भूल का परिणाम

खेतों की मेड़ पर और नदी के किनारे था हर रोज उसका आना-जाना।
गांव की गली गली के कूचे ही थे उसका आशियाना।।
आज सुबह सुबह ही तो वह नदी के किनारे था आया।
सुनहरी धूप और पानी की कल कल का उसने भरपूर आनन्द उठाया।।
अपनी पूंछ को हिला हिला कर खुशी से था भर्माया।
पक्षियों के अन्डों को खानें की थी उसे बड़ी ललक।
पतों की सरसराहट से उसे उनकी लग जाती थी भनक।।
टप्पू था अपनी धुन का पक्का।
जरा सी आहट पा कर वह वहीं पर था जा धमका।।
ललचाई नज़रों से ईधर उधर देखा करता था।
कब शिकार हाथ लगे हर दम अवसर तलाशता रहता था।
उसका लालच दिन प्रतिदिन बढ़ता ही था जा रहा।
अपनें साथियों को भी नजरअंदाज था वह कर रहा।

अंडों को खानें के लिए हो जाता था आतुर।
उनको पानें के लिए बन जाया करता था शातिर।।
रेत में एक छोटे से घोंघे को देख कर उस पर नज़र फिराई।।
खुशी के मारे उसकी आंखें चौंधियांइ।
झटपट चाट चाट कर खा के अपनी जिह्वा मटकाई।

सुस्ताने के लिए पेड़ के नीचे था आया।
अचानक पेट की दर्द से वह चिल्लाया।
सीप के टुकड़ों नें अपना कमाल दिखाया।
उसकी आंतों में फंस कर उसे रुलाया।।
दर्द और वेदना से टप्पू करहाने लगा।
एंठन और जकड़न से छटपटाने लगा।।

रो कर मन ही मन बुदबुदाया।
अपनी जल्दबाजी पर पछताया।।

मुझ से कंहा हो गई बड़ी भारी भूल।
बिना सोचे समझे काम करने की आदत बन गई शूल।
आज मैंने यह अन्तर जाना।
कोई भी गोल वस्तु अंडा नहीं होती यह पहचाना।।
बिना बिचारे जो काज करे वह पाछे पछताय।
भूल संवार कर जो सीखे वहीं मुकद्दर का सिकंदर कहलाए।।


गाय माता

गाय जगत माता कामधेनु है कहलाती।
गाय की सेवा घरों में खुशहाली को बढ़ाती।।

धर्म,अर्थ,मोक्ष का आधार है गौ माता।।
सकल जग उदधारिणी है गौ माता।
समन सकल भव रोग हारिणी है गौ माता।।


पृथ्वी पर रहनें वाले जीवों से करती है प्यार।
हर प्राणी,जीवों पर इसके हैं असंख्य उपकार।।
गाय की सेवा,पालन पोषण करना है धर्म हमारा।
इस से बढ़ कर नहीं है कुछ भी दायित्व हमारा।।
गाय में है सभी देवी देवताओं का वास।
यह तो हैं सभी तीर्थों में सब से खास।।

सोलह संस्कार गौ के साथ ही पूर्ण कहलाते।
इन संस्कारों के बिना हम अपूर्ण ही रह जाते।
पुराणों में गाय है मोक्ष का द्वारा।
सेवा कर समस्त पापों,संतापों से पातें हैं छुटकारा।।

गाय का गोबर है लाभकारी।
उपले, किटाणुओं और रोगों को मिटानें में है चमत्कारी।।
गोबर में है अद्भुत शक्ति।
मलेरिया, मच्छरों को भगानें की है शानदार युक्ति।।
गाय के गोबर के प्रयोग से बंजर भूमि की भी उपजाऊ क्षमता बढ़ती।
फसलों को हरा भरा कर किसानों में दुगुना उत्साह है बढ़ाती।।
गाय के दूध से बनी वस्तुएं सभी जनो को है भाता
दूध,दही, मक्खन,भी सभी जनों को है सुहाता।।

गाय हमारे आत्मसम्मान का है गौरव।
प्रेम और संस्कृति का है सौरभ।।
गौ हत्या करना है महापाप।
गौ को बूढ़ा होनें पर बाहर कर देना है अभिशाप ।।
गौ हत्या करनें वालों को बख्सा नहीं जाएगा।
उनके दुष्कर्मों का परिणाम प्रकृति से स्वयं मिल जाएगा।।
गाय का अपने माता पिता कि तरह हमेशा करो सम्मान।
जग में उनकी सेवा कर पा जाओगे मनोइच्छित वरदान।।




थाली में खाना जूठा मत छोड़ो

थाली में खाना जूठा मत छोड़ो।

आवश्यकता से अधिक खानें कि आदत से पीछा छोड़ो।।

अन्न में होता है अन्न पूर्णा का निवास।

जूठन बचाना होता है बर्बादी का वास।

अन्न पूर्णा का मत करो अपमान।

नहीं तो कोई भी तुम्हारा जग में कभी नहीं करेगा सम्मान।।

अपनें छोटे भाई बहनों को भी यह बात समझाओ।

भूख से कम खानें की आदत को अपनाओ।।

अपनें भोजन का कुछ भाग जरूरत मंद को दे डालो।

अपनें मुकद्दर को नेक काम करके बदल डालो।।

थोड़ा थोड़ा करके अन्न कि बचत कर  अपने जीवन को सुखमय बनाओ।

हफ्ते में एक दिन झुग्गी झोपड़ियों का चक्कर लगाओ।।

अपनें हाथ से दान कर  अपनें जीवन को जगमगाओ।

दूसरे की पीड़ा को समझ कर उन के दुःख में काम आओ।

उनकी मदद के लिए सबसे पहले आगे आओ।।

अपनें साथियों को भी इस नेक काम में शामिल करके दिखाओ।

अपनें  परिवार और उनके जीवन में भी खुशहाली बिखराओ।

हर वस्तु की बचत करना जब तुम सीख जाओगे।

कामयाबी के शिखर तक तब तुम पहुंच जाओगे।।

पानी,बिजली,सफाई और बचत को अपनी आदत में शामिल कर डालो।

इस नेक काम को करनें कि पहल अपने मोहल्ले से कर डालो।।

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हम नन्हें नन्हें हैं बच्चे

हम नन्हे नन्हे बच्चे,

नादान उम्र के हैं कच्चे।।

भोले भाले दिल के सच्चे।

मासूम और सच्चे बच्चे।।

लिखना पढ़ना क्या जानें?

हम तो अभी अक्षर भी न पहचानें।।

केवल मां की ममता को ही जानें।।

हम नन्हे नन्हें हैं  बच्चे 

नादान उम्र के हैं कच्चे।

मासूम और सच्चे बच्चे।।

हमें डांट फटकार से डर लगता है।

केवल मातापिता का संग ही अच्छा लगता है।

हमें तो आजादी भरा वातावरण ही अच्छा लगता है।।

हम से ज्यादा पढ़ाई न करवाओ।

हमें खेल  खेल में सब कुछ  समझाओ।।

हमारे संग बच्चा बन कर धमाल मचाओ।।

रूखा व्यवहार मत अपनाओ।

अपनें चेहरे पर हंसी का नूर लाओ।।

होम वर्क  विद्यालय में ही करवाओ।

चित्र कारी   करनें का अवसर दिलवाओ।।

हम हैं नन्हें नन्हें बच्चे।

नादान उम्र के हैं कच्चे।

भोले भाले दिल के सच्चे बच्चे।।

हमें हाथ पकड़ कर ही लिखना सिखाओ।

गन्दा लिखनें पर आंखें मत दिखाओ।

हम पर  जबरदस्ती मत चलाओ।।

मैडम हम तो हैं नन्हें नन्हें बच्चे।

नादान उम्र के हैं कच्चे।

भोले भाले दिल के सच्चे।।

प्रार्थना

सुबह सवेरे ले कर तेरा नाम प्रभु।
करते हैं शुरुआत आज का काम प्रभु।।
पढ़ाई में हमेशा ध्यान लगाएं हम।
मेहनत से ही अच्छे अंक पाएं हम।
मेहनत से ही अच्छे अंक पाएं हम।।
सुबह सवेरे ले कर तेरा नाम प्रभु।
करते हैं शुरुआत आज का काम प्रभु ।।
कक्षा में कभी जी न चुराएं‌ हम।
सच्चाई को ही हमेशा अपनाएं हम।
सच्चाई को ही हमेशा अपनाएं हम।।
मातापिता,गुरूजनो का हमेशा सम्मान करें।
नत मस्तक हो कर उनका आदर सत्कार करें।।
नत मस्तक हो कर उनका आदर सत्कार करें।।
कलह क्लेश ‍ राग द्वैष को बिसराए हम।
प्रेम स्नेह,अपनत्व का सभी को पाठ पढ़ाएं हम।
प्रेम स्नेह अपनत्व का सभी को पाठ पढाएं हम।
सुबह सवेरे ले कर तेरा नाम प्रभु।
करतें हैं शुरुआत आज का काम प्रभु।।
भू की रज को माथे से लगाएं हम।
हाथ जोड़ कर उन्हें शीश झुकाएं हम।।
हाथ जोड़ कर उन्हें शीश झुकाएं हम।।
तिरंगे का हमेशा मान बढ़ाएं हम।
शहीदों के पथ पर चल कर दिखलाएं हम।
शहीदों के पथ पर चल कर दिखलाएं हम।

चंदा मामा भाग-२



प्यारे प्यारे चंदा मामा।
न्यारे न्यारे चंदा मामा।
तुम हो सब के राजदुलारे मामा।

मां कहती हैं तुम अपनी किरणों की प्रखरता से सारे जग को चमकाते हो।
किरणों की चकाचौंध से सभी के मनों को लुभाते हो।।
कभी गोल-मटोल बन कर दिखाते हो।
कभी तिरछी कलाओं का जाल दिखाते हो।
कभी आधी, कभी पुरी आकृति बनाते हो।

आमावस की रात को तुम कहां छिप जाते हो?
अंधियारे बादलों के संग न जानें कहां दौड़ लगाते हो।।
अपना राज़ मुझे से छिपाओ न।
बच्चा समझ कर मुझ पर रोब चलाओ न।।
मुझे बहुत अधिक चिढाओ न।
अपना अंदाज मुझे भी सीखाओ न।।
मेरे गोल मटोल चंदा मामा।
आप तो खुबसुरती का हो अनमोल खजाना।।
प्यारे प्यारे चंदा मामा।
सब के मनभावन मामा।।
एक बात आज तक मेरे समझ में नहीं आई।
घटनें और बढनें की कला तुम नें कहां से पाई?
क्या तुम सचमुच में कोई जादुगर हो?
क्या तुम सपनों के सौदागर हो?
चुपके से मुझे बता दो न।
अपनी कला का बडपन्न मुझे भी सीखा दो न।।
मैं भी छोटा और बड़ा हो कर सभी को हर्षाऊंगा।
आपकी तरह का मुखौटा पहन कर सभी को ललचाऊंगा।
सर्कस के जोकर की तरह बन कर सभी को हंसाऊंगा।।




रानी कम्प्यूटर और माऊस

रानी ने कम्प्यूटर चलाने के लिए पावर का बटन दबाया।
बटन क्लिक कर के अपने दोस्तों को दिखलाया।।
बार बार कोशिश करने पर भी सफल न हो पाई।
अपने दोस्तों के सामने विफल हो कर पछताई।।
रानी माऊस को उल्ट पुल्ट कर घुमाने लगी।
उस पर अपनी भड़ास निकाल कर झल्लानें लगी।।
हार कर बोली तुम मुझ से क्यों हो नाराज?
यूं मुझे क्यों कर रहे हो नासाज।।


माउस बोला मैं तो हूं भला चंगा।
तुम से मैं व्यर्थ में क्यों लूंगा पंगा?
यह मौनिटर तो बड़ा अकड़ है दिखाता।
बड़ा होनें का हर दम रौब है खुब जमाता।
मौनिटर माऊस की खिल्ली उड़ा कर बोला।
तू तो जितना है छोटा।
तू तो उतना ही है खोटा।।

मौनिटर और माउस की फिर से हुई लड़ाई।
उन की लड़ाई देख कर रानी भी मुस्कुराई
रानी माऊस को बोली तुम लड़ाई झगड़ा बंद करना सीखो
ज्यादा बड़ा बनने की धुन में ,नम्रता से काम लेना सीखो।।
माउस बोला तुम्हारी क्या है औकात?
मेरे सामाने टिक पानें की भला क्या है बिसात?

माऊस बोला मैं हूं इनपुट डिवाइस।
‌ मैं तुम्हें देता हूं एक एडवाइस।।
यदि मैं काम नहीं करुंगा तो तु भी कुछ नहीं कर पाएगा।
मेरी सहायता के बिना यूं ही हाथ पे हाथ धरे बैठा रह जाएगा।।
ईनपूट और आऊटपूट डिवाइस बोले यदि हम काम नहीं करेंगे तो माऊस भी है बिल्कुल बेकार।
वह तो बेकार में ही हम से कर रहा है तकरार।।
इनपुट और आउटपुट डिवाइस दोनों मिलकर ही काम हैं करते।
दोनों एक दूसरे के बिना कुछ भी काम करनें की नहीं सोच सकते।।
माउस और मौनिटर अपनी सोच पर थे व्याकुल।
दोनों नजरें झुका कर एक दूसरे से मौफी मांगनें के लिए थे आतुर।।
माउस बोला यह बात अब मेरी समझ में है आई।
हम दोनो अब कभी नहीं करेंगे हाथापाई
हम एक दूसरे के बिना हैं अधूरे।
एक साथ मिल जुल कर काम करनें से हम होगें पूरे।।
रानी बोली भाई तुम दोनों हमेशा अब कभी न करोगे लड़ाई।
मिल जुल कर एक साथ काम करनें में ही है तुम्हारी भलाई।।














जीवन का सच्चा ध्येय

जीवन का सच्चा ध्येय यही
सोच विचार कर काम करें सभी।।
थमना नहीं,रुकना नहीं,
जीवन में तुम कभी थकना नहीं।।
“आराम हराम है,
काम ही महान है।
काम ही महान है”।।

जीवन में समय और अनुशासन पालन कर,
जीवनका हर क्षण आनन्द ऊठाना।
धैर्य,साहस और हिम्मत जुटा ,आगे ही आगे बढ़ते जाना।
समस्या, चुनौतियों,और बुरा समय आनें पर भी कभी न तुम डगमगाना।।
निराशा छोड़ आशा का दीपक लिए , आगे बढ़ते जाना।
आगे बढ़ते जाना।।

जीवन का सच्चा ध्येय यही।
सोच-विचार कर काम करें सभी।।
“मजबूत इरादा, दृढ़ संकल्प,नेकविचार
,इस को ग्रहण कर तुम करो स्वीकार”।।

सतत प्रयास, बुद्धि से हिम्मत जुटाना,
क्षमता और योग्यता के बल पर आगे बढ़ते जाना।।
आगे बढ़ते जाना।।
श्रम से ही सब कुछ अपनाना।
श्रम से कभी जी मत चुराना।।
श्रम को ही अपने जीवन का ध्येय बनाना।।
इस संकल्प को मन में ग्रहण कर,
आगे बढ़ते आगे बढ़ते जाना।
थमना नहीं रूकना नहीं
पुनः प्रयास कर आगे बढ़ते रहना।
मन और मुख एक कर,
काम करते चलना।
काम करते चलना।।

निर्भय हो कर, संसार के रण क्षेत्र में विचरना।।
सकारात्मक सोच को अपना कर,अपनी मंजिल पाना।।
आगे बढ़ते जाना, आगे बढ़ते जाना।
जीवन का सच्चा ध्येय यही।
सोच समझ कर काम करें सभी।।
यही तो है जीवन का सुखद परिणाम।
इससे भविष्य बनेगा महान।।

राजा बेटा

अमन आते ही मां पर चिल्लाया मां खाना लाओ, खाना नहीं बना है मां अमन से बोली। तुम कोई काम में मेरी मदद क्यों नहीं करते हो? तुम तो बस बैठे बैठे खाना खाना ही जानते हो। हम जब तुम्हारी उम्र के थे तो सारा काम किया करते थे। अमन बोला मां रहने दो अपना लैक्चर। खाना देना हो तो दो वरना मैं भूखा ही रह जाऊंगा।मां बोली ना पढ़ाई ना लिखाई तुम्हारी आदतों से मैं तंग आ गई हूं। आज तुम्हारे पिता होते तो वे कितना दुखी होते।
अमन नाराज होकर अपने कमरे में चला गया मां चिल्लाती रही मां हमेशा डांट फटकार कर अपने बेटे को चुप करा देती थी अमन को कभी इतना गुस्सा आता था वह घर का सामान भी इधर-उधर फेंकनें लगता था। वह पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। वह अभी केवल 9 वर्ष का ही था। फिर भी उसकी मां उसे डांटती रहती थी।

वह जब और घरों में बच्चों को काम करते देखती या पढाई करते देखती तो उसका कलेजा मुंह को आने लगता था। पड़ोस के कितने बच्चे हैं । वे अपने माता-पिता के साथ कितना काम करते हैं? एक मेरा बेटा है जो 24 घंटे इधर-उधर भटकता रहता है। ना जाने घर में कितना कबाड़ इकट्ठा कर लाता है। घंटो दरवाजा बंद करके इस कबाड़ से ना जाने क्या करता रहता है? इसके कमरे में ना जाने कितने प्लेटों के टुकड़े ,गत्त्ते बैटरी तारें और ना जाने क्या इकट्ठा करता है ? अपने कमरे को कबाड़ खाना बना रखता है।
मेरे बेटे को न जानें कब अक्ल आएगी ।बड़ा होकर लगता है यह कबाड़ी ही बनेगा। मेरी तो किस्मत ही फूटी है। पढ़ाई में भी इसका मन ही नहीं लगता । मैं हर रोज अपने बेटे को समझाती हूं,डांटती हूं फिर भी इस के कानों में जूं नहीं रेंगती।
पड़ोस की औरतें एक दिन उनके घर पर आई तो अमन कि मां के सामने अपनें अपने बेटों के बारे में बड़ाई करने लगी। यह सब सुनते ही अमन की मां तो जल भून कर राख हो गई। वह अपनें मन में सोचनें लगी मैनें न जानें कैसे कपूत को पैदा किया। मेरे पिछले जन्म के कर्मों का फल भोग रही हूं। एक मेरा बेटा है जो कमरा बंद करके कबाड़ लेकर बैठा रहता है पता नहीं इस कबाड़ का क्या करेगा? किसी दिन इसे जाकर कबाड़ी को दे दूंगी। पड़ोस की औरतें रूपा से बोली आपका बेटा तो ना जाने कितनी पढ़ाई करता है? बाहर ही नहीं निकलता। वह बोली अगर मेरा बेटा पढ़ाई करता तो ठीक था ।वह तो शायद कबाड़ी ही बने। उस के इस प्रकार कहने पर वे आपस में हंसने लगी। उनको हंसता देख और अपना मज़ाक बनाते देख चुपचाप रूंआसी हो गई। वे जब सभी अपने घर वापस चली गई। अमन पर्दे के पीछे से उन कि सारी बातें सुन रहा था। वह मां को आकर बोला अगर आप मुझे घर में नहीं रखना चाहती तो ना सही मैं घर छोड़ कर चला जाऊंगा। आपसे तो मेरा बंद रहना भी बर्दाश्त नहीं होता । खेलने जाता हूं तो कहने लगती हो सारा दिन खेलते रहता है । उनकी बात पर आप ज्यादा विश्वास कर लेती हो। जाओ कितनी बार कह दिया कि मैं पढ़ाई नहीं करूंगा। आज तो आप अपनी सहेलियों के सामने मुझे निकम्मा नाकारा, और न जाने क्या क्या कह रही थी।
उसकी मां बोली तो क्या करूं? एक कक्षा में 2 साल लगा दिए। ना काम का ना काज का दुश्मन अनाज का ।
अमन हर रोज अपनी मां से गालियां खाता। स्कूल में जाता था । स्कूल में उसका कोई भी दोस्त नहीं था। वह किसी से बात नहीं करता था। वह बहुत ही शरारती था। स्कूल की पढ़ाई में उसका ज़रा भी मन नहीं लगता था। वह जानबूझकर सब को परेशान करता था उसकी इन हरकतों से परेशान होकर अध्यापक उसे क्लास से बाहर निकाल देते थे मैं यही तो चाहता था उसका पढ़ाई में कहां मन लगता था।
सभी अध्यापक उससे परेशान आ चुके थे। उन्होंने उसे चेतावनी दी थी कि अगर वह अपनी आदतों से बाज नहीं आया तो उसका स्कूल से नाम काट दिया जाएगा । जब पानी सिर पर से गुजर गया तो स्कूल की एक अध्यापिका ने प्रिंसिपल के पास जाकर शिकायत कर दी। हर दम नाक में दम करता है, और पढ़ाई तो जरा भी नहीं करता।
स्कूल में प्रिंसिपल नई नई आई थी। वह तो सभी बच्चों से परिचित भी नहीं थी। उन के पास जब सभी अध्यापिकाओं कि शिकायत पहुंची तो उसे सजा सुनानें से पहले उसनें सोचा उसे परखा जाए, वास्तव में वह अनुशासन हीन बालक है या नहीं। वह बिना जांच पड़ताल के कोई भी फैंसला नहीं करती थी।
अमन को प्रिंसिपल नें अपनें औफिस में बुलाया और कहा कि तुम 10 दिन तक यही मेरे ऑफिस में एक बेंच पर बैठे रहोगे। देखती हूं, तुम्हारा आचरण कैसा है? प्रिंसिपल ने उस बच्चे को गौर से देखा, उस बच्चे को देखना चाहती थी कि वह कितना शरारती बच्चा है ? पहले दिन तो अमन ने मैडम को कह दिया कि मैडम इतनी देर तक यहां मैं बैठा नहीं रह सकता। मैडम बोली क्यों? वह बोला मेरी मर्जी है। मैडम ने कुछ नहीं कहा । उस पर चुपके चुपके नज़र रखती रही। वह क्या करता है? ऑफिस की चीजों को निरंतर देखता रहता। दो-तीन दिन तक वह चुपचाप सारे ऑफिस की एक एक वस्तु पर नज़र गड़ाए था। उसे प्रिंसिपल महोदया नें कुछ नहीं कहा।
एक दिन प्रिंसिपल नें चपरासी को कहा कि सारी चीज़ो को साफ कर एक जगह मेज पर रख दो। चपरासी आया उसने सारे कमरे को साफ किया और सामान रखकर चला गया। अमन प्रिंसिपल से बोला एक बात कहूं।वह बोला आपका पिंक वाला रजिस्टर आपके सामने नहीं रखा है ।वह तो अलमारी में रख कर चला गया। लाइट भी ऑन ही रख कर चला गया। आपकी टेबल के नीचे तीन दिन से पैन गिरा पड़ा है वह भी उसने उठाकर नहीं रखा। मैडम मुस्कुराते बोली तुम ध्यान से सारी वस्तुओं को देखते हो। इस रजिस्टर कि तो मुझे बहुत ज्यादा जरूरत थी। प्रिंसिपल ना जाने कितनी देर से अपने पर्स में कुछ खोज रही थी। अमन बोला मैम आप क्या ढूंढ रही हो? वह बोली ,तुम अपना काम करो। बड़ों कि बातों में ध्यान नहीं देना चाहिए। जैसे मैं कहती हूं वैसे खड़े रहो। मैं खड़ा नहीं रह सकता। मैं बैठ जाता हूं।
वहां पर बहुत सारी वस्तुएं थी जो बेकार थी । प्रिंसिपल मैम ने चपरासी को बुलाया इस कबाड़ को लेकर जाओ और कचरे में फेंक दो। अमन बोला मैम इस कचरे में आप ना जाने कितने आवश्यक सामान फेंक रहे हो? इस के इस्तेमाल से बहुत अच्छी-अच्छी चीजें बनती है। प्रिंसिपल बोली क्या तुम्हें चाहिए? हां जी मैम ने कहा कि एक शर्त पर तुम्हें वह सब दूंगी अगर तुम शरारत नहीं करोगे ।वह बोला मैडम मैं कभी शरारत नहीं करूंगा। मेरी मां मुझ पर हर वक्त चिल्लाती रहती है। वह कभी शांत नहीं रहती। मुझे भी गुस्सा आ जाता है। मैं भी पढ़ता हूं । मैम मेरी मां मुझे निकम्मा,नाकारा और कबाड़ी कहती हैं। मेरे दोस्त मुझ पर हंसते हैं। वह भी मुझे इन्हीं नामों से करते हैं तो मैं आपसे आपे से बाहर हो जाता हूं। मेरा पढ़ाई में भी मन नहीं लगता।मेरे मन में पढ़ाई कि जगह निकम्मा, नाकारापन घुस गया है।
प्रिंसिपल चपरासी को बुला कर बोली मुझसे एक टेलीफोन नंबर गुम हो गया है ।परसों तिवारी जी आए थे उन्होंने मुझे वह नंबर लिखवाया था। प्रिंसिपल के कुछ बोलनें से पहले अमन बोला मैम मुझे वह सब याद है । उसने वह नंबर प्रिंसिपल को लिखवा दिया। मैम ने जब नम्बर मिलाया तो वह हैरान रह गई । उसे तो नंबर याद ही नहीं था। वह नम्बर बिल्कुल सही था। वहीं खड़ा होकर उनको देख रहा था। मैम सोचने लगी कि यह लड़का तो बहुत होशियार है। मैंने टेबल के नीचे जानबूझकर पैन गिराया था यह देखने के लिए कि वह उठाता है या नहीं। उस नें तो उसे छुआ तक भी नहीं नहीं। यह नालायक नहीं हो सकता। अच्छा बच्चा है कि नहीं बस यह देखना बाकि है।
मैम अमन से बोली कि तुम इस कबाड़ का क्या करोगे? वह बोला कि मैं इन सब को इकट्ठा करके छोटी-छोटी चीजें बनाता हूं। मैंने घर में कूड़ा कर्कट से इकट्ठा कर के कई चीजें बनाई है ।मेरे पास ज्यादा सामान नहीं होता । मां से मंगवाता हूं तो मां मना कर देती है। वह लाकर नहीं देती। मैम बोली कि अगर तुम पढ़ाई किया करोगे तो मैं तुम्हें बहुत सारी चीजें दिलवाने में मदद करूंगी। वह खुश होकर आश्चर्य से बोला “अच्छा” सचमुच। आज उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं था।
एक दिन मैडम अनुराधा अमन के घर पहुंच गई। घर के अन्दर जाने के लिए दरवाजा खटखटाने लगी । उसकी मां की आवाजें मैडम को साफ सुनाई दे रही थी निकम्मा,नाकारा, कबाड़ी, बुधिया बोला मां मैं आपका कहना कभी नहीं मानूंगा। वह लड़ाई झगड़ा करके जोर-जोर से बोल रहा था। मैम ने दरवाजा खटखटाया। अमन की मां बाहर आई ।
अध्यापिका को अपने घर में आते देख कर हैरान होकर बोली, क्या बात है ?आज फिर इस नालायक ने कुछ कांड कर दिया।
मैडम अमन की मां को बाहर ले जाकर बोली कि आप अपने बेटे से प्यार से बात किया करो। आप अगर अपने बेटे को हर दम डांट-डपट करती रहोगी तो वह सुधरने के बजाय और भी ज्यादा बिगड़ जाएगा। आप अपने बच्चों को इन नामों से पुकारना छोड़ दो। इस नन्हे से बच्चे पर इसका गहरा असर पड़ता है ।वही तभी तो वह आपकी बात नहीं मानता ।आप इसे एक दिन निकम्मा,आवारा, की बजाए मेरा राजा बेटा कह कर तो बुलाओ।
अमन ने मैम का हाथ पकड़ा और बोला चलो मैडम आपको मैं अपनी चीजे दिखाता हूं।
अमन ने पलंग के नीचे छुपाया हुआ अपना सारा सामान मैडम को दिखाया। उसने उन चीजों से ना जाने कितनी सुंदर सुंदर, साइंस के मौडल बनाए थे। उनको बनाने में उसने जाने कितनी मेहनत की थी। प्रिंसिपल उसकी कलाकृति देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई। हमारे स्कूल में जिस दिन साइंस फेट होगा उस दिन तुम अपनी चीजों का स्टॉल लगाना।
अमन खुश होकर बोला मैडम आप मां को समझा दो वह मेरे सामान को बाहर मत फेंका करें। बुधिया की मां को मैडम ने समझाया और कहा कि आप अपने बेटे को नालायक समझती हो । आपका बेटा तो अमन का लाल है। इसमें तो वह रचनात्मक प्रतिभा है जो बहुत ही कम बच्चों में होती है। वह तो इन चीजों को बनाने में बहुत ही शौक रखता है।
एक दिन देखना आपका बच्चा बड़ा होकर एक बहुत ही बड़ा वैज्ञानिक बनेगा ।यह तभी हो पाएगा अगर आप अपने बेटे की भावनाओं को समझेंगे। अमन की खूब प्रशंसा की और कहा कि हमें बच्चों में छिपी हुई प्रतिभा को जगाना है न कि उस में नकारात्मकता को बढ़ावा देना। आप ने इस बच्चे के विश्वास को मजबूत बनाना है न कि उस के हौसलें को मिटाना। घर का मौहाल सकारात्मक न होनें से इस तरह के विचार जन्म लेतें हैं। माता पिता का कर्तव्य है कि बच्चों कि सारी बातें जाने । आज अमन अपनी प्रसंशा होते देख बहुत खुश हो गया। आज उसके चेहरे पर किसी बच्चे के प्रति नाराजगी नहीं थी। वह सभी से प्यार से बातें कर रहा था।
उसकी मां ने भी उसे डांटना छोड़ दिया था । एक दिन जब वह घर आया तो उसकी मां बोली कि मेरा राजा बेटा तू कब आया? मुझे तेरे आने का आभास ही नहीं हुआ इधर आ क्या तुझे भूख लगी है? वह अपनी मां को देखकर बोला कि आप मेरी ही मां हो या किसी और की ।अपनी मां के प्यार को समझ ही नहीं सका।
बहुत दिनों बाद उसके दोस्तों के सामने उसकी मां ने उसे राजा बेटा कहकर पुकारा था तो इसकी आंखें डबडबा आई, मगर जल्दी ही अपना मुंह फेर अपनें आंसू छिपा कर जाते बोला अभी आया। अपने कमरे में जाकर काफी देर अपने आंसुओं को छुपाए हुए वह बाहर आकर बोला मां मुझे भूख लगी है। खाना दो।
अपने कमरे में जाकर फालतू चीजों से वस्तुएं बनाने लगा। मां ने आकर उसे कहा मैंने बहुत सारी चीजें रखी है अब मैं इन्हें नहीं फैंका करूंगी। एक डिब्बे में भरकर सारी फालतू चीजें रखती हूं।आज से मैं भी कुछ बनानें में तुम्हारी मदद करुंगी। बेटा आगे से मुझसे भूल नहीं होगी। वह पढ़ाई भी करने लग गया और बाद में चलकर एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक बना।।

गुरु तोताराम चिटकू और बरगद का पेड़

सुंदरवन में बहुत सारे जीव जंतु रहते थे। उस घने जंगल में एक नदी के पास बरगद का एक बहुत बड़ा वृक्ष था । वहां पर जंगल के जीव जंतुओं ने अपना सभा स्थल बनायाहुआ था। जंगल में सभा के आयोजन के समय जो भी निर्णय लेते थे वह सभी उस वृक्ष के नीचे ही लेते थे। की वर्षों से वह पेड़ यूं ही लहलाता आ रहा था। जंगल का राजा शेर उसी पेड़ के नीचे सभी जानवरों को अपना फैसला सुनाया करता था। कुछ दूरी के फासले पर ही जीव जंतुओं ने अपना बसेरा बनाया हुआ था। जहां पर सभी जानवर अपनी मांद में रहा करते थे।

सभी जनों को आज्ञा दी थी कि हमारे जंगल का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहना चाहिए जब तक वह शिक्षित नहीं होगा तब तक उसका जीवन सार्थक नहीं है। उस वन के सदस्य पढ़े-लिखे नहीं थे इसीलिए राजा शेर चाहते थे कि उनके जंगल में रहने वाले सभी बच्चे कुछ पढ़े लिखे हो। इसीलिए उन्होंने एक स्कूल की स्थापना करवाई थी। राजा की आज्ञा का कोई भी बहिष्कार नहीं करता था। उन्होंने पढ़ाने के लिए गुरु तोताराम को नियुक्त किया हुआ था जो कि बच्चों को बड़े ही प्यार से पढ़ाया करते थे। भालू लोमड़ी नेवला हिरण बंदर सारे जानवर शिक्षण प्राप्त हेतू गुरु तोता राम के पास पढ़ने आते थे, जो कोई भी जीव जंतु उस विशाल बरगद के पेड़ के पास से गुजरता था तो थोड़ी देर विश्राम करने के लिए उस पेड़ के नीचे उसे इतनी गहरी नींद आती कि कुछ पता ही नहीं चलता था ।सभी आने जाने वाले जीव और प्राणी उस पेड की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। वह जब भी अपने आवास स्थल पर जाते तो बीच में वह स्थान आ जाता था। जहां वह बरगद का पेड़ था। ठंडी ठंडी हवा से वातावरण शांत हो जाता था।

लेकिन कुछ महीनों से वह पेड़ सूखता जा रहा था । पक्षी भी उस पेड़ पर अब कम मात्रा में आने लगे थे ।
संक्रमित होने के कारण वह पेड़ सूख गया था। उस पेड़ को बहुत तरह से बचाने का प्रयत्न किया गया परंतु उसको बचाने में कोई भी सफल नहीं हो रहा था। राजा ने सभी जीवो को एकत्रित किया तो वहां पर उन्हें पहले जैसा आनंद नहीं आया । वह अपने सभी जीवो से बोले कि यह पेड़ अब पहले जैसी छाया नहीं देता। यह पेड़ अब बूढ़ा हो चला है। अब उससे अकेला छोड़ने का समय आ गया है। आखिरकार सभी लोगों ने निर्णय किया कि अब इस पेड़ पर रहने से कोई फायदा नहीं है। हमें अपनी सभा स्थल कहीं और बनाना चाहिए ।

जंगल के राजा नें अपने सभी जीवो को अगली मीटिंग किसी अन्यत्र स्थान पर करने का हुक्म दिया। वहां से कुछ ही दूरी पर एक पीपल का पेड़ था। सभी ने उस स्थान को उपयुक्त पाया , सभी ने हामी भर दी। सभी जीव जंतुओं ने उस बरगद के पेड़ को छोड़ दिया।

सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण कर जब घर जाते तो उस बरगद के पेड़ के पास से होकर गुजरते। बच्चे बहुत ही उदण्ड थे । बंदर, हाथी ,भालू ,हिरण ,बंदर,सब छोटे-छोटे बच्चे उस बरगद के पेड़ पर पत्थर मारते ।लोमड़ी का बच्चा चिटकु यह सब देखकर बहुत ही दुःखी होता। वह पढ़ने में बहुत ही होशियार था। गुरु तोताराम का यह सबसे प्यारा विद्यार्थी था। पढ़ाई में सबसे आगे होने के बावजूद वह अपना होमवर्क स्कूल में ही खत्म कर लिया करता था। इतने होनहार विद्यार्थी को देखकर गुरु तोताराम बेहद प्रसन्न हुआ करते थे उन्हें अपने इस विद्यार्थी पर बहुत गर्व था। उन्होंने चिटकुल को स्कूल खत्म होने के बाद भी अलग से पढ़ाना शुरू कर दिया था। बहुत ही होनहार विद्यार्थी था इसलिए गुरु तोताराम को लगता था कि शायद वह भविष्य में वह बहुत बड़े काम करेगा।

बच्चों का पेड़ को पत्थर मारना उसे अच्छा नहीं लगता था। वह सभी को समझाता मगर कोई भी उसकी बात नहीं मानता था। वह सोचते कि यह पढ़ाई में बहुत तेज है तो अपने आप को ना जाने क्या समझता है। सोचता है कि जो वह जानता है वही सही है। उसकी कक्षा के विद्यार्थी उससे कुछ जलने लगे थे। चिटकुल जब कभी अकेला हो जाता तो कभी उस पेड़ के नीचे सो जाता। वह पेड़ को मायूस देख कर सोचता । सभी कितनें स्वार्थी हैं। सभी अपनों ने उसे छोड़ दिया है।अब किसी को भी उस बूढ़े पेड़ कि चिन्ता नहीं।हमारे परिवार का कोई सदस्य बिमार हो जाए तब तक उस कि सेवा करतें रहें हैं जब तक वह ठीक न हो जाए। अगर हम सभी अपने अपने परिवार को छोड़ दें तो हमें कैसा लगेगा? शायद मेरे प्रयत्नों से वह पेड़ फिर लहलानें लगे।
उसे याद आया कि मास्टर तोताराम ने हमें सिखाया था कि हमें किसी को भी बेवजह नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। किसी को भी बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए। अगर कोई मुसीबत में है या किसी परेशानी में है तो हमें उसकी जितना हो सके मदद करनी चाहिए। परंतु उसके दोस्तों मे से तो सभी उदंड थे। वह तो उस पर आते जाते पत्थर मारते जाते। वहीं सारा कूड़ा करकट फैंकते थे।
उसने देखा कि पेड़ के पत्ते सूखने लगे हैं ।वह एक घंटा भर रोज पेड़ के नीचे बैठकर सफाई करता। वह अपने मन में सोच रहा था कि मैं इस पेड़ को बचाने का प्रयास करूंगा। आते जाते रास्ते में पानी की छोटी सी नदी थी जिसका पानी बह करके उस पेड़ की शाखाओं में आता था। परंतु उस नाली के पास हर रोज लोग अपने गंदे गंदे कपड़े धोते थे और उस पानी में कूड़ा कर्कट फैकतें थे। उस नाली को बहुत ही गंदा रखते थे । गंदा पानी उस पेड़ तक पहुंचता था। वह अपने मन में सोचने लगा की हो ना हो इस गंदे पानी से ही यह पेड़ सूख रहा है।

वह सब को नदी को गंदा करने से रोकने का प्रयास करता करता परंतु कोई भी उसकी बात मानने को तैयार नहीं था।उसके साथी उसे कहते कि वह जंगल के राजा से तुम्हारी शिकायत करेंगें। तुम हमें बहुत परेशान करते हो। चिटकू बोला तुम मेरी शिकायत भले ही कर लो मैं दण्ड भूगतनें को तैयार हूं। मगर मैं तुम्हें इस नदी को गंदा नहीं करने दूंगा। आप लोग जानते नहीं हैं कि इसके कितने दुष्परिणाम हो सकते हैं। हमारे गुरु तोताराम ने हमें बताया है कि नदी को कभी भी धंधा नहीं करना चाहिए उसे स्वच्छ रखना चाहिए क्योंकि उसी से हमें पीने का पानी मिलता है। जिससे हमारा और पेड़-पौधों व सभी जीव जंतुओं का जीवन उसी से चलता है।
पर वहां के जीव जंतु पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए उन्हें चिटकू की बात पर ज़रा भी विश्वास नहीं होता था।


एक दिन जब वह स्कूल से वापस आया तो वह काफी देर तक बरगद के पेड़ के नीचे बैठा रहा। उसने देखा कि थोड़ी दूरी पर जंगल के बीचो बीच एक पानी की छोटी सी झील है । वहां का पानी स्वच्छ है। उसने दूसरी ओर से नाली खोदना शुरू किया और उस नाली को उसने पेड़ के समीप पहुंचा दिया। हर रोज की मेहनत के बाद अपने मकसद में सफल हो गया ।नदी का पानी उस नाली में से उस पेड़ के तने के पास पहुंच लगा ।उसने नाली बनाने के लिए उसके आसपास पत्थर लगा दिए।उस नदी का रास्ता इतना संकरा था कि वहां से कोई भी जाना पसन्द नहीं करता था।उसने अपनें मन में सोचा यहां से पेड़ तक नाली खोद कर अच्छा ही किया।।इस संकरे रास्ते से तो कोई भी आना पसन्द नहीं करेगा।साफ पानी तनों तक पहूंचेगा।

बच्चों ने एक दिन गुरु तोताराम के पास चिटकू की शिकायत कर दी और कहा कि यह चिटकू हमारी बात नहीं मानता है। जंगल के राजा ने कहा है कि उस पेड़ के पास से, दूसरी जगह ही सभा का आयोजन होगा। वह चिटकू तो हमेशा उस पेड़ के पास सारा दिन व्यतीत करता है। गुरु तोताराम जी ने कहा कि चिटकू नें बहुत ही अच्छा काम किया है शायद यह पेड़ ठीक हो जाए। उसने इतनी मेहनत से यह नाली बनाई कि जिससे कि साफ पानी पेड़ की जड़ों में पहुंचता रहे।

उन्होंने चिटकू को पास बुला‌ के पूछा तुमने राजा की आज्ञा का उल्लंघन क्यों किया? चिटकू बोला कि मैं इस पेड़ को बचानें का प्रयत्न करूंगा, चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान ही क्यों ना देनी पड़े ।
वह कहने लगा मास्टर जी क्या हम बिना वजह से हमें अपने परिवार के सदस्यों को यूं अकेला छोड़ कर चले जाना चाहिए मैं तो मरते दम तक उस पेड़ को बचाने का प्रयत्न करूंगा। बच्चों को बहुत ही गुस्सा आया की गुरुजी उसे कुछ भी नहीं कहा । उन्होंने घर जाकर अपने माता-पिता को यह बात कही भालू ने जाकर यह बात शेर को कह दी।
जंगल के राजा शेर ने चिटकू को अपने घर बुलाया और कहा कि तुमने ऐसा क्यों किया? चिटकू बोला राजा जी मेरे गुरु जी ने हमें सिखाया है कि हमें किसी को भी बे वजह नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए ।आपने उस पर उस पेड़ के पास सभी को जाने को मना कर दिया था मुझे से उस पेड़ का दर्द नहीं देखा गया । वह पेड़ अपनें आप को अकेला पा कर उदास हो गया। शेर बोला कि पेड़ भी कभी उदास होता है चिटकू बोला कि हां वह अकेला रह गया है। अगर आपकि माता कभी बिमार हो जाए तो उन को बचानें का प्रयत्न नहीं करोगे क्या? उन्हें अकेला छोड़ दोगे मरनें के लिए।शेर सोनें लगा यह बच्चा तो कह तो ठीक ही रहा है।वह अब अपने इरादे को नहीं बदल सकता। चिटकू बोला वह पेड़ उदास नहीं होगा क्या ? इतने सालों से आप वहां पर सभा का आयोजन करते आए हैं पर आज बिल्कुल निर्बल और विकल हो गया है बच्चे हर कभी उस पर पर पत्थर मारते हैं। इतने सालों उसने हमेशा अपने फल खाने के लिए दिए। और बीमारी में इसकी पतियों से दवाईयों में भी उपयोग किया जाता है।
चिटकू की बातों का शेर पर कोई असर नहीं हुआ वह बोला कि अभी तो मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा पर तेरे पिता को कैद कर लेता हूं ।कसम खाओ कि उस पेड़ के पास तुम अब कभी नहीं जाओगे। वह पेड़ बूढ़ा हो चला है उसे परेशान मत करो उसका अंतिम समय निकट आ चुका है उसे चैन से मरने दो। चिटकू बोला कि हमारे विद्यालय को तो वहीं से जाना पड़ता है। शेर बोला कि आगे से तुम्हारी कोई शिकायत आई तो तुम्हें भी मैं अंदर कर दूंगा।
चिटकु लोमड जब स्कूल से घर लौटा तो उसकी मां नें कहा बेटा तूने यह क्या किया? वह बोला कि मां मैं क्या करुं। मैं गुरु जी कि किसी भी बात को अनसुना नहीं करूंगा। उसकी मां बोली कि जंगल के जीव भी हमारी कोई मदद नहीं करेंगे। मां कोई बात नहीं मैं तो कभी किसी को गलत काम करते देख नहीं सकता ।मैं आपको खाने का अवश्य प्रबन्ध करवा दिया करूंगा।
तीन महीने बीत गए। सभी जीवों में चिक्कू और उसकी मां से किनारा कर लिया। चिटकू के पिता को तो जेल में भेज दिया गया। वह एक दिन उदास होकर के उस पेड़ के नीचे भूख से बेहाल होकर धीरे-धीरे कराह रहा था। बच्चे आ कर उसका मजाक उडा कर कहनें लगे जो बड़ों कि बात नहीं मानता उसका यही अंजाम होता है। तुम्हारे पिता को न जानें कितने दिनों तक राजा कि कैद में रहना होगा। मेरे पिता को तो जेल में डाल दिया, बिना किसी अपराध के। पेड़ के नीचे उसे नींद आ गई थी। पेड़ को मालूम हो गया था कि राजा शेन उसे के पिता को कैद कर लिया है। पेड़ उसको मायूस देख कर उससे बोला बेटा उदास ना हो मैं जादुई पेड़ हूं।जब तक तेरे पिता नहीं लौटते तब तक मैं तुम्हारे खाने का प्रबंध कर दिया करूंगा। क्या कहा? उसने पेड़ को प्रणाम किया। पेड़ उसको देख कर मुस्कुरा रहा था ।पेड़ फिर से हरा भरा हो रहा था। हर रोज उसके दोस्त नाली में कूड़ा करकट फैंक जाते वह हर रोज उसको हाथ से उठा उठा कर साफ करता था ।
हर शाम को एक अजनबी उसके घर पर आकर उनके लिए खाने का सामान और मदद की वस्तुएं उसे दे जाता था। लोमड़ी पूछती कि यह वस्तुएं किसने भेजी हैं वह कहता कि बहन तुम्हारे पति का दोस्त हूं। उसने मुश्किल के समय में हमारी बहुत मदद की है अब आप पर मुश्किल आन पड़ी है ऐसे में आपकी सहायता करना मेरा फर्ज है।वह अपनें चेहरे को नकाब से ढक रखता था। लोमड़ी चुप रह जाती एक दिन जंगल के सभी जीवो ने राजा को शिकायत कर दी की लोमड़ी के परिवार को सभी ने सहायता करने से मना कर दिया था लेकिन कौन है जो उसकी मदद कर रहा है? राजा बोले कि अगर तुम में से कोई उसकी मदद नहीं कर रहा तो ऐसा कौन सा शख्स है जो उसकी मदद कर रहा है।
एक दिन शेर भेष बदलकर लोमड़ी के घर के पास आया। आज तो लोमड़ी बहुत ही उदास थी। जैसे ही वह खाना देने आया तो लोमड़ी बोले भाई हमसे जंगल के राजा बहुत ही नाराज है। आपको आज अपना असली परिचय तो देना ही पड़ेगा। कल सभा बुलाई गई तो सभी जीवो ने कहा कि हमें से कोई भी लोमड़ी के परिवार की सहायता नहीं कर रहा है ।कहीं राजा हमें और कोई सजा न दे दे पहले ही मेरे पति को आज घर से गए हुए 5 महीने हो गए हैं। जो गुनाह हमने किया ही नहीं उसकी सजा राजा हमें दे रहे हैं।
वह अजनबी बोला आज मैं तुम्हें बताऊं कि तुम्हारा बेटा बहुत ही बहुत ही संस्कारों वाला बच्चा है। उसमे मुझ पेड़ की इतनी सहायता कि मेरे पास घन्टें घंटे खोद खोल कर नाली बनाई । बच्चों ने पेड़ के पास न जाने कितने कागज कूड़ा कर्कट फैलाया था।आपके बेटे ने रात दिन मेहनत करके नाली बनाई। सामने वाली नदी से पानी कूहल द्वारा मेरे तनें में पहुंचा मैं हरा भरा हो कर मृत्यु के पंजे से निकल कर फिर जी उठा। कोई तो है जो मुझे इतना प्यार करता है ।उस पर मैं कैसे ना द्रवित होता। मैं वहीं जादुई पेड हूं। बहन तुम्हें किसी भी चीज की आवश्यकता हो तो मैं उपलब्ध करवा दूंगा। वह जंगल का राजा हो कर दूसरों के दुःख दर्द को जान न सका।एक दिन जब उसके परिवार को भयानक बिमारी होगी तब कोई उस की मदद नहीं करेगा।राजा के कर्तव्य से विमुख हो गया।एक बच्चे से भी कोई भी सीख ले सकता है।
लोमड़ी बोली मैं आप का शुक्रिया कैसे अदा करूंगी।वह पेड़ बोला‌ आपके बेटे ने कहा कि कुछ दिनों के बाद मुझे को काटने का आदेश होगा। आप का बेटा बोला की आप को काटने लगे तो मैं वहां पर लेट जाऊंगा कहूंगा कि पहले मुझे काटना फिर पेड़ को काटना। बेटे के प्यार से मेरी आंखें सजल हो गई। जो बच्चा सब के कष्टों को झेलनें के लिए तैयार हैं मुझ पर जान देनें के लिए तैयार है उसको मैं क्या जादुई का करिश्मा नहीं कर सकता? बरगद के पेड़ को जब राजा नें हरा भरा देखा तो तो उसकी आंखें नम हो गई। घर आकर उसने सबसे पहले चिक्कू के पिता को रिहा किया और कहा कि आज आपके बेटे ने मेरी आंखें खोल दी ।मैं भी कहीं ना कहीं सच्ची शिक्षा से वंचित हूं। आज उसने अपनें प्यार कि अनुभूति करवा कर मुझे एक बड़ी सीख दे डाली है।

हम बरगद के पेड़ के पास ही मीटिंग किया करेंगे। हम उस पर को काटेगें नहीं ।इतने सालों तक वहां पर हम सभा का आयोजन करते आए थे। वह हमारे पूर्वजों कि धरोहर है। चिटकू के बड़ा होने पर उनको मैं अपना प्रधान सेवक नियुक्त कर दूंगा। ऐसा बच्चा सबको दे।शेर शेन अपनें कृत्यों के लिए लोमड़ी से मौफी मांगी।नंदन वन में एक बार फिर चहल पहल हो गई थी।उस बरगद के पेड़ के पास जब राजा ने अपनी सभा का आयोजन किया सब से पहले उसने बरगद के पेड़ के पास जा कर भव्य गीतों से उस पेड़ का आदर सत्कार किया जैसे अपने बड़ों का आशीर्वाद मिले। पेड़ नें भी अपनी शाखाओं को झुका कर राजा का अभिनन्दन किया। राजा कि आंखों में पश्चाताप के आंसू देख कर पेड़ मुस्कुरा दिया। सभी जानवरों नें चिटकु का फूल माला से स्वागत किया।जंगल में एक बार फिर चहल-पहल लौट आई थी।