दक्षिणा

पीहू एक छोटी सी बस्ती में रहती थी उसकी मां उसे अच्छी शिक्षा नहीं दिलवा सकती थी वह इधर उधर घरों घरों में जाकर बर्तन साफ कर और झाड़ू पोछा लगा कर अपनी आजीविका चलारही थी। पीहू तो मौज मस्ती में सपने देखने में अपना समय व्यतीत कर रही थी वह हर रोज नए नए सपने देखा करती थी। उसकी मां सोनाली उसे हर वक्त कहती कि बेटा सपने देखना छोड़ो सपने वही देखनी चाहिए जो पूरे हो सके। मैं तेरे सपनों को कभी पूरा नहीं कर सकती।

एक दिन उसकी सहेलियां घर पर आई हुई थी उसकी मां बोली तुम्हारी सहेली तो सपने देख रही है। उसकी सहेलियाँ बोली जरा हमें भी बताओ कि कि पीहू कहां है।?उसकी मां सोनाली ने कहा अपने कमरे में सोते रहती है और सपने देखा करती है। उसके कमरे में चली गई उन्होंने पीहू को जगाते हुए कहा उठो ना जाने कितनी देर हो गई है। सपने देखना छोड़ दो। स्कूल नहीं जाना क्या? वहबोली मैं सपना देख रही थी कि मैं विदेश चली गई हूं। उनकी सहेलियां हंसने लगी उसकी मम्मी बोली बेटा सपने वही देखने चाहिए जो पूरे हो सके। अपनी मां को बोली मां देखना एक दिन मैं अपने बल पर अपने सपनों को साकार कर कर दिखाऊंगी। मैं विदेश जरूर जाऊंगी उसकी सहेली हंसने लगी थी बोली अच्छा बाबा अपने सपनों के बाद में पूरा करना अभी तो स्कूल जल्दी पहुंचना है।पीहू ने जल्दी अपना बस्ता लिया और स्कूल चली गई। पीहू मेहनती लड़की थी। वह हरदम मस्त रहती थी उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वह पढ़ाई भी करती है। स्कूल में जो भी प्रश्न मैडम पूछती उसका जवाब हमेशा देती। इसलिए उसकी अध्यापिका उसे डांटती नहीं थी। उसके पास कॉपी किताबें कम ही होती थी। इसी तरह आठवीं कक्षा में पहुंच गई थी। उसके घर के पास एक परिवार रहने के लिए आया था। उसने उस परिवार की आंटी से दोस्ती कर ली थी। उसके घर में हर रोज आने लगी थी अंकल के साथ भी वह बहुत घुल मिल गई थी।
वह रसोई में तुषार की पत्नी के साथ हाथ बंटाने लगी। एकदिन बोली मैंने सुना है कि आप एक गणित के अध्यापक हो। आप मेरी इस विषय को पढ़ाने में मदद करो। मैं आंटी का सारा काम कर दिया करूंगी। मुझे गणित का विषय बहुत ही अच्छा लगता है। तुषार बोले बेटा ज्ञान बांटने से बढ़ता है।। मैं तुम्हें पढ़ा दिया करूंगा। वह बोली अंकल पर मेरे पास आपको देने के लिए फीस नहीं है। मैं जब बड़ी ऑफिसर बन जाऊंगी मैं गणित विषय की बड़ी प्रोफेसर बनना चाहती हूं। मैं सपनें देखा करती हूं। तुषार बोले बेटा सपने देखना तो ठीक होता है मगर इसके लिए संघर्ष करना बहुत ही जरूरी होता है। अंकल मेरी मां दूसरे घरों में कपड़े साफ कर और पोछा झाड़ू लगाकर मुझे बड़ी मुश्किल से पढ़ा रही है। तुम्हें तब तोअपने सपनों को अवश्य साकार करने की कोशिश करनी चाहिए। इस काम के लिए मुझ से जो हो सकेगा जो भी बन पड़ेगा मैं तुम्हारे लिए करूंगा।

पीहू ने रात दिन एक कर दिया। उस के स्कूल में ओलिंपियाड के गणित के पेपर थे। मैडम ने कहा जिसने फार्म भरना होगा वह भर देना। पीहू सोचने लगी मैं भी इस परीक्षा को अवश्य दूंगी। पीहू सोचने लगी कि मैं इस परीक्षा को अवश्य दूंगी उसने अपनी मैडम के पास जाकर कहा मैडम आज से मैं आपके सभीकाम कर दिया करूंगी। आपके कक्षा में पहुंचने से पहले आपकी मेज साफ होगी। बच्चों को चुप करवाना मेरा काम है। सभी बच्चों की कॉपियां आप के कक्षा में पंहुचने से पहले ही मेज पर मैं रख दूंगी। आपके घर में भी काम कर दिया करूंगी। इसके लिए आपको मैडम मेरा एक काम करना पड़ेगा। मैडम बोली मैं भी गणित ओलंपियाड की परीक्षा देना चाहती हूं। इसके लिए आप मेरी फार्म की फीस दे देना। मेरी मेरी भी गणित में रुचि है। मैडम पीहू की बात सुनकर चौंकी। उन्होंने तीन बच्चों के फार्म भरे थे मगर उस होनहार छात्रा के साहस और लग्न को देख कर पीहू की मैडम अनीता को खुशी हुई। इस लड़की के अंदर मेहनत करने का जज्बा है। शायद वह परीक्षा में निकल जाए। वह फॉर्म भरने के लिए शर्तों के अनुकूल थी मगर किसी ने भी इस लड़की की तरफ ध्यान ही नहीं दिया था। इसलिए कि इस लड़की के पास फार्म भरने के लिए रुपए नहीं थे। मैडम से कहा तुमने मुझसे पहले क्यों नहीं कहा? इसके लिए तुम्हें कहीं कोई काम करने की आवश्यकता नहीं है। मैं तुम्हारा फॉर्म भर दूंगी मैडम ने उसका फॉर्म भर दिया था। वह ओलंपियाड परीक्षा में निकल गई थी। उसके स्कूल से केवल वही लड़की चयनित हुई थी सभी अध्यापक-अध्यापिकाएं भी उसकी थोड़ी बहुत मदद कर दिया करते थे। वह दसवीं कक्षा में पहुंच गई थी जब वह ऑलंपियाड की परीक्षा में निकली तो उसके तुषार अंकल बहुत ही खुश हुए। उन्होनें उसे कहा दसवीं में भी ओलंपियाड की परीक्षा दे देना। फार्म भरने के लिए मैं तुम्हें तुम्हारी फीस दे दूंगा। वह किसी से भी रुपए लेना नहीं चाहती थी। घर में उसने सभी आने जानें वाले रास्तों से अखबार के टुकड़े इकट्ठे किए। ’ स्कूल में बच्चे जो कागज फैंकते थे वह सभी कागज अपने बस्ते में भर लेती थी। उन सभी कागजों को इकट्ठा करके उसके लिफाफे बनाती थी। जितने भी लोग डिब्बे प्लास्टिक की बोतलें कूड़ा कबाड़ समझ कर फेंक देते थे उन सभी को इकट्ठा करके वह बाजार में बेच देती थी। इस तरह से वह रुपए इकट्ठे किया करती थी। इस बार जब दसवीं की ओलिंपियाड परीक्षा के लिए बच्चे फार्म जमा करवा रहे थे तब वह सबसे पहले फीस देने आई।

उसके स्कूल के प्रधानाचार्य ने उसे लिफाफे बेचते और प्लास्टिक की बोतलें बेचते देख लिया था। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे उन्होंने पीहू को अपने पास बुलाया बेटा ऐसी बेटी सब को दे। एसी बेटी पर नाज होना चाहिए।
लोग कहते हैं हमारी बेटी नहीं होनी चाहिए मगर मैं आप सब लोगों के पास तुम्हारा उदाहरण दूंगा। ऐसी बेटी सबको दे। इतनी मेहनती छात्रा वह भी अपने बल पर फीस देने का जज्बा कायम रखती है अबकी बार वह ओलंपियाड परीक्षा में भी निकल गई थी। उसके लिए इसकी अगली पढ़ाई के लिए विदेश में किसी कंपनी ने बुलाया था।

उसके प्रधानाचार्य ने लिख दिया था कि यह लड़की बहुत ही होनहार छात्रा है। उसके पास आगे पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए रुपए नहीं है। विदेश की एक फर्म ने उसे ऑफर दिया कि इस लड़की की पढ़ाई के लिए सारा खर्चा हम उठाएंगे।

स्कूल में सभी अध्यापक अध्यापिका आपस में बातें कहे थे। इस बार लेक्चरार पद के लिए गणित के अध्यापकों की लिस्ट जारी कर दी गई है। आज फार्म भरने की लास्ट डेट है। इन सभी अध्यापकों की सूची है। पीहू ने देखा। तुषार सर का नाम देखकर चौकी। वह दौड़ी दौड़ी प्रधानाचार्य के पास गई एक मुझे भी एक फॉर्म दे दो सर। मेरे जानने वाले अध्यापक हैं। वह मेरे अंकल हैं। उनके लिए अगर मैं कुछ कर सकूं तो भी कम है। उन्होंने मेरा भाग्य संवारा है। उन्होंने मुझे पढ़ाने के लिए कोई फीस नहीं ली। उनका फार्म भर दो।
प्रधानाचार्य बोले बेटी इसके लिए उसमें उनके हस्ताक्षर करने जरूरी है। वह बोली कि चिंता ना करो मैं घर जाकर उनके हस्ताक्षर करवा कर लेकर आती हूं। वह छः सात किलोमीटर स्कूल से घर आई और आंटी को बोली। आंटी आप इस फार्म पर अंकल के हस्ताक्षर करवा दो। फार्म भरने का कल आखिरी दिन था। उनकी पत्नी नें अपने पति को कहा आप इस फार्म पर हस्ताक्षर कर दो। अभी आप को यह नहीं बताऊंगी कि यह कौन सा फार्म है। उनके पति नें फार्म भर कर अपनी पत्नी को दे दिया। पीहू फार्म ले कर स्कूल में दे आई। पीहू के स्कूल में गणित का पद रिक्त था। अंकल सरकारी स्कूल में लग जाएंगे तो बहुत ही अच्छा होगा।
उनकी पत्नी माधवी उस छात्रा के जज्बे को देखकर बहुत ही खुश हुई। यह लड़की बहुत ही खुदारहै। काम की तलाश करते वह अंकल आप को देखा करती थी। स्कूल में उसे पता चला कि कल गणित के लेक्चरर की परीक्षा है। उसने सर का रोल नंबर लेकर अपने पास रख लिया। घर आकर उसने तुषार सर के चरण स्पर्श किए बोली। वह इस बार भी ओलिंपियाड के गणित की परीक्षामें निकल गई है। उसे विदेश जाने की स्वीकृती मिल गई है। जो सपनें वह बचपन में देखा करती थी वह सपना सच होने जा रहा है। इस सपने को पूरा करने का सारा श्रेय वह आप दोनों को देती है। आपने मुझे इस काबिल बनाया विदेश जाकर वह आप दोनों को कभी नहीं भूलेगी।

जब अखबार वाले उससे इंटरव्यू लेने आए तो उसने अपने गुरु तुषार का नाम लिखा। जिन्होंने गणित की पढ़ाई उससे कोई फीस लिए बिना करवाई थी। अगले सप्ताह विदेश जाने वाली थी। उसने अपने गुरु तुषार के पास आकर कहा कि आज आपको आपकी पढ़ाई की दक्षिणा देना चाहती हूं। वह बोले बेटी मैं तुमसे कोई दक्षिणा नहीं लेना चाहता। उसने तो अपने गुरू जी की नियुक्ति का पत्र उन्हें थमा दिया था। उनकी पत्नी नें बताया इस लड़की नें अपनी गुल्लक को तोड़ कर आप की फीस भरी थी और मुझ से कसम ली थी कि ये बात अंकल को मत बताना। अंकल नें मेरे लिए इतना किया है मैं आप दोनों को कभी नहीं भुला सकती। उस दिन जिस फार्म पर आप नें हस्ताक्षर किए थे वह यही फार्म था। उसनें कहा था कि अंकल मुझ से कभी फीस नहीं लेंगे इस बार आंटी मेरी बारी है आंटी आप मुझे अपनी बेटी होनें का दर्जा देती हो तो मैं समझूंगी कि मेरा जीवन सफल हो गया।

लोग कहते हैं हमारी बेटी नहीं होनी चाहिए मगर मैं आप सब लोगों के पास तुम्हारा उधारण दूंगा। ऐसी बेटी सबको दे। इतनी होनहार छात्रा वह भी अपने दम पर कुछ कर दिखानें का जज्बा कायम रखती है। वह ओलम्पियाड परीक्षा में भी निकल गई थी। उसे इसकी अगली पढ़ाई के लिए विदेश में किसी कंपनी ने उसे और किया था। उसके पास आगे पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए रुपए नहीं थे।
देश की एक विदेशी कम्पनी नें उसे विदेश बुलाया था। इस लड़की की पढ़ाई के लिए सारा खर्चा कंम्पनी उठाएगी।
जाने से पहले पीहू अंकल आंटी के पास गई बोली आप की वजह से ही वह इतनी बडी सफलता अर्जित कर पाई है। उसे आशीर्वाद दो आगे भी विदेश जा कर अपना सपना पूरा करने सके। तुषार सर बोले बेटा हमारी दुआएं सदा तुम्हारे साथ हैं। तुषार अंकल उसे हंसते हुए विदा कर रहे थे। यह इसकी अनमोल दक्षिणा थी। माधवी ने उस से कहा बेटा तुम्हारी जैसी बेटी सबको दे। बाद में वह भी विदेश में सैटल हो गई थी। वह अपनी मां को भी विदेश ले गई थी।

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चिड़िया

पेड़ों पर चहचहाती चिड़ियां।

शाखाओं पर मंडराती चिड़िया।।

अपनी चहचाहट से सबके मन को लुभाती चिड़िया।

एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर अटखेलियां  करती चिड़िया।।

अपने मधुर संगीत से सबके मन को हर्षाती चिड़िया

एक डाल से दूसरी डाल तक की यूं फुदकती जाती चिड़िया।।

 

सुबह से दोपहर तक एक पंक्ति में इकट्ठे होकर दाना चुगने जाती चिड़िया।

अपनी चाहत से सबके मन के दर्पण को लुभाती चिड़िया।।

 

अपनी छोटी छोटी चोंच से अपने बच्चों के मुख में दाना  डालती चिड़िया ।

 

शाम ढलने पर अपने घरों में विश्राम करने आती चिड़िया।।

 

प्यारी चिड़िया नन्ही चिड़िया।।

सब बच्चों के मन को भाती चिड़िया।।

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सूरज

सूरज की किरणों से जगमगाता है घर का हर कोना।

तन को  ताजगी प्रदान करता है इसका रुप सिलौना।

खेतों में हरियाली लाता है सूरज।

अपनी हरियाली से चारों ओर खुशियां ही खुशियां लाता है सूरज।

सुनहरी धूप से पौधों में जान डाल  देता है सूरज।

नन्हे पौधों को विकसित करके।।

पूर्व से निकलता है सुबह को सूरज।

शाम को पश्चिम में छिपता है सूरज।।

हम सबकी धरती को घना उजाला करता है सूरज ।

शरीर की चुस्ती-फुर्ती को बढ़ाता है सूरज। अपनी तेज से सभी जीवो में जान  डाल देता है सूरज।

 

असली विजेता

स्कूल में पारितोषिक वितरण का आयोजन होने जा रहा था सभी बच्चों को भाषण तैयार करने के लिए कहा गया सभी बच्चे हफ्ते पहले से ही भाषण तैयार करने की भरपूर कोशिश कर रहे थे मैडम ने कहा था कि उसे ही पुरस्कार मिलेगा जो सबसे अच्छा भाषण देगा भाषण के लिए भी 5 मिनट से ज्यादा का समय नहीं दिया जाएगा सब बच्चे भाषण की तैयारी में लगे थे।

विशाखा और स्कूल के बच्चे   जी जान से मेहनत करने में लगे थे। मंजू हर हर बार की तरह सोच रही थी कि हर बार मैं अच्छा भाषण देती हूं मगर इनाम हर बार कोई और ही ले जाता है। इस बार उसने भाषण में अपना नाम नहीं लिखवाया। वह इस बार देखना चाहती थी कि पारितोषिक वितरण कैसे किया जाता है? इस बार वह भाषण देने वाले का चेहरा भी देखेगी और यह भी देखेगी कि किस तरह अंक दिए जाते हैं? भाषण प्रतियोगिता में रुही भाषण देने गई। उसने पर्यावरण पर 5 मिनट का भाषण दिया। उसके पश्चात सब बच्चों नें अपना भाषण दे दिया था इनाम का निर्णय थोड़ी देर बाद दिया जाना था सबसे अच्छा भाषण अंजलि ने दिया था। तीनों स्कूलों के बच्चे भाषण प्रतियोगिता में भाग लेने आए थे।

 

आधी छुट्टी का समय हो चुका था अध्यापक लोग एक जगह बैठ कर खाना खाने लगे। मंजू  चुपके से वहां पर जाकर किनारे से वह सब लोगों और अध्यापकों को दूर से देख रही थी। वहां पर जाकर चुपके से वह एक कोने में बैठ गई। अध्यापकों की बातें सुनने लगी।। एक अध्यापिका बोली इस बार अंजलि ने अच्छा भाषण दिया है।  उसे ही इनाम मिलना चाहिए सारे के सारे अध्यापक कहनें लगे इनाम सपना को मिलना चाहिए। वह एक बड़े परिवार की लड़की है। इसके पापा स्कूल के लिए हर बार काफी रुपए दान में देते हैं। हम सपना को ही इस बार सेलेक्ट करेंगे। दूसरी मैडम बोली पिछली बार भी हमारे स्कूल की अंजू ने इतना अच्छा भाषण दिया था उसे हमने सेलेक्ट नहीं किया। उस बेचारी ने भाषण प्रतियोगिता से इस बार अपना नाम ही कटवा लिया। एक दूसरे अध्यापक बोले इनाम से क्या होता है? अभी दिखावे के लिए तो हम अभी सपना को ही नियुक्त करते हैं।   हम अंजलि को  कभी और दिन ईनाम दे देंगे। सपना के पापा स्कूल में आए हुए हैं। शायद इस बार भी हमारे स्कूल को कुछ डोनेशन में दे दे। हम सब ने यह निर्णय लिया है कि इस बार हम सपना को ही चुनेंगे।

मंजू के सामने अध्यापकों का सारा खुलासा स्पष्ट हो गया। वह सोचने लगी कि मैंने अच्छा ही किया जो मैंने इस भाषण प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया। मेरे सामने अध्यापकों का असली चेहरा आ गया है। चंद रुपयों की खातिर बच्चों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है। बच्चा पूरी मेहनत से अपनी पूरी ताकत लगा देता है। अपनी तरफ से अच्छा करने के लिए मगर उसकी योग्यता का असली आंकलन नहीं होता। वह चुपचाप निराश होकर अगली बार बोलने के लिए तैयार ही नहीं होता।

घंटी बज चुकी थी पारितोषिक वितरण का समय आ गया था। भाषण प्रतियोगिता में सपना को इनाम का हकदार घोषित किया गया अंजली का नाम  पुकारा गया तो वह जोर जोर से रोने लगी। उसके रोने की आवाज को कोई भी नहीं सुन पाया। दूर दूर से आए हुए अतिथिगण मिठाई बांटते हैं। सपना के पिता स्कूल के लिए पांच हजार की राशि दान में देते हैं। सभी अध्यापकों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।  मैडम ने कहा कि और कोई बच्चा कुछ बोलना चाहता है तो वह आगे आ जाए।

 

मंजू अचानक भीड़ को चीरती हुई उत्सव में खड़ा होकर कहती है मैं आज सबके सामने कहना चाहती हूं कि मुझे अंजलि का भाषण सबसे अच्छा लगा। उसने एक रजिस्टर सपना को देते हुए कहा कि मेरी तरफ से तुम्हारे लिए पारितोषिक वितरण का तोहफा है।

सभी अध्यापक उसकी तरफ देखकर अपनी नजरें झुका लेते हैं। आज फिर उन्होंने एक बार फिर असली विजेता को इनाम नहीं दिया था। उस छोटी सी बच्ची के उत्साह को देखकर सबकी नजरें झुका गई। उसने की आंखों से खुशी के आंसू छलक रहे थे

सफलता

करो खुद को बुलंद इतना कि हर कदम पर सफलता प्राप्त कर सको।

हर दिशा में उंचाइयों की सीढ़ियां चढ़ते चलो। हर काम को करने की मन में ठान लो।

किसी भी काम  को दृढ निश्चय से करनें की  जान लो।

सफलता को तलाशने निकले हो तो देरी ना करो।

विफल हो जानें पर भी मायूसी न करो।

करो खुद को बुलंद  इतना कि सफलता प्राप्त कर सको।

हर दिशा में ऊंचाई की सीढियां चढते चलो।

सफर लंबा ही सही मुश्किलात  से सामना करने की ठान लो।

ठोकरें खा कर भी  सम्भलना जान लो।

अपनें और पराये मे कभी भेद न करो।

ऊंच और  नीच का भी फर्क न करो।

आंधी और तुफानों में हर घड़ी डटे रहो।

चींटियों से सीख ले कर अपने प्रण से न  डिगो।

सफलता उन्ही को मिलती है जिनके सपनों में जान हो।

खुद  पर यकीन  कर के ही मंजिल हासिल हो।

 

 

समय की कीमत

समय की कीमत को पहचानो।
समय पर ही सब काम करनें की ठानों।
समय पर जागो, समय पर खाओ
समय पर पाठशाला जाओ।
समय पर ही हर काम करने की प्रेरणा अपनें मन में जगाओ।।
समय के महत्व को पहचानो,और
समय सारणी के अनुसार काम कर के अपने नियमों का पालन करनें की योजना अपने मन में ठानों।
जीवन में सफल होने का गुरु मन्त्र सब को सिखाओ।
समय का सदुपयोग करना हर एक को समझाओ
समय को न यूं तुम व्यर्थ गंवाओ।
समय पर हर काम को कर के अपनें मकसद में आगे बढते जाओ
फिजूलखर्ची की बातों मे यूं न समय को गंवाओ।

बेटा

, विधाता का रचा एक खिलौना।

तुझको पाकर मेरा जीवन हुआ सलोना।।

चंदा भी तू सूरज भी तू।

मेरे डूबते नैया की पतवार भी तू।।

 

उंगली पकड़कर चलना सिखाती हूं मैं।

लोरी गा गा के पलना झूलाती हूं मैं।।।

कान पकड़ के रास्ते पर चलना सिखाती हूं मैं।

कभी डांट से कभी फटकार से।

कभी गुस्से से कभी प्यार से।

हर जीवन में सफल होना सिखाती हूं मैं।।

सागर सी विशालता है तुझमें।

पर्वत सी अडिगता है तुझमें।

धरा की प्रखरता है तुझमें।।

मेरे कोमल मन की गहराइयों का ताज है तू।

धरा का श्रंगार है तू।

मेरे जीवन की अमिट छाप है तू।।

मेरे हृदय की विशालता का प्रतीक है तू।

हर मुसीबत की घड़ी में साथ निभाना सिखाती हूं मैं।

उंगली पकड़कर चलना सिखाती हूं मैं।।

मैं हूं मां तेरी तू है पूत मेरा।

 

तू है प्राण मेरा तू ही है जान मेरा।।

तुझी पर है यह जीवन कुर्बान मेरा।

तू ही जान मेरी तू ही आन मेरी।

तुझसे ही तो है शुरू होती है  भोर मेरी।

यही है दुआ मेरी हर दम मुस्कुराता रहे। पवन के झोंके सा सबके दिलों को लुभाता रहे।

मरते दम तक साथ दूंगी तेरा।

न समझना भंवर में अकेला।

तुझको पाकर धन्य हुआ जीवन मेरा।।  

 

हरदम चमकता रहे तू। हर ऊंचाइयों को छूता रहे

प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता रहे।

यही है अटल विश्वास मेरा।

यही है जीवन का सत्य मेरा।।

विधाता का रचा एक खिलौना।

तुझको पाकर मेरा जीवन हुआ सलोना।।

 

मुश्किल के वक्त संभालूंगी  मैं।

डूबते  नैया से निकालूंगी में।।

हर पल साए की तरह साथ चलूंगी मैं।

तू ही मेरे सपनों का हूर है।

तू ही मेरे दिल का नूर है।।

 

विधाता कर  रचा इक  खिलाना।

तुझको पाकर मेरा जीवन हुआ  सलौना।

 

चंदा भी तू सूरज भी तू।

मेरे डूबते भंवर की पतवार भी तू।।

उंगली पकड़कर चलना सिखाती हूं मैं।

लोरी गा  गा कर सुलाती हूं मैं।।

तेरीखुशी में ही है खुशी मेरी।।

जहां भी रहे खुश रहे यही है दिल  से दुआ मेरी।।

उड़ान

छवि आज बहुत ही खुश थी। जिस सम्मान को पाने के लिए वह इतनी मेहनत इतना बड़ा संघर्ष करके इस मुकाम तक पहुंची आज अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही थी। उसके सामने प्रेस के रिपोर्टर और बड़े-बड़े नेता उसके कड़े संघर्ष की कहानी सुनने के लिए उत्सुक थे। उसे आज उसी के एक छोटे से गांव में सम्मान देने के लिए बुलाया गया।  यह सम्मान उसे एक सपने की तरह महसूस हो रहा था। वह सपना तो नहीं देख रही है उसने अपने आपको च्योंटी काटी उसे दर्द महसूस हुआ अपने सामने गांव के स्कूल के ग्राउंड में 26 जनवरी के समारोह में उसे भी आमंत्रित किया गया था और सपनों की उड़ान में   हिलोरे खाने लगी। जह जब वह छोटी सी थी अपने बाबा की उंगली पकड़कर स्कूल की दहलीज पर कदम रखती थी उसके जाते ही एकदम रोना शुरु कर देती थी उसकी अध्यापिकाएं उसे बड़े प्यार से चुप कराती। बचपन में शरारती गुड़िया आज एक गंभीर और समझदार इन्सान की तरह अपनी मंजिल के करीब पहुंच गई। सच ही कहा है जिसके इरादे मजबूत होते हैं उसे कामयाबी तक पहुंचाने में कोई भी नहीं रोक सकता।

 

एक छोटे से गांव में पली बढ़ी सुमीता के पिता उसे प्यार से  सुम्मी और उसके भाई को सुबोध बुलाते थे। दोनों बच्चे बड़े प्यारे थे। सुबोध उससे उम्र में पांच साल बड़ा था। सुम्मी इतनी समझदार  और सुबोध उसक बिल्कुल  विपरीत स्कूल जाते जाते अधिक देर कर देता। बहुत देर तक सोया रहता। सुम्मी जैसे ही उसकी मां उठती उसके पीछे पीछे वह भी उठ जाती। मां को काम करते देख उसे बहुत ही आनंद आता था। वह भी अपने छोटे छोटे हाथों से कभी झाड़ू लगाने लगती।  चाहे उसे देर लगती। कभी उनके साथ खेंतों को चली जाती। उनके गांव में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं समझा जाता था। लड़कियों के मां बाप उन्हें थोड़ा बहुत पढ़ा लिया करते थे। गांव के लोग कहते कि हम ने कौन सा इन लड़कियों से नौकरी करवानी है। बेटे और बेटी में अंतर समझ समझा जाता। कई बार वह अपने बाबा से पूछती बाबा मैं क्यों आगे नहीं पढ़ सकती? उसके बाबा कहते बेटा तुम्हें पढ़ लिखकर कौन सी नौकरी करनी है? थोड़ा बहुत पढ़ लिए यही तेरे लिए बहुत है। बाबा की राजदुलारी थी

 

उसके गांव में एक ताया ताई और एक चाचा चाची थे। वह भी उस से प्यार करते थे। कभी-कभी अपने ताया ताई जी के पास चली जाती उनके ताया जी ऑटो चलाते थे। वह ऑटो चलाते वह उन्हें देखा करती थी। क्या मैं भी  ऑटो चला सकती हूं। वह कहते बेटी ऐसी बातें लडकियों को शोभा नहीं देती है। लड़कियों  से काम कराना बुरा समझा जाता है। वह थोड़ी बड़ी हो चुकी थी। दसवीं कक्षा में पहुंच चुकी थी। उसके स्कूल में बाहर से सेमिनार में बड़े-बड़े प्रशिक्षित अध्यापक और अध्यापिकाओं को बुलाया गया था। वह बच्चों को संबोधित करके कह रहे थे बेटा इस गांव में आकर हमें बहुत ही बुरा लगा क्योंकि यहां पर आज भी लड़कियों को नहीं पढ़ाया जाता। लड़कियों का लड़कों से आगे आना बुरा समझा जाता है।

 

बेटा लड़का और लड़की दोनों एक ही मां बाप की संतान होते हैं उनमें क्यों इतना अंतर समझा जाता है? इसलिए कि वह  अपने बाबा की उंगली पकड़कर स्कूल की दहलीज पर कदम रखते ही उसके जाते ही एक दम होना शुरु कर देती थी उसकी अध्यापिका से बड़े प्यार से चुराती बचपन में शरारती गुड़िया आज एक गंभीर और समझदार लगती अपनी मंजिल के करीब पहुंच गई। किसी नें सही ही कहा है जिसके इरादे मजबूत होते हैं उसे कामयाबी तक पहुंचाने में कोई भी नहीं रोक सकता। एक छोटे से गांव में पली बढ़ी। सुमीता के पिता उसे सुम्मी और उसके भाई को सुबोध बुलाते थे। दोनों बच्चे बड़े प्यारे थे। सुबोध उस से  उम्र में पांच साल बड़ा था। सुम्मी जितनी समझदार सुबोध उसकी विपरीत।स्कूल जाते जाते अधिक देर कर देता।  ,  बहुत देर तक सोए रहता। सुम्मी जैसे ही उसकी मां सुबह उठती मां को काम करते देख कर उसे बहुत ही आनंद आता था। वह भी अपने छोटे छोटे हाथों से कभी झाड़ू लगाने लगा देती। कभी बाबा को चाय देने लगती। कभी उनके साथ खेतों को चली जाती। उसके गांव में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं समझा जाता था। लड़कियों के मां-बाप उन्हें थोड़ा बहुत ही पढा  दिया करते थे। गांव के लोग कहते हमने कौन सा इन लड़कियों से नौकरी करवानी है।  बेटे और बेटी में अंतर समझा जाता। कई बार वह अपने बाबा से पूछती बाबा में क्यों आगे नहीं पढ़ सकती। उसके बाबा कहते बेटा तुम्हें पढ़ लिखकर कौन सी नौकरी करनी है। तू तो थोड़ा बहुत पढ़ ले यही तेरे लिए बहुत है। अपने बाबा की राजदुलारी थी।

 

उसके गांव में उसके एक ताया  और ताई एक चाचा चाची थे। वह भी उसे खूब प्यार करते थे। कभी-कभी  वह अपने ताया जी के पास चली जाती। उसके ताया जी ऑटो चलाते थे। वह जब ऑटो चलाते वह उन्हें देखा करती थी वह उन्हें कहती क्या मैं अभी ऑटो चला सकती हूं? वह कहते चुप लड़कियों को यह बातें शोभा नहीं देती। हमारे यहां लड़कियों से काम कराना बुरा समझा जाता है। वह कुछ थोड़ी बड़ी हो चुकी थी। सातवीं कक्षा में पहुंच चुकी थी। उसके स्कूल में बाहर से सेमिनार में बड़े-बड़े प्रशिक्षित अध्यापक और अध्यापकों को बुलाया गया था। वे बच्चों को संबोधित करके कह रहे थे बेटा इस गांव में आकर हमें बहुत ही बुरा लगा क्योंकि यहां पर आज भी लड़कियों को नहीं पढ़ाया जाता। लड़कियों का लड़कों से आगे आगे आना बुरा समझा जाता है। बेटा लड़का और लड़की दोनों जब एक ही मां बाप की संतान होते हैं तो इनमे  क्यों इतना अंतर समझा जाता है। इसलिए कि वह लड़की है वह बाहर नहीं निकल सकती। वह हालात का मुकाबला नहीं कर सकती। नहीं ऐसा नहीं है। मेरा सभी अभिभावकों से अनुरोध है अपनी बेटी को भी उसी सम्मान की दृष्टि से देखें जैसे अपने बेटे को देखती हैं। अगर बेटा उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है तो बेटी क्यों नहीं? मैं तो समझती हूं लड़कियों को अकेले बाहर जरूर जाने देना चाहिए। तभी उनमें हिम्मत आएगी हम अगर डरते रहे हमारी बेटी के साथ कहीं कुछ बुरा तो नहीं हो जाएगा तुम अपनी बेटी को ऐसे संस्कार दो जिससे वह अपना भला बुरा पहचान सके। उसे वह कहीं भी चली जाए कुछ नहीं होगा। अध्यापिका के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे। शाम को जब वह घर आई अपने बाबा से कहने लगी मैं खूब पढ़ूंगी। उसके बाबा ने कोई उत्तर नहीं दिया उसके माता-पिता एक साधारण परिवार के थे। धीरे-धीरे उसके कोमल मन पर अमिट छाप पड़ गई।

वह सभी से कहती मैं खुद पढाई करूंगी। वह छुट्टियों में अपने ताया जी के पास चली गई। वहां पर अपने ताया जी को ऑटो चलाते देख कर कभी-कभी वह भी ऑटो चलाने लगती। उसके ताया  प्यार प्यार में  उसे थोड़ा चलाने देते। इस तरह वहऑटो चलाना सीख गई। उसके ताया जी का घर उसके घर से  आठ किलोमीटर की दूरी पर ही था। एक दिन जब वह अपनें ताया जी के घर पहुंची तो देखा ताई दर्द से कराह रही थी। उसके घर के इर्दगिर्द  औरतें   इकट्ठा होकर तमाशा देख रही थी। उसकी ताई के प्रसव पीड़ा शुरू हो चुकी थी। उसके ताया जी किसी काम से बाहर गए हुए थे वह घर में पहुंच नहीं सकते थे। गांव में एंबुलेंस तो दूर कोई ऑटो चलाने वाला भी नहीं था। गांव के लोग निरक्षरता के कारण कुछ नहीं करते थे। उसने अचानक सारा हाल मालूम किया। उसे समझ में आ चुका था कि अगर वह अपने भाई को समय पर अस्पताल लेकर नहीं गई तो उसकी ताई सदा के लिए परलोक सिधार जाएगी। उस नें आव देखा ना ताव अपनी ताई को  दो तीन औरतों की मदद से ऑटो में बिठाया और अस्पताल तक ऑटो लेकर गई।। समय पर सुविधा मिलने के कारण उसकी  ताई की जान बच गई। उसके भाई की जान भी बच गई थी।  उसक छोटा सा प्यारा भाई भी आ चुका था गांव वालों ने उसके हौसले की दाद दी। उन्होंने जाना कि एक लड़की भी अपने परिवार के लिए सब कुछ कर सकती है जो एक बेटा कर सकता है।  उस दिन से उसे  सब लोग सम्मान की नजरों से देखने लगे। जब कभी गांव में कोई औरत बीमार होती तो और उसके ताया जी कहीं बाहर गए होते तो वह ऑटो लेकर खुद ही उस बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा देती। उसके ताया जी ने उसे ऑटो चलाने की इजाजत दे दी थी। क्योंकि अपने भाई को उसने बचा लिया था ना जाने अगर वह उस वक्त समय पर नहीं पहुंचती तो उसकी ताई तो मर ही गई होती।

 

वह दसवीं कक्षा में पहुंच चुकी थी उसका भाई तो कुछ काम धंधा नहीं करता था पढ़ाई में भी वह अच्छा नहीं था। अपने माता-पिता का भी काम में हाथ नहीं बंटाता था। एक बार सुम्मी के पिता किसी काम से दूसरे गांव गए हुए थे अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से उनकी टांगे बेकार हो गई। डॉक्टरों ने कहा कि वह अब कुछ नहीं कर सकते। सुम्मी की माता बहुत घबरा गई। सुम्मी भी यह सुन कर रही थी। सुबोध की मां ने अपने बेटे  को कहा बेटा तू कोई छोटी मोटी नौकरी कर ले। तुम्हारे पिता तो अब कुछ करने लायक नहीं रहे। तू ही मेरा सहारा है। सुबोध बोला मैं क्या करूं? सोच लूंगा। पिता के इलाज के लिए ताया जी और चाचा जी से उधार ले ले। सुम्मी की मां उधार लेने के लिए अपने जेठ के पास जाकर बोली कृपा करके मुझे रुपयों का इंतजाम कर दे। मैं किसी ना किसी तरहकर के सारे रुपए चुका दूंगी। उसकी जेठानी बोली मेरे भी  तो दो बेटियां और एक बेटा अभी हुआ है। मेरे पास तो कोई जमा पूंजी नहीं है। उन्होंनें साफ इन्कार कर दिया तो वह अपने देवर के पास गई। उसने भी उसे निराश लौटा दिया।

 

सुम्मी के मन में बड़ा आघात लगा। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह तो अब नौकरी करके ही दम लेगी। उसके परिवार वालों को उसकी जरूरत है। दुनिया वाले जो भी कहे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता उसने अपनी एक सहेली को बुलाया और उसने कहा मैं तुम पर बहुत विश्वास करती हूं। मैं भी इंटरव्यू देना चाहती हूं

उसके पिता रोजगार कार्यालय में लगे हुए थे। उसने अपनी सहेली को कहा कृपया मुझे ड्राइवर की परिचारिका का इंटरव्यू देना है। मैं ऑटो चलाना जानती हूं। मैं अगर सिलेक्ट हो गई तो मैं छः महीने  का प्रशिक्षण कर लूंगी। तुम यह बात किसी को मत बताना। उसके पिता ने उसकी सहेली सुम्मी को रोजगार कार्यालय से साक्षात्कार के लिए बुला लिया। वह दसवीं की परीक्षा पास कर चुकी थी साक्षात्कार में उसका चुनाव कर लिया गया उसको छः महीने का प्रशिक्षण करना था उसकी माता ने  उसकी शादी के लिए गहनें इकट्ठे कर लिए थे।  अपने गहनों को बेच कर उसने ऑटो ले लिया। वह उस पर अभ्यास करती रही। जो कुछ रुपया मिलता उससे वह अपने परिवार का खर्च चलाने लगी। उसने माता पिता को बता दिया कि उसे बस परिचारिका के रूप में चुन लिया गया है। गांव से बाहर जाना होगा। मुझे आप जाने की इजाजत दे दीजिए क्योंकि आपने देख तो लिया है कि इस दुनिया में वक्त पड़ने पर अपने भी पराए हो जाते हैं। मुसीबत के समय में हमारी किसी ने भी मदद नहीं की। अगर मैं वहां जाकर काम करूंगी तो मैं आपकी भी मदद कर सकूंगी। उसके माता-पिता इनकार करने लगे तो बोली तब बताओ सुबोध जिम्मेदारी संभाले योग्य है क्या। उन्हें अपनी बेटी की आंखों में सच्चाई नजर आई। उन्होंने कहा बेटा ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी।  वह अपनें गांव से दूर आकर ट्रक परिचालिका के रुप मे काम करनें लगी। वह जब ट्रक चलाती लोग उसे घूर घूर कर देखते। उस पर कटाक्ष करते। कभी कभी तो टिकट चेकर भी उसे  खरी-खोटी सुना देता। सबके कटाक्षों को सहन करती हुई वह मुंह से कभी किसी को कुछ नहीं कहती थी। अपना काम इमानदारी से कर रही थी। काम करते उसे एक साल हो गया था। सारे लोग जिस दिन वह थोड़ा देर से आती उसे पूछते बेटा कहां रह गई थी। उसे प्यार करते। उसे प्यार से छुटकी कहते। सबकी आंखों का तारा बन गई। सब उसका इंतजार करते कब वह आए और उसके बस में ही बैठकर अपने घर पहुंचे। आज  वह बहुत मशहूर हो गई थी कि सब उसको देखकर उसकी प्रशंसा कर रहे थे। और कह रहे थे लड़की हो तो ऐसी। उसके पिता भी स्वास्थ हो गए थे।

 

उसके गांव में भी लोगों ने अपनी लड़कियों को पढ़ाना शुरू कर दिया था।  उसके गांव के लोग उसके हौसले को देखकर खुश थे। उसके पिता चाहते थे कि उसकी शादी अच्छे से घर में हो जाए। उन्होंने अपनी बेटी को गांव बुलाया। लड़के वाले उसे देखने आए। लड़की वालों ने कहा कि हमें दहेज में 50, 000, 00 रुपए चाहिए। सुमीता ने आते ही कहा तुम्हें मेरे घर में जरा भी रहने की इजाजत नहीं है। जाओ यह रिश्ता में ठुकराती हूं। मुझे ऐसे व्यक्ति से रिश्ता नंही करना है जो मुझसे प्यार नहीं मेरी धन-दौलत से करता है। सुमीता ने लड़के वाले को लताड़ कर वापस भेज दिया। सुमीता के माता-पिता कहने लगे बेटा तुमने यह अच्छा नहीं किया। वह बोली मां मुझे अभी शादी नहीं करनी है जब मुझे कोई अच्छा लड़का मिलेगा तब ही मैं शादी करूंगी। अपनी बहन के नौकरी करने के बाद सुबोध में भी काफी परिवर्तन आ चुका था। उसने भी एक मैकेनिक की दुकान पर नौकरी कर ली थी। वह भी  कमानें  लग गया था। वह बोला मेरी बहन ठीक कहती है दहेज के लालची लोगों के साथ में अपनी बहन का विवाह नहीं करवाऊंगा।

 

एक दिन सुबोध अपने दोस्त की बहन की शादी में गया हुआ था। शादी के वक्त जब फेरों का समय आया तो दूल्हे के माता-पिता ने लड़की वालों से कहा कि हम बारात को तब लेकर जाएंगे अगर तुम 10, 000, 00 रुपए दहेज दो नहीं तो तुम्हारी बेटी कुंवारी ही रह जाएगी। यह सुनकर सुधीर के पिता को चक्कर आ गया। यह देख कर सुबोध से रहा नहीं गया। फोन उठा और बोला सुरभि उठो इस  गांव में तुम्हें शादी करने का कोई अधिकार नहीं है जहां पर लड़कियों की इज्जत को धन दौलत रूपी तराजू से तोला जाता है। तुम शादी करने से इंकार कर दो मैं तुम्हारे साथ हूं। डरो मत। सुबोध के साहस दिलाने पर सुरभि उठ कर कहने लगी। मुझे भी यह रिश्ता मंजूर नहीं है। दहेज की खातिर लड़कियों को कुर्बानी देनी पड़े। मैं ऐसी शादी से इंकार करती हूं।

 

सुरभि के मां बाप बड़े दुखी हुए वह सुरभि को कोसने लगे तुमसे अब कौन शादी करेगा? सुबोध बोला मैंने तुम्हें पहले इस रूप में कभी नहीं देखा था मगर आज मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं बिना दहेज के। सुबोध ने पुलिस इंस्पेक्टर को फोन लगा दिया। इंस्पेक्टर ने आकर सुरभि के ससुराल वालों को हथकड़ियां डालकर जेल में दहेज लाने के लालच में अंदर कर दिया। सुबोध सुरभि को विवाह कर घर ले आया सुबोध के माता पिता ने अपने बेटे की समझदारी पर उसे गले से लगा लिया कहा बेटा आज तुम सचमुच में ही मेरा बेटा कहलाने योग्य हो।  सुम्मी ने जब सुना तो वह भी खुश हो गई।  सुम्मी को अचानक जोर का झटका लगा। उसकी तंद्रा टूटी। सामने जब सुम्मी को इनाम के लिए पुकारा गया तो उसे उसके अच्छे  हुनर  के लिए सरकार ने उसे ₹50, 000 की राशि इनाम के तौर पर दी। उसे जब सम्मान दिया जा रहा था गांव वाले सब उसकी तरफ सम्मान भरी नजरों से देख रहे थे। जिसने अपने छोटे से गांव का नाम रोशन किया था। गांव के लोगों के मनसे रूढ़िवादी विचार दूर हो गए थे। थोड़े बहुत ही लोग ऐसे थे जो संकुचित विचारों के थे। उसने बाहर निकल कर गांव वालों के लिए ही नहीं बल्कि अपनी बुलंद हौसलों की उड़ान दी। घर आकर उसने भाई भाभी को गले से लगा कर कहा मेरे प्यारे भाई मुझे तुम पर भी नाज है।

 

सुरभि बोली मैं भी काम करूंगी। मुझे तरह तरह के पकवान बनाने आते हैं। हम घर पर ही एक पकवान गृह बनाते हैं। घर में बैठकर हम बाहर को स्वादिष्ट खाना पैक कर के बाहर खाना भेजा करेंगे। जिससे आमदनी भी हो जाएगी। सुबोध की पत्नी ने अपनी होशियारी से पाक कला में अपनी मिसाल कायम कर दी उसका होटल खूब चला। धीरे धीरे चल कर सुबोध और उसकी पत्नी ने एक बड़ा रेस्टोरेंट खोल दिया। उसके परिवार में किसी को भी किसी वस्तु की कमी नहीं थी। सुबोध अपनी पत्नी अपने माता पिता और बहन के,,,,,,,  के साथ आनंद से रहने लगा।

वाटिका मेरा स्कूल

रमेश के परिवार में उनका एक बेटा था श्याम। बहुत ही चंचल स्वभाव का था पढ़ाई तो जरा भी नहीं करता था।  उसके पापा जब उसे कहते पढ़ाई करो, पढ़ाई के नाम पर बहुत ही डरता था। जब कभी उसकी मम्मी अपनी सहेली के साथ बड़े से लौन में बैठकर अपनी सहेलियों के साथ गप्पे मारती वह चुपचाप आकर धमाचौकड़ी करता था। उसकी नजरें हर तरफ होती थी कौन क्या कर रहा है? यह आंटियां क्या बोल रही है? प्रेस वाला क्या कह गया? किचन में जब उसकी मम्मी चाय बनाती उन से कुछ किचन में गिर जाता वह भी उसे पता चल जाता।  पढ़ाई के नाम पर उसे सांप सूंघ जाता था ऐसा था श्याम। पढ़ाई में निम्न स्तर तथा होमवर्क कभी नहीं करता था। स्कूल में जो कुछ सुनता  उसे चुटकियों में याद हो जाता मगर वह पढ़ाई को कभी भी गंभीरता से नहीं लेता था। उसकी मम्मी जब उसे पढ़ाई के लिए अपने पास लेकर बैठती तो इधर उधर की बातों में समय नष्ट कर देता था। उसकी मम्मी भी उसकी पढ़ाई को लेकर बहुत ही चिंतित थी। पढ़ाई को लेकर उसके पापा उसे डांट दिया करते थे। कभी-कभी मार भी पड़ जाती थी। उसकी होमवर्क ना करने की उसके अध्यापकों द्वारा शिकायत घर पहुंचती तो वह बहुत ही डर जाता। उसके पापा उस दिन उसकी  खूब पिटाई  करते। तुमने क्या समझ रखा है? फेल होने का इरादा है।तुम्हें  क्या हमारी नाक कटवानें का इतना  ही शौक है। उसकी मम्मी उस से कहती बेटा इस बार भी तुम अच्छे अंक लेकर नहीं आए तो तुम्हारा बाहर घूमना फिरना बंद। तुम्हें खाना भी नहीं मिलेगा। डर के मारे किताब लेकर बैठ जाता। मगर पढ़ाई कहां करता। उसका तो पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था। उसके पापा ने अध्यापकों को कह दिया था कि अगर वह होमवर्क ना करके लाए तो उसे सजा अवश्य देना। रमेश की पत्नी निर्मला पढ़ी लिख सभ्य और नेक दिल वाली औरत थी। अपने बेटे की हरकतों के कारण वह बहुत ही परेशान हो जाती थी। जिस स्कूल में उसे डाला गया था वह अच्छा स्कूल था। बच्चों की फीस तो ज्यादा थी मगर पढ़ाई अच्छी होती परंतु काफी दिन से अध्यापकों के तबादले  होनें के कारण उनके स्कूल के अध्यापक  बच्चों के बारे में कभी पूछते तक नहीं थे।।

 

निर्मला मन में सोच रही थी कि इस बार श्याम सुधर ही गया होगा। उसके स्कूल से कुछ भी लिखा हुआ नहीं आया। हर बार स्कूल के अध्यापक हर रोज श्याम को नोट लिख देते थे आपका बच्चा होमवर्क करके नहीं लाता। उस को समझाएं। कुछ दिन से उसके स्कूल वाले कोई भी लेटर वगैरा नहीं भेज रहे थे। उसके मां मन ही मन खुश हो रही थी कि श्याम अब सुधर चुका है। कोई बात नहीं इस बार स्कूल की परीक्षा में नहीं निकलेगा तो भी कुछ नहीं धीरे-धीरे समझ जाएगा। बच्चा है मारने से तो और भी ढीठ बन जाएगा। उसकी मां ने अपने आप को समझा लिया था। श्याम तो एक कदम आगे ही था।  उसकी मां ने जब उस  से कहा कि इस बार तुम्हारे अध्यापक तुम्हें कुछ भी नोट नहीं दे रहे हैं। लगता है तुमनें होमवर्क करना शुरू कर दिया है। वह बोला हां मां मैं अब अच्छा लड़का बन गया हूं। निर्मला नें श्याम

को आवाज लगाई बेटा, जल्दी से स्कूल को तैयार हो जाओ। वह बोला मां आज स्कूल देर से जाना है। आज हमारी आधी छुट्टी के बाद पढ़ाई होगी। उसकी मां बोली ये कैसी पढाई है? आजकल स्कूल में ऐसे ही चलता है। वह जल्दी से बस्ता लेकर स्कूल के लिए रवाना हो गया।

चलते चलते बहुत दूर निकल आया। उसका स्कूल उसके घर से काफी दूर था। रास्ते में चलते-चलते वह सोच रहा था कि मां को मैंने झूठ कह दिया क्या करूं? यह स्कूल वाले हर रोज बेंच पर खड़ा कर देते हैं काम करके नहीं लाओ पहले तो हर रोज मार पड़ती थी अब तो मैडम डांटकर बेंच पर खड़ा कर देती है मैं भी सारा दिन बैठा रहता हूं क्या करूं? स्कूल में गुरु जी का डंडा और घर में माता-पिता का डंडा। मैं तो परेशान आ चुका हूं। मैडम जो प्रश्न पूछती है उसके उत्तर तो ठीक देता हूं तब भी मैडम कह देती है कि नकल कर लाए होंगे. उस दिन टेस्ट में 20 अंक आए तो कहने लगी चीटिंग करके आए हो। करुं तो क्या करू। अध्यापक लोग बच्चों की मनो भावनाओं को भी नहीं समझते। सारे दिन काम काम काम क्या करूं। कभी-कभी तो डर लगता  है। अरे,! मैं तो भूल ही गया, मेरा दोस्त राम मुझे बाग में मिलने वाला था। उसे सामने से राम आता दिखा दिया। राम  बोला  वाह! तुम तो समय के बड़े पाबंद हो। श्याम बोला राम क्या तुम्हारे घर में भी पता चल चुका है कि हम स्कूल नहीं जाते? चार चार दिन वाटिका में खेलते रहते हैं। रामू बोला मेरे माता-पिता को क्या पता चलेगा। मेरी मां तो जबरदस्ती मुझ से पीछा छुड़ाने के लिए मुझे स्कूल भेजती है। घर में आया के भरोसे और स्कूल में अध्यापक अध्यापिकाओं के। मेरी मां विमला को तो यह भी नहीं पता होता कि लंच में मुझे क्या देना है।? वह सब कुछ आया संभालती है। मेरे घर में एक बूढ़ी आया है।

वह मुझे इतना प्यार करती है। वह मुझे प्यार से बाबा बुलाती है। बाबा तुमने खाना खाया या नहीं। खाने में क्या बनाऊं? मेरी पसंद का नाश्ता बनाती है। मेरी मां तो रसोई में कदम तक भी नहीं रखती है। सहेलियों के साथ जमघट लगा कर किटी पार्टी का आनंद लेती रहती है। पापा के दोस्तों का सारी सारी रात तक कॉल आता रहता है। घर में एक मेज पर हम खनकाने इकट्ठे बैठकर भी नहीं खाते। मेरा अलग से कमरा है। मेरे कुत्ते का अलग से कमरा है। मम्मी पापा के अलग-अलग कमरे हैं चार चार नौकर है। गाड़ी हैं बंगला है, सब कुछ नौकर  चाकर  सम्भालतें हैं। मैं तो अलग से कमरे में TV चलाता रहता हूं। क्या करूं? जैसे हीे पढ़ने की सोचता हूं कानों में फोन की घंटियों की कर्कश आवाजें रात रात तक सुनाई देती हैं। स्कूल में मेरे पापा ने कह दिया है कि हमारे बेटे को पास कर देना। इस बार तो जो गणित के और अंग्रेजी के अध्यापक आए हैं वह बहुत ही सख्त है। वह तो किसी भी बच्चे की नहीं सुनते।  हम दोनों  भी बेंच पर खड़े हो जाते हैं। कल तो उन सर ने इतनी पिटाई की यह देख कर मेरा तो कभी भी स्कूल जाने को मन ही नहीं करता।

हम दोनों दोस्त एक दूसरे के मित्र हैं। हमने निर्णय कर लिया है कि हफ्ते में चार दिन यही पर रह कर पढ़ाई करेंगे और 2 दिन स्कूल जाया करेंगे। हमारा प्लान कामयाब रहा। मेरे घर में भी किसी को पता नहीं चला कि मैं स्कूल नहीं जाता। श्याम बोला मेरी मां को शक हो गया है कहीं वह हमारे स्कूल में ना पहुंच जाए। मैडम हर बार नोट भेजती है। तुम्हारा बच्चा काम करके नहीं लाता है। तुम्हारा दोस्त है ना बाबू, जो स्कूल में चपरासी का काम करता है जिसको मैडम ने काम करने के लिए रखा है। मैंने उसे पटा लिया है। उसे कहा है कि हमारे घर  मैडम जो लैटरभेजेगी  उसे  तू पोस्ट ही मत किया कर। फोन का नंबर भी मैंने हैडमास्टर जी का नोट कर लिया है। वह सुबह 9:00 बजे  और शाम 7:00 बजे फोन करती है। मैं 9:00 बजे के समय वही रहता हूं। 7:00 बजे के समय भी मैं आवाज बदलकर  कह देता हूं कि मैं अपने बेटे को समझा दूंगी। मैं अपनी मम्मी की आवाज की नकल कर लेता हूं। राम श्याम  से बोला यार इस बार तो हम बच गए मगर रोज-रोज ऐसा नहीं चलेगा या तो हम घर से भाग जाएंगे या कुछ और जुगाड़ करते हैं।

 

स्कूल की मार से तो हम तंग आ गए  हैं। स्कूल में विज्ञान के अध्यापक प्रकाश बच्चों की हाजिरी लगा रहे थे। उन्होंने बच्चों की हाजिरी के लिए नाम पुकारा। उन्होंने देखा कि श्याम और राम  स्कूल नहीं आए हैं। वह सब बच्चों से बोले बेटा मैं तो स्कूल में नया नया आया हूं। दो बच्चे तीन-चार दिन से स्कूल नहीं आ रहे हैं। क्या कारण है? बच्चे बोले सर हमें नहीं पता। वह बोले देखो बच्चों मैं तुमसे प्यार भी बहुत करता हूं। मगर जो बच्चा झूठ बोलता है उसकी पिटाई भी बहुत होती है। बच्चे कुछ नहीं बोले। प्रकाश  सर नें अंग्रेजी की मैडम से पूछा राम और श्याम पढ़ने में कैसे हैं? मैडम बोली दोनों ही बहुत ही शरारती है। उनके मां-बाप को लैटर भेज भेज कर थक गए। पता नहीं उनके माता-पिता को उन दोनों के भविष्य की चिंता है या नहीं। दोनों  नालायक हैं। पढ़ाई  वगैरह कुछ नहीं करते हैं। सारा दिन बैठकर मटरगस्ती करते रहते हैं ना जाने दोनों को कब अक्ल आएगी। पांचवी के बाद इनको कोई भी दाखिल नहीं करेगा। जब नींव ही कमजोर होगी तथा आगे कैसे बढ़ पाएंगे? रामप्रकाश जी बोले ठीक है मेरी नजर में अब यह दोनों बच्चे आ गए हैं मैंने अपने तरीके से  इन्हें हैंडल कर लूंगा।

दूसरे दिन जब  विज्ञान के अध्यापक राम प्रकाश  जी स्कूल आए तो उन्होंने रामऔर श्याम को बुलाया और कहा तुम दोनों इतनें दिनों तक स्कूल क्यों नहीं आए? श्याम बोला मेरे पिताजी की तबीयत बिगड़ गई थी। मेरी मां नानी के पास चली गई थी। मैं घर में अकेला था मैं घर से कैसे आता? और श्याम तुम बताओ तुम स्कूल क्यों नहीं आए? वह बोला सर वर्षा के कारण स्कूल नहीं आ सका। रामप्रकाश जी बोले यह तो कोई बहाना नहीं है। तुम दोनों के घर आज ही शिकायत पत्र  भेजता हूं। तुम दोनों अपने अपने विषय में फेल हो। पढ़ाई क्यों नहीं करते? दोनों चुप रहे पाठ पढ़ाने के बाद जैसे उन्होंने बच्चों से प्रश्न पूछा तो श्याम ने जल्दी से गणित का सवाल हल कर दिया। वह बहुत ही खुश होते हुए बोले तुम तो होशियार हो।

अंग्रेजी की  मैडम जैसे ही घन्टे बजी कक्षा में  आई। मैडम ने आकर उन्हें होमवर्क  न करनें के लिए बेंच पर खड़ा कर दिया और उनके घर चपरासी के हाथ लेटर भेज दिया कि आपका बच्चा पढ़ाई नहीं करता है। जैसे ही उन्होंने लैटर  चपरासी के हाथ में थमाया  तो श्याम दौड़ा दौड़ा बाबू के पास जाकर बोला रुको।  यह सब राम प्रकाश सर छुप कर देख रहे थे। उन्होंने देखा श्याम बाबू को कह रहा था देख भाई हमें हमारे मां-बाप से मार नही खानी  है हमारी लैटर घर नहीं पहुंचनी चाहिए। आज तो मेरे पास रुपए नहीं है। हम दोनों दोस्त मिलकर ₹50 तुम्हें दे देंगे इस पत्र को फैंक दो। दूसरी लेटर लिख देता हूं। यह बच्चे पढ़ाई में अच्छे चल रहे हैं। श्याम को उन्होंने कागज पर कुछ लिखते हुए देख लिया था। बाबू को उन्होंनें दूसरी  लैटर पकड़ा दी थी। राम और श्याम इतने शातिर थे उन दोनों को अपनी मुख्याध्यापिका के हस्ताक्षर करना भी आता था। वह नकली  लैटर बनवाकर बाबू के हाथ घर भिजवा देते थे। जिसमें लिखा होता था कि आपका बच्चा पढ़ाई में ठीक है। इस तरह से घर में दोनों पिटाई होने से बच जाते थे।

श्याम जैसे ही बाबू को लेटर थमाकर गया राम प्रकाश ने बाबू को बुलाया और कहा यह श्याम और राम तुमसे क्या कह रहे थे। दाल में कुछ काला तो अवश्य है। वह बोला कुछ नहीं साहब रामप्रकाश भी कच्ची गोलियां नहीं खेले थे। वह बोले जल्दी से बताओ वर्ना तुम्हें स्कूल से निकाल दिया जाएगा। बाबू डर के मारे कांपने लगा। वह रोने लगा। अध्यापक ने उसके हाथ से लैटर ले ली थी। उन्होंने पढ कर देखा  तो मैडम ने लिखा था कि आपके बच्चे पढाई में ठीक चल रहे हैं। चिंता की कोई बात नहीं है। रामप्रकाश चौंके अभी-अभी अंग्रेजी की मैडम ने बताया था कि यह दोनों बच्चे पता नहीं कहां रहते हैं? स्कूल भी नहीं आते हैं। हफ्ते में मुश्किल से 1 या 2 दिन स्कूल आते हैं। घर में ना जाने कितने फोन लगाए? मगर कोई फोन सुनता ही नहीं है। इन बच्चों को अगले साल स्कूल में दाखिल ही नहीं कराया जाएगा।

 

रामप्रकाश ने सोचा ठीक है अभी इनकी शिकायत मैडम से नहीं करता हूं। बच्चे हैं मासूम है। ना जाने क्या कर बैठे। अभी मैं प्रिंसिपल से कुछ नहीं कहूंगा। मैं इन्हें अपने तरीके से हैंडल कर लूंगा। प्रकाश सर नें रामू और श्यामू को कहा कि काम कर के लाए हो रामू बोला नहीं। श्याम बोला नहीं। उन्होंने अंग्रेजी की मैडम को बुलाया। बारी-बारी से सभी अध्यापकों को बुलाया। उन सब ने कहा कि यह दोनों बच्चे बड़े उदंड है। राम प्रकाश जी ने उन्हें बेंच पर खड़ा कर दिया। तीन चार डंडे लगा डाले। उन दोनों के बैन्त लगनें के कारण हाथ सूज गए थे। उन्होंने कहा तुमने अपने मुख्याध्यापक के हस्ताक्षर कैसे किए? तुम्हारे माता-पिता को तुम्हारी खबर तक नहीं कि तुम स्कूल में आते हो। एक और गलत काम।  तुमने झूठे हस्ताक्षर करना कहां से सीखा? कल तो तुम्हारे मामा पापा मम्मी को बुलाना ही पड़ेगा। श्याम बोला मेरे पापा तो काम के सिलसिले में बाहर गए हैं। मेरी मम्मी तो छुटकी के साथ ही रहती है। उन्हें तो वह काम करने ही नहीं देती।  राम बोला मेरे घर में बोलने से कोई फायदा नहीं।  मेरे पापा आप को रुपया दे कर  कह देंगे कि अपने तरीके से संभालो। इतने छोटे बच्चे के जबाब सुन रहा अध्यापक स्तब्ध रह गए। इनका भविष्य धूमल हो जाएगा। इन दोनों को तो मैं सुधार कर ही रहूंगा। कुछ डांट कर, कुछ फटकार कर, और कभी प्यार से।  यह दोनों अपने मार्ग से भटक रहें हैं। अभी इन्हें नहीं संभाला  गया तो इन दोनों का भविष्य धूमिल हो जाएगा।

श्याम और राम स्कूल के पास ही थोड़ी दूरी पर एक वाटिका थी। वहां पर हर रोज चले जाते थे

वह वाटिका में पहुंचकर एक दूसरे से बोले। हम तो कल से स्कूल नहीं जाएंगे। परीक्षा के बाद घर से भागने के बारे में सोचेंगे। प्रकाश जी नें  पता लगानें की कोशिश की। प्रकाश जी दिन के समय राम और श्याम के घर पहुंचे। जब श्याम की मां को पता चला कि श्याम स्कूल नहीं जाता है वह तो  यह सुन कर हैरान हो गई कि उनका बेटा स्कूल नहीं जाता है।  वह कहां जाता है? जब राम प्रकाश जी ने बताया कि आपके बच्चे नकली हस्ताक्षर कर लैटर घर भिजवा रहे हैं कि आपका बच्चा पढ़ाई में ठीक चल रहा है। वह हस्ताक्षर मैडम के नहीं आपके बच्चे के होते हैं। चपरासी को भी पटा कर झूठा हस्ताक्षर करवा देते हैं। जब उन्होंने बताया कि आपके पति के बारे में  आप के बच्चे से पूछा तो श्यामू ने कहा कि वह काम के सिलसिले में बाहर गए हैं। निर्मला बोली मेरे पति तो दुकान पर काम करते हैं। वह तो बाहर कभी भी नहीं जाते।

निर्मला को पता चल चुका था कि उनका बेटा बिगड़ चुका है। वह बोली सर आप मेरे बेटे को कृपया करके सुधार दें। उसके पिता को पता नहीं चलना चाहिए। वह तो उसकी खाल उधेड़   देंगें। मैं अपने बेटे की हरकतों पर नजर रखूंगी

 

राम के घर जाकर राम प्रकाश जी जब पहुंचे तो दंग रह गए।  राम जो कह रहा था वह शत-प्रतिशत सही था। उसकी मां भी घर पर नहीं थी।  उसके पिता भी घर पर नहीं थे। आया ही घर पर थी। आया बोली सर आप मेरे राम के गुरु हैं। गुरु तो वह होता है जो अपने ज्ञान से बच्चों को प्रकाशित कर उसका भविष्य उज्जवल करता है। बच्चों से भूल  हो  भी जाए तो  गुरु उन्हें माफ कर देता है। मेरा राम तो मासूम है। भोला है। उस की हरकतों के कारण आप उसे दंड देंगे तो चलता है मगर, उसके मां-बाप को यह बातें कौन समझाए? मैं तो यहां काम करती हूं। छोटे से बच्चे का इसमें कोई कसूर नहीं है। उसे प्यार से आप समझाएंगे कि घर से बाहर रहना ठीक नहीं तो वह अपने आप समझ जाएगा।

राम प्रकाश जी जब उन दोनों बच्चों के घर से आए तो उनका सिर चकरा रहा था। वह तो आज तक बच्चों के मां पिता से कभी नहीं मिले। थे आज उन्हें महसूस हो रहा था कि अगर आप सफल शिक्षक बनना चाहते हो तो बच्चों के माता-पिता से कभी कभार मिलना अवश्य चाहिए। बच्चों की इस हरकत के बाद तो वह एकदम हैरान रह गए थे।

घर जा ही रहे थे तो उनके जहन में अपने बेटे का चेहरा घूम गया। उनका बच्चा भी तो पांचवी कक्षा में पढ़ता है। मैं भी कभी अपने बच्चे की तरफ ध्यान ही नहीं देता हूं। कहने को तो मैं अध्यापक हूं। दूसरों के बच्चों को सुधारने चला हूं लेकिन क्या कभी मैंने अपने बेटे से कभी प्यार से यह पूछा है कि तुमने आज क्या पढ़ा? सब कुछ स्कूल के अध्यापकों के हवाले कर दिया। आजकल वह भी स्कूल जाने से कतरा रहा है। आज चलो उसके स्कूल ही चलता हूं । वैसे भी अभी स्कूल बंद होने में देर है। वह अपने बेटे भानु के स्कूल पहुंच गए।  हेड मास्टर जी के कमरे में गए उन्हें नमस्ते किया फिर अपने बच्चे की प्रगति रिपोर्ट के बारे में जानना चाहा। मुख्याध्यापक ने चपरासी को बुलाकर कहा कि भानु को बुलाकर लाओ चपरासी आकर बोला इनका बेटा तो आज स्कूल ही नहीं आया है। वह तो कभी-कभी ही स्कूल आता है। राम प्रकाश जी यह सुनकर हैरान रह गए वह क्यों स्कूल नहीं आ रहा है? हम तो उसे हर रोज स्कूल भेजते हैं। वह ना जाने कहां रहता है। अध्यापक से मिलकर चले गए। घर आकर उन्होंने अपने बेटे भानु को कहा कि बेटा तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है? वह बोला ठीक है। उन्होंनें अपनें बेटे को कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन रामप्रकाश जी ने स्कूल से छुट्टी ले ली थी वह देखना चाहते थे कि उनका बेटा कहां जाता है और क्या करता है? जैसे ही उनका बेटा स्कूल के लिए निकला वह अपने बेटे के पीछे पीछे चल पड़े। चुपचाप एक सधारण आदमी का भेष बदलकर उसके पीछे पीछे चलने लगे। उनका बच्चा एक  उद्यान में पहुंच गया था। वह  फूलों की वाटिका थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा दो और बच्चे अपना स्कूल बैग लेकर वहां पहुंच गए। तीनों आपस में बातें कर रहे थे। श्याम और राम को देख कर  रामप्रकाश चौकें वह तो उनके स्कूल के  ही बच्चे हैं। वह भी मेरे बेटे के साथ। वह उनकी हरकतों को नोट करने लगे।

श्याम भानु से बोला तुम्हारे पापा को पता चला तो वह भी तुम्हें मारेंगे। अध्यापक का बेटा होकर यहां। तुम यहां से चले जाओ। भानू बोला मेरा भी पढ़ाई में मन नहीं लगता। मुझे गणित में बहुत ही डर लगता है। राम बोला मुझे भी गणित से बहुत ही डर लगता है। हम बच्चे हैं। मार से हम डरते हैं। श्याम बोला मुझे तो वाटिका में रहना बहुत अच्छा लगता है। श्याम बोला क्यों ना हम  वाटिका को ही  अपना स्कूल बनाएं। यहीं बैठ कर पढ़ाई किया करेंगे।

राम  बोला कैसे? मैं तुम्हें यहां गणित करवाऊंगा मैं तुम्हारा अध्यापक और तुम मेरे शिष्य। तुम्हें गणित में क्या नहीं आता है? राम और भानू

बोले + घटा गुणा भाग का चक्कर समझ में नहीं आता है कभी 9+9 =18कैसे। पहाड़े याद ही नहीं होते हैं। जमा और घटा भी समझ में नहीं आते हैं। गणित में जीरो आता है । प्रकाश उनके सामने ही खड़े हुए थे।  सब सुन रहे थे श्यामू बोला आज मैं तुम्हें + – गुणा भाग सब सिखाऊंगा। ध्यान से देखो श्याम ने  सब बच्चों को गमलों के माध्यम से गणित के सवाल सिखा दिये। राम ने उन्हें  पतियां फल और फूल की जानकारी दी। अध्यापक यह देखकर हैरान रह गए कि यह बच्चे अब बहुत ही खुश नजर आ रहे थे। खेल-खेल में ही वह एक दूसरे से सब कुछ सीख गए थे। उनके पास कोई भी किताब नहीं थी। फूलों और गमलों के माध्यम से वह सब कुछ समझ गए थे।  भानू बोला अब हमें जमा घटा गुणा भाग से डर नहीं लगेगा। रामप्रकाश श्याम के तरीके को सुनकर और उसे ऐसे पढाता देख जैसे एक अध्यापक बच्चे को पढा रहा हो बहुत ही खुश हुए। वह अपनें मन में खुश हो रहे थे।। क्यों न मैं बच्चों की सी डी बना लेता हूं? उन्होंनें  अपनें फोन से बच्चों की सीडी बना दी।

राम बोला मैं तुमसे विज्ञान के प्रश्न तुम्हें वाटिका के माध्यम से सिखाऊंगा। रामप्रकाश जी यह देख कर हैरान हो गये चलो कोई बात नहीं इन का टेस्ट स्कूल में लिया जाएगा।

दूसरे दिन जब स्कूल में मैडम ने बच्चों से पूछा कि आज तुम्हारा टेस्ट लिया जाएगा। वह भी हमारे सामने। तुम नकल करके पास हो जाते हो। राम बोला मैडम मैं  वाटिका में बैठकर पहाड़े जमा घटा गुणा करना चाहता हूं। रामप्रसाद जी ने उसे वाटिका में जाने की इजाजत दे दी। जब दोनों के इतने अच्छे अंक आए तो मैडम जल भुनकर हैेड-मास्टर के पास चली गई।  इन दोनों बच्चों ने चीटिंग की है। ना जाने किसकी। राम- प्रकाश जी बोले इन दोनों बच्चों ने कोई चीटिंग नहीं कि आज हमें भी इन बच्चों ने एहसास करवा दिया है कि बच्चे एक दूसरे से या व्यवहारिक ज्ञान के रूप में कहीं भी कुछ भी सीख सकते हैं। किताबी ज्ञान कुछ नहीं होता। मैं इन दोनों को समझता था यह दोनों होनहार छात्र नहीं है। यह दोनों ही तो स्कूल के होनहार छात्र हैं। अन्तर इतना है कि वह दोनों पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लेते। इन दोनों में ज्ञान की कमी नहीं है। हेडमास्टर मास्टर को और अध्यापकों को जब उन दोनों के बारे में बताया कि एक दूसरे को गणित और विज्ञान  ये दोंनों स्कूल के बाहर वाटिका में एक दूसरे को सिखा रहे थे। मैं भी उनके ज्ञान को देखकर चौंक गया। मैंने उन दोनों की cd भी बनाई है। जब उन्होंने यह सीडी स्कूल में चला कर दिखाई जहां पर श्यामू और रामू को + -गुणा  भाग का ज्ञान वाटिका में दे रहा था। आज रामू के 40 मार्क्स आए  थे। जिस बच्चे को गुना से डर लगता था। उसके  गणित  के सारे सवाल ठीक थे।  मैडम  नें कहा  कि हमें भी अब बच्चों को किताबी ज्ञान न दे कर उन्हें व्यवहारिक तौर से समझाना चाहिए। बच्चे एक दूसरे को ज्यादा सिखा सकते हैं। एक बच्चे को ट्रेन्ड कर दो तो वह सभी बच्चों को ट्रेन्ड कर देगा। उन्होंने बच्चों को मारना पीटना छोड़ दिया और बच्चों को बाहर खुले मैदान में ले जाकर पढ़ाने लगे। बच्चों ने स्कूल से भागने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था। वह भी पढ़ाई में आनंद लेने लग गए थे। अध्यापक जो भी  प्रश्न पूछते उनके हल वह सबसे पहले करते। इस कहानी को लिखनें का उदेश्य  यह है कि हमें अपनें बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए। अगर स्कूल जानें से बच्चा कतराता है तो खोजें आप का बच्चा ऎसा क्यों कर रहा है? आप अपनें बच्चे को डांटे नहीं उसे प्यार से पूछे वह आप को सब कुछ बताएगा। आप उसे डराएंगे तो वह इधर उधर भटकेगा।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रति श्रद्धांजलि

देश में में ना होगा लाल ऐसा। पूर्व प्रधानमंत्री अटल जैसा।।

भारत की बलिवेदी पर तिरंगा यूं ही  लहराता रहे।।

सर्वस्व अपना लुटाने की खातिर सदा उनके गीत गाता रहे।

नतमस्तक होकर आज उन्हें हम सलाम करते हैं।

उनके प्रति सच्ची श्रद्धा सुमन अर्पित कर।

उन्हें अश्रुपूर्ण आंखों से विदा करते है।

दिल से है यही दुआ हमारी।

उन्हें हम  अपनें दिलों में   याद करते रहे।

देश के प्रति अपना फर्ज निभा कर उनके प्रशंसनीय कार्य को शहराते रहें।

आने वाली पीढ़ियों को यही समझाते रहे। उनके पुण्य कर्मों की उदारता को  यूं ही सराहतें रहें।

एक बार फिर देशवासियों को नमन हमारा। झुके ना कभी ध्वज यही है स्वपन  हमारा।

भारत रत्न कवि हृदय साहित्यकार उनके जैसा श्रेष्ट नेता हमने खोया है।

उन्हें नम आंखों से विदा कर हर कोई रोया है।

 

ऐसा पुण्य आत्मा सभी देशवासियों के दिल पर राज करता रहेगा।।

उनके जैसा ही बनने की उमंग जगाता रहेगा। उनके कृत्य संकल्पों को चरितार्थ कर दिखाना होगा

पूर्व प्रधानमंत्री  अटल जैसा बनकर दिखाना। होगा।

 

आने वाली पीढ़ियों को भी यही समझाना होगा।

देश की माटी में जन्मे हर पुरुष और नारी को आगे आना होगा।

देश के प्रति आगे आकर फर्ज अपना निभाना होगा।

लहू का कतरा कतरा देखकर उनके साहसी कृत्य को सराहना होगा।

ं युद्ध के मैदान में भी करिश्मा अपना दिखाना होगा

दुश्मनों के झूठे प्रपंच को मिटाना होगा।

जो उन्होंने हम से छीना है उन्हें वापस हमें लौटाना होगा।

असहाय अबलाओं पर कोई आंच ना आए। मासूम कली निराश होकर जग से ना जाए। कालिख पोतने वाले झूठे मक्कारों को।

उनके घिनौने कृत्य की सजा दिखाकर।

उन्हें फांसी के तख्ते पर पहुंचाना होगा।

अटलजी के संकल्पों को चरितार्थ कर दिखाना होगा।

अटल जी जैसा नेता बन कर दिखाना होगा। अटल जी जैसे सच्चे देशभक्त को हमारा कोटि कोटि नमन।