोशिश करेगी। अचानक तेजी से भागता हुआ राजू आया और बोला मैं तुम्हें देख रहा था कि तुम अकेले भी चल सकती हो या हार मान कर यूं ही पड़ी रहेगी। शाबाश गिर कर संम्भलनें को ही जिंदगी कहतें  हैं। तुम बेसहारा नहीं हो केवल टांगें टेढ़ी है तो क्या हुआ?  एक दिन ठीक हो   ही  जाएगी। तुम अपने ऊपर हौसला रखोगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। वह नीचे गिर पड़ी थी। राजू बोला मैं तुम्हें उठाऊंगा नहीं तुम्हें स्वयं उठना होगा कोशिश करनी होगी धीरे-धीरे कोशिश करने से तुम स्वयं बिना किसी सहारे के ऊपर उठ पाओगे रानी ने फिर से उठने की कोशिश कि वह अपने आप बिना किसी के सहारे से ऊपर उठ गई थी। वह सोचनें लगी वह अपने आप सारे काम किया करेगी, राजू ठीक ही कहता है कि किसी दिन अगर वह अकेली होगी तो कौन उसकी सहायता करने आएगा? उसे हर रोज अभ्यास करने की आदत डालनी होगी।

एक दिन यूं ही उद्यान में टहल रही थी। उसने वही गाड़ी जाते देखी वह चुपचाप  गाड़ी की डिक्की में छुप गई। वह देखना चाहती थी कि उन गुंडों ने वह चोरी किया हुआ सामान कहां रखा है? वह घर में बिना किसी को बताए उस गाड़ी में दूर तक निकल आई थी। उन गुंडों ने गाड़ी  एक ओर खड़ी कर दी थी।  वह चाय पीने के लिए ढाबे पर चले गए। रानी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? शाम के समय  किसी  अनजानी सी जगह पर उन्होंने गाड़ी खड़ी कर दी। रानी ने देखा कि वहां दूर-दूर तक कोई इंसान नहीं था। वह एक जंगल का रास्ता था। वहां कोई भी नहीं था। उसे डर भी लग रहा था। उन चोरों ने उस डिक्की का दरवाजा खोला तो वह पकड़ी जाएगी। भगवान का शुक्र है उसे किसी ने भी नहीं देखा।

रात के 2:00 बज रहे थे। एक खंडहर में घुसकर रानी ने उनको खंडर में जाते देख लिया था। वह रात को उस  डिक्की से निकली वहां पर एक और पानी की टंकियां थी। उसके पीछे छिप गई। वहां पर उसे नींद आ गई थी। वह छोटी सी थी। उसे पानी की टंकी के पीछे किसी ने नहीं देखा।

जब रानी घर नहीं आई तो रानी की मां और पापा दोनों रो-रो कर अपने आप को कोस रहे थे। एक तो बेचारी टांगो से लंगड़ी। हमारी बेटी ना जाने कहां चली गई? शायद हमारी कोई बात उसे बुरी लगी हो। शिवानी रुपेश को बोली पहले ही आप  उसे स्कूल जाने से मना करते थे। शायद उसे बुरा लगा हो। वह इसी कारण घर से चली गई। वह किसी पर भी बोझ नहीं बनना चाहती थी। वह रात के समय उसे कंहा ढूंढे? उन्होंनें राजू के घर जाकर कर पता  किया।राजू नें उन्हें बताया कि एक रर्ईस  परिवार की गाड़ी से सामान चुराते हुए रानी नें देख लिया था। वह उसे बता रही थी कि वह उन गुन्डों का पता लगा  कर ही रहेगी। रानी के माता पिता डर गए थे। हम अपनी बच्ची को कैसे उन गुन्डों से बचा कर घर वापस लाएंगे? राजू बोला मैं भी उसे ढूंढें जरुर  जाऊंगा। वह अपनी दोस्त को सही सलामत घर वापस लाएगा।

रानी को दो दिन से खाने को कुछ नहीं मिला था। उसे मौका ही नहीं मिल रहा था डिक्की में छिपने का। तीसरे दिन साहस कर के रानी नें उठने का प्रयत्न किया। उसनें देखा कि गुन्डों जल्दी में अपना कोट गाड़ी में ही भूल गए। वह चाबियां लेने के लिए  अन्दर गए। रानी सरक सरक कर गई और उन की जेबें टटोलनें लगी। उसके हाथ मोबाइल लग गया। उसनें वह मोबाईल उठा लिया। एक ओर लिफाफे में बिस्किट पडे थे। उसनें चुपके सेएक पैकेट बिस्किट उठाया और सरक सरक कर टांकी के पीछे छिप गई। वे तीनों गुन्डों जल्दी ही वापिस आ कर एक दूसरे से करनें लगे जल्दी चलो। वह गाड़ी को ले कर चले गए। रानी नें उन के जाते ही चैन की  सांस ली। पहले उसनें बिस्किट खास कर अपनी भूख मिटाई। उसनें अपनें पापा को मोबाईल चलाते देखा था। वह सोच रही थी कि इस बियाबान जंगल मेंउसकी कौन मदद करनें आएगा। उसे तो किसी का नम्बर भी नहीं मालूम। उसनें हर कोई नम्बर डायल किया। उसनें सोचा कोई न कोई तो सुन कर उसकी मदद करनें आएगा। अचानक उस का फोन लग गया था दूसरी तरफ से आवाज आ रही थी हैलो किस से बात करनी है?

वह एक व्यक्ति थे। रानी हांपते बोली अंकल प्लीज फोन काटना मत। मैं बडी़ ही मुसीबत में हूं। कृपया कर के आप मुझे गुन्डों से बचाओ। मैं बडी मुश्किल से टांकी के पिछे छिप गई हूं। वह व्यक्ति बोले बेटा तुम कंहा से बोल रही हो? वह बोली मुझे गुन्डों नें दुर्गापुर के पास  एक बहुत ही पुराना खन्डहर है। जिसे देख कर काफी डर लगता है। उस खन्डहर के पास खिड़की के सामने एक नीम का पेड़  है। वही पर पानी की टंकी है। उस टंकी पर दुर्गा पुर लिखा है। अंकल जल्दी आना यह मोबाईल भी मेरा नही है। मैं भाग भी नहीं सकती हूं। मेरी टांगे टेढी है। मैं बहुत ही आईस्ता आईस्ता चलती हूं। मैं तेज भाग नहीं सकती। वे गुन्डे अगर अभी आ गए तो मैं मारी जाऊंगी। कृपया करके आप ही बचा मुझ अभागी को बचा सकतें हैं। वह व्यक्ति बोले मैं यहीं हूं। मैं किसी सामान के सिलसिले में  उतर वाहिनी मेले में आया था। तू डर मत। मैं तुझे अवश्य बचाउंगा। तुम्हें बचाते बचाते अगर मैं मर भी गया तो मैं समझूंगा कि मैंनें कोई अच्छा काम अवश्य किया है

मैं दस मिनट में वहां पहुंचता हूं।  रामनाथ नें जल्दी ही दुर्गापुर की ओर  गाड़ी मोड़ दी। उनके जहन में अपनी बेटी का चेहरा घूम गया। आज से सात साल पहले उनकी बेटी उनसे जुदा हो गई थी। वह इतना निष्ठुर कैसे हो गया था। अपनी बेटी से सदा सदा के लिए रिश्ता  तोड़ दिया था। उसने अपनी इच्छा से  दूसरी जाति के लड़के से शादी कर के अपना घर बसा लिया था। आज तक वह कभी  उन्हें नहीं मिली। आज अगर वह यंहा आती तो कितना अच्छा होता? हमनें तो उससे कहा था कि आज से हमारे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा हमेंशा के लिए बन्द है। आज उसके भी बच्चे हो गए होंगे। हम तो  उसकी शादी के बाद बिल्कुल अकेले हो गए। आज अपनी बेटी की बहुत ही याद आ रही है। अपनें भाई की बेटी की शादी तो हमनें लड़के को पसन्द कर के की थी। आज तक उन्होंने भी कभी उसे हमारे पास उसे नहीं भेजा। वह यही सोचते जा रहे थे। उन्होंने अपनी गाड़ी दुर्गापुर के पास खड़ी कर दी। वहां पर उन्हें   एक बहुत ही पुराना खन्डहर दिखाई दिया। वहां पानी की टंकी के ऊपर  लिखा दुर्गापुर  उन्होंने   पढ़ लिया। रानी नें हाथ से ईशारा किया। यंहा अंकल। सरकती सरकती वह गाड़ी में चढ गई और कस  कर रामनाथ को गले से लगा लिया। रामनाथ को ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्होंनें अपनी बेटी को गले लगाया हो। उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े।रानी उनको रोता देख कर बोली आप रो क्यों रहे हो? आप तो मेरे नाना जी की तरह लगते हैं। मेरी मां कहती है तुम्हारे नाना जी के सिर पर कम ही बाल है। मैं क्या आप को नाना जी बुला सकती हूं?

रामनाथ बोले तुम नें मुझे नाना कहा है। आज मुझे लगा कि मेरी नवासी मेरे सामने खड़ी है। तुम्हारी नानी तो तुम्हें देख कर खुश हो जाएगी। मैं तुम्हारी हर कदम पर सहायता करुंगा। अभी तो जल्दी से घर चलो गुन्डों को जरा भी भनक लगी गई तो वे गुन्डे हमारी न जानें क्या दुर्गति करें।

रामनाथ जी नें अपनी गाड़ी किशनगंज की ओर मोड़ दी।  वह उतर वाहिनी  मेले से सामान खरीदने आए थे। उनका घर किशनगंज के पास ही था। वह अपनें घर पहुंच गए थे। घर पहुंच कर रानी बोली पहले मुझे जल्दी से  कुछ खिला दो वर्ना मैं आज तो अवश्य ही मर जाऊंगी। रामनाथ नें जैसे ही अपनी पत्नी से उस गुड़िया को मिलवाया वह भी उस से मिल कर बहुत ही खुश हुई। उन दोनों पति-पत्नी को ऐसा महसूस हो रहा था कि वह कल ही की बात है।उन की बच्ची शिवानी आज वापिस आ गई है। रानी ने भर पेट खाना खाया। रामनाथ बोले तुम कंहा कि रहने वाली हो? वह बोली मै करनाल की रहने वाली हूं। रामनाथ सोचने लगे उनकी बेटी भी  तो करनाल  में ही ब्याही है। रामनाथ नें उस से पूछा तुम्हारी मां का क्या नाम है? वह बोली मेरी मां का नाम शिवानी है। कंही वह  हमारी बेटी की ही बेटी तो नही है। चाहे कोई भी हो हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आज हम समझ गए घर में सारी खुशियां तो अपनें बच्चों के साथ ही होती है। यह रुपया तो हाथ की मैल है। अब इस बच्ची को वह कहीं नहीँ  जानें देगा। पहले उस से पूछ लेता हूं। वह गुन्डे कौन थे? वह उसे क्या करना चाहते थे। रानी बोली नाना जी आप को मैं शुरु से सारा किस्सा सुनाती हूं।

रानी बोली मैं जब छोटी सी थी मैं सीढियों से गिर गई थी। बहुत ऊंचे से गिर गई थी। टांगों में लग गई जिस वजह से उसकी दोनों टांगे टेढ़ी हो गई। डॉक्टर ने कहा कि ऑपरेशन करना पड़ेगा ठीक भी हो सकती है और नहीं भी मेरी मां हरदम चिंता करती रहती है। वह डर के मारे मेरा ऑपरेशन भी नहीं करवाती कहीं मैं चल भी सकूंगी या नहीं।

रामनाथ बोले बेटा कैसे ठीक नहीं होगी। मैं तुम्हारी टांगों का ऑपरेशन करवा लूंगा।  तुम  अब मेरे पास हो तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं।

रानी ने उन्हें सारी कहानी कह सुनाई किस तरह वह स्कूल में पढ़ती थी। स्कूल में जाने वाले बच्चे जल्दी जल्दी स्कूल जाते थे और वह पीछे रह जाती थी। सब उसका मजाक उड़ाते थे। सब उसे बेसहारा समझते थे। यहां तक कि उसके पापा भी उसे स्कूल पढ़ने नहीं भेजते थे उसके पापा उसे कहते थे कि गिर पड़ गई तो तुम्हें कौन संभालेगा? तुम घर पर ही रहकर शिक्षा ग्रहण करो। मेरी मां मुझे स्कूल भेजना चाहती थी परंतु वह डर के कारण स्कूल नहीं भेजती थी। मेरे पड़ोस में ही मेरा एक दोस्त राजू था। वह उसे बहुत ही अधिक प्यार करता था। वह मेरे साथ स्कूल जाता था। वह उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ता था। उसने मेरे पापा को समझाया कि मैं इसे स्कूल ले जाया करूंगा और छोड़ भी दिया करूंगा। वह मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। धीरे-धीरे उसने राजू के साथ स्कूल जाना शुरू किया। राजू ने उसे समझाया कि तुम्हें अपने आप काम करने की आदत डालनी चाहिए। तुम हर काम कर सकती हो हतुम बेसहारा नहीं हो। तुम अपने आप हर काम कर सकती हो। तुम में हौसला होना चाहिए। धीरे-धीरे उसने सब काम अपने हाथ से करने का फैसला कर लिया। बहुत सारे काम करने में व्यस्त हो गई। कभी-कभी नीचे गिर भी जाती थी।

एकदिन की बात है कि जब वह स्कूल जा रही थी उसका दोस्त राजू उस को बुखार था। वह स्कूल नहीं जा सका था। वह स्कूल जा रही थी तो एक बाइक वाला आकर उसे टक्कर मार गया। वह नीचे गिर पड़ी। उस बाइक वाले ने उसे देखकर भी पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा। और बाईक को लेकर आगे चलता बना। वह नीचे गिर गई थी। उसे बहुत ही ज्यादा दर्द हो रहा था लेकिन उठने में असमर्थ थी। उसने देखा कि उसके पीछे एक बहुत ही चमचमाती गाड़ी  आ कर रुक गई। उसमें से एक रईस परिवार उतरे। उन्होंने वहां पर गाड़ी खड़ी करी और मुझे बिना देखे जल्दी से गाड़ी को लॉक करके आगे बढ़ गए। उन्होंने भी मुझे नजरअंदाज कर दिया उन्होंने भी मुझे देख कर भी नहीं उठाया। वह वैसे ही पड़ी रही, जैसे ही वह चले गए एक गाड़ी और आई और उसमें से दो लंबे-लंबे हट्टे-कट्टे आदमी उतरे। उन्होंने उस गाड़ी  का लॉक तोड़ा और और उसमें से तीनों सूटकेस लेकर चले गए। उसनें  उन  को चोरी करते देख लिया था। वह शक्ल से बहुत ही खूंखार गुंडा लगते थे। वह आपस में कह रहे थे शायद कोई नीचे गिरा है जल्दी चलो वर्ना किसी को मालूम पड़ गया कि हम चोरी कर के सामान ले गए हैं तो बहुत ही बुरा होगा। शायद यह लड़की मर चुकी है। उन गुन्डों को देख कर उसनें सांस रोक ली थी। गुन्डे जल्दी से आगे बढ गए।

दूसरे दिन उसनें मैडम को कहते सुना कल एक व्यापारी  आलोकनाथ  जो कि व्यापार के सिलसिले  में करनाल आया था उस की गाडी से सारे सूटकेस  चोर ले कर भाग गए। मैडम बोली उन सेठ नें अखबार में इश्तेहार दिया है जो हमारे सामान को ढूंढने कर लाएगा उसे 15लाख ईनाम के तौर पर दिए जाएंगे। उन सेठ जी का हीरो का व्यापार है। वह करनाल में अपनें दोस्त के घर ठहरे थे। वह मन्दिर की सैर करनें जा रहे थे जब यह हादसा हुआ। रानी बोली उसनें घर में कुछ नहीं बताया था। उसका बाहर निकलना बन्द था। उसके घुटनों में चोट लगी थी।उसनें अपनें दोस्त राजू को सारी दास्तान सुना दी थी कि उसनें कुछ गुन्डों को सूटकेस  निकालते देख लिया था जब वह घायल अवस्था में सड़क पर गिरी हुई थी। राजू बोला हम दोनों मिल कर उन गुन्डों को पकड़ कर उनका पर्दाफाश करेंगें। रानी बोली उस दिन शाम को जब वह शाम को अपनें घर के सामनें टहल रही थी उसनें फिर से उन गुन्डों को जाते देखा। उसनें सोचा ज्यादा देर करना ठीक नहीं वह अकेली ही उन गुन्डों का सामना करेंगी। उसे सब असहाय बेचारी समझते हैं।  बेचारी शब्द सुन सुन कर थक गई। वह क्यों सारे काम नहीं कर सकती जो एक सामान्य व्यक्ति कर सकता है। उसे ज्यादा समय लगेगा पर वह भी कर के दिखा देगी। टांगे टेढी है तो उसनें अपनें आप को अन्दर से इतना मजबूत कर लिया है वह हर खतरे का मुकाबला हंसते हंसते कर सकती थी। राजू के परिवार वाले भी उसे आने  से मना करते इसलिए उसनें अकेली ही उन से निपटनें का फैसला ञकर लिया। वह किसी पर बोझ बन कर अपनी जिन्दगी यूं बर्बाद नहीं करेगी। वह भी कुछ कर दिखाएगी।

 

उसके नाना जी बोले वाह! शाबास बेटा, कल ही मैं अपने फैमिली डाक्टर को फोन लगाता हूं। तुम्हारी टांगों के आप्रेशन के लिए बात करता हूं। आज हमारे घर में हमारे बहुत ही पुरानें मित्र आ रहें हैं। वह उन डाक्टर साहब के बड़े भाई हैं। उन से भी कहता हूं भगवान ने चाहा तो तुम जल्दी ही चलनें लग जाओगी।

शाम के चार बजे किसी नें दरवाजे पर दस्तक दी। रानी नें कहा मैं दरवाज़ा खोलती हूं। रानी ने जैसे ही दरवाजा खोला वह चौक कर पीछे हट गई। सामनें  जो व्यक्ति खड़े थे उनका चेहरा जाना पहचाना लग रहा था। वह याद करनें की कोशिश करनें लगी। उसे सब कुछ याद आ गया यह तो वही व्यक्ति थे जिन की गाड़ी से चोरी सूटकेस चुरा कर ले गए थे। रामनाथ जी बोले इनको नमस्ते करो या पैर छू कर आशीर्वाद लो। वह बोली नमस्ते अंकल। उन्होंनें भी नमस्ते का उतर दे दिया। रानी बोली क्या आप करनाल गए हो? वह बोले बेटा। वंहा का तो नाम ही मत लो। मैं वहां क्या गया सारा कुछ गंवा कर आ गया। वह बोली आप करनाल किस के घर ठहरे थे। वह बोले बेटी क्या तुम कोई जासूस हो? वह बोली नहीं ऎसे ही पूछ लिया। मैं वहीं की रहने वाली हूं। आलोकनाथ बोले मेरे बहुत ही खास दोस्त हैं। वह भी व्यापारी हैं। उनका नाम महेन्द्र नाथ है। उनके पास ठहरा था। वह जल्दी से बोली वह तो मेरे दोस्त के पापा हैं। आप की गाड़ी में से चोरी करते हुए उसनें गुन्डो को देखा था। उसने सारी कहानी सुना दी  स्कूल जाते हुए  वह कैसे एक बाइक सवार से टकराई और नीचे गिर गई। उसने उसे नहीं उठाया। फिर आप की गाडी आई आप नें भी देख कर नजर अंदाज कर दिया। और जल्दी जल्दी उतर कर गाड़ी लौक कर चले गए। गुन्डों नें आ कर आप की गाड़ी का लौक तोड़ा औरसूटकेस निकाल कर ले गए। गुन्डों नें मुझे देख कर एक दूसरे से कहा यहां कोई लड़की नीचे गिरी है। यह जिन्दा तो नहीं है देखो। मुझे सुनाई दे गया  सांसो को रोक कर वह बिना हिले डोले यूं ही पड़ी रही। उन्होंने कहा यह तो मर गई है जल्दी चलो वर्ना हम भी पकड़े जाएंगे।वह लौक तोड़ कर  सूटकेस ले कर चलते बनें। आलोक नाथ बोले  बेटा मुझे माफ कर दो  उस दिन तुम्हें देख कर भी तुम्हारी सहायता नही की। इतनी प्यारी बच्ची को नहीं बचाया। इसी कारण तो भगवान नें हमें इतनी बड़ी सजा दे डाली। उस सूटकेस में बहुत ही किमती हीरे थे। क्या तुम उन गुन्डों को पकडवानें में हमारी मदद कर सकती हो? मैंनें उन गुन्डों को पकडवानें वाले को 15 लाख रुपये ईनाम रखा है। रामनाथ नें सारी कहानी अपनें दोस्त को सुना दी यह बेटी बहुत ही होशियार है। यह उन गुन्डों का सामना करती करती अपनें माता पिता को बताए बगैर उनकी डिक्की में छिप कर उनके अड्डे का पता मालूम कर लिया। और उन गुन्डों का मोबाईल भी छिपा कर ले आई है। वह केवल आठ वर्ष की है। रामनाथ नें सारी कहानी आलोकनाथ जी को सुना दी। रामनाथ जी बोले हम सब मिलकर  उन गुन्डों को पकडवाएंगे। आलोकनाथ जी को रामनाथ नें बताया कि इस बच्ची की टांगें टेढी हैं। वह बहुत ही दुःखी हुए। हमारी सोच कितनी छोटी है। इस बच्ची का हौंसला देखो टांगे टेढी  होनें के बावजूद भी अकेली उन गुन्डों को सलाखों के पीछे पहुंचा नें का दम रखती है। हमें तो इस छोटी सी बच्ची से सीख लेनी चाहिए।

आलोकनाथ जी बोले मैं इस बेटी की टांगों का आप्रेशन जल्दी से जल्दी करवानें की कोशिश करुंगा। आप को इस लडकी के माता पिता को सूचित करना होगा। मोबाईल की सहायता से रानी नें  पुलिस वालों को उन गुन्डों के अड्डे तक पंहूंचाया। और उनके असली ठिकानों का पता बता कर सारा चोरी किया माल बरामद कर लिया।

रामनाथ जी नें उस लड़की की फोटो अखबार में डाल दी थी कि एक बच्ची दो महीनें से हमारे घर पर है। उसका नाम रानी है। उसनें चोरों के अड्डे का पता लगा कर एक व्यापारी का सारा चोरी किया गया माल ढूंडवानें मे मदद की है। और गुन्डों को जेल भिजवाया है। उस लड़की के जज्बे को हम सलाम करतें है। जिस किसी की भी यह बच्ची है वह  विवेकानन्द हॉस्पिटल  में है। अखबार में छपवा दिया था। रामनाथ जी नें उसे अस्पताल में दाखिल करवा दिया। शिवानी नें अखबार जैसे ही पढा उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। आज उसका सिर गर्व से ऊंचा हो गया था। उनकी बेटी नें साबित कर दिखाया था। जो एक सामान्य इन्सान कर सकता है तो वह क्यों नहीं? शिवानी के पापा भी खुश थे। उन की बेटी सुरक्षित है। वह जल्दी जल्दी विवेकानन्द अस्पताल जो दुर्गापुर में था वह आज जानें की तैयारी करनें लगे। राजू नें जब सुना तो वह भी उन के साथ अपनी दोस्त  को मिलनें चल पड़ा। रास्ते में शिवानी सोच रही थी उनके पापा मां भी यही किशनगंज में रहतें हैं। उन्होंनें तो कभी मुझे याद तक नहीं किया। उसके एक फैसले नें उसे अपनें मां बाप के प्यार से सदा सदा के लिए वंचित कर दिया। अचानक रुपेश बोले क्या सोच रही हो? वह बोली कुछ नहीं यंहा पंहुंच कर अपने बचपन को याद कर रही थी। मेरे माता पिता नें यहां ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया और मैंनें उन की इच्छाओं का गला घोंट दिया। आज वह भी मुझे मिल जाते  तो कितना अच्छा होता? रुपेश बोले पहले तो हमें वहां पहुंच कर उन देवता तुल्य व्यक्ति का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंनें हमारी बेटी का आप्रेशन करवानें में हमारी मदद की है। उन को ही मैं अपने पिता समझूंगा। जिनकी वजह से आज हमारी बेटी उन्हें मिलनें जा रही है।रुपए और उनकी पत्नी शिवानी  भी अस्पताल पंहूंच गए थे। डाक्टर रानी का आप्रेशन कर रहे थे। रानी का आप्रेशन सफल हो गया। शिवानी नें जैसे ही अस्पताल में कदम रखा स्ट्रेचर पर लाते हुए उसने अपनी बेटी को देखा।  नर्सो नें उसे बिस्तर पर लिटा दिया। शिवानी और रुपेश अपनी बेटी को गले लगाते हुए बोले बेटा तू हमें बिना बताए कंहा चली गई थी। हम नें तुम्हें कंहा कहां नहीं ढूंढा? राजू ने कस  कर  अपनी दोस्त को गले से लगा लिया और बोला तू नें तो अपने दोस्त को भी पराया कर दिया। मैं तुम्हारी मदद करता। मुझे आज इस बात की खुशी है अब तुम हर काम कर सकती हो।

शिवानी बोली में उन का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जिन्होंने मेरी बेटी का आप्रेशन करवाया और मुझे इतनी बडी़ खुशी दी।

सामनें से आते एक बढें व्यक्ति की तरफ इशारा करते हुए रानी बोली ये हैं मेरे नाना जी। शिवानी चौकी। यह तो भगवान का करिश्मा ही हो गया जैसे ही वह उन के पैर छू कर आशिर्वाद लेंनें के लिए झुकी वह हैरान रह गई। शायद उसे इन व्यक्ति में अपने पापा का चेहरा दिखाई दिया। वह जोर से चिल्लाई। बाबूजी और दौड़ कर उन्हें  गले लगा  कर बोली बाबू जी, यह आप की ही नवासी है। आपने तो हमें अलग कर दिया था मगर आज आप की नवासी नें हमें फिर से मिलवाया दिया। यह तो मजबूत बंधन है। इतनी आसानी से टूटनें वाला नहीं है। रामनाथ और उसकी पत्नी अपनी बेटी को गले लगा कर बोले हम  तुम बच्चों के सच्चे प्यार को समझ नहीं सके तभी तो अकेले के अकेले रह गए। आज से हमारी नवासी हमारे साथ ही रहेगी। आलोकनाथ जी नें वायदे के मुताबिक उसे 15लाख रुपये दिलवा दिए। धीरे धीरे रानी की टांगे भी सीधी हो गई। वह  चलनें लग गई थी। सारा परिवार खुशी खुशी एक दूसरे के साथ था। एक बार खुशियाँ फिर से लौट आई थी।

 

स्वच्छता का संकल्प

मेरे प्यारे बच्चों तुम इधर तो आओ।

आने में तुम यूं ना देर लगाओ।

नाना-नानी चाचा-चाची ताया ताई, सभी को बुलाओ सभी को बुलाओ।

आने में यूं ना तुम देर लगाओ।

अपनें वातावरण को साफ रखनें का

तुम्हे देते हैं आज यह मूल मंत्र।

यही है तुम्हारे जीवन का तंत्र।

इसको तुम सभी अपने जीवन में अपनाना।

इस पर अमल करके यूं जीवन को सफल बनाना।

आने में यूं ना तुम देर लगाना।

नहीं तो तुम्हें जीवन भर पड़ेगा पछताना।

मेरे प्यारे बच्चों तुम इधर तो आओ।

आने में तुम यूं न देर लगाओ।

नाना-नानी चाचा-चाची ताया ताई, सभी को बुलाओ सभी को बुलाओ।

आने में यूं ना तुम देर लगाओ।

 

इस गुप्त मंत्र को  अगर न अपनाओगे।

तुम यूं ही बिमारी को दावत देते जाओगे।

इस स्वच्छता के मंत्र को अपनाओ।

अपने माता-पिता अभिभावकों को समझाओ हर घर में स्वच्छता की अलख जगाओ। अलख जगाओ।

मेरे प्यारे बच्चो तुम इधर  तो आओ।

आने में यूं ना तुम देर लगाओ।

हर घर में स्वच्छता की अलख जगाओ। शौचालय का हर घर में निर्माण कराओ।

हर बच्चा अपनें हाथों से शौचालय की करेगा सफाई।

तो होगी तुम्हारे मेहनत की भरपाई।

तुम्हारे घरों में चारों ओर होगी  खुशहाली।। अस्पतालों के न तुम चक्कर लगाओगे।

नीम हकीम वैद्य के पास तुम  न जाओगे।

योग करके अपनें जीवन को सफल बनाओगे

तभी जीवन में आगे बढते जाओगे।

नाना नानी चाचा चाची ताया ताई, सभी को बुलाओ, सभी को बुलाओ।

चुन्नू मुन्नू बिट्टू बंटी, तुम जल्दी से आना।

नहीं तुम अपना वादा भूल जाना।।

चुन्नू मुन्नू बिट्टू बन्टू जल्दी जल्दी आना।

न तुम समय को यूं गवाना।

न तुम समय को यूं गवाना।

हर एक बच्चा अपने हाथों से शौचालय की करो सफाई।करो सफाई।

देखो यह मक्खियां तुमने कहां से बुलाई।

कहां से बुलाई।

अपने माता-पिता अभिभावकों , छोटों और बड़ों सभी को समझाओ।

अपने आसपास गंदगी कूड़ा कर्कट का यू ढेर ना लगाओ।

अपने आसपास नकारात्मक उर्जा ना फैलाओ। पानी के गड्ढों को जल्दी से भरवाओ।

पानी के गड्ढों को जल्दी से भरवाओ।

चुन्नू मुन्नू बिट्टू बंटी जल्दी-जल्दी आओ।

आने में तुम यूं ना समय को गंवाओ।

हर एक बच्चा अपने हाथों से शौचालय की करो सफाई करो सफाई।

तभी तो होगी मेहनत की भरपाई।

मेरे प्यारे बच्चों         

पेड़ (वृक्ष)

पेड़ हमारे जीवन दाता।

हमारा इनसे सदियों का नाता।

यह है हमारे जीवन का आधार।

इनके बिना जिंदगी है निराधार।

पेड़ है धरती की जान।

इसकी हिफाजत करना है हमारी शान।

पेड़ों को काटना है पाप।

नहीं तो जिंदगी भर भुगतना पड़ेगा श्राप।

पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ।पेड़ लगा कर

इस पावन धरा को और भी सुंदर बनाओ।

पेड़ों से ही है चारों और हरियाली।

इसके बिना नहीं है खुशहाली।

अपने जन्मदिन पर बच्चा-बच्चा एक पेड़ अवश्य लगाओ।

अपने आने वाली पीढ़ियों को भी यही बात समझाओ।

पेड़ों को काटने से बचाओ।

अगर काटना ही पड़ जाए तो उसके बदले दस-दस पेड़ लगाओ।

5 जून को पर्यावरण दिवस मनाओ।

वन महोत्सव के दिन पेड़ों का जन्मदिन भी मनाओ

उत्सव मना कर खेलो कूद  झूमों गाओ।

बचपन की यादें

हरी हरी वादियों से मैं यूं ही चला जा रहा था।चला जा रहा था।

झूमते गाते, झूमते गाते, यूं ही चला  जा रहा था।

मुंह में बस यही एक  धुन गुनगुनाता जा रहा था। गुनगुनाता जा रहा था।

हरी हरी वादियों से, मैं यूं ही चला जा रहा था।

हरीहरी वादियों से, मैं यूं ही झूमता गाता चला जा रहा था।

संग अपने साथ लिए सुनहरी यादें।

बचपन की यादों में खोया चला जा रहा था।

झूमते गाते, झूमते गाते, यूं ही  बस चला जा   रहा था।।

हरी भरी वादियों से मैं चला जा रहा था।

चला जा रहा था।

बचपन में साथियों के संग गोटियों के साथ खेलना।

गिलहरी को देख उसके पीछे यूं ही भाग जाना।

यह सब यादों के झरोखों में संजो कर, यूं ही गुनगुनाते चला जा रहा था।

चला जा रहा था।

झूमते गाते झूमते गाते यूं ही गुनगुनाता जा रहा था।

हरी हरी वादियों में यूं ही झुमता गाता जा रहा था।।

ऊपर नीचे उछल उछल कर यूं ही कूदी लगाना।

नदी तालाबों में यूं ही गोता लगाना।

मस्ती में बच्चों के कपड़ों को ले कर, यू चुपके से भाग जाना।

झूमते गाते झूमते गाते यूं ही गुनगुनाता जा रहा था।।

हरी हरी वादियों को देख यूं ही मस्ती में गुनगुनाता जा रहा था।

संग अपनें साथ लिए सुनहरी यादें।

बचपन की यादों में खोया चला जाता रहा था। चला जा रहा था।

कक्षा में एक दूसरे पर कागज उछालना

, और ब्लैक बोर्ड पर अनापशनाप लिखना।

अध्यापकों के कक्षा में आते यूंही चुप्पी साध लेना।

उपस्थिती लगते ही यूं ही चुपके से कक्षा से   

यूं ही   चुपके से घर की ओर दौड़ लगाना।

कागज के पुर्जों को गोल गोल घुमाना।

यूं ही मन मे सुनहरी यादें लिए  बस  यूं ही गुनगुनाता चला जा रहा था।

वह बचपन की यादों के झरोखों को लिए  यूं ही गुनगुनाता चला जा रहा था।।

मुंह में बस एक यही धुन  गुनगुनाता जा रहा था।

बारिश में मस्ती और छुपन छुपाई का खेल।

गली मोहल्ले में खेलना पीठू का खेल।

बच्चों के संग सांप सीढी का खेल।

यह सब बचपन की यादें यूं ही मन में याद करता जा रहा था।

वह बचपन की यादों को समेटे हुए गुनगुनाता जा रहा था।

यूं ही गुनगुनाता जा रहा था।

यूं ही दोस्तों के संग, झूला झूलना।

बेरी के पेड़ों से चुन चुन कर बेर चुराना।

यूं ही माली को आता देख कर  नौ दो ग्यारह हो जाना।

यह सब यादें अपने मन में समेटे यूं ही दोस्तों के संग गुनगुनाता जा रहा था।

झूमते गाते मस्ती में बस यही एक धुन गाता  चला जा रहा था।

यूं ही दोस्तों के संगदौड़ते-दौड़ते खेलना पिट्ठू का खेल।

और खेलना छुक छुक करती आई रेल।

सीटी बजा बजा कर मस्ती करती बच्चों की रेस।  

यह सब बचपन की यादों को मन में संजोए।

यूं ही गुनगुनाता जा रहा था।

यूं ही गुनगुनाता जा रहा था। मन में बस एक यही धुन गुनगुनाता जा रहा था।

हरी  हरी वादियों में यूं ही गुनगुनाता गाता जा रहा था।

आओ हम सब मिलकर एक हों जांए

आओ हम सब मिलकर एक आवाज़ उठाएं। भारत को तरक्की के शिखर तक पहुंचाकर अपने देश की शान बढ़ाएं।

एकता को अपना  जगतगुरु बना कर दुनिया को शिखरों तक पहुंचाएं।

मिलजुल कर काम करने का जज्बा सबके दिलों में पहुंचाएं।

आओ हम सब मिलकर एक आवाज़ उठाएं। इस पावन धरा को और भी खूबसूरत बनाएं। कमजोर पीढ़ी को शिक्षा देकर।

नई सोच की लहर उनमें जगाए।

उन में काम करने का उत्साह जगाएं

मित्रता और भाईचारे का संदेश देखकर सबके हृदय में फैलाएं।

आओ हम सब मिलकर एक आवाज़ उठाएं इस पावन धरा को स्वर्ग से भी सुंदर बनाएं। मिल बांट कर खाना शत्रुता और आपसी वैमनस्य को त्यागकर।

इज्जत और सम्मान से जीने का फर्मान लोगों तक पहुंचाएं।

छोटे और बड़े के भेद को मिटाकर एक दूसरे को गले लगाएं।

आओ हम सब मिलकर एक आवाज़ उठाएं भारत को तरक्की के शिखर तक पहुंचाकर अपने देश की शान को बढ़ाएं।

आओ हम सब मिलकर जाति प्रति की प्रथा को जड़ से समाप्त करने की अभिप्रेरणा लोगों में जगाए।

नई सोच की किरणों का सकारात्मक प्रभाव हर मानव  में जगाए।  

अपने  प्यारे भारत को एकता के सूत्र में पिरोकर समृद्ध और सुंदर बनाएं।

आओ हम सब मिलकर एक आवाज़ उठाएं भारत को तरक्की के शिखर तक पहुंचाकर अपने देश की शान को बढ़ाएं।

लंच बाक्स

जल्दी से वर्दी पहनाकर स्कूल को करो तैयार।
लंच बॉक्स में देरी ना करो झटपट करो तैयार।
रोज-रोज रख देती हो मक्की की रोटी और साग।
जिस को खा कर अब मेरा दिल नहीं होता है बाग बाग।
मीनू अब मैंने छांट डाला।
किचन के द्वार पर लिख टांगा।
सोमवार को आलू खिचड़ी।
संग रोटी घी चुपडी चुपडी।
साथ में चटनी और अचार।
जिस को खाऊं जीभ चटकार।
मंगलवार को पूरी की है आस।
भूल न जाना रखना इसके साथ सॉस।
बुधवार को पालक सब्जी।
इसको खा कर शाला को जाऊं जल्दी जल्दी।

वीरवार को कड़ी चावल छोले।
जिसको खाकर मेरा दिल बोले ओले ओले।
शुक्रवार को मीठी खीर।
जिसको खाकर मैं बन जाऊं वीर।
शनिवार को इडली डोसा।
घर आकर केवल खाऊं एक समोसा।
रविवार को पोहा इडली।
और साथ में मां पापा के साथ ढेर सारी मस्ती।

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कब क्यूं और कैसे

तीन दोस्त थे अंकित अरुण और आरभ। तीनों साथ-साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। वह तीनों 12वीं की परीक्षा के बाद पढ़ाई भी कर रहे थे। और नौकरी ढूंढने का प्रयास भी कर रहे थे। उनके माता पिता चाहते थे कि वे नौकरी करके हमारा भी सहारा बने। अंकित अरुण और आरभ तीनों मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते थे। अंकित एक लंबा चौड़ा हट्टा-कट्टा देखने में खूबसूरत, चतुर और शांत स्वभाव का। ना जाने उसने कितने इंटरव्यू दे डाले मगर कहीं भी नौकरी नहीं मिल रही थी। अंकित की मम्मी ने पुकारा “बेटा क्या बात है? तुम आजकल कहीं भी इंटरव्यू नहीं दे रहे हो। ऐसा कब तक चलेगा। घर में कोई ना कोई कमाने वाला होना चाहिए। तुम्हें जल्दी से जल्दी नौकरी ढूंढनी होगी मगर तुम तो शायद एक कान से सुनते हो और दूसरे कान से निकाल देते हो”। अंकित बोला “मां मैं क्या करूं? तुम सोचती हो मैं सारा दिन यही आवारागर्दी करता रहता हूं। मुझे आप सबकी कोई फिक्र नहीं है। कोशिश तो कर रहा हूं।”

अरुण के परिवार में अरुण सबसे छोटा था। उसके परिवार में एक बहन थी। पापा रिटायर हो गए थे। सभी की आस अरुण पर टिकी थी कि कब वह जल्दी से अपनी ज़िम्मेदारी समझे और कुछ कमा कर लाए। अरुण भी इन्टरव्यू दे दे कर थक चुका था। अरुण बहुत चतुर था, जो देख लेता उसे भूलता नही था।

आरभ के परिवार में भी उसके पिता और उसकी एक बहन थी। आरभ छोटे कद का घुघंराले बालों बाला देखने में सुन्दर। तीनों जब भी आपस में मिलते तो कहते नौकरी ढूंढते-ढूंढते थक गए। कुछ ना कुछ नया करते हैं। घर में बताए बगैर घर से निकल गए।

तीनों ने एक दो दिन पहले अपने माता पिता को बता दिया था कि हम तीनो को काम के सिलसिले से बाहर भी जाना पड़ सकता है। तीनों के माता-पिता अपनें बच्चों की इतनी चिंता नहीं करते थे। तीनों दोस्त मुंबई जाने वाली गाड़ी में बैठ कर आपस में बातें करनें लगे। टिकट चेकर आया तो हम क्या कहेंगे। हमारे पास तो मुंबई जाने का भी किराया नहीं है। अरुण के दिमाग में एक योजना आई। क्यूं न हम यूं ही कैसी भी योजना बना लें। यूं ही कोई मन गडन्त कहानी। आरभ मन ही मन में कहने लगा। सचमुच में ही उन्हें टिकट चेकर आता दिखाई दिया। वह वही आ रहा था। बोला तुम तीनों खड़े क्यों हो? अरुण बोला हम यूं ही खड़े हैं। अभी अभी ना जाने हमारा सूटकेस एक व्यक्ति लेकर भाग गया। हमने यहां पर रखा था। टिकट चेकर उन्हें भला बुरा कहने लगा। तुम झूठमुठ कह रहे हो। मैं अभी थानेदार साहब को बुलाता हूं। उसने सचमुच में ही थानेदार को बुला लिया था।गाडी धीमी रफ्तार से चल रही थी। टिकेटचैकर उन तीनों से बोला जब तक पुलिस इन्सपैक्टर आते हैं तब तक तुम बैठ सकते हो। तीनों चुपचाप एक दूसरे से कह रहे थे न जानें अब क्या होनें वाला है। कुछ न कुछ तो सोचना ही पड़ेगा। वे तीनों बैठ गए थे। उन के ही समीप एक लम्बा सा आदमी अपनें किसी रिश्तेदार को जोर जोर से कह रहा था मेरे घर जरूर आना। मैं तुम्हें नौकरी दिलवा दूंगा। अरुण उस व्यक्ति को बार बार देख रहा था। उसके कानों में छेद थे। उसने एक कान में बाली पहन रखी थी। मांग सीधी की हुई थी। वह स्टाइल उस को खुब जंच रहाथा। हाथ में सोनें का कंगन पहन रखा था। देखें में किसी नवाब से कम नहीं लग रहा था। अरुण अपनें दोस्त को बार बार इशारा कर रहा था मगर उसका दोस्त तो भीगी बिल्ली बना अपनें मन में आने वाली मुसीबत से बचनें का उपाय सोच रहा था। जब अरुण नें उसे झंझोडा तब उस की तन्द्रा टूट गई वह अपने दोस्त की तरफ देख कर बोला क्या है? अरुण नें उस व्यक्ति को दूसरे डिब्बे में जाते देख लिया था। जब वह जाने लगा तो अचानक उसे धक्का लगा। उस के पैर से खून निकल रहा था। उस के साथ एक शख्स था जो हाथ में शायद सूटकेस लिए था। उसनेपना सूटकेस किसी को थमा दिया।
वह बोला बाबू साहब आप को कहां लगी? उसका हाथ पकड़ कर बोला बाबू साहब आप के हाथ से भी खून बह रहा है। मै आप को पट्टी बांध देता हूं। वह उसके हाथ में पट्टी बांधने लगा। अचानक अरुण की नजर फिर से उस व्यक्ति पर गई। उस के हाथ पर टैटू खुदा हुआ था। अचानक थोड़ी देर बाद वह शख्स न जानें कंहा गायब हो गया।
वहां पर पंहूंच कर थानेदार को टिकट चेकर ने सारी घटना सुना दी किस तरह कुछ नकाबपोशों ने इन नवयुवकों का सूटकेस छिन कर अपनें पास रख लिया है। टिकट चेकर बोला तुम्हारा सूटकेस किस रंग का था। अंकित बोला नीले रंग का था। बीच में काली धारी लगी थी। हमारा सब कुछ उस सूटकेस में था। हमारे पास टिकेट लेने के लिए भी रुपये नंही है। तीनों इसी तरह एक दूसरे से कहने लगे चलो दोस्तों अभी भी समय है। क्या पता।? वह आदमी हमारा सूटकेस लेकर नीचे उतरा हो। आओ हम तीनों गाड़ी से नीचे उतर जाते हैं। हम कैसे मुंबई जाएंगे? अंकित आंखों में झूठमूठ के आंसू भर कर बोला मेरे दोस्त की बहन की शादी है। उसने मुझे शादी में बुलाया था। वहीं पर पहुंच कर रुपयों का जुगाड़ करते हैं। हमारी एक दोस्त भी सूरत में रहती है। उस से रुपये ले कर हम आप को दे देंगे। मैने उस को फोन कर दिया है।

रेलवे सेक्योरिटी पलिस पास ही गाड़ी के डिब्बे में घूम रहा था एक बड़े से नकाबपोश वाला आदमी उसके पीछे खड़ा था। गाड़ी में आया और वह अपने आदमियों को कहनेंलगा इस सूट केस में बहुत ही जरुरी कागजात हैं। उसने वह सूटकेस उसने अपनें पीछे छिपा लिया। टिकट चैकर कि नजर भी उस व्यक्ति पर नजर पड़ी। उसके हाथ में से सूटकेस लेकर टिकट चेकर हैरान रह गया। वह थानेदार से बोला वह नवयुवक ठीक ही कह रहे थे। यह उन्हीं का सूटकेस है। नीले रंग का सूटकेस और काली धारी वाला। थानेंदार नकाबपोश आदमी से बोला तुम्हारा पर्दाफाश हो चुका है। तुम अपने आप को मेरे हवाले कर दो। वर्ना बेमौत मारे जाओगे। एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी। अरुणको थोड़ा सा सुनाई दिया। वह चौक कर टिकट चेकर को देखनें लगा। वह किस से बातें कर रहा है। अपने दोस्तों से बोला कि टिकट चेक कर कुछ बातें कर रहें हैं। जल्दी से उस नकाबपोश व्यक्ति ने चलती गाड़ी से छलांग लगा दी। जब वह गाड़ी से कूदा अरुण बाहर की ओर खडा हर आनें जानें वाले को बड़ी होशियारी से देख रहा था। टिकट चेकर सूटकेस लेकर उन तीनों के पास आया। अरुण सोचने लगा शायद सूटकेस में रुपये होंगें। उसने नकाबपोश वाले व्यक्ति को सूटकेस को खोलते देख लिया था। वह सूटकेस किसी एक नम्बर को डायल करनें से खुलता था। उसने 845 डायल करते देख लिया था वह नकाबपोश गाड़ी से नीचे उतर चुका था। उस के अन्दर एक डायरी और कुछ रुपये थे।
टिकेट चैकर बोला सूटकेस मिल गया है। तुम ठीक कह रहे हो या गलत। तब तो इस सूटकेस की चाबी भी तुम्हारे पास होगी। अरुण नें कहा यह सूटकेस तो नम्बर डायल करनें से खुलता है। यह चाबी से नहीं खुलेगा। दोनों दोस्तों की सिटीपिटी गुम हो चुकी थी। अब तो अवश्य पकडे जाएंगे। अरुण सोचने लगा कंही उस ही नकाबपोश का सूटकेस तो नहीं है। यह उस व्यक्ति का सूटकेस होगा तो 845नम्बर से खुल जाएगा। अब सब कुछ राम भरोसे है। या गाड़ी आज आर या पार वाली स्थिति उत्पन्न हो गई थी। टिकट चेकर बोला इसमें क्या है वह बोला इसमें एक डायरी कपडे और रुपये हैं। अरुण नें नम्बर घुमाया ताला खुल गया। दोनों दोस्त उस की तरफ हैरत से देखनें लगे। टिकट चेकर नें वह सूटकेस उन्हें थमा दिया। टिकेट चैकर ने कहा चलो गाड़ी का टिकट लो। अब तो तुम्हें सूटकेस भी मिल गया है। आरभ बोला क्यों नहीं अभी हम आपको रुपये देते हैं। अरुण नें टिकेटचैकर को कहा इसमें हमारा पर्स था। वह नकाबपोश इसमें से पर्स ले कर भाग गया। टिकेटचैकर बोला मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता अगला स्टेशन सूरत आएगा वहीं तुम उतर जाना। यह कह कर टिकेटचैकर चला गया। आरभ ने चुपके से 50,000रुपये अपनी जेब में डाल लिए। उसमें एक मोबाइल भी था। उसने वह मोबाईल अपनी जेब में रख लिया। थोड़ी देर बाद उस नकाबपोश नें फोन किया जिसका सूटकेस था। उसने कहा मेरा सूटकेस तुम तीनों के पास है। यह मत समझना मैं तुम को छोड़ दूंगा। तुम नें अगर मेरा सूटकेस मुझे नहीं लौटाया तो तुम को ऐसी सजा दूंगा तुम जिन्दगी भर नहीं भूल पाओगे किस से पाला पड़ा था। अरुण ने उस नकाबपोश की सारी की सारी डायरी पढ ली थी। वह कंहा जानें वाला था। उसने अपनें दोस्तो को भी बताया मुझे तो यह आदमी ठीक नहीं लगता वह सचमुच ही कीसी गैन्ग से सम्बन्ध रखने वाला लगता है। अरुण नें उस डायरी में से उस नें जो कुछ डायरी में लिखा था उस की फोटोकॉपी कर ली। टिकेटचैकर चैकर उनके पास आ कर बोला उतरने के लिए तैयार हो जाओ।अरुण नें टिकेटचैकर को कहा तबतक आप हमारे सूटकेस संभालकर रखोजब तक सूरत स्टेशन नहीं आ जाता। हो सकता है वह फिर चोरी करनें आ जाए अभी तो हमारे रुपये ही खोए हैं फिर जरुरी कागजात भी गुम हो सकते हैं। अरुण नें वहसूटकेस पुलिस्इन्सपैक्टर को पकड़ा दिया।

तीनों बड़े खुश हुए। वाह! आज तो हमारी लॉटरी लग गई। अचानक गाड़ी रुक गई। वह उतरने के लिए तैयार ही थे कोई अजनबी नकाबपोश अचानक ट्रेन में आया और तीनों के ऊपर बंदूक तान कर बोला तुम तीनों अपने खैरियत चाहते हो तो सूटकेस मेरे हवाले कर दो वर्ना बेमौत मारे जाओगे। तुमने मेरा सूटकेस टिकट चेकर के हवाले कर दिया है। जल्दी से 15 दिन के अंदर-अंदर मेरा सूटकेस इस पते पर मुझे मिल जाना चाहिए वर्ना तुम तीनों में से कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।
तीनों थर-थर कांपने लगे। हम तुम्हें तुम्हारा सूटकेस लौटा देंगे। आरभ नें वह सूटकेस सीट के नीचे रख लिया था। पुलिस वाले ने उसे देख कर कहा। तुम फिर आ धमके। पुलिस इन्सपैक्टर उसे पकडने ही वाला था वह फिर से उसे चकमा दे कर भाग गया।

वह अजनबी न जाने कहां गायब हो गया। सूरत स्टेशन आ गया था। अंजली उन्हें लेने स्टेशन पर आ गई थी। बोली तुम तीनों मेरे साथ चलो। यहां की शादी को देखने का लुफ्त उठाओ। गाड़ी 2 घंटे लेट थी। गाड़ी सूरत पंहुच गई थी। अंजलि के जोर देनें पर वे तीनों शादी में चले गए। शादी के समारोह में सब खुशियां मना रहे थे। उन्होंने देखा कि वह नकाब पोश जिसका वह सूटकेस था वह आदमी भी शादी में मौजूद था। उसने दुल्हन के पिता के साथ हाथ मिलाया। अंकित अंजलि से बोला यह व्यक्ति कौन है? जो तुम्हारी सहेली के पिता से हाथ मिला रहे हैं। यह तो मेरी सहेली के पिता के खान दोस्त हैं। अरुण और अंकित को पता चल गया शायद उनकी सहेली के पिता भी इस गैन्ग में संलिप्त होंगे। वह जब तक अपनी आंखों से देख कर पता नहीं करेगा तब तक वह किसी पर भी आरोप लगाना ठीक नहीं समझता। अंकित नें अंजलि के साथ मिलना-जुलना शुरू कर दिया। वह अंजलि के साथ दोस्ती बढ़ा कर पता लगाना चाहता था कि कौन कौन व्यक्ति इन गैन्ग के आदमियों के साथ संलिप्त है। अंजलि के कहनें पर वे सूरत में रुक गए थे अंजलि नें उन्हे कहा कि मैं तुम्हे अपनें पति अक्षय से मिलवाती हूं। शायद वह तुम्हे अच्छे ढंग से तुम्हें गाईड कर दे।
अंजलि ने एक दिन अंकित को अपने पति से मिलवाया। उसके पति एक बहुत ही बड़े व्यापारी थे। उनसे मिलकर अक्षय बड़ा खुश हुआ। अंजली बोली यह नौकरी की तलाश में यहां पर आए हैं। उसके पति बोले यह तो बड़ी अच्छी बात है अंजलि के पति उन दोनों को छोड़कर अंदर चले गए थे।वह थोड़े ही समय में अंजलि से घुलमिल गया था। वह सोचने लगा मुझे अंजली को सब कुछ बताना चाहिए। मैं उससे किसी भी किमत पर झूठ नहीं बोल सकता। तीनों दोस्त वही रुक गए थे।शादी के माहौल में सब लोग इधर उधर आ जा रहे थे। अरुणभी डान्स करनें के लिए तैयार हो गया। अचानक उस की नजर उस शख्स पर पड़ी जो अपना सूटकेस मांगने आया था।

अरुण नें जल्दी से अपने दोस्तों को इशारे से अलग कमरे में बुलाया। तीनों दोस्त इकट्ठे अलग कमरे में आ गए। अरुण बोला अभी अभी मैनें उस नकाबपोश आदमी को यंहा देखा है।हमें पता करना होगा यह वही आदमी है या नही हमें उसके हाथ पर बनें टैटू पर नजर रखनी होगी। हमें उस से सतर्क रहना होगा। उस नें आज तो कान में बाली नही डाली है। आरभ बोला तुम नें सारा शादी का मजा किरकिरा कर दिया बड़ी मुश्किल से शादी में आन्नद लेनें का मौका मिल रहा था। अंकित बोला मैंने भी देख लिया था। मैंने अपनी दोस्त अंजलि से उस इन्सान के बारे में पता कर लिया। यह अंजलि की सहेली के पिता के खान दोस्त है। उनके बेटे से अंजलि की सहेली की शादी हो रही है। हम इस गैन्ग का पर्दाफाश कर के ही रहेंगे। अच्छा हुआ हम पर किसी की नजर नहीं पड़ी नही तो वह हमें पहचान जाता। हम तीनों को वेश बदलना होगा। उस पर कड़ी नजर रखनी होगी। अरुण नें कहा मुझे दुल्हन का मेकअप करना अच्छे ढंग से आता है। मैने अंजली भाभी को अपनी सहेली से बातें करते सुन लिया था वह अंजलि को कह रही थी कि मैंने मेकअप करवानें के लिए बेस्ट डिजाइनर को बुला लिया है। वह आती ही होगी। उसका नाम श्वेता है। उसका फोन आया था मुझे लेनें आ जाओ। मै तो जा रहा हूं। मै मेकअप वाली बन कर आ जाऊंगा। उसका कुछ न कुछ बन्दोबस्त करना पड़ेगा इतना कह कर वह बाहर निकल गया
अरुण जल्दी से बस स्टॉप पर जा कर श्वेता की तरफ जा कर बोला। शायद आप किसी को ढूंढ रहीं हैं। वह बोली मैं पास ही अपनी सहेली अंजली की दोस्त की शादी में उसका मेकअप करनें जा रही हूं। अचानक अरुण बोला मुझे तुम्हारी सहेली अंजलि नें भेजा है। श्वेता उस के साथ चलने लगी। अरुण नें उसे नींद की गोलियां खिला दी और उसे कुछ सूंघा दिया और बेहोश कर दिया। उसनें उसे उस की गाड़ी में ही रहने दिया और मेकअप वाली बन कर आ गया।

आरभ नें और अंकित नें औरतों वाली ड्रेस पहन ली और डान्स करने के लिए तैयार हो गए। उनकी नजरें तो खान पर थी। वह कंहा जा रहें है? क्या कर रहें हैं?
दुल्हन की सहेलियाँ उसे मण्डप की ओर ले जा रही थी। जय माला हो चुकी थी। खान अंकल के बेटे कुणाल नें वधु को जयमाला पहना दी। किरण नें भी जयमाला कुणाल के गले में डाल दी। फेरे भी लगनें वाले थे। कुणाल नें अपनी पत्नी को हीरों का हार पहनाया। सब की नजरें श्वेता के गलें में पहने हीरो के हार पर पड़ी। वह पूरे 25करोड का हार था। सब लोंगो नें तालियाँ बजा कर वर वधू को आशिर्वाद दिया। वर के पिता नें उन दोनों को आशीर्वाद दिया। उन्होने रुपये देनें के लिए पन्डित को बुलाया। जब वर के पिता नें अपनी जेब से रुपये निकाले तो अरुण हक्काबका रह गया उस के हाथ में टैटू था। उसे मालूम हो चुका था वह तो वही नकाबपोश है जिस का सूटकेस हमारे पास था।
सब लोग शादी में व्यस्त हो गए।
अचानक अंजलि के पति को दौड़ कर जाते हुए अंकितनें देखा। अंजलि नेंअपनें पति को आवाज लगाई आप कंहा भागे जा रहे हो? वह भागता हुआ अपनें दोस्त खान को गले लगा कर बोला आप को बधाई हो। आज तो आप बहू वाले हो गए। अंकित और आरभ बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे। अंकित को मालूम हो गया था अंजलि के पति भी उन से मिले हुए थे। अचानक लाईट चली गई। अंकित नें देखा अंजलि के पति नें मास्क लगा लिया था। उन को अब कोई भी नहीं पहचान रहा था। वह खान के पास जा कर खड़े हो गए। खान उनके पास आ कर बोले आप को किस से मिलना है? उन्हें उन के दोस्त नें भी नहीं पहचाना। अचानक मास्क वाला आदमी मुस्कुराते हुए वह वहाँ से चलते हुए बोला मैं लाईट ठीक करनें वाला हूं। खान नें कहा जल्दी जाओ यहाँ पर क्या कर रहे हो? मास्क वाले आदमी ने लपक कर दुल्हन के गले से चेन छीन ली। अरुण नें उसे चोरी करते देख लिया था। चोरी करनें के बाद अंजलि के पति नें वह चेन एक गाड़ी की डिक्की में रख दी। अरुण नें गाड़ी का नम्बर देखनें का प्रयास किया। उसे अन्धकार में कुछ नहीं दिखाई दिया। उसनें अपना हैट उतार दिया। और सामान्य स्थिति में आ गया। अचानक लाईट आ चुकी थी।दुल्हन नें अपनें गले की तरफ देखा हार नहीं था। वह जोर जोर से रोनें लगी। हार गायब हो गया था। शादी वाले घर में इधर उधर भगदड़ मच गई थी। सब लोग हैरान थे हार कौन ले कर जा सकता है? दुल्हन के पिता नें पुलिस कर्मियों को फोन कर दिया था। एलान कर दिया था कोई न भागने पाए।
अंजली के पति नें बडी ही होशियारी से वह हार अपनी गाड़ी में छिपा दिया था। उसे और भी खुशी हुई जब उनके दोस्त खान साहब नें उन्हें इस वेश भूषा में नहीं पहचाना। उन्होनें अपनें मन में सोचा आज तो 25करोड की लाटरी लग गई मुझे कौन कहेगा कि मैंनें अपने दोस्त के पेट में छुरा घौपा है। मेरे पर तो किसी को भी शक नहीं होगा। वह चुपचाप हार रख कर शादी के उत्सव में भाग लेनें के लिए चला गया।अरुण के दिमाग में वह सब घटना घूम रही थी। मेरी दोस्त का पति भी खान साहब की तरह ही फरेबी है। कितनी आसानी से उस नें वह हार गाड़ी की डिक्की में डाल दिया। खान को तो कभी विश्वास नहीं होगा कि उनका दोस्त उसके साथ छल कपट भी कर सकता है
शादी वाले घर में कोहराम मच गया था। सब आपस में बातें कर रहे थे आखिर हार कौन ले जा सकता है? चलो दुल्हन को मेकअप करने के लिए ले जाओ। तब तक पुलिस आती ही होगी। अरुण नें सारी बात अंकित को बता दी कि अंजली के पति ने मास्क पहन कर हार अपनी गाड़ी में डाला है। मुझे रात के समय गाड़ी का नम्बर नहीं दिखा। अंकित बोला मैं बाहर जा कर गाड़ी का पता लगाता हूं। अंकित बाहर औरत के वेश में ही बाहर चला गया। वह गजरा बेचने वाली बन कर आई थी। अंकित खानसाहब और अंजलि के पति के पीछे वाली सीट पर बैठ गया। खान अंजलि के पति से बोले हार कौन ले कर जा सकता है। अंजलि के पति अक्षय बोले हार कंही नहीं जाएगा। आप नें पुलिस वालों को यूं ही बुलाया। यंहा से कोई भी भाग नहीं सकता।
अंजलि के पति नें अपनी गाड़ी अपनी दुकान के एक ओर खड़ी कर दी थी। उसने सोचा शादी वाले घर में तो सब तलाशी करेंगे। यंहा पर तो किसी को शक नहीं होगा। एक लोहे का सामान बेचनें वालों की दुकान समीप थी। जब वह गाड़ी से उतरा तो वह अरुण से टकराया था। अरुण अपने दिमाग पर जोर दे कर सोचने लगा जब अंजलि के पति ने हार चुराया वहश्वेता के साथ था। जिस शख्स को उस नें देखा उसके पैर में छः उंगलियां थी। अरुण नें सारी बातें अंकित को बता दी कि अंजलि के पति नें हार अपनी गाड़ी की डिक्की में छिपा कर रखा। जिस शख्स नें हार चोरी किया उस व्यक्ति के पैर में छः ऊंगलियों थी।
उसने उस नवयुवक को लोहे वाले की दुकान पर चाबियां खरीदते देख लिया था।जब वह अपनी गाड़ी के लिए टायर पूछने जा रहा था।

अंकित को जब अंजलि नें पुकारा तुम्हारे जीजा जी तुम्हे पुकार रहें है। वह बोला आया भाभी। अंकित उन के पास जा कर बैठ गया। अंजली बोली डान्स करो। खुब मौजमस्ती करो। अचानक अंकित की नजर अंजलि के पति के पैर पर गई। उसके पैर में मोजा था। अंजलि के पति बोले तुम देवर भाभी मिल कर शादी का लुत्फ उठाओ। अंजलि के पति जैसे ही उठ कर गए अंकित बोला इनमें के पैर में ये मोजा। वह बोली इनके पैर में छः उंगलियाँ है। इस कारण यह हर वक्त अपनें पैर में मोजा पहन कर रखते हैं।
अंकित को मालूम चल गया था कि उस व्यक्ति ने ही गाड़ी लोहे वाली दुकान के पास रखी थी। अंकित उस दुकान पर गया गाड़ी अभी भी वही थी। उसने गाड़ी की डिक्की को खोलना चाहा डिक्की नहीं खुली। वह लोहे वाले की दुकान पर जा कर बोला मैं पुलिस इन्सपैक्टर हूं। आप जल्दी से बताओ तीन चार घंटे पहले एक आदमी यंहा गाड़ी की चाबी बनवाने आया था। वह बोला साहब हां उसकी चाबी तो बन गई है मगर वह गाड़ी की असली चाबी यही पर भूल गया।

पुलिस वाला बन कर बोला अभी अभी एक खूंखार डाकू जेल से भागा हो। उसकी गाड़ी को चैक करना पडेगा। अंकित नें चाबी लेकर गाड़ी की डिक्की को खोल कर देखा उस में उसे वही हार मिल गया। उसने चुपके से हार निकाला और शादी वाले घर में आ गया। पुलिस छान बीन कर रही थी। अंकित चुपचाप गजरा बेचने वाली बन कर वह हार अरुण जो मेकअप वाली बना हुआ था उसके पास दे दिया। अरुण नें वह हार अपनी साड़ी के ब्लाउज में छिपा लिया।

शादी समाप्त हो गई थी। हार नहीं मिला था।पुलिस वालों ने सारा घर छान मारा मगर किसी के पास हार नहीं मिला। तीनों दोस्त खुशी से फुले नंही समा रहे थे। अंकित नें अपनी दोस्त को बुलाया और कहा अब हमें इजाजत दो। वह बोली आते जाते रहा करो। मैं अपने पति को कह कर तुम्हें काम पर लगवा दूंगी।
अंकित बोला मैनें आप को अपनी भाभी
व दोस्त समझा है मगर मुझे आपकी सहेली के पिता के दोस्त और आप के पति की हरकतें ठीक नहीं लगी। आप ये क्या कहना चाहते हो? आपकी हिम्मत भी कैसे हुई यह सब कुछ कहने की एक तो मैं तुम्हारी सिफारिश अपने पति से कर रही थी कि तुम्हें नौकरी पर रख लें मगर तुम तो हमारे ऊपर कीचड उछाल रहे हो। वह बोला तुम मुझे गल्ती मत समझना। मैं ऎसा ही हूं। वह बोली मैने तुम्हे बुला कर बहुत बडी़ गल्ती की है। जल्दी से हमारे घर से नौ-दो-ग्यारह हो जाओ।इससे पहले कि एक दोस्त का दूसरे दोस्त पर से विश्वास समाप्त हो जाए तुम यंहा से चले जाओ।

पुलिस इन्सपैक्टर के पास जा कर और टिकेटचैकर के पास जा कर उनको भी सारी घटना कह सुनाई कि हम नें आप से उस दिन झूठ कहा था कि हम शादी में जा रहें हैं। हम बेरोजगार थे। हमें नौकरी नहीं मिल रही थी। हम ने घर वालों को झूठमूठ बहाना कर के नौकरी की तलाश में निकल गए। हमारे पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी। हम चुपचाप अहमदाबाद जानेंवाली गाडी में बैठ गए। अचानक गाडी चलने लगी इतनें में आप दिखाई दिए। मेरा दोस्त कहने लगा हमारे पास तो किराया भी नहीं है। आज तो पिट गए इतने मेरे दोस्त को एक योजना सूझी। हम नें मासूम बन कर आप से झूठमूठ ही कहा था हमारा सूटकेस चोरी हो गया है। आप को हम पर दया आ गई आप नें हमें कहा कोई बात नहीं जब आप चले गए तो हम जोर जोर से हंसने लगे। डर भी लगता रहा था आगे क्या होगा अचानक आप बैग ले कर आते दिखाई। दिए। हम ने एक मास्
नकाबपोस आदमी को नीचे उतरते देख लिया था। आप ने आ कर कहा तुम्हारा सूटकेस मिल गया है। हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब हम नें देखा कि आप नीली धारी वाला सूटकेस ले कर हमारे पास देते हुए बोले यह लो तुम्हारा सूटकेस। बदमाशों से बडी़ ही मुश्किल से हासिल किया। आप नें हम से पूछा इस सूटकेस में क्या है? मेरे दोस्त ने झूठमूठ ही कहा इसमें हमारा पर्स और जरुरी दस्तावेज थे। उससूटकेस में सचमुच ही नीली और काली पट्टी दी। आप ने कहा तब तो यह तुम्हारा है। हम सूटकेस पा कर बहुत ही खुश थे। वही वह नकाबपोश आदमी हमें धमकी दे कर गया कि तुम अगर इन्सपैक्टर से सूटकेस ले कर वापिस नहीं लौटाओगे तो तुम देखना तुम्हारी क्या हालत करेंगे। आपने हमें सुरत तक जानें की इजाजतदे दी जब हम नें कहा कि इस सूटकेस में से पर्स गायब हो गया है। आप नें कहा हम कुछ नहीं कर सकते तुम्हे उतरने ही पडेगा। हम नें आप से कहा हमारी दोस्त सूरत में रहती है हम उस से रुपयों का इन्तजाम कर लेंगें।आप नें कहा अगला स्टेशन सूरत आएगा तुम को वहीं उतरना पड़ेगा। आप अगले डिब्बे में चले गए। रास्ते में वही नकाबपोश हमें धमकी दे कर चले गते कि तुमनें हमारा सूटकेस वापिस नंहीं किया तो हम तुम्हारा क्या हाल करेंगें। इतनें में आप आते दिखाई दिए। वह चलती गाड़ी से नीचे कुद गए।
हमारी दोस्त हमें अपनी सहेली की शादी में ले गई। वहां पर भी हमारा सामना उन नकाबपोश वाले व्यक्ति यों से हुआ। हम नें अपनी वेशभूषा बदल ली। वह हमें पहचान नहीं सके। सारी की सारी कहानी सुना दी।पुलिस इन्सपैक्टर बोले हमें एक हीरे का हार चोरी करनें वाले की तलाश थी। एक व्यापारी के घर से नकाबपोशों नें वह हार चुरा लिया। उस हीरो के हार को पकडवानें वाले को उसके व्यापारी नें दस लाख रुपये देनें की घोषणा की है। अरुण बोला एक हीरे का हार उस नकाबपोशों व्यक्ति नें अपनी बहू को शादी में पहनाया था। उस हार को देख कर सब लोंगों की आंखें फटी की फटी रह गई शादी में वह हार एक अन्य व्यक्ति नें चुरा कर अपनी गाड़ी की डिक्की में रख लिया। मुझे तो वह दोनों व्यक्ति खूंखार लगतें हैं। अरुण ने शुरू से ले कर अन्त तक जो कुछ उन के साथ घटा था सारा किस्सा पुलिस्इन्सपैक्टर को सुना दिया। पुलिस इन्सपैक्टर को यह भी बताया उसने जो कुछ अपनी डायरी में लिखा था उसकी फोटोकॉपी कर ली थी।

जिस शादी में गए थे उन की लड़की के साथ रिश्ता कर के वह नकाबपोश आदमी और ही योजना को अंजाम दे रहे थे। उन्होंने जैसे ही 25करोड के हीरे का हार अपनी होने वाली बहू के गले में डाला सब के सब शादी में आए हुए व्यक्ति उन दुल्हा दुल्हन को ही देखते रहे। अचानक लाईट चली गईं और उस नकाबपोश के दोस्त नें मेरी दोस्त अंजलि के पति नें चुपके से वह हार चुरा कर अपनी डिक्की में रखकर अपनें दोस्त को भी मात दे दी। मैने सारी बात अंजली से कही मगर वह बोली तुम मेरे ही घर आ कर मेरे पति को चोर ठहरा रहे हो। निकल जाओ। मैने उस की गाडी की डिक्की से हार निकाला और ले आया। पुलिस इन्सपैक्टर उन की बहादुरी की प्रशंसा करते हुए कहने लगे तुम ने अच्छा किया जो यंहा चले आए आगे मैं तुम्हे समझाता हूंक्या करना है? तुम उसका सूटकेस ले जा कर खान को कहो ये लो अपना सूटकेस। तुम कहना मै तुम्हारे हार चोरी करने वाले को जानता हू। आप को मेरे साथ चल कर देखना होगा। वह नकावपोश आदमी तुम्हारे साथ चल कर अपने दोस्त की गाडी में हार देखेगा तो वह अक्षय को बुराभला कहेगा। अंकित नें आकर खान को कहा ये लो अपना सूटकेस। उस नकाबपोश ने उसे 50,000रुपये दे दिए। उसे उसकी डायरी मिल गई थी। अंकित नें कहा कि वह तुम्हारी बहू के हार चोरी करनें वाले को जानता है। खान अंकित के साथ चलने के लिए तैयार हो गया।अंकित नें अरुण से हार ले कर रात को ही फिर से अक्षय की गाड़ी में रखवा दिया था।
सचमुच ही हार अक्षय की गाड़ी में था।
पुलिस ने मौके पर पंहूंच कर उस नकाबपोश और उस के साथ इस काम में संलिप्त व्यक्तियों को पकड़ कर जेल में डाल दिया। अंजलि के पति नें कबूल किया कि उस नें विदेशों से माल चोरी कर हीरे भारत देश में भेजे जाते थे। हीरे माचिस की डिब्बियों में भर कर सप्लाई किए जाते थे। उन तीनो दोस्तो की मदद से इतने बडे गैन्ग के अड्डे का पर्दाफाश हुआ।
पुलिस ने उन नकाबपोश व्यक्ति यों को पकड़ कर जेल में डाल दिया। पुलिस नें उस डायरी की मदद से सारी जगहों पर छापे डाले जिन जगहों का हवाला उसनें अपनी डायरी में लिखा था।
अंजली अंकित से बोली मैनें तुम्हें बुरा भला कहा मुझे माफ कर देना।
उन्होंने वह हार एक व्यापारी की दुकान से चोरी किया था। वह व्यापारी बहुत ही अमीर था। उसनें पुलिस वालों को सुचना दी थी कि जो कोई भी उस हार को ढूंढने कर लाएगा उसे दस लाख रुपये दिए जाएंगे। तीनों दोस्तों नें जब पुलिस इन्सपैक्टर को सारी कहानी सुनाई तो वे बहुत ही खुश हुए उन्होने कहा कि अगर तुम उन नकाबपोशों तक हमें पहुचाओगे और हार प्राप्त कर लाओगे तो तुम्हें दस लाख रुपये दिए जाएंगे। अपनें वायदे के मुताबिक उन तीनों दोस्तों को दस लाख दिलवा दिए और उन नकाबपोशों को सजा। दिलवाई। खुशी खुशी अपनें घर वापिस आ कर उन्होंनें अपना कारोबार संभाला।

एकता में बल होता है

एक छोटे से गांव में एक वृद्ध दंपति रहते थे। उनके दो बेटे थे। हनी मोटू था। बनी पतला था। हनी सारा दिन खा खा कर अपना पेट भरता था। घर का कोई भी काम नहीं करता था। वह हर काम के लिए अपने छोटे भाई बनी पर, हुक्म चलाया करता था। उसके मां बाप अपने बेटे की इन हरकतों के कारण तंग आ गए थे। बनी इतना दुबला पतला ऐसा लगता था मानो उसके हिस्से का खाना भी उसका भाई मोटू खा जाता था। हनी और बनी गांव के एक सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। दोनों हर बार फेल हो जाते थे। मैट्रिक में दो-दो बार फेल हो चुके थे। हर रोज लड़कों से पीट कर आ जाते थे बनी भी कुछ नहीं कर पाता था। दोनों ही मार खाते थे। घर में जब उसके माता-पिता पूछते कि तुम आज फिर किसी से मार खाकर आए हो तो भी दोनों भीगी बिल्ली बन कर सब कुछ अपने मां-बाप को सुना देते थे। उनके मां बाप उन्हें कहते तुम दोनों इतने नालायक हो हर किसी से मार खाकर आ जाते हो। एक खा खा कर पेट भरता रहता है दूसरा इतना कमजोर की फूंक मारकर उडा दो। अपना ही सिक्का खोटा हो तो हम क्या कर सकते हैं? उन दोनों ने अपने बच्चों को सुधारने की कोशिश की मगर व्यर्थ। स्कूल वालों ने भी तंग आकर उन्हें हिदायत दी कि अगर तुम नहीं सुधरे तो तुम्हारे साथ सख्त कार्यवाही की जाएगी। मास्टर साहब के पास कई अमीर परिवार के बच्चे पढ़ते थे।। उन्होंने हैडमास्टर जी को कहा आपके स्कूल के दो बच्चे हमारे बच्चों के साथ लड़ते रहते हैं। इन्हें अगर आपने स्कूल से नहीं निकाला तो हम अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे। बनी के साथ पढ़ने वाले बच्चे मोटू की शिकायत अपने मां-बाप से करते। हमारे स्कूल में एक मोटू है जो सबके बैग से खाना निकाल कर खा जाता है। हनी का जब कोई बस नहीं चलता था तो वह सब बच्चों के बैग से चुरा चुरा कर खा लेता था। अध्यापकों ने कहा हनी को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। उन्होंने देखा कि यह दोनों बच्चे गरीब हैं। इनके माता-पिता फीस भी नहीं दे सकते। मास्टर साहब ने सख्त कार्यवाही देते हुए कहा हनी तुम नहीं सुधरे तो हमें सख्ती से पेश आना पड़ेगा। बनी भी अपनें भाई के पक्ष में आगे आ जाता था।
हैडमास्टर जी ने उन दोनों को कहा तुम अपनें माता पिता को बुला कर ले आना।

बच्चे बहुत ही निराश हुए अध्यापक भी क्या करें? रोज-रोज की किचकिच से तंग आकर उन्होंने उन दोनों बच्चों को कहा कि अपने मां बाप को बुला कर ले आना। दोनों बच्चों ने घर आकर अपने माता पिता को कहा कि मां बापू आप दोनों को स्कूल बुलाया है। दोनों के मां बाप स्कूल में पहुंचे। उन्होंनें सारा किस्सा मास्टर साहब को सुनाया। हैड मास्टर साहब बोले हम तुम्हें 2 महीने का समय देते हैं। तुम दोनों अगर सुधर जाएंगे तो ठीक है वर्ना हमें आपके बच्चों को स्कूल से निकालना पड़ेगा। उनके पिता बोले हमारी बात तो यह बच्चे मानते नहीं। काफी दिनों तक हनी बनी स्कूल नहीं गए। रास्ते में आने वाले आने जाने वाले लोग जब उसे मोटूकह कर बुलाते तो वह आग बबूला हो उठता। हाथों में पत्थर लेकर उन्हें मारने दौड़ता। मोटू सुनना उसे बहुत ही बुरा लगता था। दोनों भाई जहां भी जाते इकट्ठे जाते। हनी के बदले बनी को मार पड़ती थी। वह मार को सहन नहीं सकता था। वह नीचे लुढ़क जाता।
दोनों गली मोहल्ले में भी तू तू मैं मैं करके वापस आ जाते थे। उन दोनों को कोई भी फूटी आंख नहीं सुहाता था। लड़ाई झगड़ा करना उनकी आदतों में शुमार हो गया था। उसके गांव में डाकुओं का आतंक था। वह गांव वालों का सारा माल लूट कर शहर जाकर बेच देते थे। एक दिन माल लेने के लिए जब वे हनी और बनी के घर पहुंच गए तो हनी की माता जी ने कहा कि घर में थोड़े से ही रुपयें हैं। घर का खर्चा भी चलाना है। इस बार आप कृपया कर रुपया मत ले जाओ मगर वे दोनों नहीं माने।
हनी को गुस्सा आया बोला डाकू होंगे अपने घर में। हमारे घर में क्या लेने आए हो? वह उनके साथ भिड़ गया। दोनों डाकुओं नें हनी के जबड़े पर घूंसा मार दिया। मार को हनी सहन नहीं सका। वह नीचे गिर पड़ा। बनी यह सब देख रहा था। बनी ने भी उन दोनों को सबक सिखाने की सोची। वह भी उन दोनों डाकूओं को मारनें लगा मगर वह बेचारा अकेला क्या कर सकता था? डाकूओं की मार से आहत हो कर वह नीचे गिर पड़ा।। डाकू उन दोनों को अधमरा छोड़कर वहां से भाग गए।
एक कमरे में हनी और बनी के मां बापू दर्द से कराह रहे थे। किसी न किसी तरह दूसरे दिन कुछ थोड़ा उठने योग्य हुए। हनी और बनी के मां बाप बोले बेटा आज तुम दोनों किसी काम के होते तो हमें आज हमें यूं रोना नहीं पड़ता। तुम तो निठ्ल्ले बन कर इधर उधर भागते रहते हो। दो दो साल एक ही कक्षा में रह जाते हो। तुम्हारे साथ के सब बच्चे नौकरी करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। हमारे तो नसीब ही फूटे हैं। स्कूल में अध्यापकों से डर कर आ जाते हो। रास्ते में राहगीर चलते लोगों से। और रही सही कसर उन गुंडों ने पूरी कर दी। दोनों को क्या कहें। तुम्हारा जीना बेकार है। हम दोनों तो एक न एक दिन मर ही जाएंगे। हमारे जाने के बाद तुम दोनों का क्या होगा?

जब 2 दिनों तक उन्हें कुछ भी खाने को नहीं मिला तो हनी ने बनी को कहा कि हम दोनों काम की तलाश में चलते हैं। मां बापू तो उठनें लायक नहीं है। हम दोनों रोटी पानी का जुगाड़ नहीं करेंगें तो कहां से खाएंगे?
वे दोनों काम की तलाश में घर से निकल पड़े। रास्ते में चलते जा रहे थे। चलते हुए जब वे दोनों काफी दूर निकल आए उन्हें समीप ही पानी का एक कुआं नजर आया। पानी पीने के लिए कुएं के पास पहुंचे। वे थक कर निढाल हो चुके थे। भूख के मारे दम निकल रहा था। सोचा चलो पानी पी कर ही गुजारा करतें हैं। वहां पर उन्हीं की तरह का एक नौजवान पानी पीने के लिए आया था। वह
नवयुवक बोला पहले पानी मैं पिऊंगा। हनी ने उसको धमकाया और कहा नहीं पहले मैं पानी पियूंगा। पहले मैं पहले मै के चक्कर में दोनों में हाथा पाई हो गई। यह कहकर उस नवयुवक नेंजोर से हनी को धक्का दिया। हनी एक तो भूख से बेहाल था। धक्का देनें के कारण एक और जा गिरा। उसका सिर पत्थर से टकराया। वह नीचे गिर चुका था। उसके माथे से खून बह निकला। यह देख कर वह नवयुवक तो वहां से भाग निकला।
वहां से एक अधेड़ व्यक्ति गुजर रहे थे उन्होंने देखा कि एक नौजवान रास्ते में घायल पड़ा था। बनी मदद के लिए पुकार रहा था मगर कोई भी व्यक्ति उस घायल को बचानें के बजाए घेरा लगा कर तरह तरह के प्रश्न पतलू से कर रहे थे। वे उसे अकेला। छोड़ कर भाग गए।
जब एक अधेड़ अवस्था वाले व्यक्ति नें उन्हें व्यक्तियों की मदद से उसके घर सही सलामत पहुंचाया। बनी बोला अंकल आप बहुत ही दयालू हो। आपने मेरे भाई को बचा लिया। वह अजनबी बोले शेखी बघारने से काम नहीं चलेगा पहले मुझे खाना खिलाओ।
हनी और बनी की मां बाहर आकर बोली। हम दोनों बूढ़ा होने के कारण कहीं नहीं जा सकते। यह दोनों बच्चे काम धाम कुछ नहीं करते। हमारे घर में दो दिन से चुल्हा नहीं जला है। यह दोनों नालायक हैं। वह बोला आप ऐसा क्यों कहती है? इसमें इनका क्या कसूर है। हनी बोला मां मेरा भाई नालायक नहीं है। उसे जब स्कूल के बच्चे हर रास्ते में चलते हुए हर कोई उसे मोटू कह कर पुकारता है तो वह आपे से बाहर हो जाता है। काफी देर तक तो सहन करता रहता है मगर उनकी इस हरकत से परेशान हो कर वह उन पर चिल्ला उठता है। बच्चे जब मानते ही नहीं है तो उसका गुस्सा बाहर लावे की तरह फूट पड़ता है। उस वक्त उसे जो कुछ मिलता है वह उठा लेता है। मां मेरा भाई बुरा इन्सान नहीं है।
वह अजनबी बडे ध्यान से उन दोनों भाइयों की बातें बड़े ही ध्यान से सुन रहे थे। बनी नें सारा किस्सा कह सुनाया कि कैसे उस बच्चे ने हनी को धक्का दिया था। बनी की मां बोली इस हनी नें ही पहले कुछ शरारत की होगी नहीं तो ऐसा कुछ नहीं होता।
बनी बोला मां आप हर वक्त मेरे भाई को हमेशा क्यों डांटती रहती हो? वह बोली डांटू नहीं तो क्या? वह काम काज तो कुछ भी नहीं करता। अजनबी अंकल बोले बेटा अगर तुम दोनों एक हो जाओ। मिल-जुल कर सब काम करना सीख सको तो कोई दुनिया की ताकत तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। स्कूल में हनी इसलिए मार खाता है क्योंकि इसमें शक्ति तो है नहीं। और बनी तुम इतने कमजोर हो कि हर कोई तुम्हें मार कर गिरा दे। आज तुम्हारे घर पर डाकू आए थे। तुम दोनों उन को मिल कर सबक सिखा सकते तो कोई भी माई का लाल तुम्हारे सामने नहीं टिक पाता। तुम तो अपने मोटे होने का फायदा उठा सकते थे। मोटे होने का यह मतलब नहीं कि तुम खा खा कर पेट भरो। काम करो। व्यायाम करो। मेहनत करो। जब तुम में इतनी ताकत आ जाएगी तो कोई भी तुम्हारे सामने नहीं टिक पाएगा। बनी को कहा कि तुम भी हर रोज इतनी फुर्ती से काम करो। दिन और रात एक कर दो। दोनों मिलकर सब को सबक सिखा सकते हो। एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। तुम दोनों में बहुत प्यार है मगर ताकत की कमी है। मैं तुम दोनों का मार्गदर्शन करुंगा।
अजनबी बोले बेटा तुम दोनों डाकूओं को मार कर उनका मुकाबला कर सकते थे।उनकी मां बोली इनका कुछ नहीं होनें वाला मैं तो समझा समझा कर हार गई हूं। हनी और बनी के मां बाप बोले बेटा आज तुम दोनों किसी काम के होते तो हां मैं आज उन्हें यूं रोना नहीं पड़ता। तुम तो निठ्ल्ले ले बन कर इधर उधर भागते रहते हो। दो साल एक ही कक्षा में लगा दिए। तुम्हारे साथ के सब बच्चे नौकरी करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। हमारे तो नसीब ही खोटें हैं। स्कूल में अध्यापकों से डरकर आ जाते हो और रास्ते में राह चलते लोगों से भीड़ जाते हो और रही सही कसर उन गुंडों ने पूरी कर दी। दोनों को क्या कहे तुम्हारा जीना बेकार है। हम दोनों तो एक न एक दिन इस दुनिया से चले जाएंगे। अजनबी अंकल बोले बेटा तुम दोनों मेरे साथ कुछ महीनों के लिए मेरे घर चल कर रहो। जिस काम को मैं तुम्हें करनें के लिए कहूंगा वह तुम्हें करनी पड़ेगी। मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करुंगा।वह अजनबी अंकल बोले तुम दोनों मुझे शेखर अंकल कह सकते हो।
दोनों बच्चे उस अजनबी व्यक्ति के साथ आकर उन के घर चले गए। शेखर बोला तुम दोनों मेरे पास आओ। वह दोनों को सुबह सुबह नंगे पांव दौड़ाता था। हर रोज इतना कठिन परिश्रम करवाता कि दोनों के हाथ छिल जाते हाथ पैर सूज जाते। अंगारों पर दौड़ता। आज दोनों इतने फौलादी बन चुके थे कि उनके माता-पिता उन्हें देख कर हैरान हो गए। अपनें माता-पिता की इतनी सेवा करनें लगे और जब उनके माता पिता कहते बेटा रहने दे हम अपना काम स्वयं कर लेंगें तब हनी और बनी कहते मां बाबा अब आपके दिन काम करनें के नहीं हैं। हम बहुत बदल चुके हैं आप के जीवन में जो कांटो के बादल थे वह छंट चुके हैं। आप दोनों आराम से खाना हम दोनों आप को इतनी ढेर सारी खुशियां देंगें आप अपनें पिछले सारे गम भूल जाएंगें।
वह दोनों बहुत ही खुश नजर आ रहे थे एक दिन वे दोनों एक जमीदार के घर काम के सिलसिले में गए। जमीदार ने हनी को देख कर कहा तुम क्या काम करोगे? वह हनी को देख कर हंसने लगा और बनी को देखकर बोला तुम्हें तो शायद खाना मिलता ही नहीं होगा। हनी को गुस्सा आ रहा था मगर बनी ने अपने हाथ बढ़ाकर हनी को रोक दिया। भाई गुस्सा मत दिखाओ अगर उसने कुछ और ज्यादा बोला तो हम दोनों मिलकर उसे मजा चखाएंगे। जमीदार बोला एक शर्त पर तुम्हें काम मिलेगा अगर तुम मेरे नौकरों से लड़ाई में जीत कर दिखाओ। उसने अपने नौकरों को ट्रेन्ड कर रखा था। जमींदार ने अपने आदमियों को आदेश दिया कि तुम्हें इनके साथ मुकाबला करना है। हनी को कहा अगर तुम मेरी नौकरों से लड़ाई में जीत जाओगे तो मैं तुम्हें काम दे दूंगा। हनी ने उसके आदमियों को पछाड़ डाला बनी ने अपने भाई को कहा कि तुम दूसरे व्यक्ति को पकड़ो। हनी और बनी नें मिल कर देखते ही देखते उन दोनों को मार कर नीचे गिरा दिया।
जमीदार बोला मैं तो तुम दोनों को बहुत ही कमजोर समझता था मगर तुम तो सच में ही तारीफ के काबिल हो। तुम को काम पर रख लेता हूं।
दोनों खुशी खुशी रास्ते से अपनें घर जा रहे थे। चलते-चलते उन्हें अपनें स्कूल के बच्चे मिले। उन्होंने हनी को देखकर चिढ़ाना शुरू कर दिया। मोटू तुम इतने दिन तक तुम दोनों कहां रहे? वह बोला एक बार तुमने मोटू कह कर फिर बुलाया तो देखना जब बच्चों ने फिर उसे दोबारा मोटू बुलाया तो हनी ने उनको मार कर पटक दिया। घर से जब बच्चों के माता-पिता पहुंचे तो भी वे दोनों सामने आकर बोले आंटी अंकल हम दोनों ने बहुत सहन कर लिया। अब पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका है। हम दोनों हाथ नहीं आने वाले। आप हम दोनों को कमजोर समझने की कोशिश मत करना। आंटी हम दोनों आप से आपसे हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हैं। अगर कोई मेरे भाई को मोटू बुलाएगा तो हम भाई दोनों मिलकर उस का कड़ा मुकाबला करेंगे। ईट का जवाब पत्थर से देंगे। हनी बोला वह मोटू सुन सुनकर तंग आ चुका है। पहले वह प्यार से समझाएगा। जब वह नहीं मानेंगे तो हमें उंगली टेढ़ी करनी पड़ेगी। जब बच्चे नहीं माने तो हनी ने उन्हें एक जोर का झापड़ जड़ दिया।
उसके मम्मी पापा बोले तुम हमारा क्या कर लोगो। वह बोला हाथ उठाने के लिए मैं भी मजा चखा सकता हूं। यह मत सोचना मोटा देखकर आप हम दोनों को नुकसान पहुंचाने की सोच सकते हो।
उन दोनों ने पुलिसकर्मियों को बुला लिया था
दोनों बच्चों ने पुलिस थाने में चल कर कहा कि ये बच्चे हमें बेवजह ही परेशान कर रहें हैं। उन दोनों नें सारी कहानी पुलिस इन्सपैक्टर से कह सुनाई। उन दोनों नें पुलिसकर्मियों को कहा हम आपसे प्यार से कह रहें हैं। पहले भी उन दोनों नें पुलिस थाने में बेवजह मार खाई है।

हमें कमजोर समझ कर सब लोग हमारा फायदा उठाते थे। हम दोनों अब कमजोर नहीं है। मुकाबला करना हमें भी आता है। पुलिस वाले उन दोनों बच्चों के बुलंद हौसले को देखकर दंग रह गए। क्योंकि वह दोनों भूखे शेर की तरह उनके सामने आ कर ललकारे जा रहे थे।
पुलिस वालों ने उन दोनों को छोड़ दिया एक दिन वही डाकू उनके घर आ धमके। उन दोनों ने उन डाकूओं का डटकर मुकाबला किया।उन्होंने उनके छक्के छुड़ा दिए। वे दोनों डाकू सिर पर पैर रख कर वहां से भाग निकले। उन दोनों बच्चों नें उन्हे इधर से उधर घुमा घुमा कर उनको नानी याद दिला दी।

हनी और बनी के माता-पिता अपने बच्चों में आए हुए परिवर्तन के कारण बहुत खुश थे। आज दोनों बच्चे बहुत ही बहादुर बनकर लौट आए थे। अब हर आने-जाने वाले लोग उन दोनों की प्रशंसा करने से नहीं थकते थे।

हनी और बनी ने शेखर अंकल को धन्यवाद दिया और कहा कि आपने हमारा मार्गदर्शन कर हमें बहुत ही अच्छी सीख दी है। हम आपके एहसान को कभी नहीं भूल सकते। दोनों बच्चों नें उन अजनबी अंकल के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और कहा आज तक हमें किसी नें नहीं समझा। आप हमारे गुरु हो। दोनों खुशी खुशी अपनें मां बापू की सेवा अच्छे ढंग से करने लगे।
स्कूल के अध्यापकों नें हनी और बनी को स्कूल में वापिस बुला लिया था। आज वही बच्चे आगे आ कर हनी और बनी के मित्र बन चुके थे। उन्होंने दोनों भाइयों से क्षमा मांग ली थी। कोई भी लडका स्कूल में लड़ाई करता तो वे दोनों हनी और बनी के पास जाते। हनी और बनी पहले तो झगडने वाले को प्यार से समझाते मगर जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता तो वे अपनी ऊंगली टेढी कर देते। वे पढाई कर के अच्छी नौकरी भी करनें लगे थे।