जल का महत्व

नल को यूं ना खुला छोड़ो।।

जल से अपना नाता जोड़ो।

जल की उपयोगिता सब को समझाओ।

यूं ना एक बूंद बूंद को व्यर्थ  गंवाओ।

जल है जीवन का आधार।

यूं न करो इसे बेकार।।

घर की फुलवारी का बहते पानी की नाली से नाता जोड़ो।।

पानी की बूंद बूंद को यूं ना बहता छोड़ो।

बूंद बूंद से भरता बर्तन।

तन मन को निर्मल करता बर्तन।।

जल से ही है जीवन सबका। इसे यूं न व्यर्थ का गंवाओ।

हर बच्चे बूढ़े को पानी का महत्व समझाओ। पानी की ऊपयोगिता समझ कर  इसको बचाओ।।

अनोखा मिलन

अनोखा मिलन

आज होली का दिन था ।सभी बच्चे अपने घरों में होली खेल रहे थे। नन्हा सा रौनित भी होली खेलना चाहता था पर उसकी मां उसे कभी होली खेलने नहीं भेजती थी। रौनित का दिल करता कि वह भी पानी से भरी बाल्टी में पिचकारी से रंग खेले, परंतु उसकी मां ने उसे कभी भी होली खेलने नहीं जाने दिया। उसकी मां गरीब थी वह बर्तन  साफ कर अपना तथा अपने बच्चे का पेट भरती थी ।आज तो रौनित ने हद ही कर दी । वह अचानक अपने दोस्तों के साथ होली खेलने चुपके से चला गया और जब वापस घर आया तो रंगों से सराबोर होकर आया ।सारे कपड़ों में रंग  ही रंग बालों में भी रंग और आते ही उसने अपने मासूम से हाथों से अपनी मां के गुलाल मल दिया और अपनी तोतली ज़ुबान से बोला हैप्पी होली। माँ ने आव देखा ना ताव एक ज़ोरदार थप्पड़ मारकर बेचारे  रौनित के होली खेलने के मजे को किरकिरा कर दिया । उसकी माँ  को ख्याल आया कि मैंने क्यों उस बेचारे को थप्पड़ मारा? वह क्या जानता है कि होली के दिन उसके पापा हम सबको छोड़कर चले गए थे। वह दर्दनाक हादसा मैं भुलाए नहीं भूलती । वह  अपने पति के साथ बहुत खुश थी। उसके पति उसे बहुत ही प्यार करते थे । वह उनके साथ बाजार से सामान लाने गई थी ।अचानक उसका कुछ सामान दुकान में ही रह गया था। उस दिन होली का दिन था वह सामान लेने के लिए रौनित के साथ नीचे उतर गई ।उस दिन घर में मेहमान आने वाले थे। उनकी शादी की सालगिरह थी। रौनित के पापा ने कहा, तुम दोनों दूसरी बस में आ जाना ।रौनित उस समय पांच महीने का था। रौनित को गोद में लेकर नीचे उतर गई ।उसे क्या पता था कि होली की रात उसके जीवन में उस से सदा के लिए उसकी ख़ुशियाँ छिनने के लिए आई है ।उस दिन बस के एक्सीडेंट में रौनित के पिता को सदा के लिए उन से दूर कर दिया था ।उस भयानक काली स्याही रात को कभी भी वह नहीं भूलती थी,जब भी होली आती उसे ऐसा महसूस होता की वह क्यों जिंदा है ? परंतु अपने मासूम बेटे की तरफ देखकर वह अपना गम भुलाने की कोशिश करती परंतु आज रौनित ने उसे गुलाल लगा कर सारी यादें ताज़ा कर दी ।उसे अपने ऊपर गुस्सा आने लगा मैंने छोटे से बच्चे को थप्पड़ क्यों मारा? उस  बेचारे का क्या कसूर ।अपने दोस्तों को होली खेलते देख कर उसका भी होली खेलने का मन करता होगा। उसे बताते भी तो उसे क्या समझ आने वाला था ?अपनी मां को रोते देख कर उसने अपनी मां से कहा । माँ सब लोग अपने घरों में त्यौहार मनाते हैं । हम होली क्यों नहीं मनाते। एक दिन तुम बड़े होकर समझ जाओगे इस बात को बहुत दिन गुज़र गए । मां दूसरों के घरों में काम कर कर कर जो कुछ बचता  उससे घर का खर्चा चला रही थी।उस से उनका निर्वाह हो रहा था। उनके पास रहने के लिए दो कमरे तो थे ।एक कमरा उन्होंने किराए पर दे रखा था ।उनके पड़ोसी जिनको उन्होंने किराए पर मकान दिया था उनसे काफी घुल मिल गए थे । वह पुनीत को अपना छोटा भाई मानती थी । पुनीत को राखी वाले दिन राखी बांधती थी ।पुनीत और उसकी पत्नी उनके घर में रहने लगे थे। एक कमरा रोहित की मम्मी ने उन्हें दे रखा था ।उनको ऐसा लगता था कि वह उनके परिवार का ही हिस्सा हो। पुनीत और उसकी पत्नी उन दोंनों से बहुत प्यार करते थे ।पुनीत ऑफिस में काम करता उसकी पत्नी भी पार्ट टाइम जॉब करती थी । उनके घर में भी नन्हा मेहमान आने वाला था ।पुनीत की पत्नी की यह पहली संतान थी ।धीरे-धीरे प्रसव का समय नजदीक आता  जा रहा था ।पुनीत ने इसकी पहले से ही तैयारी कर रखी थी।

।रोहित की मम्मी ने कहा भैया तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है तुम्हारी बहन हर मुश्किल  में तुम दोनों के साथ रहेगी।सुमित को ऐसा महसूस होता कि उसने अपने अपने मां बाप की सूरत तो नहीं देखी उसे बहन के रूप में एक  मां मिल गई थी। विभा के भी माँ बाप नहीं थे। दोनों मां बाप के प्यार से वंचित थे। वह दोनों सोचते यही हमारा परिवार है।वह सभी दोस्तों से कहते एक बहन के इलावा हमारा इस दुनिया में और कोई नहीं है ।मैं बहुत ही भाग्यशाली हूं ,जो तुम्हारी जैसी बहन मिली शायद मैंने पुनर्जन्म में कोई अच्छे काम किए होंगे ,जिसकी वजह से आज मुझे इतनी सुंदर बहन मिली है ।

वो दिन  भी आ गया जिस दिन का सभी को  बेसब्री से इंतजार था। होली का त्यौहार भी पास आ रहा था। अचानक होली के दिन उनके घर में एक नन्हा सा मेहमान आ गया था ।रोहित की माँ उस नन्हे से फरिश्ते को गोद में लेकर  इतनी खुश थी कि उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी । रोहित अपनी  मां के पास आकर बोला मां मुझे भी होली खेलनी है। उसकी मां ने कहा हां हां बेटा ,आज हम सब होली खेलेंगे।

आज मैं भी होली खेलूंगी । हम  आज अपने घर मे ही होलीं मनाएंगे ।रंगों से होली खेलेंगे । बाहर के  बनाए गए रंगों में ना जान कितने रसायनयुक्त विषैले तत्व होते हैं जो हमारे शरीर और त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं आज हम अपने घर में ही रंग बनाएंगे  और उस नन्हे से फरिश्ते को भी तिलक लगाएंगे

।नन्हा रौनित अपनी माँ को मुस्कुराता हुआ देखकर बोला, माँ  आज आप घर में कैसे रंग बनाएंगे?  रोहित की माँ ने कहा बेटा, जो मेहंदी घर में पड़ी हुई है उसमें हम  आटा मिलाएंगे और उसको पानी में डुबाएंगे। हम उस में फिर बेसन मिलाएंगे तो पीला रंग बन जाएगा । बेसन में मेहंदी मिलाकर घोलेंगे तो पीला रंग बन जाएगा और पुनीत मां जो चुकंदर खाने के लिए लाए हैं उसको पानी में उबालकर डालेंगे तो उससे गुलाबी रंग बन जाएगा ।हम सब  इस तरह अपने ही घरों में रंग बनाकर होली खेलेंगे।

आज का दिन हम सभी के लिए खास है। आज के बाद मैं तुम्हें होली खेलने से कभी भी नहीं रोकूंगी ।सभी खुशी-खुशी होली मनाते हैं।

(होली का त्योहार)

होली त्योहार है उल्लास के रंगों में  सराबोर  होने का।

खुशियों और उमंगो का।

होली त्यौहार है रागदैष को भुलाकर एक दूसरे के गले मिलने का।

यह त्योहार है एकता और भाईचारे का।

बुराई अंह कार और नकारात्मक रूपी राक्षस को जलाने का।

निरसता को दूर करने का।

एक दूसरे के रीति-रिवाज को अपनाने का।

यह त्यौहार है धान या फसल को तैयार कर इस अन्न को खाने का।

राग और रंगों का  यह त्योहार है बंसत के आगमन का।

फूलों की आकर्षक छटा का।

होलिका दहन की पवित्र अग्नि  का।

रंग अबीर और गुलाल फैंकनें का।

प्रेरणा और समरसता का।

रूढ़ीवादी मान्यताओं को त्यागने का।।

राधा कृष्ण की होली के जरिए साकार परमात्मा के प्रेम को महसूस करनें का।

प्रकृति की सुन्दरता में चार चांद लगाने का।।

होली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ

                                 मीना शर्मा

(आज का काम कल पर मत छोड़ो)

आज का काम कल पर मत छोड़ो।

अपनी इस आदत को जल्दी बदल डालो।।

कल कल करते करते आज कभी नहीं आएगा। अरे! मानव इस भाग दौड़ में तू हमेशा पीछे छूट जाएगा।।

जिंदगी में कुछ करना चाहते हो तो हवाई किले बनाना बंद करो।

कुछ नया करके उत्साह के साथ आगे बढ़ो।। दृढ निष्ठा और बुलंद हौसले से आलस पन पर विजय पाओ।

पहले हर जरूरी काम करने की आदत बना डालो।।

सोच समझकर सही दिशा में आगे बढ़ो।

आगे बढ़कर अपनी परेशानियों को कम करो।। छोटी-छोटी खुशियों को नजर अंदाज मत करो।

खुशियां और गम दोनों को गले लगाकर अपनी किस्मत बदल डालो।।

चुनौतियों को स्वीकार कर गले लगाओ।

रूढ़ीवादी  परम्पराओं को बदल  कर दिखाओ।।

कड़ी मेहनत और सही दिशा में कार्य करना सीखो।

आत्मविश्वास और लग्न के साथ काम कर बेहतर जीवन शैली को अपना डालो,

साहस के बल पर अपने जीवन के उद्देश्य को सफल कर डालो।।

आलोचनाओं को सहकर भी श्रेष्ठ प्रदर्शन कर दिखाओ।।

आलोचना करने वालों के साथ भी दोस्ती का कदम बढ़ाओ।।

गया वक्त लौट कर कभी नहीं आएगा।

जो कुछ  बिगड़ चुका है वह संवर जाएगा।।

किस्मत की रेखाओं को खुद बदल डालो। भाग्य के भरोसे बैठे मत रह जाओ।।

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(लौट के बुद्दधू घर को आए)

एक गांव में एक विद्वान पंडित रहा करता था। नदी के किनारे पर उसने अपना घर बनाया हुआ था। अपने हाथों से काम करने में  पंडित को बहुत ही मजा आता था। हर रोज नित्य क्रम से निवृत  हो कर अपने खेतों में हल चलाता और सारे काम  स्वयं किया करता था। उसने अपने घर में एक गाय पाली हुई  थी।उसकी  वह निरन्तर देखभाल किया करता था। वह पूजा पाठ  भी करता था। पंडित का काम  भी किया करता था। वह अपने मन्त्रों के बल  से अपने गांव में हर एक बिमार व्यक्ति को ठीक कर दिया करता था। गांव वाले उसकी बहुत ही इज्जत किया करते थे। गांव वालों मे उसकी बहुत  ही धाक थी। गांव का जब भी कोई   व्यक्ति बीमार पड़  जाता तो उस गांव के लोग   अपनें घर पर उसे बुलाकर ले जाते। उसके मंत्रों में इतनी शक्ति होती थी कि  गांव में  उसके  घर पर आने जानें वाले लोगों की भीड़ लगी रहती थी।वह उन्हीं लोगों को देखता था जो बहुत ज्यादा बिमार होते थे। वह मुफ्त में उनका इलाज किया करता था। उसने लोगों को बताया था कि हर व्यक्ति मन्त्रों  से ठीक नहीं हो  सकता। इलाज करना बेहद जरूरी होता है। डॉक्टर के पास ले जाना भी बहुत ही आवश्यक होता है। अगर डॉक्टर की दवाई काम ना करें तो तुम मेरे पास आया करो। लोग उसके पास तभी आते थे जब डॉक्टर लोग कहते थे कि  यह आदमी  ठीक नहीं हो सकता। उसके मंत्रों में इतनी शक्ति होती थी कि लोग ठीक हो जाते थे। इसलिए लोग उसकी बड़ी इज्जत करते थे। कोई भी गांव के लोग उससे लड़ाई झगड़ा नहीं करते थे।

उसके गांव में एक चोर भी एक दिन आ धमका। उसकी गाय को देखकर उस चोर के मन में उस गाय को पाने की लालसा जाग पड़ी। वह सोचनें लगा एक दिन मैं इस गाय को अवश्य ही। चोरी करके ले जाऊंगा जब वह पंडित सोया होगा।चोर इसी ताक में हर दिन रहता था कि कब जैसे इस पंडित को नींद आ जाए क्योंकि जागते वक्त तो उसके घर में कोई आने का खतरा मोल नहीं लेता था? चोर सोचता था की चोरी करने के लिए तो रात का समय ही ठीक रहेगा।

एक दिन रात के समय चोर चुपके से उसके घर में घुस गया। उस दिन बिजली गई हुई थी।  चोर नें सोचा आज तो बिजली भी नहीं है। मौके का फायदा उठाना चाहिए। रात के समय पंडित  को झपकी लग गई थी। चोर चुपके से उसके घर पर आ धमका।

पंडित के घर के दूसरी तरफ एक दानव  भी रहा करता था। वह लोगों को सताया करता था। हर आने-जाने वाले व्यक्ति उस से परेशान थे। वह कहता तो किसी को कुछ नहीं था मगर जो चीज उसको पसंद आ जाती थी उसको लिए बिना वह छोड़ता नहीं था। लोग उससे भी बहुत दुःखी थे।  वह राक्षस गांव में किसी व्यक्ति से नहीं डरता था। डरता था तो केवल पंडित से। पंडित के मंत्रों की शक्ति के बल पर वह पंडित से पंगा नहीं लेता था। उसकी नजर भी हरदम पंडित पर होती थी कि कब जैसे पंडित सो जाए।   एक दिन  तो वह उसे मार कर ही दम लेगा। उस गांव में सभी लोग उसकी  भी इसी प्रकार इज्जत किया करेंगे जैसे कि पंडित की करते हैं। एक यही पंडित ही मेरी राह का रोड़ा है। इसको मारने के लिए कोई ना कोई योजना  तो बनानी ही पड़ेगी। रात का कि समय   ही राक्षस ने चुना। वह भी एक  दिन रात को जब बिजली गई हुई थी। पंडित के घर पर  आ  टपका इस बात से अनभिज्ञ कि कोई दूसरा आदमी भी वहां हो सकता है। पंडित जब सोने जाता था तो वह कभी भी लाइट नहीं चलाता था।

उस दिन पंडित दिन भर का थका था। खेतों में उसे अकेला ही काम करना पड़ता था। गाय को चारा खिलाना – गाय  के गौशाला की सफाई करना, उसे पानी पिलाना , उसे चारा खिलाना और पूजा पाठ करना। वह स्वयं ही  करता था। क्योंकि उसे और लोगों पर विश्वास नहीं था?। कहीं उसकी गाय को कोई नुकसान ना पहुंचाए।  वह अपने मन में सोचा करता था कि जब तक मुझसे काम होगा मैं स्वयं ही काम करूंगा। जब नहीं होगा तब किसी अच्छे से युवक को अपने पास काम पर रख लूंगा।

एक बार उसने अपने गाय की चाकरी करने के लिए एक व्यक्ति को रखा था मगर वह तो गाय को हड़पने की फिराक में था। इसलिए जब पंडित को उसकी करनी का पता चला तो पंडित ने उसे काम पर से निकाल दिया। उसे माफ कर दिया और कहा कि आइंदा से यहां आने की जरूरत मत करना।

एक रात जब बिजली नहीं थी तो चोर वहां पर पहुंच गया। अंधेरे में केवल उसे पंडित की चारपाई ही दिखाई दे रही थी। पंडित को गहरी नींद आ चुकी थी तब उससे कोई व्यक्ति टकराया। वह आदमी इतना भयानक था की उसको देखकर चोर डर के मारे थर-थर कांपने लगा। चोर नें अपने मन में सोचा इस पंडित नें तो अपनें मन्त्रों के बल से एक भयंकर-आत्मा को  यहां भेज दिया है। उसकी डरावनी आंखें ही चोर को नजर आ रही थी।  वह राक्षस जैसे ही  उस से टकराया उसे इतनी जोर से बाजू में धक्का लगते लगते लगते बचा। चोर  डर कर भगवान का नाम जपने लगा। राक्षस ने उसे कहा तुम कौन हो? चोर बोला  मैं तो चोरी करनें यहां आया हूं। चोर बोला मैंने सोचा पंडित ने अपने जादू के बल पर किसी आदमी को पहरेदारी के लिए यहां खड़ा कर दिया है। राक्षस  बोला जल्दी में यहां से चले जाओ। यह पंडित मेरा शिकार है। चोर उसकी बात सुनकर अपने मन में हंस लगा यह भी मेरी तरह एक चोर है। वह बोला चोर चोर मौसेरे भाई।

राक्षस बोला मैं चोर नहीं हूं। मैं भी इसी गांव में रहता हूं। मैं एक दुष्ट आत्मा हूं। लोग मुझे दानव कहते हैं। मैं जिस किसी भी वस्तु को पाना चाहता हूं उसे हासिल करके ही रहता हूं। चोर बोला भाई मैं तो एक चोर हूं। मैं भी इस पंडित की गाय को चुराने आया था लेकिन अब लगता है मेरे सपने अधूरे ही रहेंगे। तुम कह रहे हो कि मैं जिस वस्तु को पाना चाहता हूं पाकर ही रहूंगा। राक्षस बोला मैं तो केवल इस पंडित को मारना चाहता हूं। मुझे भला गाय से क्या काम? जब मैं इस पंडित को मार दूंगा तब तुम गाय चुरा कर ले जाना। मैं तो केवल पंडित को ही मारूँगा। चोर बोला अरे वाह! शाबाश में तो केवल इसकी गाय को चुराना चाहता हूं। दोनों ने एक दूसरे से हाथ मिलाया। बातें करते करते पंडित की चारपाई के पास पहुंच गए। पंडित को गहरी नींद आ चुकी थी।

चोर बोला पहले मुझे गाय चोरी करके ले जाने दो फिर तुम पंडित को मार देना। राक्षस बोला ऐसे कैसे हो सकता है? मैं तो ना जाने कितने दिन से इस पंडित के सोने का इंतजार कर रहा था। इसके मंत्रों में इतनी गजब की शक्ति है कि मैं कभी भी इस की पकड़ में नहीं आ सका। लेकिन आज कहीं जाकर मौका मिला है। उसे आज ही गहरी नींद आई है। चोर बोला मैं भी कितने दिनों से इस पंडित के सोने का इंतजार कर रहा था। कब जैसे इस पंडित को नींद आ जाए और मैं अपना काम जल्दी से निपटा लूं। चोर बोला आप तो गांव वालों से सबसे ज्यादा ताकतवर हो। आपको वह गांव वाले आप की दहशत से सब कुछ दे देंगे। मैं ठहरा केवल एक चोर मेरे पास तो चोरी करने के सिवा कोई चारा नहीं।  चोरी नहीं करूंगा तो खाऊंगा  कैसे। कहीं कोई काम भी नहीं देगा। एक दो बार चोरी करते करते पकड़ा गया इसलिए आज तो पहल मुझे  ही करने दे। मैं आपके हाथ जोड़ता हूं।  राक्षस बोला प्यारे दोस्त   तू  भाषण बाजी  में समय हाथ से मत  गंवा, इतना अच्छा मौका आज मिला है। जल्दी से मुझे पंडित के पास जाने दे। चोर बोला नहीं पहले मैं गाय को  ले जाऊंगा। राक्षस बोला अरे! तू पिददी सा तो है। मैं तुझे एक झापड़ लगाऊंगा तो उल्टा तुझे नानी याद आ जाएगी दोनों नें  हाथापाई  करनी शुरु कर दी। हाथा पाई करते-करते  वह दोनों पंडित जी  की चारपाई से जा टकराए। तू तू मैं मैं करते करते  चारपाई से टकराते ही पंडित की जाग खुल गई। पंडित नें अपनें मन्त्रों के प्रभाव से चोर को पकड़ कर  कहा यहां चोरी करने आया था। मेरी गाय को चुराने  की योजना बना रहा था। पंडित ने जोर  जोर से चोर को जमीन पर पटका। चोर  सर पर पैर रख कर भागा। और वहां से नौ दो ग्यारह हो गया। दूसरी तरफ राक्षस की तरफ देखकर पंडित चिल्लाया। अरे! दुष्ट  राक्षस तू तो जल्दी से यहां से चलता बन। अगर तू यहां फिर कभी दिखाई दिया तुझे ऐसा छटी का दूध याद दिलाऊंगा  तू कहीं का नहीं रहेगा। राक्षस की आंखों पर ना जाने क्या जादू किया जिससे उसकी आंखों की रोशनी चली गई। राक्षस और चोर दोनों हाय! मार डाला कह कर, दोनों हाथ मलते मलते लौट के बुद्धू घर को आए।

सैनिकों के प्रति श्रद्धांजलि

कौन कहता है कि मां आपका लाल युद्ध भूमि में मारा गया।

वह तो आपके दूध का कर्ज चुकाता  शहीद हुआ।।

वह रण बांकुरा आपका गुदड़ी का लाल था। वह रण बांकुरा आप की आन बान और शान था।

अपने देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाता शहीद हुआ।

अपना खून बहा कर वीरगति को प्राप्त हुआ।। आपकी तरह ही और  भी माताएं धन्य हुईं।

जिनके अपनों नें देश के प्रति  अपना फर्ज चुका कर जान गवांई।

जिन के बेटे, भाई, सुहाग अपनी जान हथेली पर लेकर दुनिया से रुखसत हो गए।

चिता की राख ठंडी होने से पहले ही उनके मां-बाप के चेहरे मुरझा गए।।

यह वक्त ना जाने कब तक चलता रहेगा।

ना जाने कब तक यह दर्दनाक मंजर होता रहेगा।

यूं ही आदमी के लहू का कतरा कतरा कतरा बहता रहेगा।

इस दुनिया में इंसानियत का निशान रहे ना रहे। मगर इन शहीदों की कुर्बानी का हिसाब यूं ही जाया नहीं जाएगा।।

उनके लहू के कतरे कतरे का हिसाब चुकाया जाएगा।।

वीर सैनिकों के प्रति शतशत नमन।

उनके जज्बे को कोटि कोटि वंदन।।

मेरी प्यारी बहना(कविता)

एक दिन  मुन्नी भैया से बोली।

भैया मैं हूं तुम्हारी छोटी बहना चुन्नी।

स्कूल को जब भी जाती हूं।

डर कर दो कदम पीछे हट जाती हूं।

मैडम के प्रश्नों का भी उत्तर नहीं दे पाती।

इसलिए हर वक्त उदास होकर बैठ जाती।।

चुन्नु बोला सुन मेरी बहना।

तू है मेरी सुंदर गुड़िया सी बहना।।

तुम्हें मैं याद करने के टिप्स बताता हूं।

कविता के माध्यम से सब समझाता हूं।।

मुन्नी खुश होकर बोली तू है मेरा राजा भैया। तुझ बिन सुनी हमारे घर की नैया।।

नहीं करूंगी तुझसे  कभी लड़ाई।

जल्दी से समझा मेरे भाई।।

चुन्नु बोला बोल बोल कर पढ़ाई  किया करो,

हर शब्द और उसके अर्थ पर ध्यान दिया करो।।

जोर जोर से और दोहरानें से जल्दी पाठ को याद कर पाओगी।

पाठ याद करने से ना तुम कभी घबराओगी।।

अपने आप से हर रोज कहो  मुझे सब कुछ याद रहता है, मुझे सब याद रहता है।

मुझे हर किताब का  सारा पाठ  याद होता है।।

याद किए हुए  पाठ को 24 घंटे में दोहराओ। दोहरा कर उसको  अपनी मां को सुनाओ।

सात दिनों के अंदर फिर से दोहराओ। दोहराकर अपनें मन में बिठाओ।

कल्पना ज्ञान है सबसे जरूरी।

कल्पना करते रहनें से बच्चों के मनमें छवि अंकित है रहती।

दिनचर्या को अनदेखा मत किया करो।

अपनी पढ़ाई के लिए समय सारणी का उपयोग किया करो।

एक ही जगह पर  बैठ कर पढ़ाई मत  किया करो।

देर रात तक मत पढ़ा करो।।

जल्दी उठना जल्दी सोना यही है सबसे अच्छा गहना।

यही तो है बुद्धि मता और तन्दरुस्ती का गहना।

पानी खूब पिया करो,

शान्त महौल में शान्त मन से पढाई किया करो।

और चेहरे पर खुशियां झलकाया करो।

उदासी को अपने मन से बाहर करो।

समझ  के बिना पढ़ाई करना है निरर्थक।

समझ के साथ पढ़ाई करना है सार्थक।

समझ और याददाश्त का है गहरा रिश्ता।

इन दोनों का  जैसे हो मां बेटे का रिश्ता।

घटना के पीछे या कहानी के पीछे छिपे कारणों की जांच किया करो।

अपनी समझ को विकसित किया करो।

अपनी खुबियों को पहचानिए।

रुचि के अनुसार विषय चुनिए।।

(सच्चा सुख) कविता

एक जंगल में काला हिरण और हिरणी थे  रहते।

दोनों पति-पत्नी खुशी से थे रहते।

काला हिरण अपनी हिरणी से था बहुत प्यार करता।

उसकी छोटी-छोटी इच्छा हरदम पूरी था किया करता।

एक दिन हिरण बोला हिरणी से   तुम क्यों इतना लगाव मुझसे हो  किया करती।

तुम मेरे बिना भी क्यों नहीं रह सकती।

हिरण हमेशा हिरणी को देर से आने पर ढूंडा करता था।

उसकी प्रतीक्षा में बिना खाए ही रहा करता था। हिरणि थी बहुत ही भोली।

अपने हिरण की थी वह हम जोली।

दोनों इकट्ठे भोजन की तलाश में थे जाते। इकट्ठे वापिस आ कर वन में धमाचौकडी मचाते।

एक दिन उस राजा की नजर काले हिरण पर पड़ी।

उसकी ललचाई आंखें   हरदम  पीछा किया करती।

काला हिरण राजा को देखकर भाग खड़ा हुआ।

अपनी हिरणी  के संग  जंगल में पहुंच गया। काले हिरण को पानें की  लालसा राजा को सतानें लगी।

उसे पा कर ही रहेगा एसी तमन्ना उसे आने लगी।

थक हारकर जब था वह घर आया।

आते ही बिस्तर पर था घुस आया।

उसे स्वपन में भी काला हिरण था दिखाई दिया।

उसकी छवि  मन में अंकित कर  राजा प्रसन्न दिखाई दिया।

काले हिरण की हुबहू तस्वीर बना डाली।

अपने मन में  हिरण की तस्वीर बनाकर उसे पाने की तमन्ना कर डाली।

अपने सैनिकों को आदेश दिया काले हिरण को पकड़ कर ले आओ।

इस हिरण को लाने वाले को मुंह मांगा इनाम दिलवाओ।

लोग दूर-दूर से काले हिरण को ढूंढने निकल पड़े।

मुंह मांगे  ईनाम के लालच में तरसने लगे।  कोई भी जब काले हिरण को नहीं ला पाया। सभी ने राजा की आशाओं का दीपक बुझाया।

काले हिरण की थी एक दोस्त रानी।

वह तो उसे  पिलाती थी  हर रोज पानी।

हर रोज जंगल में  आया करती थी।

काले हिरण के साथ खेल कर मन बहलाया करती थी।

वह थी एक गरीब घर की बच्ची।

मां उस  को शिक्षा देती थी सच्ची।

एक दिन एक शिकारी नें उसे पकड़ कर राजा के हवाले कर दिया।

 काले हिरण को  राजा  को दिला कर खुश कर दिया।।

राजा ने उस शिकारी को मुंह मांगा ईनाम दे दिया।

शिकारी ईनाम पर कर खुश  दिखाई दिया।

काला हिरण राजा के महल में  उदास-उदास सा रहता था।

काफी दिनों तक बिना खाए पिए ही रह जाता था।

राजा काले हिरण की एसी हालत देखकर उदास हुआ।

उसे खुश करने की कोशिश में था लगा हुआ। कोई भी   काले हिरण को खुश ना कर पाया।

काली हिरणी भी रहती थी मुर्झाई- मुरझाई। अपने हिरण की प्रतीक्षा में थी सुस्ताई।

रानी भी अपने हिरण को खोजने की बहुत कोशिश थी  किया करती।  

हर बार उसे  निराशा  ही लगा करती।।

एक दिन राजा ने काले हिरण को अपने एक सैनिक के साथ जंगल में  छोड़ दिया।

काला हिरण जंगल में आकर खुश हो गया। राजा भी  काले हिरण को  देखने के लिए जंगल में उसके पीछे पीछे था आया।

राजा यह दृश्य देखकर डगमगाया।

वहां काला हिरण अपनी हिरणी को था चाट रहा।

उसको अपनी विवशता जाहिर था कर रहा।  रानी भी अपने काले हिरण को देखकर थी मुस्काई।

काले हिरण को गले लगाकर उसकी आंखें  थी छलछलाई।।

राजा उन दंपति  परिवार का ऐसा प्यार देखकर  मौन हो गया।

परिवार से बिछड़ने के एहसास से अवगत हो गया।

राजा काले हिरण से बोला प्यारे! तुम तो  हो बहुत  ही दरिया दिल।

तुम्हारे प्यार को समझने के बाद मेरा मन  हुआ जिन्दा दिल।

तुम आज से इसी जंगल में रहोगे।

आज मुक्त होकर अपनें दोस्तों संग मस्ती करोगे।

राजा बोला अलविदा दोस्त! आज मैं तुम्हें मुक्त करता हूं।।

तुम्हारी सच्ची दोस्ती को सलाम करता हूं।

सच्ची दोस्ती के बिना जिंदगी नहीं।

ऐसीे खुशहाल जिंदगी के बिना कोई सच्चा सुख नहीं।।

पढ़ना लिखना है जरुरी

11/12/2018

एक दिन मुन्नू अपनी मां से बोला मां मुझे पाठ याद करवाओ न।

मुझे पाठ के साथ साथ इसका अर्थ भी समझाओ न।।

मां बोली बेटा मैं हूं अनपढ़।

मैं तुझे ना पढ़ा पाऊंगी।

लेकिन मैं तुम्हें अच्छी शिक्षा दे पाऊंगी।।

मां बाप नें जल्दी से शादी कर डाली।

शादी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर डाली।। बेटा जिंदगी में पढ़ाई लिखाई किए बिना जिंदगी अधूरी है।

जिंदगी का निर्वाह कर पाना बड़ा जरूरी है।। मुन्नू अपनी मां से बोला मैं स्कूल जाने से कभी नहीं कतराऊंगा।

स्कूल जाकर अपनी शिक्षा पूरी कर पाऊंगा।। मुन्नू बोला मां अब घबराओ न।

मेरे साथ साथ तुम भी पाठ दौहराओ  न।

मैं तुम्हें भी पाठ पढ़ना सीखाऊंगा।

और एक-एक अक्षर का उच्चारण अच्छे ढंग से करा पाऊंगा।

आप अपने बेटे से पढ़ना लिखना सीख पाओगी।

अपनी सहेलियों के साथ जाकर खुशी-खुशी बैठ पाओगी।।

अब आप शिक्षा से वंचित नहीं रहेंगी।

आगे चलकर आप भी किसी को पढ़ा पाएंगे।। बाजार में या समूह  में अपने हस्ताक्षर खुद कर पाएंगी।

हस्ताक्षर कर सच्ची खुशी हासिल कर पाएंगे।।

काली और भूरी कोवी

एक घना जंगल था वहां पर एक पीपल का पेड़ था। उस पेड़ की शाखाएं दूर दूर तक फैली हुई थी। उस पेड़ की शाखा पर कौवे और कौवी का परिवार रहता था। काली कौवी भी भोजन की तलाश में दूर-दूर तक निकल जाती थी। उस पेड़ की दूसरी तरफ साथ में एक दूसरे पेड़ पर भूरे रंग की कौवी भी अपने परिवार के साथ रहती थी। काली और भूरी कौवी दोनों सहेलियां थी। दोनों आपस में मित्रता रखती थी। कौवे  भी भोजन की तलाश में सुबह सुबह चुगने चले जाते थे तो वे दोनों अपने बच्चों का ध्यान रखती थी। एक दिन वे दोनों   कौवे जब भोजन की तलाश में गए तो वे शाम तक जब वापिस नहीं आए तो वे दोनों बहुत ही उदास हो गई। पांच-छह दिन से कौवे दूर दूर तक दाना पानी की जुगाड़ में गए थे लेकिन वह अभी तक वापस नहीं आए थे। उनकी उपस्थिति में वे दोनों भी अपने बच्चों के भोजन की जुगाड़ के लिए चली जाती थी।

एक दिन काली कौवी परेशान होकर भूरी कौवी  के पास आकर बोली हम दोनों परिवारों के मुखिया घर पर नहीं है। आज चार-पांच दिन से हमें उनका कोई भी  अता पता नहीं है। हमें ही अपने बच्चों के लिए दाने का जुगाड़ करना होगा। भूरी कौवी बोली बहन कुछ दिनों से मेरी तबीयत भी ठीक नहीं है मगर क्या करूं? बच्चों को भूखा भी नहीं छोड़ सकती। मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूं। रास्ते में तुम आराम आराम से चलना।

काली कौवी  बोली बहन यह भी भला कहने की बात है। मुसीबत में हम दोनों एक दूसरे की सहायता नहीं करेंगे तो हमारा जीवन बेकार है। चलो  दाना चुगनें  चलते हैं। दोनों दाना चुगने चलने जानें लगी तब अपने बच्चों को कहा कि घोंसले के बाहर भी कदम मत रखना। बच्चे वहीं रह गए। दूर दूर तक भोजन की तलाश में उड़ने लगी। दोपहर हो गई थी मगर उन्हें  दाना नहीं मिला। काली  कौवी  भी परेशान हो गई। यह देखकर कि भूरी कौवी  आईस्ता आईस्ता उड़ रही है।शाम तक  अगर दाना नहीं मिला तो आज  भूखे ही रह जाएंगे। वह अपनी सहेली से बोली बहन जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाओ। भूरी बोली बहन मेरी तबीयत ठीक नहीं है मैं और ज्यादा दूर तक नहीं  उड़ सकती। मैं तो आराम करना चाहती हूं। उन्हें तभी  पास में अनाज का दाना दिखाई दिया। जल्दी से भूरी कौवी ने वह  दाना उठा लिया। यह सब देख कर काली कौवी को बहुत ही बुरा लगा। वह सोचनें लगी मैं तो यह दाना चुगने ही वाली थी मगर इसनें  तो पहले ही कर दी। भूरी कौवी बोली  अनाज का दाना  तुम्हीं रख लो। मैं दूसरा ढूंढ लूंगी। काली कौवी बोली नहीं बहन तुम ऐसा क्यों कहती हो? मुझे और दाना मिल जाएगा।  वह अंदर ही अंदर जल भून रही थी। मैं  यह दाना प्राप्त करना चाहती थी वह तो इस ने हड़प लिया। यह मुझे झूठ मूठ में बीमार होने का नाटक करती है। वह जल्दी-जल्दी उड़ने लगता भूरी  कौवी बोली बहन मुझसे उड़ा नहीं जाता। तुम दाना लेकर घर पहुंच जाओ। यह दाना रख लो। काली कौवी बोली मैं तो दूसरा दाना ढूंढ लेती हूं। तुम आराम आराम से आना। मैं तेजी से उड़ती हूं। शायद वर्षा भी आने वाली है। वह पलक झपकते ही  भूरी कौवी की आंखों से ओझल हो गई।

भूरी कौवी एक पेड़ की कोटर में आराम करने लगी। काली कौवी उड़ते उड़ते थक गई उसे दाना नहीं मिला।  अचानक बड़ी तेजी से आंधी तूफान आ गया।   काली कौवी अपने मन ही मन भूरी कौवी को गालियां देने लगी।  जानबूझ कर  बीमारी का नाटक करती है। झटपट मेरे हक का दाना भी ले उड़ी। मैं तो मन ही मन उससे घृणा करती हूं। जल्दी जल्दी उड ही रही थी कि उसका पंख किसी चीज से टकराया। वह नीचे एक झाड़ी के नीचे गिर पड़ी। वह दर्द से कराह रही थी। हाय! यह मैंने क्या कर डाला? हमारे बच्चे आज  अनाथ हो जाएंगे। जब तूफान रुका थमा तब  भूरी कौवी आराम करने के पश्चात अपने घोंसले में पहुंची। तूफान से पेड़ों की शाखाएं नीचे गिर चुकी थी। उनका घोंसला भी टूट चुका था ।

भूरी कौवी ने बच्चों को डरे डरे सहमे चिल्लाते पाया। उसने आकर उन्हें ढांढस बंधाया। हम दोनों दाना चुगने गई थी। तुम्हारी मां कहां है? बच्चे बोले हमारी मां अभी तक नहीं लौटी है। वह  बोली तुम डरो नहीं  अब मैं आ गई हूं तुम्हारी मां भी दाना ढूंढ कर आती ही होगी। तुफान इतना भयंकर था कि वह कहीं फंस गई होगी। वह भी आती ही होगी। उसने बच्चों को दाना खिला दिया था। अपने बच्चों के साथ उसके बच्चों को रख कर उसकी रक्षा की थी।

काली  कौवी  जब थोड़ी ठीक हुई तो आहिस्ता आहिस्ता उड़ने लगी। वह अपने मन में सोचने लगी मेरी सहेली भी बीमार थी। वह उड़ नहीं सकती थी। मैंने तो उसे मुश्किल की घड़ी में अकेला छोड़ दिया। मुझसे भी नहीं उड़ा जा रहा। मैंने यह क्या कर डाला? अगर आज मेरी सहेली घर नहीं पहुंची होगी तो हमारे बच्चे डर के मारे पता नहीं क्या कर रहे होंगे? मुझे ना चाहते हुए भी उड़ ना ही पड़ेगा। यह सोचते सोचते वह बहुत तेजी से उड़ने लगी। जैसे  ही वह अपनें घौंसले के पास पहुंची वहां पर पेड़ की शाखा को नीचे गिरा  देख कर आंसू बहानें लगी। हाय! मेरे बच्चे कहां गए?  कराते कराहते  वह  बेहोश हो गई। अचानक  भूरी कौवी  को अपनी सहेली की आवाज सुनाई पड़ गई।उसे बेहोशी की अवस्था में देखकर उसे डॉक्टर तेजा (उल्लू) के पास लेकर गई। उसने उसे दवाइयां लिखकर दी।   और जब काली कौवी को होश आया तो उसने अपनी सहेली को अपने बच्चों के साथ   उसके बच्चों को भी प्यार से दाना खिलाते देखा। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। सब बच्चे आराम से भोजन कर रहे थे। वह रोते-रोते बोली बहन मुझे माफ कर दो। मैं मुसीबत की घड़ी में तुम को अकेला छोड़ कर यहां आ गई। मैंने ना जाने तुम्हारे बारे में गलत धारणा बना ली थी। मुझे पराई पीड़ा के बारे में समझ में अब आया। जब मुझे दर्द का एहसास हुआ। आज सब कुछ मेरी समझ में आ गया। बहन मुझे माफ कर दे।

भूरी कौवी बोली  तुम मुझसे माफी क्यों मांगती हो? तुम्हें अपनी गलती का एहसास हुआ यही बहुत है। चलो बहन खुशी से अपने बच्चों को दाना खिलाते हैं। कौवे भी  घर वापिस पहुंच चुके थें। सभी परिवार एक साथ खुशी मना रहे थे।