बालदिवस(कविता)

 

सूर्य से तेजवान चेहरे वाले।

चंद्रमा की तरह शीतलता देने वाले।।

गुलाब से सुसज्जित कोट वाले।

रोबीले  चेहरे और गुणों वाले।।

देश के युवाओं की आन थे  नेहरू।

युगो युगो की शान थे नेहरू।।

नन्हे-मुन्ने बच्चों की शान थे नेहरू।

बच्चों के प्यारे चाचा कहलाने वाले,

एक   आकर्षक व्यक्तित्व की पहचान थे नेहरू।।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 14 नंबर 1889को इलाहाबाद में अवतरित हुए।

पिता मोतीलाल नेहरू और माता स्वरूप रानी के घर जन्म लेकर राजकुमारों की तरह पले बढें।।

उनका जन्म बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

उनको याद करके उनके गुणों को सराहा जाता है।।

हर काम को सूझबूझ के साथ करने वाले थे नेहरू।

मधुर भाषी और देश को आजादी दिलाने वाले थे नेहरू।।

जलियांवाला बाग कांड के पश्चात गांधी जी द्वारा चलाए गए आंदोलन में भाग लिया।

कठोर यातनाएं और संघर्ष सहकर, देश की आजादी के लिए संघर्ष किया।।

15 अगस्त 1947 को देश को  आजादी दिला कर   देश के प्रथम प्रधानमंत्री बनें।

लोगों के दिलों में बहुतेरे वर्षों तक छाए रहे थे नेहरु।।

आधुनिक भारत का निर्माता कहलाने  वाले ऎसे कर्मठ  महापुरुष थे नेहरु।

17 वर्षों तक प्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहे थे  नेहरु।।

साहसी  दिलेर  और जिन्दादिल  इन्सान थे। चाचा नेहरू।

नन्हे मुन्नों की मधुर मुस्कान थे नेहरु।।

आजादी के लिए बढ़-चढ़कर भाग लिया।

आजादी के बाद  पहले प्रधानमंत्री का पद संभाल  कर अपना  कार्य पूरा किया।।

विश्व को पंचशील सिद्धान्त प्रदान किए।

शांतिदूत के रुप में शांतिपूर्ण कार्य किए।।

हंसमुख और सह्रदय व्यक्ति थे नेहरु।

सफल राजनीतिज्ञ होनें के साथ साथ एक महान लेखक भी थे नेहरु।।

डिस्कवरी और इन्डिया पुस्तक का हिन्दी रुपान्तर किया।

अपनी महत्वपूर्ण छवि से एक राजकुमारों की तरह राज किया।।

27 मई 1964 को वे परलोक सिधार गए।

बच्चों से स्नेह रखने के कारण चाचा नेहरु के नाम से प्रसिद्ध हुए।।

भारत सरकार ने उन की सेवाओं के कारण उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।

उन्होनें भी अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पित किया।।

 

आलस्य(कविता)

जीवन शैली का एक विकार है आलस्य ।
मनुष्य का निकटवर्ती शत्रु है आलस्य।।
सुबह का अमूल्य समय जो सो कर हैं गंवाते।
वह जीवन में कभी भी तरक्की की सीढी नहीं चढ़ पाते।।
अपना समय निरर्थक बातों में जो हैं गंवाते।
अस्त व्यस्त दिनचर्या के कारण किसी भी काम को फुर्ती के साथ नहीं कर पाते।।
जीवन में प्रेरणा की कमी के कारण आलस्य है आता।
यह हम में सुस्ती को है बढ़ाता।।
आलस्य से बचनें के लिए महत्वपूर्ण कार्यों की सूची बनाएं।
उन के अनुसार कार्य करके आलस्य को दूर भगाएं।।
व्यक्ति के सामने लक्ष्य स्पष्ट हो तो कार्य सफल हो पाएगा।
नहीं तो निर्धारित कार्य भी विस्मृत हो जाएगा।।
एक समय में एक ही काम को करने का नियम बनाओ।
एक से ज्यादा काम करनें के चक्कर में अपना समय यूं न गंवाओ।।
काम की क्रम बार श्रंखला निर्धारित करें।
क्रम बार कार्य कर अपनें लक्ष्य की ओर बढ़ें।।
कल्पना शक्ति के प्रयोग से सफलता आसानी से है मिल पाती।
व्यक्ति के जीवन में वह उम्मीद का दामन है जगाती।।
कार्य करनें का ढंग, कार्य करनें के परिणाम को यह सब देखना है जरूरी।
इसके अनुसार कार्य करके अमल में लाना है जरूरी।।
जीवन में शारीरिक श्रम को कभी नजरअंदाज मत करो।
व्यायाम आदि और सुबह की सैर का कभी मत त्याग करो।। ।

देर से उठना देर से सोना ,यह है आलसीपन की निशानी।
बाद में हाथ पर हाथ धरे रह कर होगी तुम को ही परेशानी।।

किसी न किसी रुप में आलस्य आकर हमें सताएगा।
हमारे कार्यो में रुकावट डाल कर हमारी उन्नति के मार्ग को अवरूद्ध कर हमें भ्रमाएगा।
हमें मन में यह दृढ़ संकल्प जगाना होगा।
शरीर और मन से प्रमाद को दूर भगा कर अपनें में उत्साह जगाना होगा।।

दीपावली ( कविता)

“वैभव और सम्पन्नता का प्रतीक  है दीपावली।

राष्ट्र और समाज के प्राण का प्रतीक है दीपावली।।

उज्ज्वलता और स्वच्छता का आवरण पहने हुए,

घरों में जगमगाते दीपों के प्रकाश का त्योहार है दीपावली।।,,

 

दीपावली कार्तिक मास की आमावस्या को है मनाई जाती।

हर घर घर में खुशी भरी लहर है छाई रहती।। जीवन की परेशानियों और अंधकार को मिटाकर, खुशहाली भरा पैगाम है लाती।

परिवारजनों  में चारों ओर रौशनी की किरणें हैं बिखराती।।

दीपावली में चार चांद लगानें का काम दीप करतें हैं।

हर जगह रौशनी फैला कर लोंगों में स्नेह और अपनत्व की भावना जगा देंतें हैं।।

दीपावली बच्चों में उमंग और उत्साह है जगाती।

हंसी भरे वातावरण में बच्चों के चेहरों पर खुशी की रौनक है लाती।।

बाजारों में पटाखों और फुलझड़ियों की दुकानें खूब सजती हैं।

जगह जगह  पर बच्चों की मुस्कान-भरी नजरें उधर ही टिकी  रहती  हैं।।

रंग बिरंगे कपड़े पहन कर बच्चे पटाखे खूब चलाते हैं।

आतिशबाजी और फुलझड़ियां  चला कर अपनी खुशी झलकाते हैं।।

इस दिन 14वर्ष का वनवास काट कर  भगवान श्री राम चन्द्र जी  सीता माता सहित अयोध्या लौटे थे।

उनके  स्वागत  की खुशी में लोग  दीपावली का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनातें हैं।।

 

आमावस्या की रात्रि में लक्ष्मी धरती पर भ्रमण है करती।

लोगों को वैभव और सम्पन्नता का आशीष है देती।।

लोग माता लक्ष्मी को बेलपत्र और कमल का फूल हैं चढाते।

धन के देवता कुबेर को भी प्रसन्न करनें का यत्न भी है करते।।

गणेश जी को दूर्वा भी है अर्पित करते।

शंख और घंटी बजा कर उनका पूजन भी करते।।

सारे लोग मिल जुलकर इस उत्सव को  हर्ष से मनातें हैं।

वैर भाव छोड़ कर एक दूसरे से  प्रेम, सद्भावना और सहानुभूति  दर्शाते हैं।।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के दिखाए मार्ग का अनुसरण जब हम करेंगें,

तभी तो इस पर्व को खुशी खुशी मना पाएंगे।।

शन्नो चाची

शन्नो चाची को  सुल्तान पूर  गांव में आए हुए छःसाल हो चुके थे। किसी को मालूम नहीं था कि शन्नों चाची कहां से आई? उन्होंने भी अपना परिचय किसी को नहीं दिया था कि वह कौन है? कहां से आई है।? उनको देखकर ऐसा लगता था मानो साक्षात् देवी हो। अपने मधुर व्यवहार से सबको अपना बनाने की क्षमता उन में भरपूर मात्रा में मौजूद थी। जब वह उस गांव में आई थी तो उनके पास रहने के लिए भी घर नहीं था। आज उनके पास अपने रहने के लिए एक छोटा सा किराए का घर है। वह जब  सुल्तानपुर स्टेशन पर यूं ही  काम की तलाश में मारी मारी घूम रही थी एक गांव के सज्जन व्यक्ति ने उन्हें ठंड से ठिठुरते हुए देखकर उन्हें एक शाल ओढनें के लिए दे दी। शॉल लेकर बोली बाबूजी में भिखारी नहीं हूं। इस वक्त मैं ठंड से कांप रही हूं। आपने मुझ पर दया की है। मुझे ठंड से बचाने लिया है भगवान आपका भला करें। मैं आपका सामान उठाकर आपके घर छोड़ देती हूं। प्रभाकर  राव ऐसे भी गांव में अपने दोस्त के पास आए थे। वह बोले ठीक है तुम मेरा सामान सुल्तानपुर छोड़ दो। सुल्तानपुर उस गांव के पास ही तीन किलोमीटर की दूरी पर था।

शाम का समय था। वह साहब का सूट केश ले कर उन के पीछे पीछे चलने लगी।  उस नें शूट केश सुल्तानपुर पहुंचा दिया। प्रभाकर राव जी  लोगों से रास्ता पूछ पूछ कर अपने दोस्त के घर पहुंच गए। प्रभाकर राव ने उस बुढ़िया की सारी कहानी अपने दोस्त को सुनाई। उन्होंने उस बुढ़िया को देख कर कहा कि तुम कहां जा रही हो वो बोली मैं तो काम की तलाश में निकली थी? जहां मुझे दो वक्त खाने को रोटी मिल जाया करेगी वहीं पर खटिया बिछा कर पडी  रहूंगी। शेखर बोले माई तुम्हारी नौकरी पक्की। तुम्हे घर में  केवल झाड़ू पोछा करना है। तीन-चार कमरें हैं। बाहर से लोग आते हैं उनके लिए कमरे को हर रोज सुव्यवस्थित करके रखना है। वह बोली साहब आपका धन्यवाद। शेखर ने उसे काम पर रख लिया। उसने वहीं पर किराए का मकान उसे दे दिया। एक  छोटी सी खोली ले ली। वहीं पर वह रहने लगी। हर रोज सफाई कर के मंदिर में भगवान के दर्शन करने जाती। इस तरह  काम करते-करते उसे  पांच साल हो गये। उसने काफी रुपये भी  इकट्ठे कर लिए थे। उस से जब कोई पूछता कि माई तुम्हारी बच्चे कहां है? पति कहां है? वह कुछ भी बता नही पाती। बच्चों ने भी उसे छोड़ दिया था। बच्चे भी उसको देखने नहीं आते थे। उनके दो प्यारे प्यारे बच्चे थे। एक लड़का और एक लड़की थी। लड़की भी शादी करके अपने ससुराल चली गई थी। बेटा भी नौकरी कर दूर रह रहा था।

एक दिन जब उससे शेखर प्रताप ने पूछा कि माई बताओ तुम्हारा घर है क्या? वह कुछ नहीं बोली। उसे कुछ भी याद नहीं था। उसे धीरे धीरे कुछ कुछ याद आया। उसकी अपने घर गृहस्थी थी। अपने पति सुखविंदर के साथ कुशीनगर नगर में रहती थी। अच्छी खासी कमाई थी। बच्चों को पढ़ाया लिखाया। उसे कुछ कुछ याद आ गया। वह अपने घर में किसी को भी भूखे नहीं जाने देती थी। सभी का आदर सत्कार करती थी। उसे बच्चों से बेहद लगाव था। वह किसी को भी दुखीः नहीं देख सकती थी। उसके पति और बच्चे  भी उस से बहुत ही प्यार करते थे। उसे  भूलने की बीमारी थी। वह हर बात भूल जाती थी। उसके पास भगवान का दिया सब कुछ था। मेहनत कर के खुब सारा रुपया कमा लेती थी। सिलाई कढ़ाई भी किया करती थी। उसके घर जो भी मेहमान आते उनकी खूब आवभक्त करती। जब भी उस से कोई रुपया मांगता, उसके पास होता तो वह कभी उसे मना नहीं करती थी। उसके बेटे बेटी और पति उसे कहते तुम हर किसी को रुपया दान दे देती हो। बाद में तुम्हें कुछ याद भी नहीं रहता कि तुमने किसे रुपया दिया है? वह  उन्हें कहती  जरूरतमंद इंसान की  हमें अवश्य मदद करनी चाहिए। उसकी इस बात से उसके पति उससे गुस्सा होते थे। वह कहती थी कि मुझसे किसी का दर्द नहीं देखा नहीं जाता।

एक बार की बात है कि उसकी बेटी और बेटा भी घर आए हुए थे। उसकी बेटी बोली मां आपको भूलने की बीमारी है। मैं आपको कितनी बार फोन करती हूं। आप कहती हैं कि मुझे तुम फोन ही नहीं करते। आपको याद ही नहीं रहता। उस की  भूलनें की बीमारी दिन-रात बढ़ती जा रही थी। एक दिन उसके गांव का युवक श्यामू आकर बोला। चाची आप मेरी मदद अवश्य करेगी। इस वक्त मुझे रुपयों की बहुत ही आवश्यकता है। एक आप ही है जो मेरी सहायता कर सकती हैं। मेरा छोटा मोटा व्यापार था। वह भी नहीं चला। मैंने बहुत सारे व्यापार करके देख लिए। कपड़े बेचने का, टीवी इलेक्ट्रॉनिक की दुकान खोली, सारे व्यापार में मुझे घाटा ही हुआ। हर व्यापार में मुझे घाटा ही हुआ। मेरा व्यापार नहीं चला। व्यापार करना मेरे बस की बात नहीं है। मैंने सारे साल लग कर डॉक्टरी की पढ़ाई कि मैं डॉक्टर बनना चाहता था परंतु मेरे मां बाप ने मुझे व्यापार में डाल दिया। मेरे मां बाप भी अब मेरी सहायता नहीं कर रहे हैं। किस मुंह से लोगों से रुपए मांगू। वह सारे लोग समझते हैं कि जब तुमसे व्यापार ही नहीं चला जिस व्यापार में भी तुमने हाथ डाला हुआ सब नष्ट हो गया। हम तुम्हें रुपए कैसे दें? तुम्हारे माता-पिता भी तुम्हें रुपया नहीं दे रहे हैं। तुम हमारे रुपए कैसे वापस करोगे? मैं आपके घर आकर आपके बच्चों के साथ खेला हूं। यह कहते कहते हैं उसकी आंखों से आंसू आ गए। वह बोला  शन्नों चाची एक बार मेरी सहायता कर दो। मैंनें  डाक्टरी की  परीक्षा के लिए फॉर्म भरना है। मेरे पास फार्म भरने के लिए रुपए नहीं है। मुझे पक्का विश्वास है कि मैं  स्लैक्ट हो जाऊंगा। आप के रुपए  एक न एक दिन अवश्यक वापस कर दूंगा।  आप को मुझसे पर विश्वास करना होगा। उसकी करुणा-भरी पुकार सुनकर बुढ़िया का दिल भर आया। उसकी आंखों में उसे सच्चाई नजर आई। वह अपने आप को रोक नहीं सकी। अपनें बेटी और बेटे के पास जाकर बोली।आज  श्यामू मुझसे किसी जरुरी पढ़ाई के लिए रुपए मांगने आया था। मुझे उसकी बात में सच्चाई नजर आई। क्या मुझे उसकी मदद करनी चाहिए? उसके बेटे और बेटी ने उसकी बात को सुना अनसुना कर दिया। उन्होंने कहा मां  आपको किसी को भी रुपया देने की जरूरत नहीं। आप  रुपया दे कर भूल जाती हो। आप को  ना जाने कितने लोग आप से रुपये  ले जाकर वापस ही नहीं करते। आप उनकी सहायता नहीं करेंगी। वह निराश होकर अपने पति के पास जाकर बोली आज एक बेचारा बच्चा अपनी पढ़ाई के लिए रुपए मांगने आया था। मुझे उसकी मदद करनी चाहिए क्या? उसके पति बोले तुम्हारी फालतू फालतू बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। ना जाने कितने लोग  तुम्हें बेवकूफ बना कर चले जाते हैं। यहां से चली जाओ। मेरे पास और भी काम है। तुम अपने आप अपनी समस्या का समाधान खोजती फिरो।  हमें रुपया पानी की तरह बहाना नहीं चाहिए। वह  निराश हो कर अपने कमरे में चली गई। उसकी आंखों के सामने उस बच्चे की करुणा – भरी पुकार सुनाई देने लगी।अपने कमरे में गई। श्यामू को  पूछा। तुम्हें कितने रुपए चाहिए? श्यामू बोला मुझे 2000 की सख्त जरूरत है। उसने 2000रुपये  दे कर कहा यह लो बेटा और अपना फार्म भर लो। श्यामू रुपए लेकर बोला। चाची आपका भला हो। मैं आपके रुपए वापस कर दूंगा। इस बात को कई साल व्यतीत हो गए। बच्चे भी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए।

उसके पति की मृत्यु भी हो चुकी थी। उसके बच्चे भी विदेश में सैटल हो गए थे। उसके पति ने किसी बैंक से कर्ज लिया था। उस बैंक का कर्जा चुकानाअभी बाकी था। उसे भी घाटा ही घाटा हो रहा था। पति की मृत्यु के बाद उसे अपना मकान भी बेचना पड़ा। उसके पास रहने के लिए भी घर नहीं था। इसलिए नौकरी ढूंढते ढूंढते सुल्तानपुर आ पहुंची थी। सुल्तानपुर आकर वहां पर  एक कपडे के व्यापारी शेखर प्रताप  के घर में उसे झाड़ू पोचा लगानें का काम मिल गया था। अपने मधुर व्यवहार से  शन्नों चाची सबको अपना बना लेती थी। सारे मोहल्ले के बच्चे  भी उसे बहुत ही प्यार करते थे। वहां पर उसने किराए का घर भी ले लिया था।

बच्चों को हर रोज वह टॉफियां बांटती। बच्चे भी चाची चाची कह कर उसकी पीठ पर चढ़ जाते। उससे लिपट जाते। बच्चों को डांटती भी और वह प्यार भी करती थी। बच्चों को इकट्ठा बैठाती थी। उनके साथ बैठकर जो कुछ भी लाती बच्चों को भी देती और अपने आप भी खाती। कोई भी मोहल्ले में  जब बिमार होता उसको देखने दौड़ी दौड़ी चली जाती।

एक बार मोहल्ले में एक वृद्ध दंपत्ति रहते थे। उनका बेटा बीमार पड़ा तो उस बच्चे के पास रात रात भर कर उसे देखती रही। कुछ शरारती तत्व लोग उस से रुपया  उधार ले जाते थे। वह बाद में उसे  बुदधू बनाकर उसे  रुपया वापस भी नहीं करते थे। जब उसे याद आता था तो वह उन्हें कहती थी कि मेरे रुपए वापस करो तो लोग उस से कहते थे कि तुमने हमें रुपए कब दिए? इस तरह वह उस बुढ़िया के ना जाने कितने रुपए  उस से ठग कर ले जाते थे। वह तो अपना घर बनाने के लिए दूसरे शहर में आई थी।  उसके पास कुछ भी रुपया नहीं बचता था। वह सोचती थी कि अपने गांव वापस जाकर वही अपना छोटा सा घर बनाऊंगी।। लेकिन उसके पास इतने रुपए इकट्ठा ही नहीं हो रहे थे।

दिवाली का त्यौहार  भी नजदीक आ रहा था सभी लोग दिवाली की खरीदारी कर रहे थे। शन्नों चाची भी  बाजार जाकर बच्चों के लिए पटाखे और मिठाई ले आई। बच्चों के संग दिवाली मनाना चाहती थी।

दिवाली वाले दिन सारे बच्चे उसे घेर कर उसे बैठ गए। वे उसे कभी नें लगे  हमें दिवाली की मिठाई दो। उसने सभी को मिठाई बांटी। घर में केवल एक ही मक्की की रोटी बची थी फिर भी  वह खुश नजर आ रही थी।

श्यामू अपने घर अपने गांव सुल्तान पर पहुंचा तो उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसके माता-पिता भी इस दुनिया में नहीं थे। वे दोनों भी मर चुके थे। उसका कोई भी  अपना नहीं बचा था वह इतना मशहूर डॉक्टर बन चुका था। अपने गांव पहुंचकर उस से रहा नहीं गया। उसकी आंखों से आंसू बहनें लगे। आज उसके माता-पिता जिंदा होते तो उसे देखकर उन्हें बहुत ही खुशी होती। उसके पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। कमी थी तो एक मां बाप की। उसने के पास चमचमाती गाड़ी, बंगला, इतनी धन दौलत, लेकिन उसका आज कोई भी जीवित नहीं बचा था। सबसे पहले वह शन्नों चाची के घर पहुंचकर उसका शुक्रिया अदा करना चाहता था। उनको मिलकर बताएगा कि वह आज एक बहुत ही मशहूर  डाक्टर बन गया है। उसकी मदद शन्नों चाची नें उस वक्त की जब सभी लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया था। कोई भी उसकी मदद नहीं कर रहा था। बेचारी चाची उसके लिए मैं जितना भी करूं वह कम है। शन्नों चाची उसकी मदद  नहीं करती  तो वह कुछ भी नहीं बन पाता। निराश होकर आत्महत्या कर देता। मैंने चाचा चाची को बातें करते भी सुन लिया था वह कह रहे थे कि तुम्हें उस बच्चे की सहायता करने की कोई जरूरत नहीं। चाची के बच्चों ने भी उसे रुपया देने के लिए मना कर दिया था।

चाची ने फिर भी चोरी छिपे मेरी सहायता की थी। उन्होंने मुझे परीक्षा का फार्म भरने के लिए ₹2000 दिए थे। उनके कारण ही आज  वह इतना बड़ा डॉक्टर बन पाया। आज उन के गले लग कर उन्हें कहूंगा कि जब भी किसी चीज की जरूरत हो तो मैं उनकी हर दम सहायता करने के लिए तैयार हूं। श्यामू जल्दी से चाची के घर पहुंचना चाहता था। वह  जैसे ही चाची के घर पहुंचा उसने दरवाजा  खटखटाया तो किसी और ने ही दरवाजा खोला। श्यामू ने कहा शन्नों चाची यहां पर रहती थी। वह कहां गई?  यहां तो कोई शन्नों चाची नहीं रहती। यहां पर जो बुढिया रहती थी पांच साल पहले उनके पति का देहांत हो चुका। हमें उसका नाम मालूम नहीं। उसके पति ने किसी बैंक से कर्जा लिया था। वह उसको चुका नहीं पाए थे। बाद में उन को मुश्किलात का सामना करना पड़ा। उसे अपना घर बेचना पड़ा। हमने उस बुढ़िया से घर खरीद लिया। वह बुढिया न जाने कहां चली गई? श्यामू को शन्नों चाची के बारे में  किसी नें भी कुछ नहीं बताया।

एक दिन किसी अपनें गांव में ही कार्य के सिलसिले में बाहर गया हुआ था। उसे शन्नों चाची के घर के समीप रहने वाले एक सज्जन व्यक्ति  दिखाई दिए। श्यामू से रहा नहीं गया। वह बोला राजन अंकल क्या आपको पता है कि यहां आपके घर के पास एक चाची रहती थी। जिनका नाम शन्नो था। वह अब कहां रहती है?

वह कहां गई? राजन अंकल बोले बेटा उस बेचारी को तो बहुत ही मुसीबतों का सामना करना पड़ा। उसके पति की मृत्यु के बाद उसको कर्जा चुकाने के लिए बहुत ही पापड़ बेलने पड़े। उसे अपना घर बेचना पड़ा।  उस के बच्चे भी उस से  कभी मिलनें नहीं आए। उन्होंने उसे अकेला छोड़ दिया।  वह बेचारी तो आजकल सुल्तानपुर  के व्यापारी शेखर प्रताप सिंह के घर पर काम करती है। वह  कपडा बेचने वाले मशहूर व्यापारी है। उनकी कपड़े का व्यापार है। वह बेचारी अब बहुत ही बुड्ढी हो चुकी है। वह बीमार ही रहा करती है। उसे भूलने की बीमारी है। श्यामू  से रहा नहीं गया उसने सुल्तानपुर जाने के लिए गाड़ी मोड़ दी।उसके पैर जमीन पर भी नहीं पड़ रहे थे। आज वह शन्नों चाची को ढूंड कर ही वापिस आएगा। वह तो चाची संग दीवाली मनाएगा। यह उसकी सबसे अनोखी दिवाली होगी। आज ही तो उसकी सबसे अच्छी दिवाली होगी। चाची भी उससे मिलकर  खुश हो जाएगी।

 

आज चाची 70 साल की हो गई होगी। कोई बात नहीं। मैं उसे याद दिलाऊंगा। वह मुझे पहचान पाएगी। श्यामू सुल्तानपुर पहुंचने ही वाला  था। उसनें मिठाई का डिब्बा खरीदा और पटाखे भी।

शेखर प्रताप सिंह के घर जाकर कहा आपके घर पर शन्नो नाम की महिला काम करती है।

शेखर प्रताप  नें जब किसी नौजवान युवक को चमचमाती गाड़ी में आते हुए देखा तो वे बोले कि हां बेटा शन्नों चाची  यही पर काम करती हैं। वह बहुत ही नेक दिल  औरत है। सबका भला करती है। सबके साथ मिलकर रहती हैं। खासकर बच्चों के साथ उसका बहुत ही लगाव है। वह अपना सारा रुपया जो कुछ कमाती हैं बच्चों में बांट देती है। हमें उसके बारे में इससे ज्यादा और कुछ पता नहीं है। वह कहां से आई है? हमने हमने उससे पूछा, तुम्हारे पति क्या काम करते हैं? तुम्हारे बच्चे कहां है? उसने अपने पति और बच्चों के बारे में कभी किसी को कुछ नहीं बताया।

श्यामू  की आंखों से आंसू बहने लगे। उसको रोता हुआ देखकर प्रताप सिंह अपने आप को रोक नहीं सके। वह बोले बेटा, तुम रो क्यों रहे हो? क्या वह तुम्हारी मां है? वह बोला हां, वह मेरी मां है। वही तो मेरी मां है। मैं उसे ना जाने कब से ढूंढ रहा था। जल्दी से बताओ वह कहां रहती हैं?

शेखर प्रताप सिंह बोले पास ही में उनकी एक छोटी सी खोली हैं।  आज दिवाली, मैं उनके संग  मनाना चाहता हूं और उन्हें यहां से ले जाना चाहता हूं। इस प्रकार पुछते पुछाते श्यामू चाची की खोली के पास पहुंच गया। लोग हैरत भरी निगाहों से  चाची की खोली के पास  चमचमाती गाड़ी को  खड़ी देख रहे थे। वह कौन नौजवान है? जो किशन चाची के घर के पास इतनी मंहगी गाड़ी लेकर आया है। श्यामू को घर के बाहर बच्चों की फौज नजर आई। चाची उन बच्चों को  पटाखे दे रही थी और मिठाई भी बांट रही थी। श्यामू बोला पहचाना मुझे। वह बोली बेटा तुम कौन हो?  वह बोला चाची मजाक मत करो। मुझे बड़े जोर की भूख लगी है। वह बोली बेटा तुम कहां से आए हो? शन्नों चाची बोली कि मेरा चश्मा भी टूट गया है। मैं तुम्हें ठीक ढंग से देख भी नहीं पा रही हूं। तुम्हें भूख लगी होगी। पहले तुम कुछ खा पी लो। उसके पास केवल एक ही मक्की की रोटी थी। उसने वह रोटी श्यामू को खिला दी। उसके हाथ से खाना खाकर श्यामू को बहुत ही अच्छा लगा बोला। मैं श्यामू हूं।

 

सारे मोहल्ले के लोग शन्नों चाची के घर के पास खड़े उनकी बातें सुन रहे थे। जब श्यामू ने उस की गोद में सिर रख कर कहा मेरे सिर की मालिश भी आप हीं किया करती थी। उसे तब कही जा कर याद आया।  एक बार मैं आपसे रुपए मांगने आया था। मैं डॉक्टरी की पढ़ाई करना चाहता था आपने मेरी सहायता की थी। आपने चोरी छिपे मुझे रुपए दिए थे। आप उस दिन मेरी सहायता नहीं करती तो मैं कभी भी डॉक्टर नहीं बन पाता।

चाची को अचानक याद आ गया। उसके गले से फूट-फूट कर रोने लगी। श्यामू को पहचान गई थी।श्यामू बोला मैं आपको अपने घर ले जाने आया हूं। आप अब यहां पर नहीं रहेंगी। आप मेरे साथ चल कर  मेरे घर पर रहेंगी। सारे के सारे गांव के लोग उन दोनों को गले मिलते हुए  देखकर बहुत ही खुश हुए। उन्हें खुशी हो रही थी  कि  आज एक बेटा अपनी मां को लेने आया है। लोग हैरान थे।

श्यामू ने अपने हाथ से पकड़ कर शन्नो चाची को गाड़ी में बिठाया और अपने साथ अपने गांव लेकर आया।  उसनें चाची का मकान भी छुड़वा लिया था। चाची भी अब उसके साथ ही रहने लगी थी। वह उसे चाची  मां कह  पुकारनें लगा। घर की खुशियां लौट आई थी। चाची के बच्चे भी उसे लेनें आए जब उन्हें पता चला कि मां श्यामू के साथ रह-रही हैं। शन्नो चाची नें कहा कि मैं तो यहीं रहूंगी। तुमने मुझ से मिलने आना हो तो खुशी खुशी आ सकते हो। यहां पर भी मैं अपनें बेटे के साथ  ही  हूं।  घर की खोई खुशियां लौट आई थी। Continue reading “शन्नो चाची”