हाथी और उसका दोस्त पूरु

एक दर्जी था। वह रोज लोगों के कपड़े सिलकर अपनी आजीविका चला रहा था। लोगों को उस दर्जी से कपड़े सिलवाना अच्छा लगता था क्योंकि वह लोगों के कपड़े बहुत ही अच्छे ढंग से उनके नाप के अनुकूल सिलाई करता था। उसका एक बेटा था वह कॉलेज में पढ़ता था। वह अपने पापा को कहता था कि पापा इतने अच्छे कपड़े कैसे सिल लेते हो? मेरे सभी दोस्त आपके सिले हुए कपड़ों की प्रशंसा करते हैं। मुझे बहुत ही खुशी होती है जब वे सभी आपकी प्रशंसा करते हैं। मेरा सिना गर्व से तन जाता है। मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझता हूं। आप अपना काम इतनी ईमानदारी से करते हैं।

उसका पिता बोला बेटा मैं हमेशा अपना काम ईमानदारी से करता हूं भले ही मुझे किसी के कपड़े को सिलने में देर हो जाए तब तक मुझे तसल्ली नहीं होती जब तक मैं उन्हें ठीक ढंग से ना सिलसिला लूं। उसका बेटा विभु बोला पापा मेरे दोस्त कहते हैं तुम्हारे पापा सचमुच में ही तारीफ के काबिल है। इस गांव में और भी दर्जी है मगर कोई कपड़ा चुरा लेता है। कोई तंग बना देता है। कहीं से छोटा कहीं से बड़ा।

दर्जी शाम के समय हमेशा अपने घर के पास ही सैर करने जाता था। उसके घर के पास ही एक नदी थी। जिसमें वह हर रोज नहाता था। उसका एक दोस्त हाथी था। वह भी शाम के समय आ कर उसके साथ खेला करता था। उन दोनों की इतनी गहरी दोस्ती थी कि इंसानों में भी इतनी गहरी दोस्ती देखने को नहीं मिलती। वह अपने हाथी को बहुत ही प्यार करता था। उसने अपने हाथी का नाम रखा था पूरु जैसे ही वह उसे पूरु पूरूबुलाता था। पूरु दौड़ता दौड़ता उसके पास आ जाता था। अपनी सूंड से हाथी अपने दोस्त के हाथ से खाता। जो कुछ दर्जी लाता उसको वह बहुत ही प्यार से खाता। कपड़े सिलने के पश्चात अपना मन बहलाने के लिए हर रोज नदी के तट पर जा पहुंचता। उसको देखते ही दोनों की दोस्ती को देखकर सारे आने-जाने वाले भी उनकी दोस्ती देखकर दंग रह जाते। वह उनकी फोटो अपने कमरे में कैद करते।

एक दिन की बात है कि विभु के दोस्त दर्जीके पास आए बोले हमने सूट सिलाना है। कृपया करके कल सिल कर दे देना। राजेश की तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं थी। उसने कहा बेटा तुम मेरे बेटे विभू के दोस्त हो। मेरी तबीयत ठीक नहीं है। जिस वजह से मैंने तुम्हारा सूट जल्दी नहीं सिलसिला सकता अगले हफ्ते सूट सिल दूंगा। विभु का दोस्त मान गया। राजेश के पास इतना काम आ गया वह जल्दबाजी में उसका सूट सिलना भूल गया। जब औरों के कपड़े देख रहा था तो कपड़ों में उसके दोस्त का कपड़ा दिखाई दिया। विभूषित कादोस्त अपना सूट लेने आया था। विभु ने अपने दोस्त को कहा तुम्हारे पिता के पास मैंने सूट सिलने को दिया था। उन्होंने सिल दिया होगा। राजेश को बड़ी ग्लानि महसूस हुई। वह बोला बेटा मुझे माफ कर देना तुम्हारा सूट सिलना मैं भूल गया। उस के दोस्त ने विभु को गुस्से में ना जाने क्या-क्या कह डाला। गुस्से में वह अपने पिता के पास आया बोला पापा आप ने जानबूझकर मेरे दोस्त का सूट नहीं सिला। वह बोला बेटा ऐसी बात नहीं है। कुछ दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। तुम्हारे दोस्त का सूट सिलना भूल गया। मैंने उस से क्षमा भी मांग ली है।

विभु को मन ही मन अपने पापा पर गुस्सा आया। शाम के समय राजेश अपने हाथी के साथ खेलने चला गया। हाथी के साथ खेलते देख विभु देख रहा था। उसको अपने पापा पर गुस्सा आया। इस हाथी के साथ खेलने के लिए तो मेरे पापा के पास समय है। मगर मेरे दोस्त का सूट सिलने के लिए समय नहीं है। उसने आव देखा ना ताव दर्जी जब नदी के पास कपड़े धो रहा था उसके बेटे ने तौलिए में सुई रख दी। उस तरह से हाथी को नुकसान पहुंचाना चाहता था। सुई हाथी की सूंड में चुभ गई। दर्जी को तो पता ही नहीं चला। हाथी चिंघाड़ता हुआ वह आज से भाग गया। डर के मारे उसे अपने दोस्त पर गुस्सा आ रहा था। उसके दोस्त ने उस पर सुई चुभोकर वार किया था।

दर्जी तो अपने घर आ गया। हाथी कई दिनों तक नदी के पास नहीं आया। दर्जी बहुत उदास रहने लगा। उसका दोस्त ना जाने कहां चला गया है। एक दिन दर्जी कपड़े सिल रहा था अपने उसने बहुत सारे कपड़े सिल कर रखे हुए थे। हाथी भी उसकी दुकान के पास आकर बाहर बैठ गया। हाथी सोच रहा था कि जैसे ही दर्जी दरवाजा खोलेगा वह अपने दोस्त से बदला ले लेगा। उसने जानबूझकर मुझे सूई चुभोई है। हाथी ने देखा उसके आस पास से बहुत सारे लड़के वहां पर जोर-जोर से बातें कर रहे थे। उसमें दर्जी का बेटा विभु भी था। उसका दोस्त बोला तुम्हारे पापा ने मेरा सूट नहीं सिला कोई बात नहीं। तुमने अपने पापा को ना जाने क्या-क्या कह सुनाया। मैंने तो गुस्से में ऐसा कह दिया था। तुमने तो अपने पापा पर विश्वास नहीं किया। तुम तो उनके बेटे हो।

विभु बोला मैंने तो उस दिन अपने पापा का बदला लेने के लिए उस हाथी को मोहरा बनाया मैंने सोचा पापा तो हरदम पुरु पुरु करते रहते हैं। मैंने जिस तौलिए से वह पुरु को पौंछतें हैं उसमें सूई फंसा दी। वह सुई हाथी की सूंड में घुस गई। वह दर्द के मारे चिल्लाने लगा। क्योंकि वह शरारत तो मेरी थी। मगर हाथी ने तो उस दिन से मेरे बाबा की शक्ल भी नहीं देखी। आज भी ना जाने यहां बाहर बैठकर उनसे बदला लेने आया होगा।

उस दिन से मेरे पापा ने ठीक ढंग से खाना भी नहीं खाया। वह बार-बार मुझसे हर रोज कहते हैं बेटा मैंने मेरे पुरु को ढूंढ कर लाओ। इतना प्यार तो वह मुझसे भी नहीं करते। आज मुझे अपने किए पर पछतावा है। मैं उन्हें सच सच बताना चाहता हूं। मैंने उनके दोस्त को सूई चूभोई है। मुझे अपने किए पर पछतावा है।

उस मूक प्राणी ने हमारा क्या बिगाड़ा? हाथी ने जैसे ही सुना वह स्तब्ध रह गया। पूरु सोचने लगा मैं अपने दोस्त से बदला लेने आया था। अच्छा हुआ मुझे सच्चाई पता चल गई। हमें बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। जब तक कोई ठोस प्रमाण ना मिले। तब तक हमें कभी भी अपनी दोस्ती पर शक नहीं करना चाहिए। ना जाने आज मैं अपने दोस्त को क्या-क्या कर डालता। उसकी आंखों में पश्चाताप के आंसू थे।

विभू उसके पास आया और कान पकड़कर बोला। मेरे प्यारे दोस्त मुझे माफ कर दे। मैं तुम्हारी दोनों की दोस्ती को समझ नहीं सका तुम्हारी दोस्ती को बिगाड़ने में लगा था। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें बिना सोचे समझे आवेश में आकर कोई भी जल्दबाजी में कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिससे हमारी दोस्ती में दरार आ जाए। पूरु को जब उसनें प्यार से सहलाया वह उसे चाटें लगा। विभू अपने पिता के पास जाकर बोला पापा मुझे माफ कर दो। मैंने आपकी दोस्ती को तोड़ने की कोशिश की थी। मैंने ही उस तौलिए में सुई चुभोई थी। जिससे हाथी की सूंड में सुई चुभ गई। पापा मुझे माफ कर दो। हाथी दर्द के मारे चिंघाड़ता हुआ बाहर आ गया था।

राजेश ने पूरु को गले लगा कर माफी मांगी। मेरे दोस्त मुझे माफ कर दो। मेरे बेटे को भी माफ कर दी। इस ने जानबूझकर यह काम किया है। मुझे तुम्हारी दोस्ती की कसम है। पुरु प्यार से उसकी ओर देख रहा था मानो उसने उन दोनों को माफ कर दिया।

तोहफा

यह कहानी बिहार के छोटे से कस्बे की है उस कस्बे में लीला और उसका पति रामनाथ अपने दो बच्चों के साथ रहता था ।उनका अपना छोटा सा घर था वह मेहनत मजदूरी करके जो कुछ लाता उसे वह अपना और अपने बच्चों का पेट भरता था। इस तरह खुशी खुशी उसके दिन व्यतीत हो रहे थे ।एक दिन इतनी भयंकर बाढ़ आई कि सारे कस्बे का नामोनिशान ही मिट गया थोड़ा बहुत जो उनके पास था वह सबकुछ बाढ़ की चपेट में आकर समाप्त हो चुका था ।भगवान का लाख-लाख शुक्र था कि उनके दोनों बच्चे और वे अपने आप सुरक्षित थे वह दोनों हादसे में बाल-बाल बच गए थे पांच छह महीनों बाद भी उस क्षेत्र की स्थिति ठीक नहीं हो पाई। वह दोनों अपने आप को एक भिखारी की तरह कंगाल महसूस कर रहे थे ।उनके बच्चे भी ठंड महसूस कर रहे थे । किसी तरह से बचते-बचाते वह दूसरे शहर में आ गए और वहां पर नए सिरे से अपनी जीविका को चलाने की कोशिश करने लगे ।
रामनाथ एक साहसी और ईमानदार इंसान था ।उसकी पत्नी भी बहुत ही मेहनती थी ।उनके दोनों बच्चे अभी छोटे ही थे एक बच्चा तो मुश्किल से 5 वर्ष का ही था। वह स्कूल भी नहीं जाता था। दूसरे शहर में आकर पहले तो उन्हें बहुत कठिनाइयां आई परंतु दोनों पति पत्नी ने मुश्किलों के बावजूद भी अपने धैर्य को नहीं खोया।
रामनाथ एक धोबी का काम करने लग गया ।वह लोगों के कपड़े धोता और उसकी पत्नी कपड़ों में प्रेस करती थी । उसको जो कुछ भी मिलता उसी से संतोष कर लेते थे।इस तरह करते करते उन्हें 8 साल हो चुके थे । वे उस शहर में पूरी तरह से रंम चुके थे।उन्होंने अपने बच्चे को भी वहीं पर स्कूल में दाखिल करवा दिया था। उनके बच्चे भी बड़े हो रहे थे । एक दिन रामनाथ को उसकी पत्नी बोली की अब तो लोग हम से इतना कपड़े भी धुलवातेे नहीं हैै क्योंकि अब सब लोगों के पास घर में अपनी अपनी मशीनें है, और प्रैस करने के लिए घर में ही प्रेस हैं। हमें तो गिना चुना ही काम मिलता हैं।जिन व्यक्तियों को औफिस जल्दी जाना होता है वही हमसे काम करवाते हैं।अभी तक तो ठीक है हमारा व्यापार अब कैस आगेे बढ़ेगा। हमे अपने बच्चों को शिक्षा भी दिलानी है चलो वापिस अपने शहर चलते हैं ।अब तो वहां सब कुछ ठीक हो गया होगा ।उसका पति बोला नही, चाहे हमें थोड़ा ही मिल रहा है रोजी रोटी का गुजारा तो चल ही रहा है ना और तुम्हें और क्या चाहिए ।हमें ज्यादा का लालच नहीं करना चाहिए ।वह कहने लगी काश हमारे पास भी कपड़े धोने की मशीन होती और बिजली से चलाने वाली प्रैस होती तो हम भी बहुत सारे कपड़े धो पाते आप भी कपड़े धोते धोते इतना थक जाते हो । रामनाथ बोला और तुम भी तो सारा दिन कपड़े प्रैस करते-करते थक जाती होगी। तुम्हारा मन भी तो करता होगा कि कि मैं आराम करूं पर क्या करें हमें आराम करने के लिए समय ही नहीं मिलता । रामप्रकाश की पत्नी बोली ठीक है ना, तुम भी व्यस्त रहते हो और तंदुरुस्त भी रहते हो । मैं भी तो स्वस्थ हूं ।परंतु जिन लोगों के पास आवश्यकता से अधिक रुपया है तो उन्हें तो रात को नींद भी नहीं आती होगी ।हम इन रुपयों को कहां पर सुरक्षित रखें । रात को डर के मारे नींद इसलिए नहीं आती होगी कि कोई हमारे रुपयों को को चोरी करके न ले जाए। दोनों ठहाका लगा कर हंसने लगे।राम
प्रकाश बोला कि मैं लोगों से कपड़े लेने जा रहा हूं। रामप्रकाश बाहर निकल गया जब वह सारे कपड़े लेकर आया तो उसकी पत्नी एक-एक कपड़े को गिनने लगी तभी एक पेंट में से उसे एक आई-कार्ड टिकट ,एटीएम कार्ड और लाइसेंस मिला ।उसने सारी बात अपने पति को बताई ।रामनाथ को पता चल चुका था कि बैंक अधिकारी अपने पैंट की जेब में से अपनी वस्तुएं निकालना ही भूल गए थे। उनकी पत्नी मायके गई हुई थी। रामनाथ सीधे बैंक अधिकारी महोदय के घर गया और बोला ठाकुर साहब आपतो अपना आईडैन्टटी कार्ड, लाइसेंस और एटीएम कार्ड सभी अपनी पैंट में भूल गए थे ।आपकी टिकट्स भी इस में हैं। बैंक अधिकारी महोदय की पत्नी भी मायके से वापिस आ चुकी थी ।वह बोली आप तो भुलक्कड़ ही रहेंगे एक दिन को मैं मायके क्या गई आप कोई भी काम ठीक ढंग से नहीं करते हैं । वह बोली, राम प्रकाश भाई साहब आपका धन्यवाद।आप की ईमानदारी देखकर मैं बहुत ही खुश हू। । वह भी आपने लौटा दिया। आज ही लॉटरी का परिणाम भी घोषित होगा ।यह कहकर उसने लॉटरी का टिकट श्यामनाथ को पकड़ा दिया। रामनाथ की ईमानदारी को देखते हुए उनकी पत्नी ने उन्हें ₹5000 दे दिए इतने सारे रुपए पाने पर रामनाथ बहुत खुश हो रहा था ।उसके साथ उसका छोटा बेटा भी आया हुआ था ।वह टॉफी टॉफी चिल्लाने लगा। श्यामनाथ के पर्स से टॉफी नीचे गिर गई थी। । वह जब पर्स में से कुछ निकल रहा था तो कुछ कागज नीचे गिर गए थे लेकिन श्यनाथ फोन में व्यस्त था। रामनाथ का बेटा बंटी सोफे के पास के पास नीचे उतरकर खेलने लगा उसे सोफे के पास नीचे टिकेट दिखाई दी। उसको टिकटें इकट्ठे करने का शौक था। वह रोज अपने पापा से कार्ड और टिकट ले लेता था वह टिकट टिकट करता हुआ सोफे के पास गया। उसने टिकटें उठाई और जेब में डाल दी तभी उसकी नजर टौफी पर गई। वह टिकट को भूल गया और टॉफी खाने में मस्त हो गया। रामनाथ ने बैंक अधिकारी महोदय को कहा कि अब मुझे इजाजत दे दीजिए आज तो मैंने चाय भी पी ली और ईनाम भी ले लिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बाबूजी ।बैंक अधिकारी श्यामनाथ की पत्नी ने जब टिकट का नंबर देखा उनकी लॉटरी लग चुकी थी ।उसने नंबर अपने पर्स में लिखकर किसी कागज पर लिखा हुआ था। ।वह बहुत ही खुश हुई क्योंकि आज वह अपने आप को दुनिया की सबसे अमीर औरत महसूस कर रही थी । आज उसे 700,000 रुपए मिलने वाले थे ।उसने जल्दी से बाजार जाकर अच्छे गहने खरीदें और बहुत सारा सामान खरीदा फ्रीज TV और कीमती सामान उसने दुकानदार को कहा कि इन सभी चीजों का भुगतान मैं आज शाम को कर दूंगी। आज ही तो मेरी लॉटरी लगी है। उसने अपने घर में अपनी सारी सहेलियों को भी निमंत्रण दे दिया था ।सब लोग पार्टी का आयोजन कर रहे थे । सभी पार्टी में मस्त थे । सुनंदा ने देखा कि अखबार वाले उनका फोटो लेने के लिए आ रहे थे ।लॉटरी के मैनेजर महोदय ने कहा कि आपकी 7,00,000 की लौटरी निकली है आप लॉटरी का टिकट हमें दे दो । हम आपको ईनाम की रकम दे देंगे। सुनंदा ने अपने पति को कहा की टिकट आपके पर्स में पड़ा है । श्याम नाथ ने अपने पर्स की एक-एक जेब कर चेक कर दी मगर उसे कहीं भी टिकट नहीं मिला। सुनंदा निराश हो चुकी थी ।उसने तो ढेर सारे उपहार और पार्टी का आयोजन 20 -30 लाख तो उसने गहने और सामान खरीदने में गंवा दिए थे सुनंदा और उसका पति श्याम नाथ बहुत ही पछता रहे थे ।रामनाथ ने तुम्हें टिकेट वापिस कर दिया था। रामनाथ तुम्हें लॉटरी का टिकट वापस देकर भी गया मगर हमारे भाग्य में रुपया होगा ही नहीं वर्ना टिकेट इस तरह गुम थोड़े ही होता।

रामनाथ घर आ गया उसने अपनी पत्नी और बच्चे के साथ होटल में जाकर खाना खाया और बच्चों को नए नए खिलौने भी खरीदे। एक दिन रामनाथ की पत्नी ने उसे कहा कि चलो अब अपने घर वापस चलते हैं क्योंकि हमें यहां ज्यादा रुपया नहीं मिलता है। वहां तो हमारा अपना मकान है यहां तो किराया भी देना पड़ता है । वह दोनों अपने शहर जाने के लिए तैयार हो गए। रामनाथ अपने सभी मोहल्ले वालों से बड़े सम्मान से मिला और उसने कहा कि आप सब लोगों से हमें बहुत प्यार मिला। परंतु मैं अब अपने गांव वापस जाना चाहता हूं।सभी मोहल्ले वालों ने उसे बड़े सम्मान से विदा किया। उन्होंने गाड़ी के टिकट भी बुक करवा लिए थे ।जब शाम को ट्रेन मे टिकेट-चैकर आया।वह बोला टिकेट दिखाओ छोटे से बच्चे ने अपने पापा को कहा यह लो और जेब में से टिकट निकालकर अपने पापा को दे दिया। रामनाथ ने देखा वह तो लॉटरी का टिकट था। सामने अखबार पढ़ा हुआ था। रामनाथ थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा था। उसने देखा कि इस नंबर की ही तो लॉटरी निकली है। बार-बार इस नंबर को दस बार पढ़ा खुशी के मारे उसका बुरा हाल था। उसने अपने पत्नी को सारी बातें बताई। वह बोली हमारे बेटे के पास यह टिकट कहां से आया शायद यह टिकट उसे यहीं पर मिला होगा तभी रामनाथ ने कहा कि मैंने तो वह लॉटरी का टिकट बाबूजी को पकड़ा दिया था। परंतु यह टिकट तो मेरे बेटे की जेब में मिला था रामनाथ की पत्नी बोली भगवान ने हमारी झोली में खुशियां भर दी है ।लॉटरी केंद्र में जाकर ईनाम के 7,00,000 रुपए प्राप्त किये। उसकी पत्नी ने कहा कि अब हम इन रुपयों में सबसे पहले एक वाशिंग मशीन और एक ड्राइक्लीन की मशीन खरीदेंगे हम रुपया पाकर लालच नहीं करेंगे ।हम अपनी मेहनत को यूं ही बरकरार रखेंगे हम पहले की तरह ही मेहनत करके अपने बच्चों को ढेर सारी खुशियां देंगे । हमारे बच्चों की पढ़ाई के लिए भगवान ने प्रबंध कर दिया है ।हमारी मेहनत यूं बेकार नहीं गई ।दोनों ने भगवान का धन्यवाद किया और खुशी-खुशी अपने घर वापिस लौट आए।

दोस्ती की मिसाल (कविता ))30/9/2018

मेरे दोस्त मुन्नू तुम इधर तो आओ, इधर तो आओ।।
कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी सुनाओ।
मेरी खुशी में चार चांद तो लगाओ।
चारचांद तो लगाओ।
कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो।
तुम क्यों हो मुझ से खफा खफा हो कर गाल फैलाए बैठ हो।?
चेहरे पे झूठ का नकाब क्यों लिए बैठे हो?
तुम्हें यूं उदास देख कर मेरी भी आंख भर आई।
उदासी छोड़ कर चेहरे पे रौनक तो लाओ। रौनक तो लाओ।
मुझ से खफा हो कर
तनिक भी तुम्हें क्या लज्जा नहीं आई।
अपनी सच्ची दोस्ती की किमत क्या तुमनें इस तरह चुकाई?
मेरे प्यारे दोस्त मुन्नू इधर तोआओ, इधर तो आओ।
इधर आकरतुम, मेरे गले लग जाओ।
गले लगा कर अपनी उदासी को मिटाओ, उदासी मिटाओ।
कुछ मेरी सुनों कुछ अपनी सुनाओ।
मेरे दोस्त मुन्नू इधर तो आओ।। इधर तो आओ।।
मुझे से मिल कर अपनी खुशी जाहिर कर दिखाओ।
मेरे प्यारे दोस्त मुन्नू
हम आपस में न करेंगें हाथापाई।
नहीं-तो दोस्तों में हमारी होगी रुसवाई।
यूं ही अपनी दोस्ती निभाते रहो।
अपनी खुशी यूं ही झलकाते रहो।
हम आपस में एक और एक मिलकर ग्यारह बनाएंगे।
अपनें दोस्तों को भी अपनी दोस्ती में शामिल कर उन सभी के साथ खुशिया मनाएंगे।
हम अपनें माता पिता और गुरुजनों का सम्मान करेंगें।
उनकी कसौटी पर खरा उतर कर दिखाएंगे। आपस में तकरार न कर।
यूं ही अपनी दोस्ती को निभाएंगे।
हम मेहनत और लग्न से पढाई किया करेंगे। जहां में अपने माता-पिता के नामको रौशन करेंगे।
जो काम हमारे अभिभावक न कर पाए।
वह भी कर दिखाएंगे।
उनके सपनों को हकीकत में बदल कर दिखाएंगे।
दिन दुनी रात चौगुनी उन्नति कर पाएंगे।
उनके चेहरों पर खुशी की रंगत लाएंगे।
यूं ही अपनी दोस्ती निभाती कर।
सब के दिलों पे छा जाएंगे।
मेरे दोस्त मुन्नू इधर तो आओ, इधर तो आओ।
फिर से मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढा कर
अपनी खुशी तो छलकाओ।

(इतनी शक्ति मुझको को देना दाता)

इतनी शक्ति मुझको देना दाता।
जग में काम सब के आ सकूं मैं।
चेहरे पर सब के खुशी का नूर ला सकूं मैं।
मन में सभी के घर कर के
खुशी की उमंग जगा सकूं मै।
हर रोते बिलखते चेहरों से।
उदासी की परत को हटा सकूं मैं।
हंसी की मुस्कान बन कर।
सभी के चेहरों पे ला सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझको देना दाता।
हर रोते बिलखते चेहरों से।
हर रोते बिलखते चेहरों से।
उदासी की परत को हटा सकूं मैं।।
मुस्कान चेहरे पे अपने लिए मैं।
औरों के काम आ सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझको देना दाता।
जग में अच्छे काम कर सकूं मैं।
अपने लिए न जी कर।
औरों के काम आ सकूं मैं।
बैर भावना को छोड़कर।
सभी को गले से लगा सकूं। ं
दूसरों की खुशी में भी।
अपनी खुशी को तलाश कर सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझको देना दाता।
जग में काम सब के आ सकूं मैं।
चेहरों पर खुशी का नूर बन कर।
सभी के दिलों पर राज कर सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
जग में काम सब के आ सकूं मैं।
हर रोते बिलखते चेहरों पे।
हसीं की मुस्कान ला सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
काम जग में अच्छे कर सकूं मैं।
हर रोते बिलखते चेहरों पे खुशी की उमंग जगाकर सकूं मैं।

देश में शहीद जवानों की कुर्बानीयों को ना भुला सकूं मैं।
उनके परिवारों के प्रति श्रद्धांजलि दे कर। श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकूं में।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
जग में काम अच्छे कर सकूं मैं।
हर रोते बिलखते चेहरों पे
खुशी का नूर भर सकूं मै।
सभी के दिलों से उदासी की परत को हटा सकूं मैं।

हंसी की मुस्कान बन कर।
खुशी छलका सकूं मैं।
उनके गम को अपना गम बना कर।उनको गले से लगा कर उनमें हौंसला जाऊं।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
जग में नेक काम कर के।
सब के काम आ सकूं मैं।

मुश्किल की हर घड़ी में उन सभी के काम आ सकूं।
हर एक की मुश्किलें मिटा कर सभी के हौंसले बढा सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझको देना दाता
जग में नेककाम करके।
हर मुश्किल को मिटासकूं मैं।
दीन दुःखियों की सेवा कर।
अपनें जीवन को सफल बना सकूं मैं।
इतनी शक्ति मुझ को देना।
जग में नेक काम करते।
खुशी खुशी से इस जहांन से जाऊं मैं।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई सभी जनों को गले से लगाऊं मैं।
जात पात के भेद को भुला कर दुश्मन को भी गले से लगाऊं मैं।
इतनी शक्ति मुझ को देना दाता।
हर एक के काम आ सकूं।
हर एक रोते बिलखते चेहरों से।
उदासी की परत को हटा सकूं मै। गरीबों की झुग्गी झोपड़ियों में जा कर उनके साथ हर पर्व का लुत्फ उठाऊं। उन की खुशी गम में शामिल हो कर अपना दर्द भूल जाऊं मै।
इतनी शक्ति मुझे देना दाता।
जग में नेक काम कर सकूँ मै।
हर रोते बिलखते चेहरों पर।
हसीं का नूर ला सकूँ मैं।

चाचा चौधरी

एक छोटा सा गांव था। गांव में एक किसान अपनी पत्नी और अपने बच्चों के साथ रहते थे। गांव के लोग उसे चौधरी चाचा बुलाया करते थे क्योंकि वह गांव में अपनी चौधर चारी के लिए प्रसिद्ध था। गांव में दूध बेचकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था चौधरी को सारे गली मोहल्ले वाले सभी पहचानते थे। वह लोगों को दूध बेचता था कई कई दिनों तक लोग दूध के पैसे भी उसे नहीं देते थे। उसका गांव में बहुत ही रुतबा था। वह शानो शौकत और ठाट बाट के साथ अपनी पत्नी के साथ बड़ी खुशी से अपना जीवन बिता रहा था। दूध बेचने जब भी जाता रास्ते में जो भी राहगीर मिलता उसे नमस्ते करता। वह भी बूढ़े लोगों का सत्कार करना और सभी के साथ प्यार से पेश आता था। कभी कभी रास्ते में थक हारकर लोगों की मंडली के साथ खूब गप्पे मारना उसका शौक था। कुछ अपनी कहना कुछ उनकी सुनना सब बातें उनकी दिनचर्या में शामिल थी। रोबिला चेहरा नाक उभरी हुई चौड़ी छाती लंबी लंबी मूछों वाला था। उसे देख कर अनुमान लगाया जाता था कि वह किसी खाते पीते घर का व्यक्ति होगा। पैरों में जूते तन पर लंबी धारी वाला कुर्ता ऐसा था चौधरी चाचा। उसकी पत्नी खूब लंबी मोटी हटटीकटटी। वह सारे दिन गफ्पे हांकनें के सिवा और कुछ नहीं करती थी। उसकी खासियत थी कि वह अपनी गाय की सेवा करती थी। बड़ी बड़ी आंखों वाली बाल घुंघराले पैरों में चप्पल पहनकर और माथे पर बडी सी बिन्दी। सफाई करती थी तो उस को देखकर लगता था कि रसोई में कहीं भी गन्दगी का ढेर नहीं होता था। चौधरी घर में आता जूते लेकर अंदर घुस जाता। चौधराईन उसे कहती मैं सारा सारा दिन सफाई करती रहती हूं। आप आ कर गन्दे जुतों से रसोई में घुस जाते हो। यह नहीं चलेगा। चौधरी रोब झाड़ कर अपनी पत्नी को चुप करा देता। वह कहता कि पत्नी का काम होता है घर की जिम्मेदारी संभालना। एक दिन चौधरी के दोस्त घर पर आए हुए थे चौधराईन बोली भाई जी आप सारा दिन क्या मटरगश्ती करते रहते हो। उनकी राह देखते देखते इतना वक्त हो जाता है। खाना पड़ा का पड़ा ही रहता है। चौधरी बोला कैंची की तरह जूबान मत चलाया करो। जितना बोलना है उतना ही बोला करो।अपने काम से काम रखा करो। चौधराइन भी थी चंडी का रूप। वह दोनों जब भी बातें करते तो सारा मोहल्ला इकट्ठा हो जाता। दोनों एक दूसरे को जली कटी सुनाते थे। दोनों ही कम नहीं थे। लड़ते-लड़ते थक जाते तो अपने अपने कमरे में गुस्सा होकर चल जाते परंतु थोड़ी देर बाद उनको देखकर किसी को भी आभास नहीं हो सकता था कि एक दूसरे से कभी लड़ाई भी करते होंगे। इस तरह काम करते-करते दिन गुजर रहे थे।
कभी चौधरी चाचा दूध देते नहीं पहुंचता लोगों की मंडली उसके घर पहुंच जाती कभी-कभी तो वह जानबूझकर ही देर से दूध बेचने जाता था। दूर-दूर तक उसकी पहचान थी। चौधरी के नाम से लोग उसके घर हर आने जाने वाले लोगों को पहुंचा ही देते थे।
सुरभि को पा कर वे दोंनो फूला नहीं समाते थे। सुरभि थी ही इतनी प्यारी। रंग से काली काली और आँखें भूरी भूरी। चौधराइन उसे हरा हरा घास खाने को देती थी। दूध बेचकर गुजारा करने वाला चौधरी सचमुच अपनें गांव में चाचा चौधरी के नाम से मशहूर हो गया। दोनों पति-पत्नी गाय की सेवा करते खुश रहते और गांव के लोगों को भी खुश रखते थे। वह गांव के लोगों से दूध के रुपए लेने नहीं जाता था खुद चल कर लोग उसके पास दूध की कीमत देने आते थे। वह कभी भी दूध में जरा भी पानी नहीं मिलाता था। यही कारण था कि लोग उस पर आंख मूंदकर विश्वास करते थे। उस से दूध खरीदते थे।
धीरे-धीरे दस पन्द्रह वर्ष गुजर गए। चौधरी चाचा पचास वर्ष का हो चुका था। उसकी पत्नी भी उम्र में उस से पांच साल ही छोटी थी। उसने अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर उन्हें बड़ा आदमी बना दिया था। और उनकी शादियां भी कर दी थी। चौधरी चाचा का व्यवहार भी ठीक नहीं था वह काफी बदल चुके थे। बात बात पर गुस्सा करना उनकी आदत में शुमार हो गया था। अपनी पत्नी को बात बात पर डांटना फटकारना उनकी आदत बन गया था। उनकी पत्नी ने तो चुप्पी साध ली थी। वह उन्हें कुछ कहना नहीं चाहती थी। जरा सा बोलने पर उसकी पत्नी को न जाने क्या-क्या सुनना पड़ता था। वह खामोश रह कर ही अपना काम किया करती थी। गाय की देखभाल भी ठीक प्रकार से नहीं कर पाती थी। जिस गाय को अपना बच्चा समझ कर उसका पालन-पोषण करती थी उसको उन्होंने अपने घर से निकाल कर कूड़ा कर्कट खाने के लिए मजबूर कर दिया था। उसका कारण यह था कि उनकी गाय भी बूढ़ी हो चुकी थी।। वह दूध भी नहीं देती थी।
चौधरी चाचा ने अपनी पत्नी को आदेश दिया कि इस गाय के लिए अब हमारे घर में कोई स्थान नहीं है। जब लोग उस सुरभि गाय को आवारा पशुओं के साथ बाहर चारा खाते देखते तो गांव वालों को बड़ा दुःख होता क्या वह वही चौधरी चाचा है?। या चौधरी चाचा मर गया। उसके रूप में दूसरे इन्सान नें शैतान चौधरी चाचा के रूप जन्म ले लिया जिसने अपनी गाय को कूड़ा कचरा खाने के लिए मजबूर कर दिया। कोई भी उसके सामने जूबान चलाने का साहस नहीं रखता था। ज़ुबान से कुछ बोलता तो उस व्यक्ति की तो मानो खैर नहीं। गांव वाले दुःखी थे मगर कुछ कह नहीं सकते थे। उन्हें उस गांव में तो रहना ही था। गांव वालों से शत्रुता निभाकर कोई कैसे जिंदा रह सकता है? सुरभि गाय जो एक हटटी खट्टी गाय हुआ करती थी कूड़ा कर्कट के ढेर में धूप में झुलस झूल कर उसकी ऐसी हालत हो गई थी कि कोई भी कल्पना नहीं कर सकता था कि क्या वह वहीं सुरभी गाय है जिसको चौधरी चाचा उसकी पत्नी बहुत ही प्यार किया करते थे?
लोग आपस में विचार-विमर्श करते। सारा खेल माया का ही है। माया रुपी धन दौलत हाथ में आते ही इंसान को कोई होश नहीं रहता। वह घिनौने से घिनौने कार्य करने लग जाता है। जो इंसान इतनी मेहनत करता था आज वह बैठ बैठ कर मोटा होता जा रहा था।
पहले गांव में आकर जब वह खूब शानो शौकत से दूध बेचता था खुश रहता था। लोगों के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार कर उनके साथ मजाक करता था। लोग उसके साथ उसकी मजाक भरी बातों में शामिल हो जाते थे। सलाम दुआ यहां तक कि छोटे से छोटा बच्चा भी चुपचाप जाकर उनकी गोद में बैठ जाता था। वह चौधरी चाचा अब तो अपने पास किसी को भी फटकनें नहीं देते थे। उनकी पत्नी पहले पूजा पाठ भी कर लिया करती थी परंतु घर के कलह क्लेश इतने बढ़ चुके थे कि भगवान का नाम लेना तो दूर की बात दोनों एक दूसरे की शक्ल भी देखना नहीं चाहते थे।
पहले वह चाहे लड़ाई किया करते थे उनकी लड़ाई में भी प्यार छुपा होता था।।

इसी तरह दिन व्यतीत हो रहे थे। धन दौलत की चकाचौंध चौंध नें उन्हें और भी बैचेन कर दिया। पहले भी शानोशौकत से रहते थे लेकिन इस ठाट बाट में और अब के ठाठ बाट में दिन रात का अन्तर था। एक दिन एक दूसरे गांव की औरत जमुना उस गांव में किसी काम के सिलसिले से आई। उसका छोटा सा बच्चा भी उसके साथ ही था। वह साहसी दिलेर और झुग्गी झोपड़ी में रहती थी। अपने बेटे को भी साथ में लाई थी। उस गांव से अपना काम निपटा कर घर की ओर जा रही थी उसने कूड़ा कर्कट के ढेर में से कचरा चबाते गाय को देखा। गाय की हालत देख कर उसे तरस आ गया। उसकी जान पहचान की औरत नें बताया कि इस गाय को इसी गांव में रहने वाले चाचा चौधरी नें बूढा हो जानें के बाद घर से बाहर कर दिया क्यों कि वह दूध नहीं देती थी। अपनी सहेली से बोलीे इतनी प्यारी गाय की क्या दुर्दशा कर दी है? इन सभी अमीर लोगों के चोंचले समझ में नहीं। जब गाय दूध नहीं देगी तो उसको घर से निकाल कर बाहर कर दिया यह कहां का न्याय है।ऐसे इंसान को तो कोड़े लगाने चाहिए।
गौ की सेवा करना हमारा फर्ज होता है। ऐसे इंसान को तो मरने के बाद भी नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी। वह इस गाय को अपनें साथ ले कर चली जाएगी। जब वह अपनी सहेली से बातें कर रही थी तो गांव वालों ने उसकी बातें सुन ली।। वह बोली पहले चौधरी चाचा से अपने साथ इस गाय को लेने की अनुमति ले लो। वह बोली मुझसे इस गाय का का दुःख देखा नहीं जाता। तुम लोगों को भी जरा रहम नहीं आया कि तुम गांव वाले मिलकर इस गाय लिए एक गौशाला बना देते। मेरे पास तो भगवान ने कुछ नहीं दिया है। मैं तो एक झुग्गी झुग्गी झोपड़ी में रहती हूं फिर भी इस गाय को खिलाने का साहस रखती हूं। मैं तो सड़कों पर दिन रात काम मजदूरी कर अपने बेटे का पालन पोषण कर रही हूं।
गांव वालों के इस प्रकार कहने पर जमुना जाकर चौधरी चाचा के घर दरवाजा खटखटाने लगी। चौधराईन ने दरवाजा खोला क्या है? आराम भी नहीं करने देते। क्या यही समय मिला था कुछ मांगने को?

तुम लोग हर किसी समय टपक पड़ते हो इतने में चौधरी आकर बोला जल्दी से यहां से निकलो वर्ना धक्के मार मार कर यहां से निकाल दूंगा। जमना बोली चौधरी बाबू गरीबों पर क्यों बिगड़ते हो? गरीबों की हाय लगते नहीं लगती। तुम तो मेरी बात बिना सुने ही अपनी कहे जा रहे हो। मैं तुमसे कुछ दान भिक्षा मांगने नहीं आई हूं। इतना कहने आई हूं कि जिस गाय को तुमने कूड़ा कचरा समझ कर सड़क पर छोड़ दिया है उसे मैं लेकर जा रही हूं। चौधरी बोला ठीक है ना ले जाओ किसने रोका है। मैं तो कहता हूं बला टली। अभी के अभी इसी वक्त ले जाओ। काम की ना काज की दुश्मन अनाज की। उसकी जली कटी बातें सुनकर जमुना पहले तो आग बबूला हो फिर अपने मन को समझाते हुए अपने आप से बोली।
चौधरी तो मिट्टी का माधो है। इसकी पत्नी बड़ी दयालुता का प्रतीक बनी बैठी है। चेहरे पर नकाब ओढ़े बैठी है। मरने के पश्चात उन दोनों को आभास होगा जब दोनों की आत्मा नर्क की आग में भटकेगी।अपने बच्चे को और गाय को साथ लेकर जमना वहां से चली गई। इस बात को छः महीने गुजर गए।
चौधरी और उसकी पत्नी दोनों की इतनी हालत नाजुक हो गई थी कि उनको कोई भी पानी देने वाला भी नहीं बचा था। जिस इंसान ने अपना दूसरा रूप धारण कर लोगों को अचंभित कर दिया था लोग उसके घर की ओर कभी रुख नहीं करते थे। कोई भी उसे किसी भी चीज के लिए नहीं पूछते थे। दोनों ही बिस्तर पर पड़े पड़े कराह रहे थे।।
जमना गाय को लेकर अपने गांव आ गई। जिस दिन वह गाय को लेकर आई उसने सोचा कि जब हमें खाना मिला करेगा तो इसे भी खाना खिला दिया करेंगे। जिस दिन खाना नहीं मिलेगा तो वह भी हमारे साथ उपवास रखेगी। जमना नें गाय को अपनी झोपड़ी के एक और बांध दिया था। वह पत्थर तोड़कर शाम तक जो कुछ भी लाती गाय को भी खिलाती और अपने आप भी खाती। बहुत दूर-दूर तक जाते समय गाय को भी अपनी साथ मे चुनें ले जाती। उसे चारा भी देती। गाय को चारा देना कभी नहीं भूलती थी।
एक दिन की बात है कि जमना जब सुबह सुबह उठ कर गाय को चारा देने गई तो देख कर हैरान हो गई शाम को वह गाय को पानी पिलाने के लिए जिस बर्तन को रख कर आई थी वह दूध से भरा हुआ था। उसकी गाय दूध देने लगी थी। वह चौक पर पीछे हट गई। उसने सुरभि के शरीर पर प्यार से हाथ फेरा। उसकी आंखों से खुशी के आंसू थे। उसने अपने बच्चे को भी दूध पीने को दिया और अपने आप भी पिया। वह बाजार में दूध बेचने लगी थी। धीरे धीरे कर के उसनें अपना मकान भी ले लिया। उस गाय नें उसे इस काबिल बना दिया कि उसे रहने के लिए छत मिल गई और अपने बच्चे का पेट पालने के लिए एक गाय।
एक एक बार वह उसी गांव में काम से अपनी सहेली से मिलने आई तो चौधरी के घर जाना नहीं भूली। वहां का नजारा देखने लायक था। दोनों चारपाई पर पड़े पड़े अपनी अन्तिम घड़ियां गिन रहे थे। इतना आलीशान मकान होते हुए भी दोनों के दोनों अकेले थे। उन दोनों को देखने वाला भी कोई नहीं था। पानी तक को भी पूछने वाला कोई भी नहीं था। उन की एसी अवस्था देख कर उसे दुःख भी हुआ और उनकी करनी पर गुस्सा भी आया।
उसनें अपने पहचान वालों को फोन करके चौधरी और चौधराईन को अस्पताल में दाखिल करवा दिया।उनकी देखभाल करती रही जब तक वे दोनों थोड़े चलने लायक हुए।वह दोनों को धन्यवाद देती हुई बोली मैं आप लोगों का कर्जा चुकाने आई थी। मैं किसी का उधार नहीं रखती। तुमने मुझे पहचान तो लिया ही होगा। मैं वही जमना हूं जिसको तुमने धक्के मार कर बाहर निकालने के लिए कहा था।
मैं आपकी गाय की बदौलत अपने घर में रहने लायक हो गई हूं। आपका धन्यवाद। वह उन दोनों को घर तक छोड़ने आई दोनों कुछ ठीक हो चुके थे। वह दोनों पछता रहे थे कि हमें धन की चकाचौंध नें अंधा कर दिया था जो हम सब कुछ भूल बैठे थे। शायद इस वजह से हमारी यह हालत हुई।
काश हमने अपनी सुरभि को बाहर निकाला न होता। आज उन्हें पता चल चुका था। उनके बच्चे भी उनके साथ नहीं थे। मुश्किल की घड़ी में उन को संभालनें वाला भी कोई नहीं था। शायद पहले किए गए अच्छे कर्मों की वजह से उसे जमना बचाने आई थी। हमें तो उसका शुक्रिया करना चाहिए। वह द्वार की ओर गये तब तक जमूना जा चुकी थी। उनके शब्द मुंह में ही रह गए हाय! हमने येे क्या कर डाला।

शैफाली

शैफाली अपनी मां के साथ एक छोटे से किराए के मकान में रहती थी। उस की मां आसपास के पड़ोस में बर्तन साफ करती और अपनी बेटी शैफाली को बहुत प्यार करती थी। प्यार से उसे शैफु बुलाती थी जब उसकी मां मालकिन के यहां झाड़ू पोछा बर्तन साफ करने जाती तो अपनी मालकिन की बेटी को पढ़ता देखती तो सोचती कि वह भी अपनी बेटी को आगे पढ़ा पाती। उसकी बेटी ने आठवीं के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया था। उसनें अपनी बेटी को पास के स्कूल में डाल दिया था। वह अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर एक बड़ा ऑफिसर बनाना चाहती थी ,परंतु पता नहीं भाग्य उसको क्या-क्या दिन दिखा रहा था। कहने को तो उसके पिता सरकारी ऑफिस मैं एक चपरासी थे परंतु उनको शराब की इतनी बुरी लत लग चुकी थी कि वह उनको उसको छोड़ना नहीं चाहते थे। जिस दिन शराब नहीं मिलती उस दिन घर के बर्तनों को पटकना शुरू कर देते। वह अपनी सारी कमाई शराब पीने में उड़ा देते थे जब शैफाली की मां कहती कि अगर तुम शराब पीना नहीं छोड़ोगे तो हम अपनी बेटी को अच्छे ढंग से पढ़ा लिखा नहीं पाएंगे। वह अपनी पत्नी को मारते और उसे भगा देते और कहते वह पढ़ लिख कर क्या करेगी? उसे तो दूसरे के घर जाना है।
शैेफाली के पिता को शराब की इतनी बुरी लत लग चुकी थी कि उससे छुटकारा पाना मुश्किल था। शराब पीकर वह कई दिनों तक नालियों में पड़े होते यही रोज का हाल था उस की मां सोचने लगी कि मैं अब क्या करूं। एक दिन तो हद ही हो ग्ई उसने शेफाली की मां की इतनी पिटाई की और कहा मुझे शराब पीनें के लिए रुपए दो ना देने पर खुद ही सारे ट्रंक छान मारे जब तक रुपए हासिल नहीं किए तब तक वह वहां से नहीं गए। यह सारा माजरा शेफाली देख रही थी। शेफाली के पिता ने अपनी पत्नी को जोर से धक्का दिया उसकी पत्नी का सिर दीवार से जा लगा पता नहीं कितनी देर तक शैफाली की मां बेहोश रही। शैफाली के पिता पर ना जाने क्या भूत सवार था वह चुपचाप रुपया लेकर बाहर निकले। उस दिन शैफाली की मां ने सोचा कि वह अपनी बेटी को लेकर कहीं दूर चली जाएगी। वह जल्दी से अपनी बेटी को लेकर जल्दी जल्दी अपनी मालकिन के यहां काम करने के लिए चली गई। अचानक घंटी की आवाज से उसकी मालकिन चौकी।
उसने झट से दरवाजा खोला और शैफाली की मां को डांटते हुए कहा आज तो तुमने इतनी देर कर दी और आज कल तुम देर से क्यों आ रही हो?। अगर इसी तरह चलता रहा तो मैं कोई और नौकर किराए पर रख लूंगी जब उसकी मालकिन ने यह शब्द सुने तब शेफाली की मां फूट फूट कर रोने लगी और उसने अपनी मालकिन के पैर पकड़ लिए और कहा बीवी जी मैं अपनी तरफ से तो जल्दी आने की कोशिश करती हूं परंतु मेरा मर्द उसने मेरी बेटी और मेरा जीवन नर्क बना दिया है। वह रोज शराब पीकर आता है। मैंने आपको नहीं बताया। वह रोज शराब पीकर ना जाने किस नाली में पड़ा रहता है कहने को तो वह सरकारी ऑफिस में चपरासी है। वह मुझे और मेरी बेटी को अच्छी जिंदगी दे सकता था परंतु उसकी शराब की लत के कारण उसने हमें दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर कर दिया है। आज तो वह मेरी बेटी की फीस के रुपए जो मैंने उससे छुपाकर रखे थे वह भी वह ले गया। आज तो मैं उस से सदा के लिए किनारा करके आई हूं। बीवी की कृपा करके हमें अपना एक कमरा किराए पर दे दे। मैं मेहनत मजदूरी करके आप की पाई-पाई चुकता कर दूंगी। मेरी पगार में से आप काट लेना कृपा करके मुझ पर और मेरी बेटी पर रहम करना इस छोटी सी बेटी को और ना जाने क्या क्या अभी देखना है। वह अब तो अपनी बेटी को उस नर्क की आग में और झौंकना नहीं चाहती। मैं अपनी बेटी को आगे पढ़ाना चाहती हूं और इसके भविष्य को बर्बाद होते नहीं देखना चाहती। मैं इस के भविष्य को उज्जवल बनाना चाहती हूं।
शैफाली ने मालकिन से कहा आंटी मेरे पापा ने मेरी मम्मी को इतनी जोर से धक्का दिया कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ रही। घर की मालकिन को शैफाली की मां पर दया आ गई। मालकिन ने उसके घाव पर मरहम लगाया और कहा कि जब तक तुम को किराए पर मकान नहीं मिल जाता तब तक तुम यहां अपनी बेटी के साथ रह सकती हो। पारो वहां रहने लगी वह रोज जल्दी से काम करती और एक दो घरों में भी काम करने जाती। उसने एक किराए का घर भी ले लिया था।
पारो ने अपनी मालकिन को कहा कि वह अपनी बेटी को आगे पढ़ाना चाहती है। मालकिन की बेटी शैफाली की बराबरी की थी। जब शैफाली उसको पढ़ते देखती वह उसको पढ़ता हुआ देखकर सब कुछ याद कर लेती थी इस प्रकार उसने परीक्षा की तैयारी की और प्राइवेट आठवीं और दसवीं की परीक्षा दी। एक दिन वह अपनी मां के पास आकर बोली मां मैं अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हो गई हूं। उसकी मां की आंखों में खुशी के आंसू बहनें लगे। शैफाली ने कहा कि मैं आपको अब काम नहीं करने दूंगी। मैं भी योग्य औफिसर बनकर आपका नाम रोशन करुंगी। एक दिन शेफाली के पिता अपने बॉस के यहां शादी पर गए । बौस नें उन्हें अपने परिवार वालों से मिलाया आज उनकी बेटी की मंगनी थी। उनके दोस्त के बेटे के साथ थी। शेखर प्रताप के बौस विश्वनाथ नें शेफाली के पिता को आवाज दी यहां आओ। शेखर प्रताप उसके पास गया और बोला बताइए क्या काम है? उसको इस तरह नशे में चूर देख कर उसे याद आ गया कि एक समय था जब वह भी पी कर आता था और अपनी पत्नी और बेटी को बहुत दुःख देता था। उसके मानस पटल पर सारा का सारा दृश्य उभर कर आ गया। वह भी अपनी पत्नी और अपनी बेटी को बहुत दुख देता था जिसके कारण उसकी पत्नी आज अपनी बेटी की शादी को देखने के लिए जीवित नहीं थी। उसने अपनी पत्नी और बेटी को इतना दुख दिए कि उसकी पत्नी को बड़ी मुश्किल से गुजारा करना पड़ा। वह अपने दोस्त के पास मदद मांगने गया। उसके दोस्त ने उसकी इस हालत के लिए उसे ही जिम्मेवार ठहराया। उसके दोस्त ने उसे कहा कि अगर आज तुमने शराब छोड़ दी होती तो अपनी पत्नी को यूं मरने नहीं देता। उसके दोस्त ने उसे कुछ रुपए दिए। अपनी पत्नी का इलाज कराने के लिए और कहा कि मेरे मित्र डॉक्टर राजेश है तुम उनके पास जाकर उन्हें उनके हॉस्पिटल में मिलो।

एक दिन डॉक्टर राजेश के क्लीनिक में उनसे जाकर मिला। शेखर प्रताप को अपनी कहानी सुनाते सुनाते उसकी आंखे भर आई। वह बोला एक दिन मेरी पत्नी श्वेता को मेरी गोद में डाल कर सदा के लिए मुझे रोता बिलखता छोड़कर मर गई। मरते समय उसने मुझसे वादा किया था कि आप मेरे सिर पर हाथ रखकर कसम खाओ कि तुम कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाओगे। मैंने उसे वचन दिया और कहा कि मैं नशे में इतना डूब गया था कि शराब के सिवा कुछ और मुझे दिखाई नहीं दे रहा था। मुझे माफ कर दो। उसके मरने के पश्चात मैंने अपनी बेटी को मां और बाप दोनों का प्यार देकर उसे पाला और अपनी दोस्त की सहायता से उसकी सलाह से मैंने अपनी बेटी के जीवन को नर्क में धकेलनें से बचा दिया। मैंने खूब मेहनत की अपनी बेटी को इंजीनियर बनाया और आज उसी मित्र की बेटी के साथ अपनी बेटी की मंगनी करने जा रहा हूं।
आज मैं बहुत खुश हूं। तुम भी मेरी तरह नर्क में डूब रहे हो। अपने बॉस की बातें सुन कर उसकी आंखों से आंसू आ गए।
शेखर प्रताप सोचने लगा आज मैंने भी अपनी बेटी के जीवन को नर्क बना दिया है। मैंने तो उसकी बीच में ही पढ़ाई छुड़वा दी और मैंने अपनी पत्नी को भी बर्तन मांजने और दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर कर दिया। मैंने अपनी पत्नी को कभी कोई सुख नहीं दिया और अपनी बेटी को भी शिक्षा से वंचित रखा। मुझे इसके लिए भगवान भी कभी माफ नहीं करेंगे। वह जल्दी ही वहां से चला गया।

सबसे पहले शैफाली की मां की मालकिन के वहां पर पहुंचा। मालकिन नें दरवाजा खोला तो अपने सामने एक अधेड़वस्था के आदमी को खड़ा पाया। शेफाली की मालकिन ने कहा कि तुम कौन हो और तुम यहां किसी से मिलने आए हो? शैफाली के पिता ने कहा कि मैं यहां अपनी बेटी से और उसकी मां से मिलने आया हूं। मालकिन ने गुस्से से कहा आज तुम्हें इतने वर्षों पश्चातउनकी सुध आई है या तुम उनसे कुछ लेने आए हो यहां से चले जाओ वर्ना मैं तुम्हें डंडे मार मार कर यहां से भगा दूंगी। शैफाली के पिता मालकिन के पैरों पर पड़ गये और कहा कि कृपया मुझे माफ कर दीजिए। मैं पूरी तरह सुधर चुका हूं। मेरी आंखें खुल चुकी है। मैंने अपनी बेटी के भविष्य को संवरने से पहले ही उजाड़ दिया। मैं ऐसा अभागा बाप हूं। अब वह पूरी तरह से सुधर चुका है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा।
एक बार मुझे अपनी पत्नी और बेटी के घर का पता बता दो मैं उनसे माफी मांग कर सदा के लिए उनसे दूर चला जाऊंगा। मालकिन को भी यकीन हो चुका था कि वह सचमुच में ही बदल चुका था।
मालकिन शेफाली के पिता को वहां लेकर गई जहां पर शैफाली की मां अपनी बेटी के साथ किराए के मकान में रहती थी। उसने दरवाजे पर दस्तक दी। शेखर अपनी बेटी को देखकर फूट-फूटकर रो पड़ा और उसने आते ही अपनी बेटी को गले से लगाया और उसे प्यार करते हुए बोला बेटी मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें और तुम्हारी मां को बहुत दुख दिये मैं पहले वाला पियक्कड़ नहीं रहा।
मैंने तुम्हें शिक्षा से वंचित रखा ना जाने शराब के नशे में मैं अपनी बेटी और अपनी पत्नी के प्यार को समझ ही नहीं सका अब मेरी आंखें खुल चुकी है। उसकी मालकिन ने कहा तुम्हारी बेटी छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ा कर खुद भी पढ़ रही है और उन छोटे बच्चों को पढ़ा कर अपनी मां का हाथ भी बंटा रही है। दसवीं की परीक्षा में भी अच्छे अंक लेकर उतीर्ण हुई है। शैफाली के पिता ने कहा हो सके तो बेटा मुझे माफ कर देना।
शेफाली की मां रसोई से निकली तो अपने पति को वहां देख कर आग बबूला हो गई और बोली चले जाओ यहां से। तुम यहां पर कभी मत आना।
शैफाली नें अपनी मां को कहा कि एक बार तो हमें इन को माफ कर देना चाहिए देर से ही सुधरे। सुधरे तो सही। उस के पिता ने अपनी पत्नी और बेटी से कहा मैं अब चलता हूं।शैफाली ने अपने पिता का हाथ पकड़कर कहा कि मम्मी इतने दिनों के बाद हमारे घर में उजाले की किरण दिखाई दी अब मैं पुनः उन्हें खोना नहीं चाहती। मैं अपने मम्मी और पापा दोनों के प्यार को पाना चाहती हूं। बचपन में तो अपने पिता के प्यार से वंचित रह गई थी। मैं आप दोनों का प्यार फिर से पाना चाहती हूं उसने अपने पापा का हाथ पकड़कर प्यार से सहलाते हुए कहा पापा जाओ हमने आपको माफ कर दिया। उसकी मम्मी ने कहा अच्छा मैं भी तुम्हें माफ करती हूं। आज अगर मेरी बेटी तुम्हें नहीं रोकती तो मैं तुम्हें कभी स्वीकार नहीं करती। एक बार सारा परिवार फिर से मिल गया।

हमारा भारत देश

27/9/2018

हमारा देश प्यारा प्यारा, सारे जग से न्यारा।

इस धरती पर जन्म ले कर हमने, अपना जीवन संवारा।।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं।

एक जुट होकर सभी मिलजुल कर, हर उत्सव त्योहार खुशी खुशी मनाते हैं।

बैर भावना को मिटा कर सभी शांति और अमन का संदेश फैलाते हैं

हमारा देश सुन्दर सुन्दर सारे जग से न्यारा।

इस धरती पर जन्म ले कर हमने अपना जीवन संवारा।।

कहीं पर्वत कहीं मरुस्थल, कहीं कल कल बहती नदियां।
ऊंचे ऊंचे शिखर इसके सुन्दर सुन्दर घाटियां।।

धरती के अद्भुत, प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाती इसकी नदियाँ।।

कलकल करते झरनें, सुन्दर सुन्दर वादियां।।
नदियां तृषित धरा को सरस बना देती हैं।

हरे भरे खेतों में परिवर्तित कर हरियाली ला देती है।।

हर मानव में उल्लास भर कर खुशियों को महका देती है।

लंबे चौड़े वृक्ष इसके, कितनी महकती कलियां।

रंग बिरंगी छैल छबीली, इस की मनमोहक पत्तियां,

कितनी प्यारी कितनी सुंदर, इसकी न्यारी कलियां।।
हमारा देश बड़ा ही प्यारा सारे जग से न्यारा।

इस धरती पर जन्म ले कर हमें अपना जीवन संवारा।

बर्फ के आच्छादित पर्वतश्रंखलाएं इसकी शोभा बढाती हैं।
पर्यटकों को लुभा कर इस देश की छवि को यूं ही दिन रात बढ़ाती हैं।।

हमारा प्यारा भारत कितना सुन्दर, कितना न्यारा।

इस धरती पर जन्म ले कर हमने अपना जीवन संवारा।।

भारत के उत्तर में खड़ा हिमालय एक प्रहरी बन कर।

दक्षिण भाग तीनों ओर समुद्र से घिरा एक कर्मस्थली बन कर।।

भारत की इस पुण्य धरती पर ऋषि मुनियों ने जन्म लिया।

रामकृष्ण बुद्ध, गुरु नानक जैसे महापुरुषों ने भी जन्म ले,

इस पावन धरा को अपने पुण्य कार्यों से कृतार्थ किया।।

कवि तुलसीदास, कालीदास, सूरदास और मीरा की वाणी ने इस देश को गौरवान्वित किया।

अपने काव्य की अलौकिक छटा से सब को मंत्रमुग्ध किया।।

मेरा प्यारा देश भारत कितना सुन्दर कितना न्यारा।।

प्यारा प्यारा देश हमारा। सारे जग से न्यारा।

इस धरती पर जन्म ले कर हमने अपना जीवन संवारा।।

मेरी रानी बिल्ली

मेरी रानी बडी़ ही सयानी
जैसे हो वह घर की महारानी।
रंगइसका श्वेत और मखमल जैसा।
बिल्कुल मक्खन की टिकिया जैसा।
रानी सुनकर दौड़ लगाकर मेरे पास आती है।
अपनी नीली और चमकदार आंखों से सब के मन को लुभाती है।
दूध रोटी और बिस्किट चबा चबा कर खा जाती है।
कभी कभी चूहों को भी खा जाती है।
पूंछ हिला कर कहती है म्याऊं म्यांऊ।
जैसे कह रही हो चार कटोरे मलाई खाऊं।
चुपके से बालकनी में आ कर जोर से गुर्राती है।
पूंछ हिला हिला कर अपनी खुशी झलकाती है।
उसके साथ दौड़ लगा कर खुद भी बच्चा बन जाती हूं।
उसके साथ झूम झूम के गाना उसे सुनाती हूं।
द्वार की घंटी सुनकर कान खड़े कर देती है। द्वार की ओर भाग कर मेहमानों का स्वागत करती है।
कभी कभी चूहों को खाकर बाहर दौड़ लगाती है।
अपनी पूंछ हिला हिला कर अपना राग सुनाती है।
फुदक कर फुदक करकभी छज्जे पर चढ़ जाती है।
सर्दियों के दिनों में छत पर मंडराती रहती है।
हर आने जाने वाले पर नजरें गाढे रहती है। छोटे-मोटे कुत्तों को भी डरा कर धमकाती है पूंछ हिला हिला कर अपनी हेकडी उन्हें दिखाती है।
गर्मियों में कभी सोफे कभी कुर्सी के नीचे सो जाती है।
चुपके से आंख खोल कर मेरे साथ बिस्तर में घुस कर खूब शोर मचाती है।
नित्य कर्म के लिए उसे बाहर लेकर जाते हैं। कभी बाग में कभी खुले में उसके साथ दौड़ लगाते हैं।
मेरी रानी बडी़ ही सयानी।
जैसे हो वह घर की महारानी।

बदला

एक किसान था उसकी पत्नी और एक बेटा था। वह अपनी पत्नी और बच्चे को हमेशा खुश रखता था। वह दिन रात खेत में मेहनत करके कमा कर लाता था। उससे उसकी आजीविका चल रही थी खेत में खुदाई कर रहा था तो उसने देखा खुदाई करते करते एक सांप उस की चपेट में आ गया था सांप तो मर गया था सांप का छोटा सा बच्चा था । सांपिन वहां नहीं थी ।वह सोचने लगा अगर वह सांपिन जिंदा होगी तो वह जरुर हमसे बदला लेगी ।चाहे बदला ले या कुछ भी हो मैं इस बच्चे को घर ले जाऊंगा आज से यह मेरा बेटा होगा ।मेरा एक बेटा है आज से मेरे दो बेटे होंगे ।उसने सांप के बच्चे को टोकरी में डाला और अपने घर ले आया ।सांपिन ने उस किसान को देख लिया था ।सांपिन जैसे ही अपने बिल में आई उसका सांप मरा पड़ा था। रो-रो कर उसने अपना बुरा हाल कर दिया था। उसको मालूम हो गया था कि किसान ने उसके पति को मार दिया था मेरा बच्चा भी शायद उसने मार दिया होगा ।उसने अपने पति को वचन दिया कि मैं इसको मार कर ही दम लूंगी,तब मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी मैं कसम खाकर कहती हूं कि आज मैं भी इस के घर के एक-एक सदस्यों को मार कर ही दम लूंगी ।किसान हर रोज खेत में काम करने हल जोतने जाता था ।उसकी कुदाली में खून लगा था । सांपिनको पता लग गया था कि ये काम किसान का ही है। उसने ही मेरे पति की जान ली है ।वह किसान के पीछे पीछे उसके घर तक आ गई ।किसान तो घर के अंदर चला गया था था वह घर के बाहर ही इंतजार करने लगी कब यह घर का द्वार खोले या खिड़की खोले जिससे वह अन्दर घुस सके। किसान को जैसे ही बाहर जाते देखा कि किसान की पत्नी ने खिड़की खोल दी।खिड़की के एक कोने से सांपिन आ गई और बिस्तर के एक कोने में छिप गई ।वहां पर किसान का बेटा एक चटाई पर खेल रहा था। चटाई पर सभी ने उसे खेलते देख लिया था।सांपिन ने किसान के बेटे को डस लिया खिड़की के बाहर जब सांपिन जा रही थी तो किसान ने देख लिया था। वह अंदर से आ कर दौड़ता दौड़ता चिल्लाया चीकू चीकू चीकू ।किसान की पत्नी ने भी सांपिन को बाहर निकलते देखा ।किसान को आभास हो गया था कि सांपिन अपना बदला लेने आई है उसने हमारे बच्च को शायद डस लिया होगा अंदर जाकर किसान की पत्नी और किसान ने देखा कि उसके बेटे को सांपिन ने डस लिया था वह जोर जोर से चिल्लाने लगी बचाओ- बचाओ वह दोनों उसे अस्पताल तो ले जाना चाहते थे मगर उनके गांव में कोई भी अस्पताल नजदीक नहीं था ।उसके पास इतने अधिक रुपए नहीं थे जिसे वह अपने बच्चे को बचा पाते। उनके बेटे के मुंह से झाग निकल रहा था ।वह मर चुका था। दोनों ने अपने बेटे को दाह संस्कार कर दिया । वह दोनों गुमसुम रहने लगेथे। किसान बोला अब यह सांप का बेटा ही हमारा बेटा है ।हम उस सांप के बेटे को ही अपना बेटा समझ कर पाल लेंगे ।हम दिन-रात उसकी देखभाल करेंगे जैसे अपने बेटे की करते थे। मुझे लगता है कि सांपिन को उसके बेटे को मारकर कुछ राहत मिली थी । वह किसान को मारने आई ।वह खिड़की के सहारे अंदर छिप कर घूम रही थी। वहां का दृश्य देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई वहां पर किसान और उसकी पत्नी सांप को दूध पिला रही थी। उसे देख कर रो पड़ी। यह दृश्य देखकर वह हैरान हो गई मैंने तो उसके घर के चिराग को मार दिया। किसान ने भी तो बिना सोचे समझे उसके पति को मार दिया था। उसे क्या पता था उसका बच्चा जीवित है ?वह उसे अपने बच्चे जैसा ही प्यार दे रही थी। उसकी आंखों से आंसू छलक गए। अगर उसने अपने बच्चे को इस तरह देखा होता तो उस दिन मैं उनके बच्चे को नहीं मारती इन्होंने भी तो अपने बच्चे को खोया है मैंने अपना बदला इसके बच्चे को मार कर ले लिया है ।मैं देखना चाहती हूं कि यह सच में ही वे उसे अपना बेटा मानते हैं या नहीं ।जब सांपिन ने देखा कि किसान और उसकी पत्नी सांप को हर रोज दूध पिलाते थे सांपिन ने कहा अगर मैंने अपने सांप को सच्चे दिल से प्यार किया है तो इन किसान और उसकी पत्नी को कहीं से भी एक बच्चा दे । मैंने हमेशा अपने पति के अतिरिक्त किसी सांप की और देखा भी नहीं ।मैंने भी इनके बच्चे को भी अनजाने में मार दिया। वह मंदिर में चक्कर काट रही थी किसान और उसकी पत्नी ने देखा उन का दरवाजा किसी ने खटखटाया? किसान की पत्नी ने किसान को कहा हमारे घर का दरवाजा कोई खटखटा रहा है। किसान ने दरवाजा खोल दिया उसके सामने एक सेठ और सेठानी खड़े थे। उनकी गोद में एक बच्चा था ।उसके हाथ में अटैची थी ।सेठानी ने किसान के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा कृपया हमारे बच्चे को बचा लो ।इस को सांपिन ने काट लिया है ।हमारे पीछे गुंडे पड़े है ।अभी भी हमसे हमारा बच्चा छीनने आ रहे हैं । तुम अगर हमारे बच्चे को बचा लोगे तो भगवान तुम्हारा भला करेगा! वह बच्चे को छोड़कर वहां से चले गए ।किसान ने बच्चे को पकड़ लिया था और दरवाजा बंद कर दिया था ।किसान रो रहा था आज फिर इस बच्चे को सांप ने काट लिया ।हे भगवान !इस बच्चे को बचा लो मैं इस बच्चे को अस्पताल ले जाता हूं तो यह रास्ते में ही यह दम तोड़ देगा ।अगर उन गुंडों ने इस बच्चे को देख लिया तो वे इस बच्चे को भी पकड़ लेंगे ।मैं इस बच्चे के गले से सोने का लॉकेट निकाल लेता हूं। वे लौकट छिननेके लिए इस बच्चे को पकड़ रहे होंगे ।किसान ने उसका लौकट अपने कमीज में छुपा लिया। किसान की पत्नी अपने पति किसान की तरफ देखकर बोली चलो इस को बचाते हैं । सापिन खिड़की से सब कुछ देख रही थी ।उसने अपनी मणि नीचे गिरा दी थी ।किसान ने देखा मणि उसके सामने पड़ी थी ।वह चौका उसने चुपचाप मणि को उस बच्चे के काटे हुए स्थान पर लगा दिया। उस मणि ने सारा जहर चूस लिया था वह बच्चा बच गया था दोनों ने उसे हल्दी वाला दूध पीने को दिया। वह दोनों बच्चे को जिन्दा पाकर खुश थे ।थोड़ी देर के लिए सोचनेे लगे कि हमारा बेटा वापिस आ गया है । यह तो उस सेठ -सेठानी का बेटा है ।चलो इस बच्चे की जान तो हमने बचा ली है ।कुछ दिनों तक तो सांपिन उनके घर नहीं आई। उसे मालूम हो गया था कि इन दोनों को बच्चा मिल गया है । बच्चा चाहे किसी का भी हो ।सेठ -सेठानी को उन गुंडों ने मार दिया था ।किसान जब खेत में जा रहा था उसे चौराहे पर सेठ और सेठानी मरे हुए मिले। पुलिस छानबीन कर रही थी किसान और उसकी पत्नी ने उस बच्चे से पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या है?वह बोला चीकू ।किसान और उसकी पत्नी की आंखों में आंसू छलक आए। वह बोले आज हमारा चीकू वापिस आ गया है । वह चीकू को अपना बेटा मानने लग गए थे ।सांपिन बीच-बीच में अपने बच्चे को देखने आती थी ।एक दिन सांपिन के मन में आ गया कि कहीं वह किसान और उसकी पत्नी उस बच्चे को पाकर मेरे बच्चे के साथ अन्याय तो नहीं कर रहे हैं। वह मेरे बच्चे को भी प्यार करते हैं या नहीं मुझे इनकी परीक्षा लेनी होगी। सांपिन ने एक सपेरे का रूप धर लिया। वह महात्मा बनकर वहां पर पहुंच गए। किसान से बोले यहां पर कौन-कौन रहता है ?किसान बोला मेरे दो बेटे हैं । चीकू और मीकू। संपेरा बोला तुम्हारा एक ही बेटा इधर दिख रहा है ,दूसरा बेटा कहां है मुझे यहां पर शराब की गंध आ रही है। तुम्हारे घर में सांप है क्या ?वह बोला तुम्हें कैसे पता चला ?वह सांप नहीं है वह हमारा बेटा है ।इसका नाम निक्क है।वह बोला इस सांप को मुझे दे दो। वह बोला इसको मैं किसी भी कीमत पर नहीं दे सकता। मुझसे बड़ा भारी अपराध हो गया था ।मैंने इसके पिता को अनजाने में मार दिया। मैंने उस दिन कसम खाई थी कि चाहे मेरी जान भी चली जाए मैं उसे किसी को भी नहीं दूंगा ।संपेरा बोला चलो ,अच्छा कोई बात नही तुमं इस बच्चे को मुझे दे दो ।वह बोला मैं इसे नहीं दूंगा मेरे दो बच्चे हैं ।वह दोनों मेरी जान है ।तुम मुझे मार दो ।मेरी पत्नी को मत मानना क्योंकि मेरी पत्नी ने इन दोनों को पालना है ।कृपया मेरी पत्नी को मत मारना। संपेरा बोला बातें मत बनाओ। अच्छा अगर तुम यह यह बच्चा नहीं देना चाहते तो यह मणि मुझे दे दो। किसान बोला ठीक है मेरे दोनों बच्चों को छोड़ दो। इस मणि को ले जाओ हमें इस मणि से कुछ नहीं लेना। संपेरे ने मणि उठा ली थी। सपेरा मणि को ले करअचानक बाहर निकल गया । सांपिन का रूप धर कर खिड़की के झरोखों से देखा दोनों पति पत्नी ने मेरे बच्चों को अपने बच्चे जैसा प्यार दिया है ।वह दोनों सच्चे हैं ।मेरा बदला अब पूरा हुआ ।बाहर निकलकर वह सांप के बिल में पहुंच गई ।जहां पर सांप मरा पड़ा था। सांपिन वंही पर पंहुच गई जंहा उसके साथी ने अपनी जान दे दी थी।वह मर कर अपने सांप के पास पहुंच गई थी ।उसने किसान और उसकी पत्नी को छोड़ दिया था ।जब किसान बाहर आया तो उसके घर के बाहर सांपिन मरी पड़ी थी ।मणि वही पर पड़ी थी। किसान रो रहा था किसान को सारा माजरा समझ आ चुका था। वह अपने बेटे को देखने आई थी।शायद संपेरे के के वेश मे किसान ने उसे जला दिया था। आज किसान खुश था ।आज उसके दिमाग से सारा बोझ हट चुका था ।ं

किसान और उसका समझदार बेटा

एक किसान था उसके एक बेटा था। एक बार उसकी पत्नी बहुत बीमार हो गई ।किसान की पत्नी ने अपने पति से कहा कि मेरा बचना बहुत मुश्किल है ।तुम दूसरी शादी मत करना। कुछ दिन बाद उसकी पत्नी मर गई। किसान ने कुछ दिन तो अपने बेटे को लेकर समय बिताया परंतु एक दिन वह अपने बेटे के लिए दूसरी मां ले आया। वह उसकी असली मां नहीं बन सकती थी ।

उसकी सौतेली मां के भी एक बेटा हो चुका था। वह रामू को फूटी आंख नहीं सुहाती थी वह इसी उधेड़बुन में रहती थी कि वह कब इस बच्चे से छुटकारा पाए इसके लिए वह तरह तरह की योजना बनाती रहती थी।एक दिन उसने अपने पति से कहा कि तुम अपने बच्चे को कहीं पर छोड़ आओ। जहां सेे वह कभी यहां वापस ना आ सके। किसान ने कहा कि मैं अपने बच्चे के बारे में ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोच सकता हूं। उसकी पत्नी ने कहा कि तुमने अगर उसे नहीं छोड़ा तो मैं उसे किसी ना किसी तरीके से मरवा दूंगी ।तुम उसे किसी दूर स्थान पर छोड़ आओ। जिससे कभी भी वह वापस ना आ सके। किसान अपने बेटे को मरता नहीं देख सकता था। उसकी पत्नी ने उससे कहा कि तुम अपने बेटे को कहना कि दूर के रिश्ते में तुम्हारे चाचा के बेटे की शादी है उसे भी साथ ले जाना और रास्ते में कहीं पर छोड़ आना। सुबह बेटा जब जागा तो उसने अपने पापा को तैयार होते देखा तो बोला पिता जी आप कहां जा रहे हो? उसका पिता बोला मैं तुम्हारे चाचा के बेटे की शादी में जा रहा हूं।

तुम भी मेरे साथ चलो बेटा मान गया। वह भी अपने पिता के साथ चलने के लिए मान गया जब वह काफी दूर निकल आए। उनको चलते चलते शाम होने को थी उसके पिता ने एक सराय के पास उसको बैठने का इशारा किया और कहा बेटा जरा में लघुशंका से निवृत होकर आता हूं तब तक तुम मेरा यही पर इंतजार करना। उसने अपना बैग अपने बेटे के पास थमा दिया और चुपचाप वहां से खिसक गया ।जब काफी देर तक उसके पिता नहीं आए तो बेटे को चिंता सताने लगी। सोचनें लगा उन्हें इतनी देर तो नहीं लगनी चाहिए थी। वह अपने पिता को ढूंढते-ढूंढते पुकारने लगा। दूर-दूर तक भयानक जंगल में उसकी पुकार सुनने वाला कोई नहीं था। अंधेरा भी होने वाला था वह चुपचाप आहिस्ता आहिस्ता चलने लगा

अचानक उसे एक घर दिखाई दिया ।वहां से रोशनी आ रही थी ।वह एकदम अंदर जाने ही वाला था वहां पर एक जिन्न जैसी भयानक शक्ल वाला आदमी खड़ा था। वह भयानक राक्षसथा। राक्षस ने उससे कहा बेटा डरो मत मैं तुम्हें कुछ नहीं करुंगा। मेरा भी तुम्हारे जैसा ही एक बेटा ह। मेरी शकल सूरत पर मत जाओ देखने में तो मैं तुम्हें डरावना प्रतीत होता हूं परंतु तुम्हें मुझ से डरने की कोई आवश्यकता नहीं आओ थकान दूर करो। मैं तुम्हें खाना देता हूं। किसान के बेटे का डर के मारे बुरा हाल हो गया था उसका भूख के मारे बहुत बुरा हाल था। उसने आव देखा न ताव फटाफट खाना खाने लगा। खाना खाकर उसने एक पलंग की ओर इशारा किया और उस पलंग पर सो सोने के लिए कहा। किसान का बेटा अंदर आराम करने के लिए चला गया। राक्षस ने कहा बेटा आज तो मैं भी थक गया हूं मैं भी विश्राम करना चाहता हूं सुबह तुम से बात करूंगा। किसान का बेटा अंदर चला गया और चुपचाप जैसे ही चारपाई पर बैठा उसकी आंखों से नींद तो कोसों दूर थी। वह सोचने लगा कि हो ना हो यह राक्षस उसे जरूर खाएगा शक्ल से वह राक्षस बुढा नजर आ रहा था उसे दिखाई भी नहीं कम देता था। किसान का बेटा सोचने लगा कि मैं इस राक्षस से अपने आप को कैसे बचाएं। उसके दिमाग में एक योजना आई। पास में ही उस राक्षस का बेटा सोया हुआ था ।वह इतनी गहरी नींद में सोया था कि वह बिल्कुल भी हिल डुल नहीं रहा था। शायद उस राक्षस ने उसे भी कोई नशे की गोली खिलाकर सुला दिया था।

राक्षस जब सोने जा रहा था तो उसने राक्षस को अपने घर के पास एक मोटा सा पत्थर रखते हुए देख लिया था। रामू को लगा कि राक्षस उसे खाने की योजना बना रहा है और उसने पत्थर इसलिए रखा है ताकि वह यहां से भाग ना सके। रामू ने अपनी चारपाई को खिसका कर वहां लगा दिया जहां राक्षस का बेटा सोया था और अपने आप राक्षस के बेटे की चारपाई को वहां लगा दिया जहां राक्षस उसे चारपाई दिखा गया था। वह चुपचाप सोने का नाटक करने लगा ।रात के 3:00 बजे थे उसको राक्षस अपने कमरे की ओर आता दिखाई ।उसने राक्षस के बेटे को भी पूरी तरह चादर ढका दी थी और पूरी तरह से अपने आप को भी चादर से ढक लिया था राक्षस आया उसने उस चारपाई पर से सोए सोए ही उस बेटे को उठाया और बाहर एक ही वार के प्रहार से उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए ।वह किसान का बेटा यह सब देख रहा था। उस राक्षस नें आधी रात को अंधेरे में अपने ही बेटे को खा लिया था। उसने वहां पत्थर भी वहां से हटा दिया ।वह राक्षस सोचनें लगा कि मैंने तो अब उस बच्चे को खा ही लिया है। उस पत्थर को वंहा पर् रखने से क्या लाभ उसने पत्थर को वहां से हटा दिया ।डर के मारे रामू बुरी तरह से काम्प रहा था। उसने राक्षस को दोबारा अपने कमरे की ओर जाते देखा ।राक्षस सोने चला गया था। किसान का बेटा जल्दी जल्दी उठा और वहां से भाग निकला भागते-भागते वह सोचने लगा कि मैं कहां जाऊं क्या करुं? मैं अपने घर घर जाऊंगा तो शायद कहीं मेरी सौतेली मां मुझे फिर से कहीं घर से निकाल ना दे ।उसने मेरे पिता को भी अपने साथ मिला लिया है अब मैं कहां जाऊं। सुबह होने को थी वहां से वह भाग गया सुबह जब राक्षस जगा तो अपने बेटे को जगाने के लिए उठा तो देखा वहां उसका बेटा ना था। अब तो उसे समझ समझते देर नहीं लगी कि उसने जिस बच्चे को खा लिया था ।वह तो उसका अपना ही बेटा था राक्षस सिर पटक पटक कर मर गया। बच्चा भागते-भागते बहुत दूर आ गया था। काफी दूर चल कर उसे एक घर दिखाई दिया। वहां पर अंदर चला गया वह एक साहूकार का घर था।साहूकार के पास गया और बोला बाबा मैं बहुत ही थक गया हूं। मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है एक बाबा है पर वह भी पता नहीं कंहा है? मुझ से बिछुड गए हैं। अब तो मैं अकेला हूं। मैं आपके घर का काम कर दिया करुंगा ।कृपया मुझे खाना खिला देना। साहूकार ने कहा कि मेरा बेटा भी तुम्हारे जैसा था ना जाने वह कहां चला गया है? उसको आज गए हुए तीन साल हो चुके हैं मगर वह आज तक वापस नहीं आया है ।तुम मेरे बेटे जैसे हो। साहूकार ने उसे बड़े प्यार से खाना खिलाया और कहा बेटा जब तक तुम यहां रहना चाहते हो तब तक तुम यहां रह सकते हो इतना प्यार देखकर किसान के बेटे की आंखों से आंसू आ गए। साहूकार ने यह घोषणा की थी कि अगर कोई उसके बेटे को सुरक्षित यहां लेकर आएगा उसे वह अपनी आधी संपत्ति का वारिस बना देगा। किसान का बेटा सोचने लगा कि काश अगर मुझे साहूकार का बेटा मिल जाए तो मैं उसे साहूकार के बेटे को उस से मिलवा दूंगा तब मुझे भी संपत्ति मिल जाएगी और मेरे घर रहने का ठिकाना भी हो जाएगा रात को वह सोने जा ही रहा था तो उसे अपनी मां दिखाई दी। उसने अपनी मां को बताया कि उसकी सौतेली मां ने उसे घर से निकाल दिया था। उसकी मां ने कहा बेटा निराश मत हो। मैंने तुम्हें चारों कोनों में अपनी अस्थिया दबाने के लिए कहा था। जब तुम्हें किसी वस्तु की बहुत ही जरुरत होगी तब तुम वहां से एक-एक करके निकाल लेना सुबह जब उठा तो उसे स्वपन की बात याद आई वह अपने घर की ओर चलने की योजना बनाने लगा ।उसने अपना वेश बदला और वहां पर चलने के लिए तैयार हो गया और अपने घर पहुंच गया। वहां पर उसने अपनी सौतेली मां को और पिता को देखा। उसने भेष बदला हुआ था इसलिए उसे उन दोनों ने नहीं पहचाना। उसने अपनी सौतेली मां को कहा कि वह बहुत दूर से आया है ।यहां के प्रधान जी से मिलना चाहता है ।प्रधान जी नहीं मिले वह कहीं गए हुए थे इसलिए वह यहां चला आया। उसकी सौतेली मां ने कहा कि बेटा कोई बात नहीं आज रात तुम यह कर सकते हो? किसान ने कहा बेटा बड़ी खुशी से तुम यहां रह सकते हो । उसने रात को क्यारी में से कुछ कंकड़ निकालें और उनको एक कपड़े में बांध लिया और उसको उस गड्ढे से ढक दिया। रात को उसकी मां ने उसे स्वपन में कहा बेटा जल्दी से यहां से चले जाओ। उसने अपनी मां को बताया कि साहुकार का बेटा न जाने कहां खो गया है? साहूकार ने घोषणा की है कि जो मेरे बेटे को ढूंढ कर लाएगा उसे मैं अपनी आधी संपत्ति का वारिस बना दूंगा अगर मैं उसके बेटे को ढूंढ कर ला देता हूं ।वह साहूकार
मुझे आधी संपत्ति का वारिस बना देगा। उसकी मां ने उसे स्वप्न में कहा बेटा तुमने जो क्यारी से कंकर निकाले हैं तुम उन कंकड़ को रास्ते में फेंकते जाना जहां पर यह यहां कंकर समाप्त हो जाएंगे जहां पर कोई कंकड़ नहीं बचेगा वहां समझ लेना कि वही पर उस साहूकार का बेटा है। जो राख तुमने गड्ढे में से निकाली है तुम इस राख को अगर किसी पर फेंकोगे तो वह इंसान तुम्हारे साथ चलने लग जाएगा। तुम्हे इन कंकर और इस राख का ठीक ढंग से सदुपयोग करना है।

साहूकार का बेटा तुम्हें मिल जाएगा सुबह उसने किसान को कहा अच्छा बाबा मैं चलता हूं। प्रधान जी को मिलने मैं फिर कभी आ जाऊंगा। वह साहूकार के पास आकर बोला बाबा मैं आपको विश्वास दिलाता हूंआपने मुझ पर विश्वास करके अपने घर में पनाह दी मुझे भूख लगने पर खाना खिलाया। बाबा मैं कसम खाता हूं कि अब मैं आपके पास तभी आऊंगा जब तक मैं आपके बेटे को ढूंढ कर न ले आऊं। उसके इतना कहने पर साहू कार नें उसे अपने गले से लगा लिया वह बोला बेटा बड़ी मुश्किल से तुम मुझे मिले थे मैंने समझा था कि इतने दिनों बाद मुझे एक बेटा छीन लेने के बाद मुझे दूसरा बेटा मिल गया है मगर तुम भी हमें छोड़कर जा रहे हो। बेटा अगर तुम मेरे बेटे को ढूंढ कर ले आओगे तो मैं अपने वादे के अनुसार तुम्हें अपनी आधी संपत्ति का वारिस बना दूंगा। तुम मेरे बेटे को नहीं भी ला सके तो भी मैं तुम्हें अपनी बेटे की तरह तुम्हें अपने घर में रखूंगा। किसान के बेटे ने साहूकार के और उसकी पत्नी के पैर छुए और कहा मुझे आशीर्वाद दो मैं सफल हो कर लौट आऊं।

साहूकार ने उसे बहुत धन दौलत देखकर उसे विदा किया। किसान का बेटा चलते चलते रास्ते में कंकर फेंकता जा रहा था और उसे चलते चलते दो दिन हो चुके थे। उसने देखा उसके पास एक कंकर शेष था। वह कंकर भी समाप्त हो चुका था। जहां वह कंकर समाप्त हुआ वहां उसने देखा एक बहुत ही बड़ा खंडर था। उस घर में घुस गया उस खडंहर में एक बड़े से टोप वाले एक आदमी को अंदर जाते देखा। वहां पर एक ढाबा था। उस ढाबे में दूर दूर से आने वाले यात्रियों को खाना मिलता था। वहां साथ में ही उसनें एक सराय में रात को एक कमरा किराए पर लेने की सोची। उस ढाबे को देख कर उसे भूख सताने लगी सोचने लगा पहले यहां कुछ खा पी लेता हूं। उसके बाद एक कमरा रात बिताने के लिए किराए पर ले लेता हूं।

वह ढाबे के अंदर चला गया वहां पर एक औरत और उसकी बेटी थी। उसने उनसे खाना बनाने के लिए कहा। खाना खाकर वह बहुत थक चुका था। उसने ढाबे की मालकिन से पूछा क्या यहां एक कमरा किराए पर मिल सकता है? ढाबे की मालकिन ने कहा उस सराय में तो सारे कमरे किराए पर चढ़ चुके हैं। मेरे पास एक कमरा है। एक कमरा कभी न कभी किराए पर चढ़ ही जाता है। अगर तुम्हें ठीक लगे तो ठीक है उसने वह कमरा उसे दिखा दिया। वह कमरा किसी खंडर से कम नहीं दिखाई देता था। उसने ढाबे की मालकिन को कहा आज रात मैं यही बताना चाहता हूं। उसने ढाबे की मालकिन से कमरे की चाबी ले ली थी। रात को वह सोने की जा रहा था तभी उसे रात को रोने की आवाज सुनाई दी। यह आवाज कहां से आ रही है?, उसने देखा वह ढाबे की ऊपर वाली मंजिल में गया वहां से वह रोने की आवाज़ आ रही थी। उसने चुपके से झरोखे में से झांका वहां पर वही टोपवाला आदमी खड़ा था। वह दूसरे आदमी से कह रहा था कि तुमने उसकी बात नहीं मानी तो वह तुम्हें यहां सदा के लिए मरने के लिए छोड़ देगा। तुम यहां पर तड़प तड़प कर मर जाओगे। तुम्हें यहां ढूंढने वाला कोई नहीं आएगा।

तुम जैसे पहले हमारे लिए काम करते थे वैसे ही तुम्हें मेरा यह काम भी करना होगा नहीं तो मैं तुम्हें यही मारकर तुम्हारा काम तमाम कर देता हूं। दूसरा आदमी रोते हुए टोप वाले आदमी के पैरों पर पड़ गया बोला? कृपया मुझे एक बार अपने घर जाने दो। तीन साल हो गए मुझे अपने परिवार वालों से बिना मिले वह मुझे याद करते करते मेरे गम में मर जाएंगे।

किसान का बेटा हैरान रह गया। चुपचाप वह सीढ़ियों से नीचे आया जब तक वह टोपवाला आदमी अपने कमरे में सोने नंही चला गया। किसान का बेटा अंदर कमरे में घुसने का प्रयत्न करने लगा। उसने अपने कमरे की चाबी लगा दी। उससे ऊपर के कमरे का दरवाजा खोल दिया। अपने सामने एक अजनबी आदमी को देखकर साहूकार का बेटा कांपते हुए बोला तुम मुझसे क्या चाहते हो? तुम यंहा क्या करनेआए हो? मैं हर रोज की इस थकन भरी जिंदगी से थक चुका हूं। तुम सब मेरी जान लेना चाहते हो तो ले लो। किसान के बेटे ने उसके मुंह पर उंगली रख दी। उसने उस नवयुवक से पूछा तुम कौन हो।? और यहां तुम्हें क्यों बंदी बनाया हुआ है।? किसान के बेटे ने कहा तुम्हारे कमरे से रोने की आवाज आ रही थी। मैं यहां पर किसी की तलाश में आया हूं इसलिए आज रात को इस ढाबे में कमरा किराए पर लिया है। सुबह यहां से मैं चला जाऊंगा। भाई मेरे तुम डरो मत अगर तुम्हें यहां किसी ने कुछ कह दिया है तो मुझे सब कुछ सच सच बताओ। मैं तुम्हें यहां से निकालने का प्रयत्न करुंगा। उसी बंदी नवयुवक ने कहा कि मेरे पिता एक साहूकार है। मैं अपने सामान को बेचने के लिए यहां पर आया था। समान को बेचकर जब यहां से बहुत सारा पैसा कमा कर जा रहा था तब इन आदमी ने मुझे देख लिया। मुझ से सारे रुपए छीन कर मुझे यहां कैद कर लिया।

उन आदमियों ने किसी निर्दोष व्यक्ति को मार दिया है। उसके घर में डाका डालकर उसको जान से मार दिया और मुझसे कह रहे हैं कि तुम अदालत में यह बयान देना कि तुम ने उस व्यक्ति को मारा है अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो हम तुम्हें जान से मार देंगे। क्योंकि जिस व्यक्ति ने उस निर्दोष व्यक्ति को मारा था उस व्यक्ति की शक्ल मुझ से काफी मिलती है। इसलिए जब तक कार्यवाही नहीं हो जाती मुझे उन्होंने यहां कैद कर रखा है।

किसान के बेटे को समझते ही नहीं लगी कि वह जिस व्यक्ति को ढूंढने निकला था वह तो वही साहूकार का बेटा था। उसने साहूकार के बेटे को कहा कि तुम्हें मुझ से डरने की कोई जरुरत नहीं। मैं तुम्हें ही ढूंढते ढूंढते यहां आया हूं। जैसा मैं कहूं तुम वैसे ही करना। किसान के बेटे ने ताला लगा दिया और नीचे उतर आया। सुबह-सुबह ढाबे की मालकिन को उसने चाय बनाने के लिए कहा। साहूकार के बेटे ने कहा कि यह लोग मुझे हर रोज नशे वाली गोलियां देते हैं जिनसे मुझे नींद आ जाती है। आज तो यह गोलियां मैंने नहीं खाई है। किसान के बेटे ने कहा कि तुम इन गोलियों को आज मुझे दे दो। आज तो तुम मेरा कमाल देखो। उसने कमरे का ताला लगा दिया और चुपचाप वहां पर ढाबे पर आकर मालकिन को जगा दिया और कहा कि मुझे चाय पीनी है।

ढाबे की मालकिन ने कहा अभी तो 3:00 ही बजे हैं। किसान के बेटे ने कहा मुझे सुबह सुबह चाय पीने की आदत है।टोप वाला आदमी भी पास बैठा हुआ था। वह बोला मुझे भी चाय बना देना। किसान का बेटा बोला आंटी चलो आज मैं आपको बहुत ही स्वादिष्ट चाय बनाकर पिलाता हूं। उसमें ढाबे वाली मालकिन को कहा कि आप मेरे सामने बैठ जाओ। टोप वाले आदमी ने कहा कि उसे चाय बनाने दो। किसान का बेटा चाय बनाने लगा उसने चाय मे वह नशे की गोलियां डाल दी और सबको चाय देने लगा। अपने लिए उसने अलग से चाय निकाली। उन सब ने जब चाय पी तो वह सब बेहोशी की अवस्था में एक और लुढ़क गए। वह जल्दी-जल्दी ऊपर गया उसने कमरे का दरवाजा खोला और उसने साहूकार के बेटे को वहां से निकाला और पुलिस में जाकर पुलिस को सूचना दी कि इस व्यक्ति को इन गुंडों ने तीन साल से कैद कर रखा है।

पुलिस वालों ने साहूकार के बेटे से कहा मुझे तीन साल हो गए हैं। इन गुंडों ने मुझसे सारे रुपए छिपकर मुझे किसी व्यक्ति के खून में फंसा दिया है। शायद उस खुन करनें वाले व्यक्ति की शक्ल मुझसे मिलती है। पुलिस वालों ने किसान के बेटे से कहा कि अच्छा तुम जाओ अगर तुम्हारी जरूरत पड़ी तो जब हम तुम्हें बुलाएंगे तब तुम आ जाना। पुलिस ने उसे छोड़ दिया। साहूकार का बेटा किसान के बेटे के साथ खुशी खुशी घर पहुंच गया। अपने बेटे को सुरक्षित देखकर साहूकार और उसकी पत्नी बड़े खुश हुए। उन्होंने अपने वायदे के अनुसार किसान के बेटे को आधी संपत्ति का वारिस बना दिया। किसान का बेटा एक दिन सोचने लगा कि क्यों ना एक बार मैं अपने घर होकर आता हूं इस बार जब मैं घर में आया तो वंहा भेष बदलकर ही आया था। उसने अपनी सौतेली मां को उच्च स्वर में अपने पिता को डांटते हुए देखा। वह उन्हे कह रही थी कि कुछ काम वाम भी कर लिया करो नहीं तो यहां से निकल जाओ। यह घर अब तुम्हारा नहीं है यह घर तो अब मेरे नाम पर है। मैंने तुम्हारे बेटे को तो घर से निकाल भी दिया है। इस घर से जाने कि अब तुम्हारी बारी है। जल्दी से यहां से चले जाओ वरना तुम्हें भी मैं भगवान के पास भेज दूंगी। रामू ने अपनी सौतेली मां की सारी बातें सुन ली थी। उसे अपने पिता के ऊपर दया आ गई वह तो एक बार फिर अपने पिता को बचाना चाहता था। वह चुपचाप उस क्यारी में गया और वहां उसने दूसरे कोने में खुदाई की। वहां उसे एक डंडा और रस्सी मिली। उसने उसे अपने पास रख लिया। जैसे ही रात को सोने लगा तो उसकी मां ने उसे स्वप्न में बताया बेटा तुम इतने उदास क्यों हो? उसने सारी बात बताई कि सौतेली मां पहले मुझे घर से निकाला अब वह मेरे पिता को घर से निकालना चाहती है उसने सारा रुपया घर सब कुछ अपने नाम पर कर लिया है। उसकी मां ने कहा कि तुम अपने पिता के पास ये रस्सी और डंडा दे देना और कहना जब तुम कहोगे कि चल डंडा और बंध रस्सी तब गुनाह करने वाले व्यक्ति को रस्सी बांध लेगी और डंडा उसकी पिटाई करने लग जाएगा। बेटा सुबह अपने पिता के पास गया और बोला अब मैं चलता हूं पता नहीं आप लोगों से मेरा शायद कोई पुराना संबंधी हो इसलिए ही मैं यहां आता हूं।
अपने पिता को बाहर बुला कर उसने कहा मैं आपका बेटा हूं। मैं भेष बदलकर यहां आया हूं। आपने तो मुझे घर से निकाल ही दिया था मुझे सब समझ आ चुका है कि सौतेली मां के चक्कर में आपने मुझे घर से निकाला था। आपको वह जरा भी प्यार व्यार नहीं करती है। वह तो आपकी धन दौलत से ही प्यार करती है। वह आपका सब कुछ छीन लेना चाहती है। जबकि सब कुछ उसने अपने नाम पर कर लिया है। वह आप को बाहर का रास्ता दिखाना चाहती हैह अपने बेटे को सामने देखकर किसान फूट-फूट कर रोने लगा और बोला मैं तुम्हें अपने घर से निकाल कर आज तक पछता रहा हूं। मैंने अपने पांव पर स्वयं कुल्हाड़ी मारी है। मेरे प्यारे बेटे मुझे माफ कर दे। यहां से मुझे छोड़ कर कभी मत जाना। उसने अपने पिता को अकेले में बुला कर कहा पिताजी आज मैं आपको एक रस्सी और डंडा देता हूं जब आप कहेंगे कि बंध रस्सी और चल डंडे। डंडा दोषी व्यक्ति की तड़ाक तड़ाक पिटाई करने लगता है और रस्सी से वह दोषी व्यक्ति पूरी तरह जकड़ जाता है। किसान के बेटे ने कहा कि आज आपका बेटा एक अच्छी जिंदगी जी रहा है। उसके पास अपना घर है बहुत सारी धन दौलत का मालिक है। मुझे आप से कुछ नहीं चाहिए। मैं आपको सौतेली मां से छुड़ाने आया हूं। संपत्ति घर पैसा जो आप नें गंवा दिया है उसे आपका बेटा लौटा कर यहां से चला जाएगा। उसने रस्सी डंडा अपने पिता को दे दिया।

जब शाम को किसान की पत्नी उसे कहने लगी कि आज तुम्हें खाना नहीं मिलेगा किसान ने कहा ठीक है आज मैं भूखा ही सो जाऊंगा। किसान ने चुपके से उस डंडे और रस्सी से कहा अपना काम शुरू कर दो। दोषी व्यक्ति को सजा दो। किसान की पत्नी को तभी रस्सी ने बांधदिया। वह भूत भूत कहती चिल्लाई और अपने आप को छुड़वाने लगी। जितना वह अपने आप को छुड़वाने की कोशिश करती रही उसे और भी ज्यादा जोर से जकडनें लगती।

वह चिल्लाने लगी बचाओ बचाओ। उसने अपने पति को कहा बचाओ-बचाओ। किसान ने अपनी पत्नी को कहा मुझे खाना देती हो कि नहीं। पत्नी ने कहा कि पहले मुझे उस रस्सी से छुटकारा दिलाओ। किसान के पति ने कहा मैं तुम्हें एक ही शर्त पर छुड़ा सकता हूं अगर तुम मुझे खाना दोगी। जब किसान की पत्नी ने अपने पति की बात नहीं मानी तो डंडे ने उसकी तड़ातड़ पिटाई शुरू करनी शुरू कर दी। किसान की पत्नी जोर-जोर से चिल्लाने लगी मुझे बचाओ मुझे बचाओ किसान ने कहा पहले मुझे खाना खिलाओ नहीं तो मैं तुम्हें उस रस्सी डंडे से नहीं बचा सकता। किसान ने डंडे से कहा कि रूक डंडे किसान की पत्नी ने अपने पति को खाना खिलाया वह तो मार खा खाकर अधमरी हो गई थी। दूसरे दिन जब उसने अपने पति से वही बात कही तो उसके पति ने कहा कि तुम अपने किए पर पछतावा नहीं करना चाहती तुम्हें डंडे की जरूरत है। उसने डंडे से कहा कि अपना काम शुरू कर दे तब डंडे ने फिर तड़ातड़ किसान की पत्नी की पिटाई करना शुरू कर दी। किसान ने कहा कि तुम तुम इस घर से चली जाओ। किसान का बेटा भी आ गया था। उसने अपनी सौतेली मां को कहा घर के कागजात हमारे हवाले कर दो।

किसान की दूसरी पत्नी ने यह सब नहीं किया। किसान के बेटे ने उस क्यारी में जाकर तीसरे कोने में खुदाई कर देखा तो उसे वहां राख के सिवा कुछ दिखाई नहीं दिया। उसने वह अपने कपड़े में बांधी और अपने साथ घर ले आया। सोचने लगा कि इस राख से क्या होगा।? रात को सोते वक्त किसान के बेटे को सपने में उसकी मां दिखाई दी। उसने उसे बताया कि तुम इस राख को अपनी सौतेली मां के मुंह पर फैंक दो। इस राखमें इतना जादू है कि जिस व्यक्ति से कोई काम करवाना हो उस व्यक्ति पर राख फेंकोगे तो वह व्यक्ति वही काम करने लगेगा जो हम कहेंगे। थोड़ी देर बार वह अपनी अवस्था में आ जाएगा। किसान के बेटे ने वह राख अपनी सौतेली मां के मुंह पर फेंक दी। और उसे कहा कि घर के कागजात ले आओ।

किसान की पत्नी ने घर के कागजात किसान के हवाले कर दिए। किसान के पिता ने कहा कि इस कागज पर हस्ताक्षर कर दो कि आज से यह घर में इन्हें वापिस कर रही हूं। धोखे से उसनें यह घर हथिया लिया था। किसान की दूसरी पत्नी नें कहा मैं अपनी गलती पर मैं शर्मिंदा हूं। उसने उन कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए। किसान अपने घर को दुबारा पाकर बहुत खुश था। उसने अपने बेटे की समझदारी पर बहुत प्रशंसा की जब किसान की पत्नी को थोड़ी देर बाद होश आया तो वह सोचने लगी कि मुझे चक्कर आ गया था। किसान ने उसे कहा कि इस घर से तुम सदा के लिए जा सकती हो। मुझे इतने दिनों बाद समझ आ चुकी है मैंने अपनी हीरे जैसे बेटे को खो दिया था। मैं दोबारा खोना नहीं चाहता। तुम यहां से खुशी-खुशी जा सकती हो। मेरे दिमाग में तुमने जहर भर दिया था तुमने तो मुझसे सारा कुछ छीन लिया था। मुझे फिर से सब कुछ वापिस मिल चुका है। अपने बेटे के सिवा अब कुछ नहीं चाहिए जाकर उसने अपनी पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया। जाते जाते उसने अपने पति को कहा कि तुमने मेरे साथ अच्छा नहीं किया। किसान के बेटे ने अब अपने बेटे की शादी कर दी थी। वह अपनी बहू और बेटे को पाकर बहुत खुश था।