भूल का परिणाम

खेतों की मेड़ पर और नदी के किनारे था हर रोज उसका आना-जाना।
गांव की गली गली के कूचे ही थे उसका आशियाना।।
आज सुबह सुबह ही तो वह नदी के किनारे था आया।
सुनहरी धूप और पानी की कल कल का उसने भरपूर आनन्द उठाया।।
अपनी पूंछ को हिला हिला कर खुशी से था भर्माया।
पक्षियों के अन्डों को खानें की थी उसे बड़ी ललक।
पतों की सरसराहट से उसे उनकी लग जाती थी भनक।।
टप्पू था अपनी धुन का पक्का।
जरा सी आहट पा कर वह वहीं पर था जा धमका।।
ललचाई नज़रों से ईधर उधर देखा करता था।
कब शिकार हाथ लगे हर दम अवसर तलाशता रहता था।
उसका लालच दिन प्रतिदिन बढ़ता ही था जा रहा।
अपनें साथियों को भी नजरअंदाज था वह कर रहा।

अंडों को खानें के लिए हो जाता था आतुर।
उनको पानें के लिए बन जाया करता था शातिर।।
रेत में एक छोटे से घोंघे को देख कर उस पर नज़र फिराई।।
खुशी के मारे उसकी आंखें चौंधियांइ।
झटपट चाट चाट कर खा के अपनी जिह्वा मटकाई।

सुस्ताने के लिए पेड़ के नीचे था आया।
अचानक पेट की दर्द से वह चिल्लाया।
सीप के टुकड़ों नें अपना कमाल दिखाया।
उसकी आंतों में फंस कर उसे रुलाया।।
दर्द और वेदना से टप्पू करहाने लगा।
एंठन और जकड़न से छटपटाने लगा।।

रो कर मन ही मन बुदबुदाया।
अपनी जल्दबाजी पर पछताया।।

मुझ से कंहा हो गई बड़ी भारी भूल।
बिना सोचे समझे काम करने की आदत बन गई शूल।
आज मैंने यह अन्तर जाना।
कोई भी गोल वस्तु अंडा नहीं होती यह पहचाना।।
बिना बिचारे जो काज करे वह पाछे पछताय।
भूल संवार कर जो सीखे वहीं मुकद्दर का सिकंदर कहलाए।।


प्रार्थना

सुबह सवेरे ले कर तेरा नाम प्रभु।
करते हैं शुरुआत आज का काम प्रभु।।
पढ़ाई में हमेशा ध्यान लगाएं हम।
मेहनत से ही अच्छे अंक पाएं हम।
मेहनत से ही अच्छे अंक पाएं हम।।
सुबह सवेरे ले कर तेरा नाम प्रभु।
करते हैं शुरुआत आज का काम प्रभु ।।
कक्षा में कभी जी न चुराएं‌ हम।
सच्चाई को ही हमेशा अपनाएं हम।
सच्चाई को ही हमेशा अपनाएं हम।।
मातापिता,गुरूजनो का हमेशा सम्मान करें।
नत मस्तक हो कर उनका आदर सत्कार करें।।
नत मस्तक हो कर उनका आदर सत्कार करें।।
कलह क्लेश ‍ राग द्वैष को बिसराए हम।
प्रेम स्नेह,अपनत्व का सभी को पाठ पढ़ाएं हम।
प्रेम स्नेह अपनत्व का सभी को पाठ पढाएं हम।
सुबह सवेरे ले कर तेरा नाम प्रभु।
करतें हैं शुरुआत आज का काम प्रभु।।
भू की रज को माथे से लगाएं हम।
हाथ जोड़ कर उन्हें शीश झुकाएं हम।।
हाथ जोड़ कर उन्हें शीश झुकाएं हम।।
तिरंगे का हमेशा मान बढ़ाएं हम।
शहीदों के पथ पर चल कर दिखलाएं हम।
शहीदों के पथ पर चल कर दिखलाएं हम।

गोलू की फरियाद

गोलू मां से बोला मां मां मुझे कुछ ढेर सारे महंगे खिलौनें दिला दो ना।
मेरे मन की ईच्छा को पूर्ण कर मुझे खुशी दिला दो ना।
मां बोली बेटा हर जरूरत की चीज ही तुम्हें दिलवांऊंगी।
अपने घर का बजट देखकर ही तुम्हारा कहना पूरा कर पाऊंगी।
गोलू बोला मां तू है बड़ी ज्ञानी ।
तेरी अब कोई नहीं चलेगी मनमानी ।
ज्ञान की बात मेरे समझ में नहीं आती।
खिलौनौं के सिवा और कोई बात मुझे नहीं भाती।
गोलू मां से बोला मेरे दोस्तों के पास बहुत सारे खिलौने कहां से आते हैं ?
आप मुझे ढेर सारे खिलौने क्यों नहीं दिलवातें हैं? ।
मां गोलू से बोली पहले तुम्हारे पापा से अनुमति ले कर आऊंगी।
मैं तभी तुम्हारी इच्छा पूरी कर पाऊंगी ।।
रानी राघव से बोली तुम मेरी बात आज सुन ही लो।
गोलू की इच्छा पूरी कर ही दो।।
राघव बोला बच्चे को अच्छे और बुरे में फर्क करना सिखाओ ?।
उसकी इस आदत में जल्दी ही बदलाव करवाओ।।
बेटी की पढ़ाई का खर्चा कैसे चल पायेगा?
हमारा तो सारा बजट भी बिगड़ जायेगा।।
हमारे लिए तो बेटा और बेटी दोनों ही समान है।
आवश्यकता से ज्यादा दिलाना करता नुकसान है।।

बच्चे की हर इच्छा पूरी करना नहीं है फर्ज हमारा ।
जरूरत के मुताबिक ही वस्तु को दिलाना है कर्तव्य हमारा।।
दूसरों की वस्तु को देखकर वह भी लालच में आ जाएगा ।
सच्चाई को अनुभव कर ही समझ पाएगा।।
रानी से बोले हमारी कमजोरी को जानकर वह हमारा विरोध कर जाएगा हमारे हालात को समझकर वह अपनें कदम पीछे हटा पाएगा।।

मां गोलू से बोली तुम अपने आप को खास समझना छोड़ ही डालो। सच्चाई से परिचित हो कर ही अपना इरादा बदल डालो।।
मीनु बोली भैया, यह गुल्लक तुम्हें खिलौनें न दिलवा पाई तो यह मेरे किस काम आएगी?
तुम्हारें प्रति बहन का प्यार- कैसे दर्शा पाएगी?
छोटी बहन के इस प्रकार कहने पर गोलू की आंख भर आई।
बहन की पीठ थपथपा कर बोला हां अब कहीं जाकर यह बात मेरी समझ मेंआई।।

आज के बाद कभी भी मैं खिलौनों की जिद नहीं करूंगा ।
आप तीनों सलामत रहे यही दुआ करूंगा।।