ल‌क्ष्मी बाई की वीर गाथा

स्वतंत्रता कि बलिवेदी पर मिटनें वाली वह तो झांसी वाली रानी थी।
मणिकर्णिका के नाम से विख्यात , बचपन कि पहचान पुरानी थी।।
प्यार से बाबा मनु कह कर उसे बुलाते थे।
बाजीराव उसे छबीली कह कर चिढ़ाते थे।।
विठूर में मल्लविद्या, घूडसवारी, और शास्त्र विद्याओं को सीख अपनी एक पहचान बनाई।
तीर,बर्छी,ढाल कृपाण , तलवार चला कर अपनें हुनर कि कौशलता सभी को दिखलाई।।

पिता मोरोपंत के घर काशी में जन्मी,
माता भागिरथी कि संतान निराली थी।।
वह तो सर्वगुणसंपन्न,विलक्षण बुद्धि,और प्रतिभाशाली थी।।

छोटी सी उम्र में व्याह कर झांसी में दुल्हन बन कर आई।
गंगाधर राव से विवाह कर झांसी कि रानी लक्ष्मीबाई कहलाई।।

विवाह के बाद ही एक प्यारे से बेटे को जन्म देनें का सौभाग्य पाया।
नियती के कालचक्र नें उस के बेटे को छीन उस के भाग्य को पलटाया।।
रानी बेटे के वियोग से छुट भी न थी पाई ।
अंग्रेजों ने झांसी को हथियानें कि साजिश रचाई।।
झांसी के लोगों ने उसे दतक पुत्र गोद लेने कि बात सुझाई।
दतक पुत्र को गोद लेकर रानी के चेहरे पर थोड़ी सी रौनक आई।।

नियती को कुछ और ही था मंजूर।
उसके पति को भी छीन रानी से किया दूर।।
पति का निधन हो जानें पर रानी टूट कर बिखर गई।
रानी कि कमजोरी को अंग्रेजी सेना भांप गई।।

दतक पुत्र को गोद लेना लार्ड डलहौजी नें नहीं स्वीकारा।
रानी को संग्राम भूमी में युद्ध के लिए ललकारा।।

झांसी को किसी भी किस्मत पर अंग्रेजों को नही सौपूंगी।
मर जाऊंगी या मिट जाऊंगी लेकिन युद्ध किए बिना नहीं छोडूंगी।

युद्ध का शंखनाद कर रानी ने उन्हें रणभेरी में ललकारा।
दतक पुत्र को पीठ पिछे बांध कर फिरंगियों को दुत्कारा।।
अंग्रेजो के साथ युद्ध के करने का साहस मन में जगाया।।
सेना पति हयूरोज नें अंग्रेजों के साथ मिल कर रानी के साहस को छिन्न-भिन्न कर डाला।
दक्षिणी द्वार को खुलवा कर उस के मनसुबे पर पानी फिरा डाला।।
ग्वालियर कि इस वीरांगना के संग्राम कि अद्भुत कहानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
अपने घोड़े को साथ लेकर संग्राम भूमि में आई।
गौस खां और खुदाबख्श को साथ लेकर एक सैनिक टुकड़ी बनाई।।
अपने घोड़े को ले कर युद्ध भूमि में दौड़ी आई।
शत्रुओं को युद्ध भूमि मे ललकारनें आई।।
रण भूमि में ज्वाला,चन्डी,मां दुर्गा बन आई।
अकेली ही शत्रु पर भारी पड़ कर जोर की हूंकार लगाई।।

नदी,नालों, गहरी खाई को भी पार कर अपनी अद्भुत क्षमता दिखाई।।
एक जगह नदी नाले को पार करता हुआ रानी का घोड़ा घायल हुआ।
रानी का शरीर भी लहू से लथपथ हो कर झाड़ियों के पीछे था जा टकराया।।
रानी नें भी पीठ न दिखानें का संकल्प अपने मन में दोहराया।
मर जाऊंगी मिट जाऊंगी कभी शत्रु ओं के हाथ नहीं आऊंगी।
अपनें लहू का कतरा कतरा देकर अपनी झांसी को बचाऊंगी।।

आखिर कार ग्वालियर के पास एक कुटिया तक थी ही पहुंच पाई।
अपनें विश्वसनीय सैनिकों को उसनेंअपनें प्रण कि दी दुहाई।।

कुटिया में पहुंच कर अपने प्राणों का बलिदान दे जरा भी न घबराई।
ईंट का जबाव पत्थर से दे कर जरा भी विचलित न हो पाई।
उन के सैनिकों ने कुटिया को जला कर रानी का दाह संस्कार किया।
उसकी अटल प्रतिज्ञा का मान रख कर उस के शरीर को अग्नि के हवाले किया।।
उसकी लाश अंग्रेजों के हाथ भी न आ पाई थी।
वह अपनी मर्यादा कि लाज रख कर सचमुच जीत पाई थी।।
उसकी गौरवगाथा ग्वालियर आज भी हमें रानी लक्ष्मी का स्मरण करवाती है।
स्मारक स्थल की पहचान बन उसकी वीरता कि सच्ची झलक हमें दिखलाती है।।

गुरु तोताराम चिटकू और बरगद का पेड़

सुंदरवन में बहुत सारे जीव जंतु रहते थे। उस घने जंगल में एक नदी के पास बरगद का एक बहुत बड़ा वृक्ष था । वहां पर जंगल के जीव जंतुओं ने अपना सभा स्थल बनायाहुआ था। जंगल में सभा के आयोजन के समय जो भी निर्णय लेते थे वह सभी उस वृक्ष के नीचे ही लेते थे। की वर्षों से वह पेड़ यूं ही लहलाता आ रहा था। जंगल का राजा शेर उसी पेड़ के नीचे सभी जानवरों को अपना फैसला सुनाया करता था। कुछ दूरी के फासले पर ही जीव जंतुओं ने अपना बसेरा बनाया हुआ था। जहां पर सभी जानवर अपनी मांद में रहा करते थे।

सभी जनों को आज्ञा दी थी कि हमारे जंगल का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहना चाहिए जब तक वह शिक्षित नहीं होगा तब तक उसका जीवन सार्थक नहीं है। उस वन के सदस्य पढ़े-लिखे नहीं थे इसीलिए राजा शेर चाहते थे कि उनके जंगल में रहने वाले सभी बच्चे कुछ पढ़े लिखे हो। इसीलिए उन्होंने एक स्कूल की स्थापना करवाई थी। राजा की आज्ञा का कोई भी बहिष्कार नहीं करता था। उन्होंने पढ़ाने के लिए गुरु तोताराम को नियुक्त किया हुआ था जो कि बच्चों को बड़े ही प्यार से पढ़ाया करते थे। भालू लोमड़ी नेवला हिरण बंदर सारे जानवर शिक्षण प्राप्त हेतू गुरु तोता राम के पास पढ़ने आते थे, जो कोई भी जीव जंतु उस विशाल बरगद के पेड़ के पास से गुजरता था तो थोड़ी देर विश्राम करने के लिए उस पेड़ के नीचे उसे इतनी गहरी नींद आती कि कुछ पता ही नहीं चलता था ।सभी आने जाने वाले जीव और प्राणी उस पेड की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। वह जब भी अपने आवास स्थल पर जाते तो बीच में वह स्थान आ जाता था। जहां वह बरगद का पेड़ था। ठंडी ठंडी हवा से वातावरण शांत हो जाता था।

लेकिन कुछ महीनों से वह पेड़ सूखता जा रहा था । पक्षी भी उस पेड़ पर अब कम मात्रा में आने लगे थे ।
संक्रमित होने के कारण वह पेड़ सूख गया था। उस पेड़ को बहुत तरह से बचाने का प्रयत्न किया गया परंतु उसको बचाने में कोई भी सफल नहीं हो रहा था। राजा ने सभी जीवो को एकत्रित किया तो वहां पर उन्हें पहले जैसा आनंद नहीं आया । वह अपने सभी जीवो से बोले कि यह पेड़ अब पहले जैसी छाया नहीं देता। यह पेड़ अब बूढ़ा हो चला है। अब उससे अकेला छोड़ने का समय आ गया है। आखिरकार सभी लोगों ने निर्णय किया कि अब इस पेड़ पर रहने से कोई फायदा नहीं है। हमें अपनी सभा स्थल कहीं और बनाना चाहिए ।

जंगल के राजा नें अपने सभी जीवो को अगली मीटिंग किसी अन्यत्र स्थान पर करने का हुक्म दिया। वहां से कुछ ही दूरी पर एक पीपल का पेड़ था। सभी ने उस स्थान को उपयुक्त पाया , सभी ने हामी भर दी। सभी जीव जंतुओं ने उस बरगद के पेड़ को छोड़ दिया।

सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण कर जब घर जाते तो उस बरगद के पेड़ के पास से होकर गुजरते। बच्चे बहुत ही उदण्ड थे । बंदर, हाथी ,भालू ,हिरण ,बंदर,सब छोटे-छोटे बच्चे उस बरगद के पेड़ पर पत्थर मारते ।लोमड़ी का बच्चा चिटकु यह सब देखकर बहुत ही दुःखी होता। वह पढ़ने में बहुत ही होशियार था। गुरु तोताराम का यह सबसे प्यारा विद्यार्थी था। पढ़ाई में सबसे आगे होने के बावजूद वह अपना होमवर्क स्कूल में ही खत्म कर लिया करता था। इतने होनहार विद्यार्थी को देखकर गुरु तोताराम बेहद प्रसन्न हुआ करते थे उन्हें अपने इस विद्यार्थी पर बहुत गर्व था। उन्होंने चिटकुल को स्कूल खत्म होने के बाद भी अलग से पढ़ाना शुरू कर दिया था। बहुत ही होनहार विद्यार्थी था इसलिए गुरु तोताराम को लगता था कि शायद वह भविष्य में वह बहुत बड़े काम करेगा।

बच्चों का पेड़ को पत्थर मारना उसे अच्छा नहीं लगता था। वह सभी को समझाता मगर कोई भी उसकी बात नहीं मानता था। वह सोचते कि यह पढ़ाई में बहुत तेज है तो अपने आप को ना जाने क्या समझता है। सोचता है कि जो वह जानता है वही सही है। उसकी कक्षा के विद्यार्थी उससे कुछ जलने लगे थे। चिटकुल जब कभी अकेला हो जाता तो कभी उस पेड़ के नीचे सो जाता। वह पेड़ को मायूस देख कर सोचता । सभी कितनें स्वार्थी हैं। सभी अपनों ने उसे छोड़ दिया है।अब किसी को भी उस बूढ़े पेड़ कि चिन्ता नहीं।हमारे परिवार का कोई सदस्य बिमार हो जाए तब तक उस कि सेवा करतें रहें हैं जब तक वह ठीक न हो जाए। अगर हम सभी अपने अपने परिवार को छोड़ दें तो हमें कैसा लगेगा? शायद मेरे प्रयत्नों से वह पेड़ फिर लहलानें लगे।
उसे याद आया कि मास्टर तोताराम ने हमें सिखाया था कि हमें किसी को भी बेवजह नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। किसी को भी बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए। अगर कोई मुसीबत में है या किसी परेशानी में है तो हमें उसकी जितना हो सके मदद करनी चाहिए। परंतु उसके दोस्तों मे से तो सभी उदंड थे। वह तो उस पर आते जाते पत्थर मारते जाते। वहीं सारा कूड़ा करकट फैंकते थे।
उसने देखा कि पेड़ के पत्ते सूखने लगे हैं ।वह एक घंटा भर रोज पेड़ के नीचे बैठकर सफाई करता। वह अपने मन में सोच रहा था कि मैं इस पेड़ को बचाने का प्रयास करूंगा। आते जाते रास्ते में पानी की छोटी सी नदी थी जिसका पानी बह करके उस पेड़ की शाखाओं में आता था। परंतु उस नाली के पास हर रोज लोग अपने गंदे गंदे कपड़े धोते थे और उस पानी में कूड़ा कर्कट फैकतें थे। उस नाली को बहुत ही गंदा रखते थे । गंदा पानी उस पेड़ तक पहुंचता था। वह अपने मन में सोचने लगा की हो ना हो इस गंदे पानी से ही यह पेड़ सूख रहा है।

वह सब को नदी को गंदा करने से रोकने का प्रयास करता करता परंतु कोई भी उसकी बात मानने को तैयार नहीं था।उसके साथी उसे कहते कि वह जंगल के राजा से तुम्हारी शिकायत करेंगें। तुम हमें बहुत परेशान करते हो। चिटकू बोला तुम मेरी शिकायत भले ही कर लो मैं दण्ड भूगतनें को तैयार हूं। मगर मैं तुम्हें इस नदी को गंदा नहीं करने दूंगा। आप लोग जानते नहीं हैं कि इसके कितने दुष्परिणाम हो सकते हैं। हमारे गुरु तोताराम ने हमें बताया है कि नदी को कभी भी धंधा नहीं करना चाहिए उसे स्वच्छ रखना चाहिए क्योंकि उसी से हमें पीने का पानी मिलता है। जिससे हमारा और पेड़-पौधों व सभी जीव जंतुओं का जीवन उसी से चलता है।
पर वहां के जीव जंतु पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए उन्हें चिटकू की बात पर ज़रा भी विश्वास नहीं होता था।


एक दिन जब वह स्कूल से वापस आया तो वह काफी देर तक बरगद के पेड़ के नीचे बैठा रहा। उसने देखा कि थोड़ी दूरी पर जंगल के बीचो बीच एक पानी की छोटी सी झील है । वहां का पानी स्वच्छ है। उसने दूसरी ओर से नाली खोदना शुरू किया और उस नाली को उसने पेड़ के समीप पहुंचा दिया। हर रोज की मेहनत के बाद अपने मकसद में सफल हो गया ।नदी का पानी उस नाली में से उस पेड़ के तने के पास पहुंच लगा ।उसने नाली बनाने के लिए उसके आसपास पत्थर लगा दिए।उस नदी का रास्ता इतना संकरा था कि वहां से कोई भी जाना पसन्द नहीं करता था।उसने अपनें मन में सोचा यहां से पेड़ तक नाली खोद कर अच्छा ही किया।।इस संकरे रास्ते से तो कोई भी आना पसन्द नहीं करेगा।साफ पानी तनों तक पहूंचेगा।

बच्चों ने एक दिन गुरु तोताराम के पास चिटकू की शिकायत कर दी और कहा कि यह चिटकू हमारी बात नहीं मानता है। जंगल के राजा ने कहा है कि उस पेड़ के पास से, दूसरी जगह ही सभा का आयोजन होगा। वह चिटकू तो हमेशा उस पेड़ के पास सारा दिन व्यतीत करता है। गुरु तोताराम जी ने कहा कि चिटकू नें बहुत ही अच्छा काम किया है शायद यह पेड़ ठीक हो जाए। उसने इतनी मेहनत से यह नाली बनाई कि जिससे कि साफ पानी पेड़ की जड़ों में पहुंचता रहे।

उन्होंने चिटकू को पास बुला‌ के पूछा तुमने राजा की आज्ञा का उल्लंघन क्यों किया? चिटकू बोला कि मैं इस पेड़ को बचानें का प्रयत्न करूंगा, चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान ही क्यों ना देनी पड़े ।
वह कहने लगा मास्टर जी क्या हम बिना वजह से हमें अपने परिवार के सदस्यों को यूं अकेला छोड़ कर चले जाना चाहिए मैं तो मरते दम तक उस पेड़ को बचाने का प्रयत्न करूंगा। बच्चों को बहुत ही गुस्सा आया की गुरुजी उसे कुछ भी नहीं कहा । उन्होंने घर जाकर अपने माता-पिता को यह बात कही भालू ने जाकर यह बात शेर को कह दी।
जंगल के राजा शेर ने चिटकू को अपने घर बुलाया और कहा कि तुमने ऐसा क्यों किया? चिटकू बोला राजा जी मेरे गुरु जी ने हमें सिखाया है कि हमें किसी को भी बे वजह नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए ।आपने उस पर उस पेड़ के पास सभी को जाने को मना कर दिया था मुझे से उस पेड़ का दर्द नहीं देखा गया । वह पेड़ अपनें आप को अकेला पा कर उदास हो गया। शेर बोला कि पेड़ भी कभी उदास होता है चिटकू बोला कि हां वह अकेला रह गया है। अगर आपकि माता कभी बिमार हो जाए तो उन को बचानें का प्रयत्न नहीं करोगे क्या? उन्हें अकेला छोड़ दोगे मरनें के लिए।शेर सोनें लगा यह बच्चा तो कह तो ठीक ही रहा है।वह अब अपने इरादे को नहीं बदल सकता। चिटकू बोला वह पेड़ उदास नहीं होगा क्या ? इतने सालों से आप वहां पर सभा का आयोजन करते आए हैं पर आज बिल्कुल निर्बल और विकल हो गया है बच्चे हर कभी उस पर पर पत्थर मारते हैं। इतने सालों उसने हमेशा अपने फल खाने के लिए दिए। और बीमारी में इसकी पतियों से दवाईयों में भी उपयोग किया जाता है।
चिटकू की बातों का शेर पर कोई असर नहीं हुआ वह बोला कि अभी तो मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा पर तेरे पिता को कैद कर लेता हूं ।कसम खाओ कि उस पेड़ के पास तुम अब कभी नहीं जाओगे। वह पेड़ बूढ़ा हो चला है उसे परेशान मत करो उसका अंतिम समय निकट आ चुका है उसे चैन से मरने दो। चिटकू बोला कि हमारे विद्यालय को तो वहीं से जाना पड़ता है। शेर बोला कि आगे से तुम्हारी कोई शिकायत आई तो तुम्हें भी मैं अंदर कर दूंगा।
चिटकु लोमड जब स्कूल से घर लौटा तो उसकी मां नें कहा बेटा तूने यह क्या किया? वह बोला कि मां मैं क्या करुं। मैं गुरु जी कि किसी भी बात को अनसुना नहीं करूंगा। उसकी मां बोली कि जंगल के जीव भी हमारी कोई मदद नहीं करेंगे। मां कोई बात नहीं मैं तो कभी किसी को गलत काम करते देख नहीं सकता ।मैं आपको खाने का अवश्य प्रबन्ध करवा दिया करूंगा।
तीन महीने बीत गए। सभी जीवों में चिक्कू और उसकी मां से किनारा कर लिया। चिटकू के पिता को तो जेल में भेज दिया गया। वह एक दिन उदास होकर के उस पेड़ के नीचे भूख से बेहाल होकर धीरे-धीरे कराह रहा था। बच्चे आ कर उसका मजाक उडा कर कहनें लगे जो बड़ों कि बात नहीं मानता उसका यही अंजाम होता है। तुम्हारे पिता को न जानें कितने दिनों तक राजा कि कैद में रहना होगा। मेरे पिता को तो जेल में डाल दिया, बिना किसी अपराध के। पेड़ के नीचे उसे नींद आ गई थी। पेड़ को मालूम हो गया था कि राजा शेन उसे के पिता को कैद कर लिया है। पेड़ उसको मायूस देख कर उससे बोला बेटा उदास ना हो मैं जादुई पेड़ हूं।जब तक तेरे पिता नहीं लौटते तब तक मैं तुम्हारे खाने का प्रबंध कर दिया करूंगा। क्या कहा? उसने पेड़ को प्रणाम किया। पेड़ उसको देख कर मुस्कुरा रहा था ।पेड़ फिर से हरा भरा हो रहा था। हर रोज उसके दोस्त नाली में कूड़ा करकट फैंक जाते वह हर रोज उसको हाथ से उठा उठा कर साफ करता था ।
हर शाम को एक अजनबी उसके घर पर आकर उनके लिए खाने का सामान और मदद की वस्तुएं उसे दे जाता था। लोमड़ी पूछती कि यह वस्तुएं किसने भेजी हैं वह कहता कि बहन तुम्हारे पति का दोस्त हूं। उसने मुश्किल के समय में हमारी बहुत मदद की है अब आप पर मुश्किल आन पड़ी है ऐसे में आपकी सहायता करना मेरा फर्ज है।वह अपनें चेहरे को नकाब से ढक रखता था। लोमड़ी चुप रह जाती एक दिन जंगल के सभी जीवो ने राजा को शिकायत कर दी की लोमड़ी के परिवार को सभी ने सहायता करने से मना कर दिया था लेकिन कौन है जो उसकी मदद कर रहा है? राजा बोले कि अगर तुम में से कोई उसकी मदद नहीं कर रहा तो ऐसा कौन सा शख्स है जो उसकी मदद कर रहा है।
एक दिन शेर भेष बदलकर लोमड़ी के घर के पास आया। आज तो लोमड़ी बहुत ही उदास थी। जैसे ही वह खाना देने आया तो लोमड़ी बोले भाई हमसे जंगल के राजा बहुत ही नाराज है। आपको आज अपना असली परिचय तो देना ही पड़ेगा। कल सभा बुलाई गई तो सभी जीवो ने कहा कि हमें से कोई भी लोमड़ी के परिवार की सहायता नहीं कर रहा है ।कहीं राजा हमें और कोई सजा न दे दे पहले ही मेरे पति को आज घर से गए हुए 5 महीने हो गए हैं। जो गुनाह हमने किया ही नहीं उसकी सजा राजा हमें दे रहे हैं।
वह अजनबी बोला आज मैं तुम्हें बताऊं कि तुम्हारा बेटा बहुत ही बहुत ही संस्कारों वाला बच्चा है। उसमे मुझ पेड़ की इतनी सहायता कि मेरे पास घन्टें घंटे खोद खोल कर नाली बनाई । बच्चों ने पेड़ के पास न जाने कितने कागज कूड़ा कर्कट फैलाया था।आपके बेटे ने रात दिन मेहनत करके नाली बनाई। सामने वाली नदी से पानी कूहल द्वारा मेरे तनें में पहुंचा मैं हरा भरा हो कर मृत्यु के पंजे से निकल कर फिर जी उठा। कोई तो है जो मुझे इतना प्यार करता है ।उस पर मैं कैसे ना द्रवित होता। मैं वहीं जादुई पेड हूं। बहन तुम्हें किसी भी चीज की आवश्यकता हो तो मैं उपलब्ध करवा दूंगा। वह जंगल का राजा हो कर दूसरों के दुःख दर्द को जान न सका।एक दिन जब उसके परिवार को भयानक बिमारी होगी तब कोई उस की मदद नहीं करेगा।राजा के कर्तव्य से विमुख हो गया।एक बच्चे से भी कोई भी सीख ले सकता है।
लोमड़ी बोली मैं आप का शुक्रिया कैसे अदा करूंगी।वह पेड़ बोला‌ आपके बेटे ने कहा कि कुछ दिनों के बाद मुझे को काटने का आदेश होगा। आप का बेटा बोला की आप को काटने लगे तो मैं वहां पर लेट जाऊंगा कहूंगा कि पहले मुझे काटना फिर पेड़ को काटना। बेटे के प्यार से मेरी आंखें सजल हो गई। जो बच्चा सब के कष्टों को झेलनें के लिए तैयार हैं मुझ पर जान देनें के लिए तैयार है उसको मैं क्या जादुई का करिश्मा नहीं कर सकता? बरगद के पेड़ को जब राजा नें हरा भरा देखा तो तो उसकी आंखें नम हो गई। घर आकर उसने सबसे पहले चिक्कू के पिता को रिहा किया और कहा कि आज आपके बेटे ने मेरी आंखें खोल दी ।मैं भी कहीं ना कहीं सच्ची शिक्षा से वंचित हूं। आज उसने अपनें प्यार कि अनुभूति करवा कर मुझे एक बड़ी सीख दे डाली है।

हम बरगद के पेड़ के पास ही मीटिंग किया करेंगे। हम उस पर को काटेगें नहीं ।इतने सालों तक वहां पर हम सभा का आयोजन करते आए थे। वह हमारे पूर्वजों कि धरोहर है। चिटकू के बड़ा होने पर उनको मैं अपना प्रधान सेवक नियुक्त कर दूंगा। ऐसा बच्चा सबको दे।शेर शेन अपनें कृत्यों के लिए लोमड़ी से मौफी मांगी।नंदन वन में एक बार फिर चहल पहल हो गई थी।उस बरगद के पेड़ के पास जब राजा ने अपनी सभा का आयोजन किया सब से पहले उसने बरगद के पेड़ के पास जा कर भव्य गीतों से उस पेड़ का आदर सत्कार किया जैसे अपने बड़ों का आशीर्वाद मिले। पेड़ नें भी अपनी शाखाओं को झुका कर राजा का अभिनन्दन किया। राजा कि आंखों में पश्चाताप के आंसू देख कर पेड़ मुस्कुरा दिया। सभी जानवरों नें चिटकु का फूल माला से स्वागत किया।जंगल में एक बार फिर चहल-पहल लौट आई थी।

छम छम आई वर्षा रानी

छमाछम आई वर्षा रानी।
रिम झीम पानी कि फ़ुहारें बरसा कर लाई पानी।।
मेघों नें भी बारिश का स्वर सुन गरज गरज कर,
साथी बादलों को बुला कर आनन्द का बिगुल बजाया।।
वर्षा रानी को अपनें साथ नृत्य करनें के लिए बुलाया।।
कोयल,मैना,कबूतर,गौरैया,चूं-चूं चिड़िया।
सभी पक्षियों नें मधुर संगीत का साज सुनाया।।
छमाछम आई वर्षा रानी,
रिमझिम पानी कि फुहारें बरसा कर लाई पानी।।


पपीहे,चातक,कोयल ,मैना,कौवे,दादूर।
सभी के सभी वर्षा में भीग भीग कर नृत्य करनें को हुए आतुर।।
मोरनी नें अपने सुन्दर पंखों को हिला कर नृत्य कर दिखलाया।
वृक्षों नें भी आत्मविभोर हो कर अपनें पतों को हिला हिला कर वर्षा का अद्भुत आनन्द उठाया।
सूरज नें भी अपनें वेग कि गति को शीथिल कर सभी को खुशी से हर्षाया।।
उन कि खुशी में शरीक हो कर अपने बादलों को और भी फैलाया।।
छमाछम आई वर्षा रानी,
रिमझिम पानी कि फुहारें बरसा कर लाई पानी।।

बच्चों नें कीचड़ में खेल खेल कर सड़कों पर अपना पहरा जमाया।
आनें जानें वाले राहगीरों पर भी पानी फैंक फैंक कर उन्हें भी खुब हंसाया।
उन को भी अपनी अनौखे अंदाज से खेलनें के लिए ललचाया।।
पढ़ाई से बोरियत महसूस कर रहे बच्चों को भी खुले आंगन में खेलनें के लिए बुलाया।।
बच्चों नें धमा-चौकड़ी मचा कर वर्षा में भीग भीग कर नाव चला कर
वर्षा रानी का स्वागत कर उन्हें और भी रिझाया।।

मां नें कचौरी,पुरी हलवा खिला कर, सभी दोस्तों को ले कर अपने घर खुब जश्न मनाया।
बच्चों नें चुटकुला,इन्ताक्षरी सुना सुना कर सभी को रिझाया।।
छमाछम आई वर्षा रानी, रिमझिम पानी कि फुहारें बरसा कर लाई पानी।।

कहा-सुनी

 कक्षा में आते ही मास्टर जी बोले  बच्चों अपना अपना पैन निकालो।

अपनी अपनी डफ़ली अपना अपना राग अलाप, श्याम पट पर अनाप शनाप न लिख डालो।।

तुम सबको प्रश्न लिखवा आज तुम्हारा  मूल्यांकन  करता हूं।

प्रश्न जो हल कर पाएगा उसे पारितोषिक  दिलवा उसका मनोबल बढाता  हूं।।

अध्यापक बोले बच्चों मैं   औफिस का काम निपटा कर वापिस आता हूं। 

लौट कर तुम सब कि अक्ल  ठिकाने लगा तुम्हें छटी का दूध याद दिलवाता हूं।।

रामू अपना पैन नहीं था लाया।

उसने  राजु कि ओर  पैन के लिए हाथ बढ़ाया।।

राजु नें उसे अंगूठा दिखा कर  चिढ़ाया।।

रामु राजु पर आग बबूला हो कर चिल्लाया।

राजू नें धक्का  मार कर उसे नीचे  जा गिराया।

रामू घूटनों के बल गिर कर  भी मुस्कुराया 

रामु  नें भी  हार नहीं मानी।

दोनों नें  दो दो हाथ करनें की ठानी। 

अचानक मास्टर जी कक्षा में आए।

दोनों को तू तू करता देख, उन पर चिल्लाए।

मास्टर जी बोले तुम तीन पांच क्यों करते हो?

स्कूल में हंगामा खड़ा क्यों करते हो?

राजु  मास्टर जी को सामनें  आते देख घबराया।

यूं मुंह फूला कर, मिट्टी का माधो बन  शर्माया।।

मास्टर जी बोले तुम आनाकानी क्यों करते हो?

हर वक्त सब कि नाक में दम क्यों करते हो?

तुम क्या मेरे प्रश्नों का उत्तर देनें से हिचकिचाते हो?

अपनी शेखी बघार कर अपने पर इतराते हो।

स्कूल में अपनी धाक जमा कर ,सब पर रौब झाड़ते हो।

अपनी मनमानी कर सब को अपनें ईशारों पर नचाते हो।।

मास्टर जी नें प्रश्नों की बौछार कर दी।

सब बच्चों कि सिटिपिटी गुम कर दी।

रामु   बोला गुरु जी  हम आप  से करबद्ध प्रार्थना हैं करते।

हम आप कि बात का अनुसरण करनें से नहीं मुकरते।।

हम आपस में  आनाकानी कर  उत्पात नहीं मचाएंगे। 

 कक्षा में हंगामा खड़ा  कर एक दूसरे पर किचड़ उछाल कर किसी को नहीं  बताएंगे न।

हम तो हैं नन्हे नन्हे बच्चे,

अपनी धुन के पक्के।

नादान उम्र के हैं कच्चे।

जुबां के है  सच्चे बच्चे।

हम हवाई किले बनातें हैं।

हम मस्ती में आपस में भिड़ जातें हैं।

आपसी  सहयोग से कहासुनी को सुलझाएंगे।

एकता में रह कर अनुशासन का पालन करना सीख जाएंगे।

आज आप हमें क्षमा दान दें कर हम पर अनुकम्पा कीजिए।

 हम पर अनुग्रहित हो कर  हमारी त्रुटियो को नजरअंदाज किजिए।

अपनें स्नेह और ममता के स्पर्श से हमारा मार्गदर्शन किजिए।।

आप तो हैं हमारे  पथप्रदर्शक और सौभाग्य दाता।

आप से विद्या ग्रहण कर जीवन सार्थक  हो हमारा।।

राजु और रामु नें झगड़ा छोड़ एक दूसरे को गले से लगाया।

झगड़ा समाप्त कर  खुशी से हाथ मिलाया।।

वास्तविकता का आभास

सलोनी और नैना दो सहेलियां थी। वह दोनों एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखती थी। माता पिता ने उन्हें सभी सुविधाएं दी थी जो कि एक बच्चे को मिलनी चाहिए। वह दोनों दसवीं कक्षा में आ गई थी। उनके माता-पिता ने उन्हें आगे पढ़ने के लिए दूसरे स्कूल में दाखिल करवा दिया। उनके माता पिता चाहते थे कि वह पढ़ लिखकर अपने पांव पर खड़ी हो जाएं। सलोनी सांवले रंग की थी जबकि नैना दिखने में बहुत सुंदर थी और चुलबुली । उसकी बड़ी-बड़ी भूरी आंखें बहुत ही सुंदर लगती थी।
नैना की कक्षा में बहुत सारी सहेलियां थी मगर सलोनी से उसकी बहुत ही बनती थी। सलोनी उसको पढ़ाई में मदद कर दिया करती थी। सलोनी पढ़ने में काफी होशियार थी। जो कुछ नैना को नहीं आता था उसकी सहायता से वह अपना काम कर लिया करती थी। नैना की बाकी सहेलियां उस से कहती थी कि तू सलोनी का साथ छोड़ दे कहां तू इतनी सुंदर और कहां यह। उनकी सहेलियां हर रोज बन संवर कर स्कूल आती थी। वे हर रोज मेकअप लगाकर आती थी अपने आपको सबसे अच्छा दिखने का प्रयत्न करती थी। एक दिन नैना ने अपनी सहेलियों को सलोनी का पीठ पीछे मज़ाक उड़ाते हुए सुन लिया। कितनी बुरी दिखती है। ऐसी काली काले चेहरे वाली से कौन दोस्ती करता है? पता नहीं नैना उसमें क्या देखती है ,क्यों उसके साथ है? सलोनी पढ़ाई में अच्छी है शायद कोई मतलब हो नैना का ,वर्ना उससे कौन दोस्ती करेगा? नैना को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। नैना ने अपनी सहेली को मिलकर यह बात बता दी।आजकल मॉडर्न बनने का जमाना है वैसे भी तुम देखने में सुंदर नहीं हो। तुम भी थोड़ा मेकअप इस्तेमाल क्यों नहीं करती हो? देखना तुम्हारा चेहरा कितना चमक उठेगा? मैं चाहती हूं कि मेरी सहेली सुंदर दिखे ।
सलोनी बोली मेरे माता पिता ने कभी मेरी किसी बात को मना नहीं किया,परंतु मैं इन उपकरणों को फिजूलखर्ची समझती हूं। उसकी सहेली बोली क्या तुम सुंदर दिखना नहीं चाहती ?उसकी बातों का सलोनी के मन पर गहरा असर कर गया।
घर में जब वह वापस आई तो सलोनी का उदास चेहरा देख उसके माता-पिता बोले बेटा तू उदास क्यों हो ? देखो तो कौन आया है? तुम्हारी उदासी एकदम दूर हो जाएगी। तुम्हारे मामा जी आए हैं । सलोनी यह सुनकर खुशी के मारे दौड़ कर अपने मामा जी के पास आकर कर उन के गले लग गई। उसके मामा जी ने कहा बेटा मुझे बता तो तू उदास क्यों है ? वह बोली मामा जी क्या मैं सुंदर नहीं हूं? उसके मामा बोले कि बेटा यह तुमसे किसने कह दिया? उसकी आंखें नम हो चुकी थी। वह बोली मामा जी मेरे साथ स्कूल जाने वाली लड़कियां कहती हैं तू खूबसूरत नहीं है । मैं मन ही मन दुःखी हो गई । भगवान ने एक इंसान को सुंदर बना दिया और एक को कुरूप । उसके मामा अपनी भांजी के इस प्रश्न को सुनकर अवाक रह गए ।वह बोले बेटा जरा हमारे लिए चाय बना कर लाओ। तब मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देता हूं । अपनी बहन से सलोनी के मामा जी ने कहा कि तुम्हारी बेटी के मन में ऐसे विचार नहीं आने चाहिए। अभी तो तुम इसको समझा पाओगी नहीं तो अनर्थ हो जाएगा ।
राजीव अपनी बहन से बोला चलो हम सब इस को मिल कर समझाएंगे।सलोनी चाय बना कर ले आई थी। वह बोली कि आज मेरी सखियां न जाने कौन सी क्रीम लेकर आई थी। उसकी भीनी भीनी सुगंध अभी भी मैं महसूस कर रही हूं। सभी के सभी सखियों नें आज कल क्रीम पाउडर और ना जाने कितने तरह के उपकरण प्रयोग करने शुरू कर दिए हैं। नैना नें औरों की बातों में आकर आज मुझसे कहा कि कल तू मेकअप नहीं लगाएगी तो मैं तेरे साथ स्कूल नहीं जाऊंगी।
उसके मामा जी ने प्यार से सलोनी को समझा कर कहा बेटा यह उम्र ही ऐसी होती है, इस उम्र में बच्चों में ना जाने कैसी कैसी आदतें विकसित होती है? उससे छुटकारा ना पाया गया तो आगे चलकर यह गंभीर समस्या बन जाएगी । इंसान का असली सौन्दर्य उसका मृदुल स्वभाव है।

हंसी मुस्कुराहट के भाव हमेशा-हमेशा के लिए होनें चाहिए। क्रोध का लेश मात्र भी चिन्ह नहीं होना चाहिए।

तुम्हारी सहेलियां जब तुम्हें चिढ़ाएं तो तुम भी उनका उत्तर मुस्कुरा कर दे दिया करो। एक दिन देखना तुम्हारी ना जाने कितने मित्र बन जाएंगे। मनुष्य की सुंदरता उसकी रूप से नहीं उसके गुणों से आंकी जाती है। सलोनी के मामा जी बोले कि आजकल चेहरे को सजाने के लिए तरह-तरह के प्रसाधन बाजारों में उपलब्ध हैं। उनमें इतने जहरीले तत्व होते हैं कि उनका इस्तेमाल करने से चेहरे की सुंदरता नष्ट हो जाती है। तुमने सुना ही होगा कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात बेटा ।मेरी बात गांठ बांध लो ,तुम चेहरे की सुंदरता के लिए अगर ताजे फलों का प्रयोग करोगी और योग को अपने दैनिक नित्यक्रम में शामिल करोगी तो तुम्हें बहुत ही ज्यादा उपयोगी परिणाम मिलेंगे।
सलोनी के मन में बहुत बड़ा बोझ था जो कि हल्का हो गया था । दूसरे दिन जब सलोनी स्कूल जानें लगी उसी वक्त रास्ते में उसकी सहेली नैना मिल गई नैना बोली तू मेरी सब से पक्की सहेली है। तेरे पास अगर यह क्रीम नहीं है तो तू मुझ से मांगनें में तुझे संकोच कैसा? मैं तुम्हें अपने वाली क्रीम दे देती हूं। तू तो मेरी अच्छी प्यारी सहेली है। सलोनी बोली मुझे किसी भी क्रीम का इस्तेमाल नहीं करना। मैं जैसी हूं वैसी ही रहना चाहती हूं। मैं इन बाह्य आडम्बरों से बचना चाहती हूं। मैं पढ़ लिखकर डॉक्टर बनना चाहती हूं अभी से मैं अपने लक्ष्य से भटक जाऊंगी तो मैं अपने लक्ष्य प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाऊंगी।

नैना बोली अपना भाषण अपने पास रख ।बड़ी आई, तुझे कोई चीज देना बेकार ही है ।ठीक ही कहती है मेरी सखियां तू तो किसी के भी दोस्ती के काबिल नहीं है। नाराज होकर उसे अकेला छोड़ कर नैना वहां से चली गई वह अब हर रोज स्कूल अकेली जाने लगी । उसे रास्ते में बहुत सी लड़कियां मिल जाती थी, जो कि दूसरे स्कूल में जाती थी । वह उन सब से प्यार भरे शब्दों में बोली मेरा इंतजार भी कर लिया करो। उसके इस तरह कहने पर दूसरे स्कूल की लड़कियां उसका इंतजार करने लग जाती थी। उन सब के साथ स्कूल जाने लगी। स्कूल में मन लगाकर पढाई करती उसे अब अपना चेहरा बुरा नहीं लगता था। वह हमेंशा अपने होठों पर मुस्कान रखती थी। स्कूल में एक दिन वह कापी लाना भूल गई ।सभी सहेलियां बोली कि आज हम सब उसे कोई भी लड़की कॉपी नहीं देगी। स्कूल में जब उसे मार पड़ेगी तब पता चलेगा।

मैडम कक्षा में आई उसने सभी बच्चों को कहा कि बच्चों बैठ जाओ। सभी बच्चे बैठ गए। मैडम ने कहा कि अब जल्दी से अपनी कॉपी निकालो। तुम्हारी परीक्षा जांच होगी ।उसने अपनी सहेली नैना को कहा कि मुझे कॉपी दे दे मगर नैना ने उसे देख कर अपना मुंह दूसरी और फेर लिया। बबीता बड़े ही प्यार से मैडम से आकर बोली मैडम जी आज मैं कॉपी लाना भूल गई। मुस्कुराते हुए बोली मैडम पढ़ाई में मैं इतनी व्यस्त हो गई कि आज अपना लंच भी घर ही भूल गई। मैडम ने उसके होठों की मुस्कुराहट देखकर कहा बेटा तुम कक्षा में एक ऐसी लड़की हो जिसके चेहरे पर एक अजब सी चमक है।सभी लड़कियां आपस में फुसफुसा कर कहने लगी हमने सोचा था कि मैडम उसे डांट देगी मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
ऐसे ही दिन व्यतीत होने लगे। बच्चों की परीक्षा पास आ चुकीं थीं।सलोनी के साथ आने वाली लड़कियां तो पढ़ने के लिए समय नहीं निकाल पाती थी ।वह तो सारा समय सजने संवरने में लगाती थी। इस के कारण पढ़ाई के कर्तव्य से विमुख हो गई थी । वे आपस में कहती थी अभी तो परीक्षा की काफी दिन शेष हैं। पढ़ाई हो जाएगी। परीक्षा पास आ रही थी ।
आज स्कूल में मैडम ने बच्चों के कक्षा में आते ही परीक्षा पत्र थमा दिया। मैडम ने बच्चों को कहा था कि तुम अपनी उत्तर पुस्तिका खुद घर से लेकर आना। उसकी सहेलियां तो हर समय इसी ताक में रहती थी कि किस प्रकार सलोनी को नीचा दिखाया जाए? उस दिन भी जैसै ही प्रार्थना की घंटी बजी उसकी सहेलियों ने सलोनी के बस्ते से उत्तर पुस्तिका निकाल ली। कक्षा में आते ही मैडम ने प्रश्नपत्र सभी बच्चों को पकड़ाए और दूर बिठाकर कहा कि चलो तुम सब को तीन घंटे का समय दिया जाता है। जल्दी से इस प्रश्न पत्र को हल करो सलोनी ने जब उत्तर पुस्तिका निकालनें के लिए बैग खोला तो उसके होश उड़ गए सकी उत्तर पुस्तिका उस के बस्ते में नहीं थी उसने कल शाम ही तो अपनी माताजी से बाजार से मंगवाई थी। सुबह ही याद कर के बैग में डाल दिया था। उसकी आंखों में आंसू बह आए वह अब कैसे प्रश्न पत्र हल करेगी ? मैडम ने उसे रोते हुए देख लिया। मैडम ने कहा कि बेटा क्या हुआ ? वह थोड़ा घबराते हुए धीरे से बोली मैडम मेरे बैग से उत्तर पुस्तिका पता नहीं कहां गई ? मैडम ने कहा कि कौन ले जा सकता है? सलोनी से तुम्हें किस पर शक है ?वह बोली नहीं मैडम जी मुझे किसी पर भी शक नहीं है । मेरी सखियां बहुत ही अच्छी है ।उन्होंने नहीं ली ।लड़के बोले तो क्या हमने ली है? वह बोली नहीं। मेरा यह मतलब नहीं था। इतने में राजू अपनी सीट से खड़ा होकर बोला यह लो मेरे पास एक अतिरिक्त है। तुम इस पर लिख लो। सलोनी ने राजू से उत्तर पुस्तिका ले ली । सलोनी ने राजू को कहा धन्यवाद । राजू परीक्षा समाप्त होने के बाद सलोनी के पास जाकर बोला कि मैंने प्रार्थना सभा में जाते हुए सोनू को तुम्हारी उत्तर पुस्तिका को मेरे बस्ते में उतर पुस्तिका रखते हुए देख लिया था! मुझे सारी बात समझ में आ गई । वह तुम्हें ना जाने क्यों नीचा दिखाना चाहती है
सलोनी ने अपनी सहेलियों के साथ झगड़ा करना उचित नहीं समझा। वह उस बात कि ओर ध्यान न दें कर अपनी पढ़ाई करने लगी। परीक्षा भी पास आने वाली थी ।
कुछ दिनों से नैना स्कूल नहीं आ रही थी। एक दिन सलोनी से रहा नहीं गया । वह नैना के घर गई। नैना के चेहरे की हालत देखकर वह दंग रह गई उसके चेहरे पर ना जाने कितने दाग हो चुके थे ? जगह जगह चकते निशान पड़ गए थे ।अपनी सहेली सलोनी को अपने घर आया देखकर नैना फूट-फूट कर रोने लगी बोली तू ठीक कहती थी। मैं अपने मित्रों की बातों में आ गई थी ।आज अस्पताल दिखाने आई थी डॉक्टर ने इतनी लंबी चौड़ी दवाइयों की लिस्ट जमा कर कहा ये सभी खानी होंगी। छे महीने तक की दवाइयां जारी रखनी है। सलोनी बोली कि एक सलाह दूं अगर तू मेरा कहना मानेगी तो। मैं तो पहले भी तुझ से नाराज़ नहीं थी और ना ही आज नाराज़ हूं। तू डॉक्टर की दवाइयां मत खाना। नैना बोली कि उन्होंने बहुत सी ट्यूबस तो चेहरे पर लगाने के लिए दी हैं। और छ महीने की दवाइयां खाने के लिए दे दी है।

सलोनी बोली कि तू चेहरे पर कुछ भी मत लगाना। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। इंसान की उसकी असली सुंदरता उसका भीतरी सौंदर्य है। नकली प्रसाधनों का लेप लगाना बंद कर दे ।आज उसके मन में सलोनी की बात घर कर गई थी । घर में बने हल्दी पाउडर और तेल का इस्तेमाल करने लगी। अपने भोजन में फल और सब्जियों की मात्रा को बढ़ा दिया। हर रोज जूस पीने लगी । छ महीने तक सभी आते जाते लोग उस से पूछते इतनी सुंदर शक्ल का क्या हाल बना लिया? उसे बुरा तो लगता मगर धीरे-धीरे उसे समझ आ गया कि लोगों का क्या है जितने मुंह उतनी बातें । मैंने अपनी सहेली की बात मानी होती तो मुझे यह दिन देखना नहीं पड़ता इसलिए उस नें दवाइयों के लिस्ट को फाड़ कर फेंक दिया और खुश रहने लगी। अपनी पढ़ाई की तरफ ध्यान देने लगी। वह फिर से सलोनी की सहेली बन गई थी। धीरे-धीरे उसमें सुधार होता गया एक दिन उसके चेहरे के सारे निशान गायब हो गए ।इसके लिए उसने अपने भोजन में पौष्टिक भोजन खाना शुरू कर दिया था ।इस बार जब प्रवेश परीक्षा परिणाम निकला तो दोनों सहेलियां अच्छे अंक लेकर पास हो गई थी। उनकी सभी सहेलियां बड़ी मुश्किल से ही पास हुई थी, और कुछ असफल होकर पिछली कक्षा में ही रहकर पछता रही थीं। उसे अनुभव हो चुका था कि मानव कि असली सुंदरता तो उसके गुण हैं। मां नें आते ही दोनों को खुशखबरी सुनाई तुम डाक्टरी के परीक्षा में भी उत्तीर्ण हो गई हो।तुम लगाओगी अब क्रीम पाउडर । वह हंसते हुए बोली मां आप भी क्या?