गाय माता

गाय जगत माता कामधेनु है कहलाती।
गाय की सेवा घरों में खुशहाली को बढ़ाती।।

धर्म,अर्थ,मोक्ष का आधार है गौ माता।।
सकल जग उदधारिणी है गौ माता।
समन सकल भव रोग हारिणी है गौ माता।।


पृथ्वी पर रहनें वाले जीवों से करती है प्यार।
हर प्राणी,जीवों पर इसके हैं असंख्य उपकार।।
गाय की सेवा,पालन पोषण करना है धर्म हमारा।
इस से बढ़ कर नहीं है कुछ भी दायित्व हमारा।।
गाय में है सभी देवी देवताओं का वास।
यह तो हैं सभी तीर्थों में सब से खास।।

सोलह संस्कार गौ के साथ ही पूर्ण कहलाते।
इन संस्कारों के बिना हम अपूर्ण ही रह जाते।
पुराणों में गाय है मोक्ष का द्वारा।
सेवा कर समस्त पापों,संतापों से पातें हैं छुटकारा।।

गाय का गोबर है लाभकारी।
उपले, किटाणुओं और रोगों को मिटानें में है चमत्कारी।।
गोबर में है अद्भुत शक्ति।
मलेरिया, मच्छरों को भगानें की है शानदार युक्ति।।
गाय के गोबर के प्रयोग से बंजर भूमि की भी उपजाऊ क्षमता बढ़ती।
फसलों को हरा भरा कर किसानों में दुगुना उत्साह है बढ़ाती।।
गाय के दूध से बनी वस्तुएं सभी जनो को है भाता
दूध,दही, मक्खन,भी सभी जनों को है सुहाता।।

गाय हमारे आत्मसम्मान का है गौरव।
प्रेम और संस्कृति का है सौरभ।।
गौ हत्या करना है महापाप।
गौ को बूढ़ा होनें पर बाहर कर देना है अभिशाप ।।
गौ हत्या करनें वालों को बख्सा नहीं जाएगा।
उनके दुष्कर्मों का परिणाम प्रकृति से स्वयं मिल जाएगा।।
गाय का अपने माता पिता कि तरह हमेशा करो सम्मान।
जग में उनकी सेवा कर पा जाओगे मनोइच्छित वरदान।।




हम नन्हें नन्हें हैं बच्चे

हम नन्हे नन्हे बच्चे,

नादान उम्र के हैं कच्चे।।

भोले भाले दिल के सच्चे।

मासूम और सच्चे बच्चे।।

लिखना पढ़ना क्या जानें?

हम तो अभी अक्षर भी न पहचानें।।

केवल मां की ममता को ही जानें।।

हम नन्हे नन्हें हैं  बच्चे 

नादान उम्र के हैं कच्चे।

मासूम और सच्चे बच्चे।।

हमें डांट फटकार से डर लगता है।

केवल मातापिता का संग ही अच्छा लगता है।

हमें तो आजादी भरा वातावरण ही अच्छा लगता है।।

हम से ज्यादा पढ़ाई न करवाओ।

हमें खेल  खेल में सब कुछ  समझाओ।।

हमारे संग बच्चा बन कर धमाल मचाओ।।

रूखा व्यवहार मत अपनाओ।

अपनें चेहरे पर हंसी का नूर लाओ।।

होम वर्क  विद्यालय में ही करवाओ।

चित्र कारी   करनें का अवसर दिलवाओ।।

हम हैं नन्हें नन्हें बच्चे।

नादान उम्र के हैं कच्चे।

भोले भाले दिल के सच्चे बच्चे।।

हमें हाथ पकड़ कर ही लिखना सिखाओ।

गन्दा लिखनें पर आंखें मत दिखाओ।

हम पर  जबरदस्ती मत चलाओ।।

मैडम हम तो हैं नन्हें नन्हें बच्चे।

नादान उम्र के हैं कच्चे।

भोले भाले दिल के सच्चे।।

रानी कम्प्यूटर और माऊस

रानी ने कम्प्यूटर चलाने के लिए पावर का बटन दबाया।
बटन क्लिक कर के अपने दोस्तों को दिखलाया।।
बार बार कोशिश करने पर भी सफल न हो पाई।
अपने दोस्तों के सामने विफल हो कर पछताई।।
रानी माऊस को उल्ट पुल्ट कर घुमाने लगी।
उस पर अपनी भड़ास निकाल कर झल्लानें लगी।।
हार कर बोली तुम मुझ से क्यों हो नाराज?
यूं मुझे क्यों कर रहे हो नासाज।।


माउस बोला मैं तो हूं भला चंगा।
तुम से मैं व्यर्थ में क्यों लूंगा पंगा?
यह मौनिटर तो बड़ा अकड़ है दिखाता।
बड़ा होनें का हर दम रौब है खुब जमाता।
मौनिटर माऊस की खिल्ली उड़ा कर बोला।
तू तो जितना है छोटा।
तू तो उतना ही है खोटा।।

मौनिटर और माउस की फिर से हुई लड़ाई।
उन की लड़ाई देख कर रानी भी मुस्कुराई
रानी माऊस को बोली तुम लड़ाई झगड़ा बंद करना सीखो
ज्यादा बड़ा बनने की धुन में ,नम्रता से काम लेना सीखो।।
माउस बोला तुम्हारी क्या है औकात?
मेरे सामाने टिक पानें की भला क्या है बिसात?

माऊस बोला मैं हूं इनपुट डिवाइस।
‌ मैं तुम्हें देता हूं एक एडवाइस।।
यदि मैं काम नहीं करुंगा तो तु भी कुछ नहीं कर पाएगा।
मेरी सहायता के बिना यूं ही हाथ पे हाथ धरे बैठा रह जाएगा।।
ईनपूट और आऊटपूट डिवाइस बोले यदि हम काम नहीं करेंगे तो माऊस भी है बिल्कुल बेकार।
वह तो बेकार में ही हम से कर रहा है तकरार।।
इनपुट और आउटपुट डिवाइस दोनों मिलकर ही काम हैं करते।
दोनों एक दूसरे के बिना कुछ भी काम करनें की नहीं सोच सकते।।
माउस और मौनिटर अपनी सोच पर थे व्याकुल।
दोनों नजरें झुका कर एक दूसरे से मौफी मांगनें के लिए थे आतुर।।
माउस बोला यह बात अब मेरी समझ में है आई।
हम दोनो अब कभी नहीं करेंगे हाथापाई
हम एक दूसरे के बिना हैं अधूरे।
एक साथ मिल जुल कर काम करनें से हम होगें पूरे।।
रानी बोली भाई तुम दोनों हमेशा अब कभी न करोगे लड़ाई।
मिल जुल कर एक साथ काम करनें में ही है तुम्हारी भलाई।।














राजा बेटा

अमन आते ही मां पर चिल्लाया मां खाना लाओ, खाना नहीं बना है मां अमन से बोली। तुम कोई काम में मेरी मदद क्यों नहीं करते हो? तुम तो बस बैठे बैठे खाना खाना ही जानते हो। हम जब तुम्हारी उम्र के थे तो सारा काम किया करते थे। अमन बोला मां रहने दो अपना लैक्चर। खाना देना हो तो दो वरना मैं भूखा ही रह जाऊंगा।मां बोली ना पढ़ाई ना लिखाई तुम्हारी आदतों से मैं तंग आ गई हूं। आज तुम्हारे पिता होते तो वे कितना दुखी होते।
अमन नाराज होकर अपने कमरे में चला गया मां चिल्लाती रही मां हमेशा डांट फटकार कर अपने बेटे को चुप करा देती थी अमन को कभी इतना गुस्सा आता था वह घर का सामान भी इधर-उधर फेंकनें लगता था। वह पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। वह अभी केवल 9 वर्ष का ही था। फिर भी उसकी मां उसे डांटती रहती थी।

वह जब और घरों में बच्चों को काम करते देखती या पढाई करते देखती तो उसका कलेजा मुंह को आने लगता था। पड़ोस के कितने बच्चे हैं । वे अपने माता-पिता के साथ कितना काम करते हैं? एक मेरा बेटा है जो 24 घंटे इधर-उधर भटकता रहता है। ना जाने घर में कितना कबाड़ इकट्ठा कर लाता है। घंटो दरवाजा बंद करके इस कबाड़ से ना जाने क्या करता रहता है? इसके कमरे में ना जाने कितने प्लेटों के टुकड़े ,गत्त्ते बैटरी तारें और ना जाने क्या इकट्ठा करता है ? अपने कमरे को कबाड़ खाना बना रखता है।
मेरे बेटे को न जानें कब अक्ल आएगी ।बड़ा होकर लगता है यह कबाड़ी ही बनेगा। मेरी तो किस्मत ही फूटी है। पढ़ाई में भी इसका मन ही नहीं लगता । मैं हर रोज अपने बेटे को समझाती हूं,डांटती हूं फिर भी इस के कानों में जूं नहीं रेंगती।
पड़ोस की औरतें एक दिन उनके घर पर आई तो अमन कि मां के सामने अपनें अपने बेटों के बारे में बड़ाई करने लगी। यह सब सुनते ही अमन की मां तो जल भून कर राख हो गई। वह अपनें मन में सोचनें लगी मैनें न जानें कैसे कपूत को पैदा किया। मेरे पिछले जन्म के कर्मों का फल भोग रही हूं। एक मेरा बेटा है जो कमरा बंद करके कबाड़ लेकर बैठा रहता है पता नहीं इस कबाड़ का क्या करेगा? किसी दिन इसे जाकर कबाड़ी को दे दूंगी। पड़ोस की औरतें रूपा से बोली आपका बेटा तो ना जाने कितनी पढ़ाई करता है? बाहर ही नहीं निकलता। वह बोली अगर मेरा बेटा पढ़ाई करता तो ठीक था ।वह तो शायद कबाड़ी ही बने। उस के इस प्रकार कहने पर वे आपस में हंसने लगी। उनको हंसता देख और अपना मज़ाक बनाते देख चुपचाप रूंआसी हो गई। वे जब सभी अपने घर वापस चली गई। अमन पर्दे के पीछे से उन कि सारी बातें सुन रहा था। वह मां को आकर बोला अगर आप मुझे घर में नहीं रखना चाहती तो ना सही मैं घर छोड़ कर चला जाऊंगा। आपसे तो मेरा बंद रहना भी बर्दाश्त नहीं होता । खेलने जाता हूं तो कहने लगती हो सारा दिन खेलते रहता है । उनकी बात पर आप ज्यादा विश्वास कर लेती हो। जाओ कितनी बार कह दिया कि मैं पढ़ाई नहीं करूंगा। आज तो आप अपनी सहेलियों के सामने मुझे निकम्मा नाकारा, और न जाने क्या क्या कह रही थी।
उसकी मां बोली तो क्या करूं? एक कक्षा में 2 साल लगा दिए। ना काम का ना काज का दुश्मन अनाज का ।
अमन हर रोज अपनी मां से गालियां खाता। स्कूल में जाता था । स्कूल में उसका कोई भी दोस्त नहीं था। वह किसी से बात नहीं करता था। वह बहुत ही शरारती था। स्कूल की पढ़ाई में उसका ज़रा भी मन नहीं लगता था। वह जानबूझकर सब को परेशान करता था उसकी इन हरकतों से परेशान होकर अध्यापक उसे क्लास से बाहर निकाल देते थे मैं यही तो चाहता था उसका पढ़ाई में कहां मन लगता था।
सभी अध्यापक उससे परेशान आ चुके थे। उन्होंने उसे चेतावनी दी थी कि अगर वह अपनी आदतों से बाज नहीं आया तो उसका स्कूल से नाम काट दिया जाएगा । जब पानी सिर पर से गुजर गया तो स्कूल की एक अध्यापिका ने प्रिंसिपल के पास जाकर शिकायत कर दी। हर दम नाक में दम करता है, और पढ़ाई तो जरा भी नहीं करता।
स्कूल में प्रिंसिपल नई नई आई थी। वह तो सभी बच्चों से परिचित भी नहीं थी। उन के पास जब सभी अध्यापिकाओं कि शिकायत पहुंची तो उसे सजा सुनानें से पहले उसनें सोचा उसे परखा जाए, वास्तव में वह अनुशासन हीन बालक है या नहीं। वह बिना जांच पड़ताल के कोई भी फैंसला नहीं करती थी।
अमन को प्रिंसिपल नें अपनें औफिस में बुलाया और कहा कि तुम 10 दिन तक यही मेरे ऑफिस में एक बेंच पर बैठे रहोगे। देखती हूं, तुम्हारा आचरण कैसा है? प्रिंसिपल ने उस बच्चे को गौर से देखा, उस बच्चे को देखना चाहती थी कि वह कितना शरारती बच्चा है ? पहले दिन तो अमन ने मैडम को कह दिया कि मैडम इतनी देर तक यहां मैं बैठा नहीं रह सकता। मैडम बोली क्यों? वह बोला मेरी मर्जी है। मैडम ने कुछ नहीं कहा । उस पर चुपके चुपके नज़र रखती रही। वह क्या करता है? ऑफिस की चीजों को निरंतर देखता रहता। दो-तीन दिन तक वह चुपचाप सारे ऑफिस की एक एक वस्तु पर नज़र गड़ाए था। उसे प्रिंसिपल महोदया नें कुछ नहीं कहा।
एक दिन प्रिंसिपल नें चपरासी को कहा कि सारी चीज़ो को साफ कर एक जगह मेज पर रख दो। चपरासी आया उसने सारे कमरे को साफ किया और सामान रखकर चला गया। अमन प्रिंसिपल से बोला एक बात कहूं।वह बोला आपका पिंक वाला रजिस्टर आपके सामने नहीं रखा है ।वह तो अलमारी में रख कर चला गया। लाइट भी ऑन ही रख कर चला गया। आपकी टेबल के नीचे तीन दिन से पैन गिरा पड़ा है वह भी उसने उठाकर नहीं रखा। मैडम मुस्कुराते बोली तुम ध्यान से सारी वस्तुओं को देखते हो। इस रजिस्टर कि तो मुझे बहुत ज्यादा जरूरत थी। प्रिंसिपल ना जाने कितनी देर से अपने पर्स में कुछ खोज रही थी। अमन बोला मैम आप क्या ढूंढ रही हो? वह बोली ,तुम अपना काम करो। बड़ों कि बातों में ध्यान नहीं देना चाहिए। जैसे मैं कहती हूं वैसे खड़े रहो। मैं खड़ा नहीं रह सकता। मैं बैठ जाता हूं।
वहां पर बहुत सारी वस्तुएं थी जो बेकार थी । प्रिंसिपल मैम ने चपरासी को बुलाया इस कबाड़ को लेकर जाओ और कचरे में फेंक दो। अमन बोला मैम इस कचरे में आप ना जाने कितने आवश्यक सामान फेंक रहे हो? इस के इस्तेमाल से बहुत अच्छी-अच्छी चीजें बनती है। प्रिंसिपल बोली क्या तुम्हें चाहिए? हां जी मैम ने कहा कि एक शर्त पर तुम्हें वह सब दूंगी अगर तुम शरारत नहीं करोगे ।वह बोला मैडम मैं कभी शरारत नहीं करूंगा। मेरी मां मुझ पर हर वक्त चिल्लाती रहती है। वह कभी शांत नहीं रहती। मुझे भी गुस्सा आ जाता है। मैं भी पढ़ता हूं । मैम मेरी मां मुझे निकम्मा,नाकारा और कबाड़ी कहती हैं। मेरे दोस्त मुझ पर हंसते हैं। वह भी मुझे इन्हीं नामों से करते हैं तो मैं आपसे आपे से बाहर हो जाता हूं। मेरा पढ़ाई में भी मन नहीं लगता।मेरे मन में पढ़ाई कि जगह निकम्मा, नाकारापन घुस गया है।
प्रिंसिपल चपरासी को बुला कर बोली मुझसे एक टेलीफोन नंबर गुम हो गया है ।परसों तिवारी जी आए थे उन्होंने मुझे वह नंबर लिखवाया था। प्रिंसिपल के कुछ बोलनें से पहले अमन बोला मैम मुझे वह सब याद है । उसने वह नंबर प्रिंसिपल को लिखवा दिया। मैम ने जब नम्बर मिलाया तो वह हैरान रह गई । उसे तो नंबर याद ही नहीं था। वह नम्बर बिल्कुल सही था। वहीं खड़ा होकर उनको देख रहा था। मैम सोचने लगी कि यह लड़का तो बहुत होशियार है। मैंने टेबल के नीचे जानबूझकर पैन गिराया था यह देखने के लिए कि वह उठाता है या नहीं। उस नें तो उसे छुआ तक भी नहीं नहीं। यह नालायक नहीं हो सकता। अच्छा बच्चा है कि नहीं बस यह देखना बाकि है।
मैम अमन से बोली कि तुम इस कबाड़ का क्या करोगे? वह बोला कि मैं इन सब को इकट्ठा करके छोटी-छोटी चीजें बनाता हूं। मैंने घर में कूड़ा कर्कट से इकट्ठा कर के कई चीजें बनाई है ।मेरे पास ज्यादा सामान नहीं होता । मां से मंगवाता हूं तो मां मना कर देती है। वह लाकर नहीं देती। मैम बोली कि अगर तुम पढ़ाई किया करोगे तो मैं तुम्हें बहुत सारी चीजें दिलवाने में मदद करूंगी। वह खुश होकर आश्चर्य से बोला “अच्छा” सचमुच। आज उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं था।
एक दिन मैडम अनुराधा अमन के घर पहुंच गई। घर के अन्दर जाने के लिए दरवाजा खटखटाने लगी । उसकी मां की आवाजें मैडम को साफ सुनाई दे रही थी निकम्मा,नाकारा, कबाड़ी, बुधिया बोला मां मैं आपका कहना कभी नहीं मानूंगा। वह लड़ाई झगड़ा करके जोर-जोर से बोल रहा था। मैम ने दरवाजा खटखटाया। अमन की मां बाहर आई ।
अध्यापिका को अपने घर में आते देख कर हैरान होकर बोली, क्या बात है ?आज फिर इस नालायक ने कुछ कांड कर दिया।
मैडम अमन की मां को बाहर ले जाकर बोली कि आप अपने बेटे से प्यार से बात किया करो। आप अगर अपने बेटे को हर दम डांट-डपट करती रहोगी तो वह सुधरने के बजाय और भी ज्यादा बिगड़ जाएगा। आप अपने बच्चों को इन नामों से पुकारना छोड़ दो। इस नन्हे से बच्चे पर इसका गहरा असर पड़ता है ।वही तभी तो वह आपकी बात नहीं मानता ।आप इसे एक दिन निकम्मा,आवारा, की बजाए मेरा राजा बेटा कह कर तो बुलाओ।
अमन ने मैम का हाथ पकड़ा और बोला चलो मैडम आपको मैं अपनी चीजे दिखाता हूं।
अमन ने पलंग के नीचे छुपाया हुआ अपना सारा सामान मैडम को दिखाया। उसने उन चीजों से ना जाने कितनी सुंदर सुंदर, साइंस के मौडल बनाए थे। उनको बनाने में उसने जाने कितनी मेहनत की थी। प्रिंसिपल उसकी कलाकृति देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई। हमारे स्कूल में जिस दिन साइंस फेट होगा उस दिन तुम अपनी चीजों का स्टॉल लगाना।
अमन खुश होकर बोला मैडम आप मां को समझा दो वह मेरे सामान को बाहर मत फेंका करें। बुधिया की मां को मैडम ने समझाया और कहा कि आप अपने बेटे को नालायक समझती हो । आपका बेटा तो अमन का लाल है। इसमें तो वह रचनात्मक प्रतिभा है जो बहुत ही कम बच्चों में होती है। वह तो इन चीजों को बनाने में बहुत ही शौक रखता है।
एक दिन देखना आपका बच्चा बड़ा होकर एक बहुत ही बड़ा वैज्ञानिक बनेगा ।यह तभी हो पाएगा अगर आप अपने बेटे की भावनाओं को समझेंगे। अमन की खूब प्रशंसा की और कहा कि हमें बच्चों में छिपी हुई प्रतिभा को जगाना है न कि उस में नकारात्मकता को बढ़ावा देना। आप ने इस बच्चे के विश्वास को मजबूत बनाना है न कि उस के हौसलें को मिटाना। घर का मौहाल सकारात्मक न होनें से इस तरह के विचार जन्म लेतें हैं। माता पिता का कर्तव्य है कि बच्चों कि सारी बातें जाने । आज अमन अपनी प्रसंशा होते देख बहुत खुश हो गया। आज उसके चेहरे पर किसी बच्चे के प्रति नाराजगी नहीं थी। वह सभी से प्यार से बातें कर रहा था।
उसकी मां ने भी उसे डांटना छोड़ दिया था । एक दिन जब वह घर आया तो उसकी मां बोली कि मेरा राजा बेटा तू कब आया? मुझे तेरे आने का आभास ही नहीं हुआ इधर आ क्या तुझे भूख लगी है? वह अपनी मां को देखकर बोला कि आप मेरी ही मां हो या किसी और की ।अपनी मां के प्यार को समझ ही नहीं सका।
बहुत दिनों बाद उसके दोस्तों के सामने उसकी मां ने उसे राजा बेटा कहकर पुकारा था तो इसकी आंखें डबडबा आई, मगर जल्दी ही अपना मुंह फेर अपनें आंसू छिपा कर जाते बोला अभी आया। अपने कमरे में जाकर काफी देर अपने आंसुओं को छुपाए हुए वह बाहर आकर बोला मां मुझे भूख लगी है। खाना दो।
अपने कमरे में जाकर फालतू चीजों से वस्तुएं बनाने लगा। मां ने आकर उसे कहा मैंने बहुत सारी चीजें रखी है अब मैं इन्हें नहीं फैंका करूंगी। एक डिब्बे में भरकर सारी फालतू चीजें रखती हूं।आज से मैं भी कुछ बनानें में तुम्हारी मदद करुंगी। बेटा आगे से मुझसे भूल नहीं होगी। वह पढ़ाई भी करने लग गया और बाद में चलकर एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक बना।।

गुरु तोताराम

एक बार की बात है एक घने जंगल में एक बहुत ही सुंदर पेड़ पर चिड़ियों का झुंड रहता था। चिक्की चिड़ियों के छोटे-छोटे बच्चे भी अपने मां के साथ दाना चुगने जाते थे। कभी-कभी चिड़िया अपने बच्चों को दाना चुगने में सहायता किया करती थी। एक दिन वह अपने बच्चों को दाना चुगने अपनें साथ ले गई।

सभी चिड़ियों का झुंड उड़ता उड़ता बहुत दूर जा पहुंचा। वहां जाकर एक पेड़ की शाखा पर विश्राम करने लगा, पास में ही कुछ चिड़िया आपस में झगड़ा कर रहीं थीं। उनको झगड़ा करता देखकर छोटी चिड़िया डर के मारे कांपने लगी। उसकी मां ने कहा बेटा देखो यह चिड़ियों के बड़े बुजुर्ग है यह इनका परिवार है। यह आपस में लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं। यह भोजन को लेकर आपस में झगड़ा कर रहे हैं। बेटा, लड़ाई झगड़ा करना बहुत ही बुरी बात है । झगड़ने से समस्या सुलझती नहीं है बल्कि और भी बढ़ जाती है। कैसे इस चिड़िया के परिवार ने अपने बड़े बुजुर्गों को घर से निकाल बाहर कर दिया है। लड़ाई झगड़े किस परिवार में नहीं होते। जहां दो बर्तन होतें हैं वे खटकते तो हैं ही। एक दूसरे को प्यार से मिल बैठ कर समझाना चाहिए और समय पड़ने पर हमें एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए।

गिन्नू चिड़िया बोली मां हम भी झगड़ा करते हैं पर हम एक दूसरे को मना भी लेते हैं । चिक्की बोली बेटा तुम्हें कल गुरु तोताराम जी के पास पढ़ने भेजूंगी। उन्होंने नया स्कूल खोल रखा है ताकि तुम्हारी तरह छोटे छोटे पक्षी जीव भी पढ़ाई करने का भरपूर फायदा उठा सके। पढ़ाई करने से तुम्हारे मन में अच्छे संस्कार विचार उत्पन्न होंगे ।
पीकू और गोपू बोले ठीक है मां हम पढ़ने के लिए विद्यालय जाया करेंगे । चिकी बोली बेटा जब तुम अच्छी तरह बाहर निकलना सीख जाओगे तभी तुम मेरे संग दाना चुगनें जा सकोगे।

चीकी चिड़िया ने अपने बच्चों को गुरु तोताराम जी के पास पढ़ने भेज दिया। स्कूल जाते जाते उन्हें काफी समय हो चुका था। वे थोड़ा बड़े हो चुके थे। कक्षा में एक दिन सारे बच्चे लड़ाई झगडा कर रहे थे । उनको लड़ता देखकर अध्यापक बोले बेटा लड़ाई झगड़ा करना बुरी बात है। बन्नू चिड़ा बोला गुरूजी यह दोनों पेंसिल के पीछे लड़ रहे हैं। बन्नू कह रहा था कि यह पेंसिल मेरी है। कोई दूसरा कह रहा था, यह पेंसिल मेरी है । गुरु तोताराम बोले सारे के सारे बच्चे मिलकर पता लगा सकते थे यह पेंसिल किसकी है ? तुम अपने साथियों के साथ कक्षा में इकट्ठे बैठते हो? तुम पता लगा सकते थे कि यह कैंसिल किस की है। मध्यांतर के समय बन्नू ने टप्पू को इतना मारा कि देखो बेचारे की आंख कैसी सूज गई है। एक छोटा सा नन्ना सा चिड़ा आकर बोला कि दूसरे चिड़िया नें इस पर कंकर मारा था, जिससे इसकी आंखों के पास चोट लग गई शुक्र है आंख बच गई। उसकी माथे से खून निकल आया है तोताराम बोले बेटा हमें लड़ाई झगड़े को छोड़कर एक दूसरे की मदद करनी चाहिए। अगर तुम अपनें साथी को विपति में छोड़कर चले जाते तो तुम बच्चे दोस्त कहलानें योग्य नहीं हो। देखते नहीं खून ज्यादा बहनें से यह मर भी सकता था। साथ देने की अपेक्षा दूर से तुम सब तमाशा देखते रहे । हमें वक्त पड़ने पर विपत्ति आने पर एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए।

आज मैं तुमको अपनी कहानी सुनाता हूं। मैं जब छोटा सा था बहुत ही उत्तम और शरारती स्वभाव का हुआ करता था। बचपन शरारतों के लिए प्रसिद्ध है। मां बाप जिस किसी भी वस्तु को दिलानें से इन्कार कर देतें हैं उस बात का हम बच्चे विरोध करते हैं। मां बाप जब बहुत बांट डपट कर हम पर चिल्लाते हैं उन कि डांट-डपट का हमारे कोमल मन पर उस का प्रभाव नहीं पड़ता है। हम जब तक उस कार्य को कर न लें तब तक मन नहीं मानता।
ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मां ने मुझसे कहा था कि बाहर कभी अकेले मत जाना, अभी तुम छोटे हो। मैनें भी किसी का कहना नहीं माना और और मां से कहा कि अब मैं बड़ा हो गया हूं मुझे अच्छे से उठना आता है जबकि मुझे इतना अच्छे से उड़ना नहीं आता था मैं तो उस समय बहुत छोटा था। किसी का भी कहना ना मानते हुए मैं चुपके से उड चला अपने से बड़े पक्षियों के साथ। कुछ तोड़ने के बाद मैं काफी थक गया था। हम एक घर के छज्जे पर जाकर थोड़ी देर विश्राम के लिएबैठ गए। कुछ दाने पड़े हुए थे हम वह दाने खाने का आनंद उठाने लगे।
अचानक किसी ने हम सब पक्षियों की ओर एक पत्थर दूर से फेंका, पत्थर जाकर सीधा मेरे सर पर लगा और मैं वहीं घायल होकर गिर गया बाकी सभी पक्षी उड़ कर एक पेड़ पर बैठ गए। मैं बहुत छटपटाता रहा पर मैं उड़ नहीं पाया अचानक ही वह लड़का जिस ने पत्थर मारा था आकर उसने मुझे पकड़ लिया मैं बहुत चिल्लाया बहुत उड़ने की कोशिश की बचाओ बचाओ चिल्लाता रहा पर कोई भी पक्षी मेरी सहायता के लिए आगे नहीं आया। सब उदास होकर और डर से मुझे देख रहे थे पर कोई भी डर के मारे मुझे बचाने नहीं आया।
मेरे माथे से बहुत ही खून बहने लगा । इतनी वेदना हुई कि सहना मुश्किल था। पास में ही बैठा रवि यह सब देख रहा था। उसने उस लड़के को बहुत बुरा भला कहा और अपने घर से भगा दिया।
रवि ने मुझे अपने घर में रख लिया। मेरी मरहम पट्टी कि मुझे खाना खिलाया दो-तीन दिन बाद जब उड़ने के लिए पंख फड़फड़ाए तो रवि नें मुझे उड़ने नहीं दिया। उसन मुझे पिंजरे में बन्द कर दिया। वह मुझे तरह-तरह के प्रलोभन दे कर मुझ से खेलनें का प्रयत्न करता। मैं चूं चूं ची चीं करके उसे कहना चाह रहा था कि मुझे भी तुम्हारी तरह अपनें माता-पिता से बिछड़ना अच्छा नहीं लग रहा। मेरी भाषा उसे कैसे समझ आती। वह तो मानव जाति का था। वह तो मेरी तरह उड़ नहीं सकता था। वह तो पैदल चल सकता था या गाड़ी में। मेरी व्यथा वहां कोई भी सुनने वाला नहीं था। मुझे अपने माता-पिता की याद आ रही थी।

“पराधीन व्यक्ति का अपना कोई व्यक्तित्व,कोई अधिकार नहीं होता। पराधीन होनें के कारण उसे अपनी सृजनात्मक शक्तियों को व्यक्त करनें का अवसर नहीं मिलता। उसके लिए तो नर्क और स्वर्ग दोनों समान है। पराधीन व्यक्ति हर रोज मरता है”।

एक दिन मैं चुपके से अच्छा अवसर जुटा कर वहां से उड़ने में कामयाब हो गया जब मैं उड़ा तो अपनें आप को स्वच्छन्द महसूस कर रहा था। जब पीछे मुड़ कर देखा तो बहुत सारे भयानक पक्षी जीव पक्षी मुझे मारने के लिए मेरा पीछा करने लगे। मैं जब अपने घोंसले में आया तो मेरे माता-पिता मुझे वहां नहीं मिले ।मैं बहुत ही मायूस होकर सोचने लगा कहां जाऊं ? क्या करूं ? अगर यहीं पर रहता हूं तो कोई ना कोई जीव जंतु मुझे मार कर खा जाएगा क्योंकि मुझे अच्छे से अभी उड़ना भी नहीं आता था । इसके लिए मुझे बहुत संघर्ष करनें पड़े। मैं जब मुझे ढूंढने का प्रयत्न करता भयानक पक्षी मेरा पीछा करनें लगते। मैं कभी एक वृक्ष की ओट से दूसरे में छिपनें कि कोशिश करता तो बहुत सारे पक्षी मुझे डरा कर कहते यह तुम्हारा रैन बसेरा नहीं है।एक दिन
थक हार कर मैं उस घर में रवि के वापस लौट आया।
रवि ने मुझे अपने घर के बरामदे की शाखा पर बैठा देखा तो उसने मुझे फिर से पकड़ लिया। वह अपने मम्मी पापा से जिद करने लगा कि मैं इसे पालूंगा। उसके मम्मी पापा नें उसे अनुमति दे कर कहा तुम अगर हर रोज दिल लगा कर पढ़ाई करोगे तो तुम इसे पाल सकते हो। जहां पर रवि जाता उसके पीछे पीछे जाता। वह उसके साथ बैठ कर पढ़ाई करता वहां पर बैठकर उसे हमेशा पढ़ाई करते देखा करता था। जब भी जो कुछ भी पढ़ता मैं भी सीख गया। रवि बड़ा हो चुका था। बड़ा होकर कॉलेज में पढ़ने गया तो वह मुझे भी साथ ले जाना चाहता था मगर उसके मां-बाप नहीं मानें उन्होनें मुझे छोड़नें की सलाह दी।। मैं फिर आज़ाद हो कर कभी एक शाखा पर कभी दूसरी शाखा पर जाने के लिए मुझे बहुत ही संघर्ष करना पड़ा । क्योंकि मैं उड़ना भूल चुका था। इतने साल में एक पिंजरे में बंद रहा था। मैंने सोचा क्यों ना जो कुछ मैंने पढ़ा है जो कुछ सीखा है उसे अपनी जाति में बांटनें का काम करूं। मैं अपनी जाति पक्षियों को पढ़ाने लगा ।
अगर मेरे मित्रों ने मेरी सहायता उस वक्त की होती तो मैं अपने मां बाप से जिंदगी भर के लिए हाथ नहीं दो बैठता। मेरी तलाश में वह कहां-कहां नहीं भटके होंगे कहां-कहां नहीं गए होंगे पता नहीं वह आज कहां होंगे। यह कहते कहते गुरु तोताराम जी की आंखें नम हो गई भरे मन से उन्होंने बच्चों को समझाया।

बच्चों अपने माता-पिता की बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए उनकी आज्ञा अवश्य माननी चाहिए। हमें एक दूसरे की मदद अवश्य करनी चाहिए। माता पिता कि डांट फटकार में स्नेह छिपा होता है।
गिन्नू चिड़िया और चून्नी चिड़िया जब अपने घर पहुंची तो थकी हुई थीं। घर आकर उन्होंने सारा किस्सा अपनी मां को सुनाया। मां ने कहा बेटा तुम्हें स्कूल भेजकर मैंने बुरा नहीं किया। वहां पर बहुत ही अच्छे अच्छे संस्कार सीखते हो। एक दिन चीकी चिड़िया ने देखा कि साथ वाले घोसले में किसी के रोने की आवाज आ रही थी। रिंपी चिड़िया जोर जोर से रो रही थी। उसको रोता देख कर चींकी बोली बहन तुम क्यों रो रही हो वह बोली बहन क्या बताऊं ? कल से चंपू घर नहीं लौटा है। उसे सारे जगह तलाश किया मगर उसका कहीं पता नहीं चला। यह कहकर वह और भी जोर जोर से रोने लगी ।गोपू यह सब देख रहा था उसे बहुत बुरा लग रहा था।गोपू नें अपनें भाई पीकू को कहा हम दोनों चुपके से चंपू को ढूंढने में आंटी कि मदद करेंगें। स्कूल से आते हुए वे अपने दोस्त चपूं को ढूंढने जाते ।
एक दिन जब वे स्कूल से वापस आ रहे थे तो वहां पर एक पेड़ कि शाखा के पास उन्होंने बहुत सी चींटीयों को देखा। उन्होंने अपने साथी को उठाने के लिए एक पत्ती का प्रयोग किया। वह चींटी का बच्चा उन्हें बेहोश अवस्था में मिला था। वे दोनों छिप कर देखते रहे । थोड़ी देर में उन्होंने देखा कि वहां पर बहुत सारी चीटीयां ईकटठी हो गई थी। वह सब एक साथ मिलकर उस चींटी को उठाने का प्रयत्न करने लगी। उसे लेकर अपने मुखिया के पास गई ।मुखिया बोली कि मुझे खुशी है कि तुम अपने भाई बंधुओं को बचाने में लगी थी। यह बेचारी तो मर गई है । सारी की सारी चींटियां यह सुन कर उदास हो गई। गोपू ने टिक्कू को कहा कि चंपू भी किसी किसी खतरे में तो नहीं पड़ गया है? चलो उसे मिल कर ढूंढते हैं काफी देर उड़ते उड़ते उन्हें एक जगह पर पेड़ का तना टूटा हुआ दिखाई दिया। उसके पीछे चिड़िया के पंख दिखाई दिए। अब क्या किया जाए ? इस लकड़ी के टुकड़े को कर कैसे उठाया जाए? उन्हें गुरु तोताराम जी की सुनाई हुई कहानी याद आई। उन्होंने जोर जोर से चीं चीं कर के अपने सभी पक्षियों को सहायता के लिए पुकारा तो सारे के सारे पक्षी वहां इकट्ठे हुए ।सभी ने मिलकर उस लकड़ी के तने को वहां से हटा दिया। उनके नीचे सचमुच ही एक छोटा सा चिड़िया का बच्चा फंसा था।
चिड़िया का बच्चा मरा नहीं था उसकी धीमी धीमी सांसे चल रही थी। अरे यह तो चंपू है। जल्दी से गोपू नें डॉक्टर चिक्कू को बुलाया। विद्यालय में डॉक्टर चिक्कू बच्चों को टीका लगानें आए थे। उन्होंने दो बच्चों को अपनी घर का पता बता दिया था। चीकू डाक्टर नें समय पर पहुंचकर चंपू की जान बचाई। गोपू नें चंपू को पहचान लिया था। गोपू ने टीकू को को कहा कि चलो जल्दी से आंटी को खबर करते हैं। चंपूं कि मां नें 5 दिन से कुछ भी नहीं खाया था। घर पर गोपू और टीकू के माता- पिता परेशान हो रहे थे कि बच्चे कहां चले गए। उन दोनों को सुरक्षित घर आया देख कर सारे परिवार के लोग प्रसन्न हो गए। अपने माता पिता को सारा किस्सा कह सुनाया कि कैसे उन्होनें अपने दोस्त को ढूंढ निकाला। उसकी मदद करके हमने उसे नया जीवन दान दिया है। आज हमारी मेहनत रंग लाई है। आज हमने अपने साथी की मदद करके अपना दायित्व बखूबी निभाया है।
यह सब शिक्षा हमें गुरु तोताराम जी ने ही दी थी उनकी शिक्षा के बिना यह सब संभव नहीं था । गुरु तोताराम जी ने जब यह सब सुना तब उनकी आंखों से हर्ष और गर्व के आंसू झलक पड़े।

प्रथम पाठशाला परिवार

सबसे बड़ा विद्यालय है परिवार हमारा ।
परिवार के सदस्य शिक्षक बनकर संवारतें हैं भविष्य हमारा
जिंदगी की पाठशाला में माता शिक्षक है बन जाती ।
प्यार दुलार व डांट फटकार लगाकर हर बात है समझाती ।।
जिम्मेदारी का अहसास ,अनुशासन का पाठ, सम्मान का पाठ भी है सिखलाती।
गुरु व माता बनकर अच्छे संस्कारों को रोपित कर सभ्य इंसान है बनाती ।।

स्नेह मयी वात्सल्य की छत्र छाया में बच्चे नैतिकता के गुणों का विकास हैं कर पातें ।
मान-मर्यादा और आदर का भाव विकसित कर ,दूसरों को सही दिशा हैं दिखाते ।।
मां बच्चों को अच्छी आदतों का अनुसरण करना है सिखाती,
उनके चरित्र का विकास कर उनका भविष्य उज्जवल है बनाती ।।
स्वयं काम करने की आदत है डलवाती ।।
ईमानदारी से काम करना और संघर्षमय जीवन जीना भी है सिखाती।
कर्तव्य पालन बोध का ज्ञान भी उन्हें हैं करवाती ।।

उनके गुणों-अवगुणों को अपना कर बच्चे जीवन में उनकी खुशियों को हैं महकातें ।
परमार्थ और स्वाबलंबी नागरिक बनना भी माता-पिता हैं सिखातें ।।
मुसीबत के समय एक दूसरे का साथ निभाना भी वह सिखाते।
बच्चों को क्या झूठ क्या सच क्या है उसका अन्तर भी वह हैं बतलाते।।

सुसंस्कार वाले बच्चे सभ्य नागरिक बन हैं बन जाते।
कुसंस्कारी जीवन की दौड़ में कभी आगे नहीं बढ़ पातें ।।
जीवन पथ में हताश हो कर सारी उम्र पछताते ही रह जातें।।

बुजुर्ग बच्चों को धार्मिक ग्रन्थों की जानकारियां उन्हें हैं सुनातें।
बड़े-बड़े महान पुरुषों के पदचिन्हों पर चलना उन्हें हैं सिखाते।
उन ही के जैसा महान कार्य करनें की उमंग उन में हैं जगातें ।
बच्चों में स्पर्धा की भावना को भी हैं जगाते ।।

आपस में मिल जुल कर रहना और मिल बांट कर खाना उन्हें हैं सिखाते
विपरीत परिस्थितियों में अपने बचाव और मदद हासिल करनें की सीख हैं सिखातें।।

लक्ष्य के प्रति समर्पण का भाव जागृत हैं करवातें।
अच्छाई और आत्मविश्वास के साथ काम करनें का हौंसला उन्हें हैं दिलवातें ।

माता पिता की सीख बच्चे की दुनिया है बदल देती ।
कठिन संघर्षों पर चल कर उन्हें शानदार जीत है दिलवाती ।
माता पिता के आदर्शों का पालन करना उन्हें हैं सिखाती
उनके व्यक्तित्व को निखार कर उनका सुनहरा भविष्य है बनाती।।