(मानव शरीर के अंग)

हड्डियों और मांस पेशियों से मिलकर बना है यह शरीर।

मानव को आकृति प्रदान करने में सहायक  होता है  यह शरीर।।

मांसपेशियां शरीर के हिलने ढुलनें में सहायता है करती।

इसके बिना मानव की कोई नहीं हस्ती।

मस्तिष्क शरीर के सभी अंगो को नियंत्रित है करता।

यह तंत्रियों के माध्यम से है काम करता।

हृदय शरीर के सभी अंगो में रक्त पहुंचाने का काम है करता।

1 मिनट में 72 से 80 बार है धड़का करता।

फेफड़े हृदय, पेट गुर्दे, शरीर के आंतरिक अंग है कहलाते।

व्यायाम कर हम अपने शरीर को सुंदर और सुडौल बना पाते।

206 हड्डियों से मिलकर बनी है यह कंचन। 650 मांसपेशियों का निर्माण कर होता है इसका मंचन।

8 हड्डियों से मिलकर बनी है यह खोपड़ी। हेलमेट का काम देकर कर यह चोट लगनें पर सुरक्षित है बचाती।

धमनिया शरीर के सभी अंगो को खून है पहुंचाती।

शिराएं शरीर के सभी अंगो में रक्त वापिस है लाती।

गुर्दे शरीर से अप द्रव्यों को बाहर है निकालते। रक्त को शुद्ध करने का काम भी है करते।

तन्त्रिकाएं हमारे शरीर में सूचना है पहुंचाती।

यह बिजली के तारों की तरह जाल है बनाती।

बचा हुआ भोजन पेट में अवशोषित है होता।

भोजन के पचाने में मुंह है सहायता करता।

हम  मुंह द्वारा कभी सांस नहीं लेंगें।

नाक द्वारा सांस लेकर धूल के कणों और कीटाणुओं को  अन्दर घुसने नहीं देंते।

फेफड़े शरीर के लिए ऑक्सीजन लेकर  हैं जाते,

और कार्बन डाईक्साईड हैं छोड़ते।

यह खून को शुद्ध है करते।।

टांग की ऊपर की हड्डी को फीमर हैं कहते।  

शरीर की सबसे लंबी हड्डी भी इसी को है कहते।।

हृदय, फेफड़ों को चोट से भी बचाते हैं  एक दर्जन पसलियों के जोड़े।

यह हमें सुरक्षा दे कर  एहसास करवा कर हमें अपने साथ है जोड़े।।

वयस्कों में 24 और बचपन में 33 कशेरुकाओं  है होती।

यह रीड की हड्डी भी  है कहलाती।

चलना फिरना मुड़ना यह सब इन्हीं के कारण हम हैं कर पाते।

यह ना हो तो हम अस्थि कंकाल कहलाते।।

(शिमला में बिन मौसम बरसात)

बिन मौसम की की बारिश में ऐ मानव क्या तू दौड़ पाएगा?

पल में ठंडक पल में गर्मी क्या तू सह आएगा।।

गर्मी के मौसम में आसमान ने बजाई रणभेरी।

वर्षा ने आते हुए भी नहीं लगाई देरी।।

छम छम वर्षा ने बरस कर पानी बरसाया।
बादलों ने भी गरज गरज कर अपना बिगुल बजाया।।

लोग ठंड में ठिठूर  सिकुड़ कर होटलों ढाबों पर जा दौड़े।

टूरिस्ट सैलानी भी अपने होटलों में जाने को  भाग पड़े।।

ढाबों और दुकानदारों की पौ बारह हुई। पर्यटकों और सैलानियों की चारों ओर  भीड़  उमड़ पड़ी।।

बच्चे भी ठंड से कांप कर ठिठुर गए ।

हलवाई की दुकान  पर गुलाब जामुन और जलेबी खाने को मचल पड़े।।

बिन मौसम की बरसात नें ए कैसा डेरा डाला।
पर्यटक आपस में बोले यह कैसी आफत ने घेरा डाला ।।

बिन मौसम की बरसात ने कैसा जादू डाला।
कभी गर्मी तो कभी सर्दी का रुख बदल डाला।।

थोड़ी देर बाद बर्फ के फाहे गिरने लगे।

पर्यटक आनंद विभोर होकर एक दूसरे पर बर्फ  फेंकने लगे।।

बच्चे और सैलानी  बर्फ पर कभी फिसलते कभी तेजी से उठ पड़ते।

चारों ओर  इधर उधर नजरें दौड़ा कर उठने की कोशिश करते।।

लोग इधर-उधर पैदल चलने पर मजबूर हुए।
बर्फ में फिसल फिसल कर चकनाचूर हुए।।
फिल्मी शूटिंग की चहल-पहल भी  दी दिखाई।
आगे जाकर देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ आई।।

बिन मौसम की बरसात ने कैसा जादू डाला।
कभी गर्मी तो कभी सर्दी का रुख बदल डाला।।

कुछ लोग सिनेमा हॉल में दौड़ पड़े। भीड़ में लगकर टिकट के लिए  उमड़ पड़े।।

रेडी लगाने वाले भी वर्षा से आहत हुए।

अपने स्टॉल उठा उठा कर भागने पर आमदा हुए।।

मौसम ने एक बार फिर अपना मिजाज संवारने डाला।

थोड़ी धूप दिखाकर पर्यटकों को मुग्ध कर डाला।।

पर्यटक और सैलानी माल रोड पर सेल्फी लेते नजर आए।

बच्चे भी घोड़े की घुड़सवारी करते खुश नजर आए।।

जगह जगह चाय की दुकानें थी दिखाई।

रेढी वालों और गरीबों को दुकानदारों नें मुफ्त में चाय पिलाई।।

ऑफिस के कर्मचारी और महिलाएं भी थोड़ी से परेशान नजर आए।

बिन मौसम का अंदाज देखकर पछताए।

वर्षा के लालच क्या गलती से आकर भीग गए?

वर्षा के लालच में बाहर आकर कंहा फंस गए।।?

जादू मन्दिर कीअदभूत शोभा थी निराली।

चारों ओर बर्फ की सफेद चादर थी दिखाई।

ईमानदार बंजारा

बंजारों की एक छोटी सी बस्ती थी। उन बंजारों का मुखिया था रामप्रसाद। रामप्रसाद को उन्होंने मुखिया पद से हटा दिया था। वह अपने बेटे के साथ अलग से रहता था। राम प्रसाद की पत्नी मर चुकी थी। उसनें अपनें बेटे का  नाम  विवेक रखा था। प्यार से वह अपने बेटे को  विकु बुलाया करता था। विकु की मां उसे छोड़ कर जा चुकी थी। बंजारों की  बस्ती से अलग  रह कर अपने बेटे की परवरिश कर रहा था। वह काम की तलाश में भटक रहा था। काम की तलाश में चलते चलते वह काफी दूर निकल चुका था। कभी-कभी वह यूं ही काम की तलाश में दूर-दूर तक निकल जाता था। एक दिन चलते चलते वह जमीदार की हवेली में पहुंच गया। जमीदार ने अपनी हवेली में एक द्वारपाल भी तैनात   किया हुआ था। द्वारपाल का बेटा सोमेश भी उसी की तरह लालची था।। सोमेश नें जमीदार की पत्नी का सोने का हार चुरा लिया था। वह जब हार चुरा कर भाग रहा था रास्ते में उसे बंजारा राम प्रसाद मिल गया। उसने एक योजना बनाई मैं इस बंजारे को अपराधी ठहरा दूंगा कह दूंगा कि जमींदार की पत्नी का हार इसी ने चुराया है। उसने घर आकर उस हार को अपने घर के पास ही एक खेत में छुपा दिया। जब दूसरे दिन द्वारपाल का बेटा महल में आया तो वह द्वारपाल ने उसे कहा बेटा अब तुम भी बड़े हो चुके हो कोई न कोई काम  किया करो। आवारागर्दी मत करा करो।

रामप्रसाद का बेटा विवेक बहुत ही होनहार था। उसने पास के स्कूल में उसे दाखिला  दिलवा दिया था। वह रोज स्कूल जाता था। जब उसे अपने मां की याद आती थी तो अपने घर के बाहर एक आम का पेड़ था जिस पर कोयल गूंजन किया करती थी  वहां चला जाता था। कोयल  के छोटे-छोटे बच्चे थे। वह घंटो घंटो यूं ही  उसके कोयल के मीठे मीठे गाने का  सुनता रहता था। उसकी अध्यापिका ने बताया था कि कोयल बहुत ही मीठा गाना गाती है। कोयल के छोटे-छोटे बच्चे कूं कूंकरते थे। वह चुपचाप उस पेड़ के नीच चारपाई लगा कर सो जाता था। उसे लगता था कि मां लोरी गाकर उसे सुला रही है। वह कोयल के बच्चों को नुकसान नहीं पहुंचाता था।  विवेक जब भी उदास होता था तो वह चटाई लेकर उसके घोंसले के पास  चला जाता था। कोयल जान जाया करती थी कि आज वह बहुत उदास है। वह उसकी दोस्त बन चुकी थी। रामप्रसाद  जब देर रात तक घर नहीं आया उस  समय  विवेक केवल 12साल का था। वह चुपचाप  कोयल के  घोंसले के पास आम के पेड़ के नीचे सो गया था। कोयल काफी देर तक उसकी चटाई के पास  मंडरा रही थी। वह चुपके चुपके रो रहा था। कोयल वहां से सीधा उड़ चुकी थी। वह रामप्रसाद को ही ढूंढने निकली थी। उड़ते उड़ते वह काफी दूर तक पहुंच चुकी थी।

द्वारपाल का बेटा  सोमेश जब महल में पहुंचा जमीदार बोला जिस दिन तुम यहां आए थे उस दिन रानी का  सोनें का हार ना जाने कहां चला गया। कहीं तुम तो चुरा कर नहीं ले गए। वह बोला मैं भला  हार क्यों चुराने लगा।उस दिन जब मैं घर जा रहा था तो थोड़ी देर के लिए मैंने रामप्रसाद को रुकने के लिए कहा था। वह यहां आया था। वह भी काम की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। शायद वही तो आपकी पत्नी का हाथ चोरी कर ले गया होगा। द्वार पाल बोला हां हां जमीदार साहब वही आपकी पत्नी का हार चुरा कर ले गया होगा क्योंकि वह उस दिन बार-बार अपने बैग में बार  बार हाथ डालकर देख रहा था।

द्वारपाल ने बंजारे रामप्रसाद को बुलाया रामप्रसाद ने सोचा शायद जमीदार उसे कुछ काम दे दे इसलिए मुझे अपनी हवेली में बुलाया होगा। रास्ते में सोचता जा रहा था कब जैसे मैं हवेली पहुंच जाऊं। आज तो मैं धनी व्यक्ति बन जाऊंगा। मुझे काम के लिए ही बुलाया होगा। आज तक तो मुझे कभी किसी ने नहीं बुलाया।  मेरे बेटे की किस्मत शायद  अब जाग ही जाएगी। मैं उसे ढेर सारी खुशियां दूंगा।  उसकी मां  जब से मर गई तब से वह छोटा सा बच्चा अनाथ हो गया। मैं उसे वह प्यार नहीं दे पाया जो एक  मां दे सकती है। वह जमीदार की हवेली में पहुंच गया।

द्वार पाल बोला तुम उस दिन भी  मेरे बेटे के साथ  थे । तुमने ही रानी का हार चुराया है। वह बोला मैं गरीब जरूर हूं मगर मैं चोरी नहीं कर सकता। मुझे रानी के हार से क्या लेना। मैनें हार नहीं चुराया।

जमीदार वहां आ चुका था। वह बोला तुम काम की तलाश में आए थे हम तुम्हें अपने यहां काम पर रख लेंगे तुम सच सच बताना रानी का हार तुमने चुरा कर कहां डाला। वह बोला मैं उस दिन द्वारपाल जी के बेटे सोमेश के साथ जा रहा था। उसने ही मुझे यहां बुलाया था ताकि मैं आपसे काम मांग सकूं। मैंने सोचा पहले मैं कहीं और काम की तलाश में चलता हूं। मुझे अगर काम नहीं मिलेगा तभी मैं आपसे काम के लिए भीख मांग लूंगा। मैं यहां से चला गया था।

रामप्रसाद बोला हार सोमेंश ने ही चुराया होगा द्वारपाल ने जब अपने बेटे का नाम सुना तो वह आग बबूला हो उठा बोला झूठ क्यों बोल रहे हो।कल तक हार ले आना वर्ना तुम्हें घर जाने नहीं दिया जाएगा।  सुमेश भी तब तक वहां पहुंच चुका था। वह बोला जमीदार साहब आप इसको छोड़ो मत। उसने ही  हार चुरा कर ना जाने कहां रख दिया है।

जमीदार ने राम प्रसाद को पकड़ लिया। उसने रामप्रसाद को बांध लिया था।  रामप्रसाद बोला रहम करो। जमीदार साहब मेरा छोटा सा बच्चा घर में अकेला है।  मैं  जब घर नहीं  जाऊंगा तो वह अकेला मर जाएगा। मेरे सिवा इस दुनिया में  उसका कोई नहीं है। जमीदार को जरा भी दया नहीं आई। उसने कहा तुम इस हवेली के बाहर पड़े रहो। उसने रामप्रसाद के हाथ बांध दिए थे।  उसनें रामप्रसाद को कहा तुम्हे हम 15दिन का समय देते हैं इन 15दिनों के भीतर तुम नें हार हमारे हवाले नहीं किया तो तुम्हे पांच साल की सजा दे दी जाएगी।

काफी रात तक रामप्रसाद जब घर नहीं पहुंचा तो विवेक  को चिन्ता सतानें लगी। मेरे बाबा तो बाहर से आनें में कभी इतनी देर नहीं किया करते थे। कोयल के घोंसले के पास चला गया। वह कोयल के बच्चों का बहुत ध्यान रखता था। वह उस के बच्चों को कभी दाना डालना नहीं भूलता था। कोयल यह सब देखा करती थी। विकु कोयल के घर लें के पास चटाई पर लेट कर रो रहा था। कोयल से उसका दर्द देखा नहीं गया। उड़ती उड़ती वह जमीदार की हवेली में पहुंच गई। उसने देखा कि रामप्रसाद  जमीदार की हवेली के बाहर कराह रहा था। उसके पास आ कर कूं कूं करने    लगी थी। राम प्रसाद को पता चल चुका था कि कोयल उसको ढूंढते ढूंढते वहां आई है। वह उसके बेटे की दोस्त थी। उसने एक कागज पर बड़ी मुश्किल से अपने बेटे को  पत्र लिखा। बेटा मुझे जमीदार  ने चोरी के इल्जाम में बेड़ियों से बांध दिया है। वे कल मुझे  सजा सुना देंगे।  मैंने  हार नहीं चुराया है। बेटा तुम्हारा बाप मर जाएगा मगर चोरी नहीं करेगा। मैं जल्दी ही  छूट जाऊंगा तब तक तुम अपने चाचा के पास चले जाना।  कोयल उठते उडते विकु के पास पहुंच गई। कोयल पेड़ के पास आकर आ कर मंडरा रही थी। उसने एक कागज का  टुकड़ा विवेक के सामने डाल दिया। विवेक ने देखा उसके पिता ने लिखा था कि मैं काम की तलाश में जमीदार के महल में गया था। द्वारपाल ने अपने बेटे का इल्जाम मुझ पर डाल दिया।जमीदार नें रानी के हार को चुरानें  के इल्जाम में मुझे बन्दी बना लिया है। शायद हार द्वारपाल के बेटे  नें ही चुराया है।तुम सोमेश के घर की तलाशी करना। तुम अपनें चाचा के साथ चले जाना। तुम कोई सुराग ढूंढ सको तो ठीक है बेटा। विवेक पत्र पढ कर रो पड़ा। उसके चाचा को भी खबर मिल चुकी थी। वह बोला बेटा तुझे डरने की कोई जरुरत नहीं। तुम्हारे बाबा कभी चोरी नहीं कर सकते। चोर को कैसे पकड़ लिया जाए। कोयल की समझ में सारी सच्चाई आ चुकी थी। विवेक भी सोमेश के ऊपर नजर रखा करता था। कोयल भी सोमेश की हरकतों को देखा करती थी। कोयल एक दिन जब पेड़ पर बैठी बैठीथी तो उस नें सोमेश को खेत की ओर जाते देखा। वह भी दूर तक उसके पीछे पीछे उड गई। सुबह सुबह के समय सोमेश  खेत में आया उसने वहां एक गडडा किया।उसमें से उसने कोई वस्तु निकाली उसी वक्त उसे कुछ आहट सुनाई दी। उसने वहां से जाते हुए कुछ लोगों को देखा। उसने उस वस्तु को वही जमीन में गाड़ दिया। वह वहां से जानें ही लगा था तभी उसका पैर एक नुकीले पत्थर से टकराया। उसके घुटनों में चोट लगने गई थी। उस की पैन्ट का एक छोटा सा टुकड़ा भी वहां गिर गया था। सोमेश नें जल्दी ही घुटने की चोट को ढका।उस के खुन भी बह रहा था। जल्दी ही घर आ गया ताकि कोई उसे देख न ले।

कोयल विवेक के पास आ कर कूंकूं करनें लगी। उसका चाचा बोला तुमने यह क्या पाल रखा है वह बोला यह मेरी दोस्त है मैंने इसे अपनी मां के रूप में देखा है।  बाबा जब यहां  नहीं होते तो वह मुझे मीठा मीठा गाना गाकर सुनाती है। शायद वो मुझे कुछ कहना चाहती है। उसका चाचा बोला शायद हो सकता है। वह दोनों कोयल के पीछे पीछे चल पड़े। कोयल सोमेश के घर के पास के पास  कूंकने लगी। वह अपनें चाचा से बोला  यहां खेत में  कुछ है। उसने देखा वहां पर पत्थर पर खून लगा हुआ था। शायद यहां पर कोई कुछ खुदाई  करनें के लिए आया हो।

विवेक के चाचा जी बोले बेटा शायद  यहां पर किसी ने कुछ खुदाई की है। कोयल भी उसी स्थान पर बैठकर  कूकने  लगी। जहां पर कोयल बैठी थी वहां पर वह खोजने लगे। वहां पर उन्हें एक थैली में लिपटा हुआ हार मिल गया ।

विवेक  हार देख कर खुश हो गया। उसने अखबार में पढ़ लिया था जमीदार ने राम प्रसाद को चोरी के इल्जाम के लिए  उसके पिता को पांच साल की सजा सुना दी थी। सजा को केवल एक दिन शेष था। विवेक ने कहा चाचा जल्दी  जमीदार के महल चलो। हार तो मिल चुका है।

वह दोनों जमीदार की हवेली में पहुंचे। वहां पर पहुंचकर विवेक जमीदार  को बोला जमीदार साहब आप धनवान जरूर है। आपने मेरे पिता को यूं ही   बन्दी बना दिया है। आपने बिना सबूत के मेरे पिता को  सजा सुना दी। आप कैसे जमीदार हो। आपने कैसे व्यक्ति को द्वारपाल  नियुक्त किया है जिसको अपने बेटे के बारे में भी मालूम नहीं है।

जमीदार गुस्सा होकर बोला तुम कौन हो? और इस बंजारे की पैरवी करने क्यों आए? मैं अपने पिता को यहां से छुड़ा कर ले जानें आया हूं क्यों कि मेरे पिता बेकसूर है। यह लो आप अपना हार।  जमीदार बोला जब तुम्हारे पिता को मार पड़ी तभी उसने तुम्हें  हार लौटाने के लिए यहां बुलवा लिया होगा। वह बोला जमीदार साहब आप अमीर हो इसलिए आप अपने ऊपर गर्व कर रहे हो। विवेक बोला द्वारपाल के बेटे ने  ही चोरी की थी। द्वारपाल बोला  तू भी अपने बाप की तरह  ही झूठा है। विवेक ने कहा जब हम  हार ढूंढ रहे थे तो सोमेश के खेत से  ही हमें  यह हार मिला। जब वह वहां  हार  खोज रहा होगा तो  उसने सोचा होगा कि कोई उसे देख ना ले इसलिए शायद उसे चोट भी लगी है। उसकी टांग पर या बाजू में कहीं चोट का निशान होगा। आपको पता चल जाएगा कि चोरी सोमेश नें ही की है। जमीदार बोला अगर ऐसी बात है तो मैं द्वारपाल को भी अपनी हवेली से निकाल दूंगा। और तुम्हारे पिता को यहां से छोड़ दूंगा। बेटा अगर तुम सच बोल रहे हो तो।

जमीदार नें सोमेश को अपनी हवेली में बुलाया। वह अपनी बाईक पर बैठकर जमीदार की हवेली  में पहुंचा। जमीदार को प्रणाम कर बोला आप नें मुझे क्यों बुलाया अब क्या हुआ? जमीदार बोला जरा अपनी बाजू तो दिखाओ। उसकी बाजू में कहीं  चोट की निशानी  नहीं थी। जमीदार नें कहा अपनी टांग भी दिखाओ जैसे ही उसनें पैन्ट  ऊपर करी उसकी टांग पर पट्टी बंधी थी। उसकी पेंट का छोटा सा टुकड़ा भी विवेक ने संभाल कर रख दिया था जो  सोमेश ने नहीं देखा था। उसने अपनी पैंट की सिलाई  भी करवा दी थी।

सुमेश पकड़ा जा चुका था। द्वारपाल को जमींदार ने अपनी हवेली से निकाल दिया। उसने रामप्रसाद से माफी मांगी कहा मुझे माफ कर दो। आज से द्वारपाल के पद पर मैं तुम्हें नियुक्त करता हूं। तुम्हें ऐसे भी काम की तलाश थी। विवेक ने  अपनें बाबा को बताया कि इस कोयल  की मदद से मैं आपको छुड़ाने में कामयाब हुआ। मेरी मां के रूप में ही वह मुझे बचाने आई है। उसनें अपनी कोयल को चूम लिया। विवेक नें अपनें पिता को छुड़ा दिया था। जमीदार के महल में द्वार पाल के पद पर आसीन हो गया था। विवेक भी खुशी खुशी अपनें पिता के साथ रहने लगभग लग गया था।

(झपटू)

एक राजा था उसके एक बेटा था वह अपने बेटे को प्यार से झपटू बुलाता था जब वह छोटा था वह हर एक वस्तु को झपट कर प्राप्त कर लेता था। उसकी आदत बड़े होकर भी वही बनी रही। वह बहुत ही दयालु था।। एक बार राजा ने झपटू को अपने पास बुलाया और कहा कि अब तुम बड़े हो चुके हो। मैं तुम्हें हजार अशरफिया दे रहा हूं।  तुम  अगर 6 महीने के अंदर इसको डबल करके मुझे दोगे तब मैं समझूंगा कि मेरे बाद तुम ही मेरे राज्य की बागडोर संभालने में मेरी मदद कर सकते हो। तुम इस कार्य को करने में सक्षम नहीं हुए तो मैं राज्य की बागडोर और किसी और के हाथ में दे दूंगा। तुम्हारे चचेरे भाई को राज्य की बागडोर दे दूंगा। राज्य की बागडोर किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए जो ठीक ढंग से शासन चला सके। राजा का बेटा बोला मुझे आपकी बात मंजूर है। किसी और ने मुझसे यह बात कही होती तो मैं उस से छीना झपटी करके उसका राजपाट छीन लेता। मैं अपने माता-पिता का सम्मान करता हूं। आप मुझे प्रस्थान करने की आज्ञा दो।

राजा का बेटे ने अपने माता पिता के चरण स्पर्श किए और वहां से चला गया। वह चलते चलते  किसी दूसरे राज्य में पहुंच गया था। वहां पर एक राजा आदित्य नाथ के घर के बाहर बोर्ड देखकर रूक गया।  राजा नें ऐलान किया था कि जो कोई भी मेरी इकलौती बेटी की चुप्पी को तोड़ देगा उस व्यक्ति को वह मुंह मांगा इनाम देगा। राजा की बेटी का नाम था सुलक्षणा। जैसा उसका नाम था उसी के अनुरूप ही वह सुशील और शालीन थी। वह दो-तीन साल से किसी से बात नहीं कर रही थी।  झपटू राजा के दरबार में जाकर बोला  कहां है तुम्हारी बेटी? राजा की बेटी के पास गया और उसे बुलाने की कोशिश की मगर वह कुछ नहीं बोली।  झपटू ने राजा को कहा मुझे 15 दिन का समय दे दीजिए मैं आपकी बेटी को बुलवा कर ही दम लूंगा। एक  दिन झपटू नें राजा को कहा मैं आप की   बेटी को घुमाने बाग में ले जाता हूं। राजा की बेटी को बाग़ में ले गया। राजा की बेटी को बाग़ में ले जाते हुए दिन हो चुके थे। उसने चुप्पी नहीं तोड़ी थी।उसने राजा की बेटी को कहा कि मैंने आज तक झपटना ही सीखा है। जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता है तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है। मैं  प्यार से पूछ रहा हूं  तुम्हारी चुप्पी का क्या कारण है। तुम्हे किसी ने धोखा दिया है तो तुम मुझसे निसंकोच कह सकती हो। मै अपनी तरफ सें तुम्हारे लिए जो भी बन पाएगा मैं तुम्हारे लिए करूंगा। इसके लिए तुम्हें अपनी खामोशी तोड़नी ही पड़ेगी।तुम सीधे ढंग से नहीं मानी तो मैं तुम्हें उड़ा कर चंपत हो जाऊंगा। राजकुमारी डर गई बोली कि मुझे लगता है कि आप से मैं अपनी बात खुलकर कर सकती हूं। लेकिन आज तक मुझे किसी ने भी इस तरह से पूछने की कोशिश नहीं की। आज मैं आपको सारी बातें बता देती हूं। आप मेरे लिए एक मसीहा बनकर आए हैं। वह बोली मैं  तब तक अपनी चुप्पी छोड़ नहीं सकती जब तक मेरी शादी मेरे मनपसंद  साथी से नहीं हो जाती। झपटू ने कहा मुझे बताओ वह कौन है? वह बोली वह  राजकुमार किसी दूसरे राज्य का है। मैं उससे प्यार करती थी मगर उसने भी मुझे धोखा दिया। झपटू बोला उसने तुम्हे धोखा क्यों दिया? जब वह तुमसे इतना प्यार करता था।। वह बोली उसने मुझे कहा था कि मैं अपने पिता को एक दिन तुम्हारे पिता से मिलवाऊंगा। एक दिन जब वह अपने पिता को लेकर आ रहा था वह  हमारे घर में पहुंच चुका था। मेरे पिता उस समय से बाहर गए हुए थे। मैंने उसे और उसके पिता को ठहरने के लिए कमरा दे दिया। मैंने छिपकर उसके पिता की सारी बातें सुन ली। उसके पिता अपने बेटे से कह रहे थे कि तुम तो कहती थी कि वह एक बहुत बड़ा राजा है। यह तो मुझे कोई बड़ा राजा नहीं लगता। शादी के बाद तुम  इनका सारा राजपाट हथिया लेना। इसका सारा रुपया पैसा तुम्हारा हो जाएगा।

राजा का बेटा कुछ कहनें ही जा रहा था तब तक मैं कमरे में पहुंच चुकी थी। मैंने उसके पिता की सारी बातें सुन ली थी। मैंने अपने पिता को उस राजकुमार चित्र सेनकी  सारी बात बताई कि वह मुझे बहुत प्यार करता है। मेरे पिता ने कहा कि ठीक है। वह बोली पिताजी पर मुझे इसके पिता की यह  एक बात अच्छी नहीं लगी मैंने सब  कुछ दिया  जो वह अपने बेटे से कह रहे थे कि शादी के बाद इसकी सारी धन-दौलत हमारी हो जाएगी। सुलक्षणा के पिता बोले उसके पिता को एक बहू नहीं धन दौलत चाहिए। उस राजकुमार ने सुलक्षणा को कहा मैं तुम्हें बहुत जल्दी लेने आऊंगा।  राह देखते देखते 3 साल हो गए  मगर वह आज तक लौट कर नहीं आया। राजकुमारी सुलक्षणा बोली सब लड़के एक जैसे होते हैं तुम्हें उस राजकुमार को ढूंढना चाहिए था तुम तो बहुत ही कमजोर इंसान निकली। तुम अगर सचमुच में ही उससे इतना अधिक प्यार करती हो तो उसे ढूंढ कर लाती। सुलक्षणा बोली मैं तो डरती थी जब झपटू बोला आज तक शायद उसने शादी कर के घर भी बसा लिया होगा। वह बोली कृपया करके  आप मेरे साथ चलिए उसके राज्य में चल कर देखना चाहती हूं कि और उससे पूछना चाहते हूं कि तुमने मुझे धोखा क्यों दिया। वह बोला ठीक है अगर उसने शादी नहीं की होगी तो मैं विश्वास दिलाता हूं मैं तुम्हारे प्यार को मिलानें में तुम्हारी मदद करूंगा। इसके लिए तुम्हें मेरे साथ चलना होगा राजकुमारी सुलक्षणा बोली ठीक है तुम मेरे साथ चलो। वह उसे एक नगर में ले गई जहां के राजा का बेटा  चित्र सेनउसके साथ प्यार करता था झपटू ने कहा कि तुम राजा के सामने एक नर्तकी बनकर जाना और कहना कि हम नाच गाना पेश करना चाहते हैं। वह अपने प्रेमी राजा  के महल में पहुंच गई थी।चित्र सेन के पिता राजा ने कहा कि आज रात को हम तुम्हारा नाच गाना देखेंगे। रात को उसने राजा को नशे की गोलियां सुंघा दी। वह तो सो चुका था। नर्तकी सुलक्षणा राजा चित्रसेन के पास जाकर बोली आपने मुझे पहचाना नहीं। वह उसे देखकर चौका। तुम यहां कैसे। सुलक्षणा बोली तुमने मुझे धोखा क्यों दिया? राजा का बेटा बोला कि मेरे पिता ने मुझसे शर्त रखी थी अगर तू किसी और लड़की के साथ शादी करेगा तो मैं तेरी मां को लेकर सदा सदा के लिए यह राजपाट छोड़कर चला जाऊंगा।  तुम्हें मेरी पसंद की लड़की से ही शादी करनी होगी नहीं तो तुझे कसम है तू अपनी मां से कभी बात नहीं करेगा। क्या करूं? मैं अपनी मां से बेहद प्यार करता हूं। उनसे कभी जुदा नहीं हो सकता। मैं उनका सम्मान करता हूं इसलिए मैंने सोचा चलो अपने प्यार की कुर्बानी देना ही ठीक है।

मेरे पिता ने कहा कि  उस लड़की के पास कुछ ज्यादा धन दौलत नहीं है तुम्हे उस को भुला ही होगा। मैं तुम्हारी शादी कभी ऐसी लडकी से नहीं करुंगा जिस के पास धन दौलत न हो। मैंने अपने पिता को समझाने की कोशिश की कि मुझे धन दौलत से नहीं उससे प्यार है। मैं तुम्हारे पास आने ही जा रहा था तभी मेरे पिता ने मुझे कसम देकर मुझे तुम से मिलने से रोक दिया था। सुलक्षणा बोली

मैंने अपने पिता को कहा कि अगर यह लड़का मुझसे प्यार करता है तो वह मुझसे बिना मिला नहीं जा सकेगा।  तुम जब मुझसे  बिना मिले चले गए तो मैं बहुत ही उदास हो गई। मैंने सोचा तुम भी शायद कहीं ना कहीं मुझे नहीं मेरी धन दौलत से प्यार करते हो। राजकुमार चित्रसेन बोला मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता था। पिता ने मुझे कसम देकर रोक दिया था। मैंने भाग्य पर सब कुछ छोड़ दिया। मेरे पिता ने मेरी शादी एक धनी सेठ की लड़की चुन्नी से मेरा रिश्ता तय कर दिया। 15 दिन बाद मेरी शादी है। सुलक्षणाा बोली अब तुम चिंता मत करो मैं अपने एक दोस्त के साथ यहां आई हूं। मैं  तब तक तुम्हारी होने वाली पत्नी से मिल कर आती हूं। तुम तब तक मेरा इंतजार करना। राजकुमारी खुश हो गई थी  क्यों कि उस के प्रेमी नें शादी नहीं की थी। वह तो सच में  उसे बेहद प्यार करता था। वह तो अपनी मां के प्यार के कारण उस से नहीं मिल सका। राजकुमारी  नें सुलक्षणा से कहा तुम सच में भी मेरे भाई हो। तुम्हारा जैसा भाई सबको दे।झपटू बोला चलो उस धन्ना सेठ की लड़की से मिलने चलते हैं। सुलक्षणा को चित्र सैन ने बताया कि जब वह अपनी मां से बातें कर रहा था तो उसकी मां ने कहा बेटा तू अपने पिता की पसंद से ही शादी कर ले। मैं तो तुम्हारी शादी तुम्हारी पसंद की लड़की से ही कराना चाहती थी। तुम्हारे पिता ने धन्ना सेठ के बारे में मुझे बताया कि उसके पास बहुत ही धन दौलत है। शादी के बाद उसकी सारी धन-दौलत हमारी हो जाएगी। तुम सासु मां बनकर ऐश करना।

सुलक्षणा को सारा माजरा समझ आ चुका था वह धन्ना सेठ की लड़की को मिलने गई तो वहां जाकर हैरान हो गई। धन्ना सेठ की बेटी चुन्नी उसके साथ ही पढ़ती थी। वह सुलक्षणा की सहेली थी। सुलक्षणा चुन्नी से नाराज होकर बोली तुम चुपचाप  ही शादी के बंधन में बंधनें जा रही थी मगर तुमने मुझे नहीं बुलाया। चुन्नी बोली मुझे तुम्हारा पता मालूम नहीं था। 8 साल बाद आज हम मिले हैं। वह अपनी सहेली को  घर के अंदर ले गई। उसने उसे एक कमरा दिया। सुलक्षणा ने चुन्नी को बताया कि मैं अपने  एक दोस्त को साथ लेकर  यहां आई हूं।  चुन्नी बोली उसे भी अन्दर बुला लाओ। तीनों साथ इकट्ठे बैठकर बातें कर रहे थे।सुलक्षणा बोली तुमने शादी का फैसला तो कर लिया है। शादी एक ही बार होती है। तुमने सोच समझकर ही लड़के को देखा होगा।चुन्नी बोली तुम्हें तो पता है मेरे मां बाप मेरी शादी ऐसे लड़के से करना चाहते हैं जिसके पास काफी धन दौलत हो। मेरे पिता के पास  दहेज देने के लिए कुछ नहीं है।

एक दिन जब चित्रसेन के पिता मुझे देखने यहां आ रहे थे तो मेरे पिता को उस के बारे में सब पता चल गया। उन्होंने कहा देख बेटा अगर तू इस राजकुमार से शादी करना चाहती है तो तुझे मेरी सारी बातें माननी होगी जो मैं कहता हूं। चुन्नी बोली पिताजी साफ-साफ बोलो। आप क्या कहना चाहते हो? वह बोला मेरा नाम ही धन्ना है। मेरे पास तुझे देने के लिए कुछ नहीं है। जो कुछ है सो तेरा है। यह  शब्द उस चित्र सेन के पिता ने सुन ली थी।जो कुछ है सो तेरा है यह शब्द सुन कर  लडके वाले बहुत खुश हुए। जैसा नाम वैसे ही विचार।

चुन्नी को समझते  देर नहीं लगी इसलिए ही वह अपने बेटे का रिश्ता  चुन्नी से कराना चाहते हैं। कि वह एक धनी परिवार की लड़की है। क्योंकि सके पिता का नाम धन्ना सेठ है। उसकी बातों को सुन कर मुस्कुरा कर सुलक्षणा बोली तुम बहुत ही भोली हो।

चित्रसेन  भी बहुत ही नेक इंसान है। वह अपने पिता की बात  को कभी नहीं  टालते हैं। उसके पिता तुमसे नहीं तुम्हारी धन दौलत के चक्कर में तुमसे शादी करने के लिए तैयार है। तुम्हारे पिता ने कहा कि जो कुछ मेरा है वह सब कुछ तुम्हारा ही होगा। राजा के पिता नें सोचा इसका नाम धन्ना है। इसके पास बहुत सारी धन-दौलत होगी। मेरे पिता ने बताया जब  तुम हमें मिली थी तब से हम दोनों पति-पत्नी सुखी हो गए थे। इस कारण हमने अपना नाम धन्ना सेठ रख लिया था।

मैं तो एक गरीब इंसान हूं।

उसकी इस बात को सुनकर झपटू हैरान हो गया बोला तो चलो हम सब मिलकर इस योजना को अंजाम देते हैं। चित्रसेन तो मेरी दोस्त  सुलक्षणा से  ही प्यार करता था। उसके पिता ने अपनी मां की कसम देकर कहा कि तुम्हें वह शादी करनी पड़ेगी जहां हम तुम्हारा रिश्ता कर  रहें हैं।  अपनी मां के सम्मान के कारण चित्रसेन अपनें पिता से कुछ नहीं बोला। झपटू झूमकी से बोला तुम बहुत सुंदर हो। झूमकी भी उसके मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर फूली नहीं समाई।  झूमकी को सारी सच्चाई मालुम हो चुकी थी।  झपटू झुमकी से बोला मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं। तुम जैसी भी हो अमीर हो या गरीब मुझे  स्वीकार है। वह तो अपने लिए ऐसा ही पति तलाश  कर रही थी जो उसके धन से नहीं बल्कि उससे सच्चा प्यार करे। झुमकी बोली मुझे क्या करना होगा? वह बोला शादी वाले दिन तुम अपनी सहेली के साथ साथ नकाब ओड कर ही रहना। जब फेरों का समय आएगा दुल्हन की जगह पर सुलक्षणा बैठेगी।  झूमकी के पिता को भी सारी बातें समझा दी। । सुलक्षणा  नें चित्र सेन केपिता को कहते सुना लिया था कि  हम बारात को तभी विदा करा कर ले जाएंगे जब तक वह कबूल नहीं करते  कि जो कुछ धन्ना सेठ का है वह अपने बेटी के नाम किया जा सकता है। दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवा कर ही बारात को ले जाएंगे। ।इसलिए झूमकी को पहले ही  समझा बुझा कर बहुत चौकन्ना कर दिया। जब बारात ले कर आएगे तो झूमकी की जगह पर सुलक्षणा को  बिठाना। सुलक्षणा खुश थी उस की शादी अपने मनपसंद साथी से होनें जा रही थी।  झपटू नें झुमकीके पिता को कहा तुम भी शर्त रखना तुम्हें भी इन कागजों पर हस्ताक्षर करनें होगें। झपटू की बात सुन कर झूमकी के पिता हंसने लगे बोले मुझे हस्ताक्षर करनें में कोई ऐतराज नहीं होगा। जो कुछ मेरे पास है वह मेरी बेटी का ही होगा। मेरे पास तो नाम के सिवा कुछ नहीं है। इसी नाम को सुन कर ही तो उन्होंने हमारी बेटी से रिश्ता जोड़ा। झूमकी के पिता नें सारी कहानी सुना दी जब एक दिन वह चित्र सेन के पिता से जब ट्रेन में मिले तो उन्होने पूछा तुम कौन हो?। झूमकी के पिता नें बता दिया कि उनका नाम धन्ना सेठ है। राजा चित्र सेन के पिता यह सुन कर खुश हुए। आप किसी दिन हमारे महल में आना। झूमकी के पिता बताने ही वाले थे कि वह धन्ना नाम उन्हें किस नें दिया तभी । वह ट्रेन से उतर गए उनका स्टेशन आने वाला था। किसी दिन फिर मिलनें का वायदा कर एक दिन जब धन्ना सेठ राजा के दरबार में पहुंचे तो वह  अपने बेटे से बोल रहे थे किे मैं तुम्हारा विवाह तो धन्ना सेठ की ही लड़की से करुंगा जिसका नाम ही धन्ना सेठ हो वह कितना धनी होगा। यह बात सुन कर मैं हक्का-बक्का रह गया। उस दिन मैनें फैसला कर लिया वह अपनी बेटी की शादी यहीं होनें देगें। अपनी जुबान पर ताला लगा देगें। अपनी पहचान नहीं बताएंगे।झपटू को उन्होने  बताया कि मैं तो एक गरीब इन्सान हूं। एक दिन मुझे एक रईस व्यक्ति का पर्स मिला। उस में उस की सारी सम्पति के कागज और न जानें कितने ढेर सारे रुपये थे मगर झूमकी के पिता नें वह सारे के सारे रुपये उस रर्ईस सेठ को  लौटा दिए। उस रर्ईस नें झूमकी के पिता की इमानदारी से खुश हो कर उसे धन्ना सेठ नाम दे दिया। तभी से वह सेठ धन्ना सेठ कहलानें लगे।

झपटू बोला तुम भी यह शर्त रखना कि और कहना कि एक शर्त हमारी भी है। आप को हमारी शर्त मंजूर है तो हमें भी आप की शर्त मंजूर है। चित्र सेन का पिता बोला बताओ कि क्या शर्त है। हमारे यहां रिवाज है कि जब तक शादी रितीरिवाज के अनुसार सम्पन्न नहीं होती तब तक हम दुल्हन का घुंघट नहीं उठाते। चित्र सेन का पिता बोला बस इतनी सी बात यह हमें मंजूर है।शादी के दिन झुमकी की जगह सुलक्षणा बैठ गई। वायदे के मुताबिक चित्र सेनके पिता नें कहा तुम्हे भी इस कागज पर हस्ताक्षर करनें होगें।  जो कुछ तुम्हारा था वह  अब भी तुम्हारी बेटी का होगा। धन्ना सेठ नें खुशी खुशी उस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए। धन्ना सेठ नें कहा आपने भी वायदे के मुताबिक आप भी मेरी बेटी का घुंघट नहीं उठाएंगे जब तक शादी के फेरे नहीं हो जाते। फेरे हो चुके थे। फेरों के पश्चात दुल्हा दुल्हन को धन्ना सेठ नें विदा किया। सभी खुश थे। शहनाईयों की आवाजें चारों ओर गूंज रही थी। आशीर्वाद लेनें के लिए जब सुलक्षणा नें अपना घुंघट ऊपर उठाया तो चित्र सेन के पिता बोले तुम मेरी बहु नहीं हो। सुलक्षणा बोली आप के न मानने से क्या होता है? आज से चित्र सेन ही मेरे पति हैं। आप हम दोनों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। आप नें अपनें बेटे कि शादी किसी और से करनें का फैसला लिया था। मैनें अपने प्यार को प्राप्त कर लिया है। आप की लालची प्रवृति के कारण आप को सुधारने का प्रयत्न कर लिया था। आप को धन की चकाचौंध नें अंधा कर दिया था। वह बोला धन्ना सेठ की बेटी नें अपनें दस्तावेज मेरे हवाले कर दिए थे। सुलक्षणा बोली उनके पास देनें के लिए तो कुछ नहीं था जो आप को देते। उनके बेचारों नें तो अपनी सच्चा दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए थे। धन्ना सेठ तो नाम का  ही धनी था। चित्र सेन के पिता को जब सारी सच्चाई  पता चली तो वे हाय! कह कर हाथ मलनें  लगे। चित्र सेन बोला पिता जी अब मेरी पत्नी ये है अब तो आप हमारे दोनों को आशीर्वाद दे ही डालो नहीं तो मैं इस राजकुमारी के साथ चला जाऊंगा क्यों कि इस के पिता भी एक राजा है। राजा बोला बेटा मुझे माफ कर दो बेटा मुझे छोड़ कर कहीं मत जाओ।

झपटू नें भी झुमकी को अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया।  झपटू सुलक्षणा और उसक पतिको ले कर   राजदरबार में आया। अपनी बेटी को बोलता देख कर  सुलक्षणा के पिता बहुत खुश हुए बोले असली मायनों में तो तुम भी  आज से मेरे  बेटे हो। सुलक्षणा तुम्हारी बहन है। मैं तुम्हें 10हजार अशर्फियां देता हूं।उन्होंनें धूमधाम से अपनी बेटी की शादी चित्र सेन से कर दी।

उन्होनें झुमकी को भी आशिर्वाद दिया। वहां से विदा हो कर जब झपटू अपने पिता के पास आया तो उस के पिता हैरान हो गए उनका बेटा अपना वायदा पुरा करनें मे सफल हो चुका था। उन्होंनें धूमधाम से अपनी बहु को आशिर्वाद दे कर गले से लगा लिया। झुमकी भी रानी बन कर फुला नहीं समा रही थी।

वनस्पति वैज्ञानिक हितेश

एक बच्चा था उसका नाम था। हितेश। वह बहुत ही शरारती था ।  वह प्रकृति की गोद में अर्थात् जंगल में पैदा हुआ था । हितेश की नानी ने उसके पापा को कहा था कि सविता मेरे ही घर पर बच्चे को जन्म दे गी। तुम इसको वहां पर छोड़ देना अभी हितेश के पैदा होने में पूरा एक महीना शेष था ।जिसने जल्दी आना होता है वह तो आकर ही रहता है सविता के पति अपनी पत्नी को अपनी ससुराल छोड़ने जा रही रहे थे कि आधे रास्ते में ही सविता को प्रसव पीड़ा होने लगी। दूर-दूर तक डॉक्टर का कहीं नामोनिशान ही था तभी रास्ते में उन्हें एक बुढ़िया दिखाई दी बड़ी मुश्किल से सविता के पति ने उस बुढ़िया को सारी बात बताई ।वह दूसरे गांव में जाना चाह रही थी सविता के पति ने उसको अपनी गाड़ी में लिफ्ट दे दी थी। वह दाई का काम जानती थी उसने रास्ते में ही प्रसव करवाया और  आठ किलोमीटर दूरी पर एक अस्पताल था वहां पर जाकर बच्चे की नाल कटवाई ।सौरभ ने अपने बेटे का नाम हितेश रखा था ।प्रकृति की गोद में ही वह बालक जन्मा था ।यहां तक की अब हितेश बारह साल का हो चुका था। उसका पढ़ने में जरा भी मन नहीं लगता था ।वह हरदम बाग-बगीचों में फूलों की क्यारियों में रहता था ।उसे प्रकृति की गोद में बैठना बहुत ही अच्छा लगता था ।दो-तीन घंटे तक पक्षियों की मधुर मधुर गुंजन के साथ कभी फूलों की क्यारियों में कभी हरि हरी-भरी वादियों में उसे टहलना बहुत ही अच्छा लगता था। उसके माता-पिता को इसका इस तरह से भटकना बहुत ही बुरा लगता था ।जब उसके पापा और बच्चों को किताबें पढ़ते देखते तो, उन्हें अंदर ही अंदर टीस पैदा होती कि मैंने सब कुछ कर के देख लिया परंतु मेरा बेटा कभी नहीं पढता है इस कारण कभी-कभी अपनी पत्नी पर इतनी जोर से चिल्लानेे लगते थे और कहने लगते थे तुम्हारे लाड प्यार ने  तुम्हारे बेटे को बिगाड़ कर रख दिया है। वह तो हमारी बात जरा भी बात नहीं मानता है।यह अपनी परीक्षा में पास भी होगा या नहीं ।उसके पापा उसके भविष्य को लेकर बहुत ही चिंतित रहते थे। एक दिन स्कूल से आने के बाद वह चुपचाप टेलीविजन देखने दौड़ पड़ा। टेलीविजन पर बच्चों की फिल्म आ रही थी ।उसके पापा ने उसे दो बार आवाज लगाई ।उसने अपने पापा की आवाज भी नहीं सुनी। उसके पापा को गुस्सा आ गया था। उसने दो तीन चांटे अपने बेटे को जड़ दिए और बाजू पकड़कर कहा जा मेरे घर से निकल जा ।मेरे नसीब में कैसा बेटा लिखा है।।मैंने पिछले जन्म में ना जाने कैसे कर्म किए थे जिसका आज मै यह परिणाम भुगत रहा हूं। उसने हितेश को बालकनी से बाहर निकाल दिया था ।शाम का समय था उसके पिता पर इतना पागलपन सवार था उन्होंनें यह भी नहीं देखा कि बाहर अंधेरा होने वाला था। हितेश की मां उसको अंदर ले जाने वाली थी। सौरभ ने अपनी पत्नी को भी अंदर बंद कर दिया और कहा कि आज  तुम्हारे बेटे के लिए दरवाजा नहीं खुलेगा। मासूम सा हितेश सोच ही नंही पा रहा था मेरे पिता ने मुझे इतनी कड़ी सजा क्यों दी? मैं टैलिविजन में जानवरो से सम्बन्धित फिल्म देख रहा था। मैं फिल्म देख तो रहा था लेकिन वह जानकारी वाली फिल्म थी। मै थोड़ी थोड़ी पढाई भी अवश्य करता हूं। उस ने सोचा मेरी मां तो मुझे अवश्य ही मना कर अन्दर ले कर जायेगी और अपने हाथों से मेरे आंसू पौंछेगी। उसे क्या मालूम था कि उसकी मां को उसके पापा ने कसम दे दी अगर तुम ने हितेश को अन्दर बुलाया तो मैं तुम से कभी भी बात नंही करूंगा। यह बात उसके पापा ने गुस्से में कही थी। वह गैलरी में बैठ कर अपनी मां के आने का इन्तजार कर रहा था।

जब बहुत देर तक उसकी मां उसको मनाने नंही आई तो वह अपने आप को रोक नंही पाया। उसके कदम बाहर की ओर बढ गए। वह अंदर ही अंदर रो रहा था।  वह सोच रहा था कि मेरे पापा बहुत ही गंदे हैं क्या कोई पिता अपने बच्चे के साथ ऐसा कर सकता है? शायद यह मेरे असली पिता नहीं है तभी उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया है शाम के छ: बजे थे।  हितेश घर से निकल चुका था। चलते -चलते वह दूर सुनसान जंगल में पहुंच गया। वहां पर पक्षियों की चहक से सारा वातावरण गूंज रहा था ।वह काफी देर तक चिड़ियों और तितलियों को निहारता रहा तभी उसे सामने से आता हुआ हाथियों का झुंड दिखाई दिया ।वह एक  हाथी को देख कर मुस्कुराया क्योंकि एक बार उसने हाथियों के झुंड मे से हाथी के एक छोटे से बच्चे को बचाया था ।कुछ लोग एक छोटे से हाथी के बच्चे को पकड़ने के लिए चिड़ियाघर में रखने के लिए ले जा रहे थे ।उन हाथियों ने हितेश को पहचान लिया । वे हितेश को अपनी सूंड से चाटने  लगे। रात भी होने को आई थी। उसे रात को ठंड भी लग रही थी । सर्दियों के दिन थे । उसकी जेब में माचिस की डिबिया थी ।जब उसके पिता ने हितेश को बाहर निकाला था उसकी मा हितेश को आवाज दे रही थी कि बेटा मुझे माचिस देकर जा। मैं धूप जलाना चाहती हूं । उसके पापा ने तो उसे एक झटके से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

रात को उसने  एक सुनसान पेड़ के नीचे आग जलाई। हाथियों ने उसके सामने घास पुस का ढेर लगा दिया था ।उसने आग जलाई तब उसे थोड़ा गर्मी का आभास हुआ । हितेश  को अब तो भूख भी लगने लग गई थी ।हाथियों के साथ वह अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था ।इसी तरह उसने एक दिन व्यतीत कर दिया। उसे भूख बहुत जोर की लग रही थी। उस दुर्गम जंगल में उसे खाना कहां मिलता ?सभी बंदरों, ने उसे  खाने के लिए फल फैंके क्योंकि वह सभी जानवरों के साथ बहुत ही घुल मिल चुका था। सभी जानवरों और पक्षियों को वह अपनी मधुर मुस्कान से अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उस ने कंदमूल फल खाकर अपना पेट भर लिया था। । उसने इसी तरह  दो दिन व्यतीत किए। तीसरे दिन वह सोचने लगा कि इस तरह कैसे काम चलेगा।?मैं अपने पिता के पास तो लौट कर नहीं जाऊंगा। सोचने लगा कुछ ना कुछ तो करुंगा ही। अंधेरा होने को आया अभी थोड़ी ही दूर पर उसे शेर की दहाड़ सुनाई दी ।शेर ने किसी जानवर को मार दिया था। शेर को कुछ ही दूरी पर खड़े देखकर उसके तो रोंगटे खड़े हो गए  . वह डर से थर थर कांपने लगा हाथियों ने उसे डरते हुए देख लिया था ।हाथियों ने उस पर खूब घास पूस की बिछा दी।

हितेश उस   घास फूस के नीचे छुप गया था । हाथियों ने उसके ऊपर इतनी घास फेंक दी थी की उसका एक बिस्तर जैसा बन गया था। उसे वहीं पर नींद आ चुकी थी जब उसकी आंख खुली तो सुबह हो चुकी थी ।सूरज की रोशनी उसकी आंखों पर पड़ी तो वह जल्दी में उठा और सोचने लगा मेरी मां मुझे ना पाकर बहुत ही उदास होगी ःमैं क्या करूं ?वह उठा और रास्ते में चलने लगा ।चलते चलते हुए एक सड़क पर निकल आया। रास्ते में एक जीप को जाते हुए उसने देखा ।वह जीप बहुत ही तेजी के साथ चल रही थी ।उस जीप  में बहुत सारी किताबें थी। उस जीप में से चार पांच किताबें नीचे गिर गई थी ।जीप तो जा चुकी थी मगर उसे चार-पांच किताबें पढ़ने को मिल गई। वह सोचने लगा ना जाने यह किताबे किस व्यक्ति की है?वह बार-बार किताबें पढ़ने लगा किताबों में उस संस्थान का नाम और पूरा पता छपा था ।उसे पता चल चुका था कि यह किसी संस्थान की है ।उसने निश्चय कर लिया कि वह उस संस्थान का पता करके वह उन किताबों को लौटाने जाएगा ।उन किताबों में प्रकृति से संबंधित काफी तस्वीरें थी ।पेड़ पौधे ,जंगली जीव जंतु   सम्बंधित जानकारियां थी उसने एक मारूति कार वहां से गुजरते हुए देखी ।उसने अपने हाथ से उस कार वाले को ईशारा किया। उस कार के मालिक ने गाड़ी रोक कर कहा कहां जाना चाहते हो? हितेश नेे उस संस्थान का नाम लिया तब उस कार चालक ने कहा कि हम भी उसी शिक्षा संस्थान में जाना चाहते हैं क्योंकि वहां पर उनका बेटा भी उसी स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहा है ? ,हितेश ने झूठ मूठ ही कह दिया कि वह भी उसी स्कूल में पढ़ता है ।कार चालक ने उसे कहा बेटा बैठ जाओ तुम भी मेरे साथ चलो अब तो उसे उस

शिक्षण संस्थान पहुंचने में जरा भी मुश्किल नहीं आई। वहां जाकर सबसे पहले वह उस शिक्षा संस्थान के प्रधान अध्यापक से मिला और उसे सारी बात बताई कि आप की किताबें उस गाड़ी में से गिर गई थी ।मैंने गाड़ी का नंबर भी नोट कर लिया था ।मैं आपकी किताब लौटाने आया हूं।उस प्रधाना अध्यापक ने उसे कहा कि तुमने यह किताबें पढ़ी भी या  यूं ही लौटा रहे हो। हितेश बोला अंकल मुझे पढ़ाई करना जरा भी अच्छा नहीं लगता। आप की किताबों ने तो मेरा मन मोह लिया। आपके यहां प्रकृति से संबंधित विषय, जानवरों से संबंधित विषयों की जानकारी भी दी जाती है।मुझे तो पेड़-पौधों जानवरों से बहुत ही लगाव है ।मेरे पापा जब मैं उन्हें काफी देर तक निहारता रहता हूं तो मेरे पापा मुझे पागल कहते हैं ।मेरे पिता ने तो मुझे  पढाई न करने पर जोरदार चांटा मारा और कहा कि तुम मेरे घर से निकल जाओ ।मैं तो प्रकृति से संबंधित फिल्म देख रहा था ।मेरे पापा ने गुस्सा करके मुझे कहा कि मेरे घर से निकल जाओ। आप ही बताओ क्या मैं गलत था ? मैं जंगल में चला आया। वहां पर तीन दिनों तक जंगली जीव जंतुओं और फूलों की क्यारियों में मैं भूल ही गया कि मुझे तीन दिन तक हो चुके हैं। चौथे दिन मुझे एक लड़के के पिता मिले जिन्होंने बताया कि मेरा बेटा भी वही शिक्षा ग्रहण कर रहा है ।वह भी मुझे यहां पर लेकर आए । अंकल मैं आपकी किताबे  लौटाकर फिर कंही पर चला जाना चाहता हूं। प्रधानाध्यापक ने कहा बेटा तुम्हारे पिता ने तुम्हें घर से यूं ही निकाला ।वह उनकी बहुत बड़ी भूल थी । शायद तुमने इस संस्था में प्रवेश लेना था इसलिए तुम बिल्कुल निराश ना हो ।तुम यहां शिक्षा ग्रहण कर सकते हो नहीं तो तुम्हें अपने घर वापिस लौट जाना चाहिए। उस प्रधान अध्यापक जी ने उसे कहा देखो बेटा यहां पर हमने इतनी वाटिकाएं लगाई है ।और जानवरों ू के रहने के लिए अभ्यारण्य भी बनाए है। तुम शाम के समय उस वाटिका में आकर और अभयारण्य में घूमकर तरोताजा महसूस कर सकती हो ।हमारे पास प्रकृति से संबंधित  अनेक विषय है। जो विषय तुम्हें रुचिकर लगे तुम वही पढ़ सकते हो ।हम शाम के समय बच्चों को टेलीविजन के द्वारा यह सब दिखाते हैं। शिक्षा केंद्र में उसका इतना मन लग रहा था वह बोला अंकल यह संस्थान मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है।यहां पर मेरी रुचि के अनुसार विषय है परंतु अचानक हितेश उदास हो गया और बोला अंकल आप मेरे बारे में मेरे पिता को बता देंगे तो वह मुझे यहां से निकाल कर ले जाएंगे प्रधानाचार्य ने उसे विश्वास दिलाया कि बेटा ऐसा कदापि नहीं होगा ।तुम अपने घर का पता मुझे लिखवा दो।

प्रधानाचार्य ने हितेश के पिता को फोन करके कहा कि आपका बेटा हमारे शिक्षा संस्थान में है। आपने अपने बेटे को घर से निकाल कर अच्छा नहीं किया। आपको अपने बेटे की इच्छा को देखते हुए किसी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए थी । मेरा बेटा पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगा रहा है ?आपने तो बिना उसकी राय जाने एकदम फैसला सुना दिया और उस बारह साल के बच्चे को बाजू से पकड़ कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह तो शुक्र करो कि आपका बेटा सही सलामत है ।उसे कुछ भी हो सकता था  ।वह एक घने जंगल में पहुंच चुका था। आपके बेटे को प्रकृति और पेड़ पौधों और जंगली जानवरों में से इतना अधिक लगाव है।मैंने उसकी इच्छा को देखते हुए ही उसे ऐसे विषय चुनने के लिए प्रेरित किया है और आपको यह सुनकर हैरानी होगी कि आपका न पढने वाला बेटा छः घंटे से अपनी किताबें पढ़ रहा है। आप अब तो उसको देखकर हैरान रह जाएंगे ।उसका यह चमत्कार किसी देवी शक्ति से कम नहीं ।जंगल में उसने कैसे जंगली जानवरों के बीच अपने आप को बचाया। जब उसकी मां को पता चला कि हितेश किसी शिक्षा संस्थान में पहुंच चुका है वह बहुत ही खुश हुई। वह सोच रही थी कि मेरे पति ने उसे घर से निकाल दिया था। उसने अपने पति से तब से लेकर बात भी नहीं की थी ।जब उसके पति ने उसे कहा कि तुम्हारे बेटे का पता चल चुका है चलो दोनों चल कर उसे देख आते हैं ।    माता-पिता शिक्षा संस्थान में आकर उसे मिले अब तो हितेश के पिता को यह महसूस हो चुका था कि मैंने अपने बच्चे पर बिना सोचे समझे उसे घर से निकाल दिया ।वह अब अपने आप को कोसने लगे ।मेरे हाथ टूट क्यों नहीं गए?मैंने इन हाथों से अपने बेटे को मारा और मारा ही नहीं उसे घर से बाहर निकाल दिया था। उन्होंने सोचा की जब गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो हितेश अपने आप घर आ जाएगा परंतु कहीं नं कहीं अपने बेटे को घर से निकालने के बाद वह बहुत ही बुरा महसूस कर रहे थे। उन्होंने पुलिस वालों को भी सूचना दे दी कि हितेश कहीं चला गया था ।हितेश के पापा ने पुलिसवालों को फोन करके बता दिया था कि हमारा बेटा किसी शिक्षा संस्थान में पहुंच चुका है हितेश के माता-पिता उस शिक्षा स्थान में जाकर उससे उस उच्च शिक्षा संस्थान में मिले । हितेश को  अपनी पढ़ाई करते देखकर उसके पिता पिता बहुत खुश हुए बोले बेटा ,मुझे माफ कर दो मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ नहीं सका ।मुझे लगता था कि तुम सारा दिन इधर से उधर मटरगस्ती करते रहते रहते हो। मुझे यह मालूम नहीं था कि तुम इस प्रकृति की अमूल्य धरोहर के साथ लुत्फ उठा रहे थे ।हमने तुम्हारी भावनाओं को बहुत ही ठेस पहुंचाई है बेटा अब जो तुम करना चाहते हो वह करो। मैं तुम्हारे काम में कभी भी हस्तक्षेप नहीं करूंगा ।आगे चलकर हितेश एक बहुत ही बड़ा वनस्पति वैज्ञानिक बना।

हाय! रे मानव”(कविता)

10/3/2019

वह दिन भी थे कितनें प्यारे।

गांव में थे हरे भरे खेत हमारे।।

खेतों में अब चारों ओर बन गए मकान।

खेत हो गए बिल्कुल उजाड़ समान।।

बच्चे जहां खलियान में सुबह से शाम तक धमा चौकड़ी मचाते थे।

सारा दिन खेल खेल कर नहीं उकताते थे।।

खलिहानों में भी  अब तो बन गए  हैं मकान।

बुजुर्गों के रहे सहे स्वपन भी हो गए नाकाम।।

जहां चारों और पक्षियों के कलरव  और मोरों की गूंजन थी सुनाई देती।

चारों तरफ  अब अंधेरे की काली परत ही छाई रहती।।

जहां सुबह उठते ही बैल, और हल लेकर किसान सारा दिन खेतों में था दिखाई देता।

चारों और दूर दूर तक खेतों में  अब कोई नहीं दिखाई देता।।

खेतों में अब कोई नहीं करता है काम।

बुजुर्ग और परिवार के सदस्य भी हो गए हैं परेशान।।

हर कोई सुबह उठने का नाम नहीं लेता है।

हरदम बैठे-बैठे दादागिरी किया करता है।।

मिलजुलकर जहां पहले  स्त्रियाँ करती थी  घर के सारे काम।

अकेली खुश हो कर करती है  अब  दुआ सलाम।।

बुजुर्गों के संस्कार सारे मिट गए।

उनके समृति चिन्ह भी अब घर से हट गए।।

युवक भी हल छोड़ कर नौकरी की तलाश में शहर को   निकल पड़ा।

धन कमानें की चकाचौंध में अपना आज बिगाड़ पड़ा।।

जहां चारों ओर थी हरियाली ही हरियाली।

चारों तरफ अब आपाधापी  है छाई।।

सारी की सारी फसलें बन्दरों और सुअरों ने उजाड़ खाई।

रही सही कसर किसानों नें जहरीली खाद डाल कर गंवाई।।

जहां सब का था एक ही सपना।

खुशहाल हो गांव का हर कोई अपना।।
बच्चे और परिवारों में एकता समाप्त हुई।
हाय! हर घर घर के गांव की ये क्या दुर्दशा हुई।।

गांव के हर युवक और बुजुर्गों  का है अब यही स्वप्न।

शहर या गांव में अकेला रह कर रहें अपनी धुन में मग्न।।

अपनें पराए

किसी गांव में मोनू और सोनू दो भाई थे। मोनू अपने परिवार में बड़ा बेटा था। सोनू छोटा। मोनू और सोनू के माता-पिता नहीं थे। मोनू अपने भाई को बहुत ही प्यार करता था। वह उसकी आंखों में कभी भी आंसू नहीं देखना चाहता था। उसने बचपन से ही अपने भाई को मां और बाप दोनों का प्यार दिया था। वह अपने भाई को पढ़ा लिखा कर  डाक्टर बनाना चाहता था। वह उसकी हर एक इच्छा को पूरी करता था उसको मेहनत मजदूरी  करके उसको पढ़ा रहा था सोनू  ने  मैट्रिक परीक्षा पास कर ली। उसे आगे कॉलेज में पढ़ने के लिए बाहर भेजना चाहता था। । किसी तरह उसने और मेहनत करनी शुरू कर दी और अपने भाई को कॉलेज में डाल दिया उसका भाई भी उससे बहुत ही प्यार करता था वह सदा अपने भाई का साथ दिया करता था। सोनू कॉलेज में जाते  सोचने  लगा कि वह खूब मन लगाकर पढ़ाई करेगा और अपने भाई का नाम रोशन करेगा।  हॉस्टल में  जा कर गलत सोसाइटी में पड़ गया और बिगड़ गया। वह देर रात तक बैठ कर गप्पे लडाता शराब नशा सब कुछ करनें लगा। झूठमूठ ही अपनें भाई  से खूब रुपये मंगवाता रहा। मोन    सारी रात  मेहनत करके उसे  रुपया भेजता था। सोनू अपने भाई से बहुत रुपया मंगवाने लगा। उसका भाई कभी भूखा रहकर और ज्यादा मेहनत करने के कारण बीमार पड़ गया इतना बीमार पड़ गया कि वह बिस्तर से उठ भी नहीं सकता था। उसने अपने भाई को सन्देश भेजा और अपने भाई को लिखा कि मुझे आकर देख जा। सोनू ने कहा कि अभी उसकी परीक्षा चल रही है। उसकी कॉलेज में एक दोस्त थी। वह उसे  बहुत ही प्यार करता था। उसने अपनी दोस्त से कहा कि मेरा भाई बिमार है उसने मुझे गांव बुलाया है। सोनू ने अपने भाई को लिख दिया कि वह अभी नहीं आ सकता। इस पर तो सोनू की दोस्त उस से बेहद नाराज हो  गई।उसकी दोस्त नें कहा तुम्हे अपनें भाई की बिमारी की सूचना पाकर पर भी जरा दुःख नहीं हुआ। तुम्हारे लिए अपनें भाई के प्रति जरा भी हमदर्दी नहीं है। तुम ऐसे तो नहीं थे। मैंनें तो एक बहादुर सोनू से प्यार किया था।।

उसने अपने दोस्त को कहा  कि जिस प्रकार तुम  अपने भाई को  ही नहीं देख सकते जिसने तुम्हें मां और बाप बन कर पाला  जिस ने  तुम्हे पढाने की खातिर शादी नहीं की कि तुम्हें   किसी चीज की तंगी ना हो पर तुम्हारे दिमाग में जरा सी भी अपने भाई के प्रति मोह माया नहीं है। आज अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो परीक्षा छोड़कर पहले अपने अपनों की जान बचाती। सचमुच सोनू की दोस्त  के इतना सब कुछ कहने पर भी उसका अपने भाई के लिए जरा सा भी प्यार नहीं  उमड़ा। उसने अपनी दोस्त की तरफ से किनारा कर लिया और आग बबूला हो कर दूसरे कमरे में चला गया। उसकी दोस्त वापस जानें लगी थी।  वह सोचने लगी उसने क्यों उस इंसान के साथ प्यार  किया जो कि अपनों को दुख पहुंचाने के सिवा कुछ नहीं करता था। उसने योजना बना डाली उसने सोनू के भाई से  गांव में जा कर मिलने का निश्चय किया।   सोनू का भाई बहुत बीमार पड़ गया था। उसका चेहरा पीला पड़ चुका था। वह चुपचाप  सोनू को बताए बगैर मोनू से मिलन गांव में आई। वहां पर उसकी मुंहबोली मौसी रहती थी। उसकी मुंहबोली मौसी का घर भी मोनू के घर के समीप ही था। वह जब अपनी मौसी राधा के घर पंहूंची तो उसने बताया कि वह आज ही गांव में  कुछ दिनों के लिए रहने आई है। उसने सारी कहानी अपनी मौसी को सुनाई वह अपने किसी खास रिश्तेदार को देखने आई हूं। जिस लड़के से मैं प्यार करती हूं उसके बड़े भाई को देखने आई हूं। सोनू की परीक्षा चल रही है वह अपने भाई को देखने नहीं आ सका सोचा मैं ही उस इन्सान से मिलना चाहती हूं जिस नें अपने  छोटे भाई को पढाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऎसे रामतुल्य भाई से वह मिलना चाहती हूं। मौसी आप कुछ मत कहना।

वह मोनू के घर पहुंच गई। वहां पर पंहुंच कर राधा नें कहा भाई मैं तुम्हे देखने आई हूं। बातों ही बातों में राधा नें शिवानी का परिचय अपनी भतीजी से करवाया। राधा नें उसे बताया वह भी शहर में रह कर डाक्टरी की पढाई कर रही है। मोनू उस समय मिल कर खुश हो कर बोला मेरा भाई भी शहर में पढता है। तुम उस से जरुर मिलना। खांसते खांसते बोला। मैं तुम्हारी खातिरदारी भी नहीं कर सकता। वह बोला बेटी पास मे ही रसोई है। चाय बना लो।  वह बोली आप तो मेरे लिए एक फरिश्ते से भी बढ़ कर हो जो अपनें भाई की खुशी के  लिए कुछ भी कर सकता है। वह बोली जब तक मैं यहां हूं मैं आपकी देखभाल करुंगी। मैने भी आप को भाई माना है। जितना भी बिमारी का खर्चा होगा मैं उठाऊंगी। मुझे पता है आप नें रात रात जागकर अपने भाई के लिए रुपये इकट्ठे किए होंगें इस ऐसी घड़ी में आपको भाई को आपके साथ होना चाहिए था। मोनू की आंखे छलछला आई बोला मेरा भाई नासमझ है। उसकी परीक्षा चल रहीं हैं। वह जरुर मुझ से मिलने आता। इसमें उसका कोई कसूर नहीं है। मैं आप की बिमारी का जितना भी खर्चा होगा उठाऊंगी।

मोनू नें कहा  कि तुम मेरे लिए अजनबी हो। मोनू अपनें मन में सोचने लगा तुम अजनबी होकर मेरे लिए इतना कर रही है। एक मेरा भाई है जिसको मैंनें अपने बच्चे से भी ज्यादा बढ़कर प्यार किया वह मुझे देखने तक नहीं आया। उसने चिट्ठी में लिख दिया कि मेरी परीक्षा चल रही है। नहीं नहीं यह मैं क्या सोचने लगा। मेरे भाई की अगर परीक्षा नहीं होती तो वह जरुर यहां मुझे देखनें दौड़ा दौड़ा आता। बहन मैं एक शर्त पर तुम से रुपया लूंगा अगर तुम  सचमुच वादा करो कि जब मैं ठीक हो जाऊंगा तब तुम्हारे रुपए  मैं तुम्हें लौटा दूंगा। और तुम रुपये ले लोगी तभी तुम्हारे रुपये लूंगा अन्यथा नहीं। शिवानी ने कहा भैया ठीक है जब तुम ठीक हो जाओगे तब तुम  मेरे रुपये लौटा देना।

मोनू के स्वास्थ्य में धीरे-धीरे सुधार होने लगा था। उसने  शिवानी को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि मेरी भी एक भाई है मैंने उसे पढ़ने के लिए बाहर भेजा। उसका भी कोई खत नहीं आया पता नहीं शायद उसकी परीक्षा चल रही होगी या समाप्त होनें वाली हों। शायद इतना पढ़ाई में व्यस्त होगा कि उसे मेरा ख्याल ही नहीं आया होगा। यह कहते कहते मोनू की आंखें छल छला आई।  सोनू की दोस्त गांव से वापिस शहर आई तो वह सोनू से मिलने गई। उसनें सोनू से कहा कि अब तो मैं तुम्हें तभी पसंद करूंगी जब तुम अपने भाई को खुश रखोगे और जो तुमने नशा करने की तरफ अपने कदम बढ़ा लिए हैं।  शराब की लत लगा दी है जब तक तुम इन सब व्यसनों को छोड़ दोगे तभी तुम्हारी दुनिया में वापस आऊंगी वर्ना  मैं किसी और को अपना जीवन साथी बना लूंगी। अच्छा मैं  जाती हूं।  तुमसे अब कभी भी नहीं मिलूंगी। यह कहकर सोनू की दोस्त वहां से चली गई।

सोनू की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया। वह डबडबाई आंखों से अपनी दोस्त को जाते देखता रहा। उसके सारे शब्द उसके दिमाग में एक नश्तर की तरह चुभ रहे थे। यह मैंने क्या कर दिया। अपने प्यार को सदा  सदा के लिए खो दिया।  उसे अब अपने ऊपर पछतावा हो रहा था।  मैंने अपने राम जैसे प्यारे भाई के साथ अन्याय किया। उसका दिल दुखाया। उन्होंने मेरी खातिर शादी नहीं कि मुझे खुश रखने के लिए ना जाने क्या-क्या प्रयास किये और मैंने उन्हें मृत्यु के मुंह में धकेल दिया। बार-बार वह अपनें आप को कोस रहा रहा था। मैंने एक साथ दो दो रिश्तो को खो दिया।

काफी दिनों तक सोनू की दोस्त उस से नहीं मिली। जाते-जाते उसे सीख दे कर गई कि  जो अपने परिवार का नहीं हो सका वह दूसरों का क्या होगा। जैसे ही उसके दोस्त उसे पीने के लिए कहते वह कहता चले जाओ तुम सब। तुम सब ने मेरी जिंदगी को नर्क बना दिया है। उसने एक-एक करके अपने दोस्तों से किनारा कर लिया और फिर अपने आप को सुधारने की कोशिश करने लगा और पढ़ाई में मन लगाने लगा। सोनू की दोस्त एक बार फिर से मिलने आई तो उसके  सीने  से लगभग कर फफक फफक कर रोने लगा और उससे माफी मांगने लगा। उसकी दोस्त ने कहा कि मुझसे माफी मांगने से क्या होता है आज मैं तुम्हें यह कहने आई हूं कि तुम्हें अपने बड़े भाई का आदर सत्कार करना नहीं भूलना चाहिए।  तुम अगर  मुझसे अभी भी सच्चा प्यार करते हो तो अपने  राम जैसे भाई के गले लग कर उसके सपनों को साकार करो। और तुम्हारे भैया जहां तुम्हारा रिश्ता करेंगे वही तुम शादी करना। उन्हें दुःख नहीं देना। भगवान ने मुझे तो कभी भाई का प्यार नहीं दिया। यह कहते हुए  यहां से जा रही हूं कि अगर तुम अपने भाई से माफी मांग लोगे और जहां भी तुम्हे शादी करने के लिए कहेंगे वहां तुम खुशी से शादी कर लोगे  तब मैं भी तुम्हें माफ कर दूंगी। नहीं तो मैं भी कहीं ना कहीं इसके लिए अपने आप को दोषी  मानती रहूंगी

सोनू की  दोस्त शिवानी उसे अलविदा कह कर वहां से चली गई। सोनू की समझ में आ चुका था। वह मन लगा कर पढ़ाई करने लग गया था उसने भाई को खत में लिखा कि मैं आपको देखने नहीं आ सका क्योंकि  मैं परीक्षा में व्यस्त था।  आप दुःखी मत होना। मेरी भगवान से  यही प्रार्थना है कि भगवान आप जल्दी से जल्दी स्वस्थ हो जाएं। जल्दी  ही परीक्षा के पश्चात आपसे मिलने आऊंगा। जब मैं बडा औफिसर बन जाऊंगा तब मैं आपको कोई काम नहीं करने दूंगा।

कुछ दिनों के लिए सोनू की दोस्त फिर से अपनी मौसी के यहां छुट्टियों में आई हुई थी। मोनू पूरी तरह से स्वस्थ हो चुका था। उसनें शिवानी को रुपये लौटाते हुए कहा बहन आज मैं तुम्हारी जैसी बहन पा कर खुश हो गया हूं। आज अगर मैं तुम से कुछ मांगू तो  तुम मना नहीं करोगी। मुझे बताओ। सोच समझ कर उतर देना। तुम अगर  ना भी करोगी तब भी तुम को मैं सदा अपनी छोटी बहन ही मानता रहूंगा। सोनू की दोस्त ने कहा मैं आप जैसा प्यारा भाई पाकर अपने आप को धन्य मानती हूं। जो आप जैसा समझदार और नेक भाई मुझे दिया। नहीं तो मैं सदा आप जैसे भाई के प्यार से सदा वंचित रह जाती? आज अगर आप मेरी जान भी मांगेंगे तो मैं हंसते हंसते हुए वह भी आपके कदमों में न्योछावर कर दूंगी। सोनू की दोस्त के मूंह से इतने  ममता भरे शब्दों को सुनकर बहुत खुश हो गया और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। अपने आंसूओं को  छिपाते हुए कहने लगा अगर तुम्हें ठीक लगे तो मैं अपने छोटे भाई सोनू के साथ तुम्हारा  विवाह  कराना  चाहता हूं। वह भी डाक्टरी की पढाई करनें के लिए गया हुआ है। उसका भी  डाक्टरी का अन्तिम वर्ष है। तुम्हारे परिवार वालों को यह रिश्ता मंजूर होगा तो मैं अपनें भाई सोनू के लिए तुम को चुनता हूं। शिवानी चुपचाप शर्मा कर  वहां से भाग गई।

छुट्टियों में जब सोनू घर आया तो उसने अपने भाई से कहा भैया मैं आपसे अपनी भूल के लिए क्षमा मांगता हूं। आप मुझे अपना छोटा भाई जान कर क्षमा कर दोगे। मैंने अनजाने में आपका दिल दुःखाया उसके लिए उसे भगवान भी क्षमा नहीं करेंगे। मोनू नें प्यार भरी मुस्कान से उसकी तरफ देखा। तुम  अगर अपने भाई से माफी मांगना चाहते हो तो जहां मैं तुम्हें कहूं वहीं शादी कर लेना क्योंकि मैंने तुम्हारे लिए एक लड़की देख रखी  है।  तुम अगर उस लड़की को अपना लोगे तो मैं समझूंगा कि तुम मेरे सच्चे भाई हो।

सोनू की आंखों से आंसू बहने लगे। वह सोचनें लगा कि अब तो उसे अपने दोस्त को भूलना ही होगा। उसने अपनी दोस्त से वादा किया था कि वह अपने भाई का सदा सम्मान करेगा अब उसके कहे हुए शब्दों का मान करेगा इसलिए उसने अपने भाई से कहा कि मैं जहां आप कहते हैं वही शादी करने के लिए तैयार हूं। सोनू ने अपनी दोस्त को खत लिखा प्यारी दोस्त आज से तुम मुझे भूल जाना। मैंने तुम्हारी तुम्हारी सीख को मन से स्वीकार कर लिया है। मै जहां मेरा भाई चाहेंगे वही शादी करूंगा। अच्छा जहां भी रहो खुश रहो। तुमने मुझे सीख दे  कर सच्चा रास्ता दिखाया है। तुम सदा मेरी दोस्त ही रहोगी। यह कहकर वह  जोर-जोर से रोने लगा। उसके भाई ने उससे कहा भाई मेरे तुम क्यों रो रहे हो? उसने कहा भाई नहीं कुछ नहीं यह तो खुशी के आंसू हैं।  यह सब कुछ उसने खत में लिखकर अपनी दोस्त को भेज दिया। सोनू की दोस्त को जब वह खत मिला तो वह पढ़ कर फूली नहीं समाई। उसे बहुत ही खुशी हुई कि उसने अपने साथी को सुधार कर उसमें आत्मविश्वास ही नहीं बल्कि उसमें सच्चाई का बीज बो दिया है और बड़ों का आदर सत्कार करना और उनका सम्मान करना सिखा दिया है।  धीरे-धीरे शादी का दिन भी आ गया। सोनू की साथी ही उसकी पत्नी बनने जा रही थी। यह सोनू को मालूम नहीं था। फेरे लेते समय भी उसकी आंखों के सामने अपनी दोस्त ही नजर आ रही थी। अब क्या किया जा सकता है। वह सोचनें लगा जो भी उसकी किस्मत में भाग्य में जो लिखा होगा वही होगा। वह जल्दी जल्दी फेरे लिए नें लगा।

शादी समाप्त होने के पश्चात उसने  जैसे ही अपनी दुल्हन का घूंघट उठाया तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसके भाई ने उसकी दोस्त को ही उसके लिए पत्नी के रूप में चुना था। इस तरह  वह खुशी खुशी अपना तथा अपने भाई के साथ अपना जीवन व्यतीत कर लगा।

(आज का युग है तेरा हे! नारी शक्ति)

आज का युग है तेरा  हे! नारी शक्ति।

तुझ में समर्पण की है अद्भूत शक्ति।।

इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास से भरा है कोमल ह्रदय तेरा।

तुझ पर  सब को गर्व है बहुतेरा।।

तू अपनी मेहनत के बल पर मुकाम हासिल करती है।

अपनी जिंदगी में बदलाव के लिए नींव तैयार करती है।।

तू है सृष्टि की जननी।

तू है मधुर भाषिणी।।

गौरव मयी  प्रचन्ड शक्ति दायिनी।

तू है अन्नपूर्णा जगत कल्याणी।।

तुझ पर है सारे संसार को नाज़ है हे! नारी शक्ति।

समाजिक बेड़ियों को तोड़ कर आगे निकल जाने का अद्भुत संकल्प  है रखती।।

तूने गौरव का स्तम्भ  बन कर दिखाया है।

अपना लोहा मनवाने में कामयाब हो कर दिखाया है।।

खुद को भी भूला कर अपना अस्तित्व कायम करती है।

वक्त पडनें पर कभी  पीछे नहीं हटती है।।

महिला पायलट बनकर गुंजन सक्सेना नें कारगिल गर्ल के नाम से खुब नाम कमाया है।

दुश्मनों से लोहा ले कर भारतीय सेना के जवानों को सुरक्षित बाहर निकाल कर दिखाया है।।

हे नारी शक्ति तुझे कोटि कोटि प्रणाम।

सबल कार्य कारिणी तुझे शत शत नमन।।

स्वच्छता का संदेश भाग(2)

 (स्वच्छता का संदेश) भाग(2)

“ आओ हम सब मधुर स्वर में एक साथ गुनगुनाएं।

मिलकर हम सब अपने पर्यावरण को स्वच्छ बनाएं।। ,,

1()धातु, शीशा, गता कागज प्लास्टिक पॉलिथीन नायलॉन कूड़ा करकट  इधर-उधर नहीं फैलाएं।

(2 )अनुपयोगी सामान को कबाड़ी को बेच कर आएं।।

(3) हम कूड़े कचरे को जलाएं।

(4)साग सब्जी और फलों के छिलकों को पशुओं को खिलाएं।।

आओ हम सब साथ मिलकर पर्यावरण की स्वच्छता का यह संदेश बार-बार दोहराएं।

अपने जहन में इसको धारण कर इसको अमल में लाएं।।

रसोई के साथ लगती क्यारी में गड्ढा बना कर उसमें यह दबा आएं।

सड गल जाने पर उसकी खाद बनाकर उपयोग में लाएं।।

हम इस संदेश को मधुर स्वर में एक साथ गुनगुनाएं।

मिलकर हम सब अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सुन्दर बनाएं।।

(5) उपलों को जलाकर मक्खी मक्खी मच्छरों को दूर भगाएं।

पर्यावरण को स्वच्छ बना कर वातावरण में स्वच्छता लाएं।।

(6)लघु शंका और दीर्घ शंका के लिए  खेतों में और गलियों में ना जाकर  उसका दुरुपयोग नहीं करें।

उनके स्थान पर सार्वजनिक शौचालय में ही जाकर सबको  यह बात समझाएं।।

मल मूत्र व्यवस्था के लिए सीवरेज का उपयोग हमेशा किया करें।

(7)पेयजल स्रोतों बावड़ी कुआं हैंडपंपों नलकूपों में कूड़ा कचरा फैला कर उन्हें दूषित नहीं बनाएं।।

(8)यज्ञ शादी और सार्वजनिक स्थानों पर खाने के लिए  पत्तों के बने डुन्नों को ही उपयोग में लाएं।

खाने के लिए प्लास्टिक पॉलिथीन आदि का प्रयोग नहीं करेंगे नहीं करें।।

स्कूल में खाना  टिफिन में ही लाएं।

(9)प्लास्टिक के डिब्बे और पीने के लिए (10)(प्लास्टिक की बोतलों को उपयोग में न लाएं।।

(11)हम सब गीले और सूखे कचरे के लिए अलग-अलग  थैली बनाएं।

एक साथ मधुर स्वर में हम सब यह संदेश गुनगुनाएं।।

मिलकर हम सब अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाएं।

आओ हम यह संकल्प दोहराएं।

अपने वातावरण को दूषित होने से बचाएं।।

आओ एक और एक मिल कर हम  ग्यारह का आंकड़ा बनाएं।

अपनी शक्ति को संगठित कर वातावरण में स्वच्छता का यह संदेश हर कोने कोनें में फैलाएं।।,,