जीत का सेहरा

आओ सब मिलकर जीत का जश्न मनाएं।

प्रधानमंत्री मोदी जी को बधाई देकर फिर से एक बार कोशिश में जुट जाएं।।

जनता की मेहनत रंग लाई है।

एक बार फिर से नरेंद्र मोदी जी को सत्ता में ले आई है।।

मोदी लहर देश के सभी नागरिकों को खुशी दिला पाई है।

उनकी उम्मीदों की कसौटी पर खरा उतर पाई है।।

एकता की मिसाल दे कर सभी ने अपना प्रदर्शन दिखाया।

लोगों ने वाह!-वाह !के नारों से अपना करतब दिखाया।।

हमारा भारत फिर से दुनिया के सर्वश्रेष्ठ राज्य में गिना जाएगा।

एक दिन वह सचमुच में सोने की चिड़िया कहलाएगा।।

पाकिस्तान डर के मारे भीगी बिल्ली बन कर बैठा है।

वह मदद के लिए हाथ मिलाने को तैयार बैठा है।।

 मोदी  हिंदुस्तान की राजनीति में एक विलियन बनकर था आया।

उन्होंनें अपने कर्तव्य निष्ठता निभा एक फरिश्ता बन कर दिखाया।।

उन्होंनें देश ही क्या ?विदेश में भी अपना लोहा मनवाया।

सबका साथ सबका विश्वास इस   रणनीति को अपनाया।।

देश की कल्याणकारी योजना को सार्थक कर दिखाया।।

नकारात्मक राजनीति को  विध्वंस  कर मोदी जी ने अपना सिक्का जमाया। अपनें देश में ही नहीं विदेशों में जा कर भारत माता का सच्चा रण बांकुरा बन कर दिखाया।।

हिम्मत

कुणाल का तबादला चंडीगढ़ हो गया था। उनके घर में उनकी पत्नी कंचन और उसके दो बच्चे थे। उनकी बड़ी बेटी संपदा  ग्यारहवीं कर चुकी थी और बेटा शेखू दसवीं में था। उसके माता-पिता अपने दोनों बच्चों को बहुत प्यार करते थे। कुणाल नें  अपने दोनों बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। कुणाल की क्लर्क की नौकरी थी। उसकी पत्नी घर पर ही रह कर अपने बच्चों का पालन पोषण किया करती थी। उसके पति को जो  वेतन मिलता था तो वह सब किराए में चले जाता। लेकिन वह अपने बच्चों को कभी किसी भी वस्तु की तंगी नहीं होने देती थी। उसने अपनी बेटी को गवर्नमेंट स्कूल में दाखिल दिलवाया था। उसकी बेटी रात दिन पढ़ाई में जुट जाती। वह अपने पिता को कहती पापा देखना जब मेरे अच्छे अंक  आएंगे तो आप भी फुला नंहीं समाएंगें। संपदा और शेखू दोनों लड़ाई झगड़ा करने में कोई कमी नहीं रखते थे। संपदा अपने भाई को कहती थी तू तो कभी पढ़ता ही नहीं है देखना तू तो फेल होगा। सारा दिन मटरगश्ती करता रहता है। कभी पढ़ भी लिया कर। वह भी अपनी बहन को चिढा चिढा  कर कहता मुझसे झगड़ा किया तो तेरी शादी जल्दी करा दूंगा। जो तू बड़ा रोआब दिखाती है इस बार मैं प्रथम आऊंगी। मेरा नाम अखबार में आएगा

मेरा नाम अखबार में आएगा देखना तू तो इस बार फेल होगी। तेरा नाम लिस्ट में सबसे पीछे होगा। वह कहती देखना तू तो बड़ा लड़ाकू है। जा तुझ  से  कभी बात नहीं करती। लड़ते-लड़ते दोनों एक दूसरे के बाल खींचने लगते। उनकी मां जब आ कर  छुडाती थी तब कहीं जाकर  लड़ाई झगड़ा शांत होता। वह  अपनी बहना को कहता अच्छा है जितनी जल्दी ब्याह कर के  तू अपने घर चली जाएगी तभी अच्छा होगा।  तेरे हिस्से की सारी चीजें भी  मैं ही खा जाया करूंगा। उसके पिता उनकी मीठी मीठी नोकझोंक को शांत कराते करते। लड़ाई झगड़ा मत किया करो। मेरे पास तुम दोनों को देने के लिए कुछ है। मैं चॉकलेट लाया हूं। चॉकलेट का नाम सुनकर  दोनों दौड़ पड़ते और खुब मस्ती करते। सम्पदा झूठमूठ का बहाना बहाना करके  कहती मुझे नहीं खानी है। मेरे हिस्से की भी शेखू को दे दो। शेखू कहता मुझे  भी चॉकलेट नहीं खानी मेरे हिस्से की संपदा को दे दो फिर दोनों भाई बहन एक दूसरे को चॉकलेट खिलाते और खूब मस्ती करते।

संपदा की सहेली साक्षी  भी उसकी कक्षा में पढ़ती थी। साक्षी के पिता का नाम भी कुणाल था। वह कहती मेरे पिता का नाम भी कुणाल है।     साक्षी संपदा की  पक्की सहेली थी। दोनों एक ही कक्षा में थी

साक्षी के माता-पिता बहुत धनी थे। उनके पास किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी।  वह पढ़ाई में बहुत ही ढीली थी। वह संपदा से मिलनें उसके घर आया करती थी। संपदा उसकी हमेशा पढ़ाई में उसकी मदद किया करती थी साक्षी की मां को संपदा से चिढ़ होती थी कि यह कितनी  होशियार लड़की है। वह अपनी बेटी साक्षी को कहती कि तू क्यों नहीं इस की तरह बन जाती। यह भी तो तेरी तरह है तू क्यों नहीं याद करती इस  के टैस्ट में कितने अच्छे अंक आते हैं? वह अपनी मां को समझाते हुए कहती हर व्यक्ति  एक जैसा नहीं होता। साक्षी की मां के दिमाग में एक योजना आई कि साक्षी जब परीक्षा देने जाएगी उसकी उत्तर पुस्तिका अपनी बेटी की उत्तर पुस्तिका से बदला देगी। वह संपदा को हमेशा पढ़ते देखा करती थी। वह भी अपनी बेटी की  पी एम टी  की तैयारी करवा रही थी। उसकी मां सोचने लगी वह संपदा की उत्तर पुस्तिका को अपनी बेटी की उत्तर पुस्तिका  बदलवा देगी तो बड़ा ही अच्छा रहेगा। मेरे पास रुपए की कमी नहीं है। इसके लिए मुझे किसी भी व्यक्ति को दस लाख देने भी पड़ जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संपदा के माता-पिता कितने गरीब है? कोई फर्क नहीं पड़ेगा । वह उस के पेपरों की जांच भी नहीं करवाएंगे ।उसके पिता तो बहुत ही शरीफ है। वह कहीं भी जाने वाले नही उन्हें तो इतना ही काफी है कि उनकी बेटी पास हो जाए।

एक दिन अपनी बेटी के साथ संपदा को  यह कहते सुना था कि इस बार तो मैं  परीक्षा की इतनी अच्छी तैयारी कर रही हूं। स्कूल वाले  भी मेरा परिणाम  देख कर दंग रह जाएंगे।  साक्षी बोली कि मुझ भी नकल  करवा देना। मेरा तो जरा भी पढ़ाई में मन नहीं लगता है।

अपने दोनों बच्चों को  अपने पास  बिठा कर कुणाल बोले बेटा वादा करो तुम दोनों में से जिस किसी के भी अच्छे अंक आएंगें उस को कोई इनाम दिया जाएगा। संपदा  बोली पापा मुझे ईनाम नहीं चाहिए। मुझे तो अपने आप ही इनाम मिल जाएगा।  शेखु बोला तुझे क्या मिलेगा? इस बार इनाम तो मैं ही ले लूंगा। बताओ पापा इस बार में प्रथम आया तो मुझे कुछ तो अवश्य दोगे। मेरे दोस्त के पास गाड़ियां भी है लेकिन मुझे पता है कि शहर की इस भागदौड़ वाली जिंदगी में आना कितना मुश्किल होता है? हमारे दोनों के लिए आप रात दिन कितनी मेहनत करते हैं? मैं इस बार ईनाम ले कर बताऊंगा। मैं जब बड़ा अफसर बन जाऊंगा तब आपको नौकरी नहीं करने दूंगा। इस बार मुझे साइकिल दिला देना। उसके पिता बोले ठीक है। दोनों बच्चे पढ़ाई में जुट गए थे।

संपदा ने भी खूब जमकर पढाई कर पीएमटी का टैस्ट दिया था। आज उसका परीक्षा परिणाम आने वाला था। वह बड़ी ही  उत्सुकता से अपनें परीक्षा परिणाम का इन्तजार कर रही थी  शेरु दौड़ा दौड़ा अपनें पिता  को  आ कर बोला आज ही मुझे साईकल ले कर आना। मैं इस बार दसवीं कक्षा में प्रथम आया हूं। उसके पिता ने जब परीक्षा परिणाम देखा वे भी खुशी से फुले नहीं समाये। उसकी मेहनत रंग लाई थी। संपदा नें अपने भाई को गले से लगा लिया। वाह! यह हुई ना मेरे भाई वाली बात। मैं भी तुझे  आज इनाम देने वाली हूं। मुझे प्रथम आने पर  जब स्कॉलरशिप मिलेगी तब मैं तुझे  ईनाम अवश्य ले कर दूंगी। मैं तुझे सुंदर सा उपहार लेकर दूंगी। तुझे उपहार देनें  के लिए अभी रूपए जुटा नहीं सकती।

शेखू आकर बोला बहना मुझे कुछ नहीं चाहिए देखना आप भी प्रथम आएंगी। मैं आपसे तू तू मैं मैं  करके बात करता हूं। वह तो तू बोलना मुझे अच्छा लगता है। उससे अपने पन की खुशी झलकती है। आप मुझसे बड़े हो लेकिन प्यार से कभी कभी मुंह से तू निकल जाता है। डाकिया  अभी अभी अखबार दे कर गया था। उसके पिता बोले चश्मा लाना बेटा संपदा का परीक्षा परिणाम निकला है। बेटा बता तो जरा अपना रोल नंबर। उसके पिता ने सारा अखबार चार बार देख डाला। उसके पिता बोले बेटा तू ही देख। शायद मेरी नजर कमजोर हो गई है। दूसरे पेज पर   साक्षी की फोटो देखकर चौंकी। उसकी सहेली प्रथम आई थी। वह बोली पापा मैं तो फेल हो गई। वह तो चुपचाप सी हो गई। उसके पिता ने उसे ढाडस बंधाया। कोई बात नहीं कभी-कभी ऐसा हो जाया करता है। वह बोली पापा ऐसा नहीं है। मैं तो क्या सोच रही थी और क्या हो गया? साक्षी को कुछ भी नहीं आता था। उतर देते समय शायद तेरे दिमाग नें काम करना बन्द कर दिया होगा।  कोई बात नहीं दिल से नहीं लगाते।  तुझे मैं डांट तो नहीं रहा हूं। इस बार लगकर मेहनत करना। पीएमटी में तो बड़े बड़े नहीं निकलते हैं। वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसका भाई अपनी बहन को रोता देखकर बोला बहना दिल छोटा नहीं करते। अगली बार पेपर दे देना। संपदा चुपचाप सी हो गई थी। उसकी मेहनत का यह परिणाम मिला। पड़ोस की  औरतें  संपदा को सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी। हमेशा नकल कर के पास  होगी। वह देखो पीएमटी में निकलना कोई आसान बात नहीं है। सामने वालों की बेटी देखो हरदम मस्ती करती रहती थी। वह तो पीएमटी में  भी निकल गई। इस लड़की तो को तो हमेशा कहते सुना था कि मैं तो इस बार प्रथम आ  कर बताऊंगी। प्रथम तो दूर की बात है यह तो टैस्ट  भी क्लियर नहीं कर पाई। शेखी बघारनें वाली इस लड़की की सारी हेकड़ी निकल गई। जितने मुंह उतनी ही बातें सुनने को मिली। उसका  मन कर रहा था कि चीख चीख कर कह दे कि मैं कभी फेल नहीं हो सकती हूं। रोते-रोते अपने पिता के पास जाकर बोली पापा मेरे पेपरों की चैकिंग  करवा  दें। उसके पिता कहते हम नहीं करवा सकते। तू विषय बदल ले। हमारे पास इतने रुपये नहीं है। साक्षी की मां आज उसके घर में मिठाई देने आई थी। जाते-जाते संपदा को कह गई बेटा डाक्टर बनने में क्या रखा है? अच्छा ही हुआ जो तू नहीं निकली। तू तो कोई और विषय ले ले।

अपनी बेटी को तो मैं हॉस्टल में भेज रही हूं। संपदा साक्षी की मां की बातें सुनकर चुपचाप रजाई लेकर सो गई। वह रजाई में दुबक  कर जोर जोर से रोने लगी। कोई भी मेरी बात नहीं समझता। शायद संपदा के मन में  एक विचार आया।हो सकता है साक्षी की मां ने किसी को रुपए घूस देकर ऐसा करने के लिए कह दिया हो। लेकिन मैं कैसे पता लगाऊं।? उसके पिता का नाम भी कुणाल है।ओहो!। जन्म की तारीख भी एक जैसी है।

संपदा की मां ने देखा कि उसकी बेटी ने खाने को हाथ भी नहीं लगाया था। वह अपनी बेटी के माथे पर हाथ रख कर बोली बेटा इस बार जमकर पीएमटी की तैयारी करना। तुम्हारी मां तुम्हें डॉक्टर  जरुर  बनाएगी। मैं भी तो सिलाई करके कुछ कमा लेती हूं। तू दिल छोटा मत कर फिर से परीक्षा देना बेटा।   तुम्हारी सहेली के घर के लोग  तो बहुत ही पैसे वाले हैं। हमारे पास इतना रुपया नहीं है जो तुम्हे कहीं घूस दे कर प्रवेश दिला सकें। तू पेपरों की जांच करवानें के लिए कह रही है। हमारी कोई भी नहीं सुनेगा। इस काम में मैं तुम्हारे साथ हूं। हिम्मत तो तुम्हे स्वयं ही जुटानी होगी।

संपदा ने मन बना लिया था कि वह कहीं कूदकर अपनी जान दे देगी। कोई भी मेरे मन के दर्द को समझ नहीं रहा है। उसके भाई को उसके पिता ने साइकिल दिला दी थी। उसका तो पता ही नहीं था वह कहां रहता है? उसके माता-पिता कह रहे थे कल भी मरते मरते बचा किसी की गाड़ी के नीचे कुचल गया होता। आपने इसको साइकल देख कर अच्छा नहीं किया। जल्दी में उसे ढूंढो।

संपदा ने सोचा पहले अपने भाई से मिलूं मैं अपने भाई से मिलकर ही यहां से जाऊंगी। वह अपने भाई को ढूंढनें  लगी। अचानक रास्ते में एक गाड़ी बड़ी तेजी से आ रही थी।

साइकिल से टकराते ही वाली थी कि उसका भाई लुढ़क कर नीचे  गिर गया।  उसने साईकल चलाते अपनें भाई को सामने से आते देख लिया था। उसके सिर से खून बह रहा था। जल्दी से संपदा ने अपने घर के पास के क्लीनिक में जाकर अपने भाई की पट्टी करवाई। उसके   भाई के  सिर में 5 टांके लगे थे। उसके माता-पिता ने शेखर  से  बात ही नहीं की। वह कह रहे थे कि जब तुझे साइकिल चलानी आती नहीं तब तू क्यों साइकिल चलाता है? जब तक अच्छे ढंग से कोई काम नहीं आता हो वह नहीं करना चाहिए। वह अपने भाई को बोली तू क्यों मम्मी पापा को परेशान करता रहता है? वह बोला मैं तो फिर से साइकिल चलाने जा रहा हूं। संपदा गुस्सा होकर बोली तू क्या उनको शांति से जीने भी नहीं देगा? वह बोला तू तो रहने ही दे बहना क्या मैं इस डर से जीना छोड़ दूं कि मैं गिर जाऊंगा? इस तरह से डरता रहा तो मैं सीख चुका साइकिल। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? दुर्घटना ही तो होगी। मैं तो दुर्घटना के डर से हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकता। संपदा आवाक   रह गई। उसके भाई ने उसे कितनी बड़ी सीख दे डाली थी। वह भी तो डर के मारे आत्महत्या करने की सोच रही थी। आज तक चुपचाप लोगों की बातें सुनते आ रही थी। अब तो मुझ में भी  हिम्मत आ गई है। वह दब कर नहीं रहेगी।  वह अपनी आवाज उठा कर ही रहेगी। इसी तरह  खामोश हो कर चुपचाप बैठी रहेगी तो कोई और ही बाजी मार जाएगा? आत्महत्या का विचार छोड़कर खुलकर सब का सामना करना चाहिए। मुझे पता है मैंने इतनी कोशिश की थी कि मैं फेल नहीं हो सकती। मैं अपने पेपरों का मूल्यांकन करवा कर ही रहूंगी। मेरे पिता भी मेरी तरह चुप रहने वालों में से है। मेरी मां  तो वह सब की बातों में जल्दी ही आ जाती है। मेरा भाई है तो छोटा इसने मुझे सीख दे डाली। डरकर जिंदगी जीने से तो मर जाना ही अच्छा है।

मैं कल ही प्रिंसिपल जी के पास जाकर कहूंगी कृपया आप ही मेरी मदद कर सकते हैं। आप मेरे पेपरों का मूल्यांकन करवाने में मेरी मदद करो। दूसरे दिन अपने प्रधानाचार्य जी के पास जाकर बोली कि  सर मैं आपसे निवेदन करना चाहती हूं। मैंने पीएमटी की परीक्षा में जी जान लगाकर कोशिश की थी। मैं कभी भी ऐसा नहीं सोच सकती थी कि मैं  पी एमटी परीक्षा में  नहीं निकलूंगी। अपना परीक्षा परिणाम देखकर मुझे निराशा  ही मिली हो सकता है मेरा पेपर किसी से बदल गया हो। कृपया आप मेरे पिता समान है। इस काम में मेरी मदद अवश्य कर सकते हैं। आपको मैं अपना  मैडल देना चाहती हूं। इसको  बेच कर आप मेरी फीस दे देना। कृपया मैं कुछ भी करके अपने उत्तर पुस्तिका की जांच करवाना चाहती हूं। मुझे पता है आप महान इंसान है। एक बेटी के दर्द को आप से अच्छा कौन समझ सकता है। आप तो मेरे  पिता के समान हो।

प्रधानाचार्य के आगे अपनी बेटी का चेहरा आ गया। वह भी  पी एम टी परीक्षा में नहीं निकली थी। उसने खुदकुशी कर ली थी। कहीं वह भी यह कदम ना उठा ले। बोले बेटा, निराश न हो। अपनी तरफ से  मुझ  से जितना होगा उतनी  कोशिश अवश्य ही करूंगा। फीस भरने के अभी 2 दिन हैं। तू चिन्ता मत कर।  दस  दिन बाद परीक्षा का परिणाम भी निकल जाएगा यह बात  तुम्हें किसी को भी नहीं बतानी है। अपने घर में भी नहीं।

आज जब वह घर आई तो पहले से ज्यादा खुशी और उमंग से भरी हुई थी। प्रधानाचार्य जी ने उसका रोल नंबर बोर्ड को भेज दिया था। जब चेकिंग की गई तो पता लगा कि  साक्षी के साथ उसका पेपर बदल गया था। साक्षी पीएम टेस्ट में नहीं निकली थी। साफ पता चल गया था कि साक्षी की मां ने छह लाख देकर उसका पेपर बदलवा दिया था। प्रधानाचार्य जी को इतनी खुशी हुई कि आज  उन्होंनें एक बेटी को आत्महत्या करनें से बचा लिया था। उनकी बेटी तो इस दुनिया में नहीं थी लेकिन आज संपदा को बिखरने से बचा दिया था संपदा को सरकार ने पीएमटी टेस्ट में सिलेक्ट ही नहीं किया अपितु स्कॉलरशिप भी देकर उसको  ब्याज सहित उसके जितने दिनों का बकाया था वह हर्जाना भी दे दिया था। सारी की सारी मोहल्ले वाले औरतों की नजरें झुक गई थी। आज संपदा  में साहस आ गया था। उसे समझ आ गया था कि जिंदगी में डर से कोई काम नहीं चलता। आज उसमें दुगना उत्साह  आ गया था। उसके पिता अपनी बेटी की   होशियारी  देखकर गदगद होकर बोले मेरी बेटी बेटे से कम नहीं है। मुझे उसकी हिम्मत पर नाज है। वह डाक्टरी की तैयारी करनें के लिए हॉस्टल जानें की तैयारी करनें लगी।

झूठा इल्जाम

नंदिता घर आते ही अपने पिता के पास भाभी भागी आई। पापा आज आप मेरी पिटाई तो नहीं करोगे। उसकी मां कमरे में नंदिता के   समीप आई और बोली क्यों रो रही है? वह रोते रोते बोली  स्कूल में आज  दोस्तों नें मेरी पैन्सिल चोरी कर दी। उसके पापा बोले गुम कर दी तो मैं तुम्हें दूसरी पैन्सिल तब तक लाकर नहीं दूंगा जब तक तू अपनी वस्तुओं की इफाजत करना नंही सीखेगी। एक पेंसिल की बात नहीं है। तुम अपनी सभी चीजों को संभाल कर जब तक नहीं रह सकते तब तक बिना पैसिल के ही तुम्हें काम चलाना  पड़ेगा। उसके पिता बोले मैं कब तक तुझे पैसिलें ला कर देता रहूंगा मुझे तेरे दो भाइयों को भी देखना है। वह तुझ से छोटे हैं। तुम ऐसा  करोगी  तो वह भी  ऐसा ही सीखेंगे। हमारे जीवन में छोटी सी छोटी वस्तु का महत्व होना चाहिए। उस छोटी सी नंदिता के मन में यह बात आ गई थी। वह चुपचाप स्कूल चली गई। अपनें पापा  के सामने उसने जुबान खोलना अच्छा नहीं समझा। उसके पिता ने उसे कहा कि इस महीने तो मैं तुझे पैंसिल लाकर नहीं दूंगा। स्कूल में जाते-जाते भी उसे डर लग रहा था। अध्यापिका ने स्कूल में सवाल लिखा दिया तो वह क्या करेगी? उसने अपने दिल को ढाडस बंधाया। वह दूसरे दिन  स्कूल में चली गई। उसके साथ बैठने वाली उसकी सहेलियां  और दोस्त मित्र जब उन सभी के पास पैन्सिल नहीं होती थी तो वह उनको अपनी पेंसिल दे देती थी। वह अपनी पैन्सिल के 5 टुकड़े कर देती थी। उसके खास  दोस्त जब स्कूल में पेंसिल नहीं लाते थे तो वह उन पांचों को  अपनी पैन्सिल दे देती थी। छः महीने तक उसके दोस्त उस पेंसिल को ही प्रयोग में ला रहे थे। वे अपने पैंसिल तो स्कूल में नहीं लाते थी। उसकी और भी  सहेलियां  और कक्षा के दोस्त  थे। वे कक्षा में आपस में  एक दूसरे के साथ अपनी वस्तु साझा नहीं करते थे। उस के खास तो पांच ही दोस्त थे।  तीन लडकियां और दो लडके। वे सभी   उसके आगे पीछे घूमते रहते  थे।

आज  तो मुझे पैन्सिल दे दे नहीं तो मैडम मारेगी। वह बेचारी  सब से पेंसिल मांग रही थी। उसके दोस्तों में से कोई भी उसे पैन्सिल नहीं दे रहा था। वह  अब  अध्यापिका जी से क्या कहेगी? मेरी बात पर  तो कोई विश्वास नहीं करेगा। स्कूल में चित्रा मैडम कक्षा में पहुंच गई थी।  अध्यापिका बोली बच्चो आज तुम्हारा टैस्ट होगा । उसने अपने दोस्तों को कहा मुझे पैसिल दे दो। उसके जो खास दोस्त थे उन सभी के पास पेंसिल थी। लेकिन उन्होंने उसे अपनी पेंसिल नहीं दी। उसके साथ वाले उसके क्लास में पढ़ने वाले  और भी सहपाठी थे। वह अपनी चीजें किसी के साथ भी साझा नहीं करते थे। इसलिए नंदिता को पता था कि वे सभी उसे पैसिल नहीं देंगे लेकिन उसकी सहेलियां तो उसके साथ अच्छी थी। परंतु यह क्या  वे सभी की सभी बदल गई थी। वह उन सब से विनती करने लगी कृपया करके आज मुझे पैसिल दे दो। मेरे पिताजी ने मुझे कहा था कि मैं तुम्हें पेंसिल तब तक नहीं दूंगा जब तक छोटी सी छोटी चीज का तुम महत्व नहीं समझोगी। तुम  को जब   अध्यापिका की  डांट पडेगी तब तुम समझोगी। इतने में क्लास की मैडम उनके कक्षा में  आ   गई थी। उसने अपने मन में सोच लिया था कि आगे से वह अपनी वस्तुएं सम्भाल कर रखेगी। नंदिता  अपनें दोस्तों की ओर इशारा करते हुए बोली कि दोस्त उसे कहते हैं जो मदद पड़ने पर सहायता करें। लेकिन तुम सब के सब स्वार्थी हो। आज मुझे एक बात की सीख  मिली। हमें स्वार्थी मित्रों का साथ नहीं करना चाहिए। वह अपने बैंच से उठी और उस पर बैठनें ही लगी थी तभी अध्यापिका जी  नें उसे दूसरे   बैन्च पर  बैठते हुए देख लिया था। दूसरे  बैन्च  पर बैठकर वह अपनी कॉपी निकाल ही रही थी कि उसे  सीट के पास वहां पर  पैन्सिल का छोटा सा टुकड़ा  नीचे गिरा दिखाई दिया।वह उसे उठानें लगी। मैडम नें उसे कुछ उठाते देख लिया था। उसने देखा वह तो उसकी पेंसिल का ही एक टुकड़ा था। वह बोली मैडम सॉरी।

अध्यापिका ने सारे बच्चों को सवाल  लिखाए। उसने जल्दी से सारे के सारे सवाल  हल कर दिए। आज  वह  साफ साफ बच गई थी। चलो कुछ दिन इस पेंसिल से ही काम चलाएगी।  मैडम चित्रा हर रोज उस पर नजर रखने लगी। यह लड़की क्यों अलग बैठी है? अध्यापिका बोली बेटा आपस में लड़ाई नहीं किया करते। सब बच्चों को आपस में मिल जुल कर रहना चाहिए। हर बात पर झगड़ा करते हो। मैंनें कक्षा में आने से पहले तुम सबको तू तू मैं करते देख लिया था। इसी तरह लड़ते रहोगे और तो और बच्चे भी लड़ाई करना सीखेंगें। तुम बताओ तुम क्यों झगड़ रही थी?   उसकी  सहेलियां बोली  अध्यापिका जी वह अपनी चींजें तो  नहीं लाती हैं यह कभी भी अपनी पेंसिल नहीं लाती है।। हर रोज पेंसिल हम से मांगती है। हम उसे अपनी पेंसिल नहीं देना चाहते। मैडम  नें नंदिता को खड़ा करके  कहा क्या यह बात सच है? वह सोचनें लगी कि यह सभी तो मुझ पर झूठा इल्जाम लगा रही हैं। मैं तो अकेली हूं। अकेली लड़की  इन सभी का मुकाबला नहीं कर सकती। वह अपनी सफाई में कुछ नहीं बोली। उसने चुपचाप रहना ही उचित समझा। उसके दोस्त उसे खड़ा देख कर सोच रहे थे कि यह भी कुछ कहेगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। अध्यापिका नें कहा  कल  पैन्सिल  जरूर ले आना।

छोटे लोगों की फितरत तो यही होती है सामने वाले को नीचा दिखाने की। मैं हर हाल में उन जैसा नहीं बनना चाहती। मुझे अपनें दोस्तों से भी नहीं झगड़ा करना है और ना ही  उन्हें नीचा दिखाना है। मैं भी ऐसा ही बन गई तो मुझमें और इन में क्या फर्क रह जाएगा? कभी ना कभी तो इनका घमंड उतरेगा। जब परीक्षा नजदीक आएगी तब सब भीगी बिल्ली बन कर मेरे आगे पीछे घूमेंगे। इस बार तो मैं जितना परिश्रम करती हूं उससे दोगुनी मेहनत करूंगी। यह सब मुझे अकेला समझते हैं। अकेला इंसान भी अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ सकता है।

अध्यापिका उसे हर रोज छोटी सी पेंसिल से काम करते देखा करती थी। अध्यापिका जब भी पढ़ाती थी  वह हर प्रश्न को याद कर लेती थी। वह बहुत ही नेक और ईमानदार थी। उसने अपने मन में सोचा कि वह मैडम के प्रश्न के उत्तर नहीं दिया करेगी। परीक्षा में वह सबको अच्छे अंक लाकर चौंका देगी। मैडम नें देखा वह बच्ची अपने बस्ते को बहुत ही अच्छे ढंग से रखती थी। डैस्क के नीचे कपड़ा बिछा लेती थीं ताकि उसका बस्ता गंदा न हो। उसके कक्षा के बच्चे आते ही बस्ते को बैंच पर ऐसे पटकते  थे मानों उन्हें  जबरदस्ती स्कूल भेजा गया हो। अध्यापिका जैसे ही कक्षा से बाहर जाती बच्चे धमाचौकड़ी मचाने लगते। मैडम ने कमरे में कैमरा और टेपरिकारडर फिट कर दिया था। वह कक्षा के बच्चों की बातों को सुनने की कोशिश करती थी। वह देखना चाहती थी कि  बच्चे आपस में क्यों लड़ाई करते हैं? क्यों यह छोटी सी बच्ची कक्षा में अकेली बैठती है? मुझे तो यह बच्ची ठीक लगती है। और  अपनी कौपियों   में  जिल्द लगा कर रखती है। एक दिन मैडम ने रिकॉर्ड की गई बच्चों की सारी बातें सुन ली थी। सभी बच्चे आपस में कह रहे थे कि हमने नंदिता के साथ अच्छा नहीं किया। सोनी बोली नंदिता के साथ हमने बहुत ज्यादती की है। वह हर रोज अपनी पैसिल हमें काम करने के लिए दे देती थी। आज जब मैडम ने टेस्ट लेना चाहा तो  उसके पास पैसिल नहीं थी। आज हम सभी पैसिलें लाए थे। हमें भी उसकी मदद करनी चाहिए थी। हम सबने अध्यापिका जी को झूठ बोल दिया। वह बेचारी  तभी अलग जाकर बैठ गई। अध्यापिका ने नंदिता को कहा कि क्या तुम पेंसिल हर रोज नहीं लाती हो?  यह सब बच्चे तुम्हें ठीक ही कह रहे हैं वह अपनी सफाई में क्या कहती? सोनी बोली अध्यापिका जी के आने से पहले उसनें    मुझे बताया था कि मेरे पिताजी ने मुझे कहा कि जब तक एक महीना समाप्त नहीं हो जाता तब तक उसे दूसरी पैन्सिल नहीं मिलेगी। जब  अध्यापिका की मार पड़ेगी तब कहीं जाकर उसे चीजों को अच्छे ढंग से रखने की आदत पड़ेगी। बेचारी नंदीता मुझे तो उसके लिए बड़ा बुरा लग रहा है। मैं तो उससे माफी मांग लूगी। उसके साथ बैठनें वालीे  सहेलियां कहनें लगी उसकी इतनी तामिरदारी क्यों करती हो?वह बोले यह टैस्ट में हमें नकल नहीं करवाती।

अध्यापिका को सारी बात पता चल चुकी थी। वह सभी बच्चों पर नजर रखने लगी। उन्हें पता चल चुका था कि नंदिता एक गरीब घर की लड़की है। दूसरे दिन मैडम कक्षा में आई तो नंदिता को कहा कि यह लो आज मैं तुम्हें  यह पेंसिल देती हूं। उसको संभाल कर रखना। नंदिता पेंसिल पाकर इतनी खुशी हुई। उसका चेहरा  ऎसे खिल उठा मानों बरसों के बाद खुशी उसे हासिल हुई हो। मैडम  हर रोज देखती  थी। मैडम के सारे प्रश्नों के उत्तर दे रही थी। अध्यापकों को समझ में आ गया था बेचारी छोटी सी बच्ची के दिमाग  में पैन्सिल न   ले कर  आने पर यह सवाल उठ रहे थे। एक महीने से छोटे से टुकड़े से काम करते  उसे देखा था।  इसलिए उसनें नंदिता को पैन्सिल ला कर दी थी। दूसरे दिन फिर से  उसे छोटे से टुकड़े से काम करते देखा तो  अध्यापिका को भी गुस्सा आ गया। मैनें कल ही तो तुम्हें पैन्सिल ला कर दी थी। आज यह इतनी छोटी कैसे रह गई। नंदिता कुछ नहीं बोली। कक्षा अध्यापिका नें सोचा कि इस लड़की की आदत ही है  छोटी सी पैन्सिल से लिखनें की।

उसके पापा जब घर आए तो अपनें मन में सोच रहे थे उस छोटी सी बच्ची को न जानें क्या क्या बुरा भला कह गया। आज उसे स्कूल में अवश्य ही डांट पड़ी होगी। मैं तो उसे केवल समझाना चाहता था। हर रोज चीजें चोरी होती जाएंगी तो कैसे चलेगा? उसे समझाना तो जरुरी था। वह पन्द्रह दिन बाद अपनी बेटी को पैन्सिल ले कर आए थे।

नंदिता नें  स्कूल से आते ही  एक चिट्ठी अपनें पापा को देते हुए कहा पापा यह चिठ्ठी मैंनें आप को लिखी है। यह पढ लेना।  उसने लिखा था पापा मैं अपनी चीजों कों यूं ही इधर उधर फैंक देती थी। आप नें मुझे सिखाया था कि छोटी से छोटी चीजों का हमारे जीवन में कितना महत्व होता है चाहे वह  छोटी से छोटी  वस्तु ही क्यों ना हो? आज अध्यापिका जी ने मुझे पूरी पेंसिल दी। मैंने उस पेंसिल के टुकड़े कर दिए ताकि यह पैंसिल  काफी दिन चला सकूं। आप से ही मैंने छोटी से छोटी चीज की अहमियत सीखी है। अध्यापिका मुझ पर गुस्सा भी हुई लेकिन मैंने अध्यापिका के गुस्से की परवाह नहीं।  पापा मैं अपने कक्षा के अपनें दोस्तों को अपनी पेंसिल के टुकड़े काम करने के लिए देती थी।एक दिन उन्होंने  मुझ पर सारा इल्जाम लगा दिया कि मैं ही पेंसिल नहीं लाती हूं। उस दिन आपने  मुझे यह भी कहा था कि जब तक तू किसी चीज की कीमत नहीं समझेगी तब तक तुझे पैसिल लाकर नहीं दूंगा।  इस सीख  को मैनें अपनें दिमाग में बिठा लिया था। मुझे आपकी बात अच्छी लगी। मैडम की नजरों में मैं गलत साबित हुई। मुझे आपकी सीख याद आई आपने मुझे समझया था कि बेटा चाहे तुम्हारे मित्र तुम्हारे  साथ कितना  भी झगड़ा करे तुम्हें उनके विरुद्ध कुछ नहीं कहना। क्योंकि जो लड़ाई झगड़ा करते हैं उनकी सोच उतनी ही छोटी होती है। तुम भी उन जैसा बन गई तो तुम में और उन में क्या फर्क रह जाएगा? इसलिए मैंने अध्यापकों को कुछ नहीं कहा। ऐसा नहीं है कि मैं उनका मुक़ाबला नहीं कर सकती थी। मैं भी अध्यापिका जी को अपनी सफाई दे सकती थी। लेकिन मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा

उसके पिता ने उसके लिखे पत्र को पढ़ा और खुश होकर बोले बेटी आज तुम छोटी सी छोटी वस्तु के महत्व को समझ गई हो। मैं तुम्हारे पत्र के साथ यह एक पेंसिल तुम  को इनाम स्वरूप दे रहा हूं। तुम नें अपने दोस्तों के साथ लड़ाई झगड़ा नहीं किया।  तुम आगे से उन्हें  कोई वस्तु देने से पहले सोच लिया करो। बेटा अगर कोई बच्चा बहुत ही मुश्किल में हो तो उसकी सहायता करना तुम्हारा फर्ज है। उसके पापा ने यह  सब बातें उस   खत में ही लिख कर उसके बैग में  वह खत रख दिया था।

दूसरे दिन  खेल से आतें के बाद  उसे नींद आ गई। उसने  अगले दिन स्कूल जानें के लिए अपना बैग उठाया और स्कूल के लिए निकल पड़ी।

अध्यापिका ने कक्षा में आते ही सब बच्चों को कहा कि खड़े हो जाओ। मैडम को बच्चों की चालाकी   का पता चल गया था वह लड़की बिल्कुल सच्ची थी। मैडम कक्षा में नंदिता की प्रशंसा करने लगी। वह सब बच्चों को कहनें लगी तुम्हें तुम्हें भी नंदिता जैसे बनना चाहिए। उसकी सहेलियों को बड़ा गुस्सा आया। मैडम तो इसी की  ही चहेती है

एक दिन कक्षा में मैडम टैस्ट लेने जा रही थी कि मैडम ने बच्चों को सवाल  लिखवाया। उसकी सहेलियों में से एक भी लड़की पेंसिल नहीं लाई थी। उन्हें तो मांगने की आदत थी नंदिता ने अपने बैग से पेंसिल निकाली और उस पेंसिल से टेस्ट देने की सोची जो  पेंसिल उसके पिता उसे लाए थे। अध्यापिका ने जैसे ही टैेस्ट लिखवा कर दिया तो उन सब लड़कियों ने अध्यापिका को कहा कि  आज उसके पास बड़ी पैन्सिल है। यह तो हमेशा छोटी पेंसिल से ही काम करती है। इसने हमारी पेंसिल ले ली है।  यह लाल रंग की पैन्सिल तो मेरी है। आभा बोली। वह कहना ही चाहती थी कि मेरे पापा तभी अध्यापिका ने उससे पैसिल छीन ली।  उसके शब्द  उसके मुंह में ही रह गए। अध्यापिका नें भी  उसे  हमेंशा छोटी सी पैन्सिल से  काम करते देखा था। अध्यापिका  जी ने उन सबको बेंच पर खड़ा कर दिया। सुबह आते ही  तुम सब बच्चे  झगड़ा करने लगते हो। कक्षा की प्रार्थना की घंटी बजी। सभी बच्चे प्रार्थना के लिए चले गए।  अध्यापिका सोचने लगी कि यह बच्ची चोरी नहीं कर सकती। आज सभी बच्चों की तलाशी लेनी चाहिए। अगर यह चोरी करते होंगे तो उनके  बस्ते  में और भी चोरी किया सामान मिलेगा। सबसे पहले नंदिता की ही बैग देखा  जाए।  अध्यापिका ने सारा  बस्ता छान मारा परंतु उसे कुछ नहीं मिला। बस्ते  कि जेब में एक खत पड़ा  था। उस  में नंदिता ने अपने पापा को खत लिखा था। वह  खत अध्यापिका जी ने पढ़ लिया।  उसके पापा ने नीचे लिखा था कि मैं तुम्हें यह लाल रंग की पैंन्सिल उपहार स्वरूप दे रहा हूं। यह रंग तुम्हें अच्छा लगता है। अध्यापिका जी को सब कुछ पता लग गया था। कि इस बच्ची पर उन्होंने झूठा इल्जाम लगाया है। यह बच्ची तो इतनी मासूम है। उसके पापा  नें उसे ईनाम के रुप में यह पैन्सिल दी थी।

अध्यापिका ने सभी दोस्तों को कहा कि तुम सब को शर्म आनी चाहिए। तुम्हें तो इस से सीख लेनी चाहिए। छोटी सी बच्ची एक छोटी सी वस्तु की कीमत को समझती है। मैंने जब उस दिन उसे पैन्सिल दी थी तो मुझे भी उस पर गुस्सा आया था कि उसने यह पेंसिल छोटी कर दी थी। लेकिन आज उसको देख कर  मुझे भी बहुत सीखनें को मिला। एक छोटी सी बच्ची से भी हम सीख ले सकतें हैं। तुम्हें क्या मुझे भी इस से सीख लेनी चाहिए? हमें हर एक वस्तु की कीमत को समझना चाहिए। चाहे वह एक पेंसिल ही का टुकड़ा क्यों ना हो? सब के सब बच्चे नंदिता को देख रहे थे

मैडम ने दूसरे दिन सभी बच्चों के सामने उसे ईनाम दिया और कहा कि तुम सभी को नंदिता जैसा बनना चाहिए। सभी के सभी बच्चे उसके दोस्त बन गए थे। उन्होंने नंदिता से कहा कि हमें क्षमा कर दो। हमने तुझ पर झूठा इल्जाम लगाया लेकिन तुमने हमारी गलतियों को माफ कर दिया। तुम सच में ही महान हो।

नन्हीं परी

एक छोटे से कस्बे में हीरालाल अपनी पत्नी रेशमा के साथ रहा करता था। हीरालाल की अपनी एक छोटी सी दुकान थी जिसमें वह काम किया करता था। घर के कामकाज में कभी अपनी पत्नी का हाथ नहीं बटांता था उसकी पत्नी रेशमा भी अपने पति से चिड़ी चिड़ी रहा करती थी। वह भी प्राइवेट ऑफिस में काम करती थी। सुबह ऑफिस को निकल जाती शाम को घर आती। उसके पति जब घर आते तो अपनी पत्नी को कहते खाना  तैयार है। वह कहती अभी नहीं बना है। बना दूंगी। मैं भी तो सारा दिन थक हारकर घर आती हूं। दोनों आपस में झगड़ कर काम चला लेते। उनके घर में उनकी बेटी भी हो चुकी थी। बेटी के जन्म लेने पर सुकन्या के पिता को जरा भी खुशी नहीं।  रेशमा से और नाराज रहने लगा। बेटी को भी गोद में नहीं लेता था। अपने पति के दुकान जाते ही वह सारी भड़ास अपनी छोटी सी बेटी सुकन्या पर निकाल देती थी।  

नन्ही सी बेटी जोरों से भूख के मारे जब बेहाल नहीं हो जाती थी तब तक वह उसे खाने को नहीं देती थी।कभी जब उसकी सहेलियां तो वह अपनी सहेलियों के साथ इतना मस्त हो जाती  कि बेटी की तरफ ध्यान ही नहीं जाता था। एक बार जब रेशमा की सहेलियां  घर पर आई थी तो सुकन्या जोर-जोर से रोने लगी। उसकी सहेलियां बोली पहले तुम अपनी बेटी को चुप करवाओ। लेकिन वह उन्हें कहती उसे कुछ नहीं होगा। उसे रोने की ऐसीे ही आदत है। बेचारी सुकन्या का क्या कसूर था? दोनों पति-पत्नी के बीच दूरियां बढ़ गई थी। वह 5 वर्ष की हो चुकी थी। उसके पिता ने  उसे स्कूल में दाखिल करवा दिया था। उसे दो-तीन किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था। उसके घर के पास कोई स्कूल नहीं था। एक दिन सुकन्या को बुखार था। हीरालाल बोले इसे आज तुम ही स्कूल छोड़ आओ। उनकी पत्नी  रेशमा बोली तुम ही क्यों नहीं छोड़ देते? इस बात पर दोनों लड़ाई झगड़ा करने लगते बेटी उन्हें हरदम लडाई झगड़ा करते देखा करती थी। उसे अपने माता-पिता पर गुस्सा आता था। छोटी सी बच्ची अपने माता पिता को क्या कहती?  

स्कूल में अध्यापक  जब उसे होमवर्क करनें को देते तो वह अपनी मां के पास समझनें के लिए आती-उसकी मां उसे कहती तुम्हारे अध्यापक किस लिए हैं? उसे जब कुछ काम समझ नहीं आता वह काम करके नहीं ले जाती थी। स्कूल में उसके अध्यापिकाएं उसे सज़ा देती। काम करके क्यों नहीं लाई। वह सारा दिन बेंच पर खड़ा हो जाती। सुकन्या 5वर्ष की हो गई थी वह अपनी मां के साथ रसोई घर में काम संभाला करती थी। एक दिन सुकन्या ने चुपके से अपने मम्मी पापा को लड़ते सुना उसके पिता कह रहे थे कि अब की बार हमारे घर में लड़का ही आएगा। तुम अपने खाने-पीने का ध्यान रखा करो। सुकन्या से काम करवा लिया करो। छोटा-मोटा काम तो वह भी देख सकती है। काश हमारे घर में पहले ही बेटे ने जन्म लिया होता। हमारे जीवन की खुशियों को किसी की नजर लग गई। पहले ही हमें लड़की दे डाली। काश  ये पैदा ही नहीं हुई होती। ना काम की ना काज की दुश्मन अनाज की। रेशमा बोली ऐसा क्यों कहते हो? है तो वह तुम्हारी ही बेटी। हीरलाल बोला इसकी बीमारी पर न जानें कितना खर्चा हुआ? कंही अब जा कर वह  ठीक हुई है? इसकी  पढाई पर और शादी पर न जानें कितना खर्चा होगा? इससे अच्छा होता कि वह पैदा ही नहीं होती। तुम इसके लिए परेशान मत हुआ करो। आने वाले की चिंता करो। वह बोली कि तुम्हें कैसे पता है? कि हमारे घर में इस बार लड़का ही होगा। अगर लड़की हो गई तो क्या होगा? हीरालाल बोला एक दिन मैं तुम्हें इसलिए अस्पताल नहीं  ले गया था। तुम्हारी जांच करवाई थी। मैंने तुम्हारे गर्भ में लड़का है या लड़की यह देखने के लिए मैं तुम्हें अस्पताल ले गया था। शुक्र है इस बार भगवान ने हमारा  पुकार सुन ली। हमारे भी लड़का ही होगा। डॉक्टर को मैंने इस टेस्ट को करवाने के पूरे 10,000 रुपये दिए। वह हक्का बक्का हो कर अपने पति की बातें सुन रही थी। उसे थोड़ा सा दिलासा  तो हुआ कि इस बार लड़का ही है।  सुकन्या ने यह सब सुन लिया था। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे वह सोचनें लगी मेरी मां ने मुझे इस संसार में लाना ही नहीं था तो मुझे उस दिन मार क्यों नहीं दिया? मेरे माता-पिता की सोच कितनी छोटी है? क्या माता-पिता अपने बच्चों के साथ इस तरह से पेश आतें हैं?

एक दिन सुकन्या जब स्कूल से घर पहुंची तो देखा उसकी मां पहले ही घर पहुंच चुकी थी। वह रास्ते में खेलनें लग जाती थी। उसे रोकने टोकने वाला तो कोई नहीं होता था। उसकी मां ने कहा इतनी देर कहां लगाई? जल्दी घर क्यों नहीं आई? वह बोली मां मैं अपने मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने लग गई थी। उसकी मां ने उसको मारा और कहां स्कूल से सीधे घर आया करो। आज पता चला तुम हर रोज देर से स्कूल से आती होगी। वह बोली मां मैं पड़ोस की लड़कियों के साथ खेलती हूं। तुम घर में साफ सफाई कर दिया करो। तुम्हें पता है कि मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती।

शाम को जब उस के पिता घर आए तो उसकी मां ने सारी शिकायत उनसे कि वह बोले कल से सुकन्या स्कूल नहीं जाएगी। कोई बात नहीं। इस साल वह  स्कूल नहीं जाएगी तो कोई घाटा नहीं हो जाएगा। सुकन्या को पांच-छह दिन  स्कूल जाए  बिना हो गए थे। स्कूल से घर में पत्र आ गया था वह स्कूल नहीं आ रही है। अगर वह स्कूल नहीं आई तो अगले सप्ताह उसका नाम स्कूल से खारिज कर दिया जाएगा। वह अपनी मां पिता के पास जाकर बोली मुझे स्कूल जाना है। उसके पिता ने उसके कान पकड़कर कहा  मैं भी देखूं कैसे स्कूल जाती है?

सुकन्या की मां अपनें को हॉस्पिटल दिखानें चली गई। सुकन्या के पिता अपनी दुकान पर चले गए। वह  भी अपनी मां के साथ अस्पताल गई। उसकी मां ने उससे कहा कि तू बाहर बैठ मैं अस्पताल के अंदर  जाती हू। उसने वहां से दौड़  लगाई। उसने अध्यापकों से सुना था कि अगर तुम्हारे माता पिता तुम्हे स्कूल भेजनें में आनाकानी करे तो तुम्हे उनका विरोध करना चाहिए।  मेरे माता-पिता को तो बस मेरी परवाह ही नहीं है। वह तो बस बेटे की आस लगाए बैठे हैं। मैं अब घर नहीं जाऊंगी। मुझे तो वे फूटी आंख नहीं सुहाते। इससे अच्छा होता कि मैं कहीं चली जाती?

यह सोचते हुए वह धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए अस्पताल से बहुत ही दूर निकल गई। उसकी मां जब अस्पताल से बाहर आई तो  उसकी मां ने सोचा शायद वह घर पहुंच गई होगी, जब उसकी मां घर लौट आई तो अपनी बेटी को ना पाकर सोचने लगी इतनी छोटी सी बच्ची कहां जा सकती है? जब गुस्सा ठंडा होगा तो वापस घर आ जाएगी।  पड़ोस में खेलने चली गई होगी। शाम को हीरालाल भी घर आ गए थे। आते ही रेशमा बोली क्या सुकन्या दुकान पर आई थी? वह बोला नहीं। आ जाएगी कहां जाएगी? कहीं खेल रही होगी? आ जाएगी। जल्दी से खाना निकालो। बड़े जोर की भूख लगी। है जल्दी खाना निकालो। भूख लग रही है। वह कहने लगा उसे भूख लगती है तो वह कहीं भी खा लेती है। बच्ची है कहीं भी खा लेगी। रेशमा को कहा कि तुम भी खाना खाते लो। ठीक ही तो कह रहे हैं किसी न किसी के घर खाना खा कर आ जाएगी? रेशमा नें भी खाना खा लिया।

जब काफी अंधेरा हो गया तो सुकन्या  10:00 बजे के करीब घर वापस आई। उसे डर भी लग रहा था। वह अंदर जानें ही लगी थी तो देखा उसके माता-पिता दोनों आपस में बातें कर रहे थे। मां बोली सुकन्या ना जानें कहां चले गई? हीरलाल बोले अच्छा ही हुआ। आज कहीं जाकर चैन की नींद आई है। घर वापस न ही आए तो ठीक है।

सुकन्या की जब जाग खुली थी  तो उसनें सोचा था कि घर वापस चले जाती हूं। माता-पिता चाहे कितने भी सख्त हों वह अपनी औलाद का बुरा नहीं चाहते।  उसने अपने माता पिता को यह कहते सुना कि सो जाओ तो वह अपने मन में बहुत ही उदास हो गई। रेशमा बोली की पुलिस में रिपोर्ट कल लिखवा देंगे। हीरालाल बोला रिपोर्ट लिखवाने की  कोई जरुरत नहीं। डूब कर कहीं मर जाती तो अच्छा होगा। सुकन्या ने यह सब सुन लिया था। वह अपनी फुलवारी में ही सो गई थी। सुबह 4:00 बजे उठकर वहां से चल पड़ी। उसका भाग्य उसे  न जानें कहां ले जा रहा था? उस बेचारी को यह भी नहीं पता था कि वह कहां जा रही है? चलते चलते वह काफी दूर निकल गई थी। अचानक उसे एक स्कूल बस दिखाई दी। वह स्कूल के बच्चों की बस थी। स्कूल के  बच्चे  बाहर से पिकनिक मनाने  आए हुए थे। उसने देखा कि बस के पास एक बैग पड़ा हुआ था जिसमें बच्चों की ड्रेस थी उसने जल्दी से वह ड्रेस चुपके से पहन ली और उस बस में चढ़ गई टूरिस्ट लोगों की वह बस थी। उसमें शहर से बच्चे पिकनिक मनाने आए हुए थे जब दूसरे दिन बस अपने गंतव्य स्थान पर पहुंची सारे के सारे बच्चे उतर चुके थे केवल दो बच्चा बच्चे ही रह गए थे। उन्हें लेने कोई नहीं आया था बस चालकों को भी बस में नींद आ गई थी।

सुकन्या ने देखा कि एक बहुत ही रईस आदमी अपने बेटे को लेने आए। वे अपने बेटे को बस से जैसे ही उतारने की कोशिश करने लगे तो सुकन्या बोली अंकल मुझे भी अपने घर ले चलो। वह बोले बेटा तुम्हारे मां बाप कहां है? वह  बोली अंकल मेरे माता-पिता नहीं है। वह व्यक्ति उसे चौंक कर देखने लगा। ऐसे कैसे हो सकता है? तुम जल्दी बताओ वरना तुम्हारी रिपोर्ट पुलिस थाने में कर दूंगा। वह बोली अंकल रिपोर्ट कर कर देना पहले आप मुझे अपने घर ले चलो। आदमी छोटी सी लड़की की मीठी मीठी बातें सुनकर खुश हो गया बोला तुम मेरे घर चल सकती हो। एक शर्त पर तुम्हे ले  कर चल सकता हूं। कल मैं पुलिस थाने चलकर तुम्हारी रिपोर्ट दर्ज करवा दूंगा। वह आदमी अपने भाई के बेटे को लेने आया था। उसके भाई के एक ही बेटा था लेकिन उसके अपनी कोई संतान नहीं थी। वह अपने भाई के बेटे को ही अपने बेटे की तरह प्यार करता था।

अक्षय की पत्नी कितनी बार अपने पति को कहती थी कि चलकर किसी बच्चे को गोद ले लेते हैं। वह कहता था कि ठीक है किसी दिन हम अनाथालय जाकर बच्चे को गोद ले लेंगे। आज उस बच्ची को देख कर सोचने लगा कि यह हमारे पास ही रहे। मैं और पलक उसे अपनी बेटी जैसा प्यार देंगे। थोड़ी ही देर में सोचने लगा शायद वह अपनी मां से बिछुड़ गई है। उसकी मां का तो रो-रो कर क्या हाल हुआ होगा? मुश्किल से 5 वर्ष की होगी। उसको जल्दी से नीचे उतारा।  घर पहुंच कर  अपनी पत्नी को दे कर बोला यह लो मैं तुम्हारे लिए नन्हीं सी परी को लाया हूं। उसकी पत्नी उसे देख कर बहुत खुश हुई। उसकी पत्नी बोली जल्दी से आयुष को छोड़कर आओ।  हम फिर तीनों मिलकर खाना खाते हैं। उसे देख कर बोली तुम कहां की हो?मैं अंकल के आ जानें पर आपको सारी कहानी  सुनाऊंगी।  आप अगर मुझे अपने घर में रखोगे। मुझे अपनी बेटी मानोगे। मैं अपने घर नहीं जाना चाहती। पलक उस नन्ही सी परी के मुख से यह बात सुनकर दुःखी हुई। वह क्यों-अपने घर जाना नहीं चाहती? ऐसा अचानक क्या हुआ होगा? उसके पति अक्षय वापिस आ चुके थे। वह अपनी पत्नी से बोले वह लड़की मुझे बस में मिली। उसने बताया कि वह घर से भाग कर आई है। उसके माता पिता आपस में लड़ते ही रहते हैं। उन्होंने उसे कभी भी प्यार नहीं किया। नन्ही परी बोली मैंने  माता पिता को कहते सुना कि घर में  एक छोटा सा मेहमान आने वाला  है। इस बार लड़का ही होगा। बेटी की हमें जरूरत नहीं है। इस हमने  सुकन्या पर बहुत खर्चा कर डाला। ना जाने इसकी पढ़ाई पर और शादी पर कितना खर्चा होगा? अच्छा होता यह कहीं चली जाती। मैं इतना सुनकर भी घर वापस आ गई थी लेकिन उन्होंने मेरा स्कूल जाना भी बंद करवा दियां। इस वर्ष यह स्कूल नहीं जाएगी  तो क्या हुआ? हम इसे  आगे अभी नहीं पढ़ाएंगे। यह पढ़ कर क्या करोगी? तब मुझसे रहा नहीं गया। मैं चुपचाप घर से भाग कर आ गई। 6 दिन तक स्कूल ना जाने के कारण मेरा नाम स्कूल से  खारिज कर दिया था। मेरे माता-पिता  नें स्कूल में कहला  दिया था कि सुकन्या बीमार है इसलिए  वह स्कूल नहीं आएगी। अंकल आंटी आप ही बताओ क्या, बेटा आने पर लड़कियों की ओर ध्यान देना बंद कर दिया जाता है?

पलक बोली बेटा तुम्हारा घर कहां है? वह  बोली मेरा घर से तारापुर में है। हो सकता है यह छोटी सी बच्ची झूठ बोल रही हो। अभी तक तो उसके पिता ने पुलिस में रिपोर्ट  भी दर्ज  करवा दी होगी। वहां जाकर पता करता हूं।उन्होनें  पलक को कहा में इसे उस के घर छोड़ कर आता हूं। सुकन्या पलक के पांव पकड़कर बोली आप मुझे वहां मत भेजो। पलक की आंखो से अश्रुधारा बहनें लगी। वे दोनों बोले पहले वहां जा कर पता करते हैं फिर कोई निर्णय लेंगें। अपनी गाड़ी में सीतापुर पहुंचे। उनके घर का पता पूछते पूछते उनके घर पहुंचे।अक्षय वहां पर जा कर बोले  मैं हीरालाल जी से मिलने आया हूं। वे बोले कि  आप को मैनें नहीं पहचाना। वह बोला मैं बड़ी दूर से आया हूं। रास्ते में मुझे एक लड़की मिली थी वह कह रही थी कि मैं सीतापुर में रहती हूं। मेरे पिता का नाम हीरालाल है। वह बोली क्या आप  मुझे मेरे घर छोड़ देंगे। मैं उसे छोड़ने के लिए तैयार हुआ था। मैं  पता पूछते पूछते यहां तक पहुंच गया। आप शायद हीरालाल ही होंगे। मैं बड़ी दूर से आया हूं। छोड़ने के लिए मैं तैयार हुआ ही था कि वह वहां से भाग गई। हीरालाल बोला वह लड़की है ही ऐसी। ना जाने कहां  चले  गई होगी। अपने आप वापिस आ जाएगी। अक्षय वाला फिर भी मैं आपको बताने चला आया। आपने पुलिस में रिपोर्ट तो लिखा ही दी होगी। वह बोला हां में लिखवा दूंगा। बताने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

अक्षय यह कहकर चलने के लिए तैयार हो गया था उसे पता लग गया था कि वह लड़की जो कुछ कह रही थी वह ठीक ही कह रही थी। सचमुच ही वह दोनों उस बच्ची को प्यार नहीं करते। शाम के समय वह पुलिस अधिकारी महोदय से मिला उसे सारी बात बताई। हीरालाल अपनी बेटी को अगर ढूंढने के लिए रिपोर्ट लिखवाने आए तो ठीक है वरना उसकी बेटी मेरे पास सुरक्षित है। मैं पाल पोस कर बड़ा कर लूंगा। इस तरह 20 साल बीत गए। उन दोनों ने कभी भी अपनी बेटी को ढूंढने की कोशिश नहीं की। अक्षय ने सुकन्या को कानूनी तौर पर अपना लिया।

आज सुकन्या डॉक्टर बन गई थी। वह अपनी मां पलक और पिता अक्षय से इतना प्यार करती थी  कि वह उनके बिना  एक पल भी नहीं रह पाती थी। वह अपने पिछले सारे दुख भूल गई थी। उसका बचपन बहुत ही भयानक था। उसका भविष्य बहुत ही सुनहरा हुआ। उसकी मां उसे एक राजकुमारी की तरह पलकों पर बिठा कर रखती थी। और अक्षय के जीवन में बच्ची के आ जाने से बाहर आ गई थी। उनके चेहरों पर मुस्कान बन कर उनके होठों पर और  उनके उनके घरों में  मुस्कान ले आई थी

सुकन्या के जाने के बाद हीरालाल और उसकी पत्नी रेशमा जो खुशियां देखना चाह रहे थे वह उन्हें नसीब ही नहीं  हुई। उनके घर में एक बच्चे ने जन्म लिया। पैदा  होते ही उसकी एक आंख फूटी हुई थी और एक टांग टेडी। वह दिव्यांग पैदा हुआ था।  उसके माता-पिता जब विवेक को गोद लेते उसके आंख और टेढ़ी टांग देखकर बहुत दुःखी होते थे। हम सोचते थे कि बेटा होने पर हमें सारी खुशियां मिलेगी। लेकिन हुआ उसके विपरीत। उनकी रही सही खुशी भी दुःख में परिवर्तित हो गई। उनका बेटा हमेशा बीमार हो जाता था। कभी अपनी बेटी को याद कर रो लिया करते। अब क्या हो सकता था? आसपास के घरों के लोग उन दोनों को कहते कि तुमने अपनी नन्ही सी बेटी को कितना सताया? उसका हिसाब तो देना पड़ेगा। दोनों के दोनों सोचते थे कि बेटा किसी ना किसी तरह ठीक हो जाता उसका इलाज हो जाता ठीक है। इसके लिए ना जाने क्या-क्या उपाय करते रहते थे।

बेटा भी 18 साल आ चुका था। घर पर अपने पिता की दुकान पर बैठा रहता था। कभी-कभी आहिस्ता आहिस्ता अकेलाा बाहर चला जाता था

एक दिन मोहन घूमने गया था वह आईस्ता  आईस्ता चल रहा था उसके सामने से एक गाड़ी बड़ी तेजी से गुजरी वह बाल-बाल बचा। उस कार में से  एक युवती उतरी।  उसने अपने हाथ का सहारा देखकर उसे ऊपर उठाया। बोली भाई तुम्हें कहीं चोट तो नहीं आई। भाई शब्द सुनकर वह बोला नहीं बहना मुझे कहीं नहीं नहीं लगी। थोड़ी सी खरोंच लगी। आईस्ता आईस्ता  आगे चलने लगा। उस का लॉकेट नीचे गिर गया था। उसको उठाकर  सुकन्या ने देखा  दूसरी तरफ  शायद उसके माता पिता की तस्वीर होगी। आज मेरा भाई भी इतना बड़ा हो गया होगा । दूसरे दिन मोहन  भी उसी रास्ते से जा रहा  था। वह गाड़ी से उतरी और उसके पास जाकर बोली  कल तुम्हारी जेब से  लॉकेट  गिर गया था। शायद उसमें तुम्हारे माता-पिता की तस्वीर है। वह बोला  हां मेरे माता-पिता की है। वह बोली तुम्हारे माता-पिता कहां रहते हैं? वह बोला मेरे माता-पिता  पास ही एक छोटी सी दुकान में काम करते हैं। मां तो घर पर ही रहती हैं। मां पिता दोनों  बुढे हो चुकें हैं। मैं भी उनका काम नहीं संभाल सका। तुम नें  अपनी आंख का इलाज नहीं करवाया। कहां से करवाता?। मेरे माता पिता के घर का सारा खर्च  बडी़ मुश्किल से चलता है। उसे याद आ गया कि उसके माता पिता ने भी उसे किस प्रकार  घर से बाहर कर दिया था।? उसे  मोहन पर दया आई।  मैंने इस लड़के को भाई कहा है।  वह  बोली मैं तुम्हारा इलाज करवाऊंगी। तुम मेरे भाई के समान  हो। तुम अपने माता पिता को बताए बगैर मेरे साथ शहर चलो। वहां चल कर तुम्हारा इलाज करवाऊंगी।  तुम्हें देख कर  मुझे अपने भाई की याद आ गई। मेरी कहानी भी बहुत दर्दनाक है। फुर्सत के समय सुनाऊंगी। वह कहने लगा यदि मेरी टांग और आंख ठीक हो जाएगी तो मैं भी कमा सकता हूं।

सुकन्या उसे शहर ले आई। उसने अपनी मां और पिता को सारी कहानी सुनाई और कहा कि यह लड़का मुझे रास्ते में मिला। यह मेरे गांव का है। उसमें मुझे अपना भाई नजर आया। मैं उसका इलाज करवाने के लिए शहर ले आई हूं। जब उसकी  आंख और टांगे ठीक हो जाएगी तो वह अपनें गांव चला जाएगा।जब मोहन की आंखें ठीक हुई तब सुकन्या नें अपनें भाई को सारी कहानी सुनाई मुझे मेरे माता-पिता नें बचपन में वह प्यार नहीं दिया जो देना चाहिए था। मैं भी तुम्हारे गांव की हूं। बेटे की लालसा में उन्होने बेटी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होनें जब मुझे स्कूल में नहीं भेजा मैं घर छोड़ कर घर से भाग गई। ये ही मेरे मां बाबा है। इन्होनें मुझे पढाया लिखाया ही नहीं बल्कि आज डाक्टर बन कर अपनें ही गांव में आ गई  हूं। मैनें  यहां कर अपनें मां बाबा को ढूंढनें की कोशिश की लेकिन वे  सब छोड़ कर कहीं चले गए। मोहन जब घर चलने के लिए तैयार हुआ तो बोला बहना आज तो मैं तुम्हारी फोटो ले जा रहा हूं। इस में तुम्हारी  बचपन की भी तस्वीर है।  तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। वह बोली किसी दिन तुम्हारे घर चलूंगी। अपनी बहना से विदा हो कर जब घर आया उसने अपनें माता पिता को सारी कहानी सुनाई। कैसे  उस नें मेरी मदद की। वह इसी गांव की ही है।  वह  डाक्टर बन गई है। उस नें ही  मेरी सहायता की है। मुझे आंखें ही नहीं दिलवाई बल्कि टांग का भी इलाज कराया। वे दोनों अपनें बेटे को ठीक हुआ देख कर बहुत खुश हुए।  वे बोले हम भी  उस लड़की से मिल कर उसे धन्यवाद  देंगें।

वह बोले अब तो जल्दी से घर में बहु आनी चाहिए।  अपनी बहन को भी शादी में बुलाना। मोहन बोला मां उस लडकी को उसके मां बाप ने बेटे की लालसा में घर छोड़नें पर मजबूर कर दिया था। अचानक रेशमा बोली बेटा उसका क्या नाम है? मोहन बोला उस का नाम तो मैनें पूछा ही नहीं उसकी फोटो मेरे पास  है।रेशमा नें जब फोटो देखी वह फूट फूट कर रोनें लगी। यह तो हमारी बेटी है। मोहन को बोली यह तो हमारी सुकू है। मोहन को गुस्सा आ गया बोला क्या आप  ही दोनो थे जिन्होंनें मेरी फूल सी कोमल बहना को बहुत सताया? मैं भी आप दोनों को छोड़कर आज सदा के लिए चला जाऊंगा।  वह उन को छोड़कर चला गया। वह उन दोनों से बोला जब तक मेरी बहन तुम को माफी नहीं देगी तब तक आप यहां नहीं रह सकते।आप नें  बेटीके साथ साथ न जानें क्या क्या अन्याय किया? बहु के साथ भी इसी तरह पेश आओगे। मैं तो यहां से जा रहा हूं। दोनों मां बाप  यह सुन कर घर  छोड़ कर चले गए। दोनों दर दर भटकनें लगे। वक्त पडनें पर किसी नें  भी उन का साथ नहीं दिया। फटे वस्त्रों में दर दर कभी पत्थर तोड़ते। दुर्गम रास्तों पर चल कर कभी भीख मांगनें  लगते।

एक दिन जब सुकन्या अपनें भाई से मिलने आई तो वह मोहन को कहनें लगी क्या तुम मुझे अपनें माता पिता से नहीं मिलवाओगे? वह बोला तुम मेरी  सगी बहन हो। बहन उस के गले लग कर फूट फूट कर रोनें लगी। एक बार मेरे माता-पिता से मुझे मिलवा दो। वह बोला मैंनें  अपनें माता पिता को कहा जिसमें  मेरी फूल सी कोमल बहन को घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया उन को मैं अपने साथ नहीं रखूंगा। जाओ मैं भी आप का बेटा नहीं। वह जब तक आप को क्षमा नहीं करेगी तब तक मैं भी आप को क्षमा नहीं करुंगा। सुकन्या बोली भाई मेरे वह कहां जाएंगे? वह बूढे हैं।  मोहन बोला वह तुम्हें खोजनें निकल पडे।  अच्छा है जब बाहर दर दर भटकना पड़ेगा तब पता चलेगा। वह कहने लगे हमनें अपनी बेटी के साथ अन्याय किया है। हम उस से क्षमा मांग कर ही रहेंगें। वह न जानें कहां चले गए।

एक दिन सुकन्या नें अखबार में उन दोनों की फोटो  दे कर कहा जो कोई भी उन दोनों को ढूंढने कर लाएगा उन्हें मुंहमांगा ईनाम दिया जाएगा।

दर दर की ठोकरें खानें के बाद उन्हें समझ आ गया था कि बाहर रह कर कमाना  कितना मुश्किल होता है। काश हमारी बेटी हमें मिल जाती।  हमें आज पता चला बाहर निकल कर कमाना कितना मुश्किल होता है?  उस छोटी सी मासूम बच्ची  नें कितने दुःख सहे होंगें। पुलिस के कर्मचारियों नें उन दोनों को ढूंढ  कर उन्हें अपनें साथ चलने को कहा। वे बोले हम दोनों कहीं नहीं जाएंगें। हमनें अपनी बेटी का दिल बहुत दुःख आया। वह यहां हमें जब मिलेंगी तब हम उस से अपनें गुनाहों की माफी मांगेंगें। हम नहीं तो यहीं  पर अपनी जाने देंगें। आप हमें नहीं ले जा सकते। आप हमें मौत दे दिजीए या जहर दे कर मार डालो। हम यहां से अपने बेटे के पास भी वापिस नहीं जाएंगें। पुलिस वालों नें बहुत कोशिश की मगर वे उन्हें अपने साथ ले जानें में सफल नहीं हुए।सुकन्या नें जब यह सुना तो बहुत दुःखी हुई। वह अपनें भाई के पास जा कर बोली मां पिता को वापिस ले कर आओ। मोहन जब अपनें माता पिता के पास पहुंचा वह बोला मां पिता जी  मेरी बहन घर आई थी उसने मुझे कहा कि मैं आप दोनों को घर ले आऊं। वह दोनों बोले हम तुम्हारे साथ नहीं चलेंगें। सुकन्या जब तक हमें माफ नहीं करेगी हम कहीं जाने वाले नहीं। तुम घर जाओ बेटा। अपना ध्यान रखना। हमें अपनें गुनाहों की सजा मिल रही है। सुकन्या से रहा नहीं गया। वह अपनें माता के पास पहुंची। उससे अपने माता पिता की शोचनीय अवस्था नहीं देखी गई। वह फूट फूट कर बोली मां पिता चलो अच्छा ही हुआ आप दोनों को एहसास तो हुआ। मेरे लिए यही बहुत है। वह उन्हें अपनें घर ले कर गई।

सुकन्या को देख कर  वे बोले बेटी क्या तुम हमें मौफ नहीं करोगी? हम माफी के काबिल तो नहीं। सुकन्या बोली कोई बात नहीं आप दोनों को अपनी गल्ती का एहसास हुआ जाओ मैं आप दोनो को माफ करती हूं। वे बोले बेटी अब हमें इजाजत दो। सुकन्या बोली जाते जाते क्या आप मेरे माता-पिता से नहीं मिलोगे? वह बोले क्यों नहीं? हम उन के पैरों पड़ कर माफी मांगना चाहते हैं। अचानक पलक और अक्षय उनके सामने आ गए। अक्षय को देख कर दोनों  को याद आ गया  इन्होंनें ही हमारी बेटी कि रिपोर्ट लिखवानें के लिए कहा था। वे दोनों बोले हमारी आंखो पर काली पट्टी चढी हुई थी हमें उस समय-कुछ नजर नहीं आया। बेटे के मोह में अपना भला बुरा  समझनें की क्षमता को खो बैठे थे।

सुकन्या नें फोन कर अपने भाई को  अपनें घर बुला लिया और कहा  माता पिता को मैनें मौफ कर दिया है। तुम भी उन्हें माफ कर उन्हें यहां से ले कर जाओ।

मोहन बोला बहना मैं आ रहा हूं। मोहन अपनी बहन के घर पहुंचा। अपनें माता पिता को अपने साथ ले आया। वे कहने लगे अगर हर लोग लडके और लड़की मेंअन्तर न कर दोनों को एक दृष्टि से उनकी परवरिश करें तो सभी का जीवन धन्य हो जाएगा।  असली मायनों में आज हमारी आंखें  खुल  गईं हैं।

स्वच्छता का संकल्प भाग(1)

मेरे प्यारे बच्चों तुम इधर तो आओ।
आने में तुम यूं ना देर लगाओ।।
नाना-नानी चाचा-चाची ताया ताई, सभी को बुलाओ सभी को बुलाओ।
आने में यूं ना तुम देर लगाओ।।
अपनें वातावरण को साफ रखनें का

तुम्हे देते हैं आज यह मूल मंत्र।
यही है तुम्हारे जीवन का तंत्र।।
इसको तुम सभी अपने जीवन में अपनाना।
इस पर अमल करके यूं जीवन को सफल बनाना।।
आने में यूं ना तुम देर लगाना।
नहीं तो तुम्हें जीवन भर पड़ेगा पछताना।
मेरे प्यारे बच्चों तुम इधर तो आओ।
आने में तुम यूं न देर लगाओ।।
नाना-नानी चाचा-चाची ताया ताई, सभी को बुलाओ सभी को बुलाओ।
आने में यूं ना तुम देर लगाओ।।

इस गुप्त मंत्र को अगर न अपनाओगे।
तुम यूं ही बिमारी को दावत देते जाओगे।

इस स्वच्छता के मंत्र को अपनाओ।
अपने माता-पिता अभिभावकों और सभी को समझाओ।।
हर घर में स्वच्छता की अलख जगाओ। अलख जगाओ।।

मेरे प्यारे बच्चो तुम इधर तो आओ।
आने में यूं ना तुम देर लगाओ।
हर घर में स्वच्छता की अलख जगाओ।।
शौचालय का हर घर में निर्माण कराओ।।
हर बच्चा अपनें हाथों से शौचालय की करेगा सफाई,
तो होगी तुम्हारे मेहनत की भरपाई।
तुम्हारे घरों में चारों ओर होगी खुशहाली।
समझो तुयनें अपनी किस्मत ही संवार डाली।।

अस्पतालों के न तुम चक्कर लगाओगे।
नीम हकीम वैद्य के पास तुम न जाओगे।
योग करके अपनें जीवन को सफल बनाओगे
तभी जीवन में आगे बढते जाओगे।।।
नाना नानी चाचा चाची ताया ताई, सभी को बुलाओ, सभी को बुलाओ।।
चुन्नू मुन्नू बिट्टू बंटी, तुम जल्दी से आना।
नहीं तुम अपना वादा भूल जाना।।
चुन्नू मुन्नू बिट्टू बन्टू जल्दी जल्दी आना।
न तुम समय को यूं गवाना।
न तुम समय को यूं गवाना।।
हर एक बच्चा अपने हाथों से शौचालय की करो सफाई।करो सफाई।।
देखो यह मक्खियां तुमने कहां से बुलाई,
कहां से बुलाई।।
अपने माता-पिता अभिभावकों , छोटों और बड़ों सभी को समझाओ।
अपने आसपास गंदगी कूड़ा कर्कट का यू ढेर ना लगाओ।।
अपने आसपास नकारात्मक उर्जा ना फैलाओ।
पानी के गड्ढों को जल्दी से भरवाओ,
पानी के गड्ढों को जल्दी से भरवाओ।।
चुन्नू मुन्नू बिट्टू बंटी जल्दी-जल्दी आओ।
आने में तुम यूं ना समय को गंवाओ।।

पेड़ हमारे जीवन दाता

पेड़ हमारे जीवन दाता।

हमारा इनसे सदियों का नाता।

यह है हमारे जीवन का आधार।

इनके बिना जिंदगी है निराधार।

पेड़ है धरती की जान।

इसकी हिफाजत करना है हमारी शान।

पेड़ों को काटना है पाप।

नहीं तो जिंदगी भर भुगतना पड़ेगा श्राप।

पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ।पेड़ लगा कर

इस पावन धरा को और भी सुंदर बनाओ। पेड़ों से ही है चारों और हरियाली।

इसके बिना नहीं है खुशहाली।

अपने जन्मदिन पर बच्चा-बच्चा एक पेड़ अवश्य लगाओ।

अपने आने वाली पीढ़ियों को भी यही बात समझाओ।

पेड़ों को काटने से बचाओ।

अगर काटना ही पड़ जाए तो उसके बदले दस-दस पेड़ लगाओ।

5 जून को पर्यावरण दिवस मनाओ।

वन महोत्सव के दिन पेड़ों का जन्मदिन भी मनाओ

उत्सव मना कर खेलो कूद  झूमों गाओ।

स्वच्छता का संदेश

 (स्वच्छता का संदेश) भाग(2)

“ आओ हम सब मधुर स्वर में एक साथ गुनगुनाएं।

मिलकर हम सब अपने पर्यावरण को स्वच्छ बनाएं।। ,,

1()धातु, शीशा, गता कागज प्लास्टिक पॉलिथीन नायलॉन कूड़ा करकट  इधर-उधर नहीं फैलाएं।

(2 )अनुपयोगी सामान को कबाड़ी को बेच कर आएं।।

(3) हम कूड़े कचरे को जलाएं।

(4)साग सब्जी और फलों के छिलकों को पशुओं को खिलाएं।।

आओ हम सब साथ मिलकर पर्यावरण की स्वच्छता का यह संदेश बार-बार दोहराएं।

अपने जहन में इसको धारण कर इसको अमल में लाएं।।

रसोई के साथ लगती क्यारी में गड्ढा बना कर उसमें यह दबा आएं।

सड गल जाने पर उसकी खाद बनाकर उपयोग में लाएं।।

हम इस संदेश को मधुर स्वर में एक साथ गुनगुनाएं।

मिलकर हम सब अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सुन्दर बनाएं।।

(5) उपलों को जलाकर मक्खी मक्खी मच्छरों को दूर भगाएं।

पर्यावरण को स्वच्छ बना कर वातावरण में स्वच्छता लाएं।।

(6)लघु शंका और दीर्घ शंका के लिए  खेतों में और गलियों में ना जाकर  उसका दुरुपयोग नहीं करें।

उनके स्थान पर सार्वजनिक शौचालय में ही जाकर सबको  यह बात समझाएं।।

मल मूत्र व्यवस्था के लिए सीवरेज का उपयोग हमेशा किया करें।

(7)पेयजल स्रोतों बावड़ी कुआं हैंडपंपों नलकूपों में कूड़ा कचरा फैला कर उन्हें दूषित नहीं बनाएं।।

(8)यज्ञ शादी और सार्वजनिक स्थानों पर खाने के लिए  पत्तों के बने डुन्नों को ही उपयोग में लाएं।

खाने के लिए प्लास्टिक पॉलिथीन आदि का प्रयोग नहीं करेंगे नहीं करें।।

स्कूल में खाना  टिफिन में ही लाएं।

(9)प्लास्टिक के डिब्बे और पीने के लिए (10)(प्लास्टिक की बोतलों को उपयोग में न लाएं।।

(11)हम सब गीले और सूखे कचरे के लिए अलग-अलग  थैली बनाएं।

एक साथ मधुर स्वर में हम सब यह संदेश गुनगुनाएं।।

मिलकर हम सब अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाएं।

आओ हम यह संकल्प दोहराएं।

अपने वातावरण को दूषित होने से बचाएं।।

आओ एक और एक मिल कर हम  ग्यारह का आंकड़ा बनाएं।

अपनी शक्ति को संगठित कर वातावरण में स्वच्छता का यह संदेश हर कोने कोनें में फैलाएं।।,,

आओ स्वयं को प्यार करके खुद को सराहें

आओ स्वयं को प्यार करके खुद को सराहें।

खुद को तरक्की की राह पर हर दम आगे बढ़ाएं।

स्वयं को प्यार करके खुद को सराहें।।

दूसरों से पहले खुद को प्यार करना सिखाएं।

खुद की सराहना करके दुनिया में सबसे ऊपर निकल कर दिखाएं।

अपनी खूबियों को पहचान कर अपने में आत्मविश्वास जगाए।।

खुद को तरक्की की राह पर हर दम आगे बढाएं।

आओ खुद को प्यार करना हर एक को सिखाएं।।

 अपनी सोच को दूसरों पर ना  थोप कर  दिखाएं।

अपने फैसले खुद ही लेकर खुद में हौसला जगाएं

स्वयं को प्यार करने का मन्त्र हर किसी को सिखाएं।

खुद खुश रह कर  खुद को तरक्की की राह पर हर दम आगे बढ़ाएं।

आओ स्वयं को प्यार करके खुद को सराहें।।

अपनी कमियों को स्वीकार करके दिखाएं। उन्हें दूर भगाकर अपने में सुधार लाएं।

आओ खुद को प्यार करके खुद को तरक्की की राह पर हर दम आगे बढ़ाएं।

स्वयं की सराहना कर के हर दम आगे बढते जाएं।

नकारात्मकता को जड से दूर भगाएं।।

आओ स्वयं को प्यार करके खुद को सराहें।

जीवन और खुद के प्रति सकारात्मक सोच अपनाएं।

अपने आप से बातें करके हमेशा अच्छा काम करके दिखाएं।

खुद को तरक्की की राह पर आगे बढ़ाएं।

अपनी आवाज और शब्दों की अभिव्यक्ति को सही डगर दिखाएं।

अपने तौर तरीकों को बदलकर दुनिया में आगे बढ़ते जाएं।।

आओ खुद को प्यार करके खुद को सराहें। आलोचना करनें वालों से न कभी घबराएं।

उन्हें जिन्दगी का तोहफा समझ  कर हर दम मुस्कुराएं।

आओ खुद को प्यार कर के खुद को सराहें।।

तरक्की की सीढ़ी पर चढ़कर सफलता को गले लगाएं।

विजय श्री की पताका ध्वज पहन कर  जशन मनाएं।

आओ खुद को प्यार करके खुद को सराहें।

रंजिश

पूजा और पारुल  दोनों पक्की सहेलियाँ थीं। वे दोनों कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर रही थी। दोनों ही पढ़ने में तेज थी। पारुल के माता-पिता स्वच्छंद विचारों के थे, लेकिन पूजा के माता-पिता थोड़ा रूढ़िवादी विचारों के थे।  पूजा के पिता चाहते थे कि हमारी बेटी को हम स्नातक तक तो शिक्षा दिलवा ही देंगे।  उसके पश्चात टैस्ट दे कर उसकी नौकरी लगती है तब तो ठीक है नहीं तो उसके हाथ पीले कर देंगे। पारुल के माता-पिता उसे कहते थे कि  जहां तक तेरा दिल करता है  वहां तक तू पढ सकती है। जो करना है  करो। हमारी तरफ से पूरी आजादी है। वे  सहेलियां एक दूसरे के घर आया जाया करती थी। दोनों  की परीक्षा आने वाले थी। उन्होनें  मेहनत की। दोनों ही अच्छे अंक लेकर पास हो गई। क्लर्क  की परीक्षा के लिए  टैस्ट की तैयारी करने लगी।

पूजा सोचने लगी अगर इस बार मैं मेहनत नहीं करूंगी तो मेरे पिता मेरी शादी कर देंगे। इसलिए वह दिन-रात लगकर मेहनत करने लगी। कुछ दिनों के बाद ही उसका  परीक्षा परिणाम निकलने वाला था।वह बहुत खुश थी उसे जॉब के लिए भी चुन लिया गया। क्लैरिकल एक्जाम में निकल गई थी।  वह इसलिए खुश हो रही थी कि उसके पिता अब उसकी शादी की बात नहीं छेडेगें। पारुल टेस्ट में निकल नहीं पाई। वह फिर भी मायूस नहीं हुई। अपनी दोस्त को पारुल  कहनें लगी तू जाकर नौकरी कर ले मैं  अगले साल फिर से तैयारी करूंगी। पूजा ने जैसे तैसे करके नौकरी जाना शुरू कर दिया। उसे अपने ही शहर में नौकरी मिल गई थी।। पुजा नें जैसे ही पहले दिन ऑफिस में कदम रखा वह  वहां बहुत सारे लोगों को देखकर डर के मारे कांप गई। उस ने तो कभी इतने सारे लोगों के साथ कभी काम नहीं किया था। पहल पहले तो वह चुपचाप रहती थी। उससे अगर किसी ने प्रश्न पूछ लिया वह उसका ही उत्तर देती थी और अपने काम से काम रखती थी। उसके बौस उसको इतनी मेहनत और लग्न से काम करता देख कर उस पर बहुत ही खुश होते थे। जो लोग काम नहीं करते थे उनको पूजा का उदाहरण देते नहीं थकते थे। उस लड़की को देखो कितनी  होशियार है। हरदम  बिना   कुछ कहे ही  अपने काम में लगी रहती है। इस लड़की का काम  बहुत अच्छा होता है। उसको कभी भी कुछ बोलने का मौका नहीं मिलता है। तुम भी उसी की तरह लग्न से काम क्यों नहीं करते हो? लोग कल की आई छोकरी की प्रशंसा सुनकर एक दूसरे की तरफ देख कर  न जाने क्या क्या कहते? पूजा जब भी गुजरती उसे कहते वह देखो  बौस की चमची आई। कल की आई छोकरी हमें काम सिखाने आई है। यह क्या काम सिखाएगी? हम ही  उसे सिखा देंगे। अभी नई नई आई है। इसे काम करने का चस्का है। थोड़े दिनों बाद देखना यह भी हमारी तरह ही हो जाएगी। हमें तो जो मर्जी कर  लें  कोई हमारी प्रशंसा नहीं करता। ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी। हमने कौन सा झंडे गाड़ने हैं।गुजारे  लायक हमें  मिल ही जाता है। वह  देखो  सजधज कर बौस को बार बार फाइलें  दिखानें के बहानें जाती रहती हैं।  बहाना है काम का। बहुत  गप्पे लड़ाना चाहती होगी। पूजा अपने मन में सोच रही थी उसने क्या इस दिन के लिए इतनी मेहनत की थी? उसने नौकरी के लिए रात-दिन सपने देखे थे। वह तरक्की की रास्तेे इतना आगे बढ़ जाएगी। उसकी वाह वाह! होगी। उसके माता-पिता  को गर्व  होगा। उसके सारे के सारे सपने चूर हो गए। उसकी सहेली उसके साथ होती हो तो कितना अच्छा होता? वह तो तैयारी करनें के लिए दूसरे कॉलेज में चली गई है। मुझे अब ऑफिस में काम करना अच्छा नहीं लगता। घर आती तो अपने कमरे में घंटो रोती रहती क्या ऐसा होता है ऑफिस में काम करना? आज कुछ भी हो जाए मैं ऑफिस से इस्तीफा दे दूंगी। रोज-रोज की खींच खींच से तंग आ गई हूं। हर रोज नए से नए तानें सुनने को मिलते हैं। कर्मचारी वर्ग ने चपरासी तकं को सिखा दिया है कि इस लड़की का काम मत किया करो। यह लड़की बहुत ही घमंडी है।

एक दिन जब वह घर आई तो बहुत उदास थी। उसकी मां ने पूछा बेटा तुम उदास क्यों हो? उसके पिता ने उससे पूछा बेटा तुम्हें क्या हुआ? तुम  इतना उदास  तो पहले  कभी नहीं रहती थी। वह बोली पापा ऐसी कोई बात नहीं है। उसके पापा बोले बेटा तुझे अपनी सहेली की याद आ रही होगी। इसलिए उदास है। तेरा दिल कर रहा है तो 2 दिन की छुट्टी लेकर उसके पास चली जाना। अगले दिन  उसने देखा उसके दूसरी ओर  बैठनें वाले कर्मचारी उसको  ऊंची आवाज में बोले मैडम जल्दी आया करो। देर से क्यों पहुंची हो? वह सचमुच ही आज देर से औफिस पहुंची थी। बौस  की चमची हो  इसलिए ही  बौस नें कुछ नहीं कहा। आज उसे भी गुस्सा आ गया। भाई आज थोड़ा देर हो गई। हर रोज तो समय पर आती हूं। तुम में से कुछ तो ऑफिस में कभी  1:00 बजे कभी 2:00 बजे कभी 300 बजे आते हो।मन न करे तो  चाहे ना आओ। तुम भी तो हर रोज ऐसा ही करते हो। बोलने से पहले सोच लिया करो किसको क्या कर रहे हो?  पूजा नें इतना ही कहा था कि कुछ  कर्मचारी अपनी सीट से उठकर उस पर छींटाकशी  करनें लगे। उसे कहनें लगे कि कल की आई छोकरी हमें सिखानें लगी। हम तब से यहां नौकरी कर रहें हैं जब तू पैदा भी नहीं हुई होगी। पूजा अधेड़ वर्ग के कर्मचारी को देख कर बोली मैंने आपको नहीं कहा चाचा। यह जो आपके साथ बैठे हुए बकुला भक्त हैं उन्हें कह रही हूं। इतने जोर से तू तू मैं मैं हो रही थी। बॉस ने सब कुछ देख लिया था। वह अपनी सीट से उठकर पूजा के पास  आकर बोले अब क्या तुम भी इनमें शामिल हो गई? मुझे तुम से ऐसी आशा नहीं थी।

पूजा चुपचाप अपनी सीट पर आ गई। उसे बहुत रोना आ रहा था। बाहर आकर अकेले में खूब रोई। क्या ऐसा होता है ऑफिस? मैंने ऑफिस  को लेकर क्या-क्या सपने संजोए थे? मेरे सारे  के सारे सपने धराशाई हो गए। मैं यहां पर कल से काम नहीं करूंगी चाहे कुछ भी हो जाए। मैं तो घर पर ही रहूंगी। मैं अपने पिता को कहूंगी कि मेरा अब नौकरी करने का कोई इरादा नहीं है। दिन के वक्त पूजा ने अपना इस्तीफा लिख कर बॉस की मेज पर रख दिया। बौस   अभी अभी ऑफिस में पहुंचें  थे। उसने बौस को नमस्ते की। उन्होंने उसकी नमस्ते का भी जवाब नहीं दिया।

पूजा अपने मन में सोचने की शायद वे अभी तक  मुझसे कल वाली बात पर नाराज हैं।  मुझसे अब कोई नाराज नहीं होगा। बॉस ने जैसे ही मेज पर रखी डाक पर पड़ी तो उनकी नजरें पूजा के लिखे कागज पर पड़ी। उनकी मेज   पर दो-तीन कर्मचारी उपस्थित थे। बॉस ने अपने एक असिस्टेंट को कहा कि तू पढ़कर सुना कि वह क्या लिख कर गई है? सर जी यह तो उसका  त्यागपत्र है। उसने पढ़ना शुरू किया। उस में पूजा ने लिखा था सर मुझे यहां पर आ कर काम करते-करते बहुत ही अच्छा लगा। यहां पर मेरी वजह से ना जाने क्यों ऐसा माहौल पैदा हो गया है? कुछ कर्मचारी वर्ग  मुझ से खफा रहते हैं।  इन सभी को मैं अपने परिवार की  तरह समझती थी लेकिन हर रोज मुझ पर कटाक्ष कर करके यह सब नहीं  थकते थे। इतने दिन सुनते सुनते मेरी हिम्मत  अब जवाब दे  गई। कुछ कर्मचारी तो मेरे पिता की उम्र के हैं। कुछ छोटे हैं और कुछ बड़े। मुझको ले कर ना जाने क्या-क्या गलतफहमियां पैदा हो गई। मैं उनको कुछ नहीं कहना चाहती। मैं अपना इस्तीफा देकर जा रही हूं।

बॉस ने   अपने सहायक को कहा ठीक है तुम इस्तीफे को यहीं रख दो।  पूजा को  मेरे पास इसी वक्त भेजो। रघु ने जाकर  कर्मचारी वर्ग को कहा पूजा ने अपना इस्तीफा दे दिया है। वह लड़की बहुत ही खुदार है। सभी आपस में कहने लगे कि हमने उस लड़की से बहुत ही अन्याय किया है। वह लड़की अभी अभी तो नौकरी में नई नई आई थी। उसे कहां तो हमें प्यार से रखना चाहिए था? हमने तो उस बेचारी के साथ अन्याय ही नहीं किया बल्कि उसके नौकरी करने के   शौक  को  ही समाप्त कर डाला।  इसकी जगह पर अगर हमारी बेटी होती तो क्या हम भी उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करते? पूजा  बौस के कमरे की ओर आ कर  बोली क्या मैं अंदर आ सकती हूं? उन्होंनें कहा आ जाओ। सर नें पूजा को बैठने का इशारा किया। पूजा  बैंच पर बैठ गई थी। बौस नें  चपरासी को एक गिलास ठंडा पानी  लाने को कहा। पूजा को कहा इसे पियो दिमाग ठन्डा हो जाएगा।  पूजा ने पानी का गिलास सारा पी लिया। बौस कहने कि तुम इतनी छोटी सी बात पर इस्तीफा देकर जा रही थी कि  सारे कर्मचारी तुम्हें ना जाने रोज क्या क्या कहते हैं? बेटा तुम बहुत होशियार हो। लड़ाई झगड़ा ना हो तो नौकरी करने का क्या मजा? क्या कभी तुम्हारे माता-पिता तुमसे झगड़ा नहीं करते? क्या तुम्हारे  बडों नें भी तुम्हें कभी नहीं डांटा? लड़ाई झगड़ा करके क्या औफिस  छोड़ने की बात करती हो? कल को जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तुम्हारे पति तुमसे लड़ाई झगड़ा करेंगे तो क्या तुम अपने पति को छोड़ कर चली जाओगी। यह औफिस  तुम्हारे परिवार जैसा है। तुम्हें इनके साथ वैसे ही पेश आना चाहिए। आज तो मैं तुम्हें समझा रहा हूं। जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। तुम अगर कल काम पर आओगी तो मैं समझूंगा कि तुम मेरी बात को समझ गई हो। दूसरे दिन पूजा के मन में  जो गुबार था,वह सारा का सारा गुस्सा काफिर हो गया था। जैसे ही ऑफिस में पहुंची सारे कर्मचारी वर्ग ने उठकर कहा वेलकम पूजा। हमें माफ कर दो। कहीं ना कहीं हम भी गलत थे।  नौकरी में छोटी मोटी नोकझोंक तो चलती रहती है। लड़ाई झगड़ा तो इंसानों की फितरत है।  बौस नें उसे आते   देखा तो वे भी मुस्कुरा कर बोले वेलकम पूजा। पूजा मुस्कुराहट भरी नजरों से सभी की ओर देख रही थी। असली माईनें में तो आज उसकी जॉब लगी थी। वह वहां पर काम करके खुश थी। आज उसे हर काम कर के खुशी मिल रही थी। अगले साल उसकी सहेली पारुल भी उसके औफिस में लगगई थी। दोनों  को एक बार फिर से ईकटठा काम कर के खुशी हासिल हो रही थी।

गढे खजानें का रहस्य

एक किसान और उसकी पत्नी एक छोटे से गांव में  रहते  थे। उनकी एक बेटी थी उसका नाम था मीनू। जैसा नाम था वैसे ही गुणों की खान थी। वह केवल 5. साल की थी। किसान उसे गांव के स्कूल में पढ़ने भेजा करता था।। वह तीन-चार किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाती थी। उनकी बेटी की यह खासियत थी कि वह हमेशा सच कहती थी। उसकी मां ने उसे बचपन से हमेशा ही समझाया था कि बेटा अगर कोई झूठ बोलता है तो उसकी जुबान कट जाती है। उस नें बचपन से ही दिमाग में बिठा लिया था अगर वह झूठ बोलेगी तो उसकी  जीभ कट जाएगी। वह अपने मन में सोचने लगती अगर उसकी जीभ कट जाएगी तो वह खाना कैसे खाएगी? नहीं मुझे अपनी जीभ नहीं कटवानी। वह हमेशा सच ही बोलती। उसके दिमाग में यह बात पूरी तरह बैठ गई थी कि हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए।

आज वह छः साल की हो चुकी थी। गांव वाले सब उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते थे कि इतनी छोटी सी बच्ची हमेशा सच बोलती है।

एक बार मीनू स्कूल से वापस आ रही थी। उसने देखा पास ही झाड़ियों में कितनी रसभरियां लटक रही थी। वह खाने के लिए मचलने लगी। उसनें  तभी सड़क  पर से चिल्लानें की आवाज सुनी। गाड़ी की आवाज कंहा से आ रही थी? उसने जाकर देखा उस गाड़ी में एक लड़की थी उसका मुंह बंधा हुआ था। वह सहायता के लिए चिल्ला रही थी। उसने होशियारी से काम लिया। गाड़ी का नंबर नोट किया। वह उस लडकी की सहायता के लिए भागने लगी। उस लड़की को बचाने के लिए कोई ना कोई तो आएगा। उसने झाड़ी में एक डंडा देखा था। डंडे को उठाने के लिए  झाड़ी की ओर भागी। वह उस व्यक्ति को डंडे से मार देगी वह  जैसे ही डंडा लेकर वापिस आई  उसने  किसी आदमी को गाड़ी दौड़ाते हुए देखा। गाड़ी उसकी आंखों से ओझल हो गई थी। अपने पिता के पास खेत में आई। उसके पिता बोले बेटा क्या हुआ? स्कूल  से जल्दी छुट्टी करके क्यों आई? वह बोली नहीं बाबा। आप अभी काम कर रहे हो? बाद में आपसे बातें करते हैं। उसकी मां उसके पिता को खेत पर ही खाना लेकर आई थी।

वह सीधी दौड़  कर ग्राम पंचायत अधिकारी के पास गई। जल्दी चलो, इस गांव की किसी बेटी को  लोग उठाकर ले गए हैं?  उसके मुंह और हाथ पैर बंधे हुए थे। मैंने उस लड़की को गाड़ी में जाते देखा है।  मैं जैसे ही  डंडा ले कर उसे बचानें भागी,  वे वहा से जा चुके थे। ग्रामपंचायत अधिकारी भी जान गए थे कि वह कभी झूठ नहीं बोलती। गांव में एक यही लड़की है जो हमेशा सच बोलती है। जल्दी से उन्होंने कपड़े बदले और पुलिस थाने में  मीनू के साथ जाकर पता लगाया कि कोई यहां पर रिपोर्ट दर्ज कराने तो नहीं आया। ग्रामपंचायत अधिकारी ने देखा वहां पर  पुलिस स्टेशन में एक आदमी और औरत  समीप के गांव से रिपोर्ट लिखवानें आए थे। उन्होंने रिपोर्ट लिखाई थी। कि हमारी बेटी लापता हो गई है। उस की रिपोर्ट  देख कर कर पुलिस अधिकारी नें   मीनू  को कहा  कि क्या तुम उस व्यक्ति का चेहरा पहचान सकती हो? वह बोली हां हां। उसके माता पिता ने अपनी बेटी की फोटो दिखाई। हां यही लड़की थी। उसने गाड़ी का नंबर पुलिस इन्स्पैक्टर  को दिखा दिया। पुलिस वालों ने जल्दी से अपने सभी अधिकारियों को कह दिया कि इस गाड़ी को जो कोई भी देखे उसको रोक लिया जाए। उस गांव के सारे के सारे स्थानों पर जहां जहां पुलिस इन्स्पैक्टर तैनात हैं  सभी को सूचित कर दिया गया।  पुलिस इन्स्पैक्टर नें  उस गांव के एक खंडहर की ओर गाड़ी जाते देखी। उस गाड़ी मे खरोंचें थी। गाड़ी का वही नम्बर था। इन्स्पैक्टर नें गाड़ी चालकों को आदेश दिया कि तलाशी करो।  पुलिस को पहले ही शक हो गया था कि दाल में कुछ काला जरूर  है। गाड़ी की डिक्की का ताला तोड़ दिया उसको खोल कर देखा तो वहां पर एक लड़की बेहोश थी। जिस लड़की का फोटो उसके माता पिता ने पुलिस थाने में दिया था वह तो वही लड़की थी। पुलिस इंस्पेक्टर  उस लडकी को सुरक्षित देख कर खुश हो गए। यह वही लड़की थी। उस लड़की के माता पिता अपनी बेटी को सुरक्षित देख कर प्रसन्न हुए। उन्होनें मीनू का धन्यवाद किया।

गांव में देखते ही देखते  मीनू मशहूर  हो गई। जो कोई भी  उन के गांव में आता उस लड़की को देखने जरूर आता और उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं थकता था।  उसके पिता भी अपनी बेटी की बहादुरी की प्रशंसा किया करते थे।

एक दिन मीनू स्कूल को जा रही थी वह देरी से स्कूल पहुंची। उसे रास्ते में दो रुपये  का एक सिक्का मिला। उसने वह सिक्का उठाया और उसको अपने बनियान की जेब में डाल दिया। वह स्कूल देर से पहुंची थी तो उसकी मैडम बोली बेटा आज देर से क्यों आई हो?वह बोली मैडम जी मुझे  रास्ते एक सिक्का मिला उसकी मैडम ने कुछ सुना नहीं बोली अच्छा बैठ जाओ। कल से जल्दी आना। कक्षा में सभी बच्चे पढ़ाई कर रहे थे।

अध्यापिका बोली आज मैं आप सभी को कुछ ना कुछ जानकारी संबंधित बातें बताऊंगी। अध्यापिका बोली तुम्हारे माता-पिता तुम्हें दिन रात मेहनत करके स्कूल भेजते हैं। दिन-रात रुपया कमाने के लिए मेहनत करते हैं। कई लोग तो रुपया कमाने के लिए चोरी चाकरी भी करते हैं। बेटा रुपया है ही ऐसी चीज जिसके पास होता है सब उसकी ओर खिंचे चले जाते हैं। जैसे चुंबक  सिक्के को अपनी ओर खींच लेती  है उसी प्रकार लोग भी उसकी ओर खिंचे चले जाते हैं।

मीनू  सोचने लगी कैसे  खींचे चले आते होंगे? रुपया लोगों को अपनी ओर  कैसे खींचता होगा? उसकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी। दिन को उसकी सहेली रिन्की बोली देखो मेरे पास चुंबक है। मीनू बोली कृपया मुझे थोड़ी देर के लिए चुंबक दे दो। मैं उस से देखती हूं कि  कैसे पैसे को वह अपनी ओर खींचती है? मेरे पास भी ₹2 का एक सिक्का  है। उसकी सहेली बोली बाद में  मुझे भी दिखाना। मीनू बोली तू आंखें बंद कर दे। उसके बाद तुम्हे  दिखाऊंगी। उसकी सहेली ने आंखें बंद कर दी उसने चुपके से सिक्का निकाला और चुंबक को उसमें लगाया।  सचमुच में  ही चुम्बक  नें रुपए को अपनी ओर खींच लिया था। छोटी सी बच्ची की दिमाग में आया कि वह उस  सिक्के को किसी को भी नहीं देगी। अपनी  सहेली  को भी  वह  सिक्के को नहीं दिखाएगी। उसने अगर सिक्का दिखा दिया तो वह सबको बता देगी। उसका सिक्का  सब  उस से ले लेंगे। उसकी सहेली बोली कितनी देर हो गई है? आंखें खोलूं क्या? वह बोली हां। रिन्की ने आंखें खोली। बोली मुझे भी दिखा रुपया। मीनू  बोली मैं दिखा नहीं सकती। उसने अपने बनियान की जेब में वह सिक्का रख दिया था।उसकी सहेली  थोड़ी देर नाराज हो कर फिर से उस के साथ खेलने लग गई थी।।

घर को शाम को  वह वापस आई तो  उसने अपनी मां को कहा कि मां  आज अध्यापिका जी ने हमें बताया रुपया लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। उसकी मां धीरे से बोली रुपया  है ही ऐसी चीज। रुपए के लिए वह भाई भाई का खून कर देता है। रुपए की चका चौंध में वह सब कुछ भुल जाता है। कौन अपना है कौन पराया है? सभी को कष्ट  पहुंचाता  है। उसके पिता बोले बेटा  जब तुम बड़ी हो जाओगी तभी तुमको पता चलेगा कि पैसा कैसे लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है? अभी तो तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।

मीनू रास्ते में चलते चलते यह सोच रही थी कि जब तक उसको अपने प्रश्न का हल नहीं मिलेगा वह हार नहीं मानने   वाली। उसने  रुपये के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताया। उसने वह सिक्का अपने घर की  फुलवारी में   दबा दिया था। एक दिन उसका दिल परांठा खाने को कर रहा था। वह बोली मां मुझे आज परांठा बनाओ। उसकी मां बोली मैं तुझे पराठा कहां से खिलाऊं? मीनू बोली अगर मैं तुम्हें पैसे दूं तो क्या आप मुझे परांठा बनाएंगी? माता-पिता बोले तेरे पास कौन सा गड़ा खजाना है। वह बोली हां मेरे पास गढा खजाना है। उसकी मां और उसके पिता उसकी तरफ हैरत भरी नजरों से देखने लगे वह बोली मां हां मैं सच कह रही हूं। मेरे पास गड़ा खजाना है। उसके माता-पिता आपस में बोले तुम्हारे पास यह खजाना आया कहां से?

एक दिन जब मैं स्कूल से आ रही थी वहां पर मुझे वह खजाना मिला। लेकिन अभी मैं आपको उस खजाने के  बारे में कुछ नहीं बताऊंगी। आप अभी तो मेरी इच्छा पूरी करते रहो। उसके माता-पिता बोले हमारी बेटी कभी झूठ नहीं बोलती है। शायद उसको खजाने का रहस्य पता हो। हम उस से पता लगाकर ही रहेंगे। उनकी बेटी बोली मैं आपको 6 महीने का समय देती हूं तब तक आप मेरी इच्छा पूरी करते चलो। उसके मां-बाप बोले ठीक है। उसके माता-पिता उसे कभी चॉकलेट लाते और उसे बढ़िया-बढ़िया चीजें खाने को देते। उसकी मां उसकी हर इच्छा को पूरी करती। वह हमेशा खुश रहने लगी। धीरे-धीरे इस बात का पता गांव में रहने वाले सेठ जी को लगा वह मीनू के घर आकर बोला बेटा तुझे खजाने का रहस्य पता है। कहां है है वह खजाना? वह बोली चाचा पहले मेरी सेवा करो तभी मैं आपको गड़े खजाने का रहस्य बताऊंगी। सभी जानते थे कि वह लड़की कभी झूठ नहीं बोलती। एक बार उसने पुलिस वालों की मदद करके एक औरत की जान बचाई थी। सेठ जी बोले बेटी मुझे उस गड़े खजाने का रहस्य बता दो। कहां रुपया गढा है। वह बोली चाचा जी आप को 6 महीने का समय देती हूं। आपको छः महीने बाद बताऊंगी। सेठ जी ने सोचा 6 महीने जल्दी ही गुजर जाएंगे। बेटा तेरी पढ़ाई के लिए सारा रुपयाा मैं तुम्हें दिलवा दूंगा। बैंक में ₹100, 000 उसके नाम से जमा कर दिए। वह बोली चाचा कुछ दिन इंतजार करो। हर रोज उसके घर के पास लोगों की भीड़ लगी रहती।

एक दिन वह हलवाई की दुकान पर जाकर बोली हलवाई चाचा हलवाई चाचा मुझे जलेबी खानी है। वह बोला पहले मुझे गड़े खजाने का रहस्य बताओ।  मीनू  बोली आज से 6 महीने के पश्चात में आपको गड़े खजाने का रहस्य बताऊंगी। मेरे पास रुपयों से भरा भंडार है।  हलवाई बोला तुझे जलेबी खानी है मैं तेरे घर पर हर रोज जलेबियां भेज दिया करूंगा। लेकिन तू मुझे उस गड़े खजाने का रहस्य जरुर बताएगी। वह बोली चाचा आप को 6 महीने का समय देती हूं। 6 महीने बाद में आपको गड़े खजाने का रहस्य बताऊंगी। रास्ते में  वह चलते जा रही थी। वह सोचनें  लगी  कि आज मुझे पता चल गया कि पैसा कैसे लोगों को अपनी ओर  कैसे खींचता है। मुझे सिक्का मिला है। सब  मुझे सच्चा समझते हैं। मेरे पास गड़ा खजाना है इसलिए सभी  मुझसे से मेरे खजाने को  प्राप्त  करना चाहते हैं। मैं क्या करूं? सभी को मैंने 6 महीने का समय दिया है। 6 महीने का समय बीतने वाला है। वह अपने घर में जल्दी ही पहुंचना चाहती थी।

आज घर में  उसका जन्मदिन मनाया जाएगा। आज  ही गढे खजानें   के बारे में  सब को बताऊंगी। वह अपनी धुन में ही चलती जा  रही थी।  वह सोचनें लगी आज सब लोग  मेरे जन्मदिन की तैयारी में  लगे होंगे। आज तो उसके घर में ना जाने कितने उपहारों का ढेर लग  गया होगा। जल्दी जल्दी घर की ओर कदम बढ़ा रही थी जैसे ही वह चल रही थी उसे ठोकर लगी। उसने अपने सामने एक भिखारिन को खड़ा पाया। उसके बिखरे बिखरे बाल थे। वह भूख के मारे बेचैन थी। उसने अपनी गोद में एक छोटे से बच्चे को लिया हुआ था। उसको इस अवस्था में देखकर मीनू को बड़ी दया आई। आज सब के सब उससे गड़े खजाने के रहस्य को जानना चाहते हैं। मैं वह खजाना किसी को नहीं दूंगी।  उसने बुढ़िया का हाथ थामा और कहा दादी मां आज मेरा जन्मदिन है। घर में बहुत पकवान बनें हैं। आप मेरे साथ चल कर मेरा जन्मदिन मनाओ। वह अपने साथ बुढ़िया  को लेकर आ रही थी। वह जैसे ही घर पहुंची सभी लोगों ने तालियों से उसका स्वागत किया। उसके सामने देखते ही देखते  सभी नें  उपहारों का ढेर लगा दिया। वह बोली आज मैं आप सभी के सामने गड़े खजाने का रहस्य उजागर करूंगी। सबसे पहले आप लोग मेरा जन्मदिन मनाओ और उत्साह मनाओ। उसने दादी मां को अपने हाथ से खाना खिलाया और दादी मां खुश होकर उसे दुआएं दे रही थी।

अचानक वह अपनी फुलवारी की तरफ गई।उसने  सेठ जी को कहा यहां खुदाई करो। सेठ जी  खुदाई   कर के थक गए। लेकिन उन्हें कोई खजाना नहीं मिला। उसके पश्चात  उसनें हलवाई चाचा को कहा आप खुदाई करो।उन्होनें भी देखते ही देखते वहां खुदाई कर डाली। उन्हें भी खजाना नही  मिला। उसनें अपने पिता को कहा आप ही खोद कर  निकालो। उसके पिता नें भी खुदाई कर डाली। देखते ही देखते वहां खेत बन गया था। वह बोली निराश होनें की जरुरत नहीं। मैं निकालनें का प्रयत्न करती हूं। अचानक जोर से चिल्लाई मिल गया। सिक्के को हाथ में लेकर बोली। यह खजाना मैं  किसी को भी नहीं दूंगी?  लोग कहनें लगे कहां है खजाना? सब के सब देख रहे थे। उसके पास तो कुछ भी नहीं था। मीनू बोली सबसे ज्यादा  इस खजाने की जरूरत इस  बुढ़िया  काकी को है। आप सभी के पास तो इतना कुछ है। उसने वह ₹2 का सिक्का निकाला और उस भिखारिन को दे दिया। सब के सब उसको सिक्का देते हुए देख रहे थे। सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं। आज  उसे पता चल गया था कि रुपया कैसे सब को अपनी ओर खींचता है?

सभी लोग अपना अपना  सा मुंह लेकर अपने-अपने घरों को चले गए। जो लोग समझदार थे उन्हें पता चल गया था कि इस छोटी सी लड़की ने हम सीख दी है।  हम सब लालची बनकर उस खजाने के रहस्य का पता लगाते रहे। आज एक छोटी सी लड़की ने हमें सीख दे डाली। सभी को अपनी गलती का एहसास हुआ। भिखारिन बोली बेटा सुखी रहो। उसे दुआएं देती हुई अपनें घर की ओर चले गई। उसके पिता बोले आज तो इस लड़की ने हम सब को सीख दे डाली और खेत की खुदाई भी कर डाली। उस में  हम बीज बो देंगें।  उस जमीन में अनाज पैदा होगा। उसे  हम  बाजार में बेच देगें तो हमें रुपया ही तो प्राप्त होगा।