गिलहरी

मैं हूं गिलहरी मैं हूं गिलहरी।
कितनी सुनहरी कितनी रुपहली।
छोटे से मन वाली।
छोटे से तन वाली।।
क्षण में ऊपर।
क्षण में नीचे।।
फुदक फुदक कर मंडराने वाली।
मैं हूं गिलहरी मैं हूं गिलहरी।
कुतर कुतर कर फल खाने वाली।।
फलमटर और मूंगफली के दानों को खाने वाली।
फुदक फुदक कर एक कोने से उस कोने तक यू मटकने वाली।
मैं हूं लंबी पूंछ वाली।।
अपने नुकीले दांतों वाली।।
पेड़ों पर पाए जाने वाले कीड़े मकोड़ों को खाने वाली।

मैं हूं गिलहरी मैं हूं गिलहरी।
मैं हूं कितनी सुनहरी कितनी रुपहली।।
क्षण में ऊपर क्षण में नीचे।
फुदक फुदक कर इधर उधर मंडरानें वाली।।
नहीं किसी की पकड़ में आने वाली।

मैं हूं गिलहरी में हूं मैं हूं गिलहरी।
कितनी सुंदर कितनी प्यारी।।
अपनी अद्भूत छवि से सबको लुभाने वाली।

बडी बडी आंखों वाली

किसी के झांसें में न आने वाली।

स्वेत रंग सात रंगो का है मिश्रण

स्वेत रंग सात रंगो का है मिश्रण।

सर आइजक ने  खोज कर किया इसका निरीक्षण

गति के नियमों का भी खोज कर  दर्शाया। गुरुत्वाकर्षण के  सिद्धान्तों को भी  निरुपित कर दिखाया।

इन्द्रधनुष है कितना प्यारा।

कितना सुन्दर कितना न्यारा।

वर्षा के बाद   सुनहरा दिखता

 इसी लिए   मनमोहक लगता।

जामुनी, नीला पीला हरा नारंगीऔर और अंत में लाल है आता।

यह सब के मन को खूब लुभाता।

ये सारे के सारे रंग क्रम से हैं आते।

अंग्रेजी में ये विबगयोर हैं  कहलाते

(VIBGYOR) v=violet(जामनी) i( इंडिगो) ( नील जैसा नीला) (blue) नीला(green) हरा(yellow) पीला(orange) नारंगी (red) लाल। (जब सूर्य की रोशनी हवा में लटकती हुई पानी की बूंदों में से गुजरती है तो यह सात रंगों में बंट जाती है। इन रंगो को विबगयोर कहा जाता है)

जल की उपयोगिता

जल है जीवन का आधार।

यूं न करो इसे बेकार।

जल से ही है जीवन सबका।

इसको  बचाना फर्ज है हम सबका।

97.5%जल है खारा।

2.5% स्वच्छ जल ही सारा।

बच्चे बूढे सभी को पानी की उपयोगिता को समझाओ। पानी को कम खर्च करके बिजली की उर्जा को बचाओ।

एक एक बूंद को व्यर्थ न गवाओ।

एक एक बूंद की बचत कर उसको उपयोग में लाओ।

 

घर के नल का किचन की नाली से नाता जोड़ो।

घर की फुलवारी को इस से  सींच डालो।

पानी की बूंद बूंद का सदुपयोग करो।

इस का यूं न व्यर्थ दुर्पयोग करो।

 

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बहू

बहू को बेटी की नजर से देखो अरे दुनिया वालो।

 

बहू में अपनी बेटी को तलाशों दुनिया वालों।। बेटी और बहू में फर्क मत करना।

जग में अपनी जग हंसाई मत करना।।

जितना प्यार अपनी बेटी को करते हो।

 

उससे भी वही प्यार करना दोस्तों।। उसको भी वही दुलार देने की कोशिश करना ।

वंहीं तुम्हें फर्क नजर आ जाएगा।

तुम्हारा यूं हाय हाय करना छूट जाएगा।।

 

दूसरों के घर में अपनी बहू की बुराई ना करना। तुम्हें भी तो अपना गुजरा जमाना याद आ जाएगा।।

तुम अपनी बहू को बेटी की नजर से देखोगे ।

संसार में तभी खुशी-खुशी इस जहां से बेदाग जाओगे।।

  

बेटी कह कर पुकारो तो।

तुम उसे उसी हक से पुकारो तो।।

तुम्हारी तरफ प्यार का वह हाथ बढ़ाएगी।

तुम भी उसको अपना के देखो तो।  

वह भी तुम्हारी तरफ एक कदम बढ़ाएगी।

इस संसार से कुछ लेकर कोई नहीं जाएगा।

जो सम्मान तुमने उसको दिया ही नहीं।

जो प्यार तुमने उसको किया ही नहीं।

वही प्यार और सम्मान देने की कोशिशों में। अपने घर की फुलवारी को महकाने की कोशिशों में।।

तुम्हारी सारी उम्र यूं ही गुजर जाएगी।।

भूल जाओ उसके सभी मलालों को।

यह कोशिश कर तुम सब जब देखोगे।

तुम अपनी बेटी की झलक ही अपनी बहू में देखोगे ।

तभी वह सम्मान और रुतबा तुम सबको दे पाएगी।

जिस को तरसती रही वह सारी जिंदगी।

 

एक कोशिश करके देखो तो।

तुम्हारी जिंदगी संवर जाएगी।।

मैं सभी को कहती हूं।

 

बेटी और बहू में फर्क ना करना।

बहू में ही अपनी बेटी को तलाशने की कोशिश करना।।

वह भी तुमसे बहुत जल्दी ही घुल मिल जाएगी।

तुम्हारी तो दोस्तों तकदीर ही बदल जाएगी।। तुम्हारा जीवन ही नहीं सब का जीवन खिल जाएगा।

 

दिल से सारा गुबार मिट जाएगा।।

वह भी तुम्हें प्यार से नवाजेगी।  तुम्हारी भी एक दिन किस्मत संवर जाएगी।

उठो धरा के अमर सपूतों

उठो धरा के अमर सपूतों।

जग में अपना नाम करो, नाम करो।।

 

तन मन धन से एकजुट होकर मिलजुल कर काम करो, काम करो।।

 

सच्चाई के पथ पर चलकर, अपना

और अपने जग का नाम करो,

नाम करो।।

हिम्मत और अपनें हौसलों को बुलन्द कर

पराजय को स्वीकार करो, स्वीकार करो।

हार कर   भी चुनौतियों को  गले लगाना सीखो,  गले लगाना सीखो।

गिरते हुए को संभलने का मौका दे कर,

उनके जीवन को कृतार्थ कृतार्थ करो, कृतार्थ करो।

उठो धरा के अमर सपूतों जग में उंचा नाम करो,   जग में ऊंचा नाम करो नाम करो।

परोपकार से अपने जीवन की नैया को,

तुम यूं खुशहाल करो, खुशहाल करो।।

बुलंदियों को छूने का साहस करो, साहस करो।

 

यू ना हताश  हो कर  दर दर झांकों, दर दर झांको।

अपनी किमत को  किसी से कम ना आपको, किसी से कम न आंको।

अपने सपनों को साकार करनें की प्रेरणा  का विश्वास अपनें मन में जगाओ, मन में जगाओ।

अपनें भविष्य को यूं न दाव पे लगाओ,

यूं न दाव पे लगाओ।

 

हिम्मत  से नाता जोड़ो सच्चाईयों से यूं न मुंह मोड़ो, सच्चाई से यूं न मूंह मोड़ों।

नया कुछ करनें का जज्बा  अपने मन में  जगाओ, मन में जगाओ।

अपनें पुन्य कर्मो से, जग मे अपनी छवि को महकाओ, अपनी छवि को महकाओ।

ऊंची उडान भरनें से, तुम न यूं हिचकचाओ, तुम यूं न हिचकिचाओ।

 

जिन्दगी की कसौटी पर खरा उतर कर दिखाओ, खरा उतर कर दिखाओ।

छू लो गगन के तारों को

सर्वत्र दिशाओं में अपने नाम का डंका बजाओ, अपने नाम का डंका बजाओ।

मिलजुल कर काम करने की प्रेरणा  का जज्बा सब में जगाओ,   सब में जगाओ।

जोश और होश में रहकर,

काम करो काम करो।।

अपना और अपने देश का ऊंचा नाम करो, नाम करो।।

उठो धरा के अमर सपूतो,

जग में अपना नाम करो, नाम करो।

अपनें सपनों को साकार करनें की प्रेरणा,

हर एक भारतीय मे जगाओ।

अपने खून का कतरा कतरा दे कर,

अपनें भारतीय होनें पर इतराओ।

उनकी कुर्बानियों का यूं न  उपहास उडाओ।

उनके पदचिन्हों पर चल  कर, अपनें भारतीय होनें का एहसास, उन सब को कराओ।

अनमोल

काशीनाथ आज बहुत खुश थे, इसलिए खुश नजर आ रहे थे क्योंकि आज उनका बेटा स्कूल में प्रथम आया था।कहीं ना कहीं उस की तरक्की  में उनका भी बड़ा योगदान है था

काशीनाथ एक छोटे से फ्लैट में रहते थे। वह फ्लैट उन्होंने अपनी पाई-पाई जमा करके जोड़ा था। घर के बाहर छोटा सा लौन और फूलों की क्यारियां। लौन  में गुलाब के पौधे उनकी खुशबू से उनका आंगन महका महका नजर आता था जहां पर बैठकर वह हर शाम अपनी पत्नी आभा के साथ चाय की चुस्कियों का आनंद लिया करते थे। काशीनाथ देखने में छोटे छरहरे बदन के, आंखों पर चश्मा, चप्पल पहनने वाले और उनकी पत्नी साड़ी में बहुत खूबसूरत नजर आती थी। सांवली सूरत, बॉर्डर वाली साड़ी पहनती थी। साड़ी इतने सलीके से  पहनती थी कि उसकी खूबसूरती में चार चांद लग जाते थे। आभा अपनी सहेलियों के आने का इंतजार कर रही थी। आज उन्होंने घर में अपनें बेटे केतन के जन्म दिन पर एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया था। जिसमें उसने अपनी सहेलियों को आमंत्रित किया था। केतन की नजरें बार-बार लौन पर किसी का इंतजार कर रही थी। वह था उसका सबसे प्यारा दोस्त

कर्ण।

वह उसका गहरा दोस्त था। कर्ण एक अमीर घराने से ताल्लुक रखता था। उसकी दोस्ती कर्ण से घर के बाहर  हुई जब वह एक दिन अपने पापा के साथ सैर करने के लिए सेंट्रल पार्क गया था। सेंट्रल पार्क उसके घर से 1/1-2 किलोमीटर की दूरी पर था। जहां पर वह रोज अपने पापा के साथ सैर करने जाता था। एक दिन उसकी मुलाकात कर्ण से हुई। कर्ण भी  उसके नजदीक ही रहता था। उसने उसे दोस्त बना दिया ।कर्ण की गेंद लुडकते लुडकते न जाने कहां चले गई। सामने से केतन अपने पापा के साथ आ रहा था। गेंद लाकर उसने कर्ण को पकड़ा दी। गेंद पा कर  कर्ण बहुत खुश हुआ। कर्ण ने गेंद  ढूंढने की काफी कोशिश की थी मगर उसको  गेंद नहीं मिली। केतन बोला झाड़ियों के पीछे गिर गई होगी। केतन ने अपने पापा को कहा कि आप घर जाओ, मैं इसकी गेंद ढूंढने में इसकी मदद करता हूं। यह थी उन दोनों की पहली मुलाकात। यह सिलसिला चलता रहा। कभी पार्क में मिलते, कभी बाजार।केतन और कर्ण एक दूसरे से हिलमिल गए। केतन नें एक दिन उसे बताया कि उसे पेन्टिंग का बहुत ही शौक है। कर्ण बोला मैं तो एक वैज्ञानिक बनना चाहता हूं। उन दोनों में गहरी दोस्ती है चुकी थी मगर उन दोनों ने अपनें घरों में अपनी दोस्ती के बारे में अपने माता पिता को नहीं बताया था। केतन नें अपनें दोस्त को कहा कि मेरा जन्म दिन आने वाला है। वह अपने घर में छोटी सी पार्टी का आयोजन करेगा अपनें ममी पापा को ले कर जरूर आना। वह अपने जन्म दिन पर  घर में उनका  इन्तजार करेगा।

 

उन दोनों में अंतर इतना था कि कर्ण एक अमीर घराने का बालक था। केतन एक मध्यमवर्गीय परिवार  से था। केतन ने तो उसको अपना दोस्त बना लिया। घर में आकर  उसने  अपने माता पिता को कहा कि मेरा एक दोस्त बन गया है लेकिन वह  अमीर घराने का है।

 

केतन के पापा बोले बेटा ठीक है लेकिन दोस्ती हमें अपने बराबर वाले इंसानों के साथ ही करनी चाहिए। घर के बाहर तो ठीक है। छोटा सा केतन कहां मानने वाला था। पापा मैं  कुछ नहीं जानता। आप मेरे दोस्त कर्ण को भी हमारे घर बुलाएंगे। उसके मम्मी पापा नें अपने बेटे को  बहुत  समझाया लेकिन वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं था।

अपने बेटे  केतन की हठ के आगे उनकी एक भी ना चली। आखिरकार उन्होंने अपने बेटे के जन्मदिन पर उसको भी अपने घर पर आमंत्रित कर लिया। केतन बोला पापा मेरे जन्मदिन पर आप छोटी सी केक तो काट ही सकते हैं। अपने बेटे की फर्माइश पर उन्होंने केक  मंगवा दी थी।

दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। आभा ने दरवाजा खुला केतन ने देखा सामने से उसका दोस्त  हाथ में एक बड़ा सा डिब्बा लिए चला आ रहा था। उसके साथ उसके मम्मी पापा थे। कर्ण नटखट घुंगराले बालों वाला’ छोटू मोटू सा, दिखता था। उसके मम्मी जींस पहनकर, बाल कटे हुए और उसके पापा किसी फिल्मी हीरो की तरह दिख रहे थे। केतन उसके ममी पापा को देखकर बोला। अंकल – आंटी नमस्ते। केतन अपनी मम्मी से बोला मां यह मेरे दोस्त के मम्मी-पापा है। यह किसी फिल्मी हीरो की तरह दिखते हैं। लंबे कद वाले, आंखों पर चश्मा। कर्ण  की ममी खुश नजर नहीं आ रही थी। वह कर्ण को चुपके से बोली। यह तुम हमें कहां ले कर आ गए? इतने छोटे लोग इतने छोटे से घर में तो हमारे नौकर-चाकर रहते हैं। यह सब आभा ने सुन लिया था। वह चुपचाप अंदर ही अंदर अपने आंसुओं को पी गई। वह चुपचाप अपने  मेहमानों की खातिरदारी में व्यस्त हो गयी। वह अन्दर ही अन्दर शिखा के शब्दों से विचलित हो गई थी। वह जल्दी ही

पार्टी में व्यस्त हो गई । बुलाया है खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी। अपने बेटे को कुछ कह भी नहीं सकती थी। कर्ण के माता-पिता जाकर एक कोने में बैठ गए। केतन आकर बोला, अंकल नमस्ते।  केतन यह कहकर अपने दोस्त को अपने खिलौने दिखाने चला गया। आभा की नजरें उन दोनों के ऊपर ही टिकी  थी। उसने 20-25 लोगों को बुलाया  था। उसके पिता ने सोचा बेटे को मायूस नहीं करते।आभा चुपचाप उन दोनों को  एक मेज के पास  बिठा  कर एक जगह पर बैठ गई। उनके लिए चाय बगैरा का इंतजाम करने चले गई। उसने छोटी सी मेज पर सबको इकट्ठा कर दिया।

कर्ण के मम्मी पापा ने केक का एक टुकड़ा तक नहीं खाया। यह सब देखकर आभा को ग्लानि हो रही थी। केतन को कर्ण ने एक बड़ी सी ड्राइंग पेंटिंग बुक दी तो खुशी के मारे केतन के मुंह से निकल गया वाह! इतना बढिया तोहफा। तुमने तो मुझे इतना बड़ा उपहार दिया है। धन्यवाद। पार्टी खत्म हो गई थी।

एक एक करके सभी लोग अपने-अपने घरों को चले गए थे। केतन अभी भी खुश नजर आ रहा था। आज उसको इतने सारे उपहार जो मिले थे। खुश नहीं थे तो केवल उसके मम्मी पापा। उसकी मम्मी ने सारी बात अपने पति काशीनाथ को बता दी थी। केतन को जल्दी ही हमें समझाना होगा बड़े लोगों के साथ दोस्ती करना अच्छा नहीं होता। काशीनाथ अपनी पत्नी से बोले भाग्यवान बच्चा है। अपने आप समझ जाएगा। हम तो अपने बच्चों को वही संस्कार देंगे जो हमें ठीक लगे। वह अपने आप अपना अच्छा बुरा समझ जाएगा। हमें उसके के दिल को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए। एक दिन केतन अपनी मां से बोला मां  कर्ण का जन्मदिन आज है।  हम सब को  जन्म दिन पर उसने अपने घर बुलाया है।  उसकी मम्मी बोली बेटा ठीक है चले  जाना।  केतन बोला मम्मी पापा आप दोनों भी चलेंगे। वह बोली बेटा। हमें तो उसके घर जाना शोभा नहीं देता। केतन बोला क्यों मां? वह दोनों भी तो मेरे जन्मदिन पर आए थे। वह बोली बेटा उस दिन मैंने तुम्हें नहीं बताया था जब मैंने उन्हें केक खाने को दी तो उन्होंने केक नहीं खाई। उन्होंने वह केक पास में खड़े  अपने  नौकर को खिला दी। मैंनें उस दिन  कर्ण के माता पिता  को बातें  करते सुन लिया था कि इतने छोटे से घर में तो हमारे नौकर-चाकर रहते हैं। तुमने किस बच्चे को अपना दोस्त बनाया? अपनी हैसियत का तो ख्याल किया होता। मुझे उस दिन बड़ा बुरा लगा। वह बोली बेटा तू उसे उसके जन्मदिन पर क्या उपहार देगा? वह बोला यह तो मैंने अभी तक तय नहीं किया। मैंनें एक सुन्दर सी पेन्टिंग बनाई है। आज ही पूरी हुई है। दोनों बातें ही कर रहे थे कि काशीनाथ बीच में आकर बोले। तुम दोनों मां बेटे क्या खिचड़ी पका रहे हो? हमें तो बड़े जोरों की भूख लगी है। केतन बोला पापा खाना बनाने की क्या जरूरत है? मेरे दोस्त नें हम सब को अपने घर पर जन्मदिन पर बुलाया है। उसके पापा बोले मेरे तो पेट में चूहे कूद रहे हैं। जल्दी से खाना दे दो रही सही कसर इसके दोस्त की पार्टी में पुरी कर लेंगें। ।

 

आभा बोली मैं तो नहीं जाने वाली। तुम दोनों बाप बेटे जाओ। तुम्हें अपनी बेइज्जती करवाने का इतना ही शौक है तो खुशी-खुशी जा सकते हो। लेकिन जाने से पहले यह भी सोच लेना कि उसके जन्मदिन पर छोटा उपहार नहीं चलेगा। वह बोला हम तो वही चीज ले जाएंगे जितनी हम दे सकते हैं। अपनी  हैसियत के अनुसार।  हम दिखावा करना नहीं जानते। हम तो साधारण से लोग हैं। पसंद आए तो ठीक है ना आए तो ना सही। काशीनाथ मुस्कुराते हुए वहां से चले गए। काशीनाथ ने अपने बेटे केतन से कहा कि तुम्हें कर्ण ने पेंटिंग स्कैच बुक दी थी तुम उसके जन्मदिन पर  एक सुन्दर सी पेंटिंग बनाकर उसे दे देना। तुम्हारे पास कलर वगैरा सब कुछ है। केतन बोला पापा आप तो बहुत ही समझदार है। इससे बढ़िया तोहफा तो और कुछ हो ही नहीं सकता।  उसनें एक  बड़ी  सी पेंटिंग बनाई है। उसने 2 दिन  तक सारी रात बैठकर  यह  पेन्टिंग बनाई।  आज कहीं जा कर पूरी हुई है। मैं अभी आप को वह   पेंटिंग्स दिखाता हूं। जब उसने अपने मम्मी पापा को दिखाई तो वह बोले यह तो बहुत ही बढ़िया है। उस दिन शाम को केतन और उसके पापा कर्ण के बर्थडे पार्टी पर पहुंच गए। उसके घर पर चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश था। चारों ओर मधुर संगीत की आवाज गूंज रही थी। लोगों की इतनी भीड़ थी कि उनका आलीशान भवन देखकर केतन बहुत ही आश्चर्य चकित हुआ। वह तो आज तक कभी भी किसी के घर नहीं गया था। एक बार वह अपनी मम्मी के साथ एक बड़ी से होटल में गया था। कर्ण का घर एक बड़े होटल से भी सुंदर नजर आ रहा था। लोग खुशी से इधर उधर घूम रहे थे। अंदर जाने ही वाले थे तभी हॉल से उसके पापा ने अंदर की ओर झांका। कर्ण की मम्मी आने वाले अतिथि गणों का स्वागत कर रही थी। केतन ने देखा इतने सारे उपहार। वह इतने मंहगे  मंहगे उपहार देख कर स्तब्ध रह गया। वह तो एक छोटा सा उपहार लेकर आया था।  अमीर लोग बड़े बड़े उपहार देकर उसका जन्मदिन मना रहे थे। वह अपने मन में सोचने लगा मैं तो एक   मामूली सी पेन्टिंग लाया हूं।

काशीनाथ ने अपने बेटे से कहा कि बेटा अंदर जाने की जरूरत नहीं। तुमने सब अपनी आंखों से देख लिया है। मुझे तो अच्छा नहीं लगता। तुम जल्दी से घर वापस लौट चलो। हमने अपनी बेइज्जती नहीं करवानी है। केतन बोला, नहीं पापा अब कुछ भी हो जाए, मैं यह उपहार चुपके से छोड़कर वापस आ जाता हूं।

केतन अंदर चला गया। कर्ण की मम्मी को केतन  ने नमस्ते की। कर्ण की मम्मी ने उसको नजरअंदाज कर दिया। केतन ने अपने  गिफ्ट का बैग  चुपचाप एक किनारे  पर रख दिया। कर्ण की मम्मी ने सब लोगों के गिफ्ट के पैक्ट रख लिए थे। उसने उसके गिफ्ट  के पैक्ट को सबसे अलग रख दिया। अचानक उसे सामने से आता  कर्ण दिखा दिया। उसने आते ही केतन को गले से लगा लिया बोला, तुम कहां रह गए थे यार? तुम्हारा  मैं  न जाने कब से  इंतजार कर रहा था। उसने उसे  बिठाया। कर्ण नें कहा कि तुम्हारे मम्मी पापा कहां है? वह बोला मेरे पापा बाहर हैं। कर्ण उसके पापा को अंदर ले आया। केतन और  उसके पापा एक कोने में बैठ गए। केतन चुपके से आंटी की ओर देख रहा था। उसने एक जगह उसका गिफ्ट छुपा दिया। केतन सोचने लगा लगा मेरी मां सच ही कहती थी। उसके पापा बोले, यह बातें छोड़ो। यह बातें तो फिर कभी होती रहेंगी। पार्टी का आनंद लो।

केतन  और उसके पापा एक छोटे से  कोने में अकेले बैठे थे। उनको इस प्रकार बैठा देखकर कर्ण की मम्मी आई बोली बेटा तुम कुछ खा क्यों नहीं रहे हो? इतनी बढ़िया बढ़िया स्वादिष्ट चीजें बनाई है। तुम बच्चों की पसंद कि। तुम सब बच्चों की पसंद की चीजें है। तुमने तो ऐसी स्वादिष्ट मिठाइयां अपने जीवन में कभी खाई ही नहीं होगी। खूब डट कर खाओ।

काशीनाथ को वहां बैठना बड़ा ही दुष्कर लग रहा था। वह अपने बच्चे की खातिर मुस्कुराने की कोशिश कर रहे थे। इतने में दौड़ता हुआ कर्ण आया बोला, बताओ मेरे लिए क्या लाए हो? केतन ने चुपके से उस पेन्टिंग को मेज पर से उठाकर किनारे छुपा लिया था। उसको छुपाता देखकर कर्ण बोला तो क्या हुआ? तुम तो मेरे बहुत ही पक्के दोस्त हो जो भी लाए होंगे अच्छा ही होगा। कर्ण की मम्मी बोली बेटा तुम्हें इसके  उपहार का क्या करोगे? मैंने इसके  बस्ते को देखा है। इसमें कोई छोटी सी वस्तु होगी। तुमने तो इस के जन्मदिन पर कितना बड़ा उपहार दिया था।?छोटे से परिवार के लोग तुम्हें क्या उपहार दे सकते हैं? कर्ण को यह बात बहुत ही बुरी लगी। वह बोला मां आप क्यों ऐसा कहती हो।? मेरा दोस्त जो कुछ भी लाया होगा वह मेरे लिए अनमोल होगी। कर्ण की मम्मी अपने बेटे को डांटती हुई बोली छोटे लोगों को कभी मुंह नहीं लगाते। तुम छोटे लोगों को मुंह लगा लेते हो। इतना सब सुनने पर केतन से रहा नहीं गया। उसने इतने अपशब्द अपनी जिन्दगी में कभी भी नहीं सुने थे। वह अपने पापा के गले लगकर फूट-फूट कर रो पड़ा। उसको  रोता देखकर कर्ण अपनी मम्मी से बोला। आपने मेरा जन्मदिन क्यों मनाया? मुझे किसी का उपहार नहीं चाहिए आप सबके उपहार वापिस कर दो। । मैं केवल अपने दोस्त का ही उपहार लूंगा। कर्ण की ममी बोली इस मनहुस नें मेरे बेटे पर न जाने क्या जादू कर दिया है जो वह मेरे बेटे का पीछा ही नहीं छोड़ता। कर्ण ने दौड़कर केतन के हाथ से गिफ्ट पैकट ले लिया।

 

उसमें से जब  उपहार बाहर निकाला सब की नजर उस पेंटिंग पर पड़ी। सब उस पेन्टिंग  को ही देख रहे थे। पास में खड़े लोग आपस में  एक दूसरे से कह रहे थे कि इतनी सुंदर पेंटिंग। यह बच्चा वास्तव में बहुत ही होनहार है। इतनी काबिलियत तो इस बच्चे में दिखाई नहीं देती। अगर यह पेंटिंग इस नें ही बनाई है तो वह बड़ा हो कर एक दिन बहुत ही बड़ा पेंटर बनेगा।

 

कर्ण की मम्मी ने बड़े-बड़े अमीर घराने वाले लोगों को बुलाया था। सब के सब   केतन, पर कटाक्ष  कर रहे थे।

कर्ण नें देखा कि वह बहुत ही सुंदर पेंटिंग थी भीड़ में से एक सज्जन आगे आए हुए बोले यह पेंटिंग इसने नहीं बनाई होगी। उसके पिता काशीनाथ बोले यह पेंटिंग मेरे बेटे ने रात दिन मेहनत करके बनाई है। कर्ण की मम्मी बोली हमने इसकी पेंटिंग का क्या करना है? इसे यहां से ले जाओ। यह झूठ बोल रहा है। कर्ण की मम्मी बोली मैंने इसे बैग में छुपाते हुए देख लिया था। पार्टी में आए हुए उच्च घराने के लोग कहने लगे यह ठीक ही तो कहती है।  क्या यह वही पेंटिंग है जो वह लाया है? उसनें किसी की पेंटिंग  चुरा कर अपने बैग में डाल दी होगी। यह दिखाने के लिए वह पेंटिंग लाया है। बड़ी पार्टी में सब लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे। मध्यमवर्गीय परिवार के लोग आपस में कह रहे थे कि  शिखा है तो हमारी सहेली मगर, हमें भी इसकी सोच पर आज बहुत ही गुस्सा आ रहा है। इतने छोटे से बच्चे की दिल पर ना जाने क्या गुजरी होगी। अगर आज वह अमीर नहीं होतीऔर केतन की जगह इसका बच्चा होता तो क्या तब भी यह यह वही कहती। इसे जरा भी लज्जा नहीं आई। सब लोगों के सामने उस छोटे से बच्चों को चोर साबित कर दिया। एक छोटे से बच्चे का इतना घोर अपमान हो रहा है।  हमें  अगर पता होता तो हम कभी भी यहां नहीं आते। जितनें मुंह उतनी बाते।

यह सब बातें सुनकर  केतन की आंखों से आंसू आ गए थे। वह अपने आंसुओं को रोक नहीं पाया। उसके पापा काशीनाथ आकर बोले चलो यहां से। काशीनाथ बोले बेटा हमने तो तुम्हें पहले ही समझाया था दोस्ती अपने बराबर वालों में ही करनी चाहिए। तुम्ह अब सब कुछें समझ में आ गया होगा कि हम तुम्हें यहां पर आने से क्यों रोक रहे थे। कर्ण की मम्मी बोली कि यह झूठ बोल रहा है।यह पेन्टिंग उसनें चोरी की है।  

एक आदमी  आगे आ कर बोला मैं भी पेंटर हूं। मैं  इस पेंटिंग को खरीदना चाहता हूं। तुमने बनाई है तो तुम्हें इनके सामने अपनी सफाई देने की जरूरत नहीं। बच्चे तुम में  छुपी प्रतिभा किसी को दिखाई नहीं दी। तुम पर अमीर  घराने के लोग   ना जाने क्या-क्या लांछन लगा रहे हैं।? तुम छोटे नहीं हो। मैं पीछे से सारी बातें बैठकर सुन रहा था। छोटे तो वह लोग हैं जिनकी सोच नकारात्मक है। दिखावा कर पार्टी का आयोजन कर रहे हैं। बड़ा होने का ढोंग कर रहे हैं। बड़ा तो यह बच्चा है और उसके पापा जो इतना सुनने के बाद भी चुप है। मुंह से कुछ नहीं कह रहे हैं। सब्र की भी कुछ हद होती है। कमजोर लोगों को दुर्बल नहीं समझना चाहिए।

बेटा तुमसे यह पेंटिंग मैं खरीदना चाहता हूं। केतन रोते-रोते बोला कि इस पेंटिंग पर मैंने अपने हस्ताक्षर किए हैं। सब लोग इस पेंटिंग को देखने लगे। उसने उस पेंटिंग में अपना नाम लिखा था।  सब लोगों को पता चल चुका था कि यह पेंटिंग उस बच्चे ने ही बनाई है। यह देख कर सब लोंगो के चेहरे झुक गए।

पेंटर बोले कि तुमसे यह पेंटिंग मैं खरीदना चाहता हूं।  केतन बोला यह पेंटिंग मैंने अपने दोस्त को उपहार में दी है। ।पेंटर ने कहा मैं इस पेंटिंग के तुम्हें ₹300, 000 दे दूंगा।  मैने यह पेन्टिंग अपने दोस्त कर्ण को उपहार में दे दी है  पेन्टिंग का क्या करना है इसका फैसला तो अब मेरा दोस्त ही कर सकता है। यह उसके जन्मदिन का उपहार है । पेंटर ने केतन को कहा कि अपनी काबिलियत के दम पर  तुम एक दिन बहुत ही बड़े  पेंटर बनोगे। तुम अपनी काबिलियत के दम पर जिंदगी में और भी ऊंचाइयों के शिखर तक पहुंचोगे।  कर्णने कहा कि यह रुपए तुम मेरे दोस्त को दे दीजिए। मेरे प्यारे दोस्त मैं अपनी मां की तरफ से आप दोनों से क्षमा मांगता हूं। मेरी मां की सोच नकारात्मक है। मुझे ऐसा पता होता तो मैं कभी भी आप दोनों को पार्टी में नहीं बुलाता। आप ये रुपये मेरे दोस्त को ही दे दीजिए। यह रुपये इस की पढाई में काम आएंगे जिससे वह अपनी पढ़ाई जारी रखेगा। पेंटर ने उसे कहा कि मैं तुम्हें अपने साथ ले चलता हूं। सारी पढ़ाई का खर्चा मैं उठाऊंगा।

कर्ण की मम्मी ने जब ₹3, 00, 000 सुने तो वह चुप हो गई  वह देखती  ही रह गयी। वह पेन्टिंगका से बोला अंकल मैं चोर नहीं हूं। यह पेंटिंग मैंने रात दिन मेहनत करके बनाई है। पेंटर बोले हीरा कोयले की खान में रहकर भी हीरा ही रहता है। तुम में छिपी प्रतिभा को किसी नें  नहीं देखा। जब तुम एक बहुत बड़े पेंटर बनोगे तब सब लोगों को महसूस हो जाएगा। एक दिन सचमुच ही केतन एक बहुत ही बड़ा पेंटर बना। और उसकी पेंटिंग दूर-दूर देशों  में करोड़ों रुपयों  में बिकी।

15( अगस्त) स्वतन्त्रता दिवस कविता

“ 15 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर पर अतीत और भविष्य का प्रतीकात्मक मिलन हुआ। धरती मां की बलिवेदी पर शहीद होनें  वालों  हर एक भारतीय का सपना साकार हुआ।भारत की स्वतंत्रता का नवप्रभात और नव युग का तभी से प्रारंभ हुआ। वहीं से एक स्वतंत्र भारत का जन्म हुआ।”

15अगस्त को  हर वर्ष प्रधानमंत्री लाल किले पर  ध्वजा फहराते हैं।

इस त्योहार  को हम उमंग और उल्लास से  हर वर्ष मनाते हैं।

स्वतंत्रता दिवस की  झलक दिखलाकर अपने देश का मान बढातें हैं।  

भ्रष्टाचार मुक्त भारत का स्वप्न हरभारतीय को दिखाते हैं।  

मातृ भूमि के लिए समर्पित।

बच्चों और वीरों को सम्मानित कर उनके गौरव  को बढाते हैं।

 

आओ इस स्वतंत्रता दिवस को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाएं।

भारत देश की इस धरा को स्वर्ग से भी सुंदर बनाएं।

पावन अवसर पर सारे देशवासी एकजुट होकर यह शपथ उठाएं।

स्वतंत्रता दिवस की  हर झलक को दिखाकर इस त्यौहार की शोभा में चार चांद लगाएं।

गांधी  नेहरू और सुभाष चंद्र बोस के जीवन से सीख लेकर सबको यह बात समझाएं।

भारत माता की बलिवेदी पर यूं लड़ते लड़ते शहीद हो जाएं।

अपने लहू का कतरा कतरा देखकर उनकी कुर्बानियों को यूं ना व्यर्थ  में गवाएं।

फूट डालो और शासन  की नीति को एक बार फिर विफल कर दिखाएं।

देश में एकजुट होकर बड़े हर्ष से, लाल किले पर ध्वजा  फहराएं।  

ध्वजा फहरा कर इस तिरंगे की आने बान और शान बनाएं।

शान से जीओ और  शान से  कुर्बान होनें का  जज्बा हर भारतीय में  जगाएं।

 

यह नारा हर  बच्चे में बार बार दोहराएं।

धरती मां की कसम खाकर। आज फिर से

हर एक   बच्चे को आजादी का महत्व समझाएं।

इस दिशा में किए गए उनके प्रयत्नों को सहराएं।

 

झांसी की रानी मदर टेरेसा कल्पना चावला जैसा बनने की प्रेरणा हर नारी में जगाएं ।

अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना हर नारी को समझाएं।।

हर घर में शांति और अमन का संदेश फैलाए।

अपनें भारतदेश  को समृद्ध  और स्वच्छ बनाएं।

 

राजू और उसकी दोस्त चिड़िया

राजू के घर के पास एक छोटा सा घोंसला था उस पर गाने वाली चिड़िया रहती थी। वह चिड़िया इतना मीठा गाना सुनाती कि राजू चिड़िया की मधुर गुंजन से भावविभोर होकर घोंसले के पास स्कूल से आकर घंटों बैठा रहता। वह चिड़िया भी उसे बेहद प्यार करती थी जब तक वह उसे दाना नहीं डालता तब तक उसे चैन नहीं पड़ता था। वह मंत्रमुग्ध होकर उसे घंटो यूं ही निहारा करता था। उस चिड़िया ने छोटे छोटे बच्चे दिए थे। उसकी चहचहाटसे से राजू मस्त रहता था। एक दिन उसने देखा की चिड़िया बेहद डरी हुई थी। राजू को भी चिंता होने लगी। वह आज अपना मधुर संगीत भी नहीं सुना रही थी। उसे ना जाने आज क्या हुआ है?उसे पक्षियों की भाषा कैसे समझ आती? अपनी प्यारी दोस्त को उदास देखकर वह भी उदास हो गया और दौड़ता दौड़ताअपनी मां के पास आया और बोला मां मेरी चिड़िया के घोंसले में चलो। आज पता नहीं वह क्यों उदास है? आज वह इतना मधुर संगीत भी नहीं सुना रही है। चिड़िया रोज उसके घर के पास चींचींकरके प्यारी-प्यारी मधुर तान से उसे जगाती थी। उसकी मां ने कहा बेटा अभी उसे फुर्सत नहीं है इस से राजू और भी उदास हो गया और पैर पटक कर वहां से चला गया। काफी देर तक जब राजू घर नहीं आया तो उसकी मां राजू के पास आई उसने चिड़िया के घोंसले में झांका। उसमें से चिड़िया का एक बच्चा मर चुका था। उसकी मां की आंखों में आंसू आ गए और उसे पता चल चुका था कि चिड़िया का बच्चा मर गया है। उसने राजू को कहां बेटा इसका एक बच्चा मर गया है। किसी ने उस चिड़िया को पत्थर मारा था जिससे उसकी चोंच से खून बह रहा था। दूसरा बच्चा भी चुप डरा हुआ चुप सा था राजू को पता चल गया था कि चिड़िया का बच्चा मर चुका है इसलिए वह बेहद उदास है। उनकी आंखों में भी आंसू बहने लगे वह जल्दी से दौड़कर गया और उसने वहां से घोसला उठाया वह अपने घर के सामने रख दिया। अपने घर के आंगन में एक पेड़ पर उसने उस के पिंजरे को रख दिया। उसने उस चिड़िया को बहुत ही प्यार किया। वह चिड़िया राजू के आंगन वाले पेड़ पर रहने लगी थी। राजू, चिड़िया और उसके बच्चे को बहुत ख्याल रखता था। वह उसकी दोस्त बन चुकी थी। वह उन्हें दाना डालता फिर स्कूल जाता। धीरे-धीरे उसका बच्चा भी बड़ा होने लगा था। वह भी उड़ना सीख रहा था। वह बच्चा उसके पढ़ाई वाले कमरे में उड़कर आ जाता। एक दिन की बात है कि राजू काफी देर तक स्कूल से नहीं लौटा राजू के स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम था वह उस में भाग लेने में लगा था। काफी देर तक प्रोग्राम चलता रहा। देर रात तक कार्यक्रम चलता रहा उसके पापा उसे स्कूल में लेने आने वाले थे उसके पापा का स्कूटर रास्ते में खराब हो गया। राजू का स्कूल बहुत ही दूर था। राजू के पापा को चिंता हो गई थी कि जैसे तैसे करके राजू के स्कूल पहुंचे। उन्हें मालूम पडा कि रास्ते में कोई दुर्घटना हो चुकी थी। जिसके कारण वाहन बाहर आ जा नहीं रहे थे। पैदल राजू के स्कूल तक पहुंचना मुश्किल था। राजू के स्कूल के सारे बच्चे घर जा चुके थे। राजू अपनी कक्षा में ही बैठा इंतजार कर रहा था। स्कूल पूरी तरह से बंद नहीं हुआ था। अचानक राजू बहुत थक चुका था उसे अपनी कक्षा में बैठे-बैठे ही नींद की झपकी आ गई। राजू की कक्षा का कमरा अंधेरे वाला था। चौकीदार जैसे ही आया उसने ब्लैक बोर्ड अंदर की और लगाया। स्कूल का कमरा बंद करके चला गया चौकीदार ने ब्लैक बोर्ड रखा और चौकीदार स्कूल बंद करके चला गया। राजू के पिता जैसे-तैसे स्कूल पहुंचे वहां राजू को ना पाकर बेहद परेशान हुए। उन्होंने स्कूल के प्रिंसिपल को फोन कर दिया। उन्होंनें ने कहा कि सारे बच्चे घर चले गए हैं। राजू के पिता बहुत ही चिंतित हो गए। चौकीदार भी घर जाने के लिए तैयार ही था। उसने चौकीदार को कहा, क्या तुमने राजू को देखा है? राजू के पिता ने कहा कि स्कूल के कमरे को खोलो। चौकीदार ने कमरा खुलवा दिया मगर चौकीदार ने कहा कि साहब जी देखो परंतु वहां पर भी राजू दिखाई नहीं दिया। राजू तो ब्लैक बोर्ड के पीछे सो रहा था। चौकीदार भी दरवाजा बंद कर के चला गया राजू की मां ने तो रो रो कर बुरा हाल कर दिया अगले दिन स्कूल में रविवार की छुट्टी थी। जब राजू की नींद खुली तो वह जोर जोर से रोने लगा परंतु वहां पर उसकी आवाज सुनने वाला भी कोई नहीं था। राजू ने देखा कि वह ब्लैक बोर्ड के पीछे कैसे आया? उसे समझते देर नहीं लगी कि उसे नींद आ गई थी। उसने सोचा कि मुझे चौकीदार ने क्यों नहीं देखा?
उसने स्विच ऑन किया तो लाइट नहीं थी। रात भी हो चुकी थी। उसे डर लग रहा था। उसे बडे ही जोर की भूख भी लग रही थी। चिड़िया का बच्चा और चिड़िया चीं-ची करके उसके घर के पासआकर अपने दोस्त को ढूंढ रहे थे। चिड़िया और उसका बच्चा अपने दोस्त को ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। चिड़िया को जब काफी देर तक राजू नहीं दिखा तो वह अपने बच्चों को राजू के घर की स्टडी टेबल के पास छोड़कर राजू को ढूंढने के लिए उड़ गई। स्कूल के पास पहुंच गई। राजू स्कूल की खिड़की के पास खिड़की से झांक रहा था। रो-रोकर उसका बुरा हाल हो चुका था। चिड़िया ने खिड़की के पास आकर मधुर संगीत सुनना शुरू कर दिया। राजू ने उसे पुकारा चूं चूं मुझे बचाओ। चिड़िया ने अपने दोस्त को पहचान लिया। राजू ने अपने बस्ते से पैन निकाला और कागज पर लिखा पापा मैं स्कूल में बंद हूं ब्लैक बोर्ड के पीछे मुझे नींद आ गई थी। प्लीज मुझे यहां से बाहर निकालो उसने कागज चिड़िया की चोंच में डाल दिया। चिड़िया ने वह कागज अपनी चोंच में इतनी जोर से पकड़ा और उठ कर जल्दी से राजू के घर पहुंच गई। वहां पर राजू के माता-पिता ने पुलिसवालों को भी फोन कर दिया था कि राजू अपने घर से गायब है। पुलिस वाले राजू की तलाश कर रहे थे इतने में चिड़िया ने चींचीं करके राजू के पिता के सामने कागज गिरा दिया। राजू की मां ने जब चिड़िया की चोंच में कागज का टुकड़ा देखा तो उसने वह कागज का टुकड़ा उठा लिया। उन्होंनें पढा तो हैरान रह गए राजू स्कूल में बंद है और और क्लास रूम में है। जब यह बाते राजू के मम्मी पापा पढ़ रहे थे तो वहां पर दो अजनबी चोरी करने के लिए उनके घर आए थे। उन अजनबी लोगों ने उनकी बातें सुनी तो उन्हें पता लग चुका था कि इस घर का बेटा पास ही के स्कूल में बंद हो गया था। उन्होंने राजू के स्कूल का पता भी मालूम कर लिया था कि राजू कौन से स्कूल में पढ़ता है
? वह चुपचाप वहां से भागकर स्कूल पहुंच गए थे। वह दोनों चोर उस बच्चे को किडनैप करने की ताक में थे। उन्होंने उसके स्कूल का पता मालूम कर जल्दी से स्कूल का ताला तोड़ा और राजू को कुछ सूंघा कर उसे बेहोश कर दिया और उसे अपनी जीप में डाला और उसे लेकर चले गए। पुलिस वालों आकर जल्दी से स्कूल में स्कूल खोलने के लिए जैसे ही चाबी लगाने लगे तो राजू के पिता के होश गुम हो गए। उन्होंने जब टूटा हुआ ताला देखा तो जल्दी से स्कूल के अंदर जाकर देखा राजू वहां पर नहीं था। उसका बस्ता वही पड़ा हुआ था। निराश होकर राजू के पापा घर पहुंचे। चिड़िया के छोटे को बच्चे को उन्होंने पिंजरे में डाल दिया। चिड़िया ने देखा कि राजू अभी तक नहीं लौटा है फिर एक बार फिर चिड़िया उड़ उड़ कर राजू को पुकारने लगी। चिड़िया ने दूर तक दौड़ते हुए जिप्सी की आवाज सुनी तो उसे वहां पर अपने दोस्त की गंध महसूस हुई। वह चिडि़या जिप्सी की खिड़की के पास फुदकनें लगी। एक जगह उस आदमी ने गाड़ी रोक दी अभी तक राजू को होश नहीं आया था। दोनों अजनबी उतर कर सामने वाले ढाबे पर चाय पीने चले गए तो चिड़िया ने चुपचाप जिप्सी की खुली खिड़की देख कर फुर्र से उड़ कर गाड़ी में राजू के पास पहुंच गई। उसने जोर-जोर से राजू को चोंच मारी तो राजू की आंख खुल गई राजू ने देखा वह कंहा है।? उसकी आंख न जानें कब लग ग्ई। मैं यहां कैसे आ गया हूं? मुझे यहां पर कौन लाया है? उसने सामने ढाबे पर बैठे हुए दो अजनबी व्यक्तियों को देखा जो बैठे चाय पी रहे थे। वह समझ चुका था कि चोर उसे किडनैप करके कहीं दूर ले जाने का प्लान कर रहे थे। उसने चिड़िया को अपने साथ लिया और जल्दी से गाड़ी से उतरकर जल्दी जल्दी भागने लगा। भागते-भागते वह एक दुकान में पहुंचा। उसने दुकानदार को सारी घटना सुनाई कि वह स्कूल में बंद हो गया था। वहां पर चोरों ने उसे कुछ सूंघा कर उसे किडनैप करके कहीं दूर ले जाने की योजना बना रहे थे। उसने दुकानदार को कहा कि प्लीज मेरे पापा को फोन कर दो। दुकानदार ने उसके पापा को फोन किया कि आपका बच्चा हमारे पास है। आप उसे यहां से ले जाओ।

राजू ने चिड़िया को बहुत ही प्यार किया क्योंकि एक बार फिर राजू की जान चिड़िया ने बचा ली थी राजू ने उस गाड़ी का नंबर भी नोट कर लिया था। पुलिस ने उन लोगों को जल्दी ही ढूंढ निकाला और उन्हें सलाखों के पीछे कैद कर दिया। राजू की जान बच गई वह सुरक्षित अपनें घर पहुंच गया।

सावन की फुहार

सावन आया, सावन आया।
अपने साथ ढेर सारी खुशियां लाया।
वर्षा की बूंदों से सावन में, चारों और खुशी का वातावरण लहराया।।
कोयल की मधुर गुंजन हर जगह छाई
हर जगह पक्षियों की चहचहाहट दी सुनाई।
हर नारी नें अपनी कलाई में चूड़ियाँ और हाथों में मेहंदी रचाई।
सावन की झलक सभी के चेहरों पर दी दिखाई।।
मधुर संगीत और नृत्य से सब के मन हुए सुरीले।
सावन की अद्भूत छटा देख, सब हुए हर्षीले।।
सावन में राखी का त्योहार भी आया।
भाई से मिलनें का प्यार बहना को उसके पास खींच लाया।।
सावन में नाग पंचमी भी आई।
लोगों नें नृत्य कर खुशी दिखाई।।
हर घर घर में सबने सावन के गीत गाए।
सबके चेहरे खुशी से भर आए।।
चेहरे पे सभी के खुशी का नूर आया।
हर घर घर मे खुशियों का दीप जगमगाया।।
सावन सावन आया अपने साथ ढेर सारी खुशियां लाया।
सावन में पन्द्रह अगस्त का त्योहार भी आया।
बच्चे बुढेऔर सभी नें मिलजुल कर यह पर्व मनाया।।
सभी के मन में उत्साह की लहर छाई।
बच्चों की खुशी देखकर दादी मां की भी आंख भर आई।।
मां ने ढेर सारी मिठाइयाँ बनाई।
पूरी हलवा और स्वादिष्ट पकवान देखकर सभी की जीभ ललचाई।।
वर्षा के पानी से नदी नाले भर आए।
बारिश में भीगने को बच्चे बाहर की ओर दौड़े दौड़े आए।।
सावन आया सावन आया।
अपने साथ ढेर सारी मस्ती लाया।।
वर्षा के पानी से नदी नाले भर आए।
बच्चे पानी में भीगने बाहर दौड़े-दौड़े आए ।।
सावन आया सावन आया अपने साथ ढेर सारी मस्ती लाया।
बच्चों ने मस्ती कर पानी में नाव चलाई। भीग भीग कर उनके चेहरे पर लाली छाई।।
सावन आया सावन आया।
अपने साथ ढेर सारी खुशिया लाया।।
सब नें त्यौहार मना कर एक दूसरे को दी बधाई।
हर एक को गले लगा कर सभी से मित्रता निभाई।।
हर नारी ने झूला झूल कर सावन के गीत गाए।
उन के गीतों को सुनने सभी उन की ओर खींचें चले आए।।

मंद मंद हवा का चारों ओर वातावरण छाया।
यह सब देख सभी का मन हर्षाया।
सावन आया, सावन आया अपने साथ ढेरों खुशियाँ लाया।।

मासूम भाग(2)

समृति को डॉक्टर ने बताया कि वह बेहोशी में भी बघिरा बघिरा पुकार रहा था। लगता है बघिरा का इन से कोई खास लगाव है। स्मृति के मानस पटल पर सारी घटना चलचित्र की भांति खीची चली बघिरा के कारण ही यह सब कुछ हुआ। बघिरा को दोषी ठहराते हुए उसको भला बुरा कहने लगी।

सारी घटना का दोषी वह बघिरा है अच्छा हुआ बघिरा हमारे घर से सदा के लिए चला गया। शुक्र है मेरी सहेली का उसनें मुझे आनें वाले खतरे से पहले ही सूचित कर दिया। उसनें मेरे पति की क्या दुर्दशा कर दी है? काफी समय हो चुका है मेरे पति अभी तक उस सदमें से बाहर नहीं आए हैं। वह बेहोशी की अवस्था में भी बघिरा बघिरा पुकार रहें हैं। मेरे पति जल्दी से ठीक हो जाए।

बघिरा अपने दोस्त से बिछड़ कर उस स्थान पर आकर हर रोज़ बैठ जाता और टकटकी लगाकर हर आने-जाने वाले पर नजरें गड़ाए रखता। उसे पूरा विश्वास था कि उसका दोस्त उसे लेने जरूर आएगा उस मासूम के मन में एक बार भी ख्याल नहीं आया कि उसका दोस्त उसे यूं तन्हा छोड़ सकता है। क्या मेरे दोस्त को मेरी याद नहीं आई? वह मायूस होकर हर किसी आने जाने वाले राहगीरों के पीछे भागता। उन सभी के चेहरों में वह अपने दोस्त को ढूंडनें की कोशिश करता रहता था। वह ठंडे स्थान पर रहने वाला प्राणी था। उसे गर्मी की आदत नहीं थी। कड़ी धूप में भोजन की तलाश में इधर उधर भटकता। जूठे खाने के ढेर में से लोगों के बचे हुए जूठे खाने को खाता। किसी ना किसी तरह अपनी जिंदगी गुजार रहा था। उसकी इतनी सुंदर आंखें भोला भाला चेहरा मासूम सा। नीयति ने उसे इतनी दर्दनाक स्थिति में पहुंचा दिया कि वह सारा दिन इधर उधर भटकता। उसे कभी भी इतने ट्रैफिक के बीच में चलने की आदत नहीं थी। जैसे बच्चा अपनी मां बाप की उंगली पकड़कर चलता है वैसे ही वह अपने दोस्त के साथ हर जगह जाता था। एसी वाले कमरे में सोता था। अपने दोस्त के साथ बिस्तर पर उसके बिस्तर पर ही सो जाता। उसका दोस्त ही उसके लिए पूरी दूनिया था। इतनी दर्दनाक स्थिति में पहुंच गया था हर आने जाने वाले लोग सब यही कहते इसका मालिक कितना निर्दयी होगा जिसने इतने प्यारे मासूम से कुत्ते पर जरा भी दया नहीं कि।

लोग अपने शौक के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं। वह कुत्ता खरीदते वक्त यह भूल जाते हैं कि वह भी तो हमारी तरह एक जीव है। उसे भी तो महसूस होता है। उसे भी तो दर्द होता है। उसमें भी जीवन है। उसे अपनी शौक और मनोरंजन के लिए उसे पाल तो लेते हैं मगर यह भूल जाते हैं कि वह कोई खिलौना नहीं है। जीता जागता प्राणी है। उस के लिए उसका मालिक ही उसका परिवार होता है। हमें उनके साथ अपने परिवार के सदस्यों जैसा ही व्यवहार करना चाहिए। उसे मनोरंजन की वस्तु समझ कर नहीं पालना चाहिए। कुत्ते से ज्यादा वफादार कोई हो ही नहीं सकता। वह अपनी जान कुर्बान कर सकता है परंतु अपने मालिक पर आंच तक नहीं आने देता।

शेरभ बेचारा तो दुर्घटना का शिकार हो गया था। वह अपने दोस्त को ढूंढने निकला तो अचानक उसकी गाड़ी एक ट्रक की चपेट से दुर्घटनाग्रस्त हो गई। वह आज तक बेहोशी में पड़ा पडा जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है। बेहोशी में भी वह बघिरा बघिरा पुकार रहा था।

एक दिन एक नीले रंग की गाड़ी के पीछे बघिरा दौड़ा। गाड़ी के पीछे भागते भागते वह हांप चुका था। वह उस गाड़ी के पीछे इसलिए भागा था क्योंकि उसके दोस्त के पास भी उसी तरह की गाड़ी थी। भागते-भागते वह एक

बाइक सवार की चपेट में आ गया। उसकी टांग से खून निकलने लगा बाइक सवार उसे डांटते फटकारते हुए कहने लगा तुझे मरने के लिए मेरी ही गाड़ी मिली थी। वह बाइक वाला उसे गालियां दे कर वहां से भाग गया। यह सब दृश्य वह नीले रंग की गाड़ी वाला व्यक्ति देख रहा था। उसकी चोट से बेहाल होकर बघिरा एक ओर बैठ गया। इतना सुंदर कुता जिसको सब लोग देखकर मोहित हो जाते थे वह आज हड्डियों का ढांचा बन गया था। उसकी सांसे तो अपने दोस्त से मिलने के लिए बेचैन थी। कर्ण गाड़ी से उतरा उसने उस कुत्ते को प्यार से सहलाया। अपनी गोद में लेकर प्यार किया। बघिरा की आंखें भी अपने मालिक को ढूंढते-ढूंढते थक गई थी। उसे बहुत ही तेज बुखार था। कर्ण की शक्ल उसके दोस्त से मिलती जुलती थी। थोड़ी सी मुस्कुराहट बघिरा के चेहरे पर दिखाई दी। उसके गले में पट्टा देखकर उसने अंदाजा लगा लिया था कि यह किसी का पालतू है। यह अपने मालिक से बिछड़ गया है या इसके मालिक ने इसे छोड़ दिया है। देखने में तो बहुत ही चतुर दिखाई देता है। कुछ भी हो जाए वह इस कुत्ते को नहीं छोड़ सकता। कुछ इंसानियत तो उस में भी बाकी है। उसको वह पास के सिटी अस्पताल में ले गया। उसका इलाज करवाया। वह सोचने लगा जब तक वह पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता तब तक वह इसको अपने घर में ही रखेगा। कर्ण को उससे प्यार हो गया। उसके पटटे पर बघिरा नाम खुदा हुआ था। जब कर्ण उसे बघिरा बुलाता तो बघिरा की आंखों से खुशी के आंसू छलक पडे। काफी दिनों बाद उसे

किसी ने इस नाम से बुलाया?

एक दिन शालिनी अपनी दोस्त स्मृति से मिलने उसके घर गई शालिनी उसे देखकर चौक गई शालिनी अपनी सहेली को देख कर उसे कहती है कि तुमने यह क्या हालत बना ली है? क्या बात है, तुम ठीक ढंग से खाती पीती नहीं हो। वह बोली तुम्हें क्या बताऊं? तुम भी तो मेरी खोज खबर लेने नहीं आई। मुझ पर जो जो बीती मैं तुम्हें बताती हूं। शालिनी बोली कि मैं मैं अपने मायके गई हुई थी। मेरी शादी तय हो गई है मैं तुम्हारे पास आ नहीं सकी। आज भी मैं अपने शादी का कार्ड देने आई हूं। शालिनी बोली जीजा जी कहां हैं? जब शालिनी नें उसे अपने पति शेरभ के बारे में बताया तो वह यह सुन कर बहुत दुखी हुई कि उसके पति बेहोशी की अवस्था में है। एक दिन जब मेरे पति बच्चे की ओर ध्यान न दे कर बघिरा को अपनें हाथ से खाना खिला रहे थे तो मैं गस्से में अपने पति को अनापशनाप कह गई। उसने गुस्से में अपने पति को कहा कि बघिरा हमारे बच्चे को नुकसान पहूंचा सकता है। मेरे पति कहने लगे बघिरा तो कभी भी हमारे बच्चे को नुकसान पहुंचा ही नहीं सकता। वह अपनी जान कुर्बान कर देगा मगर हम पर कोई आंच नहीं आने देगा। बहना तुम सच ही कहती थी बघिरा नें तो मेरे पति को भी नहीं छोड़ा। मेरे पति की बघिरा के कारण ही दुर्घटना हुई।मेरे पति बघिरा को ले कर गुस्से में न जाने कहां चले गए? वे रास्ते में एक ट्रक से टकरा गए। वह लहूलुहान हो कर नीचे गिर गए। लोंगों ने किसी न किसी तरह उन्हे बचा कर सिटी अस्पताल पहुंचाया दिया। वह आज तक बेहोशी की अवस्था से बाहर नहीं आए। बेहोशी में भी अपनें बघिरा को पुकारते रहतें हैं।

शालिनी को यह सुन कर बड़ा बुरा लगा। मैने तो इनके हंसते खेलते परिवार में फूट डाल दी। मेरे कारण यह सब कुछ हुआ। मैंनें डर के कारण अपनी सहेली को कह दिया कि बघिरा के कारण तुम्हारा बेटा गिरा। मुझे बच्चे को सम्भालनें का अनुभव नहीं था। मेरे हाथ से प्यार करते करते बच्चा गिर गया। अपनी सहेली के डर के कारण मैंनें बघिरा का नाम झूठमूठ में ले दिया। बघिरा तो मुझ पर भौंक रहा था। मैने बघिरा को, उसके पति को उन से दूर कर दिया। मैं जब तक इन को मिलवा न दूं तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा। आज मैं सब कुछ अपनी सहेली को सच सच बता दूंगी।। वह बघिरा को ही अपनें पति की दुर्घटना का कारण समझती है। शालिनी बोली बहन मुझे माफ कर दे जब मैं उस दिन तुम्हारे घर आई थी। बच्चे को गोद में ले कर प्यार कर रही थी पालनें में रखते रखते तुम्हारा बच्चा मेरे हाथ से नीचे गिर गया। मैंने तुम्हारे डर के कारण झूठमूठ में कह दिया बच्चा बघिरा नें गिराया है। बघिरा तो बच्चे को गिरता देख कर मुझ पर भौंका था। स्मृति नें जब यह सुना वह हैरान हो गई। वह सोचने लगी आज तक मैं अपने पति की दुर्दशा का कारण बघिरा को समझती रही। उस मासूम की तरफ तनिक भी ध्यान ही नहीं दिया। वह तो हमारे पास बहुत वर्षों से रह रहा था। जब तक मेरा बेटा भी पैदा नहीं हुआ था। ओह! गुस्से में मैं आज तक उसे क्या क्या गालियां देती रही। मेरी बुद्धि भी मन्थरा जैसी बन गई।

मैं अपने बघिरा के प्रती इतनी निष्ठुर कैसे हो गई। मेरी जीभ जल क्यों नहीं गई। यह मैने क्या अनर्थ कर डाला। स्मृति को शालिनी नें बताया कि डाक्टरों नें उसे बताया अगर एक महीनें तक बघिरा को ढूंढकर नहीं लाओगे तो वह कभी भी ठीक नहीं हो सकते। इससे पहले कुछ अनर्थ हो जाए मुझे बघिरा को ढूंढ कर लाना ही होगा। बघिरा जिन्दा भी होगा या नहीं। एक दिन शालिनी जब कर्ण से मिलनें गई तो उसने वहां पर एक कुते को देखा।शालिनी को देख कर वह जोर जोर से उस पर भौंकनें लगा। कर्ण बोला न जाने यह किस का पालतू कुत्ता था। वह एक व्यक्ति की बाइक से टकरा गया था। उसे की टांग में चोट लग गई।मैं उसे अपनें घर ले आया। मैंनें सोचा था कि मैं उसे ठीक होनें के बाद छोड़ दूंगा परन्तु अब मैं उसे नहीं छोड़ सकता। मुझे इसके साथ प्यार हो गया है। बघिरा शालिनी पर भौंकता जा रहा था। वह उसके गले में पट्टा देख, ओर कर्ण नें जब उसे बघिरा पुकारा, वह दौडता दौडता उस के पास जा कर उसे चाटनें लगा। शालिनी अपनें मन में सोचने लगी कहीं वह ही तो बघिरा नहीं। वह तो बहुत ही सुन्दर बडी बड़ी आंखो वाला था। यह तो कमजोर हड्डियों का ढांचा है। उस के पास जा कर जब उसने पट्टा देखा वह तो वही पट्टा था जो उसनें और उसकी सहेली नें बघिरा के लिए खरीदा था। उसने बघिरा को खूब प्यार किया। उस की आंखो में खुशी के आंसू चमकने लगे। शालिनी ने अपने पति को बताया कि यह कुता तो मेरी सहेली का है। उसने सारा वृतान्त कर्ण को कह सुनाया। स्मृति के पति को डाक्टरों ने बताया कि अगर तुम अपने पति को बचाना चाहती हो तो जल्दी से जल्दी बघिरा को ढूड कर ले आओ। आज भी मेरी सहेली नें मुझे कहा कि अपने पति से कहना हमारे बघिरा को ढूंढने में हमारी मदद करे।एक दिन जब मैं अपनी सहेली के घर शादी का कार्ड देनें उस के घर गई तब मुझे मालूम पड़ा कि एक साल से उसके पति बेहोश है। वह जब कभी बेहोशी से उठते हैं तो बघिरा को ही पुकारतें हैं।

शालिनी बोली एक दिन जब मैं उसके बच्चे से खेल रही थी। बच्चे को उठाने का मुझे अनुभव नहीं था बच्चे को पालनें में रखते रखते स्मृति का बच्चा मुझ से नीचे गिर गया। यह देख कर बघिरा आया और मुझ पर भौंकनें लगा। मैंने अपनी सहेली के डर के कारण अपनी सहेली को कहा बघिरा नें तुम्हारे बच्चे को गिराया है। वह सच मान बैठी। वह अपने पति पर हर रोज दबाब डालती रही कि बघिरा को कंही छोड़ आओ। अपनी पत्नी से परेशान हो कर गुस्से में वह घर से निकल गए। सारी रात घर नहीं आए तो दूसरे दिन स्मृति नें उसे पास के सिटी अस्पताल में उन्हे जिन्दगी और मौत के बीच जूझते पाया। सारी कहानी सुनाने के बाद शालिनी बोली आप ही मेरी सहेली के पति को बचा सकतें हैं।कर्ण बोला बघिरा मुझ से घुल मिल गया है। एक शर्त पर मैं सिटी अस्पताल चलनें के लिए तैयार हूं। शेरभ के ठीक होनें के बाद मैं बघिरा को अपने पास ही रखूंगा। शालिनी बोली इस वक्त तो किसी की जान बचाना हमारा पहला कर्तव्य है। बाकि बाद में देखा जाएगा।

शालिनी अपने पति कर्ण और बघिरा के साथसिटी अस्पताल में पहुंच गया। बघिरा शेरभ के बिस्तर के पास जा कर भौंकनें लगा। शेरभ के चारों ओर डाक्टर खडे थे। वे उसे आक्सीजन चढा रहे थे। बघिरा। उसके बिस्तर के पास चक्कर काट रहा था। और वह मायूस सा आंसूओं के सैलाब को रोके हुए जोर जोर से भौंकने लगा मानो कह रहा हो उठो दोस्त, जल्दी से मुझे गले लगा लो।। काफी समय तक जब शेरभ नहीं उठा तो उसी वक्त बघिरा भी बेहोश हो कर नीचे गिर गया। डाक्टरों नें उसे इनजैक्शन दे कर ठीक कर दिया। बघिरा उठा और दौड़ दौड़ा अपनें दोस्त के पास जा कर फिर एक बार फिर भौंका। शेरभ की आंख खुल गई। बघिरा उसे चाटने लगा। शेरभ नें उसे कस कर गले से लगा लिया। तूझे मुझ से कोई अलग नहीं कर सकता मेरे दोस्त। उन दोनों की दोस्ती देख कर हर आने जाने वाले लोग और डाक्टर भी दंग रह गए। शेरभ को ठीक होते होते एक महीना लगा। बघिरा तो अपने दोस्त को छोड़नें का नाम ही नही ले रहा था। शालिनी को कर्ण ने बताया कि जैसे ही शेरभ ठीक हो जाएगा वह अपने बघिरा को अपने पास ही रखेगा।एक दिन कर्ण नें शेरभ को पूछा तुम कैसे दुर्घटना के शिकार हुए। शेरभ नें सारा वृतान्त कह सुनाया कैसे अपनी पत्नी के बार बार परेशान करनें पर वह अपने बघिरा को छोड़नें के लिए राजी हो गया। उस दिन बारिश बहुत तेज हो रही थी। बघिरा खुश हो रहा था मेरा दोस्त मुझे खेलने ले जा रहा है। वह बारिश के मौसम में बघिरा को दूर दूर तक घुमाने ले जाता था।उस दिन जैसे ही उसे एक स्थान पर छोड़ कर वापिस आ रहा था। एक दम उसनें दोबारा बघिरा को घर वापिस लाने के लिए गाड़ी मोड़ दी। यह मैने क्या कर दिया। मैं अपने बघिरा को ऐसे कैसे अकेला छोड़ सकता हूं। यही सोचता हुआ गाड़ी चला रहा था। अचानक उसने सामने एक खतरनाक मोड़ को भी नहीं देखा। उसकी गाड़ी एक ट्रक के साथ जा टकराई। उसके बाद आज जा कर उसे होश आया। कर्ण बोला मैं तुम्हारी दोस्ती देख कर तुम्हे तुम्हारा दोस्त लौटानें आया था। मैं अब बघिरा को तुम्हे वापिस नहीं करूंगा।आज तो मैं तुम्हें तुम्हारा बघिरा वापिस भी कर दू। तुम अपनी पत्नी की बातों में आ कर बघिरा को फिर कहीं छोड़कर आ गए इस बात कि क्या गारन्टी है? अब कहीं जा कर यह कुछ ठीक हुआ है। इसकी क्या हालत हो गई थी? तुम इस बात का अन्दाजा भी नहीं लगा सकते।

शेरभ बोला ऐसा कभी नहीं होगा। शेरभ जोर जोर से अपनी पत्नी को डांटने लगा। बघिरा को यह बात बहुत ही बुरी लगी। वह शेरभ और उसकी पत्नी के बीच आ कर जोर जोर से भौंकनें लगा। शेरभ की पत्नी बोली मैंने आप की दोस्ती में दरार डाली आज इस के लिए मैं आप से हाथ जोड़कर माफी मांगती हूं। शेरभ गुस्से में बोला मुझे शादी ही नही करनी चाहिए थी। स्मृति बोली तुम खुश रहो।वह इतना कह कर अपना सामान समेटने लगी। शेरभ जब ऊंची आवाज में कह रहा था बघिरा उन दोनों के बीच में आ गया। जोर जोर से शेरभ पर भौंकनें लगा। शालिनी और उसका पति यह देख कर दंग रह गए। वह स्मृति के दुपट्टे को खींच कर उसे जानें से मना कर रहा था। शेरभ बोला अब देखो मेरा दोस्त कितना समझदार है? वह तुम्हे भी जानें से रोक रहा है। कर्ण बोला आया तो मैं इस इरादे से था कि आज मैं बघिरा को तुम से वापिस ले जाने मगर तुम्हारी इतनी गहरी दोस्ती देख कर मेरी भी आंखें नम हो गईं। यह तुम्हारे साथ ही ज्यादा खुश रहेगा। तुम्हारा बघिरा है ही इतना प्यारा कोई भी इसे देख कर अपना बनाना चाहेगा। मैं इस शर्त पर तुम्हारा बघिरा तुम्हें लौटा रहा हूं जब मेरी इच्छा होगी मैं अपने दोस्त से मिलनें आ जाया करूगा। शेरभ बोला हां यार तुम कभी कभी इसे अपनें पास भी रख सकते हो। शालिनी खुश हो कर बोली मैंनें आज एक दोस्त को दूसरे दोस्त से मिला दिया। आज वह असली मित्रता का मतलब समझी है।