मेरा जन्म दिन आया

मेरे लिए खुशी का दिन आया।
सबने मिलकर मेरा जन्मदिन मनाया।।
परिवार वालों ने मिलकर दी बधाई।
उन सभी ने मेरे दोस्तों के संग बांटी मिठाई।।

अपने जन्मदिन पर सभी सहेलियों और मित्रों को बुलाया।
उन्होंने अपने नए अंदाज में मुझ से केक कटवाया।।
कुछ समीप के रिश्तेदार और अंकल आंटी भी थे आए।
उन्होंने मेरे जन्मदिन पर ढेर सारे गीत गाए, मेरे दोस्त मेरे लिए भान्ति भान्ति के उपहार लाए।
जो नहीं आ सके उन्होंने मेरे लिए डाक द्वारा सुंदर सुंदर तोहफे भिजवाए।।
मेरी सहेली रानी ने भी एक गीत सुनाया।

तालियां बजाकर सभी परिवारजनों और मित्रों नें गाने का आनंद उठाया।।
दोस्तों ने मिलकर किया डांस।
एक बार दोस्तों के साथ मूवी देखने का मम्मी पापा ने दिया एक चांस।।
मैनें अपना घर गुब्बारों और फूलों से सजाया। गुब्बारे फोड़ कर जन्मदिन का जश्न मनाया।।
ममी नें बच्चों को केक और टौफीयां भी दिलाई।
केक और मिठाई खा कर बच्चों में खुशी की लहर छाई।।


अंकल आंटी ने मेरे लिए दीर्घायु की प्रार्थना कर मुझे जन्मदिन की बधाई।

  • मेरे माता-पिता रिश्तेदारों ने भी तालियां बजाकर मेरी खुशी और भी बढाई।।

शिक्षा का महत्व

ज्ञान हमारे अंदर प्रकाश की ज्योति है जगाता।

सभी का वर्तमान और भावी जीवन योग्य है  बनता।।

ज्ञान से  सुप्त इंद्रिया जागृत होती है।

उसकी कार्यक्षमता में दिन रात तरक्की होती जाती है।।

शिक्षा का क्षेत्र है विस्तृत।

जीवन से लेकर मृत्यु  पर्यन्त तक  चलने वाला शिक्षा का एक स्रोत।।

प्राचीन काल में शिक्षा गुरुकुल में थी दी जाती।

शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात ही बच्चे की वापसी होती जाती।।

आजकल तो सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में है शिक्षा दी जाती।

भिन्न-भिन्न विषयों में शिक्षा दिलाकर उसकी परीक्षा के स्तर की कसौटी  जांची जाती।।

ज्ञान से बच्चे का मानसिक स्तर ऊपर उठता है।

उसके मस्तिष्क में तरह तरह के सवालों का घेरा  लगा होता है।।

छोटा बच्चा अनेक तरह के प्रश्नों की बौछार है करता।

उनके सवालों के जवाब ना देने पर व्यक्ति का चेहरा है लटकता।।

विद्या है व्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ सम्मान।

चोर भी उसको  चुरा कर इसका करता नहीं इसका अपमान।।

विद्या दूसरों को देने से निरंतर बढ़ती जाती है। दिन रात  व्यक्ति के स्तर में उन्नति होती जाती है।।

विद्या से विनय, विनय से योग्यता है मिलती। योग्यता से धन, और धर्म से सभी सुखों की प्राप्ति है होती।।

ज्ञान से बुद्धि तेज है बनती।

व्यक्ति की उन्नति में चार चांद है लगाती।। विद्या और सुख व्यक्ति को एक साथ नहीं मिलते।

व्यक्ति को इसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने  ही पड़ते।।

विद्या चाहने वाले को सुख छोड़ देना चाहिए। सुख चाहने वाले को विद्या का त्याग कर देना चाहिए।।

विद्या के बिना व्यक्ति का जीवन पशु समान है होता।

बिना ज्ञान के उसका जीवन निष्फल होता।। हमें विद्या प्राप्त कर बड़प्पन नहीं दिखाना चाहिए।

ज्ञान का प्रसार सभी में कर हर किसी को व्यक्ति का हौंसला बढ़ाना चाहिए।।

शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित है करती।

उसे भला और बुरे की पहचान करा कर उसमें आत्मविश्वास की प्रेरणा है भरती।।

भ्रष्टाचार है घोर अभिशाप

भ्रष्टाचार है एक घोर अभिशाप।

इसने अपनी कुत्सित भावना से  विश्व का कर डाला  अविनाश।।

इसका भयंकर रूप मलिन और घिनौना है।

जिसने हर मानव का नींद चैन छीना है।।

भ्रष्टाचार ने संपूर्ण विश्व में अपनी जड़े जमा रखी हैं।

नाग बन कर अपनी कुंडली मार कर अपनी निगाहें इस देश पर टिका रखी हैं।।

भ्रष्टाचार से राष्ट्र की प्रगति में अवरोध उत्पन्न हो जाते हैं।

देश की एकता  और अखंडता के   खतरे मंडरा जातें हैं।।

मानवता का गला घोटकर हर कोई एक दूसरे के खून का प्यासा बन जाता है।

उन को मौत के घाट उतार कर ही अपनी भूख मिटाता है।।

 

प्रतिदिन काम करने वाले लोगों में आजीविका के साधन छूट जाते हैं।

गरीब बच्चे तड़प तड़प कर बिना रोटी के भूख से मर जाते हैं।।

रोगी दवाई के अभाव में समय से पहले ही बिलख बिलख कर मर जाता है।

उसके परिवार जनों पर अकाल का खतरा मंडरा जाता है।।

बच्चों को इस बुराई से परिचित करवा कर इसकी जानकारी से अवगत करवाया जाए।

आने वाली पीढ़ी को इसकी सही जानकारी देकर उन्हें इस योग्य बनाया जाए।।

भ्रष्टाचार की जड़ों को जड़ से समाप्त करना होगा।

बच्चों में जानकारी देकर इस बीमारी से  भारत को मुक्त करवाना होगा।।

भ्रष्टाचार फैलाने वालों को कड़े से कड़ा दंड देना चाहिए।

अन्य लोगों को भी सबक लेकर इस विष- वृक्ष को उखाड़ कर फेंक देना चाहिए।। 

जनता में सद्भावना का प्रकाश फैलाना होगा।

देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करवा कर ही दम लेना होगा।।

देश में कानून को स्थापित करना होगा।

सभी धर्म के लोगों को आगे आकर इस नीति को अपनाना होगा।।

कानून का उल्लंघन करने वाले को दंड देकर इस देश को बचाना होगा।

समानता की नीति अपना कर हर दोषी को कड़े से कड़ा दंड देकर सबक सिखाना होगा।। 

भ्रष्टाचार के जहरीले पौधे को देश से उखाड़ डालना होगा।

शांतिपूर्ण समस्या के समाधान से इस देश को बचाना होगा।।

आस्था

एक बनिया था। वह बहुत ही कंजूस था। एक छोटे से कस्बे में रहता था। उसका काम था रुपयों को इकट्ठा कर के संजो कर रखना। हरदम इसी ताक में रहता था कि मैं जितना भी  कमाऊं  वह सब का सब मेरी तिजोरी  में भरा रहे एक भी रुपया इधर उधर न हो। वह इसी धुन में  उन जमा किए रुपयों को  पोटली में इकट्ठा करता रहता था। उस बनिए का नाम था चिंतामणि। जैसा नाम था  वैसी ही उस की बुद्धि थी। वह  हमेशा चिंता में  घिरा रहता था। वह हमेशा सोचता था कि ज्यादा से ज्यादा अपने धन को इकट्ठा कर सकूं। समय पडनें पर उनको खर्च कर सकूं।  उसको रुपयों का ऐसा लालच था तथा कि कभी भी बड़ी से बड़ी मुसीबत आनें पर अपनें परिवार  के इलावा किसी को उधार नहीं देता था और ना ही खर्च करता था। अपनें घर वालों पर भी खर्च करता तो बहुत ही ज्यादा जरुरत पड़ने पर।  अपनी   पत्नी पर रोब झाड़ना उसकी आदत सी बन गई थी। वह अपने पति से कहती कि मुझे ₹500 दे दो तो वह कहता अभी नहीं। तुम्हें क्या खरीदना है? उसकी पत्नी अगर कहती कि मुझे कपड़े खरीदने हैं तो पहले वह कहता अपने सभी कपड़े मुझे दिखाओ। उसके पास तीन सूट से ज्यादा होते तो वह उसे कभी खरीदने नहीं देता था। उसकी मर्जी के बिना वह रुपयों को हाथ भी नहीं लगा सकती थी। वह हर दम अपने पति से परेशान रहती थी। वह अपने पति को कहती थी कृपया आप क्या रुपयों को कब्र में अपने साथ लेकर जाओगे। ऐसा कहने पर वह अपनी पत्नी के साथ दो-तीन दिन तक बात नहीं करता था। उसके घर का माहौल हर वक्त गंभीर रहता था। कोई किसी से खुलकर बात नहीं करता था। उसका बेटा भी अपने पिता से परेशान था। वह भी अपने पिता से जब भी रुपए मांगता तो उसे कभी भी रुपया नहीं देता रुपया देते वक्त प्रश्नों की बौछार लगा देता। तुम्हें किस लिए चाहिए? इनका क्या करना है? थोड़े दिन पहले ही तो तुम्हें रुपए दिए थे। उनका क्या करोगे? अपने बेटे को भी अच्छे कपड़े लेकर नहीं देता था। एक दिन स्कूल की अध्यापिका ने अंशुल से कहा कि बेटा अपने घर से इस बार 5000 रुपये डोनेशन लानी है। स्कूल में तुम ही एक बड़े व्यापारी के बेटे हो। घर में कहना मैडम ने मंगवाए हैं।

अंशुल नें घर आ कर अपने पापा से कहा पापा मैडम ने आपसे डोनेशन मांगी है। उसके पापा ने ना जाने उस दिन अंशुल को बहुत ही खरी खोटी सुना दिया। क्या रुपया  पेड़ो पर उगता है जो डोनेशन दे दूं। अपनी जेब को फाड़ कर या अपना गला घोटकर मेहनत से कमाई गई दौलत एक मिनट में  तुम्हें दे डालूं। मैं कभी ऐसा नहीं कर सकता। बहुत जोर जोर से गर्ज कर  अपने बेटे से कहा। कह देना हमारे पास कोई फालतू रुपया नहीं है।रुपया  बडी़ ही मुश्किल से कमाया जाता है इसके लिए बहुत ही संघर्ष करना पड़ता है। तुम क्या जानो? तुम तो बस रुपया खर्च करना जानते हो। इसके सिवा तुम्हें और क्या आता है? अंशुल अपनी करनी पर पछता रहा था। उसने क्यों इतना बड़ा अपराध कर डाला जो पापा से रुपए मांगने चला। आज के बाद अपने पापा से कभी  पाई भी उधार में नहीं दूंगा। जितना नया घुमाऊंगा वहीं खर्च करुंगा घर आकर अंशुल को अपने पापा के तेवर अच्छे नहीं लगे। उसका मन भी बहुत उदास हो गया था। उसकी मां ने जब उसका उदास चेहरा देखा तो बोली अंशुल बेटा तुम्हें ऐसा क्या हो गया है तुम हर दम  बुझे बुझे से रहते हो क्या कारण है?  वह बोली  मां कोई बात नहीं है। मां से कोई बात नहीं छुपाई जाती। मां  मैं अपने अपने पिता के व्यवहार से परेशान हूं। मेरी मैडम  ना जाने क्या क्या कहेगी? वह तो मुझको सदा प्यार ही करती है। अंशुल की मम्मी बोली  बेटा तुम्हें जिस वस्तु की भी जरूरत हो मुझसे मांग लिया करो। अपने पापा की आदत को तुम जानते ही होंगे। उनसे रुपया कभी मत मांगना। अंशुल बोला ठीक है मां।  अंशुल अपने दोस्त अक्षय के घर चला गया था। उस सें अक्षय उम्र में उस से एक साल बड़ा था। उसका पक्का दोस्त था। अक्षय की मां गरीब घर से थी। कभी भी अपने बच्चों को अच्छी चीजें उपलब्ध नहीं करवाती सकती थी। अक्षय इस बात की कभी परवाह नहीं करता था। उसकी इसी आदत के कारण वह  अपनें दोस्त से बहुत ही प्यार करता था । अपने दोस्त  से हर बात कहता था। उसका दोस्त भी उससे कोई बात नहीं छुपाता था। स्कूल में मैडम ने आते ही अंशुल को कहा कि तुमने अपने पिता से सारी बातें कह दी  होंगी। वह मैडम से छुपाना चाहता था कि उसके पापा ने उसे रुपए नहीं दिए मगर उसने कहा वह हो मैं भूल ही गया। मैडम ने अंशुल  को बिठा दिया। अंशुल डर तो गया मगर आज उसने पहली बार झूठ बोला था। वह झूठ बोलना नहीं चाहता था। वह अपने मन में सोच रहा था कि इस बार उसने मैडम की बात नहीं मानी तो शायद मैडम मुझे माफ  नहीं करेगी। मुझे डांट फटकार करेगी।  अगर ऐसा कुछ नहीं हुआ मैडम ने उसे अपने पास बुलाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा बेटा क्या बात है? तुम उदास क्यों हो? तुम्हें क्या हुआ है? वह बोला मैडम आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैडम प्यार भरे शब्दों में बोली। तुम आज स्कूल क्यों आए हो? घर पर ही आराम कर सकते थे। अंशुल ने तो सपने में भी ऐसी बात नहीं सोची थी कि उसकी मैडम उसकी बातों को सुनकर डांटे कि नहीं बल्कि प्यार करेगी वह अपने मन में सोच लगा चलो एक दिन और सही आज तो बच गया। कब तक बचता रहेगा। एक झूठ के पीछे ना जाने इंसान को कितने झूठ बोलने पड़ते हैं। इन्सान को कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। झूठ बोल कर वह अपने आप को भी चिंता में डालता है। और अपनी रही सही  जिन्दगी भी बर्बाद करता है।  सच का सामना करने के लिए संघर्ष तो करना पड़ेगा। सच बोलकर उसे चाहे कोई जो कुछ समझे उस पर किसी का दबाब  नहीं रहता। स्कूल में फिर आज  झूठ का सहारा लिया। घर में माता पिता को क्या कहेगा? उसके दोस्त का घर आ गया था। उसके दोस्त का घर अंशुल के घर के बिल्कुल विपरीत था। वह छोटे से घर में रहता था। उसकी मां बहुत ही नेक थी। उसके घर पहुंच कर अंशुल थोड़ा मुस्कुराया आंटी इसके सिर पर हाथ रख कर उसे बैठने को कह रही थी। आंटी की मुस्कुराहट  को देख कर वह  भी अपने आप को रोक नहीं पाया चेहरे पर नकली हंसी होठों पर लाकर बोला। आप कितनी अच्छी हो। आप कैसे किसी के चेहरे को पढ लेती हो।

 

अक्षय अपनी मां से बोला यह मेरा पक्का दोस्त है। उसके पापा एक व्यापारी है। उनकी एक बहुत ही बड़ी दुकान है। अक्षय की मां बोली बेटा तुम्हें कहां बैठाऊं?  तुम तो एक बड़े घर के बेटे हो। हमारे घर पर तो बैठने के लिए कुर्सी तक  भी नहीं है। उसने उसेे एक पटना  ला कर दिया। अंशुल सोचने लगा इस पर बैठकर बैठकर सकुन तो मिल रहा है। घर में तो पापा ना जाने क्या  बखेड़ा खड़ा कर देंगे। उसने सारी बातें अपने दोस्त को बताई। मेरे पिता के पास ढेर सारे रुपये हैं  मगर वह तो मरते वक्त गांठ बांधकर अपने साथ ले जाएंगे। इतना धन होते हुए भी हम उस धन का सही इस्तेमाल नहीं कर सकते। कल की ही बात है मैडम ने मुझसे कहा कि बेटा तुम साफ-सुथरी वर्दी पहन कर क्यों नहीं आते? मेरे पिता ने मुझे वर्दी सिला  तो दी वह भी केवल एक। हर रोज उसे ही पहन कर ही स्कूल आना पड़ता है। मेरी वर्दी से तो तुम्हारी वर्दी ज्यादा अच्छी है हम तो तुम गरीब लोगों से भी गए गुजरे हैं मां बेचारी पापा को कभी कुछ नहीं कहती। उसे साड़ी खरीदनी व थी। पिछले हफ्ते की बात है मैंने और मां ने पिता को कहा कि आज हम आपके साथ बाजार चलेंगे। आज तो बहुत ही बढ़िया दिन है। हमें कुछ ना कुछ दिला देंगे।अंशुल बोला पापा हमें आज  खाने को कुछ दिला दो। वे बोले बेटा बाजार की चीजें अच्छी नहीं होती। घर की बनी चीजें खानी चाहिए। आज  पिज्जा बनाने का सामान ले कर चलतें हैं।   पिता जी बोले ऐसी चीजें खाकर अपना पेट नहीं भरते। ऐसी चीजें पाचन क्षमता को कमजोर करती है। जब मैंने छाता खरीदने की फरमाइश की तो वे एक छाता ठीक कराने वाले की दुकान पर जाकर रुक गए। वहां  पर जाकर छाता ठीक करनें वाले को बोले तुम्हें कल ही किसी कबाड़ी नें छाता बेचा था। मैं वह छाता खरीदना चाहता हूं। बोलो कितने का दोगे? छाता ठीक करने वाला बोला। सेठजी क्यों मजाक करते हो? मैं आपको जानता हूं। आप चिंतामणि बनिए हो। आप मुफ्त में यह छाता ले ले जाइए। आप से रुपया क्या लेना। उन्होंने छाता बनाने वाले को धन्यवाद दिया और कहा कि मैं अपने बेटे को यह छाता दिलवाना चाहता हूं। नया छाता दिला कर क्या करूंगा? नया छाता यह गुम करके आ जाएगा। इसके लिए तो यह छाता ठीक है। उस दिन से मेरा मन खट्टा हो गया। मां को भी एक भी साड़ी दिला कर नहीं दी।

अक्षय की मां आकर बोली बेटा मायूस नहीं होते। लगता है घर में तुम  झगड़ा कर आए हो। बच्चों को गुस्से की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए। तुम्हें तो बस पढ़ाई की तरफ ध्यान देना चाहिए। वह बोला अच्छा आंटी। आंटी को अलविदा कह कर वह घर की ओर चल पड़ा।

 

उसका दोस्त अक्षय बहुत ही चतुर था। वह कहने लगा मैं तुम्हें एक योजना बताता हूं। जिससे तुम्हारे पापा को शायद सही दिशा मिल सके। अंशुल बोला   दोस्त तुम ने मुझसे इस बार   फीस की फरमाइश की थी। तुम्हें फीस भरने के लिए ₹500 चाहिए थे। तुम्हारे पिता तो इतने कंजूस है कि वह तुम्हें क्या देंगे?

कोई बात नहीं मैं तुमसे नाराज नहीं होता। तुम्हारे लिए दुआ करूंगा। मेरे मन में एक योजना आई है। तुम्हें उस योजना के अनुसार काम करना होगा। वह बोला यार जल्दी बता वह योजना क्या है? अक्षय  बोला  तुम मुझे अपने घर ले चलो और कहना कि यह मेरा दोस्त  है। यह एक रईस बाप का बेटा है।  अंशुल बोला मैं समझ गया। ऐसे कहूंगा यह बहुत ही साधारण सा इंसान है। इतना रईस होते हुए भी वह बहुत ही सादे कपड़े पहनता है उसका दोस्त बोला तुम कहना  वह  एक व्यापारी केएन दुग्गल का बेटा है। केएन दुग्गल वह बहुत ही बड़े व्यापारी हैं। उनसे ज्यादा बड़ा व्यापारी तो इस कस्बे में कोई  और नहीं होगा तुम कस्बे का नाम नहीं बताना। तुम पूरा नाम भी नहीं बताना।  सिर्फ कहना के एंन दुग्गल। वह अपने साथ अक्षय को घर ले आया। घर आकर   बोला पापा मुझे आज देर हो गई। आज मैं अपने दोस्त की कार में घर आ गया। उसके पिता बोले किस की कार में। वह बोला यह मेरा दोस्त अक्षय है। इसके पापा के एंन दुग्गल हैं। अक्षय ने उसको बता दिया था कि इस कस्बे में दुग्गल नाम के  6-7 व्यापारी हैं। उन सब के पूरे नाम अलग-अलग हैं।अंशुल के पापा चौंक पर बोले। कौन दुग्गल?? वह बात को टाल कर बोला। पापा मैं अपने दोस्त को अपना कमरा दिखाता हूं। वह जल्दी में अपने दोस्त को अपना कमरा दिखाने चल पड़ा। उसके पिता बोले बेटा अपने दोस्त की खातिरदारी करो। उन्होंने अपनी पत्नी को कहा कि शानदार खाना बनाया जाए। उनकी पत्नी हैरान होकर अपने पति की तरफ देखकर अपने बेटे से। बोली आज चांद कहीं उल्टा तो नहीं निकल आया।  मां उस के लिए  खाना बनाओ। वह मन ही मन खुश हो रहा था। उसकी मां खाना बनाने  रसोई में चली गई।  अंशुल अक्षय को बोला तुम्हारा भी जवाब नहीं। आज तो झूठ बोल दिया। मगर झूठ बोलकर नींद चैन सब गायब हो जाता है। अगर मेरे पापा को पता चला कि  तो और  हमारा यह झूठ पकड़ा गया तो पापा मुझे भी घर से निकाल देंगे।

मुझ एक बात आज पता चल गई है कि रुपए की इस दुनिया में कितनी कीमत है। जिसके पास रुपया पैसा है उसकी सब इज्जत करते हैं। जिसके पास कुछ नहीं होता उसे तो बड़े लोग इज्जत ही नहीं देते। उसे दीमक की तरह बाहर निकालकर फैंक देतें हैं।  अक्षय बोला आज मैं तुम्हारे साथ गरीब बनकर पेश आता हूं तो  तुम्हारे पिता  मुझे घर से निकाल देगें। वह कैसे।

मेरी  फीस अपने पापा से ले  कर देख।  अक्षय बोला यह नाटक फिर कभी कर लेगे। ंअंशुल बोला शायद मेरे पापा तुम्हारी जरूर सहायता कर दे। हो सकता है हम घर के लोगों की सहायता नहीं करते हों।

एक दिन अंशुल  अपने दोस्त अक्षय को लेकर आया बोला पापा यह मेरा दोस्त बहुत ही गरीब है। इसके पास फीस के लिए रुपए नहीं है। आप इसकी फीस के रुपए दे दो। अंशुल के पापा बोले मैंने क्या कोई रेस्टोरेंट खोल रखा है। जो भिखारियों को रुपए बांटता फिरुं ।  निकल जाओ, जल्दी निकलो यहां से। उसकी  मैडम भी घर पहुंच गई थी। घर आकर बोली मैंने तुम्हारे बेटे से डोनेशन मांगी थी। वह घर आकर बोली आपके बेटे ने कहा था कि आप घर आकर डोनेशन ले जाना। मैं घर आ गई। अंशुल के पैरों तले जमीन खिसक गई। आज तो भयंकर तूफान आने ही वाला है। मेरे पिता तो उन्हें डांटने  ही ना लगे। उसके पिता बोले आप लोगों का कहना डोनेशन नहीं मिलेगी। यहां क्या आप नें हर रोज ठगने का धंधा बना रखा है। मेरे पास कोई डोनेशन नहीं है। हमने अच्छा स्कूल देखकर अपने बेटे को इसलिए दाखिल करवाया था कि हमारा बेटा एक  नेक इंसान बनेगा। यहां भी ठगी का धंधा है। मैं जल्दी ही अपने बेटे को आपके स्कूल से निकाल ही लूंगा। मेरे पास कोई डोनेशन नहीं है।

मैडम का चेहरा फीका पड़ गया था। वह दबे पांव वहां से चली गई।अंशुल  घूर  कर अपने पिता की तरफ देख रहा था। उसे अपने पिता एक क्रूर सिंह की तरह नजर आ रहे थे। आज तो उसके पिता ने उसकी स्कूल से छुट्टी करवा दी ही समझो।

अक्षय बोला हम एक योजना बनाते हैं। हम तुम्हारे पापा को सुधार कर ही रहेंगे। एक दिन जब  अंशुल के पापा घर आए तो देखा  घर में उनका बेटा गणेश की मूर्ति के सामने खड़ा होकर प्रार्थना कर रहा था। हे भगवान! मेरे पिता को सद्बुद्धि दे! तुम्हें मेरे हाथ से आज दूध पीना ही पड़ेगा। उसके पिता हैरान होकर उसकी तरफ देख रहे थे। गणेश की मूर्ति को दूध पीते देखकर दंग रह गए। उसने गणेश की मूर्ति को दूध पिलाना शुरू किया। देखते ही देखते मूर्ति सारा का सारा दूध पी गई।। थोड़ी देर बाद उसके पिता अंशुल को बोले बेटा तुम तो भगवान के बहुत ही बड़े उपासक हो। तुम्हारे हाथ से तो सचमुच  ही गणेश जी ने दूध पी लिया। यह तो बड़ा चमत्कार है। वह बोला पापा आप  भी पिला कर देखिए। वह बोला आप तो रहने ही दीजिए। आपके हाथ से गणेश जी कभी दूध नहीं पाएंगे। जो कभी भी किसी की फरमाइश को पूरा नहीं करते। कंजूस लोगों की तरह भगवान कभी भी नहीं देखता। वह बोला बेटा तू ऐसा क्यों बोल रहा है? देखना मेरे हाथ से भी भगवान दूध पिएंगे। उसने ना जाने कितनी बार दूध पिलाने की कोशिश की मगर गणेश जी ने दूध नहीं पिया। वह चिंता में पड़ कर बोला कल फिर कोशिश करूंगा। जैसे ही  उसके पिता वहां से गए उसका दोस्त पलंग के नीचे से कमरे में आकर बोला। देखा मेरा कमाल। अंशुल अक्षय से बोला तूने यह किया कैसे? अक्षय बोला यह सब कैपिलरी एक्शन केशिका क्रिया का कमाल है। मैंने मूर्ति में ऐसा पत्थर रखा था जिसमें कैपिलरी एक्शन क्रिया द्वारा मैंने यह सब किया। जिससे दूध पिया जा रहा था और मूर्ति दूध पी रही थी। तुम उस इस पत्थर को निकाल दो तो यह  मूर्ति कभी भी दूध नहीं पी सकती। कभी सीधी उंगली से घी नहीं निकलता तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है। दूसरे दिन फिर उसके पापा आकर बोले आज मैं नहा धो कर आया हूं। खाना भी नहीं खाया है। आज मेरा व्रत है। उसने मूर्ति को दूध पिलाना शुरू किया ही था तो अचानक आवाज आई। अरे मूर्ख! मेरी पूजा करने चला है। जब तू अपने घर वालों की कोई भी इच्छा पूर्ण नहीं कर पाया वह मेरी क्या इच्छा पूरी करेगा? वह  नहीं भगवान जी ऐसा नहीं है मैं बहुत सारा धन कमाना चाहता हूं इसलिए धन इकट्ठा कर रहा हूं ताकि मैं अपने परिवार वालों को खुशियां दे सकूं  भगवान बोले ऐसी खुशियों का तुम क्या करोगे, जिससे घर वाले खुश नहीं होंगे। हो सकता है जब तुम्हारे पास बहुत सारा धन इकट्ठा हो तुम्हारे पति और बच्चे अपनी इच्छाओं का गला घुट कर मर ही जाएं।

धन कमाना बुरी बात नहीं होती। धन का सदुपयोग सही ढंग से करना चाहिए। यह नहीं कि घर में किसी के पास कोई वस्तु नहीं है फिर भी तुम उसे दिला भी नहीं सकते तुमने अपने बच्चे को भी छाता लेकर नहीं दिया। वह भी कबाड़ी से छाता दिलवा दिया। तुमसे तुम्हारा बेटा लाख दर्जे अच्छा है। जिसके दिल में दूसरों के लिए दर्द है। वह  किसी गरीब बच्चे की मदद करना चाहता था। तुमने तो उसको भी रुपए नहीं दिलाने दिए। तुम्हारे बच्चे ने अपनी साइकल बेचकर उसकी फीस भरी। धन्य हो तुम्हारे बेटे को। तुमने अपनी पत्नी को भी नजरअंदाज किया। तुम्हें उस दिन पता चलेगा जिस दिन तुम रुपयों की पोटली अकेले ही गिनते रह जाओगे। तुम्हें पता भी नहीं चलेगा तुम्हें प्यार करने वाला कोई भी नहीं होगा। भगवान जी बोले रुपए पाकर इंसान को घमंड नहीं करना चाहिए। रुपया कमा कर अपनी जरूरत की  चीजें भी अवश्य खरीदनी चाहिए। और दूसरे गरीब लोगों की सहायता भी करनी चाहिए। बनिया बोला भगवान जी आज तो मेरे हाथ से दूध पी लो। वह घुटने टेककर गणेश जी की मूर्ति के सामने बैठ कर उन्हें दूध पिलानें का प्रयत्न करनें लगा। जल्दी से   अक्षय ने चार पाई के पास से अपने दोस्त को वह पत्थर का टुकड़ा उस मूर्ति में फिट करने को कहा। अंशुल ने वह मूर्ति का टुकड़ा टुकड़ा चिपका दिया। एक शर्त पर मैं तुम्हारे हाथ से दूध पी लेता हूं जब  तक तुम कंजूसी करना नहीं छोड़ोगे तब तक मैं तुम्हारे हाथ से दूध नहीं पीऊंगा।  अपनी जरूरत की वस्तुएं अपने बेटे और अपनी पत्नी को दिलवानी होगी। किसी भी गरीब व्यक्ति को अपने घर से निराश होकर जाने नहीं देगा।

आज तुम्हें एक बात कह रहा हूं। तुम्हारी पत्नी सिटी हॉस्पिटल में अपना चेकअप करवाने जाती है। शायद उसे कोई भयंकर बीमारी है। उसकी बीमारी के बारे में पता करो और उसकी तरफ ध्यान दो। नहीं तो तुम्हारा पैसा रूपया सब यंही धरा का धरा रह जाएगाह अकेले तुम भी इस संसार से रुखसत हो जाओगे। वह पैर पकड़कर बोला हे भगवान जी! आज तो मैं आप को दूध पिला कर ही मानूंगा। अंशुल अपने पिता की तरफ देख रहा था। अचानक मूर्ति ने दूध पीना शुरू कर दिया। अंशुल के पिता ने अपनी पत्नी को आवाज देकर बुलाया देखो भाग्यवान आज मेरे घर भगवान आए हैं। देखो मेरे हाथ से दूध पी रहे हैं। आज मैं हार गया। मुझे  तुम  दोनों मुझे माफ कर दो। रुपया कमाने के लालच में तुम दोनों को भूल ही गया था। ऐसा नहीं है कि मैं तुम दोनों को प्यार नहीं करता आज मुझे समझ आया कि ज्यादा रुपया पैसा इकट्ठा करके क्या करना है। जहां जरूरत हो वहां तो रुपया खर्च कर नहीं पड़ता है। मैं यह सब कर्तव्य भूल गया था। मैं यंहा से रुपया ले जा कर क्या करुंगा?। देखो भगवान जी ने आज मुझे मेरा कर्तव्य  याद दिला दिया। उसके घर पर तभी एक भिखारी ने आकर दस्तक दी। बाबा मुझे खाना खिला दो। चिंतामणि आकर बोले ठहरो। उसने भिखारी को बैठने को कहा और उसे खाना भी खिलाया और दक्षिणा भी दे कर कहा। जाओ खुश रहो। भिखारी उसको आशीर्वाद देकर चला गया। अंशुल को हजार रुपए का नोट देकर कहा बेटा जाओ अपने उस दोस्त को ₹500 फीस देकर के आना।500 रुपये तुम अपनें लिए खर्च कर लेना। उसी वक्त अंशुल के स्कूल की कक्षा अध्यापिका को फोन लगाकर कहा कि मैडम मैंने ₹5000 का चैक स्कूल के खाते में जमा करवा दिया है। मैंने आपको बहुत भला बुरा कहा। मैं तो आपकी परीक्षा ले रहा था। आप मुझे माफ कर देना। अंशुल  के पिता जैसे ही कमरे से गए वह अपने दोस्त के गले लग कर बोला तुमने मेरे पिता को सुधार कर ही दम लिया। तुम सचमुच में ही महान हो। मां को सारी बात अंशुल ने बता दी। अपने पति में आए परिवर्तन से वह हैरान थी। अक्षय को धन्यवाद देते हुए बोली बेटा धन्यवाद। तुमने एक कंजूस व्यक्ति को सुधार कर उनमें आस्था की ज्योत जगाई है।

मीठा आम मुझे है भाता

 

मीठा आम मुझको है भाता।

उसको खाने में बड़ा ही मजा आता।।

अंगूर, सेब, केला, संतरा, अमरूद अनार है फल।

जिन सभी के गुण देख कर आप रह जाएंगे दंग।।

यह सभी किसी न किसी विटामिन की  कमी को पूरा है करते।

जिसको खाकर  हम भरपूर  चुस्ती का अनुभव है करते।।

आम विश्व में स्वाद और अपने लज्जत के लिए है मशहूर।

जिस को खा कर हम हो जातें हैं  ऊर्जा से भरपूर।।

इसका रंग पीला, हरा, अनार की तरह लाल, भी है होता।

जिसको खाकर हर आयु का प्राणी खुश है होता।।

खट्टे आम की चटनी भी है बनती।

जिसको खा कर खुश होती हर गृहिणी।।  

रसीले आम गर्मी में शांति है प्रदान करते।

जिस का लुत्फ उठाते हर घर घर के बच्चे।। कच्चे पक्के आम की गुठली, पत्तियां और फूलों से औषधियां भी है बनती।

इससे कफ अतिसार दस्त कबज आदि बीमारी भी है दूर भागती।

पोलियो के रोगी के लिए है यह रामबाण घुट्टी। जिसका सेवन करने से उसे बीमारी से मिलती है मुक्ति।।

कच्चे आम को सुखाकर अमचूर भी है बनाया जाता।

आम के रस में दूध और चीनी मिलाकर मैंगो शेक भी है बनाया जाता।।

आम में कैरोटीन है पाया जाता।

विटामिन ए की कमी को पूरा कर कमाल है दिखाता।।

इन्टरनेट का उपयोग

समाज में सूचनाओं को संप्रेषित करता है इंटरनेट।

ज्ञान के प्रसारण में अहम भूमिका निभाता है इंटरनेट।।

जो इसका  पालन  है करता।

वह दूर बैठे बैठे ही अपने परिजनों से है मिल पाता।।

यह एक आधुनिक युग की है जान।

नई पीढ़ी की टेक्नोलॉजी की शान।।

इसके अत्यधिक इस्तेमाल से लोगों का आपसी संपर्क कम होता जाता है।

यह लोगों में मानसिक बीमारियों को  दावत देता जाता है।।

ऑनलाइन जुए लगातार सोशल मीडिया के इस्तेमाल से लोग ऑफिस और घर में सब से कटे कटे से हैं रहते।

इन आशंकाओं के कारण ऐसे व्यक्तियों में असंतुलन के खतरे  भी हैं बढते रहते।।

गैजेट्स के अत्यधिक सेवन से बच्चों के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव है पड़ता।

नई पीढ़ी की एकाग्रता और चिंतन की क्षमता को  नुकसान पहुंचाने का  प्रयत्न है  करता।।

मोबाइल, लैपटॉप, से हानिकारक रेडिएशन निकलती है।

बच्चों के मस्तिष्क में मौजूद ऊतकों  पर बुरा असर  है डालती।।

नैट नें कम्युनिकेशन को आसान  है बना दिया।

इन्टरनेट नैट से जुड़ कर कमाल दिखा दिया।।

ट्रैवलिंग के दौरान हो या आनलाईन सौपिंग, मार्केट में चलते हुए भी  ऐक्टिव रहते,

बडे बडे महत्वपूर्ण कार्य चुटकी में है कर डालते।।

सभी कार्य घर बैठे बैठे ही कर देते।।

फायदे के साथ साथ नुकसान भी हैं बहुतेरे।  

हम इसका सदुपयोग करें एक  सीमित दायरे। इन्टरनेट अब जरुरत नहीं लोंगों की आदत है बन चुका।

दुनिया की हर पल की जानकारी का सिलसिला है चल चुका।।

इस में समाधान भी हैं बहुतेरे।

जिस के साथ आप  खोजते हैं हल बहुतेरे।। मानसिक सेहत  पर भी  प्रभाव है पडता जाता।

पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होता जाता।।

घर और परिवार में बच्चों की उपेक्षा जब है कि जाती।

बच्चे  की नींद चैन सब हराम हो जाती।।

बच्चे अटेंशन पाने हेतु ऐसा  कदम है उठाते। रात-दिन मोबाईल  नैट के प्रयोग से घर में दूरियों को है बढाते।।

इसकी आदत  माता पिता की बर्बादी का कारण है बनती।

उनकी सारी खुशियां गम में है बदल जाती।।

अपने बच्चों की गतिविधियों पर  नजर रखने का प्रयास करना होगा।

बच्चों के प्रति प्यार अपनापन और सुरक्षा का एहसास करा उनके भावनात्मक पक्ष से जुड़ जाना होगा।।

इससे शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ जाएगा।

हर बच्चा नई नई गतिविधियों से जुड़ कर कामयाब हो जाएगा।।

इसके दुष्प्रभाव भी हैं  अधिक नुकसान पहुंचाते।

बच्चों की जिज्ञासा को और भी बढाते जाते।।

बच्चे धीरे धीरेनैट टीवी आनलाइन गेम्स को ही अपनी दुनिया बना लेते हैं।

वे टेक एडिक्शन के शिकार हो कर पछताते हैं।।

यदि इंटरनेट का इस्तेमाल एक सीमित दायरे में रहकर कर पाएंगे।  

हम सभी तब इसकी लत से बच पाएंगे।।

मेराघर

मेरा घर जगमग करता।
सुंदर आकर्षक और साफसुथरा दिखता।
मेरे मन के हर दर्पण को मोहित करता।।
घर में दस कमरे हैं और एक है हॉल।
जिस में हमेशा पढ़ाई करने का सदा रहता है माहौल।।
खुली खुली खिड़कियां और एक है बाल्कनी।
सुबह सुबह बाहर की ताजी हवा है आती और मेरे मन की मुस्कान को दुगुना है करती।।
छोटी सी बगिया है बड़ी निराली।
जहां पर पौधों की करती हूं रखवाली।।
एक खुशी भरा वातावरण सदा है छाया रहता। घर के हर प्राणी का चेहरा सदा खिला खिला है रहता।।
पापा भी हैं बड़े ही प्यारे।
हम उनके हैं राज दुलारे।।
मम्मी भी है भोली भाली।
अंदर से नर्म और बाहर से सख्त दिखने वाली।।
भैया मेरा हरदम करता शैतानी।
छोटी बहन उसके कान पकड़कर सदा करती अपनी मनमानी।।
दादी भी है मोटे मोटे चश्मे वाली।
हरदम भक्ति के रस में डूबे रहने वाली।।
दादू भी है बड़े गंभीर।
दिल करता है खैंच डालूं उनकी तस्वीर।।
चाचा जी हैं ऑफिस जाते।
हर रोज हमें मिठाई लेकर आते।।
चाची जी हैं तेजतर्रार।
चाचा जी से करती है बात बात पर तकरार।।
नानाजी से हर कोई प्यार करता।
लेकिन उनकी डांट डपट से सदा है डरता।। नानी हमें सदा घेरे रहती।
हमसे सदा प्रश्नों की बौछार है करती।।
हमारा है एक संयुक्त परिवार।
जिस में आपस में मिलजुल कर हर प्राणी करता है प्यार।।
सुःख दुःख में सभी मिलकर हैं रहते।
एक दूसरे की तन मन धन से हैं सेवा करते।।
मेरी अभिलाषा है मेरा घर यूं ही जगमग करता रहे।
हर रोज हर प्राणी के जीवन में खुशियां भरता रहे।।
बुआ भी है घर में आई।
वह अकेली ही हैं आई।।
घर में बन्टू और उसके पापा के सिवाय घर में नहीं है कोई।

उनके घर में हाथ बंटाने वाला नहीं है कोई।
उनका है एकल परिवार।।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ

बेटियों को पढ़ाना है मकसद हमारा।
यही तो जीवन का यथार्थ है हमारा।।
कब तक अपने जीवन को दिलासा देते रहेंगे।

एक बेटे की तमन्ना में सब कुछ खोते रहेंगे।।

बेटियों को पढ़ाओगे तभी खुशहाल बन पाओगे।
दूसरों की बातों में ना आकर उनका भविष्य संवार पाओगे।।
बेटियाँ तो अपने घर की नींव को ऊंचाइयों तक ले जाती हैं।
अपने बिखरे घर को स्वर्ग बना कर दिखाती हैं।।
घर घर में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के इस मंत्र को दोहराओ।
हर बेटी को शिक्षा दिलाकर अपना फर्ज पूरा कर के दिखाओ।।
बेटियों को शिक्षा दिलाना ही फर्ज नहीं है हमारा।
उसकेअधूरे सपनों को पूरा करके उसके भविष्य को संवारना भी है फर्ज हमारा।।
बेटियां तो अपने घर की नींव होती हैं।
मां बाप के हर सपने को पूरा कर दिखाती हैं।।

उस के अरमानों का खून ना कीजिए।
हर एक बेटी के भविष्य को उज्जवल कीजिए।।
हर मां को अपनें गर्भ में पल रही बच्ची को बचाना होगा।
वहशी पापियों की शिकार मां को बचा कर उन को कड़ा से कड़ा सबक सिखाना होगा।।

वह एक दिन अपनी छवि से घर को महकाएगी।
जो काम बेटा न कर सका वह भी कर दिखाएगी।।
तुम उसे एक मौका दे कर तो देखिए।
उस की किस्मत को संवार कर तो देखिए।
वह भी सारे परिवार को रौशन करेगी।
अपनी मेहनत के बल पर उन्नति के शिखर पर पंहुच कर दिखाएगी।
अपनी खुशहाल जिंदगी को स्वर्ग बनाएगी।

सारे परिवार की किस्मत को चमकाएगी।।

स्कूल बस्ते का बोझ

रामू जैसे ही स्कूल जाने की तैयारी कर रहा था और मन में सोच रहा था  आज  वह  देरी से स्कूल पहुंचा तो स्कूल में उसकी पिटाई होगी। उसे स्कूल की प्रार्थना सभा में अलग से डैक्स पर खड़ा कर दिया जाएगा और सारा दिन तपती दोपहरी में एक-दो घंटे खड़ा रखा जाएगा। जल्दी से जल्दी स्कूल को  भागा जा रहा था। पीछे से रामू की मम्मी ने आवाज लगाई बेटा अपनी कॉपी तो तुम घर पर ही भूल गए। ओह! अंग्रेजी की कॉपी। वह मैडम तो और भी सख्त है। अंग्रेजी की कॉपी तो जल्दी में ले जाना ही भूल गया। दस मिनट उसे  घर वापिस आने में लगे।  वह भागता ही जा रहा था। रास्ते में सोच रहा था कि आज तो उसे सजा मिल कर ही रहेगी। काश इस भारी बैग से उसे छुटकारा मिल जाता। इस बैग को पिछले  सात साल से उठाता जा रहा हूं।मेरे कंधे  स्कूल बैग के भार से दुखने लगे। जिस दिन सारी कॉपियां नहीं ले जाते उसी दिन सारी कॉपियां  जांच की जाती है। सारा स्कूल बैग भरा होता है उस दिन मैडम कापियों की जांच ही नहीं करती। आज तो मैडम नें खड़ा ही कर दिया। रामु तुम्हारीअंग्रेजी  की किताब कहां है? वह होमवर्क करते-करते अपनीे अंग्रेजी की किताब  घर पर ही छोड़  आया था।

मैडम ने उसे डैस्क पर खड़ा कर दिया। मैडम सब बच्चों से  प्रश्न पूछ रही थी मगर किसी को भी  प्रश्नों के उतर नहीं आते  थे। तुम सारा दिन बैन्च पर खड़े रहोगे तभी तुम्हें किताब लाना याद रहेगा। रामु से मैडम ने कहा चलो रामू, तुम ही बताओ। रामू  बोला मैडम इन प्रश्नों के उत्तर  सही देने पर आप मुझे   बिठा देगी न। वर्ना रामू के मुंह से वर्ना निकल गया था।

मैडम गुस्से में तपाक से बोली मैडम के सामने जबान चलाते हो खड़े रहो।  वह मायूस  सा बेंच पर खड़ा रहा। कक्षा में बच्चों का शोर सुन कर विज्ञान के अध्यापक भी वहां पहुंच गए थे।

 

मैडम को  तभी फोन आया। मैडम ने वास्तव सर को कहा कि कृपया थोड़ी देर आप मेरे कक्षा देख लें। मुझे बहुत ही जरूरी बातें करनें प्रिंसिपल के  कार्यालय में जाना है। प्रिंसिपल  के  कार्यलय में पहुंचने पर मैडम ने प्रिंसिपल से कहा मुझे आपने क्यों बुलाया? प्रिंसिपल  बोली मैडम रामू के घर से  अभी अभी फोन आया  है। उसकी मम्मी कह रही थी कि रामु अपनी अंग्रेजी की किताब ले जाना ही भूल गया। वह सारी रात पाठ याद करता रहा। उसने मुझे जब तक पूरा पाठ  नहीं सुनाया तब तक वह अंग्रेजी की किताब लेकर बैठा रहा  उसे कल बुखार भी था। वह सारी रात काफी देर तक पढ़ाई करता रहा। उसकी मम्मी कह रही थी कि कृपया मेरे बेटे को बेंच पर मत खड़ा करना। वह बच्चा बहुत ही डर गया  है। वह अपनी मां को कहता है कि मेरा स्कूल जाने को भी मन नहीं करता। इतना भारी बैग उठाना पड़ता है। भारी बैग उठाकर मेरे कंधे भी छिल गए। जिस दिन किताबें न ले जाओ उसी दिन मैडम कॉपियां जांचती  हैं। कभी-कभी मैं उसका इतना भारी  बस्ता देखकर दंग रह जाती हूं। कभी-कभी तो मैं उससे बिना पूछे उसकी किताबें बस्ते  में से हटा देती हूं। कल रात तो वह रोने ही लगा। आप कृपा करके मेरे बेटे को सजा मत  देना।

 

मैडम ने जैसे ही सुना वह हैरान हो गई। उसने तो  उस बेचारे   रामु को  दो घंटे बैंन्च पर खड़ा ही रखा।   वह बेचारा अभी तक बेंच पर  ही खड़ा होगा।  मैंने अध्यापिका होकर उस बच्चे की मनोभावनाओं को नहीं समझा।  केवल वही एक बच्चा  ऐसा था जो कक्षा में पाठ याद कर के आया था। मैंने उसे बिना वजह से बेंच पर खड़ा कर दिया और न जाने गुस्से में क्या क्या कह दिया?

रीना मैडम जल्दी से प्रिंसिपल   के कमरे से निकल कर कक्षा में पहुंची तो देखा रामू अभी तक बेंच पर खड़ा था। वह कक्षा में आकर अपने आप को अपराधिन महसूस कर रही थी। उसने रामु को आते ही कहा बेटा तुम अभी तक खड़े हो। बैठ जाओ। रामु नीचे बैठ गया और  सिर नीचा करके जोरजोर से रोने लगा। उसे  रोता देखकर कक्षा के सारे बच्चे उसकी तरफ देखकर मैडम से कहने लगे। मैडम  रामु रो  रहा है।

मैडम  रामुके पास के पास जाकर खड़ी हो गई।  उस के कन्धे थपथपा कर कहा। तुम बच्चे इतने भारी स्कूल  बस्ता उठाकर स्कूल आते हो। मेरी गल्ती है। मैंने तुम्हें  बिना वजह जानें इतनी बड़ी सजा दे डाली। मैं अपने आप को बहुत ही छोटा महसूस कर रही हूं। मैंने तुम बच्चों की मनोभावनाओं को नहीं समझा बेटा।

 

आज तुमने मुझे एहसास करवा दिया कि हम लोग भी कभी-कभी गल्त हो सकते हैं। बिना कारण जाने हम तुम्हें सजा दे देते हैं। मेरे बच्चे भी स्कूल में जाते हैं। दोनों थके हारे जब घर आते हैं तो कहते हैं कि हम थक गए। लेकिन आज जब मैंने तुम्हें जल्दी से सजा दे दी तो मैंने इस वजह को नहीं समझा। तुम क्या चाहते थे?  मुझ से पाठ सुन लो और मुझे बिठा दो। मैंने तो तुम्हारी बात भी सुनी अनसुनी कर दी बेटा। आगे से ऐसा नहीं होगा।

 

मैं आज ही तुम्हारा समय सारणी सुनिश्चित करती हूं। इस समय सारणी के अनुसार ही तुम अपना बस्ता पैक कर के लाना। इससे तुम्हें बस्ते का बोझ भी नहीं उठाना पड़ेगा और तुम्हारे कंधों में दर्द भी नहीं होगा मेरा बेटा भी हर रोज मुझसे कहता है मां मेरी किताबे सारी स्कूल बैग में डालना  मत भूलना। आज मैंने जाना एक बच्चे का दर्द क्या होता है?  आगे  से ऐसा नहीं होगा। मैं स्कूल में सभी अध्यापकों को समय सारणी के अनुसार बस्ता मंगवाने का प्रयत्न करूंगी बच्चों तुम्हारी मैडम आज तुम्हारी गुनहगार है। बेटा आगे से ऐसा नहीं होगा रामु का सारा  दर्द गायब हो गया था। वह पहले की तरह अपना दर्द भूल कर मुस्कुराते मुस्कुराते बच्चों के साथ बातें करने में मग्न हो गया था।